कौवे और कोयल की वार्ता

एक दिन कौवा कोयल से बोला।
तू भी काली मैं भी काला।
कुदरत नें ये क्या अनर्थ कर डाला।।
तुम्हें कोयल रानी कहकर सभी बुलाते हैं।
मुझको कुरुप समझ कर के मुझे सब चिढातें हैं।।
तुम डाल-डाल पात पर चढ़कर मधुर ध्वनि से कूक-कूक करके अपना प्यार जताती हो।
मीठी ध्वनि सुना कर सबके मनों को लुभाती हो।।
मेरी कर्कश ध्वनि सुनकर लोग घरों से बाहर आ जाते हैं।
मुझ पर पत्थर की वर्षा कर अपना क्रोध मुझ पर बरसाते हैं।।
केवल पितृ पक्ष में ही मुझ पर थोड़ी दया जताते हैं।
उस दिन सुबह से ही मेरी बाट जोहते जोहतें थक जाते हैं।।
मैं कांव कांव कर के छत की मुन्डेर पर चढ जाता हूं।
उनके घर मेहमानों के आने का आभास उन्हें दिलाता हूं।।
कोयल कौवे से बोली तू तो है सर्व भक्षी प्राणी तू तो सब कुछ खाता है।
मैं केवल शाकाहारी फल खाने वाली फिर तू मुझे क्यों सताता है?
कोयल अपने मन में बोली तू सचमुच में ही भोला भाला है।
सीधा साधा है पर नुकीली बड़ी चोंच वाला है।।
मैं तो हूं छोटी चोंच वाली एक अनाड़ी।
लेकिन हूं एक शातिर खिलाड़ी।।
मैं अपने अंडे कौवी के घोंसले में रख आती हूं। बड़ा होने तक उनका इंतजार करती रहती हूं।।
कौवी बेचारी सब बातों से अनजान अपने बच्चे समझकर उनका पालन पोषण करती है।
अपनें बच्चों की रक्षा के हित उन पर सारा प्यार लुटाती है।
बढ़ा होते ही मैं चुपके से उन्हें लेनें आती हूं।
मैं अपनें बच्चे ले जा कर फुर्ती से फुर्र उड़ जाती हूं।

1 thought on “कौवे और कोयल की वार्ता”

Leave a Reply to PaltroxT Reviews Cancel reply

Your email address will not be published.