नन्हा फरिश्ता

किसी गांव में एक जुलाहा रहता था। वह सूत कात कात कर दिन रात मेहनत करता जो कुछ कमाता उसी से वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था। उसके एक बेटा था वह हर वक्त उसके पास बैठा रहता था। वह उससे थोड़ा थोड़ा सूत कातना सीख गया था। वह सोचा करता था कि एक दिन वह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। तब मेरी किस्मत भी बदल जाएगी। वह हर वक्त अपने बेटे को नए नए तरीके सिखाता था।

एक दिन उसका बेटा अचानक बीमार हो गया डॉक्टर ने कहा कि इस के इलाज के लिए ₹500, 000 लगेंगे क्योंकि इसको ब्रेन ट्यूमर है। जुलाहा यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया उसके पास तो अपने बेटे का इलाज करवाने के लिए भी रुपए नहीं थे। वह एक गरीब व्यक्ति था। भला उसके पास इतने सारे पैसे कहां से आते? वह अपनी पत्नी के गहनें भी बेच देता तो भी उसके पास अपने बेटे का इलाज करवाने के लिए पैसों का जुगाड़ नहीं हो पाता। उसका गांव में कोई भी नहीं था जो उसको ₹500, 000 दे देता। उसका बेटा एक दिन सदा सदा के लिए उनको छोड़कर परलोक सिधार गया। जुलाहा अपने आप को कोसनें लगा। लोग अपने बच्चों के लिए इतना रुपया जोड़ते हैं। मैं ऐसा अभागा बाप निकला जो अपने बेटे को मौत के मुंह से बचा नहीं सका। उसने तो अपने बेटे को बचाने के लिए  कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसको मृत्यु के विनाश चक्कर से उसको वह बचा नहीं सका। वह  बहुत ही मायूस हो चुका था। उसकी पत्नी की भी वही स्थिति थी। वह एक जिंदा लाश थी। जिसने अपने प्यारे लाडले को सदा के लिए खो दिया।

जुलाहे  नें अपनी सूत कातने की मशीन को किनारे फेंक दिया। वह सोचता कि मैं चौबीस घंटे इस मशीन में ही लगा रहता था।इसने भी वक्त पड़ने पर मेरी सहायता नहीं की वह काफी दिन तक ऐसे ही घर में पड़ा रहा परंतु ऐसे हाथ पर हाथ धरकर बैठने से उसका बेटा तो वापस नहीं आ सकता था। वह दोनों यूं ही बैठे रहते तो कमाएंगे कैसे। हार कर वह अपने खेतों में थोड़ी बहुत जमीन थी उसी में काम करने लग गया। वह अपने बेटे के गम में इतना डूब गया कि उसका काम करने का भी मन नहीं करता था। जैसे तैसे वह खेतों में हल चलाता और थोड़ा बहुत कमा कर अपना पेट भरता।

उसनें सोच लिया कि वह कभी भी सूत कातनें की मशीन में काम नहीं करेगा क्योंकि उस मशीन में काम करते वक्त उसे उसके बेटे का चेहरा दिखाई देता था। उसका बेटा भी उस से सूत कातना सीख रहा था। उसने अपनी मशीन को घर के एक कोने में ढक कर रख दिया था।

एक दिन वह अपने खेत में कुदाल से खोद रहा था तभी उसने देखा जमीन में कुछ है। वह हैरान हो गया  देखा वह एक नन्हा मुन्ना बच्चा था। वह अपना अंगूठा चूस रहा था। वह दौड़ा दौड़ा घर आया और अपनी पत्नी से बोला मेरे साथ खेत में चलो। अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर खेत में ले गया। वह भी हैरान रह गई। उसे खेत में एक सुंदर सा बच्चा  दिखाई दिया। उन्होंने सोचा भगवान ने  तौफे के तौर पर  उस बच्चे को  हमारे पास भेजा है। उन्होंने इस बच्चे को हिलाया डुलाया।  जुलाहे की पत्नी उसे घर ले आई और उसे गर्म ऊनी  कपड़े में लपेटा और उसे दूध पिलाया। दूध पीने के बाद वह बहुत जोर जोर से रोने लगा। वह दोनों भी उसके रोने की आवाज से खुश हो रहे थे।  उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि उनका बेटा उन्हें एक नन्हे फरिश्ते के रूप में वापस मिल गया। जुलाहा और उसकी पत्नी बच्चे को लेकर गांव में देवी के मंदिर गए। वंहा के पुजारी के हाथों से उसकी पूजा करवाई और अपने घर लेकर आए। उन्होंने उसका नाम प्राकृत रखा। प्रकृति ने उन्हें वह नन्ना मुन्ना फरिश्ता दिया था।

नन्हे से बच्चे को पाकर  जुलाहा उसका बहुत ही ध्यान रखता था। वह दोनों रातों को जाग जाकर अपने बच्चे का भरण पोषण करते थे। प्राकृत दस वर्ष का हो चुका था।  जुलाहे  नें  कोई और धंधा शुरू नहीं किया था। उसकी पत्नी ने अपने पति को कहा कि खेती बाड़ी से उनका गुजारा नहीं होने वाला। बेटे को भी कुछ ना कुछ पढ़ना तो पड़ेगा ही। उसकी पत्नी बोली तुम एक बार फिर इस मशीन को चालू कर सकते हो। तुम अपने बेटे को भी सूत कातना सिखा देना। वह बोला नहीं अब मैं इसको कभी भी हाथ नहीं लगाऊंगा। एक दिन वह जोर से बोल रहा था कि अब मैं क्या करूं? उसका बेटा प्राकृत उसकी उंगली पकड़कर उसे मशीन के पास ले गया और उसने मशीन पर से कपड़ा हटा दिया, बोला बाबा आप इसे चलाओ। अपने बेटे के मुंह से यह सुनकर वह चौंक गया फिर मन में सोचनें लगा मेरे बेटे ने मुझे इसे चलाने के लिए कहा है। उस दिन उसने फिर से मशीन में सूत कातना शौलें बनाना  शुरु कर दिया।

प्राकृत के आ जाने के बाद उसके घर में रुपयों की कोई कमी नहीं रही। शायद भगवान ने उनकी झोली में किसी देवदूत को उनकी सहायता करने भेज दिया था। इस तरह करते करते पांच साल बीत गए। जुलाहा और उसकी पत्नी प्राकृत को पाकर खुश थे। कई बार जुलाहा  के कई  मित्रों ने उसकी मशीन को खराब करने की कोशिश की मगर प्राकृत के हाथ में ना जाने कौनसी विलक्षण शक्ति थी उसका हाथ लगाते ही मशीन ठीक हो जाती थी। उसके यार दोस्त आपस में कहते कि ना जाने हम ने कितनी बार उस की मशीन को खराब किया। इसके बेटे को ना जाने मशीन ठीक करने की इतनी अद्भुत कला ना जाने कहां से आ गई। उसका बेटा मशीन को खोलकर उसे ठीक कर देता। पूर्जों को सैट कर देता। उसका पिता भी उस के हुनर को देख कर दंग रह जाता था। वह दस वर्ष का बच्चा पता नहीं यह अद्भुत कला कहां से सीख कर आया था?

एक दिन जुलाहे  के दोस्तों ने सोचा कि इस के बच्चे का अपहरण कर लेते हैं। रात में आए और उसके बच्चे को एक सुनसान जंगल में छोड़ आए और उसकी पत्नी ने प्राकृत को चारों ओर ढूंढा मगर उसका कोई पता नहीं चला। वह बीयाबान जंगल में भटक रहा था।वंहा उसे पांच डाकू दिखाई दिए। उस बच्चे को देख कर सोचने लगे न  जाने कौन इसे जंगल  में छोड़कर चला गया। हम डाकुओं का पीछा पीछा करते करते उसने हमारा  अड्डा देख लिया है। उन्होंने उस बच्चे को पकड़ लिया और अपने अड्डे पर लेकर चले गए।

सुबह हुई तो प्राकृत सो रहा था। वह बाहर निकल चुके थे। प्राकृत ने एक अंदरूनी गुफा देखी। वहां से भी निकला जा सकता था। जैसे हीे उन्होंने गुफा का दरवाजा बंद किया प्राकृत बहुत होशियार था। उसने उन्हें गुफा को बंद करते देख लिया था। उन्होंने गुफा को बंद करने के लिए + का निशान लगाया और खोलने के लिए गुणा का निशान। उसने उन निशानों को याद कर लिया था। डाकु  जब वहां से खिसक गए। प्राकृत गुफा में अंदर रह गया था। जब वे पांचों बाहर निकले तब प्राकृत नें गुणा का निशान लगाया तो गुफा का दरवाजा खुल गया। वह बिल्कुल आजाद था। चुपचाप वन में चला आया। उसे अभी तक अपने घर पहुंचने का रास्ता मालूम नहीं था। वहीं पर वह एक झाड़ी के पास छिप गया। जुलाहे ने सुबह अपने बच्चे को नहीं देखा तो वह बेहद उदास हुआ। जुलाहा  और उसकी पत्नी दोनों रोते रोते अपने भाग्य कोसनें लगे हमारे नसीब में शायद बेटे का प्यार ही नहीं है। अब की बार भी बेटा कहीं गायब हो गया।  जुलाहा उस मशीन की तरफ भी देखना नहीं चाहता था। इस मशीन को चालू करने के बाद ही उसका बेटा कहीं चला गया। शाम को उसके वही दोस्त आए और बोले हमें मालूम हुआ है कि तुम्हारा बेटा कहीं चला गया है। होनी को कौन टाल सकता है?

वह बोला सब कुछ इस मशीन का किया धरा है। इसने ही सारा काम बिगाड़ा है। वह बोला मेरा बस चलता तो मैं इसे कहीं दूर फेंक देता।  उसके दोस्त बोले भाई तुम ठीक ही कहते हो जब तक तुम्हारे घर में यह मशीन है तब तक तुम्हारा बेटा घर आने वाला नहीं। क्यों ना हम ही  इसे किसी घने जंगल में फेंक देते है? जुलाहे के दोस्तों ने उस के साथ जा कर उस मशीन  को जंगल की पहाड़ी से नीचे फैंक दिया। उसके दोस्त जा चुके थे। वह  अपनें दोस्तों से बोला भाई मेरे तुम चलो मैं थोड़ी देर बाद वापस आता हूं। मैं थोड़ी देर यहां अकेला जंगल में बैठना चाहता हूं।

जुलाहा जंगल में एक और बैठकर जोर जोर से  रोने लगा। वह जहां बैठ कर रो रहा था उसका बेटा एक झाड़ी में छिपा था। उसके बेटे ने अपने पिता की आवाज सुनी। वह जोर से बोला बाबा। अपने सामने अपने प्राकृत को पाकर खुश हो गया। बेटा तुम हमें छोड़ कर क्यों आए? हमारे घर में किस चीज की कमी थी।।। वह बोला बाबा आपके दोस्त मुझे जबरदस्ती पकड़कर यहां छोड़ गए। उनमें से एक तो मुझे पहाड़ी से नीचे गिराने वाला था। परंतु दूसरे व्यक्ति ने कहा कि हम इसको यू अपने सामने पहाड़ी से गिरते नहीं देख सकते। इसको तो यूं ही जंगली जानवर खा जाएंगे। चलो ऐसा कहकर वे   वंहा से  चले गए। बाबा फिर यहां मैं अकेला भटकता रहा। मुझे पांच डाकू   पकड़कर अपने अड्डे पर ले गए। उन्होंने सोचा कि मैं उनके पीछे पीछे आ गया हूं। उनके अड्डे में ना जाने कितनी हीरे जवाहरात  थे। वे मुझे वहीं छोड़ कर अपनी गुफा में चले गए। आपस में कह रहे थे कि शाम को इस बच्चे को ठिकाने लगाते हैं। प्राकृत बोला बाबा आप यहां पर कैसे?

जुलाहा बोला बेटा मैं अपने घर में बैठ कर रो रहा था। मेरे दोस्त आकर मुझसे बोले हमने सुना है कि तुम्हारा बेटा तुम्हें छोड़कर कहीं चला गया है। मुझ से हमदर्दी जताने लगे। मैं तुम्हारे गम में पागल हो रहा था। मैंने सोचा कि इस मशीन का ही यह सब किया धरा है। इस मशीन के कारण ही पहले मेरा बेटा मुझसे अलग हुआ और मैं कह रहा था कि इस मशीन को कहीं फेंक देता हूं। वह बोले हां साहब इस मशीन के कारण तुम्हारा बेटा तुम्हें छोड़कर चला गया। हम इस मशीन को नीचे फेंक देते हैं। उन्होंने ले जाकर मशीन को पहाड़ी से नीचे फेंक दिया। प्राकृत बोला बाबा आप बहुत भोले हैं। आप के दोस्तों ने कई बार आपकी मशीन खराब की ताकि आप अपना रोजगार अच्छे ढंग से ना चला सके और अब की बार तो उन्होंने मेरा  बहाना बना दिया। मैंने आपकी मशीन बहुत बार ठीक की। उन्होंने पहले मुझे जंगल में छोड़ दिया और फिर आप की मशीन फेंक दी। प्राकृत  बोला बाबा आप परेशान ना हो। मैं आपकी मशीन को ढूंढता हूं। वह एक पहाड़ी के पास जाकर वहां से कूद गया। उसको नीचे कुदता देखकर जुलाह   स्तब्ध रह गया। इतनी ऊंचाई से कूदने पर भी उसे जरा भी खरोच नहीं आई। उसने उस मशीन को यूं ऊपर उठा लिया मानो वह बहुत ही हल्की हो। उसको ऐसा करते देख कर जुलाह बहुत ही हैरान था। उसने तो उसकी इतनी अद्भुत शक्ति पहली बार देखी थी। जो दस वर्ष का बच्चा कभी उस मशीन को उठा नहीं सकता था। प्राकृत ने एक रस्सी की सहायता से उस मशीन को अपने पेट से बांध लिया था। उस मशीन को ऊपर लाने में कामयाब हो गया। उसने अपने पापा को कहा कि मैं इस मशीन को डाकू के अड्डे में छोड़ देता हूं। जुलाह बोला वहां जाना खतरे से खाली नहीं होगा।

प्राकृत बोला नहीं हम दोनों चलते हैं। जुलाहा और उसका बेटा प्राकृत डाकू की गुफा में पहुंचे। डाकू वंहा अभी तक नहीं आए थे। प्राकृत ने अपने बाबा को बताया कि इस गुफा को खोलने के लिए गुणा का निशान और बंद करने के लिए + का निशान लगाना पड़ता है। यह देखकर जुलाहा खुश हो गया कि सचमुच संकेतों से गुफा का दरवाजा खुल गया। उसने ऊपरी तक आने में उस मशीन को रख दिया और अपने पिता के साथ घर वापिस आ गया। उसकी मां प्राकृत  को पाकर बहुत खुश थी प्राकृत ने अपने बाबा को कहा कि पुलिस की मदद से हम इन डाकुओं  को  सजा दिलवा सकते हैं। पुलिस वाले को  डाकुओं का अड्डा दिखा दिया। उस गुफा को कैसे खोला जाता था और कैसे बंद किया जाता था?पुलिस वालों ने उन पांच डाकुओं  को पकड़ कर उन्हें जेल में डाल दिया। उन  को पकड़वानें पर ₹500, 000 का इनाम था। जो कोई उन डाकुओं को पकड़वायेगा उन्हें ₹500, 000 की राशि में मिलेगी। डाकूओं को पकड़वाकर वहां से अमूल्य हीरे जेवरात  पुलिस ने प्राप्त  किए और प्राकृत को उसकी वीरता के लिए पुरस्कार दिया। प्राकृत ने अपने पिता की मशीन को वंहा से प्राप्त कर लिया और अपने पिता को कहा कि आप इस मशीन पर आप अपना काम आरंभ कर सकते हैं।

कोई भी चीज इतनी खराब नहीं होती जितना की हम किसी वस्तु के बारे में सोचते हैं। हम उस वस्तु के बारे में नकारात्मक सोच रखेंगे तो हमें कभी फायदा नहीं होगा। हम उस वस्तु के बारे में सकारात्मक सोच रखेंगे तो हमें लाभ ही लाभ होगा हमारे सोचने का नजरिया बिल्कुल सही होना चाहिए।

आप के दोस्तों ने तो आपको एक बार फिर मुझको आपसे अलग करने की योजना बनाई थी परंतु मैंने उनकी योजना को भी विफल कर. दिया। प्राकृत को ₹500, 000 का ईनाम दिया गया। अखबार में उसका फोटो भी छपा। धन्य है उसके मां बाप जिन्होंने अपने बेटे को इतने अच्छे संस्कार दिए। और बहादुर बनाया। हम उनके माता-पिता को सलाम करते हैं जिन्होंने इतने बहादुर बेटे को जन्म दिया और डाकुओं को पकड़वाने में सरकार की मदद की। जुलाहे  और उसकी पत्नी की आंखों में खुशी के आंसू थे।

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