मेरी बगिया(कविता)


मेरी बगिया में खिले नन्हे नन्हे फूल।
लाल पीले नीले और न्यारे न्यारे फूल।।
मन के दर्पण को लुभाते फूल।
कभी अधखिले तो कभी मुरझाए फूल।।
फूलों से क्यारी की शोभा लगती है प्यारी प्यारी।
इसकी खुश्बू से महकती है
मेरे आंगन की फूलवारी।।
चम्पा चमेली गेंदा और जूही के फूल।
नन्ही नन्ही बेलों में लटकते फूल।।
सुबह सुबह अपनी खुश्बू बिखराते फूल।
क्यारी में धरती की प्राकृतिक छटा को निहारते फूल।।
भंवरों की गुंजन से चहकते फूल।
ओस की बूंद में भीगे फूल।।
चांदनी रात में रात की रानी खुश्बू जानें कहां से लाती है?
चोरी चोरी चुपके चुपके सारी बगिया को महकाती हैं।।
पवन झूला झूलाती है
चिड़ियां मीठे मीठे राग सुनाती है।।
भंवरे थपकियां देते हैं।
रंगबिरंगी तितलियाँ फूलों पर मंडराती है।
मधुमक्खियां भी फूलों की सुगन्ध से बेसुध होकर खींची चली आती हैं।।
फूलों की मासूम मुस्कान भोली हंसी प्रत्येक जनों को मंत्र मुग्ध कर देती है।
बच्चे नर नारी सभी को सौन्दर्य की अद्भुत छटा से आत्मविभोर कर देती है।

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