आलस्य(कविता)

जीवन शैली का एक विकार है आलस्य ।
मनुष्य का निकटवर्ती शत्रु है आलस्य।।
सुबह का अमूल्य समय जो सो कर हैं गंवाते।
वह जीवन में कभी भी तरक्की की सीढी नहीं चढ़ पाते।।
अपना समय निरर्थक बातों में जो हैं गंवाते।
अस्त व्यस्त दिनचर्या के कारण किसी भी काम को फुर्ती के साथ नहीं कर पाते।।
जीवन में प्रेरणा की कमी के कारण आलस्य है आता।
यह हम में सुस्ती को है बढ़ाता।।
आलस्य से बचनें के लिए महत्वपूर्ण कार्यों की सूची बनाएं।
उन के अनुसार कार्य करके आलस्य को दूर भगाएं।।
व्यक्ति के सामने लक्ष्य स्पष्ट हो तो कार्य सफल हो पाएगा।
नहीं तो निर्धारित कार्य भी विस्मृत हो जाएगा।।
एक समय में एक ही काम को करने का नियम बनाओ।
एक से ज्यादा काम करनें के चक्कर में अपना समय यूं न गंवाओ।।
काम की क्रम बार श्रंखला निर्धारित करें।
क्रम बार कार्य कर अपनें लक्ष्य की ओर बढ़ें।।
कल्पना शक्ति के प्रयोग से सफलता आसानी से है मिल पाती।
व्यक्ति के जीवन में वह उम्मीद का दामन है जगाती।।
कार्य करनें का ढंग, कार्य करनें के परिणाम को यह सब देखना है जरूरी।
इसके अनुसार कार्य करके अमल में लाना है जरूरी।।
जीवन में शारीरिक श्रम को कभी नजरअंदाज मत करो।
व्यायाम आदि और सुबह की सैर का कभी मत त्याग करो।। ।

देर से उठना देर से सोना ,यह है आलसीपन की निशानी।
बाद में हाथ पर हाथ धरे रह कर होगी तुम को ही परेशानी।।

किसी न किसी रुप में आलस्य आकर हमें सताएगा।
हमारे कार्यो में रुकावट डाल कर हमारी उन्नति के मार्ग को अवरूद्ध कर हमें भ्रमाएगा।
हमें मन में यह दृढ़ संकल्प जगाना होगा।
शरीर और मन से प्रमाद को दूर भगा कर अपनें में उत्साह जगाना होगा।।

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