उपहार

माधोपुर के एक छोटे से कस्बे में सविता अपने बेटे के आने की राह देख रही थी। सविता के पति सेना में शहीद हुए थे। उसके बेटे ने भी कसम खाई थी कि वह भी अपने पिता की भांति एक वीर सैनिक बनेगा। अपने बेटे की हट के कारण उसकी एक न चली सविता के पति सेना के लिए अपने प्राणों को निछावर कर दिया था। वह डरती रहती थी कि मेरा बेटा कहीं अपने पापा की तरह। परंतु किसी से कुछ नहीं कहती थी। अपने दिल के दर्द के को अंदर ही अंदर दिल में दबाए रखती थी। अपने बेटे को सेना में नहीं भेजना चाहती थी। अपने बेटे के हट के कारण मजबूर हो गई थी। उसने अपने बेटे को फौज में भेज दिया अपने बेटे की इच्छा के कारण मजबूर हो गई थी इसलिए उसने उसको फौज में भेज दिया। काफी दिनों के बाद उसका बेटा घर वापस आ रहा था।

 

उसके आने की खुशी में वह खूब तैयारियां कर रही थी। कल ही तो उसके बेटे का खत आया था। वह चार-पांच दिनों के लिए छुट्टी आ रहा है। वह सोच रही थी कि समय पंख लगा कर उड़ जाए और वह अपने बेटे को अपने गले से लगाने के लिए बेताब हो रही थी। कल ही मेरा बेटा आने वाला है। पास वाले पड़ोसी ने रेडियो लगा रखा था अचानक रेडियो पर बहुत ही आवश्यक सूचना आ रही थी। जितने भी फौजी भाई छुट्टियों में घर आ रहे थे उनकी छुट्टियां रद्द हो चुकी थी। पड़ोस की काकी ने सविता  को कहा कि बहन तुम्हारे बेटे की छुट्टियां रद्द हो चुकी है। अपने बेटे के आने की राह मत देखो। उनकी  छुट्टियां रद्द हो चुकी हैं।  सविता ने  जब यह सुना वह सन्न रह गई। उसकी तो जान ही निकल गई। सारी खुशी गम में बदल चुकी थी। सजा सजाया कमरा ऐसे लगने लगा मानो खाने को आ रहा हो। एकदम निष्प्राण सी टुकुर-टुकुर दरवाजे की ओर टकटकी लगाए हुए अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। दो दिन तक सविता ने कुछ नहीं खाया। इतने दिनों तक भूखी कैसे रहती? अगले हफ्ते सारे के सारे सैनिकों को दुश्मन की सेना को मार गिरानें के लिए छावनी में भेजना ही पड़ा। सारे के सारे सैनिक लड़ाई में चले गए। लड़ाई करते काफी सैनिकों ने अपने प्राण कुर्बान कर दिए। क्इयों कि तो लाशें भी नहीं मिली।

एक दिन समाचारों में उन वीर सैनिकों के नाम बताएं जो मारे गए थे। और जो लापता थे। लापता में सविता का बेटा भी था। सविता को पड़ोस वाली आंटी ने सूचना दे दी कि आपका बेटा लापता हो गया है। सविता तो कई दिनों तक बेहोश पड़ी रही। वह दरवाजे पर अपने बेटे के आने की राह देख रही थी। वह कह रही थी मेरा बेटा जरूर वापिस आएगा। वह नहीं मरा है। वह अपने बेटे के वियोग में पागल सी हो गई। इंतजार करते-करते छः साल हो गए। सभी ने सोच लिया था कि वह मर चुका है। सविता हर रोज आ कर मंदिर की सीढ़ियों पर  अपने बेटे को ढूंढने लगती।  और हर रोज एक तरफ पांच  रोटी और सब्जी एक थाली में रख देती। एक थाली में रख देती और कहती कि यह खाना मेरे बेटे का है। इस तरह हर रोज थाली रख कर चली जाती। शाम को जब वापस आती तो वह खाना तो गायब हो जाता था। थाली वंही  पड़ी रहती। शिवानी मैं ना कहती थी कि मेरा बेटा जरूर खाना खाएगा। उसकी सहेली उसकी इस दशा को देख नहीं पाती थी। कभी-कभी वह भी उसके साथ मंदिर चली जाती थी उसकी सहेली सोचती यह रोटी ना जाने कौन खा जाता है।? परंतु यह तो उसकी सहेली की आस्था थी कि उसका बेटा उसके पास एक दिन लौट कर अवश्य आएगा। नरेन्द्र हर रोज एक आंटी को देखा करता था जो कई मंदिर की सीढ़ियों पर खाने की थाली छोड़ जाती थी एक गरीब परिवार का बेटा था। उसके मां बाप एक दुर्घटना में मारे गए थे। वह भी उनकी आंखों के सामने जब वह केवल 14 वर्ष का था केवल आठवीं कक्षा में था। उसके बाद उसका इस दुनिया में कोई नहीं बचा था। कुछ दिनों तक तो मांग मांग कर गुजारा किया एक दिन उस आंटी को रोता हुआ मंदिर में   थालीछोड़ते हुए देखा। वह हर रोज खाना खाता और इधर उधर भटकता रहता और मांग मांग कर गुजारा करता। उसे सविता काकी  की सारी की सारी कहानी पता चल चुकी थी  कि उनका बेटा फौज में भर्ती था। वह आज तक वापिस नंही आया। । सविता तो कई दिनों तक बेहोश पड़ी रही। वह दरवाजे पर अपनी बेटे की राह देखा करती थी।  मेरा बेटा जो वापिस आएगा वह नहीं मरा है वह अपने बेटे के वियोग में पागल सी हो गई थी। इंतजार करते-करते छःसाल से ज्यादा हो चुके हैं। अब तो इसको ही मैं अपनी मां मानूंगा । और उसका बेटा बन कर उनके सामने जाऊंगा।  पहले मैंने एक ऑफिस में नौकरी के लिए अर्जी दी है जहां पर मैं काम करता था। आंटी ने मुझसे खुश होकर मेरी नौकरी के लिए गुजारिश  भी की है।  आंटी नें मुझे बुलाया और दसवीं के बाद मुझे नौकरी के लिए अपने किसी खास रिश्तेदार से मेरी नौकरी के लिए गुजारिश कि अगर मेरी नौकरी लग जाएगी तो मैं निश्चिंत होकर सविता आंटी से कहूंगा कि आप ही मेरी मां हो। आपने मुझे छः साल से भी ज्यादा खाना खिलाया। अब आपका कर चुकाने की मेरी बारी है।

 

शाम को निर्मल आंटी ने बताया कि तुझे एक ऑफिस में नौकरी मिल गई है। वह नौकरी पाकर बहुत खुश हुआ बोला आंटी आपके एहसानों को मैं कैसे चुकाऊंगा। आंटी  बोली नहीं  बेटा ऐसा नंदी कहते। उसनें सविता आंटी के बारे में बताया था कि उनका बेटा फौज में शहीद हो गया है। एक दिन नरेन आंटी को बोला आंटी आज मैं अपनी मां के पास जाना चाहता हूं। वह उन से अलविदा लेकर सविता आंटी के पास आया बोला मैं आपके बेटे का दोस्त हूं। मैं आपके बेटे विनय का पक्का दोस्त हूं। आपके बेटे के लिए मुझे भी बड़ा खेद है। आंटी जी आपसे मैं एक बात करना चाहता हूं मैंने  छःसाल तक  आपका खाना खाया जो खाना आप अपने बेटे के लिए रखती थी वह खाना मैं खा जाता था। मेरे माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गए। मेरे पास खाना खाने तक के लिए भी रुपए नहीं थेह मैं एक आंटी के यहां उनका खाना  बनाना उनके बच्चों को संभालना आदि का काम किया करता था। और खाना तो मैं छः सालों से आपके हाथों का ही खा रहा था। आपके खाने में जो स्वाद आता था वह खाना ऐसा लगता था मानो मेरी मां के हाथों का स्वाद है। मां अब मेरी नौकरी लग चुकी है। अब मेरी बारी है आप मुझे माने या ना माने मैंने तो आपको अपनी मां स्वीकार कर लिया है। मैं कभी भी आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा। मां मुझे ऐसे आशीर्वाद दो जैसे अपने बेटे विनय को देती थी। सोच लो आपका बेटा विनय आपके सामने खड़ा है।

 

सविता ने जब नरेंद्र को ऐसे कहते सुना तो वह फफक फफक कर रो पड़ी। अपने बेटे को ढूंढते-ढूंढते उसकी आंखें पथरा गई थी। बेटा अब तो इस बुढ़िया की आंखें अपने बेटे को देखने के लिए तरस गई है। आज तुम्हें देख कर मुझे लग रहा है मेरा बेटा लौट आया है। नरेंद्र बोला मैं आपको आंटी नहीं कहूंगा मैं आपको मां ही कहूंगा। आज मैं आपसे वादा करता हूं अगर आपका बेटा जिंदा होगा तो वह चाहे दुनिया के किसी भी जगह पर हो मैं उसे ढूंढ कर आपके सामने ले आऊंगा।

 

नरेंद्र सविता के घर रहने लग गया। वह अपनी कमाई ला कर सविता के हाथ में थमा दिया करता था। नरेंद्र को सविता के साथ रहते हुए छःमहीने हो चुके थे। एक दिन वह अपने काम के सिलसिले में बाहर जा रहा था। उसे रास्ते में एक नवयुवक दिखाई दिया। वह नवयुवक   रेंगता रेंगता जा रहा था। उसकीे दोनों भुजाएं कटी हुई थी।  नरेंद्र उसके पीछे पीछे गया। वह सविता मां के घर के सामने   काफी देर तक खड़ा था। उसको माथा टेकते हुए नरेंद्र ने देख लिया। वह उस नवयुवक के पीछे भागता ही जा रहा था। उसका खत घर की सीढ़ियों के पास से नरेनी उठा लिया। उसमें उस नवयुवक ने नरेंद्र के नाम ही खत लिखा था। उसमें लिखा था भाई मेरे तुम बहुत ही अच्छे इंसान हो। काश तुम मेरे सगे भाई होते। मैं तो अपनी मां को कभी सुख नहीं दे सका। रे प्यारे भाई तुम मेरी मां को ही अपनी मां समझना। मुझे इस जिंदगी में जीने का कोई अधिकार नहीं है। मैं अपनी मां के पास आने ही वाला था। मैंने तुम्हें देखा तुम मेरी मां को बड़ी अच्छी तरह से देखभाल कर रहे थे। मैं तो अपने दोनों हाथ लड़ाई में गंवा चुका। मैं अपनी मां को जिन हाथों से खिलाना चाहता था वह हाथ तो दोनों गंवा चुका अब मैं अपनों को क्या सुख दे सकता हूं?  मैं अपनी मां को  अपनें हाथों से खिलाना चाहता था और कंहा मैं अपनी मां पर बोझ बनने चला था। भाई मेरे मैंने तुम्हें अपनी मां की सेवा करते देखा और संघर्ष करते देखा। तुम्हें मेरी मां से बढ़कर और कोई भी मां नहीं मिल सकती। मैं मरने जा रहा हूं। मेरी मां को मत बताना कि मैं जिंदा हूं। मैं जी कर भी क्या करूंगा।? किसी पर बोझ बनकर जीना नहीं चाहता।  नरेंद्र ने पत्र पढ़ा वह जल्दी से वहां पहुंच गया जहां विनय  गया था। वह नदी में छलांग लगा चुका था। नरेन तैरना जानता था।

 

नरेन ने  विनय को बचा लिया। विनय ने उसे कहा कि तुमने मुझे क्यों बचाया।?नरेंद्र नें कहा तुम्हारी मां कदम कदम पर तुम्हारा इंतजार करती रहती है। आज भी तुम्हारे आने की राह देख रही है। तुम अपनी मां के सामने क्यों नहीं आए?  विनय बोला मैंने तुम्हें अपनी मां के साथ देख लिया था। तुम इतनी अच्छी तरह से मेरी मां की सेवा कर रहे हो मैं तो उन्हें कुछ भी नहीं दे सकता।  मैं  अब तो लाचार हूं। मेरी दोनों भुजाएं कट चुकी है। मैं किसी को क्या दे सकता हूं?

 

नरेंद्र उसे एक ऐसी संस्था में ले गया जहां अपंग व्यक्ति किसी पर भी निर्भर नहीं थे। जिन व्यक्तियों के बाजू नहीं थे वे पैरों से साइकिल चला रहे थे। जो अंधे थे  वे भी कुछ ना कुछ काम में लगे हुए थे। जिनकी टांगे नहीं थे वह हाथों से टांगों का काम कर रहे थे। उन सब को इस तरह काम करता देखकर नरेंद्र ने कहा कि अब भी तुम्हारा खुदकुशी करने का मन है तो खुशी से अपनी जान दे सकते हो। या अपनी नई दुनिया को नए सिरे के से जीने के काबिल बना सकते हो। विनय नरेंद्र के गले लगकर बोला तुम सचमुच में ही मेरे बड़े भाई हो। अब मैं ख़ुदकुशी नहीं करूंगा। मैं भी अपने पांव पर खड़ा होने की कोशिश करूंगा।

 

नरेंद्र ने उसे सांत्वना दी कि इस काम में  मैं तेरी सहायता अवश्य करूंगा। भाई मेरे तुम कोई ऐसा काम करना जिससे तुम्हारी दुनिया वाले वाह वाह करें। विनय नरेन के गले लग कर बोला भाई मेरे अभी मेरे बारे में मां को कुछ मत बताना। जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा उस दिन मैं अपनी मां के सामने जाऊंगा। हर रोज की  बारह घंटों की लगातार अभ्यास के चलते  विनय नें पैरों के द्वारा टाइप करना सीख लिया। जब टाइपिंग का टेस्ट दिया तो उसने 500 टाइप राइटर को मात दे दिया। उसने गिनीज बुक वर्ल्ड चैंपियन में अपना नाम दर्ज किया। आज तो उसे इतने बड़े ईनाम से नवाजा जाना था। उसे तो  एक ऑफिस की नौकरी मिलने वाली थी। 26 जनवरी की परेड पर जब विनय का नाम पुकारा गया जिन्होंने अपने दोनों बाजू   गंवा देने पर  भी अपने आपको निराश नहीं होने दिया और एक अवॉर्ड अपने नाम कर सब लोगों को चौंका दिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब विनय का नाम पुकारा गया  तब वह उठा और अपना ईनाम लेने चला गया। नरेंद्र अपनी मां सविता को बोला आज मैं आपको ऐसा उपहार देने वाला हूं जो किसी बेटे ने अपनी मां को नहीं दिया होगा। आज मैं आपको किसी से मिलवाना चाहता चाहता हूं।

सविता उसके साथ परेड ग्राउंड में पहुंच गई विनय भी इनाम लेने आ गया था। विनय का नाम पुकारा गया तब उसे ट्रॉफी दी गई। नरेंद्र नेंर विनय को सविता से मिलाया और कहा  यह है आपका उपहार। अपने बेटे को  जिन्दा देखकर खुशी से अपने बेटे को गले से लगा लिया। उसकी दोनों बाजू  कटी हुई थी। वह उसको देख बेहोश होते-होते बची। बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को संभाला।  सब लोगों ने तालियों में उसके बेटे को ट्रॉफी से नवाजा। सारी कहानी नरेंद्र नें सविता मां को सुना दी। सचमुच में ही नरेन ने उसके बेटे को उस से मिला दिया था। सविता बोली मेरे दो बेटे मेरी बाजू है। मेरी शक्ति हैं तुम दोनों मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। चारोंतरफ खुशी का वातावरण छा गया।

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