घमन्डी का सिर नीचा

किसी गांव में एक पंडित रहता था। . वह सभी को कहता था कि मैं दान करता हूं। दान करने के कारण ही तो मेरे घर में सब कुछ है। पंडित बड़ा अभिमानी था। वह किसी की बात नहीं मानता था। उसका कहना था जो मेरा कहा नहीं मानेंगा उसको वह कड़ा सबक सिखाये बिना पीछे नहीं हटेगा। वह समझता था कि उसके गांव में उससे बड़ा कोई दानी नहीं। उसने अपने घर के बाहर एक अमरूद का पेड़ लगा रखा था। उस पेड़ के अमरुद खा कर सब गांव के निवासी खुश होते थे। कोई भूखा प्यासा इंसान जो कोई भी गांव आता उस पंडित के लगाए पेड के फल बडे़ चाव से खाते थे। इस तरह भी वह पंडित अपने पेड़ के कारण भी प्रसिद्ध था। एक बार उस पंडित के घर में कुछ व्यक्ति आ कर बोले पंडित जी क्या हम आपके घर में रह सकते हैं? वह बोला भाई देखो मैं दान ही करता हूं। घर में किसी भी अजनबी को ठहरा नहीं सकता। तुम्हारा क्या पता तुम सब मुझे मार कर चले जाओ? इस तरह दिन बीतनें लगे। एक दिन उसी गांव में आकर एक दूसरा पंडित भी वहां रहने लगा। वह भी उसी की तरह दानी था जो कोई भी पहले दान लेने श्याम के घर आता था पहले रामू के घर जाने लगता। श्याम को यह देख कर उसे रामू से ईर्ष्या हुई। मेरी इतने सालों की तपस्या बेकार गई। इस गांव में मुझसे बढ़कर कोई भी दानी नहीं हो सकता। मैं इसे यहां से निकाल सकूंगा। आजकल पंडित के घर में बहुत ही मंदा चल रहा था। वह सोचने लगा कि ऐसा मैं क्या करूं।
एक दिन जब वह शहर से वापस आ रहा था तो उसे एक जादूगर दिखाई दिया। जादूगर एक पेड़ के पास जाकर कह रहा था कि यह पेड़ हरा भरा हो जाए। उसमें पके पके फल लग जाएं। जादूगर ने कुछ मंत्र गुनगुनाया ‘’पेड़, राजा को बोला पेड़ राजा बदलो इन पेडो को हरे भरे पेड़ों में। ‘’पेड़ राजा पके पके फल दिला दो जल्दी से हमें खिला दो”। भूख लगी है हम सब को”पेड़ बोला जल्दी से तीन बार हुंकार भरो और इस मंत्र को गुनगुनाओ। तीन बार बोलो’अगडम बगडम छू-अगडम बगडम छू- अगडम बगडमछू। जल्दी से वह पेड़ फलों से लद गया और देखते ही देखते हरे भरे पेड़ों में बदल गया। पंडित यह देख कर खुश हुआह वह जादूगर उसके घर के पास पहुंच गया था। पंडित नें जादूगर को ऎसा करते देख लिया था। जादूगर बोला क्या तुम्हारे घर में मैं आज रात को ठहर सकता हूं। वह बोला यह भी कोई पूछने की बात है। तुम यहां पर बड़ी खुशी से रह सकते हो।
जादूगर उसके घर पर गया। पंडित नें उस जादूगर की बहत आवभक्त की। जादूगर बोला मैं तुम्हारे दयाभाव से प्रसन्न हूं। मांगो क्या मांगना चाहते हो? वह पंडित अपने मन में सोचने लगा इस जादूगर ने तो मेरे मुंह की बात छीन ली। वह जादू मुझे भी सिखा दो जो आप उस पेड़ के पास कह रहे थे। जादूगर बोला यह तुमसे किस नें कहा। मैंने सुन लिया था जब आप पेड़ के पास जा कर कह रहे थे। जादूगर बोला एक ही शर्त पर सिखाऊंगा अगर तुम किसी पर भी इसका गलत उपयोग नहीं करोगे। इसका गल्त इस्तेमाल करोगे तो यह जादू समाप्त हो जाएगा। पंडित ने कहा वह कभी भी इसका गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। जादूगर बोला तो मैं तुम्हें बताता हूं उसके कान में वह जादू फूंक दिया। पंडित जादू सीख कर बड़ा ही खुश हुआ। वह सोचनें लगा सबसे पहले यह जादू अपनें लगाए हुए अमरुद के पेड़ पर ही करता हूं। इसमें हर साल बहुत ही मीठे फल लगते हैं। इस बार यह पेड़ कुछ सूख गया है। हर बार हर बार मीठे मीठे फल और लोग ही खा जाते हैं। मेरे हाथ कुछ भी नहीं लगता। लोग मुझे दानी समझते हैं लेकिन मैं इतना भी दानी नहीं हूं जिस पर गुस्सा कर लेता हूं उसका पीछा नहीं छोड़ता। आज से मैं अपना दूसरा रूप कर लूंगा। जादूगर को भी बेवकूफी बना दिया वह बेचारा भी मेरे झांसे में आ गया। उसने पेड़ के पास जाकर कहा कि इस सूखे पेड़ को हरे भरे फलों में बदल दो। उसने जादूगर द्वारा दिया मन्त्र उस पेड़ के पास जा कर कहा। अगडम बगडम छू तीन बार कहा। कहा जब भी कोई राहगीर यहां फल खाएं आए तुम इस पेड़ के फलों कों जहरीला बना देना। इस गांव में जो भी लोग आते थे फल खा करके अपना पेट भरते थे। और उस पंडित को दुआएं देकर चले जाते थे। एक दिन वहां पर आकर कुछ लोग उस हरे भरे पेड़ को देखकर बोले इसमें कितने मीठे मीठे फल लगे हैं? भूख भी बड़े जोरों की लग रही है।
वह पंडित के घर के पास आकर पंडित से बोले हमें भूख लगी है हमें कुछ खाना खिला दो। पंडित को तो जादू पा कर बहुत ही घमण्ड हो गया था। पंडित बोला मेरे घर में खाना नहीं बचा है। मैं खाना तुम्हें नहीं खिला सकता। मेरे घर के बाहर एक अमरुद का पेड़ है। उसके फल खा लो। लोग जैसे फल खाने जाते वह उस पेड़ के फलों को जहरीले पेड़ में बदल देता। मीठे मीठे फलों को बाजार जा कर बेच देता था। लोग उस पेड़ के फल खा कर काफी देर तक बेहोश हो जाते। वह उनके रुपए जेवरात लेकर चंपत हो जाता। उन रुपयों को पाकर अपने घर की अलमारी में रख देता था। इस तरह कुछ दिन व्यतीत हो गए। उसने बहुत सारा धन चोरी का इकट्ठा कर लिया था।
एक दिन वही जादूगर उसके घर पर आकर सोचनें लगा उसने इस गांव के पंडित को जादू का एक मन्त्र सिखाया था। वह इस मन्त्र का सही उपयोग कर रहा है या नहीं खुद चल कर देखता हूं। वह जादूगर लोंगों से बोला यहां के पंडित जी का व्यवहार लोगों के प्रति कैसा है। लोग कहने लगे इस गांव में दूसरे पंडित के आ जानें से इस गांव के पंडित का तो रवैया ही बदल गया। वह अपनें आप को घमन्डी समझनें लगा। वह हर आने जानें वाले लोगो को मीठे मीठे अमरुद खाने के लिए कभी भी मनाही नही करता था लेकिन अब तो वह सारे फलों को चुपचाप बाजार जा कर बेच देता है। किसी को भी कुछ नहीं देता। जादूगर पंडित के घर आ कर बोला मुझे भूख लगी है। वह जादूगर रूप बदलकर आया था। उस समय पंडित अलमारी को खोलने कर रुपये गिन रहा था। पंडित ने उसको देखते ही अलमारी बन्द कर दी। पंडित ने उसको पहचाना नहीं। पंडित ने कहा कि मेरे पास तो खाने को कुछ भी नहीं है। मेरे घर के बाहर अमरूद का एक पेड़ है। इनके फलों को खाकर अपनी भूख मिटा लो। जादूगर बोला मैं यह नहीं कर सकता तुम मेरे साथ चलो मुझे उस पेड़ को दिखाओ। पेड़ कहां पर है? पंडित बोला, चलो दिखाता हूं जादूगर बोला यह पेड़ जिसके फल तो मीठे नहीं लगते। पंडित बोला तुम बिना खाए कैसे कह सकते हो कि मीठे नहीं हैं। पहले खा कर दिखाओ। पंडित ने सोचा अभी तो मैंने पेड़ में मंत्र भी नहीं फूंका है। फल खाने में क्या जाता है? जादूगर नें वंहा पंहूंच कर पेड़ में मन्त्र फूंक कर उस पेड़ के फलों को जहरीले फलों में बदल दिया था। पंडित सोचने लगा जैसे ही वह फल खाएगा जादूगर उसे फल खाता देखेगा तो वह भी फल खाने के लिए आगे बढ़ेगा। शाम के समय जादूगर नें पंडित को अपना बक्सा संभालने के लिए कहा था। उस बक्से में नकली हार छुपाए थे।
पंडित ने जादूगर की ओर देखा और सोचनें लगा आज तो करोड़ों की लॉटरी लगी है। वह जल्दी ही इस वृक्ष के फलों को जहरीले फलों के पेड़ में बदल देगा।।
पंडित अमरूद मुंह में लेकर बोला यह तो मीठे हैं। जादूगर उसे फल खाता देखता रहा। थोड़ी देर बाद पंडित बेहोश हो गया। जादूगर ने उस अलमारी की चाबी तकिए के नीचे छिपातेे देख लिया था। उस जादूगर ने तकिए के नीचे से चाबी निकाली और उस में से अलमारी के सारे के सारे जेवरात लेकर और नकदी लेकर चंपत हो गया।
जादूगर गांव के मुखिया के पास जाकर बोला जिन लोगों का रुपया खोया था उन्हें वापस कर देना। वह बोला मैं रुपए लूटने वालों का सफाया करता हूं। इतना समझना आपके लिए काफी है। मैं आप आपके गांव का नहीं हूं। जिस इंसान ने इन लोगों का रुपया लूटा था उसे सजा मिल चुकी है। शायद वह अपनी गलती सुधार ले। उसे इतनी सजा ही काफी है। यह कहकर वह जादूगर वहां से चला गया। मुखिया ने जिन लोगों का सामान खोया था वह सब वापिस कर दिया। होश में आते ही पंडित अपनी करनी पर पछताने लगा। वह हाथ मल कर बोला आगे से कभी भी लालच नहीं करुंगा।

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