चिन्टू और गडरिया

किसी गांव में एक गडरिया रहता था। वह  भेड़ और बकरियों को चराने जंगल में ले जाया करता था। उसका एक बेटा था वह दो साल का था। कभी कभी वह  उसको भी अपनें साथ भेड़ बकरियां चराने साथ ले जाता था। गडरिया हमेशा बीमार ही रहा करता था। वह सोचने लगा कि मेरे बाद मेरे बेटे का क्या होगा? इसे भी मैं भेड़ बकरियां चराना सिखा दूंगा। मैं इसे पढ़ा तो नहीं सका मगर अपने लिए कुछ ना कुछ तो  वह कमा ही सकेगा इसी तरह सोचते सोचते वह अपने घर वापस आ गया।

शाम को गडरिये की पत्नी ने पूछा कि आज तुम उदास क्यों हो तो वह बोला मेरे बाद मेरे बेटे का क्या होगा। कुछ पता नहीं है, इसी तरह समय गुजरता गया। उसका बेटा अब दस साल का हो चुका था। वह उसे भी जंगल में भेड़ बकरियां चराने ले जाता। धीरे धीरे उसके बेटे को जंगल में अपनें पिता के साथ जाने की आदत पड़ गई थी। गडरिये की पत्नी भी हमेशा ही बीमार रहा करती थी। एक दिन गडरिया भी चल बसा। घर में गडरिये की पत्नी और बेटा ही रह गए थे। वो किसी ना किसी तरह से अपने बेटे का पालन पोषण कर रही थी

गडरिए का बेटा भी जंगल में जाकर भेड़ बकरियों को चराने ले जाता था, जो कुछ मिलता उसी से वह और उसकी मां  घर का खर्च चलाते थे। उसकी मां और घरों में भी काम करती थी जिससे उनका गुजारा चल पड़ता था। वह हर रोज जंगल में बकरियों को लेकर चला जाता और शाम को घर आता इसी तरह दिन बीतते गए। उसकी मां बकरियों को जंगल में छोड़ आती और बाद में अपने बेटे को कहती कि तुम इन्हें  लेकर आना।

उसका बेटा हर रोज भेड़ बकरियों को लेने जाता तो वह हर बार ट्रेन से जाता क्योंकि उसके गांव के आसपास ट्रेन चला करती थी। जब ट्रेन रुकती थी तो वह गाड़ी में बैठ जाता था और शाम को भी इसी तरह  वापिस घर को आया करता था। उसकी मां जंगल में बकरियों को छोड़ आती। उसकी बकरियां एक जगह ही चुगती रहती थी। वह बहुत ही समझदार थी।  वह  उन्हें  लेने जंगल में ट्रेन से चला जाता।  हर रोज ट्रेन नियत समय पर  आती थी। वह हर रोज ट्रेन से स्कूल जाते हुए बच्चों को देखता तो उसका मन भी करता कि वह भी पढ़ाई करता मगर वह कुछ भी नहीं कर सकता था। वह बहुत ही होशियार था। गाड़ी में उसके बहुत सारे दोस्त बन गए थे। वह उनके साथ घुल मिल गया था। कई बच्चे तो उसका नाम भी जान चुके थे। वह सब उसके दोस्त बन गए थे।

उस गाड़ी में हर रोज एक  सज्जन व्यक्ति  अपनें आफिस जाते थे। और वह सरकारी ऑफिस में काम करते थे। उनके साथ चिंटू की बहुत ही बनती थी। वह चिंटू को बहुत ही प्यार करते थे। वह कहते थे कि बेटा हमें पढ़ाई करना बहुत ही जरूरी होता है। वह उनसे हमेशा कहता  मेरे पापा एक गडरिया  थे।  मेरे पिता बिमारी के कारण चल बसे

केवल एक मां है वह बेचारी क्या क्या करें। मैं उसे इस प्रकार दर्द में नहीं देख सकता। जब तक मैं जिंदा हूं अपनी मां की सेवा करूंगा। मैं पढ़ लिख कर क्या करूंगा? मैं पढ़ाई कर भी नहीं सकता मुझे कौन  पढा पाएगा। इस तरह से वह उनके साथ खुल करके अपनी सारी बातें उनको बता दिया करता था। एक दिन जब वह गाड़ी में बैठे तो चिंटू को बहुत ही उदास पाया क्योंकि वह बहुत दिनों से ऑफिस नहीं आ रहे थे। चिंटू उन्हें हर रोज दूध लाकर दिया करता था। चिंटू को उदास देखकर वह सज्जन कहने लगे बेटा क्या बात है? जब से मैं घर से आया हूं तुमको मैंने उदास ही पाया तुम क्यों इतनी उदास रहते हो?

वह बोला कुछ दिन पहले ही मेरे पिता भी इस दुनिया से जा बस चल बसे थे।  मेरी मां भी अब उनके गम में बिमार  हो चुकी है। । मां के सिवा मेरा कोई भी इस दुनिया में नहीं है। छोटे से बच्चे की करुणा- भरी पुकार को सुनकर उनके आंखों से आंसू आ गए। वे बोले बेटा  होनी को कौन टाल सकता है? तुम्हें अपनी मां को संभालना होगा। कोई बात नहीं जब मैं यहां से अपने गांव जाऊंगा तुम्हें भी साथ लेकर जाऊंगा। तुम अपनी मां को भी अपने साथ लेकर चलना। जब मेरा तबादला हो जाएगा तब मैं  तुम दोनों को अपने घर में ही अपने साथ रखूंगा। उस बाबू साहब की बात सुनकर चिंटू बहुत ही खुश हुआ। चलो कोई तो है जो हम गरीब को इस तरह से पूछता है। धन्यवाद, बाबूजी आप जैसा महान व्यक्ति मैंनें कभी नहीं देखा। मेरी मां आपके  साथ गांव जाने को तैयार होगी तो मैं खुशी-खुशी आपके गांव जाने के लिए तैयार हो जाऊंगा।

मैं भी पढ़ लिख कर कुछ बनना चाहता हूं अच्छा अब मैं अपनी भेड़ बकरियों को लेने जा रहा हूं ना जाने मेरी भेड़ बकरियां कहां चली जाए। वह गाड़ी से उतर गया,, चिन्टू जब भी जंगल से जाता तो रास्ते में उसके बहुत सारे दोस्त बन गए थे। वह सभी से बहुत ही प्यार से पेश आता था। वह बहुत ही नटखट और शरारती बच्चा था। सोचता था कि कोई ना कोई तो मेरे साथ जंगल में चले। मेरे साथ बातें करें, मेरे साथ दोस्ती करें, मगर इतनी बड़ी दुनिया में उस बेचारे छोटे से बच्चे की बात सुनने वाला कौन था? उसने सोचा क्यों ना मैं इन अजनबी दोस्तों को परखता हूं। मेरे साथ चलते हैं या नहीं।

एक दिन एक किसान रास्ते से जा रहा था उसने किसान को कहा चाचा चाचा आप मेरे साथ जंगल में चलें वहां पर  एक भेड़िया है वह मुझे खा जाएगा। मैंने कितनी बार उसे भगाने की कोशिश की मगर वह वहीं आकर खड़ा हो जाता है। चिंटू के साथ किसान चल पड़ा। जब किसान जंगल में पहुंचा तो उसने चिंटू को कहा, भेड़िया कहां है? उस किसान को भटका भटका कर वह बहुत ही आगे ले गया चिंटू ने अपनी भेड़ बकरियां समेटी और बोला शायद वह भाग गया होगा। मुझे उससे बहुत ही डर लगता है। किसान बोला आज तो मैंने तुम्हारी बात मान ली मगर इस तरह किसी को बेवकूफ नहीं बनाना चाहिए। वह मुस्कुराते हुए बोला  नहीं-नहीं कल तो यहीं पर था। इसी तरह करते करते वह हर रोज हर आने जाने वाले मुसाफिरों को बेवकूफ बनाता था। एक  दिन एक ग्वाला दूध देकर जा रहा था उसको भी उसनें इसी प्रकार कहा। भैया भैया मेरे साथ जंगल में चलो। मुझे रास्ते में शेर मिला। वह वहीं पर है। वह मुझे खा जाएगा। छोटे से बच्चे की बात सुन   कर ग्वाले  को दया आ गई। वह दूध बेच कर वापस घर आ रहा था। उस बच्चे के साथ जंगल में चल पड़ा। उसे भी इसी प्रकार चिंटू ने,  कर उसे भी अपने जाल में फंसा लिया और जल्दी जल्दी अपने पशुओं को समेटने लगा। इसी तरह से बहुत दिन व्यतीत हो गए। वह हर रोज किसी न किसी व्यक्ति को अपने साथ जंगल में ले जाता और इसी प्रकार उनको बेवकूफ बनाता।  सभी लोगों को अब पता चल चुका था कि यह बच्चा सभी को मूर्ख बनाता है।

एक दिन उन सभी लोगों ने कहा कि हम अब इस बच्चे की कभी भी सहायता नहीं करेंगे। वह हमसे हर रोज झूठ कहता है।

 

वह अकेला ही  एक दिन जंगल में भेड़ बकरियां चराने चला गया जब वह भेड़ बकरियां चरा रहा था तो सचमुच में ही  एक खूंखार भेड़िया सामने आ गया। उस की अपनी भेड़ बकरियां काफी आगे निकल गई थी। वह भेड़िए को अपनी ओर  आते देखकर घबरा गया।  किसान और ग्वाला घर की ओर वापस आ रहे थे। वह भी ट्रेन में ही बैठे थे। ट्रेन में आने जाने वाले सभी यात्री सभी की नजरें उस बच्चे की तलाश कर रही थी।। आज वह बच्चा उन्हें नजर नहीं आया था। किसान और ग्वाले ने सोचा आज हम उसके साथ जंगल में नहीं गए कहीं वह बच्चा मुसीबत में तो नहीं फंस गया।  उसकी भेड़ बकरियां अकेली ही आ रही थी। वह बच्चा हमें हर रोज बेवकूफ बनाता है। क्यों न  जंगल में चल कर हम भी उसे आज बेवकूफ बनाएं? उसे कोई ना कोई  मजाक करके फंसा लेते हैं। वह  जंगल की ओर चल पड़े। जंगल की तरफ जा ही रहे थे तो उन्हें जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। मुझे बचाओ मुझे बचाओ।

वह दोनों एक दूसरे से कहने लगे यह बच्चा हर रोज हमें झूठ बोलकर फंसाता है। हम आज उसकी कोई बात नहीं सुनेंगे। चुपके चुपके आईस्ता आईस्ता चलते हैं। वह आईस्ता  आईस्ता चलकर जैसे ही जंगल में पहुंचे तो वहां पर उस बच्चे को भेड़िए से लड़ते हुए देखा। वह चौक  कर पीछ गए। यह बच्चा तो ठीक ही कहता था। इतना प्यारा बच्चा वह भी बिल्कुल अकेला। हमें इसकी मदद अवश्य करनी  चाहिए। ग्वाले ने चिंटू को पुकारा। ग्वाला  बोला डरने की कोई बात नहीं। हम तुम्हारे साथ हैं। इतने में किसान भी बोला बेटा हम अभी तुम्हें बचाते हैं। चिन्टू बोला अंकल मुझे आप लोगों का सहारा ही बहुत है।  मैं  अब इस  भेड़िए से अकेला ही  निपट लूंगा। बच्चे की बात सुनकर वह दोनों बहुत हैरान हुए। उन दोनों को देख कर  चिंटू बोला अंकल यहां पास में ही मेरा थैला पड़ा है। आप मेरा थैला मेरे पास फेंक दो फिर देखो मेरा करिश्मा। उन दोनों ने उसका थैला चिंटू के पास फेंक दिया।

चिंटू ने थैले में से मिर्ची का पैकेट निकाला और भेड़िए की आंखों में डाल दिया। थोड़ी देर के लिए तो भेडिया  छटपटाता रहा। उसकी आंखों से कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। इतने में चिंटू   किसान और ग्वाले नें मिल कर डंडे से भेड़िए को मार गिराया।। वे तीनों दौड़ लगाकर सरपट भाग गये। ग्वाला  किसान  और चिन्टू जल्दी जल्दी घर की ओर भागने लगे। तीनों भागते भागते बहुत ही दूर निकल आए। वह बोले बेटा तुम तो बहुत ही बहादुर हो।

काफी दिनों से भवानी प्रसाद ट्रेन में आ नहीं रहे थे क्योंकि उनका तबादला अपने गांव में हो गया था। वे कुछ दिनों के लिए अपने गांव अपनी पत्नी से मिलने गए थे। क्योंकि उनकी पत्नी बीमार थी। चिंटू उन्हें बहुत ही याद कर रहा था। वह हर रोज जब ट्रेन आती तो देखता रहता कि बाबू इस गाड़ी में आज  तो अवश्य ही होगें परंतु हर बार निराश हो जाता। वह अपने मन में सोचने लगा बाबूजी ने तो मुझसे वादा किया था कि वह हमें  लेने जरूर आएंगे। मुझे और मेरी मां को अपने गांव लेकर जाएंगे। मगर वह बाबूजी भी औरों की तरह ही झूठे निकले। मैंने क्या क्या सपने देखे थे कि मैं पढ़ लिख कर कुछ बन जाऊंगा। अब तो वह भी नहीं कर पाऊंगा। इस तरह सोचता सोचता वह  अपने घर पहुंच गया। उसकी मां उसको उदास देखकर पूछने की बेटा क्या बात है? तुम क्यों उदास दिखाई दे रहे हो?  वह बोला  ट्रेन में एक अंकल मेरे दोस्त बन गए थे उन्होंने मुझे कहा था कि  मैं तुम्हें और तुम्हारी मां को गांव अपने गांव ले जाऊंगा। वहां तुम्हें मैं पढ़ा लिखा कर एक बड़ा आदमी बनाऊंगा। तुम भी औरों की तरह एक बड़े आदमी बनोगे   मगर आज तीन महीने हो चुके हैं वह हमें लेनें नहीं आए ।  

 

चिन्टू हर रोज ट्रेन में जा कर बैठता  अपने दोस्तों से बातें करता  मगर उसकी नजरें तो हमेशा उन सज्जन अंकल को ही ढूंढने में लगी रहती थी। ट्रेन में एक दिन  सिक्योरिटी गार्ड ने उससे पूछ  ही लिया इस ट्रेन में किसे खोजते फिरते हो? वह बोला  इस ट्रेन में हर रोज  एक अंकल जाते थे। वह फौरैस्ट विभाग में सरकारी कर्मचारी  हैं। सिक्योरिटीज गार्ड बोला कहीं वह भवानी प्रसाद तो नहीं । वह बोला हां हां। अंकल ठीक पहचाना  सिक्योरिटी गार्ड बोला बेटा कुछ दिन पहले उनकी पत्नी  बिमार थी ।  वह अब ठीक है। इस वजह से वह  नहीं आ सके। वह अपना सामान लेने तो अवश्य ही आएंगे । मैं उनसे तुम्हारे बारे में जरूर कहूंगा।

चिंटू की आंखें डबडबा आई वह बोला, धन्यवाद अंकल । कुछ दिनों के पश्चात एक दिन  भवानी प्रसाद  अपना सामान  लेकर अपने ऑफिस जा रहे थे  स्क्योरिटी गार्ड ने उसे बताया  एक गडरिए का बच्चा आपकी हर रोज राह देखा करता है । उसका नाम चिंटू है। वह भेड़ बकरियां चराने जंगल में जाता था।

दो-तीन दिन से दिखाई नहीं दे रहा है। वह आपको बहुत ही याद कर रहा था। कह रहा था कि  बाबू साहब मुझे अपने गांव ले जाकर  खूब  पढाएंगे लिखाएंगे।  मैं  भी बड़ा अफसर बनूंगा। सिक्योरिटीज गार्ड की बात सुनकर भवानी प्रसाद बहुत ही शर्मिंदा हुए।  छोटे से बच्चे का इसमें क्या कसूर। वह  तो उन्हें हर रोज ढूंढनें आता है। मुझे पता नहीं क्या हो गया था?  मैं सब कुछ भूल चुका था। उस बच्चे का पता लगाकर ही रहूंगा।  उस बच्चे को अवश्य पढ़ा लिखा कर बड़ा अफसर बनाऊंगा। वह अचानक गाड़ी से उतर गए। इसी प्रकार ढूंढते ढूंढते जब वह  चिंटू के घर पहुंचे तो देखा कि उसके घर पर बहुत से लोगों की भीड़ इकट्ठी थी।   चिंटू  उनके बीच में बैठा जोर जोर से रो रहा था।  यहां क्या हुआ है? गांव वाले बोले चिंटू की मां  हमेशा ही बीमार ही रहती थी। उसकी सांसे तो अपने बेटे में अटकी हुई थी। मेरे बाद मेरे बेटे का क्या होगा? आज वह भी  इस संसार को छोड़कर सदा सदा के लिए भगवान को प्यारी हो गई। बेचारा छोटा सा चिंटू अकेला रह गया।

भवानी प्रसाद की आंखों से आंसू छलछला आए।  वह भीड़ को चीरते हुए गये और उस बच्चे को गले लगाते हुए बोले बेटा मुझे माफ कर देना। तुम से किया हुआ वादा  तोड़ कर जा रहा था।  मैं भी अपनी जिंदगी से दुःखी हो चुका था।  कुछ दिन पहले  मेरी पत्नी भी बिमार हो गई थी। हमारे कोई सन्तान नहीं है। वह तुम्हें पा कर बहुत ही खुश हो  जाएगी। यहां पर आकर सिक्योरिटी गार्ड द्वारा तुम्हारे बारे में पता चला। मैं बहुत शर्मिंदा हूं । चलो बेटा, मेरे साथ चलो। तुम्हें मैं अपने बच्चे की तरह रखूंगा।  आज से तुम ही मेरे बेटे हो। तुम्हेंंपढ़ा लिखा कर एक बहुत ही बड़ा औफिसर बनाऊंगा। तुम  अब भवानी प्रसाद के बेटे कहलाओगे।

चिन्टू नें गांव में साथ में रहने वाली मौसी को कहा मैं आप को यह भेड़ बकरियां सौंप कर जा रहा हूं। इनकी देखभाल का जिम्मा आप पर है। यह भेड़ बकरियां मेरी मां की जान थीं। कभी कभी गांव में आ कर इनको  देख जाया करुंगा। आप सब की मुझे बहुत ही याद आएगी। पढ लिख कर जब मैं बडा आफिसर बनूंगा तब मैं अपनें गांव के लिए भी कुछ करुंगा।

चिंटू सदा सदा के लिए अपने गांव को छोड़कर उनके साथ उनके गांव  रहने चला गया। भवानीप्रसाद की पत्नी नें चिन्टू को गले से लगा कर कहा बेटा तुम्हारे आते ही घर में रौनक आ गई है। चिंटू को  उन्होंनें बहुत  पढ़ाया लिखाया  और एक दिन चिंटू  बहुत ही बड़ा ऑफिसर बना।  वह बड़ा औफिसर बन कर जब गांव वापिस आया तो गांव वाले उसे देख कर बहुत ही खुश हुए। चिन्टू नें अपनें गांव आकर गांव की काया ही पलट दी। लोग उसे अभी भी मजाक में कहते भेड़िया आया।

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