बचपन की यादें

हरी हरी वादियों से मैं यूं ही चला जा रहा था।चला जा रहा था।

झूमते गाते, झूमते गाते, यूं ही चला  जा रहा था।

मुंह में बस यही एक  धुन गुनगुनाता जा रहा था। गुनगुनाता जा रहा था।

हरी हरी वादियों से, मैं यूं ही चला जा रहा था।

हरीहरी वादियों से, मैं यूं ही झूमता गाता चला जा रहा था।

संग अपने साथ लिए सुनहरी यादें।

बचपन की यादों में खोया चला जा रहा था।

झूमते गाते, झूमते गाते, यूं ही  बस चला जा   रहा था।।

हरी भरी वादियों से मैं चला जा रहा था।

चला जा रहा था।

बचपन में साथियों के संग गोटियों के साथ खेलना।

गिलहरी को देख उसके पीछे यूं ही भाग जाना।

यह सब यादों के झरोखों में संजो कर, यूं ही गुनगुनाते चला जा रहा था।

चला जा रहा था।

झूमते गाते झूमते गाते यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।

हरी हरी वादियों में यूं ही झुमता गाता जा रहा था।।

ऊपर नीचे उछल उछल कर यूं ही कूदी लगाना।

नदी तालाबों में यूं ही गोता लगाना।

मस्ती में बच्चों के कपड़ों को ले कर, यू चुपके से भाग जाना।

झूमते गाते झूमते गाते यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।।

हरी हरी वादियों को देख यूं ही मस्ती में गुनगुनाता जा रहा था।

संग अपनें साथ लिए सुनहरी यादें।

बचपन की यादों में खोया चला जाता रहा था। चला जा रहा था।

कक्षा में एक दूसरे पर कागज उछालना

, और ब्लैक बोर्ड पर अनापशनाप लिखना।

अध्यापकों के कक्षा में आते यूंही चुप्पी साध लेना।

उपस्थिती लगते ही यूं ही चुपके से कक्षा से   

यूं ही   चुपके से घर की ओर दौड़ लगाना।

कागज के पुर्जों को गोल गोल घुमाना।

यूं ही मन मे सुनहरी यादें लिए  बस  यूं ही गुनगुनाता चला जा रहा था।

वह बचपन की यादों के झरोखों को लिए  यूं ही गुनगुनाता चला जा रहा था।।

मुंह में बस एक यही धुन  गुनगुनाता जा रहा था।

बारिश में मस्ती और छुपन छुपाई का खेल।

गली मोहल्ले में खेलना पीठू का खेल।

बच्चों के संग सांप सीढी का खेल।

यह सब बचपन की यादें यूं ही मन में याद करता जा रहा था।

वह बचपन की यादों को समेटे हुए गुनगुनाता जा रहा था।

यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।

यूं ही दोस्तों के संग, झूला झूलना।

बेरी के पेड़ों से चुन चुन कर बेर चुराना।

यूं ही माली को आता देख कर  नौ दो ग्यारह हो जाना।

यह सब यादें अपने मन में समेटे यूं ही दोस्तों के संग गुनगुनाता जा रहा था।

झूमते गाते मस्ती में बस यही एक धुन गाता  चला जा रहा था।

यूं ही दोस्तों के संगदौड़ते-दौड़ते खेलना पिट्ठू का खेल।

और खेलना छुक छुक करती आई रेल।

सीटी बजा बजा कर मस्ती करती बच्चों की रेस।  

यह सब बचपन की यादों को मन में संजोए।

यूं ही गुनगुनाता जा रहा था।

यूं ही गुनगुनाता जा रहा था। मन में बस एक यही धुन गुनगुनाता जा रहा था।

हरी  हरी वादियों में यूं ही गुनगुनाता गाता जा रहा था।

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