मजबूत बंधन

शिवानी और रुपेश के परिवार में उनकी छोटी सी बेटी रानी थी। शिवानी ने रुपेश के साथ प्रेम विवाह किया था। वह भी अपने मां बाप के विरुद्ध जाकर। शिवानी के माता-पिता ने उसे कहा था कि तुम ने अगर अपनी इच्छा से शादी करनी है तो हमारे घर के द्वार तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हो जाएंगे। शिवानी ने हिम्मत नहीं हारी उसने अपने मम्मी पापा को कह दिया कि वह शादी करेगी तो रुपेश के साथ वर्ना वह जिंदगी भर कुंवारी रहेगी।

शिवानी को वह दिन भी याद है वह  रुपेश को वह अपना जीवनसाथी बनाना चाहती थी। शिवानी ने अपने माता-पिता को बताया कि वह एक लड़के से प्यार करती है। वह भी दिलोजान से उस से प्यार करता है मगर दोनों के माता पिता राजी नहीं थे। दोनों एक दूसरे से छुप-छुपकर मिला करते थे जब शिवानी के पिता को पता चला  कि उनकी बेटी अपनी जाति में विवाह न कर किसी दूसरी जाति वाले नवयुवक  से शादी करने चली है तो पहले उन्होंने प्यार से शिवानी को समझाया। उसे कहा   बेटा तुम्हें किस चीज की कमी है। सब कुछ ठीक है। तुम्हारे पास किस वस्तु की कमी है लेकिन तुम ऐसे व्यक्ति से हीे विवाह करोगी जो अपनी ही जाति का हो।  वर्ना  हम तुम्हें किसी दूसरी जाति वाले नवयुवक से शादी करने के लिए आज्ञा नहीं देंगे। शिवानी नें हर  हथकंडे अपना लिए। अपने माता पिता के सामने  रोई गिडगिडाई मगर उन्होंने उसकी बातें नहीं मानी।

शिवानी को उसके पिता ने घर में बंद कर दिया उसके आने जाने पर कड़ा पहरा  लगवा दिया। शिवानी के माता-पिता नें अच्छा सा लड़का देख कर उसका रिश्ता अपनें ही कुल में करनें का फैसला ले लिया। शादी के केवल 2 दिन शेष थे।

शिवानी नें रुपेश को कहा कि मैं अब कुछ नहीं कर सकती। रुपेश शिवानी के घर पहुंच गया। रुपेश ने उसे कहा था कि शाम के समय तुम अपने घर के आंगन के पास ही यूं ही घूमते रहना। मैं चुपके से आकर तुम्हें ले जाऊंगा। रात के 8:00 बजे थे। सब खाने की मेज पर खाना खाने का इंतजार कर रहे थे। शिवानी बार-बार घड़ी देख रही थी। जैसे हीे 8:00 बजे सब के सब खाने की मेज  पर  खाना खाने के लिए चले गए। शिवानी   उठकर पानी लाने के लिए किचन में गई। वह किचन में न जाकर बाहर बरामदे के साथ वाले लौन में चली गई।  उसने जैसे  ही गाड़ी के हॉर्न की  आवाज सुनी वह तुरंत उस आवाज की तरफ  भाग कर चली गई।  बाहर अंधेरा था रुपेश ने गाड़ी की हेड लाइट ऑन नहीं की थी। चुपके से आकर शिवानी उसके साथ भाग गई।

शिवानी बालिग हो चुकी थी। उसके माता-पिता खाने पर इंतजार करते रहे। उन्हें जब आभास हुआ कि वह अपने दोस्त के साथ भाग गई है तो उन्हें बहुत ही बुरा लगा। उसके माता पिता को तो सांप सूंघ गया। अब क्या होगा? दो दिन बाद शादी थी। जैसे तैसे करके उन्होंने  अपनें होनें वाले जमाई के घर फोन लगाया और सारा माजरा कहना सुनाया।  लड़के वाले बोले आपने पहले वादा किया था। हम  अब क्या करें। हम दुनिया वालों को क्या जवाब देंगे। हम तो बारात लेकर आएंगे

   शिवानी के पिता घबरा गए उन्हें तो घबराहट के   मारे चक्कर  ही आ गया। रुपेश के भाई की  भी एक बेटी थी। उन्होंनें समझाबुझा कर उसे शादी के लिए मना लिया। जिस दिन बारात आनी थी  नियत समय पर बारात आई। घर में बारात पंहूंच चुकी थी। घर वालों के दिलों में बेहद सन्तान था।  अपनी लोक-लाज को बचाने के लिए शादी तो करनी ही थी दुनिया के डर से रुपाली की शादी उसके होने वाले जीजा से करनी पड़ी। घर में कोई भी खुश नजर नहीं आ रहा था किसी न किसी तरह शादी समाप्त हो गई। सब अपने-अपने घरों को चले गए थे। आज शादी के 8 साल बाद भी वह उस मंजर को नहीं भूल पाई थी। उस दिन के बाद उसके माता-पिता ने उस से कोई भी संपर्क नहीं रखा। उन्होंने उसे कहा था कि सदा सदा के लिए हमारा और तुम्हारा रिश्ता खत्म। अपनी बेटी रानी को पाकर शिवानी बहुत ही खुश थी। शादी के 2 साल बाद ही जब शिवानी पड़ोस में खेल रही थी तो वह उपरी मंजिल से बुरी तरह से नीचे गिर पड़ी उसकी टांगों में गहरी चोट लग गई थी। डाक्टरों नें उस को ठीक तो कर दिया। उस की टांगे टेढी मेढी  हो गई  उसे चलनें में बेहद कठिनाई होती थी। उसे सहारा ले कर उठना पडता था।  उन्होंने उसका नाम रखा था रानी।

 

शिवानी के पड़ोस में उस की एक सहेली थी शिखा।वह शिवानी की खास दोस्त थी।  उनके भी एक बेटा था। उसका नाम था राजू। वह भी नटखट  और चंचल। रानी के स्कूल में ही उसकी कक्षा में ही पढ़ता था। दोनों हम उम्र के थे। दोनों एक दूसरे के साथ खेलते। रानी का स्कूल में केवल एक ही दोस्त था वह था राजू।  राजू की भी स्कूल में एक ही दोस्त थी  रानी।

रानी 5 साल की हो गई थी। वह लंगड़ा लंगड़ा कर चलती थी। शिवानी अपनी बेटी की तरफ देखकर सोचती मेरी बेटी क्या कभी ठीक भी हो पाएगी या नहीं? मेरे माता-पिता ने भी मुझ से किनारा कर लिया। मेरे पति ही अब मेरी जिंदगी है। पति का कारोबार भी इतना बड़ा नहीं था। वह सोचती थी कि अपनी बेटी की टांगों का ऑपरेशन जरूर करवाएगी। जिससे कि उसकी टांगे सीधी हो सके। वह ऑपरेशन करवाने से भी डरती थी। मेरी बेटी अभी तो थोड़ा बहुत चल लेती है मगर ऑपरेशन के बाद  ठीक भी चल पाएगी या नहीं इसलिए वह रिस्क लेना नहीं चाहती थी। जब वह पूरी तरह ठीक हो जाएगी तभी वह उसका ऑपरेशन करवाने की सोचेगी।

रानी का दोस्त राजू रानी को कहता कि तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। स्कूल को जब बच्चे स्कूल जाते तो रानी आईस्ता आईस्ता कदम बढ़ाते हुए उसके साथ चलती। सब बच्चे कहते भागो। उसे  रहने दो। यह तो जल्दी नहीं भाग सकती। वह अकेले ही आ जाएगी मगर उसका दोस्त राजू उस को छोड़कर कभी नहीं जाता। वह रानी को कहता तू डर मत। मैं तुझे अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा। तुम मत डरा कर। मैं तेरे साथ रहूंगा। वह बोली तू स्कूल चला।  मेरी वजह से  तुझे भी देर हो जाएगी।  राजू बोला तो क्या हुआ? मैं कह दूंगा कि मैं अपनी दोस्त को अकेला छोड़कर नहीं आ सकता। रानी राजू को बोली तू मेरी वजह से हर रोज मार खाता है। कभी अपने पापा से, कभी स्कूल में अध्यापकों से ‘राजू बोला मुझे बहुत बुरा लगता है जब सब लोग मेरी प्यारी दोस्त का मजाक उड़ाते हैं। मेरा बस चलता तो मैं सबका मुंह बंद कर देता परंतु क्या करूं? मैं अभी कुछ नहीं कह सकता हूं ना।

जब मैं पढ़ लिखकर बड़ा इंसान बन जाऊंगा तो मैं ही तुम्हारी टांगों का ऑपरेशन करवा दूंगा।

रानी  बोली अभी तो हम  भी बच्चें हैं। ।  जब हम बड़े हो जाएंगे  तुम पता नहीं कहां रहोगे? मैं भी ना जाने कहां रहूंगी। मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगी क्योंकि तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो। तुम हर मुश्किल की घड़ी में तुम हरदम मेरे साथ रहते हो। मेरे पापा ने जब कहा था कि इसको स्कूल पढ़ाने में क्या फायदा होगा। इससे चला तो जाता नहीं, तब तुम ने आगे बढ़कर मेरे पापा को समझाया था कि अंकल आप ऐसा क्यों कहते हो? रानी के पापा बोले ऐसा नहीं है  कि मैं अपनी बेटी से प्यार नहीं करता।  हर कहीं गिरने से अच्छा है कि वह घर पर ही रहकर शिक्षा ग्रहण करें। आंटी के समझाने-बुझाने पर कहीं तुम्हारे पापा  मेरे साथ स्कूल में भेजने पर राजी हुए।

 

रानी और राजू जब स्कूल पहुंचे तो अध्यापकों ने उन से कहा कि हर रोज तुम स्कूल देरी से आते हो। राजू बोला मैं अपने दोस्त को बीच रास्ते में छोड़कर स्कूल नहीं आ सकता। मेरी दोस्त ज्यादा तेज नहीं भाग सकती। अध्यापक भी उनकी मित्रता देखकर उन्हें कुछ नहीं कहते थे। उन्होंने स्कूल उन्हें आधा घंटा देरी से आने की इजाजत दे दी थी।

एक दिन रानी स्कूल को जा रही थी  उसके दोस्त राजू को बुखार था। वह अकेली स्कूल के लिए निकल पड़ी। एक मोटर बाइक बड़ी तेजी से चलता हुआ आया और वह रानी को टक्कर मार कर चला गया। उसने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि कोई उसकी गाड़ी से टकरा गया था। रानी दूर जाकर गिरी। उसकी दूसरी टांग में चोट लग गई थी मगर उससे ज्यादा चोट नहीं लगी थी। वह उठ नहीं सकती थी। उसे उठने में कठिनाई हो रही थी। उसकी आंखें बंद थी।

रानी ने देखा कि एक रईस व्यक्ति की पीछे गाड़ी खड़ी थी। उनका सारा परिवार गाड़ी से उतरा। उन्होंने रानी को उठाया तक नहीं। उसे वैसे ही सड़क पर पड़े रहने दिया। उन्होंने एक लड़की को बेहोश पड़े देख लिया था। रानी ने देखा कि वह अधेड़ उम्र के व्यक्ति अपने परिवार के साथ तेजी से चलते हुए काफी दूर आगे निकल गए। उन्होंने गाड़ी को लॉक लगाया। गाड़ी को लौक करते हुए रानी ने देख लिया।

रानी नें देखा कि उस गाड़ी का ताला तोड़ते हुए उसने तीन युवकों को देखा एक एक करके वे बहुत सारे सूटकेस उठाकर ले गए। सब कुछ ले जाने के बाद वह अपनी गाड़ी में बैठ कर चले गए। रानी को पता चल चुका था कि जो व्यक्ति अभी गाड़ी से उतर कर गए उनका  सामान  चोर उठा कर ले गए थे।

रानी ने उठने की काफी कोशिश की।  धीरे-धीरे सरक सरक कर घर पहुंची। सात दिनों तक स्कूल नहीं जा पाई। उसने सारी बातें अपने दोस्त को  कह सुनाई।

उसनें राजू को बताया जिस दिन तुम स्कूल नहीं आए थे मैंने सोचा आज अकेले ही स्कूल जाती हूं। रास्तेमें चलते चलते एक बाइक वाला बडी़ तेजी से आया और उसे टक्कर मार चला गया।  उसनें एक बार भी  पिछे मुड कर भी नहीं देखा। उसनें  उठनें की कोशिश की। दर्द के कारण उठ नहीं सकी। उठनें की कोशिश कर ही रही थी कि उसने अपनें पीछे एक गाड़ी देखी। उस में से एक रईस परिवार उतरा। उन्होंनें भी उसे नहीं उठाया और  तेजी से गाड़ी को लौक करके चलते बनें। उसनें उन्हें जाते देखा। शायद वह  बाहर से सैर करनें आए थे।

 

कैसे  लुटेरों ने सामनें खड़ी गाड़ी से एक रर्ईस  व्यक्ति का सब कुछ लूट कर अपनी गाड़ी में रखा और चले गए। तीन  व्यक्तियों का चेहरा तो वह बना सकती है वैसे तो वह बहुत ही होशियार थी लेकिन  चल पाने में असमर्थ थी उसके पापा बोले बेटा मैं तुम्हारा बुरा नहीं चाहता। तुम घर में बैठकर ही पढ़ाई किया करो। स्कूल जाना तुम्हारे बस की बात नहीं।

राजू कहता, कहां तो आपको अपनी बेटी को कहना चाहिए कि नहीं तुम अपना काम स्वयं किया करो। थाली उठानी है तो अपने आप उठा कर लाओ। चाहे कितनी भी देर क्यों ना लग जाए, उसकी मम्मी शिवानी अपनी बेटी से छोटे छोटे काम करवाने लगी धीरे-धीरे वह काम करने में अभयस्त हो गई। ज

एक दिन स्कूल के सारे बच्चे पिकनिक पर गए थे। सब बच्चों की  टोली बड़ी तेजी से चली जा रही थी। राजू भी अपने दोस्तों के साथ चल रहा था। रानी बिल्कुल अकेली हो गई। सबके सब आगे निकल चुके थे। राजू ने उसे जानबूझकर अकेला छोड़ा जिससे कि वह अकेले काम करना सीखें। राजू भी उसे जाते हुए देख रहा था। वह बहुत ही मायूस हो गई। आज तो उसका दोस्त भी उसको अकेला छोड़कर चला गया। वह अपने आप को अकेला महसूस करनें लगी। अपनें मन में विचार करनें लगी  सभी ठीक ही तो कहते हैं। उस बेसहारा का इस दुनिया में कोई नहीं है। राजू उस से हमेंशा कहता है कि तुम असहाय नहीं हो। आज वही उस से पीछा छुड़ा कर चला गया। जब साथ देने की बारी आई तो वह साथ छोड़ कर भाग गया। वह निराश नहीं होगी। वह चलने की कोशिश करेगी। अचानक तेजी से भागता हुआ राजू आया और बोला मैं तुम्हें देख रहा था कि तुम अकेले भी चल सकती हो या हार मान कर यूं ही पड़ी रहेगी। शाबाश गिर कर संम्भलनें को ही जिंदगी कहतें  हैं। तुम बेसहारा नहीं हो केवल टांगें टेढ़ी है तो क्या हुआ?  एक दिन ठीक हो   ही  जाएगी। तुम अपने ऊपर हौसला रखोगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। वह नीचे गिर पड़ी थी। राजू बोला मैं तुम्हें उठाऊंगा नहीं तुम्हें स्वयं उठना होगा कोशिश करनी होगी धीरे-धीरे कोशिश करने से तुम स्वयं बिना किसी सहारे के ऊपर उठ पाओगे रानी ने फिर से उठने की कोशिश कि वह अपने आप बिना किसी के सहारे से ऊपर उठ गई थी। वह सोचनें लगी वह अपने आप सारे काम किया करेगी, राजू ठीक ही कहता है कि किसी दिन अगर वह अकेली होगी तो कौन उसकी सहायता करने आएगा? उसे हर रोज अभ्यास करने की आदत डालनी होगी।

एक दिन यूं ही उद्यान में टहल रही थी। उसने वही गाड़ी जाते देखी वह चुपचाप  गाड़ी की डिक्की में छुप गई। वह देखना चाहती थी कि उन गुंडों ने वह चोरी किया हुआ सामान कहां रखा है? वह घर में बिना किसी को बताए उस गाड़ी में दूर तक निकल आई थी। उन गुंडों ने गाड़ी  एक ओर खड़ी कर दी थी।  वह चाय पीने के लिए ढाबे पर चले गए। रानी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? शाम के समय  किसी  अनजानी सी जगह पर उन्होंने गाड़ी खड़ी कर दी। रानी ने देखा कि वहां दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं था। वह एक जंगल का रास्ता था। वहां कोई भी नहीं था। उसे डर भी लग रहा था। उन चोरों ने उस डिक्की का दरवाजा खोला तो वह पकड़ी जाएगी। भगवान का शुक्र है उसे किसी ने भी नहीं देखा।

रात के 2:00 बज रहे थे। एक खंडहर में घुसकर रानी ने उनको खंडर में जाते देख लिया था। वह रात को उस  डिक्की से निकली वहां पर एक और पानी की टंकियां थी। उसके पीछे छिप गई। वहां पर उसे नींद आ गई थी। वह छोटी सी थी। उसे पानी की टंकी के पीछे किसी ने नहीं देखा।

जब रानी घर नहीं आई तो रानी की मां और पापा दोनों रो-रो कर अपने आप को कोस रहे थे। एक तो बेचारी टांगो से लंगड़ी। हमारी बेटी ना जाने कहां चली गई? शायद हमारी कोई बात उसे बुरी लगी हो। शिवानी रुपेश को बोली पहले ही आप  उसे स्कूल जाने से मना करते थे। शायद उसे बुरा लगा हो। वह इसी कारण घर से चली गई। वह किसी पर भी बोझ नहीं बनना चाहती थी। वह रात के समय उसे कंहा ढूंढे? उन्होंनें राजू के घर जाकर कर पता  किया।राजू नें उन्हें बताया कि एक रर्ईस  परिवार की गाड़ी से सामान चुराते हुए रानी नें देख लिया था। वह उसे बता रही थी कि वह उन गुन्डों का पता लगा  कर ही रहेगी। रानी के माता पिता डर गए थे। हम अपनी बच्ची को कैसे उन गुन्डों से बचा कर घर वापस लाएंगे? राजू बोला मैं भी उसे ढूंढें जरुर  जाऊंगा। वह अपनी दोस्त को सही सलामत घर वापस लाएगा।

रानी को दो दिन से खाने को कुछ नहीं मिला था। उसे मौका ही नहीं मिल रहा था डिक्की में छिपने का। तीसरे दिन साहस कर के रानी नें उठने का प्रयत्न किया। उसनें देखा कि गुन्डों जल्दी में अपना कोट गाड़ी में ही भूल गए। वह चाबियां लेने के लिए  अन्दर गए। रानी सरक सरक कर गई और उन की जेबें टटोलनें लगी। उसके हाथ मोबाइल लग गया। उसनें वह मोबाईल उठा लिया। एक ओर लिफाफे में बिस्किट पडे थे। उसनें चुपके सेएक पैकेट बिस्किट उठाया और सरक सरक कर टांकी के पीछे छिप गई। वे तीनों गुन्डों जल्दी ही वापिस आ कर एक दूसरे से करनें लगे जल्दी चलो। वह गाड़ी को ले कर चले गए। रानी नें उन के जाते ही चैन की  सांस ली। पहले उसनें बिस्किट खास कर अपनी भूख मिटाई। उसनें अपनें पापा को मोबाईल चलाते देखा था। वह सोच रही थी कि इस बियाबान जंगल मेंउसकी कौन मदद करनें आएगा। उसे तो किसी का नम्बर भी नहीं मालूम। उसनें हर कोई नम्बर डायल किया। उसनें सोचा कोई न कोई तो सुन कर उसकी मदद करनें आएगा। अचानक उस का फोन लग गया था दूसरी तरफ से आवाज आ रही थी हैलो किस से बात करनी है?

वह एक व्यक्ति थे। रानी हांपते बोली अंकल प्लीज फोन काटना मत। मैं बडी़ ही मुसीबत में हूं। कृपया कर के आप मुझे गुन्डों से बचाओ। मैं बडी मुश्किल से टांकी के पिछे छिप गई हूं। वह व्यक्ति बोले बेटा तुम कंहा से बोल रही हो? वह बोली मुझे गुन्डों नें दुर्गापुर के पास  एक बहुत ही पुराना खन्डहर है। जिसे देख कर काफी डर लगता है। उस खन्डहर के पास खिड़की के सामने एक नीम का पेड़  है। वही पर पानी की टंकी है। उस टंकी पर दुर्गा पुर लिखा है। अंकल जल्दी आना यह मोबाईल भी मेरा नही है। मैं भाग भी नहीं सकती हूं। मेरी टांगे टेढी है। मैं बहुत ही आईस्ता आईस्ता चलती हूं। मैं तेज भाग नहीं सकती। वे गुन्डे अगर अभी आ गए तो मैं मारी जाऊंगी। कृपया करके आप ही बचा मुझ अभागी को बचा सकतें हैं। वह व्यक्ति बोले मैं यहीं हूं। मैं किसी सामान के सिलसिले में  उतर वाहिनी मेले में आया था। तू डर मत। मैं तुझे अवश्य बचाउंगा। तुम्हें बचाते बचाते अगर मैं मर भी गया तो मैं समझूंगा कि मैंनें कोई अच्छा काम अवश्य किया है

मैं दस मिनट में वहां पहुंचता हूं।  रामनाथ नें जल्दी ही दुर्गापुर की ओर  गाड़ी मोड़ दी। उनके जहन में अपनी बेटी का चेहरा घूम गया। आज से सात साल पहले उनकी बेटी उनसे जुदा हो गई थी। वह इतना निष्ठुर कैसे हो गया था। अपनी बेटी से सदा सदा के लिए रिश्ता  तोड़ दिया था। उसने अपनी इच्छा से  दूसरी जाति के लड़के से शादी कर के अपना घर बसा लिया था। आज तक वह कभी  उन्हें नहीं मिली। आज अगर वह यंहा आती तो कितना अच्छा होता? हमनें तो उससे कहा था कि आज से हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा हमेंशा के लिए बन्द है। आज उसके भी बच्चे हो गए होंगे। हम तो  उसकी शादी के बाद बिल्कुल अकेले हो गए। आज अपनी बेटी की बहुत ही याद आ रही है। अपनें भाई की बेटी की शादी तो हमनें लड़के को पसन्द कर के की थी। आज तक उन्होंने भी कभी उसे हमारे पास उसे नहीं भेजा। वह यही सोचते जा रहे थे। उन्होंने अपनी गाड़ी दुर्गापुर के पास खड़ी कर दी। वहां पर उन्हें   एक बहुत ही पुराना खन्डहर दिखाई दिया। वहां पानी की टंकी के ऊपर  लिखा दुर्गापुर  उन्होंने   पढ़ लिया। रानी नें हाथ से ईशारा किया। यंहा अंकल। सरकती सरकती वह गाड़ी में चढ गई और कस  कर रामनाथ को गले से लगा लिया। रामनाथ को ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंनें अपनी बेटी को गले लगाया हो। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।रानी उनको रोता देख कर बोली आप रो क्यों रहे हो? आप तो मेरे नाना जी की तरह लगते हैं। मेरी मां कहती है तुम्हारे नाना जी के सिर पर कम ही बाल है। मैं क्या आप को नाना जी बुला सकती हूं?

रामनाथ बोले तुम नें मुझे नाना कहा है। आज मुझे लगा कि मेरी नवासी मेरे सामने खड़ी है। तुम्हारी नानी तो तुम्हें देख कर खुश हो जाएगी। मैं तुम्हारी हर कदम पर सहायता करुंगा। अभी तो जल्दी से घर चलो गुन्डों को जरा भी भनक लगी गई तो वे गुन्डे हमारी न जानें क्या दुर्गति करें।

रामनाथ जी नें अपनी गाड़ी किशनगंज की ओर मोड़ दी।  वह उतर वाहिनी  मेले से सामान खरीदने आए थे। उनका घर किशनगंज के पास ही था। वह अपनें घर पहुंच गए थे। घर पहुंच कर रानी बोली पहले मुझे जल्दी से  कुछ खिला दो वर्ना मैं आज तो अवश्य ही मर जाऊंगी। रामनाथ नें जैसे ही अपनी पत्नी से उस गुड़िया को मिलवाया वह भी उस से मिल कर बहुत ही खुश हुई। उन दोनों पति-पत्नी को ऐसा महसूस हो रहा था कि वह कल ही की बात है।उन की बच्ची शिवानी आज वापिस आ गई है। रानी ने भर पेट खाना खाया। रामनाथ बोले तुम कंहा कि रहने वाली हो? वह बोली मै करनाल की रहने वाली हूं। रामनाथ सोचने लगे उनकी बेटी भी  तो करनाल  में ही ब्याही है। रामनाथ नें उस से पूछा तुम्हारी मां का क्या नाम है? वह बोली मेरी मां का नाम शिवानी है। कंही वह  हमारी बेटी की ही बेटी तो नही है। चाहे कोई भी हो हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आज हम समझ गए घर में सारी खुशियां तो अपनें बच्चों के साथ ही होती है। यह रुपया तो हाथ की मैल है। अब इस बच्ची को वह कहीं नहीँ  जानें देगा। पहले उस से पूछ लेता हूं। वह गुन्डे कौन थे? वह उसे क्या करना चाहते थे। रानी बोली नाना जी आप को मैं शुरु से सारा किस्सा सुनाती हूं।

रानी बोली मैं जब छोटी सी थी मैं सीढियों से गिर गई थी। बहुत ऊंचे से गिर गई थी। टांगों में लग गई जिस वजह से उसकी दोनों टांगे टेढ़ी हो गई। डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन करना पड़ेगा ठीक भी हो सकती है और नहीं भी मेरी मां हरदम चिंता करती रहती है। वह डर के मारे मेरा ऑपरेशन भी नहीं करवाती कहीं मैं चल भी सकूंगी या नहीं।

रामनाथ बोले बेटा कैसे ठीक नहीं होगी। मैं तुम्हारी टांगों का ऑपरेशन करवा लूंगा।  तुम  अब मेरे पास हो तुम्हें कहीं जाने की जरूरत नहीं।

रानी ने उन्हें सारी कहानी कह सुनाई किस तरह वह स्कूल में पढ़ती थी। स्कूल में जाने वाले बच्चे जल्दी जल्दी स्कूल जाते थे और वह पीछे रह जाती थी। सब उसका मजाक उड़ाते थे। सब उसे बेसहारा समझते थे। यहां तक कि उसके पापा भी उसे स्कूल पढ़ने नहीं भेजते थे उसके पापा उसे कहते थे कि गिर पड़ गई तो तुम्हें कौन संभालेगा? तुम घर पर ही रहकर शिक्षा ग्रहण करो। मेरी मां मुझे स्कूल भेजना चाहती थी परंतु वह डर के कारण स्कूल नहीं भेजती थी। मेरे पड़ोस में ही मेरा एक दोस्त राजू था। वह उसे बहुत ही अधिक प्यार करता था। वह मेरे साथ स्कूल जाता था। वह उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ता था। उसने मेरे पापा को समझाया कि मैं इसे स्कूल ले जाया करूंगा और छोड़ भी दिया करूंगा। वह मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। धीरे-धीरे उसने राजू के साथ स्कूल जाना शुरू किया। राजू ने उसे समझाया कि तुम्हें अपने आप काम करने की आदत डालनी चाहिए। तुम हर काम कर सकती हो हतुम बेसहारा नहीं हो। तुम अपने आप हर काम कर सकती हो। तुम में हौसला होना चाहिए। धीरे-धीरे उसने सब काम अपने हाथ से करने का फैसला कर लिया। बहुत सारे काम करने में व्यस्त हो गई। कभी-कभी नीचे गिर भी जाती थी।

एकदिन की बात है कि जब वह स्कूल जा रही थी उसका दोस्त राजू उस को बुखार था। वह स्कूल नहीं जा सका था। वह स्कूल जा रही थी तो एक बाइक वाला आकर उसे टक्कर मार गया। वह नीचे गिर पड़ी। उस बाइक वाले ने उसे देखकर भी पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा। और बाईक को लेकर आगे चलता बना। वह नीचे गिर गई थी। उसे बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा था लेकिन उठने में असमर्थ थी। उसने देखा कि उसके पीछे एक बहुत ही चमचमाती गाड़ी  आ कर रुक गई। उसमें से एक रईस परिवार उतरे। उन्होंने वहां पर गाड़ी खड़ी करी और मुझे बिना देखे जल्दी से गाड़ी को लॉक करके आगे बढ़ गए। उन्होंने भी मुझे नजरअंदाज कर दिया उन्होंने भी मुझे देख कर भी नहीं उठाया। वह वैसे ही पड़ी रही, जैसे ही वह चले गए एक गाड़ी और आई और उसमें से दो लंबे-लंबे हट्टे-कट्टे आदमी उतरे। उन्होंने उस गाड़ी  का लॉक तोड़ा और और उसमें से तीनों सूटकेस लेकर चले गए। उसनें  उन  को चोरी करते देख लिया था। वह शक्ल से बहुत ही खूंखार गुंडा लगते थे। वह आपस में कह रहे थे शायद कोई नीचे गिरा है जल्दी चलो वर्ना किसी को मालूम पड़ गया कि हम चोरी कर के सामान ले गए हैं तो बहुत ही बुरा होगा। शायद यह लड़की मर चुकी है। उन गुन्डों को देख कर उसनें सांस रोक ली थी। गुन्डे जल्दी से आगे बढ गए।

दूसरे दिन उसनें मैडम को कहते सुना कल एक व्यापारी  आलोकनाथ  जो कि व्यापार के सिलसिले  में करनाल आया था उस की गाडी से सारे सूटकेस  चोर ले कर भाग गए। मैडम बोली उन सेठ नें अखबार में इश्तेहार दिया है जो हमारे सामान को ढूंढने कर लाएगा उसे 15लाख ईनाम के तौर पर दिए जाएंगे। उन सेठ जी का हीरो का व्यापार है। वह करनाल में अपनें दोस्त के घर ठहरे थे। वह मन्दिर की सैर करनें जा रहे थे जब यह हादसा हुआ। रानी बोली उसनें घर में कुछ नहीं बताया था। उसका बाहर निकलना बन्द था। उसके घुटनों में चोट लगी थी।उसनें अपनें दोस्त राजू को सारी दास्तान सुना दी थी कि उसनें कुछ गुन्डों को सूटकेस  निकालते देख लिया था जब वह घायल अवस्था में सड़क पर गिरी हुई थी। राजू बोला हम दोनों मिल कर उन गुन्डों को पकड़ कर उनका पर्दाफाश करेंगें। रानी बोली उस दिन शाम को जब वह शाम को अपनें घर के सामनें टहल रही थी उसनें फिर से उन गुन्डों को जाते देखा। उसनें सोचा ज्यादा देर करना ठीक नहीं वह अकेली ही उन गुन्डों का सामना करेंगी। उसे सब असहाय बेचारी समझते हैं।  बेचारी शब्द सुन सुन कर थक गई। वह क्यों सारे काम नहीं कर सकती जो एक सामान्य व्यक्ति कर सकता है। उसे ज्यादा समय लगेगा पर वह भी कर के दिखा देगी। टांगे टेढी है तो उसनें अपनें आप को अन्दर से इतना मजबूत कर लिया है वह हर खतरे का मुकाबला हंसते हंसते कर सकती थी। राजू के परिवार वाले भी उसे आने  से मना करते इसलिए उसनें अकेली ही उन से निपटनें का फैसला ञकर लिया। वह किसी पर बोझ बन कर अपनी जिन्दगी यूं बर्बाद नहीं करेगी। वह भी कुछ कर दिखाएगी।

 

उसके नाना जी बोले वाह! शाबास बेटा, कल ही मैं अपने फैमिली डाक्टर को फोन लगाता हूं। तुम्हारी टांगों के आप्रेशन के लिए बात करता हूं। आज हमारे घर में हमारे बहुत ही पुरानें मित्र आ रहें हैं। वह उन डाक्टर साहब के बड़े भाई हैं। उन से भी कहता हूं भगवान ने चाहा तो तुम जल्दी ही चलनें लग जाओगी।

शाम के चार बजे किसी नें दरवाजे पर दस्तक दी। रानी नें कहा मैं दरवाज़ा खोलती हूं। रानी ने जैसे ही दरवाजा खोला वह चौक कर पीछे हट गई। सामनें  जो व्यक्ति खड़े थे उनका चेहरा जाना पहचाना लग रहा था। वह याद करनें की कोशिश करनें लगी। उसे सब कुछ याद आ गया यह तो वही व्यक्ति थे जिन की गाड़ी से चोरी सूटकेस चुरा कर ले गए थे। रामनाथ जी बोले इनको नमस्ते करो या पैर छू कर आशीर्वाद लो। वह बोली नमस्ते अंकल। उन्होंनें भी नमस्ते का उतर दे दिया। रानी बोली क्या आप करनाल गए हो? वह बोले बेटा। वंहा का तो नाम ही मत लो। मैं वहां क्या गया सारा कुछ गंवा कर आ गया। वह बोली आप करनाल किस के घर ठहरे थे। वह बोले बेटी क्या तुम कोई जासूस हो? वह बोली नहीं ऎसे ही पूछ लिया। मैं वहीं की रहने वाली हूं। आलोकनाथ बोले मेरे बहुत ही खास दोस्त हैं। वह भी व्यापारी हैं। उनका नाम महेन्द्र नाथ है। उनके पास ठहरा था। वह जल्दी से बोली वह तो मेरे दोस्त के पापा हैं। आप की गाड़ी में से चोरी करते हुए उसनें गुन्डो को देखा था। उसने सारी कहानी सुना दी  स्कूल जाते हुए  वह कैसे एक बाइक सवार से टकराई और नीचे गिर गई। उसने उसे नहीं उठाया। फिर आप की गाडी आई आप नें भी देख कर नजर अंदाज कर दिया। और जल्दी जल्दी उतर कर गाड़ी लौक कर चले गए। गुन्डों नें आ कर आप की गाड़ी का लौक तोड़ा औरसूटकेस निकाल कर ले गए। गुन्डों नें मुझे देख कर एक दूसरे से कहा यहां कोई लड़की नीचे गिरी है। यह जिन्दा तो नहीं है देखो। मुझे सुनाई दे गया  सांसो को रोक कर वह बिना हिले डोले यूं ही पड़ी रही। उन्होंने कहा यह तो मर गई है जल्दी चलो वर्ना हम भी पकड़े जाएंगे।वह लौक तोड़ कर  सूटकेस ले कर चलते बनें। आलोक नाथ बोले  बेटा मुझे माफ कर दो  उस दिन तुम्हें देख कर भी तुम्हारी सहायता नही की। इतनी प्यारी बच्ची को नहीं बचाया। इसी कारण तो भगवान नें हमें इतनी बड़ी सजा दे डाली। उस सूटकेस में बहुत ही किमती हीरे थे। क्या तुम उन गुन्डों को पकडवानें में हमारी मदद कर सकती हो? मैंनें उन गुन्डों को पकडवानें वाले को 15 लाख रुपये ईनाम रखा है। रामनाथ नें सारी कहानी अपनें दोस्त को सुना दी यह बेटी बहुत ही होशियार है। यह उन गुन्डों का सामना करती करती अपनें माता पिता को बताए बगैर उनकी डिक्की में छिप कर उनके अड्डे का पता मालूम कर लिया। और उन गुन्डों का मोबाईल भी छिपा कर ले आई है। वह केवल आठ वर्ष की है। रामनाथ नें सारी कहानी आलोकनाथ जी को सुना दी। रामनाथ जी बोले हम सब मिलकर  उन गुन्डों को पकडवाएंगे। आलोकनाथ जी को रामनाथ नें बताया कि इस बच्ची की टांगें टेढी हैं। वह बहुत ही दुःखी हुए। हमारी सोच कितनी छोटी है। इस बच्ची का हौंसला देखो टांगे टेढी  होनें के बावजूद भी अकेली उन गुन्डों को सलाखों के पीछे पहुंचा नें का दम रखती है। हमें तो इस छोटी सी बच्ची से सीख लेनी चाहिए।

आलोकनाथ जी बोले मैं इस बेटी की टांगों का आप्रेशन जल्दी से जल्दी करवानें की कोशिश करुंगा। आप को इस लडकी के माता पिता को सूचित करना होगा। मोबाईल की सहायता से रानी नें  पुलिस वालों को उन गुन्डों के अड्डे तक पंहूंचाया। और उनके असली ठिकानों का पता बता कर सारा चोरी किया माल बरामद कर लिया।

रामनाथ जी नें उस लड़की की फोटो अखबार में डाल दी थी कि एक बच्ची दो महीनें से हमारे घर पर है। उसका नाम रानी है। उसनें चोरों के अड्डे का पता लगा कर एक व्यापारी का सारा चोरी किया गया माल ढूंडवानें मे मदद की है। और गुन्डों को जेल भिजवाया है। उस लड़की के जज्बे को हम सलाम करतें है। जिस किसी की भी यह बच्ची है वह  विवेकानन्द हॉस्पिटल  में है। अखबार में छपवा दिया था। रामनाथ जी नें उसे अस्पताल में दाखिल करवा दिया। शिवानी नें अखबार जैसे ही पढा उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। आज उसका सिर गर्व से ऊंचा हो गया था। उनकी बेटी नें साबित कर दिखाया था। जो एक सामान्य इन्सान कर सकता है तो वह क्यों नहीं? शिवानी के पापा भी खुश थे। उन की बेटी सुरक्षित है। वह जल्दी जल्दी विवेकानन्द अस्पताल जो दुर्गापुर में था वह आज जानें की तैयारी करनें लगे। राजू नें जब सुना तो वह भी उन के साथ अपनी दोस्त  को मिलनें चल पड़ा। रास्ते में शिवानी सोच रही थी उनके पापा मां भी यही किशनगंज में रहतें हैं। उन्होंनें तो कभी मुझे याद तक नहीं किया। उसके एक फैसले नें उसे अपनें मां बाप के प्यार से सदा सदा के लिए वंचित कर दिया। अचानक रुपेश बोले क्या सोच रही हो? वह बोली कुछ नहीं यंहा पंहुंच कर अपने बचपन को याद कर रही थी। मेरे माता पिता नें यहां ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया और मैंनें उन की इच्छाओं का गला घोंट दिया। आज वह भी मुझे मिल जाते  तो कितना अच्छा होता? रुपेश बोले पहले तो हमें वहां पहुंच कर उन देवता तुल्य व्यक्ति का शुक्रिया अदा करना चाहिए जिन्होंनें हमारी बेटी का आप्रेशन करवानें में हमारी मदद की है। उन को ही मैं अपने पिता समझूंगा। जिनकी वजह से आज हमारी बेटी उन्हें मिलनें जा रही है।रुपए और उनकी पत्नी शिवानी  भी अस्पताल पंहूंच गए थे। डाक्टर रानी का आप्रेशन कर रहे थे। रानी का आप्रेशन सफल हो गया। शिवानी नें जैसे ही अस्पताल में कदम रखा स्ट्रेचर पर लाते हुए उसने अपनी बेटी को देखा।  नर्सो नें उसे बिस्तर पर लिटा दिया। शिवानी और रुपेश अपनी बेटी को गले लगाते हुए बोले बेटा तू हमें बिना बताए कंहा चली गई थी। हम नें तुम्हें कंहा कहां नहीं ढूंढा? राजू ने कस  कर  अपनी दोस्त को गले से लगा लिया और बोला तू नें तो अपने दोस्त को भी पराया कर दिया। मैं तुम्हारी मदद करता। मुझे आज इस बात की खुशी है अब तुम हर काम कर सकती हो।

शिवानी बोली में उन का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जिन्होंने मेरी बेटी का आप्रेशन करवाया और मुझे इतनी बडी़ खुशी दी।

सामनें से आते एक बढें व्यक्ति की तरफ इशारा करते हुए रानी बोली ये हैं मेरे नाना जी। शिवानी चौकी। यह तो भगवान का करिश्मा ही हो गया जैसे ही वह उन के पैर छू कर आशिर्वाद लेंनें के लिए झुकी वह हैरान रह गई। शायद उसे इन व्यक्ति में अपने पापा का चेहरा दिखाई दिया। वह जोर से चिल्लाई। बाबूजी और दौड़ कर उन्हें  गले लगा  कर बोली बाबू जी, यह आप की ही नवासी है। आपने तो हमें अलग कर दिया था मगर आज आप की नवासी नें हमें फिर से मिलवाया दिया। यह तो मजबूत बंधन है। इतनी आसानी से टूटनें वाला नहीं है। रामनाथ और उसकी पत्नी अपनी बेटी को गले लगा कर बोले हम  तुम बच्चों के सच्चे प्यार को समझ नहीं सके तभी तो अकेले के अकेले रह गए। आज से हमारी नवासी हमारे साथ ही रहेगी। आलोकनाथ जी नें वायदे के मुताबिक उसे 15लाख रुपये दिलवा दिए। धीरे धीरे रानी की टांगे भी सीधी हो गई। वह  चलनें लग गई थी। सारा परिवार खुशी खुशी एक दूसरे के साथ था। एक बार खुशियाँ फिर से लौट आई थी।

 

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