सबक

संगीता और वीरू की जिंदगी बहुत ही खुशहाल थी। वह दोनों अपनी बेटी के साथ बहुत ही खुश थे। वीरू कॉलेज में एक सुपरिंटेंडेंट के पद पर आसीन थे। दिन इसी तरह व्यतीत हो रहे थे कॉलेज में वीरु के दोस्त की बेटी ने प्रवेश लेना था। उसे वहां प्रवेश नहीं मिल रहा था तभी वीरू के दोस्त ने सोचा क्यों ना वीरु से अपनी बेटी के कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए सिफारिश की जाए। वह दोनों पति-पत्नी वीरु के पास अपनी बेटी के दाखिले के लिए कार्यालय में पहुंचे। कॉलेज में वीरू को ऑफिस का एक कमरा मिला था। जहां पर कॉलेज के विद्यार्थी कॉलेज के प्रवक्ता और प्रिंसिपल सभी वीरों की खूब प्रशंसा किया करते थे। वह घर आकर अपनी बेटी और पत्नी को बहुत खुश रखता था। उनके लिए कभी-कभी उपहार भी ले जाता था और कभी-कभी महीने के एकदिन तीनों मिलकर किसी रेस्टोरेंट में बैठकर खाना खाते थे। वह घर आकर अपनी पत्नी और बेटी के साथ थोड़ी देर बैठ कर उनके साथ मौज मस्ती भी करता था,। इसी तरह दिन गुजर रहे थे।

एक दिन वीरू के दोस्त ने वीरु को और उसकी पत्नी को घर पर खाने के लिए बुलाया तभी खाना खाने के पश्चात वीरू के दोस्त ने वीरू को कहा कि कृपा करके मेरी बेटी को अपने कॉलेज में किसी भी तरह दाखिला दिलवा दो। उसके कुछ कम अंक आए हैं कृपया आप किसी ना किसी तरह मेरी बेटी को कॉलेज में प्रवेश दिला दो इसके लिए मैं डोनेशन देने के लिए भी तैयार हूं। वीरू ने कहा देखो भाई अगर प्रिंसिपल तुम्हारी बेटी को प्रवेश देने के लिए राजी हुए तो ठीक है परंतु मैं डोनेशन वगैरा के चक्कर में नहीं पड़ता। मैंने अपनी बेटी के दाखिले के लिए भी किसी को घूस नहीं दी थी ना मैं रिश्वत लेता हूं और ना देता हूं। मैं प्रधानाचार्य जी से तुम्हारी बेटी के दाखिले के लिए बात अवश्य करूंगा अगर वह राजी हो गए तो ठीक है वर्ना तुम बुरा मत मानना।

अगले दिन वीरू ने प्रधानाचार्य जी को सारी बातें कहीं। प्रधानाचार्य ने कहा हमारे कॉलेज में रिश्वत नहीं ली जाती यहां पर दाखिला उन्हीं को मिलता है जिन्होंने टॉप किया हो मैं प्रवेश दिलाने के लिए असमर्थ हूं। वीरु ने अपने दोस्त को कहा कि प्रधानाचार्य जी ने रिश्वत लेने से इन्कार किया है तो उसके दोस्त नें वीरू को कहा कि कृपा करके मेरी बेटी को दाखिला दिलवा दो। वीरु नें साफ शब्दों में इंकार कर दिया। उसका दोस्त उससे बहुत ही नाराज हो गया। वह किसी ना किसी बहनें उसको नीचा दिखाने की कोशिश करने लगा। कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ता था। उस को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश करता रहता था। उसके कार्यालय में तीन चार कर्मचारी ऐसे थे जिन्हें पीने की लत थी हवह खाना खाने के समय लंच का समय जब होता था खाना खाने के बाद थोड़ी सी पी लेते थे। वीरू के दोस्त ने उन कर्मचारियों के साथ मिलकर योजना बनाई। उसने उन तीनों कर्मचारियों को कहा कि अगर तुम तीनों वीरु को पीने की लत लगा दोगे तब मैं उन्हें अपना सच्चा दोस्त मानूंगा। मैं तुम्हें इसके लिए ₹20000 भी दूंगा। इसने मेरी बेटी को इस कॉलेज में दाखिला नहीं करवाया इसके लिए मैं इसके लिए कभी माफ नहीं करूंगा इसकी नौकरी पर ऐसी लात मारूंगा कि इसको खुद ही नौकरी छोड़ कर यहां से जाना पड़ेगा। इस को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश करूंगा।

वे तीनों कर्मचारी मिलकर वीरु कोअपने जाल में फंसानें की कोशिश करने लगे। किसी ना किसी बहाने से खाना खाने के लिए अपने साथ ले जाते। जब वह खाने के लिए मना करता तो उसे कहते कि वह उसे अपनी मित्रता के काबिल नहीं समझते। इसलिए उनके पास खाना खाने में अपनाअपमान समझते हैं। उन्हें भी मना नहीं कर सकता था वह उनके साथ खाना खाने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने उसे थोड़ा-थोड़ा पिलाना भी शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसे भी नशे की आदत लग गई थी। घर आता तो बेहद उदास नजर आता अपनी पत्नी और बेटी के साथ खुलकर बात भी नहीं करता था।

संगीता उसे देख कर कहती कि तुम उदास क्यों हो? हमें बताओ वह कभी भी अपनी पत्नी और बेटी को कुछ नहीं बता पाता था था। पूछने पर वह अपनी पत्नी और बेटी पर गुस्सा करने लगता था। एक दिन जब वह अपने कार्यालय में आया तो उसने सारे बच्चों की फीस और सारे रुपयों को अलमारी में रखा उसने गिने पूरे ₹50000 थे। उसके साथ वाले दोस्तों ने उसे इतनी अधिक पिला दी कि उसे अलमारी की चाबी का ध्यान भी नहीं रहा। उसके दोस्तों ने ₹50000 निकाल लिए और चोरी का इल्जाम भी उस के ऊपर लग गया।

कॉलेज के प्रधानाचार्य ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि रुपए कहां है? उसने कहा मुझे नहीं पता उन्होंने उसे इतना अधिक नशा करवा दिया था कि वह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। उसके अन्य दोस्त कर्मचारीयों नें उसके पर्स में ₹50000 निकाल लिए। प्रधानाचार्य ने उसे नौकरी से निष्कासित कर दिया। संगीता ने जब अपने पति को नशे की हालत में देखा तो वह बहुत ही बेचैन हो गई उस ने उसे समझाया प्रस्तुत उसका पति नशे के दलदल मे इतना अधिक फंस चुका था कि उस से निकलना आसान नहीं था। संगीता सोचने लगी कि ऐसा क्या हुआ हमारे पास किस चीज की कमी भी नहीं थी। फिर क्यों उन्होंने नशे की प्रवृति को अपना लिया। उसकी बेटी ने भी अपने पापा को बहुत समझाने की कोशिश की परंतु उसने उन दोनों की बात नहीं मानी। एक तो नौकरी गंवा दी और दूसरी सारी सारी रात घर नहीं आना। वीरू का दोस्त अपने दोस्त को दलदल में फंसा देखकर फूला नहीं समा रहा था। संगीता ने और उसकी बेटी ने सोचा कि उसे इस दलदल से बाहर निकालना हमारा फर्ज है ह हम दोनों एक होकर इस फर्ज को अवश्य पूरा करेंगे। एक दिन जब वह पीकर घर आकर अपनी पत्नी और बेटी पर चिल्लाने लगा तो उसकी पत्नी ने जोर देकर कहा कि आज मैंने भी अपने ऑफिस में अपना त्यागपत्र दे दिया है। अब मैं भी कल से नौकरी पर नहीं जाऊंगी। उसकी बेटी बोली मां मैंने भी अपना कॉलेज जाना आज से बंद कर दिया है। मैं भी कॉलेज नहीं जाऊंगी। आज हम तीनों बैठकर पीते हैं। आओ बेटा आज हम तीनों बैठकर ड्रिंक करते हैं। बेटी तीन गिलास ले आई और अपने पापा को देती हुई बोली पापा चलो पीते हैं।

अपनी बेटी और पत्नी के शब्द उसे एक नश्तर की की तरह दिल में चुभनें लगे। ं जिन्होंने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। उस समय तो वह अपनी पत्नी को बोला प्रिये तुमने अपनी नौकरी से त्यागपत्र क्यों दिया।? उसकी पत्नी बोली जब आप ही वापस अपनी नौकरी पर नहीं गए और जब तक आप नें पीना नहीं छोड़ा तब तक हम दोनों भी अपने काम पर नहीं जाएंगे। चाहे हम आपके साथ भूखे मर जाएंगे परंतु हम कभी भी उफ तक नहीं करेंगी। वीरू को अपने किए पर पछतावा हुआ उसने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह अवश्य शराब को कभी भी हाथ नहीं लगाएगा और ना ही कभी शराब पिएगा। कुछ दिन तक तो उसने शराब को हाथ नहीं लगाया मगर फिर वह शराब फिर पीने लगा। संगीता ने सोचा कि अपने पति को किस तरह इस नशे से बचाया जाए। उसने अपनी दोस्त के बेटे के साथ मिलकर योजना बनाई कि अपने पति को सुधारा जाए। संगीता की दोस्त का बेटा शौर्य संगीता के घर में पहुंच गया। संगीता और उसकी बेटी उसके साथ ड्रिंक करने लगी। वह ड्रिंक नहीं कर रही थी वह तो सेब का जूस था जो उन्होंने अपने तीनों गिलासों में मिलाया था। अपने पति को सबक सिखाने के लिए वह अपने दोस्त की सहेली के बेटे के साथ खूब घुल घुल मिलकर शराब पीने का नाटक कर रही थी। कभी-कभी अनजाने में वह संगीता का हाथ पकड़ने लगता। जब शौर्य ने एक बार फिर संगीता का हाथ पकड़ा तो वीरू से नहीं रहा गया उसने एक जोरदार तमाचा अपनी पत्नी और अपनी बेटी पर जड दिया। उसकी बेटी जोर जोर से रोने लगी बोली पापा अगर आप सुधर नहीं सकते तो हम भी आपकी राह अपनाएंगे। जब आप हमारी एक भी बात नहीं मान सकते तो हम भी आपकी कोई बात नहीं मानेंगे। आज से हम दोनों भी आजाद हैं।

हमारा जो मन करेगा हम वही करेंगे। आप कौन होते हो हमें रोकने वाले? वीरू की आंखों से नशा उतर गया था। उसे अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने उन दोनों को विश्वास दिलाया कि तुम दोनों अगर नशा नहीं करोगी तो वह भी इस दलदल से निकलनें की कोशिश करेगा। उसने सारी बोतल फेंक दी और उस लड़के को धक्का देकर कहा यह मेरा घर है तुम यहां कैसे आए? धीरे-धीरे वीरू में सुधार आ रहा था। उसने अपने पीने की आदत को छोड़ दिया था जब उसका पीने का मन करता तो वह अपने आपको किसी और कार्य में लगा देता।

वह एक दिन कॉलेज के प्रधानाचार्य जी से मिला। उसने प्रधानाचार्य जी को सारी बात बताई कि पता नहीं उसे शराब की लत कैसे लगी? जिस कारण उस से ऐसी गलती हुई आप मेरी गलती को माफ कर दीजिए। एक बार तो आप मुझे माफ कर ही सकते हैं। स्कूल के प्रधानाचार्य जब चाय पीने कैंटीन गए हुए थे तो उन्हें संगीता मिली और उसने अपने पति की सारी बातें उनसे कही मेरे पति कभी भी कोई गलत काम नहीं करते थे। उन्हें आपके ऑफिस में ही किसी कर्मचारी ने इतनी अधिक पिला दी और उन्हें इतना पिलाते गए कि उन्हें इस नशे के दलदल से निकलना मुश्किल हो गया। कृपया करके आप अगर पता लगाएंगे तो मैं समझूंगी कि आपने हम पर दया करके बहुत ही बड़ा उपकार किया है। कॉलेज के प्रधानाचार्य बहुत ही अच्छे इंसान थे। उन्होंने सोचा शायद वीरू की पत्नी ठीक कर रही है। उन्होंने सच्चाई को पता लगाने की कोशिश की अब हर समय कॉलेज के कर्मचारियों पर नजर रखने लगे। एक दिन वे तीनो कर्मचारी जिन्होंने उसे शराब के दलदल में घसीटा था उन तीनों को बात करते प्रधानाचार्य जी ने सुना। तीनों कह रहे थे बेचारा वीरू भोला-भाला जो कभी नशे को हाथ तक नहीं लगाता था हमने उसे नशा करने को प्रेरित किया और वह अलमारी की चाबी प्राप्त करके हमने उसकी जेब में ₹50000 रख दिए थे। चोरी का इल्जाम वीरु पर लग सके। ऐसा करने के लिए आज उन्हें मल्होत्रा जी ने ₹20000 देने का वादा किया था। वादे के मुताबिक मल्होत्रा जी ने आज उन्हें ₹20000 दे दिए थे। आज तीनों जश्न मनाने आए थे उन तीनों ने शराब की तीनों बोतलें मंगाई। उन्होंने शराब पीकर सारी बातें उगल दी थी। प्रिंसिपल साहब को वीरु की बेगुनाही का सबूत मिल चुका था ह वह अपने आप को कोसने लगे कि बेचारे वीरु का क्या दोष? उन तीनों ने उसे नशे के दलदल में अग्रसर कर दिया था। वे तीनों अगर उसे दलदल में नहीं घसीटते तो वह कभी ऐसा नहीं करता। प्रधानाचार्य जी समझ गए कि बीनू की पत्नी सच ही बोल रही थी। दूसरे दिन प्रधानाचार्य जी ने वीरू को अपने कार्यालय में बुलाया और उसे कहा कि जाओ मैंने तुम्हें माफ किया। कल से तुम काम पर आ सकते हो मुझे आज पता चल चुका है कि यह काम किसने किया था?और क्यों करवाया गया? प्रधानाचार्य ने तीनों कर्मचारियों को अपने पास बुलाया और कहा कि अगर तुम्हें अपनी नौकरी प्यारी है तो तुम सच-सच बताओ तुम्हें बिंदु को उकसाने के लिए चोरी के रुपए रखने के लिए और नशा करने के लिए किसने कहा था।? तीनों कर्मचारियों ने कहा कि हम तीनों को मल्होत्रा जी ने कहा था। इस वीरु को नशे के दलदल में इतना गिरा दो वह चैन से कभी जी ना सके। उसने हम से कहा था इसने मेरी बेटी को कॉलेज में दाखिला दिलवाने का प्रयत्न नहीं किया। वीरू यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया। उसे तो मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका चहेता दोस्त उसके साथ इतना बुरा बर्ताव कर सकता है। संगीता ने अपने पति को कहा की वे दोनों भी आपके साथ अपनी सहेली के बेटे के साथ मिलकर शराब पीने की एक्टिंग कर रहे थे । वह सब आपको सबक सिखाने के लिए संगीता ने अपने पति को कहा कि उसने अपने कार्यालय से त्यागपत्र नहीं दिया था और ना ही आपकी बेटी ने कॉलेज छोड़ा था । यह सुनकर वीरू बहुत खुश हुआ। उसने अपनी बेटी और पत्नी को विश्वास दिलाया वह कभी भी किसी के बहकावे में नहीं आएगा। वह शराब को कभी हाथ भी नहीं लगाएगा। यह कहकर उसने अपनी बेटी और पत्नी को गले से लगा दिया।

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