साहसी शिब्बू

शिब्बू जल्दी में स्कूल जा रहा था। शिब्बू को स्कूल पहुंचने में देर हो गई थी। स्कूल में निरीक्षक महोदय आए हुए थे। वह थोड़ा देर से स्कूल पहुंचा था। मैडम ने उस को कहा देर से आने वाले बच्चे बेंच पर खड़े हो जाओ अधीक्षक महोदय उस के पास आए बोले तुम्हें देर कैसे हुई। शिब्बू बोला गांव से आते जाते मुझे नदी पार करके आना पड़ता है। स्कूल पहुंचने के लिए सात किलोमीटर पैदल आना पड़ता है। आज तो बरसात के मौसम में नदी में पानी खूब भर जाता है। मुझे नदी पार कर आना पड़ता है। निरीक्षक महोदय बोले बेटा तुम इतनी दूर से स्कूल आते हो। वह बोला सर मुझे पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। मेरे गांव के पास कोई भी स्कूल नहीं है। निरीक्षक महोदय ने मैडम को कहा कि इस बच्चे को बैंच पर मत खड़ा करो। क्योंकि तुमने इससे बिना  कारण  इस बच्चे को इतनी बड़ी सजा   दे डाली। तुम्हें बच्चों की मनोवृति को समझना चाहिए। मैडम को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसकी मैडम अब सब बच्चों से पूछने लगी तुम्हें आज देर क्यों हुई?

एक दिन  वह देरी से  विद्यालय गया तो मैडम बोली बेटा  तुम देर से क्यों आए? बोला मैडम रास्ते में केले का छिलका गिरा हुआ था सामने एक सेठ और सेठानी आ रहे थे। वह   सेठानी उस केले के छिलके   पर अपना पैर रखने की जा रही थी किसी ने दौड़कर उस केले के छिलके को उठा लिया। सेठानी ने सोचा मुझे वह लड़का धक्का दे रहा है। उस नें ज़ोर से चांटा शिब्बू के गाल पर मार दिया। साथ आने जाने  वाले व्यक्ति ने यह सब देख लिया। उसने गुस्से से सेठानी को देखा और गुस्से में कहा सेठानी जी बिना सोचे समझे तुमने इसके गाल पर थप्पड़ क्यों लगाया? वह केवल नीचे गिरे हुए केले को उठा रहा था। आप ने केले का छिलका नहीं देखा था। वह तो आपको फिसलने से बचा रहा था। सेठानी ने शिब्बू की और देखा वह अभी भी अपना गाल चला रहा था। वह सेठानी बोली बेटा मुझे माफ कर दो। मुझसे बड़ी गलती हो गई। मैंने बिना सोचे समझे तुम्हें चांटा जा दिया।  तुम तो मुझे बता रहे थे।

शाम के समय अपने पिता से मिलने गया उसके पिता  एयरपोर्ट के सामने वाले ढाबे में चाय बनाते और पकौड़े बेचने का काम करते थे। वह जल्दी जल्दी स्कूल की छुट्टी के पश्चात अपने पिता के ढाबे पर जा रहा था। थोड़ी देर अपने पिता को विश्राम करने के लिए कहता था और थोड़ी देर ढाबे को संभालता था। आज भी वह जल्दी स्कूल से आ गया था और ढाबे पर बैठकर अपने पिता के काम में हाथ बंटाता था।

एक दिन सुबह जब वह अपने पिता के ढाबे पर जा रहा था। उसके स्कूल में छुट्टी थी। उसने देखा रास्ते   में एक बहुत ही बड़ा पत्थर था वह सड़क के पास ही था। वह पत्थर इतना बड़ा था कि उसको  वंहा से हटाना बड़ा ही मुश्किल था।। रास्ते में उसको उस बड़े से पत्थर से ठोकर लगी। उसको हटाने की कोशिश करने लगा मगर वह टस से मस नंही हुआ। उस पत्थर को हटाने के लिए इतना जोर लगा रहा था कि वह पत्थर थोड़ा सा खिसका तो उसको नीचे एक लकड़ी का फट्टा दिखाई दिया।वह थोड़ी दूर पर जाकर वहां से डंडा ले आया और उस  पत्थर को हटाने लगा। वह पत्थर को हटाने में कामयाब हो गया। जैसे हीे इसने लकड़ी के फट्टे को हटाया तो नीचे सीढ़ियां थी। वह चुपचाप सिडिंयों से नीचे उतरा तो उसने  जो देखा वह देखकर दंग रह गया। उसने खिड़की में से देखा वहां पर बहुत सारे  साधु थे। उसमें से एक साधु दूसरे साधु को कह रहा था तुम सब को कह रहा हूं कल एयरपोर्ट पर ठीक 11:00 बजे पहुंच जाना उसे समझते देर नहीं लगी कि वे  साधु के भेष में छलिया हो। परंतु बिना सोचे समझे  मुझे कोई तर्क नहीं देना चाहिए। पहले मैं इन साधुओं की अच्छे ढंग से छानबीन करूंगा तभी उनके बारे में कुछ राय कायम करूंगा। परंतु यह साधु वाली बात मुझे अब तक अपने तक ही सीमित रखनी चाहिए।

वहां से आकर वह सीधा अपने घर पहुंच गया दूसरे दिन उसने अपने पिता को कहा कि मैं आज स्कूल नहीं जाऊंगा।  हमारी परीक्षा हो चुकी है। स्कूल में खेलों का ही कार्यक्रम है। मैं आपके साथ आपका हाथ बटांऊगा। वह अपने पिता के साथ एयरपोर्ट पर पहुंच गया तभी उसने देखा कि एक एयरपोर्ट पर जाहिर आ चुका थ जिसमें से उतरकर व्यक्ति पैदल चल रहे थे। शिब्बू ने वहां पर आसपास से गुजरते हुए साधुओं को देखा। उन्हें देख कर शिब्बू नें उनको पहचान लिया वह तो कल वाले ही साधु हैं। उसने देखा कि वह साधु एयरपोर्ट पर किसी का इंतजार कर रहे थे तभी सामने से आते हुए उन्होंनें एक व्यक्ति को देखा। व्यक्ति देखने में खूब मोटा और तगड़ा था। उसने हाथ में सूटकेस ले रखा था। जल्दी से साधु उस सूटकेस वाले व्यक्ति से बातें करनें लगा। सूटकेस वाले व्यक्ति ने साधु बाबा को अपना सूटकेस दे दिया। सामने से चेकिंग वाले आ रहे थे। वह सूटकेस वाला भी लाइन में लग चुका था।  शिब्बू नें उस साधु बाबा को अपने बैग में कुछ रखते देख लिया था। वह देख नहीं पाया कि इस बैग में क्या है? वह साधु बाबा वहां से ओझल  हो गए। शाम के समय अपने घर आ रहा था तो उसने उन साधुओं को वंहा से जाते हुए देखा तो अपने मन में सोचा कि वह तो अपने निवास स्थान से निकल चुके हैं चलो देखते हैं उन्होंने कल क्या लाया था। इसकी जानकारी ले लेता हूं।  चुपचाप से  सिडिंयों को उतर कर नीचे पहुंच गया। उसने दरवाजा खोला क्योंकि वह पहले से ही  अपनें साथ एक मास्टर कि ले आया था। । जिससे कि सभी ताले खुल जाते थे। उसने जल्दी से दरवाजा खोला। वह देख कर हैरान हो गया कि वह बैग वही पड़ा था उसमें चरस थी। उसे समझते नहीं यह साधु बाबा चरस का व्यापार करते हैं। वह एक CID अफसर की तरह उन साधु बाबाओं का पीछा कर रहा था। वह पुलिस थाने में जाकर उनकी सूचना पुलिस को देना चाहता था परंतु उसके मन में ख्याल आया कि अभी नहीं क्योंकि हो सकता है पुलिस का कोई आदमी इस काम में लिप्त होगा तो मेरा सारा बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा इसलिए उसने कोई सूचना  नहीं  दी।

उसके स्कूल की बरसात की छुट्टियां होने वाली थी। उसने अपने पिता को कहा कि वह छुट्टियों में अपने मामा के पास ही रहेगा। स्कूल की पढ़ाई करने के लिए बहुत ही दूर आना पड़ता है। मैं छुट्टियों में मामा जी के घर पर ही रहूंगा उसके मामा का घर एयरपोर्ट के पास ही था अपने मामा के पास आ गया था। वह अपने पिता के पास दिन को दुकान पर आ जाता था। वह एक ग्राहक को पकौडे दे रहा था तभी उसकी नजर  साधुओं पर पड़ी जो एक जगह खड़े हुए थे। वह सोचनें लगा ये सब  यहां क्या कर रहे हैं तभी एक साधु  एयरपोर्ट के सामने जाकर खड़ा हो गया। फ्लाइट आने का समय हो चुका था। और बाकी   उसके सभी साथी इधर उधर थे। उसने दो साधुओं को एक महिला के पास चक्कर लगाते देखा। तीन साधु अघोरी साधु एक ग्रुप में थे परंतु सभी अलग-अलग ग्रुप में थे। तभी  फ्लाइट आ चुकी थी। उसने अपने बाबा को कहा बाबा अब आप देख लो। मैं अभी एक चक्कर मार कर आता हूं। उसके पिता ने कहा बेटा तू इतनी देर में मेरे ग्राहक देख रहा है एक राउंड मार कर आ जा

शिब्बू एयरपोर्ट के पास जा कर उन साधुओं पर नजर रखे हुए था  तभी उसने एक व्यक्ति को देखा जो एक बॉक्स उन साधनों को पकड़ा रहा था।।।

दूसरे दिन  उसने  वहां जाकर देखा कि उसके कमरे में जो बॉक्स पड़ा था उसमें नकली इंजेक्शन थे। ना जाने कैसे इंजेक्शन थे उसने उनमें से एक इंजेक्शन चुरा लिया और अपने एक अंकल के पास जाकर बोला डॉक्टर अंकल आप बताइए तो यह इंजेक्शन  किस बीमारी के लिए होता है। उन्होंनें कहा बेटा यह इंजेक्शन तो किसी भी इंसान को बेहोश करने के लिए लगाया जाता है। दूसरे दिन शिब्बू अपनें पुलिस अंकल डीआईजी से मिला। उनका तबादला  उन के शहर  अहमदाबाद में होने वाला था। परंतु अभी वहां पर पहले वाले डीआईजी  उस पद पर नियुक्त थे क्योंकि अभी वे वहां से जाना नहीं चाहते थे। उन्होंने अपनी ट्रांसफर रुकवाने के लिए एक प्रार्थना पत्र दे रखा था। उसने कहा अंकल मैं आप की मदद से एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश करना चाहता हूं। जैसे  ही मुझे कोई और  सुराग मिलेगा तो फुर्सत में मैं आप से सारी बातें बैठकर हल करने की कोशिश करूंगा। इस तरह से वह साधु की मंडली पर नजर रखने लगा।

एक दिन जब वह अपनी दादी को लेकर अस्पताल गया था वहां पर उन साधुओं को देखकर  दंग रह गया। एक साधु एक डॉक्टर से कुछ कह रहा था। वह उनकी बातें छिप कर सुनाएं लगा।  साधु चलते चलते एक डिब्बा डाक्टर को दे गया और जल्दी-जल्दी वहां से चला गया। डाक्टर नें वह डिब्बा नीचे रख दिया था  उसमें वही सिरिंज थी जो उसने डाक्टर अंकल को दिखाई थी। वह डाक्टर भी उन साधुओं से  मिले हुए थे। नकली इन्जैक्सन बाहर से आते थे। और वे साधु इन इन्जैक्सन को लोगों को सप्लाई करते थे। साधु बाबा पर तो कोई शक नंदी करता था।  चरस का धन्धा भी। चरस ला कर होटल के मालिक को बेच देते थे। वे चरस का धंधा  भी करते  थे। सुपरिडैन्ट और पुलिस को भी बातें करते सुना यहां पर  तीन चारखूंखार आतंकियों को छुड़ाना है जो जेल में है। इंजेक्शन के माध्यम से वहां पर ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों को देखकर उनको बेहोश करके उन आंतकियों को वापस  उन के शहर भेज देंगे क्योंकि दो-तीन दिन बाद उनके साथ होने  उन्हे लेने के लिए आ रहे हैं। वह भी अपनी गाड़ी लेकर।

 ढोंगी साधु औरतों को भी  ड्रग सूंघा कर उनके  गहनों जेवरात उन के हाथों से छीन लेते थे। और तो और बूढ़ी वृद्ध महिलाओं को जहां वे क्लब में जाती थी। जब  सारी महिलाएं क्लब से वापस आती थी तब उन्हें लालच देकर कि तुम्हारा रुपया दुगना कर देंगे। और तुम्हे पोता चाहिए  तो तुम्हें  ये उपाय करना है। वह उन्हें बेहोशी का इन्जैक्सन दे कर उन के गहने रुपये छिन कर ले जाते थे। डी आईजीअंकल की मदद से उन  साधु बाबा के निवास स्थान पर  पहुंचे।  बाबा के निवास स्थान पर पहुंचकर बहुत सारे हीरे और पासपोर्ट जब्त किए। उन साधु बाबाओं का गिरोह अलग-अलग दिशा में काम कर रहा था।।। कोई अस्पताल में कोई शराब के अड्डे पर कोई चरस के व्यापार में कोई लड़कियों को नौकरी का लालच देकर बाहर जाकर बेच देता था। डीआईजी को भी शिब्बू के अंकल ने उस कार्य में संलिप्त  पाया। उसको पता चल चुका था कि शिब्बू नाम का लड़का साधु बाबा के गैंग का पर्दाफाश करना चाहता है।

उसने एक चाल चली कि किस तरह से शिब्बू को फंसाया जाए। उसने एक दिन एक सेठ सेठानी का पर्स छिन लिया  और उसे बेहोश करने ही जा रहा था तो शिब्बू ने  उसे  देख लिया। शिब्बू नें   उस आंटी को  कहा आंटी ध्यान से आपका पर्स अभी गया था। शिबू वहां से चला गया।  वहां पर साधु बाबा का गिरोह आया  और उन्होंने उस  सेठानी को बेहोश कर दिया और उसके गहनें और पर्स छिन लिया।

जब शाम को शिब्बू घर लौट रहा था तो उसने उस आंटी को पहचान लिया क्योंकि वह तो वही सेठानी थी जिसने उसके गाल पर चांटा मारा था। उसने एक बार फिर उस सेठानी को बचा लिया था। उस सेनानी नें   होश में आते ही पुलिस इंस्पेक्टर को कहा कि पुलिस बाबू मेरे पर्स में  20, 00, 000 रुपए थे। कृपा  करके आप पता लगाइए। पुलिस वालों ने छः दिन लगा दिए क्योंकि क्योंकि कई पुलिस वाले भी उन पाखंडी साधु से मिले हुए थे।

शिब्बू ने उन आंटी को विश्वास दिलाया कि वह उनका पर्स  उन चोरों से वापस लेकर आएगा शाम को शिब्बू ने डीआईजी पुलिस की मदद से उस साधु बाबा के निवास स्थान पर छापा मारा। वहां पर एक पर्स  पाया गया और कीमती हीरे जवाहरात और बहुत सारे ड्रग्स प्राप्त किए। उन सब को पुलिस के हवाले कर दिया। सेठानी ने शिब्बू को ₹500,000 इनाम के तौर पर दिए और उन गैंग वालों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया।पुलिस वालों ने भी शिब्बू को एक लाख रुपये दिए और उसकी बहादुरी के लिए  छब्बीस जनवरी को पुरस्कार दे कर सम्मानित किया गया।

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