गुमराह भाग(2)

दिव्यांश अपने माता पिता के साथ एक छोटे  से कस्बे में रहता था। उसके माता पिता के पास गाड़ी थी बंगला था और जिंदगी की सभी ठाट बाट थे जो कि एक धनाढ्य व्यक्ति के पास होते हैं। इतना सब कुछ होते हुए भी दिव्यांश के माता पिता अपने बेटे की आदतों से परेशान थे। उनका बेटा  चौबीसों  घंटे उनकी नाक में दम करता रहता था। उनका कहना नहीं मानता था। उसकी मां उसे हरदम समझाया करती थी कि बेटा तुम हमें क्यों परेशान करते हो? कभी कहता आज स्कूल नहीं जाऊंगा कभी कहता मेरे मनपसंद की खाने की वस्तुएं नहीं बनी है। उसके माता-पिता  हर वक्त यही सोचते कि हमें अपने बच्चे  को किसी बढ़िया बोर्डिंग स्कूल में डाल देना चाहिए था। उसके पिता उसे बोर्डिंग स्कूल में डालने के हक में नहीं थे। उसके पिता एक व्यापारी थे। व्यापार के सिलसिले में बहुत दूर-दूर तक जाते थे। अपने बेटे के लिए समय नहीं निकाल पाते थे। उनकी पत्नी रुचि  नें अपने बेटे की शिकायत अपनें भाई शशांक जो कि विदेश में था रहता था उससे की। उसके भाई  नें  कहा कि मैं दिव्यांश को अपने साथ विदेश में ले जाकर उसको अच्छी तालीम दूंगा। इस बात को काफी वक्त गुजर गया। उसका भाई शशांक वापिस विदेश चला गया था।

एक दिन  रूची नें अपने बेटे से कहा कि जा बेटा थोड़ा समय अपने पिता की दुकान पर भी चले जाया कर। वह बोला मां मैं नहीं जाऊंगा यह काम तो आप भी कर सकती हैं। नौकर चाकर है उन्हें ही कह दिया होता। उसकी मां बोली ऐसा नहीं है बेटा पास में ही तो तुम्हारी पिता की दुकान है। उन्हें भी अच्छा लगेगा। तुम्हारी भी  सैर हो जाया करेगी। हर रोज गाड़ी में स्कूल जाते हो कभी पैदल जाना भी उचित होगा। वह बोला  मां  मैं कभी पैदल   नहीं जाऊंगा उसकी मां बोली बेटा आज घर में तुम्हारे लिए मैंने मीठे-मीठे पकवान बनाएं हैं। वह बोला मां मै घर के बनें   हुए पकवान नहीं खाना चाहता। मुझे तो बाजार से पीजा जलेबी चॉकलेट मंगवा कर दिया करो। मुझे तो बाहर का खाना ही अच्छा लगता है। उसकी मां बोली बेटा  तुम्हारे नाना जी भी  अमीर व्यक्ति हैं। उनके पास भी सारी सुख सुविधाएं है। मैंने कभी भी बाहर का खाना नहीं खाया। अपने घर में अपने मां का और अपने हाथों द्वारा बनाया हुआ भोजन ही खाया। घर में ही हम तरह-तरह की मिठाइयां घर में बना देते थे। वह बोला मां अपनी शेख  मत  बघारा करो। आपने अपने हाथ का बनाया हुआ खाना मुझे दिया तो मैं उसे फेंक दूंगा उसकी मां कुछ नहीं बोली।

वह रोज गाड़ी   में स्कूल  जाता  था। रोज ड्राइवर उसे छोड़ने जाता उसके स्कूल में उसका एक सहपाठी था आशु। आशु  उस से तीन साल बड़ा था। वह तो केवल 10 साल का था। वह अपने दोस्त को रास्ते में हर रोज  अपनी गाड़ी में बिठा देता था। एक दिन की बात है कि उसका दोस्त आशु  बोला स्कूल में अध्यापक कुछ भी पढ़ाई नहीं करा पा रहे हैं। आज मेरे अंकल मुझे मिलने वाले हैं। वह मुझे बहुत सारी चॉकलेट लाएंगे। दिव्यांशु खुश होकर बोला चॉकलेट तो मेरी भी फेवरेट है। आशु बोला मेरे   अंकल तो इतनी इतनी बढ़िया चॉकलेट लाते हैं तुम भी खाना। स्कूल से बंक मारकर अपने अंकल से मिलने चला गया।वह दिव्यांश को भी अपनें साथ ले कर चला गया।

आशु का कोई भी अंकल नहीं था। वह जब स्कूल में नया नया आया  था तो एक अजनबी से  उसके पापा के दोस्त की चाय के ढाबे पर उसकी मुलाकात हुई। उसने एक दिन आशु को अपने पास बुलाया और कहा कि एक चॉकलेट खाओ। हम तुम्हारे चाचा हैं। तुम्हारे पापा के छोटे भाई। तुम तो हमें नहीं जानते। हम तुम्हारी मां जमुना को जानते हैं। तुम्हारे पिता ऑफिस में ही काम करते हैं। तुम्हारे पापा जगदीश बहुत ही अच्छे हैं। वह बोला अंकल आप मुझे चॉकलेट दे दो। वह रोज उनसे चॉकलेट लेने लगा।  उस चॉकलेट  को खाकर उसे ना जाने कैसा नशा हो जाता था वह सब कुछ भूल जाता था। वह घर को भी समय पर नहीं जाता था। देर से आने पर उसकी मां उसे कहती थी कि तुम इतनी देर तक कहां थे? आशु कहता कि मैं खेलने लग गया था। उसके पापा उससे पूछते कि अंकल  का क्या नाम है? वह कहता  आप तो हर बात में  टांग अड़ाते हो। मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं जो आप हर बात में पूछ ताछ करते हो। उसके पिता नें उस से कहा कि हमें किसी भी अजनबी आदमियों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। दोनों ही माता-पिता इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनका बेटा गलत रास्ते पर जा रहा है। वह  खेलते खेलते  हुए बाहर की ओर भाग गया। आशु के पिता इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें तो एक मिनट की भी फुर्सत नहीं होती थी। अपने बेटे की और कहां से ध्यान देते।

आशु की माता  जमुना और भी भोली भाली औरत थी। उसे तो यह भी मालूम नहीं था कि उसका बेटा नशे की आदत का शिकार हो चुका है। जब एक  दिन आशु  अंकल के पास चॉकलेट लेने गया जहां वह उसे चॉकलेट दे दिया करते थे तो आशु  को बोला अगर चॉकलेट लेनी है तो अब तो रुपए लगेंगे। आशु बोला अंकल आप अपना नाम बताओ।  वह बोला मैं तुम्हारा कोई चाचा नहीं हूं। मैंने तुमसे झूठ बोला था अगर तुमने चॉकलेट खानी है तो रुपए तो तुम्हें लाने ही होंगे। चाहे अपनी माता के पर्स से चोरी करके लाओ। हर रोज आशु अपनी मां के पर्स से कभी  कभी  बीस पचास कभी सौ  सौ रुपए चुरानें लगा।

एक दिन उसकी मां पर्स की छानबीन कर रही थी तो उसे ₹100 कम लगे। वह आशु को बोली तुमने मेरे पर्स  से रुपये तो नहीं  चुराए  हैं। वह बोला मां मैं आपके  पर्स से रुपये क्यों चुराने लगा। उसे जब रुपए नहीं मिले  तो फिर उसी अंकल के पास जाकर बोला। मेरी मां रुपये नहीं देती है। वह अंकल बोले चाहे कुछ भी लाओ मगर बिना रुपयों के तुम्हे चॉकलेट नहीं मिलेगी। रुपये नहीं देती है तो अपनी  मां के गहनो को ला  कर दे दो। मैं तुम्हें चाकलेट दे दूंगा। आशु  को चॉकलेट का इतना नशा हो गया था कि उसके बिना  वह रह नहीं सकता था। एक दिन उसने अपनी मां की सोनें की अंगूठी और कान के बुंदे चुरा लिये। वह धीरे धीरे कर चोरी का अभ्यस्त हो गया तो। उसकी मां यही समझती   रही कि हमारे घर में ना जाने कितने लोग आते-जाते रहते हैं।  वे  लोग ही  गहनों चोरी करके ले गए होंगे। अपनी बेटे की तरफ तो उसका ध्यान ही नहीं गया। अपनी मां के सामने तो वह मासूम सा चेहरा  ले कर बैठ जाता था।

तेरह साल के बच्चे से उसकी मां को ऐसी आशा नहीं थी कि उनका बेटा भी कभी चोरी कर सकता है।  आशु के पास  जब कोई चारा नहीं रहा तो वह उस अजनबी अंकल से बोला अंकल अब मैं क्या करूं।  मेरी मां ने सारे के सारे गहने लॉकर में रख दिए हैं अब तो मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं  बिना चॉकलेट के नहीं रह सकता तो उस अजनबी अंकल ने कहा कि तुम्हारे स्कूल में बहुत सारे बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनमें से कोई ऐसा तो बच्चा होगा जो बहुत ही अमीर परिवार का हो। उस बच्चे को अपना दोस्त बनाना और उसे भी चॉकलेट देना। मैं तुम्हें एक एक चॉकलेट मुफ्त में दे दूंगा वह बच्चा  जब चॉकलेट का शौकीन हो जाए तो तब तुम उसे वही प्रश्न करना जो मैंने तुमसे किए थे। अमीर परिवार का बच्चा तो तुम्हें हर रोज रुपये ला कर देगा और तब  तुम्हारा भी काम चल जाएगा और मेरा भी काम बन जाएगा। तुमने अगर किसी के पास भी यह बात बाहर जाहिर की तो मैं तुम्हें मार दूंगा। मेरी नजर तुम पर हमेशा रहेगी। अपने घर पर भी तुम कभी नहीं कहोगे कि मैं नशे का शिकार हो गया हूं। तुम्हारी हर हरकत  पर हमारी नजर रहेगी। हमारे गिरोह के बहुत सारे व्यक्ति हैं अगर किसी को भी तुम्हारे बारे में पता लगा या तुमने किसी को भी बताया तो तुम्हारी गर्दन काट दी जाएगी। आशु डर कर कांपनें   लगा। धीरे धीरे करके उसने दिव्यांश को अपना दोस्त बनाया क्योंकि वह हर रोज गाड़ी में आते जाते उसे देखा करता था। वहीं केवल एक अमीर बच्चा है जो केवल उसे रुपए लाकर दे सकता है इसलिए उसने एक दिन यह योजना बनाई कि उसके अंकल उससे मिलने आ रहे हैं और वह उसी चॉकलेट देने वाले हैं। उसने पता कर लिया था कि दिव्यांश को चॉकलेट बहुत ही पसंद  है। हर रोज की तरह  जब गाड़ी में  दिव्यांश स्कूल जा रहा था तो आशु को देख कर उस के लिए गाड़ी रोक ली और कहा  आ जाओ यार  वह चुपचाप उसके साथ गाड़ी में बैठ गया। जैसे ही दिव्यांश को छोड़ कर  ड्राईवर गया उसने अपने दोस्त को कहा यार तुम्हें तो हर रोज ड्राईवर छोड़ने आता है आज मैं भी तुम्हें अपने अंकल से मिला लूंगा। आज हम स्कूल में से बंक मारतें हैं। तुम मेरे साथ चलो मेरे  अंकल मुझे बहुत सारी चॉकलेट लाए हैं। आशु के मुंह में चॉकलेट का नाम सुनकर  दिव्यांश के मुंह में पानी आ गया। वह बोला तब तो मैं भी जरूर चलूंगा। हमारे अध्यापकों ने अगर घर में पता दे दिया कि हमने बंक मारा है तो क्या होगा? आशु बोला डरने की कोई बात नहीं है तुम मेरे साथ चल रहे हो कह देना कि मेरे दोस्त की तबीयत ठीक नहीं थी इसलिए मैं उसके साथ चला गया। दिव्यांश भी निर्भीक हो गया था। उसका सारा डर छू मन्त्र हो गया था। वह अपने दोस्त के साथ चल रहा था। चलते चलते वह काफी दूर निकल गए।

स्कूल की घंटी बज चुकी थी उन्होंने अपनी एप्लीकेशन स्कूल में पकड़ा दी थी। दोनों ने यह लिखा था कि हमारी तबीयत ठीक नहीं है इस कारण से हम हॉस्पिटल जा रहे हैं।

आशु अपने दोस्त को लेकर बहुत दूर निकल गया। वहां पर  एक दुकान में घुस गए। वह दुकान एक ढाबे वाले की लगती थी।  उस दुकान के पास आंखों पर चश्मा चढ़ाए हुए और  सूटकेस लिए हुए एक व्यक्ति खड़े थे।  आशु बोला अंकल नमस्ते  आशु बोला अंकल आज मैं अपने दोस्त को लेकर आया हूं। यह मेरा दोस्त दिव्यांश है। सूटकेस वाले अंकल बोले बेटा तुम तो बहुत ही अच्छे बच्चे हो। मैं तुम्हारे लिए बहुत सारी चॉकलेट लाया हूं। उसने दो चॉकलेट  दिव्यांश को थमा दी। आशु अपने अंकल को मिल कर वहां से वापस आ गया।  धीरे धी धीरे कर दिव्यांश को भी चॉकलेट का चस्का लग गया। उस चॉकलेट में ना जाने ऐसा जादू था कि उसको खाकर वह सब कुछ भूल जाता था। दिव्यांश अपने दोस्त को बोला कि ये चॉकलेट तो बहुत ही अच्छी है। इसको खा कर मुझे नींद आती है। तुम इतनी बढ़िया चॉकलेट कहां से लाएं?। तुम्हारे अंकल कहां काम करते हैं? वह बोला मेरे अंकल तो विदेश में सैटल हैं। वह मुझे हर बार चॉकलेट भेजते रहते हैं। इस तरह से उसने दिव्यांश को भी नशे की आदत लगा डाली।

एक दिन जब दिव्यांश को  आशु नें चॉकलेट नहीं दी तो तो वह आशु से बोला यार मुझे कहीं से चॉकलेट लाकर दो मैं उसके बिना नहीं रह सकता। दिव्यांश को आशु बोला इसके लिए तुम्हें मुझे रुपए देने होंगे ₹100 में तुम्हें दो चॉकलेट मिलेगी। दिव्यांशु हर रोज ₹100 की चॉकलेट हर रोज खाने लगा। चॉकलेट को खा कर उसे इतना नशा हो जाता था कि वह सब कुछ भूल जाता था। शाम के समय एक दिन वह इसी प्रकार घूम रहा था कि अचानक उसके सामने वहीं अंकल आए और बोले बेटा अगर तुम्हें बहुत सारी चॉकलेट खानी है तो तुम्हें अपनी मां के गहने लाने होंगे। अपनी मां को मत बताना नहीं तो वह तुम्हें कभी भी  रुपये नहीं देगी। चोरी-छिपे उनके लॉकर से  गहनें या रुपये  पर्स से चुरा कर ले आना। दिव्यांश ने अपनी मां के सारे के सारे गहने चोरी कर लिए उसकी मां ने जब तिजोरी खोली तो अपने  गहनें ना पाकर बहुत ही दुःखी हुई और उसने पुलिस में रिपोर्ट कर दी। दिव्यांश बहुत ही डर चुका था। वह चुपचाप वहां से  खिसक गया। है इससे पहले कि उसकी मां उसे चोर समझी वह जल्दी-जल्दी अपने कदम बढ़ाने लगा था रास्ते में उसे वही चॉकलेट वाले अंकल दिखाई दिए। वह उनसे बोला मां ने पुलिस  में  रिपोर्ट करवा दी है।

जब रुचि अपने भाई को विदेश में फोन कर रही थी तो उसके भाई ने उससे कहा था  कि बहना हम तेरे घर पर नहीं आएंगे। बाहर ही से तेरे बेटे को  ले जायेंगे। वह समझेगा कि कोई चोर हमें किडनैप करके ले गए हैं। जरा भी मत डरना  मैं उसे एक अच्छा इंसान बना कर ही छोडूंगा,।

आप उसकी अब जरा भी चिंता मत करो। दूसरे दिन जब टेलिफोन बूथ पर अपने भाई को फोन करने जा रही थी  तो किडनैपर्स ने  सारी बात सुन ली थी अपने भाई से शशांक को कह रही थी  अब तो पानी सिर पर से गुजर चुका है मेरा बेटा बहुत ही बिगड़ चुका है मैं कुछ नहीं कर सकती  तुम ही इसे  समझाओ वह बोला मैं तुम्हारा भाई शशांक बोल रहा हूं।  तुम जरा भी मत डरो उसे किडनैप करने की योजना बना लूंगा।  उसे अगर पता लग गया उसके मामा उसके साथ नाटक कर रहे हैं  तो वह कभी भी मेरे साथ नहीं जाएगा। तुम पेट्रोल पंप के पास  उसे  शाम को चार बजे भेज देना। उसे वहीं से आकर ले जाऊंगा। दूसरे दिन रुचि अपने भाई को फोन लगा कर  वापस आ गई थी।

किडनैपर ने उनकी सारी बातें सुन  ली थी। रुचि जब अपनें भाई को  मोबाइल से फोन लगा रही थी वह बाहर सब्जी लानें गई थी।चॉकलेट देनें वाला एक नशे की वस्तुए बेचने और खरीदनें वाले समूह के गैन्ग का सदस्य था। जिस समय रुचि अपनें भाई शशांक से बात कर रही थी वह भी चोरी छिपे उनकी बातें सुन रहा था। वह हर घरों की महिलाओं की चोरी छिपे बातें सुनता था। उस व्यक्ति को जो सबसे बड़ा मुर्गा दिखाई देता था उस पर ही हाथ साफ करता था। रुची बोली मेरे प्यारे भाई तुम अपना पता तो बताओ। वह बोला लिखो शशांक हाऊस नंबर 528। इतनें में फोन कट गया। काफी देर तक उस अजनबी व्यक्ति को कुछ नहीं सुनाई दिया। उसे बस इतना सुनाई दिया कल यहीं पर जब तुम सब्जी लानें आओगी तब फोन सुनना।

  आज कल हर रोज चॉकलेट खाता रहता है और सारे दिन सोया रहता है। कुछ कहो तो आगे से जबाब देता है। मैं तो उसे बोर्डिंग स्कूल में डाल नें लगी थी मगर उसके पापा नें उसे डालने नहीं दिया।।

इससे पहले कि फोन कटता गैन्ग वाले को पता चल गया था कि दिव्यांश की मां अपनें भाई को विदेश में फोन लगा रही है। उसके भाई का नाम भी शशांक है। मेरा नाम भी शशांक है। क्यों न मौके का फायदा उठाएं। पहले उन दोनों की पूरी बातें सुन लेता हूं फिर कोई योजना बनाता हूं।

रुची बोली तुम इसे अपनें साथ विदेश ले जाओ। वहीं पर वह अच्छी तालिम हासिल करेगा यहां पर तो इसनें हमारी नाक में दम कर रखा है। वह बोली भाई मेरे मुझ पर इतनी सी दया करना।  उसका भाई बोला मैं उसे बताऊंगा ही नहीं मैं  उसका मामा हूं। एक किडनैपर बन कर उसे ले जाऊंगा। तुम उसे सब्जी मार्किट सब्जी लानें भेजना। उसे  चॉकलेट का लालच देना चॉकलेट के लालच में वह मार्किट आने के लिए कभी मना नहीं करेगा।  वह बोली अच्छा वह ऐसा ही करेगी। वह उसका भाई नहीं किडनैपर  शशांक बन कर उसको यह सब बातें कह रहा था। उसनें शशांक के नाम का फायदा उठाया।

रुचि बोली हमारे घर के गहनों भी कोई चोरी कर के ले गया है। मुझे पता है कि मेरा बेटा ऐसा काम नहीं कर सकता। आप जल्दी आ कर उसे ले जाओ। वह बोला  बहना कल तुम्हे इसी वक्त फोन करता हूं। दूसरे दिन उसी समय सब्जी लेनें बाजार चली गयी। उस अजनबी व्यक्ति नें अपनें मन में सोचा आज अच्छा मौका है।

उसका भाई बोला इसके लिए हमें एक योजना बनानी पड़ेगी मैं इसे आ कर ले जाऊंगा लेकिन घर आ कर नहीं। उसे पता चला कि मामा मुझे लेनें आए हैं तो वह कभी भी साथ चलनें के लिए नहीं मानेगा।

रुची के भाई को जरुरी काम आ गया था। किडनैपर   वाली योजना तो गैन्ग वाले व्यक्ति नें सुन ली थी। वह तो मौके का फायदा उठाना चाहता था। उसनें  पौनें चार  बजे के समय फोन किया। कहा बहना अपनें बेटे को जल्दी ही उसी स्थान पर भेजो जहां मैनें तुम्हे बताया था। मुझे कौल मत करना वर्ना तुम्हारे बेटे को पता चल गया तो वह मानेंगा नहीं।

रुची आज बहुत ही खुश थी। आज वह अपनें बेटे को  दिल पर पत्थर रख कर उसके मामा के पास  विदेश भेज रही थी। योजना के मुताबिक रुची नें अपनें बेटे को कहा जा बेटा आज तुम ही बाजार से अपनें मन पसन्द की सब्जियां ले आओ। इसके बदले मैं तुम्हे ढेर सारी चॉकलेट दूंगी। वह कहने ही वाला था कि नौकर को सब्जी लानें भेजो मगर चॉकलेट शब्द सुन कर खड़ा हो कर बोला अच्छा मैं जल्दी ही सब्जियां ले कर आता हूं। आप तब तक मेरी चॉकलेट तैयार रखना। उसने कहा आज मैं पैदल ही जाता हूं। सब्जियों की दुकान तो पास मे ही है। वह जल्दी ही तैयार हो कर सब्जी लानें चला गया। वह रास्ते से जैसे ही जा रहा था एक नकाबपोश नें उसे कुछ सूंघाया और उसे अपनी गाड़ी में ले कर चले गया।

नकाबपोश ने उसे गाड़ी में बिठा कर एक सुनसान सी कोठरी में बन्द कर दिया था। वहां पर वह चॉकलेट वाले व्यक्ति नशा बेचने का कारोबार करता था। दिव्यांश को  जब होश आया तो वह बोला अंकल मेरी मां नें मुझे सब्जियां लाने भेजा था आप जल्दी ही मुझे घर छोड़ दो। वह चॉकलेट वाला व्यक्ति बोला मैं तो तुम्हे किडनैप कर के लाया हूं। पहले मैनें तुम्हारे दोस्त को मोहरा बनाया। उसे इस लिए कैद नहीं किया क्योंकि कि उसके परिवार वालों के पास तो फिरौती की डिमांड के रुपये नहीं थे। हम नें तुम्हे नशा करना सिखा दिया। हमारा चरस कोकीन गान्जा आदि नशे का धन्धा है। चलो तुम भी किसी अमीर  बच्चे  को अपनें धन्धे में फंसाओगे तभी हम तुम्हें छोड़ेगें।

वह चिल्ला चिल्ला कर बोला मुझे छोड़ दो। उस की बाजु  जख्मी  कर के उसे कहा इस क्षेत्र से बाहर गए तो तुम्हें हम मार देंगें। दिव्यांश बहुत ज्यादा डर गया। दिव्यांश को पकड़ कर कहा अपनी मां को फोन करो और कहो मुझे किडनैपरस नें पकड़ लिया है। मां मां मुझे जल्दी से छुड़वाओ। उसकी मां बोली तुम हमारा कहना नहीं मानते थे तुम्हें यही सजा मिलनी चाहिए थी। हम तुम्हें नहीं छुड़ाने वाले। उन गैन्ग के आदमियों को जब पता चला कि इस की मां रुपया भिजवानें वाली नहीं तो उन्होनें उस से काम लेना शुरु कर दिया। उन्होंने उसे कहा कि तुम अपनें दोस्तों में से किसी को भी इस धन्धे में फंसाओगे  तो तभी हम तुम्हें छोड़ेंगें। वे चुपके से उसके स्कूल के पास उसे छोड़ देते थे। उस के मुंह पर कालिख मल कर और बाल बिखरा कर  उन्होंनें उस का हुलिया ही बिगाड़ दिया।वहीं बच्चा जो अपनें मां पापा की आंख में दम कर रखता था उन के इशारों की कठपुतली बन गया। वह हर काम के लिए उस को आगे भेजते थे। जो बच्चा गाड़ी के बिना एक कदम भी पैदल नहीं चलता था वही बच्चा उन गैन्ग के आदमीयों का काम करनें लगा।वह जब काम करनें से मना करता था तो उसके गर्म गर्म रोड से उस पर प्रहार करते थे।

एक दिन आशु जब स्कूल को जा रहा था तो एक भिखारी उसके सामनें आ खड़ा हुआ। बाबा के नाम पर कुछ खाने को दो। दिव्यांश नें आशु के कमीज का कौलर  पकड़ कर  चुपके से कहा तुमने मुझे नशे की आदत डलवा कर मेरे साथ बुरा किया और मुझे उस चॉकलेट वाले अंकल के हवाले कर दिया। उन्होंनें मेरे माता पिता से दस लाख रुपये की मांग की है। तुम नें मुझे फंसा कर बहुत ही बुरा किया। मुझे जल्दी ही छुड़वाओ नहीं तो मैं मर जाऊंगा। तुम्हे भी ये किडनैपरस पकडने वाले हैं। मैने चोरी छिपे उन की बातें सुन ली थी। तुम जल्दी से मेरे मां के पास जा कर सारी बात बताओ नहीं तो अब तुम्हारी बारी है।

किडनैपरस जैसे ही आशु के पास आया बोला किसी एक बच्चे को हमारे पास ला कर दो। वह जल्दी से बोला अंकल मैं आप को एक बच्चे को सौंपनें वाला हूं।किडनैपर खुश हो कर बोला ठीक है। कल उसे हमारे पास ले कर आना। किडनैपरस जैसे ही जानें लगा वह उस से बोला कल शाम चार बजे छुट्टी के समय उसे ले कर आना। आशु बहुत ही डर गया था। उन गैन्ग के गिरोह नें उसे धमकी दी थी कि अगर तुमनें किसी को भी बताया तो हम तुम्हें मार देंगें।मैं अब किस बच्चे को ले कर आऊं। डर के कारण उसे बुखार आ गया था। वह बुखार में बडबडानें लगा मां मां मेरे दोस्त को बचा लो। उसे किडनैपर पकड़ कर ले गए हैं। उसकी मां नें उसका माथा छूआ उसे तो बहुत ही बुखार था।

आशु की मां की सहेली सुनीता  उनके घर-आई हुई थी। वह बोली आप का बच्चा क्या बुदबुदा रहा है? मेरे दोस्त दिव्यांश  को बचा लो नहीं तो वह मर जाएगा। उसकी सहेली नें दिव्यांश का नाम सुन लिया था। वह आशु की ममी को बोली उस से पूछो कि यह दिव्यांश कौन है? शायद उसनें कोई बुरा सपना देखा होगा। वह बोली अच्छा बहन चलती हूं मुझ जल्दी ही घर पहुंचना है।

दिव्यांश की ममी नें जैसे ही दरवाजे पर दस्तक सुनी वह बाहर की ओर दरवाजा खोलनें बाहर आई। दरवाजा जैसे ही खोला अपनें भाई को सामने देख कर चौंक गई।वह अपनें भाई के गले लगा कर बोली दिव्यांश कैसा है? उसका भाई बोला बहना क्या कह रही हो? उसका भाई बोला तुम नें मुझे फोन क्यों नहीं किया मैं उसे लेनें आया हूं। वह हैरान हो कर बोली आप मुझ से मजाक क्यों कर रहे हो?

वह बोली जब आप का फोन आया था तभी मैंनें आप के पास उसे भेज दिया था। उसका भाई बोला मैनें तुम्हे कहा तो था लेकिन उस दिन मेरा फोन लगा ही नहीं था। वह रोते रोते बोली मेरा दिव्यांश कंहा है? उसके भाई को पता चल चुका था सचमुच ही दिव्यांश को कोई किडनैप कर के ले गया है। वह बोला बहन तू चिन्ता मत कर। वह बोली मुझे फोन आया था कि अगर तुमनें दस लाख रुपये नहीं दिए तो हम उससे न जानें क्या क्या काम करवाएंगे। मैनें सोचा भाई आप हो। आप नें ही तो मुझे कहा था कि  मैं उसके  किडनैप की योजना बनाऊंगा। वह योजना तो सच साबित हो गई। मैनें तो उन गुन्डों को कह दिया कि  मेरे पास कोई रुपया नहीं है। ये मैनें क्या कर दिया। उसका भाई अपनी बहन को ले कर पुलिस थाने गया और रिपोर्ट दर्ज करवाई। उन्होंनें पुलिस वालों से कुछ नहीं छिपाया।

आशु को जब होश आया तो वह डर कर कांपनें लगा। आशु की ममी की सहेली बोली मेरे पति मुझे लेनें आते ही होंगें वह गाड़ी का हॉर्न सुन कर बाहर दरवाजा खोलनें भागी। आशु की ममी बोली भाई साहब बैठो मैं चाय बना कर लाती हूं।  वह चाय बनानें अन्दर चली गयी।  आशु की सहेली सुनीता के पति एक पुलिस औफिसर थे। आशु पुलिस अंकल को देख कर रो पड़ा बोला अंकल मेरे दोस्त को बचा लो। यह कह कर वह फिर से बेहोश हो गया। उसे जब होश आया तो पुलिस अंकल उस से पूछ रहे थे बेटा किसी से भी तुम्हे डरने की जरुरत नहीं है। मुझे  बताओ। तुम्हे कौन परेशान कर रहा है।? वह जोर जोर से रोनें लगा। उसनें सारी की सारी दास्तां अंकल को सुना दी। उन किडनैपरस नें मेरे दोस्त को भी अगवा कर लिया है। वह तो अमीर परिवार के बच्चे को पकड़ कर उसके परिवार से दस लाख रुपयों की मांग करतें हैं। उसे अपनें धन्धे में शामिल कर उस से नशा करनें वालो की तादाद में बढोतरी करवानें के लिए उकसाते हैं जब वह नहीं मानता तो उसको  मार देतें हैं या उसके हाथ पांव तोड़ कर उस से भीख मंगवाते हैं। यही मेरे दोस्त दिव्यांश के साथ हुआ। मुझे नशे की चॉकलेट खा कर होश ही नहीं रहता था। मैं उस का इतना आदि हो गया था कि उन के बताए नक्शे कदम पर चलता रहा। मेरे माता पिता नें मुझे बताया भी था कि अजनबी लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए मगर मेरी आंखों  से तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सोचने समझनें की शक्ति उस नशे की चॉकलेट नें छीन ली। मुझे अपनें माता पिता  अपनें शत्रु नजर आनें लगे। आज आप मेरे दोस्त को नहीं बचाओगे तो मैं आत्महत्या कर लूंगा। वह तो नशे में संलिप्त नहीं था। मैनें उसे नशा करनें की आदत डाली। किडनैपरस से जब मैनें कहा कि मुझे और चॉकलेट दो तो उन्होनें मुझ से कहा कि अपनी ममी के पर्स से चोरी कर लाओ। जब मां को पता चला कि उनके गहनों चोरी हो गए हैं तो उन्होनें मुझ पर जरा भी शक नहीं किया। उन्होनें समझा उनका बेटा कभी चोरी नहीं कर सकता। जब मां नें गहनों लौकर में रखवा दिए तो मैनें फिर किडनैपरस को कहा कि मेरे पास रुपये नहीं है। उन्होनें मुझे कहा कि अगर तुम्हे चॉकलेट खानी है तो अपनें स्कूल के किसी अमीर परिवार के लड़के को अपना दोस्त बनाओ। उसे जब चॉकलेट की आदत पड़ जाए तब तुम एक चॉकलेट के 50 रुपये मांगना। तुम को तब तक मुफ्त में चॉकलेट दूंगा। मेरा दोस्त चॉकलेट का इतना अभ्यस्त हो गया कि वह मुझे घर से ला ला कर रुपये देनें लगा उसकी मां के गहनें जब चोरी हुए तो उसनें पुलिस में इसकी सूचना कर दी। वह डर कर शायद चॉकलेट वाले अंकल के पास चला गया होगा। मुझे उन लोगों नें इस लिए नहीं पकड़ा क्यों कि मेरी मां के पास  देनें के लिए इतनी रकम नहीं.है।उन गुन्डों नें मुझे कहा कि अगर तुमनें अपनी जुबान खोली तो मैं तुम्हारे मां बाप को मार दूंगा। कल जब मैं स्कूल गया था तो एक भिखारी को सामने पाया। वह कोई और नहीं वह तो मेरा  दोस्त दिव्यांश था। मैनें उसे पहचाना ही नहीं होता मगर उस की बाजुओं पर चोट का निशान था। खेलते खेलते लग गया था। वह मेरी तरफ देख कर बोला तुम नें मुझे इन नरभक्षियों के आगे डाल कर अच्छा नहीं किया। वह तुम्हें भी कल चार बजे बुला कर तुम्हें भी कैद कर देंगें। जल्दी यहां से खिसको वर्ना तुम्हारी भी यही दुर्गति होगी जो मेरी हुई है।

दोस्त अलविदा तुम भी मेरी तरह नासमझ थे। मुझे आज कहीं जा कर समझ में आया मां बाप अपनें बच्चों का बुरा कभी भी नहीं चाहते। हम बच्चे चौबीसों घन्टे उनकी नाक में दम करते रहते हैं। मैं नहीं बच सका तो कोई गम नहीं क्योंकि तुम को मैं इतना कह रहा  हूं कि अपनें माता पिता का कहना मानना और नशे की आदत को छोड़ दना। वह यही कह रहा था कि अचानक एक गाड़ी आई और मेरे दोस्त को ले गई। पुलिस वाला बोला मेरे पास कल एक बच्चे के अगवा होनें की सुचना आई है कहीं वह तुम्हारा दोस्त दिव्यांश तो नहीं। पुलिस औफिसर नें अपनें बैग से फोटो निकाली और आशु के सामने रख दी। आशु बोला अंकल यही मेरा दोस्त है। पुलिस अंकल बोले हम उन नशे मे संलिप्त गैन्ग का सफाया कर के ही दम लेंगें। वह जब तुम्हें चार बजे बुलाएंगे तब तुम चले जाना। हम तुम्हारा पीछा करते वहां तक पंहुच जाएंगे।आशु बोला ठीक है अंकल। मैं अब डरूंगा नहीं आप मेरे दोस्त को बचा लेना। अगले दिन जब आशु स्कुल आया तो उन गैन्ग वालों का  उसे फोन आया। पुलिस वालों नें चुपके चुपके आशु का पीछा किया। चार बजे ठीक आशु  को उन गैन्ग वालों नें स्कूल से थोड़ी दूरी पर से फोन किया था। पुलिस वालों को पता चल गया। उन्होनें उन की कोठरी पर धावा बोला। इससे पहले वह  चौकन्ना होते पुलिस वालों नें पिछली खिड़की से पहुंच कर उन सभी को पकड़ लिया। उनके गैन्ग का बहुत ही बड़ा अड्डा था। गैन्ग के आदमियों से पुलिस वालों ने कोडे लगा कर सभी अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। दिव्यांश की भी बुरी हालत बन गई थी। वह अपनी ममी से बेहोशी की अवस्था में बोला मैं हमेशा आप का कहना माना करूँगा। आप मुझे माफ कर दो। मैं चॉकलेट की आदत को छोड़नें की कोशिश करुंगा। आप दोनों मुझे जब तक माफी नहीं दोगे तब तक मैं  कुछ भी नहीं खाऊंगा। उसके माता पिता नें अपनें बच्चे का अच्छे से अस्पताल ले जा कर उसका इलाज करवाया। उसका दोस्त आशु भी अपनें दोस्त के गले लग कर बोला अच्छा हुआ हम दोनों को अपनी गलती अभी ही समझ आ गई वर्ना हम भी न जानें  दर दर भटक भटक कर भीख मांग रहे होते। हम दोनो कसम खातें हैं कि आज के बाद हमें कोई भी बच्चा नशा करते दिखाई देगा उस की सूचना हम पुलिस को अवश्य देगें।  न जानें हमारे जैसे कितने बच्चे होगें जो  की नशे कि आदत का शिकार हो कर नशा कराने वाले लोगों का साथ दे कर उस में संलिप्त हो कर अपना आज बर्बाद कर देंगें।हमें उन्हें गुमराह होनें से बचाना है। यही हमारा प्रायश्चित होगा। एक भी बच्चे को बचानें में सफल हो गए तो अपनें आप को  खुश नसीब समझेंगें। पुलिस अंकल बोले शाबास मेरे शेर बच्चों इस नेक काम में मैं भी हरदम तुम्हारे साथ रहूंगा।  दोनों बच्चों का अस्पताल में इलाज चला। वे दोनों गुमराह होनें से बच गए।

(मौनी बाबा और नन्हे जासूस)

यह कहानी उन लोगों की है। जिन लोगों के पास घर नहीं थे वह झुग्गी-झोपड़ियों में रहते थे। इन्हीं झुग्गी-झोपड़ियों में एक बहुत ही प्यारा सा बच्चा था  चेतन। वह फटी हुई कमीज बाल बिखरे हुए दौड़ता दौड़ता हर रोज भागकर एक कुटिया के पास जाकर रुक जाता था। वहां पर एक बाबा जी को भजन गाते हुए सुनता था।

वह चुपके से देखता रहता था कि कब वह अपना भजन समाप्त करें और कब उसे फल मिठाई खाने को मिले। वह बच्चा चाहे वर्षा हो या तूफान हर रोज भागकर आता था।  उनका भजन सुनता और खाता भी था। उसकी दोस्ती उन साधु बाबा से हो गई। वह साधु बाबा उस बच्चे के दृढ़ निश्चय को देखकर हैरान रह जाते थे। वह  जानते थे कि वह खाने के लिए ही आता है परंतु हर रोज आता था।  वह  भी धीरे धीरे भजन भी गाने लग गया था। ओम नमो शिवाय। ओम नमो शिवाय।

एक दिन उस बाबा ने उस बच्चे को बुलाया और कहा बेटा तुम साफ-सुथरा रहा करो। गंदे कपडे मत पहनो। बच्चे तो भगवान का रुप होते हैं। तुम झुग्गी के सभी बच्चों को इकट्ठा करके उनको सफाई के लिए प्रेरित कर सकते हो। उन सभी को सिखाना कि हमें कूड़ा-कर्कट इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए। तुम्हारी झुग्गी झोपड़ियों में इधर-उधर कूड़ा बिखरा रहता है। तुम अपने दोस्तों का एक ग्रुप बनाना और अपने माता-पिता को भी समझाना कि हमें कूढा इधर उधर नहीं फेंकना चाहिए। तुम अगर ऐसा करोगे तो मैं तुम्हें और भी फल खाने को दूंगा।

चेतन ने घर आकर अपने माता पिता को कहा कि कूड़ा कर्कट आप इधर उधर मत फेंका करो। इसके लिए कूड़ादान बना दो। कुछ झुग्गी झोपड़ी वाले लोगों ने अपने बच्चों की बात मान ली। कुछ एक बोले तुम कौन होते हो हमें सिखाने वाले? चेतन ने साधु महात्मा को बताया कुछ बच्चे तो मेरे साथ मिल चुके हैं परंतु कुछ बच्चों के माता-पिता नहीं मानते हैं।

साधु महात्मा ने उसे ₹200 दिए और कहा कि तुम इससे कूड़ादान ले लेना और सभी झुग्गी वाली वासियों को को इस में कूड़ा कर्कट डालने को कहना। तुम अपने माता पिता को यह भी समझाना कि सिगरेट बीड़ी पीने के लिए तो आपके पास रुपए हैं मगर घर में एक कूड़ा दान लाने के लिए आप लोंगों के पास  रुपए नहीं है।  आपके   आसपास  अगर सफाई होगी तो तुम सब स्वस्थ रहोगे। बेटा तुम एक काम और कर सकते हो तुम्हारे ग्रुप में कितने बच्चे इकट्ठे हो गए हैं? वह बोला बाबा जी  पन्द्रह बच्चे।

साधु बाबा ने कहा बेटा अब तुम किसी अध्यापिका को देखना जो स्कूल जाती हो। तुम उसके पैर पकड़ कर कहना हमें भी पढ़ाया करो।  आप अगर एक घंटा हम झुग्गी झोपड़ी वालों को आकर पढ़ा दिया करेंगे तो आपका कल्याण होगा। चेतन  अपनी झुग्गी झोपड़ी के पास  से एक शिक्षिका को जाते हुए  देखा करता था। उसने उसके पैर पकड़ कर कहा अगर आप हम झुग्गी झोपड़ी वालों को पढ़ा दिया करोगी तो हम आपका उपकार कभी नहीं भूलेंगे।

पहले तो अमिता ने इन्कार किया परंतु बाद में उसने सोचा मेरे पढ़ाने से यदि इन झुग्गी वालों का भविष्य सुधर जाएगा तो मैं अपने आप को खुशनसीब समझूंगी। उसने  झुग्गी झोपड़ी  के बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया। साधु बाबा उस बच्चे के साथ घुल मिल गए थे। वह कभी-कभी सारे बच्चों को मिलकर मिठाई भी खिलाया करते थे।

साधु बाबा ने उन बच्चों में से चार पांच बच्चों को चुनकर एक बच्चे को कहा तुम आसपास नजर रखना कोई बाहर लघुशंका तो नहीं कर रहा है।? दूसरे बच्चों को कहा कि तुम देखना कोई पानी के नल को व्यर्थ तो नहीं बहा रहा  है। तीसरे  ग्रुप के बच्चों को कहा कि तुम अपने आसपास और बस्ती में जो लोग रहते हैं। पेड़ों को जो काटते हैं यह सब सूचना तुम मुझे लाकर देना। उन सभी बच्चों ने कहा कि हम सब आज से ही आपके काम में लग जाते हैं।

उन सब बच्चों ने उन सभी लोगों के नाम लिखकर दे दिए जो इन सभी कामों में लापरवाही बरत रहे थे। और दुरुपयोग कर रहे थे।  उस साधु महात्मा ने एक बच्चे को कहा कि तुम पुलिस इंस्पेक्टर के पास इन सभी लोगों की सूचना देना ताकि वह अगली कार्यवाही कर सके। इसके लिए उस साधु महात्मा ने शिक्षिका को अपने पास बुलाया और कहा बेटा  ईश्वर तुम्हारा कल्याण करें।

तुमने इन सभी बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया है। तुम्हें इन सभी बच्चों को स्कूल में शिक्षा दिलाना है।  कोई अगर इंकार करता है तो उसकी सूचना मुझ तक पहुंचाना। कुछ दिनों के पश्चात उस गांव में झुग्गी झोपड़ी वालों की काया ही पलट हो चुकी थी। जो लोग लापरवाही बरत रहे थे उन बच्चों ने पुलिस इंस्पेक्टर की मदद से उन सभी को सजा दिलवादी।

एक बच्चे को उन्होंने अपनी कुटिया के पास नियुक्त किया था। उन्होंने सब बच्चों को कहा था कि यहां के लोग मुझे मौनी बाबा समझते हैं परंतु मैं तुम बच्चों के सामने ही बोलता हूं। मैं चुपचाप मौन धारण करनें का नाटक करता हू। यह बात तुम गुप्त रखोगे। सभी बच्चे बोले। बाबा जी हम यह बात हमारे तक ही सीमित रहेगी। एक दिन चेतन का दोस्त शेखर कुटिया की देखभाल कर रहा था तभी वहां कुछ लोग एकत्रित हुए  आपस में बातचीत कर रहे थे यहां पर कुछ बच्चे आते हैं। वह  हमें मालूम नंहीं हो रहा है  कि इन बच्चों को कौन गुमराह करता है? यह सभी बच्चे  सी आई डी  इंस्पेक्टर की तरह घर घर में जाकर गुनाहगार को पकड़ते हैं। यहां पर यह बाबा जी तो मौनी हैं।  इन सब बच्चों को  यह काम करनें के लिए कौन कहता है। उन्होंने  बगीचे के सारे फूल तहस-नहस कर दिए। मोनी बाबा  समाधि में बैठे हुए  थे। उन लोगों की सारी बातें सुन रहे थे।  वे लोग जैसे ही छत पर चढ़ गए तभी  मौनी बाबा ने अपना कैमरा फिट कर दिया ताकि उन सब लोगों की फोटो ले ली जाए। जो बच्चों के खिलाफ कार्यवाही कर रहे थे।

उन साधु बाबा ने उन सभी बच्चों को सतर्क करवा दिया था कि तुम सब बच्चों को कुछ ग्रुप के लोग पकड़वा भी सकते हैं। या तुम से गालीगलौज कर सकते हैं। तुम्हें इसके लिए होशियार रहना होगा। साधु बाबा ने उन ग्रुप के बच्चों को एक-एक मोबाइल भी दिया था ताकि सारी सूचना  वे उन्हें देते रहें।  मौनी बाबा की कृपा से झुग्गी झोपड़ी वालों में सुधार किया गया और जो व्यक्ति साधनों का दुरूपयोग कर रहे थे उन सभी को सजा दी गई। और उनको जुर्माना भी किया गया। उन सभी व्यक्तियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया गया जो इन सभी बुरे कामों में लिप्त थे। वह साधु बाबा कोई साधु बाबा नहीं थे वह सी आई डी इंस्पेक्टर थे। जिन्होंने आदिवासी लोगों  को सुधारने का बीड़ा उठाया था। उन्होंनें पहल आदिवासियों से ही की थी। इंस्पेक्टर ने उन सभी बच्चों को जो काम में आगे आए थे उनके परिवार वालों के एक एक व्यक्ति को नौकरी पर लगा दिया था। वह बच्चे स्कूल में दाखिल करवाए जाएंगे उन्होंनें उसे विश्वास दिलवाया था। उन्होंने उस शिक्षिका को उसके  अच्छे काम के लिए  सरकारी नौकरी पर लगा दिया था।

पश्चाताप

चीनू बहुत ही शरारती लड़का था। वह एक दिन स्कूल से जब घर आया तो उसकी मां ने देखा कि तीन-चार दिनों से चीनु बहुत ही उदास था। वह कोई भी शरारत नहीं कर रहा था। एक दम शांत  गम्भीर अपने बेटे को बिल्कुल शांत और मौन देखकर चीनू की मम्मी से रहा नहीं गया वह बोली बेटा क्या बात है। वह कुछ भी नहीं बोला चुपचाप बैठा रहा अपने बेटे की इस गंभीर मुद्रा को देखकर चीनू की मम्मी श्वेता बहुत ही उदास हो गई ।वह सोचने लगी ना जाने किसने  मेरे बेटे को ऐसा क्या कह दिया जिससे मेरा बच्चा इतना उदास हो गया है मैंने इतना उदास आज से पहले उसे कभी नहीं देखा  ।आज तो उससे पूछ कर ही रहूंगी। दूसरे दिन चिनू ने अपनी मम्मी को कहा मां मैं आज स्कूल नहीं जाना चाहता ।उसके इस व्यवहार से चीनू की मम्मी चौंक गई, हो सकता है मैडम ने उसे कुछ कह दिया हो। या उसने होमवर्क ना किया हो ।उसकी मम्मी ने कहा बेटा कोई बात नहीं आज तुम घर में रहकर ही पढ़ाई करो ,जब उसके पापा औफीस चले गए तो उसने चुपचाप प्यार से अपने बेटे को पुचकारते   हुए कहा बेटा मुझे बताओ तुम्हें क्या हुआ है ।बेटा अगर तुम मुझ से नहीं कहोगे तो किस से कहोगे ।मैं तुम्हारी मां हूं मां के इस प्रकार कहने पर चीनु  जोर जोर से रोने लगा। उसको रोता देखकर उसकी मां बोली मां आज मैं आपको बताता हूं।।

हमारी स्कूल में मैडम ने एक दिन सभी बच्चों को कहा कि ,मैं तुम्हें आज एक कहानी सुनाती हूं मैडम कहानी सुनाती जा रही थी। मैडम ने जैसे ही कहानी समाप्त कि उन्होंने कहा कि बेटा हमें किसी से भी झूठ नहीं कहना चाहिए चाहे कोई भी हो हमें जो कुछ भी हम कहते हैं या सुनते हैं वह सारे के  सारे संस्कार हमें  अपने घर से ही मिलते हैं और हमें अपना दोष किसी दूसरे पर नहीं मढ़ना चाहिए

हमें चोरी नहीं करनी चाहिए। हमें कोई भी धर्म हो सभी धर्म एक जैसे होते हैं हमें ऊंच-नीच की भावना मन में नहीं लानी चाहिए। हमारे स्कूल में कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जो दलित जाति के हैं। तुम उनके हाथ का खाना नहीं खाते हो ऐसा बिल्कुल गलत है। मैडम ने यह भी कहा कि देखो बच्चों कोई भी इंसान जाति उसकी कोई भी हो इंसान तो एक जैसा होता है। तुम भी साफ कपड़े पहनते हो दलित जाति के लोग वह भी साफ सुथरे कपड़े पहनते हैं फिर खाना ना खाने का विचार तुम क्यों करते हो ।तुम उनके हाथ का छुआ हुआ भी नहीं खाते हो मम्मी आपने भी तो हमें कहा कि स्कूल में ं दलित जाति वाले व्यक्तियों से खाने को कुछ नहीं लेना चाहिए, बुद्धि नष्ट हो जाती है।। मैडम ने कहानी इसलिए सुनाई थी कि एक दिन एक बच्चे की पेंसिल चोरी हो गई । मैंने उस दिन चीँनू की पेंसिल चुरा ली थी। चीनू रोने लगी थी मैडम ने उससे पूछा तुम क्यों रो रही हो मैडम ने कहानी सुनाई और कहा जिस बच्चे ने इस चीनू की पेंसिल चुरा ली होगी उसकी पेंसिल बड़ी हो जाएगी। मैंने पेंसिल चुराई थी इसलिए मैं दूसरे दिन प्रार्थना में नहीं गया। मैंने सभी बच्चों के बस्ते पलट पलट कर देखें। मैंने पेंसिल काट दी थी ।जब मैंडम ने सब  बच्चों कि पैंसिलें चैक कि सब की पैंसिलें एक जैसी थी मेरी पेंसिल बड़ी थी। मैंने पेंसिल छोटी कर दी थी ताकि मैडम को पता ना चल सके ।मैं सोचने लगा मेरी पेंसिल हीै छोटी है ।मैंने वह पेंसिल सोनू के बैग में डाल दी।

सोनू बहुत ही गरीब परिवार का लड़का है दलित जाति का है मैडम ने सब बच्चों की पेंसिल चैक कि सोनू के बैग में ही एक ऐसी पेंसिल थी जो छोटी थी ।मैडम ने सोनू को कहा कि तुमने ही पैसिल चोरी की है ।सोनू रोने लगा मैडम सचमुच मैंने पेंसिल चोरी नहीं की। मैडम ने कहा कोई बात नहीं बेटा रोते नहीं पर चोरी करना बुरी बात है। सोनू तो मान ही नहीं रहा था उसने चोरी की है। वह बेचारा सचमुच निर्दोष था। चोरी तो मैंने की थी मैं खुश हो गया आज तो बाल बाल बच गया।

मैडम ऐसे ही कहती है पेंसिल भी कभी बड़ी हो सकती है।

एक दिन स्कूल में मैं कॉपी भूल गया था हमारे सामाजिक अध्ययन के अध्यापक इतने निष्ठुर हैं कि अगर उनके कालांश   में कोई बच्चा कॉपी नहीं लाता है तो उसे 5 घंटे मुर्गा बनाते हैं। मेरे आंसू आने ही वाले थे कि मैंने देखा सोनु मेरे पास आकर बोला चीनू मेरे पास दो कॉपी है एक कॉपी तुम ले लो ।मां वह   एक दलित जाति का है ।उसने ही मुझे आज स्कूल में सजा से बचाया। मैडम की बात में मुझे सच्चाई नजर आई ।हम उस का खाना क्यों नहीं खा सकतें।

मां मां जब एक दिन  पापा ने चीनी के डिब्बे से चीनी खाई और आपको कहा कि मैंने नहीं खाई है पापा ने ही चीनी खाई थी और नाम मेरा लग गया ।

एक दिन पापा के कुछ मित्र मिलने आए  तो आपने मुझे कहा  की उनसे ऐसे कह दे कि पापा घर पर नहीं है। यह बात भी मुझे मैडम जी की ठीक लगी। हम झूठ बोलते हैं और अपना दोष दूसरे के माथे मढ़ देते हैं । यह संस्कार ही है जो हमें घर से मिलते हैं। आपने मुझे कहा कि हमें दलित जाति वाले लोगों से ज्यादा संपर्क नहीं रखना चाहिए। उनके हाथ का नहीं खाना चाहिए। मां मां पापा के दोस्त प्रकाश अंकल को जो हमारे घर आते हैं पापा उनसे बात करना पसंद नहीं करते मगर मुसीबत पड़ने पर उन्होंनें ही तो पापा की सहायता की ।

मम्मी जब दीदी अमृतसर गई हुई थी तब वह रास्ता भटक गई थी। गुरु चरण अंकल ने उन्हें घर पहुंचाया था चाहे वह जाति से सिक्ख हैं।

मां मैडम सच कहती है ,सभी जातियां हिंदू मुस्लिम सिक्ख चाहे कोई भी हो मगर खून तो सभी में एक जैसा है ।हमें किसी को भी दलित नहीं समझना है ।आज मुझे सोनू पर बेहद प्यार आ रहा है मैंने उस पर पेंसिल चोरी का इल्जाम लगाकर उसे चोर साबित कर दिया। आज मैं समझ गया हूं कि यह सारी बातें मैडम ठीक ही कहती हैं ।हमें इन्हें अपने जीवन में अमल करना है ।आप भी और पापा भी इन सभी बातों का ख्याल रखेंगे। हमें अपने संस्कारों को नहीं भूलना है।

चीनू बोला मां मैंने चोरी की है यह बात आज मेरी समझ में आ गई है ।मैं मैडम से कैसे कहूं कि चोरी मैंने की है। चीनू की मम्मी बोली तू चिंता ना कर तेरी मैडम को मैं  समझा दूंगी दूसरे दिन श्वेता चीनू की मैडम को स्कूल में मिलने गई और मैडम को सारी बातें साफ साफ बताईं ।

मैडम हर्षा यह जानकर हैरान रह गई थी। चीनु सचमुच अपनी गलती मान चुका है ।चीनू की मम्मी ने कहा कि मेरे बेटे को अलग ले जाकर पूछना ताकि  उसे बुरा ना लगे। मैडम हर्षा समझ गई थी चलो मेरी बात का इस बच्चे पर असर तो हुआ उसने अपनी गलती तो स्वीकार कर ली  इतना ही बहुत है ।मैडम ने चीनू को अपने पास बुलाया और बोली बेटा आज मैं तुम्हें इनाम देना चाहती हूं ।सभी बच्चे चीनू की तरफ देख रहे थे चीनु को जैसे ही ईनाम दिया गया वह जोर जोर से रो पड़ा बोला। मैडम आज मैं सब आप सब से कुछ नहीं छुपाऊंगा मैंने हीं सोनू के बैग से पेंसिल काट कर डाली  ताकि सोनू पर ही चोरी का इल्जाम लग जाए।  मैडम मैं गलत था वह मेरा सचमुच में  मेरा बहुत ही पक्का दोस्त है ।मैंने अपना दोष उसके सिर मढ़ दिया था और आप से झूठ बोला मैडम ने कहा मैंने इसलिए ऐसा कहा था कि पेंसिल उस बच्चे की बड़ी हो जाएगी जो चोरी करेगा क्योंकि सभी बच्चों के पास एक जैसी पहले थी। जो बच्चा पेंसिल काटेगा वह असली चोर होगा ।बेटा आज तुमने दिल से अपनी गलती स्वीकारी है ।गलती स्वीकार कर लेना ही अपने आप में एक बहुत बड़ा ईनाम है।

चीनू अब बिल्कुल शान्त था।उस के मन से बोझ हट गया था।चीनू के मम्मी पापा ने कसम खाई  कि हम भी अनजाने में अपने बच्चों के साथ कहीं ना कहीं झूठ बोल ही जाते हैं। हम कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे और चाहे कोई इंसान दलित जाति का हो हम सब एक साथ बैठकर खाना खाएंगे  ।इन सब बात हम इसे अपने जीवन में अमल करना है।

मां और पापा  आपभी इन सभी बातों का ख्याल रखें

चीनू की मम्मी ने प्रकाश अंकल और आंटी को  अपने घर खाने पर बुलाया  सभी ने एक साथ बैठकर खाना खाया सभी के मन से मैल साफ हो चुका था । हमें अपने संस्कारों को नहीं भूलना है ।चीनु बोला मां, मैंने चोरी की है यह बात आज मेरी समझ में आ गई है ।मैं मैडम से कैसे कहूं कि चोरी मेने की है।

चीनू की मम्मी बोली तू चिंता न कर तेरी मैडम को मैं समझा दूंगी दूसरे दिन श्वेता चीनू की मैडम को स्कूल में मिलने गई और मैडम को सारी बातें साफ-साफ कह। दी। मैडम जी मैडम हर्षा यह जानकर हैरान हो गई कि चीनू  सचमुच अपनी गलती मान चुका है। चीनू की मम्मी ने कहा कि मेरे बेटे को अलग ले जाकर पूछना ताकि उसे बुरा ना लगे मैडम हर्षा समझ गई थी चलो मेरी बात का इस बच्चे पर असर तो हुआ उसने अपनी गलती को स्वीकार कर ली है इतना ही बहुत है मैडम ने चिनू को अपने पास बुलाया और बोली बेटा आज मैं तुम्हें इनाम देना चाहती हूं सभी बच्चे चीनू की तरफ देख रहे थे चीनू को जैसे ही ईनाम दिया गया वह जोर जोर से रो पड़ा मैडम आज मैं आप सब से कुछ नहीं छुपाऊंगा

मैंने ही सोनू के बैग में पेंसिल काट कर डाली थी ताकि सोनू को ही चोर ठहराया जाए।  मैडम मैं गलत था सोनू मेरा सचमुच में बहुत ही पक्का दोस्त है ।फमैंने अपना दोष उसके  सिर मढ़ दिया और आप से झूठ बोला मैडम ने कहा मैंने इसलिए ऐसा कहा था कि पेंसिल उस बच्चे की बड़ी हो जाएगी जो चोरी करेगा क्योंकि सभी बच्चों के पास एक जैसी पैंसिलें थी जो बच्चा काट देगा वह असली चोर होगा। बेटा आज तुमने दिल से अपनी गलती स्वीकारी है गलती स्वीकार कर लेना ही अपने आप में एक बहुत बड़ा ईनाम है। चीनू अब बिल्कुल शांत था उसके मन से बोझ हट गया था चीनू के मम्मी पापा ने कसम खाई कि हम अब हम  अनजाने में बच्चों के साथ कहीं ना कहीं झूठ बोल ही जाते हैं। हम कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे और चाहे हम पर कितनी भी मुश्किलें आ जाएं।हमे उन का मुकाबला डट कर करना होगा।

एहसास भाग(1)

स्कूल की घंटी जैसे ही बजी सभी बच्चे अपनी अपनी कक्षाओं में भागे। मैडम अंजली बच्चों को कक्षा में समय पर ना आने के लिए हमेशा डांट दिया करती थी। उन  अध्यापिका से सभी बच्चे डरते थे।  जब भी वह कक्षा में आती शांत सा वातावरण कक्षा में छा जाता। उन का खौफनाक चेहरा बच्चों को डराता रहता। अध्यापिका पढ़ाती तो अच्छा थी मगर उनकी डांट से बच्चे अपना पाठ याद  किया  पाठ भी भूल जाते थे। आज भी  सभी बच्चे मैडम के आने का इंतजार कर रहे थे। अंजलि को प्रिंसिपल ने कार्यालय में बुलाया था। वह कक्षा में ना आकर सीधे प्रिंसिपल कक्ष में चली गई थी। बच्चों को पता चल चुका था कि आज उन की कक्षा अध्यापिका कक्षा में नहीं आएगी। बच्चे तालियां बजाकर एक दूसरे को कह रहे थे अच्छा ही हुआ आज अध्यापिका कक्षा में नहीं आई। आज तो हम सब बहुत ही खुश हैं। जिस बच्चे का जो मन कर रहा था वह  सभी अपने ही धुन में मस्त होकर कक्षा में शोर का माहौल उत्पन्न कर रहे थे। कोई एक दूसरे की टांग खींचने में लगा था। कोई कह रहा था जैसे ही कोई अध्यापक कक्षा में आएगा हम उन्हें  पढाने नहीं देंगे। आज तो पढ़ाई का मन ही नहीं कर रहा है।

कक्षा अध्यापिका के आनें पर भी बच्चों के कान में जूं तक नहीं रेंगती थी। आज तो आठवीं कक्षा से बड़े जोर-जोर की आवाज आ रही थी। कोई एक दूसरे के चेहरे की नकल बना रहा था। कक्षा में एक दो ही बच्चे ऐसे थे जो पढ़ाई कर रहे थे। मैडम के कक्षा में आने का आभास  किसी भी बच्चे को नहीं हुआ। वह चुपचाप आ कर बच्चों को शोर मचाते हुए देखनें लगी। उन्होंने आते ही कक्षा में  सभी बच्चों को कहा  सारे के सारे बच्चे  खड़े हो जाओ। सारे के सारे बच्चे कक्षा में शोर कर रहे थे। कक्षा में शोर करने वाले बच्चों के नाम  मानिटर नें  मैडम जी को दे दिए। सारे बच्चों  मे एक ही लड़की ऐसी थी जो पढ़ाई कर रही थी। मैडम नें सभी बच्चों को एक पंक्ति में खड़ा करके डन्डे से खूब पिटाई करनी शुरू  कर दी।  नेहा भी यह देख कर   बहुत डर गई।  कक्षा के आखिरी कालांश में  बिज्ञान का पर्चा था।  वह किसी और विषय  की तैयारी कर के आई थी।नेहा की बारी जब आई तो उसने मैडम का हाथ पकड़ लिया। नेहा बोली मैडम मैं शोर नहीं कर रही थी। आप साथ वाली लड़कियों से पूछ लो। मैं तो अपना पाठ याद कर रही थी। मैं मार नहीं खाऊंगी। मैडम की आंखों में आंखें डाल कर नेहा बात कर रही थी।  मैडम नें उसे कुछ  नहीं कहा। वह वहां से चले गई। सारे के सारे बच्चे नेहा की शक्ल देखने लगे। मैडम को भी लगा कि लड़की सच कह रही है। साथ में बैठी लड़की जो नेहा की सहेली थी उसे गुस्सा आ रहा था कि मैडम ने नेहा को नहीं मारा।

अर्द्ध वार्षिक परीक्षा आने वाली थी। बच्चे परीक्षा की तैयारी में लगे हुए थे। कक्षा अध्यापिका नें पेपर बना लिए थे। मैडम नें बच्चों को कहा कि तुम्हारी वार्षिक परीक्षा नजदीक  ही हैं। तुम्हें परीक्षा की सतत् समग्र मुल्यांकन के लिए तैयारी करके आना होगा। जो अच्छे ढंग से तैयारी करके आएगा उसका ही दाखिला भरा जाएगा। अंग्रेजी और विज्ञान के पेपर के लिए  मैडम नें पहले से ही हिदायत दे दी थी।

नेहा की एक सहेली थी निधि। दोनों ने कक्षा के परीक्षा के लिए पूरी तरह से तैयारी कर डाली लेकिन दोनों नें एक पाठ के प्रश्न याद नहीं किए।  निधि ने कहा कि इस पाठ में से एक प्रश्न मैंनें याद किया है।  तुम अगर मेरे वाला याद किया प्रश्न आया तो मैं तुम्हें बता दूंगी और तुम्हारे वाला याद किया प्रश्न आया तो तुम मुझे बता देना। हम दोनों को इन दो प्रश्नों को याद करने की जरूरत नहीं है। दोनों ने उन दो प्रश्नों में से अलग अलग प्रश्न याद कर लिया। संयोग से वे दोनों के दोनों ही प्रश्न अध्यापिका ने परीक्षा में डाल दिए। दोनों ने एक-दूसरे को इशारा किया कि वे दोनों एक दूसरे को वह प्रश्न बताएं।  नेहा ने आज से पहले कभी ऐसा काम ही किया था उसकी मम्मी ने उसको ही दे दी थी कि बेटा हमें किसी की भी  नकल नहीं करनी चाहिए। वे दोनों आज भी  अपनी अध्यापिका से डरती थी। सारा कुछ याद किया था लेकिन  उस पाठ का एक एक प्रश्न जानबूझ कर याद नहीं  कर पाई। इसी कारण उन्होंनें वह योजना बनाई। एक दूसरे की  बातों में आकर उन्होंनें शाम को भी  वह  एक प्रश्न पढ़ा ही नहीं। मैडम ने उन दोनों को साथ साथ ही बिठा दिया था। निधि ने चुपचाप  परीक्षा पेपर हल करने के बाद कहा कि मुझे वह प्रश्न तू पहले हल करवा दे फिर मैं तुझे अपना वाला प्रश्न हल करवा दूंगी। उसने चुपचाप नेहा से प्रश्न पूछकर वह प्रश्न हल कर दिया।

नेहा की बारी आई तो वह बोली पहले मुझे अपना पेपर पूरा करने दो। केवल परीक्षा समाप्त होने में अभी 20 मिनट शेष थे ।नेहा ने उसे दो तीन बार पुकारा। लेकिन  निधि ने उसकी बात को सुना अनसुना कर दिया। 10 मिनट जब शेष रह गए तो वह बोली आज मेरा बदला पूरा हुआ। उस दिन तुम्हें कक्षा में मार नहीं पड़ी थी। तुमने तो मैडम को सफाई में सब कुछ कह दिया कि मैंने शोर नहीं किया आज मैंने तुम्हें नकल न करवाकर अपना बदला पूरा कर लिया है। नेहा करनें  लगी कि मैं तो शोर कर ही नहीं रही थी। तुम तो शोर कर रही थी मैंने तुम्हें भी शोर करते देखा था इसलिए मैंने तुम्हारा नाम नहीं लिया था। निधि बोली तुम झूठ-मूठ में तुम मुझे बचा भी सकती थी। नेहा को बड़ा गुस्सा आया। उसकी आंखों में आंसू छलक आए थे। वह बड़ी खुद्दार लड़की थी। वह एकदम मैडम के पास जाकर  बोली आज एक बात  आप से छिपाई।। मैंने आज तक कभी  नकल नहीं की। मेरी मम्मी हमेशा कहती है कि हमें चाहे कुछ भी ना आए किसी की नकल करना बुरी बात है। उस दिन जब आप नें कक्षा में   कहा कि कौन बच्चा  शोर कर रहा है मैं पढ़ाई कर रही थी। मैं सचमुच में ही पढ़ाई कर रही थी। आज आपसे क्षमा मांगना चाहती हूं। आप ने  आज दो प्रश्न एक ही पाठ से दे दिए थे।  मैंनें एक  ही प्रश्न याद किया था। एक  निधि ने। उस नें मुझसे सारा प्रश्न पूछ कर  हल कर लिया लेकिन उसने मुझे वह प्रश्न हल नहीं करवाया जो उसने याद किया था। आज मैंने सबक ले लिया है कि हमें सचमुच में ही नकल  नहीं करनी चाहिए और स्वार्थी मित्रों से कभी दोस्ती नहीं करनी चाहिए। मैडम मैंने तो उसे बता दिया लेकिन उसने कहा कि मैं तुमसे उस दिन की बात का बदला लूंगी। मैडम नेहा की बात सुनकर हैरान हो गई। तुम झूठ भी कह सकती हो। नेहा बोली हां मैं मानती हूं मेरा भी नकल करने का इरादा था, लेकिन मैंने तो प्रश्न हल ही नहीं किया। निधि करनें लगी  मैंने  वह प्रश्न खुद हल किया है। मैडम नें एक चॉकलेट निकालकर निधि को कहा कि यह प्रश्न  तुम हल नहीं  कर सकी तो मैं समझूंगा नेहा गलत नहीं कह रही है। निधी सचमुच में ही वह प्रश्न हल नहीं कर पाई। नेहा ने कहा कि मैडम  जी अगर मैं गलत कह रही हूं  तो आप मेरे भी पांच अंक काट लेना। निधि को सचमुच में वह प्रश्न नहीं आया। मैडम बोली बेटा नकल करना बुरी बात है। अंजलि मैडम  बोली वे दोनों बच्चियाँ अब कभी भी नकल नहीं करेगी। उन्हें सबक मिल गया है।

मैडम ने बच्चों को फिर से वार्षिक परीक्षा के लिए तैयारी करने को कहा था। मैडम अचानक एक दिन फिर कक्षा में जल्दी आ गई थी। कुछ बच्चे पढ़ाई नहीं कर रहे थे। अध्यापिका नें फिर से डंडा दिखाकर बच्चों को कहा कि यह डंडा ही तुम्हें सुधार सकता है। वह एक लड़की की पिटाई करने जा ही रही थी कि अचानक कक्षा में शोर सुनकर प्रिसिंपल अपने आप को रोके बिना नहीं रह सकी। मैडम ने प्रिंसिपल को आते देख कर  डंडा पीछे कर लिया। निधि उठकर मैडम  के पास  आ कर बोली हमें माफ कर दो। मैडम ने डंडा पीछे कर लिया।

रुही  शाम को स्कूल से जब घर पहुंची तो उसकी आंखों में आंसू थे। अपनी बेटी की तरफ देखकर अंजली बोली बेटा क्या बात है? तुम उदास क्यों हो? जल्दी से अपने हाथ धो डालो। जैसे ही हाथ  धोने लगी  रूही की जुबान से हाया! निकल गया। उसकी मम्मी ने अपनी बेटी को कहा बेटा जरा अपना हाथ दिखा। उसके हाथ सूजे हुए थे। अंजली के जोर देंनें पर वह रो कर बोली मां आज बिना बात कक्षा मे  आज मुझे मार पड़ी। मैं तो कक्षा में पढ़ाई कर रही थी। सारी की सारी लड़कियां कक्षा में शोर करी थी। मैडम ने  सारी कक्षा के साथ साथ मुझे भी डंडे से मारा।  मैं तो शोर कर भी नहीं रही थी।

अंजली सोचने  लगी कि मैंने भी तो उस दिन सारे बच्चों को  सारी कक्षा को डंडा मारा था। उस बच्ची ने मुझे एहसास दिला दिया कि वह तो सचमुच पढ़ाई कराई थी। जिस तरह से निर्भीक होकर  उसने मुझे कहा था मैडम मैं शोर नहीं कर रही थी। वह सचमुच सच ही कह रही थी।

मेरी बेटी को भी बिना बात आज कितनी मार पड़ी है? मैं कभी भी किसी भी बच्चे की  आज के बाद पिटाई नहीं करुंगी। प्यार से थोड़ा डांट डपट कर सजा दूंगी। दूसरे दिन अंजली  रुही के स्कूल गई। मैडम  कामांक्षी आज मेरी बेटी घर में आकर बहुत रोई। उसने खाना भी नहीं खाया।  वह बिल्कुल सच कह रही थी। वह कक्षा में शोर नहीं कर रही थी।

कहते हैं कि एक एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है। बुरी संगत सब बच्चों को खराब करती है लेकिन कभी-कभी हम अध्यापक वर्ग भी गलत हो सकते हैं। अनजाने में हम उन बच्चों को भी सजा दे जाते हैं जो बच्चे सजा के हकदार नहीं होते। आज आपने भी वही किया। मैडम गुस्से में जल भून कर बोली तो क्या आप अपनी बेटी को का पक्ष लेने आई है? अंजलि  बोली मैं आप से लड़ने झगड़ने नहीं आई  हूं। आज मैंने भी जाना और आपको भी समझाने आई हूं। यही घटना मेरे साथ भी घटित हुई। मैं भी एक अध्यापिका हूं। मैंने भी एक दिन ऐसी बच्ची को सजा दे दी क्योंकि वह तो सचमुच में ही पढ़ाई कर रही थी।  उस लड़की ने मुझे सच्चाई से अवगत करवाया ना होता तो मैं कभी भी इस बात को समझ नहीं सकती थी। उस लड़की ने मेरी आंखों में आंखें डालकर मेरा हाथ पकड़ कर कहां अध्यापिका जी मैं शोर नहीं कर रही थी। मॉनिटर ने मेरा नाम झूठ मूठ में लिख दिया। सारे के सारे बच्चे जब शोर करे थे तो मैं पढ़ाई कर रही थी। मैं जैसे ही उसकी ओर डंडा मारने गई उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहां मैडम आज आप थोड़ा रुको। पहले मेरी बात सुनो, फिर अगर आपने मुझे दण्ड देना होगा तो  दे देना आज आप मेरी बात अवश्य सुने।

उस लड़की की बात में मुझे सच्चाई नजर आई। मैंने जल भून कर उसका हाथ छोड़ दिया और कक्षा में आ गई। शाम को मेरी बेटी ने रोते हुए सारी कहानी कही तभी मैं आपके पास चल कर आई और कहा    ताकि आप भी इस बात को की ओर ध्यान दो।

मैडम   आरती को अंजलि की बात अच्छी लगी। आप ठीक कहती हो हमें भी  बिना  विचारे कोई जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। बच्चे भी कई बार हमें बहुत कुछ समझा जाते हैं। हम ही उनकी बातों की  ओर  गौर ही नहीं करते। मैडम अंजलि  ने भी उस दिन के बाद बच्चों को सजा देना छोड़ दिया।

जन्म दिन का उपहार


निक्कू आज बेहद खुश था। क्योंकि आज 23 मार्च को उसका जन्मदिन आने वाला था। वह अपने जन्मदिन के उपहार का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था। आज उसके मम्मी पापा ने देखा उनका बेटा खुश नजर नहीं आ रहा था इससे पहले कि वह उनसे कुछ कहे  वही बोल पड़े बेटा क्या बात है? तुम्हारा कल जन्मदिन आने वाला है। तुम खुश नजर नहीं दिखाई दे रहे हो। क्या कारण हैं? वह बोला मां पापा कुछ नहीं। आज शाम को बताना    इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें क्या उपहार चाहिए? वह कुछ नहीं बोला शाम को उसका बड़ा भाई और दीदी उन्होंने भी निक्कू से वही बात कही पापा-मम्मी  इस बार निक्कू खुश नजर नहीं आ रहा है। क्या कारण हो सकता है? उसकी मां बोली आज शाम जब हम सारा परिवार इकट्ठे बैठकर बातें करेंगे तब उसके उपहार के बारे में उससे  पूछेंगे। जन्मदिन आने में एक दिन शेष था। शाम के समय सारा परिवार बैठा बातें कर रहा था उसकी मम्मी बोली शायद मुझसे नाराज है आज जब मैं नदी पर कपड़े धोने गई थी। वह पानी में पत्थर मार रहा था। पानी को गंदा कर रहा था। कभी मिट्टी डाल रहा था। कभी  मैले  धोए हुए कपड़ों को पानी में डाल रहा था। मुझे गुस्सा आ गया मैंने उसे एक थप्पड़ लगा दिया। शायद इसलिए नाराज है। सभी ने प्यार से उसे अपने पास बुलाया कहा तुम घर में सबसे छोटे हो तुम्हें इस बार जन्मदिन का क्या उपहार चाहिए? वह बोला आज आपसे मांगना चाहता हूं पर मेरे लिए  वह उपहार सबसे मूल्यवान होगा क्योंकि जो मैं कहना चाहता हूं ध्यान से सुनो मां मैं आपकी बातों को सारे परिवार की बातों को ध्यान से सुनता हूं। जब आपको मैं अपनी बात कहना चाहता हूं तब आप मेरी बात ध्यान से नहीं सुनती। इसलिए मैंने फैसला कर लिया है कि मैं आपको कुछ नहीं कहूंगा। और ना ही जन्मदिन का उपहार मांगूंगा। सभी ने छोटे से बच्चे को  पुचकारते करते हुए कहा हमारे बहादुर  शेर मान  भी जाओ। हम तुम्हारी बात को ध्यान से सुनेंगे वह बोला आप सुनो मैं आज आप सभी से एक अनोखा उपहार चाहता हूं। मेरे लिए वह मेरे जन्म दिन का बहुत ही मूल्यवान उपहार होगा। घर के सभी सदस्य कहने लगे हम परिवार के सभी सदस्य मिलकर शपथ लेते हैं तुम्हारी इच्छा को अवश्य पूरी करेंगे। वह बोला सब सोच विचार करके उत्तर देना घर के सदस्यों सेे बोला मां जब आप मुझे कह रहे थे कि पानी में कोई गंदी वस्तुएं नहीं डालनी चाहिए और ना ही कूड़ा कर्कट उसी समय मुझे आपको बताना चाहिए था। मेरी मैडम ने मुझे बताया कि पानी की एक एक बूंद हमारे लिए बहुत ही कीमती होती है। हर एक मनुष्य को इसका सदुपयोग भली भांति करना चाहिए। मां_पापा तो हर रोज नहाने के लिए जाते हैं तो एक घंटा तक गिजर को यूं_ही चला रहने देते हैं। नल्के को दीदी खुला ही रखती है जब तक वह आती है तब तक न जानें कितना पानी बह कर नीचे चला गया होता है। शौचालय में डालने के लिए कभी भी पानी नहीं होता। आप  सब किसी को कुछ नहीं कहते।  मैं आपको बार-बार पत्थर डालकर एहसास कराना चाहता था कि पानी गंदा नहीं करना चाहिए। बचे हुए पानी को हमें घर में लगी फुलवारीयों में डाल देना चाहिए आपको तो गुस्सा मुझ पर आ गया पर यही बात आप ने पापा को दीदी को और भैया को भी कही होती। मेरी अध्यापिका ने कहा बेटा हमें पानी की एक एक बूंद के मूल्य को समझना है।  इसका सदुपयोग सही तरीके से करना आना चाहिए। यह सीखना है अगर हमारे नागरिकों में से 70% भी यह बात समझ ले तो हमें पानी के लिए यूं दर दर नहीं भटकना पड़ेगा आप मेरे जन्मदिन पर सभी  प्रण ले कि पानी को’ बिजली को इन सभी का उपयोग सही ढंग से करेंगे। आने वाली सभी पिढियों को पहले से ही इसके बारें में अवगत करवाएंगे। एक बच्चा जब घर घर जा कर यह बात अपनें परिवार वालों को अपनें दोस्तों को जारी कर यह  संदेश  देगा शायद आधे से अधिक लोग हमारे कही हुई सीख का अनुकरण करेंगें।

(एहसास भाग(2)

बहुत समय पहले की बात है किसी गांव में  एक ब्राहमण  और उसकी पत्नी रहते थे। उनके एक बेटा था चंदू। उसके पिता पेशे  से अध्यापक थे। वह अपने बेटे को अच्छे संस्कार देना चाहते थे। उसे अच्छा  इंसान बनाना चाहते थे। उनका अपना एक छोटा सा मकान था  जिसमें वह अपनी पत्नी निर्मला के रहा करते थे।। वह अपनी पत्नी से कहते थे कि इस बच्चे को जिस काम को करने का मन करे उस काम को उसे अवश्य करने देना चाहिए। हमें बच्चे को ज्यादा रोकटोक  नहीं    करनी चाहिए। उसके कामों में दखल नहीं देना चाहिए। इस समय बच्चे की ऐसी अवस्था है उसे अनुभव ज्ञान का होना बहुत ही जरूरी है। इसलिए उसे तुम्हें पहले से ही संस्कारी बनाना होगा। हमारे पास अपने बेटे को देने के लिए चाहे  सभी सुविधाएं है मेरा जो कुछ है वह मेरे बेटे का ही होगा लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए उसे हर विषय का व्यवहारिक ज्ञान अवश्य होना चाहिए। सारे दिन किताबें लेकर बैठ जाओ। यह जरूरी नहीं है। उसको पहले तुम्हें सभी कार्य करवाने होंगे नहीं तो आगे चलकर वह  कुछ काम नहीं कर पाएगा।

हमें अपने बच्चे को सब काम सिखाने हैं

लेकिन प्यार प्यार से। आनंद ने अपने बेटे चंदू को बुलाया कहा बेटा जरा इधर तो आना आज तुम्हें मेरे साथ बाबडी पर चलना होगा।। मैं हर रोज बावड़ी से पानी भर कर लाता हूं। मन मारते हुए  निर्मला ने अपने बेटे को बावड़ी पर पानी भरने भेज दिया। अपने पिता के साथ वह भी छोटी सी बाल्टी पानी भरकर लाता था। उसके पिता ने कहा बेटा तुझे घर में बैठे-बैठे आलस भी आ जाता होगा। हाथ पर हाथ धरकर बैठने से तो अच्छा होता है कि कुछ काम ही कर लिया जाए। तुम्हारी कसरत भी हो जाएगी और शरीर में चुस्ती फुर्ती भी आ जाएगी।।

अपने पिता के साथ खेतों पर  जाता। उसके पिता ने उसे सारे काम करने सिखा दिए थे।  वह केवल 10 वर्ष का ही हुआ था उसकी मां अपने बेटे को इस प्रकार काम करता देख कर अपने पति पर उलझ जाया करती थी। तुम इस नन्ही सी जान से क्या-क्या करवाओगे। वह बोला मैं उसे फौलादी और ताकतवर बनाना चाहता हूं और उसे पढ़ लिख कर एक  अच्छा इंसान बनाना चाहता हूं। इस प्रकार दिन सुख पूर्वक बीत रहे थे।

एक दिन चंदू के पिता की दिल की बीमारी  से मृत्यु हो गई। सारे का सारा का कार्यभार चंदू की मां पर आ गया। चंदू की मां ने अपनी आंखों के आंसुओं को पी लिया। अपने बेटे के सामने वह कभी नहीं रोती थी। छोटा सा चन्दू अनाथ हो गया था। उसके पिता का साया  अब उस पर नहीं रहा था। वह  अपनी मां की छत्रछाया में पल रहा था। उसकी मां ने अपनी बेटे को अच्छा औफिसर बनाने की ठान ली थी। उसने सोचा चाहे कुछ भी हो मैं अपने बेटे को पढाऊंगी और  औफिसर बनाऊंगी। उसने धीरे धीरे कपड़े सिलाई करना शुरू कर दिया। सिले कपड़े अपने बेटे के पास लोगों के घर भेज देती थी। दुकान वालों के और गांव और मोहल्ले वालों के कपड़े सिल  कर  वह अपना जीवन निर्वाह किया करती थी। उस से  जो रुपये मिलते थे उससे वह अपना निर्वाह करती थी। उसने अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिए। उसका बेटा  12वीं कक्षा में आ चुका था। वह वकालत की पढ़ाई करना चाहता था। उसकी मां के पास ज्यादा रुपए नहीं थे।

एक दिन की बात है कि उसकी मां ने अपने बेटे को कहा जाओ बेटा तुम इन कपड़ों को इस पते पर देकर आ जाना और यह जूराबों के जोड़े मैंने अपने हाथों से बनाए हैं। यह घर घर जाकर बेच देना। चंदू को उसके पिता ने हर प्रकार की शिक्षा दी थी। हमें  कोई भी काम छोटा या बड़ा  नहीं समझना चाहिए। पहल हमें छोटे-छोटे काम से  ही शुरुआत करनी चाहिए। धीरे-धीरे अपनें मेहनत के बल पर इन्सान मेहनत की बुलंदियों तक पहुंच जाता है। किसी भी काम को करने के लिए  मन में आत्मविश्वास  होना चाहिए। इन्सान अगर यही सोचता रहे कि छोटी नौकरी नहीं करनी, मेरे विषय में लोग क्या कहेंगे? बेटा जब तक हम किसी छोटे से कार्य को करने में घबराएगे तो बड़ा कार्य कैसे कर पाएंगे? अपनें मन में हीन भावना नहीं  आने देनी चाहिए।

वह  सब अपने मन में सोच रहा था। आज उसे अपने पिता की याद आ रही थी आज जब उसकी मां ने उसे जुराबें  पकड़ाई तब उसके मन में प्रश्न उठा क्या मुझे यह जुराबें  बेचनी  चाहिए। मुझे लोग क्या कहेंगे? एक शिक्षक का बेटा होकर मोजे बेचने चला है। आज मेरे पिता नहीं रहे मुझे आगे पढ़ाई भी करनी है। जब मेरी मां को बुनाई करके बुरा नहीं लगा  तो मुझे भी क्यों बुरा लगेगा? मैं तो बस अपना काम करूंगा। मेरे बारे में लोग जो मर्जी समझे। मुझे अपने पिता के  दिए  संस्कारों को नहीं भूलना है।

चंदू ने अपनी मां से कहा मां लाओ मैं कॉलेज जाते वक्त यह मोजे  भी बेच दूंगा और सिलाई कि वे कपडे  भी दुकान में दे आऊंगा।

वह रोज अपने दोस्त बन्टू का इंतजार किया करता था। कॉलिज में उसका एक ही दोस्त था बन्टू। उसके माता पिता दूसरे शहर में रहते थे।वह अपने दादी दादा के साथ गांव में रहता था। वहीं पर रह कर पढाई किया करता था। उसके माता पिता नें उसे भी शहर पढ़ने के लिए बुला लिया था। कॉलिज की पढाई के लिए वह शहर चला गया था। चन्दू को अपनें दोस्त के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। एक साल से  उसे अपना दोस्त नहीं मिला था।

वह अपने दोस्त को बहुत ही प्यार करता था लेकिन कभी भी उसने अपने दोस्त के माता-पिता को नहीं देखा था।  वह भी अपने माता-पिता के साथ रहने चला गया था।

चंदू जैसे ही कॉलेज गया उसने मुश्किल से ही दो  कालांश ही लगाए थे तो उसे अपने मां की याद आई। रास्ते में एक परिचित मिल गए उनके स्कूटर पर न जानें कितने किलोमीटर दूर आ गया। स्कूटर-से उतर कर वह पैदल ही चलनें लगा।  मगर सुबह से शाम तक  किसी भी लोगों ने उसकी जूराबें नहीं ली। गर्मियों के दिन थे।उसे भूख भी बड़े जोरों की लग रही थी। उसकी मां ने डिब्बे में खाना पैक किया था। वह जल्दी जल्दी के चक्कर में खाना घर में ही भूल गया था। उसे भूख के मारे चक्कर भी आने लगे थे। अचानक उसे एक बंगला दिखाई दिया। वह वहां पर जाकर उसने घर का दरवाजा खटखटाया। एक औरत आई और बोली कि क्या चाहिए?  चन्दू बोला अमा मुझे बहुत प्यास लगी है। बंगला देख कर वह अंदर चला गया था। उसके माथे पर पसीने की बूंदें झलक रही थी। वह बोली ठहरो बेटा।  वह जब पानी लेकर आई   चक्कर खा कर नीचे गिरनें ही लग गया था तभी उसने अपने हाथों से सहारा देखकर उसे ऊपर उठा लिया। बोली बेटा इतनी तेज धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए।  इतने प्यार से बोलते देख कर उसकी आंखों से आंसू  बहनें लगे। इससे पहले कि वह कुछ कहता  जल्दी  से  रसोई घर से खाना  ले कर  आ गई वह बोली तुम्हे भूख के मारे चक्कर आ गया था। चन्दू बोला अमा रहने दो। वह बोली अमा भी कहते हो और खाना भी नहीं खाते हो। अगर तुम्हारी मां कहती तो क्या तुम खाना नहीं खाते। । चन्दू बोला अमा धन्यवाद। जब कॉलिज के लिए निकला था तो अपना लॉन्च बाक्स घर पर ही भूल गया। जूराबों को बेचने के चक्कर में भूल ही गया। वह बोली बेटा कैसे मोजे बेचने चले हो जरा दिखाओ तो। उस नें तीन जोड़ी मोजे खरीद लिए।  वह रुपये  पा कर बहुत ही खुश हुआ। वह बोली मेरा भी तुम्हारे जैसा बेटा है। पहले  वह गांव में अपनी दादी के पास रहता था। वह अब  मेरे साथ रहता है। अभी कॉलेज गया है। आता ही होगा। चंदू ने अमा को धन्यवाद दिया और जल्द ही वहां से घर वापस आ गया।

मां को कहा मैंने आपकी सारी की सारी  जूराबें बेच दी है। इस बात को काफी साल गुजर गए। चंदू वकील के पद पर तैनात हो गया था। बन्टू की मां  बहुत ही नेक दिल वाली महिला थी। उसके पिता का  शहर में काफी अच्छा व्यापार था। उस दुःख  था तो अपने बेटे का। उसका बेटा अपनें माता पिता को फूटी आंख नहीं सुहाता था। धीरे धीरे उसे नशे की आदत लग गई थी। नशे की इस आदत से  उस के माता पिता  बहुत ही दुःखी हुए। उसनें उन की रातों की  नीदें भी हराम कर दी थी। सारा का सारा रुपया  भी गंवा दिया। उसके पिता को व्यापार में भी घाटा हुआ। वह इस सदमें को सहन नहीं कर पाए। वह चम्पा और अपने बेटे को छोड़कर इस दुनिया से चले गए। बन्टू ने अपनी मनपसंद लड़की से शादी कर ली। और जो कुछ था बेच कर विदेश में सैटल हो गया। वह अपनी मां को कभी भी अपने साथ लेकर नहीं गया। चम्पा हर वक्त अपने बेटे के लिए तड़पती थी। उसके पास रहने के लिए बंगला था। वही केवल उसका  था। बंगला भी कुछ शरारती तत्वों ने आशा से छीनने की कोशिश की।

एक दिन बंगले के कागजों  को चुरानें में सफल हो गए। चम्पा को वहीं धक्का मार कर चंपत हो गए। चम्पा  बेचारी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटती   रही। अपनी मां की मदद के लिए  उसका बेटा भी आगे नहीं आया। बिल्कुल अकेली हो कर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी।

एक दिन वह इसी प्रकार काम की तलाश में चल रही थी कि अचानक   एक नव युवक की गाड़ी से टकरा गई।वह नवयुवक उसे अपने घर ले आया। उसके माथे से लहू की धारा बहने लगी। चन्दु ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया। और उसे अपने घर ले जा आया।  उसे जब होश आया तो वह बोली तुमने मुझे क्यों बचाया? चंदू ने अमा को पहचान लिया था। वह तो वही औरत थी जिसने कभी उसको खाना खिलाया था औरप उससे मोजे  भी  खरीदे थे। आईशा उस बच्चे को पहचान नहीं पाई थी। वह बोली अमा आपका घर कहां है?

वह बोली बेटा बहुत लंबी कहानी है। मैं अपने पति के साथ शहर में रहा करती थी। हमारा बहुत बड़ा बंगला था। गाड़ी थी। सब कुछ था। हालात ऐसे बने कि मुझ से मेरा सब कुछ छीन लिया गया। मेरे पास कुछ नहीं रहा। बेटा नशे की आदत में बिगड़ गया। उसने नशा करके घर को कंगाल बना दिया।  अपने बेटे के नशे की आदत से तो पहले ही मेरे पति परेशान थे और उस पर व्यापार घाटा। यह दोनों बातें  वह सहन न कर सके और वह भी   सदा सदा के लिए मेरा साथ छोड़कर चले गए। बेटा भी विदेशी लड़की  से शादी करके वह वहीं पर रहने लग गया। मैं बिल्कुल अकेली रह गई। कुछ लोगों ने मेरा बंगला हथियाने की कोशिश की। उन्होंने नकली दस्तावेज बनाकर बंगला अपने नाम करवा लिया। उन्होंने समझा होगा कि इस बुढ़िया का तो अब इस दुनिया में कोई नहीं है। यह कहां कोर्ट के चक्कर लगाएगी। बेटे ने भी कभी यहां आने की जरूरत नहीं समझी। उसे तो विदेश ही रास आ गया। बेटा मैं तो काम की तलाश में निकली थी तुम्हारी गाड़ी से टकरा गई। तुमने मुझे बचाया तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। तुम अपने घर पर मुझे काम पर रख लो मैं तुम्हारे घर पर बर्तन झाड़ू पोछा सब कुछ कर दिया करूंगी। मैं  फिर किसी अच्छे से वकील को देखकर अपने घर को छुड़वाने की  कोशिश करुंगी। बेटा भगवान तुम्हारा भला करे। इतना तो करोगे न।चन्दु बोला हमारे घर पर ही रहो। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं। आप तो मेरी मां के समान हो। आप का बंगला मैं आपको वापस दिलवाऊंगा। वह बोली बेटा तुम कहां से छुड़वाओगे। वकील की फीस मैं कहां से इक्ट्ठा कर पाऊंगी। चंदू बोला मां आपको जानकर ये खुशी होगी कि मैं एक अच्छा वकील बन गया हूं। आपको याद है जब मैं एक बार तपती दुपहरी में   घर घर जुराबें बेचने आया था तो आपने मुझे गिरने से ही नहीं बचाया था बल्कि आपने मुझे भोजन भी खिलाया था और मुझसे जुराबें भी खरीदी थी। मानवता के नाते मैं भी आपको आपका घर वापस दिला कर रहूंगा। चम्पा की आंखों में आंसू छलकने  लगे। बोली बेटा तुम्हारा उपकार में कभी नहीं भूलूंगी। चंदू बोला अगर उस दिन मैं गिर कर मर जाता तो मैं वकील कहां से बनता। मैं तो अपना फर्ज पूरा करके ही रहूंगा।

चम्पा बोली मेरा बेटा विदेश में रहता है। वह कभी घर आने की जरूरत नहीं करता। मैं क्या करूं? तुम  अगर उसका पता लगा दो तो तुम्हारा बहुत ही भला होगा। चंदू बोला आंटी आपके बेटे का क्या नाम है? वह बोली मेरे बेटे का नाम बन्टू है। प्यार से हम उसे बंटी बुलाते थे। ऐसे-पहले वह भी गांव में ही पढता था परंतु जब उसके पापा को व्यापार के सिलसिले में शहर आ कर बस गए थे तो वह भी हमारे साथ ही रहने लग गया था। जब उसकी मां ने सब कुछ बताया तो वह खुश होकर बोला बन्टू तो मेरा दोस्त था। अमा आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं आपके बेटे को ढूंढ कर सही सलामत घर लाऊंगा। आप का बेटा नशे की गिरफ्त में कैसे पड़ गया। चम्पा बोली उसकी कम्पनी सही नहीं थी। उसके दोस्तों नें उसे नशा करना सिखा दिया। चन्दू बोला आप चिन्ता मत करो मैं आप के बेटे को विदेश से सही सलामत वापिस ले कर आऊंगा।  बन्टू की मां उसकी बातें सुनकर बहुत ही खुश हो गई।

चन्दू जब अपने दोस्त को लेने विदेश पहुंचा तो अपने दोस्त को बहुत ही निर्बल अवस्था में देखकर दुःखी हुआ। विदेश पहुंच कर अपने दोस्त से मिला। बन्टू बोला तुम यहां कैसे? मैं तुम्हें लेने आया हूं। मुझे तुम्हारी मां नें भेजा है। वह  हमेंशा तुम्हे याद किया करती है। तुम कैसे बेटे हो। तुम तो ऐसे नहीं थे। बन्टू बोला मैंनें नशे में अपना सब कुछ गंवा दिया। मैंने तो अपनें माता पिता का सारा का सारा रुपया नशे में लुटा दिया। अपनी पत्नी के गहने तक बेच दिए।मेरी  पत्नी नें मुझे बहुत समझाया अगर तुम नशा करोगे तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगी। उसके इतना कहने से  भी मेरे मन में  भी नशा छोड़नें का ख्याल  नहीं आया। जब मेरे मां बाप ने मुझे इतना  समझाया था कि नशा मत करो। लेकिन मैंने उनकी भी बात नहीं  मानी। मैं उन्हें अपना शत्रु समझता रहा।

एक दिन जब मैंने अपने बेटे को चोरी छुपे नशा करते देखा और पर्स से चोरी करते हुए देखा तब  कहीं जा कर  मेरी  समझ में आया। उस दिन मैंने कसम खाई कि मैं अब कभी भी नशा नहीं करूंगा। उस दिन अपनें पिता की याद आई। बहुत देर तक रोता रहा। मां के पास भी किस मुंह से जाता। मां को और दुःखी नहीं करना चाहता था। मेरे पिता भी मेरी याद में तड़प तड़प कर मर गए।

एक दिन जब मेरी पत्नी ने मुझे समझाया कि आपका बेटा भी आपकी तरह ही बनेगा उसकी बात सच होती नजर आई।

चंदू बोला मां का दिल तो बहुत ही बड़ा होता है तू चल कर देख।  अपनी माता से एक बार क्षमा मांगकर तो देखो अगर तुम अपनी मां से क्षमा मांगोगे तो वह तुम्हें माफ कर देगी तुम्हें अपने लिए ना सही अपने बेटे के लिए तो तुम्हें चलना ही पड़ेगा। चंदू ने बन्टू को सारी बात बताई कि किस प्रकार तुम्हारी मां का बंगला भी कुछ लोगों ने हथिया लिया था। मैंने उस बंगले को वापस दिलाने का वादा तुम्हारी मां से किया। एक दिन तुम्हारी मां मेरी गाड़ी के नीचे आती आती बची। एक बार उन्होंनें मेरी सहायता की थी। उन्होने मेरी उस समय मदद की जब मैं बिल्कुल अकेला हो गया था।

बन्टू अपनी पत्नी और बेटे के साथ गांव पहुंचा। चंदू ने सारी बात अमा को बता दी थी कि किस प्रकार चंदू को अब अपनी गलती का एहसास हो गया है। आप उन्हें क्षमा कर दो। जब बहू और बेटे दोनों ने अपनी मां से क्षमा मांगी तो चम्पा का दिल पसीज गया। पोते को गोद में लिया और कहा मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी। जो गलती करके सुधर जाए उसे भुला  नहीं कहते।तुम्हे अपनी गलती का एहसास हो गया है यही मेरे लिए बहुत है। एक बार  फिर  से खोई खुशियां लौट आई थी।चम्पा अपने पति की तस्वीर के पास जा कर बोली देखो आज तुम्हारा बेटा सुधर कर वापिस आ गया है आप भी उसे माफ कर देना। चन्दू नें  अमा का बंगला भी उसे वापिस दिलवा दिया। सभी खुशी खुशी रहने लगे।