फुलों की तरह मुस्कुराता रहे तुम्हारा चेहरा

फुलों की तरह मुस्कुराता रहे तुम्हारा चेहरा।

हंसी से गुनगुनाता रहे तुम्हारा मुखड़ा।

तुम्हारी जिन्दगी  में हर पल हर क्षण  खुशियों  की  बरसात हो।

चेहरे पर हर पल मुस्कुराहट की सौगात हो।

हर दिन  जीवन में नया पर्व ले कर आए।

कभी ईद तो कभी दीवाली बन कर आए।

तुम ऊंचाईयों की सीढ़ियां चढ़ते जाओ।   कामयाबी को अपनी चाहत बनाओ।

हर पल हर क्षण को खुशी से जीओ।

हर पल कुछ नया करनें की उमंग जगाओ।

अपनें बडों के सम्मान को मिटनें न देना।

उनके अधूरे ख्वाबो को रौशनी की किरण देना।

आने वाला सवेरा नई नई सौगात ले कर आएगा।

जीवन में आगे बढनें  का  सुअवसर देगा।

अंहकार को कभी अपनें जीवन में न लाना।

बडा बन जानें पर कभी भी  रौआब मत दिखाना।।

जिन्दगी में जो चाहें वह तुम्हें हासिल हो जाए। तुम्हारे  मार्ग में कोई रुकावट न आए।

माता पिता के सम्मान को कभी ठेस मत पंहुचाना।।

हर काम ईमानदारी और मेहनत से करते जाना।

(झबरु)

एक छोटे से पहाड़ की तलहटी पर झबरु अपनी मां छमिया के साथ रहता  था। झबरू भोली मुस्कान लिए जब अपनी मां की ओर देखता तो उसकी मा फूली नहीं समाती। थोड़ी देर बाद उस की मां को पता नहीं क्या सूझता  वह उसको डांटने लग जाती कहती कि जल्दी ही अपना काम किया करो। अगर समय पर काम नहीं किया तो आज खाना नहीं दिया जाएगा। वह सोचता मां को ना जाने एकदम क्या हो जाता है एक पल में मां दयावान बन जाती है। थोड़ी देर में ना जाने क्या हो जाता है।? कई बार मां को पूछने का यत्न करता लेकिन कभी सफल नहीं होता था। इसी तरह दिन गुजरते रहे। झबरू मां को कहता मां मेरे पिता कहां है? उसकी मांं कहती तुम्हारे पिता हमें छोड़ कर चले गए हैं। तुम आगे  सेअपने पिता के बारे में कभी भी कोई भी सवाल मुझसे मत करना। तुम्हारे पिता को  बड़ा बनने की चाह  नें  और अंहकार नें मार डाला। इंसान बड़ा बनकर अपने सगे संबंधियों को भूल जाता है। बेटा इतना याद रखना हम जैसे भी हैं ठीक है। कभी भी बहुत बड़ा इंसान बनने की चेष्टा मत करना वर्ना तुम भी अपने पिता की तरह बन जाओगे।

मेहनत करो मेहनत करके जो कुछ हासिल हो उसी को अपना मुकद्दर समझो। कभी भी किसी से कुछ भी मांगनें की कोशिश मत करना। तुम्हारे पास भगवान के द्वारा दी गई, खुदा की दी हुई वस्तुएं है जो सबसे अनमोल है। वह तुम्हारी आंखें हैं  जिन से इस संसार को  तुम देखते हो। पैर हैं, जिससे तुम चलते हो, और खाने के लिए मुंह है(जीभ है। भगवान ने  मुंह या  जीभ इसलिए नहीं दिया कि इस से हर कभी अपना पेट भरते रहो इसलिए दिया है कि अपनी मधुर मुस्कान से मधुरता से हर किसी का मन जीत सको। वाणी पर नियंत्रण रखो। कभी किसी के लिए भी अपनी वाणी से अपशब्दों का प्रयोग मत करो। हो सके तो माफ करने की प्रक्रिया का अनुसरण करो।

इंसान गलतियों का पुतला है उसे जाने अनजाने में भूल हो जाती है। सबको क्षमा करना सीखो।  इनमें सब बातों को अपनाओगे तो सब लोग  तुम्हें  प्यार करना शुरू कर देंगें। अगर तुम भी औरों की तरह गुस्सा करने वाले बन गए  तो तुम में और लोगों में क्या अन्तर रह जाएगा। तुम भी और लोंगों  की तरह बन जाओगे तो लोग  तुमसे बात करना पसंद नहीं करेंगे। इसलिए मीठे शब्दों का प्रयोग करो।तुम जब  गुस्सा करते हो तो अवश्य ही तुम नाराज हो कर  वहां से उठ कर चले जाते हो ऐसा नहीं करना चाहिए। आप ठीक कहती हैं मैं आपकी बातों का अनुसरण करूंगा। कानों के द्वारा किसी की निन्दा करनें वालों की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए।  एक दूसरे की निंदा मत करो। हो सकता है कि वह किसी दुसरे व्यक्ति को लडवानें के लाए ऎसा कह रहा हो। सब से अच्छे दोस्त को तुम से दूर करनें का यत्न कर रहा हो। किसी के बारें में कोई बड़ा फेंसला लेनें से पहले एक बार ठन्डे दिमाग से सोच लो। सोच समझकर ही कोई फैसला लो। अपनी सोच का दायरा बढ़ाओ।

झबरु एक बच्चे की तरह अपनी मां की बातों को  गौर से सुन रहा था। उसकी मां जंगल में पशुओं को चराने जाती  शाम को लौटते  वक्त उसे जंगल से  मीठे मीठे कंदमूल फल ला कर देती। मां अपने बेटे को   कहती कि यह फल कितने पौष्टिक होते हैं। हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। जंगल में नीम के पेड़ के पत्तों को तोड़ कर देती वह उसे बताती  कि ये फल  हमारे जीवन के कितने   लाभदायक होते हैं। उनको  जलाते हैं तो मक्खियां मच्छर इसकी गंन्ध से दूर भाग जातें जाते हैं। नीम के पत्तों का उबाल कर काढ़ा बनाया जाता है। आधा रह जाने पर सरसों के तेल के साथ मिला फुंसी फोड़े पर लगाने से   फोडे फुर्सत ठीक हो जाते हैं। निबौरी  फायदेमंद होती है। इसके सेवन सेदांतों में कभी कीड़ा नहीं लगता। खुजली होने पर भी  यह रामबाण की तरह का काम करती है। पीपल के पत्तों का रस भी उपयोग में लाया जाता है। इसकी एक बूंद नाक में डालने से नाक में नक्सीर नहीं निकलती। बहुत सारी जड़ी बूटियों का इस्तेमाल दवाइयों के लिए किया जाता है। झबरु बोला क्या मैं अब जाऊं? थोड़ी देर के लिए अपनी मां से अलविदा कह कर वह चला गया।

गांव के आसपास  ही उसके कुछ  दोस्त थे। लेकिन  उसके सभी  दोस्त  स्कूल पढ़नें जाते थे।  वे उस से कहते कि हम तो स्कूल पढ़ने जाते हैं तुम भी हमारे साथ पाठशाला चला करो।  वह कहता कि मेरी मां कहती है कि हमें पढ़ना लिखना नहीं चाहिए। इंसान पढ लिख कर बड़ा बनकर अपनों को भूल जाता है। उसकी मां बेचारी अनपढ़ थी। शायद इसीलिए ही उसके पति ने उसे छोड़ दिया था। वह पढाई को बहुत ही बुरा समझती थी वह अपने बेटे को स्कूल जाने से कोसों दूर रखती थी। उस बेचारें को तो  विद्यालय जानें  का मतलब भी पता नहीं था। एक दिन उसका दोस्त पंकज उस से मिला। पंकज उस से बोला तुम भी मेरे साथ पढ़ने चला  करो। स्कूल में पढ़ाई करने का बहुत ही मजा है। स्कूल में अच्छी-अच्छी बातें सिखाई जाती है। स्कूल में अच्छी बातों के साथ  दोपहर को हर बच्चे को भोजन भी  खानें को  दिया जाता है। बच्चों के मनपसंद खेल  भी खिलाए जाते हैं। ड्राइंग करने को भी मिलती है। सब से मजे की बात है कि हमें स्कूल में कोई भी अध्यापक  काम ना  करने पर  कभी भी कोई अध्यापक मारता नहीं है।। प्यार से  सभी अध्यापक अध्यापिकाएं हमें पढ़ाते हैं। झबरु बोला अब तो  मुझे भी स्कूल जाने का प्रोग्राम बनाना ही पड़ेगा। मुझे पहले स्कूल का मतलब तो पता ही नहीं था।  पाठशाला या  स्कूल क्या होता है?  झबरु अपनें दोस्त पंकज से बोला, जिस प्रकार हम घर में रहते हैं उसे  गृहालय  या आवास स्थान कहते हैं।  जहां पर हम रहते हैं और आलय का मतलब होता है स्थान या आवास स्थान। देवालय  का अर्थ होता है। देव यानि भगवान। भगवान के रहने का स्थान देवालय। (विद्यालय) ज्ञान या पाठ का मतलब होता है ज्ञान प्राप्त करना है। शिक्षा ग्रहण करने का स्थान यही विद्यालय होता है। यही स्कूल होता है। जहां अच्छी अच्छी बातें सिखाई जाती है।  अब समझ में आ गया जहां पर शिक्षा अच्छी बातें सिखाई जाती है वह स्कूल होता है।

झबरू अपने दोस्त को बोला तो कल मैं भी तुम्हारे साथ स्कूल चलूंगा। वंहां देखूंगा कि तुम क्या पढ़ाई करते हो? दूसरे दिन जल्दी से तैयार होकर पंकज के साथ विद्यालय चला गया। तीन-चार किलोमीटर पैदल चलकर विद्यालय पहुंच गए।रास्ते से चलते वक्त पंकज बोला हमें  समय पर स्कूल आना पड़ता है। स्कूल में काम समय पर करना पड़ता है। पंकज बोला तुम्हारी मां जब तुम सुबह उठते हो तो तुम्हें मुर्गे की बांग की आवाज सुनकर उठाती है। सुबह हो गई चलो जल्दी नहा कर काम निपटा खाना खाते होंगे। सुबह की दैनिक क्रिया से निवृत्त होते होंगे झमरु बोला यह दैनिक दिनचर्या क्या होती है दैनिक दिनचर्या जो काम तुम सुबह उठकर करते हो जैसे सुबह उठकर शौच जाना दातुन करना नहाना यह सब कार्य दैनिक दिनचर्या में आते हैं सैर करना यानी तुम पशुओं को जंगल में चराने ले जाते हो। जहां पशु चराए जातें हैं उसे चरागाह कहतें ह। यह काम सब दैनिक क्रिया में आते हैं। सुबह जब उठते हो प्रातः काल का समय होता है।  हमें सूर्य निकलने से पहले उठना  चाहिए। झबरु ने अपनी मां को कहा मां मैं पंकज के साथ खेलने जा रहा हूं। वह अपनी मां को बताता कि वह पंकज के  स्कूल जा रहा है तो उसकी मां उसे कभी भी स्कूल नहीं भेजती। उसकी मां पशुओं को चराने के पश्चात आकर घर से 5 किलोमीटर की दूरी पर एक साहुकार के घर में झाड़ू पोछा लगाने का काम करती थी। वह जो कमाती, उसका मालिक  जो कुछ देता वह उसी से गुजारा करती। वह इसी में अपने बेटे के साथ खुश थी। घर पर आकर घर का काम करने के पश्चात थोड़ी देर अपनें बेटे के साथ समय समय व्यतीत करती थी। उसे अच्छी-अच्छी बातें सिखाती थी।

एक दिन बिना अपनी मां को बताए पंकज के स्कूल में जाने के  लिए तैयार हो गया। वह बोला मां आज मैं अपने एक दोस्त के घर जा रहा हूं जल्दी ही आ जाऊंगा। उसकी मां बोली बेटा जल्दी आ जाना मैं भी काम पर जा रही हूं। उसकी मां अपने बेटे को हां  कहकर काम पर चली गई। झबरु अपनें दोस्त के साथ स्कूल में पहुंच गया था। स्कूल में पहुंचकर उसे बहुत ही अच्छा लगा। सभी बच्चे लाइन बनाकर प्रार्थना के लिए जा रहे थे। उनकी मुख्याध्यापिका ने आकर बच्चों को बड़े ही प्यार से शुभ प्रातः कहकर संबोधित किया। बच्चों ने भी शुभ प्रातः कर एक दूसरे का अभिवादन किया। बच्चों ने प्रार्थना में किसी ना किसी विषय पर कुछ ना कुछ बोला। विषय समाप्त होने पर बच्चों ने तालियां बजाई। उसे बड़ा अच्छा लग रहा था

स्कूल में उस दिन एक बच्चे का जन्मदिन था। उस दिन उस बच्चे ने स्कूल में टौफियां और  मिठाई  बांटी। सभी बच्चों ने तालियां बजाई। उस बच्चे की अध्यापिका ने उसके सिर पर हाथ रख कर उसे आशीर्वाद दिया। बेटा तुम पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनना। सच्चाई के रास्ते पर चलना। पंकज नें भी उस बच्चे के लिए तालियां बजाई।

मुख्य अध्यापिका जी ने कहा कि तुम्हारा जीवन हर दिन  खुशियां ले कर आए। उसे स्कूल  जा कर बड़ा ही अच्छा लग रहा था। वह पंकज से बोला मेरी मां ने मेरा जन्मदिन कभी भी नहीं मनाया। मुझे तो यह भी पता नहीं है कि मैं कब पैदा हुआ था। मेरी मां कहती है कि बड़ा आदमी कभी मत बनना और अध्यापिका कहती हैं कि पढ लिख कर  बडा आदमी बनना। मैं अपनी मां से पूछ कर ही रहूंगा  मेरा जन्म दिन वह क्यों नहीं मनाती। आधी छुट्टी के समय सभी बच्चों को भोजन वितरण किया गया। उसे  भी बड़ा अच्छा लगा। आधी छुट्टी के पश्चात ड्राइंग का कालांश था। बच्चों की मैडम नें सब बच्चों की उपस्थिति लगाई। उस दिन स्कूल में ड्रॉइंग कंपटीशन था। सभी दूर दराज  से कॉम्पिटिशन में भाग लेंनें के लिए बच्चे अलग-अलग स्कूलों से आए थे।

झमरु की बारी आई तो मैडम बोली बेटा तुम्हारी ड्राइंग नोटबुक कहां  है। पंकज बोला वह आज अपनी कौपीऔर और रंग आज घर पर ही भूल गया है। मैडम को तो पता ही नहीं चला कि वह उनके स्कूल का बच्चा नहीं  है।वह किसी दूसरे स्कूल से ड्राइंग  कंपटीशन  में भाग लेने के लिए आया होगा। वह खुशी-खुशी से ड्राइंग बना रहा था। उसने जंगल में उगते हुए सूर्य और चरागाह को दिखाया था। मैडम नें घोषणा कि  अगले सोमवार को जिन बच्चों का सबसे अच्छा चित्र होगा उसे ईनाम दिया जाएगा। सभी बच्चे वर्दी डालकर आना। अगले  कालांश में दूसरी अध्यापिका आई। पंकज नें कहा वह विज्ञान की अध्यापिका  है। वह बच्चों को बड़े ही प्यार से पढ़ा रही थी। वह बोली बेटा आज मैं तुम्हें बताती हूं कि गंदा पानी पीने से हमें  कौन सी  बिमारी हो सकती है। ? गंदा पानी और गन्दा खाना  से  कीटाणु हमारे शरीर मे चले जातें हैं।  गंदा पानी पीने से हमें उल्टियाँ और दस्त लग जाते हैं। पानी में गंदे कीटाणु होते हैं। इसलिए हमें बरसात के दिनों में पानी को उबालकर पीना चाहिए। घर में जब आपकी मम्मी जहां खाना बनाती है वहां पर भी सफाई का वातावरण होना चाहिए। घर में आसपास क्यारी में पानी इकट्ठा नहीं होना चाहिए।  साफ पानी का उपयोग सोच समझ कर करना चाहिए। खडा पानी किचन के साथ क्यारी में उपयोग करना चाहिए। उस फालतू पानी को क्यारी में डाल देना चाहिए। चाय के पतियों का इस्तेमाल भी हम अपनी वाटिका में कर सकते हैं। घर के आसपास  जगह जगह गड्ढे नहीं होनी चाहिए। उन्हें भरवा देना चाहिए। पानी का सदुपयोग सोच समझ कर करना चाहिए। घर में पीने के लिए साफ बाल्टी का प्रयोग करना चाहिए। पानी निकालने के लिए लंबी हाथी वाले बर्तन का प्रयोग करना चाहिए। कई बार हम पानी निकालते समय  गन्दा गिलास पानी की बाल्टी में डाल देते हैं और बाल्टी को खुला छोड़ देते हैं। जब आपकी मम्मी खाना बनाती है तो रसोई में जिस कपड़े में हम खाना लपेटतें हैं तो वह साफ-सुथरे कपड़े मे लपेटना चाहिए। पानी को हमेशा ढक कर रखना चाहिए। घर में अगर किसी को हैजा या  दस्त लग जाए तो घर में अपने आप  घर में  बना (ओर – आर- एस) का घोल बनाना चाहिए। पानी और नमक का घोल तैयार करके पिलाना चाहिए। दस्त लगनें पर शरीर से अधिक मात्रा में नमक भी हमारे शरीर से निकल जाता है। ओ आर एस का घोल बाजार में बना बनाया अस्पताल में  मुफ्तभी मिलता है। घर में भी इसे  आसानी से बनाया जा सकता है।।  एक लीटर पानी में साफ पानी को उबालकर 15 मिनट तक उबालना है।उस में  तीन चम्मच चीनी डालनी है  या अपनें स्वादानुसार और आधा चम्मच नमक मिला दो। इस मिश्रण को ओ आर एस  का घोल कहते हैं। यह घोल नमक की मात्रा की  कमी को पूरा कर देता है। इसमें हम स्वाद के लिए नींबू भी मिला सकते हैं। रोगी व्यक्ति को बार-बार पीने के लिए देना चाहिए। इससे शरीर में नमक की मात्रा भी कम नहीं होती।

छुट्टी के वक्त झबरू ने अपने कदम घर की ओर बढ़ाएं उसे स्कूल में आज बहुत ही अच्छी बातें सिखाई गई थी।  उसकी मां जब उसे जंगल में चलने के लिए कहती तो वह कहता मां आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। सिर में दर्द है। बहाने करता रहता। स्कूल में शाम को मैडम ने सभी को कहा था कि अपना अपना बैग और ड्रेस साफ सुथरा लाना है। ड्रेस जल्दी आनी चाहिए। वह धीरे-धीरे अपने दोस्त के साथ स्कूल जाने लगा। उसे स्कूल जाकर बहुत ही अच्छा लग रहा था परंतु वह अपनी मां से चोरी छुपे स्कूल जाने लगा। उसके पास तो वर्दी भी नहीं थी।

वह अपने दोस्त पंकज के साथ एक दुकान पर रुका क्यों कि उसके दोस्त नें  वहां अपनी वर्दी सिलानें के लिए दी थी। पंकज ने अपनी वर्दी  दीवान चंद से खरीदी थी। गांव में दीवान चंद की दुकान बहुत ही मशहूर थी। दीवान चंद तो वहां पर रहते नहीं थे। वह तो सिर्फ बच्चों की बर्दिया बेचने के लिए कभी-कभी गांव आते थे।  उन्होंने गांव में एक ही बहुत ही बढ़िया दुकान खोली थी। पंकज ने अपनी वर्दी देखी। झबरू बोला अंकल आप मुझे भी वर्दी दिखाइए। मेरे नाप की।

दुकानदार दीवान चंद बोले  मेरे पास एक बच्चे नें वर्दी सिलवाने के लिए देकर   दी है। उसके पिता का स्थानांतरण हो गया है।  वह अब वर्दी नहीं लेगा। यह वर्दी पहन कर तो देखो।  झबरु नें जब वह वर्दी पहन कर देखी उसे वह पूरी थी। लेकिन कमीज की बांजुएं थोड़ी लंबी थी। दुकानदार बोला  कल  तुम्हें वर्दी मिल जाएगी।झबरु बोला पहले मैं अपनी मां से पूछ कर बताऊंगा। उसने थोड़ा थोड़ा पढ़ना लिखना भी सीख लिया था। उसने  कुछ कुछ गिनती भी सीख ली थी। उसे पहचानना भी आ गया था। उसे नोटों  के बारे में काफी जानकारी  हो गई थी। वह घर में नोटों को उल्टपल्ट कर देखा करता था। बीच बीच में पंकज स्कूल चला जाता था।

एक दिन  झबरू की मां जब काम पर से वापस आई तो झबरु को घर पर ना पाकर उदास हो गई। वह बीमार होने की वजह से जल्दी ही घर वापस आ गई। । वह तो हर रोज उसकी अनुपस्थिति में स्कूल चला जाता  था। जब काफी देर तक झबरु घर नहीं आया तो  उसके  दोस्त पंकज के घर गई। और पंकज की  मां ने दरवाजा खोला। पंकज की मां बोली आपका बेटा भी मेरे बेटे के साथ स्कूल गया है। उसकी मां बोली मेरा बेटा तुम्हारे घर तो नहीं आया। पंकज की मां बोली आप का बेटा तो मेरे बेटे के साथ स्कूल गया है। वह कहने लगी

मेरा  बेटा तो स्कूल में नहीं पढ़ता है। उसकी मां को विश्वास नहीं हुआ। झबरु की मां को क्या पता होगा वह तो मुझे से पूछ कर गया था। अपने आप पता करूंगी वह ठीक ही कह रही है या गलत। आज  जल्दी में उसके  साथ  स्कूल चला गया होगा। उसे कहना होगा कि पंकज के साथ मत करा कर। वह कभी भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहती थी। इसी कारण  उसने  पढ़ाई नहीं   की।

काफी दिन तक उसकी मां बीमार रही

उसे दस्त लग गए थे। घर में झबरु ने देखा कि रसोई में मां ने जिस कपड़े में रोटियां  लपेटी थी वह कई दिन से साफ नहीं किया गया था। उसने रोटी लपेटने के कपड़े को साफ कर दिया। पानी पीने के लिए उसने एक तार को मोड़ कर गिलास के चारो और लपेट कर उस की हत्थे बना दी थी। गिलास के चारों ओर तार लपेट दी थी। उसको पानी की बाल्टी में पीने के लिए प्रयोग किया और उसने वह बाल्टी  साफ करके उसको ऊपर से ढक दिया। घर को  भी साफ कर रख दिया।

उसकी मां को   डीहाईडरेश्न हो गया था।  दस्त लग जाने के कारण उसके शरीर में पानी और नमक नमक की कमी हो गई थी। उसकी मां बोली बेटा तुम मेरे मालिक के पास जाकर पहले मेरी पगार ले कर आ जाना। मुझे दवाइयाँ लानी है। वह मालिक के पास गया जिस साहुकार के यहां उसकी मां काम करती थी। उसकी मां नें कागज की एक पर्ची दे कर कहा उसे इतने रुपए मिलते हैं। उसने  मालिक के घर का पता पूछ पूछ कर वहां जा कर देखा उसके मालिक ने उसे ₹300 की जगह उस पर ₹800 के हस्ताक्षर करवाए थे। वह अपनें साथ पंकज को भी ले कर गया था। उसकी इस करतूत को देख कर  झबरु साहुकार को बोला  मेरी मां से आप ₹300 की जगह पर800रु पर हस्ताक्षर करवाते हो। मेरी मां पढी लिखी नहीं है।  मेरी मां दिन-रात मेहनत करके कमाती है आप उन्हें कम पगार देते हैं।  शेष राशि को आप अपनी जेब में डाल देते हैं। उसको 800रु की जगह पर 300रु  ही देते हो। झबरु पंकज से बोला मेरी मां नें पर्ची पर आठसौ ही लिखा है न, तुम देख के बताओ। पंकज बोला हां दोस्त यह 800रू ही है। आज मेरी मां पढ़ी-लिखी होती तो  और मैं भी पढा लिखा होता तो हमें यह दिन नहीं देखना  पड़ता। मां मुझे   भी स्कूल न भेज कर मेरा भी नुकसान कर रही है। उसे आज समझ आ गया कि पढ़ना लिखना जरूरी होता है।

घर आ कर उसने अपनी मां को  ओ आर एस का घोल अपने हाथ से बना कर दिया। 1 लीटर पानी को ठंडा कर उसको बनाकर घोल बनाया।  मां की हालत पहले से बेहतर हो गई थी। उसकी मां बोली बेटा तुमने यह कहां से सीखा। तुम्हें यह घोल बनाना  किस से सीखा। मां आप ने  एक दिन मुझ से कहा था कि  हमें पढ़ना  लिखना नहीं चाहिए। आप  कितना गल्त थी। यह मैनें स्कूल जा कर जाना। अगर मैं स्कूल नहीं गया  होता तो मैं यह सब कहां सीखता?आज आपको एक बात बताता हूं पढ़ना लिखना सबके लिए जरूरी होता है आज मैंने यह जाना। जहां पर आप काम करती है उसका मालिक आपको ₹800  आप की पगार के देता है लेकिन आपको ₹800 के बदले वह ₹300 ही देता है। ₹500 अपनी जेब में डाल देता है आप अनपढ़ होने के कारण यह बात नहीं समझ सकती हो। वह आप का फायदा उठाता है। यह सारी बातें मैंने स्कूल में सीखी। हां ‘मैंने भी आज एक गलत काम किया। स्कूल जाने के लालच में  एक सेठ जी की दुकान का ताला तोड़कर वर्दी चुरा ली। स्कूल पहनकर जाने ही वाला था कि आप सामने आ गई। आपको पता चल गया था कि मैं पंकज के साथ स्कूल गया हूं। उसकी मां ने एक दिन उसको कहा  था कि तुम अगर आज से स्कूल गए तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करूंगी। उस दिन मैंने स्कूल जाने का ख्याल छोड़ दिया था। मैंनें आज अपनी मां की कसम को तोड़ दिया था। मां मुझे माफ कर दो।

उसकी मां बोली मुझे नहीं पता था कि पढ़ना लिखना जरूरी होता है। मैं तुम्हें इसलिए पढ़ाना नहीं चाहती थी कि तुम वहां पर जाकर अपने पिता की तरह बन जाओगे। तुम्हारे पिता ने मुझे इसलिए छोड़ दिया कि उन्हें ज्यादा रुपए का लालच हो गया था। शायद मेरी अनपढ़ होनें के कारण। मुझे तो यही लगा कि उन्हें धन पा कर घमंड हो गया था। बेटा मैं भी तुम्हें पढ़ाऊंगी पर एक बात का ध्यान रखना अपने पिता की तरह मुझे छोड़कर ना जाना। मैं तुम्हें स्कूल अवश्य भेजूंगी। तूने तो घर की काया ही पलट दी।

इतनी अच्छी अच्छी बातें स्कूल में सिखाई जाती है यह मैंनें तुम से जाना। सबसे पहले तुम कसम खाओ कि तू उस दुकानदार की वर्दी वापस करके आएगा। । मैं तुझे वर्दी दिलवाने का प्रयत्न करूंगी।

पंकज दौड़ता दौड़ता आया दोस्त तुम्हारी ड्राइंग तो सबसे अच्छी थी। मैडम ने तुम्हें स्कूल में बुलाया है। तुम्हें स्कूल में पारितोषिक वितरण किया जाएगा। स्कूल  वालों नें  तुम्हें इनाम देने की घोषणा की है।स्कूल में झबरु की मां  पंहुच गई थी। वह स्कूल पंहुच कर औफिस के पास जा रहा खड़ी हो गई। चौकीदार नें उसे अन्दर जाते देख लिया था वहीं बोला आप बिना इजाजत के अन्दर नहीं जा सकती। स्कूल कीअध्यापिकाओं नें उसे पूछा तुम यहां क्यों आई हो? वह बोली मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं। मैं आप के स्कूल की मुख्याध्यापिका जी से मिलना चाहती हूं जिस की वजह से आज मेरा बेटा आज कुछ पढना लिखना सिखा। वे उसे अन्दर ले कर गई। झबरु  की मा बोली पर आज मेरे बेटे नें एक गल्त काम किया है। मेरा बेटा कभी भी किसी की चोरी नहीं करता लेकिन आज उसने यह लालच में कर डाला। मुख्याध्यापिका जी नें उसे बिठाया। ठन्डा पानी पीनें को दिया। मैडम नें कहा तुम्हारे बेटे का नाम क्या है।? वह बोली मेरे बेटे का नाम झबरु. है। मैडम ने एक बच्चे को कागज का पर्चा थमा कर झबरु को बुलवानें भेजा। चपरासी नें आ कर कहा कि झबरु नाम का कोई भी बच्चा यहां नहीं पढता। मुख्याध्यापिका जी बोली इस नाम का कोई भी बच्चा यहां नहीं पढता। झबरु की मां बोली आप के स्कूल में पंकज चौथी कक्षा का छात्र है। उसके साथ स्कूल आ जाता था। मैंनें ही उसे पढ़नें से रोका था। आपके द्वारा सिखाए गए ज्ञान नें मेरी आंखे खोल दी। मेरा बेटा मुझ से चोरी छिपे यंहा अपनें दोस्त के संग पढ़नें आने लगा।उसकी मैडम नें उसे  पढना लिखना सिखाया। उसे स्कूल आना अच्छा लगनें लगा। एक दिन जब मैं बिमार पड़ी तो उसने घर में घोल तैयार कर मुझे पीनें को दिया। घर में कूड़ा कचरा  फैलाने वाला मेरा बेटा समझदार बन गया। यहां तक के उसने मुझे एहसास दिलाया कि पढ़ना लिखना सभी वर्ग के लोंगो के लिए जरुरी होता है।

पढा लिखा इन्सान कभी भी जीवन में किसी के आगे धोखा नहीं खा सकता। वह अपनी आय और व्यय का हिसाब कर सकता है। मुझे मेरा मालिक पगार के 800रु के बदले 300रुपये ही देता था। रजिस्टर पर 800रुपये पर हस्ताक्षर करवा देता था। मुझे जब उल्टियाँ दस्त लगे मैं काम पर नहीं जा सकी। मैनें अपनें बेटे को मालिक के पास पगार लेनें भेजा। मेरे बेटे को भी कुछ लिखना पढना नहीं आता था।वह पंकज के साथ दो तीन महीनें  से स्कूल में आ रहा है। उस के साथ आ कर बहुत कुछ पढ लेता है। एक दिन जब मैं बिमारी की वजह से जल्दी घर पंहुंचीतो मुझे पता चला कि वह तो पंकज के साथ स्कूल जाता है। उसने मुझे बिमारी से ठीक किया। घर में घोल बना कर मुझे पिलाया। मैंने उसे स्कूल न जानें की कसम दी थी आज मैं वह अपनी कसम तोड़ने आई हूं। आज मै उसे स्कूल में दाखिल करवानें भी आई हू। मेरे बेटे नें आज एक साहुकार के घर जाकर कर उसकी दुकान से वर्दी चोरी की। वह आज आप के स्कूल में पहन कर आना चाहता था लेकिन अपनी गल्ती के कारण वह आज मेरे साथ स्कूल नहीं आया। स्कूल के अध्यापक अध्यापिकांएं हैरान हो कर उस बच्चे की कहानी सुन रहीं थी। पंकज आ कर बोला मेरा दोस्त मेरे साथ स्कूल आया है। लेकिन वह बाहर ही खड़ा है कह रहा है कि मैं स्कूल जानें योग्य नहीं हूं। मैंनें अपनी मां के साथ विश्वासघात किया है। उस दुकानदार को जब पता चलेगा तो वह भी मुझे चोर समझेगा। मुख्याध्यापिका जी  नें झबरु को अपने पास बुला कर कहा कि कौन कहता है कि तुमनें चोरी की है। चोरी कर के जो अपनी गल्ती स्वीकार कर लेता है वह तो अच्छा इन्सान होता है। हमें नहीं पता था कि तुम तो पढाई के लिए यह सब कर रहे थे। हम तुम्हे अपने विद्यालय में प्रवेश देतें हैं। तुम्हें स्कूल कीओर से वर्दी भी मुफ्त में दी जाती है। झबरु की मां जब सेठ जी की दुकान  के पास वर्दी लौटानें गई तो सेठ जी को बोली मेरे बेटे नें पढाई करनें के लालच में आप की दुकान से चोरी की। आप नें उसके दोस्त पंकज को वर्दी दिखाई। उसनें वह वर्दी पहन कर देखी थी। उसे लालच आ गया था। मैने उसे कभी स्कूल न भेजने का निर्णय किया था मगर उस बच्चे ने मुझे भी शिक्षा दे कर मुझे शिक्षा का महत्व क्या होता है सिखा दिया। साहुकार दिवानचन्द उस बुढिया की ईमानदारी से प्रसन्न ही नही हुए बल्कि उस के बच्चे के नेक विचारों से भी खुश होकर बोले आप का बेटा पढाई करनें के लिए कितना इच्छुक है और एक मेरा बेटा है वह कभी स्कूल जाना ही नहीं चाहता। अपनी तरफ से मैं भी उसे उस की ईमानदारी के लिए उसे वह वर्दी  ईनाम के तौर पर देता हूं। उस की पढाई के लिए में भी उस के स्कूल आ कर उस को कौपियां किताबे उपलब्ध करवाऊंगा।  मैडम नें उसे अच्छी चित्रकारी करनें पर रंग और  ड्राइंग की कॉपी भी ईनाम में दी।स्कूल जा कर झबरु एक अच्छा बच्चा बन गया था।पढ लिख कर झबरु नें अपनी मां को सभी खुशियों दी। उसे घर बनवा कर दिया।

जीवन में नेक काम करना सीखो

नदियों के पानी का सम्मान करना सीखो। अपने जीवन में नेक  काम करना सीखो।।

धरती मां वसुंधरा का सम्मान करना सीखो। प्रकृति से जुड़कर नेक काम करना सीखो।। अपने आसपास प्रदूषित वातावरण मत पनपाओ।

अपने अराध्य को प्रसन्न करने वालों,

नदी में कूड़ा करकट जहरीला पैदार्थ मत फैलाओ।।

धरती मां की छाती को भेद  कर, पानी की आखिरी बूंद को यूं न व्यर्थ में बहाओ।

नदी की एक एक किमती बूंद को बचा कर सदुपयोग में लाओ।।

सीवरेज के पानी को सिंचाई के प्रयोग में लाओ।

पानी में मौजूद तत्वों को प्राकृतिक खाद के रूप में प्रयोग में लाओ।।

गंदे पानी को इक्ट्ठा कर के बंजर भूमि में फसलों को उगाओ।

इस पानी का सदुपयोग खेती की सिंचाई में कर के दिखाओ।।

नदी के जलचरों को यूं न मत तरसाओ।

अपनी तरह समझ कर उन को भी बचाओ।।

सही विचारों को जीवन में उतार कर दिखाओ। अपनें हुनर, संस्कृति को स्थापित करके

, अपनें आप को बदल के दिखाओ।

जन सहयोग से राशि को जुटाओ।

आपसी जनों के सहयोग से इस काम को सम्पन्न कर के दिखाओ।।

अपनें पिता समान वरुण देवता का सम्मान बढाओ।

 धरती मां की गोद में पले तुम सभी अपने जीवन को सफल बनाओ।।

लालची बहनें

तीन चचेरीं  बहने थी। दो बहने तो मध्यम परिवार से संबंध रखती थी। तीनों ने अपने मनपसंद   साथी का  चुनाव किया।  तीनो बहने साथ-साथ घर में ही रहती थी। उनके पति जो कुछ कर कमा कर लाते थे। वह मिल बांट कर खाती थी। वह एक दूसरे को सारी बात बता देती थी कि आज मेरे पति यह लाए हैं, जब तक वह एक दूसरे से सारी बातें एक दूसरे से खुलकर नहीं कह देती थी उन्हें तब तक खाना हजम नहीं होता था।

पहली बहन का पति एक लकड़हारा था। दूसरी का धोबी और तीसरी का व्यापारी। उन्होंने प्रेम विवाह किया था। इसलिए इनके मां बाप ने उनकी शादी उनके मनपसंद लड़को से  शादी कर दी थी।  लकड़हारा  लकड़ियां बेच बेच कर अपना जीवन व्यतीत करता था। एक दिन जब वह लकड़ियां काट रहा था तब उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। वह जोर जोर से रोने लगा और सोचनें लगा हमारा घर तो जल चुका है।  मेरे पास  अब एक कुल्हाड़ी के सिवा कुछ नहीं बचा है। यह कुल्हाड़ी भी नदी में गिर गई। वह अब कैसे अपने परिवार और अपनी पत्नी को क्या खिलाएगा? वह सोच कर वह जोर जोर से रोने लगा। उसके रोने की आवाज सुनकर नदी में नदी के देवता वहां पर आ गए और उन्होंने लकड़हारे को कहा कि तुम क्यों रो रहे हो? लकड़हारे ने कहा कि मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है। मेरे पास यही एक कुल्हाड़ी  बची थी लेकिन वह भी नई में गिर गई। जल देवता को उसकी बातों में सच्चाई नजर आई।  वह पानी में गया और पानी में एक सोने की कुल्हाड़ी ले कर आया। लकड़हारे ने कहा मेरी कुल्हाड़ी यह नहीं है।  यह कुल्हाड़ी मेरी नहीँ है। इसके पश्चात जल देवता चांदी की कुल्हाड़ी ले कर आए वह बोला यह  कुल्हाड़ी  भी मेरी नहीं है।  जल देवता ने तीनों कुल्हाड़ियां  उस की इमानदारी से खुश हो कर उसे दे दी। लकड़हारा जब घर आया तो उसने अपनी पत्नी से यह बात कहीं। उसकी पत्नी ने यह बात अपनी दोनों बहनों से कह दी।

दूसरी बहन  नें सोचा क्यों न जंगल में नदी के किनारे जा कर अपनी किस्मत आजमाती हूं। दूसरे दिन  नदी के पास  वह धोबिन जंगल में नदी के पास कपड़े धोने चले गई। वह कपड़े जोर जोर  से पटक पटक कर धोने लगी।  जोर जोर से कपडों को पटकने का नाटक करनें लगी। पटकने  के कारण उसने अपनी नकली अंगूठी नदी में गिरा दी और जोर से रोने का नाटक करने लगी। उसको जोर जोर से रोते देख कर जल देवता पानी से बाहर आ कर बोले तुम क्यों रो रही हो? वह रो रो कर जल देवता को कहनें लगी  कि मेरी सोने की अंगूठी नदी में गिर गई है। जल देवता पानी के  अन्दर गए और सोने की अंगूठी लेकर आए। वह धोबिन सोनें की अंगूठी देख कर बोली,  मैं बहुत ही खुश हूं। वह जल देवता के पैरों पर गिर गई और कहने लगी यही मेरी अंगूठी थी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जब उसने घर आकर अपनी तीसरी बहन को यह बात बताई तो उसके मन में भी लालच आ गया। वह जल्दी  ही सुबह सुबह बिना किसी को कुछ बताए नदी पर  पंहूंच गई।  वह भी जोर जोर से रोनें का नाटक करनें लगी।जल देवता नदी से बाहर आ कर बोले  तुम यंहा बैठ कर आंसू क्यों बहा रही हो?  वह और भी जोर जोर से रोने लगी  वह कहने लगी कि मेरे पति एक व्यापारी है। वह जब बहुत सारी धन-दौलत लेकर आ रहे थे तो  डाकूओं ने उनका सब कुछ छीन  लिया। उनके पास  एक आभूषण का डिब्बा  बचा था जो   वह मुझे  ले कर   आ रहे थे। वह डिब्बा भी पानी में गिर गया।  मैं सोचती हूं कि  अभी इस नदी में गिर कर अपनी जान दे दूं।

तीसरी बहन बहन पर भी भी जल देवता को दया आ गई। उसने उसे एक डिब्बा लाकर दे दिया। यह तुम्हारा है क्या? उसमें हीरे का हार था। वही हीरे  का हार पाकर बहुत ही खुश हुई। हीरे का हार देख कर उसे लालच आ गया। वह   जल देवता को  कहनें लगी यही मेरा हार है।  जल देवता को उसने धन्यवाद दिया और जल्दी जल्दी घर पहुंचने  का यत्न करनें लगी।

घर आकर तीनो बहने बहुत खुश थी। दूसरी बहन   सोचने लगी कि इस अंगूठी को बेच कर उसे बहुत  सारुपया मिल जाएगा। इस प्रकार दोनों बहने उस अंगूठी को बेचने के लिए जौहरी   के पास पहुंची। जौहरी नें अंगूठी देख कर कहा  यह तो सोने की अंगूठी नहीं है। यह तो नकली अंगूठी है। इस पर सोनें का पौलिस किया है?   दूसरी बहन भी सिवा रोने के कुछ नहीं कर सकती थी। उसनें घर आ कर सारी बात तीसरी बहन को बताई। उसकी बहनें कहनें लगी तुम भी हार जौहरी को बेच दो।

तीसरी व्यापारी की पत्नी  भी सोचने लगी कि नहीं, वह जौहरी झूठ बोल रहा होगा। मेरे पास  भी तो  हीरे का  हार है। वह उस  हार  को किसी भी कीमत पर नहीं बेचना चाहती। वह घर आ गई। उसने डिब्बे में से  हीरे का हार निकाला जैसे  ही उसने हार को गले में डाला तो उसका गला घुटने लगा। वह जितना हार को निकालने की कोशिश करती उतना ही उसका गला घुटता जाता। वह हार को निकाल नहीं पाई। वह दर्द के कारण चिल्लानें लगी। वह सोचने लगी कि उसे भी  लालच ने अंधा कर दिया था। हे भगवान बचा ले। भगवान से प्रार्थना करने लगी कि हे भगवान! आज  किसी भी तरह से मेरी जान बच जाए। वह दौड़ कर नदी पर पहुंच गई और जोर-जोर से चिल्लाने लगी। हे जल देवता! मैं आप के पैरों पर पड़ कर आप से अपनी गल्ती के लिए क्षमा मांगती हूं।  जल्दी आओ। आ कर मुझे बचा लो। उस की करुणा भरी पुकार सुन कर जल देवता पानी से बाहर  आ कर बोले  अब क्या बात है? तुम फिर से आ गई। उसने कहा मैंने आपसे झूठ बोला था। यह हार मेरा नहीं था। मैंने लालच में आकर यह हार लेने की सोची थी।

आप मुझे बचा दो। आज से मैं  कभी भी लालच नहीं करूंगी। जल देवता बोले  मैं इस शर्त   पर तुम्हें छोड़ता हूं कि अब तुम कभी भी लालच नहीं करोगी। जल देवता ने उसे  छोड़ दिया। उस दिन के बाद उसनें लालच करना छोड़ दिया। दोनों बहनों नें ईमानदारी का रास्ता अपना लिया।

चोर सिपाही

बिहार के एक छोटे से गांव में  जुम्मन एक रेडी चालक के रूप में काम करता था। वह मेहनत से जो कुछ भी कमा कर लाता उससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। उसने अपने बेटे लाखन को भी स्कूल में डाल दिया था। लाखन बहुत ही समझदार बच्चा था।

जब वह किसी भी  सिपाही को आते हुए देखता था तो उसका मन भी करता था कि उसके पास भी सिपाही की जैसी वेशभूसा होती।  वह भी सिपाही बनना चाहता था। अपने पापा को कहता था मैं बड़ा होकर सिपाही बनूंगा। उसके पापा भी खुश होकर उसे कहते थे ठीक है बेटा इसके लिए खूब मेहनत लगाकर पढ़ना चाहिए। उसकी मां उसे समझाती कि बेटा सिपाही बनने के लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है। उन जैसे अच्छे अच्छे काम करने पड़ते हैं, इसके लिए पढ़ना बहुत ही जरूरी होता है। वह अपनी पढ़ाई खूब मन लगाकर करता। उसके माता-पिता ने उसे घर के समीप ही एक गवर्नमेंट स्कूल में दाखिल करवा दिया था। वह आठवीं कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में इसका एक दोस्त था। उसका नाम था कर्ण। उसको अपने मन की सारी बातें बता दिया करता था। वह दोनों दोस्त लम्बे चौड़े थे। उन दोस्तों नें एक दूसरे से वायदा किया कि हम  जरुरत पड़ने पर  एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे। हम दोनों आज एक दूसरे से वायदा करते हैं। हम अपनें परिवार वालों को अपनी दोस्ती के बीच आने नहीं देगें।

कर्ण के माता पिता भी कुछ दूरी पर ही रहते थे। वह एक मध्यम परिवार का बच्चा था। उसके पास सब कुछ सुविधाएं थी जो कुछ एक इंसान के लिए चाहिए। उसके पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे और माता भी प्राइवेट ऑफिस में कर्मचारी थी। लाखन उससे हर रोज मिलने आता था परंतु वह उसके घर नहीं जाता था। वह बाहर ही उसे बुलाकर उसके साथ काफी दूर तक घूमने निकल जाता था।  वहां पर दोनों मिल जुलकर एक दूसरे से सारी बातें कहते थे। दोनों की दोस्ती बहुत ही मजबूत थी। कर्ण अपने दोस्त को कहता था कि मैं बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहता हूं। मेरे मां-बाप मुझे कहते हैं कि ठीक है जो तुम करना चाहते हो वह अवश्य करो। इसी तरह दिन खुशी खुशी गुजर रहे थे। कर्ण के माता पिता उसे कहते थे कि बेटा दोस्ती तो अपने जैसे इंसानों के साथ ही करनी चाहिए। कर्ण इस मामले में बिल्कुल अलग था। वह कहता मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप की सोच मुझ से मेल नहीं खाती।

तुमनें एक गरीब रेडी चालक के बेटे को अपना दोस्त बनाया है। उस से किनारा कर लो।  कर्ण कहता कि नहीं वही तो मेरा सबसे सच्चा दोस्त है। आप अगर उसे अपने घर नहीं बुलाना चाहते तो ना सही मैं उससे बाहर ही मिल लिया करूंगा लेकिन मैं अपने दोस्त के साथ किया हुआ वादा कभी नहीं तोड़ूंगा।

पुलिस इंस्पेक्टर भी तो देश की सेवा करता है। उसका कर्तव्य होता है किसी गुनाह करने वाले व्यक्ति को सजा देना। मेरा दोस्त भी बहुत ही होशियार है। वह भी एक सिपाही बनना चाहता है। कर्ण के माता-पिता उसे समझाते मगर वह कभी भी नहीं मानता था। वह। कहता था कि मैं अपने दोस्त को मिलने जरूर जाऊंगा इसके लिए वह हर घड़ी तैयार रहता था। चाहे बारिश हो या गर्मी, चाहे आंधी हो या तूफान दोनों दोस्त एक दूसरे के साथ इकट्ठे मिलते और काफी देर तक गप्पे हांका करते।

लाखन घर में अकेला था। कभी कभी वह घर में बिना बताए चीजें उठा लेता था। उसकी मां को इस बात का आभास उस वक्त हुआ जब वह एक दिन अपनें दोस्त का पैन उठा कर ले आया। उसकी मां बोली हमें किसी की भी कोई वस्तु बगैर उसकी इजाजत के कभी नहीं उठानी चाहिए। तुम नें उस से पैन पूछ के लिया था वह बोला नहीं उसकी जेब से निकाल लिया। उसकी जेब में दो पैन थे। मुझे आज मैडम नें स्कूल में  पैन न लाने के लिए सारा दिन खड़ा रखा। शाम को घर आते वक्त मैं चुपके से उसकी जेब से वह उड़ा लिया। लाखन की  मां बोली बेटा एक तरफ तो तुम सिपाही बनने की बात करते हो। दूसरी तरफ चोरी करते हो। सिपाही का कर्तव्य भी देश की रक्षा करना होता है। आज से तुम यह बात गांठ में बांध लो  कभी किसी की चोरी मत करो। तभी तुम एक अच्छे सिपाही बन सकते हो।

वह बोला मां मेरा  स्कूल में एक दोस्त और भी है उस नें मुझे यह सब सिखाया। कई बार मैंनें पापा की जेब से भी दस दस के नोट कितनी बार निकाले हैं। उन्हें पता ही नहीं चला। उसकी मां बोली तुम को तो लोग सिपाही नहीं चोर पुकारा करेंगे। वह बोला मां मैं अब समझ गया हूं मैं अब कभी भी चोरी नहीं करुंगा।  उसकी मां बोली तुम उसका पैन लौटा कर उस से माफी मांग लेना।

स्कूल में आज बहुत चहल पहल थी। सारे बच्चे बालदिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए थे। मैडम ने कहा जो बच्चा  कुछ भी बोलना चाहेगा आज वह कुछ भी बोल  सकता है मगर वह जो बोले यह विचार उसके अपनें  होनें चाहिए। जो बच्चा अच्छा बोलेगा उसे हम अपनी तरफ से कुछ न कुछ उपहार में अवश्य देंगें। लाखन के दिमाग में अपनी मां  के शब्द हथौड़े के समान गूंज रहे थे। वह एक सिपाही नहीं चोर बनेगा। वह कभी भी गलत काम नहीं करेगा। आज मैडम को भी बता देगा कि उसने राहुल की जेब से कल पैन ले कर अपनी पैन्ट की जेब में भर लिया था। उसके  दोस्त को तो मालूम भी नहीं होगा कि उसका पैन मैंनें चुराया था। आज वह अपने किए पर शर्मिन्दा है।

स्कूल में बाल सभा के लिए जब सब बच्चे एकत्रित हुए लाखन उठ कर खड़ा हो कर बोला आज वह कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता है आज से पहले उसने इस बात की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया था। सारे अध्यापक उसे ही देख रहे थे वह कभी भी बोलने के लिए कभी खड़ा नहीं हुआ था। वह बोला मेरे प्यारे सहपाठियों और मेरे गुरुजनों आप को मेरा हार्दिक अभिनन्दन। आप के सामने इस तरह आने के लिए क्षमा चाहता हूं। आज वह खुल कर अपनें विचार आप के सामने रखेगा।

लाखन बोला मेरे पिता रेडी चला चला कर हमारा पेट भरते हैं। मेरी मां मेरी एक सच्ची गुरु ही नहीं मेरी एक हमदर्द भी है। वह उसे हर कदम कदम पर अच्छी अच्छी सलाह दिया करती है। वह हर वक्त अपनी मां को कहता है कि मैं बड़ा हो कर एक सच्चा सिपाही बनना चाहता हूं। उसकी मां नें हमेशा सिखाया एक सच्चा सिपाही बनने के लिए एक कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति बनना जरुरी होता है। ईमानदारी से अपना काम करना दृढ संकल्प और प्रतिभाशाली जैसे गुण होने चाहिए तभी तुम अपनें मकसद में सफल हो जाओगे। वह तो आज पूरी तरह से असफल हो गया। वह तो चोरी करनें लगा था। कल उसने अपनें दोस्त की जेब से चुपके से पैन निकाल लिया। उसके दोस्त राहुल को पता ही नहीं चला। यह चोरी करनें की आदत उसे उसके स्कूल में पढने वाले सहपाठी से ही पड़ी। वह आज सबके सामने उस विद्यार्थी का नाम नहीं लेगा। वह भी जल्दी ही चोरी करनें की आदत को छोड़ देगा। उसकी गारन्टी वह खुद लेता है। कृपया उसकी एक भूल को आप माफ कर देना नही तो वह अपनें आप को कभी भी ऊंचा नहीं उठा सकता। उसने सभी अभिभावकों के सामने अपनी भूल का प्रायश्चित किया। राहुल को सारा किस्सा सुनाया कल जब उसके पास कक्षा में पैन नहीं था तो उसे बैन्च पर खड़ा होनें की सजा मिली थी। शाम को जाते वक्त राहुल की जेब से पैन निकाल कर अपनें बस्ते में डाल दिया। उस पैन को पेन्ट कर दिया ताकि वह अपनें पैन को पहचान न पाए।

घर पहुंच कर जब काफी देर तक उस पैन को ले कर पेन्ट कर रहा था। मेरी मां कमरे के अन्दर  आ कर बोली बहुत रात हो चुकी है। तुम इस वक्त क्या कर रहे हो? मां को देखते ही उसने वह पैन बिस्तर के नीचे छिपा दिया ताकि मां की नजर उस पर न पड़े। वह बोली बेटा दाल में तो कुछ काला जरुर है। सच्च सच्च बताओ। सिपाही बनने के लिए हर बात साफ साफ स्पष्ट होनी चाहिए। वह डर रहा था। मां को क्या बताए। वह। आईस्ता से बोला कुछ भी तो नहीं मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। उसने जानबूझ कर अपनी रजाई नीचे  तक फैला दी थी जिससे उसकी मां को जरा भी शक न हो। वह बोली रजाई को तो ठीक कर लेते। जाते जाते उसकी मां नें रजाई ऊपर की ओर की उसकी मां की नजर ब्रश पर पड़ी। इस पेंन्ट से तुम क्या कर रहे थे? और इस पैन में यह पेन्ट क्यों किया? तुमने यह पेन्ट का डिब्बा अपनें पापा से लिया। वह बोला नहीं मां अपनें आप उठा कर लाया। उसकी मां बोली बेटा यह तो चोरी हुई। मैनें तुम्हे बताया था कि किसी की भी कोई वस्तु नहीं उठाते। अपनें पापा से पुछा कर ले लेते तो वे भी कभी तुम्हे मना नहीं करते। लाखन रो कर बोला मां उसने आज बहुत ही गलत काम किया है। उसने सारी बात अपनी मां को बता दी। उसकी मां बोली कल तुम उस बच्चे का पैन वापिस कर के आओगे तो मैं समझूंगा कि तुम एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है। तुम सुधर सकते हो।अध्यापक उस बच्चे की बात से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे माफ भी कर दिया और उसकी प्रशंसा भी की और कहा तुम अवश्य ही एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। इन्सान तो गलतियों का पुतला। है। जो गिर कर संभल जाए उसकी हमेंशा जीत होती है। राहुल नें भी उसे माफ कर दिया। अध्यापकों नें उसे पैन का डिब्बा ईनाम में दिया। उस दिन के बाद उसने कभी भी चोरी नहीं की।

होनी को कुछ और ही मंजूर था  एक बार उनके गांव में भयंकर बाढ़ आई और जिससे  आसपास के क्षेत्रों में बहुत ही भयानक तबाही हुई।  इतनी भयंकर बाढ़ आई थी  किसी का भी कुछ नहीं बचा। घोषणा कर दी गई कि सभी लोग  यहां से  दूसरे क्षेत्र में चले जाएं  जब तक हालात नहीं सुधरते। जैसे तैसे करके उनका परिवार तो बच गया  मगर अब उनके पास खाने के लिए अनाज का एक भी दाना नहीं  बचा था । उनका सब कुछ बाढ़ में नष्ट हो गया था।

लाखन के पिता के पास ले देकर एक  रेडी ही बची थी।   उन्होंने    फिर भी हौसला नहीं हारा एक दूसरे को तसल्ली दी। सारे परिवार को समझाया।  होनी को कौन टाल सकता है? हमें इस मुसीबत की घड़ी में एक दूसरे का साथ देना चाहिए। शुक्र है कि हमारा परिवार बच गया इससे ज्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए। हमारी  बुढापे की लाठी तो हमारे साथ है। खुशी मनाओ कि हमारे बेटे को कुछ नहीं हुआ  नहीं तो अनर्थ हो जाता। लाखन के पिता कहते कि मैं रेढी चला कर कुछ कमा कर ले ले आया करूंगा पहले हालात तो ठीक हो जाएं। इस बार  बाढ ने चारों ओर तबाही ही तबाही ला दी थी। बहुत से लोग बाढ़ की चपेट में आ गए थे। किसी का कुछ भी नहीं बचा था। जिस किसी के पास जो कुछ बचा था वह बहुत ही कम था। कुछ दिनों के लिए  उन्हें किसी पास के क्षेत्र में उन्हें भेज दिया गया था कर्ण का परिवार भी बच गया था लेकिन उसके मां-बाप बहुत ही दुःखी थे अब क्या करें?। वह रो-रोकर एक दूसरे को अपना हालात बयान कर रहे थे। लाखन नें अपने दोस्त कर्ण को गले से लगा लिया और कहा कि दोस्त हम तो जिंदा है हम अपने मां-बाप को संभालेंगे हम एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे हम अपने मां-बाप को दुख नहीं देंगे। थोड़े दिनों बाद स्थिति कुछ सुधरी।

लोंगो के  रहने के लिए तंबू गाड़ दिए गए थे। लोग उसमें रहने के लिए चले गए थे। लखन के माता पिता तो रेडी चला कर अपना पेट भर रहे थे मगर कर्ण के माता पिता बहुत ही दुखी नजर आ रहे थे। उन्होंने तो कभी भी मेहनत-मजदूरी नहीं की थी। लाखन अपने पिता से बोला कि पिताजी हम हमें इनकी मदद भी करनी चाहिए। उनका हौंसला बढ़ाना चाहिए। जो कुछ लाते उसमें से वह कर्ण के माता पिता को भी दे देते। कर्ण के माता पिता को भी महसूस हुआ कि हमने इस बच्चे के साथ बहुत ही अन्याय किया। हमने इस को अपने घर में नहीं आने दिया। हम अपने बड़ा होने पर मान किया करते थे। इस बच्चे ने सिखा दिया कि इस दुनिया में कोई भी छोटा और बड़ा नहीं है दुनिया में सभी एक जैसे हैं। वह धीरे-धीरे वह भी मेहनत करने लग गए थे।

एक दिन कर्ण और लाखन ने सोचा कि अब हम भी कमा कर लाया करेंगे जिससे हमारे घर का खर्चा भी निकल सकेगा। बाढ़ आ जाने के कारण चारों ओर चोरों का आतंक छाया हुआ है। चोर चुपके से आकर लोगों का  सामान तंबुओं में से निकाल कर ले जाते थे। जिससे आसपास के लोग बड़े दुःखी थे। कुछेक लोग तो ताकतवर थे परंतु कुछ एक लोग ऐसे थे जो कि उन चोरों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। वह काफी लाचार थे जितना कमाते थे उतना ही चोर उनका सामान लूटकर ले जाते थे। फरियाद करें तो किसके पास।

एक दिन लाखन ने कर्ण को कहा कि हमें ही कुछ करना होगा वर्ना गांव के लोग यूं ही लड़ लड़ कर मर जाएंगे। उन दोनों ने एक योजना बनाई अबकी बार जब लुटेरे चोरी करने के लिए  जब तंम्बुओं में घुसेंगे तो  हम उन पर कड़ी नजर रखेंगे। उनको उन्हीं की ही भाषा में जवाब देना होगा। एक दिन जब लुटेरे उस तंबू में चोरी करने के लिए आए लाखन ने उन्हें आते हुए देख लिया। लाखन नें  सिपाही की वेशभूषा पहनी हुई थी। उसने लुटेरों को कहा कि तुम यहां पर क्या लेने आए हो? मैं एक सिपाही हूं अगर मैं तुम्हारी शिकायत  पुलिस वालों से कर दूं तो तुम तो पकड़े जाओगे। आज मैंने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया है। अभी जाकर मैं सब कुछ सच-सच पुलिस इंस्पेक्टर को बताता हूं। पुलिस इंस्पेक्टर मेरा दोस्त है। लुटेरे बोले तुम्हारे जैसे झूठ बोलने वाले हमने  बहुत देखें हैं। तुम झूठ भी बड़ी होशियारी से बोल लेते हो। पहले  तुम हमें अपने सिपाही पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाओ   तब हम जानेंगे कि तुम ठीक कह रहे हो या गलत। वह बोला तो ठीक है। कल तुम्हें मैं दूर से उन से मिलवा दूंगा और तुम्हें सजा भी दिलवा दूंगा।

लुटेरे डर गए बोले हम चोरी नहीं करेंगे। परंतु तुम हमें कल पहले पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाना। हम दूर से देखेंगे। यह कहकर लुटेरे वापस चले गए।

दूसरे दिन लाखन ने अपने दोस्त कर्ण को कहा कि तुम पुलिस इंस्पेक्टर बन कर आ जाना औरतुम्हें मैं इशारा करूंगा तुम समझ जाना कि मेरे आस-पास लुटेरे हैं। तुम उनके पास आकर कहना तुम कहां से आए हो? मैंने पहले तुम्हें यहां कभी नहीं देखा। मैं उन्हें बचाने की कोशिश करूंगा तब तुम मेरे कहने पर उन्हें छोड़ देना। हम बाद में उन गुंडों को अवश्य ही पकड़ लेंगे और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देंगे। दूसरे दिन लाखन उन लुटेरों के पास आकर बोला यह पुलिस इंस्पेक्टर तो बहुत ही सख्त है।  तुम  अगर उनके पल्ले पड़ गए  वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं। तुमने क्या-क्या मार चोरी किया है? तुम उसे मेरे घर में छुपा दो। हो सकता है वह तुम्हारे घर में तलाशी ले। वह लुटेरे बोले यह कभी नहीं हो सकता। तुम झूठ कहते हो। लाखन बोला आज यहां पर  पुलिस इंस्पेक्टर आने ही वाला है। आज खुद ही देखते हैं। पुलिस इंस्पेक्टर जैसे ही आया लाखन ने उसे इशारा कर दिया था। लाखन उन उन गुंडों के साथ ही था।  लाखन नें पुलिस इन्सपैक्टर से हाथ मिलाया।

लाखन  ने उन लुटेरों को पुलिस इंस्पेक्टर के साथ  मिलाया।पुलिस इन्स्पैेक्टर बोला यह व्यक्ति कहां से आए हैं? यह तो नए लगते हैं। तुम कहां रहते हो? जल्दी से हमें बताओ यहां पर कुछ लुटेरों का बोलबाला हो गया है इसलिए हमें चारों तरफ तलाशी लेनी पड़ेगी। तुम जल्दी से अपने घर का पता बताओ। लुटेरे डर के मारे कांपनें लगे। वह बोले हमारा घर यहां से काफी दूर है। कल हम तुम्हें अपने घर ले जाएंगे। यह हमारे घर का पता है। उन्होंने एक कॉपी पर  अपने घर का पता नोट कर दिया।

पुलिस इन्सपैक्टर बोला आज तो तुम्हें  अपनें दोस्त के कहनें पर छोड़ दिया। लाखन बोला यह लुटेरे नहीं है। पुलिस इन्सपैक्टर  बोला  तुम्हारे कहने पर मैं इन्हें छोड़ रहा हूं। मगर कल मैं इनके घर अवश्य आऊंगा।

लाखन को तो सब पहले से ही मालूम था कि लुटेरों ने चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा हुआ था। लाखन इन लुटेरों से बोला मुझे पता है तुम ने इन लोगों का चोरी किया हुआ माल अपने पास रखा है। तुम उस सामान को मेरे घर पर रख दो। तुम्हारा माल भी सुरक्षित रहेगा और तुम भी पकड़े नहीं जाओगे। लुटेरों को उसकी बात पसंद आ गई। लुटेरों ने सारा का सारा लूटा हुआ माल लाखन के घर पर रख दिया।

वादे के मुताबिक पुलिस इंस्पेक्टर दूसरे दिन लुटेरों से मिलने गया। वहां पर कुछ भी उसे हासिल नहीं हुआ। लाखन ने उसे पहले ही बता दिया था कि  उसनें चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा है।

पुलिस इंस्पेक्टर लाखन  से बोला कहीं तुम भी तो इसके साथ   नहीं मिले हुए हो। तुम्हारे घर पर भी तलाशी लेनी पड़ेगी। चलो, चल कर देखते हैं। तुम मेरे दोस्त हो तो क्या हुआ? इंस्पेक्टर का फर्ज होता है कि चोरी करने वाले का पर्दाफाश करें।  पुलिस इंस्पेक्टर कर्ण लाखन के घर पर आते हैं। वहां पर छानबीन करते हैं। लुटेरे भी उसके साथ उसके घर पर आते हैं।

अचानक कर्ण की नजर उन गठरियों पर पड़ती है। पुलिस इंस्पेक्टर कहते हैं कि इन गठरियों में क्या है? खोलो खोल कर बताओ। उन गठरीओं में सभी लोगों का लूटा हुआ माल था पुलिस इंस्पेक्टर लाखन से बोले अब तुम्हें मेरे हाथ से कोई नहीं बचा सकता। तुमने चोरी की है।  पुलिस इन्सपैक्टर  लाखन के घर पर छापा डाल कर चोरी किया माल बरामद करतें हैं। । लाखन कहता है कि मैंने चोरी नहीं की। यह मेरे साथ लुटेरे हैं। यह माल इन्हीं का लूटा हुआ माल है। उन्होंने चोरी करके मेरे घर पर यह माल रख दिया। लुटेरे कहने लगे यह झूठ कहता है। यह हमारा माल नहीं है। यह तो इसी ने चोरी किया होगा। लुटेरे वहां से भाग गए। लुटेरे जैसे ही भाग रहे थे कर्ण और लखन ने दोनों ने असली पुलिस इंस्पेक्टर को फोन कर दिया था। हमारे क्षेत्र में कुछ लुटेरों ने आतंक मचाया हुआ था। हमने उन्हें पकड़ लिया है। पुलिस इंस्पेक्टर और सिपाही बनकर उन लुटेरों का सफाया किया और उन्हें पकड़ लिया है। आप जल्दी से आकर उन लुटेरों को पकड़ लीजिए। वह अभी ज्यादा दूर नहीं गए हैं। पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें  बता दिया था कि यहां पर इन चोरों की गाड़ी खड़ी है। पुलिस स्पेक्टर ने समय पर पहुंचकर उन लुटेरों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। कर्ण और लाखन के इस प्रकार सेवाभाव को देखकर कहने लगे तुम अवश्य ही सिपाही और पुलिस इंस्पेक्टर बनने लायक हो। आज से तुम्हारी पढ़ाई का और सारा खर्चा हम करेंगे। तुम दोनों ही अपने मकसद में जरूर कामयाब होंगे। लोंगों को उनका चोरी किया गया माल वापस मिल गया था सब लोग उनकी प्रशंसा करना नही थकते थे। बिहार के एक छोटे से गांव में  जुम्मन एक रेडी चालक के रूप में काम करता था। वह मेहनत से जो कुछ भी कमा कर लाता उससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था। उसने अपने बेटे लाखन को भी स्कूल में डाल दिया था। लाखन बहुत ही समझदार बच्चा था।

जब वह किसी भी  सिपाही को आते हुए देखता था तो उसका मन भी करता था कि उसके पास भी सिपाही की जैसी वेशभूसा होती।  वह भी सिपाही बनना चाहता था। अपने पापा को कहता था मैं बड़ा होकर सिपाही बनूंगा। उसके पापा भी खुश होकर उसे कहते थे ठीक है बेटा इसके लिए खूब मेहनत लगाकर पढ़ना चाहिए। उसकी मां उसे समझाती कि बेटा सिपाही बनने के लिए खूब मेहनत करनी पड़ती है। उन जैसे अच्छे अच्छे काम करने पड़ते हैं, इसके लिए पढ़ना बहुत ही जरूरी होता है। वह अपनी पढ़ाई खूब मन लगाकर करता। उसके माता-पिता ने उसे घर के समीप ही एक गवर्नमेंट स्कूल में दाखिल करवा दिया था। वह आठवीं कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में इसका एक दोस्त था। उसका नाम था कर्ण। उसको अपने मन की सारी बातें बता दिया करता था। वह दोनों दोस्त लम्बे चौड़े थे। उन दोस्तों नें एक दूसरे से वायदा किया कि हम  जरुरत पड़ने पर  एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे। हम दोनों आज एक दूसरे से वायदा करते हैं। हम अपनें परिवार वालों को अपनी दोस्ती के बीच आने नहीं देगें।

कर्ण के माता पिता भी कुछ दूरी पर ही रहते थे। वह एक मध्यम परिवार का बच्चा था। उसके पास सब कुछ सुविधाएं थी जो कुछ एक इंसान के लिए चाहिए। उसके पिता एक फैक्ट्री में काम करते थे और माता भी प्राइवेट ऑफिस में कर्मचारी थी। लाखन उससे हर रोज मिलने आता था परंतु वह उसके घर नहीं जाता था। वह बाहर ही उसे बुलाकर उसके साथ काफी दूर तक घूमने निकल जाता था।  वहां पर दोनों मिल जुलकर एक दूसरे से सारी बातें कहते थे। दोनों की दोस्ती बहुत ही मजबूत थी। कर्ण अपने दोस्त को कहता था कि मैं बड़ा होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनना चाहता हूं। मेरे मां-बाप मुझे कहते हैं कि ठीक है जो तुम करना चाहते हो वह अवश्य करो। इसी तरह दिन खुशी खुशी गुजर रहे थे। कर्ण के माता पिता उसे कहते थे कि बेटा दोस्ती तो अपने जैसे इंसानों के साथ ही करनी चाहिए। कर्ण इस मामले में बिल्कुल अलग था। वह कहता मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप की सोच मुझ से मेल नहीं खाती।

तुमनें एक गरीब रेडी चालक के बेटे को अपना दोस्त बनाया है। उस से किनारा कर लो।  कर्ण कहता कि नहीं वही तो मेरा सबसे सच्चा दोस्त है। आप अगर उसे अपने घर नहीं बुलाना चाहते तो ना सही मैं उससे बाहर ही मिल लिया करूंगा लेकिन मैं अपने दोस्त के साथ किया हुआ वादा कभी नहीं तोड़ूंगा।

पुलिस इंस्पेक्टर भी तो देश की सेवा करता है। उसका कर्तव्य होता है किसी गुनाह करने वाले व्यक्ति को सजा देना। मेरा दोस्त भी बहुत ही होशियार है। वह भी एक सिपाही बनना चाहता है। कर्ण के माता-पिता उसे समझाते मगर वह कभी भी नहीं मानता था। वह। कहता था कि मैं अपने दोस्त को मिलने जरूर जाऊंगा इसके लिए वह हर घड़ी तैयार रहता था। चाहे बारिश हो या गर्मी, चाहे आंधी हो या तूफान दोनों दोस्त एक दूसरे के साथ इकट्ठे मिलते और काफी देर तक गप्पे हांका करते।

लाखन घर में अकेला था। कभी कभी वह घर में बिना बताए चीजें उठा लेता था। उसकी मां को इस बात का आभास उस वक्त हुआ जब वह एक दिन अपनें दोस्त का पैन उठा कर ले आया। उसकी मां बोली हमें किसी की भी कोई वस्तु बगैर उसकी इजाजत के कभी नहीं उठानी चाहिए। तुम नें उस से पैन पूछ के लिया था वह बोला नहीं उसकी जेब से निकाल लिया। उसकी जेब में दो पैन थे। मुझे आज मैडम नें स्कूल में  पैन न लाने के लिए सारा दिन खड़ा रखा। शाम को घर आते वक्त मैं चुपके से उसकी जेब से वह उड़ा लिया। लाखन की  मां बोली बेटा एक तरफ तो तुम सिपाही बनने की बात करते हो। दूसरी तरफ चोरी करते हो। सिपाही का कर्तव्य भी देश की रक्षा करना होता है। आज से तुम यह बात गांठ में बांध लो  कभी किसी की चोरी मत करो। तभी तुम एक अच्छे सिपाही बन सकते हो।

वह बोला मां मेरा  स्कूल में एक दोस्त और भी है उस नें मुझे यह सब सिखाया। कई बार मैंनें पापा की जेब से भी दस दस के नोट कितनी बार निकाले हैं। उन्हें पता ही नहीं चला। उसकी मां बोली तुम को तो लोग सिपाही नहीं चोर पुकारा करेंगे। वह बोला मां मैं अब समझ गया हूं मैं अब कभी भी चोरी नहीं करुंगा।  उसकी मां बोली तुम उसका पैन लौटा कर उस से माफी मांग लेना।

स्कूल में आज बहुत चहल पहल थी। सारे बच्चे बालदिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए थे। मैडम ने कहा जो बच्चा  कुछ भी बोलना चाहेगा आज वह कुछ भी बोल  सकता है मगर वह जो बोले यह विचार उसके अपनें  होनें चाहिए। जो बच्चा अच्छा बोलेगा उसे हम अपनी तरफ से कुछ न कुछ उपहार में अवश्य देंगें। लाखन के दिमाग में अपनी मां  के शब्द हथौड़े के समान गूंज रहे थे। वह एक सिपाही नहीं चोर बनेगा। वह कभी भी गलत काम नहीं करेगा। आज मैडम को भी बता देगा कि उसने राहुल की जेब से कल पैन ले कर अपनी पैन्ट की जेब में भर लिया था। उसके  दोस्त को तो मालूम भी नहीं होगा कि उसका पैन मैंनें चुराया था। आज वह अपने किए पर शर्मिन्दा है।

स्कूल में बाल सभा के लिए जब सब बच्चे एकत्रित हुए लाखन उठ कर खड़ा हो कर बोला आज वह कुछ विचार प्रस्तुत करना चाहता है आज से पहले उसने इस बात की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया था। सारे अध्यापक उसे ही देख रहे थे वह कभी भी बोलने के लिए कभी खड़ा नहीं हुआ था। वह बोला मेरे प्यारे सहपाठियों और मेरे गुरुजनों आप को मेरा हार्दिक अभिनन्दन। आप के सामने इस तरह आने के लिए क्षमा चाहता हूं। आज वह खुल कर अपनें विचार आप के सामने रखेगा।

लाखन बोला मेरे पिता रेडी चला चला कर हमारा पेट भरते हैं। मेरी मां मेरी एक सच्ची गुरु ही नहीं मेरी एक हमदर्द भी है। वह उसे हर कदम कदम पर अच्छी अच्छी सलाह दिया करती है। वह हर वक्त अपनी मां को कहता है कि मैं बड़ा हो कर एक सच्चा सिपाही बनना चाहता हूं। उसकी मां नें हमेशा सिखाया एक सच्चा सिपाही बनने के लिए एक कर्तव्य निष्ठ व्यक्ति बनना जरुरी होता है। ईमानदारी से अपना काम करना दृढ संकल्प और प्रतिभाशाली जैसे गुण होने चाहिए तभी तुम अपनें मकसद में सफल हो जाओगे। वह तो आज पूरी तरह से असफल हो गया। वह तो चोरी करनें लगा था। कल उसने अपनें दोस्त की जेब से चुपके से पैन निकाल लिया। उसके दोस्त राहुल को पता ही नहीं चला। यह चोरी करनें की आदत उसे उसके स्कूल में पढने वाले सहपाठी से ही पड़ी। वह आज सबके सामने उस विद्यार्थी का नाम नहीं लेगा। वह भी जल्दी ही चोरी करनें की आदत को छोड़ देगा। उसकी गारन्टी वह खुद लेता है। कृपया उसकी एक भूल को आप माफ कर देना नही तो वह अपनें आप को कभी भी ऊंचा नहीं उठा सकता। उसने सभी अभिभावकों के सामने अपनी भूल का प्रायश्चित किया। राहुल को सारा किस्सा सुनाया कल जब उसके पास कक्षा में पैन नहीं था तो उसे बैन्च पर खड़ा होनें की सजा मिली थी। शाम को जाते वक्त राहुल की जेब से पैन निकाल कर अपनें बस्ते में डाल दिया। उस पैन को पेन्ट कर दिया ताकि वह अपनें पैन को पहचान न पाए।

घर पहुंच कर जब काफी देर तक उस पैन को ले कर पेन्ट कर रहा था। मेरी मां कमरे के अन्दर  आ कर बोली बहुत रात हो चुकी है। तुम इस वक्त क्या कर रहे हो? मां को देखते ही उसने वह पैन बिस्तर के नीचे छिपा दिया ताकि मां की नजर उस पर न पड़े। वह बोली बेटा दाल में तो कुछ काला जरुर है। सच्च सच्च बताओ। सिपाही बनने के लिए हर बात साफ साफ स्पष्ट होनी चाहिए। वह डर रहा था। मां को क्या बताए। वह। आईस्ता से बोला कुछ भी तो नहीं मुझे नींद ही नहीं आ रही थी। उसने जानबूझ कर अपनी रजाई नीचे  तक फैला दी थी जिससे उसकी मां को जरा भी शक न हो। वह बोली रजाई को तो ठीक कर लेते। जाते जाते उसकी मां नें रजाई ऊपर की ओर की उसकी मां की नजर ब्रश पर पड़ी। इस पेंन्ट से तुम क्या कर रहे थे? और इस पैन में यह पेन्ट क्यों किया? तुमने यह पेन्ट का डिब्बा अपनें पापा से लिया। वह बोला नहीं मां अपनें आप उठा कर लाया। उसकी मां बोली बेटा यह तो चोरी हुई। मैनें तुम्हे बताया था कि किसी की भी कोई वस्तु नहीं उठाते। अपनें पापा से पुछा कर ले लेते तो वे भी कभी तुम्हे मना नहीं करते। लाखन रो कर बोला मां उसने आज बहुत ही गलत काम किया है। उसने सारी बात अपनी मां को बता दी। उसकी मां बोली कल तुम उस बच्चे का पैन वापिस कर के आओगे तो मैं समझूंगा कि तुम एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है। तुम सुधर सकते हो।अध्यापक उस बच्चे की बात से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे माफ भी कर दिया और उसकी प्रशंसा भी की और कहा तुम अवश्य ही एक दिन बहुत बड़े सिपाही बनोगे। इन्सान तो गलतियों का पुतला। है। जो गिर कर संभल जाए उसकी हमेंशा जीत होती है। राहुल नें भी उसे माफ कर दिया। अध्यापकों नें उसे पैन का डिब्बा ईनाम में दिया। उस दिन के बाद उसने कभी भी चोरी नहीं की।

होनी को कुछ और ही मंजूर था  एक बार उनके गांव में भयंकर बाढ़ आई और जिससे  आसपास के क्षेत्रों में बहुत ही भयानक तबाही हुई।  इतनी भयंकर बाढ़ आई थी  किसी का भी कुछ नहीं बचा। घोषणा कर दी गई कि सभी लोग  यहां से  दूसरे क्षेत्र में चले जाएं  जब तक हालात नहीं सुधरते। जैसे तैसे करके उनका परिवार तो बच गया  मगर अब उनके पास खाने के लिए अनाज का एक भी दाना नहीं  बचा था । उनका सब कुछ बाढ़ में नष्ट हो गया था।

लाखन के पिता के पास ले देकर एक  रेडी ही बची थी।   उन्होंने    फिर भी हौसला नहीं हारा एक दूसरे को तसल्ली दी। सारे परिवार को समझाया।  होनी को कौन टाल सकता है? हमें इस मुसीबत की घड़ी में एक दूसरे का साथ देना चाहिए। शुक्र है कि हमारा परिवार बच गया इससे ज्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए। हमारी  बुढापे की लाठी तो हमारे साथ है। खुशी मनाओ कि हमारे बेटे को कुछ नहीं हुआ  नहीं तो अनर्थ हो जाता। लाखन के पिता कहते कि मैं रेढी चला कर कुछ कमा कर ले ले आया करूंगा पहले हालात तो ठीक हो जाएं। इस बार  बाढ ने चारों ओर तबाही ही तबाही ला दी थी। बहुत से लोग बाढ़ की चपेट में आ गए थे। किसी का कुछ भी नहीं बचा था। जिस किसी के पास जो कुछ बचा था वह बहुत ही कम था। कुछ दिनों के लिए  उन्हें किसी पास के क्षेत्र में उन्हें भेज दिया गया था कर्ण का परिवार भी बच गया था लेकिन उसके मां-बाप बहुत ही दुःखी थे अब क्या करें?। वह रो-रोकर एक दूसरे को अपना हालात बयान कर रहे थे। लाखन नें अपने दोस्त कर्ण को गले से लगा लिया और कहा कि दोस्त हम तो जिंदा है हम अपने मां-बाप को संभालेंगे हम एक दूसरे की मदद अवश्य करेंगे हम अपने मां-बाप को दुख नहीं देंगे। थोड़े दिनों बाद स्थिति कुछ सुधरी।

लोंगो के  रहने के लिए तंबू गाड़ दिए गए थे। लोग उसमें रहने के लिए चले गए थे। लखन के माता पिता तो रेडी चला कर अपना पेट भर रहे थे मगर कर्ण के माता पिता बहुत ही दुखी नजर आ रहे थे। उन्होंने तो कभी भी मेहनत-मजदूरी नहीं की थी। लाखन अपने पिता से बोला कि पिताजी हम हमें इनकी मदद भी करनी चाहिए। उनका हौंसला बढ़ाना चाहिए। जो कुछ लाते उसमें से वह कर्ण के माता पिता को भी दे देते। कर्ण के माता पिता को भी महसूस हुआ कि हमने इस बच्चे के साथ बहुत ही अन्याय किया। हमने इस को अपने घर में नहीं आने दिया। हम अपने बड़ा होने पर मान किया करते थे। इस बच्चे ने सिखा दिया कि इस दुनिया में कोई भी छोटा और बड़ा नहीं है दुनिया में सभी एक जैसे हैं। वह धीरे-धीरे वह भी मेहनत करने लग गए थे।

एक दिन कर्ण और लाखन ने सोचा कि अब हम भी कमा कर लाया करेंगे जिससे हमारे घर का खर्चा भी निकल सकेगा। बाढ़ आ जाने के कारण चारों ओर चोरों का आतंक छाया हुआ है। चोर चुपके से आकर लोगों का  सामान तंबुओं में से निकाल कर ले जाते थे। जिससे आसपास के लोग बड़े दुःखी थे। कुछेक लोग तो ताकतवर थे परंतु कुछ एक लोग ऐसे थे जो कि उन चोरों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। वह काफी लाचार थे जितना कमाते थे उतना ही चोर उनका सामान लूटकर ले जाते थे। फरियाद करें तो किसके पास।

एक दिन लाखन ने कर्ण को कहा कि हमें ही कुछ करना होगा वर्ना गांव के लोग यूं ही लड़ लड़ कर मर जाएंगे। उन दोनों ने एक योजना बनाई अबकी बार जब लुटेरे चोरी करने के लिए  जब तंम्बुओं में घुसेंगे तो  हम उन पर कड़ी नजर रखेंगे। उनको उन्हीं की ही भाषा में जवाब देना होगा। एक दिन जब लुटेरे उस तंबू में चोरी करने के लिए आए लाखन ने उन्हें आते हुए देख लिया। लाखन नें  सिपाही की वेशभूषा पहनी हुई थी। उसने लुटेरों को कहा कि तुम यहां पर क्या लेने आए हो? मैं एक सिपाही हूं अगर मैं तुम्हारी शिकायत  पुलिस वालों से कर दूं तो तुम तो पकड़े जाओगे। आज मैंने तुम्हें रंगे हाथों पकड़ लिया है। अभी जाकर मैं सब कुछ सच-सच पुलिस इंस्पेक्टर को बताता हूं। पुलिस इंस्पेक्टर मेरा दोस्त है। लुटेरे बोले तुम्हारे जैसे झूठ बोलने वाले हमने  बहुत देखें हैं। तुम झूठ भी बड़ी होशियारी से बोल लेते हो। पहले  तुम हमें अपने सिपाही पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाओ   तब हम जानेंगे कि तुम ठीक कह रहे हो या गलत। वह बोला तो ठीक है। कल तुम्हें मैं दूर से उन से मिलवा दूंगा और तुम्हें सजा भी दिलवा दूंगा।

लुटेरे डर गए बोले हम चोरी नहीं करेंगे। परंतु तुम हमें कल पहले पुलिस इंस्पेक्टर से मिलवाना। हम दूर से देखेंगे। यह कहकर लुटेरे वापस चले गए।

दूसरे दिन लाखन ने अपने दोस्त कर्ण को कहा कि तुम पुलिस इंस्पेक्टर बन कर आ जाना औरतुम्हें मैं इशारा करूंगा तुम समझ जाना कि मेरे आस-पास लुटेरे हैं। तुम उनके पास आकर कहना तुम कहां से आए हो? मैंने पहले तुम्हें यहां कभी नहीं देखा। मैं उन्हें बचाने की कोशिश करूंगा तब तुम मेरे कहने पर उन्हें छोड़ देना। हम बाद में उन गुंडों को अवश्य ही पकड़ लेंगे और उन्हें कड़ी से कड़ी सजा देंगे। दूसरे दिन लाखन उन लुटेरों के पास आकर बोला यह पुलिस इंस्पेक्टर तो बहुत ही सख्त है।  तुम  अगर उनके पल्ले पड़ गए  वह तुम्हें छोड़ेगा नहीं। तुमने क्या-क्या मार चोरी किया है? तुम उसे मेरे घर में छुपा दो। हो सकता है वह तुम्हारे घर में तलाशी ले। वह लुटेरे बोले यह कभी नहीं हो सकता। तुम झूठ कहते हो। लाखन बोला आज यहां पर  पुलिस इंस्पेक्टर आने ही वाला है। आज खुद ही देखते हैं। पुलिस इंस्पेक्टर जैसे ही आया लाखन ने उसे इशारा कर दिया था। लाखन उन उन गुंडों के साथ ही था।  लाखन नें पुलिस इन्सपैक्टर से हाथ मिलाया।

लाखन  ने उन लुटेरों को पुलिस इंस्पेक्टर के साथ  मिलाया।पुलिस इन्स्पैेक्टर बोला यह व्यक्ति कहां से आए हैं? यह तो नए लगते हैं। तुम कहां रहते हो? जल्दी से हमें बताओ यहां पर कुछ लुटेरों का बोलबाला हो गया है इसलिए हमें चारों तरफ तलाशी लेनी पड़ेगी। तुम जल्दी से अपने घर का पता बताओ। लुटेरे डर के मारे कांपनें लगे। वह बोले हमारा घर यहां से काफी दूर है। कल हम तुम्हें अपने घर ले जाएंगे। यह हमारे घर का पता है। उन्होंने एक कॉपी पर  अपने घर का पता नोट कर दिया।

पुलिस इन्सपैक्टर बोला आज तो तुम्हें  अपनें दोस्त के कहनें पर छोड़ दिया। लाखन बोला यह लुटेरे नहीं है। पुलिस इन्सपैक्टर  बोला  तुम्हारे कहने पर मैं इन्हें छोड़ रहा हूं। मगर कल मैं इनके घर अवश्य आऊंगा।

लाखन को तो सब पहले से ही मालूम था कि लुटेरों ने चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा हुआ था। लाखन इन लुटेरों से बोला मुझे पता है तुम ने इन लोगों का चोरी किया हुआ माल अपने पास रखा है। तुम उस सामान को मेरे घर पर रख दो। तुम्हारा माल भी सुरक्षित रहेगा और तुम भी पकड़े नहीं जाओगे। लुटेरों को उसकी बात पसंद आ गई। लुटेरों ने सारा का सारा लूटा हुआ माल लाखन के घर पर रख दिया।

वादे के मुताबिक पुलिस इंस्पेक्टर दूसरे दिन लुटेरों से मिलने गया। वहां पर कुछ भी उसे हासिल नहीं हुआ। लाखन ने उसे पहले ही बता दिया था कि  उसनें चोरी किया हुआ माल अपने घर में रखा है।

पुलिस इंस्पेक्टर लाखन  से बोला कहीं तुम भी तो इसके साथ   नहीं मिले हुए हो। तुम्हारे घर पर भी तलाशी लेनी पड़ेगी। चलो, चल कर देखते हैं। तुम मेरे दोस्त हो तो क्या हुआ? इंस्पेक्टर का फर्ज होता है कि चोरी करने वाले का पर्दाफाश करें।  पुलिस इंस्पेक्टर कर्ण लाखन के घर पर आते हैं। वहां पर छानबीन करते हैं। लुटेरे भी उसके साथ उसके घर पर आते हैं।

अचानक कर्ण की नजर उन गठरियों पर पड़ती है। पुलिस इंस्पेक्टर कहते हैं कि इन गठरियों में क्या है? खोलो खोल कर बताओ। उन गठरीओं में सभी लोगों का लूटा हुआ माल था पुलिस इंस्पेक्टर लाखन से बोले अब तुम्हें मेरे हाथ से कोई नहीं बचा सकता। तुमने चोरी की है।  पुलिस इन्सपैक्टर  लाखन के घर पर छापा डाल कर चोरी किया माल बरामद करतें हैं। । लाखन कहता है कि मैंने चोरी नहीं की। यह मेरे साथ लुटेरे हैं। यह माल इन्हीं का लूटा हुआ माल है। उन्होंने चोरी करके मेरे घर पर यह माल रख दिया। लुटेरे कहने लगे यह झूठ कहता है। यह हमारा माल नहीं है। यह तो इसी ने चोरी किया होगा। लुटेरे वहां से भाग गए। लुटेरे जैसे ही भाग रहे थे कर्ण और लखन ने दोनों ने असली पुलिस इंस्पेक्टर को फोन कर दिया था। हमारे क्षेत्र में कुछ लुटेरों ने आतंक मचाया हुआ था। हमने उन्हें पकड़ लिया है। पुलिस इंस्पेक्टर और सिपाही बनकर उन लुटेरों का सफाया किया और उन्हें पकड़ लिया है। आप जल्दी से आकर उन लुटेरों को पकड़ लीजिए। वह अभी ज्यादा दूर नहीं गए हैं। पुलिस इंस्पेक्टर ने उन्हें  बता दिया था कि यहां पर इन चोरों की गाड़ी खड़ी है। पुलिस स्पेक्टर ने समय पर पहुंचकर उन लुटेरों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। कर्ण और लाखन के इस प्रकार सेवाभाव को देखकर कहने लगे तुम अवश्य ही सिपाही और पुलिस इंस्पेक्टर बनने लायक हो। आज से तुम्हारी पढ़ाई का और सारा खर्चा हम करेंगे। तुम दोनों ही अपने मकसद में जरूर कामयाब होंगे। लोंगों को उनका चोरी किया गया माल वापस मिल गया था सब लोग उनकी प्रशंसा करना नही थकते थे।

एक दिन कर्ण बहुत ही बड़ा पुलिस इंस्पेक्टर बना और लाखन भी एक बहुत बड़ा सिपाही। उन दोनों ने अपने मां बाप का नाम रोशन किया। हालात ठीक हो चुके थे। सब के चेहरों पर खुशी की लहर थी।

एक दिन कर्ण बहुत ही बड़ा पुलिस इंस्पेक्टर बना और लाखन भी एक बहुत बड़ा सिपाही। उन दोनों ने अपने मां बाप का नाम रोशन किया। हालात ठीक हो चुके थे। सब के चेहरों पर खुशी की लहर थी।  

मैं कहानी का गुल्लक की लेखिका  मीना शर्मा ने अपना ब्लौग बना लिया है।  https//कहानी का गुल्लक. इन हिन्दी short stories and poems. अब मेरे ब्लौग में जा कर कहानियों का भरपूर आन्नद लिजीए। धन्यवाद।

व्याध और हंसों का झुन्ड

पानी की तलाश में एक हंसो का झुन्ड   सरोवर मे  था आया।

 सरोवर के पास व्याध को देख कर था घबराया।।

 हंसिनी के   बच्चे का हाथ था छूट गया।

इस आपाधापी में वह बच्चा अपनी मां से बिछुड़ गया।।

अपनी मां से बिछुड़ने  पर वह पंहुचा एक घने जंगल में।

वहीं पर एक व्याध भी घूम रहा था, पक्षियों को  तलाशनें उस भयंकर गर्मी में।

 उसने पक्षियों को पकड़नें के लिए जाल था फैलाया।

पक्षियों को  हडपनें की ताक में था ललचाया।

अचानक उसके जाल में एक हंस का बच्चा था आया।

हंसीनी के बच्चे को देख कर  व्याध फुला न समाया।

हंस का बच्चा इधर-उधर अपनी मां को था खोज रहा।  

उन से बचनें के लिए इधर उधर  मां को था ढूंढ रहा।।

व्याध को सामने देख कर हंस का बच्चा डर से कांप गया।

उसने जाल को छाती में कस कर था जकड़ लिया।।

हंसिनी भी पास में ही   पानी  और भोजन के लिए  थी  भाग  रही।

अपने बच्चे को  पीछे ना आते देकर  डर से  सहम गई।।

अपने बच्चे को डर कर ऊंचे स्वर से पुकारने लगी।

उसको  आवाजें दे दे कर  बुलानें लगी।

उस नन्हीं  सी जान को पकड़े जाने पर  छुटना भी नहीं आता था।

उसे तो खाने के सिवा कुछ नहीं आता था।।

हंसिनी घबराकर बोली हाय! मेरे बच्चे की रक्षा अब कौन कर पाएगा?

मेरे बच्चे को सुरक्षित लाकर मेरी गोद में  अब कौन बिठाएगा।।

हंसिनी जोर से सहायता के लिए चिल्लाने लगी।

चिल्ला – चिल्ला कर सभी जानवरों को सहायता के लिए   बुलानें लगी।।

चूहा, तोता, मैना, सब पक्षी इधर-उधर थे दौड़ रहे।

वह जंगल में  सभी थे विचरण कर रहे।।

हंसो की नजर तभी चुहिया के  झुन्ड पर पड़ी।

झुन्ड की रानी चुहियां को देखकर  वह भी रो पड़ी।।

रानी चुहिया उस की  करुणा भरी पुकार सुन कर   चीख चीख कर सभी जानवरों को बुलाने लगी।

सान्तवना दे कर उसे धीरज बंधाने लगी।।

चुहिया बोली मेरी सखी तुमको इस मुश्किल की घड़ी में   घबराना नहीं चाहिए।

एकता दिखा कर सभी को तुम्हारे बच्चे को  इस मुश्किल से बचाना चाहिए।।

मुश्किल की घड़ी में जो काम आए।

वही तो सच्चा  मित्र कहलाए।।

रानी चुहिया की बात सुनकर हंसिनी को थोड़ा धीरज  हो आया।

बड़ी मुश्किल से उसने अपने मन पर काबू पाया।।

सारे पक्षियों का झुंड  और रानी चुहिया का झुन्ड व्याध की तलाश में  था निकल पड़ा।

इधर-उधर उड़ता वह उडता व्याध के सामने  आ खड़ा हुआ।।

पक्षियों ने  चुपके से जाल को   देख लिया। उस में फंसे  डर से सहमे हुए हंस के बच्चे को देख लिया।

सारे पक्षियों नें रानी  चुहिया को इशारा किया।

ईशारे को समझते ही रानी चुहिया नें जाल को काट  दिया।।

सभी पक्षियों का झुन्ड और चुहिया खुशी  से हंसिनी के बच्चे  को सुरक्षित देख कर मुस्कुराए।

एकता की मिसाल दे कर अपने ऊपर हर्षाए।।

हंसिनी बोली आप सभी का अन्तःकरण की गहराईयों से अभिन्नदन करती हूं।

आप सभी के उपकार को शत शत बार नमन करती हूं।।

पायल

हर रोज की तरह पायल स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी ।पायल की मम्मी ने कहा बेटा नाश्ता तो कर ले ।परंतु पायल ने मम्मी की बात अनसुनी कर दी और कहा मुझ  नाश्ता नहीं करना है। पायल बहुत ही जिद्दी लड़की थी ।उसकी इस जिद के कारण मम्मी- पापा हमेशा उस से दुःखी रहतेथे । वह उसे समझाने का यत्न करते परंतु  वह अपने मम्मी पापा का कहना नहीं मानती थी वह अपनें मन में यह सोचा करते थे कि हमारी परवरिश मैं ना जाने क्या कमी रह गई कि वह लड़की हमें इतना तंग करती है। इस बात को किसी से कह भी नहीं पाते थे ।वह अंदर ही अंदर खून के घूंट पीकर रह जाते थे गर्मियों  के अवकाश के पश्चात बरसात की छुट्टियां होने वाली थी इसलिए उन्होंने सोचा कि कुछ दिन उसे गांव में उसकी दादी के पास भेज दिया जाए जिससे शायद वह सुधर जाए। पायल भी खुश हो रही थी कि इन छुट्टियों में वह अपनी दादी के पास गांव जाएगी। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मम्मी-पापा उसे खुश देखकर प्रसन्न थे। उसने अपनी मम्मी से कहा कि मम्मी जी मैं इन छुट्टियों मे अपनी दादी के पास गांव जाना चाहती हूं। उसकी मम्मी ने कहा इसके लिए पहले तुम्हें अपना सारा होमवर्क पूरा करना होगा होमवर्क का नाम सुनते ही उसने अपना बस्ता  पटका और वहां से खेलने चली गई। छुट्टियों में वह अपनी दादी के पास पहुंच गई।

वह छुट्टियों में अपनी दादी अम्मा के पास गांव पहुंच गईं।  दादी ने उसे गले से लगाया और पायल को कहा तुम तो बहुत ही अच्छी लड़की हो। आज मैं तुम्हें गांव के खेतों में ले चलती हूं वह अपनी दादी के पास खेतो में तुम तुरंत चली गई। वहां खेतो में   तरह तरह की सब्जियां गेहूं की और मक्की की फसलें लहलहा रही थी। , अमरूद पपीता अमरुद के पेड़ और चारों तरफ देख और चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी।

गांव में कच्ची कच्ची सड़कें थी। चारों तरफ लोगों ने  एक खलिहान में गोबर के उपले बना कर सुखाने के लिए चारों तरफ रखे हुए थे। सफेद रंगो की लकड़ी जिस को सेलेक्ट भी कहते हैं वह जानें के लिए रखी थी। जिस को जलाने से आग जल जाती है

पायल की दादी नें उसे बताया।

उसकी दादी ने बताया कि उन्हें  सुखा कर जलाने के काम में लाया जाता  है।

यह उपले गाय के गोबर से बनते हैं। उन्हें   थे कर गोला सा बना कर सुखाया जाता है। इन को जलाने से मक्खियां मच्छर भाग जाते हैं। गोबर को रसोई की लिपाई पुताई के लिए भी काम में लाया जाता है।

एक और हैंड पंप लगा था। दादी ने उसे बताया उसमें से पानी को निकालने के लिए हाथों से जोर लगाया जाता है। यह पानी जमीन के अन्दर से निकाला जाता है। यह साफ पानी होगा। वहां बेर के पेड़ देख कर उसके मुंह में पानी आ गया। उसकी दादी ने उसे खूब सारे  बेर तोड़कर खिलाएं। चारों तरफ खुला खुला वातावरण देखकर पायल चारों तरफ दौड़ने लगी। उसकी दादी ने एक बिल्ली पाल रखी थी। बिल्ली को गोद में लेकर वह प्यार करने लगी। वहां पर इतनी मस्त हो गई कि उसे सुध-बुध ही नहीं रही कि उसकी दादी उससे थोड़ा आगे निकल गई और वह अपनी सहेलियों के साथ बातें करने में  व्यस्त हो गई। जब उसने इधर उधर देखा और सामने अपनी दादी को वहां पर नहीं देखा और अपने आप को अकेला पाया तो वह जोर जोर से रोने लगी।

उसी समय  गांव की एक छोटी सी लड़की उसके पास आई और बोली अरे तुम रो क्यों रही हो? पायल नें कहा मुझे पता नहीं है कि मेरा घर कहां है? मेरी दादी अभी यहीं पर थी परंतु अब ना जाने वह कहां चली गई? लड़की ने उसे मुस्कुराते हुए कहा की कोई बात नहीं हम दोनों तुम्हारी दादी को ढूंढते हैं। बातों ही बातों में वह उस लड़की से इतनी घुल मिल गई कि उसे पता ही नहीं चला कि अंधेरा होने वाला था।

खेत में उस लड़की ने अपनी मम्मी को कहा कि यहां पर छोटी सी लड़की अपनी दादी को ढूंढ रही है। उस लड़की की मां ने कहा कि क्या यह  वही लडकी है जो कल शहर से आई है? उस लड़की की दादी मेरे साथ है। पायल की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। वह दौड़ते दौड़ते अपनी दादी के पास आई और दादी के गले में बाहें डाल कर बोली दादी दादी तुम मुझे वहां क्यों छोड़ आई थी उसकी दादी ने कहा बेटा गांव में कोई भी व्यक्ति घूम नहीं होता है अगर हो भी जाए तो गांव वालों से उसके घर छोड़ देते हैं अब तो शालू उसकी दोस्त बन गई थी उसके साथ खेल खेल में वह पढ़ाई भी करने लगी थी वह दादी का कहना कभी नहीं डालती थी दादी ने उसे गांव में दिखाया की गन्ने से गुड़ किस प्रकार बनाया जाता है उसने गांव में गन्ने का रस भी पिया उसकी नई दोस्त के आ जाने से उसके व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। वह खेलने के  बाद होमवर्क भी करती उसकी छुट्टियां समाप्त होने वाली थी अपनी सहेली से विदा होते हुए उसकी आंखों से झरझर खुशी के आंसू बहने लगे क्योंकि वह अपनी इतनी प्यारी सखी को छोड़कर वापस जाना नहीं चाहती थी। शहर में तो उसके साथ खेलने वाला कोई भी साथ नहीं था। उसकी मम्मी उसे कंही भी खेलने नहीं भेजती थी। घर में अकेले चुपचाप बैठी रहती थी उसने शालू से वादा किया कि सर्दियों की छुट्टियों में वह जरुर अपने गांव वापस आएगी और हम मिलजुल कर खूब मौज मस्ती कियाकरेंगे। उसके स्कूल भी खुलने वाले थे। वह अपने शहर वापिस पहुंच चुकी थी।

उसके मम्मी पापा उस में आए हुए बदलाव को देखकर प्रसन्न हो गए थे। उन्होंने एक ऐसी जगह घर ले लिया जहां बच्चों के लिए रौनक हो। नए घर में आने से वहां पर  पायल के बहुत सारे दोस्त बन गए थे। पायल की मम्मी भी समझ चुकी थी कि बच्चों के लिए खेलना भी जरुरी होता है, जैसे समय पर भोजन लेना जरुरी है वैसे ही उसी तरह बच्चे का खेलना भी जरूरी होता है। बच्चों की भावनाओ को एक बच्चे से ज्यादा कौन जान सकता है? बच्चे को खेलने के साथ उसकी मनों भावनाओं का ख्याल रखना भी जरूरी होता है। बच्चे अपनी हमउम्र दोस्त को पाकर फूला नहीं समाते।  हम अगर अपने बच्चों की मनों भावनाओं को नहीं समझेंगे तो बच्चों के कोमल मन को ठेस लग सकती है। बच्चों की मनोवृत्ति को समझकर ही सभी बच्चों में सुधार आ सकता है।

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ईमानदारी का तोहफा

बहुत समय पहले की बात है बेलापुर गांव में एक बहुत ही मेहनती और ईमानदार महिला रहती थी ।वह इतनी मेहनत करती कि उसकी गांव गांव में दूर-दूर तक  चर्चा  की जाती थी वह सुबह जल्दी उठती सुबह के कामों से निवृत होकर सुबह-सुबह ही अपने खेतों में पानी देती। उसने अपने घर के पास ही एक बड़े से खेत में सब्जियां लगाई हुई थी ।वह रोज अपने खेतों की देखभाल करती उन्हें खाद देती और  हर रोज  छ:घंटे अपने बगीचे में लगाती यही उसका हर रोज का काम था ।वह अपने खेत में कभी भी रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करती थी बल्कि अपने घर में गाय के गोबर से  और जो सब्जियां वगैरह के छिलके बचते थे, उनसे स्वयं खाद तैयार करती और वही खाद अपने बगीचे में डालती थी ।उसके बगीचे में हरी  भरी सब्जियां तैयार हो जाती थी। जब वह इन सब्जियों को बाजार में बेचती तो उसको अच्छे दाम मिलते और घर में भी अपने हाथ की उगी हुई सब्जियां खाती ।उसके पिता ने उसे बहुत जोर लगाया था कि बेटा नौकरी कर ले तू तो पढ़ी लिखी है मगर उसने   खेती को  ही अपना लक्ष्य चुना। उसने अपने पिता को कहा कि मैं स्वयं का अपना कोई कार्य करूंगी। सरकारी नौकरी मुझे नहीं करनी है ।आपने मुझे अच्छी तालीम दी है जिससे मैं हर कभी कोई भी क्षेत्र चुन सकती हूं। मैंने   खेती को ही अपना व्यवसाय निर्धारित किया है। मुझे  इसमें सफलता हासिल करनी है। मैं पहले तो छोटे तौर पर ही  खेती  कर देखना चाहती हूं कि मैं इस मकसद में कामयाब होती हूं या नहीं ।शोभना जब अपने खेतों को देखती  हरी-भरी महकती खुशबू से उसका मन सराबोर हो जाता वह आनंदित हो जाती ।वह बहुत ही व्यस्त रहने लगी थी। गांव में उसकी बहुत ही पक्की सहेलीं बन गई थी ।वह अपना दूध बेचने का कार्य कर  आनंदित हो जाती ।वह बहुत ही व्यस्त रहने लगी थी। गांव में उसकी  एक बहुत ही पक्की पहेली बन गई थी वह तो आधा दूध और आधा पानी बेचती थी। वह भी दूध बेचने का काम करती थी। वह ग्राहकों को चूना लगा देती थी ।दोनों इस प्रकार अपने काम से निवृत होकर अपना समान बेचने जाती।

शोभना सब्जियों को बेचती और श्रुति दूध बेचती। दोनों सहेलियां   अपने अपने काम से प्रसन्न थी। श्रुति को दूध बेचने में कुछ फायदा नहीं हो रहा था ।उसके ग्राहक कम होते जा रहे थे परंतु उसकी सहेली के तो हर रोज बिक्री हो रही थी। अपने सहेली की कामयाबी उस सेे देखी नहीं जा रही थी। उसके दिमाग में एक विचार आया उसने मन-ही-मन योजना बना डाली कि इसकी खेत में लगाई गई सब्जियों को तहस-नहस करना होगा। दूसरे दिन उसने शोभना के पास पहुंचकर कहा कि दोनो अपनें अपनें काम पर  चलते हैं ।उसने देखा कि उसके खेतों की कांटेदार तार कोई ले जा चुका था शोभना ने देखा जब उसकी सहेली  श्रुति वापसी में अपने घर के पास रुकी तो  शोभना ने देखा उसके खलिहान मे भी ठीक वैसी ही कांटेदार बाढ़ पड़ी थी ।उसके खलियान में कांटेदार बाढ़   देख कर शोभना सोचने लगी की मेरे खेत में तार देखने के बाद में मेरी सहेली के मन में ं यह ख्याल  आया होगा कि मैं भी कांटेदार तार लगवा दूं।  उस तार में उसने एक लाल रंग का निशान लगा दिया था ।  वह सोचने लगी यह सब काम उसकी प्यारी सहेली का ही हो एसा हो सकता है ।उस की सहेली  कुछ दिनों से उससे खफा सी रहनें लगी।उसने अपनी सहेली को कुछ नहीं कहा। उसने अपने घर में एक माली रखा हुआ था उसने उसे कहा कि तुम जाकर मेरी सहेली के घर के पास जो उद्यान है  वंहा जा कर यह देखना उस  कांटेदार तार पर लाल रंग का निशान है उस नाम को पढ कर मुझे फोन करके बताना कि क्या नाम लिखा है?माली ने कहा उस पर तो आप का नाम लिखा है। वहां से हमारी खेत की कांटेदार तार ले आना शोभना ने कहा कि  श्रूति को इसका पता नहीं चलना चाहिए। शोभना अपने घर वापिस आ चुकी थी ।पांच-छह दिन के बाद श्रुति ने आकर देखा तो शोभना नेे सारी की सारी तार वैसे ही लगा दी थी श्रुति बोली तुम्हें यह तार कहां से मिली? शोभना बोली शायद कोई जंगली जानवर ले गया था परंतु वह जल्दी में वह इसे वही भूल गया। शोभना ने अपनी सहेली को ऐसे जताया जैसे कि उसे तार के बारे में कुछ भी मालूम नही।ं शोभना अब तो सर्तक हो गई थी जब दूसरे हफ्ते वह सब्जी बेचने अपनी सहेली के साथ जा रही थी। उस दिन तो उसकी सहेली ने हद ही कर दी उसने खेत में डालने के लिए जहरीली खाद  मंगा  ली थी। वह  जब घर में खाद लेकर आई तो उसने वह खाद छुपा दी थी । श्रूति घर में आटे और गुड़ से बनाकर प्रसाद बना रही थी। तभी उसका बेटा आया और बोला  मां तुम क्या कर रही हो ?उसकी मां बोली मैं प्रसाद बना  रही थी ।मंदिर में जा कर इस प्रसाद को चढ़ाएंगे ।श्रुति ने वह प्रसाद एक थाली में  डाल दिया था उसने उस प्रसाद में जहरीली खाद मिला दी थी किसी को भी  तनिक भी यह एहसास ना हो कि इसमें जहरीली खाद है। उसने यह प्रसाद अपने थैले में डाला और जल्दी-जल्दी अपनी सहेली के घर चलने लगी। उसने अपने बेटे रोमी को भी साथ लिया और जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगी। उसने थोड़ी ही दूर कदम बढ़ाए थे कि उसने अपना थैला अपने बेटे के पास पकड़ा दिया और कहा कि बेटा आज मैं अपना पर्स  घर पर ही भूल आई हूं । तू थोड़ा आगे आगे चल ,मैं तुझे पकड़ ही लूंगी ।तू धीरे धीरे चल, वह जल्दी जल्दी जाकर पर्स लेकर वापस आ चुकी थी ।वह अपनी सहेली के घर पहुंच गई थी तभी उसका बच्चा चक्कर खाकर नीचे गिर गया ।वह बोली मेरे बच्चे को चक्कर कैसे आ गया ?उसने जैसे ही अपने बेटे के मुंह को खोला तो उसके मुंह  से झाग निकल रहा था ।उसने सोचा कि मेरे बेटे को किसी जहरीले कीड़े ने तो नहीं काट डाला । उसकी सहेली शोभना बोली तुमने कोई जहरीली दवाई इसके पास तो नहीं दी थी ।

श्रुति को तभी ख्याल आया कि वह तो शोभना के खेत में डालने के लिए  जहरीली दवाई लाई थी ।उसने तो वह प्रसाद में मिला दी थी ।मेरे बेटे ने सोचा होगा कि थोड़ा सा प्रसाद खा लेता हूं मुझे क्या पता था कि दूसरों का नुकसान करने के ख्याल से अपना नुकसान भी हो जाता है ।श्रुति चीखने लगी थी बहन मुझे क्षमा कर दे ।तुम्हारी खेतों में  उगी फसल को देखकर मुझे तुमसे ईर्ष्या होने लगी थी ।मैं तुम्हारा नुकसान करने की कोशिश कर रही थी ।मैंने पहले भी तुम्हारी कांटे वाली तार चुरा ली थी और आज यह अनर्थ करने जा रही थी कृपया मुझे माफ कर दे। जल्दी से  हम दोनों इसेअस्पताल ले कर चलतें हैं ,वर्ना मेरा बेटा मर जाएगा। शोभना ने रोमी को जल्दी से स्कूटर पर बिठाया और उसे पास ही के अस्पताल ले गए जरा सी भी देर हो जाती तो उसका बेटा मर चुका होता। किसी ना किसी तरह उसको बचा लिया गया । उन पर पुलिस केस  बन गया होता,

शोभना के अंकल उस अस्पताल में काम करते थे। उन्होंने पुलिस केस नहीं होने दिया ।रोमी अब ठीक हो चुका था। श्रुति की आंखों से आंसू झर झर बह रहे थे ।वह शोभना को गले से लगा कर बोली बहन तुमने  आज मेरी सहायता ही नहीं की बल्कि मुझे सबक भी सिखाया है ।हमें किसी से भी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए और हमें खेतों में कभी भी  जहरीली खाद नहीं डालनी चाहिए। जहरीली खाद से हमें ही नहीं बल्कि सभी जीव जंतु और सभी प्राणियों को नुकसान पहुंच सकता है ।मैं तो कभी भी बाहर से रसायनिक खाद नहीं डालती। मैं तो  गोबर को इकट्ठा करके और कूड़े कचरे को इकट्ठा करके खाद बनाती हूं। वह  खाद ही खेतों में डालती हूं इससे किसी को भी नुकसान नहीं पहुंच सकता ।मैं तुम से प्रार्थना करती हूं कि तुम अब यह कसम खाओ कि आज के बाद तुम कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाओगी।

।श्रुति बोली कि मुझे माफ कर दे मेरी बहन मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। श्रुति बोली दीदी सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते ।श्रुति में बहुत ही अंतर आ गया था वह रोज़ खेतों में आकर अपनी सहेली का हाथ बंटाने लगी। वह बिल्कुल ही बदल चुकी थी उसने ग्राहकों को दूध में पानी मिलाना छोड़ दिया था ।वह थोड़ा ही दूध बेचती थी वह अब किसी को भी धोखा नहीं देती थी ।उसके दूध के ग्राहकों में भी काफी बढ़ोतरी हो रही थी ।यह देखकर वह फूलीनहीं समाती थी उसकी मेहनत से कमाई गई रकम में भी बढ़ोतरी हो रही थी। थोड़े से रुपए के लालच में उसने अपने अंदर की श्रुति को कहीं खो दिया था परंतु अब वह पहले वाली श्रुति बन चुकी थी जो अपनी मेहनत से कमाए गए रुपयों से ही खुश थी ।और अपनी सहेली शोभना की सच्ची सहेली बन चुकी थी।

(मन का दर्पण है सुन्दर कल्पनाएँ) कविता

मन का दर्पण है सुन्दर कल्पनाएँ।

अतीत में झांकने का अवसर देती है कल्पनाएं।।

व्यक्ति के चेहरे पर रंगत का दौर लाती हैं कल्पनाएँ।

जीवन को नई उम्मीद का चेहरा दिखाती हैं सुन्दर कल्पनाएं।।

हमारे अंदर छिपी हुई रचनात्मक  प्रवृति को  उभारती हैं कल्पनाएँ।

नकारात्मकता और सकारात्मकता का अनुभव कराती हैं कल्पनाएं।।

मधुर सपने दिखाती है कल्पनाएँ।

जीवन की सोच को नया आयाम देती हैं कल्पनाएं।।

प्रसन्नता, सूकून और प्रफुल्लता प्रदान करती हैं कल्पनाएँ।

जीवन को अग्रिम श्रेणी तक पहुंचाती हैं  कल्पनाएँ।।

कल्पनाओं के पंख कट जानें कर व्यक्ति ऊंची उडान नही भर सकता।

वह  अवसाद भरा जीवन बितानें के लिए आतुर है  हो जाता।।

अवसाद को बढाती है नकारात्मक कल्पनाएं।

तरक्की के रास्ते को अवरोधित करती हैं नकारात्मक कल्पनाएँ।।

स्व्रणिम जीवन का आधार है इन दोनों का संतुलन।

जीवन में लक्ष्यप्राप्ति का साधन है इन में संकलन।।

अच्छे और बुरे का एहसास कराती है कल्पनाएं।

उम्मीद, भावी जीवन और लक्ष्य प्राप्ति का साधन हैं कल्पनाएँ।।

रमिया

रमिया अपनी जुडवां बेटियों के साथ रेल की पटरी पर बैठे बैठे गाड़ी के आने का इंतजार कर रही थी। वह अपने मन में विचार कर रही थी गाड़ी न जानें कब जैसे आएगी। वह अपनी बेटियों को साथ लेकर काम करनें के लिए जाती थी। उसे और उसकी बेटियों को भूख भी बड़े जोर की भूख भी लग रही थी परंतु उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था। वह घर से केवल दो ही रोटियाँ बना कर लाई थी। उसनें वह दोनों रोटियाँ अपनी बेटियों को दे दी। पूर्वी बहुत ही समझदार थी। वह बोली मां मैं तब तक रोटी नहीं खाऊंगी जब तक आप नहीं खाओगी। उसने अपनी आधी रोटी तोड़ कर मां को दे दी।
प्लेटफार्म पर लोग इधर उधर भाग रहे थे। कुछ लोग गाड़ी के आने का इंतजार कर रहे थे। कुछ लोग तेज तेज चलते हुए दूसरी तरफ भाग रहे थे। कुली भी सामान सामान कहकर चिल्लाते हुए चल रहे थे। वह सोच रही थी इस समय उसे कोई कुछ ना कुछ खाने को दे दे तो वह किसी तरह से अपना और अपनी बेटियों का पेट भरे लेकिन उसे तो अभी गाड़ी के आने का इंतजार था।
वह गाजियाबाद स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर रूपाली के के घर पर काम करती थी। उसकी मालकिन पेशे से डॉक्टर थी। उसका पति एक मिल की फैक्टरी का मालिक था। उस के पति को काम के सिलसिले में हर कभी बाहर जाना पड़ता था। मालकिन को काम करनें के लिए एसी औरत की आवश्यकता थी जो उस का घर का काम कर दिया करे। उसे काम पर इसलिए रखा था क्योंकि वह उसका काम बड़े ही ईमानदारी से किया करती थी। और वह उन लोगों को कभी भी शिकायत का मौका नहीं देती थी। चाहे भयंकर से भयंकर गर्मी हो या ठंड हो, वह समय पर अपना काम-किया करती। जब भी उसकी मालिकन उसे बुलाती वह चुपचाप चली आती। उसकी मालकिन उसे जो कुछ देती थी उससे अपनी बेटियों को और अपने परिवार का गुजारा किया करती थी।
आज गाड़ी 2 घंटे देरी से स्टेशन पर आई थी। वह पैदल पैदल जाने का साहस नहीं कर पा रही थी। एक तो दो नन्ही बच्चियां। गुडिया बिल्कुल अपनी बहन पूर्वी जैसी थी अन्तर केवल रंग रुप का था। वह देखनें में गोरी चिट्टी। अगर पूर्वी भी गोरी होती तो कोई उन दोनों को पहचान नहीं पाता। आठ साल की साल की गुड़िया अपनी मां के साथ साथ हाथ पकड़कर चल रही थी। बच्चियां बहुत ही प्यारी थी। पूर्वी का रंग बहुत ही काला था। कोयले जैसा काला। उसकी मां उसे पूर्वी नाम न ले कर उसे काली कहकर बुलाती थी।। वह बहुत होशियार और समझदार थी। किसी को काम करता देखती तो वह जल्दी ही सीख जाती थी। उसके नयन नक्श बहुत ही सुंदर थे। वह अपनी बेटी को देखकर सोचती कि बाकी सब कुछ तो ठीक है मेरी बेटी पुर्वी से कौन शादी करेगा? उसकी काली लड़की को कौन अपना बेटा देगा। उसको अपनी बेटी पूर्वी की बहुत चिंता होती थी। रमिया ने भाग्य का लेखा समझ कर उसको उसके हाल पर छोड़ दिया। हर बार सोचती रहती जाती थी कि मेरी उर्मी गुड़िया तो शक्ल सूरत से अच्छी है। इस के साथ कोई भी लड़का शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा मगर इस काली का क्या करूं। कुछ नहीं कर सकती। ट्रेन आ गई थी। आठ साल की उर्मी उसकी उंगली थामे थी। उसने पूर्वी को गाड़ी में चढ़ने का इशारा किया। वे गाड़ी में बैठ चुकी थी। ट्रेन जैसे ही स्टेशन पर पहूंची रमिया ने अपनी बेटियों को गाड़ी से उतारा और धीरे-धीरे अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई। उसने घर पहुंचकर मालकिन का दरवाजा धीरे से खटखटाया। अंदर से जोर जोर की आवाजें आ रही थी। रमिया को पता चल चुका था कि इतनी जोर जोर से बहस कौन कर रहा है कुछ दिन पहले ही उसकी मालकिन के पति अपने घर आए थे वह कभी कभी अपनी पत्नी से मिलने आ जाते थे। घर के अन्दर से जोर जोर की लड़ाई झगड़े की आवाजें सुनाई दे रही थी। उसके पति उस से हर कभी झगड़ा किया करते थे। रिया यह सब वह देखती रहती थी। उसकी मालकिन के पति रूपाली को कह रहे थे जब वह काम पर नहीं आती है तो तुम उसे क्यों बुलाती हो? वह समय पर नहीं पहुंच पाती है। उसकी मालकिन ने दरवाजा खोला। रमिया चुपचाप सीधी नीची नजरें किए दूसरे कमरे में अंदर चली आई। कुछ बोली नहीं अगर बोलती तो मालिक का कहर उस पर बरस पड़ता रमिया ने हाथ जोड़कर उन लोगों से क्षमा मांगी बीवी जी आज मुझे देरी हो गई क्योंकि आज गाड़ी 2 घंटे लेट थी। आगे से आपको कभी भी देरी से आने का मौका नहीं दूंगी। आज मुझे माफ कर दीजिए। अचानक उसकी बेटी जोर जोर से रोने लगी। मां-मां भूख लगी है। मुझे खाने को दो। मालकिन के पति बोले तुमने अगर यहां काम करना है तो अपनी बेटियों को यहां पर लाने की कोई जरूरत नहीं है। अपनी बेटियों को घर पर छोड़ कर आया करो। तुम्हारे पास खाने को नहीं होता तो दो दो बेटियां पैदा करने की क्या जरूरत थी? मालकिन को गुस्सा आ गया वह अपने पति पर गरज कर बोली तुम इसको क्यों बोल रहे हो? इसे तो मैंने काम पर रखा है। आपको हमारे बीच में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। बच्चों को तो भूख लग ही जाती है। क्या तुम नौकरी छोड़ कर मेरे पास काम करने के लिए आ सकते हो? मेरे पास काम करने के लिए आ सकते हो जिस तरह तुम्हें अपना काम प्यारा है उसी तरह मुझे भी अपना काम प्यारा है। मैं इसे किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकती। रूपाली ने रमिया को आवाज दी जाओ रसोई में काम करो। रमिया आंसू पौंछते हुई रसोई में चली गई थी। मालकिन ने उसकी बेटी को खाने के लिए दे दिया था। उसकी आठ वर्ष की बिटिया खाना खा रही थी। आठ साल की बेटी पूर्वी टुकुर टुकुर उनकी तरफ देख रही थी। उसने उसे वही जमीन पर एक चटाई पर लिटा दिया था। वह अपना काम करने में मस्त हो गई। उसे अभी तक अपने मालिक और मालकिन की आवाज जोर-जोर से सुनाई दे रही थी अचानक रूपाली के पति जोर से अपनी पत्नी पर गुस्सा हो कर बोले यह काली सी लड़की यहां पर क्या कर रही है? इसको देखकर तो तुम्हारी भी बच्चे काले हो जाएंगे। तुम तो उसे नौकरी से निकाल ही दो। रूपाली बोली आज तो आपने हद ही कर दी। मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। भगवान ने इन्सान को दो ही रंग दिए हैं। काला और गोरा। काला रंग होने से क्या होता है व्यक्ति का स्वभाव अच्छा होना चाहिए। रंग तो आपका भी गोरा है तो आप नें आज तक मुझे क्या सुख दिया? आप क्या वास्तव में ही मुझ से प्यार करते हो?। यह बात उसके पति को बुरी लग गई उसने बहुत जोर से अपनी पत्नी के ऊपर हाथ उठा दिया। चिल्लाते हुए अपनी पत्नी रूपाली को बोला। तुम तो नीच हो और ना जाने गुस्से में क्या क्या अनापशनाप कह डाला। चली जाओ मेरी जिंदगी से। आज के बाद मुझे कभी भी शक्ल मत दिखाना। जैसे ही उसके पति ने थप्पड़ मारने की कोशिश की बीच में रमिया आ गई और उसने साहब का हाथ पकड़ लिया बोली बाबू साहब आप मुझे लेकर तकरार क्यों करते हो? मैं यहां से चली जाऊंगी। आप दोनों खुश रहो मेरी बीवी जी को कभी भी तंग मत करना मैं यहां से खुशी-खुशी चली जाऊंगी। सीधे रसोई में आकर काम करने लगी। रमिया के माथे से खून बह रहा था। मालकिन को छुड़ाते हुए वह दीवार से टकरा गई थी। उसके सिर से खून निकल रहा था। रूपाली नें अपनें पति को कहा मैं तुम्हारे साथ एक भी पल नहीं रहना चाहती। आज मुझे पता चल गया है कि मुझे कौन कितना प्यार करता है। मैं तुमसे जल्दी ही तलाक ले लूंगी।
उन दोनों को लड़ते देख कर बच्चियां भी डर गई थी। रमिया ने वहां पर रुकना उचित नहीं समझा वह अपने बच्चों को लेकर सीधे पैदल ही घर की ओर चलने लगी। गाड़ी के आने में अभी समय था। वह पैदल चलते चलते सोचे जा रही थी कि मैं क्या करूं।? कहां काम करूं? मैं अपनी मालकिन को भी दुःखी नहीं देख सकती। मुझे कौन काम देगा जब तक काम नहीं मिलेगा यहीं पर थोड़े दिन काम करना पड़ेगा। रमिया काम पर तो आती थी लेकिन बुझी बुझी सी रहती और सोचती थी कि कब जैसे मैं यहां से जाऊं। कुछ दिनों से मालकिन कि तबीयत भी ठीक नहीं थी। वह अपनी मालकिन को बोली जब तक आप ठीक नहीं हो जाती मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी। वह अपनें मन में सोच रही थी कि
आज साहब ने भी उसे जता दिया की काली बेटी पैदा करके उसमें कोई बड़ी मूर्खता की है। मेरी गुडिया की शादी तो हो जाएगी। काली के साथ कौन शादी करेगा? मैं क्या करुं। अचानक ट्रेन के आने का शब्द सुनाई दिया ट्रेन दूर से आ रही थी जैसे ही नजदीक पहुंची उसने अपनी बेटियों का हाथ थामा और गाड़ी में चढ़ गई हो गई थी। वह अपने घर धीरे-धीरे पहुंची। उसके सिर अभी भी दर्द कर रहा था। अपनी बेटियों को लेकर वह बहुत ही परेशान थी।
वह किसी दूसरे शहर में काम की तलाश में निकल जाना चाहती थी। शाम को पैदल चलने के कारण उसकी बेटी पूर्वी को बुखार भी हो गया था। ।। रमिया बुझे बुझे मन से अपनी मालकिन के यहां पर काम करने आती और चुपचाप काम करके चलीआती। वह अपना दुखड़ा किसी को नहीं बता सकती थी।
एक दिन उसके चचेरे भाई का फोन आया कि तुम यहां पर मेरे पास चली आओ। उसका भाई दूसरे शहर में काम करता था। उसका भाई ने उसे कहा कि यहां पर तुम्हें मैं किसी ना किसी नौकरी पर लगा दूंगा।
उसने अपनी मालकिन को बताया कि वह अपने भाई के पास जाना चाहती है। उसनें उसे वहां पर बहुत ही जरूरी काम से बुलाया है इसकी भाभी बीमार है और उसे इस वक्त मेरी जरूरत है इसलिए मैं काली को आपके पास ही छोड़ कर जा रही हूं। आप की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है। ऐसे मैं आप को किसी देखभाल करनें की जरुरत है। मेरी बेटी पूर्वी बहुत ही होशियार है। वह घर में भी मेरी मदद कर दिया करती है। मैं अपनी बेटी पूर्वी को आप के पास एक हफ्ते के लिए छोड़ देती हूं। वह आप की मदद कर दिया करेगी। जल्दी से वापिस आ जाऊंगी। मालकिन ने कहा कि तुम्हें अपनें भाई की सहायता के लिए उसके पास अवश्य जाना चाहिए। तुम्हारी बेटी काली मेरे पास रह लेगी। । काली की मां खुशी खुशी अपने भाई के घर जाने के लिए तैयार हो गई।
रमिया अपने मायके जाने के लिए स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। स्टेशन पर उसे गाड़ी भी मिल गई थी गाड़ी पूरी रफ्तार से चल रही थी काली की मां को जिस स्टेशन पर उतरना था वह जैसे ही गाड़ी से उतरने लगी उसका पैर जंजीर से फंस गया और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी उसके सिर से बहुत ही खून बह रहा था जल्दी से लोगों ने उसे उठाकर किनारे पर रख दिया जब वह उठी तो उसे कुछ भी याद नहीं था। वह अपनी यादाश्त खो बैठी थी। उसके साथ उसकी बेटी उर्मी भी थी। । उर्मी भी जोरजोर से रो रही थी। उसे भी चोट लगी थी परंतु उर्मी को इतनी ज्यादा चोट नहीं लगी थी। वह अपने होशो हवास में थी। बड़ी मुश्किल से एक दंपति परिवार ने उसकी सहायता की और उसे बाहर निकाल कर उसकी बेटी को और उसे अपने घर में आश्रय दिया। काफी दिन तक उन्होंने उस से पूछनें
की कोशिश की कि तुम कौन हो कहां से आई हो परंतु वह अपना नाम तक नहीं बता सकती थी। उसे तो उर्मी की भी पहचान नहीं थी कि वह उसकी बेटी है। उसकी बेटी को उस परिवार ने अपने ही घर पर एक छोटी सी खोली रहने के लिए दे दी। जिसमें वह रहने लगी और अपनी बेटी के साथ जीवन यापन करने लगी। उसे कुछ भी याद नहीं था। वह अपना सब कुछ भूल चुकी थी उसकी बेटी उर्मी नें केवल यही बताया कि यह उसकी मां है। उससे अधिक उसे कुछ भी पता नहीं था।

एक हफ्ता बीत जाने पर भी जब रमिया वापस नहीं लौटी तो उसकी मालकिन ने समझा कि वह भी अपनी बेटी को छोड़कर सदा सदा के लिए चली गई है काली हर रोज अपनी मां को ढूंढती परंतु उसकी मां कहीं नहीं दिखाई देती। वह सोचती कि उसकी मां ने भी उसे काला समझ कर उसको छोड़ दिया है। एक दिन उसकी मालकिन किसी से बातें कर रही थी कि शायद काला रंग समझ कर इसको छोड कर चली गई है। वह इतनी छोटी थी कि उसे काले गोरे में अन्तर पता नहीं था। उसका मन दुख होता था कि मेरी मां ने मुझे छोड़ दिया। वह कभी भी मुझे देखने नहीं आई। काली हर रोज अपनी मां का ध्यान कराती। परंतु उसकी मां कहां से आती । उस बिचारी को तो यह भी पता नहीं था कि उसकी मां पर क्या बीती।? वह तो यही सोच रही थी कि उसकी मां भी औरों की तरह ही निकली।रुपाली नें भी उसकी मां के लिए भी यही सोचा कि वह उसको मेरी गोद में डाल कर चली गई है। मालकिन कहां पता करती। उसने अपने भाई का पता भी उन्हें नहीं दिया था ।
काली बहुत ही होशियार थी वह धीरे धीरे मालकिन का काम करने लगी। मालकिन ने उसे छोटा-मोटा काम सब समझा दिया था उसने अपने पति से किनारा कर लिया था। उसने सोचा क्यों न इस छोटी सी बच्ची का क्या दोष इसे ही मैं अपना लूंगी और इसे अपनी बेटी का नाम दूंगी। यह कानूनी तौर पर अब यह मेरी बेटी होगी। उसने कानूनी तौर पर काली को गोद ले लिया और उस को पढ़ाने के लिए हॉस्टल में भेज दिया ।
आज वह दिन भी आ चुका था जब काली पढ़ लिख कर एक बहुत ही बड़ी डॉक्टर बन चुकी थी। आज उसे काले गोरे रंग में अन्तर पता चल चुका था शायद इसी कारण वह अपनी मां को कभी याद नहीं करती थी। रूपाली को मां कहकर बुलाती थी परंतु उसके मन के एक कोने में अभी भी टीस थी। अकेलें में बैठ कर सोचा करती थी कि उसकी मां ने उसके साथ ऐसा क्यों किया।? क्या कोई मां अपनी बेटी के साथ इतना बड़ा अन्याय कर सकती है। मैं अपनी मां को कभी भी माफ नहीं करूंगी। इससे अच्छी तो मेरी यह मां है जिन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया और मुझे अपनी बेटी का दर्जा दिया । मैं बड़ी होकर अपनी बेटी होने का फर्ज पूरा करूंगी। और उन्हें वही खुशियां दूंगी जो मैं अपनी मां को देना चाहती थी। बचपन की वह घटना उसे आज तक याद है जब वह छोटी सी थी। मालकिन के पति नें उन्हें कैसे धक्का दे कर मारा था अगर उसकी मां इतनी ही बुरी थी तो मालकिन को बचानें के लिए अपनें आप चोट नहीं खाती।मां आज तक मुझे लेनेंनहीं आई। समय पंख लगा कर उड़ता गया उर्मी भी बड़ी हो चुकी थी उस दंपति परिवार ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था वह अब अपनी मां को भी संभालती थी उसकी मां को अभी भी अपनी बेटी के बारे में कुछ भी याद नहीं था उसे तो केवल यह यह ज्ञात था की उर्मी ही उसकी बेटी है। उर्मी की शादी भी उन परिवार के लोगों नें करवा दी थी। वह लड़का भी उर्मी को बहुत ही प्यार करता था।

एक दिन उर्मी अपनी मां के साथ घुमते घुमते उसी शहर में आ गई थी जिस शहर में उसकी बहन रहती थी। उसे थोड़ा थोड़ा याद आ रहा था। सुबह जब वह उठी तो उसकी मां उसे कहीं नहीं मिल रही थी। उसकी मां न जानें कहां चली गई थी। उर्मी नें जोर से अभि को आवाज लगाई जल्दी से बाहर आओ मां न जानें कहां चली गईं। उर्मी की आंखें भर आई। अभि बोला शायद मां को यहां आ कर कुछ याद आ जाए इसीलिए मैं उन्हें यहां लेकर आया। तुम डरो मत वह जल्दी ही मिल जाएगी। रमिया चलते चलते एक घर के पास पंहूंच गई थी।वहां पर शहनाई की आवाज आ रही थी। काफी लोग इधर उधर घूम रहे थे। रमिया को लगरहा था उसकी बेटी की शादी है स्टेशन पर ट्रेन के आने का आभास होता था। रूपाली नें अपनी बेटी काली को पूर्वी कह कर आवाज दी। पूर्वी दौड़ कर आई बोली मां क्यों बुला रही हो। उसकी मां बोली बेटा न जाने हमारे घर के बाहर एक औरत मेरे सामनें बेहोश हो कर गिर गई। अन्दर से फर्स्टरेड का सामान ले आना। अरे! इसके सिर से तो खून बह रहा है। उसे पट्टी कर देती हूं आज तुम्हारी बारात अपनें वाली है। पूर्वी बोली मां मुझे काली कह कर बुलाओ मेरी मां मुझे काली कह कर बुलाती थी। रूपाली बोली काली बेटा जल्दी करो। रूपाली नें जैसे ही काली कह कर उसे आवाज दी वह औरत भी बोली काली काली कहां हो। उसे ढूंढते ढूडते उर्मी भी पंहूंच चुकी थी। वह रूपाली को बोली यह मेरी मां है। उसे सुबह से खोज रही हूं। न जानें कहां चली। गई। रमिया फिर से बेहोश हो गई थी। काली नें जब उस अजनबी औरत को काली काली कह कर पुकारा वह उसके चेहरे को गौर से देखनें लगी। वह उठ गई थी। उसनें काली को नहीं पहचाना। काली की आंखों से आंसू आ गए मां नें मुझे पहचानने के बावजूद मुझे कुछ नहीं कहा। वह उसे क्यों छोड़ कर गई। उसनें अपनी मां रूपाली को कहा मां रहने दो। कुछ लोग जान कर भी अनजान बातें हैं। पूर्वी की नजर तभी एक लडकी पर पड़ी जो उस औरत को कस कर छाती सै लगा रही थी कह रही थी कि आप हमें बिना बताए क्यों गई। पूर्वी अपनी शक्ल सूरत वाली लडकी को देख कर हैरान हो गई बोली लगता है आप लोग यहां नये आए हो। तुम्हे देख कर मुझे अपनी बहन की याद आ गयी है।वह भी तुम्हारी जैसी ही दिखती थी। लेकिन वह मुझ से छोटी थी। मैंनें मां को पहचान लिया था। लेकिन जब मेरी मां न ं मेरी तरफ देखा भी नहीं तो मैं भी अपनी मां के बारे में गलत सोच बैठी।
उर्मी ने कहा कि उस की शादी को भी थोड़े ही दिन हुए हैं। मैं यहां पर अपनें पति के साथ घुमनें के लिए आई हूं। मेरी बचपन की यादें यहां से जुडी हैं। मेरी मां ने मुझे बहुत पहले बताया था। इसके सिवा कुछ भी याद नहीं है। रमीया उठ गई थी। वह उधर उधर जानें लगी। उर्मीउसे बुलाती रही। उर्मी बोली तुम खुशकिस्मत हो तुम्हारी मां तुम्हारे साथ है। एक मेरी मां थी जिसने मुझे काली समझ कर छोड़ दिया था।उर्मी बोली मां तो मां होती है वह कैसे अपनें बच्चों को छोड़ सकती है। शायद हो सकता है उन की कोई मजबूरी रही हो। देखो मेरी मां। वह मुझे पहचानती नहीं है। मैं जब छोटी सी थी हम दोनों गाडी में सफर कर रहे थे। मुझे हल्का हल्का याद है। मेरी मां मुझे कहानी सुना रही थी कि हमें जल्दी से अपना काम निपटा कर तुम्हारी बहन को लेनें आना है। वह बहुत खुश थीक्यों कि उन की मालकिन नें उन्हें अपनें भैया के पास जानें की अनुमति दे दी थी। मां गाडी मे पूछती रही स्टेशन आ गया क्यापरन्तु रेलवू स्टेशन पर बैठे बैठे बहुत देर हो ग्ई तब रेलवे गार्ड नें बताया मां जी आप तो गल्ती गाड़ी में बैठ गई। जल्दी उतरो। मां की आंखों में आंसू पहली बार देखे। उसनें मेरा हाथ कस कर पकडा और नीचे उतरने ही लगी थी वह मुझे बहुत ही उलझन मे दिखी। वह बोली बेटा मेरा हाथ मत छोडना। वह उतरनें लगी इसी उधेड़ बुन में उनका पांव पटरी पर फंसा एक बडे से पत्थर पर उसका सिर लग गया था। खून की नदियाँ बह निकली। मेरे भी चोट लगी थी मेरी चोट इतनी गहरी नहीं थी। कुछ लोगों कीमदद से मुझे और मेरी मां को एक परिवार नें बचा लिया। वह लोग बहुत ही अच्छे धे। मैरी मां की कभी यादाश्त वापिस नहीं आ सकी। उन लोगों नें मेरा पालनपोषण किया। मैं भी उनके का काम कर दिया करती थी। उनके लोगों नें मुझ से पूछा तुम्हारा क्या कोई है मैं क्या बताती मुझे न तो मामा का पता मालूम था। उन लोगों नें एक बेटी की तरह पालन पोषण किया। और शादी भी की। मैंनें शादी करवाते समय यह शर्त रखी मैं उसी लडके के साथ विवाह रचाऊंगी जो मेरी मां को भी स्वीकार करेगा। आखिरकार अभि नें मुझे पसन्द किया और मेरी मां को भी अपनी मां का दर्जा दिया। आज ही करनें पर वह यहां आए क्यों कि मां को उन्होंने गाजियाबाद कहते हुए सुना उतरो स्टेशन आ गया। इसलिए मां को वह यंहा लाएं हैं शायद उन का इस स्थान से कोई नाता हो। कंही तुम ही तो मेरी बहन नहीं हो। काश यह सच हो।
उर्मी जब यह कह रही थी तब पूर्वी नें पहचान लिया था कि वही औरत और कोई नहीं उसकी मां है। मैं तो मां के बारे में क्या क्या अनुमान लगा बैठी मेरी मां मेरे कालेपन के कारण मुझे छोड़कर चले गई। यह क्या वह तो उर्मी को भी नहीं पहचानती है। पूर्वी नें जल्दी से अपनी मां को सहारा दे कर कमरे में लिटाया वह उर्मी को बोली तुम ही मेरी छोटी बहन हो। मैं ही तुम्हारी अभागी बहन हूं काली। वह बोली मां नें मुझे नाम नहीं बताया था। दोनों बहनें आपस में गले मिली। पूर्वी नें भी अपनी बहन को सारी कहानी सुनाई। वह हर पल तुम दोनों को याद किया करती थी। काफी दिनों तक मां जब नहीं लौटी तो मालकिन नें मुझे कानूनी तौर पर गोद ले लिया ओर अपनी बेटी बना कर पाला। आज मैं एक डाक्टर बन चुकी हूं आज ही मेरी शादी है। पूर्वी नें रूपाली को कहा कि यही मेरी मां है और यह मेरी छोटी बहन है उर्मी। रूपाली रमिया को देख कर खुश हुई। उसे पता लग गया था कि रमिया की यादाश्त चली गयी है।
शादी खुब धूमधाम से सम्पन्न हुई। रमिया भी मुस्कुराते हुए उन्हें आशीर्वाद दे रही थी। उर्मी नें खुशी खुशी अपनी बहन को विदा किया। पूर्वी नें खुद अपनी मां का इलाज किया। एक दिन सचमुच उनकी यादाश्त वापिस आ गई। सबसे पहले याद आने ं पर रूपाली को कहा बीबी जी मेरी बेटी पूर्वी कहां है!वह उस समय अस्पताल गई हुई थी। रूपाली नें उन्हें सारी कथा सुनाई। शाम को जब पूर्वी घर आई वह अपनी मां के गले लगा कर बोली मेरा अनुमान सही था मेरी मां कभी भी गलत नहीं हो सकती। आप की दोनों बेटियाँ अपनें अपनें घरों में खुश हैं। मुझे तो एक नहीं दो दो मां का प्यार मिला है। मेरे मन से सारा मैल हट चुका है। मां आप अब मेरे साथ रह कर और कभी गुडिया के पास रह सकती हो। उर्मी भी लौट आई थी। अपनें दोनों दामाद के साथ रमिया खुशी अनुभव कर रही थी। खुशियाँ लौट आई थी।