“बातचीत कि कला”

बातचीत कि कला हो जिस की निराली। जीवन में  छलके  जैसे मधु रस कि प्याली।।  कम से कम शब्दों में दूसरों के तथ्यों को समेटनें कि कला हो न्यारी। आवश्यक जानकारी   उपलब्ध  करवाने कि क्षमता हो जिसमें सारी।। मन के भावों को अभिव्यक्त करनें कि कला है सिखलाती। दुसरों के विचारों को ग्रहण करनें… Continue reading “बातचीत कि कला”

खेलखिलाड़ी खेल

खेल खिलाड़ी , खेलखिलाड़ी  खेल खिलाड़ी खेल। मुस्कुराहट के भाव लाकर , बिना संकोच, सहयोग और तालमेल से , मित्रताऔर भाईचारे का समावेश बना,  बिना हिचकिचाहट,बिना घबराहट के सावधानी और धैर्यपूर्वक खेलों में डट  कर  खेलो खेल।। एक दूसरे का हाथ थाम कर ,  मन में नमी उमंग जगा कर सभी को साथ ले कर… Continue reading खेलखिलाड़ी खेल

सोच का दायरा – भाग – 2

सौरभ सुबह सुबह जल्दी सभी कार्यों से निवृत्त हो कर स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाया करते थे ।वह एक हाई स्कूल में मुख्याध्यापक थे । छोटा सा परिवार था। अपनी पत्नी को कह देते थे कि जल्दी से खाना बना दिया करो मुझे जल्दी स्कूल पहुंचना होता है। उनकी पत्नी रेखा सुबह उठकर… Continue reading सोच का दायरा – भाग – 2

बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी ,बिल्ली मौसी आई।रीनु की रसोई में दबे पांव घुस आई।। बौखला कर ‌लगी ढूंढनें दूध मलाई। कभी इधर, कभी उधर, चारों तरफ नजरें दौड़ाए।कोई रसोई में आ कर न धमक जाए।मुझे पर डंडा न बरसा जाए।।फुदक फुदक कर सैल्फ पर चढ़ लगी चक्कर लगानें।भूख के मारे निढाल बिल्ली लगी अपनी किस्मत आजमानें।।अचानक रीनू… Continue reading बिल्ली मौसी

आपसी सूझ-बूझ

एक छोटा सा गांव था।गांव के लोग ईमानदार थे।उस गांव में रामानन्द नया नया आया था।उसकी बिजली विभाग में नई नई नौकरी लगी थी।उसने अपनी पत्नी और बेटे को भी गांव में बुला लिया था।उसका बेटा छटी कक्षा में शिक्षा ग्रहण कर रहा था।वह जब अपनें बेटे के साथ गांव पहुंचा टिंकू नें बहुत से… Continue reading आपसी सूझ-बूझ

गुरु तोताराम

एक बार की बात है एक घने जंगल में एक बहुत ही सुंदर पेड़ पर चिड़ियों का झुंड रहता था। चिक्की चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां के साथ दाना चुगने जाते थे। कभी-कभी चिड़िया अपने बच्चों को दाना चुगने में सहायता किया करती थी। एक दिन वह अपने बच्चों को दाना चुगने अपनें… Continue reading गुरु तोताराम

घर का भेदी लंका ढाए

हमारे घर का प्रत्येक सामान आज हम से कुछ कह रहा।अपनी दुर्गति पर है ठहाका लगा कर हंस रहा।।आजकल घर में मीठी मीठी सुगंध है छा रही।बच्चों कि चुलबुलाहट से है खिला-खिला रही।।सोफ़ा सैट भी यूं अपनी दास्तां सुना रहा।मुझ पर कुदाकुदी का दौर आजकल है छा रहा।। झाड़ू बोला तुम तो कठोर वस्तु के… Continue reading घर का भेदी लंका ढाए