“बातचीत कि कला”

बातचीत कि कला हो जिस की निराली।

जीवन में  छलके  जैसे मधु रस कि प्याली।। 

कम से कम शब्दों में दूसरों के तथ्यों को समेटनें कि कला हो न्यारी।

आवश्यक जानकारी   उपलब्ध  करवाने कि क्षमता हो जिसमें सारी।।

मन के भावों को अभिव्यक्त करनें कि कला है सिखलाती।

दुसरों के विचारों को ग्रहण करनें कि और ,

अपनें विचारों को दुसरे के समक्ष रखनें का  नजरिया है समझाती।।  

निपुणता,साहस,और सूझबूझ से काम लेना है सिखाती।

मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास कर उसे हर काम में  प्रसिद्धि  है दिलाती।।

मानव स्वभाव को पहचाननें की  शक्ति है दिखलाती।

स्वभाव में परिवर्तन कर उन में हौंसला है जगाती।।

बगिचे समान मन कि वाटिका में  हिलोरें है खाती।

आशा,निराशा,सुख दुख  के सभी भावों को हैं जगाती।।    

मानव मन में सुन्दर विचारों का समावेश है जगाती।

कलुषित विचारों को नष्ट करके अच्छे संस्कार है लाती।।

योग्यता और व्यवहार कुशलता के बल पर हर जगह व्यक्ति को प्रशंसा है दिलवाती।

सतत् अभ्यास,धैर्य और अटूट विश्वास से भाषा का कौशल है बढ़ाती,

उस को प्रथम श्रेणी कि श्रंखला में बिठा कर उस का मनोबल है बढ़ाती।।

 मानव स्वभाव को परिवर्तन करनें की क्षमता है बढ़ाती।

ज्ञानेन्द्रियो को जगा कर  हृदय  में आत्मविश्वास का जादु है चलाती।

मन के हर एक कोनें में शान्ति और प्रफ़ुल्लता का एहसास है दिलाती।

आत्मविभोर हो कर  निपुणता से  हर काम को दक्षता से करनें का यन्त्र है सिखाती,

सार सार को गहि रहे,थोथा देर उड़ाय वाली कहावत का अनुसरण है करवाती।

एकाग्र मन से काम  करनें पर जटिल से जटिल समस्या का हृदयंगम करनें में मदद है दिलवाती।।

खेलखिलाड़ी खेल

खेल खिलाड़ी , खेलखिलाड़ी  खेल खिलाड़ी खेल।

मुस्कुराहट के भाव लाकर ,

बिना संकोच, सहयोग और तालमेल से ,

मित्रताऔर भाईचारे का समावेश बना, 

बिना हिचकिचाहट,बिना घबराहट के

सावधानी और धैर्यपूर्वक खेलों में डट  कर 

खेलो खेल।।

एक दूसरे का हाथ थाम कर , 

मन में नमी उमंग जगा कर

सभी को साथ ले कर खेलो खेल।।

खेल खिलाड़ी, खेल खिलाड़ी, खेल खिलाड़ी,

शतरंज, कैरम,वॉलीबॉल,

रग्बी, बैडमिंटन, खो-खो

तैराकी, क्रिकेट, फुटबाल 

हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा कर खेलो खेल।।

प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में  

सबसे आगे बढ़  कर मुस्कुराहट से खेलो खेल।

विजय श्री को गले लगा कर खुशी से  आगे बढ़ कर खेलों खेल।

विजय पराजय  का हाथ थाम कर ,हृदय को मजबूत बना,

लज्जा भय और ग्लानि को त्याग कर,सावधानी से खेल- खेल कर जोश जगा कर खेलो खेल।

एकाग्रता और आश्रत्मविश्वास का जज्बा चेहरे पर झलका 

हिम्मत जुटा कर खेलो खेल।

पराजय को भी स्वीकार कर,हंसी का समावेश बना कर खेलों खेल।

निर्णय लेनें कि क्षमता का एहसास  खुद में जगा कर खेलो खेल।

खेल खिलाड़ी ,खेल खिलाड़ी,खेल खिलाड़ी खेलो खेल। 

खिलाड़ियों के प्रशंसक बन कर उनका मनोबल बढ़ा खेलो खेल।

हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिखानें का अवसर पा कर खेलो खेल।

राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  अपनें देश का गौरव बढ़ा कर खेलो खेल।

सुमन रावत पीटी ऊषा, सचिन तेंदुलकर , 

विश्वनाथन आंनद जैसा  खिलाड़ी बन कर

लग्न,दृढ़संकल्प,और प्रेरणा शक्ति का हौंसला सभी में जगा खेलो खेल।

खिलाड़ियों की श्रेणी में सब से आगे आनें का साहस जुटा कर खेलो खेल।

आपसी में ममता और अपनत्व से,एक दुसरे को गले लगा कर खेलों खेल।

एक दूसरे के रितीरिवाजों को अपनानें का तौर तरीका सीख  खेलों खेल।

शरीर को स्वस्थ,चुस्त और बलशाली बना कर अच्छे खिलाड़ी बन कर अपनें देश का सम्मान बढ़ा कर खेलों खेल।।

काकचेष्टा वकोध्यानं का यन्त्र अपना कर खेलो खेल।

निरन्तर प्रयास और अभ्यास के द्वारा   खेलो खेल।

खेल खिलाड़ी,खेल खिलाड़ी,खेल खिलाड़ी खेलो खेल।।

सोच का दायरा – भाग – 2

सौरभ सुबह सुबह जल्दी सभी कार्यों से निवृत्त हो कर स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाया करते थे ।वह एक हाई स्कूल में मुख्याध्यापक थे । छोटा सा परिवार था। अपनी पत्नी को कह देते थे कि जल्दी से खाना बना दिया करो मुझे जल्दी स्कूल पहुंचना होता है। उनकी पत्नी रेखा सुबह उठकर ही उन्हें खाना दे देती थी। बेटा बैंक में काम करता था उनकी बहू भी प्राइवेट नौकरी करती थी। वह तो सुबह सुबह ही बहु को कहते कि बेटा मेरे कपड़े प्रेस कर दो। वह सभी से अपना काम करवा लेते थे। उनका पोता दूसरी कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में पढ़ाते पढ़ाते उन्हें 32 साल हो चुके थे ।उनके रिटायरमेंट के 5 साल रह चुके थे वह जब स्कूल से थके हारे घर आते तो जल्दी से खाना खा कर आराम करते। उनकी पत्नी उन्हें कहती कि कभी मेरे साथ बाजार भी चला करो पर वे कहते कि मेरे पास समय नहीं है। स्कूल का बहुत काम पड़ा है उनकी पत्नी को बहुत बार अपने पति पर गुस्सा आता था ।वह मुझे कभी बाजार भी नहीं लेकर जाते हैं। घर के सदस्य भी उन से कहते कि कभी तो छुट्टी ले लिया करो हमारे साथ भी आप कभी समय बिता लिया करो मगर सौरभ तो एक पल भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहते थे। उनके रिटायरमेंट के अभी 5 साल थे। उनकी पत्नी के साथ कभी कभी कहासुनी हो जाता करती थी। वह हर बात को हंसी में टाल दिया करते थे। आज भी ऐसा ही हुआ उनकी पत्नी नाराज हो कर चली गई थी ।बेटा भी उनसे नाराज हो गया, पापा आप तो स्कूल से कभी छुट्टी ही नहीं लेते।
सौरभ को भी गुस्सा आ गया था। स्कूल में पहुंचे तो हैडमास्टर साहब को कहा कि मैं अभी ही रिटायरमेंट लेना चाहता हूं।‌ हैंड मास्टर साहब बोले जरा बैठ कर मुझे समझाओ माजरा क्या है? उन्होनें सारा किस्सा सुना दिया कि मैं घर वालों के साथ समय नहीं बिता पा रहा हूं।पहले मैं गुस्सा नहीं होता था।अब मुझे भी गुस्सा आनें लगता है। शायद बुढ़ापे का असर हो। हैडमास्टर साहब बोले जब इन्सान कि उम्र ज्यादा हो जाती है तो उसे गुस्सा आनें लगता है।आप अपनें आप को व्यस्त रखा करो। जल्दबाजी में कभी निर्णय नहीं लेना चाहिए। हैडमास्टर साहब बोले आप ने यह फैसला सोच समझ कर लिया है या जल्दबाजी में। पांच साल बाद तो आपने घर में ही बैठना है। पांच साल पहले ही क्यों घर में रहने की सोचने लगे ?वह बोले कि मैं घर वालों को समय नहीं दे पा रहा हूं। वे मुझ से उखड़े उखड़े रहते हैं। हैडमास्टर साहब बोले कि हर घर में लड़ाई झगड़ा होता है कभी तो अपने घर वालों का कहना भी मानना चाहिए। हमें जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। 5 साल बाद तो आप घर पर ही रहेंगे अभी तो 5 साल बहुत होते हैं ।अच्छा आपकी बात मान कर मैं आपको सोचनें के लिए 15 दिन का समय देता हूं ।सौरभ बोले कि मैं घर वालों को नहीं बताऊंगा। घरवालों को बताऊंगा कि मैं अपनी स्वेच्छा से सेवा निवृत हुआ हूं। मुझे उनको परखनें का मौका भी मिल जाएगा।

हैडमास्टर साहब बोले ठीक है आप कुछ दिन घर का आनन्द लें। जब घर आए तो सबके साथ खुश होकर बोले कि मैं आज आप सभी को खुशखबरी सुना रहा हूं। बेटा बोला, पापा क्या आप कि प्रमोशन हो गई है? सौरभ बोला नहीं मैं स्कूल से सेवा निवृति ले कर आया हूं। आप सबको खुश देखना चाहता हूं ।अपनी पत्नी की तरफ देख कर बोले अब तो खुश हो ना मैं तुम्हारे साथ हर रोज बाजार जाता करुंगा।वह बोली आपने पहले ही त्यागपत्र क्यों दे दिया? अभी तो आपके पांच साल शेष थे ।घर में बैठकर तो आप बेकार हो जाएंगे ।इतनें में बेटा भी आकर बोला मैं यह क्या सुन रहा हूं ?पापा आप नें समय से पहले रिटायर मैन्ट क्यों ली? आप तो स्कूल जाते हुए ही अच्छे लगते हो पांच साल बाद तो आप ऐसे ही रिटायर हो जाने थे। वह बोली बेटा मैंने तो तुम सब की खातिर रिटायरमेंट ली है ।बहु, बेटा यह सुन अपने कमरे में चले गए ।

सुबह सौरभ काफी देर तक सोते रहे। किसी नें भी उन्हें जगाना ठीक नहीं समझा। सुबह-सुबह जब सो कर उठे बेटे को बोले, बेटा जरा अखबार तो दे जा ।मैं पढ़ लूंगा। बेटा पापा आप तो अब सारा दिन घर पर ही रहेंगे। अखबार आप बाद में पढ़ लेना ।अभी मैं पढ़ लेता हूं। आप तब तक कुछ और काम कर लें। उन्होनें अपनी पत्नी को चाय के लिए कहा ।जरा चाय तो दे जाओ। उनकी पत्नी बोली कि आज चाय की पत्ती खत्म है। आप राजू के साथ जाकर चाय और सब्जी ले आओ । अपने कमरे में आकर सोचने लगे यह सब मुझे अभी से आदेश देने लगे। जब इंसान रिटायर हो जाता है उसकी कोई हैसियत नहीं होती ।वह अपने आप को छोटा महसूस करने लगे। पहले स्कूल में बच्चों को काम करने के लिए कहता था ।वह एकदम उसका काम पलकझपकते ही कर दिया करते थे। सारे के सारे अध्यापक उनका सम्मान करते थे। आज उन्हें बहुत ही दुःख हो रहा था।
उन्होंने चुपचाप थैला लिया और राजू को साथ लेकर चाय लेने बाजार चले गए। मुंह से कुछ नहीं बोले। सारा दिन उनका मन काम में भी नहीं लगा ।वह सोचने लगे कि मेरे घरवाले तो पहले मुझसे कहते थे कि आपके पास समय ही नहीं है ।अब समय ही समय है तो मुझ से अच्छे ढंग का बर्ताव नहीं कर रहे।राजू को साथ लेकर बाजार से चाय ले कर आ गए।किसी भी काम में उन का मन नहीं लगा। दो-तीन दिन ऐसे ही बीत गए ।उनकी पत्नी उन्हें खाली मायूस बैठा देख कर बोली आप ऐसे भी तो यूं ही खाली बैठे हो दाल ही साफ कर दो। अपनी पत्नी पर उन्हें बहुत ही गुस्सा आया ।उन्होंने मन में विचार किया कि अच्छा ही हुआ उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया।वे पन्द्रह दिन बाद स्कूल चले जाएंगे। वे सोचनें लगे पन्द्रह दिन मुझे 15साल लग रहें हैं।
एक दिन घूमते घूमते वे अपनें पुराने खास दोस्त के घर चले गए।वे उनके काफी पुरानी परिचित थे। उनके साथ उन्होनें बहुत समय बिताया था। उनके साथ उनकी गहरी मित्रता थी।उनको खोया खोया और उदास देख कर बोले क्या बात है?अपनें दिल कि बात कह देनें से दुःख हल्का हो जाता है।वे बोले मैनें पांच साल पहले ही रिटायर मैन्ट ले कर अपनें पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है।सोचा था उनकी शिकायतों को मिटा दूंगा लेकिन जो मैं सोचता था शायद वह गल्त था।
उन्होंने उन्हें सारी समस्या बताई कि घर वाले भी उनसे नाराज हैं कि आपने रिटायरमेंट क्यों ली? मुझे काम पर लगा दिया। वे सभी मुझे प्यार नहीं करते।मेरी पत्नी भी मुझ से शिकायत करती थी कि मुझे कभी बाजार नहीं ले जाते।बेटा बहु बहुत ही नाराज हो जातें हैं कि हम से कभी मिल बैठ दो शब्द भी नहीं कहते हो।
वर्मा जी बोले कि आपने अब उनके प्रति गलत राय कायम कर ली है। वह आपके शत्रु नहीं है। वह आपसे इसलिए कह रहे हैं कि आप कहीं घर में बैठे-बैठे उदास ना हो जाए। आप जरा खुल कर उन के साथ बोल कर के देखो तो वेआपको तंदुरुस्त देखना चाहते हैं। इसलिए वे आप को काम में लगाते हैं ताकि आप व्यस्त रहें। आपकी पत्नी भी आपसे गहरा प्रेम करती है ।मैं तो कितनी दफा आप के घर आया हूं।एसा परिवार तो खुशनसीबों को ही मिलता है।आपने उनके प्रति गलत नजरिया कायम किया है। आप कभी अपनी कहें कुछ उनकी सुनें।हर सुख-दुख उन से साझा करें।अपनी पत्नी को अपनें मन कि सभी बातें साफ साफ कहें। अपनें जीवन साथी से कोई भी बात नहीं छिपानी चाहिए।उन के साथ मजाक भी करें और पोते के साथ खुब मौज-मस्ती किजीए, तब देखें।मेरी बात पर गौर करना।ताली दोनों हाथों से बजती है।आज के पढ़ें लिखे बच्चों को तो समझानें कि जरुरत ही नहीं पड़ती।
आपको मेरी बात पर विश्वास ना हो तो बीमारी का नाटक करके देख लो।
शाम को जब सौरभ घर लौटे तो सब ने उन्हें खाने के लिए, खाने की मेज पर बुलाया तो वह बोले कि मुझे भूख नहीं है। बेटा बोला, पापा क्या आपको सचमुच भूख नहीं है? सौरभ बोले नहीं ।बेटा ,बहू बोले कोई बात नहीं अगर भूख नहीं है तो खाना भी नहीं चाहिए। शाम को चुपचाप ऐसे ही पड़े रहे उनके मन में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल आते रहे? सचमुच में ही मेरे घर वाले मुझे प्यार ही नहीं करते ।
सुबह जगे तो उन्हें सचमुच ही बुखार आ गया था। उनकी पत्नी अपने पति के पास आकर बोली कि आज आप की तबीयत ठीक नहीं है। आज आप सारा दिन आराम करेंगे ।वह जल्दी ही चाय बना कर ले आई। बेटा और बहु भी पास आकर बोले पापा आज बाजार नहीं जाएंगे। सारा काम आज हम करेंगे। बाजार से जाकर हम सब जरूरत की चीजें लेकर आएंगे। आप आज आराम करो ।बेटा बोला कि आज मैं भी छुट्टी ले लेता हूं ।
अभि बोला कि पापा कहीं आपको रिटायरमेंट लेने के बाद बुरा तो अनुभव नहीं हो रहा है। ऐसा था तो आपको अभी काम पर चले जाना चाहिए था ।पांच साल बाद तो आप रिटायर हो ही जाने थे। हम सभी आपके बारे में चिंतित थे आप घर में इधर-उधर थोड़ा थोड़ा काम जो आपको अच्छा लगे वह ही किया करो आपको तो ज्यादा काम करने की आवश्यकता भी नहीं ।जब सब चले गए तो उन्हें महसूस हुआ कि वे अपने बच्चों को कितना गलत समझ रहे थे । उन्होंने अगर उन्हें चाय ले जाने के लिए या कुछ काम करने के लिए कह दिया तो इसमें बुराई ही क्या है ?इंसान को छोटे-छोटे काम करके मजा ही आएगा और खुशी भी होगी ।उनके मन से सारा संशय हट गया था।
दूसरे दिन उनका जन्मदिन था। सुबह सुबह जब चाय पीने बैठे तो एक बार फिर उदास हो गए।आज घर के किसी भी सदस्य ने उनके जन्मदिन की मुबारकबाद नहीं दी ।उनके मन में एक बार फिर आ गया कि हर बार बच्चे मेरा जन्मदिन मनाते हैं आज तो किसी ने भी उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद नहीं कहीं ।पत्नी भी उन्हें बिना कुछ कहे खाना बनाने चलीं गईं।
सारा दिन वह बुझे बुझे से रहे। एक बजे के करीब सब परिवार के सदस्य बोले कि चलो आज हम मिलकर अपने साथ वाले फार्म पर टहलनें चलते हैं।आज तो बाबू जी भी हमारे साथ हैं।सब के सब ठहाका लगा कर हंसनें लगे।उन्हें बहुत ही बुरा अनुभव हो रहा था।किसी तरह मन को समझाया घर में इतना काम होता है याद ही नहीं आता होगा।मैनें कभी गौर ही नहीं किया वे बेचारे भी तो थक जातें होगें।मेरी पत्नी बेचारी मेरी बिमारी कि खबर सुन मेरे पास ही सिरहाने बैठी रही। ठीक ही तो कहती हैं हर बार जब बाजार जानें के लिए कहती है तो कोई न कोई काम बिना कारण उसे नाराज कर देता हूं।मैं अपनें ही काम में इतना व्यस्त हो जाता था कि उन कि छोटी छोटी परेशानियों कि तरफ मेरा ध्यान गया ही नहीं।कोई बात नहीं सब का मन रखनें के लिए फार्म हाउस चल ही पड़ता हूं।

बाबूजी का मन भी नहीं था फिर भी वह बुझे बुझे मन से फार्म हाउस पर चल दिए। वहां पहुंचकर चौक गए। फार्म हाउस बहुत ही अच्छे ढंग से सजाया हुआ था। वहां पर बहुत सारे लोग एकत्रित हुए थे। वे जैसे ही वहां पर पहुंचे बाबूजी को हार पहनाकर उनका जन्मदिन मनाया गया उसके बाद केक काटकर खूब जश्न मनाया गया। उनके बेटे नें बहुत सारे लोगों को पार्टी पर बुलाया था ।जब फंक्शन समाप्त हुआ तो बेटा बोला पापा हमने आपको सरप्राइस दिया। आप इसी तरह मुस्कुराते रहें और हर दम हमारे साथ मौज मस्ती करते रहे।सौरभ बोले बेटा मैंने भी तुम्हें सरप्राइस दिया है। मैंने रिटायरमेंट नहीं ली थी कल से मैं ऑफिस जा रहा हूं ।मैं भी ऐसे ही तुम्हें सरप्राइस दे रहा था । तुम सब के बारे में ना जाने क्या-क्या सोच कर परेशान हो रहा था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। यह सब हमारी सोच का नजरिया है। अपनी सोच को सकारात्मक बनाना चाहिए चलो बच्चों आज मैं तुम्हें चाय बनाकर पिलाता हूं ।चाय पती कम या ज्यादा पड़ जाए तो चुपचाप पी जाना। एक बार फिर हंसी के ठहाकों से घर जगमगा उठा।

बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी ,बिल्ली मौसी आई।
रीनु की रसोई में दबे पांव घुस आई।।
बौखला कर ‌लगी ढूंढनें दूध मलाई।
कभी इधर, कभी उधर, चारों तरफ नजरें दौड़ाए।
कोई रसोई में आ कर न धमक जाए।
मुझे पर डंडा न बरसा जाए।।
फुदक फुदक कर सैल्फ पर चढ़ लगी चक्कर लगानें।
भूख के मारे निढाल बिल्ली लगी अपनी किस्मत आजमानें।।

अचानक रीनू पानी पीनें थी रसोई में आई।
रसोई कि कुंडी खोलनें पर चरा चराहट कि आवाज थी आई।।
बिल्ली चौकन्नी हो कर पर्दे के पीछे जा घुसी
डर के मारे कांपती हुई थी एक कोनें में थी जा छिपी।
एक मोटा चूहा भी था उधर उधर टहल रहा।
बिल्ली को देख सामने वह भी था कंपकंपा कर मूक बन दूबक रहा।।
एक कोनें में भिगी बिल्ली बन बैठा गया।
वह भी पर्दे के दूसरी ओर सट कर ठिठक गया।।

रीनू नें पानी पीनें के लिए गिलास के लिए हाथ बढ़ाया।
गिलास गिरा हाथ से चारों ओर पानी ही पानी था बिखराया।।

बिल्ली लगी सोचनें अब तो बच्चू मेरी खूब खबर ली जायेगी
यंहा से कैसै खिसका जाए,अब तो मुझे नानी याद आ जाएगी।।
बिल्ली यही सोच रही थी तभी उसकी नजरें चुहे पर थी जा टिकी।
अपनें सामने कांपते हुए चुहे को देख मुस्कुराई।
चुहे ने बिल्ली से दया कि गौहार लगाई।
बिल्ली नें चुहे से नजरें मिला उसे ढांढस दिलाई।।


बिल्ली बोली चुहे भाई चुहे भाई मुझे से अभी तुम मत घबराओ।
यहां से कैसे भागा जाए ,सोच विचार और सूझबूझ से कोई मार्ग सुझाओ।।
रीनू पंखा चला कर पानी को लगी सूखानें।
मधुर स्वर में कोई गीत लगी गुनगुनाने ।
एकाएक रीनू की मां नें उसे बाहर बुला कर समझाया।
सब्जी का थैला उसे थमा कर उस से पानी मंगवाया


वह किवाड़ बिना बन्द किए ही बाहर आई।।
मां कि तरफ देख धीरे से मुस्कुराई।।
चुहा बोला, बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी ।
तुम तो हो मेरी मां जैसी हठीली।
सबसे सुन्दर ,आकर्षक और छबीली।।


बिल्ली बोली मस्का लगाना बन्द करो,
जल्दी से अपनी भाषण बाज़ी बन्द करो।।

चूहा बोला आज तुम मुझ से वैर न करना
शत्रुता छोड़ मित्रता का भाव अपनाना।।
बिल्ली बोली,चुहे भाई चुहे भाई,जल्दी आओ जल्दी आओ।
दूध मलाई खा कर अपनें पेट कि आग को बुझाओ।।

आओ चटकारे ले ले कर दूध मलाई खाएं।
मालिक के आनें से पहले यहां से रफूचक्कर हो जाएं।।

आपसी सूझ-बूझ

एक छोटा सा गांव था।गांव के लोग ईमानदार थे।उस गांव में रामानन्द नया नया आया था।उसकी बिजली विभाग में नई नई नौकरी लगी थी।उसने अपनी पत्नी और बेटे को भी गांव में बुला लिया था।उसका बेटा छटी कक्षा में शिक्षा ग्रहण कर रहा था।वह जब अपनें बेटे के साथ गांव पहुंचा टिंकू नें बहुत से लोंगों को खेतों में काम करते देखा।उन सब को काम करते देखा वह बड़ा खुश हुआ।उसने गांव पहली बार ही देखा था।शहरों में तो हर रोज गाड़ियों की आवाजाही से तंग आ गया था।गांव में पहुंच कर उसे वहां का वातावरण बहुत ही अच्छा लगा।उसकी मां तो घर पर ही रह कर सिलाई किया करती थी टिंकू को गांव का माहौल अच्छा लगनें लगा।
जहां पर उन्होंने किराए पर मकान भी ले लिया था ,,उनके घर से स्कूल का रास्ता तीन किलोमीटर था।वहां एक ही हाई स्कूल था जिसमें दसवीं तक के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे। स्कूल छोटा सा था। बच्चों कि संख्या भी कम थी। अध्यापक बहुत ही प्यार से बच्चों को पढ़ाया करते थे।पहले दिन जब वह स्कूल गया तो वह बहुत डरा डरा सहमा सा था।
कुछ दिनों के पश्चात ही वह गांव के बच्चों से हिलमिल गया।उसे स्कूल जाना अच्छा लगनें लगा।वह नटखट और बहुत ही शरारती था ।पढ़ाई करना उसे जरा भी नहीं सुहाता था। अध्यापिका जब कक्षा में कहती की किताब लाए हो तो वह चुपचाप कक्षा में अपने साथियों को देखने लगता वह अपनी किताब तो कभी स्कूल नहीं ले जाता था ।एक दिन अध्यापिका नें उसे खड़ा किया और कहा कि तुम्हारी किताब कहां है? उसके दोस्त ने चुपके से उसे किताब दे दी ।उस दिन तो वह बच गया लेकिन वह अपने स्कूल के बैग में अपनी किताबें ले जाना भूल जाता था वह खेल कर आता तो उसकी मां उस से कहती बेटा सारा दिन खेलते रहते हो ।पढ़ाई भी किया करो ।उसके पिता आते और उस से कहते कि कोई बात नहीं बच्चा ही है खेलेगा नहीं तो और क्या करेगा?मैं जब इसकी उम्र का था तो खेलकूद में सबसे आगे होता था। उसकी मां अपनें पति से बोली जब भी उसे पढ़ने को कहती हूं आप मेरी बात को काट देते हो? क्या मैं इसकी कुछ भी नहीं लगती? यह मेरा भी तो बेटा है। मैं इसका भला बुरा समझती हूं ,तभी तो यह बात कह रही हूं ।बेटा बोला मां, पापा ने कहा है कि जा खेल कर आओ। मैं चुपचाप खेलने भाग जाता हूं। इस बात को लेकर पति-पत्नी में हर रोज अनबन हो जाया करती थी ।जब किसी बात को लेकर उसकी मां अपने बेटे को डांटती तो पापा उसे मना लेते।

उसकी मां एक नेक महिला थी। वह हमेशा सबका ख्याल रखती थी मगर वह अपने बच्चे को लेकर हर दम परेशान रहती थी ।बहुत देर बाद जब टिंकू खेल कर लौटता तो वह गुस्से से कहती देखो आ गया तुम्हारा लाडला। टिंकू के पिता बात बात बात में उसे सुना देते कि हां लाडला तो है ,ज्यादा ही तुम्हें ऐसा लगता है कि वह सारा दिन मटरगस्ती करता रहता है तो अपने बेटे को क्यों खेलने जाने देती हो ?जिस काम के लिए उसके पिता मना करते ,उस बात के लिए मां कहती नहीं बेटा तू इस काम को अवश्य कर। दोनों की इस बात को ले कर कलह हो जाया करती थी। दोनों को कलह करता देख कर वह नन्हा-सा सहम जाता था।इस बात का असर यह हुआ कि बच्चा बिल्कुल ही गुमसुम सा रहने लगा और चुप चाप स्कूल से आनें के बाद दबे पांव घर आता और दोस्तों के साथ खेलने भाग जाता। वह किसी भी बात को कभी गंभीरता से नहीं लेता था। यह बात नहीं थी कि वह मंदबुद्धि बालक था। घर के मौहौल के कारण वह घर आने से कतरानें लगा था। पढ़ाई से तो वह कोसों दूर भागता था। दोस्तों के साथ लड़ाई झगड़ा करना उसका सबसे बड़ा मंत्र था । वह हर रोज पीटकर आता था उसके जख्म देखकर उसकी मां को बहुत ही गुस्सा आता था अपने पति को कहती कि आप अपने बच्चों को क्यों नहीं समझाते? उसके पति कहते कोई बात नहीं बच्चों को थोड़ा सा लड़ाई झगड़ा अवश्य करना चाहिए

एक दिन तो मां पिता में कलह इतनी बढ़ गई कि छोटा सा टिंकू घर से भागकर दोस्तों के संग खेलने भाग गया। घर से एक थैले में अपना खाना भी लेकर चला था। घर में खाना खाने का उसका मन नहीं था थोड़ी दूर ही चला था उसे एक आदमी सामने से आता दिखाई दिया। वह बहुत ही भुखा था।वह खाना मांग रहा था ।उसको देखकर टिंकू का दिल पिघल गया ।उसने अपना खाना उस आदमी को दे दिया । उस आदमी ने दो दिन से खाना नहीं खाया था ।खाना खा कर वह तृप्त हो गया। उस बच्चे को देखकर उसके दिमाग में अपनी पत्नी और बच्चे का चेहरा घूम गया। उस बच्चे से बोला धन्यवाद बेटा। भगवान! तुम्हारा भला करे। दो-चार दिन बाद जब वह खेल कर वापिस आ रहा था, एक कोनें में गुमसुम बैठ गया था।उसका घर जानें को दिल नहीं कर रहा था, तो उसे फिर वही आदमी दिखाई दिया जिस को उसनें खाना खिलाया था । उस आदमी ने उससे प्यार से पूछा कि क्या घर से लड़ झगड़ कर आए हो? वह बोला बाबा मेरे माता-पिता हरदम बात बात पर लड़ते रहते हैं ।घर जाने को मन ही नहीं करता ।उस आदमी को याद आया कि वह अपनी पत्नी के साथ ही इसी प्रकार लड़ाई करता था। उसकी पत्नी अपने बच्चे को लेकर सदा सदा के लिए उसे अकेला छोड़ कर चली गई थी। वह अजनबी बच्चे से बोला बेटा मुझे प्यास लगी है क्या तुम मुझे पानी पिला सकते ? बच्चा बोला वहां थोड़ी दूर पर ही है मेरा घर। टिंकू उसे अपनें घर पानी पिलाने के लिए दे आया। उस बच्चे के साथ साथ चलता हुआ उन के घर के पास आकर खड़ा हो गया। बाहर भी उसके माता-पिता की लड़ने कि जोर जोर से आवाजें आ रही थी ।

किसी औरत कि आवाज आ रही थी जो कह रही थी आपका लाडला अभी तक खेल कर नहीं लौटा है ?क्या तुम्हें अपने बच्चे की खबर है? क्या बजा है? उस आदमी को सारा माजरा समझ आ गया यह तो उस बच्चे के ही माता-पिता है, जो लड़ाई झगड़ा कर रहें हैं।अपनी मम्मी पापा कि आवाज सुन कर सहम कर बोला कि मम्मी पापा की तो हमेशा ही लड़ने की आदत है ।अपनें बेटे को जोर जोर से किसी से बात करता देख कर उसके पिता बाहर आ गए ।साथ में पीछे पीछे उसकी मां भी बाहर आ गई। आते ही अपने बेटे को बोली सारे कपड़े गंदे कर आ गया है ,जल्दी से हाथ पैर धो ले। वह बोला कि मैं इन अजनबी अंकल को पानी पिला दूं तब कपड़े बदल लूंगा ।मां बोली कि पहले हाथ धो फिर उसके बाद पानी पिलाना।उसके पिता आकर बोले बेटा कपड़े से हाथ पौंछ ले फिर उसको पानी पिला दे ।

अतिथि बोले कि आप दोनों को एक दूसरे के साथ लड़ता देखकर वह सहम गया है ।आप दोनों प्यार से इसके साथ पेश क्यों नहीं आते हो ?आप में से एक कह रहा है कि पहले हाथ धो ले। इस पर आप दोनों में से दूसरा कह रहा है कि नहीं तू ऐसे ही पानी दे। बेटा अजनबी को पानी देकर अंदर चला गया तो, अजनबी बोला कि आप दोनों की कलह काआपके बच्चे पर बहुत ही बुरा असर होता है जब आप दोनों का आपस में ही तालमेल नहीं है तो आप अपने बच्चे से क्या अपेक्षा रखते हो ? क्या वह आपकी बात गौर से सुनेगा।वह कभी नहीं सुनेगा।

अजनबी बोला बहन हूं तो मैं छोटा सा आदमी पर आपको अपनी बहन समझकर सीख दे रहा हूं। जब भी अपने बच्चे को कोई बात समझाओ, बेटा कोई गलत काम करके आए तो दोनों को एक जैसा तर्क़ देना चाहिए वर्ना एक दिन आपका बच्चा आपके हाथों से सदा के लिए चला जाएगा। वह उपद्रवी या उदंड कुछ भी बन सकता है। जब अजनबी चला गया तो रामप्रसाद बोला बड़ा आया हमें पाठ पढ़ाने। हमें अपनें बच्चे कि आदतों का पता ही नहीं है क्या? नीरु बोली ठीक ही तो कह रहा है ।आप कभी समझते ही नहीं आप नें यह बात गांठ बांध ली होती तो आज हमारा बेटा आज हमारा कहा मानता। आप उल्टी बात कह कर हमेशा सब का दिल दुखाते हो ।

टिंकू को स्कूल जाते जाते दो महीने से भी ज्यादा हो गए थे ।वह दोस्तों के साथ रहकर उदंड बन गया था। मैडम को पता चल चुका था कि वह बच्चा अपनी किताब कभी नहीं लाता है। दूसरों की किताबों को देखकर पढाई करता है एक दिन टिंकू नें एक बच्चे के बस्ते से कॉपी चुरा ली मैडम ने उसे चोरी करते देख लिया। मैडम ने उससे पूछा कि कौपी तुमने चुराई है तो वह बोला नहीं मैंने नहीं चुराई अध्यापिका को बहुत बुरा लगा। उसने सोचा सब बच्चों के सामने इसे टोकूंगी तो उसे बुरा लगेगा। उसने प्यार से टिंकू को अपने पास बुलाया और कहा क्या तुमने राम के बस्ते से उसकी कॉपी चुराई थी ?वह बोला नहीं ।मैडम बोली चोरी करना बुरी बात है। उसनें टिंकू की शिकायत उसके माता-पिता से कर दी। घर में शिकायत पत्र आते देखकर उसके माता-पिता के होश उड़ गए टिंकू के पिता बोले कि मेरा बेटा कभी चोरी नहीं कर सकता। उसकी मां बोली कि आपको क्या पता ?शायद उसने चोरी की हो। आप अपने बच्चों पर कभी नजर नहीं रखते हो। वह सारा दिन क्या करता है? वह सारा दिन बाहर रहता है।जब तक बच्चा अनुशासन नहीं सीखता तब तक मैं तो उस पर विश्वास नहीं कर सकती। आप अगर मेरी बात मानते होते हम दोनों के विचार एक होते तो शायद हमारा बच्चा कभी भी बिगड़ नहीं पाता। आप अपने बच्चों को प्यार से पूछते तो शायद वह बता देता लेकिन हम दोनों का उसे डर ही नहीं रहा।

उस अजनबी ने हमें ठीक ही कहा था कि घर में आपसी तालमेल होना जरूरी है जिस बात के लिए मैं मना करती हूं आप उस बात के लिए आप हामी भरतें हैं। हम आपस में सलाह मशवरा करके एक राय कायम कर सकते हैं इस से शायद हमारा बेटा सही राह पर आ जाए।

मैडम ने टिंकू के माथे से पसीना पौंछा और कहा बेटा चोरी करना बुरी बात है ,जिस बात के लिए आपके माता-पिता आपको मना करेगें आप को उसे कभी नहीं करना चाहिए टिंकू बोला कि अध्यापिका जी मेरे माता-पिता कभी एक राय नहीं देते। मेरे पिता कहते हैं कि जाओ खेलने जाओ। मां कहती है कि नहीं जाओ। मैं किस कि बात मानूं। अध्यापिका को सही कारण पता चल चुका था कि घर में इसी बात को लेकर खटपट रहती थी। इसी कारण घर का माहौल बिगड़ने के कारण बच्चा भटक गया। उसने अपने माता कि बात नहीं मानी और ना पिता की बात मानी। उसने अपने मन की करने की ठानी ।।
कविता मैडम एक दिन जब राम प्रसाद जी के घर आई तो उस दिन भी दोनों किसी बात को लेकर बहस कर रहे थे ।कविता बोली कि आप दोनों ही अपने बेटे की असली गुनाहगार हो। आप दोनों ने अपने बच्चे की परवरिश में कमी रखी। अपने बच्चे को भटका दिया। आपके बच्चे ने आज एक बच्चे की कौपी चोरी की । रामानंद जी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनका बच्चा चोरी भी कर सकता है।
कविता बोली कि आप दोनों में से कोई भी एक बच्चे को डांट रहा हो तो एक को चुप रहना चाहिए बच्चे को शय नहीं मिलनी चाहिए।बच्चे को उसी समय डांटनां चाहिए जब वह कुछ ग़लत कर रहा हो ताकि उसे अपनी ग्लती का एहसास हो सके। अपने बच्चे पर आप दोनों का हक है ।आप दोनों आपस में विचार-विमर्श करके उस पर अपनी राय कायम कर सकतें हैं।आप दोनों के विचार विमर्श और आपसी सहमति से आप अपनें बच्चे को सही राह पर ला सकतें हैं। शाम को जब टिंकू घर आया तो उसके पिता बोले कि तू ने चोरी की। टिंकू बोला आप को किस नें बताया। “नहीं पापा” उसकी मां बोली कि तू चोरी करके आया है तो सच सच बता दें हम तुझे कुछ नहीं कहेंगे। उसके पापा बोले बेटा तुम्हारी मां बिल्कुल ठीक कह रही है। तुम नें अगर किसी बच्चे कि नोटबुक चुराई है तो बता दें।हम दोनों तुम्हें नहीं डांटेंगे।उसकी कौपी उसे दिला देंगें ।कह देगें कि गलती से कौपी आ गई है।आज रामप्रसाद को अपनी गलती का एहसास हो रहा था नीरु ठीक ही कहती हैं।
किट्टू बोला पापा-मम्मी आप दोनों ठीक ही कहते हो हर रोज मैं जब खेल कर आता था तो आप कहते थे कि ठीक है बेटा खेल कर आ। मां कहती थी कि पढ़ाई करने बैठ। पढ़ाई करुं या खेलूं। मैं असमंजस में पड़ जाता था कि क्या ठीक है और क्या गलत? आज सचमुच में ही जाना कि आप दोनों ठीक कहते हो । माता पिता को कहीं आज जा कर अपनी गलती का एहसास हुआ ।उस दिन के बाद दोनों ने बहस करना छोड़ दिया था। दोनों पति-पत्नी अपने बेटे में सुधार देख कर मुस्कुराए दिए। आज अगर हम दोनों अपने में सुधार नहीं लाते तो अपने बच्चे को कैसे समझा पाते?हमें अपनें बच्चे पर निगरानी अवश्य रखनी चाहिए मगर उस पर प्यार से समझ बूझ और तर्क के जरिए अपनें बच्चे कि गल्तियों को सुधारना चाहिए।डांट-डपट करनें से वह आप के हाथ से निकल सकता है।

गुरु तोताराम

एक बार की बात है एक घने जंगल में एक बहुत ही सुंदर पेड़ पर चिड़ियों का झुंड रहता था। चिक्की चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां के साथ दाना चुगने जाते थे। कभी-कभी चिड़िया अपने बच्चों को दाना चुगने में सहायता किया करती थी। एक दिन वह अपने बच्चों को दाना चुगने अपनें साथ ले गई।

सभी चिड़ियों का झुंड उड़ता उड़ता बहुत दूर जा पहुंचा। वहां जाकर एक पेड़ की शाखा पर विश्राम करने लगा, पास में ही कुछ चिड़िया आपस में झगड़ा कर रहीं थीं। उनको झगड़ा करता देखकर छोटी चिड़िया डर के मारे कांपने लगी। उसकी मां ने कहा बेटा देखो यह चिड़ियों के बड़े बुजुर्ग है यह इनका परिवार है। यह आपस में लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं। यह भोजन को लेकर आपस में झगड़ा कर रहे हैं। बेटा, लड़ाई झगड़ा करना बहुत ही बुरी बात है । झगड़ने से समस्या सुलझती नहीं है बल्कि और भी बढ़ जाती है। कैसे इस चिड़िया के परिवार ने अपने बड़े बुजुर्गों को घर से निकाल बाहर कर दिया है। लड़ाई झगड़े किस परिवार में नहीं होते। जहां दो बर्तन होतें हैं वे खटकते तो हैं ही। एक दूसरे को प्यार से मिल बैठ कर समझाना चाहिए और समय पड़ने पर हमें एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।

गिन्नू चिड़िया बोली मां हम भी झगड़ा करते हैं पर हम एक दूसरे को मना भी लेते हैं । चिक्की बोली बेटा तुम्हें कल गुरु तोताराम जी के पास पढ़ने भेजूंगी। उन्होंने नया स्कूल खोल रखा है ताकि तुम्हारी तरह छोटे छोटे पक्षी जीव भी पढ़ाई करने का भरपूर फायदा उठा सके। पढ़ाई करने से तुम्हारे मन में अच्छे संस्कार विचार उत्पन्न होंगे ।
पीकू और गोपू बोले ठीक है मां हम पढ़ने के लिए विद्यालय जाया करेंगे । चिकी बोली बेटा जब तुम अच्छी तरह बाहर निकलना सीख जाओगे तभी तुम मेरे संग दाना चुगनें जा सकोगे।

चीकी चिड़िया ने अपने बच्चों को गुरु तोताराम जी के पास पढ़ने भेज दिया। स्कूल जाते जाते उन्हें काफी समय हो चुका था। वे थोड़ा बड़े हो चुके थे। कक्षा में एक दिन सारे बच्चे लड़ाई झगडा कर रहे थे । उनको लड़ता देखकर अध्यापक बोले बेटा लड़ाई झगड़ा करना बुरी बात है। बन्नू चिड़ा बोला गुरूजी यह दोनों पेंसिल के पीछे लड़ रहे हैं। बन्नू कह रहा था कि यह पेंसिल मेरी है। कोई दूसरा कह रहा था, यह पेंसिल मेरी है । गुरु तोताराम बोले सारे के सारे बच्चे मिलकर पता लगा सकते थे यह पेंसिल किसकी है ? तुम अपने साथियों के साथ कक्षा में इकट्ठे बैठते हो? तुम पता लगा सकते थे कि यह कैंसिल किस की है। मध्यांतर के समय बन्नू ने टप्पू को इतना मारा कि देखो बेचारे की आंख कैसी सूज गई है। एक छोटा सा नन्ना सा चिड़ा आकर बोला कि दूसरे चिड़िया नें इस पर कंकर मारा था, जिससे इसकी आंखों के पास चोट लग गई शुक्र है आंख बच गई। उसकी माथे से खून निकल आया है तोताराम बोले बेटा हमें लड़ाई झगड़े को छोड़कर एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। अगर तुम अपनें साथी को विपति में छोड़कर चले जाते तो तुम बच्चे दोस्त कहलानें योग्य नहीं हो। देखते नहीं खून ज्यादा बहनें से यह मर भी सकता था। साथ देने की अपेक्षा दूर से तुम सब तमाशा देखते रहे । हमें वक्त पड़ने पर विपत्ति आने पर एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।

आज मैं तुमको अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं जब छोटा सा था बहुत ही उत्तम और शरारती स्वभाव का हुआ करता था। बचपन शरारतों के लिए प्रसिद्ध है। मां बाप जिस किसी भी वस्तु को दिलानें से इन्कार कर देतें हैं उस बात का हम बच्चे विरोध करते हैं। मां बाप जब बहुत बांट डपट कर हम पर चिल्लाते हैं उन कि डांट-डपट का हमारे कोमल मन पर उस का प्रभाव नहीं पड़ता है। हम जब तक उस कार्य को कर न लें तब तक मन नहीं मानता।
ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मां ने मुझसे कहा था कि बाहर कभी अकेले मत जाना, अभी तुम छोटे हो। मैनें भी किसी का कहना नहीं माना और और मां से कहा कि अब मैं बड़ा हो गया हूं मुझे अच्छे से उठना आता है जबकि मुझे इतना अच्छे से उड़ना नहीं आता था मैं तो उस समय बहुत छोटा था। किसी का भी कहना ना मानते हुए मैं चुपके से उड चला अपने से बड़े पक्षियों के साथ। कुछ तोड़ने के बाद मैं काफी थक गया था। हम एक घर के छज्जे पर जाकर थोड़ी देर विश्राम के लिएबैठ गए। कुछ दाने पड़े हुए थे हम वह दाने खाने का आनंद उठाने लगे।
अचानक किसी ने हम सब पक्षियों की ओर एक पत्थर दूर से फेंका, पत्थर जाकर सीधा मेरे सर पर लगा और मैं वहीं घायल होकर गिर गया बाकी सभी पक्षी उड़ कर एक पेड़ पर बैठ गए। मैं बहुत छटपटाता रहा पर मैं उड़ नहीं पाया अचानक ही वह लड़का जिस ने पत्थर मारा था आकर उसने मुझे पकड़ लिया मैं बहुत चिल्लाया बहुत उड़ने की कोशिश की बचाओ बचाओ चिल्लाता रहा पर कोई भी पक्षी मेरी सहायता के लिए आगे नहीं आया। सब उदास होकर और डर से मुझे देख रहे थे पर कोई भी डर के मारे मुझे बचाने नहीं आया।
मेरे माथे से बहुत ही खून बहने लगा । इतनी वेदना हुई कि सहना मुश्किल था। पास में ही बैठा रवि यह सब देख रहा था। उसने उस लड़के को बहुत बुरा भला कहा और अपने घर से भगा दिया।
रवि ने मुझे अपने घर में रख लिया। मेरी मरहम पट्टी कि मुझे खाना खिलाया दो-तीन दिन बाद जब उड़ने के लिए पंख फड़फड़ाए तो रवि नें मुझे उड़ने नहीं दिया। उसन मुझे पिंजरे में बन्द कर दिया। वह मुझे तरह-तरह के प्रलोभन दे कर मुझ से खेलनें का प्रयत्न करता। मैं चूं चूं ची चीं करके उसे कहना चाह रहा था कि मुझे भी तुम्हारी तरह अपनें माता-पिता से बिछड़ना अच्छा नहीं लग रहा। मेरी भाषा उसे कैसे समझ आती। वह तो मानव जाति का था। वह तो मेरी तरह उड़ नहीं सकता था। वह तो पैदल चल सकता था या गाड़ी में। मेरी व्यथा वहां कोई भी सुनने वाला नहीं था। मुझे अपने माता-पिता की याद आ रही थी।

“पराधीन व्यक्ति का अपना कोई व्यक्तित्व,कोई अधिकार नहीं होता। पराधीन होनें के कारण उसे अपनी सृजनात्मक शक्तियों को व्यक्त करनें का अवसर नहीं मिलता। उसके लिए तो नर्क और स्वर्ग दोनों समान है। पराधीन व्यक्ति हर रोज मरता है”।

एक दिन मैं चुपके से अच्छा अवसर जुटा कर वहां से उड़ने में कामयाब हो गया जब मैं उड़ा तो अपनें आप को स्वच्छन्द महसूस कर रहा था। जब पीछे मुड़ कर देखा तो बहुत सारे भयानक पक्षी जीव पक्षी मुझे मारने के लिए मेरा पीछा करने लगे। मैं जब अपने घोंसले में आया तो मेरे माता-पिता मुझे वहां नहीं मिले ।मैं बहुत ही मायूस होकर सोचने लगा कहां जाऊं ? क्या करूं ? अगर यहीं पर रहता हूं तो कोई ना कोई जीव जंतु मुझे मार कर खा जाएगा क्योंकि मुझे अच्छे से अभी उड़ना भी नहीं आता था । इसके लिए मुझे बहुत संघर्ष करनें पड़े। मैं जब मुझे ढूंढने का प्रयत्न करता भयानक पक्षी मेरा पीछा करनें लगते। मैं कभी एक वृक्ष की ओट से दूसरे में छिपनें कि कोशिश करता तो बहुत सारे पक्षी मुझे डरा कर कहते यह तुम्हारा रैन बसेरा नहीं है।एक दिन
थक हार कर मैं उस घर में रवि के वापस लौट आया।
रवि ने मुझे अपने घर के बरामदे की शाखा पर बैठा देखा तो उसने मुझे फिर से पकड़ लिया। वह अपने मम्मी पापा से जिद करने लगा कि मैं इसे पालूंगा। उसके मम्मी पापा नें उसे अनुमति दे कर कहा तुम अगर हर रोज दिल लगा कर पढ़ाई करोगे तो तुम इसे पाल सकते हो। जहां पर रवि जाता उसके पीछे पीछे जाता। वह उसके साथ बैठ कर पढ़ाई करता वहां पर बैठकर उसे हमेशा पढ़ाई करते देखा करता था। जब भी जो कुछ भी पढ़ता मैं भी सीख गया। रवि बड़ा हो चुका था। बड़ा होकर कॉलेज में पढ़ने गया तो वह मुझे भी साथ ले जाना चाहता था मगर उसके मां-बाप नहीं मानें उन्होनें मुझे छोड़नें की सलाह दी।। मैं फिर आज़ाद हो कर कभी एक शाखा पर कभी दूसरी शाखा पर जाने के लिए मुझे बहुत ही संघर्ष करना पड़ा । क्योंकि मैं उड़ना भूल चुका था। इतने साल में एक पिंजरे में बंद रहा था। मैंने सोचा क्यों ना जो कुछ मैंने पढ़ा है जो कुछ सीखा है उसे अपनी जाति में बांटनें का काम करूं। मैं अपनी जाति पक्षियों को पढ़ाने लगा ।
अगर मेरे मित्रों ने मेरी सहायता उस वक्त की होती तो मैं अपने मां बाप से जिंदगी भर के लिए हाथ नहीं दो बैठता। मेरी तलाश में वह कहां-कहां नहीं भटके होंगे कहां-कहां नहीं गए होंगे पता नहीं वह आज कहां होंगे। यह कहते कहते गुरु तोताराम जी की आंखें नम हो गई भरे मन से उन्होंने बच्चों को समझाया।

बच्चों अपने माता-पिता की बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए उनकी आज्ञा अवश्य माननी चाहिए। हमें एक दूसरे की मदद अवश्य करनी चाहिए। माता पिता कि डांट फटकार में स्नेह छिपा होता है।
गिन्नू चिड़िया और चून्नी चिड़िया जब अपने घर पहुंची तो थकी हुई थीं। घर आकर उन्होंने सारा किस्सा अपनी मां को सुनाया। मां ने कहा बेटा तुम्हें स्कूल भेजकर मैंने बुरा नहीं किया। वहां पर बहुत ही अच्छे अच्छे संस्कार सीखते हो। एक दिन चीकी चिड़िया ने देखा कि साथ वाले घोसले में किसी के रोने की आवाज आ रही थी। रिंपी चिड़िया जोर जोर से रो रही थी। उसको रोता देख कर चींकी बोली बहन तुम क्यों रो रही हो वह बोली बहन क्या बताऊं ? कल से चंपू घर नहीं लौटा है। उसे सारे जगह तलाश किया मगर उसका कहीं पता नहीं चला। यह कहकर वह और भी जोर जोर से रोने लगी ।गोपू यह सब देख रहा था उसे बहुत बुरा लग रहा था।गोपू नें अपनें भाई पीकू को कहा हम दोनों चुपके से चंपू को ढूंढने में आंटी कि मदद करेंगें। स्कूल से आते हुए वे अपने दोस्त चपूं को ढूंढने जाते ।
एक दिन जब वे स्कूल से वापस आ रहे थे तो वहां पर एक पेड़ कि शाखा के पास उन्होंने बहुत सी चींटीयों को देखा। उन्होंने अपने साथी को उठाने के लिए एक पत्ती का प्रयोग किया। वह चींटी का बच्चा उन्हें बेहोश अवस्था में मिला था। वे दोनों छिप कर देखते रहे । थोड़ी देर में उन्होंने देखा कि वहां पर बहुत सारी चीटीयां ईकटठी हो गई थी। वह सब एक साथ मिलकर उस चींटी को उठाने का प्रयत्न करने लगी। उसे लेकर अपने मुखिया के पास गई ।मुखिया बोली कि मुझे खुशी है कि तुम अपने भाई बंधुओं को बचाने में लगी थी। यह बेचारी तो मर गई है । सारी की सारी चींटियां यह सुन कर उदास हो गई। गोपू ने टिक्कू को कहा कि चंपू भी किसी किसी खतरे में तो नहीं पड़ गया है? चलो उसे मिल कर ढूंढते हैं काफी देर उड़ते उड़ते उन्हें एक जगह पर पेड़ का तना टूटा हुआ दिखाई दिया। उसके पीछे चिड़िया के पंख दिखाई दिए। अब क्या किया जाए ? इस लकड़ी के टुकड़े को कर कैसे उठाया जाए? उन्हें गुरु तोताराम जी की सुनाई हुई कहानी याद आई। उन्होंने जोर जोर से चीं चीं कर के अपने सभी पक्षियों को सहायता के लिए पुकारा तो सारे के सारे पक्षी वहां इकट्ठे हुए ।सभी ने मिलकर उस लकड़ी के तने को वहां से हटा दिया। उनके नीचे सचमुच ही एक छोटा सा चिड़िया का बच्चा फंसा था।
चिड़िया का बच्चा मरा नहीं था उसकी धीमी धीमी सांसे चल रही थी। अरे यह तो चंपू है। जल्दी से गोपू नें डॉक्टर चिक्कू को बुलाया। विद्यालय में डॉक्टर चिक्कू बच्चों को टीका लगानें आए थे। उन्होंने दो बच्चों को अपनी घर का पता बता दिया था। चीकू डाक्टर नें समय पर पहुंचकर चंपू की जान बचाई। गोपू नें चंपू को पहचान लिया था। गोपू ने टीकू को को कहा कि चलो जल्दी से आंटी को खबर करते हैं। चंपूं कि मां नें 5 दिन से कुछ भी नहीं खाया था। घर पर गोपू और टीकू के माता- पिता परेशान हो रहे थे कि बच्चे कहां चले गए। उन दोनों को सुरक्षित घर आया देख कर सारे परिवार के लोग प्रसन्न हो गए। अपने माता पिता को सारा किस्सा कह सुनाया कि कैसे उन्होनें अपने दोस्त को ढूंढ निकाला। उसकी मदद करके हमने उसे नया जीवन दान दिया है। आज हमारी मेहनत रंग लाई है। आज हमने अपने साथी की मदद करके अपना दायित्व बखूबी निभाया है।
यह सब शिक्षा हमें गुरु तोताराम जी ने ही दी थी उनकी शिक्षा के बिना यह सब संभव नहीं था । गुरु तोताराम जी ने जब यह सब सुना तब उनकी आंखों से हर्ष और गर्व के आंसू झलक पड़े।

घर का भेदी लंका ढाए

हमारे घर का प्रत्येक सामान आज हम से कुछ कह रहा।
अपनी दुर्गति पर है ठहाका लगा कर हंस रहा।।
आजकल घर में मीठी मीठी सुगंध है छा रही।
बच्चों कि चुलबुलाहट से है खिला-खिला रही।।
सोफ़ा सैट भी यूं अपनी दास्तां सुना रहा।
मुझ पर कुदाकुदी का दौर आजकल है छा रहा।।

झाड़ू बोला तुम तो कठोर वस्तु के है बने हुए।
तुम तो कुदाकुदी पर भी नहीं डर कर सिकुड़ रहे।।
मैं तो कोमल घास या छोटे छोटे तिनकों वाला।
चोटों के प्रहार को न सह सकनें वाला।।
घर कि गृहिणी भी मुझे पटक पटक कर मेरी चमड़ी उधेड़ रही।
मेरी तिलियों को जगह जगह फैंक फैंक कर मेरी रुसवाई कर रही।।

बर्तन बोले हम भी तुम्हें अपनी व्यथा कह सुनातें हैं।
तुम से अपने दिल कि बात कह कर अपना दुखड़ा सुनाते हैं।
बच्चे बर्तन पटक पटक कर हमारी धुनाई कर रहे।
कुरकुरे, नमकीन बिस्कुट और जायके दार व्यंजन खा खा कर हमें चिढ़ा रहे।।

फ्रिज बोला भाईयों सुनों कुछ मेरे भी दिल की।
तुम मुझे तसल्ली दो जीवन भर कि।।
मेरी तरह कोई नहीं होगा दर्द का मारा।
आज तो मैं तन्हा हो जाऊंगा, ये सोच कर मैं तो हारा।
मालिक मुझे बेच कर दूसरा फ्रिज लेनें कि सोच रहा।।
मुझे कबाड़ी को सौंपनें का ग़म मुझे खाएं जा रहा।।
मेरी जगह कोई दूसरा फ्रिज आ जाएगा।
अपनी जगह बना कर के मन ही मन मुस्कुराएगा।
मालिक भी मुझे बाहर पटक कर खुश हो जाएगा।।

टीवी बोला भाई हर कोई आजकल मेरी सिटीपिटी गुम कर रहा।
सारा दिन चला चला कर मालिक अपना मनोरंजन कर रहा।।
कोरोना नें आज सबको है डराया।
छोटा बड़ा उस के डर से है थर्थराया।।

हमें भी आजकल घरवालों कि तहस-नहस नें डराया।
न जानें कब क्या हो जाए यह हमारी समझ में नहीं आया।।
इससे अच्छा होता घर के सदस्य कुछ समय बाहर ही रहते।
हमें भी कुछ देर आराम करनें का अवसर देते।।।