गुरु तोताराम

एक बार की बात है एक घने जंगल में एक बहुत ही सुंदर पेड़ पर चिड़ियों का झुंड रहता था। चिक्की चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां के साथ दाना चुगने जाते थे। कभी-कभी चिड़िया अपने बच्चों को दाना चुगने में सहायता किया करती थी। एक दिन वह अपने बच्चों को दाना चुगने अपनें साथ ले गई।

सभी चिड़ियों का झुंड उड़ता उड़ता बहुत दूर जा पहुंचा। वहां जाकर एक पेड़ की शाखा पर विश्राम करने लगा, पास में ही कुछ चिड़िया आपस में झगड़ा कर रहीं थीं। उनको झगड़ा करता देखकर छोटी चिड़िया डर के मारे कांपने लगी। उसकी मां ने कहा बेटा देखो यह चिड़ियों के बड़े बुजुर्ग है यह इनका परिवार है। यह आपस में लड़ाई झगड़ा कर रहे हैं। यह भोजन को लेकर आपस में झगड़ा कर रहे हैं। बेटा, लड़ाई झगड़ा करना बहुत ही बुरी बात है । झगड़ने से समस्या सुलझती नहीं है बल्कि और भी बढ़ जाती है। कैसे इस चिड़िया के परिवार ने अपने बड़े बुजुर्गों को घर से निकाल बाहर कर दिया है। लड़ाई झगड़े किस परिवार में नहीं होते। जहां दो बर्तन होतें हैं वे खटकते तो हैं ही। एक दूसरे को प्यार से मिल बैठ कर समझाना चाहिए और समय पड़ने पर हमें एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।

गिन्नू चिड़िया बोली मां हम भी झगड़ा करते हैं पर हम एक दूसरे को मना भी लेते हैं । चिक्की बोली बेटा तुम्हें कल गुरु तोताराम जी के पास पढ़ने भेजूंगी। उन्होंने नया स्कूल खोल रखा है ताकि तुम्हारी तरह छोटे छोटे पक्षी जीव भी पढ़ाई करने का भरपूर फायदा उठा सके। पढ़ाई करने से तुम्हारे मन में अच्छे संस्कार विचार उत्पन्न होंगे ।
पीकू और गोपू बोले ठीक है मां हम पढ़ने के लिए विद्यालय जाया करेंगे । चिकी बोली बेटा जब तुम अच्छी तरह बाहर निकलना सीख जाओगे तभी तुम मेरे संग दाना चुगनें जा सकोगे।

चीकी चिड़िया ने अपने बच्चों को गुरु तोताराम जी के पास पढ़ने भेज दिया। स्कूल जाते जाते उन्हें काफी समय हो चुका था। वे थोड़ा बड़े हो चुके थे। कक्षा में एक दिन सारे बच्चे लड़ाई झगडा कर रहे थे । उनको लड़ता देखकर अध्यापक बोले बेटा लड़ाई झगड़ा करना बुरी बात है। बन्नू चिड़ा बोला गुरूजी यह दोनों पेंसिल के पीछे लड़ रहे हैं। बन्नू कह रहा था कि यह पेंसिल मेरी है। कोई दूसरा कह रहा था, यह पेंसिल मेरी है । गुरु तोताराम बोले सारे के सारे बच्चे मिलकर पता लगा सकते थे यह पेंसिल किसकी है ? तुम अपने साथियों के साथ कक्षा में इकट्ठे बैठते हो? तुम पता लगा सकते थे कि यह कैंसिल किस की है। मध्यांतर के समय बन्नू ने टप्पू को इतना मारा कि देखो बेचारे की आंख कैसी सूज गई है। एक छोटा सा नन्ना सा चिड़ा आकर बोला कि दूसरे चिड़िया नें इस पर कंकर मारा था, जिससे इसकी आंखों के पास चोट लग गई शुक्र है आंख बच गई। उसकी माथे से खून निकल आया है तोताराम बोले बेटा हमें लड़ाई झगड़े को छोड़कर एक दूसरे की मदद करनी चाहिए। अगर तुम अपनें साथी को विपति में छोड़कर चले जाते तो तुम बच्चे दोस्त कहलानें योग्य नहीं हो। देखते नहीं खून ज्यादा बहनें से यह मर भी सकता था। साथ देने की अपेक्षा दूर से तुम सब तमाशा देखते रहे । हमें वक्त पड़ने पर विपत्ति आने पर एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए।

आज मैं तुमको अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं जब छोटा सा था बहुत ही उत्तम और शरारती स्वभाव का हुआ करता था। बचपन शरारतों के लिए प्रसिद्ध है। मां बाप जिस किसी भी वस्तु को दिलानें से इन्कार कर देतें हैं उस बात का हम बच्चे विरोध करते हैं। मां बाप जब बहुत बांट डपट कर हम पर चिल्लाते हैं उन कि डांट-डपट का हमारे कोमल मन पर उस का प्रभाव नहीं पड़ता है। हम जब तक उस कार्य को कर न लें तब तक मन नहीं मानता।
ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मां ने मुझसे कहा था कि बाहर कभी अकेले मत जाना, अभी तुम छोटे हो। मैनें भी किसी का कहना नहीं माना और और मां से कहा कि अब मैं बड़ा हो गया हूं मुझे अच्छे से उठना आता है जबकि मुझे इतना अच्छे से उड़ना नहीं आता था मैं तो उस समय बहुत छोटा था। किसी का भी कहना ना मानते हुए मैं चुपके से उड चला अपने से बड़े पक्षियों के साथ। कुछ तोड़ने के बाद मैं काफी थक गया था। हम एक घर के छज्जे पर जाकर थोड़ी देर विश्राम के लिएबैठ गए। कुछ दाने पड़े हुए थे हम वह दाने खाने का आनंद उठाने लगे।
अचानक किसी ने हम सब पक्षियों की ओर एक पत्थर दूर से फेंका, पत्थर जाकर सीधा मेरे सर पर लगा और मैं वहीं घायल होकर गिर गया बाकी सभी पक्षी उड़ कर एक पेड़ पर बैठ गए। मैं बहुत छटपटाता रहा पर मैं उड़ नहीं पाया अचानक ही वह लड़का जिस ने पत्थर मारा था आकर उसने मुझे पकड़ लिया मैं बहुत चिल्लाया बहुत उड़ने की कोशिश की बचाओ बचाओ चिल्लाता रहा पर कोई भी पक्षी मेरी सहायता के लिए आगे नहीं आया। सब उदास होकर और डर से मुझे देख रहे थे पर कोई भी डर के मारे मुझे बचाने नहीं आया।
मेरे माथे से बहुत ही खून बहने लगा । इतनी वेदना हुई कि सहना मुश्किल था। पास में ही बैठा रवि यह सब देख रहा था। उसने उस लड़के को बहुत बुरा भला कहा और अपने घर से भगा दिया।
रवि ने मुझे अपने घर में रख लिया। मेरी मरहम पट्टी कि मुझे खाना खिलाया दो-तीन दिन बाद जब उड़ने के लिए पंख फड़फड़ाए तो रवि नें मुझे उड़ने नहीं दिया। उसन मुझे पिंजरे में बन्द कर दिया। वह मुझे तरह-तरह के प्रलोभन दे कर मुझ से खेलनें का प्रयत्न करता। मैं चूं चूं ची चीं करके उसे कहना चाह रहा था कि मुझे भी तुम्हारी तरह अपनें माता-पिता से बिछड़ना अच्छा नहीं लग रहा। मेरी भाषा उसे कैसे समझ आती। वह तो मानव जाति का था। वह तो मेरी तरह उड़ नहीं सकता था। वह तो पैदल चल सकता था या गाड़ी में। मेरी व्यथा वहां कोई भी सुनने वाला नहीं था। मुझे अपने माता-पिता की याद आ रही थी।

“पराधीन व्यक्ति का अपना कोई व्यक्तित्व,कोई अधिकार नहीं होता। पराधीन होनें के कारण उसे अपनी सृजनात्मक शक्तियों को व्यक्त करनें का अवसर नहीं मिलता। उसके लिए तो नर्क और स्वर्ग दोनों समान है। पराधीन व्यक्ति हर रोज मरता है”।

एक दिन मैं चुपके से अच्छा अवसर जुटा कर वहां से उड़ने में कामयाब हो गया जब मैं उड़ा तो अपनें आप को स्वच्छन्द महसूस कर रहा था। जब पीछे मुड़ कर देखा तो बहुत सारे भयानक पक्षी जीव पक्षी मुझे मारने के लिए मेरा पीछा करने लगे। मैं जब अपने घोंसले में आया तो मेरे माता-पिता मुझे वहां नहीं मिले ।मैं बहुत ही मायूस होकर सोचने लगा कहां जाऊं ? क्या करूं ? अगर यहीं पर रहता हूं तो कोई ना कोई जीव जंतु मुझे मार कर खा जाएगा क्योंकि मुझे अच्छे से अभी उड़ना भी नहीं आता था । इसके लिए मुझे बहुत संघर्ष करनें पड़े। मैं जब मुझे ढूंढने का प्रयत्न करता भयानक पक्षी मेरा पीछा करनें लगते। मैं कभी एक वृक्ष की ओट से दूसरे में छिपनें कि कोशिश करता तो बहुत सारे पक्षी मुझे डरा कर कहते यह तुम्हारा रैन बसेरा नहीं है।एक दिन
थक हार कर मैं उस घर में रवि के वापस लौट आया।
रवि ने मुझे अपने घर के बरामदे की शाखा पर बैठा देखा तो उसने मुझे फिर से पकड़ लिया। वह अपने मम्मी पापा से जिद करने लगा कि मैं इसे पालूंगा। उसके मम्मी पापा नें उसे अनुमति दे कर कहा तुम अगर हर रोज दिल लगा कर पढ़ाई करोगे तो तुम इसे पाल सकते हो। जहां पर रवि जाता उसके पीछे पीछे जाता। वह उसके साथ बैठ कर पढ़ाई करता वहां पर बैठकर उसे हमेशा पढ़ाई करते देखा करता था। जब भी जो कुछ भी पढ़ता मैं भी सीख गया। रवि बड़ा हो चुका था। बड़ा होकर कॉलेज में पढ़ने गया तो वह मुझे भी साथ ले जाना चाहता था मगर उसके मां-बाप नहीं मानें उन्होनें मुझे छोड़नें की सलाह दी।। मैं फिर आज़ाद हो कर कभी एक शाखा पर कभी दूसरी शाखा पर जाने के लिए मुझे बहुत ही संघर्ष करना पड़ा । क्योंकि मैं उड़ना भूल चुका था। इतने साल में एक पिंजरे में बंद रहा था। मैंने सोचा क्यों ना जो कुछ मैंने पढ़ा है जो कुछ सीखा है उसे अपनी जाति में बांटनें का काम करूं। मैं अपनी जाति पक्षियों को पढ़ाने लगा ।
अगर मेरे मित्रों ने मेरी सहायता उस वक्त की होती तो मैं अपने मां बाप से जिंदगी भर के लिए हाथ नहीं दो बैठता। मेरी तलाश में वह कहां-कहां नहीं भटके होंगे कहां-कहां नहीं गए होंगे पता नहीं वह आज कहां होंगे। यह कहते कहते गुरु तोताराम जी की आंखें नम हो गई भरे मन से उन्होंने बच्चों को समझाया।

बच्चों अपने माता-पिता की बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए उनकी आज्ञा अवश्य माननी चाहिए। हमें एक दूसरे की मदद अवश्य करनी चाहिए। माता पिता कि डांट फटकार में स्नेह छिपा होता है।
गिन्नू चिड़िया और चून्नी चिड़िया जब अपने घर पहुंची तो थकी हुई थीं। घर आकर उन्होंने सारा किस्सा अपनी मां को सुनाया। मां ने कहा बेटा तुम्हें स्कूल भेजकर मैंने बुरा नहीं किया। वहां पर बहुत ही अच्छे अच्छे संस्कार सीखते हो। एक दिन चीकी चिड़िया ने देखा कि साथ वाले घोसले में किसी के रोने की आवाज आ रही थी। रिंपी चिड़िया जोर जोर से रो रही थी। उसको रोता देख कर चींकी बोली बहन तुम क्यों रो रही हो वह बोली बहन क्या बताऊं ? कल से चंपू घर नहीं लौटा है। उसे सारे जगह तलाश किया मगर उसका कहीं पता नहीं चला। यह कहकर वह और भी जोर जोर से रोने लगी ।गोपू यह सब देख रहा था उसे बहुत बुरा लग रहा था।गोपू नें अपनें भाई पीकू को कहा हम दोनों चुपके से चंपू को ढूंढने में आंटी कि मदद करेंगें। स्कूल से आते हुए वे अपने दोस्त चपूं को ढूंढने जाते ।
एक दिन जब वे स्कूल से वापस आ रहे थे तो वहां पर एक पेड़ कि शाखा के पास उन्होंने बहुत सी चींटीयों को देखा। उन्होंने अपने साथी को उठाने के लिए एक पत्ती का प्रयोग किया। वह चींटी का बच्चा उन्हें बेहोश अवस्था में मिला था। वे दोनों छिप कर देखते रहे । थोड़ी देर में उन्होंने देखा कि वहां पर बहुत सारी चीटीयां ईकटठी हो गई थी। वह सब एक साथ मिलकर उस चींटी को उठाने का प्रयत्न करने लगी। उसे लेकर अपने मुखिया के पास गई ।मुखिया बोली कि मुझे खुशी है कि तुम अपने भाई बंधुओं को बचाने में लगी थी। यह बेचारी तो मर गई है । सारी की सारी चींटियां यह सुन कर उदास हो गई। गोपू ने टिक्कू को कहा कि चंपू भी किसी किसी खतरे में तो नहीं पड़ गया है? चलो उसे मिल कर ढूंढते हैं काफी देर उड़ते उड़ते उन्हें एक जगह पर पेड़ का तना टूटा हुआ दिखाई दिया। उसके पीछे चिड़िया के पंख दिखाई दिए। अब क्या किया जाए ? इस लकड़ी के टुकड़े को कर कैसे उठाया जाए? उन्हें गुरु तोताराम जी की सुनाई हुई कहानी याद आई। उन्होंने जोर जोर से चीं चीं कर के अपने सभी पक्षियों को सहायता के लिए पुकारा तो सारे के सारे पक्षी वहां इकट्ठे हुए ।सभी ने मिलकर उस लकड़ी के तने को वहां से हटा दिया। उनके नीचे सचमुच ही एक छोटा सा चिड़िया का बच्चा फंसा था।
चिड़िया का बच्चा मरा नहीं था उसकी धीमी धीमी सांसे चल रही थी। अरे यह तो चंपू है। जल्दी से गोपू नें डॉक्टर चिक्कू को बुलाया। विद्यालय में डॉक्टर चिक्कू बच्चों को टीका लगानें आए थे। उन्होंने दो बच्चों को अपनी घर का पता बता दिया था। चीकू डाक्टर नें समय पर पहुंचकर चंपू की जान बचाई। गोपू नें चंपू को पहचान लिया था। गोपू ने टीकू को को कहा कि चलो जल्दी से आंटी को खबर करते हैं। चंपूं कि मां नें 5 दिन से कुछ भी नहीं खाया था। घर पर गोपू और टीकू के माता- पिता परेशान हो रहे थे कि बच्चे कहां चले गए। उन दोनों को सुरक्षित घर आया देख कर सारे परिवार के लोग प्रसन्न हो गए। अपने माता पिता को सारा किस्सा कह सुनाया कि कैसे उन्होनें अपने दोस्त को ढूंढ निकाला। उसकी मदद करके हमने उसे नया जीवन दान दिया है। आज हमारी मेहनत रंग लाई है। आज हमने अपने साथी की मदद करके अपना दायित्व बखूबी निभाया है।
यह सब शिक्षा हमें गुरु तोताराम जी ने ही दी थी उनकी शिक्षा के बिना यह सब संभव नहीं था । गुरु तोताराम जी ने जब यह सब सुना तब उनकी आंखों से हर्ष और गर्व के आंसू झलक पड़े।

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