सोच का दायरा – भाग – 2

सौरभ सुबह सुबह जल्दी सभी कार्यों से निवृत्त हो कर स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाया करते थे ।वह एक हाई स्कूल में मुख्याध्यापक थे । छोटा सा परिवार था। अपनी पत्नी को कह देते थे कि जल्दी से खाना बना दिया करो मुझे जल्दी स्कूल पहुंचना होता है। उनकी पत्नी रेखा सुबह उठकर ही उन्हें खाना दे देती थी। बेटा बैंक में काम करता था उनकी बहू भी प्राइवेट नौकरी करती थी। वह तो सुबह सुबह ही बहु को कहते कि बेटा मेरे कपड़े प्रेस कर दो। वह सभी से अपना काम करवा लेते थे। उनका पोता दूसरी कक्षा में पढ़ता था। स्कूल में पढ़ाते पढ़ाते उन्हें 32 साल हो चुके थे ।उनके रिटायरमेंट के 5 साल रह चुके थे वह जब स्कूल से थके हारे घर आते तो जल्दी से खाना खा कर आराम करते। उनकी पत्नी उन्हें कहती कि कभी मेरे साथ बाजार भी चला करो पर वे कहते कि मेरे पास समय नहीं है। स्कूल का बहुत काम पड़ा है उनकी पत्नी को बहुत बार अपने पति पर गुस्सा आता था ।वह मुझे कभी बाजार भी नहीं लेकर जाते हैं। घर के सदस्य भी उन से कहते कि कभी तो छुट्टी ले लिया करो हमारे साथ भी आप कभी समय बिता लिया करो मगर सौरभ तो एक पल भी व्यर्थ नहीं गंवाना चाहते थे। उनके रिटायरमेंट के अभी 5 साल थे। उनकी पत्नी के साथ कभी कभी कहासुनी हो जाता करती थी। वह हर बात को हंसी में टाल दिया करते थे। आज भी ऐसा ही हुआ उनकी पत्नी नाराज हो कर चली गई थी ।बेटा भी उनसे नाराज हो गया, पापा आप तो स्कूल से कभी छुट्टी ही नहीं लेते।
सौरभ को भी गुस्सा आ गया था। स्कूल में पहुंचे तो हैडमास्टर साहब को कहा कि मैं अभी ही रिटायरमेंट लेना चाहता हूं।‌ हैंड मास्टर साहब बोले जरा बैठ कर मुझे समझाओ माजरा क्या है? उन्होनें सारा किस्सा सुना दिया कि मैं घर वालों के साथ समय नहीं बिता पा रहा हूं।पहले मैं गुस्सा नहीं होता था।अब मुझे भी गुस्सा आनें लगता है। शायद बुढ़ापे का असर हो। हैडमास्टर साहब बोले जब इन्सान कि उम्र ज्यादा हो जाती है तो उसे गुस्सा आनें लगता है।आप अपनें आप को व्यस्त रखा करो। जल्दबाजी में कभी निर्णय नहीं लेना चाहिए। हैडमास्टर साहब बोले आप ने यह फैसला सोच समझ कर लिया है या जल्दबाजी में। पांच साल बाद तो आपने घर में ही बैठना है। पांच साल पहले ही क्यों घर में रहने की सोचने लगे ?वह बोले कि मैं घर वालों को समय नहीं दे पा रहा हूं। वे मुझ से उखड़े उखड़े रहते हैं। हैडमास्टर साहब बोले कि हर घर में लड़ाई झगड़ा होता है कभी तो अपने घर वालों का कहना भी मानना चाहिए। हमें जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। 5 साल बाद तो आप घर पर ही रहेंगे अभी तो 5 साल बहुत होते हैं ।अच्छा आपकी बात मान कर मैं आपको सोचनें के लिए 15 दिन का समय देता हूं ।सौरभ बोले कि मैं घर वालों को नहीं बताऊंगा। घरवालों को बताऊंगा कि मैं अपनी स्वेच्छा से सेवा निवृत हुआ हूं। मुझे उनको परखनें का मौका भी मिल जाएगा।

हैडमास्टर साहब बोले ठीक है आप कुछ दिन घर का आनन्द लें। जब घर आए तो सबके साथ खुश होकर बोले कि मैं आज आप सभी को खुशखबरी सुना रहा हूं। बेटा बोला, पापा क्या आप कि प्रमोशन हो गई है? सौरभ बोला नहीं मैं स्कूल से सेवा निवृति ले कर आया हूं। आप सबको खुश देखना चाहता हूं ।अपनी पत्नी की तरफ देख कर बोले अब तो खुश हो ना मैं तुम्हारे साथ हर रोज बाजार जाता करुंगा।वह बोली आपने पहले ही त्यागपत्र क्यों दे दिया? अभी तो आपके पांच साल शेष थे ।घर में बैठकर तो आप बेकार हो जाएंगे ।इतनें में बेटा भी आकर बोला मैं यह क्या सुन रहा हूं ?पापा आप नें समय से पहले रिटायर मैन्ट क्यों ली? आप तो स्कूल जाते हुए ही अच्छे लगते हो पांच साल बाद तो आप ऐसे ही रिटायर हो जाने थे। वह बोली बेटा मैंने तो तुम सब की खातिर रिटायरमेंट ली है ।बहु, बेटा यह सुन अपने कमरे में चले गए ।

सुबह सौरभ काफी देर तक सोते रहे। किसी नें भी उन्हें जगाना ठीक नहीं समझा। सुबह-सुबह जब सो कर उठे बेटे को बोले, बेटा जरा अखबार तो दे जा ।मैं पढ़ लूंगा। बेटा पापा आप तो अब सारा दिन घर पर ही रहेंगे। अखबार आप बाद में पढ़ लेना ।अभी मैं पढ़ लेता हूं। आप तब तक कुछ और काम कर लें। उन्होनें अपनी पत्नी को चाय के लिए कहा ।जरा चाय तो दे जाओ। उनकी पत्नी बोली कि आज चाय की पत्ती खत्म है। आप राजू के साथ जाकर चाय और सब्जी ले आओ । अपने कमरे में आकर सोचने लगे यह सब मुझे अभी से आदेश देने लगे। जब इंसान रिटायर हो जाता है उसकी कोई हैसियत नहीं होती ।वह अपने आप को छोटा महसूस करने लगे। पहले स्कूल में बच्चों को काम करने के लिए कहता था ।वह एकदम उसका काम पलकझपकते ही कर दिया करते थे। सारे के सारे अध्यापक उनका सम्मान करते थे। आज उन्हें बहुत ही दुःख हो रहा था।
उन्होंने चुपचाप थैला लिया और राजू को साथ लेकर चाय लेने बाजार चले गए। मुंह से कुछ नहीं बोले। सारा दिन उनका मन काम में भी नहीं लगा ।वह सोचने लगे कि मेरे घरवाले तो पहले मुझसे कहते थे कि आपके पास समय ही नहीं है ।अब समय ही समय है तो मुझ से अच्छे ढंग का बर्ताव नहीं कर रहे।राजू को साथ लेकर बाजार से चाय ले कर आ गए।किसी भी काम में उन का मन नहीं लगा। दो-तीन दिन ऐसे ही बीत गए ।उनकी पत्नी उन्हें खाली मायूस बैठा देख कर बोली आप ऐसे भी तो यूं ही खाली बैठे हो दाल ही साफ कर दो। अपनी पत्नी पर उन्हें बहुत ही गुस्सा आया ।उन्होंने मन में विचार किया कि अच्छा ही हुआ उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया।वे पन्द्रह दिन बाद स्कूल चले जाएंगे। वे सोचनें लगे पन्द्रह दिन मुझे 15साल लग रहें हैं।
एक दिन घूमते घूमते वे अपनें पुराने खास दोस्त के घर चले गए।वे उनके काफी पुरानी परिचित थे। उनके साथ उन्होनें बहुत समय बिताया था। उनके साथ उनकी गहरी मित्रता थी।उनको खोया खोया और उदास देख कर बोले क्या बात है?अपनें दिल कि बात कह देनें से दुःख हल्का हो जाता है।वे बोले मैनें पांच साल पहले ही रिटायर मैन्ट ले कर अपनें पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है।सोचा था उनकी शिकायतों को मिटा दूंगा लेकिन जो मैं सोचता था शायद वह गल्त था।
उन्होंने उन्हें सारी समस्या बताई कि घर वाले भी उनसे नाराज हैं कि आपने रिटायरमेंट क्यों ली? मुझे काम पर लगा दिया। वे सभी मुझे प्यार नहीं करते।मेरी पत्नी भी मुझ से शिकायत करती थी कि मुझे कभी बाजार नहीं ले जाते।बेटा बहु बहुत ही नाराज हो जातें हैं कि हम से कभी मिल बैठ दो शब्द भी नहीं कहते हो।
वर्मा जी बोले कि आपने अब उनके प्रति गलत राय कायम कर ली है। वह आपके शत्रु नहीं है। वह आपसे इसलिए कह रहे हैं कि आप कहीं घर में बैठे-बैठे उदास ना हो जाए। आप जरा खुल कर उन के साथ बोल कर के देखो तो वेआपको तंदुरुस्त देखना चाहते हैं। इसलिए वे आप को काम में लगाते हैं ताकि आप व्यस्त रहें। आपकी पत्नी भी आपसे गहरा प्रेम करती है ।मैं तो कितनी दफा आप के घर आया हूं।एसा परिवार तो खुशनसीबों को ही मिलता है।आपने उनके प्रति गलत नजरिया कायम किया है। आप कभी अपनी कहें कुछ उनकी सुनें।हर सुख-दुख उन से साझा करें।अपनी पत्नी को अपनें मन कि सभी बातें साफ साफ कहें। अपनें जीवन साथी से कोई भी बात नहीं छिपानी चाहिए।उन के साथ मजाक भी करें और पोते के साथ खुब मौज-मस्ती किजीए, तब देखें।मेरी बात पर गौर करना।ताली दोनों हाथों से बजती है।आज के पढ़ें लिखे बच्चों को तो समझानें कि जरुरत ही नहीं पड़ती।
आपको मेरी बात पर विश्वास ना हो तो बीमारी का नाटक करके देख लो।
शाम को जब सौरभ घर लौटे तो सब ने उन्हें खाने के लिए, खाने की मेज पर बुलाया तो वह बोले कि मुझे भूख नहीं है। बेटा बोला, पापा क्या आपको सचमुच भूख नहीं है? सौरभ बोले नहीं ।बेटा ,बहू बोले कोई बात नहीं अगर भूख नहीं है तो खाना भी नहीं चाहिए। शाम को चुपचाप ऐसे ही पड़े रहे उनके मन में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल आते रहे? सचमुच में ही मेरे घर वाले मुझे प्यार ही नहीं करते ।
सुबह जगे तो उन्हें सचमुच ही बुखार आ गया था। उनकी पत्नी अपने पति के पास आकर बोली कि आज आप की तबीयत ठीक नहीं है। आज आप सारा दिन आराम करेंगे ।वह जल्दी ही चाय बना कर ले आई। बेटा और बहु भी पास आकर बोले पापा आज बाजार नहीं जाएंगे। सारा काम आज हम करेंगे। बाजार से जाकर हम सब जरूरत की चीजें लेकर आएंगे। आप आज आराम करो ।बेटा बोला कि आज मैं भी छुट्टी ले लेता हूं ।
अभि बोला कि पापा कहीं आपको रिटायरमेंट लेने के बाद बुरा तो अनुभव नहीं हो रहा है। ऐसा था तो आपको अभी काम पर चले जाना चाहिए था ।पांच साल बाद तो आप रिटायर हो ही जाने थे। हम सभी आपके बारे में चिंतित थे आप घर में इधर-उधर थोड़ा थोड़ा काम जो आपको अच्छा लगे वह ही किया करो आपको तो ज्यादा काम करने की आवश्यकता भी नहीं ।जब सब चले गए तो उन्हें महसूस हुआ कि वे अपने बच्चों को कितना गलत समझ रहे थे । उन्होंने अगर उन्हें चाय ले जाने के लिए या कुछ काम करने के लिए कह दिया तो इसमें बुराई ही क्या है ?इंसान को छोटे-छोटे काम करके मजा ही आएगा और खुशी भी होगी ।उनके मन से सारा संशय हट गया था।
दूसरे दिन उनका जन्मदिन था। सुबह सुबह जब चाय पीने बैठे तो एक बार फिर उदास हो गए।आज घर के किसी भी सदस्य ने उनके जन्मदिन की मुबारकबाद नहीं दी ।उनके मन में एक बार फिर आ गया कि हर बार बच्चे मेरा जन्मदिन मनाते हैं आज तो किसी ने भी उन्हें जन्मदिन की मुबारकबाद नहीं कहीं ।पत्नी भी उन्हें बिना कुछ कहे खाना बनाने चलीं गईं।
सारा दिन वह बुझे बुझे से रहे। एक बजे के करीब सब परिवार के सदस्य बोले कि चलो आज हम मिलकर अपने साथ वाले फार्म पर टहलनें चलते हैं।आज तो बाबू जी भी हमारे साथ हैं।सब के सब ठहाका लगा कर हंसनें लगे।उन्हें बहुत ही बुरा अनुभव हो रहा था।किसी तरह मन को समझाया घर में इतना काम होता है याद ही नहीं आता होगा।मैनें कभी गौर ही नहीं किया वे बेचारे भी तो थक जातें होगें।मेरी पत्नी बेचारी मेरी बिमारी कि खबर सुन मेरे पास ही सिरहाने बैठी रही। ठीक ही तो कहती हैं हर बार जब बाजार जानें के लिए कहती है तो कोई न कोई काम बिना कारण उसे नाराज कर देता हूं।मैं अपनें ही काम में इतना व्यस्त हो जाता था कि उन कि छोटी छोटी परेशानियों कि तरफ मेरा ध्यान गया ही नहीं।कोई बात नहीं सब का मन रखनें के लिए फार्म हाउस चल ही पड़ता हूं।

बाबूजी का मन भी नहीं था फिर भी वह बुझे बुझे मन से फार्म हाउस पर चल दिए। वहां पहुंचकर चौक गए। फार्म हाउस बहुत ही अच्छे ढंग से सजाया हुआ था। वहां पर बहुत सारे लोग एकत्रित हुए थे। वे जैसे ही वहां पर पहुंचे बाबूजी को हार पहनाकर उनका जन्मदिन मनाया गया उसके बाद केक काटकर खूब जश्न मनाया गया। उनके बेटे नें बहुत सारे लोगों को पार्टी पर बुलाया था ।जब फंक्शन समाप्त हुआ तो बेटा बोला पापा हमने आपको सरप्राइस दिया। आप इसी तरह मुस्कुराते रहें और हर दम हमारे साथ मौज मस्ती करते रहे।सौरभ बोले बेटा मैंने भी तुम्हें सरप्राइस दिया है। मैंने रिटायरमेंट नहीं ली थी कल से मैं ऑफिस जा रहा हूं ।मैं भी ऐसे ही तुम्हें सरप्राइस दे रहा था । तुम सब के बारे में ना जाने क्या-क्या सोच कर परेशान हो रहा था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। यह सब हमारी सोच का नजरिया है। अपनी सोच को सकारात्मक बनाना चाहिए चलो बच्चों आज मैं तुम्हें चाय बनाकर पिलाता हूं ।चाय पती कम या ज्यादा पड़ जाए तो चुपचाप पी जाना। एक बार फिर हंसी के ठहाकों से घर जगमगा उठा।

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