कटोरी और घड़े की नोंक झोंक

एक घड़ा पानी से भरा भरा रहता था।।
साफ स्वच्छ और लबालब धरा रहता था ।
उसके ऊपर एक कटोरी सदा ही शोभायमान रहती थी।
शोभायमान होकर अपनी अकड़ दिखाती रहती थी ।
पात्र घडे के पास पानी पीने जाते ।
जल पीने के लिए उनके सामने अपना मुख नवातें।
घड़ा प्रसन्नता पूर्वक उनको जल पिलाता था।
शीतल जल पिलाकर उनको देखकर मुस्कुराता था।
कटोरी यह सब देखा करती थी।
हरदम वेदना और कड़वाहट उसके मन में भरी होती थी।


एक दिन कटोरी घड़े से बोली,
मैं हूं तुम्हारी हमजोली।
मैं अपने मन की बात तुम से कहती हूं।
अपना हम-दर्द समझ कर तुम्हें अपनी व्यथा सुनाती हूं।
जो भी बर्तन तुम्हारे पास है आता,
खाली लौट कर नहीं जाता।
ये कैसी है आनाकानी
तुम मुझ से क्यों करते हो मनमानी,
सब को संतुष्ट करते रहते हो।
मुझ से तुम छल क्यों करते रहते हो।
मैं सदा तुम्हारे साथ रहती हूं।
तुम्हारे द्वारा भरे जानें को आतुर रहती हूं।


घड़ा कटोरी से बोला मैं किसी से पक्षपात नहीं करता,
मैं तुम्हें सच्ची सीख ही दिया करता।
पात्र जल पानें के लिए विनित भाव से हैं झूकते।
तुम्हारी तरह अकड़ नहीं दिखाते।
तुम तो गर्व से चूर हमेशा रहती हो।
अपना अहंकार सदा दिखाती हो।
नम्रता से जब झुकना सीखोगी,
तुम्हारी झोली कभी खाली नहीं होगी,
तुम हमेशा प्रशंसा की पात्र बनी रहोगी।।

नेक उदयसेन

राजा केतभानु के छोटे से राज्य में प्रजा बहुत ही खुशहाल थी। राजा का वज़ीर उदयसेन बहुत ही नेक दिल इंसान था। वह  हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता था।उसके पास जो कुछ भी बचता था वह सब गरीबों में बांट दिया करता था। राजा भी अपने वज़ीर पर बहुत विश्वास करता था। पर महल में कुछ मँत्रियोंं को उनकी दोस्ती नहीं भाई। राजा के छोटे भाई कुमार को बहला-फुसला कर उन्होंने  राजा और वज़ीर के बीच में दरार डलवा दी । 

कुछ कर्मचारियों नें राजा के भाई उदय सेनको अपनी तरफ मिला लिया और साज़िश कर के वज़ीर पर चोरी का आरोप लगा कर  उदय सेन को उसके पद से और महल से बाहर करवा दिया।

उदयसेन बहुत ही नेक था पर उसने कभी यह सोचा भी नहीं था कि राजा उसे अपने महल  से जाने के लिए कह देगा । उसने तो राजा के कोष से कभी भी रुपए चोरी नहीं किए। उसके खजानें में से उसके अपने ही भाई और मंत्री रुपए  चुरा लेते थे। जो राजा पहले उस पर इतना विश्वास करता था आज उसने ही अपने महल से बाहर फेंक दिया। उसने सोचा कोई बात नही एक दिन जब राजा के अपनें हीे उसे धोखा देंगे तब पता चलेगा।

उदय सेन अपनी  पत्नी और बच्चे को लेकर उसी राज्य के एक कस्बे में एक छोटे से मकान में रहने लगा। वह मेहनत करके अपनी पत्नी  रुचिका और बेटे अभय का पालन पोषण कर रहा था। उसके पास अपने गुज़ारे लायक़ भी रुपया नहीं बचा था। एक दिन उसने अपनी पत्नी रुची को कहा कि मैं कुछ कमा कर ही   लाऊंगा तुम चिन्ता मत करो। सब कुछ समय के अनुसार अवश्य ठीक हो जाएगा।अपने घर से निकलकर वह एक घनें जंगल में चला गया। 

पेड़ पर बहुत ही  मीठे मीठे फल लगे हुए थ। हरे-भरे अमरूदों को देखकर उसका मन अमरूद खाने के लिए ललचानें लगा। वह सोचनें लगा कि मैं इन अमरुदों को ले जाकर बाजार में बेच दूंगा ।मुझे कुछ रुपया तो मिलेगा अगर आज कुछ रुपया बचाया होता तो आज उसे यूं दर-दर नहीं भटकना पड़ता। जब  वह अमरूदों को तोड़ने ही जा रहा था उसने कुछ व्यक्तियों को बातें करते सुना। वे कुल मिलाकर 12 लोग थे। उनकी बातों से लगता था कि वे किसी खास जगह जा रहे थे। वह चुपचाप उनकी बातें सुनने लगा। वह आपस में कह रहे थे कि जल्दी ही यहां से चलो। वह भी पेड़ से उतरकर चुपके से उन सेे छिपते  छिपाते चलने लगा। उस नाव में बहुत से और लोग भी सवार थे।वे बारह लोग एक साथ बैठ कर आपस में बातें करनें लगे। उन्होंनें नाव में नदी पार की । मंत्री ने भी उनके साथ साथ चुपके चुपके पत्थर की ओट से छिपते छिपाते नदी पार कर ली। वह भी जल्दी से नदी के दूसरे छोर पर पहुंच गया था । वहां पर झाड़ियों के पीछे छिप गया। वहां पर बहुत घनी झाड़ियों के पीछे एक बहुत ही बड़ी चट्टान थी। उस चट्टान को देखकर लगता था कि वह बहुत ही खास  होगी। वह बहुमूल्य पत्थर से तराशी गई थी। कोई मामूली चट्टान नहीं थी। उसको हटानें की जितनी कोशिश कर लो वह वहां से खिसक भी नहीं सकती थी। वे सभी 12 आदमी उस चट्टान के पास पहुंच गए। उन्होंने संगीत के स्वर में ध्वनि निकाली। चट्टानों के बादशाह चट्टानों के बादशाह हम आए हैं तेरे द्वारे। हमें जल्दी शीश महल में पहुंचा। हमें शीश महल में पहुंचा। उन्होंने उस पथरीली चट्टान के चरण स्पर्श किए। वहां से उनके इतना कहते ही चट्टान हिल गई ।जल्द बाजी में उनकी चाबी नीचे  गिर गई। उस वजीर नें वह चाबी उठा ली। वह भी उनके पीछे-पीछे हो लिया। चुपचाप इनके पीछे-पीछे शीश महल में पहुंच गया। अंदर जाकर वे लोग एक बड़े कमरे में बैठकर बातें करनें लगे। 

उनके पास हीरे मोती जवाहरात थे। उदयसेन को पता चल चुका था कि वह सब के सब चोर हैं। उनमें से एक  बोला कि इतना माल इकट्ठा हो गया है इसे जल्दी से यहां से कहीं और रख देंगे। उन में से एक नें अपनें मुखिया को कहा कि एक चाबी तो आप के पास है।  आपनें हमें बारी बारी से चाबी रखने को दी थी। उन में से एक बोला जरा चाबी तो दे दो। मुखिया बोला मेरे पास तो अपनी चाबी है। मुखिया की ओर देख कर दूसरा व्यक्ति बोला शायद  मेरे हाथ से वह द्वार के बाहर गिर गई। उदय सेन डर के मारे कांपनें लगा। वह द्वार की ओट में ही छिपा था। हे भगवान‌ आज बचा ‌ले। मुसिबत की घड़ी में भगवान ही याद आतें है।

सभी के सभी उसकी तरफ गुस्सा भरी नज़रों से बोले। इस शीश महल की दो ही चाबीयां हैं। एक चाबी तो मेरे पास रहती है उनका मुखिया बोला । एक चाबी तुम बारी-बारी से रखते हो आज इस टपोरी की बारी थी। सबके सब बोले व्यर्थ की बातों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए अगर हमें चाबी नहीं मिली तो हम शीश महल  से भी हाथ धो बैठेंगें। जिसके पास दो चाबी होती है उसकी ही सारी धन-दौलत होती है इससे पहले कि किसी को भी हमारी भनक भी लग जाए हमें वह चाबीयां जल्दी से जल्दी ढूंढ निकालनीं होगी।

 यह बात उदयसेन ने सुन ली थी । मुझे उस  संगीत की तरफ ध्यान देना होगा। मां से बचपन में सुना था कि चोर लुटेरे अक्सर किसी गुढ शब्दों का प्रयोग करतें हैं। शायद उस संगीत में ही  शीश महल कैसे खुलेगा यह राज छिपा होगा। ध्यान लगा कर उस ध्वनि को सुनता हूं। वह उस दिन किसी न किसी तरह गुफा से बाहर उन लटेरों के पीछे पीछे निकलने में सक्षम हो गया। अच्छा ही हुआ उन लुटेरों  की उस पर नजर नहीं पड़ी। । उसने तो आज उनकी आवाज भी सुन ली। वह कह रहे थे कि ना जाने चाबी कहां गई।

जिसको चाबी मिली होगी  वह उस गुफा मे छानबीन करनें  जरूर आएगा। हमें हर व्यक्ति पर नजर रखनी होगी।

राजा का भाई बहुत ही शातिर था। उसने  एक दिन चुपके से उदयसेन की बातें चोरी छिपे कर सुन ली । वह अपनी पत्नी से कहा रहा था तुम्हें चिन्ता करनें की कोई आवश्यकता नहीं। मुझे जंगल में कुछ खुफिया सुराग मिलें हैं। मैं उन का पता लगा कर ही रहूंगा। राजा का भाई भी छिप छिपकर कर उदयसेन का पीछा करता रहता था।

एक दिन राजा के  भाई ने उन चोरों का पीछा किया । वे जंगल में एक छोर पर  पंहुचा कर नदी के पास जाकर रुक गए। वहां पर बहुत ही सुंदर  बहूमुल्य चट्टान को देखकर हैरान हो गया। उसके मन में लालच उमड़ आया।यह तो बहुत किमती चट्टान होगी। यह पत्थर किनारे पर होता तो कितना सुन्दर लगता।यह तो राजा के महल में होना चाहिए। उसने  घर आ कर राजा को सारा किस्सा सुनाया। राजा नें अपनें महल में घोषणा कर कहा कि जो कोई भी उस पत्थर को वहां से हटा कर महल में लाएगा उसे राजा मुंह मांगा ईनाम देंगे।उसे पता चल गया था कि उस सरोवर में एक शीशमहल है।

उदयसेन ने भी  सोचा कि वह तो इस पत्थर को हटा सकता है उसके पास चाबी है . उस  चाबी के इस्तेमाल से यह चट्टान अपनी जगह से हट जाएगी लेकिन वहां पर शीश महल दिखाई देगा।  राजा के भाई ने सोचा क्यों न मैं ही इस चट्टान को यहां से हटा दूं। कहीं यह मेरे भाई का चहेता बाजी मार गया तो बना बनाया काम चौपट हो जाएगा। लोगों में बड़ी मुश्किल से  वजीर के प्रति कडुवाहट पैदा करनें के लिए उसनें ही तो सब को उकसाया था। मेरे भाई को तो यह सोची समझी चाल पता ही नहीं होगी।

 राजा का भाई  उस चट्टान को हटाने की  बहुत ही कोशिश कर रहा था। इतने में। उदयसेन जंगल से फल लेकर लौट रहा था। उस को चट्टान हटाता देख कर बोला इस चट्टान को हटाना बहुत ही जान जोखिम का काम है। तुम्हें कैसे पता चला कि इस पत्थर के पीछे एक शीश महल है । उदयसेन राजा के भाई कुमार से बोला। मैनें सुना है कि उस शीश महल का एक बड़ा राजा है। जिसके पास उस इस महल की चाबी होगी वह ही महल में पहुंच पाएगा । राजा का भाई बोला तो मैं शीश महल में अवश्य जाऊंगा और चाबियां लेकर आऊंगा। उदयसेन ने सोचा कि वह मजाक कर रहा होगा । उदयसेन को क्या पता था कि वह सचमुच में  ही उन डाकुओं का पता करते करते उनके पीछे लग गया ।एक दिन उसने उन डाकुओं की सारी बातचीत सुनी। डाकू आपस में कह रहे थे कि हम इस चट्टान को तब तक नहीं हटाएंगे पहले हम इस शीशमहल के मालिक कोषाध्यक्ष से जाकर चाबी ले आते हैं । यह सब राजा के भाई ने सुन लिया था। वह जैसे ही चाबी लेने के लिए बरगद के पेड़ के पास गए उन्होंने वंहा एक गड्ढे में कुछ दबाया हुआ था । राजा के भाई नरेंद्र ने उस गड्ढे में से चाबियां निकालते हुए उसे देख लिया। राजा का भाई बड़ा खुश हुआ कि आसानी से उसे शीश महल की चाबी मिल गई। वहां पर जाकर देखूंगा कि इस गड्ढे में क्या है? वह भी उन लोगों के  साथ शीश महल में घुस गया । वहां पर हीरे जवाहरात देकर उसकी मन में लालच आया उसने देखा वह गुफा से बाहर आते हुए कुछ लोग आपस में बोल रहे थे। वहाँ काफी अंधेरा था ,वह चुपचाप वहां छिप गया। उन में से एक बोला जल्दी से चाबी यहां दबा देते हैं। उन्होंने वहां चाबी रख दी । राजा के भाई ने यह सब देख लिया। वह समझ गया कि हो न हो चाबी इसी गड्ढे में होगी। उनके जाने के बाद जैसे ही उसने चाबी निकालने और के लिए गड्ढे में हाथ डाला उसे सांप ने काट खाया। वह नीचे गिर पड़ा। 

  राजा का बेटा जब टहलनें के लिए घर से निकला तो रास्ते में उसके की साथी मिले। वह राजा के बेटे को कहनें लगे हम हर रोज तुम्हारे चाचा को यहां से जाते हुए देखते हैं।वह हर रोज सुनसान रास्ते से शुरू जानें कहां जाते हैं। तुम्हें देख कर इसलिए पुंछ ही लिया।राजा का बेटा बोला ऐसी कोई बात नहीं वह तो एकदम कुशल हैं। राजा का बेटा सोचनें लगा चाचा ने  जानें कहां जायेंगे आज वक्त भी है चल कर स्वयं पता करता हूं।वह जल्दी कदम बढ़ाने और लगा।अचानक राजा का बेटा भी वहां से गुजर रहा था। उसने जब चाचा को सड़क पर बेहोश देखा। अचानक उसकी नज़र चाबी पर पड़ी। उसने अचानक चाबी उठाई।उसने समझा चाचा बेहोश हो कर गिर पडें हैं।

उनकी जेब से यह चाबी नीचे गिर गई होगी। उसने अपनी गाड़ी में चाचा को  लिटाया। राजा के पास जाकर उसका बेटा बोला मेरे सामने चाचा बेहोश होकर गिर पड़े ।वह कह रहे थे कि लुटेरे शीश महल चाबियां मुझे यह समझ में नहीं आया वह क्या कहना चाहतें हैं। राजा नें वैद्य को बुला कर पूछा इन्हें क्या हुआ है। वैद्य बोला  इन्हें जहरीले सांप ने काट खाया है 5 घंटे के अंदर अगर वह सांप नहीं मिला तो इनकी जान चली जाएगी। राजा अपने भाई को बहुत ही प्यार करता था। उसने अपने महल में घोषणा कर दी कि जो कोई मेरे भाई की जान को बचाएगा उसे मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा। 

गाड़ी में किसी व्यक्ति को  ले जाते हुए लुटेरो नें देख लिया। उन  को पता चल गया था कि शीशमहल की चाबी उस लड़के के ही पास है। वह गाड़ी किसकी है। उन चोरों नें सब पता कर लिया।चाबी लेकर  जो गया है वह राजा का बेटा है ।यह सब नज़ारा उदयसेन देख रहा था। 

उदयसेन ने सोचा कि मैं ही  राजा के भाई की जान को बचाऊंगा ।राजा के पास जाकर बोला  भले ही आप मुझ से कितने भी नाराज हो मैं आप के भाई की जान अवश्य बचाऊंगा

संकट की घड़ी में आप का साथ अवश्य ही दूंगा भले ही आप के मन में मेरे प्रति कितनी भी कड़वाहट क्यो न हो,मैंनें आप का नमक खाया है। मैं आप के भाई की जान अवश्य बचाऊँगा। पहले मेरे पास उस चाबी को ला कर दो। राजा के बेटे ने उसे चाबी ला कर दे दी। राजा का बेटा बोला इस चाबी का क्या माजरा है? उदयसेन बोला तुम्हें यह सब मैं बाद में बताऊंगा।  वह गड्ढे के पास जाकर बोला इस महल के कोषाध्यक्ष आप को हाथ जोड़कर प्रणाम। मेरे इस दूत को क्षमा करो क्षमा करो। आप अपनी चाबी ग्रहण करो ग्रहण करो। 

 इस महल का मुखिया  कोषाध्यक्ष एक तक्षक नाग था।  वह मनुष्यों की भाषा में बोला तुम मुझे सच्चे इंसान लगते हो जो कोई भी  आज तक यहां आया उसने चाबी उठाने की ही कोशिश की।मुझे प्रणाम नहीं किया। बोलो क्या चाहते हो?। 

 उदयसेन बोला कि इस राजा के भाई की जान बख्श दो । वह तक्षक नाग बोला यह तो लालची है। वजीर बोला कि वह आपके सामने अपनी गलती स्वीकार करेगा। आप इसका जहर चूस लो। तक्षक नाग ने कहा कि चाबी आपके पास है। जिसके पास चाबी होती है उसकी सहायता मैं करता  हूं। चलो मैं इसका सारा जहर चूस लेता हूं। तक्षक नाग ने राजा के भाई का सारा जहर चूस लिया। उस को मालूम हो गया था कि जहरीले नाग नें उसे डसा था। जब उसे होश आया तो उसने हाथ जोड़कर तक्षक नाग से क्षमा मांगी। अपनी आंखों के सामने वजीर को देख कर चौंका अपनें भाई को बोला आप नें  इन्हें महल में क्यों आने दिया?राजा बोला कि इन्होंने ही तो तेरी जान बचाई है ।तुम तो जिंदा ही नहीं बच सकते थे इसकी वजह से ही तुम जिंदा हो वर्ना तुम तो मर गए होते।राजा ने सारी बात अपने भाई को सुना दी।

 यह सुन कर  उसके भाई को अपनी करनी पर बहुत  पछतावा हुआ। वह अपने भाई को बोला कि भाई मैंने आप दोनों में ग़लतफ़हमियाँ पैदा की थी । मेरी वजह से ही इन्हें महल से जाना पड़ा मुझे इन से ईर्ष्या हो रही थी कि आपने मुझे वज़ीर क्यों नहीं बनाया। आपने इनमें ऐसा क्या देखा जो मुझ में नहीं आज मैंने जाना आपने वज़ीर चुनने में कोई गलती नहीं की । मुझे माफ कर दो आप इनको वापस महल में बुला लो। मैं इस महल में इन्हें वापस लाने के लिए स्वयं इनके घर जाऊंगा मैं सोचता था कि आप मुझे ही राजा बनाओगे लेकिन एक दिन जब आप सभा में सब को संबोधित कर कह रहे थे कि मेरा वज़ीर उदयसेन बहुत नेक दिल इंसान हैं तब यह सुन कर मैं आग बबूला हो गया।मैनें आप से कुछ नहीं कहा मैनें  प्रजाजनों के साथ मिल कर उन्हें रुपयों का लालच दे कर उन्हें ऐसा करनें के लिए उन्हें विवश कर दिया।राजा को अपनी गलतियों का एहसास हुआ वह अपनें भाई को बोला पहले वजीर से क्षमा याचना करके उन्हें आदर सहित महल में वापिस नहीं बुलाओगे तब तक मैं भी तुम्हें क्षमा नहीं करूंगा।अभी जाओ और उस को समझा बुझाकर वापिस महल में ले कर आ।

राजा का भाई जब के घर पहुंचा उसके चरणों को पकड़कर क्षमा मांगते हुआ बोला कि आप भी मेरे बड़े भाई की तरह हो। आप मेरी गलतियों को जब तक क्षमा नहीं करेंगे तब तक मैं कभी भी अपने  आप को माफ नहीं करूंगा ।राजा नें वजीर को उसकी ईमानदारी पर मुंह-मांगा ईनाम दिया।

  उदयसेन चाबियां लेकर जा रहा था तो  उसे लुटेरों नें देख लिया वे उनका पीछा करने लगे उन्होंने सोचा की चाबियां राजा के बेटे के  पास है। राजा का बेटा जब महल की ओर जा रहा था तो लुटेरों ने उसे पकड़ लिया। उसे होश आ गया था। वे आपस में कहनें लगे कि अंदर चल कर इस से चाबियां  के बारे में पता करेंगे। वह उससे शीश महल ले गए। उस से पूछा कि जल्दी से बताओ की चाबियां कहां है? वह बोला मुझे किसी चाबी का पता नहीं है। उन्होंने उसकी खूब पिटाई की। उन लुटेरों नें उसे अंदर शीश महल में बंद कर दिया। उस से चाबी छीन ली। उसकी पैंट की जेब में चाबी मिल गई थी। वह उसे अंदर बंद करके चले गए। जब राजा का बेटा घर नहीं आया तो  राजा अपने बेटे के लिए बहुत परेशान हुआ। 

 उदयसेन  राजा से बोला  चाबी आपके बेटे के पास थी। उसे वह लुटेरे शीश महल के अंदर ले गए होंगे। राजा ने ऐलान किया कि जो मेरे  बेटे को शीश महल से छुड़ाकर लाएगा उसे में मंत्री पद पर नियुक्त कर दूंगा। वजीर ने सोचा कि मैं ही इस महल में जाने का  प्रयत्न करता हूं। वह पहले उस गुड्डे के पास पहुंच। गया। महल के कोषाध्यक्ष के पास जा कर बोला आप को शत शत प्रणाम। राजा को  बोला कि मैं इस शीश महल का कोषाध्यक्ष हूं। इस शीश महल के राजा को उन लुटेरों ने मार डाला। इस महल के राजा को उन लुटेरों ने मार डाला। यह सब खजाना मेरे राजा का है। एक ऐसा कमरा है जहां पर यह अपना चोरी किया हुआ माल रखते हैं। जल्दी से बेटा तुम इन चोरों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दो और उस खजाने को  राजा को सौंप दो। इस महल को तुम संभाल लेना। उदयसेनबोला कि मैं कैसे उस गुफा में जाऊंगा।तक्षक नाग बोला तुम कहना चट्टानों के बादशाह चट्टानों के बादशाह हम आए हैं तेरे द्वारे तुझे हाथ जोड़कर विनती करने आए हैं। खजाने को सही व्यक्ति के पास पहुंचाने आए हैं। अपना कर्तव्य निभाना अपना कर्तव्य निभाना। तुम्हारे यह कहते ही दरवाजा खुल जाएगा। तुम अंदर चले जाना  राजा के बेटे को बचाने अंदर चला गया। उसने उस चाबी से वह शीश महल खोला। उदयसेन जब वहां पहुंचा राजा का बेटा खुशी खुशी से मंत्री के गले लिपट कर बोला, आप जल्दी जल्दी से यहां से मुझे निकाल कर ले चलो। यदि वह लुटेरे आ गए तो वह हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे। वह उदयसेन को कह ही रहा था इतने में वह गुंडे, वहां पर पहुंच गए थे। वह बोले कि हमें पता था कि इस महल की दूसरी चाबी तुम्हारे पास है। हमें हमें पता था कि तुम इस को बचाने अवश्य आओगे। उदयसेन बोला कि हां तुमने ठीक सुना। उन्होनें उन दोनों को रस्सी से बांध दिया। उदयसेन बहुत ही होशियार था। वह अपनें साथ छोटी सी  कांच की चूडीलाया था। उसने वह चूडी अपनी कमीज की जेब में डाली हुई थी। वह अपनें साथ नींद की गोलियां भी लाया हुआ था। लुटेरे उदयसेन को बोले चलो तुम्हारे चहेते को हमनें रस्सी से बांध दिया है। पहले तुम हमें शर्बत पेश करो। उदयसेन तो यही चाहता था कि कब उसे ऐसा मौका मिले उस की मुराद तो बिना कुछ किए ही समस्या हल हो गई। 

सब के सब डाकू जश्न मना रहे थे। उदयसेन ने   चुपके से नींद की गोलियां उन के शर्बत में डाल दी। वे जब मस्ती से झूम रहे थे तभी 

उदयसेन नें  राजा के बेटे की रस्सी  काच की चूडी से काट दी। उसने झूक कर अपनें मोजे में से कांच की चूड़ी निकाली। उसनें उस कांच की   चूड़ी से राजा के बेटे की रस्सी खोल दी। राजा के बेटे के हाथ खुलते ही वजीर नें उसे कहा कि तुम जल्दी   से उन सब के हाथ बांध देना। वे सभी बेहोश होकर जैसे ही गिर पड़े। राजा के बेटे ने सब के हाथ बांध दिए। राजा के बेटे नें वजीर के हाथ भी खोल दिए। वह दोनों जल्दी ही महल से बाहर निकल गए।  उन्होनें वहां ताला लगाया। राजा नें वजीर को अपनें महल में वापिस बुलवा लिया। वह महल में आकर रहने के लिए इस लिए माना कि राजा के भाई कुमार नें अपनें भाई से कहा आप उदयसेन को ही वजीर का पद सौंपे। 

राजा के सिपाहियों  ने उन बारह के बारह डाकुओं को पकड़ लिया और पकड़ कर कैदख़ाने  में बंद कर दिया। उन से सारा का रुपया राजा को ला कर सौंप दिया। उदयसेन महल में आकर रहने लगा।राजा के भाई नेंउदयसेन को कहा कि तुम ही  हमारे वज़ीर हो। राजा का भाई बोला कि मुझे वज़ीर के पद पर तैनात नहीं होना है।आप के बाद मैं ही राज्य की बागडोर सम्भालूंगा। उदयसेन बोला आज मैं बहुत खुश हूं। आपको पता चल गया है कि मैं गलत नहीं था। राजा ने  नें उसे मुंह मांगा ईनाम दिया।वह खुशी खुशी महल में रह कर काम करनें लगा। सभी के चेहरों पर खुशी की लहर उमड़ पड़ी। 

रहस्यमयी गुफा भाग6

भोलू जादू की तलवार पाकर बहुत ही खुश हुआ उसने सोनपरी को जाते वक्त वचन दिया था कि   उसके पिता को छुडा कर ही दम लेगा।वह जादू की तलवार को लेकर सुदूर पहाड़ों को पार करता हुआ चला आ रहा था। रास्ते में  पहाड़ी कंदराओं में उसे वापिस जादू की तलवार लाता देखकर सारे जीव-जंतु बहुत खुश हुए। वे बोले कि हम तुम्हारी सहायता करने के लिए तुम्हारे साथ तुम्हारे गांव चलना चाहते हैं । हो सकता है तुम्हें हमारी जरुरत पड़ जाए। । वे सब के सब उसके साथ चल पड़े। वह जैसे  ही अपने गांव के समीप वाले बाग में पहुंचने वाला था उसने सभी जीव जंतु को उस बाग में रुकने का इशारा किया। वह सारे के सारे जानवर बोले जब तुम हमें याद करोगे तब हम तुम्हारे साथ तुम्हारी सहायता करने अवश्य आएंगे। गोलू हर रोज अपने दोस्त भोलू कि राह देखा करता था। वह  हर रात भूरी से बातें करने चुपके से गुफा में चला जाता था। 1 दिन जब वह वह भूरी से मिलने गया तो वह भूरी को प्रणाम करके बोला कि एक महीना होने वाला है मेरा दोस्त अभी तक नहीं आया। उसके माता-पिता को उस काले जादूगर ने मुर्गा बना दिया है। आप बताओ कि मेरा दोस्त कब तक वापिस आएगा? भूरी बोली तुम्हे चिन्ता करनें की कोई जरुरत नहीं। उसने जादू की तलवार प्राप्त कर ली है। तुम  उसका उस उद्यान में ही इंतजार करना जहां पर वह तुम से कह कर गया है। वह बोली कि तुम्हारा दोस्त एक दिन के अंदर आने वाला है। वह बहुत खुश हो गया और उस नें भूरी का धन्यवाद किया। 

सुबह उठ कर जब वह  बाग में पहुंचा वह बहुत ही खुश दिखाई दे रहा था।  यहीं बाग में बैठकर अपने दोस्त भोलू का इंतजार करता हूं। उसने दूर से आते हुए घोड़े की आवाज़ सुनी यह आवाज़ तो उस के दोस्त के घोड़े चेतक की थी। वह उस आवाज़ को भली भांति पहचानता था। 

भोलू उसके सामने आकर बोला कि मैं जादू की तलवार प्राप्त कर आ गया हूं। मैं इस तलवार की सहायता से उस जादूगर का काम तमाम कर दूंगा। गोलू बोला कि मेरे दोस्त तुम्हारे माता पिता और राजा को उसने मुर्गा और मुर्गी बना दिया है। उसने उनको मुर्गी खाने में बंद कर दिया है। मुझे तो रात दिन यही फ़िक्र होती थी कि वह ठीक से भी है या नहीं  चिंकारां तुम्हारे माता-पिता को खाना तो दे देता था क्योंकि उसे डर था कि अगर वह जादू के जूते का राज बताए बिना मर गया तो उसका जादू का जूता उसे नहीं मिलने वाला। एक दिन मैंने तुम्हारी मां के पास उन्हें कहते सुना कि जब तुम्हारा बेटा यहां आएगा तो तू उसे पहचान लेना क्यों कि वह यहां पर भेष बदल कर तुम्हें छुड़ाने अवश्य आयेगा अगर तुम हमें बताओगे नहीं तो हम तुम्हें मार देंगे। मैं जैसे ही उससे मिलने जाने लगा तो उस जादूगर ने फिर से उन्हें मुर्गी बना दिया। इतने सारे जानवरों मैं उसे नहीं पहचान सकता कि चाचा चाची कौन से हैं। मैं भी सोच में पड़ गया कि क्या करूं। 

भोलू बोला मैं महल में भेष बदल कर ही आऊंगा। मैं अपने माता-पिता को  कैसे पहचानूंगा वह यही सोच रहा था कि बैग में से रस्सी बाहर आकर बोली कि इतनी छोटी सी बात के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं तुमने अपने साथ जंगल के सारे के सारे जंगली जीवों को  किस लिए बुलाया है। उनमें से कहो कि तुम मेरे साथ मुर्गी खाने पर चलकर पता करो कि मेरे माता-पिता कौन से हैं? सभी मुर्गी और मुर्गियों के बीच जानवर अपनी भाषा में बात करेंगे। तुम्हारे माता-पिता और राजा चुप रहेंगे।  वह बात नहीं करेंगें क्यों कि उन्हें जानवरों की भाषा समझ नहीं आती होगी। तुम तीनों को अलग रख देना। तुम्हें अपने माता-पिता की कोई खास निशानी तो पता होगी ही। कोई चिन्ह वगैरह। भोलू बोला मेरे पिता के बाएं गाल पर काला तिल है। वह गले के पास है। ध्यान से देखने पर ही पता चलता है।  मेरी मां की बचपन में काम करते करते एक छोटी उंगली कट गई थी। उनके एक हाथ का नाखून भी टूटा हुआ है। राजा तो मेरे साथ था जब वह दुष्ट जादूगर से भिड़ रहा था। उसकी बायें टाग परं निशान उभर आये थे। मैं इन जंगली जीव जन्तुओं की सहायता से अपने मां-बाप मां-बाप और राजा का पता लगा लूंगा। गोलू ने अपनें दोस्त भोलू को सब कुछ बता दिया कि सारे के सारे प्रजा के लोगों को उसने अपने साथ मिला लिया है। जो लोग उसकी बात का विरोध करते हैं उसके साथ वह बुरी तरह से पेश आता है। कुछ लोग तो हर रोज भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हमारा राजा वापिस आना चाहिए।

भोलू ने गोलू को कहा कि तू जाकर राजा को कहना  चलो बाग में घुमनें। चलते हैं मैं आपको कुछ दिखाना चाहता हूं बहला-फुसलाकर उन्हें यहां ले आना ।तब मैं तुम दोनों को फुसलाकर किसी बहाने से एकदम महल में पहुंचकर पता लगा लूंगा कि मेरे माता-पिता कहां है। उनसे मिलकर आऊंगा तुम उस दुष्ट चिंकारा को कहना कि एक बहुत लंबे चौड़े शरीर वाला व्यक्ति यहां बाग में घूमता देखा गया । वह यहां का तो नहीं लगता कहीं वह आपको जाने वाला तो नहीं है। उसने कल कितने जीव जंतुओं को मौत के घाट उतारा है शक्ल सूरत से तो वह कोई अजनबी लगता है वह यहां का नहीं लगता। चिंकारा दानव तुम्हारे पीछे-पीछे मुझे देखने चला आएगा। मैं उस जादूगर से हिरण का शिकार करने के लिए कहूंगा। वह हिरण को मार नहीं पाएगा जादू की रस्सी से नकली हिरण बनाने के लिए कहूंगा। कुछ देर के लिए तो ऐसा लगना चाहिए कि वह  असली हिरण हो। 

गोलु भोलू से बोला के तुम नकली हिरण को खूब तेज  दौड़ाना वह दुष्ट जादूगर तुम्हारे जीत से प्रसन्न हो जाएगा और तुम्हें महल में आने का निमंत्रण देगा।और मैं भेष बदल कर  ही रहूंगा क्यों कि सब लोग तो मुझे पहचानते हैं। किसी को भी पता चल गया तो सारा गुड़ गोबर हो जाएगा।

 यह कह कर गोलू अपनें दोस्त भोलू से विदा ले कर उस दुष्ट-जादूगर चिंकारा के पास जाकर बोला राजा जी बाग  में मैंने एक अजनबी को घूमते हुए देखा वह जंगली जीव जंतु का शिकार करता है। चिंकारा जादूगर सोचनें लगा की कहीं वह उसकी चाल तो नहीं। उसने जल्दी से अपने आदमियों को बाग में भेजा । सचमुच में ही वहां पर उन्होंने एक लंबे चौड़े इंसान को घूमते हुए पाया। भोलू भी होशियारी से सतर्क हो कर भेष बदल कर बाग में जंगली जन्तु का शिकार कर रहा था। उसे जरा भी डर नहीं लग रहा था क्यों कि उसकी सहायता करनें के लिए जंगली जन्तुओं  की फौज थी जो उसका साथ देनें के लिये आई थी।

राजा गोलू को बोला चलो मैं तुम्हारे साथ चल कर देखना चाहता हूं-कि वह लम्बाचौडा नवयुवक कौन है और वह यहां क्या लेनें आया  है। वह बाग में गोलू के साथ चल पड़ा। बाग में उसने सचमुच ही हिरण को दौड़ते हुए देखा। चिंकारा उसे देखकर बड़ा खुश हुआ। तभी उस की दृष्टी  उस युवक पर पड़ी,वहां पर एक बहुत ही खुबसूरत नवयुवक से उसकी मुलाकात हुई। उसने गोलू को इशारा किया और कहा तुम महल में वापिस जाओ। हर पल की सूचना देते रहना।

उस युवक को जादूगर के आने का आभास ही नहीं हुआ। वह तो मस्त हो कर जंगली जीव हिरणों के पीछे भाग रहा था। चिंकारा बोला “लगता है तुम इस शहर में नये नये आये हो।” युवक जादूगर चिंकारा  को देख कर बोला मैं हिरण के पीछे इतना व्याकुल था कि आप के आने का पता ही नहीं चला। हां मैं इस इस जंगल में अजनबी हूं । मैं चुनारगढ़ का राजा सुमेर हूं।मेरा घोड़ा अचानक ना जाने कहां भाग गया। यहां पर बाग कि खूबसूरती ने मुझे आत्मविभोर कर दिया। फूलों की सुगंध ने मुझे यहां आने पर विवश कर दिया। मैं  यहां पर आए बिना नहीं रह सका। एक पल में अपने घोड़े को भूल ही गया। मेरा घोड़ा ना जाने कहां चला गया। शायद वह भी मेरी तरह ही वह भी ऐसी ही किसी ऐसी जगह पर जाकर मस्ती कर रहा होगा।

जादूगर ने सोचा क्यों ना मैं इस  को कह दूं कि तुम और मैं दोनों मिलकर इस हिरण को पकड़ते है। तुम हारे तो तुम यह हिरण मुझे दे देना। अगर मैं जीत गया तो तुम ही यह हिरण अपने साथ ले जाना। चिंकारा उस हिरण को देख कर उस अजनबी से बोला चलो देखता हूं तुम कितनें बहादुर हो। आज प्रतियोगिता हो ही जाए। तुम उस हिरण से जीतते हो या नहीं चलो आज आज़मा ही लेते हैं। काफी देर तक  चिंकारा को वह हिरण दौड़ता रहा। चिंकारा थक हार कर चूर हो क्या मगर वह हिरण उसकी पकड़ में नहीं आया। हार कर दुष्ट चिंकारा बोला तुम इसी हिरण को पकड़कर दिखाओ। गोलू ने एक ही बार में हिरण को पकड़कर अपने पंजे में जकड़ लिया। हिरण भी उसके साथ मस्त होकर खेलने लगा। यह देखकर चिंकारा जादूगर हैरान हो गया और उसने अजनबी को कहा कि तुम चलकर मेरे महल में  कुछ समय बिताओ। मैं तुम जैसे वीर का स्वागत करता हूँ।भोलू यह सोच ही रहा था कि वह चिंकारा जादूगर उससे अपने महल में प्रवेश करने के लिए इजाजत दे दे। यह सुनकर बहुत ही खुश हो गया और जादूगर के साथ चल पड़ा। रात को भोजन करते हुए उस ने दुष्ट जादूगर चिंकारा को अपनी वीरता के झूठे किस्से सुना सुना के मन्त्रमुग्ध कर दिया। दुष्ट जदुगर ने सोचा के यह बड़े काम का मालूम होता है इस से दोस्ती कर के उसे ही फायदा होगा। 

रात को जब सभी सो रहे थे तो सुमेर  यानी भोलू चुपके से सब से छिपता छुपाता बाग में लौट आया। वहाँ पहुंच कर उसने अपने सभी जंगली जानवर दोस्तों को पुकारा,सभी वहाँ पहुँच गए।भोलू ने कहा कि मित्रों अब मुझे तुम्हारी मदद को आवश्यता है।जंगली  जीव बोले कि हम यहां पर तुम्हारी सहायता करने के लिए ही आए हैं।

कहा कि सारे मुर्गे यहां सामने एकत्रित हो जाओ। सारे के सारे  मुर्गों को उसने पिंजरे में डाला और मुर्गा खाने में आकर छोड़ दिया। अपने साथ और मुर्गों को देख कर  सभी मुर्गे खुश हो गये। सभी आपस में बातचीत करने लगे। एक कोने में जब तीन मुर्गे अकेले रह गए वे आपस में बातें नहीं कर रहे थे। उनको देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने काफी दिनों से कुछ भी खाया ना था। भोलू नें सभी को चारा डाला। वह तीनों मुर्गे उसे  चुपचाप गौर से देखने लगे।  

भोलू अचानक सामान्य व्यक्ति के वेश में उनके सामने जाकर खड़ा हो गया। वे तीनों कुछ भी नहीं खा रहे थे।  मुर्गों की आंखों से पानी बहता देख कर भोलू समझ गया कि वे ही उसके माता-पिता है और उनमें से एक राजा है। उसने जल्दी से उन तीनों के निशान देखने शुरू किए। उसे एक मुर्गे के गाल के पास वैसे निशान दिखाई दिया  जैसा उसके पिता की गाल पर था। एक मुर्गे की ऊंगली के पास वैसा ही कटे का निशान था। वह बोला आप तीनों को मैं ले जाने के लिए आया हूं। आप तीनो को यहां से मैं ले चलता हूं। उसने अपने माता-पिता और राजा को अपने घोड़े पर बिठाया। वह उन की तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला  कि वह उन्हें ले जाने के लिए ही आया है। आप चिन्ता न करें ।उसने जल्दी से एक पिंजरा मंगवाया। उस पिंजरे को ले कर भोलू से कहा कि मुझे पहले उस दुष्ट जादूगर से जादू का जूता प्राप्त करना होगा। तब वह अपने पिता को ठीक कर पाएगा। उसने अपने माता-पिता को गोलू के घर पर रख दिया। अपने माता-पिता को मुर्गे से इंसान बनाने के लिए उसे पहले जादू का जूता प्राप्त करना होगा। 

जादू की रस्सी बोली कि इससे पहले तो तुम्हे उस दुष्ट राक्षस को मार कर  जिसके पास जादू की मोतियों की माला है उससे मोतियों की माला प्राप्त कर लोगे तो तुम्हारे अंदर दुगनी शक्ति आ जाएगी। इसके लिए तुम्हें सूझबूझ से काम लेना होगा।  भोलू कहने लगा कि क्यों ना हमें कोई योजना बनाते हैं। शेष अगले भाग।

रैन बसेरा

11/12/2018

चिड़िया के छोटे से घौंसलें  में रहता था एक परिवार।

एक दूसरे से करते थे सभी प्यार।।

घोंसले में मिलजुल कर साथ रहते थे।

एक दूसरे की सहायता कर सदा सुखी  रहते थे।।

चिड़िया के तीन बच्चे थे बड़े हो रहे।

वे भी उधर उधर दाना चुग कर जीवनी  यापन कर रहे।।

घोंसले में एक साथ रहने से होती थी घुटन।

बच्चे भी सारा दिन उधम मचा कर करते  नाक में दम।।

एक दिन चिड़िया बोली तुम हो मेरे बच्चा बच्ची।

यह बात है कड़वी मगर सोलह आने सच्ची।। तुम सभी आत्मनिर्भर हो चुके हो।

जीवन का यथार्थ समझने लगे हो।।

तुम्हें हमसे अलग होकर रहना ही होगा।

अलग से काम धंधा कर अपना जीवन यापन करना  ही होगा।।

एक साथ इस घोसले में इकट्ठा नहीं रहा जा सकता।

घुटन भरे वातावरण में जिया नहीं जा सकता।। तुम्हारे बूढ़े दादा दादी की भी देखभाल करना जरूरी है।

यह बात तुम्हें समझाना जरूरी है।।

पक्षियों को तो अलग से रैन बसेरा बनाना ही पड़ता है।

अलग हो हो कर जीवन यापन करना ही पड़ता है।।

चिड़िया का एक बच्चा बोला मां तुम हमें छोड़ कर जाओ ना।

हमें अपने से जुदा करवाओ न।।

दूसरा बच्चा बोला एक दिन आप भी बूढ़े हो जाएंगे।

तब आप अपनी देखभाल कैसे कर पाएंगे।। तीसरा बच्चा बोला आपको भी किसी ना किसी की जरूरत पड़ेगी।

तब आप किस को मदद के लिए बुलाएंगे।। बच्चे बोले हम आपको छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।

आसपास की शाखा पर ही अपना आशियाना बनाएंगे।।

हम स्वावलंबी हो सकते हैं स्वार्थी नहीं।

हम आपके हैं और आप हमारे क्या इतना काफी नहीं।।

आप से ही है घर संसार हमारा।

यहीं पर माता पिता के चरणों में है सुख सारा।।

मार्गदर्शक

मैं उस समय छठी कक्षा में पढ़ता था। मैं बचपन की यादों में जब झांकता हूं तो मेरे मानस पटल पर बचपन की यादें तरोताजा हो आती हैं ।मैं उसमें इतना भोला नहीं था जितना शक्ल से दिखाई देता था ।मैं और मेरे दोस्त हमेशा कक्षा में पढ़ने के इलावा शरारतें करने में मशहूर थे । हमें गुरु जी ने सही शिक्षा व हमारा अच्छा मार्गदर्शन नहीं किया होता तो आज अच्छा ऑफिसर बनने की बजाय सड़क पर या चौराहे पर भीख मांग रहे होते। उन  गुरु जी को मेरा शत शत नमन। ःमैं और मेरे चारो दोस्त कक्षा में शरारत करने में बहुत ही माहिर। थे।हमारा कभी भी पढ़ने में मन नहीं लगता था। हम.अपनें अध्यापकों से थोड़ा बहुत डरते थे ।. एक गुरु जी जो हमें समाजिक व हिंदी पढ़ाते थे उन से हमें डर नहीं लगता था वह कभी भी मारते नहीं थे ।उनकी कक्षा में हमें पढ़ने के इलावा मंनोरंजन के साथ साथ खेलते भी रहते थे और, हमने उन गुरु जी को ना जाने कितने नामों की संज्ञा दे दी थी परंतु उन्होंने फिर भी हमें कुछ नहीं कहा। 

अध्यापकों ने एक दिन समाजिक विज्ञान के अध्यापक को कह ही दिया कि इन बच्चों को आप क्यों नहीं मारते हो ? गुरुजीने अध्यापकों की बातों को हंसी में टाल दिया।वे थोड़ी बहुत डांट डपट करते परंतु कहते कुछ नहीं थे ।एक दिन उन गुरु जी ने हमारे ग्रुप को अपने पास बुलाया और कहा,  तुम्हारा ग्रुप सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठेगा और बच्चों ने भी पढ़ाई करनी होती है। तुम शरारते करो या जो मर्जी करो पर बेटा अध्यापक की बातों को गंभीरता से लेना चाहिए ।तुम अच्छे घर के बच्चे हो मुझे पता है तुम सब बहुत ही होशियार हो ।तुम जरा सा भी पढाई की ओर ध्यान दो तो तुम्हे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। अभी तुम बच्चे हो उदंड हो, जब मैं तुम्हारी उम्र का था तो मैं भी बहुत ही शरारतें किया करता था। बेटा मैं तुम्हें समझा ही सकता हूं। सभी बच्चों को थोड़ी देर के लिए तो एहसास होता पर फिर भूल जाते।  उनको थोड़ी देर के लिए इस प्रकार महसूस होता कि हमारे अध्यापक जो कह रहे हैं वह ठीक कह रहे हैं । वह अपनी शरारतों से फिर भी बाज नहीं आए । दिन इसी तरह गुजर रहे थे। एक दिन सभी अध्यापक स्कूल के प्रधानाचार्य के पास गए और गुरुजी की शिकायत कर दी की समाजिक ज्ञान और हिंदी वाले अध्यापक जी की कक्षा में बच्चे बहुत ही शोर मचाते हैं। 

गुरुजी उनको जरा भी कुछ भी नहीं कहते हैं ऐसा कब तक चलेगा? प्रधानचार्य भी रोज-रोज की शिकायतों से तंग आ गए थे ।वह भी चाहते थे कि या तो गुरुजी का तबादला दूसरी जगह करवा दिया जाए या उन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर दिया जाए एक दिन की बात है कि प्रधानाचार्य जी ने उन्हें कक्षा में बुलाया और कहा कि उन बच्चों के नाम बताओ जो आपकी कक्षा में बहुत ही शरारत करते हैं ।उन्हें हम एक बार चेतावनी देंगे ,अगर वह ग्रुप फिर भी अपने किए पर पछतावा नहीं करता है तो हम उन्हें अपने विद्यालय से निलंबित कर देंगे ।ऐसे बच्चों का पढ़ने से क्या फायदा जो अध्यापक की बात ध्यान से नहीं सुनता हो और अध्यापक के पढ़ाए हुए सबक को ध्यान से नहीं सुनता है गुरु जी ने प्रधानाचार्य जी से कहा कि जहां तक मैं सोचता हूं ,कोई भी बच्चा  पढाई में कमजोर नंही ही है ।मेरी कक्षा में कुछ बच्चे हैं जो सुनते नहीं है मगर ऐसा नहीं है कि वह नालायक हैं। वह शरारतें इसलिए करते हैं कि वह उस समय पढ़ना नहीं चाहते ।वह बच्चे हैं बेचारे सुबह से शाम तक पढ़ते-पढ़ते इतना थक जाते हैं कि वह पढ़ाई में अरूचि लेने लगते हैं ।लगातार सभी कालांश में तो सभी गुरुजनों की कक्षा में शरारत नहीं कर सकते क्योंकि उनके सिर पर डंडा बरसने का जो रहताहै? बेंच पर खड़ा रहने को कहा जाता है या कक्षा से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है ।मैं बच्चों की मनो भावनाओं को अच्छे ढंग से समझता हूं। मैं तो आप को उन बच्चों के नाम नहीं दे सकता। मैं नहीं समझता कि वह पांचों बच्चे नालायक है काम का बोझ होने के कारण वह पढ़ना पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं ही ऐसा उनका एक गुरु हूं जो उनको बिल्कुल नहीं मारना चाहता।

 प्रधानाचार्य गुरु जी की बातों को सुनकर हैरान हो गए ।उन्हें सूझ ही नहीं रहा था कि वे इस विषय मे क्या कहें।  किसी अन्य अध्यापकों को मुझ से कोई शिकायत होती तो वह मुझे कहते एक बार उन्होंने मुझे बच्चों के बारे में कहा था मगर मैंने  उन की बात को हंसी में टाल दिया था। मैं उन पांच बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहता ।आप अगर उन बच्चों को स्कूल से निलंबित कर देंगे तो मैं इसे अपना अपमान समझूंगा ।मैं समझूंगा कि मैं एक अच्छा गुरु नहीं बन सका । मैं बच्चों का बुरा नहीं चाहता इसलिए आज मैं अपना अध्यापक पद से इस्तीफा दे रहा हूं। प्रधानाचार्य के कमरे में अपना इस्तीफा उनकी मेज पर रख दिया । पांच बच्चों में से एक बच्चा गुरुजी की सारी बातें सुन रहा था ।उस ने सारी की सारी बातें अपने दोस्तों से जा कर कही।उन पा़च बच्चों की हरकत के कारण आज उनके गुरु जी ने विद्यालय को छोड़ने का फैसला कर लिया था।  उन पांच बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ कि सारे के सारे अध्यापक मिलकर गुरुजनों को निलंबित करने की योजना बना रहे थे ।उन समाजिक ज्ञान वाले गुरुजी ने ं कुछ भी ना कहकर वहां से जाने का फैसला कर लिया था ।जैसे ही सामाजिक अध्यापक के गुरुजी कक्षा में आए कि वे पांचों के पांचों बच्चे अपने गुरु जी की बातों को ध्यान से सुन रहे थे ।उनकी आंखों में आंसू देख कर गुरुजी से नहीं रहा गया वह बोले बेटा आज तुम्हारा ग्रुप बहुत ही शांत है आज तो तुमने मेरा सारा पाठ जो मैंने पढ़ाया वह ध्यान से सुना ।अच्छा बेटा ,अब मैं इस विद्यालय से शीघ्र ही जा रहा हूं। मैंने तुम्हें अनजाने में कुछ कहा हो या किसी भी बच्चे का दिल दु:खाया हो तो मैं तुम बच्चों से भी क्षमा मांगता हूं ।गुरु जी का इतना कहना था कि वह पांचों के पांचों बच्चे गुरुजी के कंधे लगकर जोर जोर से रोनेलगे।गुरु जी आप कितने अच्छे  हैं इसका अंदाजा हमें आज लगा। हमने आप की कक्षा में इतनी शरारत की मगर आपने हमें कभी भी नहीं मारा। हर बात को हंसी में टाल दिया गुरुजी आज हम कसम खाते हैं कि आज के बाद हम कक्षा में कभी भी शरारत नहीं करेंगे और जी जान से मेहनत करेंगे और अच्छे अंकों में उतीर्ण होंगे ।कृपा करके आप हमारे विद्यालय से मत जाओ। वह पांचों बच्चे प्रधानाचार्य जी के पास गए और उन से बोले कृपया करके आप हमारे गुरु जी का इस्तीफा फाड. दे। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम कभी भी शरारत नहीं करेंगे और एक मौका हमें दे दीजिए ।प्रधानाचार्य जी ने उन गुरुजी का इस्तीफा फाड़ दिया और बच्चों को कहा कि जाओ मैंने तुम्हें माफ कर दिया ।वह अब समझ गए थे कि असली गुरु तो वही है जो बच्चों को अच्छी शिक्षा दें बच्चे मारपीट द्वारा नहीं समझ सकते आज भी हमें वह गुरुजी कभी भी नहीं भूलते जिन्होंने हमारा सच्चा मार्गदर्शन किया और हम उच्च पद पर आसीन हुए।