घूमने निकली मैं

निकली मैं शाम को बाग में, मैं शाम को बाग में घुमनें निकली।।चमक रही थी सूरज कि किरणें।सूरज कि किरणें थी चमक रही।।हंसी एकाएक जोर से।जोर से यकायक हंसी।मुझे गिलहरी एक दिखी, बाग के एक ओर।बाग के एक ओर एक गिलहरी दिखीथी बैठी तार का सहारा ले कर।तार का सहारा ले कर थी बैठी।हंसी यकायक… Continue reading घूमने निकली मैं