साहसी देवकी

माधवपुर गांव में देवकी अपने पति के साथ हंसी-खुशी जीवन यापन कर रही थी। उसके पति के व्यापार में दिन रात चौगुनी उन्नति हो रही थी। उसका पति एक मेहनती और ईमानदार व्यापारी था। बाहर के लोग भी उसकी बहुत ही प्रशंसा कर रहे थे। विदेशों में भी उसके सामान की प्रशंसा हो रही थी। एक दिन देवकी का चचेरा भाई अपनी बहन के गांव माधवपुर आया। अपने जीजा जी के ठाठ बाट देख कर जल भुन कर रह गया। उसको अपने जीजा जी से ईर्ष्या होने लगी उसकी बहन देवकी के चार बेटे थे और पांचवां उसके गर्भ में पल रहा था वह सोचने लगा कि अगर मैं अपने जीजा जी का कत्ल कर दूं तो सारी की सारी जमीन का मालिक मैं स्वयं हो जाऊंगा और उसका सारा रूपया पैसा में छीन लूंगा। अपनी बहन से लेना तो मेरे बाएं हाथ का खेल है इसके लिए पहले मुझे अपने जीजा जी का कत्ल करना होगा। मुझे कोई ना कोई साजिश करनी होगी तभी वह यहां से जाएगा। मैं अपने काम को जब तक अंजाम ना दे दूं तब तक मैं यहां से वापस नहीं जाऊंगा ।उसने अपने साथियों को बुलाया एक जहरीला सांप लेकर आओ। तुम इस सांप को मेरे जीजाजी के कमरे में छोड़ देना। जीजाजी जब अपने कमरे में आराम कर रहे होंगे तब तुम खिड़की में सांप छोड़ देना और बाहर से ताला लगा देना अंदर सांप उन्हें डस लेगा तब उस दुष्ट चचेरे भाई ने अपने जीजा जी के कमरे में जहरीला सांप छोड़ दिया। वह जैसे ही बिस्तर से उठा नीचे जहरीले सांप ने उन्हें डस लिया वह दरवाजा खोलनें ही लगा था परंतु वह नीचे गिर गया काफी देर हो चुकी थी किसी को भी इसका पता नहीं चल सका ।सारा काम समाप्त करके जब देवकी अपने पति के कमरे में गई तो उसने अपने पति को मरा हुआ देखा ।वह जोर जोर से रोने लगी। उसको रोता देखकर सारे के सारे इकट्ठे हो गए। जहर इतना फैल चुका था की उसके पति को बचाया नहीं जा सका। उसके चचेरे भाई ने उसे सांत्वना दी बहना तेरा इस दुनिया में कौन है ?चाहे मैं तेरा चचेरा भाई हूं। बहना मैं किसी चीज की तुझे तंगी नहीं होने दूंगा तू मेरे साथ मेरे घर पर चलेगी। वह अपनी बहन को अपने घर ले आया । धीरे-धीरे अपनी बहन की सारी संपत्ति को उसने हस्ताक्षर करवा कर के अपने नाम कर लिया था । उसकी बहन बहुत ही मासूम थी । धीरे-धीरे उसे सब कुछ समझ में आ गयाा कि उसके मुंहबोले भाई ने ही मेरे पति को मारा है। वह सारी की सारी संपत्ति हडपना चाहता था। बेचारी अकेली असहाय अबला क्या कर सकती थी क्योंकि उसके पेट में अपने पति की पांचवी संतान पल रही थी। वह सोचनें लगी कि आने वाला बच्चा अपने साथ ना जाने कैसी किस्मत लेकर कर आया है। उनके दरवाजे पर तभी एक महात्मा ने दस्तक दी उसके भाई ने दरवाजा खोला तब उसके भाई की तरफ देखकर महात्मा बोले भगवान के नाम पर कुछ दे दो। उसक चचेरा भाई बहुत ही धूर्त था। परंतु साधु-महात्माओं को वह कभी अपने दर से निराश नहीं जाने देता था। वह बोला साधु बाबा हम तुम्हारे लिए क्या कर सकते हैं? साधु बाबा की नजर उसकी बहन पर पड़ी वह उसको देख कर बोले घोर अनर्थ हो गया। बेचारी माई तुम अपना हाथ मुझे दिखाओ। उसका भाई बोला यह बेचारी अपना हाथ क्या दिखाएगी? बाबा बोले उसकी किस्मत में तो पांच बेटे हैं।

उसका भाई चौका और बोला आपको कैसे पता है? उसके भाई ने तब तक अपनी बहन का हाथ खींचकर साधु बाबा के आगे कर दिया। साधु बोला बेटा डरो मत। तुम्हारा पांचवा बेटा इतना बहादुर होगा कि वह सब को मात दे देगा। चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। जैसे ही साधु महाराज चले गए तब उसने अपनी बहन को कहा अब तो तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं। आप का पांचवा बेटा बहुत ही बहादुर होगा। उसका बहुत ही अच्छे ढंग से ख्याल रखना होगा। उसकी बहन समझ चुकी थी कि मेरे भाई ने ही मेरे पति को मरवाया है पता नहीं यह मेरे बेटे को भी कहीं मार न दे इसलिए मैं अपनी बेटे को कहीं और भेजने का मन बना लेती हूं। उसकी बहन देवकी ने अपनी सहेली को फोन किया और कहा कि मेरी प्यारी सखी इस दुनिया में सबसे ज्यादा अपने पति के बाद मैं तुम पर ही सब से ज्यादा विश्वास करती हूं। आज तुम मुझे ग्रैंड होटल में मिलो। मैं तुम्हें कुछ कहना चाहती हूं। वह अपनी सहेली से मिलने ग्रैंड होटल में चली गई। उसने अपनी सहेली से मिलकर उसे सारी बात बता दी। उसने यह भी बताया कि उसके चचेरे भाई ने ही मेरे पति को मरवा दिया है। उसकी नजर अब मेरे बेटे पर है। जब मैं अपने बेटे को जन्म दूंगी तब तुम मेरे बेटे को यहां से ले कर चली जाओगी। कृपया करके उसे तुम पाल लोगी। जिस दिन भी यह बच्चा पैदा होने वाला होगा मैं तुम्हें सूचित कर दूंगी। रुपए की चिंता मत करो। मैं तुम्हें सब दे दूंगी। मेरे पति मेरे लिए काफी कृपया धन दौलत छोड़कर गए हैं। सबसे बड़ी धन-दौलत तो मेरा यह बेटा है। कृपया करके जैसे ही मैं तुम्हें सूचित करूंगी तब तुम मेरे बच्चे को यहां से लेकर चले जाना। इसके लिए मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगी। उसकी सहेली बोली देवकी बहन तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास करना होगा। मेरा एक बेटा बलराम है। एक तुम्हारा बेटा होगा। मैं दोनों बेटों की मां बन जाऊंगी। किसी को भी पता नहीं लगने दूंगी। मैं यशोदा बनकर उसे पाल लूंगी। देवकी बोली कि मुझे अपने भाई के इरादे ठीक नहीं लगते क्योंकि अभी मेरे गर्भ में मेरा बेटा पल रहा है। मैं अभी कोई दौड़-धूप नहीं करना चाहती। इसके जन्म देने के बाद मैं चुप नहीं बैठूंगी। मैं अपने भाई से किनारा कर लूंगी। कहीं वह मेरे चार बेटों को भी भी नुकसान ना पहुंचाएं। उसने अपनी सहेली जानकी को बताया कि आज एक साधु महात्मा हमारे घर आए थे। जब वह हाथ देखने लगे तो उन्होंने मुझे कहा कि बेटा उदास ना हो। तुम्हारा पांचवा बेटा सब को मात दे देगा। यह सुनकर मेरा भाई आग बबूला हो गया। मैंने अपने भाई की बात सुन ली। उसने अपने गार्ड्स को आदेश दे दिया था कि जैसे ही मेरी बहन इस बच्चे को जन्म देगी तुम उसके बच्चे को मार देना। चुपचाप रहना कहीं मेरी बहना न सुन ले। यह जब मैंने सुना तो मैं सुन रह गई थी। मुझे दुख करने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि अब तो रो-रो कर मेरे आंसू भी सूख चुके हैं। मुझे हर हाल में अपने बेटे को बचाना है। यहां का एक अंगरक्षक मुझे अपनी बड़ी बहन से भी ज्यादा प्यार करता है। वह बोला देवकी बहन तुम चिंता मत करो। जहां तुम कहोगी हम तुम्हारे बच्चे को भेज देंगे। उसकी इस बात पर मुझे विश्वास है वह मेरे साथ धोखा नहीं करेगा। उसकी सहेली जानकी वहां से चली गई थी। वह भी जल्दी जल्दी घर वापस आ चुकी थी। उसके भाई ने उससे पूछा बहना तुम कहां गई थी। वह बोली सारा का सारा दिन मैं अंदर ही अंदर रह जाती हूं। मुझे टहलने से अच्छा लगता है। मुझे अंदर बहुत ही घुटन महसूस हो रही थी। उसका भाई बोला तुम्हें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं।

उस के प्रसव का दिन नजदीक आ रहा था। वह अंदर ही अंदर डर से घुली जा रही थी कि क्या होगा।? आखिर वह दिन आ ही गया। रात के समय सब सोए हुए थे। रात को उसके बेटे ने जन्म लिया। उसने जल्दी ही अपने भाई अंगरक्षक को बुलाया और कहा मेरे भाई मेरे बेटे को बचा लो। मैं तुम्हारा यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी। उसका घर पास में ही था ।

उसकी पत्नी ने भी एक बेटे को पहली ही रात जन्म दिया था। उसने जल्दी में लाकर वह बच्चा वहां पर रख दिया और जल्दी ही देवकी ने अपनी सहेली को सूचित कर दिया कि मेरे बेटे या बेटी को लेने आ जाना। उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो चुकी थी। उसकी सहेली पहले ही गाड़ी लेकर पहुंच चुकी थी। उसने गाड़ी उनके बंगले के पीछे ही खड़ी कर दी। वह एक साधु बाबा के भेष में अंदर पहुंचे। वह साधु के भेष में ही अपनी सहेली से बोली देवकी डरो मत मैं भेष बदलकर तेरे बेटे को बचाने आ चुकी हूं। अंगरक्षक ने उसके भाई को सूचित कर दिया कि उसकी बहन ने सुंदर से बेटे को जन्म दिया। वह देखनें में बिल्कुल कन्हैया की तरह लगता है। उन्होंने उसे कान्हा का नाम भी दे दिया। देवकी ने कहा यहां कूड़ा डालने वाला डिब्बा पड़ा है। उसे रुई से लिपटा कर डाल दो। जब बाहर इस डब्बे को फेंकने जाएंगे तब यह साधु बाबा बाहर से इस बच्चे को अपने साथ अपने घर ले जाएंगे । वह अंगरक्षक बोला यहां कि तुम मत सोचो यहां पर मैं सब कुछ अच्छे ढंग से सुधार लूंगा। उसका भाई जैसे ही वहां पहुंचा वह बहुत खुश हो गया। उन्होंने देवकी के भाई को अंगरक्षक का बच्चा दिखा दिया था। देवकी ने अपने बेटे को थोड़ी सी दवाई अपने पैदा हुए बच्चे को सुबह सूंघा दी थी जिससे वह रो ना सके। उसके बच्चे को कचरे वाले डिब्बे में रूई के साथ लपेट लिया था। उस पर कचरा कागज डाले थे। उस पर ढक्कन लगा दिया था। अंगरक्षक ने अपने दूसरे साथी को कहा कि इस कूड़ेदान को बाहर फेंक देना। उसका दूसरा साथी कूड़े का डिब्बा बाहर ले कर चला गया था। उस साधु बाबा ने उस कचरे के डिब्बे में से देवकी के बच्चे को निकाला और कान्हा को लेकर अपने शहर वापिस आ गई। वहां पर वह उसे अपने बेटे के साथ रहनें लगी वह उसको बहुत अधिक प्यार करती थी। उसके दो बेटे थे। वे दोनों बहुत ही शरारती थे गाड़ी में अंगरक्षक ने अपने बेटे को डिक्की में डाल दिया था। उसने अपने बेटे को भी बेहोशी की दवा सुंधा दी थी। उसने जल्दी नकली पुतले को पहाड़ी से नीचे गिरा दिया था। उसकेभाई ने समझा कि उसने देवकी के बेटे को मार दिया है। वह खुश हो गया था क्योंकि उसे खतरा केवल उसके पांचवे बेटे से था। धीरे-धीरे समय बीतता गया देवकी को उसके भाई ने बताया कि तुम्हें मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ था। तुम बच्चे को जन्म देने के पश्चात बेहोश हो गई।

उसे अपने भाई के पास रहते रहते काफी दिन हो गए थे। वह बीच-बीच में अपनी अपनी सहेली को फोन कर देती थी। और अपने बेटे के बारे में पूछ लेती थी। उसकी सहेली जानकी बोली तुम्हारा बेटा तो बहुत ही शरारती है। बिल्कुल नटखट शरारती। मैंने तो उसका नाम कान्हा ही रखा है। कान्हा भी भी बड़ा हो रहा था। वह कॉलेज में पढ़ने लगा। उसकी सहेली जानकी ने उसे एक वीर सैनिक बनाया। उसने उसे एक बहादुर सिपाही बनाया जो कि सब को युद्ध में हरा देता था। उसका भाई भी उसी की तरह एक बहादुर सिपाही बना। दोनों कॉलेज में जब कभी कोई भी किसी को बेवजह मारता तो वह दोनों भाई आगे आ जाते और लड़ाई में उन्हें कोई मात नहीं दे सकता था। कॉलेज में कान्हा की भी एक लड़की राधा से दोस्ती हो गई थी। वह लड़की कान्हा को बहुत प्यार करती थी उसने कान्हा को बताया कि वह उससे शादी करना चाहती है। राधिका के ने कहा कि तुम्हें मेरे पापा के साथ युद्ध करना होगा जो मेरे पापा को पहली बारी में युद्ध में हरा देगा तब शायद मेरे पापा मेरी शादी तुमसे कर देंगें। कान्हा ने राधिका से कहा कि मैं कल तुम्हारे घर आऊंगा। दूसरे दिन कान्हा राधिका के घर पहुंचा। उसने राधिका के पापा को कहा कि वह राधिका से शादी करना चाहता है। राधिका के पापा ने कहा ठीक है मेरी भी एक शर्त है। अपनी बेटी के लिए ऐसा पति चाहता हूं जो दिमाग से ही नहीं बल्कि युद्ध क्षेत्र में भी माहिर हो। तुम अगर मुझे युद्ध में हरा दोगे तो मैं तुमसे अपनी बेटी की शादी करने के लिए तैयार हूं । कान्हा नें राधिका के पापा को युद्ध में हरा दिया। राधिका के पापा कान्हा के साथ अपनी बेटी की शादी करने के लिए तैयार हो गए।

जानकी ने उसकी मां की सारी कहानी कान्हा को बताई। तुम्हारी मां तुम्हारी राह देख रही है। उसने सारी कहानी कान्हा के मामा की कहानी कान्हा को सुनाई कि कैसे उसके पिता को उसके चचेरे भाई ने जहरीले सांप से मरवा दिया था। और उसकी सारी संपत्ति हथियाकर पूरी संपत्ति का मालिक बन गया था। इसलिए उसने अपने बेटे और देवकी के बेटे को सैनिक बनाया था। जिससे वह अपने मामा से अपनी मां के साथ किए गए अन्याय का बदला ले ले। कान्हा को जब पता चला कि उसकी माँ ने जन्म की रात उसे छुपाते हुए कूड़े की बाल्टी में छिपाकर मेरे पास भेज दिया। तुम वहां जाकर अपनी मां को तलाशना।

अपनी मां की इस प्रकार की दुर्दशा करने पर कान्हा को बहुत ही बुरा लगा। वह अपने मामा से बदला लेने के लिए तैयार हो गया उसके मन में क्रोध की ज्वाला भड़क रही थी। कंस नें किस तरह मां को इतनी यातनाएं दी। जानकी नें कान्हा को कहा तुम जा कर अपनी मां को उस कंस जैसे मामा से छुटकारा दिलवाओ। शायद यह दिन देखने के लिए ही वह आज तक जीवित है।

देवकी अपने भाई के पास से अपने घर वापस आ गई थी। उसने वहां पर औरतों की एक अलग संस्था बनाई थी। जंहा पर उन सभी लड़कियों को प्रशिक्षित किया जाता था जो अपने आप को असहाय समझती थी। उन्हें बंदूक चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। तलवार भाला सब चलाना सिखाया जाता था। वह भी एक शूरवीर योद्धा बन चुकी थी। वह अपने भाई से बदला लेने के लिए बिल्कुल तैयार थी। जब उसके चचेरे भाई ने सुना कि उसकी बहन एक योद्धा बन चुकी है तो उसने अपनी बहन को बुलाया और कहा बहन तुम यह क्या कर रही हो ? वह बोली मैं असहाय लड़कियों को युद्ध कौशल की ट्रेनिंग दे रही हूं ताकि वक्त पड़ने पर हमारे घर की बेटियां भी पीछे ना रह सके। उसके भाई को किसी दोस्त ने बताया कि तुम्हारी बहन जान चुकी है कि उसके पति को तुमने ही मारा है इसलिए वह युद्ध कॉशल में ट्रेन हो गई है। देवकी के भाई ने धोखे से अपनी बहन को कारागार में डाल दिया। देवकी जरा भी नहीं डरी। उसने कारागार में अपनी सहेलियों को फोन करके कहा कि अब समय आ गया है तुम सब को ही मेरा साथ देना होगा क्योंकि मैं अपने भाई से अपना बदला लेना चाहती हूं। उसने धोखे से मेरे पति को मारा था। मैं भी धोखे से ही उसके प्राण लूंगी। तुम सबको मेरा साथ देना होगा।

उसने अपनी सहेलियों को यह भी बताया कि मेरे भाई ने मुझे कारावास में बंद कर दिया है। कारावास मेरे भाई के घर के पास ही है। जब मैं तुम्हें सूचित करूंगी तब तुम सब को मेरा साथ देने आना होगा परंतु इसका पता किसी को भी नहीं चलना चाहिए। मेरे भाई को किसी ने बता दिया है कि हम युद्ध कौशल में पारंगत हो गई है। उसके पति को उसनें ही मारा है इसलिए उसने मुझे कारावास में डाल दिया।

कान्हा माधवपुर गांव पहुंचा तब उसको अपने पिछले जन्म का सारा याद आ गया। पिछले जन्म में जब उसकी शादी होने जा रही थी तब वह गणेश मंदिर में कार्ड डालना भूल गया था।
जब उसने रथ को हांकना चाहा तो उसके रथ में सैकड़ों चूहे लग गए थे। उन्होंने गणेश के मंदिर में जाकर माफी मांगी तब उनकी बारात खुशी-खुशी गई। उसे सब कुछ याद आ चुका था वह अपनी प्रेमिका राधिका के साथ माधोपुर गणेश मंदिर गया। वहां जाकर मत्था टेका। माधोपुर में जाकर उसने अपनी मां देवकी के बारे में जानना चाहा। वहां पर सारी की सारी कन्याओं को देखकर चौंके। वह बोली तुम देवकी मां से क्यों मिलना चाहते हो।? कृष्ण बोला मैं उनका बेटा हूं। मैं उनसे मिलना चाहता हूं। उस गांव की सभी स्त्रियों ने उसे बड़े सम्मान के साथ उसका अभिवादन किया और बताया कि तुम्हारी मां ने किस प्रकार हम सब को एक कुशल योद्धा ही नहीं बल्कि हमें हर शिक्षा प्रदान की है। हम उन्हें एक मां शक्ति के रूप में देखते हैं। जिन्होंने हम असहाय अबला नारियों को लड़ने की प्रेरणा दी है। हम किसी भी तरह से अनाथ नहीं है। शत्रु का मुकाबला हम हंसते-हंसते कर सकती हैं। तुम्हारी मां को तो तुम्हारे मामा ने धोखे से कारागार में बंद कर दिया था।

उसने वहां रह कर भी हम सब को सूचित कर दिया था। वह एक बहादुर महिला है। हम उन्हें वहां से छुड़वा कर ही दम लेगी। कान्हा बोले बहनों तुम अब डरो नहीं मैं और मेरा भाई हम दोनों ही काफी है मामा से बदला लेने के लिए।

वह दोनों उसके मामा के घर जाने के लिए तैयार हो गए । वह जैसे ही माधवपुर गांव पहुंचे तो अपने सामने दो नौजवान रणबांकुरों को देखकर उसका मामा सकपका गया और बोला कि तुम कौन हो।? तुम यहां क्यों आए हो ।? कृष्ण बोले कि जब हमें पता चला कि आपने एक स्त्री को कैद कर रखा है तो हमसे नहीं रहा गया क्योंकि मैं भी माधोपुर का हूं। मैं भी यही पला हूं। मुझे अपनी मातृभूमि पर गर्व है। मैं यंहा वहां की हर वृद्धों का सम्मान करता हूं। उनमें मुझे अपनी मां की छवि दिखाई देती है इसलिए मैं उन्हें छुड़वाने आया हूं। देवकी का भाई बोला कि मैं किसी भी हालत में देवकी को तुम्हारे साथ नहीं भेजूंगा। तुम्हें मुझ से युद्ध करना होगा। तुम अगर मुझे युद्ध में हरा दोगे तब मैं कुछ सोच सकता हूं। कान्हा तो उनके साथ युद्ध करनें के लिए तैयार हो गया। सारे के सारे लोग युद्ध देखने के लिए इकट्ठे हो गए थे। पंडाल पूरी तरह से खचाखच भरा हुआ था। चुपके से जाकर कान्हा कारावास में अपनी मां से जाकर मिले ।

अपने बेटे को देखकर देवकी फूट-फूट कर रो पड़ी। उसने सारी कहानी बता दी कैसे उसके कंस जैसे मामा ने उसके पिता को मार दिया था। उसनें सभी नारी शक्ति को फोन पर सूचित कर दिया दरबार में एक बड़े डांस का आयोजन होने जा रहा है। वह भी आज रात को। तुम भी आज रात को डांस देखने के लिए आ जाना।

दूर दूर से आए हुए लोग इन दोनों रणबांकुरों का युद्ध भी देखेंगे। आज रात को तुम सब सारी की सारी शक्तियां दरबार में उपस्थित हो जाना। यहां के दरबारियों के जूस में बेहोश करनें वाली दवाई मिला देना। और मुझे यहां से निकाल लेना।

मैं भी तुम लोगों के साथ युद्ध करूंगी। शाम को सभी मातृ शक्तियों ने सभी दरबारियों को बेहोश कर दिया और उन्होंने मिल कर देवकी को वहां से निकाल दिया। देवकी ने सैनिक के कपड़े पहने और अपने बेटे के साथ खड़ी हो कर बोली आज तुम्हारा यार खान तुम्हारे साथ युद्ध करना चाहता है बेटा। मैंने तुम्हारी सारी कहानी सुनी है। तुम अपनी मां को छुड़ाने ****** आए तो तुम उनकी चिंता मत करो। मेरे रहते तुम्हें उनकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम दोनों अभी आराम से सो जाओ। मैं अकेला ही उसके साथ लड़ने के लिए काफी हूं।

कान्हा और बलराम हैरान हो कर देख रहे थे कि एक खान हमारी सहायता करने कहां से देवदूत बनकर आ गया। खान उसके मामा रुपी कंस के कमरे में गया जहां वहां खर्राटे ले कर सो रहा था। उस ने तीन वार उस पर किए। चौथे वार में उसका मामा लहूलुहान होकर नीचे गिर गया। उसकी पगड़ी तभी नीचे गिर चुकी थी। चीख सुनकर सारे के सारे लोग इकट्ठे हो गए।

उन्होंने देवकी को पहचान लिया। जिसने अपने भाई का खून करके अपने पति का बदला ले लिया था। वह मरा नहीं था। अरे दुष्ट देख मेरा बेटा मेरे सामने खड़ा है। तुझे मैं एक ही बार में समाप्त कर सकता था। देवकी बोली मैं ही तुझे मारना चाहती थी। आज मैंने अपने पति के प्राणों का हिसाब चुका लिया है। उसनें सारी की सारी संपत्ति अपने बेटे के नाम करवा ली। उसकी संपत्ति उसे वापस मिल चुकी थी।

देवकी चुपचाप अपने बेटे की गोद में जाकर गिरी। कृष्ण अपनी मां को ले कर अस्पताल लेकर गया। वहां पर कृष्ण ने अपना खून देकर उसे बचा लिया। उसने अपनी मां को गले से लगा लिया। उसने अपनी मां को कहा कि तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती। तुम्हें अभी तो अपनी बहू से मिलना है। उसने राधिका को भी अपने पास माधोपुर बुला लिया था। राधिका जल्दी ही वहां पहुंच चुकी थी। वहां पर आकर उसने अपनी सासु मां के पैर छुए और उनसे आशीर्वाद लिया। देवकी ने उन दोनों को आशीर्वाद देकर कहा खूब खुश रहो मेरे बच्चों। दोनो माधवपुर में खुशी खुशी रहने लगे।

मासूम रिया

रिया और प्रिया दो बहने थी ।दोनों ही चंचल प्रवृत्ति की थी। छोटी का नाम रिया और बड़ी का नाम प्रिया था। प्रिया पढ़ने में बहुत होशियार थी मगर रिया पढ़ने में इतनी तेज नहीं थी ।प्रिया हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आती थी ।उसके अध्यापक और उसके माता पिता भी उसे बहुत प्यार करते थे । रिया भी ऐसे तो होशियार थी मगर वह प्रिया के बिल्कुल विपरीत थी। देर से उठना होमवर्क ना करना भाग भाग कर स्कूल जाना कहना ना मानना उसकी दिनचर्या में शामिल था। जिस के कारण उसके माता-पिता उसे उतना प्यार ना नहीं करते थे जितना कि प्रिया को। रिया को इस बात से चिढ़ होती थी। उसके माता-पिता हर वक्त प्रिया की ही तारीफ करते रहते थे। जब भी कोई चीज घर में आती तो उसके पापा मम्मी कहते कि नहीं पहले प्रिया को मिलेगी। एक दिन तो हद ही हो गई प्रिया दौड़-दौड़कर घर आई और अपनी मम्मी को कहनें लगी मां मांआज तो मेरे 100 में से 100 अंक आए हैं। उसकी मां ने अपनी बेटी को पुकारा और आते ही उसे गले से लगा लिया। रिया भी अपनी मम्मी को. बताना चाहती थी कि इस बार तो उसके भी कुछ अच्छे अंक आए हैं मगर उसकी मम्मी ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया। जब शाम को उसके पापा घर आए तो वह अपने पापा को बताना चाहती थी कि इस बार उसने भी मेहनत की है परंतु उसके पिता ने उसके अंक देख कर कहा कि यह भी कोई अच्छे अंक है। अंक अच्छे लेनें हैं तो अपनी बहन को देख। वह अपने पापा के गले लग कर प्यार करना चाहती थी मगर उसके पापा ने उसे प्यार के बदले में उसे डांट दिया।।

मासूम रिया बेहद उदास हो गई। वह सोचने लगी कि इस बार मेहनत के बावजूद भी मुझे प्यार नहीं किया। पापा मम्मी को तो हर वक्त प्रिया प्रिया। उनकी नजरों में तो मैं एक अच्छी लड़की नहीं हूं। और ना कभी बन सकूंगी। उसने अपना बस्ता पटका और खेलने चली गई। उसको अपनी मम्मी पापा से यह आशा नहीं थी इस बार उसे यह आशा थी कि इस बार तो उसकी मम्मी पापा उस उसे अवश्य प्यार करेंगे। और कहेंगे शाबाश बेटा परंतु हुआ उसके बिल्कुल विपरीत। इसी गुस्से में वह पैर पटकते हुए बगीचे में चली गई। इस बार उसके स्कूल में मनो विज्ञान की एक नई अध्यापिका आई थी।

सभी बच्चे नई अध्यापिका को घेरे हुए उसके इर्द-गिर्द खड़े थे। नई अध्यापिका ने देखा रिया बिल्कुल भीड़ से अलग बिल्कुल अकेली खड़ी थी। आज तो रिया का स्कूल में जरा सा भी मन नहीं लग रहा था। उसकी नई अध्यापिका शिखा नें रिया को अपने पास बुलाया और बड़े ही प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और उसकी तरफ देख कर मुस्कुराई। रिया को देख कर कहने लगी तुम एक कोने में अलग से क्यों खड़ी हो?। क्या तुम्हें किसी ने कुछ कहा है जरा भी संकोच मत करो घबराने की कोई जरूरत नहीं। रिया तो प्यार से वंचित थी वह अध्यापिका जब भी उसे बुलाती वह दौड़ी जाती और प्यार से टुकुर टुकुर उसकी और देखा करती थी मानो कह रही हो कि मुझे गले से लगा लो। एक दिन मैडम शिखा बच्चों को कहानी सुना रही थी बीच बीच में वह बच्चों से प्रश्न भी पूछ रही थी। मैडम ने कहा कि प्यारे बच्चों जो बच्चा मेरी कहानी को ध्यान से सुनेगा और जो मैं प्रश्न करूंगी उसके जवाब देगा उस बच्चे को मैं टॉफी दूंगी। रिया अब तो ध्यान से मैडम की कहानी सुनने लगी। उसने मैडम की कहानी के प्रश्नों के उत्तर सबसे पहले दिए मैडम नें रिया को खड़ा करके सब बच्चों के सामने उसकी प्रशंसा की और उसे टॉफी भी दी।

घर आकर उसने मम्मी पापा को कहा कि आज तो मेरी मैडम नें सब बच्चों के सामने मेरी प्रशंसा की और मुझे टॉफी भी दी। उसकी मम्मी पापा ने कहा कि कहानी सुनने से क्या होता है। अपनी किताबों का पढ़ा याद होना चाहिए। प्यारी सी नटखट रिया और भी उदास हो ग्ई। उसका पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लग रहा था।

एक दिन कक्षा में सभी अध्यापिकाओं की मीटिंग हो रही थी। कक्षा की मुख्य अध्यापिका ने सब अध्यापिकाओं को कहा कि जिन बच्चों के कम अंक आए हैं उन बच्चों के नाम लिखकर मुझे दे दो। लिस्ट में सबसे पहला नाम रिया का भी आया था मनोविज्ञान की अध्यापिका ने रिया की अध्यापकों को कहा कि यह लड़की तो अच्छी है फिर किस कारण से उसके कम अंक आए?। हो सकता है कि इसका कोई और कारण हो। उसने रिया को अपने पास अकेले में बुलाया और कहा बेटा तुम इतनी होशियार लड़की हो फिर भी तुम्हारी इतने कम अंक कैसे आए हैं?। यह सुन कर रिया और जोर जोर से रोने लगी। उसने अपने अध्यापक से कहा कि मैं जितनी भी मेहनत करुं मेरे मम्मी पापा मुझे प्यार नहीं करते हैं। वह तो सारा प्यार प्रिया को ही करते हैं। यह सुनकर अध्यापिका उस मासूम रिया की बात सुनकर दंग रह गई। एक दिन रिया की अध्यापिका ने रिया की मम्मी पापा को स्कूल में बुलाया। उन्होंने सारी बात रिया के माता-पिता से कही। अध्यापिका की बातें सुनकर रिया के माता-पिता हैरान रह गए। उन्हें अब अपनी गलती का अहसास हुआह उन्हें अंदर से अपने आप पर बहुत गुस्सा आया कि हमने एक छोटी सी बच्ची के मासूम दिल को ठेस पहुंचाई है। वह जब सुबह जाग कर उठी तो उसने अपने मम्मी पापा को कहा कि पापा मैंने अभी पढाई नहीं करनी है। उसके पापा ने अपनी बिटिया को गोद में लिया और उसे प्यार करते हुए कहा कोई बात नहीं बेटा जब तुम्हारा मन करे तब तुम पढ़ लेना। यह सुनकर बच्ची को बहुत अच्छा लगा। वह सोच रही थी कि मेरे ममी पापा मुझे डाटेंगें और भगा देंगे। जल्दी खेल कर वह वापस आ गई थी। और खेल के पश्चात पढ़ाई में मन लगाने लगी। आज तो उसे पाठ भी बड़ी अच्छी तरह से याद हो गया। उसके मम्मी पापा को अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था। उन दोनों की समझ में आ चुका था कि बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए। एक परिवार में बच्चे एक जैसे नहीं होते। उनकी आदतें उनका स्वभाव अलग अलग होता है। दोनों बच्चियां बड़ी प्यारी हैं। उनमें सुधार देखकर उसके मम्मी पापा चकित रह गए। उन्होंने फैसला कर लिया कि अब वह दोनों की तुलना एक दूसरे से कभी नहीं करेंगे। हम अब दोनों बच्चों को एक जैसा प्यार करेंगे। रिया भी आगे चलकर एक बहुत बड़ी डॉक्टर बनी। बच्चों को अगर समान रुप से प्यार का दुलार दिया जाए तो वह भी अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ेंगे। वह अपने माता-पिता की आन-बान-शान को बरकरार रखेंगे। दोनों बच्चों में से दोनों बच्चे एक जैसे गुणों के नहीं होते। उनके शौक आदतें भिन्न-भिन्न होती हैं। उनका भविष्य तभी उज्जवल होगा नहीं तो किसी न किसी मासूम का भविष्य उजागर होने से पहले ही धूल में मिल जाएगा.।

सिंघासन का दान

किसी नगर में एक राजा रहता था। वह सोचता था कि मुझसे बुद्धिमान और चतुर मेरे नगर में कोई भी इंसान नहीं होगा। वह सोचने लगा कि मैं आम व्यक्ति का वेश धारण करके देखता हूं। वह हर रोज इसी खोज में रहता था कि कोई मुझसे ज्यादा बुद्धिमान है या नहीं। मुझसे बुद्धिमान अगर कोई इंसान होगा तो मैं उसे इस नगर का राजा बना दूंगा। और अपने आप मंत्री बन जाऊंगा। मुझे मालूम है कि मुझसे बुद्धिमान इंसान कोई भी नहीं हो सकता।

एक दिन राजा के दरबार में एक व्यक्ति फरियाद लेकर आया। राजा जी आप न्याय करें मेरी पत्नी कहती है कि तुम ने मेरे साथ शादी तो कर ली मगर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते हो। वह बोला नहीं भाग्यवान। मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ, कि मैं तुमसे ही प्यार करता हूं। शादी के इतने सालों बाद तुम्हें यह क्या सूझी? वह कहने लगी कि सच सच बताओ तुम्हारा किसी के साथ चक्कर तो नहीं चल रहा है। वह बोला मैं तुम्हें साबित नहीं कर सकता। वह मुझे हर रोज धमकी देती है कि मैं मायके चली जाऊंगी। राजा सोच में पड़ गया कि उसका क्या उत्तर दे? वह अपनी प्रजा से कहता है कि तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर मैं 2 दिन बाद तुम्हें बताऊंगा कि क्या करना है? वह हर रोज ढूंढने लगता है कि कोई मेरे सवाल का जवाब दे दे। एक दिन उसे दूर दूर तक टहलते हुए एक नवयुवक दिखाई देता है। वह बोलता है कि तुम कौन हो? वह नवयुवक राजा से कहता है कि मैं तो दूसरे शहर से यहां नौकरी की तलाश में आया हूं। मैं बुद्धिमान हूं। पढ़ा लिखा हूं राजा उसे कहनें लगा पहले मेरे एक प्रश्न का उत्तर दो तब मैं समझूंगा कि तुम बुद्धिमान हो। राजा नें कहा मेरे पास एक व्यक्ति आया कहने लगा मेरी पत्नी कहती है कि तुम मुझसे से प्यार नहीं करते।तुम नें मुझ से शादी तो कर ली। सच सच बताओ तुम्हारा कहीं किसी के साथ चक्र तो नहीं चल रहा है। वह हर रोज मुझे धमकी देती है। मैं मायके चली जाऊंगी। वह नवयुवक बोला कि उस व्यक्ति को अपनी पत्नी को कहना चाहिए कि मायके जाना चाहती है तू चली जा। कल की बजाए आज ही चली जा। मेरा यकीन मानो वह कुछ नहीं करेगी। कुछ दिनों बाद वापस आ जाएगी।उसके पति को कहना होगा कि अगर तुम वहीं रहना चाहती हो तो खुशी से रहो मैं भी तुम्हारे जाने के बाद दूसरी शादी कर लूंगा। वह कुछ नहीं करेगी वह एक सप्ताह बाद वापिस आ जाएगी। थोड़े दिनों बाद वैसे ही हुआ। उस व्यक्ति की पत्नी नें फिर कभी मायके जाने का नाम ही नहीं लिया।

एक दिन फिर इसी तरह एक आदमी फरियाद लेकर राजा के पास आया बोला राजा जी मेरे प्रश्न का उत्तर भी आप ही दें। मेरी पत्नी कहती है कि मेरे मां-बाप को छोड़ दो। अलग चलकर रहो। मैं क्या करूं? अगर मैं अपनी पत्नी की बात नहीं मानता हूं तो वह कहती है कि मैं जहर खा लूंगी। मैं क्या करूं?

राजा फिर उसी नवयुवक के पास गया और बोला कि मेरे इस प्रश्न का उत्तर भी तुम्हीं दो उस नवयुवक ने कहा कि तुम्हें अपनी पत्नी को कहना होगा कि मेरे मां-बाप मुझे बहुत ही प्यार है। तुमसे पहले मुझ पर मेरे मां बाप का हक है। मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं लेकिन अपने मां बाप को नहीं छोड़ सकता। तुम्हें कमजोर नहीं बनना है। एक मर्द बन कर अपनी पत्नी का मुकाबला करना है। तुम अगर इसी तरह सोचते रहे, जो पत्नी ऐसा कह सकती है वह कभी भी जिंदगी भर तुम्हारे साथ सुखी नहीं रह सकती। तुम को भी सुखी नहीं रख सकती है, ना ही अपने आप ही सुखी रह सकती है आज तो मां बाप को लेकर तुमसे ऐसा करने को कह रही है कल भगवान ना करे उसे कोई और पसंद आ गया तुम्हारा सब कुछ लेकर चंपत हो जाएगी। तब तुम क्या करोगे। जो औरत इस तरह कह सकती है उस औरत पर तो तुम्हें रति पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। तुम कहो मरती है तो मर जाओ। तुम्हारे जानें के बाद मैं भी दूसरी शादी करके तुमसे भी सुंदर पत्नी लाऊंगा। वह कभी भी नहीं मरेगी। वह अगर बुद्धिमान होगी तो वह तुम्हें छोड़कर कभी भी नहीं जाएगी। तुम्हारा प्यार अगर सच्चा होगा तो वह तुम्हें कभी नहीं छोड़ेगी। तुम्हारे मां बाप के साथ तुम्हें अपना लेगी। तुम अगर आज कमजोर पड़ गए तो फिर कभी भी इस समस्या से बाहर नहीं आ सकते। वह राजा उस नवयुवक के उत्तर से खुश हो गया।

एक दिन फिर से राजा के दरबार में एक व्यक्ति आया और कहने लगा कि आप बहुत ही अच्छा न्याय करते हैं। मैं भी आपके पास एक प्रश्न लेकर बडी़ उमीद से आप के पास आया हूं आशा है आप मेरे भी फरियाद सुनेंगे। वह कहने लगा कि मेरा बेटा बहुत ही शराब पीता है। मैं उसे शराब छोड़ने को कहता हूं तो कहता है कि आप क्यों मुझे शराब छोड़ने को कहते हो। मैं तो कब से शराब पीता हूं। आपने तो मुझे कभी नहीं कहा कि शराब मत पियो आज अचानक यह क्या हुआ? अपनी हमदर्दी अपने पास ही रखो। राजा नें उसी व्यक्ति से प्रश्न पूछा कि वह व्यक्ति क्या करे?

वह व्यक्ति बोला कि तुम्हें पहले कारण पता करना होगा कि वह शराब क्यों पीता है? उस आदमी का पीछा करो। हो सकता है उसे किसी ने धोखा दिया हो। राजा ने उस व्यक्ति के पास जाकर कहा कि तुम पहले यह पता करो कि तुम्हारा बेटा किसी से प्यार तो नहीं करता है
सोमेंश अपने बेटे का पीछा करता है। सचमुच में ही उसका बेटा रमेश रोमा के साथ था। रोमेश उस के साथ मयखानें में बैठा था। वह उसे कह रही थी तुमने अगर शराब पीना नहीं छोड़ा तो मैं किसी और लड़के से शादी कर लूंगी। वह गुस्से में आकर बोला कर लो। जिस से शादी करनी है कर लो।

लड़के का पिता रोमा के पास आकर बोला वह मेरा बेटा है। लडकी बोली आपका बेटा मुझसे प्यार करता है। उसे गलत शक हो गया कि मैं उसे नहीं किसी और को प्यार करती हूं। मुझे पहले ही पता चल गया वह बहुत ही शक्की है। अभी तो शादी भी नहीं हुई मैं शक्की इंसान के साथ शादी कर के अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकती। अच्छा हुआ जो मुझे पहले ही पता चल गया। इस तरह से मुझ पर यह शक करता रहा तो मेरी जिंदगी खराब हो जाएगी। रमेश के पिता को रोमा नें बताया कि मैंने रमेश को कहा कि शक करना छोड़ दो। जिस दिन आप शक करना छोड़ेंगे उसी दिन मैं तुमसे शादी कर लूंगी वह माना नहीं और वह शराब पीने लगा।

राजा मन ही मन में बोला कि मैं उस व्यक्ति से ही इस प्रश्न का उत्तर पूछूँगा। राजा उस व्यक्ति के पास गया। तुम ने ठीक ही कहा था कि लड़की के चक्कर में वह शराब पीने लगा। राजा रोमा को भी वहां ले गया। रोमा को उस व्यक्ति ने कहा कि तुम रमेश के साथ चलकर कहना चलो दोनों मिलकर पीते हैं। उसे बुरा लगेगा। वह शराब को कभी भी हाथ नहीं लगाएगा। उस दिन के बाद उसके बेटे ने कभी भी शराब नहीं पी और रोमा के साथ शादी कर ली।।
सभा खचाखच भरी हुई थी राजा बोला इन तीनों प्रश्नों के उत्तर मैंने नहीं दिए। मुझ से भी बुद्धिमान एक व्यक्ति है जिसने इन सब प्रश्नों के उत्तर दिए। आज से मैं उसको अपनें नगर का राजा नियुक्त करता हूं। मैं समझता था कि मुझसे बुद्धिमान इस नगर में कोई नहीं है मगर मैं गलत था। आज मैंने जाना कि मुझ से भी बुद्धिमान हो इंसान इस दुनिया में मौजूद है। राजा नें अपनें वायदे के मुताबिक उस को ताज पहना कर राजा घोषित कर दिया।

रहस्यमई हवेली

शेरभ बहुत ही शरारती बालक था। एक दिन उसकी मां ने उसे कहा अगर तुम होमवर्क नहीं करोगे तो तुम्हें बहुत ही मार पड़ेगी। शेरभ ने अपनी ममी की बात सुनी अनसुनी कर दी वह चिखते चिखते बोला मां पहले मुझे चॉकलेट दो। वह चॉकलेट के लिए जिद करने लगा। शेरभ की मम्मी ने कहा कि आज तो तुम्हें चॉकलेट नहीं मिलेगी। उसके पापा उसे बहुत ही लाड़-प्यार करते थे। उन्होंने चार चॉकलेट उसे दे दी। शेरभ की मम्मी ने उस से चॉकलेट छिन ली। शेरभ को बहुत गुस्सा आ रहा था तभी शेरभ की मम्मी ने चॉकलेट मेज पर रखी और फोन सुनने दूसरे कमरे में चली गई।

शेरभ ने सोचा मम्मी पढ़ाई करने बिठा देगी। इसलिए उसने मेज पर से चारों चॉकलेट उठाई और बाहर की ओर भाग गया। घूमते-घूमते बाग में पहुंच गया था। उसका पढ़ाई करने को मन ही नहीं कर रहा था। वह बाग में इधर उधर घूम रहा था। वह केवल दस वर्ष का था। उसे बाग में एक लड़का दिखाई दिया। उसके पीछे पीछे चलने लगा। सोचने लगा के इस बच्चे के साथ दोस्ती कर लेगा। वह उसके साथ ना जाने कितनी दूर निकल आया था। उस बच्चे की मम्मी तभी उसे गाड़ी में ले गई। वह अकेला रह गया था। वह अपने घर का रास्ता भूल चुका था। चलते चलते वह काफी दूर निकल आया। उसे एक कुत्ता दिखाई दिया। वह उस कुत्ते को देखकर खुश हो गया। उसने उस कुत्ते को प्यार किया। वह कुत्ता भी इधर उधर किसी को खोज रहा था। वह कुत्ता उस बच्चे के पीछे चलने लगा। एक जगह शेरभ को बड़े जोर की ठोकर लगी। वह गिर पड़ा और बेहोश हो गया। वहां पर झाड़ियां थी। उसने अपनी मम्मी को सड़क के रास्ते पर चलते देखा था। वह भी पगडण्डी वाले रास्ते से चलते हुए घर पहुंचना चाहता था। अपने पापा के ऑफिस में चले जाना चाहता था। उसे अपने पापा के ऑफिस का पता था।

शेरभ की मम्मी ने सोचा कि शेरभ अपने पापा के ऑफिस चला गया होगा। आज शेरभ को स्कूल से छुट्टी थी। जब उनके पापा घर आए तो बोले शेरभ कहां है? वह एकदम घबरा कर बोली क्या वह आप के औफिस नहीं आया। वह जोर जोर से रोने लगी। ढूंढ ढूंढ कर थक ग्ए। वह छोटा सा बच्चा कंहा जा सकता है। उसे तो घर का पता भी मालूम नहीं है। हम अभी अभी ही हम इस मकान में नये आए हैं। मेरा बेटा कैसे मिलेगा।
शेरभ के पिता ने कहा कि वह कहां जाएगा। वह मिल जाएगा। शेर को जब होश आया वह नीचे गिरा हुआ था। वह जोर जोर से रोनें लगा। वह कुता उसे चाटनें लगा। मानों कह रहा हो डरो मत। मैं तुम्हारे साथ हूं। वह कुता उस बच्चे के पास ही बैठा रहा। शेरभ को भूख भी बड़ी जोर की भूख लग रही थी। । शेरभ ने अपनी जेब से चॉकलेट निकाली। अपनें आप भी खाई और कुत्ते को भी डाली। वह अब धीरे-धीरे चलनें लग गया था।

वह रास्ता बिल्कुल सुनसान था। तीन गुंडों की नजर उस पर पड़ी। वह छोटा सा बच्चा और वह भी बिल्कुल अकेला। वे लोग अपहरणकर्ता थे। उन बच्चों को बेचते थे। जिन लोगों को बेचते थे उन बच्चों की किडनी निकाल कर किसी की आंख निकाल कर दूसरे देश में जाकर बेच देते थे। उन्होंने सोचा पहले हम अपने बॉस से बात कर लेते हैं। तीनों गुंडों ने अपने बॉस को फोन किया कि हमें एक छोटा सा बच्चा मिला है। आप उसकी कितनी कीमत हमें देंगें।
उसका बौस बोला कि 500, 000रु दूंगा। तुम तीन लाख पहले आकर ले जाओ और ढाई लाख बाद में दे देंगे । अपहरण करनें वालों नें कहा कि कहां आना है? उनमें से एक ने कहा कि मुंबई में हमारा ऑफिस है। तुम कल मुंबई पहुंचो। उन्होंने उस बच्चे का कहा कि तुम कहां जा रहे हो?। बच्चे ने कहा कि मुझे मां पापा के पास जाना है। उन्होंनें उस बच्चे को पकड़ लिया। वे बोले हम तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देंगें। वह कुत्ता भी उनकी गाड़ी की डिक्की में बैठ चुका था। एक जगह पहुंच कर उन्होंने इस बच्चे को उठाया और एक जगह काफी सुनसान खंडहर वाली हवेली में बच्चे को बंद कर दिया। और दूसरे दोस्त को कहा कि कल हम यहां पर आकर इस बच्चे को यहां से ले जाएंगे। कुत्ता भी नीचे उतर चुका था। उसने उस बच्चे को अंदर बंद करते हुए देख लिया था। जबकि वे तीनों किडनैपर चले गए तो वह बच्चा उस खंडहर वाली हवेली में अकेला रह गया। वह जोर जोर से रोने लगा। हवेली के पहरेदार को वे गुन्डे बहुत सारे रुपये दे कर गए थे। उन्होंने कहा कि यह हमारा बच्चा है इसको हम कल ले जाएंगे। पहरेदार रात को उस बच्चे को देख कर गए। शेरु चुपचाप खिड़की के बाहर झांक रहा था। उस छोटे से बच्चे को कुछ नहीं पता था कि वह कहां आ गया है?। उसे रात को डर भी लगने लग गया था। पहरेदार सो गया था वह कुत्ता अब बार-बार उसकी खिड़की के पास मंडरा रहा था। शेरभ बाहर आने का रास्ता खोज रहा था। रात हो चुकी थी। उस हवेली में कोई नहीं आता था। रात को जोर जोर की आवाजें आनें लगी थी। आवाजों से वह घबरा गया। उसके सामने एक सुंदर सी स्त्री आकर बोली बेटा तुम क्यों रो रहे हो? वह बोला आंटी मुझे तीन मोटे आदमियों ने यहां बंद कर दिया। मैं अपनी मां से नाराज होकर बाग में घूम रहा था। चलते चलते मैं रास्ता भूल गया। तभी इन गुंडों ने मुझे देख लिया। वे मुझे बेचने की बात करे थे। वह बोली बेटा तुम डरो नहीं। बहादुर बच्चों को मैं कुछ नहीं कहती हूं। ं यहां पर कोई नहीं आता है। बेटा मैं तुम्हें यहां से निकालूंगी। कुत्ता भौंकने लगा था। कुत्ते ने देखा कि एक गाड़ी में बहुत सारी रस्सियां रखी हुई थी। उन्होंनें एक रस्सियों का लिफाफा खींच लिया। वह मुंह में रस्सियां दबाए हुए आया और उसने रस्सी खिड़की में फेंक दी। वह औरत बोली बेटा यह कुत्ता तुम्हारा है। यह तो बहुत ही समझदार है। वह तुम्हारी रक्षा करना चाहता है। उसने तुम्हारी ओर रस्सी फैंकी है ताकि तुम रस्सी अपने बांध लो और खिड़की के सहारे वह तुम्हें बाहर खींच लेगा। शेरभ ने अपने पेट में रस्सी बांध ली थी। वह बोली बेटा तुम सही सलामत अपनें घर पहुंच जाओ। शेरभ बोला कि आपके साथ बात करके मुझे अच्छा लगा। मैं आपको यहां से ले जाऊंगा। मैं अपने पापा को यहां लेकर आऊंगा। मैं अगर अपने घर पहुंच गया। वह बोली बेटा मैं अपनी कहानी तुम्हें फिर कभी सुनाएंगी। जब तुम यहां अपनें पापा के साथ आओगे।

उस औरत ने उसे पकड़कर खिड़की पर चढ़ा दिया था। कुत्ते ने उसे खिड़की से बाहर खींच लिया। कुत्ते को बहुत प्यार किया उसने कहा कि तुम सचमुच में ही मेरे प्यारे दोस्त बन गए हो मैं तुम्हें अपने पास ही रखूंगा। शेरभ ने भागना शुरू कर दिया उसका प्यारा दोस्त भी उसके साथ था।

एक होटल के मैनेजर ने उसे देख लिया। उसने उस आदमी को अपनी सारी कहानी सुनाई। वह होटल का मालिक बोला बेटा अगर तुम अपने घर जाना चाहते हो तो पहले तुम्हें रुपए कमाने पड़ेंगे। तुमको यहां बर्तन साफ करने पड़ेंगे। वह बोला एक दो बार मैंने अपनी मम्मी को बर्तन धोते देखा था। मैं बर्तनों को साफ कर दिया करूंगा। वह उस के बर्तन साफ करने लग गया था। होटल का मालिक शेरभ को बिल्कुल अलग से काम करवाता था। उसे पता था कि छोटे-छोटे बच्चों का काम करना जुर्म समझा जाता है। इसलिए उस बच्चे से जब भी काम करने को कहता था तो वह कमरा बंद कर देता था कि कहीं कोई उसे बर्तन साफ करते हुए कोई देख ना ले। है। वह बर्तन साफ करने लगा। काम करते-करते उसको वहां दो महीने हो गए थे। उसने सौ रुपए इकट्ठे कर लिए थे। वह खाना होटल में ही खा लिया करता था। वह बच्चों को बाहर नहीं आने देता था।

शेरभ के मम्मी पापा के पास इतने अधिक रुपए नहीं थे जिससे कि वह अपने बच्चों को छुड़वाने की कीमत अदा करते। शेरभ की मां तो बहुत ही बीमार हो चुकी थी। उन्होंने अपने बेटे शेरभ को छुड़ाने के लिए लोगों से उधार लिए थे और उन्होंने अखबार में इश्तहार दिया था कि जो हमारे बेटे को ढूंढ कर लाएगा उसे हम 100,00रुपये देंगें। मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरा बेटा अगर मुझे मिल जाए तो मैं ₹100,000 देने के लिए भी तैयार हूं। इस एड्रैस पर आकर मेरे बच्चों को छोड़ जाए उसने अपने घर का पता दे दिया था।

होटल के मालिक ने भी उसके अखबार में फोटो देख ली थी। होटल मैनेजर नें सोचा कि अभी मैं इस बच्चे से और काम ले लेता हूं। मैं इसके घर अभी मैं इसे नहीं भेजूंगा। शेरभ वहां से निकलने की योजना बना रहा था। एक दिन उसका दोस्त किटटू उसकी कमीज खींचकर बाहर की ओर घसीट कर ले गया। शेरभ ने बाहर की ओर देखा वहां पुलिस इंस्पेक्टर चाय पीने के लिए आए थे।

शेरभ को समझ में आ गया था कि यह कुत्ता उसे क्यों खींच रहा है? वह जल्दी से पुलिस इंस्पेक्टर के पास गया। उसने सोचा कि मैं होटल मैनेजर की शिकायत इन इन्सपैक्टर से कर देता हूं। वह मुझसे बर्तन साफ करवाता है। मुझे मेरे मम्मी के पास छोड़ दे। पर बाहर कैसे जाऊं? शेरभ ने एक चादर ओढ़ ली और बाहर आ गया। पुलिस इंस्पेक्टर का हाथ पकड़ कर बोला अंकल मेरे साथ बाहर आओ। चुपके से आना। उसको बाहर आते किसी ने नहीं देखा। अंकल को बोला अंकल यहां नहीं अपनी गाड़ी में बिठाओ।
पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा पहले मैं अपना बिल अदा करके आता हूं। सिर्फ बोला अंकल अभी नहीं आप यह मत बताना कि मैं आपकी गाड़ी में हूं। जल्दी से पुलिस इंस्पेक्टर बिल अदा करके आ गया था। वह बोला बेटा बताओ क्या बात है? पुलिस इन्सपैक्टर बोला अंकल मैं अपने घर से चलता चलता रास्ता भटक चुका था। यहां पर रास्ते में कुछ चोरों ने मुझे एक खंडहर में बंद कर दिया। मैं वहां से भी निकल कर भाग कर यहां आ गया। यहां पर इस होटल के मालिक ने मुझे बर्तन साफ करने लगा दिया। कृपया करके आप मुझे मेरे माता-पिता के पास छोड़ दो। अंकल मुझे अपने माता पिता की याद आ रही है।

अखबार में पुलिस इंस्पेक्टर ने शेरभ के माता-पिता का लिखा हुआ इश्तहार देख लिया था। पुलिस इन्सपैक्टर बोला कि बेटा मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा। तुम अब बिल्कुल सुरक्षित हो। पुलिस वाले ने कहा बेटा चलो मेरे साथ। पुलिस इन्सपैक्टर ने होटल के मालिक को कहा कि तुम छोटे से बच्चे से बर्तन साफ करवाते हो तुम्हें इस के लिए हवालात में जाना पड़ेगा। होटल का मालिक बोला बाबू साहब मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हें ₹20, 000 देता हूं। पुलिस स्पेक्ट्रम नें होटल के मालिक से ₹20, 000 ले लिए। पुलिस इंस्पेक्टर गाड़ी में शेरभ के घर की ओर आ रहा था तो रास्ते में वही हवेली दिखाई दी। पुलिस इंस्पेक्टर को शेरभ नें ने कहा कि इस हवेली में एक आंटी रहती है। आप उसे भी यहां से बाहर निकाल दो। पुलिस इंस्पेक्टर उस हवेली में उस बच्चे के साथ गया परंतु वहां पर कोई नहीं था। उस बच्चे से बोला शायद उस आंटी को भी कोई आ कर यहां से ले गया होगा तभी उस हवेली का पहरेदार आ कर बोला यहां पर एक औरत की आत्मा भटकती रहती है। वह यहां आने वाले हर व्यक्ति से इन्साफ की फरियाद करती है। वह बहुत से लोगों का खून भी कर देती है।

पुलिस इन्सपैक्टर बच्चे से बोला यहां पर ज्यादा देर ठहरना उचित नहीं है। जल्दी चलो। इंस्पेक्टर शेरभ के घर पहुंच चुका था। उसका दोस्त किटटू गाड़ी से निकल कर शेरभ को चाटने लगा। पुलिस इन्सपैक्टर नें उसे उनके घर पहुंचा दिया था शेरभ के पापा से मिल कर उन से बोला आप अपना ईनाम तैयार रखो। मैं आपके बेटे को लेकर आ रहा हूं।।
शेरभ को वापस आया देखकर उसके माता पिता ने उसे गले से लगा लिया। पुलिस इन्सपैक्टर अपने घर वापिस जा चुका था। उसनें शेरभ के पिता को अपना परिचय एक आम आदमी की तरह दिया। शेरभने कहा कि पापा आपने पुलिस इन्सपैक्टर को खाना नहीं खिलाया। शेरभ के पापा बोले कि वह पुलिस इन्स्पेक्टर नहीं थे। शेरभ बोला वही तो पुलिस इन्स्पेक्टर थे। शेरभ के पापा को साफ साफ पता चल चुका था कि वह पुलिस इन्सपैक्टर भी रुपये हासिल करना चाहता था इसलिए उसने अपना असली परिचय नही दिया।। शेरभ बोला मेरे साथ मेरा दोस्त किटटू भी आया है। शेरभ के पापा खुश थे कि उन्हें उनका बेटा वापिस मिल गया था।

उन्होंनें पुलिस इन्सपैक्टर को ₹100,000 दिए दिए थे। उन्हें अपना बेटा वापिस मिल चुका था इसलिए उनको ₹100,000देने में कोई आपत्ति नहीं थी। अपने मम्मी पापा को शेरभ नें अपनी सारी कहानी सुनाई कि कैसे इस किटटू ने मुझे गुंडे से बचाया। और एक हवेली में आंटी ने मेरी सहायता की। वह आंटी उस पुरानी हवेली के खंडहर में अकेली रहती है। पापा प्लीज आप भी उस आंटी को बचा लो। आप दोनों मेरे साथ उस हवेली पर चलना। उसके पापा ने सोचा कि जब मेरा बेटा बोल रहा है तो शायद कोई आंटी होगी जो बिचारी मुसिबत में पड़ी हो।

अगले दिन शनिवार था। शनिवार और रविवार की छुट्टी थी। परिवार सहित शेरभके आने की खुशी में उन्होंने वहां जाना स्वीकार कर लिया था। तीनों गाड़ी में बैठकर उस खंडहर वाली हवेली में पहुंच गए। रात को उन्होंने एक कमरा किराए पर ले लिया। रात को सिर्फ अपनी मम्मी पापा के साथ हवेली में चला गया। रात होने को थी। तभी वहां पर पायल की आवाज़ नें उन्हें चौंका दिया। आंटी को आता शेरभ ने देख लिया था। शेरभ ने कहा आंटी अब आप बताओ। आज मैं अपने पापा को लेकर यहां आया हूं। आप मुझे जल्दी बताओ आपको यहां किसने कैद किया हुआ है। वह बोली बेटा तुम बहुत छोटे हो। अपने पापा को मेरे सामने ले कर आओ मैं उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाती हूं।शेरभ अपनें पापा को उस हवेली में रहने वाली आंटी के पास ले गया।

वह शेरभ के पापा से बोली मैं भी एक राजकुमारी की तरह रहती थी। मेरे पिता बहुत ही धनी परिवार के थे। मैं पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बनना चाहती थी। कॉलेज के दिनों में मुझे ठाकुर परिवार के राजकुमार से प्यार हो गया था। उसके पिता ने मेरा रिश्ता स्वीकार नंही किया। उन्होंनें मुझे पहाड़ से गिरा कर खाई में फैंक कर मार डाला। मेरी लाश को एक खंडहर में फेंक दिया। मुझे जब बांध दिया गया था मैंने अपने बचाव के लिए पुलिस इंस्पेक्टर रावत को भी फोन किया। उस ठाकूर ने इस्पेक्टर के साथ मिलकर मुझे नीचे गहरी खाई में फेंक दिया। मैं उस ठाकुर परिवार के लोगों को सलाखों के पीछे देखना चाहती हूं।बेटा शेरभ जिस पुलिस इंस्पेक्टर को तुम यहां लेकर आए थे वह रावत पुलिस इंस्पेक्टर उसने ठाकुर परिवार के आदमियों के साथ मिल कर मेरी लाश को मेरे माता पिता को सौंप दिया था। उस पुलिस इंस्पेक्टर ने मुझे नहीं बचाया। वह लालची है। उसे जरुर दण्ड दिलाना।

शेरभ के पापा बोले वह मुझसे भी 100,000 रुपये ले जा चुका है। कुंवर ने शादी नहीं की। वह अपनी प्रेमिका को भुला नहीं पाया और अपनी प्रेमिका की याद में कोमा में चला गया। अभी तक वह हॉस्पिटल बांद्रा में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था। उसके पिता ने उस की जिंदगी बचानें वाले को 10, 00, 000 रुपए देने का वादा किया है। तुम उस हॉस्पिटल में जाकर उस कुंवर शैलेंद्र को यहां लेकर आओ। मुझ से मिलकर वह ठीक हो जाएगा। मैं अपनी सारी कहानी उसे सुना दूंगी। जब वह ठीक हो जाएगा तो तुम्हें 10, 00, 000 रुपए मिल जाएंगे। शेरभ के पापा ने कहा ठीक है। हमको आपकी बात में सच्चाई नजर आ रही है। शेरभ़ के पापा हॉस्पिटल में जा कर हैरान रह गए। वहां पर कुंवर शैलेंद्र जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था। शेरभ के पापा ने ठाकुर कुमार रणवीर सिंह को कहा कि मैं आपके बच्चे को बचाऊंगा। मेरा बेटा ठीक हो गया तो मैं वायदे के मुताबिक तुम्हें 10 लाख रुपये दूंगा। जल्दी बताओ बेटा मुझे क्या करना होगा? आप अपने बेटे को मेरे साथ जानें दो। मैं उसे ऐसी जगह ले जाना चाहता हूं जहां पर जा कर वह बिल्कुल ठीक हो जाएगा। ठाकुर रणवीर सिंह नें शेरभ के पिता के साथ अपनें दो साथियों को भिजवा दिया।

शेरभ के पिता शैलेन्द्र को लेकर हवेली में पहुंचे। रात का समय था। शालू ने पायल की आवाज से उसे पुकारा। शालू शालू अचानक शैलेंद्र ने आंखें खोल दी। वह बोला ना जाने कितने दिनों से तुम्हें मैं ढूंढ रहा हूं। तुम भी कैसी दगाबाज हो तुम्हें कोई और तो पसंद नहीं आ गया। वह शालू के गले लग कर रोने लगा। मुझे छोड़कर मत जाना। वह बोली पहले तुम बिल्कुल ठीक हो जाओ जब तक तुम तंदरुस्त नहीं हो जाते मैं आपसे नहीं मिलूंगी। आपको पहले मेरा एक काम करना होगा। आपको मेरे घर जाकर कहना होगा कि मैं शालू से मिला। वह जल्दी ही घर आ जाएगी। मेरे पिता को कहना कि अपना ध्यान रखें। तुम्हें अपने पिता की बात नहीं माननी होगी। अपने पिता के खिलाफ जाना होगा। अपने पिता की सारी संपत्ति और दौलत हॉस्पिटल बनवाने के लिए दान देनी होगी। पुलिस इंस्पेक्टर रावत को सस्पेंड करवाना होगा। और जो इंसान तुम्हें यहां लेकर आए उन्हें अपने पिता से 10, 00, 000 रुपए दिलवाने होंगे। वह बोला मैं यह सब कुछ करूंगा तब तो तुम वापस आ जाओगी। शालू बोली ठीक है आज से 5 महीने बाद मैं तुम्हारे घर में मैं तुम्हारी दुल्हन बन कर आऊंगी। तुमसे मेरा वादा है पर यह राज किसी को भी अगर तुम बताओगे तो तुम्हें मुझ से हाथ धोना पड़ेगा। तुम्हारे पिताजी से मुझे बड़ी नफरत हो गई है। यह बोलते बोलते वह चुप हो गई। तब वह गायब हो गई शालू के पिता ने यह सारी बातें रिकॉर्ड कर दी थी। कुंवर शैलेंद्र ठीक हो चुका था। उसमें सबसे पहले अपने घर पहुंचते अपने पिता को कहा कि पापा आप बूढ़े हो चुके हैं और मैं सारा कार्यभार मैं संभालना चाहता हूं। आप तो बस घर बैठकर खाना। जिंदगी का क्या भरोसा? उसके पिता ने सोचा मेरा बेटा ठीक ही तो कहता है। उसने सारी की सारी दौलत अपने बेटे के नाम कर दी।

शैलेन्दर ने सारी दौलत हॉस्पिटल बनवाने के लिए दान दे दी। शैलेन्द्र के पिता के पास कुछ नहीं बचा था। पुलिस इंस्पेक्टर को भी शैलेंद्र ने सस्पेंड करवा दिया था। वह शालू के घर गया और उस के पिता से मिला और बोला अंकल आप चिंता मत करो। शालू जल्दी ही घर आ जाएगी। उसने मुझसे वादा किया है कि वह जल्दी ही घर आ जाएगी। शालू के पिता शैलेन्द्र की बातों को सुनकर हैरान रह गए। उनकी बेटी को गए तीन साल हो चुके थे। वह सोच रहे थे कि शैलेंद्र उनकी बेटी शालू की याद को भुला नहीं पाया इसलिए बहक गया है। अंकल आपको किसी वस्तु की भी आवश्यकता हो तो मुझे कहना। मैं आपको लाकर दूंगा।

शेरभ के पिता को कुंवर रणवीर ने 10, 00,000 रुपए दे दिए। उसके पिता को शालू ने बताया कि जिस किडनैपर ने शेरभ को पकड़ा था उसी किडनैपर ने मुझे पकड़ कर मेरे चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी करवाई थी। उन्होंने मेरा चेहरा एक ऐसी लड़की को लगाया था। वह लड़की IAS ऑफिसर बन चुकी है। उस लड़की के माता-पिता ने उस की प्लास्टिक सर्जरी कराई थी और मेरा चेहरा उसे लगा दिया था। उस लड़की का नाम भी शालू है। मेरे पिता ने शैलेंद्र को यह कभी नहीं बताया था कि मैं उनकी बेटी नहीं थी। मैं तो महेंद्र प्रताप की बेटी थी जो बचपन में खो गई थी। महेंद्र प्रताप की बेटी की प्लास्टिक सर्जरी हुई थी। उसका नाम भी शालू है। उसको ही मेरा चेहरा लगाया गया है। मैं वास्तव में उन्हीं की बेटी हूं। तुम शालू के साथ मेरे शैलेंद्र की शादी करवा देना क्योंकि मेरे चेहरे को देखकर वह मुझे अपना लेंगे इतना कहते-कहते शालू रोने लगी। तुम सुखी रहो। शेरभ के पिता को गले लगा कि आज मैंने एक अच्छा काम किया। मैंने कुंवर शैलेंद्र से शालू को इन्साफ दिलवा कर अच्छा किया। उसकी आत्मा अब कभी नहीं भटकेगी।

काली और भूरी बिल्ली

एक छोटी सी बस्ती थी। उस बस्ती के बाहर काले और भूरे रंग की दो बिल्लियां रहती थी। जब भी मिलती आपस में लड़ती। जब काली बिल्ली रोटी प्राप्त करती तो भूरी बिल्ली को उससे इर्ष्या होती। जिस दिन काली बिल्ली को रोटी मिलती उस दिन भूरी को ईर्ष्या होती। दोनों एक दूसरे से रोटी छुड़ाने की कोशिश करती। इस कम ज्यादा के चक्कर में दोनों लड पड़ती। कुछ दिनों बाद एक हो जाती
यही सिलसिला काफी दिनों तक चल रहा था। वह एक दूसरे को काफी दिनों तक दिखाई नहीं दी। कुछ दिनों बाद काली बिल्ली और भूरी बिल्ली दोनों एक जगह मिली। किसी सेठ के यहां से उन्हें पूरी खाने को मिली थी। दोनों एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कुरा दी। दोनों साथ-साथ चल रही थी। सामने से उन्हें एक गाड़ी आती दिखाई।

काली बिल्ली एक और हो गई। भूरी बिल्ली को देख कर एक छोटा सा बच्चा चिल्लाया। मां मां इसे अपने घर ले चलो। उस गाड़ी के मालिक ने उस भूरी बिल्ली को उठाया और गाड़ी में डाल दिया। भूरी बिल्ली म्याऊं म्याऊं करती रही। काली बिल्ली उस गाड़ी के पीछे दौड़ती रही। वह भी उनके साथ गाड़ी की छत पर बैठकर काफी दूर तक आ गई। एक जगह जाकर उन लोगों ने गाड़ी को रोका।

वे लोग होटल में चाय पीने के लिए रूके। अपनी सखी को गाड़ी में देख कर पुकारती रही। अंदर से भूरी बिल्ली बोली मेरी बहन मुझे बाहर निकालो। वे लोग मुझे अपने साथ ले जा रहे हैं। मैं अब तुम्हें कभी नहीं मिलूंगी। मैं तुमसे लड़ती थी झगड़ा करती थी। मेरे साथ अब लड़ाई कौन करेगा।? काली बिल्ली बोली खिड़की बंद है। मैं तुझे कैसे बाहर निकालूं।? भूरी बिल्ली बोली तू भी मेरे साथ चल। तू मेरे साथ वहीं पर मेरे आस-पास रहना जिससे मुझे तुम्हारी कमी महसूस ना हो।

गाड़ी के मालिक आकर गाड़ी में बैठ गए।वह जल्दी से उतर कर भाग गई। काली बिल्ली उन्हें जाते हुए देखती रही। सहेली के साथ आज सदा सदा के लिए उसका साथ छूट गया था। आज उसने जाना कि अपनों के बिछड़ने का गम क्या होता है? वह रोटी लेकर आती तो भी उसका रोटी खाने को मन नहीं करता था।

एक दिन उसने देखा कि एक गाड़ी में एक दम्पति बैठे थे। वह बिना आवाज किए ही उनकी छत पर जा बैठी। जैसे ही वह लोग अपने घर पहुंचे काली बिल्ली चुपके से छत से कूद कर भाग गई। वह तो अपनी सहेली को खोजने दूसरे शहर आई थी। एक दिन उसने उस औरत और उस बच्चे को पहचान लिया जिसकी कार में वह भूरी बिल्ली शहर की ओर आई थी। वह गेराज में गाड़ी ठीक करवा रहे थे। गाड़ी जब ठीक हुई तो वह बिल्ली उनकी गाड़ी की छत पर बैठ गई। काली बिल्ली ने वह घर देख लिया था। घर की मालकिन भी काम पर जाती थी। बच्चा भी स्कूल जाता था।

वह एक दिन घर की बाल्कनी में आ कर म्यांयू म्यांयू करने लगी।गैलरी का दरवाजा खुला देख कर वह बाल्कनी के पिछे छिप कर के भूरी बिल्ली के पास गई और उससे लिफ्ट लिफ्ट कर रोने लगी।

मानों वर्षों बाद उसकी सहेली उससे मिली हो उसने अपनी सहेली को स्टोर रूम में घुसा दिया। उस स्टोर रुम में कोई नहीं जाता था। जब शाम हुई तो वह बिल्ली स्टोर रुम में अपनी सहेली के पास आकर बोली। बहन मैं तो यहां आकर बड़ी दुःखी हूं।

यह इंसान इतना भी नहीं समझते हम इंसानों के घरों में बंद नहीं रह सकते। जिस प्रकार इंसान का अपना परिवार होता है उसके सभी रिश्तेदार भाई बहन मित्र होते हैं। हमारी जाति में हमारा भी परिवार होता है। यह इंसान अपनी खुशी के लिए हम को पकड़कर अपने घर में भांति भांति के तरह तरह के पकवान मांस आदि देखकर हमें खुश करने की कोशिश करते हैं। इंसान यह क्यूं नहीं समझते कि हमें भी अपनी जाति अपनी परिवार वाले लोगों के साथ रहकर ही खुशी मिलती है। इन लोगों ने मुझे पकड़ कर अपने घर में रख लिया। ऐसे तो यह सारे घर के लोग अच्छे हैं। परंतु इन्हें हमारे दर्द का क्या पता है ? इंसान का जब कोई परिवार वाला दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है या अपने परिवार से बिछड़ जाता है तब इस इंसान को कितना दुख होता है? यह लोग नहीं जानते। हमें भी तो अपने परिवार वालों से बिछुड़ कर चाहें कितनी भी बढ़िया-बढ़िया चीजें खाने को दीं जाती हैं वह सब तुच्छ है।आज बहन तुम लौटी हो तो मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरा परिवार मुझे मिल गया है। थोड़े दिन तो मुझे यहां अच्छा लगा। तुम मुझे जल्दी यहां से बाहर निकालो। मेरा दम इस घर में रह कर घुटता है। मुझे जल्दी से यहां से बाहर निकालो। भूरी बिल्ली बस्ती में रहने लगी। उसके आसपास ही रह कर कभी कभार वह उनसे मिलने चली जाती थी।

एक दिन घर के सब लोग बाहर घूमने गए हुए।थे। भूरी बिल्ली को पता लग गया था। जैसे ही सब के सब बाहर निकले वह चुपके से स्टोर रूम में घुस गई और अपनी सहेली भूरी बिल्ली के पास जाकर बोली। आज तो हम दोनों यहां से बाहर निकले का प्रयत्न करेंगे। वह स्टोर रूम में घुस गई। घर के मालिक लोग जैसे ही ताला लगा कर चले गये। काली बिल्ली और भूरी बिल्ली दोनो गले लगकर मिली।

काफी समय हो गया था। बाहर तो ताला लगा था। । वह बाहर निकलनें की योजना ही बना रही थी कि उन्हें घर में आहट सुनाई दी। चोर उनके घर में घुस गए थे। वे ताला तोड़कर जैसे ही चोरी करने के लिए सेफ खोलनें लगे गोरी और काली बिल्ली दोनों ने मिल कर उन चोरों को काट काट कर बेहोश कर दिया। शोर सुनकर साथवाले लोग आ गए थे। उन्होंने देखा कमरे का सामान बिखरा हुआ था। उन्हें देखकर काली बिल्ली छिप गई थी। उन्होंने भूरी बिल्ली की प्रशंसा की। साथ वाले घर की मालकिन बोली इस चोर को पुलिस के हवाले कर देंगे। वह चोर वही बेहोश पड़ा था। साथ वाले घर वाली आंटी ताला लगाने और फोन करने बाहर जाने लगी।

वह दोनों बिल्लियां मौका देख कर भाग गई। आज भी अपने आप को आजाद महसूस कर रही थी। दोनों बिल्लियाँ अपनी बस्ती में लौट आई थी। वह समझ गई थी चाहे हम कितना भी लड़ाई झगड़ा करें मगर हम प्यार तो एक दूसरे के साथ ही करती हैं। हम एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती। आज बाहर निकल कर महसूस हुआ कि आजादी का अपना ही महत्व होता है।

मेहनत

एक छोटी सी बस्ती में चीनू अपने मां बाबा के साथ रहता था। वह केवल 5 वर्ष का था और हर एक बात को जानने की जिज्ञासा रखता था। उसकी मां उसे कहती बेटा तेरे कई प्रश्नों के उत्तर तो मेरे पास भी नहीं है। वह जब उसके प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाती तो वह उसे डांट कर चुप करा देती। वह अपनी मां से कम ही प्रश्न पूछता था। एक दिन उसके मामा उनके घर आए हुए थे। उसके बाबा उसके मामा से कह रहे थे कि बेटा इंसान को मेहनती होना चाहिए। छोटा सा चीनू अपने पिता से पूछना ही चाहता था कि वह मेहनती क्या होता है? उसके पिता ने कहा अच्छा बेटा मैं काम पर जा रहा हूं। तू भी सारा दिन अपनी मां के साथ मेहनत करना। शरारते मत करना।

उसकी मां काम कर रही थी। उसने चीनू को आवाज लगाई बेटा यही पर खेलना। मैं खेत में घास काटने जा रही हूं। उसकी माता घास काटनें चली गई। वह सोचने लगा कि बाबा मेहनत करते हैं। मैं भी मेहनत करूंगा। शाम को जब उसके बाबा आए उसने अपने बाबा को कहा कि आप कहां जाते हो? वह बोला मैं काम करने जाता हूं। उसके पिता बोले अब तुम भी स्कूल में पढ़ने जाया करोगे। मैं सारे दिन पत्थर तोड़ता हूं फिर कहीं खाने को रोटी मिलती है। वह बोला अच्छा बाबा।

एक दिन उसके पापा उसे गांव की शादी में ले गए। वहां पर सब लोगों को अच्छी अच्छी पोशाक में देख कर उसे बहुत ही अच्छा लगा। उसने जब अपनी कमीज की तरफ देखा तो उसे बहुत ही बुरा महसूस हुआ। उसकी मां ने उसकी फटी हुई कमीज को सिल दिया था। कपड़े उसके साफ सुथरे थे। वह भी ठाठ से शादी में खूब खा पीकर आनंद महसूस कर रहा था। कभी मिठाइयां, कभी पूरी हलवा। आज जिंदगी में उसने डट कर अच्छे-अच्छे स्वादिष्ट पकवान खाएं। जब खाना खाने के बाद छोटे-छोटे बच्चों को एक ₹1 दक्षिणा मिली उसने वह सिक्का हाथ में दबा दिया। उसके पिता ने उसे बताया कि सिक्का दुकानदार को देने से टॉफी मिलती है। उसने वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया। आज से पहली बार इतना खुश कभी नजर नहीं आ रहा था। अपने कुर्ते को देखकर थोड़ा उदास जरूर हुआ। थोड़ी देर बाद में वह मस्त हो गया। जब उसकी नजर अपने जैसे बच्चों पर पड़ी तो वह देख कर हैरान हो गया कि उन सब के पैरों में तो इतनें सुंदर सुंदर जूते थे। उसने अपने पैर की तरफ देखा एक जूते में से एक छेद साफ नजर आ रहा था। वह रोनी शक्ल बनाकर अपनें बाबा को बोला। बाबा मेरा जूता ऐसा क्यों है? उसके बाबा बोले बेटा घर चल कर इसके बारे में बात करेंगे। अभी तो मौज मस्ती कर। ऐसा रंगीन माहौल देखकर उसे अच्छा लग रहा था।

शाम को घर आया तो बाबा को बोला ऐसा उत्सव हर रोज क्यों नहीं होता? आज तो मुझे बहुत ही अच्छा लगा। उसके पिता बोले ऐसा उत्सव तो तुम्हें देवालय में ही मिल सकता है। वहां पर ही ऐसी चीजें खाने को मिलती हैं। वह बोला बाबा देवालय क्या होता है? उसके पिता बोले बेटा जहां मंदिर होता है जहां ईश्वर की पूजा होती है। वहां पर लोगों की भीड़ एकत्रित होती है। और दूसरे विद्यालय विद्यालय ही एक ऐसा स्थान होता है जहां बहुत सारे बच्चे होते हैं जहां पर छोटे बच्चे बड़े वहां पर भी खाने को मिलता है। बच्चे वहां पर शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। हम भी तुम्हें विद्यालय में पढ़ने भेजेंगे। तुझे वहां पर जाकर पढ़ाई करनी है वहां पर तुझे खाने को भी मिलेगा। वह बहुत खुश हो गया। ठीक है बाबा।

एक दिन उसके बाबा बोले बेटा मैं काम पर जा रहा हूं। वह जब चले गए तो चीनू अपनी मां के पास आकर बोला मां मैं भी मेहनत करूंगा। उसकी मां उसकी भोली बातें सुनकर हंसने लगी। उसने कहा अच्छा बाबा जा मेहनत कर।

वह घर से चला गया। उसने सोचा शादी में तो उस दिन बड़ा ही मजा आया। आज ऐसा ही स्थान ढूंढते हैं जहां भीड़ हो। वह चला जा रहा था। सामने ही एक मंदिर था। वहां पर दूर-दूर से गानों की आवाज़ आ रही थी। उस दिन मंदिर में खास उत्सव था। सभी लोग मंदिर में माथा टेकने जा रहे थे। वह भी अंदर चला गया लोग मत्था टेक रहे थे। उसने भी उन लोगों को देख कर मन्दिर में माथा टेक दिया। पुजारी ने उसे खूब सारा प्रसाद दिया। उसे वह प्रसाद बहुत ही स्वादिष्ट लगा। अंदर लोग अच्छे-अच्छे कपड़ों में मंदिर में बैठे हुए थे। उसने भरपेट खाना खाया। उस दिन मंदिर में भंडारा था। पुजारी गल्ले में सिक्के डाल रहा था। उसने सोचा यह पुजारी उसे पैसे देगा। अचानक जब वह वापस नहीं गया तो पुजारी ने उसे एक लड्डू और एक सिक्का दिया। वह बहुत ही खुश हो गया। वहां से लौटने ही वाला था उसने मंदिर के बाहर बहुत ही सुंदर जूते देखे। शायद उसी की उम्र के बच्चे के थे। उसने वह जूते उठा लिए। उसने वह जूते पहन कर देखे। उस के नाप के ही जूते थे। वह बहुत खुश हुआ। मानो उसने सारे जहां की खुशियां पाया ली हों। उसने उन जूतों को पहनकर मन्दिर के चार पांच चक्कर लगाए। उसने सबके सामने वह जूते पहने। उसे किसी का भी डर नहीं था।

आज वह बहुत खुश था। उसने भी मेहनत की थी। मंदिर के बाहर उसे एक स्वेटर दिखाई दिया वह वहा से उस सवेटर को उठा कर ले आया।
वह उसे पहनने लगा। वह स्वेटर तो बहुत ही लंबा था। दूसरे दिन वह फिर घूमने गया। उसे एक जगह पर स्कूल का बोर्ड दिखाई दिया। वहां पर बच्चे सुबह की प्रार्थना कर रहे थे। वह बहुत खुश हो गया। छिप कर देखने लगा।

मैडम को सब बच्चों ने न जानें क्या कहा पर उसे वह समझ नहीं आया। जैसे ही मैडम आई सब बच्चे खड़े हो गए। तभी घंटी बज गई बच्चे बाहर इधर उधर घूम रहे थे।

एक बच्चा दूसरे बच्चे से लड़ रहा था उसने दूसरे बच्चे की पेंसिल ले ली थी। दौड़ा दौड़ा मैडम के पास जा कर बोला। मैडम जी इस बच्चे ने मेरे बस्ते से पैसेंल चुरा ली है। मैडम ने उस बच्चे को बुलाया बेटा चोरी करना बुरी बात होती है। हमें किसी की भी चीज बिना पूछे नहीं उठानी चाहिए। मैडम ने उसके कान खींच कर कहा मैंने तुम्हें आज सजा दे दी है। आगे से चोरी मत करना।

चीनू घर आया। जब उसके पापा शाम को घर आए बोले मैं तो मेहनत करके शाम को थका हारा आया हूं मुझे तो बहुत ही भूख लग रही है। चीनू भी बोला मां बाबा मैं भी मेहनत करके आ रहा हूं मुझे भी बहुत भूख लगी है। मां बाबा उसकी भोली बातों को सुनकर हंस कर बोले बता तो सही तुमने आज क्या मेहनत की? वह बोला पापा मैं दिखाता हूं। वह जूते पहन कर आ गया। इतने सुंदर जूते देख कर उसके पापा हैरान रह गए। इतनें सुंदर जूते तुझे किसने दिए।? वह बोला पापा मैंने मेहनत से लाए हैं। उसके पापा बोले बेटा बता तू इन जूतों को कहां से लाया? वह बोला पापा मैं इन जूतों को जहां भगवान जी की पूजा होती है वहां पर बाहर पड़े थे। वहां से लेकर आया। मैं वहां से आपको स्वेटर भी लाया हूं। वह तो मुझे बहुत ही लंबा है। आप को ठंड लगती होगी। उसने वह स्वेटर लाकर अपने पिता को थमा दिया।

उसके पिता समझ गए कि वह छोटा सा बच्चा चोरी करके या किसी की भी वस्तु उठाकर ले आया है। उसे अभी से बताना पड़ेगा कि चोरी करना बुरी बात होती है। उसके पापा बोले बेटा चोरी करना बुरी बात होती है। आज मैं विद्यालय में भी गया। वहां पर एक मैडम बच्चों को कह रही थी। उसने सारी घटना अपने पापा को कह सुनाई। एक बच्चे की किसी बच्चे ने पेंसिल उठा ली थी। मैडम ने उस बच्चे को कहा चोरी करना बुरी बात होती है। उसके कान भी पकड़े। वह बच्चा रोने लगा था। उसके बाबा बोले बेटा तूने भी चोरी की है। वह बोला पापा मैंने तो मेहनत की है। आप भी तो मेहनत करते हैं। वह बोले बेटा इसका उत्तर तुम्हें कल मैं दूंगा। चीनू के बाबा ने कहा तुम आज हमारे साथ काम पर चलोगे। वहां मैं तुम्हें बताऊंगा कि मेहनत क्या होती है? दूसरे दिन चीनू के बाबा उसे तपती दोपहरी में अपने साथ काम पर ले गए। उसके पापा पत्थर तोड़ रहे थे। उसे भी कहा कि तू भी पत्थर तोड़ जब तक पसीना नहीं निकलता वह भी अपने पापा के साथ सारा दिन धूप में काम करता रहा। वह थक चुका था। उसे भूख भी बड़े जोरों की लग रही थी। उसके पापा बोले बेटा आज तुम्हें पता चला गया कि मेहनत क्या होती है? यह मेहनत होती है। जब हम बिना किसी से पूछे किसी की वस्तु उठातें है तो वह चोरी होता है। जैसे तुम घर में चुपके से रसोई में से जाकर गुड़ चोरी करते हो बताते भी नहीं वह चोरी होता है। तुमने जूते और स्वेटर भी चोरी किए। जैसे मैडम ने स्कूल में चोरी करने वाले को दंड दिया वैसे ही चोरी करने वाले को उसका दंड अवश्य मिलता है। मैं तुम्हें भी दन्ड दूंगा। मारकर नहीं बेटा तुम तीन रोटियां खाते हो। आज से तुम्हें दो ही रोटियां खानी है। जब तुम इन चीजों को वापस लौटा कर आओगे तब उस दिन तुम तीन रोटियां खाना। वह बोला पापा आज तो मुझे तीन रोटियां दे दो। पापा मुझे बहुत भूख लगी है। उसके बाबा ने सुना अनसुना कर दिया।

घर में आकर वह सोच में पड़ गया वह कैसे जूते लौटाएगा? ना जाने यह जूते किसके होंगे। एक दिन वह अपने पापा के साथ बाजार जा रहा था। उसे एक बहुत ही सुंदर औरत दिखाई दी। उसके साथ उसकी उम्र का ही एक छोटा सा बच्चा था। इस बच्चे को देखकर वह मुस्कुराया। उस बच्चे ने अपनी मां को कहा कि इस बच्चे के पास मेरे जूते हैं। जब उसने ऐसा सुना तो वह बहुत खुश हो गया। उसने अपने बाबा को कहा बाबा मैं अभी आता हूं। यहां से हमारे घर का रास्ता मुझे मालूम है। आप घर जाओ। चीनू उस औरत की तरफ देख कर मुस्कुराया। उसकी भोली सूरत देखकर वह भी मुस्कुरा दी। वह बोली बेटा तुम्हें यह जूते कहां से मिले? वह बोला आंटी आप जब मुझे एक जगह बिठा कर पूछोगी तभी मैं आपको सारी बात बताऊंगा। उसकी बातें सुनकर वह महिला हंसी और बोली सामने ही एक बहुत ही सुंदर बाग है। वहाँ पर चल कर बैठते हैं। सुनीता ने देखा कि इतना सुंदर, बालक कमीज़ फटी हुई उसमें भी टांके लगे हुए, और जूते बहुत ही बढ़िया। मैं इसके मुंह से सुनना चाहती हूं उसे यह जूते कहां से मिले? यह जूते तो उसके बिट्टू के हैं। वह बोला आंटी जी मैं एक दिन मंदिर गया था। वहां पर यह जूते बाहर पड़े हुए थे। मैंने वह जूते पहने। मुझे वह जूते अच्छे लगे। मैंने सोचा आज मैंने मेहनत की है। मैंनें वहां से एक स्वेटर भी उठा लिया। जब मुझे पता चला की यह मेहनत नहीं होती यह तो चोरी होती है। मेरे पापा ने मुझे काम पर ले जाकर बताया कि यह मेहनत होती है। उन्होंने कहा जब तक तुम उस बच्चे के जूते लौटाकर नहीं आते और यह स्वेटर लौट कर नहीं आते तुम्हें एक रोटी कम खाने को मिलेगी। मेरे बाबा ने मेरी एक रोटी कम कर दी। आज मैं आप का जूता लौटाकर आधी रोटी ज्यादा खा लूंगा। अगर मुझे स्वेटर वाले अंकल भी मिल गए तो मैं पूरा खाना खाऊंगा। उस महिला की आंखों में आंसू आ गए। उसने तो कभी भी किसी भी बच्चे को अपने हाथ से कभी कुछ नहीं किया था। क्या हुआ? अगर इस बच्चे ने जूते चोरी कर लिए। उसने वह जूते उसे देते हुए कहा बेटा तुम्हें यह जूते अच्छे लगते हैं। तुम ही रख लो। वह बोला आज नहीं। कल बाबा को लेकर आऊंगा। उसने अपने थैले में से अपने छेद वाले जूते निकाले और पहन लिए। वह अपने साथ हर रोज अपने जूते लेकर आता था।

आज वह वह बेहद खुश था। दूसरे दिन वह अपने बाबा को लेकर उस मेम साहब के बंगले पर पहुंचा। उस मेम साहब ने चीनू के बाबा को कहा कि यह कितना प्यारा बच्चा है? आपने इसको इतना बड़ा दंड क्यों दिया? उसके बाबा बोले बीवी जी अगर हम अपने बच्चों को आज यह नहीं सिखाएंगे तो वह कभी भी मेहनत नहीं करेगा और चोरी करना ही सीखेगा। उस औरत ने वह जूते चीनू को दे दिए। उसने अपने बच्चे के ढेर सारे खिलौने भी चीनू को दे दिए।

चीनू इसी तरह ढूंढता रहता था। एक दिन उसकी नजर एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जो ठंड से ठिठुर रहा था। उसने उस व्यक्ति को कहा बाबा आप यहां पर बैठ जाइए। मैं आपको स्वेटर लेकर आता हूं। वह बोला बाबा आपको सर्दी लग रही है। वह दौड़ा दौड़ा घर आया। उसने वह स्वेटर उठाया जो कि चोरी करके उस मंदिर से लाया था। उसे वापिस देने मुड़ गया। चीनू बोला बाबा मैं आपको आगे तक छोड़ देता हूं। बातों ही बातों में उसने पूछ लिया बाबा आप कहां रहते हो? वह चोरी करने वाला चोर था। वह झूठ मूठ में ही ठंड का बहाना कर रहा था। चीनू बोला बाबा यह स्वेटर ले लो। आज मुझे एक रोटी पूरी खाने को मिलेगी। यह स्वेटर आपका तो नहीं। मुझे मंदिर में मिला था। वह बोला हां बेटा यह मेरा ही स्वेटर था। मैं एक दिन मंदिर में प्रसाद लेने गया था। वापस आया तो बाहर मेरा स्वेटर नहीं था। मुझे गर्मी लगी मैंने बाहर स्वेटर टांग दिया था। वह बोला अंकल वह स्वेटर मैंने ही चोरी किया था। मुझे पता ही नहीं था कि किसी की भी वस्तु बिना पूछे नहीं उठाते। मैंने वह स्वेटर और जूते चोरी कर लिए।

मां बाबा ने कहा कि तुम ने चोरी की है इसकी सजा तुम्हें भूगतनी ही पड़ेगी। उस दिन तुम्हें पूरी रोटी खाने को मिलेगी जिस दिन तुम यह दोनों वस्तुएं जिसकी है वह लौटा कर आओगे। मैंने कभी भी चोरी ना करने का अपने बाबा से वादा किया। मैंने सोचा था कि मैंने मेहनत की है। मेरे पापा ने मुझे यह भी बताया कि मेहनत कैसे की जाती है? एक दिन मेरे बाबा मुझे वहां पर लेकर गए जहां पर मेरे बाबा पत्थर तोड़ते थे। सुबह से शाम तक बाबा पत्थर तोड़ने का काम करते हैं। मैं उस दिन मेहनत करते-करते थक गया।

मुझे तब पता चला कि मेहनत करने और चोरी करने में दिन-रात का अंतर होता है। उसकी बातें सुनकर चोर की आंखों से भी आंसू आ गए। वह भी तो चोरी करने चला था। वह बोला बेटा बेटा सुन तो। चीनू तब तक दौड़ गया था। उस बच्चे ने उसे सिखा दिया था कि चोरी करना गुनाह होता है। उस दिन के बाद उस चोर ने भी कसम खाई कि मैं भी कभी चोरी नहीं करूंगा। मेरे तो हाथ पांव सलामत है कोई भी मजदूरी करके मैं कमा सकता हूं जब यह छोटा सा मासूम सा बच्चा चोरी की सजा भुगतने के लिए तैयार है तो वह क्यों नहीं? उसने वह स्वेटर अपने कंधों पर रखा और अनाथालय में दान देकर आ गया। आज उसने भी एक बहुत बड़ा काम किया था। उसने इतने वर्षों तक चोरी करने के उपरांत एक तो अच्छा काम किया था। उस दिन के बाद उसने एक अच्छे इंसान की तरह जीवन यापन करना शुरु कर दिया।

मुनीम दयाराम

किसी नगर में एक सेठ रहता था। वह बहुत ही कंजूस था। किसी को भी ₹1 तक भी दान में नहीं देता था। उसकी दुकान पर पर अगर कोई मांगने वाला भिखारी भी आता था तो वह सेठ फटकार मार-मार कर उसे भगा दिया करता था। उसने अपनी दुकान पर एक मुनीम रखा था जो कि उसकी दुकान की आय व्यय का हिसाब किया करता था। उस पर वह आंख मूंदकर विश्वास करता था। उसकी दुकान बहुत ही अच्छे ढंग से चल रही थी। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था। उसी के सहारे से वह दुकान चल रही थी।

एक दिन उसकी दुकान पर एक भिखारी आया सेठ बिशनदास ने भिखारी को जैसे ही देखा बोला तुम्हें क्या और कोई काम नहीं है, जो आ जाते हो भीख मांगने। चलो निकलो यहां से, उसने फटकार मार कर उस भिखारी को भगा दिया। उसी समय मुनीमजी दुकान पर आए। उन्होंने उस भिखारी को देख लिया था। उसने इशारे से भिखारी को अपने पास बुलाया और कहा क्या हुआ? वह बोला बाबू साहब मेरी पत्नी बहुत बीमार है। मैं कुछ रुपए उधार मांगने आया था। दयाराम ने उसे हजार रुपये दिए बोला अपनी पत्नी का अच्छे ढंग से इलाज करवाना। धर्म दास के पांव पकड़कर बोला भगवान तुम्हारा भला करे। दयाराम की वजह से दुकान के व्यापार में बढ़ोतरी हो रही थी। वह अगर ₹50000 कमाता तो उसमें से ₹20000 अपने लिए रख लेता, जिसमें से वह ₹10000 गरीबों पर खर्च कर देता किसी को किसी को 50रु किसी को100रुपये जिस को बहुत ही जरूरत होती उसे ज्यादा भी दे देता। वह बिशनदास के रुपयों में से जरूरतमंदों को बांट देता था। जिस दिन सेठ विशन दास दुकान संभालता था उस दिन कोई भी व्यक्ति उसकी दुकान पर कदम भी नहीं रखता था। वह बहुत ही कठोर स्वभाव का था। एक दिन सेठ कोे किसी खास दोस्त ने उसे भड़का दिया कि तुम्हारा यह मुनीम तो तुम्हें चुना लगा रहा है। उस व्यक्ति ने सेठ को बताया कि तुम उस मुनीम पर नजर रखना। सेठ कुछ दिनों से उस से कटा कटा रहने लगा। एक दिन उसने किसी गरीब व्यक्ति को गल्ले में से ₹50 देते देख लिया। वह सोचने लगा कि वह आदमी ठीक ही कह रहा था। उसने दयाराम को बुलाया और कहा। दयाराम से नाराज हो कर बोला मैं तुम पर विश्वास करता था तुम तो मेरे गल्ले में से उस भिखारी को दान करते हो।। दयाराम बोला भगवान आपको इतना दे रहा है आप अगर थोड़ा बहुत किसी जरूरतमंद को दे दिया करें तो इसमें हर्ज ही क्या है? इससे कारोबार फलता-फूलता ही है। इस बात से बिशनदास दयाराम से नाराज हो गया उसने दयाराम से कहा कि तुम यहां से अभी इसी वक्त यहां से चले जाओ। मैं तुम्हारा हिसाब किताब कर रहा हूं। मैं अपनी दुकान खुद संभाल लूंगा।

सेठ नें एक दूसरा व्यक्ति दुकान के आय व्यय का हिसाब करने के लिए रख दिया। उस आदमी ने बिशनदास को ऐसा चूना लगाया कि उसका साल भर में ही बिशनदास को इतना घाटा हुआ। सेट बिशनदास बहुत घबरा गया। सेठ को समझ में आ गया था कि दयाराम जैसे ईमानदार और मेहनती इंसान को निकाल कर उसने अच्छा नहीं किया। ऐसा ईमानदार इंसान मिलना बहुत ही मुश्किल है। वह उसको ढूंढने की बहुत कोशिश करने लगा मगर वह उसे कहीं नहीं मिला।

एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहर को गया हुआ था। उसे एक कपड़े की दुकान पर दयाराम को काम करते देखकर बहुत ही खुशी हुई। दयाराम दूसरे शहर में कारोबार करनें चला गया था। वहां पर एक कपडे की दुकान पर काम में लग गया था। वहां पर वह बहुत ही खुश नजर आ रहा था। दयाराम को देखकर सोचनें लगा मैंने अपने सबसे वफादार सहायक पर अविश्वास करके बहुत गलत काम किया। वह दयाराम के पास जाकर बोला देख भाई मुझे माफ कर दे। मैंने तुझे निकाल कर अच्छा नहीं किया। तू वापस काम पर आ जा। दयाराम बोला बाबूजी ऐसी गलती मैं अब कभी नहीं करूंगा। पहले आप मुझे निकालते हो फिर वापस बुला लेते हो। मेरा कारोबार यहां पर बहुत ही अच्छा चल रहा है।

सेठ बोला मैंने तुम्हें गलत समझा। मुझे किसी ने बहका दिया था। मैंने एक व्यक्ति को काम पर रखा था उसने तो मेरी दुकान का कारोबार चौपट कर दिया। मैंने तुम पर अविश्वास करके बहुत बड़ी गलती की है। वह बोला मैं तो यहां पर भी बहुत खुश हूं। सेठ बोला तुम कितने रुपए यहां पर कमाते हो? उससे ज्यादा रुपए मैं तुम्हें दूंगा। तुम वापस काम पर आ जाओ। दयाराम बोला मेरी भी एक शर्त है मैं काम पर तभी वापस आऊंगा अगर आप लेन-देन के बारे में आप मुझसे से कुछ नहीं पूछेंगे। आप तभी मुझसे पूछताछ करेंगें अगर आप को व्यापार में घाटा होगा।

बिशनदास बोला ठीक है जो तुम्हारी मर्जी। तुम अपनी इच्छा से दुकान को संभालो। मेरे एक ही बेटा है। उसे भी मैंने अच्छी शिक्षा दिलानी है। दयाराम वापस काम पर आ गया था। दयाराम एक दिन सेठ के पास जाकर बोला आपका आपके बेटे के इलावा इस दुनिया में और कोई नहीं है। आप की संपत्ति को हथियाने कि बहुत से लोग योजना बना सकते हैं। आपके एक ही बेटा है। भगवान ना करें अगर आपको किसी दिन कुछ हो गया तो लोग आपकी संपत्ति को हड़प कर जाएंगे। आपका बेटा अभी छोटा है जब तक यह बालिग नहीं होता इसके नाम पर भी यह संपत्ति नहीं कर सकते। आपकी संपत्ति या तो सरकार ले लेगी आपको अगर मुझ पर विश्वास है तो आप अपनी संपत्ति का दावेदार मुझे भी बना सकते हो। मैं आपका विश्वास पात्र हूं। मैं आपको कभी धोखा नहीं दूंगा। इंसान की जिंदगी का क्या भरोसा? अगर आपकी संपत्ति किसी ऐसे इंसान के हाथ लग गई वह आपके बेटे को कुछ भी ना दे तो तो। आपके बेटे का क्या होगा? आप मुझ पर विश्वास कर सकते हो मैं मर जाऊंगा मगर आपके बेटे के पास साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। मुझे दुकान पर काम करते-करते इतने दिन हो गए हैं। आपको लोग बात बात पर भड़का सकते हैं अगर आपको मेरी बात ठीक लगती है तो आप अपनी संपत्ति का मैनेजर मुझे बना सकते हो। मैं आपके बेटे को जब वह मालिक होगा तब उसे उस का कारोबार साथ दूंगा। यह काम आप तभी करना यदि आपको मुझ पर विश्वास है नहीं तो नहीं। सेठ नें अपनी संपत्ति का मैनेजर दयाराम को बना दिया। उसने लिखा था कि मेरे मरने के बाद दयाराम ही मेरी संपत्ति की देखभाल करेगा जब तक कि मेरा बेटा बालिग नहीं होता। मेरे बेटा बालिग होने पर ही अपनी संपत्ति का असली वारिस होगा। इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गए।

एक दिन सेठ किसी काम से शहर व्यापार के सिलसिले में सामान लाने गया हुआ था। उसकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। बड़ी मुश्किल से सेठ की जान बची। वह कोमा में चला गया।
दयाराम ने उसके बच्चे को अपने घर पर रख दिया। उसके बच्चे को मां और बाप दोनों को प्यार दिया। उसके अपने कोई संतान नहीं थी दयाराम की पत्नी ने सेठ विशन दास के बेटे रवि को अपने घर में भरपूर प्यार दिया। सेठ की याददाश्त, चली गई थी। दयाराम सेठ बिशनदास को देखने हर रोज अस्पताल जाता था। उसे ठीक करवाने के लिए उसने डॉक्टरों की टीम लगा दी थी मगर वह कोमा से बाहर नहीं आया था। हर रोज उसे खून चढाना पड़ता था। जिन जिन जरूरतमंदों को उसने पैसा दिया था उन्हें जब सेठ बिशनदास के दुर्घटना का पता चला तो वे वह एक एक करके उसे खून दे जाते थे। जिस किसी का भी खून उससे मिलता था वह उसे खुशी खुशी आ कर खून दे जाता था।

पन्द्रह साल हो चुके थे। सेठ का बेटा 20 साल का हो चुका था। उसने सेठ के बेटे को इतना अच्छा इंसान बनाया उसे पढ़ाया-लिखाया और उसे बताया कि तुम्हारे पिता तो अस्पताल में जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रहें हैं। हम अपनी पूरी ताकत लगा देंगें तुम्हारे पिता को बचाने के लिए।

सेठ का बेटा इंजीनियरिंग पूरी करके एक अच्छी कंपनी में लग गया था। दयाराम ने उसे बहुत ही होशियार और ईमानदार बनाया। वह अपने पिता को देखने अस्पताल में हर रोज जाता था। सेठ की यादाश्त भी धीरे-धीरे वापिस आ गई। दयाराम ने अपने दोस्त को गले लगाते हुए कहा कि शुक्र है तुम्हारी याददाश्त वापस आ गई है। वह होश में आते ही बोला कि मेरा रवि कहां है? रवि को देखकर चौका। वह तो एक बड़ा लंबा चौड़ा नवयुवक हो चुका था। 15 साल बाद वह कोमा से बाहर निकला था। दयाराम बोला मैंने तुम्हारे बेटे को अच्छा इंसान बनाया। तुमने मुझ पर विश्वास किया।

तुम्हारी दुर्घटना होने के बाद लोगों ने मुझ पर ना जाने क्या क्या आरोप लगाए? उन्होंने यहां तक कहा कि दुर्घटना कराने में मेरा ही हाथ था और आपकी संपत्ति को हथियाने में भी मेरा ही हाथ था। मैंनें आपके बेटे की परवरिश और आप की दुकान का काम अच्छे ढंग से निभाया। बिशनदास रो दिया। तुमने मुझे ठीक ही कहा था इतनी भयंकर दुर्घटना हुई थी कि मेरा बचना नामुमकिन था। दयाराम बोला यह तो कहीं ना कहीं आपके रुपयों का ही कमाल था। मैं गरीबों को और जरूरतमंदों को अपनी दुकान में से जो कुछ रुपए जो बच जाते थे उनमें से कुछ इन जरूरतमंद इंसानों को दे दिया करता था। आपको विश्वास ही नहीं आएगा। इन जरूरतमंदों लोगों नें ही आपको एक-एक खून की बोतल दान में दी है। आपको हर रोज खून चढ़ाना पड़ता था इन्होंने ही आकर आपको खून दिया जिस से आप आज बच गए। सेठ बोला मैंने तो कभी भी अपने हाथ से किसी को भी कुछ दान नहीं किया। आज मुझे समझ आया कि जरूरतमंदों की अवश्य सहायता करनी चाहिए। शायद यह तुम्हारी ही दुआओं का ही परिणाम है जो मैं बच गया।

सेठ बोला और तुम्हारी ईमानदारी का जो आज मैं सही सलामत तुम्हारे सामने हूं। तुमने मेरे बेटे की परवरिश में भी कोई कमी नहीं छोड़ी। आज से मैं तुम्हें अपनी दुकान का हिस्सेदार और अपना छोटा भाई मानता हूं। आज से तुम मेरे ही घर में ही रहा करोगे। आज से तुम्हें कहीं भी अलग जाने की जरूरत नहीं है। अपनें बेटे रवि को गले से लगा कर बोला तुम उन्हें चाचा नहीं छोटे पापा कह सकते हो। बेटा उन्होंने ही तुम्हारी देखरेख की है। रवि बोला ऐसे ईमानदार पापा सब को दे।

बचपना

रघु और राघव दो दोस्त थे। रघु देखने में सुंदर चंचल स्वभाव और शरारतें करने में माहिर। राघव शांत और एकदम गंभीर। दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे। रघु अमीर परिवार का बेटा था। राघव एक मध्यमवर्गीय परिवार का। रघु के पिता जाने-माने प्रतिष्ठित व्यापारी थे। रघु और राघव दोनों एक ही स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। विद्यालय में रघु राघव की कॉपी से नकल करता और मैडम को काम दिखा देता था। रघु को विद्यालय में मैडम नें कुछ प्रश्न दिये और कहा जल्दी से इन प्रश्नों के उत्तर लिख कर दो। उसे तो एक भी प्रश्न याद नहीं थे। वह तो इंतजार कर रहा था कि जैसे ही राघव प्रश्नों के उत्तर लिख देगा उसकी कॉपी वह डैस्क में से उठा लेगा।

रघु प्रश्न को हल नहीं कर रहा था। दो बार रघु को मैडम ने टोका। राघव नें जैसे ही प्रश्न पत्र लिख दिए वह मैडम को बोला। मैडम क्या मैं पानी पीने बाहर जा सकता हूं? उसने कॉपी डैस्क पर रख दी और पानी पीने चला गया। वापस आया तो रघु ने अपनी कॉपी राघव की सीट पर रख दी। उसने राघव के नाम वाला पेज फाड़ दिया था। दोनों की कॉपियां एक जैसी थी। जब मैडम ने सभी बच्चों के प्रश्न जांचे तो राघव की कॉपी खाली थी। उसनें राघव की कॉपी पर रघु लिख दिया था। मैडम ने राघव को खड़ा किया बोली। आजकल तुम्हें क्या होता जा रहा है? तुमने प्रश्न क्यों हल नहीं किये। उसे सब कुछ समझ में आ गया था कि रघु ने उसकी कॉपी जल्दी से डैस्क से उठाकर उस पर अपना नाम लिख दिया था। वह कुछ नहीं बोला चुप रहा। उसे रघु पर गुस्सा भी आ रहा था।

रघु छोटी-छोटी बातों पर उससे गुस्सा होता जा रहा था। शाम को छुट्टी के समय राघव ने रघु को कहा कि तुमने मेरी कॉपी क्यों चुराई? वह बोला तो क्या हो गया? मैं भी तो तुम्हें अपनी चीजें खाने को देता हूं। कभी चॉकलेट बिस्किट। राघव सोचने लगा ठीक ही तो कहता है। वह उसे चॉकलेट टॉफी बिस्किट लाता है। मेरे पिता मुझे यह चीजें हर रोज लाकर नहीं दे सकते। वह तो हर रोज खाने को ना जाने क्या क्या लाता है। कल से मैं इससे कुछ भी नहीं मांगूगा। क्या करूं? खाने को मन कर ही जाता है। उस से पीछा छुड़ाने का यही तरीका है।

रघु हर रोज स्कूल राघव को दिखा दिखाकर चॉकलेट बिस्किट और , और पिज़्ज़ा ना जाने क्या-क्या खाने लगा। राघव ने तो उसकी तरफ देखना ही छोड़ दिया था उसके पिता ने उसे शिक्षा दी थी कि बेटा हमें दूसरों की देखा-देखी नहीं करनी चाहिए। अगर किसी बच्चे के पास तुमसे ज्यादा चीजें हैं तो तुम्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि मेरे पास भी काफी सारी चीज होती होती। हो सकता है उस बच्चे के पापा हमसे ज्यादा अमीर व्यक्ति हों। अमीर व्यक्ति के पास गाड़ी और बंगला होता है। मध्यम वर्गीय इंसान के पास थोड़ा कम होता है। जो अपने पास होता है उसी में खुशी ढूंढनी चाहिए। हो सकता है कल हमारे पास उससे ज्यादा रुपए हों। यह ख्याल अपने दिल से निकाल देना चाहिए। रूखा-सूखा जो भी हो उसे प्यार से खाना चाहिए। तुम अगर यह सोचो कि यह खाना कितना स्वादिष्ट है तो वह वस्तु तुम्हें स्वादिष्ट नजर आएगी।

राघव के पापा ने उसे अच्छी तरह समझा दिया था कि यह बड़े लोग अपनी चीज को तो छोड़ो दूसरों की वस्तु को भी हड़पने की कोशिश करते हैं। राघव के दिमाग में सारी बातें अच्छी तरह से आ गई थी। वह कभी भी रघु की वस्तु छीनने की कोशिश नहीं करता था। एक दिन बातों ही बातों में रघु नें राघव की पिटाई की। राघव को गुस्सा तो बहुत आया मगर एक बार उसने रघु को कहा कि एक बार तो मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं। आगे से मैं तुम्हें नहीं छोड़ूंगा। राघव नें उसे छोड़ दिया था। घर आकर राघव नें अपने पिता को सारा किस्सा सुनाया। उसके पिता बोले बेटा कि तुम बच्चों को अपने छोटे बड़े झगड़े अपनें आप सुलझानें चाहिए। बच्चों के झगड़े में हम बड़ों को नहीं घसीटना चाहिए। राघव चुप रह गया।

एक दिन रघु ने स्कूल में अपने दोस्त के साथ लड़ाई कर ली। रघु ने आज फिर राघव की कॉपी लेकर अपने बैग में डाल दी थी। राघव को गुस्सा आ गया वह मैडम को बोला मैडम हर बार यह मेरे बस्ते से कॉपी ले लेता है। आज भी इस के बस्ते में मेरी कॉपी है। मैडम कहनें लगी चलो देखें। रघु ने अपने दोस्त अखिल को फोन करके कह दिया था अरे यार मेरे बस्ते में राघव की कॉपी है। उसकी कॉपी तू राघव के बस्ते में डाल दे। उसके दोस्त ने जल्दी से कॉपी राघव के बस्ते में डाल दी।

मैडम कक्षा में आई उसने रघु के बस्ते की तलाशी ली। राघव के बैग में ही कॉपी थी। वह बोला मैं सच कह रहा हूं मैडम उसने न जानें मेरे बस्ते में कैसे वापिस कौपी डाल दी। मैडम ने राघव को ही दोषी ठहरा दिया।

रघु ने एक बार फिर बाजी मार ली थी। शाम को राघव ने सोचा कितना चुप्पी साधे बैठा रहूं? मेरे सब्र का बांध टूट चुका है। यह तो और भी शातिर होता जा रहा है। इसका असली चेहरा मेरे सामने आ चुका है। अगर इसे अभी सजा नहीं दी गई तो वह कभी भी जिंदगी में सुधर नहीं सकता। पापा ने भी कहा है कि अपना झगड़ा अपने आप ही सुलझाना चाहिए। इसको बहुत माफ किया। आज तो इसको सजा देख कर ही रहूंगा। उसने रघु को कहा कि आज तो मैं तुम्हें घर नहीं जाने दूंगा जब तक तू अपनी सच्चाई सबके सामने जाहिर नहीं करेगा। जल्दी से मैडम के पास चलकर अपनी करनी बता दे। तूने फोन करके अखिल को कहा था कि जल्दी से कॉफी राघव के बैग में रख दे अगर तू मैडम के पास सच्चाई नहीं बताएगा तो मैं तुझे घर नहीं जाने दूंगा। उसने रघु को बालों से पकड़ा। उन दोनों को लड़ता देखकर सारे अध्यापक अध्यापिकाएं बाहर आ गए थे। राघव का गुस्सा तो आज फूट ही पड़ा। रघु ने भी उसको कौलर से पकड़ लिया था। उसकी टांग से खून निकल चुका था। अचानक अखिल दौड़ता दौड़ता आया बोला मैडम राघव ठीक कह रहा है। रघु नें ही राघव की कॉपी अपने बैग में डाल दी थी। मुझे फोन करके कहा था कि राघव की कॉपी मेरे बैग में से लेकर राघव के बैग में रख दे।

सभी बच्चे राघव को कह रहे थे कि यह तो कभी भी किसी से लड़ाई नहीं करता है। सच्चाई सामने आ गई थी। मैडम नें उन दोनों को छुड़ा लिया। लंगड़ा लंगड़ा कर रघु घर पहुंचा। उसके पापा बोले कि बेटा क्या हुआ। रघु बोला मेरे मोहल्ले में एक लड़का है पापा वह अपने आप को बहुत होशियार समझता है। उसने आज मेरी पिटाई की। उसके पापा को गुस्सा आ गया वह बोले वह कौन लड़का है? जो मेरे बेटे को परेशान कर रहा है। उन्होंनें राघव के घर का पता कर लिया। रघु के पिता राघव के पिता के पास आकर बोले अपने बेटे को समझाएं। उसने आज मेरे बेटे की पिटाई की। राघव के पिता ने राघव को बुलाया और कहा कि क्या तुमने रघु की पिटाई की? उसने सारे का सारा वृत्तांत कह सुनाया कि वह हर रोज मुझे परेशान करता है। मेरे बस्ते में से मेरी कॉपी निकाल कर नकल करता है और हर बार मुझ से लड़ता है।

एक बार तो मैंने उसे माफ कर दिया आज तो मैडम के सामने उसने मुझे झूठा साबित कर दिया तो मुझे गुस्सा आ गया। मैंने रघु की बहुत पिटाई की। राघव के पिता रघु के पापा को बोले कि देखो दोस्त हम बड़ों को बच्चों की बातों में दखल नहीं देना चाहिए। बच्चे हैं आज लड़ झगड़ कर कल फिर एक हो जाएंगे। आपसी मनमुटाव से कुछ समस्या हल नहीं होती। रघु के पिता नाराज होकर वहां से चले गए।

रघु के पिता के मन में बदले की भावना बढ़ गई। उसने अपने गुन्डों को आज्ञा दी कि राघव को मार मारकर उसकी हड्डियां तोड़ दो।गुन्डे राघव को ढूंढते-ढूंढते स्कूल के पास पहुंच गए थे। जैसे ही छुट्टी हुई उन्होंने राघव को पकड़ लिया। उसे पकड़कर एक खंडहर में ले गए। वह गुंडों से बोला अंकल आप पहले मेरी बात सुनो फिर मुझे मार देना। आप लोगों का भी परिवार होगा। आपके भी बेटे होंगे। मैं भी अपने परिवार में एक इकलौता बेटा हूं। मेरे पापा एक गरीब इंसान है। आप पहले मेरी बात सुनो। बिगड़ी औलाद को सजा देना कोई जुर्म है तो यह जुर्म मैंने किया। मैंने आज रघु को उसकी गलती की सजा दी अगर उसे आज सुधारा नहीं जाता तो उसकी हिम्मत और बढ़ जाती। उसको मैंनें ना जाने कितने मौके दिए। मेरे पापा ने तो मुझे सिखाया है कि बच्चों के झगड़ों में बड़ों को नहीं पड़ना चाहिए। आज मुझे मरवाने के लिए वह आप लोगों को ले आये। उसके पिता के पास बहुत सारे रुपए होंगे उन्हीं रुपयों पर वह बहुत गर्व कर रहे हैं अगर बच्चों को गलती की सजा ना दी जाए तो वह बहुत बड़े गुन्डे बन जाते हैं। वह गुंडे उस बच्चे की बात सुन रहे थे। उनके माता-पिता ने भी उन्हें जुर्म करते नहीं रोका था। इतने छोटे से बच्चे से यह कहते सुना अंकल अगर आपके बच्चे की किसी साथी से लड़ाई हुई तो क्या आप उस को मरवाने के लिए गुंडे भेजेंगे? या उनको अपनी समस्या खुद सुलझाने के लिए कहेंगे। आप यह बताओ कि आपको इन गुंडों ने मुझे मारने के लिए कितने रुपए दिए? वह गुंडे बोले ₹10000 दिए हैं। रघु बोला तो ठीक है आप मुझे छोड़ दो। मुझे झूठ मूठ मार दो। मैं प्लीज पच्चीस दिन तक स्कूल नहीं जाऊंगा। मेरे पटिया बंधवा दो उनको क्या पता लगेगा कि मुझे कितनी चोट आई है? जब मैं उनके सामने नहीं जाऊंगा मुझे भी नुकसान नहीं होगा। आपको ₹10000 भी मिल जाएंगे। मैं आपको ₹5000 दूंगा। सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।

छोटे बच्चे की बात सुनकर वह गुन्डे दंग रह गये। आप मेरा साथ क्या दोगे? आप तो अमीर लोगों का साथ दोगे। मैं गरीब घर का बच्चा हूं। उसकी बातें सुनकर उन्होंने उसे छोड़ दिया।

सच्चाई सामने आ गई थी। उन गुंडों ने रघु के पापा को कहा कि हमने राघव को मार-मार कर उठने लायक भी नहीं रखा है। आगे से वह कभी भी रघु से लड़ाई नहीं करेगा।

इस बात को काफी दिन बीत गए थे। राघव भी स्कूल जाने लग गया था। विद्यालय में रघु से कोई भी बच्चा बात करना पसंद नहीं करता था। रघु कक्षा में चुपचाप बैठा रहता था। मैडम भी रघु से नाराज थी उसने राघव से अभी तक माफी नहीं मांगी थी। कोई भी बच्चा रघु की तरफ नहीं था। सभी बच्चे राघव के साथ अच्छे ढंग से व्यवहार करते थे। एक दिन रघु ने सोचा कि चलो मैं भी राघव से माफी मांग लेता हूं। रघु नें चॉकलेट राघव को देते हुए कहा दोस्त मुझे माफ कर दे। मैं कभी भी आगे से तुम से लड़ाई नहीं करूंगा। मेरी गलती थी मुझे तुमसे लड़ाई नहीं करनी चाहिए थी। मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है। मुझे माफ कर दे मेरे दोस्त। मैं ही नालायक हूं। सब के साथ लड़ता रहता हूं। जब रघु ने राघव को इस प्रकार कहा तो राघव नें रघु को गले से लगा लिया। अब हम कभी नहीं लड़ेंगे।

कुछ दिनों के राघव ने रघु को बताया कि तुम्हारे पापा ने मुझे मारने के लिए गुंडे भेजे थे। रघु को यह बात सुनकर बड़ा दुख हुआ। हम बच्चों की लड़ाई में पापा कैसे बीच में आ गए? मैंने तुम्हारे बारे में पापा को बताया था कि राघव नें मेरी पिटाई की लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि तुम्हें गुन्डों से पिटवाते। यह तो पापा ने बहुत ही गलत किया। मुझे अपने पापा को सबक सिखाना ही होगा।

राघव के पापा के पुलिस इंस्पेक्टर दोस्त थे। राघव की मम्मी को पुलिस इंस्पेक्टर ने अपना भाई बनाया हुआ था। एक दिन जब वह दोनों स्कूल से आ रहे थे तो पुलिस इंस्पेक्टर उन्हें रास्ते में मिले। तब राघव ने रघु को बताया कि यह मेरे मामा है । रघु ने अपने दोस्त राघव को कहा कि तुम मुझे इन पुलिस इंस्पेक्टर के घर में कुछ दिनों के लिए छुपा दो। जब दो-तीन दिन तक मैं घर नहीं आऊंगा तब मेरे पापा को पता चलेगा कि बेटे के विरह का क्या अंजाम होता है तब उन्हें अपनी गलती का एहसास होगा।

राघव रघु को अपने मामा के घर में छोड़ आया। दो-तीन दिन तक जब रघु घर नहीं आया तो रघु के पापा परेशान हो गए। राघव को स्कूल जाते देखते तब उन्हें अपने बेटे की याद आती। राघव के पापा को देखकर सोचते कहीं इसी नें ही तो मेरे बेटे को तो नहीं छुपा दिया। अपने मन को समझाते हुए कहते मैंने भी तो इनके बेटे के साथ बुरा व्यवहार किया।

एक दिन रघु के पापा राघव के पापा के पास आकर बोले यार मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे साथ भी बहुत अन्याय किया। भगवान मेरा बेटा मुझे जल्दी मिल जाए। राघव ने अपने पापा को यह नहीं बताया था कि रघु पुलिस इंस्पेक्टर अंकल के घर में छिपा हुआ है। उन्हें तो इस बात की जानकारी भी नहीं थी। एक दिन राघव के पापा और मम्मी जब अपने भाई के घर गए हुए थे वहां रघु को देख कर हैरान हो गए उन्होंने रघु को लाकर रघु के पापा के पास सौंप दिया। जैसे ही रघु को वे ले कर आए तो रघु के पापा बोले तुमने ही मेरे बेटे को वहां छुपाया होगा। मुझे पहले ही पता था कि यह चाल तुम्हारी है।

रघु आकर बोला नहीं पापा राघव के पापा को तो इस बात की भी खबर नहीं थी। मैंनें ही राघव को कहा था कि मेरे पापा ने तुम्हारी गुंडो से पिटवाई कर बड़ी गलती की है। उन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा तब मैंने पुलिस अंकल को कहा कि मुझे आप दो-तीन दिन तक अपने घर पर रख लो। मेरे पापा को तब अपनी गल्ती का एहसास होगा कि बेटी की जुदाई का दर्द कैसा होता है। राघव के पापा का कोई कसूर नहीं है। आप इनसे क्षमा मांगो।

रघु के पापा बोले कि मैं बेटे के मोह में अंधा हो गया था। ना जाने आपको क्या-क्या भला बुरा कह दिया। मुझे माफ कर दो । मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है । बच्चों की लड़ाई में हम बड़ों को कभी नहीं पड़ना चाहिए। रघु अपनें पापा को बोला कि पापा बचपना बच्चों को ही शोभा देता है। वे दोनों फिर से दोस्त बन जातें हैं।

दहेज का नकाब

अंकित और आशिमा के परिवार में उनकी नन्ही सी बेटी श्वेता और साहिल थे। दोनों ही बच्चे बड़े प्यारे थे। दोनों का बचपन बड़े ही आराम से गुजरा। धीरे-धीरे बचपन की दहलीज को पार करके उन्होंने जवानी में कदम रखा। एक दिन श्वेता अपने पापा की गाड़ी लेकर कॉलेज गई। उनकी गाड़ी एक सेठ के बेटे आदित्य से टकरा गई। वह जोर से आदित्य को ऊंची आवाज करके बोली तुम्हें मेरी गाड़ी की भरपाई करनी पड़ेगी। आदित्य ने अपनी जेब से ₹1000 का नोट निकाला और श्वेता को देखकर बोला अपनी गाड़ी ठीक करवा लेना। श्वेता ने नोट उसकी तरफ देखते हुए बड़े रोबिले अंदाज में कहा बड़े आए नोट की धौंस दिखानें वाले।

श्वेता सोच रही थी कि बड़ी मुश्किल से उसके पापा ने अपनी गाड़ी आज उसे चलाने के लिए दी थी और आज ही गाड़ी का थोड़ा सा नुकसान हो गया। श्वेता के पिता एक मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते थे। आदित्य के पिता और अंकित के पिता दोनों दोस्त थे। एक ही कार्यालय में काम करते थे। आदित्य के पिता के अंकित के पिता से अच्छे संबंध थे। उनके ऑफिस में उनके की देखरेख अंकित के पिता ही करते थे। वह अपने कार्यकर्ताओं में सबसे ज्यादा विश्वास अपने दोस्त अंकित पर ही करते थे। एक दिन अंकित अपनी पत्नी आशिमा के साथ उनके घर आए हुए थे। व्यापार की बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा योगदान उनके दोस्त अंकित का था। उन्होंने अपने घर में एक दावत का आयोजन किया था। उसने अपने सभी रिश्तेदारों मित्रों को बुलाया था। अंकित और उसकी पत्नीआसिमा भी वहां पर पहुंच गए थे। जैसे ही पार्टी खत्म हुई उन्होंने कहा कि आज मैं इस खुशी के अवसर पर अपने बेटे आदित्य का रिश्ता अपनी दोस्त की बेटी श्वेता के साथ करना चाहता हूं। सभी परिवार के लोग बहुत ही खुश थे। अंकित बोले देखो दोस्त आज तुम्हारे समक्ष मैं अपने घर की स्थिति पहले ही उजागर कर देना चाहता हूं। मैंने अपनी बेटी को बड़े नाजों से पाला है। वह हर काम बड़ी चतुराई से करती है। वह मेरी शानों शौकत है। मेरा बेटा और बेटी दोनों ही मेरी शान हैं। उन दोनों को मैंने किसी चीज की कमी नहीं होने दी। मैंने अपने दोनों बच्चों को यही शिक्षा दी है कि बड़ों का सम्मान करो और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाओ। चुप बैठे मत रहो। आप अगर अपने बेटे की शादी सचमुच ही मेरी बेटी श्वेता से करना चाहते हैं तो आपको मेरी बात का मान रखना होगा। नहीं तो आप आज इस रिश्ते से इंकार कर देना। हमें बुरा नहीं लगेगा।

हमने अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा दी है जो कुछ हमसे बन पड़ेगा हम अपनी बेटी को शादी के वक्त दे देंगे। आप लोगों की फरमाइश नहीं होनी चाहिए। मैं दहेज के सख्त खिलाफ हूं। मैं अपनी बेटी के साथ कुछ भी दहेज नहीं दूंगा मैं अपने घर में जिस किसी की बेटी को ब्याह कर लाऊंगा उससे भी कुछ दहेज नहीं लूंगा। आपको मेरी इस बात का मान रखना होगा आपको अगर मंजूर है तो यह रिश्ता पक्का वर्ना फिर भी हम दोस्त ही रहेंगे। इन बातों से हमारी दोस्ती में कोई अंतर नहीं आएगा।

प्रकाश बोले कि मैं कुछ भी दहेज नहीं मांगूंगा जैसी तुम्हारी बेटी वैसे मेरी बेटी। रिश्ता पक्का हो गया था। अंकित और आशिमा दोनों खुश थे कि उनकी बेटी का रिश्ता पक्का हो गया था। घर आकर अंकित ने अपनी बेटी श्वेता को बुलाया श्वेता पी एच डी कर रही थी। वह डॉक्टर बनना चाहती थी उसके पापा बोले की बेटी हमने तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया। अपने दोस्त के बेटे आदित्य के साथ। आज वे तुम्हें देखने आ रहे हैं। वह सोच रही थी कि मेरे पापा बिना मुझसे पूछे मेरा रिश्ता भी तय कर आए। वह लड़का अगर शराबी या मुझ से लड़ाई करने वाला हुआ। उसने मेरे पापा से दहेज मांग लिया तो क्या होगा? उसनें अपनें पापा से कहा पापा आपने मुझसे बिना पूछे रिश्ता पक्का कर दिया। उसके पापा बोले मेरे दोस्त का बेटा है वह उच्च-खानदान का है। तुम वहां बहुत खुश रहोगी। वहां पर नौकर-चाकर होंगे। गाड़ी होंगी, बंगला होगा। धन दौलत से क्या होता है? धन-दौलत तो इंसान कभी भी कमा सकता है। इंसान के पास अच्छी योग्यता हो।इंसान का सबसे पहला गुण तो उसकी अच्छाई होती है। वह सकारात्मक विचार वाला होगा तो ठीक है। पापा आपने पहले उन को परख लेना चाहिए था। उन्होंने अगर दहेज की मांग कर दी तो आप दहेज कहां से लाएंगे? मैं अपने पापा की छवि को धूमिल नहीं होने दूंगी। मैं तो उस इंसान के साथ भी शादी करने के लिए तैयार हूं जो मुझे हर तरह से खुश रखे मेरी जरूरतों का ध्यान रखें। मेरे परिवार वालों की इज्जत करे। वह चाहे किसी गरीब परिवार का ही हो। शादी में दोनों परिवार की मर्यादाओं का ध्यान रखना जरूरी होता है। ।

शादी इंसान जीवन में एक बार ही करता है पहली बार ही गलत चुनाव हो गया तो सारी जिंदगी पछताना पड़ेगा। उसके पापा बोले मेरी बेटी नें ना जाने इतनी बड़ी बड़ी बातें कहां से सीखी। मैं तो अभी तक तुझे बच्ची ही समझता था। हां अगर तूने अपने लिए कोई न कोई पहले से ही पसंद किया है तो तुम मुझसे साफ-साफ बता दे। मैं उसी लड़के से तुम्हारी शादी कर दूंगा जिससे तू चाहेगी। क्योंकि तुम अब बड़े हो गए हो? अपने भले बुरे का ज्ञान तुम में हम हमसे हम ज्यादा है। हम हंसते हंसते तुम्हारी शादी उस लड़के से कर देंगे जिस व्यक्ति के साथ तुम शादी करना चाहती हो।

श्वेता बोली कि आपकी बेटी अपने पापा के खिलाफ कभी नहीं जाएगी। आपने मेरे लिए जिसे चुना होगा तो ठीक ही होगा। उसके पापा अपनी बेटी की बात सुनकर खुश हो गए। धीरे-धीरे समय बीतता गया। वह दिन भी आ गया जिसका कि हर लड़की को इंतजार होता है शादी को केवल सात दिन रह गए थे। प्रकाश के दोस्त सक्सेना उनके घर आए हुए थे। वह अपने बेटे के लिए श्वेता को बहु बना कर लाना चाहते थे। उन्होंने एक चाल चली। उन्होंने प्रकाश को कहा कि श्वेता की चाल चलन ठीक नहीं है। वह तो लड़कों के साथ घुल मिलकर बातें करती है। वह भी शाम के समय। आपको यकीन ना हो तो आप सात बजे कोलाबा रेस्टोरेंट के पास मिलना। वहां अपनी आंखों से देख लेना। सक्सेना नें श्वेता की सहेली रूही को बुलाया और कहा कि अगर तुम इस बार अपनी फीस भरने के लिए रुपयों का इंतजाम करवाना चाहती हो तो मैं तुम्हें ₹10000 दूंगा। तुम अपनी सहेली श्वेता को फोन करके कहना कि सात बजे कोलाबा रेस्टोरेंट में शाम को आकर मैं तुमसे नोट्स लेना चाहती हूं। मैंने जो नोट्स बनाए हैं वह तुम्हें देना चाहती हूं। तुम उसे वहां पर बुला लेना । उस रेस्टोरेंट में तुम मत जाना। अपने भाई राजू को भेज देना कहना कि कृपया मेरी सहेली से नोट्स ले कर आ जाना।

शाम को सात बजे रूही ने अपनी दोस्त श्वेता को कोलाबा रेस्टोरेंट में बुलाया। श्वेता ने अपने पिता को कहा कि मैं कोलाबा रेस्टोरेंट जाना चाहती हूं। वहां से मैं अपनी दोस्त से नोट्स लेकर आना चाहती हूं। उसके पिता बोले बेटा इसमें पूछने की क्या बात है? जरूर जा। मुझे तुम पर पूरा विश्वास है। वह अपने दोस्त से मिलने चली गई।

काफी देर तक होटल में शाम साढे सात बजे के करीब राजु आ कर बोला शायद आप रुही को ढूंढ रही हैं। उसकी तबीयत अचानक खराब हो गई। राजू ने चाय का आर्डर दे दिया। उसने कहा कि दीदी ने यह नोट्स भेजें हैं। वह बोली तुम अपना घर का पता बता देते तो मैं वहीं आ जाती। राजू बोला कोई बात नहीं। इस बहाने चाय भी पी लेंगे। जब जाने लगे तो अचानक श्वेता का पैर फिसला नीचे गिरने ही वाली थी तभी राजू नें उसे ऊपर ऊठा लिया। सक्सेना के आदमियों ने उन दोनों की तस्वीरें खींच ली।

प्रकाश ने स्वयं उन दोनों को वहां पर होटल में चाय पीते देखा। उनको शक हो गया कि उसके दोस्त की बेटी का चरित्र अच्छा नहीं है। जब सक्सेना नें उन्हें तस्वीरें दिखाई तो वह हैरान हो गए। उन्होंने सोचा कि हम ऐसी लड़की को अपने घर की बहू नहीं बनाएंगे। वह अपने दोस्त के साथ भी खफा खफा रहने लगे।

सक्सेना ने कहा कि आप जरा भी क्रोधित ना हो। ठीक ही हुआ आपको शादी से पहले ही इस बात की जानकारी हो गई नहीं तो आपके बेटे का जीवन नष्ट हो जाता। आप शादी से इंकार मत कीजिए। आप जब बारात लेकर जाएंगे तब आप 10, 00000 रुपए दहेज मांगना वह 10, 00000 रुपए दहेज नहीं दे पाएंगे। आपका बेटा भी बच जाएगा। प्रकाश मान गए। शादी की तैयारियां चल रही थी। बरात भी पहुंच चुकी थी। सारी रस्में हो चुकी थी। केवल फेरे बाकी थे। सभी खुश नजर आ रहे थे।

अंकित ने अपने छोटे से घर को बहुत अच्छे ढंग से सजाया हुआ था। श्वेता भी खुश नजर आ रही थी। आज वह अपने घर को छोड़कर अपने बाबुल के आंगन को अलविदा कह कर पराई हो जाएगी।
अंकिता को जोर का शोर सुनाई दिया। उसे शादी के लिए तैयार किया जा चुका था। लाल जोड़े में बहुत ही सुंदर नजर आ रही थी। उसकी सहेलियाँ उसे तैयार करती हुई कह रही थी कि नजर का टीका लगा दो। बाहर दूल्हे के पिता ने मांग रख दी थी कि 10, 00000 रुपए दहेज में दो तभी हम बारात लेकर जाएंगे। उसके पापा को चक्कर ही आ गया किसी न किसी तरह उन्होनें अपने आप को संभाला। अंदर आकर आशिमा को बोले आज अचानक मेरे दोस्त ने 10, 00000 रुपए दहेज की मांग रख दी। मैंनें पहले ही अपनी स्थिति उनके सामने उजागर कर दी थी।। आज अचानक शादी के मौके पर मेरा जो अपमान होगा अब मैं क्या करूंगा? कैसे सब को मुंह दिखाऊंगा?

आज वह अपने आप को एक बहुत ही छोटा सा इंसान समझ रहे थे। श्वेता ने अपने पापा को चुप कराया बोली पापा चुप हो जाइए। मां पापा आपको कुछ कहने की जरूरत नहीं है। मैं जा कर देखती हूं। अंकिता अपनी बेटी को रोकते रहे। श्वेता बाहर आकर बोली मेरे पापा से दहेज में 10, 00000रुपये मांगने की कोई जरूरत नहीं है। मैं अभी इसी समय आप लोगों से रिश्ता तोड़ती हूं। जो दहेज की खातिर मुझसे झूठा रिश्ता करना चाहते थे। आपको पहले ही मेरे पापा ने सब कह दिया था। आज अचानक हमारी बेइज्जती करने की आपको क्या सूझी? आप मेरे पिता को क्या समझते हो? उन्हें कुछ नहीं होगा। उन्होंने मुझे और मेरे भाई को अच्छी शिक्षा दी है। मैं आज चुप नहीं रहूंगी। आप अपनी बारात खुशी से लेकर वापिस जाओ। हम आपको कुछ भी दहेज नहीं देंगे। मैं पढ़ी-लिखी लड़की हूं। यह मत सोचना मैं रो रो कर अपना नष्ट कर लूंगी। समझदार हूं अपने लिए कोई योग्य वर ढूंढ सकती हूं। ऐसे रिश्ते से तो कूंवारी रहना मुझे मंजूर है। अच्छा हुआ पहले ही जानकारी हासिल हो गई। नहीं तो सारी उम्र भर पछताना पड़ता। अभी तो कुछ भी नहीं बिगड़ा है।

मेरे माता-पिता भी रोने वालों में से नहीं है। हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। श्वेता ने आदित्य को बुलाकर कहा कि तुम भी दहेज की मांग करते हो। वह बोला मैं अपने माता पिता के खिलाफ नहीं जा सकता। बरात वापिस जा चुकी थी? थोड़ी देर पहले जहां खुशियां ही खुशियां थी वहां चुप्पी छाई थी।

बारात में आए हुए लोग चुपचाप एक दूसरे को देख रहे थे। सुनीता ने घोषणा की कि कोई भी मेहमान खाना खाए बगैर यहां से नहीं जाएगा। आप आप सभी सोचो आपके घर में भी बेटियां होगी। हम दहेज के लालची लोगों के हाथों कब तक अपनी बेटियों को यूंही नष्ट करवाते रहेंगे? क्यों हमें उनकी कठपुतली बनकर उनके इशारों पर नाचना होगा? नहीं। आजकल की बेटियां बेटों से कम नहीं है। वह भी इज्जत में अपने लिए रोटी का जुगाड़ अच्छे ढंग से कर सकती हैं । हम सब नारी शक्ति दहेज लेने वालों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाएं तो कोई भी बहन अपने घर से बेघर नहीं होगी। इसके लिए हमें अपनी बेटियों को पढ़ाना बहुत ही जरूरी है। रिश्ता टूटता है तो इसका अफसोस नहीं मनाना चाहिए। रिश्ता तो फिर भी कहीं भी किसी से भी जुड़ सकता है।

हमें अपनी बेटियों को अच्छे संस्कार और अच्छे गुण उनमें विकसित करने हैं। सभी परिजन खाना खाने लग गए थे। वह उठकर श्वेता को शाबाशी देने लगे थे। कुछ एक लोग बीच में भीड़ में ऐसे भी होते हैं जो कहने लगे अब क्या होगा? यह सारी उम्र भर कुंवारी रहेगी। श्वेता भी चुप बैठने वालों में से नहीं थी वह बोली नकारात्मक सोच वाले लोगों के लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है। आप जा सकते हैं।

श्वेता ने अपने आप को जल्दी संभाल लिया। वह एक जगह कॉलेज में पढ़ाने का काम करने लग गई थी। कॉलेज के विद्यार्थियों को पढ़ाना। एक दिन उसकी मुलाकात साक्षी से हुई। वह बहुत ही उच्च खानदान की लड़की थी। वह भी प्रोफेसर शुक्ला से ट्यूशन पढ़ रही थी। वह प्रोफेसर श्वेता के कॉलेज में थे । उनकी पत्नी बीमार थी। अपनी पत्नी को देखने के लिए विदेश जा रहे थे।

प्रोफेसर शुक्ला ने श्वेता को कहा कि तुम्हें मेरी एक विद्यार्थी को ट्यूशन पढ़ानी है। वह भी एक लेक्चरार बनना चाहती है। मुझे पता है तुम बहुत होशियार लड़की हो। उस से तुम्हें मैं मिलाना चाहता हूं। डॉक्टर शुक्ला ने उसे साक्षी से मिलाया।

डॉक्टर शुक्ला ने साक्षी को कहा कि तुम श्वेता से अपनी ट्यूशन जारी रखना। यह केमिस्ट्री बहुत अच्छा पढ़ाती है। मैं छः महीनें की छुट्टी जा रहा हूं। तुम इनके पास अपनी ट्यूशन जारी रख सकती हो।

साक्षी श्वेता से ट्यूशन लेने लग गई थी। श्वेता जो कुछ भी पढाती उसे अच्छी तरह से समझ आ जाता था। वह उन्हें अपना गुरु और एक अच्छी दोस्त मानने लग गई थी। कॉलेज के बाहर ऐसा लगता मानों वे दोनों सहेलियां हों। उनमें उम्र में 5 साल का ही अंतर था।

एक दिन साक्षी ने श्वेता को कहा कि मेरी शादी तय हो चुकी है। आपको मेरी शादी में अवश्य आना है। आप मेरी गुरु हो। अच्छी दोस्त हो। मेरे मम्मी पापा ने मेरे लिए एक अच्छे परिवार में मेरा रिश्ता तय किया है। उसने शादी का कार्ड श्वेता को थमा दिया। शाम को अंगूठी की रस्म पार्टी थी।

उसने अपनी अध्यापिका श्वेता को भी सगाई में बुलाया था। जब आदित्य ने साक्षी को अंगूठी पहनाई तो वो आदित्य को देखकर हैरान हो गई? आदित्य की नजर उस पर नहीं पड़ी। श्वेता बीमारी का बहाना करके वहां से खिसक गई। शाम को आकर श्वेता ने अपने माता पिता और भाई साहिल को सारी कहानी सुनाई किस प्रकार पापा के प्रकाश अंकल आदित्य का रिश्ता मेरी शिष्या के साथ जोड़ना चाहते हैं।

दूसरे दिन शाम को साक्षी पूछते पूछते अचानक श्वेता के घर आ गई। वहां पर उनकी मुलाकात साहिल से हुई। वह साहिल को देख कर खुश हुई। शाहिल बोला कि श्वेता तो घर पर नहीं है। अचानक साक्षी बोली शाम को वह अचानक जल्दी ही पार्टी छोड़ कर निकल गई। मैं सगाई की मिठाई लेकर आई हूं।

साहिल बोला मैं आपसे कुछ भी छुपाना नहीं चाहता जहां पर आप की शादी हो रही है वहीं पर पहले मेरी बहन का रिश्ता आदित्य से होने जा रहा था। आदित्य के पिता और मेरे पिता दोनों एक ही कार्यालय में काम करते हैं। उन्होंने शादी के समय हमसे 10, 00000 रुपये की मांग रखी। पहले उन्होंने कहा कि हम कुछ भी दहेज में नहीं लेंगे। अचानक शादी वाले दिन उन्होंने 10, 00000 रुपए मांगे। मेरी बहन बड़ी खुद्दार है। वह बोली आपने मेरे पिता को गुमराह किया। जब हमने अपनी स्थिति पहले ही उजागर कर दी थी तब तो आपने कहा था कि हमें दहेज नहीं चाहिए। अचानक ऐसा क्या हुआ जो आपने शादी वाले दिन हमारे साथ हंगामा खड़ा किया।

साक्षी को उसकी बातें सुनकर बड़ा दुःख हुआ। वह सोचनें लगी कि वह भी तो ऐसे इंसान के साथ शादी करने जा रही थी जो दहेज के लालच में एक बार अपनी बारात वापस लौटा चुका है। मेरे पापा तो धनी है। श्वेता का इसमें क्या कसूर था? ठीक ही किया श्वेता ने। वह साहिल को बोली अच्छा हुआ तुमने मुझे आदित्य की सच्चाई बता दी। यह बात मेरे और तुम्हारे अलावा कोई ना जान पाए

साहिल बोला ठीक है। आदित्य की बरात सेठ रूप दास की कोठी में ठीक समय पर पहुंची। कोठी को इतनी भव्य तरह सजाया हुआ था। चारों ओर शादी का माहौल था। बारात आ गई थी। सब लोग बारातियों का स्वागत कर रहे थे। बारात का स्वागत करने के उपरांत फेरों का मुहूर्त निकाला जाना था। साक्षी ने दो पुलिस अधिकारियों को भी फोटोग्राफर बनाकर सारी सच्चाई अवगत करवाने के लिए वहां पर बुलाया था। फेरों के लिए वर-वधू दोनों पहुंच गए थे।

श्वेता भी साक्षी की शादी में आई थी। प्यारी सी साड़ी में लिपटी बहुत ही सुंदर लग रही थी। साक्षी ने जोर से कहा मैं शादी करने से पहले दूल्हे और उसके माता-पिता से कुछ सवाल पूछना चाहती हूं। पूछने की इजाजत है। दूल्हे के माता-पिता बोले पूछो बेटी। वह बोली पहले आप बताओ कि आपने पहले किसी को शादी का झूठा वादा दे कर तो नहीं छोड़ा। मैं आज भरी महफिल में पूछना चाहती हूं। आदित्य के माता-पिता बोले मेरे बेटे ने तो किसी के साथ भी रिश्ता नहीं रखा। वह बोली मां पापा आज आप मेरे सास-ससुर बनने जा रहे हो। क्या कभी भी आप ने किसी को भी नहीं ठुकराया? वह बोले नहीं।

साक्षी बोली कि आप अपनी बरात लेकर वापिस जा सकते हो। मैं आपसे शादी नहीं करूंगी। आप लोगों ने 10, 00000 रुपए का दहेज मांगने की इच्छा की थी। आपने मेरी सहेली की बरात मंडप से वापस लौटाई थी। साक्षी बोली कि मैं ऐसे झूठे लोगों के साथ में कभी भी रिश्ता नहीं करूंगी जो दहेज के लालची हो।
आदित्य के पापा बोले हमें यह सब सक्सेना जी ने कहा था कि वह अच्छी लड़की नहीं है। आपने मेरी सहेली के चाल-चलन में क्या बुराई देखी? प्रकाश बोले कि वह शाम को किसी से मिलने होटल गई थी और उसकी फोटो किसी लड़के के साथ थी। वह मुझे अच्छा नहीं लगा। आपने इस बात पर रिश्ता तोड़ दिया। आप असलियत तो पता करते। आपके बेटे ने भी तो श्वेता के साथ शादी करने के लिए इंकार कर दिया।

आजकल तो रिश्ता तोड़ने के लिए किसी भी लड़की का फोटो लेकर किसी भी लड़के के साथ जोड़कर झूठी मूठी कहानी गढ़ देते हैं। आपको जरा भी विश्वास होता तो आप उन दोनों को अच्छे ढंग से पूछ लेते। उस लड़की में तो कोई बुराई नहीं है। मैं भी आपसे शादी करने से इंकार करती हूं। आप अभी के अभी इसी वक्त बरात वापस लेकर जाओ।

साक्षी बोली कि मैं अपने लिए लड़का खुद ढूंढ लूंगी। उसकी नजर साहिल पर पड़ी और वह साहिल की तरफ देख कर बोली कि आज आपको मैं अपना साथी चुनती हूं। क्या आप शादी के लिए तैयार है? शाहिद बोला मैं एक गरीब परिवार का लड़का हूं। मैं आपको वह खुशियां तो नहीं दे सकता जो आप यहां प्राप्त करती थी लेकिन मैं एक अच्छा साथी साबित हो कर आप को हर खुशियाँ देनें की कोशिश करुंगा। दोनों की शादी उसी वक्त हो जाती है।

आदित्य अपना सा मुंह लेकर अपने माता-पिता के साथ लौटने लगता है तभी पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने लगती है। तुम को दहेज मांगने के जुर्म में एक साल की कैद कैद हो सकती है। श्वेता आकर पुलिस को कहती है कि आप इनको माफ कर दो। अब इस बात को बहुत समय हो चुका है। श्वेता की सहेली आदित्य को सारी सच्चाई बताती है उसे दस हजार रुपये दे कर अपनी सहेली के खिलाफ जानें के लिए कहा गया था। मैंने अपने भाई राजू को नोट्स देने भेजा था। उन दोंनो का कोई कसूर नहीं था। आदित्य श्वेता को कहता है कि मुझे माफ कर देना मैंनें बिना सोचे समझे तुम पर इतना बड़ा इल्जाम लगाया। मुझे माफ कर दो। मै तुम से शादी करनें के लिए तैयार हूं। वह बोली मैं उस इन्सान से शादी नहीं करना चाहती जो अपना फैसला खुद नहीं ले सकता। श्वेता नें पुलिस इंस्पेक्टर को कहा कि इन्हें माफ कर दो। वह अपना सा मूंह ले कर वहां से चले जातें हैं।

पिन्कु और जादू की परियां

एक बच्चा था उसका नाम था पिंकू। वह बहुत ही होनहार लड़का था वह हर काम को बहुत होशियारी से किया करता था। एक दिन जब वह स्कूल से आ रहा था तो उसे एक जूता दिखाई दिया। वह इतना चमचम कर रहा था वैसे वह उस जूते को देखकर मोहित हो गया। उसने वह जूता उठा लिया। जूते को उठा कर घर ले आया। उसको उलट पलट कर देखने लगा। उसी समय उसकी मम्मी अंदर आ गई बोली बेटा तुम बार-बार अपने बैग में क्या ढूंढ रहे हो।? पिंकू बोला नहीं मां, मैं बैग में कुछ नहीं ढूंढ रहा। उसने वह जूता बैग में रख दिया। दूसरे दिन जब वह स्कूल से घर आ रहा था तो उसे तीन परियां दिखाई दी। उन्होंने उस बच्चे को आवाज लगाई पिंकू। उसने देखा कि मुझे कौन आवाज़ लगा रहा है।? तीन परियां उसके पास आकर बोली बेटा । हमारी बात ध्यान से सुनो। हमारा जूता नीचे गिर गया था। वह तुमने उठाकर अपने बैग में रख लिया था। कृपया बेटा हमारा जूता हमें दे दो। यह जूता तुम्हारे किस काम का। हम नीचे नहीं आ सकती। अगर हम पृथ्वी पर पांव रखेंगी तो हम जलकर भस्म हो जाएंगी। एक साधू बाबा ने हमे शाप दिया था। वह बोला मुझे तुम्हारा जूता बहुत अच्छा लगा। इस में सितारे लगें हैं। मैं इस के कपड़े की गेंद बनाऊंगा। तीनों परियां उसके आगे हाथ जोड़कर खड़ी हो गंई और बोली बेटा वह जूता तुम्हारे किस काम का। हम तुम्हें दूसरा जादू का जूता दे देंगी। पर इस जूते को हमें दे दो इसके बदले में हम तुमको एक जादू का बाजा देते हैं। यह जादू का बाजा तुम्हारे बहुत ही काम आएगा पहले तुम इस जादू के बाजे को आजमा कर देख लो। तुम्हें समझ आ जाएगी।

उन्होंने पिन्कु को जादू का बाजा दे दिया। बाजा पा कर पिन्कु बहुत खुश हुआ। उसनें वह जूता छिपा कर रख दिया। जब यह बाजा मेरे काम का होगा तब मैं उन परियों का जूता वापिस कर दूंगा। वह जादू के बाजे को बजाता बजाता घर से बाहर निकल गया। जब वह बाजा बजाता उसके इर्दगिर्द बहुत सारे लोग इकट्ठे हो जाते। एक दिन पिन्कु को कुछ चोरों ने देख लिया। उसका चोर अपहरण करके ले जा रहे थे। वे उसे एक गाड़ी में बिठाने ही लगे थे कि उसे पता चल चुका था कि वह उसका अपहरण करने आए थे। उसने जोर जोर से बाजा बजाना शुरु कर दिया। उसके बाजे की आवाज सुन कर बहुत सारे लोग उसके इर्दगिर्द इकट्ठे हो गए। पिन्कु बोला एक आदमी से बोला अंकल ये चोर मुझे अपहरण कर के ले जा रहे थे। मुझे इनसे छुड़वाओ। पिंकू ने बहुत सारे आदमियों को अपनी ओर आते देखा जैसे उन अपहरणकर्ताओं ने आदमियों को उसकी ओर आते देखा वह अपनी गाड़ी को भगा ले गए। पिन्कु सुरक्षित बच गया था। वह सोचने लगा कि इन परियों ने मुझे सचमुच में ही जादू का बाजा दिया है। वह दौड़ा दौड़ा परियों के पास गया और कहा कि वाह तुमने तो मुझे बहुत ही अच्छा जादू का बाजा दिया है। मैं तुम्हारा जूता तुम्हें वापस करता हूं। आप सच्ची और नेक इंसान हैं। दोनों परियां बोली बेटा आज मैं तुम्हें एक जादू की पेंसिल देती हूं। इस पैंन्सिल ं से जो कुछ भी तुम लिखोगे वह सच्ची घटना होगी। जो तुम्हें आने वाली घटनाओं को पहले ही बता देगी। बेटा हमने तुम्हारी ईमानदारी से प्रसन्न होकर तुम्हें यह दोनों वस्तुएं दी है। यह दोनों वस्तुएं सिर्फ ईमानदार लोगों का ही साथ देती है। वह जादू की पेंसिल पाकर खुश हो गया।

जादू का बाजा और पेंसिल वह हमेशा अपने बैग में रखता था। वह रास्ते में बैठकर ड्राइंग करता था।

वह रास्ते में बैठकर ड्राइंग बना रहा था। अचानक उसकी पैंन्सिल नें लिखना शुरु कर दिया अभी चोर आने वाले हैं। वह तुम्हारा बाजा चुराने आ रहे हैं। परंतु कोई बात नहीं वह चोर है। वह बाजा उनके किसी काम नहीं आएगा। थोड़ी देर बाद पिंकू ने देखा कि तीन चोर जो उस का अपहरण करके ले जा रहे थे वही उसके सामने आकर खड़े हो गए। वह बोले बेटा आज तुम हम से बच नहीं सकते। उस दिन तो तुमने बाजा बजा कर सबको इकट्ठा कर लिया था। आज तो हम तुम्हें पकड़कर ले ही जाएंगे। वह बोला यह बाजा जादू का है। मैं तुम्हें यह बाजा दे देता हूं। वह चोर बोले हम तुम्हारा बाजा-बजाकर देखना चाहते हैं। वह बोला अगर तुम्हें यह बाजा बजा कर देखना है तो एक शर्त पर। तुम यह बाजा बजा सकते हो। अगर आसपास कोई लोग तुम्हारा बाजा सुन कर नहीं आए तो तुम इस बाजे को मुझे वापस कर दोगे। चोरों ने कहा हमें तुम्हारी शर्त मंजूर है। पिंकू नें वह बाजा उन्हें दे दिया। तभी उसकी पेंसिल कुछ लिखने लगी। पेंसिल नें लिखा कि यह चोर अभी पकड़े जाएंगे। इन को पुलिस पकड़ कर ले जाएगी।।

पिंकू ने कहा जल्दी से यहां से चले जाओ वर्ना पुलिस तुम्हें पकड़ कर ले जाएगी। चोर बोले तुम्हें कैसे पता है।? पिन्कु बोला मेरे जादू की पेंसिल नें मुझे बताया है। चोरों नें उस बाजे को बजाया कोई भी नहीं आया। उन्होंने बाजा पिंकू को वापस कर दिया। एक आदमी ने उसके सिर पर बंदूक तान कर कहा यह जादू की पेंसिल हमें दे दो नहीं तो तुम मारे जाओगे। उन चोरों ने उससे जादू की पेंसिल छीन ली। पिंकू ने बाजा बजाया लोग इकट्ठे हो गए। उनमें से दो पुलिस अफसर भी थे। पिंकू ने कहा पुलिस बाबू इन चोरों ने मेरी पेंसिल मुझसे छीन ली है यह पेंसिल कोई मामूली पैंन्सिल नहीं है। जादू की पैंन्सिल है। इन चोरों से यह पेंसिल मुझे दिला दो। पुलिसवालों ने कहा कि यह कैसे अपना जादू दिखाती है? पहले हमें जादू दिखाओ। पिंकू बोला यह जादू की पेंसिल आगे आने वाली भविष्यवाणी कर देती है।

पुलिस इन्सपैक्टर ने चोरों को पकड़ लिया। चोंरोंं से बाजा पिंकू ने प्राप्त कर लिया था। तभी उनकी पेंसिल कुछ लिखनें लगी। पैंन्सिल ने लिखा कि इन पुलिस वालों के घर के सदस्यों की जान खतरे में है। जल्दी से घर पहुंच कर उन्हें बचा लो। उनके घर में उन चोरों के साथियों नें पुलिस इंस्पेक्टर का पता करके उन पुलिस इंस्पेक्टर के बच्चे और पत्नी को पकड़ लिया था। इसके बदले में वे अपने साथियों को छुड़ाने की मांग करेंगे। तुम दोनों पुलिस इन्सपैक्टर अगर समय पर पहुंचकर सारी पुलिस फोर्स को ले कर घर में सेंध लगा दे तो वह चोर पकड़े जाएंगे नहीं तो तुम्हारी पत्नी और बेटा दोनों की जान खतरे में होगी। पुलिस इन्सपैक्टर नें सोचा शायद यह बच्चा ठीक बोल रहा होगा। चलो घर में पुलिस फोर्स को भिजवा देते हैं। पुलिस इन्सपैक्टर नें जैसे ही अपनी पत्नी को कॉल लगाया वह बोली बाहर पता नहीं कौन है जो जोर जोर से दरवाजा खटखटा रहा है।? मैंने लैंन्स में से झांक कर देखा वह कोई दो पगड़ी वाले इन्सान थे। पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी पत्नी को कहा कि तुम दरवाजा मत खोलना मैं पुलिस फोर्स भेजता हूं। तिवारी ने सारी पुलिस फोर्स अपने घर में भेज दी। पुलिस वालों ने पहुंचकर उन दोनों चोरों को पकड़ लिया। बच्चे की सौ फ़ीसदी बात सच निकली।

पिंकू जादू का बाजा बजाता जा रहा था बाजे को सुनने के लिए चारो तरफ लोग इकट्ठा हो चुके थे। स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने वाला था। पिंकू स्कूल में जादू की पेंसिल से चित्र बनाने वाला था। वह पेंसिल चित्र ना बनाकर कुछ लिख रही थी। पैंन्सिल नें लिखा जल्दी से सारे सारे बच्चे बाहर जाकर संस्कृति कार्यक्रम मनाएं क्योंकि यहां पर आतंकवादियों ने स्कूल को चारों तरफ से घेर कर आतंकवादी ब्लास्ट करने की सोच रहे हैं। सारे स्कूल की इमारत पन्द्रह मिनट में ध्वस्त हो जाएगी। जल्दी से जल्दी यहां से भागने की कोशिश करो। वर्ना 500 विद्यार्थी बेमौत मारे जाएंगे। वह जल्दी से प्रिंसिपल के पास जाकर बोला मैडम जी जल्दी से अनाउंसमेंट कर दो स्कूल में ब्लास्ट होने वाला है। सारे बच्चे और अध्यापक यहां से बाहर निकल जाओ। प्रिंसिपल बोले तुम झूठ बोल रहे हो। पिंकू बोला मैडम आपको झूठ की पड़ी है जो कुछ करना होगा बाद में कर लेना मुझे सजा दे देना। स्कूल से निकाल देना अगर मेरी बात झूठ साबित होगी। प्लीज पहले यंहा से सारे बच्चों के साथ बाहर निकले। जब पिंकू को यह कहते सुना तो उसने अनाउंसमेंट कर दी और कहा सारे बच्चों का कार्यक्रम यहां से तीन किलोमीटर एक पार्क में होगा। यह कहकर वह प्रिंसिपल ने यह भी कहा कि हम वहां पर पिकनिक भी करेंगे। जब प्रिंसिपल ने अनाउंसमेंट की सारे के सारे बच्चे और अध्यापक दस मिनट के अंदर ही अंदर में पार्क में चले गए। पन्द्रह मिनट बाद वहां सारा का सारा स्कूल ब्लास्ट हो चुका था। आतंकवादियों ने स्कूल को अपना निशाना बनाया था। पिंकू की मदद से उन बच्चों को बचा लिया गया।

मैडम ने पिंकू को उसके साहसिक कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने पिंकू को बहुत सारा इनाम दिया। उसके बाजे और जादू की पेंसिल की खबर उस गांव के जमींदार को लगी। जंमीदार नें सोचा कि इस बच्चे से जादू का बाजा और जादू की पैंन्सिल छुड़ा लिया जाए। अपने आदमियों को उन्होंनें पिंकू के घर में भेजा वे पिंकू को पकड़कर जमीदार के घर ले आए। पिंकू अपना बाजा और जादू की पेंसिल भी साथ ले आया था। उस जमीदार ने जादू का बाजा पिंकू से छीन लिया। जैसे ही जमीदार ने बाजा बजाया वंहा कोई नहीं आया। जंमीदार बोला तुमने हमें नकली बाजा दिया है। पिंकू बोला यह बाजा केवल ईमानदार लोगों का ही साथ देता है। जंमीदार नें कहा तुम बाजा बजा कर दिखाओ। पिंकू बोला यह बाजा केवल ईमानदार लोगों को ही का ही साथ देता है पिंकू ने जैसे ही बाजा बजाया आसपास के लोग पिंकू के इर्दगिर्द इकट्ठा होकर बोले बेटा क्या करना है।?। पिंकू बोला इस जमीदार ने मुझे बिना वजह पकड़ कर रखा है तुम मुझे इसके चुंगल से छुड़ाओ।
जमीदार ने एक साथ इतने सारे लोगों को सामने इकट्ठे खड़ा देखा तो वह बोला बेटा मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे जादू के बाजे की कहानी सुनी थी। सचमुच में यह जादू का बाजा है। पिंकू को जमीदार ने छोड़ दिया। पिंकू की पेंसिल ने लिखा था कि इन सभी आदमियों को कहो कि रुक जाए। उनसे कहो कि जंमीदार से कहो कि तुम नें जिन जिन व्यक्तियों से ज्यादा रुपए तुमने छीने हैं उन सभी के रुपए वापस कर दे नहीं तो आज जंमीदार इन सब व्यक्तियों से बच नहीं सकता। पिंकू ने जमीदार को कहा कि मेरे पास जादू की पेंसिल है। आज जमीदार जी आपकी जान खतरे में है। जिन व्यक्तियों से आपने ज्यादा रुपए छीन लिए है उन सब के रुपए वापस कर दो नहीं तो आज यह सब आदमी आप की छुट्टी कर देंगे। सारे के सारे आदमियों ने जब पिंकू की बातें सुनी तो उनसे व्यक्तियों ने मिलकर कहा जमींदार बाबू आप हमें हमारे छिनें हुए रुपए हमें वापस करो आज हम सब से आप नहीं बचोगे। यह सब राजू की पेंसिल ने लिखा है। चलो सब मिलकर इस जमींदार की पिटाई करते हैं।
पिंकू बोला रुको। पिंकू ने परियों को याद किया परियों नें उसे कहा था कि जब तुम हमें बुलाओगे तब हम हाजिर हो जाएंगी। पिंकू ने परियों को कहा कि आपने मुझे जादू का बाजा और जादू की पेंसिल दी थी। आज मैं इन दोनों वस्तुओं को आप को वापस करना चाहता हूं। क्योंकि हर कोई मुझ से जादू की पेंसिल और जादू का बाजा छिनना चाहता है। मुझे इन दोनों वस्तु की जरूरत नहीं है। आप मेरा एक काम करें इस जमीदार से इन व्यक्तियों के सारे छीने हुए रुपए वापस करवा दो। परियों नें जमीदार पर जल की तीन बूंदे छिड़की। जमीदार ने सभी व्यक्तियों के छिनें हुए रुपए वापस कर दिए। तीनों परियों ने पिंकू की ईमानदारी की प्रशंसा की और कहा बेटा जाओ तुम्हें हम आशीर्वाद देती है जो तुम बनना चाहते हो तुम बनकर रहोगे। भगवान तुम्हें कामयाबी दे।
पिंकू ने तीनों परियों के पैर छुए कहा अच्छा अलविदा। पिंकू बोला पहले तुम तीनों को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए मुझे क्या करना होगा।? मुझे बताओ तीनों परियां बोली यंहा से तीन किलोमीटर की दूरी पर एक मोनी बाबा रहते हैं। वे अखंड तपस्या कर रहे हैं। तुम वहां जाकर उनके बगीचे की देखभाल करना। उनकी खूब सेवा करना। तुम्हारी सेवा से प्रसन्न होकर वह तुम्हें वरदान देंगे। तब तुम उनसे हमारे लिए प्रार्थना करना। हम शाप से छूट जाएंगी तभी हम पृथ्वी पर पैर रख सकेंगे। नहीं तो हम बीच में ही लटक कर रह जाएंगी। हम बीच में ही हवा में इधर उधर घूमती रहती हैं।

पिंकू चलता चलता उस बाबा साधू बाबा की कुटिया में पहुंच गया। उसने दिन-रात साधु बाबा की सेवा की। साधु बाबा की जब आंखें खुली तो अपनी कुटिया की इतनी सुंदर सफाई देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वह बोले बेटा यहां की इतनी देखरेख और यहां की हरियाली देख कर मैं हैरान रह गया। बेटा तुम बहुत ही होशियार हो। बोलो तुम क्या मांगना चाहते हो।? पिंकू बोला बाबा जी आप मना तो नहीं करोगे। साधु बाबा बोले बाबा अगर किसी को आशीर्वाद देते हैं तो पूरे मन से। बोल तू क्या मांगना चाहता है? पिंकू बोला आप इन तीनों परियों को शाप से मुक्त कर दे। यह मुझे चाहिए। साधु बाबा ने कहा ठीक है जाओ। एवमस्तु बेटा। तुम दूसरों के लिए ही कुछ मांगते हो अपने लिए भी कुछ मांगो। पिंकू बोला आप मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दें। मैं हमेशा दुनिया में अच्छे काम करुं और अच्छा वैज्ञानिक बनकर देश के भविष्य को संवार सकूं। साधु बाबा ने कहा कि तुम्हारी इच्छा पूरी हो। तीनों परियां शाप से मुक्त हो गई। वह तीनों अपने देश वापस चली गई। पिन्कु भी एक बड़ा वैज्ञानिक बना वह भी अपनी मेहनत के दम पर।