क्रूर सिंह

एक गांव में बहुत ही लंबा चौड़ा हट्टा-कट्टा एक आदमी रहा करता था। उसके हाथों से एक बार किसी का खून हो चुका था। वह खून उसने नहीं किया था। मगर साबित हो जाने पर उसे जेल वालों ने उसे छोड़ दिया था। वह काफी दिन तक जेल की हवा खा कर आया था। इसलिए लोग उसको मिलनें से भी कतराते थे। वह उसे खूनी समझते थे। उसे भी सब इन्सानों से नफरत हो गई थी। वह अकेला ही रहना पसंद करता था। इसलिए वह गांव में पहाड़ की तलहटी पर बहुत ही एक सुंदर बगीचा था। वहां पर एक बहुत ही बड़ी गुफा थी। उसमें वह रहने लग गया था। वह इतना भयानक था कि लोग उसको देखकर डर ही जाते थे। वह काफी बूढ़ा हो चुका था। इसलिए वह लोगों को मार नहीं सकता था। लोग उसको देख कर उसे दानव ही समझ लेते थे। लोग उसे मारनें दौड़े। उसके भयंकर रुप के कारण लोग अपनें बच्चो को कहते थे कि पहाड कि तलहटी पर मत जाया करो। वंहा बहुत ही खूंखार दानव रहता है। उसको कम दिखाई देता था। बच्चे कहना मानने वाले थे? बच्चों को जिस बात को मना किया जाए उस बात को वहजब तक कर न लें तब तक उन्हें चैन नहीं आता था
बच्चों नें मिल कर घर में बताए वगैर पहाड़ की तलहटी पर जा कर देखा। पहले पहल तो उस खूंखार दानव को देख कर डर गए। वे फिर भी वहां जाने से नंही डरे। बच्चों ने देखा वह तो बूढे हैं वह हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। वह अपने से कमजोर लोगों पर ही आक्रमण कर देता था। बच्चों नें फैसला किया हम झून्ड में आया करेंगे। इसलिए वह हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा।
बच्चे हर रोज उसके बाग में खेलने जाते थे बच्चों का भी बाग में खेलना उसको पसंद नहीं आता था। वह उन के पीछे उन्हें मारने दौड़ता । बच्चे तो डर के मारे भाग जाते थे। वह उन्हें काफी देर तक दौड़ता। बच्चे अब उस से डरते नहीं थे। वह उसकी डांट फटकार को कुछ भी नहीं समझते थे। बच्चे बार बार उसके कान के पास जोर से आवाज करते। बच्चे झूमते हुए गाते।,बच्चों की मंडली आई, बच्चों की मंडली आई, अब हमारे क्रूर सिंह अंकल की बारी आई? वह बच्चों से पीछा छुड़ाता हुआ उनके जाने के बाद बाग में पानी डालता। बच्चों ने पेड़ पौधे तहस-नहस कर दिए थे। उनको ठीक करता। बाद में पतों को हटाता। बच्चों के जाने के बाद बगीचे को खूब साफ करता। उसका बगीचा बहुत ही सुंदर लगने लगता था।
काफी दिनों तक बच्चे भी खेलने नहीं आ सके थे। बच्चों के शोर कि उसे आदत हो गई थी। कुछ दिन से उसके बगीचे में कोई चहल पहल नंहीं थी। । बच्चे तो अपनी परीक्षा की तैयारी में लगे हुए थे। क्रूर सिंह बार-बार बाहर बाग में झांकता उसे कोई भी बच्चा नजर नहीं आया। कहीं ना कहीं उसे बच्चों की आदत पड़ चुकी थी। उन्हें फटकार करता। वहां तो कोई भी नहीं था बूढ़ा हो चुका था वह चक्कर खा कर नीचे गिर पड़ा।
कुछ दिनों बाद बच्चे बाग में खेलने आए उन्होंने जोर जोर से शोर मचाना शुरू किया राजू पिंकी मुन्नी चारों सब के सब उस की गुफा के सामने जोर जोर से शोर मचा रहे थे उनका शोर सुनकर भी बाहर नहीं आया। सब बच्चे गुफा के बाहर इधर उधर मंडरा रहे थे अचानक एक बच्चे ने अंदर झांका अंदर से कराहनें की आवाज़ आ रही थी। वह बहुत ही बूढा हो चुका था। वह उठ नहीं सकता था। बच्चे उस की ऐसी हालत देखकर हैरान थे। उन्होंनें उसके बगीचे को तहस-नहस कर दिया था। चारों और पत्थर ही पत्थर फैला दिए थे। बच्चों ने जब क्रूर सिंह को देखा अंदर चले गए। वह तो बिस्तर से उठ भी नहीं सकता था। सब बच्चों के मन में उस क्रूर सिंह के ऊपर दया उमड़ आई। बच्चे उन्हें प्यार से बाहुबली कहने लग गए थे।हम इन अंकल को क्रूर सिंह नहीं पुकारेंगें आपस में बोले। अंकल हम सब आपके पीछे भागते थे
हम आपको न जाने कितना कितना भगाते थे। बेचारे बूढ़ा होने के कारण दौड़ भी नहीं पाते हैं। हमारे दादा जी भी तो घर पर हैं। हमारी मम्मी पापा सब उनकी कितनी देखभाल करते हैं। इन क्रूर सिंह अंकल का तो इस दुनिया में कोई नहीं है। सब लोग तो इनके डरावने रुप को देखकर डरते हैं। हम इन अंकल को बाहुबली भी पुकारा करेंगें। हम बाहुबली अंकल को ठीक करके ही दम लेंगे। हम ही उनका परिवार हैं। सब के सब ने मिलकर योजना बनाई पिन्की को कहा। पिंकी तुम घर से बिस्कुट ले आना। राजू को कहा कि तुम नमकीन ले आना। मुन्नी को कहा कि तुम्हारी मम्मी डॉक्टर है उनसे कहना हमारे क्रूर सिंह अंकल को देखकर उन्हें दवाईयां उपलब्ध करवाये।
सब के सब बच्चों ने बाहुबली अंकल के हाथ-पैर धुलवाए। अपने-अपने घरों से खाना लाएं उसके बिस्तर को झाड़ा। उसके कपड़े धोए। किसी ने उसको पंखा किया। किसी ने उसके पैर दबाए। घर को जाते समय मुन्नी की सोने की चेन उसके बिस्तर के पास गिर गई थी। क्रूर सिंह ने जिंदगी में कभी भी इतना प्यार नहीं देखा था। उसकी आंखों में आंसू बहने लगे। वह बोला कुछ नहीं।
बच्चों ने एक हफ्ते में ही उस क्रूर सिंह अंकल की काया ही पलट दी। उसका बुखार भी उतर चुका था। परीक्षा के बाद सभी बच्चे बाग में आए। सारे के सारे बाग को साफ किया। फूलों को पानी दिया। फूलों की खुशबू से और बच्चों की किलकारियों से एक बार फिर बाग में बाहर आ गई। सभी बच्चे अपने घरों को चले गए।
भयानक बालों वाला वह आदमी जैसे ही बाहर आया अपने बगीचे की महक से उसकी सारी बीमारी दूर हो गई थी। धमाचौकड़ी मचाने वाले बच्चों नें बगीचे को फिर से हरा-भरा बना दिया था। वह बहुत ही खुश हुआ बच्चे उसके पास आने लगे। उसको अपना दोस्त अंकल बना दिया। वह क्रूरसिंह अंकल अब बच्चों का परोपकारी बाहुबली अंकल बन गया।
एक दिन किसी गांव वालों ने उस भयानक दैत्य रुपी मानव को बच्चों के साथ खेलते देख लिया। उन्होंने पिंकी के पापा को कहा कि आपकी बेटी और उन सभी बच्चों का ग्रुप उन क्रूर सिंह के साथ खेलता है। मुन्नी की मम्मी ने उससे पूछा कि तुम्हारे सोने की चैन कहां है? उसकी मां को शक हुआ। गांव वालों की बात कहीं सच तो नहीं है। कहीं वह उस बूढ़े क्रूर सिंह के साथ तो नहीं खेलतें हैं। उसके पिता जब उस बूढ़े क्रूर सिंह मानव के घर गए तो उन्हें सचमुच में ही उन्हें पिंकी की चेन उन्हें उस की गुफा में मिली। उन्होंने उस क्रूर सिंह को कहा तुम ने जानबूझकर मेंरी बेटी की सोने की चेन चुराई है। वह बोला मैं क्यों किसी की चेन चुराने लगा? मुझे तो दिखाई भी नहीं देता है। जब उसके पास चेन मिली तो सभी गांव वालों ने पिंकी के पापा को कहा कि इस क्रूर सिंह ने पहले भी एक खून किया था। वह काफी साल जेल में रह कर आया है। इसी ने ही चेन चोरी की है। आप इस को जेल में डलवा दो।
पिंकी के पिता ने क्रूर सिंह को जेल में डलवा दिया। उन्होंने रात के समय उसके गुफा में घुस कर उसे पकड़ लिया और कहा कि तुमने हमारे बच्चों को ना जाने क्या-क्या पट्टी पढ़ाई? वह तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ते । पिंकी के पिता ने क्रूरसिंह को बुलाया देखो हम तुम्हें कहीं दूर भेज देते हैं। तुम हमारे बच्चों को छोड़ कर यहां से चले जाओ। तुम्हें कहीं दूर दूसरी जेल में भिजवा देते हैं जहां पर हमारे बच्चों की छाया तुम पर ना पड़े। यहां पर तो बच्चे तुम्हें ढूंढ ही लेंगें। पिंकी के पापा ने उस क्रूरसिंह को
दूसरी जेल में शिफ्ट करवा दिया। क्रूर सिंह को भेजने का निश्चय कर लिया। क्रूर सिंह ने पिंकी के पापा को समझाया कि आप सब के बच्चों का भविष्य खराब ना हो इसलिए मैं यहां से सदा के लिए चले जाऊंगा। आपके बच्चों के भविष्य की मुझे भी चिंता है। आपके बच्चे भी खुश रहें। आपके बच्चे महान है। मुझ बुरे आदमी को भी आपके बच्चों ने सुधार दिया। मुझे बच्चों के नाम से भी नफरत थी। मैं तो सब से नफरत करता था। आपके मासूम बच्चों ने मुझे जीने का मतलब समझा दिया। मैं आपके बच्चों की जिंदगी में कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा।
बाबूजी लेकिन मैं उस समय यहां से जाऊंगा जब मेरे समीप यह बच्चे नहीं होंगे। मैं उनको देखते हुए उनको अलविदा नहीं कर सकता। यह कह कर क्रूर सिंह रो पड़ा। पिंकी के पिता ने उसे दूसरी जेल में भेज दिया था। बच्चों ने अपने क्रूर सिंह अंकुर को बहुत ढूंढा मगर उन्हें वह दिखाई नहीं दिए। सारे बच्चे खोए खोए से रहने लगे।
एक दिन पिंकी को पता चल ही गया कि मेरे पापा ने ही क्रूर सिंह अंकल को जेल भिजवा दिया। उसने दूसरे अंकल को कहते सुन लिया था कि अंकल को पिन्की के पापा नें इसलिए जेल में डाला क्योंकि उसनें पिंकी की चेन चोरी की थी। वह अपने पापा के पास गई बोली पापा आपने उन्हें जेल भिजवा दिया। तीन-चार दिन तक उसनें खाना नहीं खाया। वह बोली पापा मैं खाना नहीं खाऊंगी। जब तक आप अंकल को वापिस नहीं बुलाओगे।
वह बहुत बूढ़े हैं उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। जब आप बूढ़े हो जाओगे अगर आप लोगों को कोई ऐसी जगह छोड़कर आ जाएगा जंहा उसे कोई जानता न हो तो आप क्या करेंगे? पिंकी ने अपने सभी साथियों को कह दिया था सब के सब बच्चे अपने माता-पिता पर गुस्सा थे। वह बेचारे क्रूर सिंह अंकल आप लोगों को क्या बिगड़ते थे? आपने तो उनके घर को भी छीन लिया। मेरी सोने की चेन उन्होंने नहीं चुराई। उनको तो दिखाई भी नहीं देता था। आपने उन पर बेवजह शक करके उनको जेल में डलवा दिया। क्रूर सिंह अंकल वह नहीं आप सभी क्रूर हो। जिनके दिलों से दया मिट गई है। मैं आप को कभी माफ नहीं करूंगी। ऐसा कहते कहते पिंकी बेहोश हो गई।
डॉक्टरों ने कहा कि उसे गहरा सदमा लगा है अगर उनकी इच्छा को पूरी नहीं किया गया तो वह कोमा में भी जा सकती है। सभी के सभी बच्चे पिंकी के इर्द-गिर्द खड़े थे। पिंकी के पापा क्रूर सिंह के पास जेल में जाकर बोले। वास्तव में तुमने सोने की चेन चोरी नहीं की थी। यह मेरी गलती थी। जो गुनाह तुमने किया ही नहीं मैंने तुम्हें उसकी सजा दे दी थी। तुम वास्तव में हमारे बच्चों के हितैषी हो। मेरी बेटी ने मुझे बता दिया था।
मेरी बेटी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है जल्दी से आकर मेरी बेटी को बचा लो। मैंने तुम्हें गलत समझा था। क्रूर सिंह बोला आपकी बेटी को बचाने के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं। जल्दी ही वह पिंकी के पापा के साथ गाड़ी में अस्पताल पहुंच गया। पिंकी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला मेरी नटखट पिंकी जल्दी उठ जाओ। तुम्हारे अंकल तुम्हें देखने के लिए नजरें टिकाएं हैं। पिंकी को होश आ गया था। वह बोली अंकल आप हमें छोड़ कर मत जाना। हम आपके बगीचे को साफ रखा करेंगे।
सारे के सारे बच्चे क्रूर सिंह के इर्द गिर्द बैठे थे बोले अब हम आपके बगीचे में पत्थर नहीं फेंकेगे। हम तो बस आपके साथ खेलना चाहते हैं। पहले वाले क्रूरसिंह अंकल बन जाओ। थोड़ा डांट कर थोड़ा फटकार कर हमें दौड़ाओ। आप की डांट में भी एक प्यार छिपा है। पिंकी धीरे-धीरे ठीक हो रही थी।
क्रूरसिंह वापिस अपनी गुफा में आकर रहने लग गया था। एक बार फिर बच्चों
के साथ मौज मस्ती करके अपने जीवन को खुशहाल बना दिया था। बच्चे झूमझूम कर गा रहे थे। बच्चों की मण्डल आई। बच्चों की मण्डल आई। आओ खेलेंगे लुका छिपी। आओ खेले लुका छिपी। बाहुबली अंकल की मंन्डली आई। अब हमारे क्रूरसिंह अंकल की बारी आई। आओ खेलेंगे हम खेल। क्रूर सिंह अंकल आओ बाहुबली अंकल आओ। यूं न हमें डराओ। आ कर हम बच्चों के मन को बहलाओ।

चतुर गुड्डी

कुणाल और कनिका के घर में एक प्यारी सी बच्ची ने जन्म लिया। उन्होंने अपनी बेटी का नाम रखा रानी। प्यार से उसे गुड़िया कह कर पुकारते थे। गुड्डी 4 साल की हो चुकी थी। अपने मम्मी पापा से ना जाने कितने सवाल करती रहती थी? उसकी मम्मी ने कहा कि गुड्डी इधर आना। वह बोली मां बताओ क्या बात है? उसकी मम्मी बोली बेटा क्या तुमने मेरा मोबाइल देखा? वह बोली हां मेरे पास है। उसकी मम्मी बोली मेरा मोबाइल तुम्हारे पास क्या कर रहा है? वह बोली मैं यह देखना चाहती थी कि इस में आवाज कंहा से आती है? उसकी ममी नें बताया कि इस मोबाइल से हम किसी से भी बात कर सकते हैं। गुड्डी बोली हम कैसे बात कर सकतें हैं? उसकी ममी बोली अभी नंही। गुड्डी के पापा नें उसे बताया आओ बेटी मैं तुम्हें बताता हूं।हम कैसेससस बात करतें हैं? उन्होंने गुड्डी को सोफे पर बिठाया और उसे बताया कि हमें फोन करने के लिए एक नंबर डायल करना पड़ता है। मैंने आपको सारी संख्याएं लिखनी सिखाई है। उसमें संख्याएं होती है। हमें संख्याओं का एक कोड बनाते हैं। जैसे345678। ऐसे फोन में नंबर होते हैं। तुम्हारी मम्मी का यह फोन नंबर है उन्होंने उसकी मम्मी का फोन नंबर उसे बता दिया और कोर्ड भी बता दिया। वह चुपके-चुपके पापा के फोन से अपनी मम्मी के फोन पर बात करने लगी। उसे फोन पर बातें करने में बड़ा मजा आता था। एक दिन वह चुपचाप अपनी मम्मी को बिना बताए अपनी सहेली के घर चली गई। गुड्डी नें अपनी सहेली को कहा कि क्या तुम्हारे घर फोन है? उसकी सहेली ने उसे बताया हां मेरी ममी के पास मोबाइल है? गुड्डी बोली हां। तब तो मैं तुम्हारे घर में चल सकती हूं। वह वहां जा करखेलने में उसके साथ व्यस्त हो गई। ।
पिन्की बोली मेरी मम्मी तो मुझे बात ही नहीं करने देती। गुडडी बोली मेरी मम्मी नाराज हो गई होगी। वह पिन्की की ममी से बोली क्या आंटी मैं अपने घर फोन कर लूं? उसकी मम्मी इतनी छोटी मुन्नी की बात सुनकर हैरान हो कर बोली तुम्हें फोन करना आता है। वह बोली हां आंटी जी मेरे पापा ने मुझे फोन करना सिखाया है। उसने आंटी को कहा मोबाइल में नंबर डायल करना पड़ता है। उसे अपनी मम्मी का फोन नम्बर याद था। उसकी मम्मी ने कॉल करके बताया। गुड्डी की मम्मी घबरा रही थी कि गुड्डी आज बिना बताए कहा चले गई?

पिन्कु की मम्मी ने गुड्डी के घर फोन किया तुम्हारी बेटी हमारे घर पर है गुड्डी की मम्मी को तब कंही जा कर चैन आया। इतनी छोटी बच्ची अपने आप कैसे किसी के घर चली गई? शाम को जब गुड्डी घर आई उसकी मम्मी ने उसकी पिटाई की कि और कहा अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो। वह बोली मुझे कुछ नहीं हुआ।

तुम बहुत छोटी हो। इस दुनिया में कुछ लोग बड़े ही गन्दे होते हैं। छोटी छोटी लड़कियों का गलत फायदा उठाते हैं। उन्हे अपहरण कर के ले जाते हैं। गुड्डी बोली यह अपहरण क्या होता है? उसकी मां बोली बेटी तुम्हें चॉकलेट टॉफी का लालच देकर तुम्हें बहला-फुसलाकर अपने अड्डे पर ले जा सकतें हैं। गुड्डी बोली मां यह अपहरण क्या होता है? उसकी मम्मी बोली कि तुम्हें बांध कर बेहोश करके ले जाएंगे। तुमसे घर की सारी बातें पूछेंगे। तुम्हारे घर में कौन-कौन है। तुम्हारे पिता कहां काम करते हैं? तुमसे सारा सारी घर की पूछताछ करवा लेंगे। हमारे घर के एक एक चीज की जानकारी लेंगे अगर तुम्हें उन्हें नहीं बताओगी जैसे मेरे पास गहनें हैं बैंक पासबुक है गाड़ी है। गाड़ी का नंबर है। अगर तुम उन्हें नहीं बताओगी वह तुम्हें मार देंगे या तुम्हें किसी कमरे में बंद कर देंगे। तुमसे चोरी करवाएंगे। तुम्हारे हाथ भी काट सकते हैं। मुन्नी बोली मां। गाड़ी का नंबर क्या होता है? उसकी मम्मी बोली बेटा सब की गाड़ियों का नंबर अलग होता है उसकी ममी नें जब उसके पापा गाडी ले कर शाम को घर आए उसे गाडी का नम्बर दिखाते हुए कहा यह होता है गाडी का नम्बर। । फोन नंबर भी अलग-अलग होता है। उसने अपने और उसके पापा का मोबाइल का नम्बर उसे दिखा दिया। घर के लोग भी अलग है। मैं तुम्हें सब कुछ बताऊंगी। क्योंकि हम हर समय तो हम घर पर नंही रहते। हमें औफिस भी जाना पडता है।
घर में भी नहीं रहते। तुम्हें आया के भरोसे घर में छोड़ जाते हैं। गुड्डी के मम्मी पापा ने उसे बताया कि कोई झूठी मूठी फोन कॉल करके तुम्हें फुसला सकता है। वह बोली मां फुसलाना क्या होता है? बेटा बेटा बेवकूफ,, बनाना।

जैसे एक बार मुझे किसी ने फोन किया कि मैं तुम्हारे पति का दोस्त राजेश बोल रहा हूं। मैंने कहा कि मेरे पति का नाम बताओ। उस व्यक्ति ने मेरे पति का नाम ठीक बताया। उसने झूठ-मूठ में ही कहा कि तुम्हारे पति का एक्सीडेंट हो गया है। मैं हड़बड़ा कर भागती जा रही थी। तभी मुझे ख्याल आया कि कहीं वह मुझे फुसला तो नहीं रहा है। मैंने उस अजनबी से कहा कि मेरे पति किस हॉस्पिटल में एडमिट है? गुड़िया बोली कि यहएडमिट क्या होता है उसकी मां को उन अजनबी लोंगों नें बताया कि उन्हें बहुत चोट लगी है। वह गांधीअस्पताल में उनको रखा गया है। एडमिट का मतलब होता है कि वहां पर रखा गया है। मैंने अपने आप को संभाला और उस अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गई। तुम्हारे पापा के दोस्त उनका घर उस अस्पताल के पास ही था। मैंने उन्हें फोन मिलाया और कहा अभी कुछ लोंगों का मुझे फोन आया उन्होंनें मुझे बताया कि तुम्हारे पति का ऐक्सिडैंन्ट हो गया है। मैं बहुत घबरा गई। भाई साहब यह खबर सुन कर मेरे होश ही उड गए। आप जल्दी अस्पताल में जाकर देख आइए। भाभी जी आप डरो नहीं। मैं अभी जा कर पता करता हूं।

मैं भागी जा रही थी मैंने अस्पताल पहुंचने के लिए बस ले ली। बस में बैठी हुई थी कि तभी तुम्हारे अंकल का फोन आया। भाभी जी मेरी अभी तुम्हारे पति से बात हुई। वह तो बिल्कुल ठीक है। कोई तुम्हें फुसला रहा है? गुडडी बडे ध्यान से अपनी ममी की बात सुन रही थी।

तुम सीधे घर जाओ। अगर उस व्यक्ति का फिर से फोन कॉल आए तो उसका नंबर नोट कर लेना और बता देना कि मैं यहां पर तुम से मिलना चाहती हूं। तुम एक स्थान चुन लेना। उसी व्यक्ति का तभी फोन कॉल आया। जिसने पहले फोन किया था कि आपके पति का एक्सीडेंट हो गया है। उसने कहा कि बहन जी आप जल्दी आ जाओ। आप कहां हो? आप डरो मत। हमने उन्हें गांधी अस्पताल पहुंचा दिया है। आप पोस्ट ऑफिस के बूथ के पास आ जाओ।

गुड्डी हैरान होकर अपनी मम्मी की बात सुन रही थी। बेटा वह कोई अपहरणकर्ता थे। जब मैं वहां पहुंची तो उसे मालूम हो गया था कि मुझे सब कुछ पता चल चुका है। वह वहां से नौ दो ग्यारह हो चुका था। उसे पता चल चुका था कि मैं उन्हें पुलिस में पहुंचा दूंगी। मुन्नी बोली यह पुलिस क्या होती है? उसकी मां बोली बेटा पुलिस वालों का नंबर 100 होता है। जब इस नंबर को दबाया जाता है तब पुलिस आ जाती है। और चोर को पकड़ लेती है।

मुन्नी बोली आपको कैसे पता लगता है कि यह चोर है। वह बोली कि चोर पहले प्यार प्यार में तुम से तुम्हारा नाम पता पूछेगा। वह तुम से मेलजोल बढ़ा लेगा। तुमसे कहेगा मैं तुम्हारा दोस्त हूं। यहां पर मिलने आ जाना। तुम घर में किसी को कुछ भी मत बताना।

घर में किसी भी व्यक्ति को जब तक दरवाजे में लगे लैंन्स में से ना देख लो तब तक किसी भी अजनबी को अपने घर का दरवाजा नहीं खोलते जब तक तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में जानकारी ना हो। वह बोली अच्छा मां।

मेरे सामने कभी चोर भी आ जाएगा तो भी मैं उस से कभी नहीं डरूंगी। उसके मम्मी पापा ने उसे बताया कि अगर तुम्हें कोई कहे कि तुम्हारे मम्मी पापा का फोन है तो तुम बिल्कुल भी डरना मत उसका निडर हो करके सामना करना और कहना कि पहले मेरे मम्मी का कोड नंबर बताओ। जब तक वह कोड नंबर नहीं बताएं तब तक तुम उसकी बातों पर कभी भी विश्वास नहीं करना। क्योंकि यह कोर्ड नंबर हम तीनों के अतिरिक्त किसी को भी पता नहीं है। मैं यह कोड नंबर आज तुम्हें बताती हूं। तुम अपने मन में इस कोड को याद कर लेना। वह बोली मां ठीक है। उन्होंने मुन्नी को एक सीक्रेट कोड बता दिया।।

उन्होंने बताया कि हमारे अलावा किसी को भी यह कोर्ड नहीं मालूम होगा। एक बार गुडडी के मम्मी पापा घर पर नहीं थे। घर पर आया के पास बंटी और गुडडी थे। आया बोली बेटा मैं थोड़ी देर के लिए कुछ सामान लेने जा रही हूं। नीचे ही दुकान है। मुझे दस पन्द्रह मिनट से ज्यादा समय नहीं लगेगा। तुम अंदर से दरवाजा मत खोलना। जब तक मैं तुम्हें ना कहूं। गुड्डी बोली आप अपना कोड बता दो। आप का क्या कोड है? आया बोली यह कोड क्या होता है।गुडडी बोली आप नहीं समझोगे। आया बोली ठीक है ।

आया दुकान पर सामान लेने चली गई किसी गैंग के गिरोह ने गुड्डी के घर का नंबर देख लिया था। उन्होंने मुन्नी के घर का दरवाजा खटखटाया। मुन्नी नें देखा। उसने घर की कुंडी भी लगाई नहीं हुई थी। उसने जल्दी में कुर्सी पर चढ़कर दरवाजे की कुंडी लगा दी। गुडडी ने कुर्सी पर चढ़कर दरवाजे के लैंन्स से झांका। दो बड़े-बड़े अजनबी थे। वह डर रही थी। उन्होंने फिर से दरवाजा खटखटाया।

उसने अपने भाई को दूसरे कमरे में जाने के लिए कहा। उसने अपने भाई के कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। उसने उन दोनों को दरवाजा नहीं खोला। जब आंटी ने आकर आवाज लगा कर आंटी कहा। मुनि ने फटाफट दरवाजा खोला।

उसने अपनी सारी घटना अपने मम्मी पापा को सुनाई। उसके मम्मी पापा बोले हमारी बेटी तो बड़ी दिलेर है। वह बड़ी होकर पुलिस इंस्पेक्टर बनेगी।

मुन्नी पड़ोस में खेलने चली जाती थी उसकी मम्मी उसे घर के पास तो खेलने जाने देती थी। एक दिन पडोस की आंटी ने गुडडी को कहा कि अपनी सहेली के साथ जाकर पास के होटल से दही ले आओ। मुनि के मम्मी पापा घर पर नहीं थे। जब वह दही लेने गई तो एक अजनबी व्यक्ति ने अपने पास गुडडी को बुलाया और कहा बेटी मैं तुम्हारा अंकल हूं। तुम्हारे पापा का दोस्त हूं। वह बोली मैं तो अपने पापा के सभी दोस्तों को जानती हूं।

अंकल बोले बेटा आपके मम्मी पापा ने कहा है कि आज हमें आने में देर हो जाएगी। तुम ही गुड्डी को लेकर आ जाना। वह बोली ठीक है अंकल। अच्छा आप यह बताओ आप का क्या नाम है? उस व्यक्ति ने अपना नाम बता दिया गुडडी बोली अंकल आप कहां के रहने वाले हो? वह अजनबी बात को टाल कर बोला तुम्हारी मम्मी बैंक में काम करती है। वह बोली हां अंकल। तुम्हारे पापा बिजली विभाग में काम करते हैं। वह बोली अंकल हां ठीक है।

तुम हमारे साथ चलो वह बोली ठीक है। मैं आपके साथ चलूंगी। मम्मी ने कहा है कि किसी भी अजनबी से बात नहीं करते। आप पहले मुझे मेरी मम्मी का फोन नंबर बताओ बेटा मैं तुम्हारी मम्मी का तो क्या मैं तुम्हारे पापा का फोन नंबर भी बताता हूं। उसने उसके मम्मी पापा का फोन नंबर उसे बता दिया।

मुन्नी को याद आया कि उसकी मम्मी ने उसे एक सीक्रेट कोर्ड नंम्बर बताया था। वह बोली मेरे मम्मी पापा का सीक्रेट कोड नंबर बताओ वह हैरान होकर उस छोटी सी बच्ची की तरफ देखने लगा। तभी बात बदल कर बोला लो बेटा अपनी मम्मी से बात करो।

मुन्नी को पता चल गया था कि यह कोई अजनबी अंकल है। वह उन्हें कोड नंबर नहीं बता रहा है। उन्होंने बताया था कि यह हमारे अलावा किसी को भी मालूम नहीं होगा।

अंकल मैं अपनी सहेली के यहां दूध दे कर आ जाऊं नहीं तो इसकी मम्मी नाराज होगी। वह बोले ठीक है बेटा। हम तुम्हारा यही इंतजार करते हैं। वह जल्दी से आंटी के घर पर गई आंटी को सारी बात बताई। उसकी आंटी बोली की बेटी तू डर मत। मैं भी तेरे साथ चलती हूं।

तू बात कर लेना देखना तुम्हारी मम्मी की ही आवाज है या नहीं। उसके पति का फोन आया। शिखा अपने पति से बोली कि कनिका ऑफिस में ही है। वह बोला हां यहीं पर है। तुम्हें उससे क्या काम है। वह बोली कि मेरी उससे बात करवाओ। उसके पति ने कनिका के पास फोन दे दिया। शिखा ने कहा कि अभी तुम्हारी बेटी को किसी अजनबी ने कहा कि तुम्हारी मम्मी पापा का फोन है। उन्होंने तुम्हें बुलाया है। वह यह भी कह रहा है कि आप लोग आज देरी से घर आएंगे। इसलिए वह गुड्डी को कह रहा है अपनी ममी से बात करो।
कनिका बोली आप मेरी बात मेरी बेटी से करवाओ। कनिका बोली बेटा मैंने तुम्हे समझाया था कि कोई भी तुम छोटे छोटे बच्चों को अकेला जानकर नादान समझ कर तुम्हे कोई भी फुसला सकता है। गुड्डी बोली मुझे पता लग गया था कि वह
अंकल मुझे बेवकूफ बना रहें हैं। मैंने सौ नम्बर डायल कर दिया है। पुलिस आती ही होगी।

मैं तब तक उन्हें बातों में उलझा कर रखती हूं। गुड्डी नीचे आ कर बोली अंकल मेरी ममी से बात करवाओ। वह बोला लो बेटा अपनी ममी से बात करो। गुड्डी नें जैसे ही फोन उठाया वह हैरान थी। आवाज तो उसकी ममी की ही थी। आवाज साफ नही आरही थी। वह बोला है न आपकी ममी की आवाज। गुड्डी बोली आवाज तो ममी की है। आंटी भी नीचे पंहुच कर दूर से उसे देख रही थी। गुड्डी सोचने लगी मेरी ममी की आवाज फोन में से चुरा कर इस में डाल दी होगी यह तो बहुत चालाक अंकल है

नीचे आने से पहले गुड्डी नें आंटी को कहा आंटी मैं रसोई में जाकर कर पानी पी लेती हूं। शिखा आंटी बोली बेटा यह भी कोई पूछनें की बात है जा कर पानी पी ले। गुड्डी नेंजल्दी से पानी पिया तभी उसके नन्हे से दिमाग में एक योजना आई। उसने मसालादानी से बहुत सारी लाल मिर्ची का पाउडर जेब में डाल लिया था। गुड्डी ने कहा मुझे मेरी ममी की साफ आवाज सुनाई नंही दे रही है। वह दही देखने वाले अंकल को बोली अंकल शायद अंदर वाले कमरे में सिग्नल होगा। वही चल कर बात करती हूं। वह अजनबी बोला क्यों नंदी अन्दर चल कर बात कर ले। वह अन्दर वाले कमरे में बात करने चली ग्ई। जैसे ही मोबाइल गुड्डी के हाथ में पकड़ाया उस अजनबी को दूसरे मोबाइल पर फोन आया। गुड्डी को साफ सुनाई दिया देरी क्यों कर रहे होजल्दी आओ।
गुड्डी नें तभी मिर्ची का पाउडर उस अजनबी की आंखों में छिड़ दिया। उसका दूसरा साथी बाहर सेक्स से बात कर रहा था। जैसे ही वह अपनी आंखों को मलने लगा गुड्डी ने जल्दी से उस होटल का किराया बंद कर दिया और होटल वाले अंकल को कहा जल्दी तारा लगा दो। इस से पहले ले होटल वाला कुछ समझता पुलिस वह आज पंहुच ग्ई। उन्होंने उन गैन्ग के लोंगों को गिरफ्तार कर लिया। गुड्डी को गोद में ले कर बोला कौन कहता है बेटियां बहादुर नहीं होती यही तो हमारे घरों का नाम रौशन करती हैं। इन्हें शिक्षा से वंचित नंही रखना चाहिए। गुड्डी के ममी पापा अपनी बेटी की बहादुरी पर बहुत खुश हो कर बोले यह बेटी किसी बेटे से बढ कर ही है। वक्त पडनेपर यह किसी भी मुश्किल का सामना करनें के लिए तत्पर रहती हैं। गुड्डी को उसकी बहादुरी के लिए उसे सम्मानित किया गया। उसे पचास हजार रुपये ईनामस्वरुप दिए गए। वह बडी हो कर एक पुलिस इन्सपैक्टर बनी।

बुद्धू राम का कारनामा

किसी गांव में एक भोला भाला आदमी रहता था। वह बुधवार को पैदा हुआ था इसलिए उसकी मां ने उसका नाम बुधराम रखा था। बाद में सब लोग बुद्ध राम न कह कर उसे सब बुद्धू राम बुलाते थे। इतना भोला था कि वह किसी को भी तंग तो क्या करना किसी को भी कुछ नहीं कहता था। उसकी मां को अपने बेटे की बहुत चिंता होती थी इसके लिए वह सोचती थी कि वह लड़की ही शादी के लिए ठीक रहेगी जो इसकी बात माना करें। नहीं तो उसके बेटे की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। उसने अपने बेटे के लिए एक ऐसे ही भोली सी लड़की ढूंढ ली। अपनी बेटे की शादी उसके साथ करवा दी। उसकी मां उसे जो भी कहती वह काम करता था। अपनी मां को इन्कार करना उसे आता नहीं था।

एक बार गांव के भोले भाले बुद्धू को गांव के कुछ दोस्तों ने कहा कि अच्छा हम तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहते हैं। चलो आज हमारे साथ चलो हम देखना चाहते हैं कि तुम कितने काबिल हो। हमारा एक दोस्त बिमार है उसको पेट दर्द हो रहा है।दीनू वैद्य की दुकान से पेट दर्द की गोलियां ले आओ। वह भोलाभाला तो था ही उसे गांव वाले लड़कों ने कहा कि पटमर की गोलियां लानी है। दिनू वैद्य के पास ही मिलती है। उसका घर 4 किलोमीटर की दूरी पर है। भोला भाला बुद्धू राम अपने दोस्त के पेट की दर्द की दवा लांनें वैध के पास चार किलोमीटर पैदल चलकर गया। वैद्य के पास जाकर बोला मुझे पटमर की गोलियां दे दो। वैद्य हैरान हक्का-बक्का उसकी तरफ देख कर बोला। यह कैसी दवाई है? उसका नाम तो मैंने आज ही सुना है। दवाइयां तो बहुत सारी होती है मगर यह पटमर कौन सी दवाई है? तभी एक ग्राहक वैद्य की दुकान पर आया। वैद्य उसको बोला यह पटमर कौन सी दवाई है? वह ग्राहक हंसते हुए बोला यह ठहरा बुद्धू राम उसके दोस्त ने उसे बेवकूफ बनाने के लिए ऐसे ही मजाक में कह दिया होगा।पट का मतलब होता है जल्दी, मर का मतलब होता है खत्म।
दूसरे रोगी ने उससे पूछा कि तुम्हें यहां पर किसने भेजा। उसने कहा कि हमारे दोस्त के पेट में दर्द है इसलिए मेरे दोस्तों नें मुझे कहा कि तुम जल्दी से पटमर की गोलियां ले कर आओ। वह भी हंसने लगे। उन्होंने ऐसी दवाई मंगाई होगी जिससे पेट दर्द समाप्त हो जाए। पेट दर्द की दवाई दे दी और कहा कि यही है पटमर की गोलियां। घर आकर उसने अपनी मां को सारा किस्सा सुनाया। उसके सारे के सारे दोस्तों नें उसका मजाक उड़ाया और सब के सब जोर जोर से हंसनें लगे।

उसकी मां बोली तुम इतने भोले हो कि सब तुम्हारा बेवकूफ बनाना चाहते हैं। तुम मुझसे पूछ कर ही काम किया करो। वह बोला हां मां। वह अपने मां के कहे मुताबिक काम करने लगा एक दिन उसकी पत्नी ने उससे कहा कि जा धनिया लेकर आओ। उसकी पत्नी शहरी लड़की थी। उसे मालूम नहीं था धनिए को पहाड़ी भाषा में क्या कहतें हैं। वह गांव में। जाकर धनिया को बुलाकर ले आया। उसकी पत्नी हंसते-हंसते अपने पति को बोली अरे पगले सब्जी वाला धनिया मंगवाया। जो सब्जी दाल में पड़ता है। परंतु तुम तो धनिए को बुला कर ले आए। उसकी पत्नी ने अपनी गांव की भाषा में एक दिन कहा कि बिजली जला दो। उसे जला तो सुनाई नहीं दिया वह अपनी बहन बिजली को बुला कर ले आया। उसकी मां उसकी हरकत देख रही थी वह बोली भोले राम तू रहा नीरा का नीरा बेवकूफ। बुद्धूराम तेरा नाम ठीक ही रखा है बुद्धू राम।

उसकी पत्नी अपने पति की इन हरकतों से परेशान आ गई वह बोली मैं कुछ दिनों के लिए मायके जा रहे हूं। अपने मायके चली गई।कुछ दिन तो अच्छे ढंग से गुजरे। थोड़े दिनों बाद बुद्धू राम और भी उदास रहने लगा। उसकी मां को महसूस हो गया कि उसको अपनी पत्नी की याद आ रही है। उसने अपने बेटे से कहा कि तुम्हें अगर अपनी पत्नी की याद सता रही है तो तुम उसकी ससुराल जाओ। वह मान गया उसने उसने अपने बेटे को समझाया कि अपनी ससुराल में जाकर हां और ना के सिवा कुछ भी नहीं कहना। तुम्हारी सास तुम्हे खाने के लिए तो जो कुछ भी रूखा-सूखा दे ज्यादा नखरे मत करना। जो भी रूखा-सूखा मिले वही खाना। वह बोला हां।
वह अपनी ससुराल पहुंच गया। उसकी पत्नी उसको देख कर खुश हो कर बोली मैंने तो सोचा था कि जब तुम मुझे लेने आओगे तभी मैं तुम्हारे साथ चलूंगी। शाम को जब उसकी सास ने उसको पूछा कि तुम अपनी पत्नी को लेने आए हो। वह बोला हांजी। घर में सब कैसे हैं वह बोला। नां जी। उसकी पत्नी जल्दी से अपनी मां से बोली कि इनके कहने का मतलब है कि मां जी ठीक नहीं है। उसकी मां बोली तुम्हारी मां ठीक ठीक है। वह बोला नां जी। उसकी सास बोली उन्हें क्या हुआ? उन्होंने दवाई ली या नहीं वह बोला नां जी। उसकी पत्नी बोली इसलिए नही ली होगी क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चला होगा कि कौन सी दवाई पहले लेनी है? इसलिए ही वह मुझे लेने आए हैं।

मां जी यह बहुत ही भोला है। उसे यह नहीं पता लगा होगा कि कौन सी दवाई देनी है? उसकी सास बोली यह बात है। वह बोला हां जी। उसकी पत्नी ने बहुत ही झुंझला गई। उसकी सास बोली क्या खाओगे? वह बोला रुखा सुखा बना दो। उसकी सास अपने दामाद की भोली-भाली बातों को सुनकर हैरान हो कर बोली।।
उसकी सास ने शाम को तरह तरह के व्यंजन बना कर कहा खाना खा लो। वह बोला मैं तो कुछ रुखा सूखा ही खा लूंगा। उसकी सास सोचने लगी शायद उसे किसी डॉक्टर ने कहा होगा। यह अपनी सेहत का कितना ख्याल रखता है? एक मेरे घर में बच्चे हैं जो बिना घी के तो बात ही नहीं करते। उसकी सास ने उसे छलीरे की रोटी बना दी। वह भी नमक लगाकर खाने लगा। उसकी पत्नी नें देखा कि वह शर्मा कर भूखा ही उठ गया। रात को उसको बड़ी जोर की भूख लगी वह अपनी पत्नी के पास दौड़ता हुआ गया। पेट पर हाथ फेरते हुआ बोला भूख। उसकी पत्नी ने कहा शाम को यह सारा ड्रामा क्यों किया? खाना क्यों नहीं खाया?
रात को उसको जब इतनी भूख लगी तो उसकी पत्नी बोली हमारे घर के साथ वाले कमरे में एक पशुओं को बांधनें के लिए एक कमरा है। उसके साथ वाले कमरे में एक शहद का एक घडा है। उस कमरे में जाकर शहद पी लेना।

वह दौड़ा दौड़ा रात को उस कमरे में पहुंच गया।। उसने देखा छज्जे पर एक घड़ा लटक रहा था। उसने उसमें छेद कर दिया और शहद को दोनों हाथों से पीने लगा। और घड़े को कहने लगा बस कर बस कर। उसे नींद भी बड़े जोर की आ रही थी। वह साथ वाले कमरे में गया। वहां पर वह भेड़ों की ऊन रखी की हुई थी। उसी पर उसको नींद आ गई । उसके सारे के सारे भेड़ों की ऊन उसके सारे शरीर में चिपक गई थी।

रात को चोरी करने के लिए चोर घर में घुसे वैसे ही उसकी नींद खुल गई। उसने देखा कि उसके तो सारे के सारे भेडों की ऊन चिपकी हुई है। चोर अंदर घुस गए। बुद्धू राम नें उन्हें देख लिया। कोई आया है। वह भी उन भेडों के साथ छुप कर बैठ गया। चोरों ने एक दूसरे को देखा बोले चलो। इस भेडों में से जो बड़ी सी भेड होगी उसे हीे ले चलते हैं। उन्होंने एक बड़ी सी भेड को पसंद कर लिया और उसे बोरी में भरकर ले जा रहे थे। रास्ते में जा रहे थे वह मन ही मन खुश हो रहे थे कि आज तो मौज बन गई। इतनी बड़ी भेड हाथ लगी है। तभी दूसरा चोर बोला बहुत ही भारी है। उस बोरी में से बुद्धू राम बोला संभलकर नीचे रखना मैं हूं। उन्होंने एक दूसरे को देखा बोले क्या तूने मुझे कुछ कहा वह बोला नहीं तो। दूसरा वाला चोर बोला मैंने भी सुना। उस बोरे में से किसी ने कुछ कहा उन्होंने जल्दी से बोरे को खोला। उसमें से बुद्धू राम निकला। उन चोरों ने कहा तुम कौन हो? उन्होंने कहा तुम नें हमें चोरी करते देख लिया है। तुम्हें भी हमारे साथ चोरी करनी होगी अगर तुमने हमारी बात नहीं मानी तो हम तुम्हें मार देंगे। तुम भी हमारे साथ चोरी करने चलो। तुम भी हमारे साथ चोरी करने नहीं चलोगे तो हम तुझे मार देंगे। वह भी उनके साथ चोरी करने चल पड़ा

उन्होंनें बुद्धू राम को कहा कि जब भी तुम्हें कोई चीज चुरानी हो तो भारी सी चीज उठाना। चोरों के कहने का मतलब था कि सबसे महंगी चीज उठाना। परंतु उस बुद्धू राम की समझ में नहीं आया। कि उसे तो भारी वस्तु शील और बट्टे के इलावा कुछ दिखाई नंही दिया। वहां पर उस घर में सबसे से भारी एक शील और बट्टा ही दिखाई दिया। उसने वह उठा लिया। तभी उसको चोरों ने देख लिया और उसे कहा अरे बुद्धू राम यह सिलबट्टा नहीं। हमने तो तुम्हें कहा था कि कोई भारी सी वस्तु अर्थात बहुत ही महंगी वाली वस्तु उठाना। यह तुम क्या ले आए? चलो जल्दी से अगर हमें किसी ने यंहा देख लिया तो बहुत ही बुरा होगा। भूख भी बडी़ जोर की लग रही है। अंदर चल कर देखते हैं। अंदर गए तो वहां पर देखा एक बुढ़िया रसोई में ही खाना बनाते-बनाते सो गई थी। उसने वहां पर खीर बनाई हुई थी और उसने अपना हाथ आगे किया हुआ था। उन्होंनें डट कर खाना खाया।

चोर एक दूसरे से कहने लगे कि यह बुढ़िया भी खीर मांग रही है। झठ से उसने वह खीर उस बुढ़िया के हाथ पर डाल दी। बुढ़िया चिल्लाने लगी हाय मर गई। हाय मर गई। जब वह चिल्लाने लगी तो वह बुद्धू राम तो जल्दी से छज्जे के ऊपर चढ़ गया और बाकी चोर घर के एक कोने में, कोई बिस्तर के नीचे, कोई एक कोने में छिप गया।

सारे मोहल्ले के लोग इकट्ठे हो गए। उन्होंने उस बुढ़िया को पूछा कि क्या हुआ? वह बोली मुझे नहीं पता मेरे हाथ पर गर्म-गर्म किसी ने कुछ फेंका तो मैं चिल्लाई । मोहल्ले वालों ने उससे पूछा क्या तुमने किसी को यहां पर देखा? वह बोली मैं क्या जानूँ। ऊपरवाला जाने। ऊपर बुद्धू राम छिपा हुआ था। वह बोलने लगा ऊपर वाला क्या जाने? जो नीचे छुपे हुए हैं वह जाने। तभी मोहल्ले वालों को पता चल गया था कि वह जो इधर-उधर छुपे हुए हैं वह चोर हैं। वह बुढिया की खीर खा गए।

उन्होंने जल्दी से चोरों को पकड़ लिया। उसकी पत्नी भी वहां पर अपनें पति की आवाज सुन कर पहुंच गई थी। रात को वह अपनी ससुराल में पहुंच गया था। साथ वाले घर में उसकी पत्नी ने लपक कर उसे पकड़ लिया और उसे एक कमरे में बंद कर दिया। उसकी पत्नी ने अपने पति की जान बचा ली थी। दोनों चोरों को पकड़ लिया गया। उसके पति बुद्धू राम ने अपनी पत्नी को सारी कहानी सुना दी थी कैसे वह दोनों चोर उसे भी पकड़ कर ले गए थे? पुलिस वालों नें बुद्धू राम को छोड़ दिया। जब शाम को वह घर आए तो वह बोली कि बेटा तुम कहां चले गए थे? तभी उसकी पत्नी बोली कि वह अपनी मां की दवाई लेने चले गए थे। वह अपने पति से बोली जल्दी से अपने बोलने में सुधार लाओ तुम बोलते तो ठीक हो परंतु तुम जुबान क्यों नहीं खोलते ? उसने अपनी पत्नी से कहा कि मेरी मां ने मुझे कहा था कि हां जी और ना जी के ईलावा तुम कुछ मत बोलना। इसलिए मैंने अपनी जुबान नहीं खोली। उसकी पत्नी बोली सचमुच ही तुम मेरे बुदधू राम हो। तुम जैसे भी हो मेरे हो।

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नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर

एक छोटे से गांव में एक व्यापारी रहा करता था। वह छोटी-छोटी वस्तु को बेचने के लिए गांव से दूर दूर तक जाया करता था। व्यापारी का नाम था रोहित। उसका एक छोटा सा बेटा था नीटू। रोहित की मां पुरानी विचारधारा वाली स्त्री थी। कहीं भी जाना हो अगर बिल्ली रास्ता काट जाए तो अपशगुन गिलास टूट जाए तो अपशगुन। वह छोटी-छोटी बातों पर अपने बेटे को कहा करती थी की ऐसी बातें होने पर अपशगुन होता है। उसका बेटा भी अपनी मां की तरह छोटी-छोटी बातों पर यकीन कर लिया करता था। रोहित का एक दोस्त था मोहित। वह दोनों ही व्यापार के सिलसिले में इकट्ठे घर से बाहर जाया करते थे। व्यापार के सिलसिले में गांव से बाहर जाने लगे तो रोहित की पत्नी रीमा उसे पानी देने लगी तो उसके हाथ से शीशे का गिलास नीचे छूट गया। उसकी मां वहां पर आ गई बोली कांच का टूटना अशुभ माना जाता है। रोहित भी कहने लगा हां मां तुम ठीक ही कहती हो।

उसका दोस्त मोहित आकर बोला अरे यार। हर चीज के दो पहलू होते हैं। अच्छा और बुरा जैसा वस्तु के बारे में हम सोच रखेंगे वैसे यह हमें महसूस होगा। कोई अपशगुन नहीं होता तुमने अगर नकारात्मक विचारधारा नहीं रखी रखी हो तो तुम यह भी तो सोच सकते थे कि कोई बात नहीं गिलास ही था। टूटने की वस्तु है। इस बहाने घर में नया गिलास आ जाएगा। उसकी मां बोली गिलास टूट गया तो पैसे भी खर्च होंगे। हमारे सोचने का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। उसकी पत्नी ने उनके सामने खाना रख दिया खाना खा ही रहे थे तभी उसका बेटा दौड़ता दौड़ता आया उसने खाने की प्लेट नीचे गिरा दी। उसमें से थोड़ा सा खाना नीचे गिर गया। उसके बेटे नें यह सब देख लिया। कहीं पापा मुझे मारे ना इसलिए उसने वह अन्न नीचे से उठाकर प्लेट में खाना डाल दिया। उसके पापा बोले बेटा तुम देख कर काम क्यों नहीं करते? आज का दिन शुभ नहीं है। उसकी पत्नी ने जो आज अनाज गिरा था वह किनारे रख दिया। बाकी प्लेट में खूब सारा खाना था उसका पति बोला यह प्लेट तुम लेकर जाओ। मैं गिरा हुआ खाना नहीं खाता। उसकी पत्नी बोली जो नीचे गिरा था वह तो मैंने किनारे रख दिया। वह बोला मैं नीचे गिरी वस्तु किसी भी वस्तु को नहीं उठाता। अशुभ होता है।

उसकी मां ने उसके दिमाग में नकारात्मकता भर दी थी। वह उस विचारधारा से बाहर निकलने का कभी भी प्रयत्न नहीं करता था। मोहित बोला अरे यार जब तुम किसी होटल में खाना खाते हो तुम्हें क्या पता वह होटल का मालिक तुम्हें ना जाने कितने लोगों का झूठा खाना खिलाता है? रोहित बोला मैं खाना नहीं खाऊंगा। उसने अपने प्लेट वापस कर दी। वह अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर चल पड़ा।

उसकी पत्नी काफी दिनों से मायके नहीं गई थी वह अपनी पत्नी से बोला चलो तुम्हें और नीटू को साथ ले चलता हूं। तुम हमेशा कहती रहती हो मुझे मायके नहीं ले चलते। आज तुम्हारी इच्छा को पूरी कर ही देता हूं। चारों चल रहे थे काफी दूर निकल आए तो उसकी पत्नी बोली यहां पर किसी पेड़ की छाया में बैठकर विश्राम कर लेंतेंहैं। सर्दियों के दिन थे उसने अपनी गठरी में इतनी स्वेटर दस्ताने और टोपियां रखी थी। उन्हें बेचने जा रहा था। उन्हें कुछ दूरी पर जाने पर एक पीपल का पेड़ दिखाई दिया। वहां पर पहुंच कर वह व्यापारी बोला मुझे तो बड़ी सर्दी लग रही है। हवाएं भी बड़ी तेज चल रही है। घर से मोटे कपडे भी नहीं ले कर आए। सर्दी से हम कांप रहे हैं। काश धूप निकल जाती। कितना अच्छा होता? उस पेड़ के पास ही एक होटल था। उसकी पत्नी बोली यहां पर बैठ कर खाना खा लेते हैं। चारों ने वहां पर होटल में बैठकर खाना खाया। जब वह वापस पीपल के पेड़ के नीचे आए तो देखा उनकी गठरी वंहा नहीं थी। व्यापारी बहुत ही उदास हो गया। मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर गया। नीटू बोला पापा इस वृक्ष की शाखा पर देखो। पेड़ पर बंदर उसके स्वेटर और टोपियों का बैग लिए बैठे थे। व्यापारी रोने लगा। उसकी पत्नी बोली रोने से काम नहीं चलेगा। कोई तरकीब सोचो। हम अपनी वस्तुओं को इन से कैसे प्राप्त करें। बच्चा बोला पापा यह तो मैं करके बताता हूं। हमारी मैडम ने हमें बताया था कि बन्दर तो नकलची होतें हैं। वह दूसरों की नकल करतें हैं। नीटू ने अपनी निकर खोल दी और नीचे फेंक दी। बंदरों ने उसे ऐसा करते देखा। उन्होंने उसके स्वेटर नीचे फेंक दिए। व्यापारी दौड़ा दौड़ा गया उसने सारे स्वेटर मफलर दस्ताने अपने बैग में रख दिए। तभी उसका दोस्त बोला भाई जान एक बात पूछूं। आपने तो कहा था कि मैं किसी गिरी वस्तु को नीचे से नहीं उठाता। उसका दोस्त मजाक करते हुए बोला। अब तो तुम इन सारी वस्तुओं को मुझे दे दो। रोहित कुछ नहीं बोला उसके पास कोई जवाब नहीं था।

मैं रास्ते से चले जा रहा था। अपनी पत्नी को स्टेशन पर छोड़ने जाने लगा तो रास्ते में बिल्ली रास्ता काट गई। रोहित फिर रुक कर बोला मेरे साथ कुछ बुरा होगा। मोहित बोला बुरा बुरा बुरा कुछ नहीं होगा। रास्ते से जाते हुए उन्हें एक शुद्र महिला दिखी। उसे देखते ही रोहित बोला। यह महिला ही दिखाई देनी थी। ना जाने आज क्या होगा? मोहित को मालूम हो गया था यह एक शुद्र महिला है। क्यों कि रास्ते में उस से औरतें कह रही थी बीवी जी दूसरी औरत अपनें बच्चों से तुम्हारे बारे में कह रही थी उस सामनें वाली आंटी के घर चाय मत पीना। वह एक शुद्र महिला है। मुझे तो उसकी सोच पर गुस्सा आ रहा था। । उच्च जाति और नीच जाति यह तो मनुष्य की सोच का नजरिया है। सभी जातियां एक जैसी हैं फिर भेदभाव कैसा। उसका दोस्त मोहित बोला मैं तुम्हारे मन में यह नकारात्मक विचार कहां से निकालूं।।

निक्कू आगे-आगे बढ़ता जा रहा था चार-पांच कुत्तों को देखकर वह डर गया उसने एक मोटा सा पत्थर उस कुत्ते पर मार दिया कुत्ते ने उसे काट खाया। मोहित जैसे ही अपने बेटे को बचाने भागा तो उसका पर्स गिर गया और उसकी गठरी भी नीचे गिर गई। उसे कुछ भी ध्यान नहीं रहा। वह तो अपने बच्चे को बचाने के लिए दौड़ रहा था। तीनों के पास रुपए नहीं थे। कहां जाएं? क्या करें? तभी सामने एक घर दिखाई दिया। वह जल्दी से उस घर में चले गए वह बोले क्या कोई घर में है? हमारे बेटे को कुत्ते ने काट खाया है। हम इस गांव में बिल्कुल अजनबी है। हमारा सब कुछ अपने बेटे को बचाते बचाते नीचे गिर गया। क्या कोई पास में ही अस्पताल है? घर की मालकिन आई और बोली साहब आप जाति के क्या हो? मैं आप लोगों की खातिरदारी करती हूं। मगर मैं आपको बता दूं कि मैं एक शूद्र महिला हूं। मोहित ने पहचान लिया। वह तो वही औरत है जो रास्ते में मिली थी। मोहित ने सारी कथा सुना दी कि कैसे मेरे दोस्त की गठरी और उनका पर्स सब कुछ निचे गिर गया। रोहित की पत्नी बोली इनमें के घर में तो हमारे घर से भी ज्यादा सफाई है। मैं तो इनके घर चाय अवश्य ही पी लूंगी।

रोहित की पत्नी बोली बहन क्या एक गिलास पानी मिलेगा? मोहित ने उसे देखकर अपनी पत्नी की तरफ गुस्से भरी नजरों से देखा। जब वह पानी लेने गई तब रोहित बोला तुम्हें क्या यही पानी पीना था? मोहित बोला अरे यार अब तो चुप कर। वह पानी लेकर आई। रोहित ने भी चुपचाप बड़ी मुश्किल से पानी पिया। वह बोली मैं आपको चाय बना कर लाती हूं। मैं अपने पति को कहकर तुम्हें अस्पताल पहुंचाती हूं। तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो।

अतिथि तो भगवान का दूत होता है। जब मैं रास्ते से आ रही थी तो रास्ते में मुझे एक गठरी और पर्स मिला था। बाबू जी यह पर्स सौर गठरी आपकी तो नहीं। वह खुश हो रहा बोला हां यह तो मेरा ही है। बहन जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद। रोहित उसकी तरफ हैरान हो कर देख रहा था थोड़ी देर जिस औरत को वह अपशकुन कह कर उसकी शक्ल नहीं देखना चाहता था वह ही उसे अपनी सबसे बड़ी हितैषी नजर आई। उसने सोचा मेरा दोस्त सच ही कहता है हमें अपने मन से नकारात्मक विचारों को स्थान नहीं देना चाहिए। हम किसी भी चीज को अगर सकारात्मक तरीके से देखेंगे तो हमारे मन में सकारात्मक करता की भावना पैदा होगी। वह चाय लेकर आ गई थी।

रोहित बोला भाभी जी पकोड़े तो बहुत ही स्वादिष्ट लगे। मोहित अपने दोस्त की तरफ आश्चर्य भरी नजरों से देख रहा था। थोड़ी देर में ही उसके दोस्त का सोचने का नजरिया बदल गया था। उस शुद्र महिला ने उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया। वहां पर डॉक्टरों ने उसे टैटनैस का इन्जैक्शन लगा कर उसे छोड़ दिया। रोहित अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ने जा रहा था तभी उसके बेटे नीटू नें जोर से छींक दिया। मोहित उसकी तरफ मजाक करते हुए बोला अरे यार तुम रुके नहीं । वह भी मुस्कुराया बोला चल हट पगले। अपनी पत्नी और बेटे को हाथ हिला कर उन्हें जाता देखता रहा। आज उसके मन से नकारात्मकता की भावना सदा के लिए मिट गई थी। अपनी पत्नी और बेटे को हाथ हिला कर उन्हें जाते देखता रहा।

अधूरा मिलन

विकी और निकी दो भाई थे दोनों ही सुबह जल्दी उठ जाते थे। उनकी मम्मी उन्हें सुबह जल्दी उठा देती थी क्योंकि उनकी वार्षिक परीक्षा नजदीक आ रही थी। एक घंटा सुबह के पढ़ने के बाद वह रोज दोनों बगीचे में सैर करने आ जाते थे। बगीचा घर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर था। वह स्कूल से लौटने के बाद उस बगीचे में काफी देर तक खेला करते थे। उस बगीचे में पीपल के वृक्ष पर एक प्रेत रहता था। वह उन दोनों का दोस्त बन चुका था। वह जब भी बगीचे में आते तो वह उन दोनों को खेलते देखता रहता था। उन दोनों को खेलते देखता तो वह खुशी से झूम जाता था। एक दिन तो उन दोनों के सामने आ ही गया बोला मैं तुम दोनों को खेलता देखता हूं तो मेरा भी तुम्हारे साथ खेलने को मन करता है। वह दोनों कहने लगे अगर तुम हमसे दोस्ती करना चाहते हो तो तुम दोनों को किसी से भी यह कहना नहीं होगा कि मैं इस पेड़ पर मैं रहता हूं।तुम अगर किसी से कह दोगे मैं तुम्हें भी दिखाई नहीं दूंगा। तुम मुझसे वादा करो कि तुम यह बात किसी को नहीं बताओगे तभी तुम्हारे सामने आकर मैं तुम्हें दिखाई दूंगा और किसी को भी मैं दिखाई नहीं दूंगा। उन दोनों भाइयों ने उस दिन उस भूत से कहा कि हम तुमसे वादा करते हैं। तुम यहां पर रहते हो हम यह किसी से भी नहीं कहेंगे। वह प्रेत उनके सामने प्रगट हो गयाऔर उन दोनों भाइयों ने उससे दोस्ती कर ली। वह रोज बगीचे में उनके साथ खेलने लगता। एक दिन वह दिन बहुत उदास होकर बैठा था उन दोनों भाइयों ने उसको कहा दोस्त तुम उदास क्यों हो?वह बोला यह एक दर्द भरी कहानी है।

मैं अपनी सारी कहानी सुनाऊंगा। वह अपनी कहानी दोनों भाइयों को सुनाने लगा,। यंहा से 7 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर है जिसका नाम है दौलतपुर। बात उन दिनों की है कि जब मैं भी दौलतपुर में पढ़ता था। मेरी अच्छी खासी जिंदगी व्यतीत हो रही थी। मैंने स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली। इसके बाद अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉलेज में मुझे एक लड़की से प्यार हो गया। वह भी एक ऑफिस में काम करती थी। जिस औफिस में वह काम करती थी उस का बॉस मेरी प्रेमिका से शादी करना चाहता था। मेरी प्रेमिका ने मुझे सारी बात बता दी थी। उसने मुझसे ही शादी करने का वादा किया। शादी वाले दिन भीे उसके बॉस ने हंगामा खड़ी करने की कोशिश की। किसी ने किसी तरह हम दोनों नें शादी कर ली। शादी हो चुकी थी मैं अपनी पत्नी सुमन को बहुत प्यार करता था। शादी के बाद जो हुआ अपने ऑफिस में जब वह अपने बॉस से छुट्टी मांगने गई तो उसके बॉस ने उसे छूटटी देने से मना कर दिया। उसका बौस उससे शादी करना चाहता था। वह पहले से ही शादीशुदा थाऔर दो बच्चों का पिता था। सुमन की सुन्दरता पर फिदा हो गया था। वह हर किमत पर उसे अपना बनाना चाहता था। उसने सुमन से कहा कि तुमने उससे शादी करके अच्छा नहीं किया। मैं अब उसे छोड़ूंगा नहीं। सुमन ने सारी बात अपने पति को बता दी। मैंनें कहा कि तुम डरो नहीं। मुझे कुछ नहीं होगा।

शादी के 6 महीने भी नहीं बीते थे कि सुमन के बौस नें मुझे मरवा दिया और गाड़ी से एक्सीडेंट करवा दिया। उसने धोखे से मुझ को मार दिया। सुमन के ऊपर तो दुःख का पहाड़ टूट पड़ा। मैंनें नें यम राज से प्रार्थना की कृपा करके मुझे थोड़ी मोहलत दे दो अभी तो मेरी नई-नई शादी हुई थी। शादी को थोड़े ही दिन हुए थे। मेरी पत्नी सुमन का मेरे इलावा कोई नहीं है। वह मां बनने वाली थी। वह अब कैसे जी पाएगी।? यमराज जी मैं आपके पांव पकड़ता हूं। आप मेरा खाता खोल कर देख लो मैंने अपनी जिंदगी में मैंनें किसी को भी नंहीं मारा और ना किसी का दिल दुःखाया। यमराज जी आप बहीं खाता खोलकर देख लो। यमराज ने उस से कहा मैंने तुम्हारा सारा बहीखाता खोलकर देखा। मैं तुम्हें प्रेत बना देता हूं। तब तक तुम किसी भी वृक्ष पर रह सकते हो। अपनी इच्छा से थोडे समय के लिए तुम जैसा बनना चाहो बन सकते हो। जैसे ही तुम्हारा बदला पूरा होंगा तब मैं तुम्हें लेने आऊंगा। तुम्हारे अच्छे काम की वजह से मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं। तुम्हारी कहानी सुनने के बाद मेरा दिल पिघल गया। तुम अपनी पत्नी के हत्यारों को सजा दिलवा कर जल्दी से यहां आना। तब तक तुम जा सकते हो। उस दिन के बाद में मैं अपनी पत्नी की खोज में रहता हूं कि कैसे उसकी मदद करूं?
मैं उन दोंनो भाइयो को अपनी कहानी सुना रहा था कि शादी के कुछ दिन शेष थे। सुमन नें अपने बौस से कहा कि मैं अपनी तनख्वाह लेना चाहती हूं। उसके बौस नें कहा कि तुम्हें यह फॉर्म भरना पड़ेगा। उसके बॉस ने उसके पति समर्थ पर झूठा केस करवा दिया। उस फार्म के निचले कागजों पर लिखा था कि मैं सुमन अपनी शादी के लिए रुपये निकलवाना चाहती हूं। इसके लिए मैं औफिस का अधिकारी भवानीप्रसाद इसको ₹40, 000 देता हूं। 20, 000 जो ज्यादा आए थे वह थोड़ा थोड़ा करक चुका देगी। सुमन ने बिना पढे ही कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए। वह अपने बॉस के इस व्यवहार से बहुत खुश थी। उसका बौस उसे ज्यादा रूपये दे रहा है। उसने जल्दी में शपथ पत्र पर पर हस्ताक्षर कर दिये। और उसने नीचे वाले कागजों पर लिखा था कि सुमन की शादी उस की इच्छा के बगैर हो रही है। जिस के साथ उस की शादी हो रही है उस लड़के ने उस को प्यार का झूठा वादा करके इसके साथ गलत व्यवहार किया। उसके साथ शादी करने के लिए वह तैयार नहीं है। वह उससे शादी का झूठा नाटक कर रहा है इसलिए इसकी जान बचानें के लिए मैं इस लडकी के साथ शादी करने के लिए तैयार हूं। उस जिस दिन सुमन की शादी होने वाली थी उस दिन सुमन के हस्ताक्षर करवा लिए।

उस दिन शादी की बारात लेकर जब मैं आया तो उसके बौस नें सुमन को कहा कि तुम इस के साथ शादी क्यों कर रही हो। तुमने शपथ पत्र फार्म परं क्या लिखा है? उसने वह समर्थ को दिखाया और कहा। समर्थ नें सुमन को कहा कि तुम मुझ पर विश्वास करती हो या नहीं। मैं तुम्हे छोड़ना नंही चाहता।यह तुम्हे मुझ से छिनना चाहता है इसलिए उस नें शपथ पत्र पर तुमसे झूठ मूठ हस्ताक्षर करवा दिये। पुलिस ने आकर समर्थ को जेल में बंद कर दिया। सुमन के बौस ने उसे धमकी दी की तुमने अगर पुलिस को सच बताने की कोशिश की तो हम तुझ को मरवा देंगे। इसलिए सुमन ने अपने पति को बचाने के लिए कुछ नहीं कहा। पुलिस वालों ने उस से पूछा क्या यह बात सच है? सुमन ने डर के मारे कुछ नहीं कहा। सुमन के पति को पुलिस नें पकड कर जेल में डाल दिया। सुमन ने अपनें पति को बता दिया था मेरा बौस ठीक आदमी नहीं है। तुम उस पर नजर रखना। वह तुम्हे भी नुकसान पंहुचा सकता है।

सुमन की औफिस मे एक सहेली थी वह सुमन की पक्की सहेली थी। वह अपनी सहेली को अपनी सारी बाते बताया दिया करती थी। एक दिन जब सुमन अपनी सहेली को रुपये देने उसके घर गई तो उसने अपने बौस की सारी करतूत अपनी सहेली को बताई। उसने बताया कि वह मेरी शादी समर्थ से नही होंने देगा उसने किसी के पास कह रहा था। वह बोली तुम ही मेरी खास सहेली हो तुम भी बौस पर नजर रखना। वह अपनें मंसूबे में सफल नंही होना चाहिए। मै तो समर्थ की पत्नी बन कर ही जीऊंगी। उसकी सहेली अनुप्रिया को 10000रु दे कर वापिस आ गई।

जब उसके बॉस को पता चला कि सचमुच सुमन मेरे बच्चे की मां बनने वाली है तो उसने उस से किनारा कर लिया। सुमन नें एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया। अपनी बच्ची को पाकर वह बहुत खुश थी। मुझ को एक साल की सजा हुई थी। उसकी सहेली अनुप्रिया नें भी पुलिस में जा कर उसके बौस की सारी करतूत बताई। पुलिस वालों को पता चल चुका था कि मुझ को झूठे केस में जेल भेजा गया इसलिए उन्होंने मुझे छोड़ दिया। जब मैं जेल से छूटने वाला था तो उसे पता चला कि उसका बौस मेरी पत्नी को अपनाने के लिए तैयार हो चुका था। उसने मेरी पत्नी से कहा कि तुमने मरी हुई बच्ची को जन्म दिया है। वह उसकी बच्ची को अनाथालय में छोड़ने की सोचने लगा।उसके बौस नें कहा अगर जेल से छूटने के बाद तुम अपनें पति से तुमने मिलने की कोशिश भी की तो तुम्हारी नौकरी से सदा के लिए छुट्टी कर दूंगा।

एक दिन उसनें चुपचाप मेरी बच्ची को ले जा कर अनाथालय में छोड़ दिया। अपने कुछ दोस्तों की मदद से मुझ को जब पता चला कि उसकी बच्ची को शोभा अनाथालय में छोड़ा जा रहा है तो वह उस अनाथालय में गया। जहां पर उस बच्ची को छोड़ा था। उसने वहां के अनाथालय कर्मचारी से सिफारिश की। कृपा करके आप इस बच्ची को मुझे दे दो। मैं इस बच्ची को लेकर कहीं दूर चला जाऊंगा। जो आदमी आप को इस बच्ची के बहुत सारे रुपये दे कर गया है वह उस की बच्ची नहीं है। वह मेरी और मेरी प्यारी प्यारी पत्नी सुमन की निशानी है। उस के बौस नें शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवा के झूठे केस में मुझे फंसा दिया। और मेरी प्रेमिका से शादी करने का फैसला कर लिया। इसलिए वह इस बच्ची को अपनाना नहीं चाहता। मैं एक साल के बाद जेल से रिहा होकर आया हूं लेकिन मैं अपनी बच्ची को अनाथालय में नहीं रहने दूंगा। आप मेरा डीएनए टेस्ट भी कर सकते हैं। अनाथालय के कर्मचारियों को पता चल चुका था कि वह उसकी बेटी है इसलिए उसने उस बच्ची को मुझे दे दिया। मै अपनी बच्ची को लेकर दूसरे शहर में चला गया। जिस दिन उसका बौस जबरदस्ती सुमन से शादी करने जा रहा था मैं चुपके से अपनी पत्नी से मिलने आया। उसे अपनी बेटी के बारे में बताया कि हमारी बच्ची मेरे पास है। वह फिर तुम्हें धोखा दे रहा है। उसने तुम्हारी बच्ची के बारे में तुम से झूठ कहा कि वह मर गई है। उसने हमारी बच्ची को अनाथालय मे डाल दिया और तुमसे झूठ कहा कि वह मर गई है। सुमन के सामने अपने बॉस की असलियत आ चुकी थी। मैंने अपनी बच्ची को तुम्हारे बारे मे सब कुछ बता दिया।

वह किसी ना किसी तरह मेरे साथ भाग जाना चाहती थी। जब मै अपनी पत्नी से मिलने उसके घर जा रहा था। उन्हें भागते हुए उसके बॉस ने देख लिया। उसने एक बार फिर मुझ पर हमला किया और मुझे मार दिया। जब मै मर गया तो एक बार भाग्य नें फिर हम दोंनों को एक दूसरे से सदा के लिए अलग कर दिया। सुमन को अपनी बच्ची के लिए जीना था। वह अकेली नहीं थी। मैंने अपनी बच्ची को अनाथालय से निकाल कर अपनी पत्नी की गोद में डाल दिया। उसे अपने मां और बाप दोनों का प्यार दिया था। उसकी गोद में सौंप कर गया था। अपने प्राणों की आहुति दे कर मैंने अपनी बेटी को बचा लिया था।

सुमन अपनी बेटी को लेकर अलग रहने लगी थी। उसने अपने बॉस को कहा कि अगर तुमने मुझसे शादी करने की कोशिश की तो मैं अपने आप को समाप्त कर लूंगी। उसकी बच्ची भी बड़ी हो चुकी थी। कॉलेज जाने लगी थी उसकी बेटी ने बताया कि इतने साल तक पापा ने मुझे मां बापू की कभी कोई महसूस कमी महसूस नहीं होने दी। हर बार वह तुमसे मिलना चाहते थे।वह हर बार आंखों में आंसू भरते हुए कहते थे कि बेटा अगर हम तुम्हारी मां से मिलने गए तो वह बहरुपिया बौस हमें मार देगा। उसने अपनी बेटी को कहा मैं अपनी पत्नी को तो अवश्य पा कर ही रहूंगा चाहे मुझे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। चाहे मेरी जान ही क्यों ना चली जाए। मैं अपनी सुमन से मिलने जरूर जाऊंगा। जब आपसे मिलने आए आने लगे तो एक बार फिर उसके बॉस को पता चल गया। उसने सचमुच ही मेरे पिता की जान ले ली। यह कहते-कहते बेटी की आंखों में आंसू छलक गए। मरने के पश्चात वह अपनी बेटी और अपनी पत्नी से मिलने के लिए उत्सुक था।

इसलिए ही वह दोबारा वापस आया था। यमराज नें भी उसके अच्छे काम की वजह से उसे कुछ महीने का वक्त दिया था।

विकी और निकी की सहायता से मैं अपनी बेटी के घर गया। विक्की और निकी ने दरवाजा खटखटाया। एक लड़की ने दरवाजा खोला। उसने कहा कि हम तुम्हारे साथ एक कार्यक्रम में भाग लेना चाहते हैं। हमने कॉलेज में तुम्हारे इतने नाटक देखे आशा है की तुम हमें निराश नहीं करोगी। हमने आपको दीदी कहा है। आज से तुम मेरे दोनों भाई हो। उसने उन दोनों को अपनी मां से मिलवाया। निशा ने कहा तुम कौन से नाटक में हिस्सा लेना चाहते हो। हम तुम्हारे साथ स्टेज पर नाटक करेंगे। उसने सारी कहानी निशा की मां और उसके पिता की सारी कहानी कॉलिज के स्थल पर दिखा दी। कॉलिज में सैंकड़ों की तादात में लोग नाटक देखने आए। निशा की ममी नाटक देखते देखते रो पडी। उसके सामने एक बार फिर सारी यादे ताजा हो गई। कॉलिज में जब प्राधानाचार्य नें निशा को शील्ड दी तो मै भी वहां नाटक देखने मौजूद था। मेरी आंखों से झरझर आंसू बह निकले। वह खुशी के आंसू थे। अपनी बच्ची और अपनी पत्नी से मिल कर मुझे बहुत ही खुशी हो रही थी। मैं अपनें आंसू को अन्दर ही अन्दर छिपानें का प्रयत्न कर रहा था। मैं नाटक देखनें अपनी पत्नी के साथ ही बैठा था। वह मुझे देख नही सकती थी। मैं तो उसे देख कर खुश हो रहा था।

सुमन की मां ने अपनी बेटी से कहा बेटा तुम्हारे कॉलेज की फीस डिपाजिट करने का कल आखिरी दिन है। मैंने अपनी सहेली अनुप्रिया को कभी रुपए दिए थे। उससे वह रुपये मैं लेकर आना चाहती हूं। निशा ने कहा कि मां मुझे बताओ कि आप नें रुपये किस से वापस लेने हैं। उसकी मां ने निशा से कहा कि मेरी सहेली अनूप्रिया है। जब तुम्हारे पापा जिंदा थे तब उन्होंने मेरी सहेलीको 10,000रु दिए थे।

मां नें निशा को कहा तुम्हारे कॉलिज की फीस डिपॉजिट करनें का कल आखिरी दिन है। मैंने अपनी सहेली अनुप्रिया को कुछ रुपये दिए थे। उन से मैंरुपये ले कर आना चाहती हूं। उनको याद भी होगा या नहीं। परंतु मैं अपने रुपये लेकर आती हूं। उनका घर यहां से छः किलोमीटर की दूरी पर है।
विकी और निकी अनुप्रिया आंटी के घर जाने के लिए तैयार हुए। विकी और निकी ने कहा कि वह तो मेरे घर के पास ही रहती है। हम उन से रुपए लेकर आएंगे। दूसरे दिन मैं ने कहा कि उनसे पूछो कि तुम्हें किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं है। विकी और निकी नें कहा कि आंटी जीआपको किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं है। दूसरे दिन विकी और निकी नें रुपये लेकर निशा को दिलवाया।

सुमन के बौस का बेटा निशा से प्यार करने लग गया था। इतने साल बाद फिर सुमन को एक बार फिर भाग्य ने उस के बौस के सामने लाकर खड़ा कर दिया। जब उसे पता चला कि निशा जिस लड़के से प्यार करती है वह कोई और नहीं उसके बौस का बेटा था। उस नें निशा को कहा कि बेटा तुम इस लड़के से शादी करने के लिए इन्कार कर दो। उसके पिता नें ही तुम्हारे पिता और मुझे सदा सदा के लिए एक दूसरे से दूर कर दिया। मुझे ठोकरे खाने पर मजबूर कर दिया। वह बोली मांआप निराश ना हो। मैं इस लड़के से ही शादी करूंगी और अपना बदला लूंगी।

जिस दिन वह रिश्ता लेकर आया तो निशा नें दिनेश को कहा कि एक शर्त पर मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं। तुम अगर अपने पिता की सारी धन दौलत मेरे नाम कर दो तो मैं खुशी-खुशी तुम्हारे साथ शादी करने के लिए तैयार हूं। वर्ना तुम कोई और लड़की देख लो।

दिनेश उससे ही प्यार करता था। भवानीप्रसाद ने एक दिन अपनी सारी धन दौलत अपने बेटे के नाम करवा कर कहा जिन्दगी का क्या भरोसा कब क्या हो जाए इसलिए मैं मरनें से पहले अपनी सारी धन दौलत अपनेे बेटे दिनेश के नाम करना चाहता हूं। दिनेश ने सब कुछ निशा के नाम कर दिया। वह शादी के लिए तैयार हो गई। जब बारात आई तो उसका बौस यह देख कर हैरान हो गया कि निशा तो सुमन की बेटी थी। वह अपने बेटे की शादी किससे करवा चुका था? उसे यह भी पता चल गया कि उसके बेटे ने सारी धन दौलत निशा के नाम कर दी। शादी की रस्में पूरी करनें के पश्चात निशा नें अपने पति को कहा कि अब तुम अपने घर जा सकते हो। मैंने तुमसे शादी बदला लेने के लिए की थी।

तुम्हारे पिता ने मेरे पिता को दस साल की जेल करवाई थी। जब मेरे पिता जेल से निकल कर आए तो मेरे पिता ने अनाथालय से मुझे निकलवाकर मेरी परवरिश की। जब मुझे अपनी मां से मिलवाने के लिए लाए तो तुम्हारे पिता ने एक बार फिर मेरे पिता को मरवा दिया। मैं यह शादी करना नहीं चाहती थी। मैंने तुम्हारे साथ प्यार का झूठा नाटक किया। यह सब अपने पिता का बदला लेने के लिए। आज मेरा यह बदला पूरा हो गया। शादी में विकी और निकी भी आए थे। विकी निकी के साथ निशा के पिता भी आए थे। शादी के मंडप में मनीषा को आशीर्वाद देना चाहते थे। विकी और निकी को उन्होंने कहा कि तुम निशा को उस पीपल के पेड़ के पास लेकर आना। दिनेश, निशा और उसकी मम्मी को इस पीपल के पेड़ के पास लेकर आना। मैं यहां पर उनसे मिलना चाहता हूं। विकी और निकी ने निशा से कहा कि दीदी हम आप को बताएं कि हम आपके पापा से मिल चुके हैं। शादी के जोड़े में वह तुम्हे देखना चाहते हैं। वह अपनी बेटी को आशीर्वाद देना चाहते हैं। वह प्रेत बन कर उस पेड़ पर रहते हैं। वह तुम्हें देखना चाहते हैं। तुम अपनी मां को लेकर वही हमारे साथ चलो। निशा अपनी मां और अपने पति को लेकर अपनें भाईयों के साथ उस बगीचे में ले कर ग्ई। उसको वहां ले जा कर अपने पापा से मिलकर खुशी हुई। उसके पापा ने कहा बेटी अब तुम दिनेश को माफ कर दो। उसे इतनी बड़ी सजा मत दो।वह अपने पापा के गले लगा कर बोली पापा मेरा बस करता मैं उन सब को कडी से कड़ी सजा दिलाती। आपकी आज्ञा को मैं टाल नही सकती।

दिनेश ने अपने ससुर के पैर छुए। सुमन अपने पति को देखकर उसके गले लिपट कर बोली। वह बोली इस जन्म में तो तुम्हें मैं पा नहीं सकी

अगले जन्म में मैं तुम्हारी ही पत्नी बनूंगी। । जाओ तुम भी अपने समधि को माफ कर दो। मैं भी अब शांति से मरना चाहता हूं। मैं अब वापिस लौटना चाहता हूं। सुमन और निशा की आंखों से आंसू छलक रहे थे। अपने पति के कहने पर सुमन नें अपने दामाद को माफ कर दिया। वे उस पेड़ पर से आत्मा को जाते देख रहे थे। सुमन के पति नें और उसकी बेटी ने उन्हें नाम आंखों से विदा किया।

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दो बिल्लियों की लड़ाई

एक थी बिल्ली मुन्नी रानी।
दूजी थी एक टुन्नी रानी।।
दोनों ने की मिलकर चोरी।
लाई कहीं से एक कचौरी।।
मुन्नी कहती सारी लूंगी।
टुन्नी कहती आधी दूंगी।।

दोनों में फिर हुई लड़ाई।
हाथापाई मार कुटाई।।
देख रहा था दूर से बंदर।
नटखट पूरा एक मछंदर।।

मौका पाकर दौड़ा आया।
मुन्नी चुन्नी को धमकाया।।
भाग गई वह डर के मारे।
बंदर के थे वारे-न्यारे।।

खा गया पूरी एक कचोरी।
बच्चों आपस में मत लड़ना।
चोरी करके पेट ना भरना।।

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विचारधारा

रूपेश का तबादला एक छोटे से गांव में हुआ था। वह पेशे से एक अध्यापक था। उसके सहकर्मियों ने उससे शादी की बात चलाई कि हमने तुम्हारे लिए एक लड़की देखी है। वह लड़की इसी शहर अहमदाबाद में रहती है। तुम्हें विन्नी से शादी करने में कोई एतराज तो नहीं। उस लड़की के पिताजी भी पहले गांव में रहते थे। काफी वर्षों के पश्चात वह दिल्ली में ही बस गए थे। सुमन का जन्म भी दिल्ली में ही हुआ। उसमें संस्कार तो अपने माता-पिता के ही थे। तुम कहते हो तो हम उस लड़की के साथ तुम्हारी बात चलाएं। रुपेश ने हां में सर हिला दिया। वह दिन भी आ गया जब सात फेरों के पश्चात बिन्नी उसकी पत्नी बन गई। विनी को भी उसके माता-पिता ने दसवीं तक पढ़ाया। वह जैसे ही घर में दुल्हन बनकर आई सारी औरतों ने उसे घेर लिया था। वह गांव के माहौल से बिल्कुल अनभिज्ञ थी। गांव की औरतों ने उससे कहा बेटा एक बात का हमेशा ध्यान रखना बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेना। वह जब पैर छूने लगी तो उसे कहा कि इस तरह पैरों को नहीं छूते। वह शहरी वातावरण में पली बढी। अपनी पढाई के पश्चात्उसकी शादी गांव में हो रही थी। उसके माता पिता थे तो गांव के। वह औरते बोली बेटा कंहा खो गई। अपनी चुन्नी के पल्लू को लगाकर पैरों को छूते हैं। शादी के 2 दिन हो चुके थे। घर में अभी भी लोगों का आना-जाना चल रहा था। विनी की चुन्नी सिर से नीचे सरक गई। एक वृद्ध महिला ने उसे देख लिया बोली बहू हमारे यहां तो हमेशा सिर पर चुन्नी रखनी पड़ती है। अभी से अभ्यास कर लो वरना तुम्हें बहुत कुछ सुनना पड़ जाएगा।

रुपेश ने विनी को बताया कि मेरे घरवाले रूढ़िवादी विचार के हैं। तुम्हें इनकी बात का मान तो रखना ही पड़ेगा। कहीं ना कहीं मैं भी यही समझता हूं कि तुम्हें हमारे रीति रिवाजों ख्याल रात को तो समझना ही चाहिए। विन्नी ने कहा ठीक है। वह अपने साथ विन्नी को गांव लेकर लेकर आ गया था।
शादी के बाद ससुराल में आई तो सबसे पहले कहा गया कि घूंघट डालकर खाना बनाओ। पहले दिन तो जैसे तैसे घुंघट डालकर खाना बनाया। जब पैर फिसला और गिर गई तब कहीं ससुराल वालों ने कहा बेटा घुंघट थोड़ा निकालो पर निकालो जरूर। खाना बनाते-बनाते चूल्हे में फूंक मारते मारते आंखें ऐसी बन्द हो गई मानो ना जाने कितने दिनों से रोई हो। शादी के दो-तीन दिन बाद गांव की औरतों ने मिलकर कहा कि हमें कुछ बनाकर खिलाओ। उसनें जैसे-तैसे करके हलवा बनाना तो कोई कहता इसमें मीठा ज्यादा है कोई कहता बहुत ज्यादा घी है। कोई कहता जला हुआ हुआ हलवा बनाया है। सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह रसोई में काम करते-करते सबको खाना बनाते-बनाते शाम हो गई। आराम करने का और अपनी ओर ध्यान देने का वक्त ही नहीं मिला। 4:00 बजे सुबह उठ कर पहले रसोई की लिपाई करो। फिर नहाने के बाद खाना तैयार करो। फिर अपने सास-ससुर के पैर छूकर आशीर्वाद लेने के बाद घर का सारा काम करो।

गांव की बड़ी-बूढी कहने लगी कि तुम यहां पर बहू बनकर आ गई हो तो हमारे रीति रिवाज भी तुम्हें समझने पड़ेंगे। सबसे पहले औरों के बारे में सोचो फिर अपने बारे में। जब श्वेता होने वाली थी तो कहा गया कि काम करो तब भी जरूरत से ज्यादा काम लिया गया। एक दिन जब सीढ़ियों पर से पैर फिसला और डॉक्टर ने कहा कि तुम देख कर नहीं चल सकती तब भी गांव वाली जेठानी और सास नें कहा डॉक्टर लोग तो ऐसे ही कहते रहते हैं। तुम्हें कुछ नहीं होगा हम भी तो तुम्हारी अवस्था से गुजरे हैं। तुम ही एक अनोखी औरत नहीं हो जो बच्चे को जन्म देने जा रही हो।

उसकी पत्नी विन्नी बोली मुझे भी नौकरी करनी है। वह बोला नहीं तुम नौकरी नहीं करोगी। वह चुप हो गई। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कहीं उसनें अपनी शादी गांव में करके अपनें पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली हो।

वह नौकरी अवश्य ही करेगी। अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने परिवार का साथ देगी। उसका पति बोला नहीं हमारे यहां घर की बेटियों से काम नहीं करवाया जाता। अगर घर की बेटी किसी पराये पुरष से बात भी कर ले तो भी हीन भावना की दृष्टि से देखा जाता है। उस पर बहुत ही गंदा लांछन लगाया जाता है। विन्नी अपने आप से कहने लगी कि उसके माता-पिता ने उसकी शादी ऐसे व्यक्ति से कर दी परंतु अब तो वह इस व्यक्ति से सदा के लिए शादी के बंधन में फंस गई। यह तो पुराने ख्यालात का है। धीरे-धीरे समय आने पर वह इन में परिवर्तन ला कर ही रहेगी। वह अपने आपको भाग्य के भरोसे छोड़ देगी। धीरे-धीरे समय पंख लगा के उड़ गया। पता ही नहीं चला उसके घर में एक छोटे से मेहमान का आगाज होने वाला है। उनके साथ ही शहर मे आ गई।

रुपेश जल्दी से ही घर आने को तत्पर था आज तो उसको बहुत ही बड़ा खजाना हाथ आने वाला था। वह जल्दी जल्दी अपना काम समाप्त करके घर की ओर रवाना हुआ और मन ही मन सोचने लगा की लड़की होगी या लड़का होगा। लडका होगा तो वह मेरे बुढ़ापे का सहारा होगा। उसे लड़की पैदा हुई तो क्या होगा? उस के सपनों पर पानी फिर जाएगा। जैसे ही वह घर की ओर कदम बढ़ा रहा था रास्ते में उसे बड़ी जोर की ठोकर लगी। वह नीचे गिर कर संभल कर खड़ा हो गया। नहीं मुझे जल्दी से घर पहुंचना है। जैसे उसने अपने घर की घंटी बजाई उसे अपने घर से बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी नर्स ने दरवाजा खोला उसने पूछा कि सिस्टर बताओ क्या हुआ। वह खुश हो कर बोली तुम्हारी पत्नी ने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है। वह सुन्न सा हो गया। उसकी आंखों में खुशी नाममात्र को भी नहीं थी। वह अंदर गया और बिन्नी की तरफ देख कर कहा तुम ठीक हो ना। उसने एक बार भी अपनी बिटिया को गोद में लेकर प्यार नहीं किया। उसके दोस्तों ने तो उसे कहा ओह बेटी हुई है। चलो कोई बात नहीं तुम्हारे भाग्य में शायद बिटिया ही लिखी थी। वह अपने आप को कोसनें लगा कि मैंने क्यों शादी की? बेटे की जगह बेटी पैदा हो गई। बेटे को लेकर उसने ना जाने कितने सपने देखे थे। वह सब मिल कर खाक हो गए।

बिन्नी ने अपने पति को कहा क्या बात है? तुमने अपनी बिटिया को गोद में भी नहीं लिया। क्या बात है? वह रुंधे गले से बोला उसके यहां बेटी का जन्म लेना बहुत ही बुरा माना जाता है। बेटी को पैदा होते ही या तो मार दिया जाता है या उसकी जल्दी ही शादी कर दी जाती है। ताकि वह अपने घर से जितनी जल्दी से जल्दी विदा हो जाए। उसने अगर कोई गलत कदम उठा लिया तो सारे परिवार के दामन में कलंक लग जाता है। विन्नी बोली नहीं मैं ऐसा नहीं मानती। मुझे तुम पर भी दुःख होता है और तुम्हारी सोच पर भी। कहने को तो आप एक अध्यापक हो।आप जब गांव वालो के मन से इस कुरीति को नही निकाल सके तो आप विद्यालय में बच्चों को क्या सिखाओगे। मैं तो अपनी बेटी को आगे अवश्य पढाऊंगी अगर तुम मेरे रास्ते में आए तो मैं तुम्हें भी सदा के लिए छोड़ कर चली जाऊंगी। आज मेरी बात कान खोलकर सुन लो मैं भी नौकरी करूंगी। मैं भी पढ़ी लिखी हूं अपनी बेटी को अच्छी शिक्षा देना मेरा फर्ज है। अपने पति को समझा-बुझाकर अपने बच्ची को पढ़ाने का निश्चय कर लिया। धीरे धीरे वक्त गुजरता गया। उसकी बेटी पांचवी कक्षा में पढ़नें लगी थी

रुपेश सचमुच में हीअपनी बेटी को प्यार नहीं करता था। वह उसे हर समय काम में लगा कर रखता था। वह उसे कहता बेटा चलो बर्तन साफ करो। सफाई करो। झाड़ू लगाते सोच रही थी पापा तो मुझे कहीं भी नहीं ले जाते। उनकी बेटी अपने आप को बिल्कुल अकेला महसूस करती थी। मेरे पापा मुझसे इतना काम करवाते हैं। अपनी सहेलियों को देखती उसके पापा उन्हें छोड़ने स्कूल जाते हैं। उन्हें तरह-तरह के कपड़े दिलवाते हैं। उन्हें ढेर सारी मिठाइयां लेकर आते हैं। सचमुच में ही उसके पापा उससे प्यार ही नहीं करते उसे कुछ भी नहीं समझते। वह तो उसे एक बोझ समझते हैं।

वह आठवीं की परीक्षा पास कर चुकी थी तब उसे सब कुछ समझ आ चुका था कि उसके यहां बेटी का जन्म लेना बहुत ही बुरा माना जाता है। बेटी को पढ़ाना भी पाप समझा जाता है उसे तो बस शादी करके दूसरे घर जाना होता है ताकि उस को विदा कर के अपने घर से सदा के लिए छुटकारा पाए।

एक दिन श्वेता मैडम बच्चों को पढ़ा रही थी कि हमारे समाज में लड़की का पैदा होना अभिशाप है। जिस घर में अभी भी बेटियों को शिक्षा नहीं दी जाती। उनसे बुरा व्यवहार किया जाता है। माता पिता के मन में पुराने संस्कार भरे हुएं है उन सभी के मन से तुम बेटियां हीं अपने माता पिता को रूढ़िवादी संस्कारों मान्यता से बाहर निकाल सकती हो तो मैं समझूंगी कि मेरा लड़कियों को शिक्षा देना व्यर्थ नहीं गया। इस बुराई ने हमारे समाज की व्यवस्था चरमरा दिया है।

जब हमारी नवयुवतियां और नवयुवक अपने मां बाप को अपने बुजुर्गों से इस दकियानूसी संस्कारों को और नकारात्मक विचारों को बाहर नहीं निकालेंगे तब तक हमारी समाज की आधी से ज्यादा लड़कियां पढ़ाई से वंचित रह जाएगी। जब वह पढ़ाई से वंचित रह जाएंगी वह अपने ससुराल जाकर अपने बच्चों को नहीं पढ़ाएंगे। उनमें अच्छे संस्कार नहीं दे पाएंगे। तुमने ही तो अपने माता-पिता के मन से इन कुरीतियों को जड़ से बाहर फेंक कर उन्हें उजाले की किरण दिखानी है।

श्वेता ने अपनी मैडम की बातों को गौर से सुना उन्हें अपने मैडम की बातों में सच्चाई नजर आई क्योंकि वह ही तो सच्चाई का जीता जागता उदाहरण थी। उसके पिता अभी तक उसे वह प्यार नहीं दे पाए जो एक पिता अपनी बेटी को देना चाहता था।

श्वेता ने भी कसम खा ली कि वह अपने पिता को इस बुराई से निकलवाने में उनकी मदद करेगी। वह खूब मेहनत करके पढ़ने लगी। वह कक्षा में प्रथम आई। उसके पिता उसका परिणाम देखकर खुश नहीं हुए। उसे तो यह सब पता ही था कि उसके पिता उसका परीक्षा परिणाम जान कर भी खुशी नहीं मनाने वाले।

श्वेता के पिता के दो दोस्त अंकल थे। वह हमेशा उनके घर आते जाते रहते थे। जब उन्होंने सविता का परिणाम देखा तो भी हक्के-बक्के रह गए। श्वेता ने तो प्रथम स्थान प्राप्त किया था। वह श्वेता के घर आकर बोले कि मिठाई खिलाओ। आपकी बेटी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। साथ ही साथ उन पर व्यंग करते हुए बोले अगर आज आप के बेटा होता तो आपकी खुशी दुगनी होती। चलो कोई बात नहीं दसवीं तक तो उसे पढ़ा ही देना। उसकी शादी जल्दी से जल्दी कर देना। तुमने उस से नौकरी थोड़ी करवानी है। दूसरे दोस्त भी बोले। रुपेश दोस्त प्रथम आने से क्या होता है? नकल करके भी प्रथम आ जाते हैं। तुमने अपनी बेटी को पढ़ लिखकर डॉक्टर थोड़े ही बनाना है। रुपेश उनकी बातों में आ गए। अरे यार तुम दोनों ठीक ही कहते हो। अगर आज बेटा होता तो मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता।

बिन्नी आकर बोली हमारी श्वेता क्या किसी बेटे से कम है? मैं तो इसे बेटे की तरह ही देखती हूं। रुपेश ने अपनी पत्नी को चुप कर दिया। जब हम दोस्त बात कर रहे होते हैं तब तुम बीच में मत बोला करो। श्वेता को अपने पिता की बात बुरी लगी। श्वेता बोली नहीं पापा, आप बिल्कुल गलत सोचते हैं। मैं तो खूब पढ़ूंगी

रुपेश ने अपनी बेटी को डांटकर चुप करवा दिया। श्वेता को दोनों अंकल पर गुस्सा आ रहा था। वह दोनों ही मेरे पापा को भड़का रहे हैं। वैभव और विनय अंकल की बात उस नन्ही सी श्वेता को चुभ गई। वैभव और विनय अंकल की बेटे भी उनके साथ स्कूल में पढ़ते थे। वैभव का बेटा भी उनके साथ स्कूल में पढ़ता था। श्वेता ने सोचा क्यों ना मैं विनय और वैभवअंकल के घर जा कर पता करुं कि वह बेटियों के बारें में इतनी नकारात्मक सोच क्यों रखतें हैं। श्वेता अपने दोस्त अभिषेक के घर गई। वह घर में आते ही बोली आंटी जी नमस्ते। अभिषेक कंहा है। आंटी बोली बाहर खेल रहा है। वह बोली आंटी शाम को मैं उस से मिलने आऊंगी।

वह अपनें घर आकर सोचने लगी कि इन दोनों अंकल ने उसके पापा को क्यों बेवकूफ बनाया? वह कहते हैं कि बेटियों को पढ़ाना नहीं चाहिए मगर वे दोंनो अपने बेटों के बारें में कैसी सोच रखते हैं यह तो उनके घर चल कर पता करना पडेगा। एक मेरे पापा हैं जो दोस्तों के बहकावे में आकर मुझसे नफरत से पेश आते हैं। मुझे आगे पढ़ाना नहीं चाहते। मैं अपने पिता के सिर से झूठ के इस नकाब को जल्दी ही निकाल दूंगी।श्वेता अपने माता पिता को विनय और वैभव अंकल के घर ले कर गई। दोंनो परिवार इकट्ठे रहते थे। वैभव और विनय भाई भाई थे। श्वेता अपने पापा से बोली पापा मै आज आप को अपनें दोस्तों के घर ले कर आई हूं ताकि आप को बता संकूं कि वे लडकियों के बारे में इतनी गल्त सोच क्यों रखते है? उसके ममी पापा उसके साथ चल पडे जैसे ही उन्होंने दरवाजा खटखटाया लाईट गई हुई थी। अन्दर की आवाज साफ बाहर आ रही थी। रुपेश के दोस्त कह रहे थे कि हम तुम दोंनो को बोल बोल कर थक गए पढा करो मगर लगता है तुम दोनों तो मेरी नाक कटा कर ही छोडोगे। तुम दोंनो से अच्छी तो मेरे दोस्त की बेटी है जो इतनी होशियार है। वह तुम से ज्यादा बाजी न मार जाए इसलिए तुम्हे समझाना चाहते है पढा करो। हम अपने दोस्त को उकसाते रहतें हैं कि अपनी बेटी को मत पढाओ।
हमें बहुत दुःख होता है। तुम बेटा होकर हमारा नाम डूबा दोगे। हमारा दोस्त तो गौ है वह क्या जानें हमारी पैंतराबाजी। उनकी लडकी बहुत ही होशियार है। देखना वह डाक्टर बन कर ही रहेगी। रुपेश को अपने दोस्तो की छल कपट की बात समझ में आ गई थी। वह अपनी बेटी को बोला बेटी मै गल्त था जो अपने दोस्तो के बहकावें में आ कर तुम पर न जाने क्या क्या अत्याचार करता रहा। बेटी अब मैंज्यादा देर यहां खड़ा रहा तो मैं अपनें गुस्से को काबू नहीं कर पाऊंगा। ऐसे भी लाईट नही है बैल बजी नहीं होगी।
जल्दी घर चलते हैं। वह अपने ममी पापा के साथ घर वापिस आ गई। आपको तो यह कहकर आपके मन में जहर भर दिया कि आप अपनी बेटी को ना पढ़ाएं। उनकी अपने बच्चों के प्रति क्या राय है? यह तो अब आपने देख ही लिया और सुन भी लिया।

वैभव और विनय की सच्चाई का खुलासा रुपेश को हो चुका था। रुपेश सोचने लगा कि मेरे दोनों दोस्त घर पर आये होते तो उनसे अवश्य पूछता कि तुमने मुझे बेवकूफ बनाया। मैं भी कितना मूर्ख था। सच्चाई बिना जाने ही अपने दोस्तों की बातों में आकर अपनी बेटी के साथ बुरा बर्ताव कर रहा था। मैंने तो उस बेचारी के साथ बहुत ही अन्याय किया। मैं उसे
शिक्षा से वंचित रखना चाहता था। मेरी पत्नी ने पहल नहीं की होती तो मैं अपनी बेटी को जरा भी नहीं पढ़ाता। अपने दोस्तों को तो मैंने देख लिया सामने तो मेरे हितैषी बनते हैं पीठ पीछे वार करते हैं। आज मुझे समझ आ चुका है। वह चुपचाप अपनी बेटी के पास आकर बोला बेटा मुझे माफ कर दो।।

वह बोली जब अंकल एक दिन हमारे घर आए हुए थे तो मैंने छिप कर उन दोनों की बातें सुन ली थी। मैं बाहर बाल्कनी में थी। वे कह रहे थे इस को भड़काने ही पडेगा। अगर वह अपनी लडकी को बाहर पढने भेज देगा तो इस की लडकी तो डाक्टर बन जाएगी। हमारे बेटे तो नालायक हैं ऐसे बेटों से तो बेटियां ही अच्छी है। आपके सामनें कुछ और पीठ पीछे क्या खिचड़ी पका रहे थे। वह तो अब आप को समझ आ ही गया होगा। इसलिए मैं आप दोनों को उनके घर ले कर गई थी। मेरे कहनें से तो आपको ये ही लगता कि मैं झूठ बोल रही हूं।

मैं एक अध्यापक हूं। मैंनें तुम्हें पढ़ने के लिए समय दिया होता तो तुम और भी आगे बढती। तुम तो बहुत ही होनहार हो। तुमने मुझ में परिवर्तन लाकर मुझे एक नई दिशा प्रदान की है। बेटी मैं तुम्हारा गुनहगार हूं। तुम अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान दो।

रुपेश ने अपनी पत्नी को कहा कि मैं भी अपने दोस्तों को कुछ भी नहीं बताऊंगा। उनकी हां में हां मिला लूंगा। श्वेता ने डॉक्टर की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। PMT में सिलेक्ट हो गई। मुकेश ने अपनी बेटी को डॉक्टर की पढ़ाई के लिए भेज दिया। उसके दोस्तों ने रुपए को कहा कि आप अपनी अपनी बेटी को डॉक्टर बनाने के लिए बाहर क्यों भेज रहे हो?उसे डाक्टरी क्यों करवा रहे हो? आप तो कहते थे कि हम अपनी बेटी को नहीं पढ़ाएंगे।

वह बोला कि मेरी बेटी ही मेरी शान है
मैं उसे अवश्य डॉक्टर बनाऊंगा। मैंने अपनी इस परिवर्तन शीलता का असली श्रेय अपनी बेटी को देता हूं ताकि मेरे दिमाग से झूठ की परत खुल सके। मैं अब अपनी बेटी को डॉक्टर बना कर ही रहूंगा। मैं आप दोनों के बहकावे में आ कर अपनी बेटी के साथ बुरा करता रहा। अब मेरी आंखें खुल चुकी है उसकी बेटी डॉक्टर बन चुकी थी। वैभव के पिता ने अपने बेटे की शादी एक रईस बेटी से कर दी वह भी डॉक्टर थी।

अपने दोस्त की बेटी को डॉक्टर बनते देखकर उनसे इच्छा होती थी कि वह अपनी बेटी के लिए डॉक्टर पत्नी ही लाएंगे। जिस लड़की के साथ वैभव के पिता ने अपने बेटे की शादी की वह श्वेता की सहेली थी। वह अपनी बेटी को तो डाक्टर बना नही पाये मगर अपनी डाक्टर बहु ला कर फूला नंही समाए,।

उनके घर में भी खुशियों ने दस्तक दे दी थी। घर में छोटा मुन्ना आ गया था। डॉ सुनीता अपने बेटे की देखभाल नहीं कर सकती थी। वह अपने बेटे को उनके दादाजी के पास छोड़कर जाती थी। एक दिन डॉक्टर सुनीता का बेटा बहुत ही बीमार पड़ गया। डॉक्टर ने कहा कि इसको बच्चों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा। इसको हार्ट की बीमारी है। दिल की बीमारी है। हमारे छोटे से शहर में तो एक ही बच्चों की स्पेशलिस्ट डॉक्टर है। वह है डॉक्टर श्वेता। अगर आप अपने बच्चे को डॉक्टर श्वेता के पास नहीं ले गए तो वह नहीं बच सकता। डॉक्टर श्वेता ही हार्ट की स्पेशलिस्ट हैं। इतना छोटा सा बच्चा।

डॉक्टर सुनीता भी घर पर नहीं थी वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके गई हुई थी। डाक्टर सुनीता का बेटा आशु अपने दादाजी के पास था। उसके दादाजी और वैभव दौड़ते-दौड़ते डॉक्टर श्वेता के क्लीनिक का पता करते-करते उनके घर पहुंचे। परंतु वह भी उन्हें घर पर नहीं मिले घर पर ताला लगा था। वह सीधे डॉक्टर श्वेता के क्लिनिक पर अपने पोते को लेकर गए। वैभव के पिता सोचने लगे कि श्वेता ने हम लोगों से बदला लिया और उसे पता चल गया कि यह वैभव अंकल का पोता है तो वह अपना सारा बदला मेरे पोते से निकालेगी। उनके पिता वैभव से बोले हमें यहां इलाज नहीं करवाना है। हम कहीं और चलते हैं। वैभव बोला नहीं हम यही चलते हैं। और क्लीनिक ढूंढते-ढूंढते अगर मेरे बेटे को कुछ हो गया तो मैं जिंदगी भर अपने को माफ नहीं कर पाऊंगा। आप रहने दो पापा। वैभव का बेटा अनुराग जल्दी-जल्दी श्वेता के क्लीनिक पहुंचा उसने कहा डॉक्टर साहब के मेरे बेटे को जल्दी देखिए। डॉकटरश्वेता बोली आप घबराइए मत आपके बेटे को कुछ नहीं होगा। उसने जल्दी से उसे अस्पताल में दाखिल कर दिया और इंजेक्शन भी लगा दिया। धीरे-धीरे शाम तक उसमें सुधार आ गया। वैभव की ओरदेख कर बोली बाबा आप कहां से आए हैं। श्वेता नें उन्हें नही पहचाना। सविता के पैरों पर पड़ कर बोला बेटा तूने हमें नहीं पहचाना। यह मेरा बेटा अभिषेक और यह उसका बेटा आशु है। मेरा पोता है तुमने मुझे इसलिए नहीं पहचाना मैं बहुत ही बूढा हो चुका हूं। तू तो मेरे दोस्त रुपेश की बेटी है। और अभिषेक भी तुम्हारी सहेली सविता के साथ ही पढता था। वह बोली हां अंकल अब पहचान लिया है। वह डॉक्टर श्वेता के पैर पकड़कर बोला

बेटी हमें माफ कर दो। हमने तेरे साथ बहुत ही अन्याय किया। तुझे हमने बहुत ही गलत समझा। आज तू ने दिखा दिया कि जो काम एक बेटा कर सकता है वह एक बेटी भी कर सकती है बल्कि उससे ज्यादा ही अच्छा कर सकती है। हम तेरे पिता को हमेशा उकसाते रहे अपनी बेटी को मत पढा। बाहर पढ़ने मत भेज। मगर हम गलत हैं। हमारी सोच में नकारात्मकता की बात थी। हम अपने दोस्त की कामयाबी नहीं देखना चाहते थे। हम चाहते थे कि हम ही उससे आगे बढ़े। हमारे अंदर एक अहंकार की भावना थी। अभी भी अपनें मन में यही सोच रहा था हम वंहा नहीं दिखाएंगे। कहीं तुम्हें पता चल गया कि यह वैभव अंकल का पोता है तो कहीं तुम इसके साथ बदला न ले लो। मगर मैं तो बहुत ही गलत था। मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो गलत धारणा पनप गई थी वह सब आज समाप्त हो गई।

तुमने मुझे रुढ़िवादी विचारों को जड़ से फेंकने की सलाह दी है। तुम अपनी जांच की कसौटी में खरी उतरी। मेरी बेटी आज मैं भी अपनी बुरी दकियानूसी विचारधारा को जड़ से फेंक दूंगा। मैंने अभी बुरी रीति-रिवाजों को अभी से बाहर फेंक दिया। मैं अपने आने वाली पीढ़ियों को भी यही शिक्षा दूंगा कि बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं होता। अंतर होता है तो बस एक सोच का। अगर हम इस सोच को बदल दे तो हम पूर्वज नई पीढ़ी वाले बच्चों की जिंदगी को स्वर्ग बना सकते हैं। यह हमारे हाथ में है। उनकी विचारधारा अपनानी है या पुरानी दकियानूसी विचारधारा।, डॉ सुनीता भी क्लीनिक में पहुंच गई थी। वह अपनी सहेली श्वेता से मिलकर बहुत खुशी हुई। श्वेता के पापा रुपेश भी वहां क्लीनिक पर पहुंच गए थे। वह अपने पुराने दोस्तों के गले लगकर बोले जाओ हमने तुम्हें माफ किया।, वैभव ने अपने दोस्त से भी क्षमा मांगी और कहा कि यार मुझे माफ कर दे। मैं बहुत ही गलत था। मुझ में समझ की कमी थी। अब मैंने इस विचारधारा को अपना लिया है। श्वेता बोली अगर आप मेरे अंकल भी नहीं होते तो भी मैं एक बच्चे की जान बचाती। डाक्टर का काम होता है रोगी की जान बचाना। मैंनें अपना कर्तव्य निभा दिया है। वह बोले तुम्हारे जैसी बेटियों पर सबको नाज होना चाहिए।