लालची बहनें

तीन चचेरीं  बहने थी। दो बहने तो मध्यम परिवार से संबंध रखती थी। तीनों ने अपने मनपसंद   साथी का  चुनाव किया।  तीनो बहने साथ-साथ घर में ही रहती थी। उनके पति जो कुछ कर कमा कर लाते थे। वह मिल बांट कर खाती थी। वह एक दूसरे को सारी बात बता देती थी कि आज मेरे पति यह लाए हैं, जब तक वह एक दूसरे से सारी बातें एक दूसरे से खुलकर नहीं कह देती थी उन्हें तब तक खाना हजम नहीं होता था।

पहली बहन का पति एक लकड़हारा था। दूसरी का धोबी और तीसरी का व्यापारी। उन्होंने प्रेम विवाह किया था। इसलिए इनके मां बाप ने उनकी शादी उनके मनपसंद लड़को से  शादी कर दी थी।  लकड़हारा  लकड़ियां बेच बेच कर अपना जीवन व्यतीत करता था। एक दिन जब वह लकड़ियां काट रहा था तब उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। वह जोर जोर से रोने लगा और सोचनें लगा हमारा घर तो जल चुका है।  मेरे पास  अब एक कुल्हाड़ी के सिवा कुछ नहीं बचा है। यह कुल्हाड़ी भी नदी में गिर गई। वह अब कैसे अपने परिवार और अपनी पत्नी को क्या खिलाएगा? वह सोच कर वह जोर जोर से रोने लगा। उसके रोने की आवाज सुनकर नदी में नदी के देवता वहां पर आ गए और उन्होंने लकड़हारे को कहा कि तुम क्यों रो रहे हो? लकड़हारे ने कहा कि मेरी कुल्हाड़ी नदी में गिर गई है। मेरे पास यही एक कुल्हाड़ी  बची थी लेकिन वह भी नई में गिर गई। जल देवता को उसकी बातों में सच्चाई नजर आई।  वह पानी में गया और पानी में एक सोने की कुल्हाड़ी ले कर आया। लकड़हारे ने कहा मेरी कुल्हाड़ी यह नहीं है।  यह कुल्हाड़ी मेरी नहीँ है। इसके पश्चात जल देवता चांदी की कुल्हाड़ी ले कर आए वह बोला यह  कुल्हाड़ी  भी मेरी नहीं है।  जल देवता ने तीनों कुल्हाड़ियां  उस की इमानदारी से खुश हो कर उसे दे दी। लकड़हारा जब घर आया तो उसने अपनी पत्नी से यह बात कहीं। उसकी पत्नी ने यह बात अपनी दोनों बहनों से कह दी।

दूसरी बहन  नें सोचा क्यों न जंगल में नदी के किनारे जा कर अपनी किस्मत आजमाती हूं। दूसरे दिन  नदी के पास  वह धोबिन जंगल में नदी के पास कपड़े धोने चले गई। वह कपड़े जोर जोर  से पटक पटक कर धोने लगी।  जोर जोर से कपडों को पटकने का नाटक करनें लगी। पटकने  के कारण उसने अपनी नकली अंगूठी नदी में गिरा दी और जोर से रोने का नाटक करने लगी। उसको जोर जोर से रोते देख कर जल देवता पानी से बाहर आ कर बोले तुम क्यों रो रही हो? वह रो रो कर जल देवता को कहनें लगी  कि मेरी सोने की अंगूठी नदी में गिर गई है। जल देवता पानी के  अन्दर गए और सोने की अंगूठी लेकर आए। वह धोबिन सोनें की अंगूठी देख कर बोली,  मैं बहुत ही खुश हूं। वह जल देवता के पैरों पर गिर गई और कहने लगी यही मेरी अंगूठी थी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जब उसने घर आकर अपनी तीसरी बहन को यह बात बताई तो उसके मन में भी लालच आ गया। वह जल्दी  ही सुबह सुबह बिना किसी को कुछ बताए नदी पर  पंहूंच गई।  वह भी जोर जोर से रोनें का नाटक करनें लगी।जल देवता नदी से बाहर आ कर बोले  तुम यंहा बैठ कर आंसू क्यों बहा रही हो?  वह और भी जोर जोर से रोने लगी  वह कहने लगी कि मेरे पति एक व्यापारी है। वह जब बहुत सारी धन-दौलत लेकर आ रहे थे तो  डाकूओं ने उनका सब कुछ छीन  लिया। उनके पास  एक आभूषण का डिब्बा  बचा था जो   वह मुझे  ले कर   आ रहे थे। वह डिब्बा भी पानी में गिर गया।  मैं सोचती हूं कि  अभी इस नदी में गिर कर अपनी जान दे दूं।

तीसरी बहन बहन पर भी भी जल देवता को दया आ गई। उसने उसे एक डिब्बा लाकर दे दिया। यह तुम्हारा है क्या? उसमें हीरे का हार था। वही हीरे  का हार पाकर बहुत ही खुश हुई। हीरे का हार देख कर उसे लालच आ गया। वह   जल देवता को  कहनें लगी यही मेरा हार है।  जल देवता को उसने धन्यवाद दिया और जल्दी जल्दी घर पहुंचने  का यत्न करनें लगी।

घर आकर तीनो बहने बहुत खुश थी। दूसरी बहन   सोचने लगी कि इस अंगूठी को बेच कर उसे बहुत  सारुपया मिल जाएगा। इस प्रकार दोनों बहने उस अंगूठी को बेचने के लिए जौहरी   के पास पहुंची। जौहरी नें अंगूठी देख कर कहा  यह तो सोने की अंगूठी नहीं है। यह तो नकली अंगूठी है। इस पर सोनें का पौलिस किया है?   दूसरी बहन भी सिवा रोने के कुछ नहीं कर सकती थी। उसनें घर आ कर सारी बात तीसरी बहन को बताई। उसकी बहनें कहनें लगी तुम भी हार जौहरी को बेच दो।

तीसरी व्यापारी की पत्नी  भी सोचने लगी कि नहीं, वह जौहरी झूठ बोल रहा होगा। मेरे पास  भी तो  हीरे का  हार है। वह उस  हार  को किसी भी कीमत पर नहीं बेचना चाहती। वह घर आ गई। उसने डिब्बे में से  हीरे का हार निकाला जैसे  ही उसने हार को गले में डाला तो उसका गला घुटने लगा। वह जितना हार को निकालने की कोशिश करती उतना ही उसका गला घुटता जाता। वह हार को निकाल नहीं पाई। वह दर्द के कारण चिल्लानें लगी। वह सोचने लगी कि उसे भी  लालच ने अंधा कर दिया था। हे भगवान बचा ले। भगवान से प्रार्थना करने लगी कि हे भगवान! आज  किसी भी तरह से मेरी जान बच जाए। वह दौड़ कर नदी पर पहुंच गई और जोर-जोर से चिल्लाने लगी। हे जल देवता! मैं आप के पैरों पर पड़ कर आप से अपनी गल्ती के लिए क्षमा मांगती हूं।  जल्दी आओ। आ कर मुझे बचा लो। उस की करुणा भरी पुकार सुन कर जल देवता पानी से बाहर  आ कर बोले  अब क्या बात है? तुम फिर से आ गई। उसने कहा मैंने आपसे झूठ बोला था। यह हार मेरा नहीं था। मैंने लालच में आकर यह हार लेने की सोची थी।

आप मुझे बचा दो। आज से मैं  कभी भी लालच नहीं करूंगी। जल देवता बोले  मैं इस शर्त   पर तुम्हें छोड़ता हूं कि अब तुम कभी भी लालच नहीं करोगी। जल देवता ने उसे  छोड़ दिया। उस दिन के बाद उसनें लालच करना छोड़ दिया। दोनों बहनों नें ईमानदारी का रास्ता अपना लिया।