कृषक कविता

त्याग तपस्या और श्रम की साक्षात मूर्ति है किसान। नगरवासियों  के अन्न्दाता सृष्टि पालक हैं किसान।। धूप गर्मी सर्दी वर्षा सब सहन करता  रहता। भगवान विष्णु के समान जग का पालन करता रहता। घास फूस की झोंपड़ीयों में रह कर दिन रात कोल्हू के बैल की तरह पिस्ता रहता हर दम  किसान। सेवा और परिश्रम… Continue reading कृषक कविता