सहयोग का परिणाम

किसी गांव में एक किसान रहता था। वह मेहनत करके अपना जीवन गुजारा करता था। हल चलाकर खेतों में सारा दिन काम कर के शाम को थका मांदा जब  घर आता तो उसकी पत्नी उसे गर्म गर्म खाना परोसती।  खाना खाने के बाद उसे ऐसी  नींद आती के  उसके सामने कोई आवाज भी लगाता होता  तो वह आंखें  भी नहीं  खोलता  था। उसका  एक बेटा था। वह अपने पिता को हरदम मेहनत करते देखा करता था। वह भी आठवीं कक्षा में पहुंच गया था। वह  अपने पिता को कहता पिता जी आप इतनी मेहनत क्यों करते हो? आजकल  खेतों में कुछ भी पैदा नहीं होता है। जो रहा सहा  होता वह भी  आकर बंदर उजाड़ देते हैं। आपको अपनी मेहनत का कुछ भी हासिल नहीं होता। उसका पिता अपने बेटे को समझाता बेटा सोनू मुझे अपने पूर्वजों की इस धरोहर को अच्छे ढंग से रखना है। मेरे लिए उनका आशीर्वाद ही बहुत है। मैं जब तक जीता हूं मैं इस से अपने खेतों में काम करना नहीं छोडूंगा। उसका पिता कहता जो तुम स्कूल जा रहे हो वह  हमारी  खेतों में रात दिन की गई मेहनत का ही तो परिणाम है। नहीं तो तुम स्कूल भी नहीं जा पाते। गाय का दूध यह भी बेचकर गुजारा करता हूं। मैं अपने खेत में कोई भी रसायनिक खाद का प्रयोग नहीं करता। गाय को चारा भी तभी ठीक मिलता है इसलिए वह  ज्यादा दूध दे पाती है। तूने देखा अपने आसपास के घरों में  रहने वाले लोग यह अपने खेतों  में रसायनिक खादों का प्रयोग करते हैं। इनमें फसलों  को खाने के लिए पक्षी चूहा बंदर खाते हैं। यह सब के सब भयंकर बीमारी का शिकार हो जाते हैं। यही फसल हम भी खाते हैं। उनके द्वारा हम भी बीमार हो जाते हैं देख बेटा  पुरखों के खेतों में अच्छे ढंग से हम काम करेंगे तो हमें इन्हीं खेतों में पौष्टिकता से भरपूर सब्जियां खाने को मिलेगी। अनाज भी मिलेगा। बेटे को यह बात नहीं जंची इसलिए वह नाराज़ हो कर चला गया।

उसका बेटा  दसवीं कक्षा में पास हो गया था। वह नौकरी  के लिए प्रयत्न कर रहा था। उसके साथ साथी सभी नौकरी के लिए प्रयत्न कर रहे थे। उसे भी प्राइवेट नौकरी के लिए चुन लिया गया था। उसके पिता ने कहा बेटा कि प्राइवेट नौकरी से अच्छा है घर पर ही बैठकर पक्की नौकरी के लिए आवेदन करो।  तुम्हें जब तक पक्की नौकरी नहीं मिलती तब तक घर की खेती बाड़ी मे मेरा हाथ बटां लिया करो। बेटा  कहनें लगा मैं  यहां नहीं रह सकता मैं तो प्राइवेट नौकरी कर लूंगा। अपने पिता से लड़ाई झगड़ा कर सोनू  शहर  चला गया। वहां पर प्राइवेट कंपनी में लग गया।  उसकी बचकाना हरकतों से नाराज़ हो कर उसके पिता बीमार रहने लगे थे।  धीरे-धीरे  समय गुजरने लगा। उस बात को 8 साल हो गए। अभी तक उसे केवल 10,000 रुपये वेतन ही मिलता था। उसके पिता ने उसे समझाया बेटा गांव में रहकर भी कमाया जा सकता है लेकिन वह नहीं माना। वह शहर में चला गया एक दिन उसके पिता का खत आया   बेटा जल्दी घर आ जाओ। वह अपने घर आया। उसके पिता ने कहा बेटा मेरे जिंदगी का  अब कोई भरोसा नहीं है ना जाने जिंदगी कब समाप्त हो जाए। आज मैं तुम्हें एक बात समझाना चाहता हूं। मेहनत से कमाई हुई जमीन को मत बेचना।  तुम इस जमीन में लगभग कर मेहनत करोगे तो तुम्हें खाने को भी ताजा मिलेगा और सुखी भी रहोगे। नौकरी में आजकल कुछ नहीं रखा है। उसने अपने पिता को वचन दिया कि पिताजी मैं इस जमीन को नहीं बेचूंगा। शहर में  जा कर उसके बेटे ने शादी कर ली और शहर में रहने लगा।। धीरे-धीरे वह शहर का ही होकर रह गया। एक दिन उसके पिता भी इस दुनिया को छोड़कर चलते बने।

उसके घर में  भी एक बेटा आ गया था। वह भी अपने पिता की तरह था। सुबह देर से उठना रात को देर तक जागना। उसके पिता उसे कहते बेटा पढ़ाई किया करो तो वह कहता कि कर लूंगा अभी तो बहुत समय है। इस तरह करते करते वह आलसी का आलसी ही बना  रहा। उसके पिता को  यह सब बहुत बुरा लगता था। वह अपने पिता की बात नहीं मानता था। एक  दिन निराश होकर उसके पिता बोले बेटा मैं तो गांव जा रहा हूं। तुम्हारी दादा की जमीन  गांव में है  वहां जा कर खेती-बाड़ी करूंगा। उसने अपने बेटे  रवि को कहा बेटा आज से मैं गांव में ही रहा करूंगा। तूने गांव चलना है तो चल वरना तुझे शहर में किराए के मकान में रहना पड़ेगा। यहां किराया कौन देगा? मेरी प्राइवेट नौकरी थी। कंपनी बंद हो गई। खाने के भी लाले पड़ गए हैं।  उसका बेटा बोला मैं  वहां जा  कर क्या करुंगा? मैं यहां रह कर ही अपनी पढाई करुंगा। उसके पिता बोले शहर में रह कर  तू कुछ कर पाता है तो ठीक है वरना तेरी मर्जी। उसका पिता अपनी पत्नी को लेकर गांव आ गया।

इतने सालों के बाद उसे अपने पिता की याद आई। मेरे पिता नें मुझे कितना समझाया था कि प्राइवेट नौकरी में कुछ नहीं रखा है। तू इस जमीन को मत बेचना। आज  मेरी प्राइवेट नौकरी भी छूट गई। कम्पनी भी घाटे में चले गई। मेरे पिता ने उस समय  मुझे सलाह दी थी कि एक ना एक दिन तुझे यह जमीन ही काम आएगी। आज वह बात सच हो गई। अच्छा ही हुआ जो मैंनें यह जमीन नहीं बेची। आज यही जमीन मेरे काम आएगी। हे भगवान मेरे बेटे को भी अक्ल देना।

उसने अपने पिता की तरह लग्न से काम करना शुरू कर दिया। सुबह 4:00 बजे उठकर खेत में चला जाता। उसने अपना खेत हरा भरा कर दिया। जितनी मेहनत करता उतनी ही उसकी फसलें  लहलाती थी। वह उनको बाजार में बेच देता। उससे गुजारा भी ठीक-ठाक होनें लगा। उस की उदासी दूर हो गई  थी। अगर आज मेरे पिता जिंदा होते अपनें बेटे को यूं मेहनत करता देख कर खुश होते। मैनें अपने पूर्वजों की जमीन को नहीं  बेचा। धीरे-धीरे करके उसका व्यापार बढ़ने लगा। उसके इतने सारे खेत थे उसने अपने गांव के लोगों को भी साथ में ले लिया जो उसके साथ मिलकर उसकी खेती में देख रहे कर लिया करते थे। उसने एक खेत में सब्जियां लगाई।

एक खेत में गेहूं और एक खेत में मक्की। गांव में उस बार इतना अकाल पड़ा कि सभी लोगों को कुछ भी खाने को नहीं मिला, लेकिन उसके खेत में सारी की सारी चीजें अभी भी मौजूद थी। उसने अपने गांव वाले लोगों को कहा कि तुम्हारे खेतों में अनाज नहीं हुआ कोई बात नहीं तुम मेरे साथ मिलकर खेती कर सकते हो। तुम जितनी मेहनत करोगे उतना फल तुम्हें  भी मिलेगा। जब तक तुम्हारे खेतों में अनाज नहीं पैदा होता मेरे साथ मिलकर खेती करो और मिल बांट कर खाओ। कई लोग तो अकाल की त्रासदी  से डर कर गांव को छोड़कर शहर की ओर पलायन कर गए। कुछ लोगों ने किसान के बेटे की बात मान ली। उन्होंने उसके साथ मिलकर खेती-बाड़ी करनी शुरू कर दी। उसका व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी  उन्नति करने लगा। गांव वाले  भी उसकी मेहनत की प्रशंसा करने लगे। दूर-दूर से गांव वाले लोग भी उसे देखने आने लगे। यह देखने के लिए कि इनकी मेहनत का क्या राज है? आस पास दूर से आने वाले लोग उन सभी को लड़ाने की कोशिश करने लगे।  उन सबने लड़ाई छोड़ कर एक साथ मिलकर सभी को मात दे दिया। विश्वास दिला दिया कि सहयोग से हम अपने गांव की बंजर भूमि में भी फसल उगा सकते हैं। जिन लोगो ने हिम्मत नहीं हारी थी उनकी जमीनों में भी धीरे-धीरे फसलें लहलानें  लगी। वह भी मेहनत करके अपने खेतों में कमाने लगे।

गांव में एक ने सब्जी की मार्केट खोल दी थी। एक नें शहर में जाकर सब्जी बेचने का काम चला लिया था। रात को खेत में बारी-बारी सभी ने पहरा देने का निर्णय कर लिया था। उनके बच्चे भी खुशी-खुशी शिक्षा हासिल कर रहे थे। एक ने गाय का दूध बेचने के लिए सभी लोगों को इधर-उधर इकट्ठा कर बेचने का काम संभाल लिया था।  जो भी  रुपये आते थे वह सभी आपस में बराबर बांट दिया करते थे। सभी की आमदनी अच्छी चल रही थी। उनका घर खुशहाल हो गया था। इस बार ग्राम पंचायत की ओर से उस गांव को चुना गया। सभी के चेहरे पर खुशियां थी।

गांव वालों ने सभी ने मिलकर अपनी एकता का मजबूत उदाहरण देकर गांव की काया ही पलट दी थी।  वह किसान अपने बेटे को पढ़ाई के लिए रुपया भेज रहा था। एक बार उसका बेटा  रवि अपने पिता को देखने के लिए गांव में आया। उसने सोचा यहां तो कुछ भी नहीं होगा परंतु वहां के वातावरण को देखकर वह दंग रह गया। शहर में तो उसे अच्छी सब्जियां खाने को नहीं मिलती थी। गांव में उसे स्वादिष्ट सब्जी खाने को मिली और सभी लोग मिल बांटकर फल भी खा रहे थे और एक दूसरे में के घरों में जाकर गर्मा गर्म  खाने का, घी मक्खन खानें का भरपूर आन्नद ले रहे थे। गांव में घी मक्खन दूध की कमी नहीं थी। वहां पर यह सब देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसने अपने मन में सोचा कि शहर में रहने से कोई लाभ नहीं। वहां पर तो सब कुछ बाजार से खरीदना पड़ता है। वह अपने घर में आकर बोला पिताजी मैं यही पर रह कर पढ़ाई करूंगा और यही मेहनत करके कमा लूंगा। अपने बेटे की बात सुनकर किसान की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। यही बात अगर मैंने अपने पिता को कही होती तो कितना अच्छा होता?  मुझे अपनी भूल का पछतावा तो हुआ। जो काम मैं नहीं कर सका वह मेरे बेटे ने कर दिखाया।

उसका बेटा गांव में  ही आकर रहने लग गया था। वहीं पर पढ़ाई करने लग गया था अपने बेटे को गांव में आया देखकर उसने गांव में उत्सव मनाया। सभी के सभी लोग उसके उत्सव में शामिल हुए। वे सभी कहने लगे  कि हम भी अपने बच्चों को गांव  में ही शिक्षा देंगे जिससे कि हमारे बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित होगा और हर एक बच्चा गांव में रहकर ही बड़ा बनकर अपने गांव को और भी खुशहाल बना पाएगा।

मुनीम दयाराम

किसी नगर में एक सेठ रहता था। वह बहुत ही कंजूस था। किसी को भी ₹1 तक भी दान में नहीं देता था। उसकी दुकान पर पर अगर कोई मांगने वाला भिखारी भी आता था तो वह सेठ फटकार मार-मार कर उसे भगा दिया करता था। उसने अपनी दुकान पर एक मुनीम रखा था जो कि उसकी दुकान की आय व्यय का हिसाब किया करता था। उस पर वह आंख मूंदकर विश्वास करता था। उसकी दुकान बहुत ही अच्छे ढंग से चल रही थी। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था। उसी के सहारे से वह दुकान चल रही थी।

एक दिन उसकी दुकान पर एक भिखारी आया सेठ बिशनदास ने भिखारी को जैसे ही देखा बोला तुम्हें क्या और कोई काम नहीं है, जो आ जाते हो भीख मांगने। चलो निकलो यहां से, उसने फटकार मार कर उस भिखारी को भगा दिया। उसी समय मुनीमजी दुकान पर आए। उन्होंने उस भिखारी को देख लिया था। उसने इशारे से भिखारी को अपने पास बुलाया और कहा क्या हुआ? वह बोला बाबू साहब मेरी पत्नी बहुत बीमार है। मैं कुछ रुपए उधार मांगने आया था। दयाराम ने उसे हजार रुपये दिए बोला अपनी पत्नी का अच्छे ढंग से इलाज करवाना। धर्म दास के पांव पकड़कर बोला भगवान तुम्हारा भला करे। दयाराम की वजह से दुकान के व्यापार में बढ़ोतरी हो रही थी। वह अगर ₹50000 कमाता तो उसमें से ₹20000 अपने लिए रख लेता, जिसमें से वह ₹10000 गरीबों पर खर्च कर देता किसी को किसी को 50रु किसी को100रुपये जिस को बहुत ही जरूरत होती उसे ज्यादा भी दे देता। वह बिशनदास के रुपयों में से जरूरतमंदों को बांट देता था। जिस दिन सेठ विशन दास दुकान संभालता था उस दिन कोई भी व्यक्ति उसकी दुकान पर कदम भी नहीं रखता था। वह बहुत ही कठोर स्वभाव का था। एक दिन सेठ कोे किसी खास दोस्त ने उसे भड़का दिया कि तुम्हारा यह मुनीम तो तुम्हें चुना लगा रहा है। उस व्यक्ति ने सेठ को बताया कि तुम उस मुनीम पर नजर रखना। सेठ कुछ दिनों से उस से कटा कटा रहने लगा।

एक दिन उसने किसी गरीब व्यक्ति को गल्ले में से  ₹50 देते देख लिया। वह सोचने लगा कि वह आदमी ठीक ही कह रहा था। उसने दयाराम को बुलाया और कहा। दयाराम से नाराज हो कर  बोला मैं तुम पर विश्वास करता था तुम तो मेरे गल्ले में से उस भिखारी को दान करते हो।। दयाराम बोला भगवान आपको इतना दे रहा है आप अगर थोड़ा बहुत किसी जरूरतमंद को दे दिया करें तो इसमें हर्ज ही क्या है? इससे कारोबार फलता-फूलता ही है। इस बात से बिशनदास दयाराम से नाराज हो गया उसने दयाराम से कहा कि तुम यहां से अभी इसी वक्त यहां से चले जाओ। मैं तुम्हारा हिसाब किताब कर रहा हूं। मैं अपनी दुकान खुद संभाल लूंगा।

सेठ नें एक दूसरा व्यक्ति दुकान के आय व्यय का हिसाब करने के लिए रख दिया। उस आदमी ने बिशनदास को ऐसा चूना लगाया कि उसका साल भर में ही बिशनदास को इतना घाटा हुआ। सेट बिशनदास बहुत घबरा गया। सेठ को समझ में आ गया था कि दयाराम जैसे ईमानदार और मेहनती इंसान को निकाल कर उसने अच्छा नहीं किया। ऐसा ईमानदार इंसान मिलना बहुत ही मुश्किल है। वह उसको ढूंढने की बहुत कोशिश करने लगा   मगर वह उसे कहीं नहीं मिला।

एक दिन सेठ व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहर को गया हुआ था। उसे एक कपड़े की दुकान पर दयाराम को काम करते देखकर बहुत ही खुशी हुई। दयाराम दूसरे शहर में कारोबार करनें चला गया था। वहां पर  एक कपडे की दुकान पर काम में लग गया था। वहां पर वह बहुत ही खुश नजर आ रहा था। दयाराम को देखकर सोचनें लगा मैंने अपने सबसे वफादार सहायक पर अविश्वास करके बहुत गलत काम किया। वह दयाराम के पास जाकर बोला देख भाई मुझे माफ कर दे। मैंने तुझे निकाल कर अच्छा नहीं किया। तू वापस काम पर आ जा। दयाराम बोला बाबूजी ऐसी गलती मैं अब कभी नहीं करूंगा। पहले आप मुझे निकालते हो  फिर वापस बुला लेते हो। मेरा कारोबार यहां पर बहुत ही अच्छा चल रहा है।

सेठ बोला मैंने तुम्हें गलत समझा। मुझे किसी ने बहका दिया था। मैंने एक व्यक्ति को काम पर रखा था उसने तो मेरी दुकान का कारोबार चौपट कर दिया। मैंने तुम पर अविश्वास करके बहुत बड़ी गलती की है। वह बोला मैं तो यहां पर भी बहुत खुश हूं। सेठ बोला तुम कितने रुपए यहां पर कमाते हो? उससे ज्यादा रुपए मैं तुम्हें दूंगा। तुम वापस काम पर आ जाओ। दयाराम बोला मेरी भी एक शर्त है मैं काम पर तभी वापस आऊंगा अगर आप लेन-देन के बारे में आप मुझसे से कुछ नहीं पूछेंगे। आप तभी मुझसे पूछताछ करेंगें  अगर आप को व्यापार  में घाटा होगा।

बिशनदास बोला ठीक है जो तुम्हारी मर्जी। तुम अपनी इच्छा से दुकान को संभालो। मेरे एक ही बेटा है। उसे भी मैंने अच्छी शिक्षा दिलानी है। दयाराम वापस काम पर आ गया था। दयाराम  एक दिन सेठ के पास जाकर बोला आपका आपके बेटे के इलावा इस दुनिया में और कोई नहीं है। आप की संपत्ति को हथियाने कि बहुत से लोग योजना बना सकते हैं। आपके एक ही बेटा है। भगवान ना करें अगर आपको किसी दिन कुछ हो गया तो लोग आपकी संपत्ति को हड़प कर जाएंगे। आपका बेटा अभी छोटा है जब तक यह बालिग नहीं होता इसके नाम पर भी यह संपत्ति नहीं कर सकते। आपकी संपत्ति या तो सरकार ले लेगी आपको अगर मुझ पर विश्वास है तो आप अपनी संपत्ति का दावेदार मुझे भी बना सकते हो। मैं आपका विश्वास पात्र हूं। मैं आपको कभी धोखा नहीं दूंगा। इंसान की जिंदगी का क्या भरोसा? अगर आपकी संपत्ति किसी ऐसे इंसान के हाथ लग गई वह आपके बेटे को कुछ भी ना दे तो तो। आपके बेटे का क्या होगा? आप मुझ पर विश्वास कर सकते हो मैं मर जाऊंगा मगर आपके बेटे के पास साथ विश्वासघात नहीं करूंगा। मुझे दुकान पर काम करते-करते इतने दिन हो गए हैं। आपको लोग बात बात पर भड़का सकते हैं अगर आपको मेरी बात ठीक लगती है तो आप अपनी संपत्ति का मैनेजर मुझे बना सकते हो। मैं आपके बेटे को जब वह मालिक होगा तब उसे उस का कारोबार साथ दूंगा। यह काम आप तभी करना यदि आपको मुझ पर विश्वास है नहीं तो नहीं। सेठ नें अपनी संपत्ति का मैनेजर दयाराम को बना दिया। उसने लिखा था कि मेरे मरने के बाद  दयाराम ही मेरी संपत्ति की देखभाल करेगा जब तक कि मेरा बेटा बालिग नहीं होता। मेरे बेटा बालिग होने पर ही अपनी संपत्ति का असली वारिस होगा। इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गए।

एक दिन  सेठ किसी काम से  शहर व्यापार के सिलसिले में   सामान लाने गया हुआ था। उसकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। बड़ी मुश्किल से सेठ की जान बची। वह कोमा में चला गया।  

दयाराम ने उसके बच्चे को अपने घर पर रख दिया। उसके बच्चे को मां और बाप दोनों को प्यार दिया। उसके अपने कोई संतान नहीं थी दयाराम की पत्नी ने सेठ विशन दास के बेटे रवि को अपने घर में भरपूर प्यार दिया। सेठ की याददाश्त, चली गई थी। दयाराम सेठ बिशनदास को देखने हर रोज अस्पताल जाता था। उसे ठीक करवाने के लिए उसने डॉक्टरों की टीम लगा दी थी मगर वह कोमा से बाहर नहीं आया था। हर रोज उसे खून चढाना पड़ता था। जिन जिन जरूरतमंदों को उसने पैसा दिया था उन्हें जब सेठ बिशनदास के दुर्घटना का पता चला तो वे वह एक एक करके उसे खून दे जाते थे। जिस किसी का भी खून उससे मिलता था वह उसे खुशी खुशी आ कर खून दे जाता था।

पन्द्रह साल हो चुके थे। सेठ का बेटा 20 साल का हो चुका था। उसने सेठ के बेटे को इतना अच्छा इंसान बनाया उसे पढ़ाया-लिखाया और उसे बताया कि तुम्हारे पिता तो अस्पताल में जिन्दगी और मौत  के बीच जूझ रहें हैं। हम अपनी पूरी ताकत लगा देंगें तुम्हारे पिता को बचाने के लिए।

सेठ का बेटा इंजीनियरिंग पूरी करके एक अच्छी कंपनी में लग गया था। दयाराम ने उसे बहुत ही होशियार और ईमानदार बनाया। वह अपने पिता को देखने अस्पताल में हर रोज जाता था। सेठ   की यादाश्त भी धीरे-धीरे वापिस आ गई। दयाराम ने अपने दोस्त को गले लगाते हुए कहा कि शुक्र है तुम्हारी याददाश्त वापस आ गई है। वह होश में आते ही बोला कि मेरा रवि कहां है? रवि को देखकर चौका। वह तो एक बड़ा लंबा चौड़ा नवयुवक हो चुका था। 15 साल बाद वह कोमा से बाहर निकला था। दयाराम बोला मैंने तुम्हारे बेटे को अच्छा इंसान बनाया। तुमने मुझ पर विश्वास किया।

तुम्हारी दुर्घटना होने के बाद लोगों ने मुझ पर ना जाने क्या क्या आरोप लगाए? उन्होंने यहां तक कहा कि दुर्घटना कराने में मेरा ही हाथ था और आपकी संपत्ति को हथियाने  में  भी मेरा ही हाथ था।  मैंनें आपके बेटे की परवरिश और आप की दुकान का काम अच्छे ढंग से निभाया। बिशनदास  रो दिया। तुमने मुझे ठीक ही कहा था इतनी भयंकर दुर्घटना हुई थी कि मेरा बचना नामुमकिन था। दयाराम बोला यह तो कहीं ना कहीं आपके रुपयों का ही कमाल था। मैं गरीबों को और जरूरतमंदों को अपनी दुकान में से जो कुछ रुपए जो बच जाते थे उनमें से कुछ इन जरूरतमंद इंसानों को दे दिया करता था। आपको विश्वास ही नहीं आएगा। इन जरूरतमंदों  लोगों नें  ही आपको एक-एक खून की बोतल दान में  दी है। आपको हर रोज खून चढ़ाना पड़ता था इन्होंने ही आकर आपको खून दिया जिस से आप आज बच गए। सेठ बोला मैंने तो कभी भी अपने हाथ से किसी को भी कुछ दान नहीं किया। आज मुझे समझ आया कि जरूरतमंदों की अवश्य सहायता करनी चाहिए। शायद  यह तुम्हारी ही दुआओं का ही परिणाम है जो मैं बच गया।

सेठ बोला और तुम्हारी  ईमानदारी का जो आज मैं सही सलामत तुम्हारे सामने हूं। तुमने मेरे बेटे की परवरिश में  भी कोई कमी नहीं छोड़ी। आज से मैं तुम्हें अपनी दुकान का हिस्सेदार और अपना छोटा भाई मानता हूं। आज से तुम मेरे ही घर में ही रहा करोगे। आज से तुम्हें कहीं भी अलग जाने की जरूरत नहीं है। अपनें बेटे रवि को गले से लगा कर बोला तुम उन्हें चाचा नहीं छोटे पापा कह सकते हो। बेटा उन्होंने ही तुम्हारी देखरेख की है। रवि बोला ऐसे ईमानदार पापा सब को दे।

नन्हा फरिश्ता

किसी गांव में एक जुलाहा रहता था। वह सूत कात कात कर दिन रात मेहनत करता जो कुछ कमाता उसी से वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था। उसके एक बेटा था वह हर वक्त उसके पास बैठा रहता था। वह उससे थोड़ा थोड़ा सूत कातना सीख गया था। वह सोचा करता था कि एक दिन वह मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। तब मेरी किस्मत भी बदल जाएगी। वह हर वक्त अपने बेटे को नए नए तरीके सिखाता था।

एक दिन उसका बेटा अचानक बीमार हो गया डॉक्टर ने कहा कि इस के इलाज के लिए ₹500, 000 लगेंगे क्योंकि इसको ब्रेन ट्यूमर है। जुलाहा यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया उसके पास तो अपने बेटे का इलाज करवाने के लिए भी रुपए नहीं थे। वह एक गरीब व्यक्ति था। भला उसके पास इतने सारे पैसे कहां से आते? वह अपनी पत्नी के गहनें भी बेच देता तो भी उसके पास अपने बेटे का इलाज करवाने के लिए पैसों का जुगाड़ नहीं हो पाता। उसका गांव में कोई भी नहीं था जो उसको ₹500, 000 दे देता। उसका बेटा एक दिन सदा सदा के लिए उनको छोड़कर परलोक सिधार गया। जुलाहा अपने आप को कोसनें लगा। लोग अपने बच्चों के लिए इतना रुपया जोड़ते हैं। मैं ऐसा अभागा बाप निकला जो अपने बेटे को मौत के मुंह से बचा नहीं सका। उसने तो अपने बेटे को बचाने के लिए  कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसको मृत्यु के विनाश चक्कर से उसको वह बचा नहीं सका। वह  बहुत ही मायूस हो चुका था। उसकी पत्नी की भी वही स्थिति थी। वह एक जिंदा लाश थी। जिसने अपने प्यारे लाडले को सदा के लिए खो दिया।

जुलाहे  नें अपनी सूत कातने की मशीन को किनारे फेंक दिया। वह सोचता कि मैं चौबीस घंटे इस मशीन में ही लगा रहता था।इसने भी वक्त पड़ने पर मेरी सहायता नहीं की वह काफी दिन तक ऐसे ही घर में पड़ा रहा परंतु ऐसे हाथ पर हाथ धरकर बैठने से उसका बेटा तो वापस नहीं आ सकता था। वह दोनों यूं ही बैठे रहते तो कमाएंगे कैसे। हार कर वह अपने खेतों में थोड़ी बहुत जमीन थी उसी में काम करने लग गया। वह अपने बेटे के गम में इतना डूब गया कि उसका काम करने का भी मन नहीं करता था। जैसे तैसे वह खेतों में हल चलाता और थोड़ा बहुत कमा कर अपना पेट भरता।

उसनें सोच लिया कि वह कभी भी सूत कातनें की मशीन में काम नहीं करेगा क्योंकि उस मशीन में काम करते वक्त उसे उसके बेटे का चेहरा दिखाई देता था। उसका बेटा भी उस से सूत कातना सीख रहा था। उसने अपनी मशीन को घर के एक कोने में ढक कर रख दिया था।

एक दिन वह अपने खेत में कुदाल से खोद रहा था तभी उसने देखा जमीन में कुछ है। वह हैरान हो गया  देखा वह एक नन्हा मुन्ना बच्चा था। वह अपना अंगूठा चूस रहा था। वह दौड़ा दौड़ा घर आया और अपनी पत्नी से बोला मेरे साथ खेत में चलो। अपनी पत्नी का हाथ पकड़कर खेत में ले गया। वह भी हैरान रह गई। उसे खेत में एक सुंदर सा बच्चा  दिखाई दिया। उन्होंने सोचा भगवान ने  तौफे के तौर पर  उस बच्चे को  हमारे पास भेजा है। उन्होंने इस बच्चे को हिलाया डुलाया।  जुलाहे की पत्नी उसे घर ले आई और उसे गर्म ऊनी  कपड़े में लपेटा और उसे दूध पिलाया। दूध पीने के बाद वह बहुत जोर जोर से रोने लगा। वह दोनों भी उसके रोने की आवाज से खुश हो रहे थे।  उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि उनका बेटा उन्हें एक नन्हे फरिश्ते के रूप में वापस मिल गया। जुलाहा और उसकी पत्नी बच्चे को लेकर गांव में देवी के मंदिर गए। वंहा के पुजारी के हाथों से उसकी पूजा करवाई और अपने घर लेकर आए। उन्होंने उसका नाम प्राकृत रखा। प्रकृति ने उन्हें वह नन्ना मुन्ना फरिश्ता दिया था।

नन्हे से बच्चे को पाकर  जुलाहा उसका बहुत ही ध्यान रखता था। वह दोनों रातों को जाग जाकर अपने बच्चे का भरण पोषण करते थे। प्राकृत दस वर्ष का हो चुका था।  जुलाहे  नें  कोई और धंधा शुरू नहीं किया था। उसकी पत्नी ने अपने पति को कहा कि खेती बाड़ी से उनका गुजारा नहीं होने वाला। बेटे को भी कुछ ना कुछ पढ़ना तो पड़ेगा ही। उसकी पत्नी बोली तुम एक बार फिर इस मशीन को चालू कर सकते हो। तुम अपने बेटे को भी सूत कातना सिखा देना। वह बोला नहीं अब मैं इसको कभी भी हाथ नहीं लगाऊंगा। एक दिन वह जोर से बोल रहा था कि अब मैं क्या करूं? उसका बेटा प्राकृत उसकी उंगली पकड़कर उसे मशीन के पास ले गया और उसने मशीन पर से कपड़ा हटा दिया, बोला बाबा आप इसे चलाओ। अपने बेटे के मुंह से यह सुनकर वह चौंक गया फिर मन में सोचनें लगा मेरे बेटे ने मुझे इसे चलाने के लिए कहा है। उस दिन उसने फिर से मशीन में सूत कातना शौलें बनाना  शुरु कर दिया।

प्राकृत के आ जाने के बाद उसके घर में रुपयों की कोई कमी नहीं रही। शायद भगवान ने उनकी झोली में किसी देवदूत को उनकी सहायता करने भेज दिया था। इस तरह करते करते पांच साल बीत गए। जुलाहा और उसकी पत्नी प्राकृत को पाकर खुश थे। कई बार जुलाहा  के कई  मित्रों ने उसकी मशीन को खराब करने की कोशिश की मगर प्राकृत के हाथ में ना जाने कौनसी विलक्षण शक्ति थी उसका हाथ लगाते ही मशीन ठीक हो जाती थी। उसके यार दोस्त आपस में कहते कि ना जाने हम ने कितनी बार उस की मशीन को खराब किया। इसके बेटे को ना जाने मशीन ठीक करने की इतनी अद्भुत कला ना जाने कहां से आ गई। उसका बेटा मशीन को खोलकर उसे ठीक कर देता। पूर्जों को सैट कर देता। उसका पिता भी उस के हुनर को देख कर दंग रह जाता था। वह दस वर्ष का बच्चा पता नहीं यह अद्भुत कला कहां से सीख कर आया था?

एक दिन जुलाहे  के दोस्तों ने सोचा कि इस के बच्चे का अपहरण कर लेते हैं। रात में आए और उसके बच्चे को एक सुनसान जंगल में छोड़ आए और उसकी पत्नी ने प्राकृत को चारों ओर ढूंढा मगर उसका कोई पता नहीं चला। वह बीयाबान जंगल में भटक रहा था।वंहा उसे पांच डाकू दिखाई दिए। उस बच्चे को देख कर सोचने लगे न  जाने कौन इसे जंगल  में छोड़कर चला गया। हम डाकुओं का पीछा पीछा करते करते उसने हमारा  अड्डा देख लिया है। उन्होंने उस बच्चे को पकड़ लिया और अपने अड्डे पर लेकर चले गए।

सुबह हुई तो प्राकृत सो रहा था। वह बाहर निकल चुके थे। प्राकृत ने एक अंदरूनी गुफा देखी। वहां से भी निकला जा सकता था। जैसे हीे उन्होंने गुफा का दरवाजा बंद किया प्राकृत बहुत होशियार था। उसने उन्हें गुफा को बंद करते देख लिया था। उन्होंने गुफा को बंद करने के लिए + का निशान लगाया और खोलने के लिए गुणा का निशान। उसने उन निशानों को याद कर लिया था। डाकु  जब वहां से खिसक गए। प्राकृत गुफा में अंदर रह गया था। जब वे पांचों बाहर निकले तब प्राकृत नें गुणा का निशान लगाया तो गुफा का दरवाजा खुल गया। वह बिल्कुल आजाद था। चुपचाप वन में चला आया। उसे अभी तक अपने घर पहुंचने का रास्ता मालूम नहीं था। वहीं पर वह एक झाड़ी के पास छिप गया। जुलाहे ने सुबह अपने बच्चे को नहीं देखा तो वह बेहद उदास हुआ। जुलाहा  और उसकी पत्नी दोनों रोते रोते अपने भाग्य कोसनें लगे हमारे नसीब में शायद बेटे का प्यार ही नहीं है। अब की बार भी बेटा कहीं गायब हो गया।  जुलाहा उस मशीन की तरफ भी देखना नहीं चाहता था। इस मशीन को चालू करने के बाद ही उसका बेटा कहीं चला गया। शाम को उसके वही दोस्त आए और बोले हमें मालूम हुआ है कि तुम्हारा बेटा कहीं चला गया है। होनी को कौन टाल सकता है?

वह बोला सब कुछ इस मशीन का किया धरा है। इसने ही सारा काम बिगाड़ा है। वह बोला मेरा बस चलता तो मैं इसे कहीं दूर फेंक देता।  उसके दोस्त बोले भाई तुम ठीक ही कहते हो जब तक तुम्हारे घर में यह मशीन है तब तक तुम्हारा बेटा घर आने वाला नहीं। क्यों ना हम ही  इसे किसी घने जंगल में फेंक देते है? जुलाहे के दोस्तों ने उस के साथ जा कर उस मशीन  को जंगल की पहाड़ी से नीचे फैंक दिया। उसके दोस्त जा चुके थे। वह  अपनें दोस्तों से बोला भाई मेरे तुम चलो मैं थोड़ी देर बाद वापस आता हूं। मैं थोड़ी देर यहां अकेला जंगल में बैठना चाहता हूं।

जुलाहा जंगल में एक और बैठकर जोर जोर से  रोने लगा। वह जहां बैठ कर रो रहा था उसका बेटा एक झाड़ी में छिपा था। उसके बेटे ने अपने पिता की आवाज सुनी। वह जोर से बोला बाबा। अपने सामने अपने प्राकृत को पाकर खुश हो गया। बेटा तुम हमें छोड़ कर क्यों आए? हमारे घर में किस चीज की कमी थी।।। वह बोला बाबा आपके दोस्त मुझे जबरदस्ती पकड़कर यहां छोड़ गए। उनमें से एक तो मुझे पहाड़ी से नीचे गिराने वाला था। परंतु दूसरे व्यक्ति ने कहा कि हम इसको यू अपने सामने पहाड़ी से गिरते नहीं देख सकते। इसको तो यूं ही जंगली जानवर खा जाएंगे। चलो ऐसा कहकर वे   वंहा से  चले गए। बाबा फिर यहां मैं अकेला भटकता रहा। मुझे पांच डाकू   पकड़कर अपने अड्डे पर ले गए। उन्होंने सोचा कि मैं उनके पीछे पीछे आ गया हूं। उनके अड्डे में ना जाने कितनी हीरे जवाहरात  थे। वे मुझे वहीं छोड़ कर अपनी गुफा में चले गए। आपस में कह रहे थे कि शाम को इस बच्चे को ठिकाने लगाते हैं। प्राकृत बोला बाबा आप यहां पर कैसे?

जुलाहा बोला बेटा मैं अपने घर में बैठ कर रो रहा था। मेरे दोस्त आकर मुझसे बोले हमने सुना है कि तुम्हारा बेटा तुम्हें छोड़कर कहीं चला गया है। मुझ से हमदर्दी जताने लगे। मैं तुम्हारे गम में पागल हो रहा था। मैंने सोचा कि इस मशीन का ही यह सब किया धरा है। इस मशीन के कारण ही पहले मेरा बेटा मुझसे अलग हुआ और मैं कह रहा था कि इस मशीन को कहीं फेंक देता हूं। वह बोले हां साहब इस मशीन के कारण तुम्हारा बेटा तुम्हें छोड़कर चला गया। हम इस मशीन को नीचे फेंक देते हैं। उन्होंने ले जाकर मशीन को पहाड़ी से नीचे फेंक दिया। प्राकृत बोला बाबा आप बहुत भोले हैं। आप के दोस्तों ने कई बार आपकी मशीन खराब की ताकि आप अपना रोजगार अच्छे ढंग से ना चला सके और अब की बार तो उन्होंने मेरा  बहाना बना दिया। मैंने आपकी मशीन बहुत बार ठीक की। उन्होंने पहले मुझे जंगल में छोड़ दिया और फिर आप की मशीन फेंक दी। प्राकृत  बोला बाबा आप परेशान ना हो। मैं आपकी मशीन को ढूंढता हूं। वह एक पहाड़ी के पास जाकर वहां से कूद गया। उसको नीचे कुदता देखकर जुलाह   स्तब्ध रह गया। इतनी ऊंचाई से कूदने पर भी उसे जरा भी खरोच नहीं आई। उसने उस मशीन को यूं ऊपर उठा लिया मानो वह बहुत ही हल्की हो। उसको ऐसा करते देख कर जुलाह बहुत ही हैरान था। उसने तो उसकी इतनी अद्भुत शक्ति पहली बार देखी थी। जो दस वर्ष का बच्चा कभी उस मशीन को उठा नहीं सकता था। प्राकृत ने एक रस्सी की सहायता से उस मशीन को अपने पेट से बांध लिया था। उस मशीन को ऊपर लाने में कामयाब हो गया। उसने अपने पापा को कहा कि मैं इस मशीन को डाकू के अड्डे में छोड़ देता हूं। जुलाह बोला वहां जाना खतरे से खाली नहीं होगा।

प्राकृत बोला नहीं हम दोनों चलते हैं। जुलाहा और उसका बेटा प्राकृत डाकू की गुफा में पहुंचे। डाकू वंहा अभी तक नहीं आए थे। प्राकृत ने अपने बाबा को बताया कि इस गुफा को खोलने के लिए गुणा का निशान और बंद करने के लिए + का निशान लगाना पड़ता है। यह देखकर जुलाहा खुश हो गया कि सचमुच संकेतों से गुफा का दरवाजा खुल गया। उसने ऊपरी तक आने में उस मशीन को रख दिया और अपने पिता के साथ घर वापिस आ गया। उसकी मां प्राकृत  को पाकर बहुत खुश थी प्राकृत ने अपने बाबा को कहा कि पुलिस की मदद से हम इन डाकुओं  को  सजा दिलवा सकते हैं। पुलिस वाले को  डाकुओं का अड्डा दिखा दिया। उस गुफा को कैसे खोला जाता था और कैसे बंद किया जाता था?पुलिस वालों ने उन पांच डाकुओं  को पकड़ कर उन्हें जेल में डाल दिया। उन  को पकड़वानें पर ₹500, 000 का इनाम था। जो कोई उन डाकुओं को पकड़वायेगा उन्हें ₹500, 000 की राशि में मिलेगी। डाकूओं को पकड़वाकर वहां से अमूल्य हीरे जेवरात  पुलिस ने प्राप्त  किए और प्राकृत को उसकी वीरता के लिए पुरस्कार दिया। प्राकृत ने अपने पिता की मशीन को वंहा से प्राप्त कर लिया और अपने पिता को कहा कि आप इस मशीन पर आप अपना काम आरंभ कर सकते हैं।

कोई भी चीज इतनी खराब नहीं होती जितना की हम किसी वस्तु के बारे में सोचते हैं। हम उस वस्तु के बारे में नकारात्मक सोच रखेंगे तो हमें कभी फायदा नहीं होगा। हम उस वस्तु के बारे में सकारात्मक सोच रखेंगे तो हमें लाभ ही लाभ होगा हमारे सोचने का नजरिया बिल्कुल सही होना चाहिए।

आप के दोस्तों ने तो आपको एक बार फिर मुझको आपसे अलग करने की योजना बनाई थी परंतु मैंने उनकी योजना को भी विफल कर. दिया। प्राकृत को ₹500, 000 का ईनाम दिया गया। अखबार में उसका फोटो भी छपा। धन्य है उसके मां बाप जिन्होंने अपने बेटे को इतने अच्छे संस्कार दिए। और बहादुर बनाया। हम उनके माता-पिता को सलाम करते हैं जिन्होंने इतने बहादुर बेटे को जन्म दिया और डाकुओं को पकड़वाने में सरकार की मदद की। जुलाहे  और उसकी पत्नी की आंखों में खुशी के आंसू थे।

उपहार

माधोपुर के एक छोटे से कस्बे में सविता अपने बेटे के आने की राह देख रही थी। सविता के पति सेना में शहीद हुए थे। उसके बेटे ने भी कसम खाई थी कि वह भी अपने पिता की भांति एक वीर सैनिक बनेगा। अपने बेटे की हट के कारण उसकी एक न चली सविता के पति सेना के लिए अपने प्राणों को निछावर कर दिया था। वह डरती रहती थी कि मेरा बेटा कहीं अपने पापा की तरह। परंतु किसी से कुछ नहीं कहती थी। अपने दिल के दर्द के को अंदर ही अंदर दिल में दबाए रखती थी। अपने बेटे को सेना में नहीं भेजना चाहती थी। अपने अपने बेटे की इच्छा के कारण मजबूर हो गई थी इसलिए उसने उसको फौज में भेज दिया। काफी दिनों के बाद उसका बेटा घर वापस आ रहा था।

उसके आने की खुशी में वह खूब तैयारियां कर रही थी। कल ही तो उसके बेटे का खत आया था। वह चार-पांच दिनों के लिए छुट्टी आ रहा है। वह सोच रही थी कि समय पंख लगा कर उड़ जाए और वह अपने बेटे को अपने गले से लगाने के लिए बेताब हो रही थी। कल ही मेरा बेटा आने वाला है। पास वाले पड़ोसी ने रेडियो लगा रखा था अचानक रेडियो पर बहुत ही आवश्यक सूचना आ रही थी। जितने भी फौजी भाई छुट्टियों में घर आ रहे थे उनकी छुट्टियां रद्द हो चुकी थी। पड़ोस की काकी ने सविता  को कहा कि बहन तुम्हारे बेटे की छुट्टियां रद्द हो चुकी है। अपने बेटे के आने की राह मत देखो। उनकी  छुट्टियां रद्द हो चुकी हैं।  सविता ने  जब यह सुना वह सन्न रह गई। उसकी तो जान ही निकल गई। सारी खुशी गम में बदल चुकी थी। सजा सजाया कमरा ऐसे लगने लगा मानो खाने को आ रहा हो। एकदम निष्प्राण सी टुकुर-टुकुर दरवाजे की ओर टकटकी लगाए हुए अपने बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रही थी। दो दिन तक सविता ने कुछ नहीं खाया। इतने दिनों तक भूखी कैसे रहती? अगले हफ्ते सारे के सारे सैनिकों को दुश्मन की सेना को मार गिरानें के लिए छावनी में भेजना ही पड़ा। सारे के सारे सैनिक लड़ाई में चले गए। लड़ाई करते काफी सैनिकों ने अपने प्राण कुर्बान कर दिए। कइयों कि तो लाशें भी नहीं मिली।

एक दिन समाचारों में उन वीर सैनिकों के नाम बताएं जो मारे गए थे। और जो लापता थे। लापता में सविता का बेटा भी था। सविता को पड़ोस वाली आंटी ने सूचना दे दी कि आपका बेटा लापता हो गया है। सविता तो कई दिनों तक बेहोश पड़ी रही। वह दरवाजे पर अपने बेटे के आने की राह देख रही थी। वह कह रही थी मेरा बेटा जरूर वापिस आएगा। वह नहीं मरा है। वह अपने बेटे के वियोग में पागल सी हो गई। इंतजार करते-करते छः साल हो गए। सभी ने सोच लिया था कि वह मर चुका है।

सविता हर रोज आ कर मंदिर की सीढ़ियों पर  अपने बेटे को ढूंढने लगती।  और हर रोज एक तरफ पांच  रोटी और सब्जी एक थाली में रख देती। एक थाली में रख देती और कहती कि यह खाना मेरे बेटे का है। इस तरह हर रोज थाली रख कर चली जाती। शाम को जब वापस आती तो वह खाना तो गायब हो जाता था। थाली वंही  पड़ी रहती। शिवानी मैं ना कहती थी कि मेरा बेटा जरूर खाना खाएगा। उसकी सहेली उसकी इस दशा को देख नहीं पाती थी। कभी-कभी वह भी उसके साथ मंदिर चली जाती थी उसकी सहेली सोचती यह रोटी ना जाने कौन खा जाता है।? परंतु यह तो उसकी सहेली की आस्था थी कि उसका बेटा उसके पास एक दिन लौट कर अवश्य आएगा। नरेन्द्र हर रोज एक आंटी को देखा करता था जो कई मंदिर की सीढ़ियों पर खाने की थाली छोड़ जाती थी एक गरीब परिवार का बेटा था। उसके मां बाप एक दुर्घटना में मारे गए थे। वह भी उनकी आंखों के सामने जब वह केवल 14 वर्ष का था केवल आठवीं कक्षा में था। उसके बाद उसका इस दुनिया में कोई नहीं बचा था। कुछ दिनों तक तो मांग मांग कर गुजारा किया एक दिन उस आंटी को रोता हुआ मंदिर में   थाली छोड़ते हुए देखा। वह हर रोज खाना खाता और इधर उधर भटकता रहता और मांग मांग कर गुजारा करता। उसे सविता काकी  की सारी की सारी कहानी पता चल चुकी थी  कि उनका बेटा फौज में भर्ती था। वह आज तक वापिस नंही आया। । सविता तो कई दिनों तक बेहोश पड़ी रही। वह दरवाजे पर अपनी बेटे की राह देखा करती थी।  मेरा बेटा जो वापिस आएगा वह नहीं मरा है वह अपने बेटे के वियोग में पागल सी हो गई थी। इंतजार करते-करते छःसाल से ज्यादा हो चुके हैं। अब तो इसको ही मैं अपनी मां मानूंगा । और उसका बेटा बन कर उनके सामने जाऊंगा।  पहले मैंने एक ऑफिस में नौकरी के लिए अर्जी दी है जहां पर मैं काम करता था। आंटी ने मुझसे खुश होकर मेरी नौकरी के लिए गुजारिश  भी की है।  आंटी नें मुझे बुलाया और दसवीं के बाद मुझे नौकरी के लिए अपने किसी खास रिश्तेदार से मेरी नौकरी के लिए गुजारिश कि अगर मेरी नौकरी लग जाएगी तो मैं निश्चिंत होकर सविता आंटी से कहूंगा कि आप ही मेरी मां हो। आपने मुझे छः साल से भी ज्यादा खाना खिलाया। अब आपका कर चुकाने की मेरी बारी है।

शाम को निर्मल आंटी ने बताया कि तुझे एक ऑफिस में नौकरी मिल गई है। वह नौकरी पाकर बहुत खुश हुआ बोला आंटी आपके एहसानों को मैं कैसे चुकाऊंगा। आंटी  बोली नहीं  बेटा ऐसा नहीं कहते। उसनें सविता आंटी के बारे में बताया था कि उनका बेटा फौज में शहीद हो गया है। एक दिन नरेन आंटी को बोला आंटी आज मैं अपनी मां के पास जाना चाहता हूं। वह उन से अलविदा लेकर सविता आंटी के पास आया बोला मैं आपके बेटे का दोस्त हूं। मैं आपके बेटे विनय का पक्का दोस्त हूं। आपके बेटे के लिए मुझे भी बड़ा खेद है। आंटी जी आपसे मैं एक बात करना चाहता हूं मैंने  छःसाल तक  आपका खाना खाया जो खाना आप अपने बेटे के लिए रखती थी वह खाना मैं खा जाता था। मेरे माता-पिता एक दुर्घटना में मारे गए। मेरे पास खाना खाने तक के लिए भी रुपए नहीं थे। मैं एक आंटी के यहां उनका खाना  बनाना उनके बच्चों को संभालना आदि का काम किया करता था। और खाना तो मैं छः सालों से आपके हाथों का ही खा रहा था। आपके खाने में जो स्वाद आता था वह खाना ऐसा लगता था मानो मेरी मां के हाथों का स्वाद है। मां अब मेरी नौकरी लग चुकी है। अब मेरी बारी है आप मुझे माने या ना माने मैंने तो आपको अपनी मां स्वीकार कर लिया है। मैं कभी भी आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा। मां मुझे ऐसे आशीर्वाद दो जैसे अपने बेटे विनय को देती थी। सोच लो आपका बेटा विनय आपके सामने खड़ा है।

सविता ने जब नरेंद्र को ऐसे कहते सुना तो वह फफक फफक कर रो पड़ी। अपने बेटे को ढूंढते-ढूंढते उसकी आंखें पथरा गई थी। बेटा अब तो इस बुढ़िया की आंखें अपने बेटे को देखने के लिए तरस गई है। आज तुम्हें देख कर मुझे लग रहा है मेरा बेटा लौट आया है। नरेंद्र बोला मैं आपको आंटी नहीं कहूंगा मैं आपको मां ही कहूंगा। आज मैं आपसे वादा करता हूं अगर आपका बेटा जिंदा होगा तो वह चाहे दुनिया के किसी भी जगह पर हो मैं उसे ढूंढ कर आपके सामने ले आऊंगा।

नरेंद्र सविता के घर रहने लग गया। वह अपनी कमाई ला कर सविता के हाथ में थमा दिया करता था। नरेंद्र को सविता के साथ रहते हुए छःमहीने हो चुके थे। एक दिन वह अपने काम के सिलसिले में बाहर जा रहा था। उसे रास्ते में एक नवयुवक दिखाई दिया। वह नवयुवक   रेंगता रेंगता जा रहा था। उसकीे दोनों भुजाएं कटी हुई थी।  नरेंद्र उसके पीछे पीछे गया। वह सविता मां के घर के सामने   काफी देर तक खड़ा था। उसको माथा टेकते हुए नरेंद्र ने देख लिया। वह उस नवयुवक के पीछे भागता ही जा रहा था। उसका खत घर की सीढ़ियों के पास से नरेनी उठा लिया। उसमें उस नवयुवक ने नरेंद्र के नाम ही खत लिखा था। उसमें लिखा था भाई मेरे तुम बहुत ही अच्छे इंसान हो। काश तुम मेरे सगे भाई होते। मैं तो अपनी मां को कभी सुख नहीं दे सका। रे प्यारे भाई तुम मेरी मां को ही अपनी मां समझना। मुझे इस जिंदगी में जीने का कोई अधिकार नहीं है। मैं अपनी मां के पास आने ही वाला था। मैंने तुम्हें देखा तुम मेरी मां को बड़ी अच्छी तरह से देखभाल कर रहे थे। मैं तो अपने दोनों हाथ लड़ाई में गंवा चुका। मैं अपनी मां को जिन हाथों से खिलाना चाहता था वह हाथ तो दोनों गंवा चुका अब मैं अपनों को क्या सुख दे सकता हूं?  मैं अपनी मां को  अपनें हाथों से खिलाना चाहता था और कंहा मैं अपनी मां पर बोझ बनने चला था। भाई मेरे मैंने तुम्हें अपनी मां की सेवा करते देखा और संघर्ष करते देखा। तुम्हें मेरी मां से बढ़कर और कोई भी मां नहीं मिल सकती। मैं मरने जा रहा हूं। मेरी मां को मत बताना कि मैं जिंदा हूं। मैं जी कर भी क्या करूंगा।? किसी पर बोझ बनकर जीना नहीं चाहता।  नरेंद्र ने पत्र पढ़ा वह जल्दी से वहां पहुंच गया जहां विनय  गया था। वह नदी में छलांग लगा चुका था। नरेन तैरना जानता था।

नरेन ने  विनय को बचा लिया। विनय ने उसे कहा कि तुमने मुझे क्यों बचाया।?नरेंद्र नें कहा तुम्हारी मां कदम कदम पर तुम्हारा इंतजार करती रहती है। आज भी तुम्हारे आने की राह देख रही है। तुम अपनी मां के सामने क्यों नहीं आए?  विनय बोला मैंने तुम्हें अपनी मां के साथ देख लिया था। तुम इतनी अच्छी तरह से मेरी मां की सेवा कर रहे हो मैं तो उन्हें कुछ भी नहीं दे सकता।  मैं  अब तो लाचार हूं। मेरी दोनों भुजाएं कट चुकी है। मैं किसी को क्या दे सकता हूं?

नरेंद्र उसे एक ऐसी संस्था में ले गया जहां अपंग व्यक्ति किसी पर भी निर्भर नहीं थे। जिन व्यक्तियों के बाजू नहीं थे वे पैरों से साइकिल चला रहे थे। जो अंधे थे  वे भी कुछ ना कुछ काम में लगे हुए थे। जिनकी टांगे नहीं थे वह हाथों से टांगों का काम कर रहे थे। उन सब को इस तरह काम करता देखकर नरेंद्र ने कहा कि अब भी तुम्हारा खुदकुशी करने का मन है तो खुशी से अपनी जान दे सकते हो। या अपनी नई दुनिया को नए सिरे के से जीने के काबिल बना सकते हो। विनय नरेंद्र के गले लगकर बोला तुम सचमुच में ही मेरे बड़े भाई हो। अब मैं ख़ुदकुशी नहीं करूंगा। मैं भी अपने पांव पर खड़ा होने की कोशिश करूंगा।

नरेंद्र ने उसे सांत्वना दी कि इस काम में  मैं तेरी सहायता अवश्य करूंगा। भाई मेरे तुम कोई ऐसा काम करना जिससे तुम्हारी दुनिया वाले वाह वाह करें। विनय नरेन के गले लग कर बोला भाई मेरे अभी मेरे बारे में मां को कुछ मत बताना। जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊंगा उस दिन मैं अपनी मां के सामने जाऊंगा। हर रोज की  बारह घंटों की लगातार अभ्यास के चलते  विनय नें पैरों के द्वारा टाइप करना सीख लिया। जब टाइपिंग का टेस्ट दिया तो उसने 500 टाइप राइटर को मात दे दिया। उसने गिनीज बुक वर्ल्ड चैंपियन में अपना नाम दर्ज किया। आज तो उसे इतने बड़े ईनाम से नवाजा जाना था। उसे तो  एक ऑफिस की नौकरी मिलने वाली थी। 26 जनवरी की परेड पर जब विनय का नाम पुकारा गया जिन्होंने अपने दोनों बाजू   गंवा देने पर  भी अपने आपको निराश नहीं होने दिया और एक अवॉर्ड अपने नाम कर सब लोगों को चौंका दिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब विनय का नाम पुकारा गया  तब वह उठा और अपना ईनाम लेने चला गया। नरेंद्र अपनी मां सविता को बोला आज मैं आपको ऐसा उपहार देने वाला हूं जो किसी बेटे ने अपनी मां को नहीं दिया होगा। आज मैं आपको किसी से मिलवाना चाहता चाहता हूं।

सविता उसके साथ परेड ग्राउंड में पहुंच गई विनय भी इनाम लेने आ गया था। विनय का नाम पुकारा गया तब उसे ट्रॉफी दी गई। नरेंद्र नें विनय को सविता से मिलाया और कहा  यह है आपका उपहार। अपने बेटे को  जिन्दा देखकर खुशी से अपने बेटे को गले से लगा लिया। उसकी दोनों बाजू  कटी हुई थी। वह उसको देख बेहोश होते-होते बची। बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को संभाला।  सब लोगों ने तालियों में उसके बेटे को ट्रॉफी से नवाजा। सारी कहानी नरेंद्र नें सविता मां को सुना दी। सचमुच में ही नरेन ने उसके बेटे को उस से मिला दिया था। सविता बोली मेरे दो बेटे मेरी बाजू है। मेरी शक्ति हैं तुम दोनों मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। चारोंतरफ खुशी का वातावरण छा गया।

माँ

मां का भोला भाला चेहरा याद आता है।

उनका ममता भरा स्पर्श याद आता है।
दुलार की ठंडी छांव का झोंका याद आता है।

उनकी हर बात का हर शब्द याद आता है।।

मां की छवि को भुलाया नहीं जा सकता।

उनकी यादों को कभी मिटाया नहीं जा सकता।

चाहे कितनी भी उंचाइयां छू लीं जाए।

उनकी  हर झलक को कभी मिटाया नहीं जा सकता।।

उनका गालों पर थपथपाना। प्यार से सहलाना।

अपनत्व और ममता भरा प्यार का खजाना। सब पर लुटाना ,

भुलाया नहीं जा सकता।

उनके साथ बिताया हुआ हर क्षण हर लम्हा हर वक्त याद आता है।।

मां का भोला भाला चेहरा याद आता है।

उनका सारे परिवार को एकता में पिरोना।

उनका सम्मान के साथ जीना।

भीड़ में एक अलग पहचान बनाना।

उनका हर तराना याद आता है।

उनके साथ बिताया हुआ हर क्षण हर लम्हा याद आता है।।

उनको अपने दिलों में जिंदा रख सकूं यही है तमन्ना मेरी।

उनको अपने दिलों में जिंदा रख सकूं यही है  तमन्ना मेरी।

उनकी सीख को कभी भुलाया नहीं जा सकता।।

(आओ हम कुछ देना सीखें) कविता

   आओ हम  कुछ  देना सीखें।

 जन जन की खातिर प्यार अपना लुटाना सीखें।।

आओ हम कुछ देना सीखें।

तरु की झुकी झुकी डालियों की तरह हम भी शीश झुकाना सीखें।।

अपने अहंकार को त्याग कर सभी को गले लगाना सीखें।।

आओ हम कुछ देना सीखें।

माला के मनकों की तरह एक पंक्ति में गुंथ कर एकता की मिसाल कायम करना सीखें।

औरों के  हित की खातिर स्वार्थ अपना भूलाना सीखें।।

आओ हम कुछ देना सीखें।

रूढ़िवादिता के गहन अंधकार से निकल कर  नई सोच को अपनाना सीखें।

पुरानी पीढी के साथ मिल कर उन की सोच को संवारना सीखें।।

हम भी तो कुछ देना सीखें।

मातृभूमि की रक्षा के खातिर जान अपनी लुटाना  सीखें।।

पुरुषार्थ के बल पर हर दम आगे बढ़ना सीखें।

आलस को त्याग कर  विवेक को जगाना सीखें।।

अनपढ़  को शिक्षा देकर  फर्ज अपना निभाना सीखें।

ज्ञान  की ज्योति जला कर उनमें नई उम्मीदों का चिराग जलाना सीखें।।

आओ हम  कुछ देना सीखें।

हंसी की मुस्कान बन कर  सभी के दिलों में जगह बनाना सीखें।

हम भी तो कुछ देना सीखें।

छोटे और बड़े के भेदभाव को भुलाकर हर एक को गले लगाना सीखें।

गुरुजनों की छत्र छाया में रह कर उन के   आदर्शों पर चलना सीखें।।

(आओ हम कुछ देना सीखें)

पैसा या रुपैया

बाप बड़ा ना भैया।

इस दुनिया में सबसे बड़ा रुपैया।।

पैसा है इस दुनिया में सबको प्यारा।

इसके बिना  किसी को भी जीना नहीं गंवारा।।

पैसे की चमक इंसान को अंधा बना देती है।

उसकी आंखों पर काला नकाब पहना देती है।।

कलयुग में पैसे को ही  अहमियत है दी जाती।

जिसके पास नहीं है पैसा उसकी कोई कद्र नहीं होती।।

लोग पैसे वालों से ही संपर्क बढ़ाते हैं।

पैसा नहीं  हो तो पैरों तले दबाते हैं।।

पैसों के लालच में कईयों ने अपनी जाने गंवाईं।

कई महिलाओं बच्चियों नें अपनी आबरु तक लुटाई।।

पैसा कमाने की होड़ में लोग बेईमानी करके अपना जमीर तक बेच देते हैं।

यहां तक कि अपने पुरखों की संपत्ति को भी दांव पर लगा देते हैं।।

यह तो है एक लालच की तृष्णा।  

केवल यह है एक मृगतृष्णा।।

जितना आता है इससे ज्यादा पाने की ललक है छाई रहती।

गुमनामी के जीवन को जीने की ओर अग्रसर है करती।।

पैसे के पीछे बेई मानी करना अपना ईमान खोना  यह है बड़ी शर्म की बात।

इसकी आड़ में और ना जाने क्या-क्या घोटालों की है सौगात।।

पैसा इंसान से क्या क्या करवाता है।

उसे कठपुतली बना कर नचाता रहता है।।

इंसान रात दिन पैसा पैसा करता रहता है।

गल्त धन्धे में  पड़ कर अपना जीवन नष्ट करता रहता है।।

सभी को चाहिए यह पैसा।

चाहे  नेकी करके या बेईमानी कर के,

सभी की मजबूरी है यह पैसा।

नेकी कर के कमाया  ही फलताफूलता है ये पैसा।।

इन्सान की छवि को चार चांद लगाता है।

उस को तरक्की के मार्ग पर पहुंचाता है।।

होनहार बेटियाँ

यह कहानी बिहार के एक छोटे से कस्बे की है यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है लेकिन इस के पात्र काल्पनिक है। उस कस्बे में गंगाधर नाम का एक नाई रहा करता था। वह लोगों के बालों की कटाई इतने अच्छे ढंग से करता था कि लोग दूर-दूर से बाल कटाने के लिए उसके पास आते थे। उसकी दुकान पर लोगों का तांता लगा रहता था। कई बार तो साथ वाले दुकानदार भी उसकी तरफ देख कर उस पर कटाक्ष किया करते  थे कि कुछ लोगों को हमारी दुकान पर भी भेज दिया करो। उस कस्बे में दो तीन नाईयों की दुकानें थी। उनकी दुकानों पर ज्यादा ग्राहक नहीं आते थे। गंगाधर की जिंदगी खुशी खुशी से व्यतीत हो रही थी। उसकी पत्नी कमला भी नेक औरत थी। उसकी 2 बेटियां थी।छोटी बेटी साक्षी आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी। दूसरी बड़ी बेटी प्राची दसवीं में। सुबह से शाम तक काम करते-करते वह बहुत थक जाता था। उसके गांव में बेटियों को पढ़ाना बहुत ही बुरा माना जाता था।। कई  लोग तो अभी भी इतने रूढ़ीवादी  विचारों के थे कि लोग अपनी लड़कियों को बिल्कुल भी स्कूल में नहीं भेजते थे। कुछ एक लोग थे जो अपनी बेटियों को थोड़ी बहुत शिक्षा दे देते थे। वे समझते थे कि लड़की को घर में ही बिठाना चाहिए। उसके तो बस शादी कर के हाथ पीले कर देनी चाहिए। गंगाधर ऐसा नहीं था उसकी सोच औरों से बिल्कुल भिन्न थी। वह चाहता था कि वह अपनी बेटियों को दसवीं तक तो अवश्य ही पढाएगा। वह यह नहीं सोचता था कि मैं अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजूंगा। वह चाहता था कि वह अपनी लड़कियों को इतनी शिक्षा तो दे सके ताकि वह अपनी ससुराल में वक्त पड़ने पर अपने परिवार को संभाल सके। आसपास के लोग तो उस पर कटाक्ष भी किया करते थे तुम अपनी बेटियों को क्यों स्कूल में पढ़ने भेजते हो? बेटियों को स्कूल में भेजने से कोई फायदा नहीं होता। एक ना एक दिन बेटियों को तो शादी कर के हाथ पीले करके घर दूसरे घर जाना पड़ता है। वह क्या तुम्हें  खिलाएंगी?

एक बार वह इतना बीमार पड़ गया कि दुकान पर नहीं जा सका। सारे के सारे लोग दुकान पर  उस का बेसब्री से इंतजार करें थे, लेकिन वह बिस्तर से उठ भी नहीं सका। उसकी पत्नी बहुत ही दुःखी रहने लगी थी। जब उन्होंने उसे अस्पताल में दाखिल कराया तो डाक्टरों ने कहा कि उसके शरीर की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया है। जिस वजह से उसके सारे शरीर पर इसका असर हो सकता है। उसे आराम की बहुत ही सख्त जरूरत है अगर वह आराम नहीं करेगा तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा। कमला ने जब  यह सुना तो वह रोने लगी। उसकी बेटियां अभी छोटी थी। कुछ नहीं कर सकती थी। दोनों बेटियों ने आपस में सलाह की कि हमें भी कुछ ना कुछ तो करना ही चाहिए। वह भी अपनी मां के साथ रोने लगी थीं। एक गांव की बुजुर्ग महिला ने उन्हें समझाया कि रोने धोने से अब तुम्हारा काम नहीं चलेगा। तुम्हें ही अपने पिता के बुढ़ापे का सहारा बनना होगा। उन्होंने भी तो रातों रात जाग जाग कर तुम्हें पाने के लिए कितनी कुर्बानियां दी। तुम्हारी फीस देने के लिए रात-दिन कड़ी मेहनत की। मुश्किल की घड़ी में तुम्हें अपने बाबा की ताकत  बनना चाहिए। तुम दोनों ही अगर जीवन से निराश हो जाओगे तो तुम्हारी मां तो ऐसे ही मर जाएगी। तुमको अपनी मां और बाबा को हौसला देना होगा

यह एक  ऎसा समय है जो रो – धोकर समय गुजारने का नहीं है। मेरे बस में होता तो मैं तुम्हारी मदद करती मगर इस बुढ़ापे में तुम्हारे काम नहीं आ सकती। दोनों बेटियों ने सोचा बूढ़ी दादी ठीक ही कर रही है। हम रो रो कर समय गवा देंगे तो अपनी मां की रही सही जिंदगी भी नष्ट कर देंगे। हम बेटा नहीं हुए तो क्या हुआ? बेटों की तरह काम करके तो दिखा सकती हैं। उन्होंने अपनी मां को समझाया कि मां कुछ दिनों के लिए आप मामा के पास जा कर रहो तब तक हम अपने  लिए नौकरी का गुजारा करती हैं। उसकी मां बोली तुम क्या कर सकती हो? तुम को लोग न जानें क्या क्या कटाक्ष सुनाएं जाएंगे। हमारे यहाँ तो बेटियों को बाहर काम करनें की सलाह नहीं है। तुम लोंगों को क्या क्या कहती फिरोगी। बेटियाँ बोली आप चिन्ता मत करो हमारे पिता नें हमें थोड़ी बहुत शिक्षा तो दे ही दी है। हम भी कुछ न कुछ कर के दिखाएंगी। हम किसी की परवाह  नहीं करेंगी। आप को हम दोनों पर विश्वास रखना होगा।

उसकी मां अपने पति को लेकर अपने भाई के यहां पर चली आई। दोनों बेटियों ने आपस में सलाह की कि हम अपने पिता के व्यवसाय को संभालेंगे अगर लोग हम पर कटाक्ष करेंगे तो हम उसका जवाब अवश्य देंगे। क्या हुआ? अगर हम बेटियां हैं। हम भी तो अपने पिता का व्यवसाय संभाल सकती हैं। चाहे जो भी हो बेटियों का काम करना अगर बुरा समझा जाता हो तो भी हम अपने पिता की सहायता के लिए इस काम को अवश्य करेंगे। उन दोनों ने अपने पिता के व्यवसाय को संभाल लिया।

दोनों की दोनों एक दिन अपने पिता के दुकान पर बाल काटने गई। लोगों ने जब दुकान पर उन दोनों लड़कियों को देखा तो उन दोनों  पर कटाक्ष करने लगे। लड़कियां होकर इस काम को करती हो तुम्हें शर्म नहीं आती।   हमारे कस्बे में बेटियों का काम करना बुरा समझा जाता है। हम में से  आज के बाद कोई भी यहां पर बाल कटाने के लिए ही नहीं आएगा। दोनों ने जब यह सुना तो वह रोने लगी फिर भी उन्होंने हौसला नहीं हारा। शाम को उन दोनों ने आपस में विचार विमर्श किया क्यों ना हम एक दूसरे के बाल काट डालें। बचपन में वह अपने पिता को इस काम को करते देखा करती थी। हमें अपने पिता का सारा का सारा काम अच्छे ढंग से आता है। साक्षी ने प्राची के बाल काट दिए और प्राची ने साक्षी के।  वे दोनों  लड़कों के समान दिख रही थी। उन दोनों ने बाजार से जाकर लड़कों वाली  पोशाक भी खरीद ली थी। उस पोशाक को सिलाई कर के अपनें माप के अनुसार बना डाला। वे दोनों अपनी मां को सिलाई करते भी देखा करती थी। थोड़ा बहुत सिलाई करना भी जानती थी। लड़कों की पोशाक में वह बिल्कुल ही लड़का नजर आ रही थी

सबसे पहले उन्होंने  कानपुर की ट्रेन ली। उनके मामा कानपुर रहते थे।  अपने मामा के घर की ओर चल पड़ी। वह दोनों सोच रही थी कि हम अब किसी को भी यह नहीं बताएंगे कि हम लड़कियां हैं। हमारे मामा अगर हमें पहचान जाएंगे तो हमें पता चल जाएगा कि  हमें इस वेशभूषा में भी सब पहचान सकते हैं।  धीरे धीरे उसके  के घर के पास  वाले स्टेशन पर गाड़ी पहुंच चुकी थी। वे गाड़ी से उतरीं। उन्होंने वहां से रिक्शा लिया और अपने मामा के घर की ओर चल पड़ी।  सबसे पहले उन्होंन घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया। घर पर उसकी मामी मामा और उन   दोनों के मां बाबा थे। मामा ने जैसे ही दरवाजा खोला

वह बोले आप से हमें क्या काम है? आप कौन हैं और कहां से आए हैं? हमने आपको नहीं पहचाना। दोनों बेटियां मन ही मन खुश रही थीं कि चलो अच्छा ही हुआ कि हमें किसी नहीं नहीं पहचाना। मां बाबा भी अपनी बेटियों को नहीं पहचान पाए।  हम अब अपने पिता के व्यवसाय को बड़े अच्छे ढंग से कर सकती हैं।  हमें  अब समझ में आ गया है कि हमें इसी पोशाक में रहकर और लड़का बनकर यही काम करना है। काफी देर तक बातें होती रहीं।

दोनों ने इशारा करके मामा को अपने पास बुलाया और कहा कि हम अकेले में आपसे बात करना चाहते हैं। उसके मामा यह देखकर हैरान हो गए कि दो अजनबी उनसे ऐसी क्या बातें करना चाहते हैं? उनका मामा उन्हें एक बड़े हॉल में ले गया। वहां पर बैठकर वे तीनों बातें करने लगीं। दोनों बेटियां बोली मामा जी नमस्ते। वह उनको हैरान भरी नजर से देखने लगा।

साक्षी और प्राची ने सारा किस्सा अपने मामा को सुनाया और कहा कि हमारे बाबा तो अब कोई भी काम नहीं कर सकते। उन्हें तो डॉक्टरों ने सलाह दी है की अगर आप आराम नहीं करेंगे तो अपनी जीवन लीला से हाथ धो बैठेंगे। इसलिए किसी ना किसी को तो काम करना बहुत ही जरूरी था। मामा जी आपको तो पता ही है कि हमारे कस्बे में बेटियों का काम करना बहुत ही बुरा समझा जाता है। अपने पिता की बीमारी की खबर सुनकर मां तो जोर जोर से रोने लगी और हम भी जोर जोर से रोने लगे। मोहल्ले की एक बूढ़ी काकी ने आकर हमें दिलासा दिया और कहा कि रोने धोने से अब कोई काम नहीं होगा। तुम्हें हौसला रखना चाहिए और अपनी मां को संभालना चाहिए। भले ही लड़की का काम करना बुरा समझा जाता है परंतु तुम्हारे माता-पिता ने भी तो तुम्हें पालपोस कर इतना बड़ा किया है क्या तुम उनको नहीं संभाल सकती? रातों रातों को जाग कर उन्होंने तुम्हारी शिक्षा के लिए न जाने कितनी मुश्किलें झेलीं।  मुश्किल की घड़ी में क्या तुम उनको अकेला छोड़ देगी? तुम ही उनके बेटों के बराबर हो। हम दोनों ने आंसू पोंछ डालें और उस बूढ़ी काकी को धन्यवाद किया और साहस करके अपने पिता की दुकान को संभालने के लिए निकल पड़ी। हम  जैसे ही दुकान पर पहुंचीं  लोगों ने हम दोनों पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया। लड़कियां होकर काम करती हो। क्या तुम्हें शर्म नहीं आती? हमारे कस्बे में लोग क्या कहेंगे? मन तो कर रहा था कि उनको कड़ा जवाब देते परंतु फिर हम चुप रह गई। दो-तीन दिन तक हमारे पास कोई भी काम नहीं आया। दुकान पर ताला जड़ा और घर की ओर आ गईं। हमने फिर भी हिम्मत नहीं हारी। हम अपने पिता को बचपन से ही काम करते देखा करते थे। मैंने और प्राची ने एक दूसरे के बाल काट डाले। हमारे मन में ख्याल आया क्यों ना हम लड़का बनकर इस काम को करें तो कैसा रहेगा? उनके मामा बोले बेटा तुम तो बहुत ही बहादुर हो। आज तो मैं भी तुम दोनो को इस पोशाक में पहचान नहीं पाया। साक्षीऔर प्राची बोली कि आप कभी भी हमारे माता-पिता को यह नहीं बताना कि हम दोनों लड़का बनकर उनकी सेवा कर रहे हैं। आपको इस काम में हमारी मदद करनी होगी। आपको किसी को भी नहीं बताना होगा कि हम दोनों साक्षी और प्राची हैं। उनके मामा बोले ठीक है बेटा  मैं किसी को भी नहीं बताऊंगा यह बात हम तीनों के बीच में ही रहेगी।

साक्षी और प्राची अपने मामा को कहने लगी मामा अब हम चलते हैं। आप हमारे मां बाबा का ख्याल रखना। जैसे ही हमारा काम चलने लगेगा हम दोनों अपने माता पिता को लेने अवश्य आएंगे।

साक्षी और प्राची दोनों अपने गांव लौट आई थी उन्होंने आते ही दुकान का ताला खोला और देखते ही दुकान को सजा डाला। आते जाते लोग उन दोनों नव युवकों को घूर घूर कर देख रहे थे। धीरे-धीरे लोग उनकी दुकान पर आने लगे। लोगों ने उन दोनों लड़कों से पूछा कि क्या तुमने गंगाधर का काम संभाल लिया है? वह बोले कि गंगाधर ने हमें यह दुकान किराए पर दी है। वे कहने लगें  ठीक है बेटा। धीरे-धीरे उनकी दुकान पर लोग आने लगे। कई लोग जब वह बाल काट रही होती तो कहते कि तुम्हारे  हाथ तो लड़कियों के जैसे हैं।   इस प्रकार काम करते करते उन्हें तीन-चार साल हो गए। उन्होंने अपने मां बाबा को भी अपने पास बुला लिया। जब वह घर आती थी तो अपने बालों में विग लगाकर आती थी ताकि मां बाप को कभी भी पता ना चले कि उनकी बेटी बेटियां लड़का बनकर उनकी सेवा कर रहीं हैं। इसी तरह से दिन गुजर रहे थे

एक दिन उनके बाबा नें  घर पर बहुत देर तक इंतजार किया । वे दोनों ट्रैफिक में फंस गई थी। घर नहीं पहुंच पाई थी।  उनके मां बाबा उन्हें न आया  देख कर  परेशान हो रहे थे। रात का वक्त हो गया है लड़कियां अभी तक नहीं पहुंची है । पता नहीं आजकल कहां रहती हैं?  मैं भी इन पर नजर नहीं रख सकता।उनके बाबा सोचनें लगे कहीं मेरी बेटियां किसी गलत काम में तो नहीं पड़ गई  हैं जो इतनी देर तक रात को आती हैं। वह अपनी पत्नी कमला से बोले कि हमें अपनी बेटियों पर नजर रखनी पड़ेगी।

एक दिन जब वह काम के लिए घर से निकल रही थीं  दोनों के हाथ में एक बैग था। ना जाने उस बैग में क्या होता था जिसको छुपा कर रखती थी। उसके बाबा उन दोनों पर कड़ी नजर रखते थे।  इस बैग में  ऐसा क्या है जो कि वह हमें बताना नहीं चाहती। एक दिन तो उसके बाबा गुस्सा होकर बोले  आज तो तुम्हें इस थैले को खोल कर बताना ही पड़ेगा। जल्दी से साक्षी ने प्राची का हाथ पकड़ लिया और थैला उसकी ओर फेंका और वह बात  पलट दी। उसके पिता अपने मन में सोचने लगे पता नहीं इस बैग में क्या है? जो यह मुझसे छुपाना चाहती हैं। उसने अपनी पत्नी को भी सारी बात बता दी। कमला ने अपने पति को बताया था कि घर के खर्च के लिए मेरे भैया यहां पैसा भेजते हैं जिससे हमारे घर का गुजारा चल रहा है। गंगाधर  सोचने लगे मैंने अपनी लड़कियों को यूं ही पढ़ाया लिखाया। वे तो ना जाने क्या क्या गुल खिला रही हैं?

एक दिन शाम के समय गंगाधर  ने देखा उन दोनों ने अपना बैग पलंग के नीचे छुपा दिया था। दोनों तैयार होने के लिए जाने लगी उनकी मां बोली बेटा नाश्ता तो कर के जाओ। उनके मां बाबा को तो यही पता था कि वह स्कूल पढ़ने जा रही हैं मगर उन्होंने अपने मां पिता को नहीं बताया था कि वह स्कूल पढ़ने नहीं बल्कि अपने पिता का कारोबार संभाल रही हैं। उन्होंने स्कूल तो कभी का छोड़ दिया था। गंगा धर घर में बैठा बैठा थक जाता था। कभी कभी अपनें यार दोस्तों की मदद से समीप के रैस्टोरैन्ट में अपना मन बहलानें उनके साथ कभी कभार चला जाता था।

गंगाधर को मौका मिला उसने  एक दिन थैले को उठा  ही लिया और खोला। खोल कर देखा उसमें तो लड़कों के कपड़े थे। वह सोचने लगा मेरी बेटियों ने लड़कों के कपड़े क्यों रख रखे हैं?। परंतु उस समय उसने उन दोनों से पूछना ठीक नहीं समझा। दोनों पोशाकों को ऐसे ही थैले में रख दिया था। दिन के समय वे अपनी पत्नी के साथ अपनी दुकान पर पहुंचे। उन्होंने सोचा कि आज तो मैं देख कर ही रहूंगा कि मेरी दुकान पर यह दो नवयुवक  कहां से आए हैं? उन से आज मुलाकात करके हीरहूंगा। दुकान पर जैसे ही पहुंचा उन दोनों ने बाबा को नमस्कार किया और कहा आप कहां से आए हैं? क्या आप बाल को कटाना चाहतें हैं? यह  पोशाक  तो मैंने साक्षी और प्राची के थैले में देखी थी। यह तो इन दोनों ने पहन रखी है। कहीं मेरी बेटियां इन दोनों लड़कों  के साथ घुली मिली तो नहीं है। शाम को इन दोनों से पूछ कर ही रहूंगा। इन दोनों लड़कों से पूछना भी ठीक नहीं रहेगा।

गंगाधर ने कहा नहीं बेटा मैं ऐसे ही आया था सोचा अपनी दुकान को देखता चलूं। तुम से बैठकर फिर किसी दिन अच्छे ढंग से बात करूंगा। अपनी बेटी पत्नी कमला के साथ घर की ओर  चल पड़ा। घर पहुंच कर उसके मन में ना जाने कैसे कैसे सवाल आ रहे थे?

साक्षी और प्राची  5:00 बजे के समय घर आती हैं चलो उसी दुकान पर चलकर प्रतीक्षा करता हूं जहां पर वह चाय पीती हैं। वह रैस्टोरैन्ट तो पास ही है। वह अपने दोस्त शेखर के साथ उस रैस्टोरैन्ट में चला गया। चुपके से देखता हूं  कहीं वह दोनों नवयुवक तो इनके साथ तो नहीं मिले हुए हैं। छुप कर   अपनी  दोनों बेटियों को देखने लगा।  आज तो उनकी दोनों बेटियों के स्थान पर वह दोनों लड़के पहुंचे थे। मैं ठीक ही सोचता था मेरी बेटियां इन लड़कों के साथ मिलकर ना जाने क्या क्या करती है? शेखर के साथ चाय पीने लगा था। वह उन दोनों लड़कों को साथ वाले कमरे में जाते हुए देख रहा।

वह अपने मन में सोचने लगा जैसी ही यह दोनों बाहर आएंगे मैं आज उन दोनों से पूछ कर ही रहूंगा। थोड़ी देर बाद अंदर से दो लड़कियां निकली। वह चौक गया अंदर तो दोनों लड़के गए थे मगर बाहर निकली तो दोनों लड़कियां।  आज घर जाकर पता करता हूं वह रात भर अपनी बेटियों पर निगरानी रखने लगा। सुबह जैसे ही  प्राची सो कर उठी उस ने अपना और साक्षी का विग उस बैग में डाल दिया। जल्दी से गंगा धर कमरे में आया और उसने बैग को खोला विग देखकर उसे सारा माजरा समझ में आ गया।

यह दोनों बेटियां ही लड़कों की पोशाक में मेरा कारोबार सम्भाल रही हैं। मैं अपनी बेटियों के बारे में ना जाने क्या-क्या सोच रहा था?मेरी बेटियां तो हीरा है हीरा। आज मेरी बेटियों ने मेरे कारोबार को संभाल कर मेरा नाम रोशन कर दिया है। मैंने अपनी बेटियों के बारे में गलत सोच बना दी थी। अच्छा हुआ मैंने अपनी बेटियों को नहीं  बताया। शाम को उन के मामा कानपुर से उन के कस्बे में आए थे। दोनों बेटियाँ घर पहुंच गई थी। अपने मामा के पैर छू कर उन से आशिर्वाद लिया। उनके मामा बोले बेटा तुम तो बेटे से कम नहीं हो। उनके बाबा आ कर बोले मेरी शिक्षा बेकार नहीं गई आज मुझे समझ आ गया है कि लडकियां भी बेटों से कम नहीं होती। दोनों बेटियां हैरान हो कर अपने पिता की तरफ देख  रही थी। गंगाधर बोला हमारे कस्बे में अभी भी बेटियों को पढ़ने नहीं भेजा जाता। यह बात गल्त है। खुदा न करे घर में किसी को ऐसी खतरनाक बिमारी लग जाए और उस घर में बेटा न हो कर बेटी है तो वह तो मर ही जाएगा। ऐसी सोच को हमें जड से निकालकर दूर फेंकना होगा। मैनें तो अपनी बेटियों को पढाया। और पढ़ना चाहता था लेकिन बीमारी नें साथ पकड़ लिया। मेरी बेटियां न जानें आज इतनी बड़ी हो गई। उन दोनों नें  मुझे और अपनी मां को पता ही नहीं चलने दिया अपनी पढाई बीच में छोड़ कर मेरा कारोबार सम्भाल रहीं हैं वह भी लड़का  बन  कर। बेटा तुम दोनों आज मेरे गले लग जाओ। मैं कितना खुशनसीब हूं  तुम दोनों नें मेरे घर जन्म लिया।उनके मामा बोले इस बात का मुझे पता था। उन दोनों नें मुझे सारी बात पहले ही बता दी थी। उन्होंनें मुझे कसम दिला कर कहा था कि यह बात हम तीनों में ही रहनी चाहिए। इस कारण मैनें आप लोगों से कभी नहीं बताई। आप लोगों को मैं कोई रुपये नहीं भेज रहा था वह सब तो आप की बेटियां कमा रहीं थी। उन्होनें ही मुझे ऐसा करनें के लिए कहा था।

कस्बे वालों को पता चल चुका था कि वह दोनों नवयुवक कोई और नहीं बल्कि वह तो उनकी अपनी ही बेटियां हैं जिन्होनें अपने बाबा को बचानें के लिए लडका बन कर अपने पिता का कारोबार सम्भाला है। जब लडकियां बन कर वह दुकान पर बैठती थी लोग उन पर न जानें कितने छीटांकशी करते थे। उन्हें शाम तक क्या क्या सुनना पड़ा। एक दिन तो उन को कह ही डाला हम आज के बाद इस दुकान पर बाल कटाने नहीं आएंगे। उन दोनों नें अपनें पिता के कारोबार को बहुत ही अच्छे ढंग से सम्भाला। और आज तक सम्भाल रही हैं। आज वही लोग उन दोनों लडकियों की प्रशंसा करनें से नहीं थकते। कस्बे के लोग जागरुक हो चुकें हैं। उन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाना लाखन आरम्भ कर दिया है। उन के पिता आज भी बिमार हैं। वे दोनों बेटा बन कर अपनें पिता के व्यवसाय को चार चांद लगा कर अपनी मां का भी ख्याल रख रहीं हैं। नाज हैं एसी बेटियों पर जिन्होनें अपनें मकसद में सफल हो कर दिखाया।

बूढ़ी काकी

किसी गांव में रौशनी नाम की एक बहुत ही नेक और ईमानदार महिला  रहती थी।   जैसा उस औरत का नाम था उसी की तरह उसका स्वभाव था। रौशनी जहां भी जाती रोशनी की किरणें बिखेर देती। मीठे मीठे वचनों से सभी को अपना बना लेती थी। नेकी का जीता जाता उदाहरण थी वह। बच्चे बूढ़े सभी के साथ मधुर व्यवहार करती हर आने जाने वाले लोगों पर अपनी अमिट छाप छोड़ देती थी। लंबी चोटी बड़ी बड़ी आंखें उस पर गोलमटोल चेहरा। घुंघराले बालों वाली। काम इतनी होशियारी से करती कि पता भी नहीं चलता कब काम हो गया। चुटकियों में  घर का सारा काम कर दिया करती थी।  उसके दो बेटे थे। जगता और भक्ता। उसके दोनों बेटे जगता और भक्ता  बडे़ हो चुके थे। उनके पिता नहीं थे। मां ने  ही उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया था। मां ने उन्हें  कोई कमी नहीं रखी थी। हर वस्तु थी उनके पास। काफी धन दौलत थी। वे दोनों बेटे भी नौकरी  कर  अपना काम धंधा कर रहे थे।

जगता जैसा नाम वैसा ही काम। जगत के  लोगों के कल्याण के लिए उसने राजनीति से अपना सफर शुरू किया।वह  इलेक्शन में खड़ा हो जाता जिस तरह जीतने की गुंजाइश होती उस पार्टी में शामिल हो जाता। कभी चुनाव में जीत जाता था कभी हार जाता। उसकी मां उसको बोल बोल कर थक गई  उस चुनावी दावपेच में क्यों पड़ा है लेकिन जब  जीत जाता तो उसकी  तो पौ बारह हो जाती। उसे तो पैसा कमाने से मतलब था। घर के काम धाम से उसका कोई मतलब नहीं था। अफसरगिरी झाड़ कर गांव के लोगों को अपनी ओर आकर्षित  कर  लेता था।  वह सभी से कहता फिरता था कि मैं इस बार चुनाव में जीत गया  तो तुम्हारे गांव की  काया ही पलट कर दूंगा। इस बार जीता कर तो देखो लेकिन जब चुनाव समाप्त हो जाते तो मोहल्ले की तरफ रुख भी नहीं करता था। ऐसा था जगता नाम बड़े और दर्शन छोटे। उसको तो बस रुपए कमाना  था। उसकी मां को अपनी बेटे की यही आदत अच्छी नहीं लगती थी।

भक्ता तो  संतों की तरह था। उसका व्यवहार बहुत ही मधुर था। भगंवा चोला और हाथ में कम्डल लेकर सुबह से शाम तक  प्रवचन देने चला जाता। उसे पूजा-पाठ के नाम पर कुछ नहीं आता  जाता था। दो तीन चार मंत्र रट लिए। आता जाता कुछ नहीं था। उसको जब कभी किसी के घर पूजा पाठ करने जाता तो अपनी पोथी  जो उसने खरीदी थी उसको साथ ले जाना नहीं भूलता था। किसी ने उसे कुछ ऐसा वैसा प्रश्न कर दिया तो क्या उत्तर देगा?  हर वक्त चिंता में रहता था कि किसी दिन पोल खुल गई तो कहीं का नहीं रहूंगा। ना घर का ना घाट का। उसको लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का मंत्र आता था। वह अपनी बात को इधर-उधर घुमा देता था। लोग उसकी कमजोरी को पकड़ नहीं पाते थे। एक दिन उसे किसी ने पूछ लिया पंडित जी इस महीने एकादशी कब है। वह तो पोथी   लेकर नहीं गया था। कौन सी एकादशी कृष्ण पक्ष की या शुक्ल पक्ष।   कुछ लोग उसकी बातों में आ जाते थे। उसकी मां उसको प्यार से समझाती   बेटा लोगों से छल कपट करना अच्छा नहीं होता। वह कहां मानने वाला था? वह जब औरों के घर पूजा पाठ करने जाता तो कहता कि मैंने व्रत रखा है। लेकिन घर से चलते वक्त अगर उसके  घर से में प्याज लहसुन वाला खाना बना होता तो वह कहता मां  खाने को दे दो। मां कहती तुम तो किसी के घर में पाठ करने जाते हो  तुम्हे तो  व्रत करना चाहिए। वह  तो वह कहता  छोड़ो ना रुपया ही तो कमाना है।  यह पाठ वाह तो ढकोसलें हैं।  पेट भरने के लिए लोगों से छल तो करना ही पड़ता है। उसकी मां समझाती बेटा क्यों तुम्हारा जमीर तुम्हें  इसकी इजाजत देता है? वह अपनी मां को कहता मां  अपनी बड़ी बड़ी बातें अपने पास ही रखा करो। इस तरह का था भक्ता। दिन बितनें लगे ।

मां को अपनें दोनों बेटों की हरकतें पसंद नहीं थी। वह कहती थी कि मैंने अपने घर की एक एक  ईंट को अपनी नेकी की कमाई से जुटाया है। तुम्हें ही मेरी इस धरोहर  को सहेजना संभालना है। उसके बेटों ने  मनमानी करनें में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। मोहल्ले वालों से उसे  हर रोज बहुत कुछ सुनने को मिलता था। एक दिन जब जगता और भक्ता के बारे में लोगों ने उसकी मां को बहुत कुछ सुनाया तो उससे रहा नहीं गया। वह अपने दोनों बेटों के पास जाकर बोली मेरा अब इस घर में कोई काम नहीं। मैं यहां अब एक दिन भी और नहीं रह सकती। या तो तुम दोनों इस घर से चले जाओ या मैं ही इस घर को छोड़कर चली जाती हूं। जगता  और भक्ता ने अपनी मां को समझाने की बहुत कोशिश की मगर दोनों ने कहा हम यहां से कहीं नहीं जाएंगे। आपने जाना है तो खुशी से  जाओ। हम  तो आपको इसी तरह रख सकते हैं जैसे रह रहे हैं। आपने रहना हो तो रहो। मां नें जब यह सुना तो उसकी आंखों से आंसू छलक आए। उसने अपनी जो कुछ उसके पास जमा पूंजी थी वह  ली और रातों रात बिना किसी को कुछ कहे वहां से चली गई। घर छोड़ने के पश्चात  उसे दर-दर की ठोकरे खानें पड़ी। वह अपनें घर से इतनी दूर निकल आई जहां पर उसके बेटे उस से  मिलने ना आ सके। वह प्लेटफार्म पर  रेल के आने  का इंतजार कर रही थी। लोग स्टेशन पर इधर उधर भागे जा रहे थे। वह मन में सोच रही थी कि जैसे  ही कोई भी गाड़ी  यहां आएगी वह उस में  बैठ कर बहुत दूर चले जाएगी  जहां उसे कोई न पहचान सके। रेल गाड़ी की सीटी   सुनाई दी। स्टेशन पर गाड़ी आ चुकी थी। वह जल्दी से  गाड़ी में बैठ गई।  रेलवे इंस्पेक्टर ने पूछा कि तुमने कहां जाना है माई? वह बोली जहां इस गाड़ी का अन्तिम पड़ाव है। मुझे नाम याद नहीं आ रहा है। बुढ़ापे में कुछ याद ही नहीं रहता है। यह गाड़ी तो  भोपाल जा रही है। इंस्पेक्टर  से  मधुर स्वर से बोली   हां हां मुझे   भी वहीं जाना है उसनें टिकट इंस्पेक्टर को  टिकट के रुपये दिए। उसे भूख  भी बड़ी जोर की लग रही थी। अचानक उसके सामने वाली बर्थ पर एक परिवार आ कर बैठा। उनके पास एक छोटा सा बच्चा था। वह बार-बार उस बच्चे को देख कर उस से बात करने का प्रयत्न कर रही थी। साथ में बैठी एक औरत बोली बहना ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। ना जानें आपके बच्चे को लेकर चलती बनें। अपने बच्चे को संभाल कर रखो। रोशनी की आंखों में आंसू आ गए थे। साथ में बैठी औरत पानी पीनें बाहर चले गई थी। वह रौशनी की ओर देख कर बोली बहन ऐसी बात नहीं है आप बुरा मत मानना। यह लोग ना जानें  यूं ही कुछ ना कुछ कहते फिरते हैं। आप मेरी बेटे के साथ खेल सकती हैं।उसने अपने  बेटे को रौशनी की गोद में दे दिया था। वह उसकी गोद में आ कर चुपचाप उस की तरफ देख कर मुस्करा रहा था।  बच्चे की मां बोली  कि आप कहां जा रही हैं? वह बोली कि मैं  भोपाल जा रही हूं। वह  परिवार बोला कि हम भी सूरत ही जा रहे हैं। रोशनी को आशा की एक हल्की सी किरण दिखाई पड़ी चलो कोई तो साथ हुआ। बूढ़ी काकी ने अपने बच्चों के बारे में कुछ नहीं बताया। इस परिवार ने उससे पूछा सूरत में तुम्हारा कौन रहता है? वह बोली यह दुनिया ही मेरे लिए मेरा परिवार है। वहां कुछ काम धंधा करना चाहती हूं। रेखा बोली मुझे एक ऐसी ही आया की तलाश थी जो मेरे बेटे को अच्छे ढंग से संभाल सके। क्या तुम मेरे बेटे की देखरेख कर दिया करोगी? मेरा तबादला  हाल ही में भोपाल में हुआ है। बच्चे की देखभाल की जरूरत है। मैं तुम्हें इसके लिए ₹5000 दूंगी।

रोशनी बोली हां बेटा अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तभी  यह  बात कहना। बातों ही बातों  में  वह उन से घुल  मिल गई थी।     रोशनी का तो भूख के मारे बुरा हाल था। रेखा नें उसे खाना खिलाया। उसने भरपेट खाना खाया और एक ओर होकर सो गई।

भोपाल स्टेशन पर, गाड़ी रुक गई थी। अन्धेरा होने ही वाला था। रेखा उससे बोली बहन तुम कहां रहोगी? रोशनी बोली मैं एक कमरा किराए पर ले लूंगी। आप मुझे अपना पता दे दो। रेखा ने से अपना पता लिखकर दे दिया। रोशनी घर की तलाश करने लगी। उसे कहीं पर भी अच्छा कमरा नहीं मिला। उसने रात रलेवेप्लेटफार्म पर ही गुजारी।   उसे जो भी कमरा मिला वह तो बहुत ही महंगा था एक महीने के लिए उसने वह कमरा दो हजार पर ले लिया। छोटा सा था। दूसरे दिन वह काम की तलाश में रेखा के घर चली गई। इस तरह उसे रेखा मेमसाहब के घर काम करते करते  छः साल हो गए। उसने कुछ रुपए इकट्ठे कर लिए थे। उसने अपने गहने भी बेच दिए। उसने उससे एक छोटा सा घर खरीद लिया। वह छोटा सा ही घर था जिसमें एक कमरा और एक रसोई थी। वह उसका अपना तो  था।  अजनबी शहर  वाली जगह में दो हजार देना उसे बहुत ही दुष्कर लग रहा था। इसलिए उसने इकट्ठा करके अपना ही कमरा ले लिया था।वह आसपास के घरों में झाड़ू पोछा करती और जो मिलता उसे अपना गुजारा किया करती। उसके  बेटों  ने तो उसे ढूंढने का भी प्रयत्न नहीं किया।

एक दिन जब वह घर साफ कर रही थी तो उसके घर के बाहर एक बंदर आकर गिरा। उसके पैर में बहुत चोट लगी थी। उसने उसकी मरहम पट्टी की और उसे खाने को दिया। पांच-छह दिन तक वह उसे खाना देती रही। जब बंदर थोड़ा ठीक हुआ तो वहां से चला गया। हर शाम को आता और उस बुढ़िया काकी को देखता रहता। वह बड़े ही प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरती उसे और अपने हाथ से खाना भी  खिलाती। अपने आप भी खाती। एक थाली उसकी लगाती और एक थाली अपनी। वह बंदर उसको प्रेम भरी नजरों से देखा करता था। जब उसे भोजन नहीं मिलता था तो  वह उस बूढ़ी काकी के घर आ जाता था। उसके साथ खाना खाता। इस तरह काफी दिन व्यतीत हो गए।

रेखा का तबादला दूसरे शहर को हो गया था। वह भी दूसरे शहर में जाकर बस गई थी। रौशनी एक दिन बहुत ही बीमार पड़ गई। उसे पानी पिलाने वाला भी कोई नहीं था। तेजू बन्दर  उसके घर पहुंचा तो उसे खाना नहीं मिला। वह देखने लगा। बूढ़ी काकी को सूंघ कर छू कर देखा। बूढ़ी काकी को बहुत ही तेज बुखार था। बंदर दौड़ा दौड़ा  पास ही के डाक्टर के घर गया और उसे पकड़ कर ले आया। एक दिन जब बूढी काकी तेजू बन्दर को खाना दे रही थी  तेजु बन्दर  नें उस डाक्टर को देखा था। डाक्टर नें  जैसे ही बुढी काकी की नब्ज टटोली वह बोला तुम्हें बुखार है। उस दिन तेजु बन्दर नें डाक्टर को देखा था। जाते जाते वह डाक्टर के पीछे भागा।  उसने डाक्टर का घर देख लिया था। डाक्टर नें अपने घर पहुंच कर किवाड़ बन्द कर दिए। तेजू नें जब बूढी काकी को छुआ और कुछ महसूस किया वह दोडा दोडा  उसी डाक्टर के घर पहुंच गया। उसने डाक्टर का बक्सा उठा लिया। डाक्टर कहीं जानें के लिए तैयार था। वह उसका बक्सा लेकर भागा।डाक्टर बोला हाय! मेरा बक्सा। आगे आगे बंदर  और डॉक्टर उसके पीछे।उसका पीछा करता हुआ डाक्टर बन्दर के साथ  एक खोली में घुस गया। वहां पर एक बूढ़ी औरत  को बुखार से तपता हुआ पाया। वह बोला मैं एक दिन भी तुम्हें दवा देनें आया था। तुम्हारे इस नटखट बन्दर नें तो मेरा बक्सा मुझ से छीन लिया। बूढ़ी औरत को बुखार में तपता देखकर डॉक्टर ने उसे इंजेक्शन लगाया। तेजु बंदर नें उसका बक्सा लिया और उसे उसके घर  पर पहुंचा कर आया।  उसके इस प्रेम भाव को देखकर डाक्टर भी  दंग रह गया। बूढ़ी काकी बुखार में कराह रही थी। पानी पानी।

तेजु बंदर  भोजन की तलाश में  चल पड़ा। उसे भागते-भागते  शाम हो गई थी। तेजू ने देखा  एक फल वाला जा रहा था। उसने उस  रेढीवाले की रेढी से कुछ फल निकाले और उसको चुरा कर ले आया। उसमें से कुछ फल डॉक्टर को दे कर आ गया। डॉक्टर यह देखकर हैरान रह गया। वह बन्दर की दया भावना से मुग्ध हो गया।

वह  डाक्टर  सोचनें लगा कि   इन जानवरों को  इन्सानों से ज्यादा समझ होती  है। यह मुंह से कुछ नहीं कह सकते मगर समझते सब कुछ हैं।

बंदर एक हलवाई की दुकान पर गया। उसकी दुकान से वह डबल रोटी का  एक पैक्ट और एक दूध का पैकेट उठा  लाया। और उस बूढ़ी काकी के घर की ओर चल पड़ा।  बूढ़ी काकी को दूध का पैक्ट और डबलरोटी का पैक्ट दे दिया। बूढ़ी काकी कुछ ठीक हुई तो वह तेजू से बोली  पता ही नहीं चला तू कब मेरा बेटा बन बैठा? तू मेरी इतनी दया क्यों करता है?

काकी को आज भी बहुत तेज बुखार था। उसका बुखार कुछ कम ही नहीं हो रहा था तेजू ने उसे छुआ  और महसूस किया  तेजू सोचनें लगा। इस बूढ़ी काकी को किसी बच्चे की तलाश है जो उसका काम कर दिया करे। यह सोच कर ऐसे इंसान की तलाश में चल पड़ा जो बूढ़ी काकी को खिला पिला सके।  अब काकी के  काम करने  के दिन नहीं हैं।  उसे एक ऐसा आदमी मिला जो रेल की पटरी के पास स्टेशन के एक ओर चादर ढक कर सोया था। वह उसे बहुत ही ईमानदार लगा। वह 22 वर्ष  तक का इन्सान था। उसके पास रहने के लिए छत नहीं थी। वह बिल्कुल अकेला था। तेजू नें  देखा अगर यह इनसान बूढी काकी का घर  सम्भाल ले तो बहुत ही अच्छा होगा।  तेजू उस नवयुवक के आस पास जाकर मंडराने लगा। उसकी चादर को खींचनें लगा।  उस की चादर को खींच कर बहुत दूर तक ले गया। वह नवयुवक   तेजू बन्दर के पीछे भागा। उसके पास तन ढकने के लिए एक ही चादर थी।वह  उसकी मेहनत की कमाई थी। वह इस चादर को लुटते हुए नहीं देख सकता था उसे तेजू बंदर पर काफी गुस्सा आया। वह उस बंदर के पीछे पीछे भागा। तेजू बूढ़ी काकी की खोली में घुस गया । उसने वह चादर बूढ़ी काकी को ओढा दी । वह नवयुवक भी  चलता हुआ उस खोली में आ गया। बूढ़ी काकी को होश आ गया था।  उस नवयुवक नें बूढ़ी काकी पर चादर देखी। वह चादर लेनें के लिए बूढी काकी के समीप गया बूढी काकी कराह रही थी।   बूढी काकी नें समझा तेजू होगा बोली तेजू बेटा आज क्या शैतानी की है? यह चादर कहां से लाया? अपने सामने एक नए युवक को देखकर चौकीं। बोली बेटा कहां रहते हो?। मैं तो तुम्हारी आवभक्त नहीं कर सकती। मैं बीमार हूं। वह बोला दादी मां क्या आप अकेली रहती हैं? आपको तो बुखार है। उसने अपने हाथों से बूढ़ी काकी को पानी पिलाया।  उसे पहले तेजू बंदर पर गुस्सा आ रहा था यह सब देख कर उसका   सारा गुस्सा  समाप्त हो गया। काकी बोली बेटा घर जाओ। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारा इंतजार कर रहे  होंगें।  

वह बोला मेरा इस दुनिया में कोई नहीं। मेरे मां-बाप बाढ में डूब कर मर गए। मैं अकेला हूं। कभी स्टेशन पर कभी कहीं, इधर-उधर घूम रहकर अपना गुजर-बसर किया करता हूं। मेरे पास रहने को घर नहीं है। मैं थोड़ा बहुत कमा लेता हूं। मेहनत मजदूरी करके जो कमाता हूं  वहीं खा लेता हूं। मेरे पास रहने के लिए घर नहीं। मकान का किराया  ही इतना ज्यादा है मैं नहीं चुका सकता  इसलिए मैं बाहर  स्टेशन पर रात गुजारता हूं।  काकी बोली तुम्हें अगर मेरा घर अच्छा लगे तो यहीं रहा करो। आज से मैं तुम्हारी  काकी। तुम मुझे काकी बुला सकते हो। काकी उससे बोली तुम्हारा क्या नाम है? वह कहने लगा प्यार से मेरी मां मुझे मंकू  बुलाती  थी। मेरा नाम मयंक है। मंकू वहीं पर रहने लगा। वह रोज मेहनत करके  कमाता। तेजू बंदर भी उसका दोस्त बन गया था। मंकू आदिवासी लोगों का बच्चा था। उसे जानवरों की भाषा आती थी। एक दिन बुढ़िया काकी नें तेजू बन्दर की सारी कहानी  मंकू को सुनाई कैसे उसने मेरी जान  बचाई। वह  डॉक्टर को लेकर आया।

एक दिन मंकू  तेजू को बोला भाई मेरे आज तो सारा दिन मेहनत करके थक गया। मुझे आज कुछ भी काम नहीं मिला है। तेजू  बोला मैं तुम्हें कुछ ला कर देता हूं। आगे आगे  तेजू चल रहा था और पीछे पीछे  मंकू। थोड़ी दूर पर गए थे उन्होंनें देखा  कि एक परिवार सैर करने के लिए  बाहर  से आया हुआ था। तेजू नें  उछल कर के एक आदमी की जेब से ₹500 का नोट लिया और भाग आया। रुपया पा कर बोला  यह लो।मंकू बोला चोरी नहीं किया करते। वह मंकू को बोला आप सोचतें हैं हम चोरी करते हैं। यह काम तो हमने इंसानों से ही सीखा है। कल ही की बात है मैं भोजन की तलाश में इधर-उधर भागने लगा। कभी एक पेड़ पर कभी दूसरे पेड़ पर मुझे  कुछ भी खाने को नहीं मिला। लोग मेरे डर के मारे अपने घरों की खिड़कियां तक बंद कर देते हैं। हमें भी तो भूख लगती है। खाना कहां से लाए? पेड़ों पर भी अब इतना  भोजन हमें प्राप्त नहीं होता। इसलिए पेट भरनें के लिए तो कुछ न कुछ जुटाना ही पड़ता है।

मैं भूख से बेहाल हो रहा था मैनें देखा आगे जाने वाले एक आदमी ने होटल के पास एक आदमी की जेब से उसका पर्स निकाला और भाग गया। मैंने वहीं से तो  यह सब कुछ सीखा जिस आदमी की जेब से रुपया निकाला था वह रोने लगा। वह उसकी मेहनत की कमाई थी। उसकी बूढ़ी दादी अस्पताल में थी। मैं यह देखने के लिए उस इंसान के पीछे भागा कि अब यह पैसे कहां से लाएगा? मैंने उसे एक अस्पताल में जाते हुए देखा। उसकी बूढ़ी दादी अस्पताल में थी।  उसकी दवाई लाने के लिए उसने ₹500 रखे थे। मुझे उस  पर तरस आया मैं क्या कर सकता था? मैं उसकी मदद कैसे करता? मैंने अस्पताल में देखा वह डॉक्टर  को कह रहा था मेरी बूढी दादी को दवाइयाँ दे दो कल आकर मैं ₹500 दे जाऊंगा और अपनी बूढ़ी दादी का इलाज कराऊंगा। आज मुझे दवाइयां दे दो। डॉक्टर बोला यहां दवाइयां क्या पेड़ पर उगती है? जाओ जल्दी से  रुपये लेकर आओ नहीं तो दवाइयां नहीं मिलेगी। मैं मायूस होकर वापस आ गया। जिसकी जेब से आज मैंने ₹500 का नोट निकाला वह वही इंसान था जिसने कल उसने एक  नेक इंसान की जेब से रुपए निकाले थे। मैं उससे बदला लेना चाहता था।। मैं उस नेक इंसान की मदद तो नहीं कर सकता था मगर समझ तो सब कुछ समझता था।

लोग हमें नकलची समझते  हैं।  हम जब गरीब लोगों की कमाई को यूं लूटता देखते हैं तो हमें उन लोगों पर गुस्सा आता है जो दूसरों का हक छीनतें हैं। इसलिए  ही हम उनकी जेब काटते हैं। हम इंसानों की भाषा में जवाब तो नहीं दे सकते। मंकू को उस बंदर की बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। मंकू बोला तेजू भाई मुझे उस अस्पताल तक ले चलो मैं उस नेक इन्सान को वह 500रुपये लौटाना चाहता हूं। जब  मंकू तेजू बन्दर के साथ उस अस्पताल में पंहुंचा तो उसे एक इन्सान दिखा जो अपनी बूढी दादी को उठा कर अस्पताल ले कर आया। वह अपनी बूढी दादी को छाती से लगा कर बोला दादी आप को कुछ नहीं होनें दूंगा। वह बाहर से चिल्लाया। उसके चिल्लानें की आवाज से डाक्टर अपनें क्लिनिक से बाहर आ कर बोला क्यों शोर कर रहे हो? यहां और भी मरीज है। वह डाक्टर साहब को बोला डाक्टर साहब मैं कल भी आया था। आज मैं अपनें शरीर का अंग बेचना चाहता हूं। आप मेरा रक्त ले लिजीए। या मेरा कोई अंग ले लो पर मेरी बूढी दादी को बचा लो। डाक्टर बोला आज रुपये लाए। वह इन्सान डाक्टर के पैरों पर गिर पड़ा मेरी बूढी दादी को आज तो देख लो। मंकू ने आ कर उस नवयुवक को 500रुपये दे दिए। डाक्टर नें बूढी की नब्ज देख कर कहा कि अब यह इस दुनिया में नही है। मंकू ने देखा उस तेजू बन्दर की आंखों में भी आंसू थे। वह अपनी बूढी दादी को ले कर निराश हो कर अपनें घर चला गया।

शाम को मंकू ने  तेजू को सारे ढूंढा  तेजू उसे वहां नहीं  नहीं दिखाई दिया   उस दिन  वह खाना खानें भी नहीं आया। मंकू ने बूढ़ी काकी को सारी कहानी सुनाई। बूढ़ी दादी की आंखों में आंसू छलक आए बोली बेटा इंसान जाति से बढ कर ज्यादा बेहतर तो यह जीव है जो बेचारे मौन रहकर भी सब कुछ कह जाते हैं  लेकिन इंसान अपनें स्वार्थ में अंधा  हो कर  उनको इतने दुःख देता है।

मंकू बूढ़ी काकी के साथ ही रहने लग गया था बूढी काकी ने अपने दोनों बेटों के बारे में मंकू को बता दिया था अपनी मां के जाने के बाद जगता और भक्ता को बहुत ही दुःख उठाने पड़े अपनी मां के जाने के बाद उनके घर में बरकत नहीं रही। जो कुछ कमाया था वह सब कुछ धीरे-धीरे समाप्त हो गया। जगता भी चुनाव में हार गया था। उसका सबकुछ चला  गया था। उसके पास एक घर के सिवा कुछ नहीं बचा था। भक्ता वह भी कंगाल हो गया था। झूठी दौलत कहां तक चलती?  दोनों को समझ आ गई थी कि मेहनत के दम पर चाहे हम थोड़ा ही कमाते अपनी मां को भी खुश रख सकते थे और अपने आप  भी मजे से रह सकते थे। धन दौलत बड़ों बड़ों को अपने मार्ग से विचलित कर देती है। और पाने की लालसा में उन्होंने अपनी देवी जैसी मां को घर से निकलने के लिए मजबूर कर दिया। जाते-जाते उसकी मां ने कहा था कि जब तक तुम दोनों उसे लेने नहीं आओगे  और मेहनत करके कमाना सीख जाओगे तभी मैं तुम्हें अपना बेटा मानूंगी। नहीं तो तुम आज से मेरे लिए अजनबी हो।

जगताऔर भक्ता नें सोचा चलो क्यों ना  आज से हम भी मेहनत करके कमाते हैं। दोनों ही काम की तलाश में निकल पड़े। चलते चलते वे भी भोपाल पहुंच गए। मंकू एक बहुत बड़ा ट्रक ड्राइवर बन गया था। उसने एक बड़ा घर बना लिया था। उसने अपने पास मकैनिक भी रख लिए थे। नौकरी मांगते मांगते जगताऔर भक्ता मंकू के गैरेज में पहुंचे। वे निराश हो कर बोले हम बड़ी मुश्किल में है। हमें कुछ काम दे दो। मंकू ने कहा देखो ईमानदारी से काम करना वरना तुम्हें काम नहीं मिलेगा?  हमारे काम में कोई भी  बेईमानी नहीं होगी वे दोनों कहने लगे।  वे दोनों मंकू के पास काम करने लगे। मंकू उन को देख कर बोला  शहर में नए-नए आए हो क्या?  वे दोनों बोले स्टेशन में चोरों ने हमारा सब कुछ हमसे छीन लिया। हमारे पास रहने के लिए भी घर नहीं है और ना ही  काम। मंकू उनको बोला मैं तुम्हें अपने घर में एक छोटा सा कमरा दे देता हूं मगर तुम्हें इसका दो हजार  किराया देना होगा। मेरी बूढ़ी काकी का यह मकान है अगर तुम्हें रहने के लिए मंजूर है तो ठीक है।

शाम को जब बूढ़ी काकी  को मंकू ने कहा कि यहां पर दो अजनबी  नौकरी ढूंडने के लिए आए हैं।वे  मेहनत करके कमाना चाहते हैं। मैंने ऊपर वाला कमरा किराए पर उन्हें दे दिया है। बूढी दादी बोली वे कहां के रहने वाले हैं। मंकू बोला वे भी मुम्बई के रहने वाले हैं। मुम्बई नाम सुन कर बुढिया बोली मेरे बेटे भी वहीं रहतें हैं हो सकता है वे मेरे बेटों को जानते हो। उन्होनें मुझ से कहा कि वे 2000रुपये किराया दे देंगें। वे दोनों वहां पर रहने लगे। काफी दिनों तक जब वे किराया नहीं दे सके तो मंकू बोला तुम मेरी दादी के लिए खाना बना दिया करना। घर का सारा काम तुम्हे करना होगा। वे बोले हम खुशी खुशी खाना बना दिया करेंगें। बर्तन भी साफ करनें होंगें। शाम को जब काम से वापिस आते तो वह रसोई में खाना बनाते। मंकू अपनी काकी को खाना ले जाता। वहां पर वे  बूढी काकी से नहीं मिले। वह अपनें कैमरे में बैठ कर पूजा पाठ किया करती थी। एक दिन मंकू बाहर गया हुआ था। रोशनी नें  देखा उसे मंकू दिखाई नहीं दिया। उसे बाजार से दवाइयाँ लानी थी।  उसनें आवाज लगाई बेटा मंकू। मंकूू तो वहां नहीं था जो सुनता।बूढी काकी की आवाज सुन कर जगता बाहर आ कर बोला मां क्या चाहिए? बूढी काकी को आवाज जानी पहचानी लगी। कहने लगी बेटा मेरी दवाईयाँ ला देना। वह बोली बेटा तुम नें खाना खाया हां मां जी खा लिया।  बूढी काकी बहुत बूढी हो चुकी थी। जगता बोला आज आप के दर्शन कर लिए तो एक पल के लिए लगा हमारी मां हमें मिल गई हो। अचानक बूढी काकी बोली बेटा तुम कंहा के रहने वाले हो?जगता बोला हम पूना के रहने वाले हैं। मैं तो अपनी देवी जैसी मां को खो कर आज तक पछता रहा हूं। वह बोली अब तुम्हारी मां कहां है? वह बोला हम नें अपनी मां को घर छोडने पर मजबूर कर दिया। उस की आवाज सुन कर भक्ता भी अन्दर आ गया था। भक्ता बोला मां पांय लागूं। उसके मुख से यह सुन कर बूढी काकी की आंखें भर आई। बोली बेटा मेरा बेटा भी मुझे ऐसा ही कहता था। तुम तो मुझे अपनें जैसे लगते हो। बेटा जरा मेरा चश्मा तो पकड़ाना। मेज पर रखा है। भक्ता ने जैसे ही चश्में को हाथ में लिया बोला यह तो टूट गया है। मेरे पास दे देना मैं बनवा दूंगा। आईस्ता से बोला अपनी मां के काम तो आ नहीं सका शायद आप की सेवा करके अपना प्रायश्चित कर सकूं। बोला मां आप को चारपाई पर बिठा देता हूं। उस नें बूढी काकी का हाथ अपनें हाथमें लिया। उसके हाथों के स्पर्श से उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे  उस नें अपनी मां का हाथ छू लिया हो। उसके मुख से निकला मां। उसने अपनी मां को पहचान लिया। उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे। बोला मां मैं आप का  बेटा भक्ता और ये भक्ता। उनकी मां इतनी दुबली पतली हो चुकी थी कि वे भी  उन्हें पहचान नहीं पाए। बूढी काकी हैरान हो गई। तुम दोनों

यहां।

दोनों बोले हम आप को छोड़ कर कभी खुश नहीं रहे। रौशनी की चकाचौंध नें हमारी अक्ल की दरवाजे बन्द कर दिए थे। हमें अच्छे बुरे की पहचान नहीं थी। जब अक्ल आई तो आप वहा नहीं थी। किसी नें भी हमारा साथ नहीं दिया जो दोस्त हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते थे उन्होनें भी हमारा साथ देना छोड़ दिया। एक एक कर के सभी नें आना जाना छोड़ दिया कहीं हम उन से उधार न मांग बैठे। ये तो अच्छा हुआ हमारा मकान नहीं बिका। हमें जल्दी ही समझ आ गई। आप की याद हमें तब आई। उनकी मां बोली बेटा ईमानदारी से काम करनें वालों को थोड़ा पहले प्रयत्न तो करना पड़ता है लेकिन  वह कभी मायूस नहीं होता। हम दोनों ने आपस में निर्णय लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए हम अपनें घर को नहीं बेचेंगें। हम नें घर में ताला लगाया और काम की तलाश में निकले। जगह जगह छोटे मोटे काम किए। मैकेनिक की नौकरी की।  हमनें मन बना लिया कि कहीं दूर जा कर काम करेंगे। जब हम यंहा भोपाल पहुंचे तो चोरों नें हमारा सब कुछ छिन लिया। हम फिर भी निराश नहीं हुए। हम काम की तलाश में निकल पडे तब यहा हमारी मुलाकात मयंक से हुई। उसके गैराज में काम करनें लगे। हमारे पास रहने के लिए घर नहीं था और न ही मकान का किराया। हम नें यहां खाना बनानें का ओर घर की साफ सफाई का काम ले लिया। गैराज में काम करनें के बाद शाम को खाना बनाना और सुबह चार बजे उठ कर  खाना तैयार करते और काम पर चले जाते। मां आप  हम दोनों को माफ कर दो। हमें अपनी गल्ती के लिए पछतावा है। अपनें घर चलो। हमे आज पता चल चुका है कि मेहनत का फल मीठा होता है। आप को हम दोनों पलकों पे बिठा कर रहेंगें।आप तो बस आराम से खाना। दोनों को गले से लगा कर बूढी काकी बोली तुम दोनों सुधर चुके हो। मंकू भी घर आ चुका था। वह भी मां बेटों का प्यार देख कर फुला नहीं समाया। उसकी आंखों में आंसू थे। वह बोला अब यह मेरी मां है। तुम नें तो अपनी मां को गंवा दिया। मेरी मां तो मुझे बरसों के बाद मिली है। उनकी मां नें तेजू बन्दर का सारा किस्सा उन्हें सुनाया। अगर यह तेजू नहीं होता तो तुम अपनी मां को जिन्दा नहीं पाते इस तेजू नें मुझे मंकू से मिलवाया। उसने सारी की सारी कहानी अपनें बेटों को सुना दी। आज से मंकू और तेजू भी मेरे बेटे हैं। तुम तीनो तो मेरी जान हो। और तेजू मेरा छोटा सा सहायक। आज से मै तुम तीनों को त्रिवेणी कह कर बुलाऊंगी। तुम तीनों मेरे साथ रहोगे। तेजू भी हमारे साथ रहेगा। उसे कभी भी इस घर में भूखा नहीं रहना पड़ेगा। यह कहते कहते बूढी काकी भावुक हो गई थीं। आज उसकी खुशिया लौट आई थी। तेजू बन्दर घर के वृक्ष पर मुस्कुरा कर अपनी खुशी  जाहिर कर रहा था।

भगवान का चमत्कार

एक छोटे से कस्बे में एक रिक्शा चालक रहता था। उसका नाम था नथु और उसकी पत्नी का नाम था माया। यह कहानी राजस्थान की है। यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित है।यह कहानी भगवान के चमत्कार की है।

लेकिन नाम काल्पनिक है। इसके सभी पात्र काल्पनिक है। इस कहानी को मैंने अपने ढंग से लिखने का प्रयत्न किया है।

नत्थू बहुत ही नेक दिल इंसान था। वह रोज ऑटो रिक्शा लेकर जाता और लोगों को उनके घर पहुंचा आता। उसका व्यवहार एक छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्गों सभी व्यक्तियों से बहुत ही अच्छा था। अपने मधुर व्यवहार के कारण लोग उसे पहचानने लग गए थे। रात के 1:00 बजे भी किसी ने अगर आवश्यक कार्य से बाहर जाना होता तो वह बेचारा 1:00 बजे भी उठ जाता। किसी भी लोगों को मना करने की उसकी आदत नहीं थी। महिलाएं रात के समय भी उस ऑटो रिक्शा चालक की ऑटो में बिना संकोच बैठ जाती थी। वह था इतना नेक दिल इंसान सभी गांव के लोग उसको बहुत ही प्यार करते थे। उसकी 3 बेटियां थी। चांदनी, अंकिता, और तनु। वह सभी पढ़ाई कर रही थी। एक बड़ी बेटी तो पढ़ाई कर चुकी थी। उसने अपनी बेटी को 12वीं कक्षा तक पढ़ा दिया था। बाकी दोनों बेटियां शिक्षा ग्रहण कर रही थी। उसने अपनी बड़ी बेटी की शादी तय कर दी थी। भगवान का दिया उसके पास गुजारे लायक काफी था। ऑटो रिक्शा चालक ने अपनी बेटी का विवाह एक अच्छे परिवार में तय कर दिया था। उसके ससुराल वालों ने शादी की तारीख निश्चित कर दी थी। ऑटो रिक्शा चालक ने रात दिन मेहनत करके अपनी बेटी की शादी के रुपए जुटाए थे। उसने अपनी बेटी के गहने कपड़े और शादी का सारा सामान खरीद लिया था। वह अपनी बेटी की शादी का इंतजार कर रहा था।

वह एक दिन भगवान के मंदिर में पूजा करने चला गया था। वह मंदिर में पूजा कर कहने लगा कि  हे भगवान!  मेरी बेटी की शादी   जल्दी ही होने जा रही है।  अपनी बेटी की शादी का सामान खरीदने में मुझे कभी कोई कमी नहीं आई। आपकी दया से सब कुछ ठीक चल रहा है। सारा सामान भी आ गया है। खाने पीने  का सारा सामान भी आ चुका है। शादी के दो-तीन दिन रह गए थे। अपनी बेटी के पास जा कर बोला मेरे पास देने के लिए  ज्यादा तो कुछ नहीं मैंने तुम्हारे लिए थोड़े से गहनों भी बनवा दिए हैं। तुम्हारी  दोनों बहनों के हाथ भी पीले करने हैं। तुम्हारा हाथ एक अच्छे परिवार में  दे रहा हूं। लड़का अच्छी नौकरी करता है। तुम्हें वहां पर कोई भी कमी नहीं रहेगी।

बेटा लड़की तो पराया धन होती है। उसे तो एक न एक दिन ससुराल जाना ही पड़ता है। बेटा निराश ना हो।  आज मैं तुम्हें एक शिक्षा दे रहा हूं।  अपने ससुराल में बड़ों का सम्मान करना। अपने सास ससुर की खूब सेवा करना। मैं तुझे यह सीख दे रहा हूं। बड़ों की आज्ञा का पालन करना। अपनें सास ससुर को ही अपने माता-पिता समझना। तुम्हें मैंने 12वीं तक की शिक्षा दी है। और  सिलाई भी सिखा दी है। तुम्हारे ससुराल वाले अगर तुम्हें नौकरी करने देंगे तो करना-वर्ना नहीं। हमारी मान मर्यादा का ख्याल रखना बेटा। लड़की ससुराल में अपने सद्गुणों से सभी को अपना बना लेती है। सास-ससुर तुझे डांट डपट  करे तो सोच लेना तुम्हें तुम्हारे अपने माता-पिता डांट रहें हैं। मेरी इज्जत का सम्मान करना। अपनी बेटी को समझाने लग गया था।  समझाते समझाते उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। घर में शादी का माहौल था। घर में रिश्तेदारों का तांता लग गया था। दिन को सभी लोग आ जाते थे।

किसी को क्या पता था कि होनी तो कोई और ही खेल खेल रही थी। शायद वह उसकी परीक्षा ले रही थी। शादी के केवल 3  दिन बचे थे। रात को ऑटो रिक्शा चालक के घर में भयंकर आग लग गई। सभी लोग सो रहे थे।  रात को उनका सारा घर आग की लपटों की चपेट में था। उनकी घर की छोटी बेटी अंकिता  पानी पीने के लिए उठी। उसने देखा चारों ओर धुआं ही धुआं था। उसने दौड़ कर अपने माता पिता को जगाया। तीनों बेटियां चिल्लाने लगी आग आग। कोई हमें बचाओ। बड़ी मुश्किल से रिक्शा चालक ने पिछली बाल्कनी से जाकर एक डंडे के सहारे बाल्कनी से निकलने की कोशिश की। घर के सभी सदस्य बाल बाल बचे। लेकिन घर का सारा का सारा सामान आग की लपटों में खाक हो गया था। शादी का सारा सामान जलकर नष्ट हो गया था। चांदनी भी बेहोश हो गई थी। दोनों बहने भी चक्कर खाकर गिर पड़ी थी। चांदनी को थोड़ा थोड़ा होश था। लोगों ने  उन सब को बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला। थोड़ी देर पहले जहां खुशियाँ छा रही थी। वहां का दृश्य देखा भी नहीं जा सकता था। जो भी देखता उसकी आंखों से आंसू निकलते। बेचारा अब क्या करेगा? बिना शादी के ही बेटी रहेगी। दुल्हा तो अब उसे ब्याहनें से रहा। कुछ लोग तरह-तरह की बातें करते। जितने मुंह उतनी बातें।

चांदनी दौड़ी-दौड़ी अपने पिता के पास जाकर बोली पापा आप निराश न हो। आपने इतनी मेहनत से मेरी शादी के लिए रुपया जोड़ा था पापा आप जरा भी चिंता मत करो। मेरी किस्मत में यही लिखा था। आप निराश न हो। मुश्किल की इस घड़ी में हमें कमजोर नहीं पड़ना  है। मैं आपका बेटा नहीं  हूं तो क्या हुआ? आपने बेटों की तरह हमारी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। हम तीनों बहनों को वह सब कुछ दिया जो आप से बन पड़ा। तब तक दोनों बहने  अंकिता और तनु भी उठ गई थी। वह भी अपने पापा के पास जाकर खड़ी हो गईं। पापा हम सब आपकी ताकत हैं। हम तीनों आपकी बेटियां नहीं बेटे हैं। आज से हम भी आपके साथ कमाएंगे। चांदनी बोली पापा अगर वह लड़का जिसे आपने मुझे शादी के लिए चुना  है मुझ से सच्ची मोहब्बत करता होगा तो यह सब देख कर भी शादी के लिए इन्कार नहीं करेगा। मैं भी उस से खुशी-खुशी स्वीकार करूंगी। आप जरा भी चिंता मत करो। उन तीनों नें मिल कर अपने पापा को उठाया। मोहल्ले के सारे लोग इकट्ठा हो गए थे। सब  आपस में कह रहे थे कि  ससुराल वालों को  वह क्या कहेगा? जो भी आता शोक व्यक्त करके चला जाता।  नथु के घर के  पास लोगों का तांता लग गया था। सभी कहने लगे कि  तुम तो नेकी करके कमाते थे। नथु बोला शायद भगवान की भी  यही मर्जी होगी। उसकी पत्नी माया  आ कर बोली की बड़े भगवान का नाम लेते फिरते  हो  यह सब कुछ दिया आपके भगवान ने? भगवान का नाम  ले कर भी आपके भगवान ने आपको यह  सीला दिया।

इस घर में भगवान का नाम  कभी मत लेना।  वह बोला भाग्यवान यह तो नियती का खेल है। भगवान को क्यों कोसती हो?। तीनों बेटियों ने बड़ी मुश्किल से अपनी मां को संभाला। किसी ने प्रैस में खबर कर दी। अगले दिन समाचार पत्र में आ गया कि नथू राम का घर जलकर स्वाहा हो गया। दूसरे दिन जब लोगों ने देखा ऑटो रिक्शा चालक नथु का घर आग की लपटों में जलकर पल भर में नष्ट हो गया था। उसकी बेटी की शादी को कुछ ही दिन रह गए थे। बेचारा अपनी बेटी की शादी कैसे करेगा? जिस किसी ने  भी सुना वह आए बिना ना रह सके। जितनें भी लोग उसको जानते थे सब के सब  आकर ना जाने क्या-क्या लाए? उस का घर उपहारों से भर गया। कोई जेवर लाया कोई कपड़े कोई राशन कोई रुपए। जिन सभी नेताओं ने सुना सभी ने नथुराम की सहायता की। वह था  ही इतना नेक  इन्सान। उसकी बेटी की शादी को को भला कोई क्यों नहीं आता?

शाम तक उसके घर में ना जाने कितने रुपए इकट्ठे हो चुके थे। जब तीनो  बेटियों ने अपने पापा को सारे रुपए  थमाए उन सब को तो  अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि जहां पर पर में सब कुछ नष्ट हो गया था वहां पर उनके पास इतना रुपया इकट्ठा हो गया था कि वह बैठे बिठाए तीनों बेटियों की शादी  आसानी से कर सकता था। भगवान  जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। उसने बड़ी धूमधाम से मंदिर में अपनी बेटी की शादी की। लोग आपस में कह रहे थे कि इस नेक दिल इंसान की सहायता भगवान क्यों नहीं करते? आज तो भगवान के  चमत्कार पर सभी  को   विश्वास हो गया था। भगवान जो करता है अच्छा ही करता है।  नथु राम की पत्नी आ कर बोली मुझे माफ कर देना। गुस्से में भगवान के लिए ना जाने क्या-क्या अपशब्द कह गई। तीनों बेटियां मुस्कुरा कर अपनी मां को देख रही थीं।थोड़ी देर पहले जहां पर  रुदन था वहीं पर सभी के चेहरों पर  खुशी झलक रही थी।

भगवान की माया प्रबल है। वह इन्सान की कडी से कड़ी परीक्षा लेनें में कोई कसर नहीं छोड़ता। नथुराम और उसकी बेटियों नें मुसीबत की घड़ी में मिल कर एक दूसरे का साथ दिया। अपनें हौसले को डगमगाने नहीं दिया। उसकी बेटियों नें एक बेटे की तरह अपने पिता के विश्वासको  ठेस नहीं पहुंचने दी। भगवान नें रातोंरात  छप्पर फाड़ कर उसकी सहायता की। वह बोला इतने रुपये इकट्ठे हो गए हैं जिस से मैं तुम तीनों की शादी भी आसानी से कर सकता हूं।