हकीकत

अधिराज के परिवार में उनका लड़का लाखन था। वह एक प्रतिष्ठित जाने-माने व्यापारी थे। उनका बेटा लाखन बहुत ही चंचल स्वभाव का था। जब भी स्कूल जाता चमचमाती गाड़ी उसका इंतजार करती। खाने में भी सौ नखरे
दिखाता। मां मैं यह नहीं खाता मैं तो बस पूरी हलवा और मिठाई। ना जाने क्या क्या? जब तक उसे मिठाई नहीं मिलती तब तक उसे ऐसा महसूस होता कि उसने कुछ भी नहीं खाया है। स्कूल में मैडम जब उससे प्रश्न पूछती वह मैडम के साथ भी ठीक ढंग से पेश नहीं आता था। हर बात पर जिद करना उसकी आदत में शुमार था। इस तरह करते-करते वह दसवीं कक्षा में पहुंच गया था। एक बार स्कूल में सभी बच्चों के साथ पिकनिक पर गया था
अचानक जिस बस में बच्चे गए थे वह बस एक गहरी खाई में नीचे गिर गई। किसी भी बच्चे का कुछ भी पता नहीं चला कौन कहां गया।? वह बच तो गया मगर उसने अपने आपको ऐसी जगह पाया जहां उसका कोई भी नहीं था।

एक किसान के घर में था। उस परिवार ने उसे बचाया। वह किसान और उसकी पत्नी इतने मेहनती थे और उसकी पत्नी तो उससे भी अधिक मेहनत करने वाली थी। किसान की पत्नी ने उस पर पानी के छीटें मारकर उसे जगाया। उसे कहा कि भगवान की मर्जी के बिना एक भी बाल बांका नहीं हो सकता।

हमने तुम को उस बस में से बचाया जहां पर कोई भी बंदा सुरक्षित नहीं बचा होगा। तुम खुशनसीब हो जो तुम बच गए। यह बताओ तुम कहां के हो। उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। ना माता का नाम ना पिता का। उसे कुछ भी याद नहीं था कि वह किस दुर्घटना का शिकार हो गया है। किसान ने उसे बहुत पूछने की कोशिश की मगर वह कुछ भी नहीं बता सका। किसान ने उसे अपने घर पर रख लिया। 6 महीने से भी ज्यादा हो गए थे कोई भी उसे लेने नहीं आया था। किसान ने उसे अपना ही बेटा मान लिया था।

एक दिन किसान बोला बेटा सुबह जो जल्दी उठता है उसे ही हम खाना देते हैं। वर्ना भूखे रह जाना पड़ता है। किसान की पत्नी अपने पति से बोली बोली यह किसी धनी परिवार का बेटा है। इसके साथ इस तरह पेश मत आओ। किसान बोला मुझे इससे पूरी सहानुभूति है मगर मैं अपने कानून का बड़ा पक्का हूं। जब तक बेटा तुम मेरी बात नहीं मानोगे तुम को कुछ खाने को नहीं मिलेगा। उसने ठोकर मार कर थाली नीचे फेंक दी। किसान की पत्नी उसे प्यार करते हुए बोली बेटा खाने की प्लेट को ठोकर नहीं मारते। वह सारा दिन भूखा रहा किसान नें उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया। वह कहने लगा मुझे सोने के लिए जो बिस्तर दिया है वह भी चुभता है। इस बिस्तर पर मुझे नींद नहीं आती। किसान बोला मेरे घर पर तो यही बिस्तर है। इसमें ही सोना पड़ेगा। वर्ना नीचे सो जाओ। सारी रात बैठा रहा। कब तक खाने पर गुस्सा निकालता। कब तक नहीं सोता। किसान उससे कहने लगा कि मैं तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं। अभी तक तो तुम बीमार थे मैंने तुम्हें इसलिए कुछ नहीं कहा। परंतु अब तो तुम्हें यहां पर सब कुछ सीखना पड़ेगा।

मैं तुम्हें अपना बेटा बना कर पालूंगा परंतु तुम्हें मेरे कहे मुताबिक काम करना होगा। किसान ने उसे समझाया बेटा हम जो कुछ मिलता है खा लेना चाहिए। हमें यह कभी नहीं करना चाहिए कि यह नहीं खाना है। वह नहीं खाना खाना है। अन्न का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए। कई बार किसी को कुछ भी खाने को नहीं मिलता। वह उसको एक ऐसी जगह ले गया जहां पर बच्चे कूड़ेदान में से ढूंढ कर खाने खाना खा रहे थे। उनको देखकर लाखन के मन में आया वह भी तो अन्न का निरादर कर रहा था। उस दिन के बाद उसने कभी भी खाने का अपमान नहीं किया। वहां पर उसने सीखा कि कैसे काम किया जाता है? सुबह जल्दी उठने लगा। किसान नें उसकी खूब सेवा कि उसी के परिणाम स्वरुप ही वह ठीक हो गया था। एक दिन उसे कुछ-कुछ याद आ गया कि उसने दसवीं की परीक्षा दी थी। उसके इलावा उसे कुछ भी मालूम नहीं आ रहा था।

एक दिन वह बैठा इसी तरह सोच रहा था कि उसे कुछ कुछ याद आया। वह तो सेठ अधिराज का बेटा है। वह कानपुर का रहनेवाला था। उसने किसान को कहा कि मुझे सब कुछ याद आ गया है। मैं अपने घर जाना चाहता हूं। किसान ने उसे उसके घर जाने के लिए उसे किराया दे दिया। उसे सब कुछ याद आ गया पिज्जा बर्गर खाए बिना तो वह किसी से भी बात ही नहीं करता था। यह क्या? वह तो एकदम बदल चुका था। वह स्कूल में सब के साथ लड़ता था। वह बिल्कुल बदल चुका था। किसान जो काम करता था वह भी उसके साथ काम करता था। वह अपने घर वापिस आया उसके माता-पिता उसे देखकर बड़े खुश हुए बोले बेटा तू कहां चला गया था?
उसने अपने पिता को कहा कि मेरी यादाश्त चली ग्ई थी। इसी कारण मैं आप के पास नंही लौट सका।

अधिराज अपनी पत्नी से बोला मेरा बेटा जो भी वस्तु मांगता है उसे अवश्य दिलाना। मेरे पास रूपए पैसे की कोई कमी नहीं है। उसकी मां ने तो आशा ही छोड़ दी थी कि अब कभी भी वह अपने बेटे से मिल भी पाएगी या नहीं। उसने अपनें बेटे कोे गले लगाते हुए कहा बेटा तेरे बिना तो यह घर बहुत ही सुना हो गया था।

लाखन फिर से स्कूल जाने लग गया था। उसके सारे दोस्त उसे कहते चलो लाखन आज दोस्तों के साथ घूमने चलते हैं। वह प्यार से कहता चलेंगे अभी नहीं जिस दिन ज्यादा काम नहीं होगा उस दिन चले जाएंगे। उसके सारे स्कूल के दोस्त उसके बदले व्यवहार को देखकर चकित रह गये सोचा कि शायद दुर्घटना में चोट लगने के कारण वह बदल गया है। वह हर काम को अच्छे ढंग से करता। स्कूल में पढ़ाई करते करते वह स्कूल में अच्छा स्थान प्राप्त करने लग गया था। एक दिन स्कूल कैंटीन में बैठा था उसने कुछ दोस्तों को कहते सुना कि यह अधिराज का बेटा है। इसके पिता बड़े सेठ हैं। इसके सबसे ज्यादा नंबर इस वजह से आते क्योंकि उनके पिता स्कूल के अधिकारी महोदय से मिलकर अपने बेटे के अच्छे अंक दिलवा देते हैं। वह अपने दम पर तो कुछ नहीं करके दिखाता। बडा आया अच्छे अंक लाने वाला। इस बार जो बारहवीं के परीक्षा में अंक आए हैं यह उसकी अपनी मेहनत नहीं है यह तो इसके पापा की सिफारिश के परिणाम स्वरुप आये। अपने पिता के पास जाकर बोला पापा आप मेरी पढ़ाई के विषय में किसी के पास सिफारिश करने के लिए नहीं जाएंगे। मैं जो कुछ बनना चाहता हूं अपने दम पर। मेरी पहचान तो आप के दम पर ही है। सब यही कहते हैं देखो अधिराज सेठ का बेटा। आज मुझे जब उन्होंने यह सुनाया कि इस बार भी अपने पापा की सिफारिश पर अंक हासिल किए। यह अपने आप तो कुछ नहीं बन सकता।

पापा इस तरह से पढ़ने में मेरा मन नहीं लगता। मैं अपनी मेहनत से अपने दम पर अपनी पहचान बनाना चाहता हूं। मैं यहां से जा रहा हूं। मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। आप सोच लेना कि आपका बेटा लौटकर आया ही नहीं। आप मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। एक दिन मैं अपने दम पर अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाने कर आपके पास लौटूंगा। अगर सफल हो गया तो।

मां पापा आप मुझे रोते-रोते विदा नहीं करेंगे। आप एक बेटे का तिलक कर के मुझे जाने की इजाजत दीजिए ताकि मैं अपने मकसद में सफल हो सकूं। यहां रहा तो मैं लोगों की कटाक्ष भरी बातें नहीं सुन सकता। मैं अब बिल्कुल बदल चुका हूं।

अधिराज नें अपने बेटे के गले लगकर कहा बेटा मैं गलत था। मुझ में ही कमी थी। मैं तुम्हें पहचान नहीं सका बेटा। जहां तुम जाना चाहते हो जाओ लेकिन बड़ा अफसर बनने के बाद लौट कर जरूर आना। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे लौटने का इंतजार करेंगे।

एक बार फिर वहां अपने बूढ़े बाबा के और मां के पास लौट आया। किसान की आंखों में आंसू आ गए बोले बेटा तुम्हें क्या अपना परिवार रास नहीं आया हम गरीबों के पास तुझे क्या मिलेगा। मैं तुझ से कितनी रुखाई से पेश आया। इसके लिए तू मुझे माफ कर देना बेटा मैं तो तुझे सुधारना चाहता था। मुझे खुशी है कि तुम सुधर गये। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं एक बड़े धनी सेठ का बेटा था बिगड़ी हुई औलाद था। मैं हमेशा अपने पिता की कमाई दौलत पर ऐश करता रहा। कभी मेहनत नहीं करता था। खूब शानो-शौकत से रहता था। हमारे पास गाड़ी थी। बंगला था मैं अपने पिता को कहता था कि मुझे कमा कर क्या करना है? जो कुछ आप कमाते हो वही मेरे लिए बहुत है। उसके पिता उसे समझाते बेटा यह नहीं सोचना चाहिए मैंने कितनी मेहनत से व्यापार खड़ा किया है
तुम्हें भी मेहनत करनी चाहिए। लेकिन मैं आलसी बन चुका था। मैंने कभी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। ठाठ से जो कुछ मिलता ऐश करता। कुछ दिनों के पश्चात मेरे पिता ने मेरी शादी एक अमीर लड़की से कर दी। वह भी अमीर परिवार की लड़की। मुझे तो बैठे-बिठाए करोड़ों की संपत्ति मिल गई। इतना खुश था लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन मेरे पिता को व्यापार में घाटा हुआ। उन्होंने अपना सारा कुछ बेच दिया। कुछ भी नहीं बचा। वह मुझसे बोले बेटा अब तो तू भी हमारा हाथ बंटा। मैं ठहरा आलसी। मुझे अपने पिता के ऊपर गुस्सा आया और ना जाने गुस्से में अपने पिता को भला बुरा कहा। मुझे काम करने की आदत नहीं थी। बैठ बैठ कर खाने वाला क्या करे? पढ़ाई भी अच्छे ढंग से नहीं की। मैंने गुस्से में घर छोड़ने का निश्चय कर लिया घर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि मेरे माता पिता का देहांत हो गया है।

मैं जब अपने पिता का घर छोड़कर आया मुझे ना जाने कितनी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। दुकान पर लोगों के जूठे बर्तन साफ करने पड़े। तुम जिस प्रकार खाने पर लात मार रहे थे उसी प्रकार मैंने भी खाने को लात मारी थी। ठोकरें खाने के बाद मैंने मेहनत करके आज जाकर कहीं एक बहुत बड़ा किसान बन पाया। तुम सोचतें होगें कि मेरे पास एक ही खेत है। नहीं आज मैं अपनी मेहनत के दम पर इस मुकाम तक पहुंचा हूं कि मैं दस बारह नौकर रख सकता हूं। लेकिन मैंने मेहनत के दम पर काम करना नहीं छोड़ा। मेरी पत्नी ने भी इस काम में मेरा साथ दिया। वह कभी भी अपने माता-पिता के पास मांगने नहीं गई। जो कुछ हमने इकट्ठा किया है अपनी मेहनत के बल पर इसलिए मैंने तुम्हें डांटा। आज मैं दस बारह नौकर रख सकता हूं मुझे अपना बचपन याद आ गया। मैं तुम मैं अपने आप को देख रहा था तुम भी एक बड़े घर के बच्चे हो। किसान बोला आज मैं अपने माता पिता को वापस नहीं ला सकता। उनको बताने के लिए कि आज मैं एक बहुत बड़ा किसान बन गया हूं। लेकिन मैं इतनी धन-दौलत होने के बावजूद भी उन्हें यह मैं बता नहीं सकता। मैं आजकल के भट्के युवकों को मेहनत से कमाने की सलाह देता हूं। मेरे पास आज इतने बच्चे काम कर रहे हैं लेकिन मेरी पत्नी ने आज तक कोई भी नौकर नहीं रखा।

लाखन को सब कुछ समझ में आ गया था। वह बोला बाबा मैं अपने पापा के पास लौटा था। खूब मेहनत कर रहा था कि लेकिन सब मुझे मेरे पिता की पहचान से जानते हैं। मैं मेहनत के दम पर अपना रुतबा हासिल करना चाहता हूं। किसान बोला ठीक बात है बेटा। तुम यहां पर रहकर मेहनत करो।

अब लाखन से वह लक्ष्मण बन गया था। उसने अपना नाम बदल लिया था। अपने बाल भी लंबे कर दिए।

लक्ष्मण ने इंजीनियर में पहला स्थान प्राप्त किया। जब उसे इंटरव्यू में पूछा गया कि तुम अपनी मेहनत का श्रेय किसे देते हो तो वह बोला कि मैं इन बूढ़े माता-पिता को इसका श्रेय देता हूं जिन्होंने मुझे मेहनत के दम पर आगे बढ़ने की शिक्षा दी। जब प्रेस रिपोर्टर आए तब किसान बोला आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह बच्चा अपनी मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करना चाहता था

वह एक सेठ अधिराज का बेटा है जब भी वह किसी टैस्ट को देता तो उसे यही सुनने को मिलता कि यह तो इसकी मेहनत का परिणाम नहीं। यह तो सेठ अधिराज की सिफारिश का नतीजा है। मेहनत करने के बावजूद भी उस बच्चे को यह सुनने को यही मिलता। एक दिन वह बच्चा अपने पिता का घर छोड़ कर मेरे पास आ गया। वह मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करना चाहता था।

आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि इस बच्चे ने अपनी मेहनत के दम पर सफलता अर्जित की है। जिस इंसान में मेहनत का जज्बा हो वह चाहे कहीं भी रहे। गरीब के घर में या अमीर परिवार में। वह सफलता अर्जित कर सकता है। बेटा आज तुम खुशी खुशी अपने माता-पिता के पास लौट कर जा सकते हो।

अधिराज के पिता ने जब एक बच्चे की फोटो अखबार में देखी उसका चेहरा उसके बेटे लाखन से मिलता था। वह अपनी पत्नी से बोले कि यह हमारे बच्चे की तरह लग रहा है देखो। अपनी मेहनत के दम पर इस बच्चे ने सफलता अर्जित की है। लखन ने फोन करके अपने पिता को कहा पापा मैं अपनी मंजिल को पाने में सफल हो गया हूं। आज मैं बहुत खुश हूं। आज मैं इन्जनियर बन कर वापस लौटकर आ रहा हूं। इस खुशी के साथ आज मेरी अपनी पहचान है। अखबार में आपने फोटो देखी होगी। मैंने अपना नाम बदल लिया था।

जब वह कानपुर वापिस आया तो उसके माता-पिता उसे देखकर बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा कि सचमुच में ही हमारे बेटे ने अपना सपना पूरा कर दिखाया जिसकी कि वह बरसों से चाह कर रहा था।

दोस्त वही जो मुसीबत में काम आए

किसी गांव में एक नाई रहता था। वह गांव के लोगों के बाल काटता। सेव करता और लोगों की मसाज करता। गांव में बहुत लोग उस से बाल कटवाते। सारी गांव में केवल वही एक नाई था। उसकी दुकान पर लोगों का जमघट लगा रहता था। लोगों के साथ प्यार से पेश आता था। लोग भी उस से ही बाल कटवाते।एक दिन की बात है कि उसकी दुकान के सामने उसी की बस्ती में एक नया आदमी आ गया जब उसने अपने घर के बाहर बोर्ड लगाया तो नाई चौंका।किशन नें देखा उसकी दुकान के ठीक सामने एक नया नाई आ चुका थां। उसको इस प्रकार नाई का काम करता देकर किशन का खून खौल उठा। वहसोचनें लगा यह कंहा से आ टपका। इस गांव की बस्ती में तो पहले मेरी ही धाक थी।इस नें तो आ कर मेरा सब कुछ मलिका मेट कर दिया।मैं अब क्या करुं। वह सोचने लगा अब मैं क्या करूं अब तो लोग इसके पास ही बाल कटवाने जाएंगे उसने दरवाजा खटखटाकर पूछा भाई मेरे तुम कहां से आए हो? नरेंद्र बोला कि मैंने सोचा कि दूसरे गांव में अपनी नाई की दुकान खोलता हूं। मैंने इसलिए दुकान तुम्हारी दुकान के सामने खोली ताकि हम दोनों एक ही व्यवसाय में है तो हमारी दोनों की खूब पटेगी इसलिए मैंने यह जगह चुनी। मैंने सोचा दूसरे गांव में जाकर अगर कोई रोजगार जमाया जाए तो वह ज्यादा फलता-फूलता नहीं है।
इसलिए मैं अपनी पत्नी मां और अपने बच्चों को यहां ले आया हूं। आज से मैं तुम्हारा पड़ोसी हूं। आशा है कि आप और मैं दोनों मिलकर इस व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे। किशन मन ही मन सोचने लगा इसने तो आते ही मेरे धंधे पर लात मार दी अब तो लोग इसके पास ही बाल कटवाने जाएंगे। अब तो मेरे ग्राहकों की संख्या कम हो जाएगी। मेरे पास लोग बाल कटवाने कमआएंगे क्योंकि कई बार मैं गुस्सा होने पर लोगों को खरी-खोटी सुना देता हूं। यह तो बहुत ही बुरा हुआ। इसको यहां से निकालने के लिए मुझे कोई योजना बनानी पड़ेगी।
एक दिन अपनी दुकान को बंद करके उस गांव के सरपंच के पास गया और बोला हमारे गांव में एक नये आदमी नें नाई की दुकान खोल दी है। वह इस गांव का नहीं है। इसको आपने कैसे आने दिया। किसी को पूछे बिना ही इस ने अपनी दुकान खोल ली है अगर आप कुछ नहीं करेंगे तो मैं पुलिस के पास जाऊंगा। बिना सोचे समझे बाहर से आकर कोई इंसान यहां पर आ कर काम धंधा कैसे कर सकता है। जब तक कि वह इस गांव का ना हो या उसकी अपनी जमीन जायदाद होनी चाहिए। वह तो अपने पूरे परिवार को लेकर यहां आ गया है। आप इसे यहां से जल्दी निकालने का प्रयास करें।
पंचायत अधिकारी के पास और पुलिस अधिकारी के पास जाकर वह न्ए नाई की शिकायत का फरमान लेकर गया। पुलिस इंस्पेक्टर और पंचायत के पंच नें कहा की तुम्हारी बात पर गौर किया जाएगा। वह बोलाआप जल्दी से जल्दी निर्णय ले। वह वहा जा कर अपने मन की भड़ास निकाल चुका था। मन ही मन किशन को हर रोज गाली निकालता और सोचता कि यह व्यक्ति यहां से कहीं और चला जाए।
कुछ लोग नए-नाई के पास भी बाल कटवाने आने लगे। किशन की बात सच साबित हुई। आधी से अधिक लोगों की संख्या बिशन के पास बाल कटवाने जानें लगी क्योंकि वह लोगों के बड़े प्यार से बाल काटता था। किशन सोचने लगा कि अब मैं क्या करूं? इस गम में वह बीमार पड़ गया। उसके सामने अदालत से एक नोटिस आया जिसमें लिखा था कि जल्दी से जल्दी आकर अपनी जमीन के 50,000रु जल्दी से जल्दी इस इतवार को आकर जमा कर दो। वर्ना तुम्हारे खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। अब तो किशन और भी निराश हो गया। बस्ती वालों से तो कुछ कह नहीं मांग सकता था क्योंकि कोई भी उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आता था। क्योंकि वह बहुत ही गुस्से वाला था। उसके इसी बर्ताव के कारण लोग उसे रुपए देने से कतराते थे। इस गम में वह बीमार पड़ गया। उसको बीमारी की हालत में देख कर बिशन बोला भैया अब आप आराम करो। मैं आपकी दुकान में आकर आज बाल काट देता हूं। आज मैं अपनी दुकान पर ताला लगा देता हूं। क्यों कि मुझे आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती। अगर मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं तो मैं अपने आप को भाग्यवान समझूंगा। मुसीबत के समय एक दोस्त की सेवा करना हमारा फर्ज होता है। उस दिन बिशन ने सारा दिन अपनी दुकान बंद रखी। उसको कुछ ठीक होते देख बिशन किशन से बोला भाई मेरे मैं कई दिनों से मैं तुम्हें बहुत उदास देख रहा हूं। क्या बात है? मुझसे कहो शायद मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूं। किशन बोला कोई बात नहीं। बिशन बोला कि भाई मेरे मैंने तुम्हें दोस्त ही नही भाई भी कहा है कहीं ना कहीं तुम मुझसे बड़े हो इसलिए तुम निश्चिंत होकर अपने मन की बात मुझ से कह सकते हो। तो शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं अगर तुम मुझ से मदद मांगना चाहते हो तो आज मेरे घर पर आ सकते हो। किशन चारों तरफ से निराश हो चुका था। उसके पास जमीन के रुपए जमा करवाने के केवल 5 दिन शेष थे। वह सोच रहा था कि आगे इन 5 दिनों में वह जमीन के रुपए नहीं चुकाता है तो वह जमीन सरकार अपने नाम कर लेगी। अब मैं क्या करूं? हार कर उसने सोचा क्यों ना बिशन के पास मदद मांगने जाऊं। उसने मुझसे कहा था कि शायद ऐ मैं तुम्हारी किसी काम आ सकूं। किशन ने अपने दोस्त बिशन के घर जाने का निश्चय कर लिया। किशन अपने दोस्त बिशन के घर पहुंचा तो वह देखकर हैरान हुआ कि बिशन एक छोटे से कमरे में रहता था। वहीं पर उसकी बूढ़ी मां उसकी पत्नी और उसके दो बच्चे एक छोटे से कमरे में रहते थे। वहीं पर खाना बनाना आराम करना बस एक कमरे में ही सब कुछ करते थे। वहीं पर ही बिस्तर लगाकर सोते थे। एक और स्टोब रखा हुआ था जहां पर उसकी पत्नी खाना बनाती थी।
किशन जब उनके घर पहुंचा तो उनकी हालत देखकर हैरान रह गया उसका एक बच्चा रोता हुआ आया बोला अंकल अंकल आप क्या लोगे? खाना या चाय। किशन ने पूछा कि तुम्हारा बेटा लंगड़ा कर चलता है तो वह बोला मेरे बेटे को बचपन से ही पोलियो है। उसने एक और लेटी हुई बुढिया की ओर देखा वह कराह रही थी और बार-बार कह रही थी कि हे भगवान मुझे उठा ले। इस बीमारी से मैं तंग आ गई हूं। उसकी मेज पर ढेर सारी दवाइयाँ रखी हुई थी। उसको कराहते देखकर बिशन बोला मां तू चिंता मत कर तू ठीक हो जाएगी। अभी तेरा बेटा जिंदा है। तभी उसकी पत्नी चाय बना कर लाई। वह भी आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी। वह एक आंख से अंधी थी। यह सब देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। वह कितना दिलेर है। वह हरदम हंसी खुशी अपनी मां बीवी और बच्चे की देखभाल कर रहा था। वह भी एक छोटे से कमरे में। उसको चुप देख कर बोला भाई मेरे अब तो मुझे बता तुझे क्या चिंता है? किशन बोला कि तुम मेरी मदद नहीं कर सकते। बिशन बोला तुम मुझे बताओ तो सही। मुझे 50000रु अपनी जमीन के 5 दिन में जमा करवानें हैं। मैं अगर पांच दिनों के अन्दर 50000रु जमा न कर पाया तो मेरी जमीन सरकार के कब्जे में चली जाएगी। बिशन बोला यह बात है चलो मैं एक काम करता हूं।
मैंने अपनी मां के ईलाज के लिए 30000 रुपये इकट्ठे किए। हैं मेरी पत्नी के पास अपने कुछ गहनों हैं। वह गहनों का क्या करेगी? इसको बेच देंगे। हमारे पास₹50000 का इंतजाम हो जाएगा। रुपयों को ले जाकर तुम अपनी जमीन छुड़वा सकते हो। फिर इकट्ठे करके मुझे लौटा देना उसके यह वाक्य सुन कर किशन हैरान रह गया। किशन मन ही मन अपने आप को कोसने लगा मैंने इस किशन को अपने मन में ना जाने कितनी गालियां दे डाली और एक है जो मेरी मदद करने चला है।
भगवान इस के लिए तो मुझे कभी भगवान भी माफ नहीं करेंगे। मेरे घर में तो मेरी बीवी मेरे बच्चे मेरा परिवार सब खुशहाल है। परंतु इन को देखो सभी इस स्थिति में है परंतु इसके मन में दुख की एक शिकन भी नहीं है। मैंनें इस भोले भाले इंसान के साथ बेईमानी की है। मैंने गांव के सरपंच को पुलिस अधिकारी को इस व्यक्ति को गांव से बाहर निकालने के लिए खत लिख दिया है। भगवान इससे पहले कहीं देर हो जाए अपनी अर्जी उस से वापस ले लेता हूं। नहीं तो एक दोस्त का दूसरे दोस्त पर से सदा के लिए विश्वास उठ जाएगा। यह मेरे लिए ₹50000 देने के लिए तैयार हो गया।
मेरी सोच कितनी गंदी है। हे भगवान। किशन जल्दी-जल्दी सरपंच के पास गया और बोला सरपंच साहब आपको जो मैंने खत लिखा था कि मेरे घर के पास ही एक अनजान व्यक्ति आकर रह रहा है वह सचमुच में ही अच्छा इंसान है। कृपया करके आप इस खत को फाड़ दे। मैं उसको देख कर सोच रहा था कि उस व्यक्ति ने तो आते ही मेरी दुकान पर ताला लगा दिया परंतु मेरी सोच गलत थी हमें बिना सोचे समझे किसी व्यक्ति के बारे में कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए। कृपा करके आप इस खत को फाड़ दे कहीं ना कहीं मेरी भूल थी। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।
सरपंच महोदय बोले बेटा शाबाश अगर तुम्हें थोड़ी सी भी देर हो जाती तो आज ये अर्जी उस तक पहुंच जाती। आज ही मैं अपने आदमी को वहां भेज भेजने वाला था परंतु अब मैं ऐसा नहीं करूंगा। किशन ने पुलिस इंस्पेक्टर को भी कह दिया कि मैं तो गुस्से में ऐसा कह रहा था। वह आदमी एक नेक इंसान है क्योंकि आप मेरे रिश्तेदार हैं आप उस इंसान के साथ अन्याय नहीं करेंगे। मैं अपनी अर्जी खारिज करता हूं। आज मैं जान गया हूं कि मुसीबत के समय में जो काम आता है वही सच्चा दोस्त होता है। वह दोस्त चाहे कोई भी हो।

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क्रूर सिंह

एक गांव में बहुत ही लंबा चौड़ा हट्टा-कट्टा एक आदमी रहा करता था। उसके हाथों से एक बार किसी का खून हो चुका था। वह खून उसने नहीं किया था। मगर साबित हो जाने पर उसे जेल वालों ने उसे छोड़ दिया था। वह काफी दिन तक जेल की हवा खा कर आया था। इसलिए लोग उसको मिलनें से भी कतराते थे। वह उसे खूनी समझते थे। उसे भी सब इन्सानों से नफरत हो गई थी। वह अकेला ही रहना पसंद करता था। इसलिए वह गांव में पहाड़ की तलहटी पर बहुत ही एक सुंदर बगीचा था। वहां पर एक बहुत ही बड़ी गुफा थी। उसमें वह रहने लग गया था। वह इतना भयानक था कि लोग उसको देखकर डर ही जाते थे। वह काफी बूढ़ा हो चुका था। इसलिए वह लोगों को मार नहीं सकता था। लोग उसको देख कर उसे दानव ही समझ लेते थे। लोग उसे मारनें दौड़े। उसके भयंकर रुप के कारण लोग अपनें बच्चो को कहते थे कि पहाड कि तलहटी पर मत जाया करो। वंहा बहुत ही खूंखार दानव रहता है। उसको कम दिखाई देता था। बच्चे कहना मानने वाले थे? बच्चों को जिस बात को मना किया जाए उस बात को वहजब तक कर न लें तब तक उन्हें चैन नहीं आता था
बच्चों नें मिल कर घर में बताए वगैर पहाड़ की तलहटी पर जा कर देखा। पहले पहल तो उस खूंखार दानव को देख कर डर गए। वे फिर भी वहां जाने से नंही डरे। बच्चों ने देखा वह तो बूढे हैं वह हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। वह अपने से कमजोर लोगों पर ही आक्रमण कर देता था। बच्चों नें फैसला किया हम झून्ड में आया करेंगे। इसलिए वह हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा।
बच्चे हर रोज उसके बाग में खेलने जाते थे बच्चों का भी बाग में खेलना उसको पसंद नहीं आता था। वह उन के पीछे उन्हें मारने दौड़ता । बच्चे तो डर के मारे भाग जाते थे। वह उन्हें काफी देर तक दौड़ता। बच्चे अब उस से डरते नहीं थे। वह उसकी डांट फटकार को कुछ भी नहीं समझते थे। बच्चे बार बार उसके कान के पास जोर से आवाज करते। बच्चे झूमते हुए गाते।,बच्चों की मंडली आई, बच्चों की मंडली आई, अब हमारे क्रूर सिंह अंकल की बारी आई? वह बच्चों से पीछा छुड़ाता हुआ उनके जाने के बाद बाग में पानी डालता। बच्चों ने पेड़ पौधे तहस-नहस कर दिए थे। उनको ठीक करता। बाद में पतों को हटाता। बच्चों के जाने के बाद बगीचे को खूब साफ करता। उसका बगीचा बहुत ही सुंदर लगने लगता था।
काफी दिनों तक बच्चे भी खेलने नहीं आ सके थे। बच्चों के शोर कि उसे आदत हो गई थी। कुछ दिन से उसके बगीचे में कोई चहल पहल नंहीं थी। । बच्चे तो अपनी परीक्षा की तैयारी में लगे हुए थे। क्रूर सिंह बार-बार बाहर बाग में झांकता उसे कोई भी बच्चा नजर नहीं आया। कहीं ना कहीं उसे बच्चों की आदत पड़ चुकी थी। उन्हें फटकार करता। वहां तो कोई भी नहीं था बूढ़ा हो चुका था वह चक्कर खा कर नीचे गिर पड़ा।
कुछ दिनों बाद बच्चे बाग में खेलने आए उन्होंने जोर जोर से शोर मचाना शुरू किया राजू पिंकी मुन्नी चारों सब के सब उस की गुफा के सामने जोर जोर से शोर मचा रहे थे उनका शोर सुनकर भी बाहर नहीं आया। सब बच्चे गुफा के बाहर इधर उधर मंडरा रहे थे अचानक एक बच्चे ने अंदर झांका अंदर से कराहनें की आवाज़ आ रही थी। वह बहुत ही बूढा हो चुका था। वह उठ नहीं सकता था। बच्चे उस की ऐसी हालत देखकर हैरान थे। उन्होंनें उसके बगीचे को तहस-नहस कर दिया था। चारों और पत्थर ही पत्थर फैला दिए थे। बच्चों ने जब क्रूर सिंह को देखा अंदर चले गए। वह तो बिस्तर से उठ भी नहीं सकता था। सब बच्चों के मन में उस क्रूर सिंह के ऊपर दया उमड़ आई। बच्चे उन्हें प्यार से बाहुबली कहने लग गए थे।हम इन अंकल को क्रूर सिंह नहीं पुकारेंगें आपस में बोले। अंकल हम सब आपके पीछे भागते थे
हम आपको न जाने कितना कितना भगाते थे। बेचारे बूढ़ा होने के कारण दौड़ भी नहीं पाते हैं। हमारे दादा जी भी तो घर पर हैं। हमारी मम्मी पापा सब उनकी कितनी देखभाल करते हैं। इन क्रूर सिंह अंकल का तो इस दुनिया में कोई नहीं है। सब लोग तो इनके डरावने रुप को देखकर डरते हैं। हम इन अंकल को बाहुबली भी पुकारा करेंगें। हम बाहुबली अंकल को ठीक करके ही दम लेंगे। हम ही उनका परिवार हैं। सब के सब ने मिलकर योजना बनाई पिन्की को कहा। पिंकी तुम घर से बिस्कुट ले आना। राजू को कहा कि तुम नमकीन ले आना। मुन्नी को कहा कि तुम्हारी मम्मी डॉक्टर है उनसे कहना हमारे क्रूर सिंह अंकल को देखकर उन्हें दवाईयां उपलब्ध करवाये।
सब के सब बच्चों ने बाहुबली अंकल के हाथ-पैर धुलवाए। अपने-अपने घरों से खाना लाएं उसके बिस्तर को झाड़ा। उसके कपड़े धोए। किसी ने उसको पंखा किया। किसी ने उसके पैर दबाए। घर को जाते समय मुन्नी की सोने की चेन उसके बिस्तर के पास गिर गई थी। क्रूर सिंह ने जिंदगी में कभी भी इतना प्यार नहीं देखा था। उसकी आंखों में आंसू बहने लगे। वह बोला कुछ नहीं।
बच्चों ने एक हफ्ते में ही उस क्रूर सिंह अंकल की काया ही पलट दी। उसका बुखार भी उतर चुका था। परीक्षा के बाद सभी बच्चे बाग में आए। सारे के सारे बाग को साफ किया। फूलों को पानी दिया। फूलों की खुशबू से और बच्चों की किलकारियों से एक बार फिर बाग में बाहर आ गई। सभी बच्चे अपने घरों को चले गए।
भयानक बालों वाला वह आदमी जैसे ही बाहर आया अपने बगीचे की महक से उसकी सारी बीमारी दूर हो गई थी। धमाचौकड़ी मचाने वाले बच्चों नें बगीचे को फिर से हरा-भरा बना दिया था। वह बहुत ही खुश हुआ बच्चे उसके पास आने लगे। उसको अपना दोस्त अंकल बना दिया। वह क्रूरसिंह अंकल अब बच्चों का परोपकारी बाहुबली अंकल बन गया।
एक दिन किसी गांव वालों ने उस भयानक दैत्य रुपी मानव को बच्चों के साथ खेलते देख लिया। उन्होंने पिंकी के पापा को कहा कि आपकी बेटी और उन सभी बच्चों का ग्रुप उन क्रूर सिंह के साथ खेलता है। मुन्नी की मम्मी ने उससे पूछा कि तुम्हारे सोने की चैन कहां है? उसकी मां को शक हुआ। गांव वालों की बात कहीं सच तो नहीं है। कहीं वह उस बूढ़े क्रूर सिंह के साथ तो नहीं खेलतें हैं। उसके पिता जब उस बूढ़े क्रूर सिंह मानव के घर गए तो उन्हें सचमुच में ही उन्हें पिंकी की चेन उन्हें उस की गुफा में मिली। उन्होंने उस क्रूर सिंह को कहा तुम ने जानबूझकर मेंरी बेटी की सोने की चेन चुराई है। वह बोला मैं क्यों किसी की चेन चुराने लगा? मुझे तो दिखाई भी नहीं देता है। जब उसके पास चेन मिली तो सभी गांव वालों ने पिंकी के पापा को कहा कि इस क्रूर सिंह ने पहले भी एक खून किया था। वह काफी साल जेल में रह कर आया है। इसी ने ही चेन चोरी की है। आप इस को जेल में डलवा दो।
पिंकी के पिता ने क्रूर सिंह को जेल में डलवा दिया। उन्होंने रात के समय उसके गुफा में घुस कर उसे पकड़ लिया और कहा कि तुमने हमारे बच्चों को ना जाने क्या-क्या पट्टी पढ़ाई? वह तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ते । पिंकी के पिता ने क्रूरसिंह को बुलाया देखो हम तुम्हें कहीं दूर भेज देते हैं। तुम हमारे बच्चों को छोड़ कर यहां से चले जाओ। तुम्हें कहीं दूर दूसरी जेल में भिजवा देते हैं जहां पर हमारे बच्चों की छाया तुम पर ना पड़े। यहां पर तो बच्चे तुम्हें ढूंढ ही लेंगें। पिंकी के पापा ने उस क्रूरसिंह को
दूसरी जेल में शिफ्ट करवा दिया। क्रूर सिंह को भेजने का निश्चय कर लिया। क्रूर सिंह ने पिंकी के पापा को समझाया कि आप सब के बच्चों का भविष्य खराब ना हो इसलिए मैं यहां से सदा के लिए चले जाऊंगा। आपके बच्चों के भविष्य की मुझे भी चिंता है। आपके बच्चे भी खुश रहें। आपके बच्चे महान है। मुझ बुरे आदमी को भी आपके बच्चों ने सुधार दिया। मुझे बच्चों के नाम से भी नफरत थी। मैं तो सब से नफरत करता था। आपके मासूम बच्चों ने मुझे जीने का मतलब समझा दिया। मैं आपके बच्चों की जिंदगी में कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा।
बाबूजी लेकिन मैं उस समय यहां से जाऊंगा जब मेरे समीप यह बच्चे नहीं होंगे। मैं उनको देखते हुए उनको अलविदा नहीं कर सकता। यह कह कर क्रूर सिंह रो पड़ा। पिंकी के पिता ने उसे दूसरी जेल में भेज दिया था। बच्चों ने अपने क्रूर सिंह अंकुर को बहुत ढूंढा मगर उन्हें वह दिखाई नहीं दिए। सारे बच्चे खोए खोए से रहने लगे।
एक दिन पिंकी को पता चल ही गया कि मेरे पापा ने ही क्रूर सिंह अंकल को जेल भिजवा दिया। उसने दूसरे अंकल को कहते सुन लिया था कि अंकल को पिन्की के पापा नें इसलिए जेल में डाला क्योंकि उसनें पिंकी की चेन चोरी की थी। वह अपने पापा के पास गई बोली पापा आपने उन्हें जेल भिजवा दिया। तीन-चार दिन तक उसनें खाना नहीं खाया। वह बोली पापा मैं खाना नहीं खाऊंगी। जब तक आप अंकल को वापिस नहीं बुलाओगे।
वह बहुत बूढ़े हैं उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। जब आप बूढ़े हो जाओगे अगर आप लोगों को कोई ऐसी जगह छोड़कर आ जाएगा जंहा उसे कोई जानता न हो तो आप क्या करेंगे? पिंकी ने अपने सभी साथियों को कह दिया था सब के सब बच्चे अपने माता-पिता पर गुस्सा थे। वह बेचारे क्रूर सिंह अंकल आप लोगों को क्या बिगड़ते थे? आपने तो उनके घर को भी छीन लिया। मेरी सोने की चेन उन्होंने नहीं चुराई। उनको तो दिखाई भी नहीं देता था। आपने उन पर बेवजह शक करके उनको जेल में डलवा दिया। क्रूर सिंह अंकल वह नहीं आप सभी क्रूर हो। जिनके दिलों से दया मिट गई है। मैं आप को कभी माफ नहीं करूंगी। ऐसा कहते कहते पिंकी बेहोश हो गई।
डॉक्टरों ने कहा कि उसे गहरा सदमा लगा है अगर उनकी इच्छा को पूरी नहीं किया गया तो वह कोमा में भी जा सकती है। सभी के सभी बच्चे पिंकी के इर्द-गिर्द खड़े थे। पिंकी के पापा क्रूर सिंह के पास जेल में जाकर बोले। वास्तव में तुमने सोने की चेन चोरी नहीं की थी। यह मेरी गलती थी। जो गुनाह तुमने किया ही नहीं मैंने तुम्हें उसकी सजा दे दी थी। तुम वास्तव में हमारे बच्चों के हितैषी हो। मेरी बेटी ने मुझे बता दिया था।
मेरी बेटी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है जल्दी से आकर मेरी बेटी को बचा लो। मैंने तुम्हें गलत समझा था। क्रूर सिंह बोला आपकी बेटी को बचाने के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं। जल्दी ही वह पिंकी के पापा के साथ गाड़ी में अस्पताल पहुंच गया। पिंकी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला मेरी नटखट पिंकी जल्दी उठ जाओ। तुम्हारे अंकल तुम्हें देखने के लिए नजरें टिकाएं हैं। पिंकी को होश आ गया था। वह बोली अंकल आप हमें छोड़ कर मत जाना। हम आपके बगीचे को साफ रखा करेंगे।
सारे के सारे बच्चे क्रूर सिंह के इर्द गिर्द बैठे थे बोले अब हम आपके बगीचे में पत्थर नहीं फेंकेगे। हम तो बस आपके साथ खेलना चाहते हैं। पहले वाले क्रूरसिंह अंकल बन जाओ। थोड़ा डांट कर थोड़ा फटकार कर हमें दौड़ाओ। आप की डांट में भी एक प्यार छिपा है। पिंकी धीरे-धीरे ठीक हो रही थी।
क्रूरसिंह वापिस अपनी गुफा में आकर रहने लग गया था। एक बार फिर बच्चों
के साथ मौज मस्ती करके अपने जीवन को खुशहाल बना दिया था। बच्चे झूमझूम कर गा रहे थे। बच्चों की मण्डल आई। बच्चों की मण्डल आई। आओ खेलेंगे लुका छिपी। आओ खेले लुका छिपी। बाहुबली अंकल की मंन्डली आई। अब हमारे क्रूरसिंह अंकल की बारी आई। आओ खेलेंगे हम खेल। क्रूर सिंह अंकल आओ बाहुबली अंकल आओ। यूं न हमें डराओ। आ कर हम बच्चों के मन को बहलाओ।