हकीकत

अधिराज के परिवार में उनका लड़का लाखन था। वह एक प्रतिष्ठित जाने-माने व्यापारी थे। उनका बेटा लाखन बहुत ही चंचल स्वभाव का था। जब भी स्कूल जाता चमचमाती गाड़ी उसका इंतजार करती। खाने में भी सौ नखरे
दिखाता। मां मैं यह नहीं खाता मैं तो बस पूरी हलवा और मिठाई। ना जाने क्या क्या? जब तक उसे मिठाई नहीं मिलती तब तक उसे ऐसा महसूस होता कि उसने कुछ भी नहीं खाया है। स्कूल में मैडम जब उससे प्रश्न पूछती वह मैडम के साथ भी ठीक ढंग से पेश नहीं आता था। हर बात पर जिद करना उसकी आदत में शुमार था। इस तरह करते-करते वह दसवीं कक्षा में पहुंच गया था। एक बार स्कूल में सभी बच्चों के साथ पिकनिक पर गया था
अचानक जिस बस में बच्चे गए थे वह बस एक गहरी खाई में नीचे गिर गई। किसी भी बच्चे का कुछ भी पता नहीं चला कौन कहां गया।? वह बच तो गया मगर उसने अपने आपको ऐसी जगह पाया जहां उसका कोई भी नहीं था।

एक किसान के घर में था। उस परिवार ने उसे बचाया। वह किसान और उसकी पत्नी इतने मेहनती थे और उसकी पत्नी तो उससे भी अधिक मेहनत करने वाली थी। किसान की पत्नी ने उस पर पानी के छीटें मारकर उसे जगाया। उसे कहा कि भगवान की मर्जी के बिना एक भी बाल बांका नहीं हो सकता।

हमने तुम को उस बस में से बचाया जहां पर कोई भी बंदा सुरक्षित नहीं बचा होगा। तुम खुशनसीब हो जो तुम बच गए। यह बताओ तुम कहां के हो। उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। ना माता का नाम ना पिता का। उसे कुछ भी याद नहीं था कि वह किस दुर्घटना का शिकार हो गया है। किसान ने उसे बहुत पूछने की कोशिश की मगर वह कुछ भी नहीं बता सका। किसान ने उसे अपने घर पर रख लिया। 6 महीने से भी ज्यादा हो गए थे कोई भी उसे लेने नहीं आया था। किसान ने उसे अपना ही बेटा मान लिया था।

एक दिन किसान बोला बेटा सुबह जो जल्दी उठता है उसे ही हम खाना देते हैं। वर्ना भूखे रह जाना पड़ता है। किसान की पत्नी अपने पति से बोली बोली यह किसी धनी परिवार का बेटा है। इसके साथ इस तरह पेश मत आओ। किसान बोला मुझे इससे पूरी सहानुभूति है मगर मैं अपने कानून का बड़ा पक्का हूं। जब तक बेटा तुम मेरी बात नहीं मानोगे तुम को कुछ खाने को नहीं मिलेगा। उसने ठोकर मार कर थाली नीचे फेंक दी। किसान की पत्नी उसे प्यार करते हुए बोली बेटा खाने की प्लेट को ठोकर नहीं मारते। वह सारा दिन भूखा रहा किसान नें उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया। वह कहने लगा मुझे सोने के लिए जो बिस्तर दिया है वह भी चुभता है। इस बिस्तर पर मुझे नींद नहीं आती। किसान बोला मेरे घर पर तो यही बिस्तर है। इसमें ही सोना पड़ेगा। वर्ना नीचे सो जाओ। सारी रात बैठा रहा। कब तक खाने पर गुस्सा निकालता। कब तक नहीं सोता। किसान उससे कहने लगा कि मैं तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं। अभी तक तो तुम बीमार थे मैंने तुम्हें इसलिए कुछ नहीं कहा। परंतु अब तो तुम्हें यहां पर सब कुछ सीखना पड़ेगा।

मैं तुम्हें अपना बेटा बना कर पालूंगा परंतु तुम्हें मेरे कहे मुताबिक काम करना होगा। किसान ने उसे समझाया बेटा हम जो कुछ मिलता है खा लेना चाहिए। हमें यह कभी नहीं करना चाहिए कि यह नहीं खाना है। वह नहीं खाना खाना है। अन्न का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए। कई बार किसी को कुछ भी खाने को नहीं मिलता। वह उसको एक ऐसी जगह ले गया जहां पर बच्चे कूड़ेदान में से ढूंढ कर खाने खाना खा रहे थे। उनको देखकर लाखन के मन में आया वह भी तो अन्न का निरादर कर रहा था। उस दिन के बाद उसने कभी भी खाने का अपमान नहीं किया। वहां पर उसने सीखा कि कैसे काम किया जाता है? सुबह जल्दी उठने लगा। किसान नें उसकी खूब सेवा कि उसी के परिणाम स्वरुप ही वह ठीक हो गया था। एक दिन उसे कुछ-कुछ याद आ गया कि उसने दसवीं की परीक्षा दी थी। उसके इलावा उसे कुछ भी मालूम नहीं आ रहा था।

एक दिन वह बैठा इसी तरह सोच रहा था कि उसे कुछ कुछ याद आया। वह तो सेठ अधिराज का बेटा है। वह कानपुर का रहनेवाला था। उसने किसान को कहा कि मुझे सब कुछ याद आ गया है। मैं अपने घर जाना चाहता हूं। किसान ने उसे उसके घर जाने के लिए उसे किराया दे दिया। उसे सब कुछ याद आ गया पिज्जा बर्गर खाए बिना तो वह किसी से भी बात ही नहीं करता था। यह क्या? वह तो एकदम बदल चुका था। वह स्कूल में सब के साथ लड़ता था। वह बिल्कुल बदल चुका था। किसान जो काम करता था वह भी उसके साथ काम करता था। वह अपने घर वापिस आया उसके माता-पिता उसे देखकर बड़े खुश हुए बोले बेटा तू कहां चला गया था?
उसने अपने पिता को कहा कि मेरी यादाश्त चली ग्ई थी। इसी कारण मैं आप के पास नंही लौट सका।

अधिराज अपनी पत्नी से बोला मेरा बेटा जो भी वस्तु मांगता है उसे अवश्य दिलाना। मेरे पास रूपए पैसे की कोई कमी नहीं है। उसकी मां ने तो आशा ही छोड़ दी थी कि अब कभी भी वह अपने बेटे से मिल भी पाएगी या नहीं। उसने अपनें बेटे कोे गले लगाते हुए कहा बेटा तेरे बिना तो यह घर बहुत ही सुना हो गया था।

लाखन फिर से स्कूल जाने लग गया था। उसके सारे दोस्त उसे कहते चलो लाखन आज दोस्तों के साथ घूमने चलते हैं। वह प्यार से कहता चलेंगे अभी नहीं जिस दिन ज्यादा काम नहीं होगा उस दिन चले जाएंगे। उसके सारे स्कूल के दोस्त उसके बदले व्यवहार को देखकर चकित रह गये सोचा कि शायद दुर्घटना में चोट लगने के कारण वह बदल गया है। वह हर काम को अच्छे ढंग से करता। स्कूल में पढ़ाई करते करते वह स्कूल में अच्छा स्थान प्राप्त करने लग गया था। एक दिन स्कूल कैंटीन में बैठा था उसने कुछ दोस्तों को कहते सुना कि यह अधिराज का बेटा है। इसके पिता बड़े सेठ हैं। इसके सबसे ज्यादा नंबर इस वजह से आते क्योंकि उनके पिता स्कूल के अधिकारी महोदय से मिलकर अपने बेटे के अच्छे अंक दिलवा देते हैं। वह अपने दम पर तो कुछ नहीं करके दिखाता। बडा आया अच्छे अंक लाने वाला। इस बार जो बारहवीं के परीक्षा में अंक आए हैं यह उसकी अपनी मेहनत नहीं है यह तो इसके पापा की सिफारिश के परिणाम स्वरुप आये। अपने पिता के पास जाकर बोला पापा आप मेरी पढ़ाई के विषय में किसी के पास सिफारिश करने के लिए नहीं जाएंगे। मैं जो कुछ बनना चाहता हूं अपने दम पर। मेरी पहचान तो आप के दम पर ही है। सब यही कहते हैं देखो अधिराज सेठ का बेटा। आज मुझे जब उन्होंने यह सुनाया कि इस बार भी अपने पापा की सिफारिश पर अंक हासिल किए। यह अपने आप तो कुछ नहीं बन सकता।

पापा इस तरह से पढ़ने में मेरा मन नहीं लगता। मैं अपनी मेहनत से अपने दम पर अपनी पहचान बनाना चाहता हूं। मैं यहां से जा रहा हूं। मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। आप सोच लेना कि आपका बेटा लौटकर आया ही नहीं। आप मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। एक दिन मैं अपने दम पर अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाने कर आपके पास लौटूंगा। अगर सफल हो गया तो।

मां पापा आप मुझे रोते-रोते विदा नहीं करेंगे। आप एक बेटे का तिलक कर के मुझे जाने की इजाजत दीजिए ताकि मैं अपने मकसद में सफल हो सकूं। यहां रहा तो मैं लोगों की कटाक्ष भरी बातें नहीं सुन सकता। मैं अब बिल्कुल बदल चुका हूं।

अधिराज नें अपने बेटे के गले लगकर कहा बेटा मैं गलत था। मुझ में ही कमी थी। मैं तुम्हें पहचान नहीं सका बेटा। जहां तुम जाना चाहते हो जाओ लेकिन बड़ा अफसर बनने के बाद लौट कर जरूर आना। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे लौटने का इंतजार करेंगे।

एक बार फिर वहां अपने बूढ़े बाबा के और मां के पास लौट आया। किसान की आंखों में आंसू आ गए बोले बेटा तुम्हें क्या अपना परिवार रास नहीं आया हम गरीबों के पास तुझे क्या मिलेगा। मैं तुझ से कितनी रुखाई से पेश आया। इसके लिए तू मुझे माफ कर देना बेटा मैं तो तुझे सुधारना चाहता था। मुझे खुशी है कि तुम सुधर गये। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं एक बड़े धनी सेठ का बेटा था बिगड़ी हुई औलाद था। मैं हमेशा अपने पिता की कमाई दौलत पर ऐश करता रहा। कभी मेहनत नहीं करता था। खूब शानो-शौकत से रहता था। हमारे पास गाड़ी थी। बंगला था मैं अपने पिता को कहता था कि मुझे कमा कर क्या करना है? जो कुछ आप कमाते हो वही मेरे लिए बहुत है। उसके पिता उसे समझाते बेटा यह नहीं सोचना चाहिए मैंने कितनी मेहनत से व्यापार खड़ा किया है
तुम्हें भी मेहनत करनी चाहिए। लेकिन मैं आलसी बन चुका था। मैंने कभी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। ठाठ से जो कुछ मिलता ऐश करता। कुछ दिनों के पश्चात मेरे पिता ने मेरी शादी एक अमीर लड़की से कर दी। वह भी अमीर परिवार की लड़की। मुझे तो बैठे-बिठाए करोड़ों की संपत्ति मिल गई। इतना खुश था लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन मेरे पिता को व्यापार में घाटा हुआ। उन्होंने अपना सारा कुछ बेच दिया। कुछ भी नहीं बचा। वह मुझसे बोले बेटा अब तो तू भी हमारा हाथ बंटा। मैं ठहरा आलसी। मुझे अपने पिता के ऊपर गुस्सा आया और ना जाने गुस्से में अपने पिता को भला बुरा कहा। मुझे काम करने की आदत नहीं थी। बैठ बैठ कर खाने वाला क्या करे? पढ़ाई भी अच्छे ढंग से नहीं की। मैंने गुस्से में घर छोड़ने का निश्चय कर लिया घर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि मेरे माता पिता का देहांत हो गया है।

मैं जब अपने पिता का घर छोड़कर आया मुझे ना जाने कितनी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। दुकान पर लोगों के जूठे बर्तन साफ करने पड़े। तुम जिस प्रकार खाने पर लात मार रहे थे उसी प्रकार मैंने भी खाने को लात मारी थी। ठोकरें खाने के बाद मैंने मेहनत करके आज जाकर कहीं एक बहुत बड़ा किसान बन पाया। तुम सोचतें होगें कि मेरे पास एक ही खेत है। नहीं आज मैं अपनी मेहनत के दम पर इस मुकाम तक पहुंचा हूं कि मैं दस बारह नौकर रख सकता हूं। लेकिन मैंने मेहनत के दम पर काम करना नहीं छोड़ा। मेरी पत्नी ने भी इस काम में मेरा साथ दिया। वह कभी भी अपने माता-पिता के पास मांगने नहीं गई। जो कुछ हमने इकट्ठा किया है अपनी मेहनत के बल पर इसलिए मैंने तुम्हें डांटा। आज मैं दस बारह नौकर रख सकता हूं मुझे अपना बचपन याद आ गया। मैं तुम मैं अपने आप को देख रहा था तुम भी एक बड़े घर के बच्चे हो। किसान बोला आज मैं अपने माता पिता को वापस नहीं ला सकता। उनको बताने के लिए कि आज मैं एक बहुत बड़ा किसान बन गया हूं। लेकिन मैं इतनी धन-दौलत होने के बावजूद भी उन्हें यह मैं बता नहीं सकता। मैं आजकल के भट्के युवकों को मेहनत से कमाने की सलाह देता हूं। मेरे पास आज इतने बच्चे काम कर रहे हैं लेकिन मेरी पत्नी ने आज तक कोई भी नौकर नहीं रखा।

लाखन को सब कुछ समझ में आ गया था। वह बोला बाबा मैं अपने पापा के पास लौटा था। खूब मेहनत कर रहा था कि लेकिन सब मुझे मेरे पिता की पहचान से जानते हैं। मैं मेहनत के दम पर अपना रुतबा हासिल करना चाहता हूं। किसान बोला ठीक बात है बेटा। तुम यहां पर रहकर मेहनत करो।

अब लाखन से वह लक्ष्मण बन गया था। उसने अपना नाम बदल लिया था। अपने बाल भी लंबे कर दिए।

लक्ष्मण ने इंजीनियर में पहला स्थान प्राप्त किया। जब उसे इंटरव्यू में पूछा गया कि तुम अपनी मेहनत का श्रेय किसे देते हो तो वह बोला कि मैं इन बूढ़े माता-पिता को इसका श्रेय देता हूं जिन्होंने मुझे मेहनत के दम पर आगे बढ़ने की शिक्षा दी। जब प्रेस रिपोर्टर आए तब किसान बोला आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह बच्चा अपनी मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करना चाहता था

वह एक सेठ अधिराज का बेटा है जब भी वह किसी टैस्ट को देता तो उसे यही सुनने को मिलता कि यह तो इसकी मेहनत का परिणाम नहीं। यह तो सेठ अधिराज की सिफारिश का नतीजा है। मेहनत करने के बावजूद भी उस बच्चे को यह सुनने को यही मिलता। एक दिन वह बच्चा अपने पिता का घर छोड़ कर मेरे पास आ गया। वह मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करना चाहता था।

आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि इस बच्चे ने अपनी मेहनत के दम पर सफलता अर्जित की है। जिस इंसान में मेहनत का जज्बा हो वह चाहे कहीं भी रहे। गरीब के घर में या अमीर परिवार में। वह सफलता अर्जित कर सकता है। बेटा आज तुम खुशी खुशी अपने माता-पिता के पास लौट कर जा सकते हो।

अधिराज के पिता ने जब एक बच्चे की फोटो अखबार में देखी उसका चेहरा उसके बेटे लाखन से मिलता था। वह अपनी पत्नी से बोले कि यह हमारे बच्चे की तरह लग रहा है देखो। अपनी मेहनत के दम पर इस बच्चे ने सफलता अर्जित की है। लखन ने फोन करके अपने पिता को कहा पापा मैं अपनी मंजिल को पाने में सफल हो गया हूं। आज मैं बहुत खुश हूं। आज मैं इन्जनियर बन कर वापस लौटकर आ रहा हूं। इस खुशी के साथ आज मेरी अपनी पहचान है। अखबार में आपने फोटो देखी होगी। मैंने अपना नाम बदल लिया था।

जब वह कानपुर वापिस आया तो उसके माता-पिता उसे देखकर बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा कि सचमुच में ही हमारे बेटे ने अपना सपना पूरा कर दिखाया जिसकी कि वह बरसों से चाह कर रहा था।

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