कौवा, लोमड़ी और रोटी

एक लोमड़ी भूखी प्यासी आई पेड़ के नीचे।
लगी देखने उस पेड़ को आंखें मींचे मींचे।।
पेड़ पर था एक कौवा बैठा।
नटखट चुलबुल काला कौवा।।
अपनी चोंच में रोटी का टुकड़ा भींचे भींचे।

लोमड़ी सोच रही थी मन में, क्यों न इसे बहलाती हूं।
इस बेसूरे की तारीफें कर के क्यों न इसे फुसलाती हूं।
बोलूंगी, कौवे मामा कौवे मामा।
एक सुरीला गीत सुना दो।
अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।। अपनी प्रशंसा सुनकर फुल कर कुप्पा होगा कौवा।
जैसे ही मुंह खोलेगा गाने को।
रोटी गिरेगी नीचे, मैं भागूंगी खाने को।

यह सोच कर लोमड़ी बोली
कौवे मामा कौवे मामा,
एक सुरीला गीत सुना दो।
अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।।
वह था एक चतुर कौवा। न आया उसके झांसे में।
सिर हिला कर मुस्काया कौवा,
लोमड़ी नें सोचा, लो मेरी बातों में आया कौवा।।
लोमड़ी के मुंह में आया पानी।
सोचा मैं हूं कितनी स्यानी।
कौवा तो था चालाक।
जल्दी से रोटी खाकर आया उसके पास।
कानों में उसके कांय कांय करके बेसुरा गीत सुनाया।
अपनी कर्कश ध्वनि से उसका होश उड़ाया।
हंस कर बोला कौवा, लोमड़ी मौसी, लोमड़ी मौसी, कैसा लगा मेरा मधुर संगीत?
रोकर लोमड़ी बोली, बहुत ही प्यारा गाना था। कौवा बोला, हां उतना ही स्वादिष्ट मेरा खाना था।।

नन्ही चिड़िया

पेड़ों पर चहचहाती चिड़ियां।
शाखाओं पर मंडराती चिड़िया।।
अपनी चहचाहट से सबके मन को लुभाती चिड़िया।
एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर अटखेलियां करती चिड़िया।।
अपने मधुर संगीत से सबके मन को हर्षाती चिड़िया
एक डाल से दूसरी डाल तक की यूं फुदकती जाती चिड़िया।।

सुबह से दोपहर तक एक पंक्ति में इकट्ठे होकर दाना चुगने जाती चिड़िया।
अपनी चाहत से सबके मन के दर्पण को लुभाती चिड़िया।।

अपनी छोटी छोटी चोंच से अपने बच्चों के मुख में दाना डालती चिड़िया ।

शाम ढलने पर अपने घरों में विश्राम करने आती चिड़िया।।

प्यारी चिड़िया नन्ही चिड़िया।।
सब बच्चों के मन को भाती चिड़िया।।