रानी को क्रिसमस का उपहार

क्रिसमस का त्योहार आया।

बच्चों में खुशी की रौनक लाया ।।

सभी बच्चों के चेहरे खिल खिला उठे

बच्चे सांता क्लॉज़ से मिलने को तिल मिला उठे ।।

इस  साल भी सांता क्लॉज आएंगें।

क्रिसमस पर बच्चा बनकर बच्चों के संग मुस्कुराएंगे ।।

बच्चों में खिलौने और मिठाइयां देकर एक दूसरे को देंगे बधाई ।

उनके आने की खुशी में अपने घरों की तुम सब करो सफाई ।।

सांता क्लॉज़ आकर बच्चों से बोले  मेरे प्यारे बच्चों जल्दी से आओ ।

मेरे संग क्रिसमस का त्योहार मनाओ।

झूमो गांव मस्ती में। बांटो मिठाई बस्ती में ।।

राजू बोला मैं तो बस्ती में मिठाई बांटकर आ गया।

आपसे उपहार पाने को मचल गया।।

सांता क्लॉज़ रानी से बोले ले जाओ बेटी तुम भी अपना उपहार।

जल्दी से निकालो अपने मन का गुब्बार।।

रानी बोली मिठाइयां और गुब्बारे मुझे नहीं चाहिए ।

मुझे तो बस एक छोटा सा उपहार चाहिए ।।

सांता क्लॉज़ बोले, मेरी बच्ची तू तो है खास,

आज खुशी के दिन तू क्यों होती है उदास।

रानी बोली खिलौनों से बढ़कर है मेरी दादी मेरे लिए खास ।

मेरी दादी की आंखें दिला कर कर दो  पुरी मेरी आस ।

सांता क्लॉज़ बोले तुम्हारी दादी के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना कर पाऊंगा ।

तेरी दादी की आंखों की ज्योति वापस लाऊंगा।।

रानी बोली जल्दी से प्रार्थना कीजिए ।

मुझे मेरी दादी से असल में मिला दीजिए।।

वे आज तक मुझे नहीं देख पाई हैं ।

मुझे  हर दिन छू छू कर रोती रोती मुस्कुराई है।।

मेरे सारे खिलौने बच्चों में बांट दीजिए ।

मेरी दादी की आंखें दिला कर मेरी इच्छा पूरी कर दीजिए ।।

सांता क्लॉज़ बोले तेरी जैसी बेटी सबको दे।

भगवान तेरी इच्छा पूरी करके ही दम ले।  तुम्हारा अपनी दादी के प्रति प्यार देखकर मेरा दिल भर आया।

तेरी खुशी  देख कर आज  मैं भी मुस्कराया।

रानी घर आकर दादी से बोली आज तो आप बन जाओ मेरी हमजोली।

दादी जल्दी से आंखें खोलो क्रिसमस का उपहार मुझसे पा लो ।

दादी ने जैसे ही आंखे खोली।

खुश होकर रानी से बोली।

मैं आज सचमुच तुझे देख पा रही हूं।

आज क्रिसमिस के दिन  तुझ संग नाच गा रही हूं।।

नादान दोस्त

किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी । उसका एक ही बेटा था। वह बहुत ही आलसी था और भोला था। इसलिए उसकी मां उसे भोलू नाम से ही बुलाया करती थी। वह अपनी मां का कहना कभी नहीं टालता था। उसकी मां अपने बेटे की इस आदत से परेशान थी कि मेरे मरने के बाद यह क्या करेगा ?क्या कमाएगा ?और क्या खाएगा ॽ वह उसकी शादी करने की भी सोच नहीं सकती थी ।वह जानती थी कि उसके बेटे की जिम्मेवारी भी बहू पर आ जाएगी इसलिए वह अपनें बेटे की शादी भी नहीं करवाती थी। उसकी मां हमेशा उसे कहानियां सुनाती थी कि बेटा हमें मेहनत करनी चाहिए। मेहनत शब्द सुनते सुनते भोलू के कान पक गए थे । उसकी मां खेत में काम करती थी। भोलू अपनी मां के साथ कभी कभी खेत में चलकर उसका हाथ बंटा दिया करता था। 

उसकी मां को फसलों को बेचकर एक बार हजार रुपए  मिले। मां ने उसे ₹500 दिए और कहा बेटा इसको तू रख ले । इन रुपयों को तुम सोच समझकर खर्च  करना। तू भी कहीं छोटी-मोटी नौकरी कर ले अपने मां की इस प्रकार विनती करने पर वह एक साहुकार के घर पर काम करने लगा । मन तो उसका काम करने को नहीं करता था लेकिन मां की बात को टाल भी नहीं सकता था। साहुकार उसके काम से खुश था। उन्होंनें महीनें के अन्त में उसे ₹2000 दिए ।आज वह इतने रूपए पा कर बहुत खुश हुआ, लेकिन हजार रुपये उसने अपनी मां को थमा दिए और हजार उसनें अपने पास रख लिए। मां ने उसे कहा की इन्हें सोच समझ कर  ऐसे इस्तेमाल करना चाहिए।। जिस से तुम्हारी आमदनी बढ़े।

वह‌ अपनी कमाई को लेकर हाथ में चलते हुए सोच रहा था कि इन रुपयों का क्या करूं? अचानक ही उसे रास्ते में उसके दोस्त दिखाई दिए। वह सब उससे पार्टी मांग रहे थे । तुम भी भाई अब कमाई करनें लगे हो। हमें कुछ न कुछ खिलाओ ना।उसने अपनी सारी बात अपने दोस्तों को बता दीं कि मेरी मां कहती है कि हमें रुपयों का सदुपयोग करना चाहिए वरना हमें बाद में पछताना पड़ता है । उसके दोस्तों ने उसे सलाह दी कि हमें पार्टी देनें के बाद जो तुम्हारे पास रुपये बचेंगें उस की बचत कर लेना। उसने  अच्छी खासी पार्टी अपनें दोस्तों को दे डाली। उसके पास कुछ ही रुपये बचें। उसके दोस्त बोले हमारे पडौस में एक चाची मां रहती हैं।उन की भी लौटरी निकल गई थी। हो सकता है ईश्वर तुम पर मेहरबान होन जाए। उस के दोस्तों ने झूठ-मूठ में मनगढन्त कहानी सुना दी। क्या पता तुम्हारी भी लौटरी निकल जाए। अपने दोस्तों की बातों में आ‌ कर भोलू ने लॉटरी का टिकट खरीदनें का निश्चय कर लिया।एक दिन वह अपनें दोस्तों संग लौटरी कार्यालय गया।उसनें लौटरी का टिकेट खरीद लिया। लॉटरी का टिकेट खरीद कर वह बहुत  खुश हो रहा था के आज तो मैनें भी अपनें कमाए रूपयों का सदुपयोग किया है। उसके पास से रुपयेे उधार ले कर दोस्तों नें भी लॉटरी के टिकेट खरीद लिए थे।l

 घर आया तो  उसकी मां बोली कि बेटा रुपयों का तुमने क्या किया ॽ तब  उसने अपनी मां को सारी बतायी। उसकी मां बोली बेटा तू बहुत ही भोला है। हर किसी की बात में आ जाता है।तेरे दोस्त तेरा बेवकूफ बनाना चाहते हैं बेटा। तुझे न जानें कब अक्ल आएगीॽ बाकी रहे सहे रुपए तूने दोस्तों में उड़ा दिए ।अभी तो मैं जिंदा हूं बाद में तुम्हारा क्या होगाॽ मुझे तो तेरे भविष्य की रात  दिन चिंता सताती रहती है कि तू आगे चलकर कहीं मार ना खाए ।बेटा संभल जा अभी भी वक्त है। वह मां को बोला मैं क्या करूॽं मेरी प्यारी मां आगे से तूझ से पूछ कर ही रुपयों का इस्तेमाल किया करूंगा। उसने वह लॉटरी का टिकट अपनी मां के पास थमा दिया। बोला मां इसे संभाल कर रख दो। मां बोली तू इसका क्या करेगा ॽ तू तो नीरा बुद्धू की बुद्धू ही रहा। उस की मां नें वह टिकेट लेकर जा कर अपने पूजा स्थल पर रख दिया वह मन ही मन बोली हे ईश्वर मेरे नादान बेटे को अक्ल दे देना। भोलू की मां  नें अपनें मायके जानें से पहले भोलू को हिदायत दी कि बेटा अब कोई भी काम करो उसे करनें से पहले सोच समझ कर और मेरी सलाह से किया करो।उस की मां नें अपनें बेटे को कहा अपनी सेहत का ध्यान रखना वह यह कह कर चली गई। काफी दिन व्यतीत हो चुके थे।उसके दोस्त आपस में हंसते हमनें उसे बेवकूफ बना दिया कि हमारे पडौस की चाची मां की लौटरी निकली है।वह तो हमें उसे चूना लगाना था।।

एक दिन भोलू के दोस्तों ने जब अखबार में अपनें दोस्त की फोटो देखी तो हैरान रह गए उनके दोस्त भोलू की लौटरी निकल गई थी।

भोलू तो इस बात से बिलकुल बेखबर था कि उसकी भी लॉटरी निकल सकती है ।  उसने 6 करोड तो क्या हजार रुपये भी बड़ी मुश्किल से देखे थे ।उसके दोस्तों ने उस के घर आ कर भोलू को यह समाचार सुनाया।और कहा भोलू उठो  देखो तुम्हारी लौटरी निकल गई है। तुम्हारी अखबार में फोटो भी छप गई है।वह कहनें लगा अभी मैं सो रहा हूं।तुम फिर आज मुझ से पार्टी लेनें के बहाने  मेरा बेवकूफ बना रहे हो।जब मेरे पास बहुत रुपये-पैसे हो जाएंगे तब तुम को पार्टी अवश्य दूंगा।अभी कृपया कर के मुझे सोनें दो।उसके दोस्त उसे उठानें की कोशिश करतें हैं  मगर हार कर घर वापिस जाने लगतें हैं।।प्रैस रिपोर्टर उसके घर पर उसको बधाई देनें आंतें हैं और उसका फोटो लेना चाहतें हैं। अपने घर में दोस्तों का जमघट देखकर वह परेशान हो जाता है ।उसके घर के बाहर इतने लोगों का जमघट देखकर वह कहता है भाई मुझे अभी आराम करने दो। मुझे बड़े जोर की नींद आ रही है बाद में आना अभी मेरी मां भी घर पर नहीं है। नींद तो मुझे बहुत ही प्यारी है मैं अभी तुम्हें इंटरव्यू नहीं दे सकता जब मैं सोकर उठ जाऊं तब तुम आ जाना ।प्रेस रिपोर्टर घर से बाहर चले गए ।यह कैसा इंसान है जो करोड रुपये-पैसे पाकर भी मजे की नींद सो रहा है। उसके दोस्त 

 यह तो निरा बुद्धू का बुद्धू है। किसी अच्छे से किसी प्रसिद्ध व्यापारी से मिलकर सांठगांठ करते हैं ।उसको भी अपने इरादों में अपने साथ मिलाकर उस से छह करोड़ की प्रॉपर्टी को उससे छीन लेंगें।

 उसकी मां को जब पता लगा कि  उसके बेटे की 6 करोड़ की लॉटरी निकली है तो वह  घर आ कर अपने बेटे को कहने लगी बोली बेटा एक करोड़ रुपए तो तू मेरे पास दे दे वरना तेरा क्या पता ॽतू तो इनको यूं ही व्यर्थ में गंवा देगा। उसने एक करोड रुपये अपनी मां के अकाउंट में जमा करवा दिए ।उसकी मां ने कहा बेटा  तू मेहनत करके तु्म इन रुपयों से गरीबों की मदद कर सकते हो जो कुछ करना चाहो वह तुम कर सकते हो ।इनका उपयोग सोच समझ कर करना ।

उसके दोस्त अपनी योजना में सफल हो जाते हैं ।एक नामी करोड़ी सेठ मल के पास जाकर उसे भी अपने साथ रुपयों का लालच देकर उसे भी अपने साथ मिला देते है। करोड़ीमल उनके दोस्तों को एक टापू के बारे में बताता है कि उस  टापू पर जमीन बिकने के लिए खाली है। वह उस टापू का पता उसके दोस्तों को दे देता है ।जब भोलू को लॉटरी का टिकट ईनाम में लग जाता है उसके दोस्त उस से कहते हैं कि हमारी नजरों में समुद तट के पास एक जमीन का टूकडा खाली पड़ा है  अगर तुम उस टापू को खरीद लेते हो तो हम भी तुम्हारा साथ देंगे। हम भी तुम्हारे साथ तुम्हारी सहायता करेंगे ।तुम तो और अधिक अमीर बन जाओगे। करोड़ीमल बहुत ही लालची था। वह तो उन दोस्तों से भी ज्यादा कंजूस था। वह अपने मन में खुश होता है कि वह  बंजर टापू का पता बता कर उसने भोलू के दोस्तों को भी बेवकूफ बना दिया । यह जमीन का टुकड़ा तो उसके एक दोस्त का टापू है।वह तो बिल्कुल बंजर है लेकिन उसके दोस्त भी उसे बुद्धू बना रहे थे ।जब वह टापू खरीद लेगा तब वह वहां कुछ नहीं कर पाएगा। वह तो बिल्कुल बंजर है।उसमें कोई भी फसल नहीं उग सकती है। चापलूसी करके  उसके दोस्त भोलू को उस टापू को खरीदने पर विवश कर देते हैं ।वह उसे कहते हैं कि उस टापू को खरीदनें से उस क सोए हुएे नसीब जग जाएंगे। तू उसको जल्द ही खरीद डाल। उसकी मां उस समय घर पर नहीं होती ।वह अपने दोस्तों के बहकावे में आकर उन सब रुपयों से एक टापू खरीद लेता है । करोड़ीमल तो उन दोस्तों से 10000 रुपए कमा कर वह जमीन का टुकड़ा  भोलू को दिलवा देता है।धीरे धीरे भोलू के साथियों को मालूम हो जाता है कि उस करोड़ीमल ने हमें भी चूना लगाया। हम से 10000 रुपये-पैसे भी लिए और हमें भी यह बुद्धू बना गया। उसे 6करोड़ मिले और बदले में उनहें कर मिला ॽ कुछ भी नहीं।इस करोड़ीमल से अच्छा तो हमारा दोस्त था हमनें तो उस को बेवकूफ बनाया।उसको बेवकूफ बनाते बनाते हम खुद इतना बड़ा धोखा खा गए।आज हम को महसूस हो रहा है हमनें तो अपने  नादान दोस्त को भी नहीं छोड़ा। हमें अपनें दोस्त को ढूंडना होगा। 

उस की मां नें जब यह सुना तो वह बहुत ही उदास हुई।वह भोलू से बोली तुम अपनें दोस्तों के बहकावे में आ ही गए।मुझे तो इस बात का अनुमान पहले से ही था।अभी भी सुधर जाओ तो ठीक है।बिना मेहनत किए कमाई का ऐसा ही हश्र होता है। वह बोला मैनें आप की बात न मान कर बहुत बड़ी गलती कर दी है।उसकी मां बोली उस दौलत के जानें का तुम्हें पश्चाताप नहीं करना चाहिए।  करोडों की दौलत तो तुम्हारे पास है। वह बोला अब कौन सी दौलत की बात कर रही हो।वह बोली बेटा तुम्हारे शरीर के एक एक अंग सही सलामत है।यह दौलत क्या करोडों से कम है।इन अंगों से तुम क्या नहीं कर सकते। मैनें एक करोड़ रुपये-पैसे बचा कर पहले रख लिए थे। वह अब तुम्हारे काम आएंगे। इन रुपयों से अच्छी किस्म का बीज खरीदना।अपनी मेहनत का एक एक पल बिना गंवाए  व्यतीत करना।तुम अपनें दोस्तों को दिखा सकते हो कि वह हारा नहीं बल्कि असफलता और निराश होनें पर भी पहले से कहीं ज्यादा निखर कर सोना बन सकता है।तुम्हारे दोस्त पीठ पिछे तुम्हारी हंसी उड़ानें से बाज नहीं आएंगे।तुम उन की परवाह मत करना।

भोलू सब कुछ समझ चुका था। उसने  अपनी मां को कहा कि अगर मेरे दोस्त मेरा पता पूछने पर आए तो आप उन्हें मेरा पता मत बताना।वह अपनी मां का आशीर्वाद लेकर दुसरे प्रान्त में रहनें चला गया।

एक दिन उसके दोस्त उसे ढूंढनें के लिए भोलू के घर आ गए।वे भोलू की मां को  हाथ जोड़कर बोले हमारा दोस्त कहां हैॽ

भोलू की मां बोली यहां से चले जाओ।तुम नें यह भी नहीं सोचा कि तुम नें अपनें मासूम दोस्त को  दगा दिया । तुम सब यहां क्या लेने आए होॽमुझे भी नहीं पता वह कहां हैॽ भोलू के दोस्त उन से फरियाद कर रहे थे हम भी मिल कर उसके   जमीन के टुकड़े को फिर से मेहनत कर के उस को खेती योग्य बना देंगें।हमें आप भी मौफ कर दो।उसका पता हमें बता दो वह कहां रहता हैॽ भोलू की मां बोली तुम्हें अगर अपनें दोस्त से जरा भी लगाव है तो उसे खुद ही ढूंढनें का प्रयत्न करना होगा।भोलू के दोस्त निराश हो कर  वहां से चले गए।

 सारे के सारे दोस्त  उसको ढूंढते ढूंढते उस टापू  तकं पंहुच गए।उसके पास जा कर कहतें हैं तुम्हारे पास 6 करोड आते देखकर हम बर्दाश्त नहीं कर पाए इसलिए हमने करोड़ीमल के साथ मिलकर ही  एक योजना बना डाली कि कैसे तेरे 6 करोड रुपए को चूना लगाया जाए ।हमें तुझसे ईर्ष्या हो रही थी तू एकाएक अमीर कैसे बन गया और हम सब कंगाल के कंगाल ही रह गए। 

   बेटा जो कुछ होता है शायद वह अच्छे के लिए ही होता है।हार कर पीछे हट जाना कायरता है। बेटा समझ अभी भी आ जाए तो क्या बुराई हैॽ तुम अब जांच परख कर ही कोई फैसला करना। पश्चाताप करने से कुछ हासिल नहीं होगा। तुम्हारे दोस्त पीठ पीछे तुम्हारा मजाक उड़ाने से पीछे नहीं हटेंगे तुम निडर  हो कर उसी तरह मस्त होकर जीना जैसे पहले जीते थे।

 भोलू राम को अपनी मां की एक एक शब्द समझ में आ रहे थे । वह अपने मन ही मन सोचने लगा ठीक है अभी मुझे समझ आ गई मेरी मां ठीक ही कहती है कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती । आज से ही मेहनत को अपना लक्ष्य बना लूंगा ।यह टापू बंजर होगा तो क्या ॽ1 दिन उस बंजर जमीन में भी फसलें उगा कर दिखा दूंगा। मैं मेहनत के दम पर एक दिन विजयश्री हासिल करके ही रहूंगा ।उसने अपनी मां को साथ  लिया और उन के साथ के उस टापू के पास बनें हुए बंजर जमीन पर चल कर छोटा सा मकान ले कर वहां रहने लगा ।वह जी लगा कर मेहनत करनें लगा। आते जाते लोग उसकी खिल्ली उड़ाते कभी बंजर भूमि में भी फसल उगती है क्याॽउसने अपनी मां के बचाए हुए रुपयों से बीज खरीदा ।कुछ खेत को खेती लायक बनाया। यह परवाह नहीं की कि इसमे अनाज भी उगेगा या नहीं ।इसी तरह मेहनत करते करते उसे 8 महीने हो गए । करोड़ी मल नें उसके दोस्तों को भी चूना लगा दिया था। उसनें सारे के सारे दोस्तों को कहा कि तुमने अपने दोस्त को तो  दगा दिया। बंजर जमीन दिलवाकर तुम भी अब पछताओगे मुझे तो रुपये हासिल करने थे ।वह रूपये अब मुझे मिल गए हैं ।तुम अब कभी भी चैन की नींद नहीं सो पाओगे ना तुम और ना तुम्हारा दोस्त। सब के सब दोस्त बहुत ही शर्मिंदा हुए। उन्होंने अपनी कमाई हुई जो संपत्ति थी वह करोड़ीमल को दे दी थी ताकि उसका दोस्त भी बेकार हो जाए। ठीक ही कहा है कि जो किसी के लिए गड्ढा खोदता है उसका नुकसान पहले होता है।अब यह सारी बात उसके दोस्तों को समझ में आ गई थी

 एक दिन सब के सब दोस्त तो घुमते घुमाते उस टापू पर उसका पता पूछते पूछते अपने दोस्त को मिलने पहुंचे उसको इस प्रकार खुशी खुशी काम करता देख कर और उसकी हिम्मत को देखकर , हल चलाता देखकर वह मन ही मन बहुत पछतातें हैं।  वह भोलू के पास आकर बोले कि हमने तुम्हारे जैसे अच्छे दोस्त को गंवा दिया और हमने तुम्हारे 6 करोड रुपयों पर पानी फिरा दिया ।हम लालच के फेर में पड़ कर हमनें तुम्हारा नुक्सान करवा दिया।आज से हम भी तुम्हारे साथ मिलकर काम करेंगें।जब तक इस बंजर जमीन में मेहनत और लग्न से हम इस बंजर जमीन को खेती लायक बना देंगें ,तब तक हम आराम करनें के बारे में सोच भी नहीं सकते। हमारी मेहनत निष्फल नहीं जाएगी। हमने तुम्हें भी कंगाल बना दिया ।हमें अपने किए का फल मिल चुका है । उन्होंनें भोलू को बताया किस तरह से

उस करोड़ीमल ने तो हमें भी बेवकूफ बनाया। करोड़ीमल ने हमसे कहा कि तुमने अपने दोस्त के साथ हेराफेरी की है तुम्हें भी यही सजा मिलनी चाहिए ।वह हम से ₹10000 लेकर चलते बने लेकिन अब हमें समझ में आ गया है।भाई हमें माफ कर दो ।हम हम तुम्हारे साथ मिलकर इस बंजर जमीन को सोना बना देंगें। 

भोलू ने अपने दोस्तों को माफ कर दिया ।वह दिन-रात उस टापू की खुदाई करने लगे और जमीन को खेती योग्य बनाने लग गए।

एक दिन जब वह खेती कर रहे थे तो अचानक भोलू राम को कुछ खुदाई करते वक्त टन टन की आवाज सुनाई दी ।उन्होंने जब खुदाई की तो ना जाने वहां पर कितने अरबों की संपत्ति गढ़ी थी। भोलू राम को उसकी ईमानदारी का फल मिल गया था ।उसने सब रूपया  बैंक में डाल दिया और उसने अपने दोस्तों को भी रोजगार दिया ।गरीबों के लिए घर और बेसहारा लोगों के लिए रहने के लिए मकान बनाए ।करोड़ीमल भी आश्चर्यचकित रह गया वह भी आकर भोलू के पांव पड़ गया और उसने उसे क्षमा मांगी ठीक ही कहा है भगवान जिसको देता है छप्पर फाड़ कर देता है। दूसरों खड्डा खोदनें वालों को सबक सिखा कर कड़े से कड़ा दंड देता है। 

सलाह

सुधीर को आज भी कोई भी काम नहीं मिला। वह  बहुत थक हार कर वापिस अपने घर की ओर मुड़ गया । रास्ते में चलते चलते सोच रहा था कि अगर आज वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया तो क्या होगा? उसका घर बार बच्चा माता-पिता सब कुछ  उस से छूट चुके थे ।अपने मन में सोचने लगा भगवान तू ने इंसान को इतना बेबस क्यों बनाया ? ‍थक हार कर एक जगह बैठ कर सोचनें लगा बस अब और नहीं इस बार अपनी पत्नी को मौत के मुंह से भी बचाना है क्या करूं ? आज तो चलो किसी का पर्स ही उड़ा देता हूं, कुछ रुपये तो मिलेंगे जिससे मेरी पत्नी की दवाइयां आ जाएगी। यह सोच ही रहा था कि उसे ज़ोर से ठोकर लगी अपनें को संभाला उसे तभी  सामने से आती हुई गाड़ी दिखाई दी ।

एक इंसान उस गाड़ी के नीचे आने वाला था। सुधीर ने अगर उसे धक्का नहीं दिया होता तो शायद वह बच नहीं सकता था। उसको बचाते बचाते हुए खुद सुधीर की बाजू घायल हो गई । उसने उस आदमी को तो बचा लिया मगर अपने चोट लगा बैठा। उस व्यक्ति नें सुधीर का धन्यवाद किया। वह आदमी एक दुकान का मालिक था। जल्दी से उसने अपनी गाड़ी जो उसने सड़क के दूसरी ओर खड़ी की थी उस में सुधीर को बिठाया और बोला भाई तुमने मेरी जान बचाने के लिए खुद अपनी जान की भी परवाह नहीं की ,वह बोला बाबू साहब गरीब हूं ,आज जाना कि दर्द क्या होता है। जब मेरे अपने एक-एक करके मेरा साथ छोड़ गए तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे तो इस दुनिया में अपने नहीं रहे अगर मैं थोड़ा सा भी किसी के लिए कुछ कर सकूं तो कम है।

उस ने सुधीर की ओर ध्यान से देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह कुछ परेशान था। उसने कारण पूछा तो सुधीर बोला साहब मेरी पत्नी अस्पताल में है । वह  ज़िन्दगी और  मौत के मूंह में जूझ रही है। मेरे पास भी धन दौलत सब कुछ था। भरा-पूरा परिवार था। एक दिन हम दोनों किसी शादी में गए थे। घर में अचानक आग लग गई। बच्चे सभी आग की लपेट में आ गए। कुछ भी नहीं बचा। सदमे से मेरी बीवी बहुत बीमार हो गयी। आज भी छोटी मोटी चोरी कर उसके लिए दवाइयां लाने का सो़च रहा था।। मैनें सोचा जब मेरी पत्नी ठीक हो जाएगी तब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। मैं अपनी पत्नी को बचाना चाहता हूं क्या करूं?

वह बोला कि तुम्हारी पत्नी किस अस्पताल में दाखिल है? तुम्हें रुपयों की जरूरत है तो मैं तुम्हें पैसे देता हूं। चोरी करना छोड़ दो। चोरी से कुछ नहीं मिलता। सुधीर बोला बाबू साहब कहने की बातें हैं जब आप पर किसी दिन गुजरेगी तब पता चलेगा जब आपको किसी दिन खाने को कुछ नहीं मिलेगा तब आप  भी चोरी करने से पीछे नहीं हटेंगें।

वह बोला मैंने तो ईमानदारी से जीवन-यापन किया है आगे भी करुंगा। तुम अगर  मेरी दुकान पर काम करना चाहते हो तो मुझसे कहो । तुमने मुझे बचा कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है। तुम्हारे किसी काम आ सका तो मैं अपने आप को खुशनसीब समझूंगा। बातों बातों में सुधीर को उस भले व्यक्ति नें अपना नाम सिद्धार्थ बताया और उसे अपना पता भी दिया।

जाते समय वह सुधीर को काफी रूपए भी थमा गया। सुधीर खुश हो रहा था कि चलो आज तो मैं अपनी पत्नी की दवाइयां ले जाकर उसे थमा दूंगा । कुछ दिन उसे रुपये-पैसे कमानें के लिए दर दर नहीं भागना पड़ेगा। वह जब अस्पताल पहुंचा तो डाक्टर ने कहा के उसकी पत्नी का ठीक हो पाना बहुत मुश्किल है। वह अपने बच्चों की अकाल मृत्यु का सदमा सहन नहीं कर पा रही।

आज उसे सब कुछ पिछला याद आ रहा था किस तरह उसने घूस ले लेकर बहुत सा धन इकट्ठा किया था ।उसके परिवार वाले उस से बहुत खुश थे। पर क्या फायदा हुआ? किस्मत का खेल भी अजीब है, बच्चे भी नहीं रहे और उनके वियोग में काम भी हाथ से छूट गया। हस्पताल से छुट्टी कर वह अपनी पत्नी को घर वापस ले आया। वहां एक टूटी सी झौंपड़ी थी।

वह खानें के लिए कुछ सामान लेनें बाहर जाता है। तभी अचानक  उसे एक छोटी सी बच्ची दिखाई दी ।उसके साथ कोई नहीं था। वह रो रही थी, वह लड़की रोते रोते  सुधीर  के पास आ कर कहती हैं अंकल अंकल मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है, कुछ खानें को दे दो। सुधीर ने उसे अकेला था कर पूछा के वह कौन है  और कहीं से आइ है। वह बोली मैं अपनें माता पिता  के साथ एक छोटी सी झोंपड़ी में रहती थी। एक दिन हमारी  झोंपड़ी में आग लगी  मेरे माता पिता जल कर मर गए।  बस्ती में जो  ज़िन्दा बचे वे सारे के सारे  लोग कहीं दूसरी बस्ती में रहने चले गए। मैं अकेली रह गई। कुछ दिन फुटपाथ पर गुजारे। जिस किसी को भी खाना खाते देखती सोचती वह बाबू मुझे कुछ न कुछ तो दें देंगें। आज दो दिन से मुझे कुछ भी खानें को नहीं मिला। सुधीर के सामनें अपनें परिवार का चेहरा आ गया। उस की मासूम सी बच्ची भी तो आग की भेंट चढ़ गई। वह जल्दी से दौड़ कर उस बच्ची के पास गया और उसे गले से लगाते हुए उसकी आंखों से अश्रुओं की धारा बहनें लगी।उसने उस लड़की का हाथ थामा। उसे अपने साथ अपने घर ले आया। घर आ कर उसने उसे भर पेट खाना खिलाया।  उस दिन से वह  सुधीर के साथ रहने लगी। एक बच्चे का प्यार पा कर सुधीर की पत्नी की तबीयत ठीक होने लगी थी। सुधीर सोचनें लगा एक तो बिमार पत्त्नी और ऊपर से वह अनाथ बच्ची उन दोनों के पालन पोषण की व्यवस्था के लिए उसे तो सिद्धार्थ से मिलना ही होगा। । एक दिन उसका कार्ड लेकर वह जब  बताए गए पते  पर पहुंचा तो सिद्धार्थ ने उसका आदर सत्कार किया । सिद्धार्थ बोला कि कैसे आना हुआ।उसने सारी बातें सिद्धार्थ को बता दी। मेरे भाग्य में एक छोटी सी बच्ची का साथ था। उसका अपना इस दुनिया में कोई नहीं है इसलिए मैं उसको अपने साथ घर ले आया। उसके साथ रहकर मुझे एक बेटी का प्यार मिला। उसमें मुझे अपनी बेटी  की झलक दिखाई दी। उस के हमारी जिंदगी में आनें से मेरी पत्नी की सेहत में  भी सुधार हुआ।

आप नें‌ एक दिन कहा था कि चोरी मत करना। मैंने चोरी का धंधा छोड़ दिया है। सिद्धार्थ बोला आज तो मैं जमींदार के यहां किसी काम से जा रहा हूं कल तुम मुझसे आकर मिल लेना कल से ही तुम मेरी दुकान पर काम करने आ सकते हो। सुधीर दूसरे दिन ही उसके दुकान पर काम करने आ गया। वह दिन रात मेहनत  कर काम करनें  लगा।  वह पूरी इमानदारी से उस की दूकान में काम करनें  लगा।

वह अपना पिछला वक्त सब कुछ भूल गया । दोनों  रानी को अपनी बेटी की तरह प्यार करनें लगे। इस तरह काफी साल व्यतीत हो गए। सुधीर ने अपना छोटा सा घर बना लिया था।

सुधीर और सिद्धार्थ दोनों बहुत घनिष्ठ मित्र बन  गए।

गांव के जमीदार  रामप्रताप  जब उन दोनों को देखते तो तारीफ करते नहीं थकते । कहते कि दोनों कितने प्यारे दोस्त हैं।रामप्रताप के पास बहुत सारी जमीन जायदाद थी । उसने अपने गांव में एक बूढ़े मुनीम को अपने जमीन के दस्तावेजों को देखने की ज़िम्मेदारी सौंप रखी थी। जो उसके सभी महत्वपूर्ण कामों को कर दिया करता था। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था ।जमीदार का काम ठीक से चल रहा   था एक दिन उसका मुनीम बहुत ही बिमार हो गया। वह अपने मन में सोचनें लगा कि मैं अब किस व्यकि के पास मुनीम का कार्यभार सौंपूं। यहां पर तो लोग बात बात में लड़ाई झगड़ा करते रहते हैं। मेरे दस्तावेजों को ठीक ढंग से कोई सुरक्षित नहीं रख पाएगा। मेरा सारा कार्य चौपट हो जाएगा। क्या करूं ? मुझे अपने काम की जिम्मेदारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को देनी होगी जो ईमानदार हो,समझदार हो । वह हर तरह से हर काम में निपुण हो। वह हरदम इसी तलाश में रहता था जिससे वह अपने कस्बे की जिम्मेवारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को सौंप सके जो कि उसके कार्य को अच्छी तरह से देख सके और उसे मुनीम का पद भी दे सके।  उसे कोई भी आदमी इस काम के लिए जंचता नहीं था।

एक दिन मुनीम ने ज़मीदार से कहा सिद्धार्थ और सुधीर  इन दोनों में से आप किसी को भी जमींदारी सौंप सकते हो। दोनों ही ईमानदार दिखते हैं।देखें क्या होता है। मैं सिद्धार्थ की परीक्षा लेता हूं और आप भी भेस बदल कर सुधीर की परीक्षा लें। एक दिन जमींदार ने साधारण आदमी का वेश बदला और घूमनें निकल पड़ा। उसनें अपनें मुनीमको साथ लिया और कहा कि तुम पता पता लगाओ कि मुनीम का पद कौन  संभाले के लिए तैयार है। आप तो बीमार रहते हो। मुनीम बोला कि आप निश्चिचत रहो। मुनीम नें एक बहुत ही वृद्ध दिखनें वाले बुढ़े का वेश धारण किया और  वह  नदी के किनारे एक गठरी उठा कर चलने लगा सिद्धार्थ पास से ही अपनी दुकान से घर जा रहा था।

उसकी पत्नी मायके गई थी।  मुनीम  नें जब  बूढ़े को देखा तो बोला  इतनें भारी  गठरी को क्यों उठा कर ले जा रहे हो। वह बोला कि बेटा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। तुम मेरी गठरी उठाकर ले जा सकते हो तो ले चलो। सिद्धार्थ को दया  आ गई बोला ठीक है। सिद्धार्थ  तो रईस व्यक्ति था । वह सोचनें लगा उस बूढ़े इंसान की मदद करना मेरा फ़र्ज़  है। वह बोला बाबा यह तो बताओ की इस गठड़ी में क्या है । बूढ़ा बोला कि इसमें ढेर सारे सिक्के हैं। तुम साथ साथ ही चलना तुम अगर सिक्के लेते चलते बने तो मैं तो कंगाल हो जाऊंगा । बुढ़ापे में तो कोई भी मुझे नहीं खिलाएगा। सिद्धार्थ बोला कि मैं एक ईमानदार आदमी हूं। मैं चोरी नहीं करता। मैंने अपने एक दोस्त को भी चोरी करने की आदत से छुटकारा दिलवाया । वह मेरे यहां पर काम करता है। बूढ़े ने सिद्धार्थ की ओर देखकर कहा ना जाने मुझे तुम पर  मुझे विश्वास हो चला है । तुम मेरी गठरी को उठा सकते हो। आगे-आगे सिद्धार्थ चलने लगा पीछे-पीछे बूढ़ा । रास्ते में सिद्धार्थ सोचनें लगा कि वह सिकके ढेर सारे होंगे । वह गठड़ी  भी बहुत ही भारी है। सिक्के नहीं नहीं मुझे  इस के सिक्को का कया करना। उसने  पिछे मुड़कर देखा  बूढ़ा पीछे-पीछे चला आ रहा था। आगे जाने पर सिद्धार्थ ने देखा कि बुढ़ा तो एक और गठरी उठाकर आ रहा था। वह बोला बाबा अभी तो तुम्हारे पास एक  ही गठड़ी थी। यह दूसरी कहां से आ गई । बूढ़ा बोला मै तो तुम्हारी  परीक्षा ले रहा था। मेरे पास दो गठडियां थी। एक मैनें झाड़ियों में छिपा दी थी। मैं सोच रहा था कि कहीं तुम मुझ बुढ़े को चकमा दे कर भाग जाओगे तो एक तो मेरे पास बच ही जाएगी। तुम बहुत ही भले इन्सान हो । बूढा बोला दूसरी  गठडी में  मेरे खून पसीने की कमाई है। इसमें सोने के सिक्के हैं ।यह तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। सिद्धार्थ बोला तो आईस्ता आईस्ता चलते रहो। ।लेकिन वह आसानी से चल नहीं पा रहा थ।

बूढा सिद्धार्थ को रोककर बोला अच्छा बेटा चलो तुम ही उठा लो ।मेरे भाग्य में अगर यह  कमाई नहीं होगी तो ना सही अगर यह मेरे भाग्य में होगी तो मुझे ही मिलेगी ।सिद्धार्थ बोला मुझ पर तो आपको विश्वास करना  ही होगा।

मेरे पास इतना रुपया पैसा है मुझे तुम्हारे  चांदी के सिक्कों की क्या पड़ी है। भारी बोझ को उठाते उठाते सिद्धार्थ के कंधे थक गए थे । सिद्धार्थ सोचने लगा कि सचमुच में ही इसमें सोने के सिक्के होंगे । मैं अगरं इस बूढ़े आदमी को पानी में धक्का भी दे  दूंगा तो भी कोई मुझे नहीं देखेगा और मुझे बहुत सारे सिक्के हासिल हो जाएंगे ।कौन सा मुझे यहां पर कोई देख रहा है । मैं इन सोने के सिक्कों को इकट्ठा करके और भी अच्छा बड़ा महल बना दूंगा। मैंने अपने दोस्त को तो सीख दे डाली कि चोरी नहीं करनी चाहिए लेकिन इतना माल हाथ आने पर मैं इसको कैसे गंवा सकता हूं। यह बूढ़ा तो मुझे पहचानेगा भी नही।इसकी आंखों से तो अच्छे ढंग से दिखाई भी नहीं देता और यह चल भी लंगड़ा लंगड़ा कर रहा है ।वह तो मुझे पहचानने से रहा

किसी के पास  सबूत नहीं होगा कि यह सिक्के बूढ़े के हैं। भला बेचारा बूढ़ा मेरा कुछ भी नहीं कर पाएगा। यह सोचकर वह जल्दी जल्दी घर की ओर कदम बढ़ाने का साहस करनें लगा। बूढ़ा बहुत ही पिछे रह गया था।मुनीम  जमींदार के पास वापिस आ गया था।वह जमीदार को बोला आप  हर रोज सिद्धार्थ और  सुधीर की प्रशंसा करते करते थकते नहीं थे।आज मैन भीें इन की परीक्षा ले डाली। जमींदार बोले, सौरभ  तो भला आदमी है। इसकी परीक्षा तो मैं ले चुका हूं

सिद्धार्थ नें घर में जाकर देखा तो उसके घर में कोहराम मचा हुआ था उसके घर का सारा सामान चोर ले गए थे। सब कुछ नष्ट हो गया था ।उसकी तिजोरी टूटी हुई थी ।उसकी पत्नी मायके गई हुई थी ।वह भी वापिस घर आ चुकी थी। वह रोनी सूरत बना कर अपने पति से बोली कि हाय! हम कंगाल हो गए । हम अब कहां रहेंगे । सिद्धार्थ बोला कोई बात नही आज मेरे हाथ ढेर सारे सोनें के सिक्के हाथ लगे हैं। रास्ते में एक बूढ़ा आदमी गठरी   लिए चला आ रहा था उसने मुझसे कहा कि इन गठड़ी को उठाकर ले चलो तो मैं तुम्हें ₹100 दूंगा ।100 के लालच में मैंने उसकी गठरी उठा ली लेकिन उस को चकमा देकर मैं घर आ गया।।सिद्धार्थ की बीवी एक बहुत ही नेक महिला थी, बोली आपको चोरी नहीं करनी चाहिए थी। आप दूसरों को तो उपदेश देते हो लेकिन अपने आप  तो उस पर अमल नहीं करते जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। वह बोली मैं आपको यह गुनाह नहीं करने दूंगी उसने उठाकर वह गठरी बाहर जोर से पटक दी। उसमें से मिट्टी के बड़े-बड़े ठेले निकले ।यह देखकर सिद्धार्थ हैरान रह गया यह क्या  जिसे वह सोनें चांदी  के सिक्के समझ रहा था वह तो मिट्टी के ठेले निकले‌। वह सिर पकड़ कर बैठ गया।

उसकी पत्नी जब बाहर आई तो उसने उस मिट्टी के ढेरों में से एक कागज निकाला । उस कागज में लिखा था लालच करने वालों को कभी सुख नहीं मिलता है ।तुम लालच नहीं करते तो जमीदार के यहां पर तुम  ही  मुनीम तैनात होते । दूसरे दिन सिद्धार्थ ने देखा कि सुधीर को जमीदार ने  मुनीम का पद सौंप दिया था।

मुनीम के पद पर तैनात होकर वह अपने दोस्त सिद्धार्थ को मिलने  उस के घर आया  तो बोला आज मैं आपको आपके द्वारा दीऐ हुए कर्ज़ की कीमत अदा करने आया हूं। सिद्धार्थ अपने किए पर बहुत ही शर्मिंदा था ।वह  सुधीर के गले लग कर बोला भाई तुम ठीक ही कहते  सब कुछ होते हुए भी  मैंंलालच के फेर में पड़ गया।अपने आप को लालच के फेर से रोक नहीं सका।जिसका नतीजा आज मेरे सामने है।उसने भी चोरी ना करने का फैसला कर लिया ।वह अपने दोस्त से ।बोला कि मैंने तुम्हें तो सुधार दिया मगर मैं लालच में पड़कर अपना सब कुछ गंवा बैठा। मुझे सबक मिल चुका है मैं मेहनत के बल से एक दिन फिर से कमा कर अपनी खोई हुई संपत्ति को वापस  पा कर ही रहूंगा।

रानी दौड़ कर सुधीर के पास आ कर बोली आप इन को भी अपनें साथ  इस घर में आश्रय दे दो बाबा।बाबा एक दिन आप को मुश्किल के वक्त इन्होनें अपनें पास नौकरी दी थी आज आप की बारी है।इस मुश्किल की घड़ी में आप अपनें दोस्त की मदद नहीं करोगे तो वह गुमराह हो जाएंगे। सिद्धार्थ रानी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर  बोला भगवान ऐसी बेटी सब को दे। सुधीर  सिद्धार्थ को बोला ऐ दोस्त गले लग जा। जल्दी से अपना सामान समेट कर मेरे साथ रहनें आ जा।भाभी को भी साथ लेता आ।हम सब मिलजुल कर एक साथ छोटी सी दुनिया बसाएंगे।।एक साथ सारा परिवार मुझे  वापिस मिल गया है।रानी खुशी से तालियां बजाती हुई बाहर निकल गई।घर में खुशियां एक बार फिर दस्तक दे चुकी थीं।सुधीर को आज भी कोई भी काम नहीं मिला। वह  बहुत थक हार कर वापिस अपने घर की ओर मुड़ गया । रास्ते में चलते चलते सोच रहा था कि अगर आज वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया तो क्या होगा? उसका घर बार बच्चा माता-पिता सब कुछ  उस से छूट चुके थे ।अपने मन में सोचने लगा भगवान तू ने इंसान को इतना बेबस क्यों बनाया ? ‍थक हार कर एक जगह बैठ कर सोचनें लगा बस अब और नहीं इस बार अपनी पत्नी को मौत के मुंह से भी बचाना है क्या करूं ? आज तो चलो किसी का पर्स ही उड़ा देता हूं, कुछ रुपये तो मिलेंगे जिससे मेरी पत्नी की दवाइयां आ जाएगी। यह सोच ही रहा था कि उसे ज़ोर से ठोकर लगी अपनें को संभाला उसे तभी  सामने से आती हुई गाड़ी दिखाई दी ।

एक इंसान उस गाड़ी के नीचे आने वाला था। सुधीर ने अगर उसे धक्का नहीं दिया होता तो शायद वह बच नहीं सकता था। उसको बचाते बचाते हुए खुद सुधीर की बाजू घायल हो गई । उसने उस आदमी को तो बचा लिया मगर अपने चोट लगा बैठा। उस व्यक्ति नें सुधीर का धन्यवाद किया। वह आदमी एक दुकान का मालिक था। जल्दी से उसने अपनी गाड़ी जो उसने सड़क के दूसरी ओर खड़ी की थी उस में सुधीर को बिठाया और बोला भाई तुमने मेरी जान बचाने के लिए खुद अपनी जान की भी परवाह नहीं की ,वह बोला बाबू साहब गरीब हूं ,आज जाना कि दर्द क्या होता है। जब मेरे अपने एक-एक करके मेरा साथ छोड़ गए तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे तो इस दुनिया में अपने नहीं रहे अगर मैं थोड़ा सा भी किसी के लिए कुछ कर सकूं तो कम है।

उस ने सुधीर की ओर ध्यान से देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह कुछ परेशान था। उसने कारण पूछा तो सुधीर बोला साहब मेरी पत्नी अस्पताल में है । वह  ज़िन्दगी और  मौत के मूंह में जूझ रही है। मेरे पास भी धन दौलत सब कुछ था। भरा-पूरा परिवार था। एक दिन हम दोनों किसी शादी में गए थे। घर में अचानक आग लग गई। बच्चे सभी आग की लपेट में आ गए। कुछ भी नहीं बचा। सदमे से मेरी बीवी बहुत बीमार हो गयी। आज भी छोटी मोटी चोरी कर उसके लिए दवाइयां लाने का सो़च रहा था।। मैनें सोचा जब मेरी पत्नी ठीक हो जाएगी तब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। मैं अपनी पत्नी को बचाना चाहता हूं क्या करूं?

वह बोला कि तुम्हारी पत्नी किस अस्पताल में दाखिल है? तुम्हें रुपयों की जरूरत है तो मैं तुम्हें पैसे देता हूं। चोरी करना छोड़ दो। चोरी से कुछ नहीं मिलता। सुधीर बोला बाबू साहब कहने की बातें हैं जब आप पर किसी दिन गुजरेगी तब पता चलेगा जब आपको किसी दिन खाने को कुछ नहीं मिलेगा तब आप  भी चोरी करने से पीछे नहीं हटेंगें।

वह बोला मैंने तो ईमानदारी से जीवन-यापन किया है आगे भी करुंगा। तुम अगर  मेरी दुकान पर काम करना चाहते हो तो मुझसे कहो । तुमने मुझे बचा कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है। तुम्हारे किसी काम आ सका तो मैं अपने आप को खुशनसीब समझूंगा। बातों बातों में सुधीर को उस भले व्यक्ति नें अपना नाम सिद्धार्थ बताया और उसे अपना पता भी दिया।

जाते समय वह सुधीर को काफी रूपए भी थमा गया। सुधीर खुश हो रहा था कि चलो आज तो मैं अपनी पत्नी की दवाइयां ले जाकर उसे थमा दूंगा । कुछ दिन उसे रुपये-पैसे कमानें के लिए दर दर नहीं भागना पड़ेगा। वह जब अस्पताल पहुंचा तो डाक्टर ने कहा के उसकी पत्नी का ठीक हो पाना बहुत मुश्किल है। वह अपने बच्चों की अकाल मृत्यु का सदमा सहन नहीं कर पा रही।

आज उसे सब कुछ पिछला याद आ रहा था किस तरह उसने घूस ले लेकर बहुत सा धन इकट्ठा किया था ।उसके परिवार वाले उस से बहुत खुश थे। पर क्या फायदा हुआ? किस्मत का खेल भी अजीब है, बच्चे भी नहीं रहे और उनके वियोग में काम भी हाथ से छूट गया। हस्पताल से छुट्टी कर वह अपनी पत्नी को घर वापस ले आया। वहां एक टूटी सी झौंपड़ी थी।

वह खानें के लिए कुछ सामान लेनें बाहर जाता है। तभी अचानक  उसे एक छोटी सी बच्ची दिखाई दी ।उसके साथ कोई नहीं था। वह रो रही थी, वह लड़की रोते रोते  सुधीर  के पास आ कर कहती हैं अंकल अंकल मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है, कुछ खानें को दे दो। सुधीर ने उसे अकेला था कर पूछा के वह कौन है  और कहीं से आइ है। वह बोली मैं अपनें माता पिता  के साथ एक छोटी सी झोंपड़ी में रहती थी। एक दिन हमारी  झोंपड़ी में आग लगी  मेरे माता पिता जल कर मर गए।  बस्ती में जो  ज़िन्दा बचे वे सारे के सारे  लोग कहीं दूसरी बस्ती में रहने चले गए। मैं अकेली रह गई। कुछ दिन फुटपाथ पर गुजारे। जिस किसी को भी खाना खाते देखती सोचती वह बाबू मुझे कुछ न कुछ तो दें देंगें। आज दो दिन से मुझे कुछ भी खानें को नहीं मिला। सुधीर के सामनें अपनें परिवार का चेहरा आ गया। उस की मासूम सी बच्ची भी तो आग की भेंट चढ़ गई। वह जल्दी से दौड़ कर उस बच्ची के पास गया और उसे गले से लगाते हुए उसकी आंखों से अश्रुओं की धारा बहनें लगी।उसने उस लड़की का हाथ थामा। उसे अपने साथ अपने घर ले आया। घर आ कर उसने उसे भर पेट खाना खिलाया।  उस दिन से वह  सुधीर के साथ रहने लगी। एक बच्चे का प्यार पा कर सुधीर की पत्नी की तबीयत ठीक होने लगी थी। सुधीर सोचनें लगा एक तो बिमार पत्त्नी और ऊपर से वह अनाथ बच्ची उन दोनों के पालन पोषण की व्यवस्था के लिए उसे तो सिद्धार्थ से मिलना ही होगा। । एक दिन उसका कार्ड लेकर वह जब  बताए गए पते  पर पहुंचा तो सिद्धार्थ ने उसका आदर सत्कार किया । सिद्धार्थ बोला कि कैसे आना हुआ।उसने सारी बातें सिद्धार्थ को बता दी। मेरे भाग्य में एक छोटी सी बच्ची का साथ था। उसका अपना इस दुनिया में कोई नहीं है इसलिए मैं उसको अपने साथ घर ले आया। उसके साथ रहकर मुझे एक बेटी का प्यार मिला। उसमें मुझे अपनी बेटी  की झलक दिखाई दी। उस के हमारी जिंदगी में आनें से मेरी पत्नी की सेहत में  भी सुधार हुआ।

आप नें‌ एक दिन कहा था कि चोरी मत करना। मैंने चोरी का धंधा छोड़ दिया है। सिद्धार्थ बोला आज तो मैं जमींदार के यहां किसी काम से जा रहा हूं कल तुम मुझसे आकर मिल लेना कल से ही तुम मेरी दुकान पर काम करने आ सकते हो। सुधीर दूसरे दिन ही उसके दुकान पर काम करने आ गया। वह दिन रात मेहनत  कर काम करनें  लगा।  वह पूरी इमानदारी से उस की दूकान में काम करनें  लगा।

वह अपना पिछला वक्त सब कुछ भूल गया । दोनों  रानी को अपनी बेटी की तरह प्यार करनें लगे। इस तरह काफी साल व्यतीत हो गए। सुधीर ने अपना छोटा सा घर बना लिया था।

सुधीर और सिद्धार्थ दोनों बहुत घनिष्ठ मित्र बन  गए।

गांव के जमीदार  रामप्रताप  जब उन दोनों को देखते तो तारीफ करते नहीं थकते । कहते कि दोनों कितने प्यारे दोस्त हैं।रामप्रताप के पास बहुत सारी जमीन जायदाद थी । उसने अपने गांव में एक बूढ़े मुनीम को अपने जमीन के दस्तावेजों को देखने की ज़िम्मेदारी सौंप रखी थी। जो उसके सभी महत्वपूर्ण कामों को कर दिया करता था। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था ।जमीदार का काम ठीक से चल रहा   था एक दिन उसका मुनीम बहुत ही बिमार हो गया। वह अपने मन में सोचनें लगा कि मैं अब किस व्यकि के पास मुनीम का कार्यभार सौंपूं। यहां पर तो लोग बात बात में लड़ाई झगड़ा करते रहते हैं। मेरे दस्तावेजों को ठीक ढंग से कोई सुरक्षित नहीं रख पाएगा। मेरा सारा कार्य चौपट हो जाएगा। क्या करूं ? मुझे अपने काम की जिम्मेदारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को देनी होगी जो ईमानदार हो,समझदार हो । वह हर तरह से हर काम में निपुण हो। वह हरदम इसी तलाश में रहता था जिससे वह अपने कस्बे की जिम्मेवारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को सौंप सके जो कि उसके कार्य को अच्छी तरह से देख सके और उसे मुनीम का पद भी दे सके।  उसे कोई भी आदमी इस काम के लिए जंचता नहीं था।

एक दिन मुनीम ने ज़मीदार से कहा सिद्धार्थ और सुधीर  इन दोनों में से आप किसी को भी जमींदारी सौंप सकते हो। दोनों ही ईमानदार दिखते हैं।देखें क्या होता है। मैं सिद्धार्थ की परीक्षा लेता हूं और आप भी भेस बदल कर सुधीर की परीक्षा लें। एक दिन जमींदार ने साधारण आदमी का वेश बदला और घूमनें निकल पड़ा। उसनें अपनें मुनीमको साथ लिया और कहा कि तुम पता पता लगाओ कि मुनीम का पद कौन  संभाले के लिए तैयार है। आप तो बीमार रहते हो। मुनीम बोला कि आप निश्चिचत रहो। मुनीम नें एक बहुत ही वृद्ध दिखनें वाले बुढ़े का वेश धारण किया और  वह  नदी के किनारे एक गठरी उठा कर चलने लगा सिद्धार्थ पास से ही अपनी दुकान से घर जा रहा था।

उसकी पत्नी मायके गई थी।  मुनीम  नें जब  बूढ़े को देखा तो बोला  इतनें भारी  गठरी को क्यों उठा कर ले जा रहे हो। वह बोला कि बेटा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। तुम मेरी गठरी उठाकर ले जा सकते हो तो ले चलो। सिद्धार्थ को दया  आ गई बोला ठीक है। सिद्धार्थ  तो रईस व्यक्ति था । वह सोचनें लगा उस बूढ़े इंसान की मदद करना मेरा फ़र्ज़  है। वह बोला बाबा यह तो बताओ की इस गठड़ी में क्या है । बूढ़ा बोला कि इसमें ढेर सारे सिक्के हैं। तुम साथ साथ ही चलना तुम अगर सिक्के लेते चलते बने तो मैं तो कंगाल हो जाऊंगा । बुढ़ापे में तो कोई भी मुझे नहीं खिलाएगा। सिद्धार्थ बोला कि मैं एक ईमानदार आदमी हूं। मैं चोरी नहीं करता। मैंने अपने एक दोस्त को भी चोरी करने की आदत से छुटकारा दिलवाया । वह मेरे यहां पर काम करता है। बूढ़े ने सिद्धार्थ की ओर देखकर कहा ना जाने मुझे तुम पर  मुझे विश्वास हो चला है । तुम मेरी गठरी को उठा सकते हो। आगे-आगे सिद्धार्थ चलने लगा पीछे-पीछे बूढ़ा । रास्ते में सिद्धार्थ सोचनें लगा कि वह सिकके ढेर सारे होंगे । वह गठड़ी  भी बहुत ही भारी है। सिक्के नहीं नहीं मुझे  इस के सिक्को का कया करना। उसने  पिछे मुड़कर देखा  बूढ़ा पीछे-पीछे चला आ रहा था। आगे जाने पर सिद्धार्थ ने देखा कि बुढ़ा तो एक और गठरी उठाकर आ रहा था। वह बोला बाबा अभी तो तुम्हारे पास एक  ही गठड़ी थी। यह दूसरी कहां से आ गई । बूढ़ा बोला मै तो तुम्हारी  परीक्षा ले रहा था। मेरे पास दो गठडियां थी। एक मैनें झाड़ियों में छिपा दी थी। मैं सोच रहा था कि कहीं तुम मुझ बुढ़े को चकमा दे कर भाग जाओगे तो एक तो मेरे पास बच ही जाएगी। तुम बहुत ही भले इन्सान हो । बूढा बोला दूसरी  गठडी में  मेरे खून पसीने की कमाई है। इसमें सोने के सिक्के हैं ।यह तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। सिद्धार्थ बोला तो आईस्ता आईस्ता चलते रहो। ।लेकिन वह आसानी से चल नहीं पा रहा थ।

बूढा सिद्धार्थ को रोककर बोला अच्छा बेटा चलो तुम ही उठा लो ।मेरे भाग्य में अगर यह  कमाई नहीं होगी तो ना सही अगर यह मेरे भाग्य में होगी तो मुझे ही मिलेगी ।सिद्धार्थ बोला मुझ पर तो आपको विश्वास करना  ही होगा।

मेरे पास इतना रुपया पैसा है मुझे तुम्हारे  चांदी के सिक्कों की क्या पड़ी है। भारी बोझ को उठाते उठाते सिद्धार्थ के कंधे थक गए थे । सिद्धार्थ सोचने लगा कि सचमुच में ही इसमें सोने के सिक्के होंगे । मैं अगरं इस बूढ़े आदमी को पानी में धक्का भी दे  दूंगा तो भी कोई मुझे नहीं देखेगा और मुझे बहुत सारे सिक्के हासिल हो जाएंगे ।कौन सा मुझे यहां पर कोई देख रहा है । मैं इन सोने के सिक्कों को इकट्ठा करके और भी अच्छा बड़ा महल बना दूंगा। मैंने अपने दोस्त को तो सीख दे डाली कि चोरी नहीं करनी चाहिए लेकिन इतना माल हाथ आने पर मैं इसको कैसे गंवा सकता हूं। यह बूढ़ा तो मुझे पहचानेगा भी नही।इसकी आंखों से तो अच्छे ढंग से दिखाई भी नहीं देता और यह चल भी लंगड़ा लंगड़ा कर रहा है ।वह तो मुझे पहचानने से रहा

किसी के पास  सबूत नहीं होगा कि यह सिक्के बूढ़े के हैं। भला बेचारा बूढ़ा मेरा कुछ भी नहीं कर पाएगा। यह सोचकर वह जल्दी जल्दी घर की ओर कदम बढ़ाने का साहस करनें लगा। बूढ़ा बहुत ही पिछे रह गया था।मुनीम  जमींदार के पास वापिस आ गया था।वह जमीदार को बोला आप  हर रोज सिद्धार्थ और  सुधीर की प्रशंसा करते करते थकते नहीं थे।आज मैन भीें इन की परीक्षा ले डाली। जमींदार बोले, सौरभ  तो भला आदमी है। इसकी परीक्षा तो मैं ले चुका हूं

सिद्धार्थ नें घर में जाकर देखा तो उसके घर में कोहराम मचा हुआ था उसके घर का सारा सामान चोर ले गए थे। सब कुछ नष्ट हो गया था ।उसकी तिजोरी टूटी हुई थी ।उसकी पत्नी मायके गई हुई थी ।वह भी वापिस घर आ चुकी थी। वह रोनी सूरत बना कर अपने पति से बोली कि हाय! हम कंगाल हो गए । हम अब कहां रहेंगे । सिद्धार्थ बोला कोई बात नही आज मेरे हाथ ढेर सारे सोनें के सिक्के हाथ लगे हैं। रास्ते में एक बूढ़ा आदमी गठरी   लिए चला आ रहा था उसने मुझसे कहा कि इन गठड़ी को उठाकर ले चलो तो मैं तुम्हें ₹100 दूंगा ।100 के लालच में मैंने उसकी गठरी उठा ली लेकिन उस को चकमा देकर मैं घर आ गया।।सिद्धार्थ की बीवी एक बहुत ही नेक महिला थी, बोली आपको चोरी नहीं करनी चाहिए थी। आप दूसरों को तो उपदेश देते हो लेकिन अपने आप  तो उस पर अमल नहीं करते जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। वह बोली मैं आपको यह गुनाह नहीं करने दूंगी उसने उठाकर वह गठरी बाहर जोर से पटक दी। उसमें से मिट्टी के बड़े-बड़े ठेले निकले ।यह देखकर सिद्धार्थ हैरान रह गया यह क्या  जिसे वह सोनें चांदी  के सिक्के समझ रहा था वह तो मिट्टी के ठेले निकले‌। वह सिर पकड़ कर बैठ गया।

उसकी पत्नी जब बाहर आई तो उसने उस मिट्टी के ढेरों में से एक कागज निकाला । उस कागज में लिखा था लालच करने वालों को कभी सुख नहीं मिलता है ।तुम लालच नहीं करते तो जमीदार के यहां पर तुम  ही  मुनीम तैनात होते । दूसरे दिन सिद्धार्थ ने देखा कि सुधीर को जमीदार ने  मुनीम का पद सौंप दिया था।

मुनीम के पद पर तैनात होकर वह अपने दोस्त सिद्धार्थ को मिलने  उस के घर आया  तो बोला आज मैं आपको आपके द्वारा दीऐ हुए कर्ज़ की कीमत अदा करने आया हूं। सिद्धार्थ अपने किए पर बहुत ही शर्मिंदा था ।वह  सुधीर के गले लग कर बोला भाई तुम ठीक ही कहते  सब कुछ होते हुए भी  मैंंलालच के फेर में पड़ गया।अपने आप को लालच के फेर से रोक नहीं सका।जिसका नतीजा आज मेरे सामने है।उसने भी चोरी ना करने का फैसला कर लिया ।वह अपने दोस्त से ।बोला कि मैंने तुम्हें तो सुधार दिया मगर मैं लालच में पड़कर अपना सब कुछ गंवा बैठा। मुझे सबक मिल चुका है मैं मेहनत के बल से एक दिन फिर से कमा कर अपनी खोई हुई संपत्ति को वापस  पा कर ही रहूंगा।

रानी दौड़ कर सुधीर के पास आ कर बोली आप इन को भी अपनें साथ  इस घर में आश्रय दे दो बाबा।बाबा एक दिन आप को मुश्किल के वक्त इन्होनें अपनें पास नौकरी दी थी आज आप की बारी है।इस मुश्किल की घड़ी में आप अपनें दोस्त की मदद नहीं करोगे तो वह गुमराह हो जाएंगे। सिद्धार्थ रानी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर  बोला भगवान ऐसी बेटी सब को दे। सुधीर  सिद्धार्थ को बोला ऐ दोस्त गले लग जा। जल्दी से अपना सामान समेट कर मेरे साथ रहनें आ जा।भाभी को भी साथ लेता आ।हम सब मिलजुल कर एक साथ छोटी सी दुनिया बसाएंगे।।एक साथ सारा परिवार मुझे  वापिस मिल गया है।रानी खुशी से तालियां बजाती हुई बाहर निकल गई।घर में खुशियां एक बार फिर दस्तक दे चुकी थीं।

नन्हें सिपाही कविता

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हम बच्चे हैं प्यारे, दुशमन से ना हारे।

आज नहीं तो कल परसों पाएंगे मंजिल सारे।।

हम इस उपवन के हैं नन्हे नन्हे वीर।

इस धरा की है आने वाली तकदीर।।

अपने हाथों की लकीरें खुद लिख कर लाए हैं। हम इस भारत के भाग्य विधाता बन कर आए हैं।।

हम बच्चे हैं प्यारे,  दुशमन से ना हारे।

आज नहीं तो कल परसों पाएंगे मंजिल सारे।। तूफानों से भी नहीं है डरने वाले।

आंधियों से भी है टकराने वाले।।

शत्रु को मिलकर सबक सिखाएंगे।

उनको छठी का  दूध याद दिलाएंगे।।

उनके सामने घुटने नहीं टेकेंगे।

उनको युद्ध में भी कौशल दिखाकर नानी याद दिलाएंगे।।

हम बच्चे हैं प्यारे, दुश्मन से न हारे।

आज नहीं तो कल परसों पाएंगे मंजिल सारे।।

हम तो हैं इस भारत की तकदीर।

आने वाले कल की सुंदर तस्वीर।।

हम बच्चे हैं प्यारे  दुशमन से ना हारे।

आज नहीं तो कल परसों पाएंगे मंजिल सारे। हम इस नवयुग के है सुंदर सुंदर फूल।

नहीं करेंगे हम कभी भी जीवन में कोई भूल।।

कलयुग में भी कमाल कर दिखाएंगे।

अपनी मेहनत के दम पर आसमान को छू कर दिखाएंगे।।

मार्ग में आनें वाली बाधाओं का डट कर सामना करेंगे।

दुश्मनों के छक्के छुडाएंगे।।

उनको अपनें देश से मार भगाएंगे।

उनके लिए खुद ही  सबक बन जाएंगे।।

हम बच्चे हैं प्यारे, दुशमन से ना हारे।

आज नहीं तो कल परसों पाएंगे मंजिल सारे।।

बहू कविता

बहू को बेटी की नजर से देखो अरे दुनिया वालो।

बहू में अपनी बेटी को तलाशों दुनिया वालों।।

बेटी और बहू में फर्क मत करना।

जग में अपनी जग हंसाई मत करना।।

जितना प्यार अपनी बेटी को करते हो।

उससे भी वही प्यार करना दोस्तों।।

उसको भी वही दुलार देने की कोशिश करना ।

वंहीं तुम्हें फर्क नजर आ जाएगा।

तुम्हारा यूं हाय हाय करना छूट जाएगा।।

दूसरों के घर में अपनी बहू की बुराई ना करना।

तुम्हें भी तो अपना गुजरा जमाना याद आ जाएगा।।

तुम अपनी बहू को बेटी की नजर से देखोगे ।

संसार में तभी खुशी-खुशी इस जहां से बेदाग जाओगे।।

बेटी कह कर पुकारो तो।

तुम उसे उसी हक से पुकारो तो।।

तुम्हारी तरफ प्यार का वह हाथ बढ़ाएगी।

तुम भी उसको अपना के देखो तो।  

वह भी तुम्हारी तरफ एक कदम बढ़ाएगी।

इस संसार से कुछ लेकर कोई नहीं जाएगा।

जो सम्मान तुमने उसको दिया ही नहीं।

जो प्यार तुमने उसको किया ही नहीं।

वही प्यार और सम्मान देने की कोशिशों में।

अपने घर की फुलवारी को महकाने की कोशिशों में।।

तुम्हारी सारी उम्र यूं ही गुजर जाएगी।।

भूल जाओ उसके सभी मलालों को।

यह कोशिश कर तुम सब जब देखोगे।

तुम अपनी बेटी की झलक ही अपनी बहु में देखोगे ।

तभी वह सम्मान और रुतबा तुम सबको दे पाएगी।

जिस को तरसती रही वह सारी जिंदगी।

एक कोशिश करके देखो तो।

तुम्हारी जिंदगी संवर जाएगी।।

मैं सभी को कहती हूं।

बेटी और बहू में फर्क ना करना।

बहू में ही अपनी बेटी को तलाशने की कोशिश करना।।

वह भी तुमसे बहुत जल्दी ही घुल मिल जाएगी।

तुम्हारी तो दोस्तों तकदीर ही बदल जाएगी।। तुम्हारा जीवन ही नहीं सब का जीवन खिल जाएगा।

दिल से सारा गुबार मिट जाएगा।।

वह भी तुम्हें प्यार से नवाजेगी।  

तुम्हारी भी एक दिन किस्मत संवर जाएगी ं।।

कृषक कविता

त्याग तपस्या और श्रम की साक्षात मूर्ति है किसान।

नगरवासियों  के अन्न्दाता सृष्टि पालक हैं किसान।।

धूप गर्मी सर्दी वर्षा सब सहन करता  रहता।

भगवान विष्णु के समान जग का पालन करता रहता।

घास फूस की झोंपड़ीयों में रह कर दिन रात कोल्हू के बैल की तरह पिस्ता रहता हर दम  किसान।

सेवा और परिश्रम की जीती जागती मिसाल है इसकी पहचाना।।

स्वयं को मिट्टी में मिला कर फसल उगाता रहता।

फसलों को नष्ट होता देख देख कर खून के घूंट  पी कर भी  चुप्पी साधे रहता।

मन ही मन भाग्य का लेखा समझ कर मौन रहता ।

अपनें लहू की बूंदों को अन्न के दानों में बदल कर दिखलाता रहता।

सूर्योदय से पहृले उठता,शोचालय से निवृत हो जाता।

नहा धो कर अपनें बैलों को ले कर खेत की ओर अरुणोदय से पहले ही निकल जाता।।

किसान तो हैं सेवा और परिश्रम  का एक अनौखा वरदान।

हे प्रभु तुल्य,  इस जंहा में तेरी किमत कौन आंके ,इस बात से सब के सब है अनजान।।

हे कृषक तुझे हमारा शत शत प्रणाम।

हे धरती के बादशाह ,तुझे हमारा कोटि-कोटि सलाम।

तू तो है अपने ग्राम वासियों की एक अनौखी अमिट पहचान।।