कितनी सुन्दर कितनी न्यारी। यह मुर्गी है बहुत ही प्यारी।। इसके पंख हैं बहुत ही कोमल। हो जैसे पतों की हरी हरी कोंपल। नीतु बोली अरे बुद्धु, पंख तो हैं प्यारे। ये उड़ नहीं पातीं हैं सारे।। गीतू बोली भला ये क्यों नहीं उड़ पाती हैं ? दीवार पर या छज्जे तक ही पंहुच पाती… Continue reading बेचारी मुर्गी