बेचारी मुर्गी

कितनी सुन्दर कितनी न्यारी।
यह मुर्गी है बहुत ही प्यारी।।
इसके पंख हैं बहुत ही कोमल।
हो जैसे पतों की हरी हरी कोंपल।
नीतु बोली अरे बुद्धु, पंख तो हैं प्यारे।
ये उड़ नहीं पातीं हैं सारे।।
गीतू बोली भला ये क्यों नहीं उड़ पाती हैं ?
दीवार पर या छज्जे तक ही पंहुच पाती है।
नीतु बोली रजनी निशा तुम भी आओ।
मुझसे से शायद तुम कुछ सीख पाओ।
छोटे छोटे पंखों के कारण ये दूर तक न उड पाती हैं।
पंख फड़फड़ा कर नीचे कूदी लगाती हैं।
कमजोर मांस पेशियों के कारण ये न उड़ पाती हैं।
इसी लिए ज्यादा देर तक हवा में न रह पाती हैं।
पहले पहल मानव घर पर ही मुर्गियां पालना बेहतर था समझता।
उनको खिला पिला कर बाहर उड़ने का कभी मौका था न दे पाता ।।
उसे चार दिवारी में कैद करके अपना काम निकलवाता।
उस बेजुबान मुर्गी को मुक्त गगन में उड़ने का अवसर न मिल पाया।
छोटे छोटे पंखों के कारण उड़ान भरनें का प्रयास सफल नहीं हो पाया।।

घर में खा खा कर वजन बढनें के कारण मुर्गी नहीं उड पाई।
बेचारी चार दिवारी में कैद हो कर बहुत ही पछताई।

बतख और पेंग्विन भी इनके हैं भाई बहन।
छोटे पंखों के कारण इनकी उड़ान को भी लग गया है ग्रहण।।

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