मजदूर

हाय रे मजदूर! तेरी यह कैसी कहानी ।
मुंह से मूक, आंखों से झर झर बहता पानी।।
भाग्य भी कैसे-कैसे खेल खिलाए।
विधि के विधान को कौन मिटा पाए।।
घर से दूर गली, मोहल्ले सड़कों और हर जगह काम करने को आतुर हो जाता।
हाय ये मजदूर!तेरी यह कैसी कहानी।
तेरी यह व्यथा किसी ने न जानी।।
भाग्य भी कैसे कैसे खेल खिलाए।
तेरी यह दुर्दशा कोई भी न समझ पाए।

अपने परिवार पोषण हेतु हर काम करके दिखलाता ।।
तपती दुपहरी में बच्चों और पत्नी को संग लिए चल पड़ा मारा मारा ।
काम ढूंढने के खातिर गर्दिश का हाय ! वह बेचारा।।
फटी पुरानी गठरी में सूखी रोटी नमक मिर्ची संग चल रहा धुन मग्न।
फटे हाल मैले कुचैले कपड़ों में चल रहा चिंता मग्न ।
जी तोड़ मेहनत करने वाला।
जीवन में कभी नहीं थकने वाला।
हाय ये मजदूर !तेरी यह कैसी कहानी।
मूंह से मूक आंखों से बहता पानी।
विधाता भी कैसा रंग दिखाए।
अजब अजब तमाशा रचा कर दिखलाए।
हाय ये मजदूर! तेरी व्यथा को कोई न समझ पाए।
विधाता के लेख को कोई न मिटा पाए।
हाय रे मजदूर! तेरी यह कहानी
तेरी यह व्यथा किसी ने न जानी।

शोषण का शिकार होकर भी मानवता की सच्ची मिसाल बनकर दिखलाता ।।
दुषित वातावरण में हर काम करनें को तत्पर हो जाता।
पुरुषार्थ है तेरा गहना।
सब कुछ तुझे सहते रहना।
अपने पथ पर डटे रहे कर,जरा भी विचलित नहीं होता।
हर सुख-दुख में तन मन धन और लग्न से काम करता रहता ।।
कभी ना रुक कर, आंधी वर्षा तुफानों में भी हौसलें से काम करता जाता।
स्वार्थ रहित होकर पूंजीपतियों की मार का शिकार हो जाता।
कम वेतन में भी चेहरे से खुशी है झलकाता ।
श्रम की जीती जागती मिसाल बनकर है दिखलाता।
मेहनत के बल पर जग को प्रगति के शिखर पर है पहुंचाता।
बुलन्द हौंसले से आगे बढ़ता है जाता।
दूषित वातावरण में भी काम करता जाता है।।
हाय रे मजदूर। तेरी यह कहानी।
तेरी व्यथा किसी नें न जानी।

पेट भर खाना भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाता।
झूगी झोंपड़ी में रह कर ठन्ड में सिकुड़ सिकुड़ कर सारी रात बिताता।।

Leave a Reply

Your email address will not be published.