नारी

मातृ शक्ति का रूप हूं ।
घर की लक्ष्मी का स्वरूप हूं ।।
अपने परिवार की खुशियों का ताज हूं।
घर के आंगन की लाज हूं ।।
बच्चों के लाड़ प्यार स्नेह और दुलार का जीता जागता स्मारक हूं ।
उनके अपनत्व के स्पर्श की एक इबारत हूं।।

घर में और कार्यालय में दोनों जगह है स्वरूप मेरा।
घर में बेटी पत्नी और बहू का दर्जा है मेरा।।
कार्यालय में दिल लगाकर काम करती हूं।
छोटे बड़े सभी को साथ ले कर चलती हूं।।
घर में अपने परिवार की खुशियों का ध्यान रखती हूं।
अपने बुजुर्गों के संस्कारों का हमेशा सम्मान करती हूं।।।

कदम से कदम मिलाकर अपनें परिवार के साथ चलती हूं।
मैं हर काम सूझ बूझ कर करती हूं।।
मातृ स्वरुप की निधी हूं। सभ्य संस्कारों में पली बढ़ी हूं।
विधाता के द्वारा रची हुई सर्वोत्तम कृति हूं ।।

किसी की बेटी,बहन,बहू और पत्नी हूं मैं।
विपरीत परिस्थितियों में सभी का हौंसला बढ़ाती हूं मैं।।

भीड़ में इक अलग पहचान है मेरी।
सपनों को हकीकत में बदलना है छवि मेरी।।
बच्चों संग अपना समय बिताती हूं।
बच्चों संग बच्चा बन कर खुब धमाल मचाती हूं।।
कुछ न कुछ डायरी में लिखना है आदत मेरी।
अच्छे कथन को दिल में उतार कर , उस पर विचार करना है फितरत मेरी।।

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