अनपढ़ बहू

रुपेश कारगिल की वादियों में एक सिपाही के रूप रूप में तैनात था वह अब की बार छुट्टियों में अपनी बहन के पास गांव आया हुआ था गांव में आ कर उसे अपने बचपन के दिन यादें ताजा हो गई। वह हर साल अपनी बहन के पास कुछ दिन के लिए उसके पास आ जाता था। अभी तक उसकी शादी नहीं हुई थी। एक दिन उसने गांव में एक लड़की देखी।वह लड़की उसकी बहन के पडोस की थी। वह लड़की इतनी सुंदर थी कि उसको देखकर उसने अपनी बहन को कहा कि तुम इस लड़की से ही मेरी शादी की बात चलाना क्योंकि इस लड़की से सुंदर मुझे कोई नजर नहीं आती। आज उसकी बहन ने उसका रिश्ता उसी लड़की से करवाने के लिए उसने अपने भाई को अपने गांव बुलाया था। वह अपनी बहन के घर पहुंचकर अपनी बहन को बोला कि इस लड़की के मां-बाप से तुमने मेरी शादी की बात की। उसकी बहन बोली हां मैंने इसके घरवालों से तुम्हारी शादी की बात चलाई है। यह लड़की हमारी जात की नहीं है। वह बोला मुझे जात वात से कुछ नहीं लेना। उसकी बहन बोली उसके पिता के पास देने के लिए इतना दहेज भी नहीं है। वह अपनी बहन को बोला बहना मुझे दहेज व्हेज से कुछ नहीं लेना देना। क्योंकि यह मुझे इतनी पसंद आई है कि वह चाहे किसी भी जाति की हो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

उसकी बहन बोली मेरे भाई उस लड़की के पांच भाई बहन हैं। वह एक गरीब परिवार से संबंध रखती है। एक महत्वपूर्ण बात तो मैं बताना ही भूल गई यह लड़की अनपढ़ है। इसके माता-पिता ने इसे स्कूल में नहीं भेजा यह लड़की इतनी सुंदर है कि कोई भी लड़का इसकी सुंदरता पर मोहित हो जाए। वह अपनी बहन से बोला मेरी बहन मुझे तो सुंदर बीवी ही पसंद है। अपने दोस्तों के साथ इसे कैसे मिलवाना है इसे सारे कायदे कानून मैं इसे सिखा दूंगा। मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता इसके बावजूद भी मैं इससे शादी करने के लिए तैयार हूं। अपने भाई की बात सुनकर उसकी बहन हैरान रह गई। वह सोचने लगी कि मेरा भाई कितना दिलेर है।

उसने रुचि के माता-पिता को बुलाया। उन्होंने इतना अच्छा लड़का देखकर कहा हमें भला शादी से क्यों इंकार होने लगा। हमें रिश्ता मंजूर है। एक शर्त पर हमें यह रिश्ता मंजूर है। हमारे पास अपनी लड़की को देने के लिए दहेज नहीं है। उसने उनके मम्मी पापा को कहा कि कल शादी के लिए अच्छा मुहूर्त है। आप हम दोनों की कल ही शादी करवा दो। अभी मुझे भी छुट्टी है। परंतु ना जाने मुझे कब युद्ध क्षेत्र से बुलावा आ जाए। इसलिए मैं चाहता हूं कि अपनी शादी के पश्चात अपने बूढ़े मां-बाप की इच्छा को अवश्य ही पूरी कर दूं। लड़की वाले मान गए।

उन्होंने दूसरे ही दिन रुपेश और उनकी शादी कर दी। उसनें अपनी बहन को गले लगाया और कहा अगले साल मैं फिर आपके पास आऊंगा। यह कहकर उसने अपनी बहन से विदा मांगी।

शादी करके अपने घर वापस आ गया था उसकी पसंद को देखकर लोग उसे कहते वाह क्या सुंदर परी जैसी दुल्हन लाए हो। रुपेश अपने मन में कहीं ना कहीं सोच रहा था कि पहले उसे समाज में उठने बैठने के तरीके सिखा देता हूं। मैं अपने दोस्तों के साथ उसे यूं नहीं मिलवा सकता हूं। क्योंकि गांव के रहन-सहन और शहर के तौर-तरीकों मे दिन का अंतर है। रूचि को अपने साथ क्लब होटलों में ले जाने लगा। वह उसके परिवार में पूरी तरह से घुल मिल गई। लेकिन पढ़ाई के नाम पर बिल्कुल शून्य थी। उसने एक कक्षा तक भी पढ़ाई नहीं की थी। उसे देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि वह पढ़ी-लिखी नहीं है। जब भी वह अपने घर छुट्टी पर आता तो उसे लेकर अपने दोस्तों से मिलवाता। उसके मां-बाप ने उसे एक दिन जरूर कहा था कि बेटा बहू देखने में तो सुंदर है परंतु है तो हमारी तरह अनपढ़। क्योंकि अब तो घर में तीन-तीन अनपढ़ इकट्ठे हो गए हैं। अपने बच्चों को भी यह पढ़ा नहीं सकेगी और तुम तो युद्ध क्षेत्र में रहते हो। जब तुमने शादी कर ही ली है तो अब हम क्या कह सकते हैं।
रुपेश को युद्ध क्षेत्र से बुलावा आ चुका था उसे दूसरे दिन ही रणभूमि में जाना था। उसने अपनी पत्नी से विदा ली। उसकी पत्नी ने तो रोते हुए अपने पति को विदा किया वह बोला अरे पगली अपने पति को हंसते हुए विदा करते हैं। क्योंकि मातृभूमि की रक्षा करने का अवसर तो किसी-किसी भाग्यवान को ही मिलता है। तुम्हें तो अपने पति पर गर्व करना चाहिए। उसने अपने पति के माथे पर तिलक किया और वह उसे जाते हुए उसे बाहर तक छोड़ने आई थी।
रुपेश को गए हुए काफी दिन हो चुके थे। एक दिन उसके घर पर तार आई। डाकिया तार देकर गया। जब उसने तार शब्द सुना तो वह जोर जोर से रोने लगी और रो-रोकर उसने अपने सास-ससुर को कहा कि शहर से तार आई है। वह फूट फूट कर रोने लगी उसको रोता देखकर उसके ससुर भी रोने लगे। उसने अपने देवर को बुलाया उसके देवर को पता चल चुका था कि शहर से तार आई है। जब उसने अपनी भाभी को रोते देखा बोला भाभी मैं बाजार जा कर सामान लेकर आता हूं। क्योंकि शहर से फोन आ चुका था की गाड़ी ग्यारह बजे के करीब घर पहुंचेगी। उसको रोता देखकर आसपास की औरतें भी इकट्ठा होकर जोर जोर से रोने लगी। उन सभी को मालूम नहीं था कि तार खुशी के अवसर भी भेजी जाती है। उन्हे तो ये ही मालूम था कि तार तो मरने पर ही भेजी जाती है। फोन पर भी आवाज साफ नही सुनाई दे रही थी। उसका देवर जाकर कफन ले आया था। उसके मां-बाप ने सब लोगों को इकट्ठा कर लिया था। चारों ओर चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रहीं थी। रुचि नें सफेद साड़ी पहन ली थी। उसने फोन पर सुना था कि गाडी ग्यारह बजे घर पहुंच जाएगी। ं

उसके घर में लोगों को इतनी ज्यादा भीड़ थी कि उसके घर में बैठने के लिए जगह भी नहीं बची थी। चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा था रुपेश के दोस्त सब उसे आखरी सलाम देने के लिए बाजे-गाजे से विदा करने वाले थे। ग्यारह बजे के करीब एक पुलिस की जीप उनके घर के पास खड़ी थी। उसमें से रुपेश नीचे उतरा। उसने हैट पहन रखा था। उसने जैसे ही घर में सन्नाटा देखा और वहां से रोने चिल्लाने की आवाज सुनी तो उसके कानों में सींटींयां बजने लगी। वह सोचने लगा कि कहीं मेरी पत्नी को तो कहीं कुछ तो नहीं हो गया। मेरी बूढ़ी मां या पिता को तो कुछ तो नही हो गया जो लोग जोर जोर से रो रहें हैं।
उसके दिमाग में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे वह दौड़ा दौड़ा अंदर गया और अपनी मां के पैर छूकर बोला मां प्रणाम। उसकी मां अपने बेटे को देखकर चौकी और उसे देखकर खुश हुई। वह बोली हे भगवान क्या अनर्थ कर डाला। बहू ने हमें क्या खबर दी। रुपेश बोला कि मैंने अपने आने की खबर आपको तार के माध्यम से दी थी। वह बोला और फोन पर यह भी कहा था कि ग्यारह बजे तक हम आ जाएंगे। रुपेश की बूढ़ी मां अपनी बहू के पास आकर बोली अरे तुमने यह क्या अनर्थ कर डाला। मेरा बेटा तो जिंदा है। वह बोली कि आज सुबह ही डाकिया तार दे कर गया था। मुझे क्या पता था कि तार में अच्छी खबर भी होती है। मुझे तो पता था कि तार में बुरी खबर ही होती है। यह बातें मैंने मोहल्ले में अपनी सहेलियों को बताई जिस जिस ने सुना वह भी यहां आए बिना ना रह सका। रुपेश को कहीं ना कहीं अपनी गलती का एहसास हुआ कि मैंने अपने लिए सुंदर बहू का चुनाव तो कर लिया मगर उसे तौर-तरीके सिखाने के बजाए उसे शिक्षा दिलवा दी होती तो आज उसकी जग हंसाई नहीं होती। वह सारी जनता को संबोधित करते हुए बोला मैं आज आपको एक सच्चाई से अवगत कराना चाहता हूं। मैंने अपनी पसंद की लड़की से शादी की इसकी सुंदरता पर मोहित हो गया। और मैंने सोचा कि वह भी मुझे मेरे तौर-तरीके सीख कर मुझे खुश कर देगी। उसने अपनी तरफ से तो बहुत कोशिश की और सफल भी हो ग्ई पर कहीं ना कहीं मैं यह भूल गया कि सब तौर तरीकों से भी सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य की शिक्षा। इन्सान अगर पढ़ा लिखा होगा तो वह दुनिया के किसी भी क्षेत्र में चले जाए वह कभी निराश नहीं होगा। बिना शिक्षा के उसका जीवन अधूरा है। इसलिए शिक्षा चाहे वह नौजवान हो या बड़ा हर एक व्यक्ति को शिक्षा अवश्य प्राप्त करनी चाहिए। इस बात के लिए मैं रुचि को दोषी नहीं ठहरा सकता क्योंकि मैंने उसे कभी शिक्षा प्राप्त करने के लिए जोर नहीं लगाया।

आज सबके सामने मैं यह प्रण लेता हूं कि अपनी पत्नी को शिक्षा दिलवाने के लिए मुझे जो कुछ भी करना पड़ेगा मैं पीछे नहीं हटूंगा। उसने रुचि का हाथ पकड़ते हुए अपने दोस्तों से मिलवाया और कहा कि मेरी पत्नी बिल्कुल अनपढ़ है। इसके पिता ने उसे कभी स्कूल नहीं भेजा परंतु आज से मैं इसे पढ़ लिखकर इतना काबिल बनाऊंगा। मैं चाहे जीवित रहूं या नहीं वह अपने बच्चों को तो अच्छी शिक्षा दिलवा सकती है। उसने प्रौढ़ शिक्षा केंद्र जाकर अपनी पत्नी की पढ़ाई के लिए एक खत लिखा। उसकी पत्नी ने प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में जाना स्वीकार कर लिया था। वह वहां पर जाकर काफी कुछ पढ़ना लिखना सीख गई थी। जब वह अपने मायके आई तो अपनी मां को भी उसने कुछ कुछ पढ़ना लिखना सिखा दिया था। यह कहानी उस समय की है जब तार के माध्यम से ही संदेश भेजे जाते थे।

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