बहुत समय पहले की बात है किसी गांव में एक ब्राहमण और उसकी पत्नी रहते थे। उनके एक बेटा था चंदू। उसके पिता पेशे से अध्यापक थे। वह अपने बेटे को अच्छे संस्कार देना चाहते थे। उसे अच्छा इंसान बनाना चाहते थे। उनका अपना एक छोटा सा मकान था जिसमें वह अपनी पत्नी निर्मला के रहा करते थे।। वह अपनी पत्नी से कहते थे कि इस बच्चे को जिस काम को करने का मन करे उस काम को उसे अवश्य करने देना चाहिए। हमें बच्चे को ज्यादा रोकटोक नहीं करनी चाहिए। उसके कामों में दखल नहीं देना चाहिए। इस समय बच्चे की ऐसी अवस्था है उसे अनुभव ज्ञान का होना बहुत ही जरूरी है। इसलिए उसे तुम्हें पहले से ही संस्कारी बनाना होगा। हमारे पास अपने बेटे को देने के लिए चाहे सभी सुविधाएं है मेरा जो कुछ है वह मेरे बेटे का ही होगा लेकिन जीवन में आगे बढ़ने के लिए उसे हर विषय का व्यवहारिक ज्ञान अवश्य होना चाहिए। सारे दिन किताबें लेकर बैठ जाओ। यह जरूरी नहीं है। उसको पहले तुम्हें सभी कार्य करवाने होंगे नहीं तो आगे चलकर वह कुछ काम नहीं कर पाएगा।
हमें अपने बच्चे को सब काम सिखाने हैं
लेकिन प्यार प्यार से। आनंद ने अपने बेटे चंदू को बुलाया कहा बेटा जरा इधर तो आना आज तुम्हें मेरे साथ बाबडी पर चलना होगा।। मैं हर रोज बावड़ी से पानी भर कर लाता हूं। मन मारते हुए निर्मला ने अपने बेटे को बावड़ी पर पानी भरने भेज दिया। अपने पिता के साथ वह भी छोटी सी बाल्टी पानी भरकर लाता था। उसके पिता ने कहा बेटा तुझे घर में बैठे-बैठे आलस भी आ जाता होगा। हाथ पर हाथ धरकर बैठने से तो अच्छा होता है कि कुछ काम ही कर लिया जाए। तुम्हारी कसरत भी हो जाएगी और शरीर में चुस्ती फुर्ती भी आ जाएगी।।
अपने पिता के साथ खेतों पर जाता। उसके पिता ने उसे सारे काम करने सिखा दिए थे। वह केवल 10 वर्ष का ही हुआ था उसकी मां अपने बेटे को इस प्रकार काम करता देख कर अपने पति पर उलझ जाया करती थी। तुम इस नन्ही सी जान से क्या-क्या करवाओगे। वह बोला मैं उसे फौलादी और ताकतवर बनाना चाहता हूं और उसे पढ़ लिख कर एक अच्छा इंसान बनाना चाहता हूं। इस प्रकार दिन सुख पूर्वक बीत रहे थे।
एक दिन चंदू के पिता की दिल की बीमारी से मृत्यु हो गई। सारे का सारा का कार्यभार चंदू की मां पर आ गया। चंदू की मां ने अपनी आंखों के आंसुओं को पी लिया। अपने बेटे के सामने वह कभी नहीं रोती थी। छोटा सा चन्दू अनाथ हो गया था। उसके पिता का साया अब उस पर नहीं रहा था। वह अपनी मां की छत्रछाया में पल रहा था। उसकी मां ने अपनी बेटे को अच्छा औफिसर बनाने की ठान ली थी। उसने सोचा चाहे कुछ भी हो मैं अपने बेटे को पढाऊंगी और औफिसर बनाऊंगी। उसने धीरे धीरे कपड़े सिलाई करना शुरू कर दिया। सिले कपड़े अपने बेटे के पास लोगों के घर भेज देती थी। दुकान वालों के और गांव और मोहल्ले वालों के कपड़े सिल कर वह अपना जीवन निर्वाह किया करती थी। उस से जो रुपये मिलते थे उससे वह अपना निर्वाह करती थी। उसने अपने बेटे को अच्छे संस्कार दिए। उसका बेटा 12वीं कक्षा में आ चुका था। वह वकालत की पढ़ाई करना चाहता था। उसकी मां के पास ज्यादा रुपए नहीं थे।
एक दिन की बात है कि उसकी मां ने अपने बेटे को कहा जाओ बेटा तुम इन कपड़ों को इस पते पर देकर आ जाना और यह जूराबों के जोड़े मैंने अपने हाथों से बनाए हैं। यह घर घर जाकर बेच देना। चंदू को उसके पिता ने हर प्रकार की शिक्षा दी थी। हमें कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए। पहल हमें छोटे-छोटे काम से ही शुरुआत करनी चाहिए। धीरे-धीरे अपनें मेहनत के बल पर इन्सान मेहनत की बुलंदियों तक पहुंच जाता है। किसी भी काम को करने के लिए मन में आत्मविश्वास होना चाहिए। इन्सान अगर यही सोचता रहे कि छोटी नौकरी नहीं करनी, मेरे विषय में लोग क्या कहेंगे? बेटा जब तक हम किसी छोटे से कार्य को करने में घबराएगे तो बड़ा कार्य कैसे कर पाएंगे? अपनें मन में हीन भावना नहीं आने देनी चाहिए।
वह सब अपने मन में सोच रहा था। आज उसे अपने पिता की याद आ रही थी आज जब उसकी मां ने उसे जुराबें पकड़ाई तब उसके मन में प्रश्न उठा क्या मुझे यह जुराबें बेचनी चाहिए। मुझे लोग क्या कहेंगे? एक शिक्षक का बेटा होकर मोजे बेचने चला है। आज मेरे पिता नहीं रहे मुझे आगे पढ़ाई भी करनी है। जब मेरी मां को बुनाई करके बुरा नहीं लगा तो मुझे भी क्यों बुरा लगेगा? मैं तो बस अपना काम करूंगा। मेरे बारे में लोग जो मर्जी समझे। मुझे अपने पिता के दिए संस्कारों को नहीं भूलना है।
चंदू ने अपनी मां से कहा मां लाओ मैं कॉलेज जाते वक्त यह मोजे भी बेच दूंगा और सिलाई कि वे कपडे भी दुकान में दे आऊंगा।
वह रोज अपने दोस्त बन्टू का इंतजार किया करता था। कॉलिज में उसका एक ही दोस्त था बन्टू। उसके माता पिता दूसरे शहर में रहते थे।वह अपने दादी दादा के साथ गांव में रहता था। वहीं पर रह कर पढाई किया करता था। उसके माता पिता नें उसे भी शहर पढ़ने के लिए बुला लिया था। कॉलिज की पढाई के लिए वह शहर चला गया था। चन्दू को अपनें दोस्त के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। एक साल से उसे अपना दोस्त नहीं मिला था।
वह अपने दोस्त को बहुत ही प्यार करता था लेकिन कभी भी उसने अपने दोस्त के माता-पिता को नहीं देखा था। वह भी अपने माता-पिता के साथ रहने चला गया था।
चंदू जैसे ही कॉलेज गया उसने मुश्किल से ही दो कालांश ही लगाए थे तो उसे अपने मां की याद आई। रास्ते में एक परिचित मिल गए उनके स्कूटर पर न जानें कितने किलोमीटर दूर आ गया। स्कूटर-से उतर कर वह पैदल ही चलनें लगा। मगर सुबह से शाम तक किसी भी लोगों ने उसकी जूराबें नहीं ली। गर्मियों के दिन थे।उसे भूख भी बड़े जोरों की लग रही थी। उसकी मां ने डिब्बे में खाना पैक किया था। वह जल्दी जल्दी के चक्कर में खाना घर में ही भूल गया था। उसे भूख के मारे चक्कर भी आने लगे थे। अचानक उसे एक बंगला दिखाई दिया। वह वहां पर जाकर उसने घर का दरवाजा खटखटाया। एक औरत आई और बोली कि क्या चाहिए? चन्दू बोला अमा मुझे बहुत प्यास लगी है। बंगला देख कर वह अंदर चला गया था। उसके माथे पर पसीने की बूंदें झलक रही थी। वह बोली ठहरो बेटा। वह जब पानी लेकर आई चक्कर खा कर नीचे गिरनें ही लग गया था तभी उसने अपने हाथों से सहारा देखकर उसे ऊपर उठा लिया। बोली बेटा इतनी तेज धूप में बाहर नहीं निकलना चाहिए। इतने प्यार से बोलते देख कर उसकी आंखों से आंसू बहनें लगे। इससे पहले कि वह कुछ कहता जल्दी से रसोई घर से खाना ले कर आ गई वह बोली तुम्हे भूख के मारे चक्कर आ गया था। चन्दू बोला अमा रहने दो। वह बोली अमा भी कहते हो और खाना भी नहीं खाते हो। अगर तुम्हारी मां कहती तो क्या तुम खाना नहीं खाते। । चन्दू बोला अमा धन्यवाद। जब कॉलिज के लिए निकला था तो अपना लॉन्च बाक्स घर पर ही भूल गया। जूराबों को बेचने के चक्कर में भूल ही गया। वह बोली बेटा कैसे मोजे बेचने चले हो जरा दिखाओ तो। उस नें तीन जोड़ी मोजे खरीद लिए। वह रुपये पा कर बहुत ही खुश हुआ। वह बोली मेरा भी तुम्हारे जैसा बेटा है। पहले वह गांव में अपनी दादी के पास रहता था। वह अब मेरे साथ रहता है। अभी कॉलेज गया है। आता ही होगा। चंदू ने अमा को धन्यवाद दिया और जल्द ही वहां से घर वापस आ गया।
मां को कहा मैंने आपकी सारी की सारी जूराबें बेच दी है। इस बात को काफी साल गुजर गए। चंदू वकील के पद पर तैनात हो गया था। बन्टू की मां बहुत ही नेक दिल वाली महिला थी। उसके पिता का शहर में काफी अच्छा व्यापार था। उस दुःख था तो अपने बेटे का। उसका बेटा अपनें माता पिता को फूटी आंख नहीं सुहाता था। धीरे धीरे उसे नशे की आदत लग गई थी। नशे की इस आदत से उस के माता पिता बहुत ही दुःखी हुए। उसनें उन की रातों की नीदें भी हराम कर दी थी। सारा का सारा रुपया भी गंवा दिया। उसके पिता को व्यापार में भी घाटा हुआ। वह इस सदमें को सहन नहीं कर पाए। वह चम्पा और अपने बेटे को छोड़कर इस दुनिया से चले गए। बन्टू ने अपनी मनपसंद लड़की से शादी कर ली। और जो कुछ था बेच कर विदेश में सैटल हो गया। वह अपनी मां को कभी भी अपने साथ लेकर नहीं गया। चम्पा हर वक्त अपने बेटे के लिए तड़पती थी। उसके पास रहने के लिए बंगला था। वही केवल उसका था। बंगला भी कुछ शरारती तत्वों ने आशा से छीनने की कोशिश की।
एक दिन बंगले के कागजों को चुरानें में सफल हो गए। चम्पा को वहीं धक्का मार कर चंपत हो गए। चम्पा बेचारी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटती रही। अपनी मां की मदद के लिए उसका बेटा भी आगे नहीं आया। बिल्कुल अकेली हो कर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी।
एक दिन वह इसी प्रकार काम की तलाश में चल रही थी कि अचानक एक नव युवक की गाड़ी से टकरा गई।वह नवयुवक उसे अपने घर ले आया। उसके माथे से लहू की धारा बहने लगी। चन्दु ने तुरंत उसे अस्पताल पहुंचाया। और उसे अपने घर ले जा आया। उसे जब होश आया तो वह बोली तुमने मुझे क्यों बचाया? चंदू ने अमा को पहचान लिया था। वह तो वही औरत थी जिसने कभी उसको खाना खिलाया था औरप उससे मोजे भी खरीदे थे। आईशा उस बच्चे को पहचान नहीं पाई थी। वह बोली अमा आपका घर कहां है?
वह बोली बेटा बहुत लंबी कहानी है। मैं अपने पति के साथ शहर में रहा करती थी। हमारा बहुत बड़ा बंगला था। गाड़ी थी। सब कुछ था। हालात ऐसे बने कि मुझ से मेरा सब कुछ छीन लिया गया। मेरे पास कुछ नहीं रहा। बेटा नशे की आदत में बिगड़ गया। उसने नशा करके घर को कंगाल बना दिया। अपने बेटे के नशे की आदत से तो पहले ही मेरे पति परेशान थे और उस पर व्यापार घाटा। यह दोनों बातें वह सहन न कर सके और वह भी सदा सदा के लिए मेरा साथ छोड़कर चले गए। बेटा भी विदेशी लड़की से शादी करके वह वहीं पर रहने लग गया। मैं बिल्कुल अकेली रह गई। कुछ लोगों ने मेरा बंगला हथियाने की कोशिश की। उन्होंने नकली दस्तावेज बनाकर बंगला अपने नाम करवा लिया। उन्होंने समझा होगा कि इस बुढ़िया का तो अब इस दुनिया में कोई नहीं है। यह कहां कोर्ट के चक्कर लगाएगी। बेटे ने भी कभी यहां आने की जरूरत नहीं समझी। उसे तो विदेश ही रास आ गया। बेटा मैं तो काम की तलाश में निकली थी तुम्हारी गाड़ी से टकरा गई। तुमने मुझे बचाया तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। तुम अपने घर पर मुझे काम पर रख लो मैं तुम्हारे घर पर बर्तन झाड़ू पोछा सब कुछ कर दिया करूंगी। मैं फिर किसी अच्छे से वकील को देखकर अपने घर को छुड़वाने की कोशिश करुंगी। बेटा भगवान तुम्हारा भला करे। इतना तो करोगे न।चन्दु बोला हमारे घर पर ही रहो। आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं। आप तो मेरी मां के समान हो। आप का बंगला मैं आपको वापस दिलवाऊंगा। वह बोली बेटा तुम कहां से छुड़वाओगे। वकील की फीस मैं कहां से इक्ट्ठा कर पाऊंगी। चंदू बोला मां आपको जानकर ये खुशी होगी कि मैं एक अच्छा वकील बन गया हूं। आपको याद है जब मैं एक बार तपती दुपहरी में घर घर जुराबें बेचने आया था तो आपने मुझे गिरने से ही नहीं बचाया था बल्कि आपने मुझे भोजन भी खिलाया था और मुझसे जुराबें भी खरीदी थी। मानवता के नाते मैं भी आपको आपका घर वापस दिला कर रहूंगा। चम्पा की आंखों में आंसू छलकने लगे। बोली बेटा तुम्हारा उपकार में कभी नहीं भूलूंगी। चंदू बोला अगर उस दिन मैं गिर कर मर जाता तो मैं वकील कहां से बनता। मैं तो अपना फर्ज पूरा करके ही रहूंगा।
चम्पा बोली मेरा बेटा विदेश में रहता है। वह कभी घर आने की जरूरत नहीं करता। मैं क्या करूं? तुम अगर उसका पता लगा दो तो तुम्हारा बहुत ही भला होगा। चंदू बोला आंटी आपके बेटे का क्या नाम है? वह बोली मेरे बेटे का नाम बन्टू है। प्यार से हम उसे बंटी बुलाते थे। ऐसे-पहले वह भी गांव में ही पढता था परंतु जब उसके पापा को व्यापार के सिलसिले में शहर आ कर बस गए थे तो वह भी हमारे साथ ही रहने लग गया था। जब उसकी मां ने सब कुछ बताया तो वह खुश होकर बोला बन्टू तो मेरा दोस्त था। अमा आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। मैं आपके बेटे को ढूंढ कर सही सलामत घर लाऊंगा। आप का बेटा नशे की गिरफ्त में कैसे पड़ गया। चम्पा बोली उसकी कम्पनी सही नहीं थी। उसके दोस्तों नें उसे नशा करना सिखा दिया। चन्दू बोला आप चिन्ता मत करो मैं आप के बेटे को विदेश से सही सलामत वापिस ले कर आऊंगा। बन्टू की मां उसकी बातें सुनकर बहुत ही खुश हो गई।
चन्दू जब अपने दोस्त को लेने विदेश पहुंचा तो अपने दोस्त को बहुत ही निर्बल अवस्था में देखकर दुःखी हुआ। विदेश पहुंच कर अपने दोस्त से मिला। बन्टू बोला तुम यहां कैसे? मैं तुम्हें लेने आया हूं। मुझे तुम्हारी मां नें भेजा है। वह हमेंशा तुम्हे याद किया करती है। तुम कैसे बेटे हो। तुम तो ऐसे नहीं थे। बन्टू बोला मैंनें नशे में अपना सब कुछ गंवा दिया। मैंने तो अपनें माता पिता का सारा का सारा रुपया नशे में लुटा दिया। अपनी पत्नी के गहने तक बेच दिए।मेरी पत्नी नें मुझे बहुत समझाया अगर तुम नशा करोगे तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगी। उसके इतना कहने से भी मेरे मन में भी नशा छोड़नें का ख्याल नहीं आया। जब मेरे मां बाप ने मुझे इतना समझाया था कि नशा मत करो। लेकिन मैंने उनकी भी बात नहीं मानी। मैं उन्हें अपना शत्रु समझता रहा।
एक दिन जब मैंने अपने बेटे को चोरी छुपे नशा करते देखा और पर्स से चोरी करते हुए देखा तब कहीं जा कर मेरी समझ में आया। उस दिन मैंने कसम खाई कि मैं अब कभी भी नशा नहीं करूंगा। उस दिन अपनें पिता की याद आई। बहुत देर तक रोता रहा। मां के पास भी किस मुंह से जाता। मां को और दुःखी नहीं करना चाहता था। मेरे पिता भी मेरी याद में तड़प तड़प कर मर गए।
एक दिन जब मेरी पत्नी ने मुझे समझाया कि आपका बेटा भी आपकी तरह ही बनेगा उसकी बात सच होती नजर आई।
चंदू बोला मां का दिल तो बहुत ही बड़ा होता है तू चल कर देख। अपनी माता से एक बार क्षमा मांगकर तो देखो अगर तुम अपनी मां से क्षमा मांगोगे तो वह तुम्हें माफ कर देगी तुम्हें अपने लिए ना सही अपने बेटे के लिए तो तुम्हें चलना ही पड़ेगा। चंदू ने बन्टू को सारी बात बताई कि किस प्रकार तुम्हारी मां का बंगला भी कुछ लोगों ने हथिया लिया था। मैंने उस बंगले को वापस दिलाने का वादा तुम्हारी मां से किया। एक दिन तुम्हारी मां मेरी गाड़ी के नीचे आती आती बची। एक बार उन्होंनें मेरी सहायता की थी। उन्होने मेरी उस समय मदद की जब मैं बिल्कुल अकेला हो गया था।
बन्टू अपनी पत्नी और बेटे के साथ गांव पहुंचा। चंदू ने सारी बात अमा को बता दी थी कि किस प्रकार चंदू को अब अपनी गलती का एहसास हो गया है। आप उन्हें क्षमा कर दो। जब बहू और बेटे दोनों ने अपनी मां से क्षमा मांगी तो चम्पा का दिल पसीज गया। पोते को गोद में लिया और कहा मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी। जो गलती करके सुधर जाए उसे भुला नहीं कहते।तुम्हे अपनी गलती का एहसास हो गया है यही मेरे लिए बहुत है। एक बार फिर से खोई खुशियां लौट आई थी।चम्पा अपने पति की तस्वीर के पास जा कर बोली देखो आज तुम्हारा बेटा सुधर कर वापिस आ गया है आप भी उसे माफ कर देना। चन्दू नें अमा का बंगला भी उसे वापिस दिलवा दिया। सभी खुशी खुशी रहने लगे।