गुरु

स्कूल के ग्राउंड में बच्चे शोर कर रहे थे। सभी  बच्चे खेल के ग्राउंड में उपस्थित हुए थे। आज अपने नए अध्यापक के आने का  बेसब्री से इंतजार करें थे। बड़ी बड़ी मूछों वाले, चश्मे पहने हुए, लंबे,चौड़े कंधे वाले, और पाँव में स्पोर्टस शूज़ पहने  एक व्यक्ति को अचानक स्कूल के ग्राउंड की ओर आते देखा। बच्चों ने अनुमान लगा लिया कि वे ही उन के गुरु जी होगें। उन्होंने एक बच्चे को इशारे से अपने पास बुलाया। उनकी बोलचाल से रौब झलक रहा  था। वह सभी बच्चों से आते ही बोले बच्चों तुम शोर क्यों कर रहे हो? आते ही कोई अजनबी व्यक्ति उन्हें इस तरह आ कर कहे कि शोर क्यों कर रहे हो एक बच्चा आगे आकर बोला सर यहां शोर नहीं नहीं करेंगे तो क्या  कक्षा में करेंगे। यह कोई कक्षा का कमरा नहीं है। यह तो खेल का मैदान है। गुरु जी भी चुप होने वाले नहीं थे। क्या बात है? इस तरह से तुम बात क्यों कर रहे हो। घर से क्या आज खाना खा कर नहीं आये। तुम शोर करते रहो। बच्चों का काम तो होता ही है शोर करना। पहले मुझे बताओ कि स्कूल का  ऑफिस कंहा है? एक बच्चा आगे आकर बोला आप अपने आप ढूंढ लो। कहीं ना कहीं तो आप को मिल जाएगा। यह था स्कूल के बच्चों का हाल। उन्हें इस तरह से बोलते हुए एक मैडम ने देख लिया वह गुस्सा होकर उस बच्चे से बोली यह क्या माजरा है? क्या आप आने वाले हर व्यक्ति से इसी तरह पेश आते हो? बच्चा हंसते हुए भाग गया।  मैडम आए हुए गुरू जी को अंदर लेकर गई। बच्चे तो सोच रहे थे कि जो भी अध्यापक उन्हें पढ़ाने आएंगे उन्हें तो यहां से जाना ही पड़ेगा। उन्हें अपना स्थानांररण दूसरी जगह करवाना पडेगा। उन्हें पता चल गया था कि आने वाले व्यक्ति उनके गुरु जी होंगें। गणित से बच्चों को बहुत ही डर लगता था और अंग्रेजी के अध्यापक से भी।  उन्हें पता चल गया था कि वे उन्हें अंग्रेजी और गणित पढ़ाएंगे। अंग्रेजी से तो उन्हें बहुत ही डर लगता था। अंग्रेज हमारे देश से चले गए हमें यह आफत पकड़ा गए। हमारी हिंदी भाषा जैसे हम बोलते हैं वैसे ही लिखी जाती है। अंग्रेजी में तो कभी सी को क कभी और के को भी कुछ से कुछ पढ़ा जाता है। ये तो हमारे पल्ले ही नहीं पड़ती।

सभी बच्चे सोच रहे  थे कि हम उन्हें भगा कर ही छोड़ेंगे। अध्यापक प्रिंसिपल के ऑफिस में चले गए थे। उन्होंने स्कूल में जॉइन कर लिया था। बच्चे आपस में विचार-विमर्श करनें  लगे कि इन गुरुजी का तो कुछ करना ही पड़ेगा। उनका तीसरा कालांश गणित था। गुरुजी बच्चों के कमरे में आए तो सारे के सारे बच्चे बैठे रहे। तुम मेरा स्वागत क्या बैठ कर ही करोगे। कोई बात नहीं बैठे  रहो। इतना गुस्सा क्यों? क्या तुम्हें गणित पढ़ने का या इंग्लिश पढ़ने का मन नहीं है। आज तो ऐसे भी मैं तुम्हें पढ़ा नहीं रहा हूं। मैं तुमसे आज तुम्हारा परिचय जानना चाहता हूं। बच्चे आज तो खुश हो गए। सभी बच्चों नें एक दूसरे को खड़ा होनें का ईशारा किया।  बच्चे खड़े होकर बोले गुरु जी आपका हमारे स्कूल में स्वागत है। गुरु जी ने सभी बच्चों को कहा कि बैठ जाओ। आज तुम सभी अपना परिचय मुझे दो। सभी बच्चों से उनके नाम पूछ लगे। एक बच्चे को उन्होंने खड़ा कर दिया। वह खड़ा हो गया। उन्होंने उस बच्चे को पूछा बेटा तुम्हारा नाम क्या है? वह कुछ नहीं बोला। उसने अपने पैर पर हरी मिर्ची रखी। गुरु जी बोले यह क्या हरकत है? दूसरा बोला सर यह आपको अपना नाम मौन रहकर बता रहा है। गुरुजी आश्चर्य से उसकी तरफ देखकर बोले क्या नाम है? वह लड़का कुछ नहीं बोला। दूसरा लड़का खड़ा होकर बोला सर इसका नाम हरि चरण है। सभी  एबच्चे कक्षा में खिल खिलाकर हंसनें लगे तभी एक लड़की की ओर इशारा करके गुरुजी बोले बेटा तुम्हारा नाम क्या है? वह भी मुंह से कुछ नहीं बोली वह अपने हाथों को पूजा की शक्ल में घुमाने लगी। सर बोले क्या तुम भी गूंगी हो? दूसरी लड़की पास में ही बैठी थी वह उठकर बोली सर इसके कहने का तात्पर्य है आरती। इसका नाम आरती है। दूसरी लड़की से बोले तुम अपना नाम बताओ। वह धीरे-धीरे कक्षा के कमरे की ओर आई और उसने लाइट जला डाली। सारी कक्षा में बच्चे के खिल खिलाती पड़े। अध्यापक बोले शायद तुम्हारा नाम बिजली है। क्या कमाल के बच्चे हो? एक बच्चा खड़ा होकर बोला सर कमाल का नहीं मैं तो रामप्रसाद जी का बेटा हूं।  एक दूसरे लड़की को तुम्हारा क्या नाम है? उसनें ब्लैक बोर्ड पर रेखा बना डाली। गुरू जी बोले तुम नें तो अपना परिचय दे डाला। मैं भी तुम्हे अपना नाम बताता हूं। सर नें ब्लैक बोर्ड पर लिखा सन लाईट। एक बच्चा खड़ा होकर बोला मेरा नाम लाईफब्वाय है। कक्षा में सभी बच्चे खुश नजर आ रहे थे। सूरज प्रकाश जाते हुए बोले कल से कोई शरारत नहीं होगी। दूसरे दिन गुरू जी कक्षा में पहुंचे तो बच्चे बोले सर अंग्रेजी हमें समझ नहीं आती है। और ना ही गणित। अध्यापक बोले कोई भी विषय मुश्किल नहीं होता अगर तुम इसमें रुचि लेनें लग जाओगे तो यह तुम्हें आसानी से आ जाएगा। बच्चे तो पढ़ने वाले नहीं थे वे हरदम कोई न कोई शरारत किया   करते थे। एक दिन अंग्रेजी के अध्यापक उनसे बहुत ही गुस्सा हो गए। वे बोले कल मैं तुमसे प्रश्न पूछूंगा और टैस्ट भी लिया जाएगा। जब टैस्ट लिया तो वे सात बच्चे फेल थे। उन्होंने सभी बच्चों को कहा कि जो बच्चा टैस्ट की तैयारी नहीं कर हुआ उसका दाखिला नहीं भरा जाएगा। सभी बच्चे डर के बोले गुरु जी हमें 15 दिन का समय दे दीजिए। हम 15 दिन बाद याद करके आ जाएंगे। अध्यापक सोचने लगे चलो इन्हें इतना वक्त तो देना चाहिए। 15 दिन के बाद जो फेल होगा उसका दाखिला स्कूल में नहीं लिया जाएगा। अध्यापक कक्षा में आकर बैठ जाते थे। बच्चे अपने आप याद करने लग जाते थे। टैस्ट के केवल 5 दिन शेष रह गए थे। उस के पश्चात उनकी वार्षिक परीक्षा थी। उन्हें याद ही नहीं हो रहा था। जैसे  ही अध्यापक उन से प्रश्न पूछते तो वे कोई न कोई बहाना बनानें लगते। कहते की याद ही नहीं है। कुछ तो चुपके-चुपके पिछली खिड़की से कक्षा से भाग जाते। उपस्थिती लगते ही वे सातों भाग जाते। उनके अध्यापक को पता चल गया था कि यह बच्चे अपने लक्ष्य से भटक गए हैं। इन्हें अभी समझाया नहीं गया तो वे कभी जीवन में उन्नति नहीं कर सकते। वे गुरु जी की बातों को ध्यान से नहीं सुनते थे। कुछ एक थे जो पढ़ना ही नहीं चाहते थे। इसमें बच्चों का कसूर नहीं था। बच्चों के संस्कार ही ऐसे मिले थे। वह अपने मन में सोच रहे थे चाहे कुछ भी हो इन 7 बच्चों को सुधार पाया तो ठीक है वरना मेरा गुरु होने का कोई भी तात्पर्य नहीं है।

गुरु तो वह दीपक होता है जो सभी को प्रकाशित करता है। जिस प्रकार दीपक मे बाती तेल सभी साधन है जो ज्योति को जलाने के लिए चाहिए। जो शिष्य का मार्गदर्शन करें। उन्हें सच्चाई की डगर दिखा  कर उन्हें सुधारे। मैं इन को सुधार कर ही रहूंगा। टैस्ट के दो दिन रह गए थे। जैसे ही गुरुजी कक्षा में आए उन पर बच्चों ने खुजली का पाउडर फेंक दिया। वह खुजली करते हुए बाहर की ओर भागे। प्रिन्सिपल जी नें  उन्हें कक्षा से बाहर भागते देखा तो बोले क्या बात है सर? सब ठीक है? अगर आप बीमार है तो छुट्टी लेकर घर चले जाओ। प्रिंसिपल सर बोले कुछ लड़के दसवीं कक्षा में बड़े उदन्ड है। कहीं उनकी तो कोई कारस्तानी नहीं है?

गुरुजी बोले नहीं कोई ऐसी बात नहीं है। उन्हें समझ आ गया था यह सारी कारस्तानी इन्हीं बच्चों की ही है।

उन्हें  अपना समय याद आ गया  वह भी तो इसी तरह की हरकतें किया करते थे। मैंने आज प्रण ले लिया है तब तक स्कूल से वापस नहीं जाऊंगा जब तक इन बच्चों को सबक सिखा न लूं  या तो यह सुधर जाएंगे या स्कूल से निकल जाएंगे। इनको मैं भटकता हुआ नहीं देख सकता।

सूरज प्रकाश ने  चपरासी से एक गिलास पानी मंगवाया और कक्षा में  जाने लगे। बच्चों ने जब गुरू जी को कक्षा में आता देखा तो  बच्चे पढ़ाई में मस्त हो गये। कुछ बच्चे जो पढ़ना नहीं चाहते थे वे बैठकर ज़ोर से कक्षा में बातचीत कर रहे थे। उन्होंनें उन सातों बच्चों को कक्षा में खड़ा कर दिया। उन्हें कहा कि तुम सारा दिन कक्षा में खड़े रहोगे। सातों बच्चे खड़े हो गए। दूसरे दिन वे सभी भगवान से प्रार्थना करनें लगे कि हमारे  गुरू जी स्कूल में ही ना आ सके। काश ऐसा हो जाए तो मैं 10 रुपये का मन्दिर में प्रसाद चढा दूंगा। दूसरा हंसते हुए ₹10 तो बहुत कम है हम 50 50 रुपये का प्रसाद चढाएंगें। दूसरे दिन वह बात सचमुच साबित हुई।। मास्टर जी अपनी मोटरसाइकिल से गिर पड़े। उनके पैर में गम्भीर चोट आई थी। बच्चे स्कूल पहुंच कर अपनें दोस्तों से बोले आज गुरु जी स्कूल नहीं आने चाहिए। एक बच्चा दौड़ कर आ कर बोला तुम्हारी पुकार ईश्वर नें सुन ली। गुरु जी आज नहीं आ सके। तुम्हारी दुआ काम कर गई। गुरुजी मोटर साइकिल से गिर पड़े। उनके टांग में फ्रैक्चर हो गया है? कक्षा में प्रिंसिपल आकर बोले तुम्हारे अध्यापक जी 15 दिन स्कूल नहीं आ सकेंगे। तुम्हें गणित और अंग्रेजी  की तैयारी स्वयं करनी होगी। अगले हफ्ते तुम्हारी वार्षिक परीक्षा है। सभी बच्चे खुश नजर आ रहे थे। हमारी बात सच हो गई। अब परीक्षा में हम नकल करके पास हो जाएंगे। नकल करने के लिए पर्ची ले कर जाएंगे।। जो बच्चे हमेशा पढ़ते थे वह तो तैयारी में जुट गए थे। परीक्षा का दिन भी पास आ गया था। परीक्षा देने के लिए परीक्षा भवन में पहुंचने के लिए बच्चों को बहुत ही दूर जाना पड़ता था। शाम को इतना पानी बरसा की दूर दूर तक वाहन मिलना मुश्किल हो रहा था। सभी बच्चे गरीब घरों के थे। गाड़ी या टैक्सी के लिए उनके पास इतना किराया नहीं होता था। सात बच्चों का ग्रुप भी परीक्षा देने के लिए निकल पड़ा। उन्हें कोई भी सवारी नहीं मिल रही थी। उनमें से एक बच्चा तो बीमार था। परीक्षा में केवल आध घंटा शेष था। पैदल तो किसी भी हालत में परीक्षा भवन नहीं पहुंच सकते थे।  परीक्षा भवन पहुंचनें के लिए गाड़ी करवाना बहुत ही आवश्यक था। वे सभी मायूस हो गए उनकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। सामने से गाड़ी में आते हुए गुरु जी को देखा। उनकी रोनी सूरत की ओर देख कर बोले आज स्कूल क्यों नहीं पहुंचे? आज तो तुम्हारी परीक्षा है न। गुरु जी क्या बताएं कोई सवारी ही नहीं मिल रही। हमे परीक्षा से आज वंचित रहना पड़ेगा। हमारा साल बर्बाद हो जाएगा। हमारे पास इतने रुपए नहीं है कि हम घर से जाकर अपने माता पिता से रुपये ले आए। उनकी तरफ-देख कर बोले जल्दी बैठो मैं तुम्हें छोड़ कर आता हूं। मैंने अपने भाई की गाड़ी ले ली है। मैं तो अपनी टांग दिखाने अस्पताल आया था। चलो मैं तुम्हें स्कूल पहुंचा देता हूं। फिर वापस आकर अस्पताल चला जाऊंगा।

सारे के सारे बच्चे हैरान होकर अपने  गुरु जी को देख रहे थे हमने तो अपनी गुरुजी के बारे में कितना बुरा सोचा था। एक  वे हैं जो हमारी सहायता करने की सोच रहे हैं। उनकी आंखों में सचमुच पश्चाताप के आंसू थे। गुरु जी ने उन्हें परीक्षा हॉल में 15 मिनट पहले पहुंचा दिया था। सभी बच्चे खुशी-खुशी हॉल में परीक्षा देने के लिए चले गए थे। एक बच्चा जो बीमार था उसको गुरुजी ने कहा तुम अभी यहीं पर गाड़ी में बैठो। मैं अंदर जाकर पता कर कर आता हूं। उसकी हालत कुछ पहले से ठीक हो गई थी। गुरुजी सोचनें लगे कि अगर वह परीक्षा में वह बच्चा भी बैठ जाएगा तो उसका साल बर्बाद नहीं होगा। परीक्षा अधिक्षक के पास जाकर बोले कि हमारे स्कूल का एक बच्चा बीमार हो गया है। आप उस बच्चे को थोड़ा पेपर के लिए आध घंटा ज्यादा देंगे तो आप का बहुत ही एहसान होगा। कृपया आप इन गरीब बच्चों की तरफ ध्यान दें। इनके माता-पिता  इन्हें बड़ी मुश्किल से पढ़ाई के लिए भेज रहे हैं। परीक्षा अधीक्षक महोदय बोले कि इस बच्चे को 15 मिनट ज्यादा समय दे दूंगा। उन्होंने जल्दी से उस बच्चे को भी परीक्षा हॉल में बिठा दिया। गुरु जी की तरफ बच्चे कृतज्ञता भरी नज़रों से देख रहे थे।

परीक्षा समाप्त हो चुकी थी। सभी बच्चे  पास हो गए थे। गुरु जी को पता चल गया था कि उन बच्चों को सुधारने में वह सफल नहीं हो पाये। प्रिंसिपल के रूम में आकर उन्होनें अपने स्थानांतरण के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया।  सभी सभी बच्चे पास हो गए थे। बीमारी की वजह से एक बच्चा आकाश थोड़ा बहुत कर पाया था। उसके अंग्रेजी विषय में 5 अंक कम रह गए थे। प्रिंसिपल जी के पास जाकर गुरुजी बोले 5 अंक देने का प्रावधान तो प्रिंसिपल जी को है। आप अगर इस बच्चे को 5 अंक दे देते हैं तो वह बच्चा पास हो जाएगा। यह बीमारी की वजह से परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाया कृपा करके इसको 5 अंक दे दीजिए। नहीं तो इसका दिल टूट जाएगा। इसके सभी दोस्त ग्रेस मार्क्स से पास हुए हैं। यह तो बीमार था। बड़ी मुश्किल से अपनी परीक्षा  दे पाया। बाहर आकाश खड़ा होकर अपने लिए प्रिंसिपल के सामने गिडगिडाते हुए सूरज प्रकाश सर को देख रहा था। प्रिंसिपल सर बोले तुम उस बच्चे की गारंटी लेते हो तो मैं इस बच्चे को पाँच अंक देने के लिए तैयार हूं। गुरुजी बोले कि मैं इस बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी लेता हूं। मैं अपना इस्तीफ़ा फाड़ कर फेंकता हूं। इसके पश्चात मैं यहां से चला जाऊंगा।

आकाश ने गुरुजी से माफी मांग ली। उसने आकर अपनी सभी दोस्तों को गुरुजी की बात बताई। गुरुजी कक्षा में आए तो सारे के सारे बच्चे चुपचाप खड़े थे। वह बोले बेटा तुम सब चुप क्यों हो? आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं तुम्हें अच्छा बच्चा बनना देखना चाहता हूं। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं।

मैं भी बचपन में एक शरारती बच्चा था। मेरे माता-पिता गांव में रहते थे। हम दो भाई थे। मेरे बड़े भाई का नाम हितेश था। वह बहुत ही नेक इंसान था। मैं बहुत ही शातिर और चंचल स्वभाव का था। इतना उदन्ड था कि राह चलते लोगों को सताना और मोहल्ले की औरतों को गुलेल से मारना पक्षियों को भी पत्थर  मारता था। हर एक को मारता था। मेरे पिता ने हम दोनों को स्कूल में दाखिल करवा दिया। स्कूल में भी मेरा दिल नहीं लगा। मैंने अध्यापक और अध्यापिकाओं को भी सताना शुरू कर दिया सभी अध्यापकों के ऊपर नीली स्याही छिड़क देना। कभी उनका रजिस्टर फाड़ देना। पढ़ाई करनें से इतना डरता था कि मैं कक्षा में हमेशा खड़ा रहता था। पढ़ाई तो मेरी कुंडली में थी ही नहीं। एक दिन मेरे पांचों दोस्तों ने मिलकर योजना की गुरुजी को नुकसान पहुंचा जाए। हम सब बच्चों का एक ग्रुप था। हमनें मिल कर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया था। पिकनिक तो एक बहाना था। एक ऊंची पहाड़ी पर जा कर वहां खुब मस्ती कर के घर आना था। अपनें अध्यापक को पिकनिक में आनें के लिए मनवा लिया। मेरे पीछे-पीछे मेरे दोस्त अध्यापक के आने का इंतजार कर  सभी पिकनिक पर गए थे। अध्यापक जी के आने पर खुब मस्ती की। वापिसी में पहाड़ी के रास्ते से मैंने गुरुजी को धक्का दे दिया। हम ने योजना के मुताबिक गुरु जी को नीचे गिरा दिया। हमें यह नहीं पता था कि उन्हें इतनी चोट भी लग सकती है। हमारा बचपना था। गुरु जी पेट के बल नीचे गिर पड़े। उन्होंने मुझे धक्का मारते देख लिया था। जब थोड़ी देर हो गई लोंगो की भीड़ इकट्ठा हो ग्ई। लोंगों ने बोला सूरज प्रकाश ने ही ऐसा किया है। यह बच्चा बहुत ही शैतान है वह कभी भी स्कूल में काम करके नहीं लाता है। और सभी को मारता रहता है। उसने ही अध्यापक जी को धक्का दिया होगा। उन से जब पुलिस वालों नें पुछा तो गुरुजी ने नहीं कह कर इशारा कर दिया। किसी बच्चे ने मुझे धक्का नहीं दिया। मैं अपने आप ही सम्भल नहीं पाया। उस दिन मुझे गुरु जी का मूल्य समझ में आया। अब क्या हो सकता था? उस दिन के पश्चात मेरे जीवन की दिशा ही बदल गई। गुरु जी के प्रति सिर श्रद्धा से झुक गया। मेरे माता-पिता को पता चला कि उसने ही धक्का दिया है तो उन्होनें मेरी खूब पिटाई की। उनको सारी सच्चाई दोस्तों ने बता दी थी कि हमें ने ही इन्हें धक्का देने के लिए कहा था। गुरुजी को  मारने का हमारा इरादा नहीं था। हम उन्हें मारना नहीं चाहते थे। मेरे माता-पिता ने कहा कि जब तक तुम्हारे पिता समान गुरु जी ठीक नहीं हो जाते तो तुम्हें इनके लिए पढ़ाई करनी होगी। उनके परिवार वालों का तुम को ही ध्यान रखना होगा जब तक गुरु जी ठीक नहीं हो जाएंगे तब तक हम तुम्हें अपनाएंगे नहीं। तुम को माता पिता के प्यार से भी वंचित होना पड़ेगा। तुम्हारी पढ़ाई के लिए तो खर्चा हम देंगे। जब तुम पढ़ाई कर लोगे तुम को ही उनके घर को सम्भालना होगा। उन्होनें मुझसे उस दिन के बाद प्यार कभी नहीं किया। मै पढाई कर एक अध्यापक बन गया।

मैंने कसम खाई की मैं भटके हुए बच्चों को गुमराह होने से बचा लूंगा आज मैं तुमको सुधार नहीं पाया बेटा मैंने अपने तबादले के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया है। आकाश बेटा तुम्हें पढानें के बाद मैं खुशी-खुशी यहां से चला जाऊंगा। सभी बच्चे  अपने गुरु के चरणों में पड़ गए बोले गुरु जी आगे से ऐसी गलती नहीं होगी। गुरुजी आपके अध्यापक अब कंहा है? वे मेरे फ्लैट में ही रहते हैं। मैं उन्हें अपने फ्लैटमें लेकर आ गया। नौकरी करने के पश्चात मैंने एक फ्लैट किराए पर ले लिया। उनकी मां भी हमारे साथ रहती हैं। बच्चे बोले कि हम सब गुरुजी को ठीक करके ही रहेंगे। आज से हम भी इस लड़ाई में आपके साथ हैं। हमने भी तो आप को मारने के लिए योजना बनाई थी। हमने भगवान से कहा कि आप की टांग टूट जाए। हमारी गलती थी। जब तक हम अध्यापक जी को ठीक नहीं करवा देते तब तक हम पीछे नहीं हटेंगे।  आप नें भी तो हमारे लिए इतना सोचा। हम एक-एक घंटा आकर उन्हें देख जाया करेंगे। सारे के सारे बच्चे उन्हें हर रोज देखने घर आ जाते। बूढ़े गुरु अध्यापक जी उस हादसे के बाद कभी भी बोल नहीं पाए। उसके बाद उनके बोलने की शक्ति छीन गई थी। काफी डॉक्टरों को दिखाया मगर कामयाब नहीं हुए। बच्चे हर रोज गुरुजी के पास बैठ जाते थे। सब के सब कोई उनके पैर दबाता। कोई उनके लिए फल लाता। कोई उनकी ब्रश करवाता। एक दिन उनके फ्लैट में एक डॉक्टर रहने के लिए आए। सूर्य प्रकाश जी ने सारी बातें उन को बताई। उन्होंने बताया कि यही हादसा अगर फिर से दोहरा जाए तो उनकी याददाश्त वापस आ सकती है। लोगों ने एक छोटी सी पहाड़ी के पास ले जा कर पिकनिक का उत्सव किया। सभी खुशी खुशी पिकनिक का आन्नद ले रहे थे। वापिसी के समय  सूरज प्रकाश नें उन्हें उसी पहाडी को याद करके धक्का गिराने का प्रयत्न किया। ऎसा करते समय उनके हाथ कांप रहे थे। जाकर छोटी सी पहाड़ी के पास से धक्का दे दिया। सारी की सारी तैयारी पहले ही की गई थी ताकि उन्हें गिरने से चोट ना लगे जैसे उन्हें ऊपर से गिराया गया उनके मुंह से निकला सूरज सिंह। उनकी जबान लड़खड़ाई और वे बेहोश हो गए। नीचे बहुत सारे लोग मौजूद थे। वे जैसे ही गिरे उन्होनें उन्हें सम्भाल लिया। काफी देर बाद उन्हें होश आया तो वह बोले सूरज सूरज सूरज। हैरान होकर बच्चे बोले डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब जल्दी आओ हमारे सर बोल पड़े। बच्चे खुशी से चिल्ला उठे गुरु जी ठीक हो गए। अध्यापक जी ठीक हो गए। आज मेरी तपस्या सफल हो गई आज मैं इन बच्चों को भी सुधारनें में सफल हो गया। मेरी कोशिश रंग ले आई। आज मैं बहुत ही खुश हूं। आज मैं गुरुजी कहलाने योग्य हूं।

सभी बच्चे हंस कर बोले गुरु जी हम सब आपके साथ हैं। हम कभी भी गुमराह नहीं होंगे। हम अच्छा बनकर दिखाएंगे। हम पहले शरारतें किया करते थे  वह हमारा बचपना था हमें माफ कर दो। हम भी किसी एक ऐसे किसी बच्चे को सुधारने में मदद कर सके तो हमारा जीवन सफल हो जायेगा। गुरुजी इन सबको मुस्कुरा कर देख रहे थे।

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