एक छोटा सा गांव था। गांव में एक किसान अपनी पत्नी और अपने बच्चों के साथ रहते थे। गांव के लोग उसे चौधरी चाचा बुलाया करते थे क्योंकि वह गांव में अपनी चौधर चारी के लिए प्रसिद्ध था। गांव में दूध बेचकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहा था चौधरी को सारे गली मोहल्ले वाले सभी पहचानते थे। वह लोगों को दूध बेचता था कई कई दिनों तक लोग दूध के पैसे भी उसे नहीं देते थे। उसका गांव में बहुत ही रुतबा था। वह शानो शौकत और ठाट बाट के साथ अपनी पत्नी के साथ बड़ी खुशी से अपना जीवन बिता रहा था। दूध बेचने जब भी जाता रास्ते में जो भी राहगीर मिलता उसे नमस्ते करता। वह भी बूढ़े लोगों का सत्कार करना और सभी के साथ प्यार से पेश आता था। कभी कभी रास्ते में थक हारकर लोगों की मंडली के साथ खूब गप्पे मारना उसका शौक था। कुछ अपनी कहना कुछ उनकी सुनना सब बातें उनकी दिनचर्या में शामिल थी। रोबिला चेहरा नाक उभरी हुई चौड़ी छाती लंबी लंबी मूछों वाला था। उसे देख कर अनुमान लगाया जाता था कि वह किसी खाते पीते घर का व्यक्ति होगा। पैरों में जूते तन पर लंबी धारी वाला कुर्ता ऐसा था चौधरी चाचा। उसकी पत्नी खूब लंबी मोटी हटटीकटटी। वह सारे दिन गफ्पे हांकनें के सिवा और कुछ नहीं करती थी। उसकी खासियत थी कि वह अपनी गाय की सेवा करती थी। बड़ी बड़ी आंखों वाली बाल घुंघराले पैरों में चप्पल पहनकर और माथे पर बडी सी बिन्दी। सफाई करती थी तो उस को देखकर लगता था कि रसोई में कहीं भी गन्दगी का ढेर नहीं होता था। चौधरी घर में आता जूते लेकर अंदर घुस जाता। चौधराईन उसे कहती मैं सारा सारा दिन सफाई करती रहती हूं। आप आ कर गन्दे जुतों से रसोई में घुस जाते हो। यह नहीं चलेगा। चौधरी रोब झाड़ कर अपनी पत्नी को चुप करा देता। वह कहता कि पत्नी का काम होता है घर की जिम्मेदारी संभालना। एक दिन चौधरी के दोस्त घर पर आए हुए थे चौधराईन बोली भाई जी आप सारा दिन क्या मटरगश्ती करते रहते हो। उनकी राह देखते देखते इतना वक्त हो जाता है। खाना पड़ा का पड़ा ही रहता है। चौधरी बोला कैंची की तरह जूबान मत चलाया करो। जितना बोलना है उतना ही बोला करो।अपने काम से काम रखा करो। चौधराइन भी थी चंडी का रूप। वह दोनों जब भी बातें करते तो सारा मोहल्ला इकट्ठा हो जाता। दोनों एक दूसरे को जली कटी सुनाते थे। दोनों ही कम नहीं थे। लड़ते-लड़ते थक जाते तो अपने अपने कमरे में गुस्सा होकर चल जाते परंतु थोड़ी देर बाद उनको देखकर किसी को भी आभास नहीं हो सकता था कि एक दूसरे से कभी लड़ाई भी करते होंगे। इस तरह काम करते-करते दिन गुजर रहे थे।
कभी चौधरी चाचा दूध देते नहीं पहुंचता लोगों की मंडली उसके घर पहुंच जाती कभी-कभी तो वह जानबूझकर ही देर से दूध बेचने जाता था। दूर-दूर तक उसकी पहचान थी। चौधरी के नाम से लोग उसके घर हर आने जाने वाले लोगों को पहुंचा ही देते थे।
सुरभि को पा कर वे दोंनो फूला नहीं समाते थे। सुरभि थी ही इतनी प्यारी। रंग से काली काली और आँखें भूरी भूरी। चौधराइन उसे हरा हरा घास खाने को देती थी। दूध बेचकर गुजारा करने वाला चौधरी सचमुच अपनें गांव में चाचा चौधरी के नाम से मशहूर हो गया। दोनों पति-पत्नी गाय की सेवा करते खुश रहते और गांव के लोगों को भी खुश रखते थे। वह गांव के लोगों से दूध के रुपए लेने नहीं जाता था खुद चल कर लोग उसके पास दूध की कीमत देने आते थे। वह कभी भी दूध में जरा भी पानी नहीं मिलाता था। यही कारण था कि लोग उस पर आंख मूंदकर विश्वास करते थे। उस से दूध खरीदते थे।
धीरे-धीरे दस पन्द्रह वर्ष गुजर गए। चौधरी चाचा पचास वर्ष का हो चुका था। उसकी पत्नी भी उम्र में उस से पांच साल ही छोटी थी। उसने अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर उन्हें बड़ा आदमी बना दिया था। और उनकी शादियां भी कर दी थी। चौधरी चाचा का व्यवहार भी ठीक नहीं था वह काफी बदल चुके थे। बात बात पर गुस्सा करना उनकी आदत में शुमार हो गया था। अपनी पत्नी को बात बात पर डांटना फटकारना उनकी आदत बन गया था। उनकी पत्नी ने तो चुप्पी साध ली थी। वह उन्हें कुछ कहना नहीं चाहती थी। जरा सा बोलने पर उसकी पत्नी को न जाने क्या-क्या सुनना पड़ता था। वह खामोश रह कर ही अपना काम किया करती थी। गाय की देखभाल भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाती थी। जिस गाय को अपना बच्चा समझ कर उसका पालन-पोषण करती थी उसको उन्होंने अपने घर से निकाल कर कूड़ा कर्कट खाने के लिए मजबूर कर दिया था। उसका कारण यह था कि उनकी गाय भी बूढ़ी हो चुकी थी।। वह दूध भी नहीं देती थी।
चौधरी चाचा ने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि इस गाय के लिए अब हमारे घर में कोई स्थान नहीं है। जब लोग उस सुरभि गाय को आवारा पशुओं के साथ बाहर चारा खाते देखते तो गांव वालों को बड़ा दुःख होता क्या वह वही चौधरी चाचा है?। या चौधरी चाचा मर गया। उसके रूप में दूसरे इन्सान नें शैतान चौधरी चाचा के रूप जन्म ले लिया जिसने अपनी गाय को कूड़ा कचरा खाने के लिए मजबूर कर दिया। कोई भी उसके सामने जूबान चलाने का साहस नहीं रखता था। ज़ुबान से कुछ बोलता तो उस व्यक्ति की तो मानो खैर नहीं। गांव वाले दुःखी थे मगर कुछ कह नहीं सकते थे। उन्हें उस गांव में तो रहना ही था। गांव वालों से शत्रुता निभाकर कोई कैसे जिंदा रह सकता है? सुरभि गाय जो एक हटटी खट्टी गाय हुआ करती थी कूड़ा कर्कट के ढेर में धूप में झुलस झूल कर उसकी ऐसी हालत हो गई थी कि कोई भी कल्पना नहीं कर सकता था कि क्या वह वहीं सुरभी गाय है जिसको चौधरी चाचा उसकी पत्नी बहुत ही प्यार किया करते थे?
लोग आपस में विचार-विमर्श करते। सारा खेल माया का ही है। माया रुपी धन दौलत हाथ में आते ही इंसान को कोई होश नहीं रहता। वह घिनौने से घिनौने कार्य करने लग जाता है। जो इंसान इतनी मेहनत करता था आज वह बैठ बैठ कर मोटा होता जा रहा था।
पहले गांव में आकर जब वह खूब शानो शौकत से दूध बेचता था खुश रहता था। लोगों के साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार कर उनके साथ मजाक करता था। लोग उसके साथ उसकी मजाक भरी बातों में शामिल हो जाते थे। सलाम दुआ यहां तक कि छोटे से छोटा बच्चा भी चुपचाप जाकर उनकी गोद में बैठ जाता था। वह चौधरी चाचा अब तो अपने पास किसी को भी फटकनें नहीं देते थे। उनकी पत्नी पहले पूजा पाठ भी कर लिया करती थी परंतु घर के कलह क्लेश इतने बढ़ चुके थे कि भगवान का नाम लेना तो दूर की बात दोनों एक दूसरे की शक्ल भी देखना नहीं चाहते थे।
पहले वह चाहे लड़ाई किया करते थे उनकी लड़ाई में भी प्यार छुपा होता था।।
इसी तरह दिन व्यतीत हो रहे थे। धन दौलत की चकाचौंध चौंध नें उन्हें और भी बैचेन कर दिया। पहले भी शानोशौकत से रहते थे लेकिन इस ठाट बाट में और अब के ठाठ बाट में दिन रात का अन्तर था। एक दिन एक दूसरे गांव की औरत जमुना उस गांव में किसी काम के सिलसिले से आई। उसका छोटा सा बच्चा भी उसके साथ ही था। वह साहसी दिलेर और झुग्गी झोपड़ी में रहती थी। अपने बेटे को भी साथ में लाई थी। उस गांव से अपना काम निपटा कर घर की ओर जा रही थी उसने कूड़ा कर्कट के ढेर में से कचरा चबाते गाय को देखा। गाय की हालत देख कर उसे तरस आ गया। उसकी जान पहचान की औरत नें बताया कि इस गाय को इसी गांव में रहने वाले चाचा चौधरी नें बूढा हो जानें के बाद घर से बाहर कर दिया क्यों कि वह दूध नहीं देती थी। अपनी सहेली से बोलीे इतनी प्यारी गाय की क्या दुर्दशा कर दी है? इन सभी अमीर लोगों के चोंचले समझ में नहीं। जब गाय दूध नहीं देगी तो उसको घर से निकाल कर बाहर कर दिया यह कहां का न्याय है।ऐसे इंसान को तो कोड़े लगाने चाहिए।
गौ की सेवा करना हमारा फर्ज होता है। ऐसे इंसान को तो मरने के बाद भी नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी। वह इस गाय को अपनें साथ ले कर चली जाएगी। जब वह अपनी सहेली से बातें कर रही थी तो गांव वालों ने उसकी बातें सुन ली।। वह बोली पहले चौधरी चाचा से अपने साथ इस गाय को लेने की अनुमति ले लो। वह बोली मुझसे इस गाय का का दुःख देखा नहीं जाता। तुम लोगों को भी जरा रहम नहीं आया कि तुम गांव वाले मिलकर इस गाय लिए एक गौशाला बना देते। मेरे पास तो भगवान ने कुछ नहीं दिया है। मैं तो एक झुग्गी झुग्गी झोपड़ी में रहती हूं फिर भी इस गाय को खिलाने का साहस रखती हूं। मैं तो सड़कों पर दिन रात काम मजदूरी कर अपने बेटे का पालन पोषण कर रही हूं।
गांव वालों के इस प्रकार कहने पर जमुना जाकर चौधरी चाचा के घर दरवाजा खटखटाने लगी। चौधराईन ने दरवाजा खोला क्या है? आराम भी नहीं करने देते। क्या यही समय मिला था कुछ मांगने को?
तुम लोग हर किसी समय टपक पड़ते हो इतने में चौधरी आकर बोला जल्दी से यहां से निकलो वर्ना धक्के मार मार कर यहां से निकाल दूंगा। जमना बोली चौधरी बाबू गरीबों पर क्यों बिगड़ते हो? गरीबों की हाय लगते नहीं लगती। तुम तो मेरी बात बिना सुने ही अपनी कहे जा रहे हो। मैं तुमसे कुछ दान भिक्षा मांगने नहीं आई हूं। इतना कहने आई हूं कि जिस गाय को तुमने कूड़ा कचरा समझ कर सड़क पर छोड़ दिया है उसे मैं लेकर जा रही हूं। चौधरी बोला ठीक है ना ले जाओ किसने रोका है। मैं तो कहता हूं बला टली। अभी के अभी इसी वक्त ले जाओ। काम की ना काज की दुश्मन अनाज की। उसकी जली कटी बातें सुनकर जमुना पहले तो आग बबूला हो फिर अपने मन को समझाते हुए अपने आप से बोली।
चौधरी तो मिट्टी का माधो है। इसकी पत्नी बड़ी दयालुता का प्रतीक बनी बैठी है। चेहरे पर नकाब ओढ़े बैठी है। मरने के पश्चात उन दोनों को आभास होगा जब दोनों की आत्मा नर्क की आग में भटकेगी।अपने बच्चे को और गाय को साथ लेकर जमना वहां से चली गई। इस बात को छः महीने गुजर गए।
चौधरी और उसकी पत्नी दोनों की इतनी हालत नाजुक हो गई थी कि उनको कोई भी पानी देने वाला भी नहीं बचा था। जिस इंसान ने अपना दूसरा रूप धारण कर लोगों को अचंभित कर दिया था लोग उसके घर की ओर कभी रुख नहीं करते थे। कोई भी उसे किसी भी चीज के लिए नहीं पूछते थे। दोनों ही बिस्तर पर पड़े पड़े कराह रहे थे।।
जमना गाय को लेकर अपने गांव आ गई। जिस दिन वह गाय को लेकर आई उसने सोचा कि जब हमें खाना मिला करेगा तो इसे भी खाना खिला दिया करेंगे। जिस दिन खाना नहीं मिलेगा तो वह भी हमारे साथ उपवास रखेगी। जमना नें गाय को अपनी झोपड़ी के एक और बांध दिया था। वह पत्थर तोड़कर शाम तक जो कुछ भी लाती गाय को भी खिलाती और अपने आप भी खाती। बहुत दूर-दूर तक जाते समय गाय को भी अपनी साथ मे चुनें ले जाती। उसे चारा भी देती। गाय को चारा देना कभी नहीं भूलती थी।
एक दिन की बात है कि जमना जब सुबह सुबह उठ कर गाय को चारा देने गई तो देख कर हैरान हो गई शाम को वह गाय को पानी पिलाने के लिए जिस बर्तन को रख कर आई थी वह दूध से भरा हुआ था। उसकी गाय दूध देने लगी थी। वह चौक पर पीछे हट गई। उसने सुरभि के शरीर पर प्यार से हाथ फेरा। उसकी आंखों से खुशी के आंसू थे। उसने अपने बच्चे को भी दूध पीने को दिया और अपने आप भी पिया। वह बाजार में दूध बेचने लगी थी। धीरे धीरे कर के उसनें अपना मकान भी ले लिया। उस गाय नें उसे इस काबिल बना दिया कि उसे रहने के लिए छत मिल गई और अपने बच्चे का पेट पालने के लिए एक गाय।
एक एक बार वह उसी गांव में काम से अपनी सहेली से मिलने आई तो चौधरी के घर जाना नहीं भूली। वहां का नजारा देखने लायक था। दोनों चारपाई पर पड़े पड़े अपनी अन्तिम घड़ियां गिन रहे थे। इतना आलीशान मकान होते हुए भी दोनों के दोनों अकेले थे। उन दोनों को देखने वाला भी कोई नहीं था। पानी तक को भी पूछने वाला कोई भी नहीं था। उन की एसी अवस्था देख कर उसे दुःख भी हुआ और उनकी करनी पर गुस्सा भी आया।
उसनें अपने पहचान वालों को फोन करके चौधरी और चौधराईन को अस्पताल में दाखिल करवा दिया।उनकी देखभाल करती रही जब तक वे दोनों थोड़े चलने लायक हुए।वह दोनों को धन्यवाद देती हुई बोली मैं आप लोगों का कर्जा चुकाने आई थी। मैं किसी का उधार नहीं रखती। तुमने मुझे पहचान तो लिया ही होगा। मैं वही जमना हूं जिसको तुमने धक्के मार कर बाहर निकालने के लिए कहा था।
मैं आपकी गाय की बदौलत अपने घर में रहने लायक हो गई हूं। आपका धन्यवाद। वह उन दोनों को घर तक छोड़ने आई दोनों कुछ ठीक हो चुके थे। वह दोनों पछता रहे थे कि हमें धन की चकाचौंध नें अंधा कर दिया था जो हम सब कुछ भूल बैठे थे। शायद इस वजह से हमारी यह हालत हुई।
काश हमने अपनी सुरभि को बाहर निकाला न होता। आज उन्हें पता चल चुका था। उनके बच्चे भी उनके साथ नहीं थे। मुश्किल की घड़ी में उन को संभालनें वाला भी कोई नहीं था। शायद पहले किए गए अच्छे कर्मों की वजह से उसे जमना बचाने आई थी। हमें तो उसका शुक्रिया करना चाहिए। वह द्वार की ओर गये तब तक जमूना जा चुकी थी। उनके शब्द मुंह में ही रह गए हाय! हमने येे क्या कर डाला।