रमिया अपनी जुडवां बेटियों के साथ रेल की पटरी पर बैठे बैठे गाड़ी के आने का इंतजार कर रही थी। वह अपने मन में विचार कर रही थी गाड़ी न जानें कब जैसे आएगी। वह अपनी बेटियों को साथ लेकर काम करनें के लिए जाती थी। उसे और उसकी बेटियों को भूख भी बड़े जोर की भूख भी लग रही थी परंतु उसके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था। वह घर से केवल दो ही रोटियाँ बना कर लाई थी। उसनें वह दोनों रोटियाँ अपनी बेटियों को दे दी। पूर्वी बहुत ही समझदार थी। वह बोली मां मैं तब तक रोटी नहीं खाऊंगी जब तक आप नहीं खाओगी। उसने अपनी आधी रोटी तोड़ कर मां को दे दी।
प्लेटफार्म पर लोग इधर उधर भाग रहे थे। कुछ लोग गाड़ी के आने का इंतजार कर रहे थे। कुछ लोग तेज तेज चलते हुए दूसरी तरफ भाग रहे थे। कुली भी सामान सामान कहकर चिल्लाते हुए चल रहे थे। वह सोच रही थी इस समय उसे कोई कुछ ना कुछ खाने को दे दे तो वह किसी तरह से अपना और अपनी बेटियों का पेट भरे लेकिन उसे तो अभी गाड़ी के आने का इंतजार था।
वह गाजियाबाद स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर रूपाली के के घर पर काम करती थी। उसकी मालकिन पेशे से डॉक्टर थी। उसका पति एक मिल की फैक्टरी का मालिक था। उस के पति को काम के सिलसिले में हर कभी बाहर जाना पड़ता था। मालकिन को काम करनें के लिए एसी औरत की आवश्यकता थी जो उस का घर का काम कर दिया करे। उसे काम पर इसलिए रखा था क्योंकि वह उसका काम बड़े ही ईमानदारी से किया करती थी। और वह उन लोगों को कभी भी शिकायत का मौका नहीं देती थी। चाहे भयंकर से भयंकर गर्मी हो या ठंड हो, वह समय पर अपना काम-किया करती। जब भी उसकी मालिकन उसे बुलाती वह चुपचाप चली आती। उसकी मालकिन उसे जो कुछ देती थी उससे अपनी बेटियों को और अपने परिवार का गुजारा किया करती थी।
आज गाड़ी 2 घंटे देरी से स्टेशन पर आई थी। वह पैदल पैदल जाने का साहस नहीं कर पा रही थी। एक तो दो नन्ही बच्चियां। गुडिया बिल्कुल अपनी बहन पूर्वी जैसी थी अन्तर केवल रंग रुप का था। वह देखनें में गोरी चिट्टी। अगर पूर्वी भी गोरी होती तो कोई उन दोनों को पहचान नहीं पाता। आठ साल की साल की गुड़िया अपनी मां के साथ साथ हाथ पकड़कर चल रही थी। बच्चियां बहुत ही प्यारी थी। पूर्वी का रंग बहुत ही काला था। कोयले जैसा काला। उसकी मां उसे पूर्वी नाम न ले कर उसे काली कहकर बुलाती थी।। वह बहुत होशियार और समझदार थी। किसी को काम करता देखती तो वह जल्दी ही सीख जाती थी। उसके नयन नक्श बहुत ही सुंदर थे। वह अपनी बेटी को देखकर सोचती कि बाकी सब कुछ तो ठीक है मेरी बेटी पुर्वी से कौन शादी करेगा? उसकी काली लड़की को कौन अपना बेटा देगा। उसको अपनी बेटी पूर्वी की बहुत चिंता होती थी। रमिया ने भाग्य का लेखा समझ कर उसको उसके हाल पर छोड़ दिया। हर बार सोचती रहती जाती थी कि मेरी उर्मी गुड़िया तो शक्ल सूरत से अच्छी है। इस के साथ कोई भी लड़का शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा मगर इस काली का क्या करूं। कुछ नहीं कर सकती। ट्रेन आ गई थी। आठ साल की उर्मी उसकी उंगली थामे थी। उसने पूर्वी को गाड़ी में चढ़ने का इशारा किया। वे गाड़ी में बैठ चुकी थी। ट्रेन जैसे ही स्टेशन पर पहूंची रमिया ने अपनी बेटियों को गाड़ी से उतारा और धीरे-धीरे अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गई। उसने घर पहुंचकर मालकिन का दरवाजा धीरे से खटखटाया। अंदर से जोर जोर की आवाजें आ रही थी। रमिया को पता चल चुका था कि इतनी जोर जोर से बहस कौन कर रहा है कुछ दिन पहले ही उसकी मालकिन के पति अपने घर आए थे वह कभी कभी अपनी पत्नी से मिलने आ जाते थे। घर के अन्दर से जोर जोर की लड़ाई झगड़े की आवाजें सुनाई दे रही थी। उसके पति उस से हर कभी झगड़ा किया करते थे। रिया यह सब वह देखती रहती थी। उसकी मालकिन के पति रूपाली को कह रहे थे जब वह काम पर नहीं आती है तो तुम उसे क्यों बुलाती हो? वह समय पर नहीं पहुंच पाती है। उसकी मालकिन ने दरवाजा खोला। रमिया चुपचाप सीधी नीची नजरें किए दूसरे कमरे में अंदर चली आई। कुछ बोली नहीं अगर बोलती तो मालिक का कहर उस पर बरस पड़ता रमिया ने हाथ जोड़कर उन लोगों से क्षमा मांगी बीवी जी आज मुझे देरी हो गई क्योंकि आज गाड़ी 2 घंटे लेट थी। आगे से आपको कभी भी देरी से आने का मौका नहीं दूंगी। आज मुझे माफ कर दीजिए। अचानक उसकी बेटी जोर जोर से रोने लगी। मां-मां भूख लगी है। मुझे खाने को दो। मालकिन के पति बोले तुमने अगर यहां काम करना है तो अपनी बेटियों को यहां पर लाने की कोई जरूरत नहीं है। अपनी बेटियों को घर पर छोड़ कर आया करो। तुम्हारे पास खाने को नहीं होता तो दो दो बेटियां पैदा करने की क्या जरूरत थी? मालकिन को गुस्सा आ गया वह अपने पति पर गरज कर बोली तुम इसको क्यों बोल रहे हो? इसे तो मैंने काम पर रखा है। आपको हमारे बीच में बोलने का कोई अधिकार नहीं है। बच्चों को तो भूख लग ही जाती है। क्या तुम नौकरी छोड़ कर मेरे पास काम करने के लिए आ सकते हो? मेरे पास काम करने के लिए आ सकते हो जिस तरह तुम्हें अपना काम प्यारा है उसी तरह मुझे भी अपना काम प्यारा है। मैं इसे किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकती। रूपाली ने रमिया को आवाज दी जाओ रसोई में काम करो। रमिया आंसू पौंछते हुई रसोई में चली गई थी। मालकिन ने उसकी बेटी को खाने के लिए दे दिया था। उसकी आठ वर्ष की बिटिया खाना खा रही थी। आठ साल की बेटी पूर्वी टुकुर टुकुर उनकी तरफ देख रही थी। उसने उसे वही जमीन पर एक चटाई पर लिटा दिया था। वह अपना काम करने में मस्त हो गई। उसे अभी तक अपने मालिक और मालकिन की आवाज जोर-जोर से सुनाई दे रही थी अचानक रूपाली के पति जोर से अपनी पत्नी पर गुस्सा हो कर बोले यह काली सी लड़की यहां पर क्या कर रही है? इसको देखकर तो तुम्हारी भी बच्चे काले हो जाएंगे। तुम तो उसे नौकरी से निकाल ही दो। रूपाली बोली आज तो आपने हद ही कर दी। मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। भगवान ने इन्सान को दो ही रंग दिए हैं। काला और गोरा। काला रंग होने से क्या होता है व्यक्ति का स्वभाव अच्छा होना चाहिए। रंग तो आपका भी गोरा है तो आप नें आज तक मुझे क्या सुख दिया? आप क्या वास्तव में ही मुझ से प्यार करते हो?। यह बात उसके पति को बुरी लग गई उसने बहुत जोर से अपनी पत्नी के ऊपर हाथ उठा दिया। चिल्लाते हुए अपनी पत्नी रूपाली को बोला। तुम तो नीच हो और ना जाने गुस्से में क्या क्या अनापशनाप कह डाला। चली जाओ मेरी जिंदगी से। आज के बाद मुझे कभी भी शक्ल मत दिखाना। जैसे ही उसके पति ने थप्पड़ मारने की कोशिश की बीच में रमिया आ गई और उसने साहब का हाथ पकड़ लिया बोली बाबू साहब आप मुझे लेकर तकरार क्यों करते हो? मैं यहां से चली जाऊंगी। आप दोनों खुश रहो मेरी बीवी जी को कभी भी तंग मत करना मैं यहां से खुशी-खुशी चली जाऊंगी। सीधे रसोई में आकर काम करने लगी। रमिया के माथे से खून बह रहा था। मालकिन को छुड़ाते हुए वह दीवार से टकरा गई थी। उसके सिर से खून निकल रहा था। रूपाली नें अपनें पति को कहा मैं तुम्हारे साथ एक भी पल नहीं रहना चाहती। आज मुझे पता चल गया है कि मुझे कौन कितना प्यार करता है। मैं तुमसे जल्दी ही तलाक ले लूंगी।
उन दोनों को लड़ते देख कर बच्चियां भी डर गई थी। रमिया ने वहां पर रुकना उचित नहीं समझा वह अपने बच्चों को लेकर सीधे पैदल ही घर की ओर चलने लगी। गाड़ी के आने में अभी समय था। वह पैदल चलते चलते सोचे जा रही थी कि मैं क्या करूं।? कहां काम करूं? मैं अपनी मालकिन को भी दुःखी नहीं देख सकती। मुझे कौन काम देगा जब तक काम नहीं मिलेगा यहीं पर थोड़े दिन काम करना पड़ेगा। रमिया काम पर तो आती थी लेकिन बुझी बुझी सी रहती और सोचती थी कि कब जैसे मैं यहां से जाऊं। कुछ दिनों से मालकिन कि तबीयत भी ठीक नहीं थी। वह अपनी मालकिन को बोली जब तक आप ठीक नहीं हो जाती मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी। वह अपनें मन में सोच रही थी कि
आज साहब ने भी उसे जता दिया की काली बेटी पैदा करके उसमें कोई बड़ी मूर्खता की है। मेरी गुडिया की शादी तो हो जाएगी। काली के साथ कौन शादी करेगा? मैं क्या करुं। अचानक ट्रेन के आने का शब्द सुनाई दिया ट्रेन दूर से आ रही थी जैसे ही नजदीक पहुंची उसने अपनी बेटियों का हाथ थामा और गाड़ी में चढ़ गई हो गई थी। वह अपने घर धीरे-धीरे पहुंची। उसके सिर अभी भी दर्द कर रहा था। अपनी बेटियों को लेकर वह बहुत ही परेशान थी।
वह किसी दूसरे शहर में काम की तलाश में निकल जाना चाहती थी। शाम को पैदल चलने के कारण उसकी बेटी पूर्वी को बुखार भी हो गया था। ।। रमिया बुझे बुझे मन से अपनी मालकिन के यहां पर काम करने आती और चुपचाप काम करके चलीआती। वह अपना दुखड़ा किसी को नहीं बता सकती थी।
एक दिन उसके चचेरे भाई का फोन आया कि तुम यहां पर मेरे पास चली आओ। उसका भाई दूसरे शहर में काम करता था। उसका भाई ने उसे कहा कि यहां पर तुम्हें मैं किसी ना किसी नौकरी पर लगा दूंगा।
उसने अपनी मालकिन को बताया कि वह अपने भाई के पास जाना चाहती है। उसनें उसे वहां पर बहुत ही जरूरी काम से बुलाया है इसकी भाभी बीमार है और उसे इस वक्त मेरी जरूरत है इसलिए मैं काली को आपके पास ही छोड़ कर जा रही हूं। आप की तबीयत भी ठीक नहीं चल रही है। ऐसे मैं आप को किसी देखभाल करनें की जरुरत है। मेरी बेटी पूर्वी बहुत ही होशियार है। वह घर में भी मेरी मदद कर दिया करती है। मैं अपनी बेटी पूर्वी को आप के पास एक हफ्ते के लिए छोड़ देती हूं। वह आप की मदद कर दिया करेगी। जल्दी से वापिस आ जाऊंगी। मालकिन ने कहा कि तुम्हें अपनें भाई की सहायता के लिए उसके पास अवश्य जाना चाहिए। तुम्हारी बेटी काली मेरे पास रह लेगी। । काली की मां खुशी खुशी अपने भाई के घर जाने के लिए तैयार हो गई।
रमिया अपने मायके जाने के लिए स्टेशन पर पहुंच चुकी थी। स्टेशन पर उसे गाड़ी भी मिल गई थी गाड़ी पूरी रफ्तार से चल रही थी काली की मां को जिस स्टेशन पर उतरना था वह जैसे ही गाड़ी से उतरने लगी उसका पैर जंजीर से फंस गया और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी उसके सिर से बहुत ही खून बह रहा था जल्दी से लोगों ने उसे उठाकर किनारे पर रख दिया जब वह उठी तो उसे कुछ भी याद नहीं था। वह अपनी यादाश्त खो बैठी थी। उसके साथ उसकी बेटी उर्मी भी थी। । उर्मी भी जोरजोर से रो रही थी। उसे भी चोट लगी थी परंतु उर्मी को इतनी ज्यादा चोट नहीं लगी थी। वह अपने होशो हवास में थी। बड़ी मुश्किल से एक दंपति परिवार ने उसकी सहायता की और उसे बाहर निकाल कर उसकी बेटी को और उसे अपने घर में आश्रय दिया। काफी दिन तक उन्होंने उस से पूछनें
की कोशिश की कि तुम कौन हो कहां से आई हो परंतु वह अपना नाम तक नहीं बता सकती थी। उसे तो उर्मी की भी पहचान नहीं थी कि वह उसकी बेटी है। उसकी बेटी को उस परिवार ने अपने ही घर पर एक छोटी सी खोली रहने के लिए दे दी। जिसमें वह रहने लगी और अपनी बेटी के साथ जीवन यापन करने लगी। उसे कुछ भी याद नहीं था। वह अपना सब कुछ भूल चुकी थी उसकी बेटी उर्मी नें केवल यही बताया कि यह उसकी मां है। उससे अधिक उसे कुछ भी पता नहीं था।
एक हफ्ता बीत जाने पर भी जब रमिया वापस नहीं लौटी तो उसकी मालकिन ने समझा कि वह भी अपनी बेटी को छोड़कर सदा सदा के लिए चली गई है काली हर रोज अपनी मां को ढूंढती परंतु उसकी मां कहीं नहीं दिखाई देती। वह सोचती कि उसकी मां ने भी उसे काला समझ कर उसको छोड़ दिया है। एक दिन उसकी मालकिन किसी से बातें कर रही थी कि शायद काला रंग समझ कर इसको छोड कर चली गई है। वह इतनी छोटी थी कि उसे काले गोरे में अन्तर पता नहीं था। उसका मन दुख होता था कि मेरी मां ने मुझे छोड़ दिया। वह कभी भी मुझे देखने नहीं आई। काली हर रोज अपनी मां का ध्यान कराती। परंतु उसकी मां कहां से आती । उस बिचारी को तो यह भी पता नहीं था कि उसकी मां पर क्या बीती।? वह तो यही सोच रही थी कि उसकी मां भी औरों की तरह ही निकली।रुपाली नें भी उसकी मां के लिए भी यही सोचा कि वह उसको मेरी गोद में डाल कर चली गई है। मालकिन कहां पता करती। उसने अपने भाई का पता भी उन्हें नहीं दिया था ।
काली बहुत ही होशियार थी वह धीरे धीरे मालकिन का काम करने लगी। मालकिन ने उसे छोटा-मोटा काम सब समझा दिया था उसने अपने पति से किनारा कर लिया था। उसने सोचा क्यों न इस छोटी सी बच्ची का क्या दोष इसे ही मैं अपना लूंगी और इसे अपनी बेटी का नाम दूंगी। यह कानूनी तौर पर अब यह मेरी बेटी होगी। उसने कानूनी तौर पर काली को गोद ले लिया और उस को पढ़ाने के लिए हॉस्टल में भेज दिया ।
आज वह दिन भी आ चुका था जब काली पढ़ लिख कर एक बहुत ही बड़ी डॉक्टर बन चुकी थी। आज उसे काले गोरे रंग में अन्तर पता चल चुका था शायद इसी कारण वह अपनी मां को कभी याद नहीं करती थी। रूपाली को मां कहकर बुलाती थी परंतु उसके मन के एक कोने में अभी भी टीस थी। अकेलें में बैठ कर सोचा करती थी कि उसकी मां ने उसके साथ ऐसा क्यों किया।? क्या कोई मां अपनी बेटी के साथ इतना बड़ा अन्याय कर सकती है। मैं अपनी मां को कभी भी माफ नहीं करूंगी। इससे अच्छी तो मेरी यह मां है जिन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया और मुझे अपनी बेटी का दर्जा दिया । मैं बड़ी होकर अपनी बेटी होने का फर्ज पूरा करूंगी। और उन्हें वही खुशियां दूंगी जो मैं अपनी मां को देना चाहती थी। बचपन की वह घटना उसे आज तक याद है जब वह छोटी सी थी। मालकिन के पति नें उन्हें कैसे धक्का दे कर मारा था अगर उसकी मां इतनी ही बुरी थी तो मालकिन को बचानें के लिए अपनें आप चोट नहीं खाती।मां आज तक मुझे लेनेंनहीं आई। समय पंख लगा कर उड़ता गया उर्मी भी बड़ी हो चुकी थी उस दंपति परिवार ने ही उसे पाल पोस कर बड़ा किया था वह अब अपनी मां को भी संभालती थी उसकी मां को अभी भी अपनी बेटी के बारे में कुछ भी याद नहीं था उसे तो केवल यह यह ज्ञात था की उर्मी ही उसकी बेटी है। उर्मी की शादी भी उन परिवार के लोगों नें करवा दी थी। वह लड़का भी उर्मी को बहुत ही प्यार करता था।
एक दिन उर्मी अपनी मां के साथ घुमते घुमते उसी शहर में आ गई थी जिस शहर में उसकी बहन रहती थी। उसे थोड़ा थोड़ा याद आ रहा था। सुबह जब वह उठी तो उसकी मां उसे कहीं नहीं मिल रही थी। उसकी मां न जानें कहां चली गई थी। उर्मी नें जोर से अभि को आवाज लगाई जल्दी से बाहर आओ मां न जानें कहां चली गईं। उर्मी की आंखें भर आई। अभि बोला शायद मां को यहां आ कर कुछ याद आ जाए इसीलिए मैं उन्हें यहां लेकर आया। तुम डरो मत वह जल्दी ही मिल जाएगी। रमिया चलते चलते एक घर के पास पंहूंच गई थी।वहां पर शहनाई की आवाज आ रही थी। काफी लोग इधर उधर घूम रहे थे। रमिया को लगरहा था उसकी बेटी की शादी है स्टेशन पर ट्रेन के आने का आभास होता था। रूपाली नें अपनी बेटी काली को पूर्वी कह कर आवाज दी। पूर्वी दौड़ कर आई बोली मां क्यों बुला रही हो। उसकी मां बोली बेटा न जाने हमारे घर के बाहर एक औरत मेरे सामनें बेहोश हो कर गिर गई। अन्दर से फर्स्टरेड का सामान ले आना। अरे! इसके सिर से तो खून बह रहा है। उसे पट्टी कर देती हूं आज तुम्हारी बारात अपनें वाली है। पूर्वी बोली मां मुझे काली कह कर बुलाओ मेरी मां मुझे काली कह कर बुलाती थी। रूपाली बोली काली बेटा जल्दी करो। रूपाली नें जैसे ही काली कह कर उसे आवाज दी वह औरत भी बोली काली काली कहां हो। उसे ढूंढते ढूडते उर्मी भी पंहूंच चुकी थी। वह रूपाली को बोली यह मेरी मां है। उसे सुबह से खोज रही हूं। न जानें कहां चली। गई। रमिया फिर से बेहोश हो गई थी। काली नें जब उस अजनबी औरत को काली काली कह कर पुकारा वह उसके चेहरे को गौर से देखनें लगी। वह उठ गई थी। उसनें काली को नहीं पहचाना। काली की आंखों से आंसू आ गए मां नें मुझे पहचानने के बावजूद मुझे कुछ नहीं कहा। वह उसे क्यों छोड़ कर गई। उसनें अपनी मां रूपाली को कहा मां रहने दो। कुछ लोग जान कर भी अनजान बातें हैं। पूर्वी की नजर तभी एक लडकी पर पड़ी जो उस औरत को कस कर छाती सै लगा रही थी कह रही थी कि आप हमें बिना बताए क्यों गई। पूर्वी अपनी शक्ल सूरत वाली लडकी को देख कर हैरान हो गई बोली लगता है आप लोग यहां नये आए हो। तुम्हे देख कर मुझे अपनी बहन की याद आ गयी है।वह भी तुम्हारी जैसी ही दिखती थी। लेकिन वह मुझ से छोटी थी। मैंनें मां को पहचान लिया था। लेकिन जब मेरी मां न ं मेरी तरफ देखा भी नहीं तो मैं भी अपनी मां के बारे में गलत सोच बैठी।
उर्मी ने कहा कि उस की शादी को भी थोड़े ही दिन हुए हैं। मैं यहां पर अपनें पति के साथ घुमनें के लिए आई हूं। मेरी बचपन की यादें यहां से जुडी हैं। मेरी मां ने मुझे बहुत पहले बताया था। इसके सिवा कुछ भी याद नहीं है। रमीया उठ गई थी। वह उधर उधर जानें लगी। उर्मीउसे बुलाती रही। उर्मी बोली तुम खुशकिस्मत हो तुम्हारी मां तुम्हारे साथ है। एक मेरी मां थी जिसने मुझे काली समझ कर छोड़ दिया था।उर्मी बोली मां तो मां होती है वह कैसे अपनें बच्चों को छोड़ सकती है। शायद हो सकता है उन की कोई मजबूरी रही हो। देखो मेरी मां। वह मुझे पहचानती नहीं है। मैं जब छोटी सी थी हम दोनों गाडी में सफर कर रहे थे। मुझे हल्का हल्का याद है। मेरी मां मुझे कहानी सुना रही थी कि हमें जल्दी से अपना काम निपटा कर तुम्हारी बहन को लेनें आना है। वह बहुत खुश थीक्यों कि उन की मालकिन नें उन्हें अपनें भैया के पास जानें की अनुमति दे दी थी। मां गाडी मे पूछती रही स्टेशन आ गया क्यापरन्तु रेलवू स्टेशन पर बैठे बैठे बहुत देर हो ग्ई तब रेलवे गार्ड नें बताया मां जी आप तो गल्ती गाड़ी में बैठ गई। जल्दी उतरो। मां की आंखों में आंसू पहली बार देखे। उसनें मेरा हाथ कस कर पकडा और नीचे उतरने ही लगी थी वह मुझे बहुत ही उलझन मे दिखी। वह बोली बेटा मेरा हाथ मत छोडना। वह उतरनें लगी इसी उधेड़ बुन में उनका पांव पटरी पर फंसा एक बडे से पत्थर पर उसका सिर लग गया था। खून की नदियाँ बह निकली। मेरे भी चोट लगी थी मेरी चोट इतनी गहरी नहीं थी। कुछ लोगों कीमदद से मुझे और मेरी मां को एक परिवार नें बचा लिया। वह लोग बहुत ही अच्छे धे। मैरी मां की कभी यादाश्त वापिस नहीं आ सकी। उन लोगों नें मेरा पालनपोषण किया। मैं भी उनके का काम कर दिया करती थी। उनके लोगों नें मुझ से पूछा तुम्हारा क्या कोई है मैं क्या बताती मुझे न तो मामा का पता मालूम था। उन लोगों नें एक बेटी की तरह पालन पोषण किया। और शादी भी की। मैंनें शादी करवाते समय यह शर्त रखी मैं उसी लडके के साथ विवाह रचाऊंगी जो मेरी मां को भी स्वीकार करेगा। आखिरकार अभि नें मुझे पसन्द किया और मेरी मां को भी अपनी मां का दर्जा दिया। आज ही करनें पर वह यहां आए क्यों कि मां को उन्होंने गाजियाबाद कहते हुए सुना उतरो स्टेशन आ गया। इसलिए मां को वह यंहा लाएं हैं शायद उन का इस स्थान से कोई नाता हो। कंही तुम ही तो मेरी बहन नहीं हो। काश यह सच हो।
उर्मी जब यह कह रही थी तब पूर्वी नें पहचान लिया था कि वही औरत और कोई नहीं उसकी मां है। मैं तो मां के बारे में क्या क्या अनुमान लगा बैठी मेरी मां मेरे कालेपन के कारण मुझे छोड़कर चले गई। यह क्या वह तो उर्मी को भी नहीं पहचानती है। पूर्वी नें जल्दी से अपनी मां को सहारा दे कर कमरे में लिटाया वह उर्मी को बोली तुम ही मेरी छोटी बहन हो। मैं ही तुम्हारी अभागी बहन हूं काली। वह बोली मां नें मुझे नाम नहीं बताया था। दोनों बहनें आपस में गले मिली। पूर्वी नें भी अपनी बहन को सारी कहानी सुनाई। वह हर पल तुम दोनों को याद किया करती थी। काफी दिनों तक मां जब नहीं लौटी तो मालकिन नें मुझे कानूनी तौर पर गोद ले लिया ओर अपनी बेटी बना कर पाला। आज मैं एक डाक्टर बन चुकी हूं आज ही मेरी शादी है। पूर्वी नें रूपाली को कहा कि यही मेरी मां है और यह मेरी छोटी बहन है उर्मी। रूपाली रमिया को देख कर खुश हुई। उसे पता लग गया था कि रमिया की यादाश्त चली गयी है।
शादी खुब धूमधाम से सम्पन्न हुई। रमिया भी मुस्कुराते हुए उन्हें आशीर्वाद दे रही थी। उर्मी नें खुशी खुशी अपनी बहन को विदा किया। पूर्वी नें खुद अपनी मां का इलाज किया। एक दिन सचमुच उनकी यादाश्त वापिस आ गई। सबसे पहले याद आने ं पर रूपाली को कहा बीबी जी मेरी बेटी पूर्वी कहां है!वह उस समय अस्पताल गई हुई थी। रूपाली नें उन्हें सारी कथा सुनाई। शाम को जब पूर्वी घर आई वह अपनी मां के गले लगा कर बोली मेरा अनुमान सही था मेरी मां कभी भी गलत नहीं हो सकती। आप की दोनों बेटियाँ अपनें अपनें घरों में खुश हैं। मुझे तो एक नहीं दो दो मां का प्यार मिला है। मेरे मन से सारा मैल हट चुका है। मां आप अब मेरे साथ रह कर और कभी गुडिया के पास रह सकती हो। उर्मी भी लौट आई थी। अपनें दोनों दामाद के साथ रमिया खुशी अनुभव कर रही थी। खुशियाँ लौट आई थी।