संस्कार

मान्या 12वीं कक्षा की छात्रा थी। वह दौड़ते दौड़ते अपने पापा के पास आकर बोली पापा पापा। उसके पापा उसे हैरान होकर देख रहे थे। वह बोली पापा मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं। वह बोले बेटी बोलो। क्या कहना चाहती हो? , वह बोली पापा हमारे पास सब कुछ है। मैं चाहती हूं आप इस बार मेरे जन्मदिन पर मुझे गाड़ी उपहार में दो। वह बोले बेटी नहीं, मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा लेकिन एक शर्त पर। उसके पापा बोले बेटी अगर तुम इस बार अपनी कक्षा में टॉप करोगी तो मैं तुम्हें गाड़ी अवश्य लेकर दूंगा। वह बोली पापा मेरी सारी सहेलियां सभी के पास गाड़ी  है। सभी अपनी अपनी गाड़ी में कॉलेज जाती है मगर मेरे पास गाड़ी नहीं है। मैं चाहती हूं आप मुझे इस बार गाड़ी अवश्य भेंट करें। इसके अलावा मुझे कोई गिफ्ट नहीं चाहिए। उसके पापा बोले बेटा मैंने तो तुम्हें कह दिया कि इस बार अगर तुम टॉप करोगी तभी मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा।

मान्य गुस्सा होकर बाहर निकल गई। सबके पापा उनकी उनकी इच्छा को पूरी करते हैं। लेकिन मेरे पापा जो मुझे एक गाड़ी भी लेकर नहीं दे सकते। मान्या के पापा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। उनके जहन में अभी तक अपनी बेटी मान्या की बातें गूंज रही थी पापा मुझे इस बार गाड़ी चाहिए। वो ऑफिस जाते जाते सोच रहे थे ठीक ही तो है हमारा जमाना कुछ और था।

उनके मानस पटल पर सारी घटनाएं सारी यादें ताजा हो गई। वह एक छोटे से गांव में अपने पिता और माता के साथ छोटे से घर में रहते थे। 7भाई बहन और कमाने वाला एक। उनके पापा वह भी सुबह से शाम तक खेतों में काम करते।  सुबह सुबह मां चौका  करने के बाद सब को चाय के लिए पूछती। पहले गोबर से चूल्हे को लिप पोत कर फिर गाय का दूध निकाल कर तब कहीं जाकर चाय पीने को  मिलती। हमारे बच्चे तो जब तक बैड टी नहीं मिलती आंखे  ही नहीं खोलते। सुबह सुबह  4 किलोमीटर चलकर कुएं से पानी भर कर लाना पड़ता था। पापा सुबह कुएं पर पानी भरने के लिए बाहर जाते। हम  सब भाई बहन सूखे पत्तों और सूखी लकड़ियां इकट्ठे करते फिर हमाम जलाते बारी-बारी पंक्ति बनाकर नहाने के लिए लाइन लगाते। हम सब भाई बहनों को छः किलोमीटर पैदल चल कर घराट से आटा लाने जाना पड़ता था। तब कंही जा कर रोटी मिलती थी। रास्ते में खूब मौज मस्ती करते। बेरी के बेर खा कर अपना पेट भरते। खाना तो तब मिलता जब आटा घर आता।  चूल्हे के पास सारे परिवार के लोग और बच्चे बैठ कर आग सेकने का लुत्फ उठाते। गोबर के उपले बना कर उन कोसुखानें के लिए रखते थे ताकि आग जलाने में काम आए। घर के सारे लोग मेहनत करके कमाते। शादी में भी जाना होता तो 6 किलोमीटर पैदल चलकर। जो खातिर होती। पतलो पर खाना खाने में जो आनंद आता था वैसा तो होटल के खाने में गैस और चूल्हो पर भी खाने में भी नहीं आता। आज तो नहाने के लिए  गिजर का बटन ऑन किया। सब काम बैठे-बिठाए  हो गया। इंसान तो बैठा बिठाए सुस्त ही बनेंगा। वह कहां से मेहनत करने की सोचेगा। रेडियो पर विविध भारती प्रोग्राम  सुनते। 8:00 बजे सारे परिवार के लोग बैठकर हवा महल नाटक सुनते। रेडियो पर इन्तक्षारी सुनते। आजकल अपनें परिवार की तरफ  देखो सबकुछ पीछे छूटता जा रहा है

किसी के पास एक दूसरे के पास बात करने के लिए भी वक़्त नहीं है। नाश्ते के लिए भी सौ बार आवाज उठानी पड़ती है। हम सब परिवार के लोग चटाई लगाकर एक साथ खाने का आनंद लेते थे। आज  तो सब परिवार के लोगों के पास इकट्ठा  खाना खाने के लिए भी वक़्त नहीं है। सब के सब लोग हर घर घर में जब मन किया चाय पीने के लिए भी इकट्ठे नहीं बैठेंगे। बैठेंगे तो चाय की चुस्की लेते हुए कोई अखबार लेकर बैठ जाएगा या मोबाइल। आजकल इस मोबाइल  नें तो सब का बेड़ा गर्क कर दिया है।

सुबह को खाना या नाश्ते के लिए बुलाओ तो हाथ में मोबाइल। शाम को खाने के वक्त भी मोबाइल। बच्चे भी पीछे नंही हटते। चुपके चुपके मोबाइल पर गेम खेलने लग जाते हैं।छोटे छोटे बच्चो के माता पिता के पास अपने बच्चों से बात करने के लिए भी समय नहीं। पति पत्नी के पास अपने बच्चे के साथ बैठकर बातें करने के लिए भी वक़्त नहीं। वह कहता है पापा एक मिनट मेरे साथ खेलो मगर उस बच्चे के पापा कहते हैं आया इसे ले  कर जाओ। मेरा बहुत ही जरूरी काम है। पत्नी कहती है नौकर को मुझे भी आज जल्दी   जाना है। तू ही बच्चे के साथ खेलो। मुझे खाना बनाना है। बच्चा दुखी होकर नौकर के साथ खेल कर अपना समय व्यतीत करता है।

सब कुछ पीछे छूटता जा रहा है हमें अपने बूढ़े माता-पिता के संस्कारों को नहीं भूलना है। हम अगर अपने माता-पिता के संस्कारों को भूल गए तो हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे। कुछ ना कुछ उनके बनाए गए नियम हमें तरक्की के रास्ते जुटाने में हमारी मदद अवश्य करेंगे। मगर हमारा सोचने का नजरिया बदल गया है।

नहीं नहीं मैं अब पहले मैं अपने में सुधार करूंगा तभी मैं अपनी बेटी को कुछ करने के लिए कह पाऊंगा। कार्यालय पहुंचते ही शेखर थोड़ा उदास था मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। चपरासी को आवाज दी इधर आओ। आज का क्या क्या काम है? चपरासी आकर बोला साहब जी एक बात आज मैं आपका काम ठीक ढंग से नहीं कर पाया। वह बोला साहब मेरा बच्चा बीमार है। उसे अस्पताल लेकर जाना था। मेरी पत्नी के पास भी छुट्टी नहीं थी आया के पास छोड़ा था। अगर मैं छुट्टी ले लेता तो आप मेरी छुट्टी कर देते। मेरी पगार मे से काट देते। उस दिन मुझे महसूस हुआ कि कर्मचारी की आंखों में सचमुच का दर्द था जो मुझे नजर आया।

शेखर बोले जाओ तुम आज छुट्टी ले लो काम मैं देख लूंगा। चाय की चुस्की लेते हुए महसूस किया आज मुझे कहीं इसका दर्द महसूस हुआ है। चलो कोई बात नहीं।  इस ऑफिस की एक एक ईंट  और अपनें कारोबार  को जो मैंने मेहनत करके खड़ा किया है। पैसा प्राप्त होने पर थोड़े से   अहंकार की भावना  कहीं ना कहीं मेरे अंदर भी पनप गई थी। मैंने अपने पास  तीन तीन गाड़ियां रख दी थी।  मेरी बेटी मुझे गाड़ी में जाते देखती होगी। अपनी मम्मी को भी  गाडी मे औफिस जाते देखती होगी। तो उसके मन में भी अभी आया। मैं भी गाडी लूंगी।

नहीं, आज  मैं इन गाड़ियों को बेच दूंगा। चाहे मेरे पास काफी धन दौलत ईकटटठी हो गई है। आने  वाली पीढी को अपने बच्चों को भी मैं अपनी मेहनत के बल पर शौहरत अर्जित करना देखना चाहता हूं। मैं केवल अपने घर में एक ही गाड़ी रखूंगा। वह भी आवश्यकता पड़ने पर इस्तेमाल करूंगा।

आज से मैं एक साइकिल लूंगा। इतने बड़े व्यापारी को जब लोग साइकिल चलाते देखेंगे तो सैंकड़ों लोग मन में कटाक्ष करेंगे। मगर नहीं मुझे अपने आने वाली पीढ़ी को अपने संस्कारों के मूल्य आदर्श को  सिखाना है कि मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करने में जो मजा होता है वह बैठ बैठ कर यूं ही किसी की दौलत पर अधिकार जमाने से खुशी हासिल नहीं होती जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए अनेक समस्याओं  संघर्षों का सामना करना पड़ता है। तभी सफलता मिलती है।

शेखर घर पहुंचे तो उसकी पत्नी सुचेता बोली आज आप जल्दी घर आ गए। वह बोले आज मैं अपने परिवार के साथ वक्त  गुजारना  चाहता हूं। उसकी पत्नी श्वेता अपने पति की तरफ देख कर बोली क्या बात है? आप उदास क्यों हो? मुझे बताओ साथ में मिलकर समस्या का हल निकालते हैं। आज सचमुच में  ही उसने अपनी पत्नी की बात को ध्यान से सुना। शेखर ने मुस्कुराकर अपनी पत्नी की तरफ देखा उसकी पत्नी भी हैरान होकर अपने पति की ओर देख रही थी।

मान्या भी स्कूल से आ गई थी वह सुबह से अपने पापा से नाराज थी। वह कुछ नहीं बोली। चुपचाप कमरे में चली गई। उसके पापा ने मान्या के कमरे में जा कर  कहा बेटा क्या थोड़ी देर में मैं तुम्हारे पास बैठ सकता हूं? उसे अपने पिता का आज एक अलग सा रूप देखने को मिला। उसने पापा को कहा क्यों नहीं पापा? उसका गुस्सा तो मानो  ना जाने कहां  फुर्र से उड़ गया। वह भी मुस्कुरा कर अपने पापा के साथ बातें कर रही थी।

उसके पापा बोले सुबह जल्दी उठा करो। वह बोली पापा मैं रात को 3:00 बजे सोती हूं इसलिए मैं सुबह जल्दी नहीं उठ सकती। उसके पापा बोले बेटी तुम अपने उठने और सोने के समय में बदलाव लाओ। सुबह जब तुम जल्दी उठोगी तब तुम्हें पता चलेगा सुबह सुबह  जब तुम  सैरकरने चलोगी मैं और तुम्हारी मम्मी भी सैर करनें जाया करेंगे। आकर तुम अपनी मम्मी के साथ चाय बनाने में मदद करोगी। कभी तुम और कभी अंकित। दोनों मिलकर। कुछ दिन तो मान्या को उठने में समस्या हुई।  उसनें अपने उठने और सोने के समय में बदलाव लाया। वह सुबह जल्दी जल्दी उठने लगी। जिस बात को याद करने में इतना समय लगता था उसको याद करने में कम समय लगने लगा। रात को जल्दी सोने लगी।

टेलीविजन और मोबाइल का समय निश्चित कर दिया। पढ़ने के समय मोबाइल पर बात  नंही करती थी और ना कोई और बात।  धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा।

एक दिन सभी परिवार वालों को शेखर नें चौंका दिया। जिस दिन वह एक साइकिल लेकर घर आ गया। वह बोला मैं साइकिल में बैठकर ऑफिस जाया करूंगा। इससे व्यायाम भी होगा और पेट्रोल की बचत भी होगी। शेखर के दोस्त घर पर आए बोले। शर्मा जी क्या आपको व्यापार में घाटा हो गया है? क्या आपका शेयर मार्केटिंग में सब कुछ समाप्त हो गया? वह कैसे समझाएं लोगों को कि अभी तो उसे समझ आई है। हमें अपनी सोच के नजरिए में परिवर्तन लाना है। गाड़ी से भी हमने ऑफिस या घर ही पहुंचना है। पहुंचेंगे तो हम साइकिल से भी। पैसों की बचत भी होगी और पेट्रोल की बचत होगी।

जब हमारे देश के लोगों में जब यह समझ आ जाएगी। ना तो प्रदूषण की समस्या होगी। और हमारे आसपास का वातावरण भी खुशनुमा होगा। हमारी सेहत में भी सुधार होगा। ना कोई उच्च रक्तचाप का शिकार  होगा  ना कोई  हार्ट अटैक का खतरा जैसी बीमारियां। हमारे आने वाली पीढ़ियों को   हमें ही  यह समझाना होगा। कुछ एक दोस्तों ने तो शेखर की आदत को अच्छा माना। उनकी उसकी पत्नी श्वेता ने भी पैदल जाना स्वीकार कर लिया।

शेखर ने अपने ऑफिस में कहा कि मैंने अपने ऑफिस में कुछ बदलाव लाने की सोची है। अगर मेरे सारे कर्मचारी मेरा साथ देंगे तो इस नेक काम में सब कहीं ना कहीं इसमें हमारी सब की ही भलाई होगी। सारे कर्मचारी बोले साहब जी बताओ। शेखर ने कहा कि मैं अपने ऑफिस में एक दिन ऐसा निश्चित करेंगे जब हम अपने हाथों से बनाए हुए खाने का आनंद लिया करेंगे। सारे सारे मेरे कर्मचारी अपने अपने घर से एक एक चीज खुद अपने हाथ से बना कर लाएंगे और हम सब यहां इकट्ठा बैठकर खाया करेंगे। और हमारे कार्यालय की कुछ दूरी पर एक बावड़ी है वहां जाकर उसकी सफाई करेंगे। और बावली का साफ पानी पीने को मंगवाया करेंगे। अगर मेरे कार्यालय में किसी भी कर्मचारी का बच्चा बीमार होता है तो मैं उस बच्चे के लिए हमारे इतने सारे कार्यकर्ताओं की गाड़ी उपलब्ध होगी। उसकी सहायता करने के लिए मेरे ऑफिस में इतनी औरतें काम करती है जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं जब किसी बच्चे को जल्दी पहुंचना है तो सारे बच्चे इकट्ठे होकर एक एक कार्यकर्ता की गाड़ी का इस्तेमाल करेंगे। सबको शेखर की राय बहुत ही अच्छी लगी।

कुछ ही दिनों में उसने इतनी सफलता अर्जित की। उसके कार्यालय के कर्मचारी उस से इतने खुश हो गए। उनको मेहनत करने का उसने गुर सिखा दिया था।

मान्या का परीक्षा परिणाम आया तो उसने अपनी कक्षा में ही नहीं सारे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसके पापा बोले बेटी मुझे तुम पर गर्व है तुमने दिखा दिया कि हम अभी भी हमें अपने संस्कार नहीं भूले  हैं। हमने अपने बुजुर्गों की सीख को मिटने नहीं दिया। आज सचमुच में ही मैं गर्व से कहता हूं कि तुम मेरी होनहार बेटी हो। मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा वह भी तुम्हारी पसंद से। मान्या बोली पापा मेरी सिलेक्शन एक अच्छे से कॉलेज में हो गई है। मुझे गाड़ी नहीं चाहिए। आज मुझे पता चल गया है कि मेहनत से बढ़कर जिंदगी में कोई भी चीज नहीं है। मेहनत के बल पर सफलता अर्जित की जा सकती है। आगे चल कर वह एक आई एस औफिसर बनी।  

2 thoughts on “संस्कार”

Leave a Reply

Your email address will not be published.