सलाह

सुधीर को आज भी कोई भी काम नहीं मिला। वह  बहुत थक हार कर वापिस अपने घर की ओर मुड़ गया । रास्ते में चलते चलते सोच रहा था कि अगर आज वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया तो क्या होगा? उसका घर बार बच्चा माता-पिता सब कुछ  उस से छूट चुके थे ।अपने मन में सोचने लगा भगवान तू ने इंसान को इतना बेबस क्यों बनाया ? ‍थक हार कर एक जगह बैठ कर सोचनें लगा बस अब और नहीं इस बार अपनी पत्नी को मौत के मुंह से भी बचाना है क्या करूं ? आज तो चलो किसी का पर्स ही उड़ा देता हूं, कुछ रुपये तो मिलेंगे जिससे मेरी पत्नी की दवाइयां आ जाएगी। यह सोच ही रहा था कि उसे ज़ोर से ठोकर लगी अपनें को संभाला उसे तभी  सामने से आती हुई गाड़ी दिखाई दी ।

एक इंसान उस गाड़ी के नीचे आने वाला था। सुधीर ने अगर उसे धक्का नहीं दिया होता तो शायद वह बच नहीं सकता था। उसको बचाते बचाते हुए खुद सुधीर की बाजू घायल हो गई । उसने उस आदमी को तो बचा लिया मगर अपने चोट लगा बैठा। उस व्यक्ति नें सुधीर का धन्यवाद किया। वह आदमी एक दुकान का मालिक था। जल्दी से उसने अपनी गाड़ी जो उसने सड़क के दूसरी ओर खड़ी की थी उस में सुधीर को बिठाया और बोला भाई तुमने मेरी जान बचाने के लिए खुद अपनी जान की भी परवाह नहीं की ,वह बोला बाबू साहब गरीब हूं ,आज जाना कि दर्द क्या होता है। जब मेरे अपने एक-एक करके मेरा साथ छोड़ गए तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे तो इस दुनिया में अपने नहीं रहे अगर मैं थोड़ा सा भी किसी के लिए कुछ कर सकूं तो कम है।

उस ने सुधीर की ओर ध्यान से देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह कुछ परेशान था। उसने कारण पूछा तो सुधीर बोला साहब मेरी पत्नी अस्पताल में है । वह  ज़िन्दगी और  मौत के मूंह में जूझ रही है। मेरे पास भी धन दौलत सब कुछ था। भरा-पूरा परिवार था। एक दिन हम दोनों किसी शादी में गए थे। घर में अचानक आग लग गई। बच्चे सभी आग की लपेट में आ गए। कुछ भी नहीं बचा। सदमे से मेरी बीवी बहुत बीमार हो गयी। आज भी छोटी मोटी चोरी कर उसके लिए दवाइयां लाने का सो़च रहा था।। मैनें सोचा जब मेरी पत्नी ठीक हो जाएगी तब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। मैं अपनी पत्नी को बचाना चाहता हूं क्या करूं?

वह बोला कि तुम्हारी पत्नी किस अस्पताल में दाखिल है? तुम्हें रुपयों की जरूरत है तो मैं तुम्हें पैसे देता हूं। चोरी करना छोड़ दो। चोरी से कुछ नहीं मिलता। सुधीर बोला बाबू साहब कहने की बातें हैं जब आप पर किसी दिन गुजरेगी तब पता चलेगा जब आपको किसी दिन खाने को कुछ नहीं मिलेगा तब आप  भी चोरी करने से पीछे नहीं हटेंगें।

वह बोला मैंने तो ईमानदारी से जीवन-यापन किया है आगे भी करुंगा। तुम अगर  मेरी दुकान पर काम करना चाहते हो तो मुझसे कहो । तुमने मुझे बचा कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है। तुम्हारे किसी काम आ सका तो मैं अपने आप को खुशनसीब समझूंगा। बातों बातों में सुधीर को उस भले व्यक्ति नें अपना नाम सिद्धार्थ बताया और उसे अपना पता भी दिया।

जाते समय वह सुधीर को काफी रूपए भी थमा गया। सुधीर खुश हो रहा था कि चलो आज तो मैं अपनी पत्नी की दवाइयां ले जाकर उसे थमा दूंगा । कुछ दिन उसे रुपये-पैसे कमानें के लिए दर दर नहीं भागना पड़ेगा। वह जब अस्पताल पहुंचा तो डाक्टर ने कहा के उसकी पत्नी का ठीक हो पाना बहुत मुश्किल है। वह अपने बच्चों की अकाल मृत्यु का सदमा सहन नहीं कर पा रही।

आज उसे सब कुछ पिछला याद आ रहा था किस तरह उसने घूस ले लेकर बहुत सा धन इकट्ठा किया था ।उसके परिवार वाले उस से बहुत खुश थे। पर क्या फायदा हुआ? किस्मत का खेल भी अजीब है, बच्चे भी नहीं रहे और उनके वियोग में काम भी हाथ से छूट गया। हस्पताल से छुट्टी कर वह अपनी पत्नी को घर वापस ले आया। वहां एक टूटी सी झौंपड़ी थी।

वह खानें के लिए कुछ सामान लेनें बाहर जाता है। तभी अचानक  उसे एक छोटी सी बच्ची दिखाई दी ।उसके साथ कोई नहीं था। वह रो रही थी, वह लड़की रोते रोते  सुधीर  के पास आ कर कहती हैं अंकल अंकल मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है, कुछ खानें को दे दो। सुधीर ने उसे अकेला था कर पूछा के वह कौन है  और कहीं से आइ है। वह बोली मैं अपनें माता पिता  के साथ एक छोटी सी झोंपड़ी में रहती थी। एक दिन हमारी  झोंपड़ी में आग लगी  मेरे माता पिता जल कर मर गए।  बस्ती में जो  ज़िन्दा बचे वे सारे के सारे  लोग कहीं दूसरी बस्ती में रहने चले गए। मैं अकेली रह गई। कुछ दिन फुटपाथ पर गुजारे। जिस किसी को भी खाना खाते देखती सोचती वह बाबू मुझे कुछ न कुछ तो दें देंगें। आज दो दिन से मुझे कुछ भी खानें को नहीं मिला। सुधीर के सामनें अपनें परिवार का चेहरा आ गया। उस की मासूम सी बच्ची भी तो आग की भेंट चढ़ गई। वह जल्दी से दौड़ कर उस बच्ची के पास गया और उसे गले से लगाते हुए उसकी आंखों से अश्रुओं की धारा बहनें लगी।उसने उस लड़की का हाथ थामा। उसे अपने साथ अपने घर ले आया। घर आ कर उसने उसे भर पेट खाना खिलाया।  उस दिन से वह  सुधीर के साथ रहने लगी। एक बच्चे का प्यार पा कर सुधीर की पत्नी की तबीयत ठीक होने लगी थी। सुधीर सोचनें लगा एक तो बिमार पत्त्नी और ऊपर से वह अनाथ बच्ची उन दोनों के पालन पोषण की व्यवस्था के लिए उसे तो सिद्धार्थ से मिलना ही होगा। । एक दिन उसका कार्ड लेकर वह जब  बताए गए पते  पर पहुंचा तो सिद्धार्थ ने उसका आदर सत्कार किया । सिद्धार्थ बोला कि कैसे आना हुआ।उसने सारी बातें सिद्धार्थ को बता दी। मेरे भाग्य में एक छोटी सी बच्ची का साथ था। उसका अपना इस दुनिया में कोई नहीं है इसलिए मैं उसको अपने साथ घर ले आया। उसके साथ रहकर मुझे एक बेटी का प्यार मिला। उसमें मुझे अपनी बेटी  की झलक दिखाई दी। उस के हमारी जिंदगी में आनें से मेरी पत्नी की सेहत में  भी सुधार हुआ।

आप नें‌ एक दिन कहा था कि चोरी मत करना। मैंने चोरी का धंधा छोड़ दिया है। सिद्धार्थ बोला आज तो मैं जमींदार के यहां किसी काम से जा रहा हूं कल तुम मुझसे आकर मिल लेना कल से ही तुम मेरी दुकान पर काम करने आ सकते हो। सुधीर दूसरे दिन ही उसके दुकान पर काम करने आ गया। वह दिन रात मेहनत  कर काम करनें  लगा।  वह पूरी इमानदारी से उस की दूकान में काम करनें  लगा।

वह अपना पिछला वक्त सब कुछ भूल गया । दोनों  रानी को अपनी बेटी की तरह प्यार करनें लगे। इस तरह काफी साल व्यतीत हो गए। सुधीर ने अपना छोटा सा घर बना लिया था।

सुधीर और सिद्धार्थ दोनों बहुत घनिष्ठ मित्र बन  गए।

गांव के जमीदार  रामप्रताप  जब उन दोनों को देखते तो तारीफ करते नहीं थकते । कहते कि दोनों कितने प्यारे दोस्त हैं।रामप्रताप के पास बहुत सारी जमीन जायदाद थी । उसने अपने गांव में एक बूढ़े मुनीम को अपने जमीन के दस्तावेजों को देखने की ज़िम्मेदारी सौंप रखी थी। जो उसके सभी महत्वपूर्ण कामों को कर दिया करता था। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था ।जमीदार का काम ठीक से चल रहा   था एक दिन उसका मुनीम बहुत ही बिमार हो गया। वह अपने मन में सोचनें लगा कि मैं अब किस व्यकि के पास मुनीम का कार्यभार सौंपूं। यहां पर तो लोग बात बात में लड़ाई झगड़ा करते रहते हैं। मेरे दस्तावेजों को ठीक ढंग से कोई सुरक्षित नहीं रख पाएगा। मेरा सारा कार्य चौपट हो जाएगा। क्या करूं ? मुझे अपने काम की जिम्मेदारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को देनी होगी जो ईमानदार हो,समझदार हो । वह हर तरह से हर काम में निपुण हो। वह हरदम इसी तलाश में रहता था जिससे वह अपने कस्बे की जिम्मेवारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को सौंप सके जो कि उसके कार्य को अच्छी तरह से देख सके और उसे मुनीम का पद भी दे सके।  उसे कोई भी आदमी इस काम के लिए जंचता नहीं था।

एक दिन मुनीम ने ज़मीदार से कहा सिद्धार्थ और सुधीर  इन दोनों में से आप किसी को भी जमींदारी सौंप सकते हो। दोनों ही ईमानदार दिखते हैं।देखें क्या होता है। मैं सिद्धार्थ की परीक्षा लेता हूं और आप भी भेस बदल कर सुधीर की परीक्षा लें। एक दिन जमींदार ने साधारण आदमी का वेश बदला और घूमनें निकल पड़ा। उसनें अपनें मुनीमको साथ लिया और कहा कि तुम पता पता लगाओ कि मुनीम का पद कौन  संभाले के लिए तैयार है। आप तो बीमार रहते हो। मुनीम बोला कि आप निश्चिचत रहो। मुनीम नें एक बहुत ही वृद्ध दिखनें वाले बुढ़े का वेश धारण किया और  वह  नदी के किनारे एक गठरी उठा कर चलने लगा सिद्धार्थ पास से ही अपनी दुकान से घर जा रहा था।

उसकी पत्नी मायके गई थी।  मुनीम  नें जब  बूढ़े को देखा तो बोला  इतनें भारी  गठरी को क्यों उठा कर ले जा रहे हो। वह बोला कि बेटा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। तुम मेरी गठरी उठाकर ले जा सकते हो तो ले चलो। सिद्धार्थ को दया  आ गई बोला ठीक है। सिद्धार्थ  तो रईस व्यक्ति था । वह सोचनें लगा उस बूढ़े इंसान की मदद करना मेरा फ़र्ज़  है। वह बोला बाबा यह तो बताओ की इस गठड़ी में क्या है । बूढ़ा बोला कि इसमें ढेर सारे सिक्के हैं। तुम साथ साथ ही चलना तुम अगर सिक्के लेते चलते बने तो मैं तो कंगाल हो जाऊंगा । बुढ़ापे में तो कोई भी मुझे नहीं खिलाएगा। सिद्धार्थ बोला कि मैं एक ईमानदार आदमी हूं। मैं चोरी नहीं करता। मैंने अपने एक दोस्त को भी चोरी करने की आदत से छुटकारा दिलवाया । वह मेरे यहां पर काम करता है। बूढ़े ने सिद्धार्थ की ओर देखकर कहा ना जाने मुझे तुम पर  मुझे विश्वास हो चला है । तुम मेरी गठरी को उठा सकते हो। आगे-आगे सिद्धार्थ चलने लगा पीछे-पीछे बूढ़ा । रास्ते में सिद्धार्थ सोचनें लगा कि वह सिकके ढेर सारे होंगे । वह गठड़ी  भी बहुत ही भारी है। सिक्के नहीं नहीं मुझे  इस के सिक्को का कया करना। उसने  पिछे मुड़कर देखा  बूढ़ा पीछे-पीछे चला आ रहा था। आगे जाने पर सिद्धार्थ ने देखा कि बुढ़ा तो एक और गठरी उठाकर आ रहा था। वह बोला बाबा अभी तो तुम्हारे पास एक  ही गठड़ी थी। यह दूसरी कहां से आ गई । बूढ़ा बोला मै तो तुम्हारी  परीक्षा ले रहा था। मेरे पास दो गठडियां थी। एक मैनें झाड़ियों में छिपा दी थी। मैं सोच रहा था कि कहीं तुम मुझ बुढ़े को चकमा दे कर भाग जाओगे तो एक तो मेरे पास बच ही जाएगी। तुम बहुत ही भले इन्सान हो । बूढा बोला दूसरी  गठडी में  मेरे खून पसीने की कमाई है। इसमें सोने के सिक्के हैं ।यह तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। सिद्धार्थ बोला तो आईस्ता आईस्ता चलते रहो। ।लेकिन वह आसानी से चल नहीं पा रहा थ।

बूढा सिद्धार्थ को रोककर बोला अच्छा बेटा चलो तुम ही उठा लो ।मेरे भाग्य में अगर यह  कमाई नहीं होगी तो ना सही अगर यह मेरे भाग्य में होगी तो मुझे ही मिलेगी ।सिद्धार्थ बोला मुझ पर तो आपको विश्वास करना  ही होगा।

मेरे पास इतना रुपया पैसा है मुझे तुम्हारे  चांदी के सिक्कों की क्या पड़ी है। भारी बोझ को उठाते उठाते सिद्धार्थ के कंधे थक गए थे । सिद्धार्थ सोचने लगा कि सचमुच में ही इसमें सोने के सिक्के होंगे । मैं अगरं इस बूढ़े आदमी को पानी में धक्का भी दे  दूंगा तो भी कोई मुझे नहीं देखेगा और मुझे बहुत सारे सिक्के हासिल हो जाएंगे ।कौन सा मुझे यहां पर कोई देख रहा है । मैं इन सोने के सिक्कों को इकट्ठा करके और भी अच्छा बड़ा महल बना दूंगा। मैंने अपने दोस्त को तो सीख दे डाली कि चोरी नहीं करनी चाहिए लेकिन इतना माल हाथ आने पर मैं इसको कैसे गंवा सकता हूं। यह बूढ़ा तो मुझे पहचानेगा भी नही।इसकी आंखों से तो अच्छे ढंग से दिखाई भी नहीं देता और यह चल भी लंगड़ा लंगड़ा कर रहा है ।वह तो मुझे पहचानने से रहा

किसी के पास  सबूत नहीं होगा कि यह सिक्के बूढ़े के हैं। भला बेचारा बूढ़ा मेरा कुछ भी नहीं कर पाएगा। यह सोचकर वह जल्दी जल्दी घर की ओर कदम बढ़ाने का साहस करनें लगा। बूढ़ा बहुत ही पिछे रह गया था।मुनीम  जमींदार के पास वापिस आ गया था।वह जमीदार को बोला आप  हर रोज सिद्धार्थ और  सुधीर की प्रशंसा करते करते थकते नहीं थे।आज मैन भीें इन की परीक्षा ले डाली। जमींदार बोले, सौरभ  तो भला आदमी है। इसकी परीक्षा तो मैं ले चुका हूं

सिद्धार्थ नें घर में जाकर देखा तो उसके घर में कोहराम मचा हुआ था उसके घर का सारा सामान चोर ले गए थे। सब कुछ नष्ट हो गया था ।उसकी तिजोरी टूटी हुई थी ।उसकी पत्नी मायके गई हुई थी ।वह भी वापिस घर आ चुकी थी। वह रोनी सूरत बना कर अपने पति से बोली कि हाय! हम कंगाल हो गए । हम अब कहां रहेंगे । सिद्धार्थ बोला कोई बात नही आज मेरे हाथ ढेर सारे सोनें के सिक्के हाथ लगे हैं। रास्ते में एक बूढ़ा आदमी गठरी   लिए चला आ रहा था उसने मुझसे कहा कि इन गठड़ी को उठाकर ले चलो तो मैं तुम्हें ₹100 दूंगा ।100 के लालच में मैंने उसकी गठरी उठा ली लेकिन उस को चकमा देकर मैं घर आ गया।।सिद्धार्थ की बीवी एक बहुत ही नेक महिला थी, बोली आपको चोरी नहीं करनी चाहिए थी। आप दूसरों को तो उपदेश देते हो लेकिन अपने आप  तो उस पर अमल नहीं करते जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। वह बोली मैं आपको यह गुनाह नहीं करने दूंगी उसने उठाकर वह गठरी बाहर जोर से पटक दी। उसमें से मिट्टी के बड़े-बड़े ठेले निकले ।यह देखकर सिद्धार्थ हैरान रह गया यह क्या  जिसे वह सोनें चांदी  के सिक्के समझ रहा था वह तो मिट्टी के ठेले निकले‌। वह सिर पकड़ कर बैठ गया।

उसकी पत्नी जब बाहर आई तो उसने उस मिट्टी के ढेरों में से एक कागज निकाला । उस कागज में लिखा था लालच करने वालों को कभी सुख नहीं मिलता है ।तुम लालच नहीं करते तो जमीदार के यहां पर तुम  ही  मुनीम तैनात होते । दूसरे दिन सिद्धार्थ ने देखा कि सुधीर को जमीदार ने  मुनीम का पद सौंप दिया था।

मुनीम के पद पर तैनात होकर वह अपने दोस्त सिद्धार्थ को मिलने  उस के घर आया  तो बोला आज मैं आपको आपके द्वारा दीऐ हुए कर्ज़ की कीमत अदा करने आया हूं। सिद्धार्थ अपने किए पर बहुत ही शर्मिंदा था ।वह  सुधीर के गले लग कर बोला भाई तुम ठीक ही कहते  सब कुछ होते हुए भी  मैंंलालच के फेर में पड़ गया।अपने आप को लालच के फेर से रोक नहीं सका।जिसका नतीजा आज मेरे सामने है।उसने भी चोरी ना करने का फैसला कर लिया ।वह अपने दोस्त से ।बोला कि मैंने तुम्हें तो सुधार दिया मगर मैं लालच में पड़कर अपना सब कुछ गंवा बैठा। मुझे सबक मिल चुका है मैं मेहनत के बल से एक दिन फिर से कमा कर अपनी खोई हुई संपत्ति को वापस  पा कर ही रहूंगा।

रानी दौड़ कर सुधीर के पास आ कर बोली आप इन को भी अपनें साथ  इस घर में आश्रय दे दो बाबा।बाबा एक दिन आप को मुश्किल के वक्त इन्होनें अपनें पास नौकरी दी थी आज आप की बारी है।इस मुश्किल की घड़ी में आप अपनें दोस्त की मदद नहीं करोगे तो वह गुमराह हो जाएंगे। सिद्धार्थ रानी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर  बोला भगवान ऐसी बेटी सब को दे। सुधीर  सिद्धार्थ को बोला ऐ दोस्त गले लग जा। जल्दी से अपना सामान समेट कर मेरे साथ रहनें आ जा।भाभी को भी साथ लेता आ।हम सब मिलजुल कर एक साथ छोटी सी दुनिया बसाएंगे।।एक साथ सारा परिवार मुझे  वापिस मिल गया है।रानी खुशी से तालियां बजाती हुई बाहर निकल गई।घर में खुशियां एक बार फिर दस्तक दे चुकी थीं।सुधीर को आज भी कोई भी काम नहीं मिला। वह  बहुत थक हार कर वापिस अपने घर की ओर मुड़ गया । रास्ते में चलते चलते सोच रहा था कि अगर आज वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया तो क्या होगा? उसका घर बार बच्चा माता-पिता सब कुछ  उस से छूट चुके थे ।अपने मन में सोचने लगा भगवान तू ने इंसान को इतना बेबस क्यों बनाया ? ‍थक हार कर एक जगह बैठ कर सोचनें लगा बस अब और नहीं इस बार अपनी पत्नी को मौत के मुंह से भी बचाना है क्या करूं ? आज तो चलो किसी का पर्स ही उड़ा देता हूं, कुछ रुपये तो मिलेंगे जिससे मेरी पत्नी की दवाइयां आ जाएगी। यह सोच ही रहा था कि उसे ज़ोर से ठोकर लगी अपनें को संभाला उसे तभी  सामने से आती हुई गाड़ी दिखाई दी ।

एक इंसान उस गाड़ी के नीचे आने वाला था। सुधीर ने अगर उसे धक्का नहीं दिया होता तो शायद वह बच नहीं सकता था। उसको बचाते बचाते हुए खुद सुधीर की बाजू घायल हो गई । उसने उस आदमी को तो बचा लिया मगर अपने चोट लगा बैठा। उस व्यक्ति नें सुधीर का धन्यवाद किया। वह आदमी एक दुकान का मालिक था। जल्दी से उसने अपनी गाड़ी जो उसने सड़क के दूसरी ओर खड़ी की थी उस में सुधीर को बिठाया और बोला भाई तुमने मेरी जान बचाने के लिए खुद अपनी जान की भी परवाह नहीं की ,वह बोला बाबू साहब गरीब हूं ,आज जाना कि दर्द क्या होता है। जब मेरे अपने एक-एक करके मेरा साथ छोड़ गए तो मुझे महसूस हुआ कि मेरे तो इस दुनिया में अपने नहीं रहे अगर मैं थोड़ा सा भी किसी के लिए कुछ कर सकूं तो कम है।

उस ने सुधीर की ओर ध्यान से देखा तो उसे महसूस हुआ कि वह कुछ परेशान था। उसने कारण पूछा तो सुधीर बोला साहब मेरी पत्नी अस्पताल में है । वह  ज़िन्दगी और  मौत के मूंह में जूझ रही है। मेरे पास भी धन दौलत सब कुछ था। भरा-पूरा परिवार था। एक दिन हम दोनों किसी शादी में गए थे। घर में अचानक आग लग गई। बच्चे सभी आग की लपेट में आ गए। कुछ भी नहीं बचा। सदमे से मेरी बीवी बहुत बीमार हो गयी। आज भी छोटी मोटी चोरी कर उसके लिए दवाइयां लाने का सो़च रहा था।। मैनें सोचा जब मेरी पत्नी ठीक हो जाएगी तब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। मैं अपनी पत्नी को बचाना चाहता हूं क्या करूं?

वह बोला कि तुम्हारी पत्नी किस अस्पताल में दाखिल है? तुम्हें रुपयों की जरूरत है तो मैं तुम्हें पैसे देता हूं। चोरी करना छोड़ दो। चोरी से कुछ नहीं मिलता। सुधीर बोला बाबू साहब कहने की बातें हैं जब आप पर किसी दिन गुजरेगी तब पता चलेगा जब आपको किसी दिन खाने को कुछ नहीं मिलेगा तब आप  भी चोरी करने से पीछे नहीं हटेंगें।

वह बोला मैंने तो ईमानदारी से जीवन-यापन किया है आगे भी करुंगा। तुम अगर  मेरी दुकान पर काम करना चाहते हो तो मुझसे कहो । तुमने मुझे बचा कर मुझ पर बड़ा एहसान किया है। तुम्हारे किसी काम आ सका तो मैं अपने आप को खुशनसीब समझूंगा। बातों बातों में सुधीर को उस भले व्यक्ति नें अपना नाम सिद्धार्थ बताया और उसे अपना पता भी दिया।

जाते समय वह सुधीर को काफी रूपए भी थमा गया। सुधीर खुश हो रहा था कि चलो आज तो मैं अपनी पत्नी की दवाइयां ले जाकर उसे थमा दूंगा । कुछ दिन उसे रुपये-पैसे कमानें के लिए दर दर नहीं भागना पड़ेगा। वह जब अस्पताल पहुंचा तो डाक्टर ने कहा के उसकी पत्नी का ठीक हो पाना बहुत मुश्किल है। वह अपने बच्चों की अकाल मृत्यु का सदमा सहन नहीं कर पा रही।

आज उसे सब कुछ पिछला याद आ रहा था किस तरह उसने घूस ले लेकर बहुत सा धन इकट्ठा किया था ।उसके परिवार वाले उस से बहुत खुश थे। पर क्या फायदा हुआ? किस्मत का खेल भी अजीब है, बच्चे भी नहीं रहे और उनके वियोग में काम भी हाथ से छूट गया। हस्पताल से छुट्टी कर वह अपनी पत्नी को घर वापस ले आया। वहां एक टूटी सी झौंपड़ी थी।

वह खानें के लिए कुछ सामान लेनें बाहर जाता है। तभी अचानक  उसे एक छोटी सी बच्ची दिखाई दी ।उसके साथ कोई नहीं था। वह रो रही थी, वह लड़की रोते रोते  सुधीर  के पास आ कर कहती हैं अंकल अंकल मुझे बहुत जोरों की भूख लगी है, कुछ खानें को दे दो। सुधीर ने उसे अकेला था कर पूछा के वह कौन है  और कहीं से आइ है। वह बोली मैं अपनें माता पिता  के साथ एक छोटी सी झोंपड़ी में रहती थी। एक दिन हमारी  झोंपड़ी में आग लगी  मेरे माता पिता जल कर मर गए।  बस्ती में जो  ज़िन्दा बचे वे सारे के सारे  लोग कहीं दूसरी बस्ती में रहने चले गए। मैं अकेली रह गई। कुछ दिन फुटपाथ पर गुजारे। जिस किसी को भी खाना खाते देखती सोचती वह बाबू मुझे कुछ न कुछ तो दें देंगें। आज दो दिन से मुझे कुछ भी खानें को नहीं मिला। सुधीर के सामनें अपनें परिवार का चेहरा आ गया। उस की मासूम सी बच्ची भी तो आग की भेंट चढ़ गई। वह जल्दी से दौड़ कर उस बच्ची के पास गया और उसे गले से लगाते हुए उसकी आंखों से अश्रुओं की धारा बहनें लगी।उसने उस लड़की का हाथ थामा। उसे अपने साथ अपने घर ले आया। घर आ कर उसने उसे भर पेट खाना खिलाया।  उस दिन से वह  सुधीर के साथ रहने लगी। एक बच्चे का प्यार पा कर सुधीर की पत्नी की तबीयत ठीक होने लगी थी। सुधीर सोचनें लगा एक तो बिमार पत्त्नी और ऊपर से वह अनाथ बच्ची उन दोनों के पालन पोषण की व्यवस्था के लिए उसे तो सिद्धार्थ से मिलना ही होगा। । एक दिन उसका कार्ड लेकर वह जब  बताए गए पते  पर पहुंचा तो सिद्धार्थ ने उसका आदर सत्कार किया । सिद्धार्थ बोला कि कैसे आना हुआ।उसने सारी बातें सिद्धार्थ को बता दी। मेरे भाग्य में एक छोटी सी बच्ची का साथ था। उसका अपना इस दुनिया में कोई नहीं है इसलिए मैं उसको अपने साथ घर ले आया। उसके साथ रहकर मुझे एक बेटी का प्यार मिला। उसमें मुझे अपनी बेटी  की झलक दिखाई दी। उस के हमारी जिंदगी में आनें से मेरी पत्नी की सेहत में  भी सुधार हुआ।

आप नें‌ एक दिन कहा था कि चोरी मत करना। मैंने चोरी का धंधा छोड़ दिया है। सिद्धार्थ बोला आज तो मैं जमींदार के यहां किसी काम से जा रहा हूं कल तुम मुझसे आकर मिल लेना कल से ही तुम मेरी दुकान पर काम करने आ सकते हो। सुधीर दूसरे दिन ही उसके दुकान पर काम करने आ गया। वह दिन रात मेहनत  कर काम करनें  लगा।  वह पूरी इमानदारी से उस की दूकान में काम करनें  लगा।

वह अपना पिछला वक्त सब कुछ भूल गया । दोनों  रानी को अपनी बेटी की तरह प्यार करनें लगे। इस तरह काफी साल व्यतीत हो गए। सुधीर ने अपना छोटा सा घर बना लिया था।

सुधीर और सिद्धार्थ दोनों बहुत घनिष्ठ मित्र बन  गए।

गांव के जमीदार  रामप्रताप  जब उन दोनों को देखते तो तारीफ करते नहीं थकते । कहते कि दोनों कितने प्यारे दोस्त हैं।रामप्रताप के पास बहुत सारी जमीन जायदाद थी । उसने अपने गांव में एक बूढ़े मुनीम को अपने जमीन के दस्तावेजों को देखने की ज़िम्मेदारी सौंप रखी थी। जो उसके सभी महत्वपूर्ण कामों को कर दिया करता था। वह बहुत ही ईमानदार व्यक्ति था ।जमीदार का काम ठीक से चल रहा   था एक दिन उसका मुनीम बहुत ही बिमार हो गया। वह अपने मन में सोचनें लगा कि मैं अब किस व्यकि के पास मुनीम का कार्यभार सौंपूं। यहां पर तो लोग बात बात में लड़ाई झगड़ा करते रहते हैं। मेरे दस्तावेजों को ठीक ढंग से कोई सुरक्षित नहीं रख पाएगा। मेरा सारा कार्य चौपट हो जाएगा। क्या करूं ? मुझे अपने काम की जिम्मेदारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को देनी होगी जो ईमानदार हो,समझदार हो । वह हर तरह से हर काम में निपुण हो। वह हरदम इसी तलाश में रहता था जिससे वह अपने कस्बे की जिम्मेवारी किसी एक ऐसे व्यक्ति को सौंप सके जो कि उसके कार्य को अच्छी तरह से देख सके और उसे मुनीम का पद भी दे सके।  उसे कोई भी आदमी इस काम के लिए जंचता नहीं था।

एक दिन मुनीम ने ज़मीदार से कहा सिद्धार्थ और सुधीर  इन दोनों में से आप किसी को भी जमींदारी सौंप सकते हो। दोनों ही ईमानदार दिखते हैं।देखें क्या होता है। मैं सिद्धार्थ की परीक्षा लेता हूं और आप भी भेस बदल कर सुधीर की परीक्षा लें। एक दिन जमींदार ने साधारण आदमी का वेश बदला और घूमनें निकल पड़ा। उसनें अपनें मुनीमको साथ लिया और कहा कि तुम पता पता लगाओ कि मुनीम का पद कौन  संभाले के लिए तैयार है। आप तो बीमार रहते हो। मुनीम बोला कि आप निश्चिचत रहो। मुनीम नें एक बहुत ही वृद्ध दिखनें वाले बुढ़े का वेश धारण किया और  वह  नदी के किनारे एक गठरी उठा कर चलने लगा सिद्धार्थ पास से ही अपनी दुकान से घर जा रहा था।

उसकी पत्नी मायके गई थी।  मुनीम  नें जब  बूढ़े को देखा तो बोला  इतनें भारी  गठरी को क्यों उठा कर ले जा रहे हो। वह बोला कि बेटा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। तुम मेरी गठरी उठाकर ले जा सकते हो तो ले चलो। सिद्धार्थ को दया  आ गई बोला ठीक है। सिद्धार्थ  तो रईस व्यक्ति था । वह सोचनें लगा उस बूढ़े इंसान की मदद करना मेरा फ़र्ज़  है। वह बोला बाबा यह तो बताओ की इस गठड़ी में क्या है । बूढ़ा बोला कि इसमें ढेर सारे सिक्के हैं। तुम साथ साथ ही चलना तुम अगर सिक्के लेते चलते बने तो मैं तो कंगाल हो जाऊंगा । बुढ़ापे में तो कोई भी मुझे नहीं खिलाएगा। सिद्धार्थ बोला कि मैं एक ईमानदार आदमी हूं। मैं चोरी नहीं करता। मैंने अपने एक दोस्त को भी चोरी करने की आदत से छुटकारा दिलवाया । वह मेरे यहां पर काम करता है। बूढ़े ने सिद्धार्थ की ओर देखकर कहा ना जाने मुझे तुम पर  मुझे विश्वास हो चला है । तुम मेरी गठरी को उठा सकते हो। आगे-आगे सिद्धार्थ चलने लगा पीछे-पीछे बूढ़ा । रास्ते में सिद्धार्थ सोचनें लगा कि वह सिकके ढेर सारे होंगे । वह गठड़ी  भी बहुत ही भारी है। सिक्के नहीं नहीं मुझे  इस के सिक्को का कया करना। उसने  पिछे मुड़कर देखा  बूढ़ा पीछे-पीछे चला आ रहा था। आगे जाने पर सिद्धार्थ ने देखा कि बुढ़ा तो एक और गठरी उठाकर आ रहा था। वह बोला बाबा अभी तो तुम्हारे पास एक  ही गठड़ी थी। यह दूसरी कहां से आ गई । बूढ़ा बोला मै तो तुम्हारी  परीक्षा ले रहा था। मेरे पास दो गठडियां थी। एक मैनें झाड़ियों में छिपा दी थी। मैं सोच रहा था कि कहीं तुम मुझ बुढ़े को चकमा दे कर भाग जाओगे तो एक तो मेरे पास बच ही जाएगी। तुम बहुत ही भले इन्सान हो । बूढा बोला दूसरी  गठडी में  मेरे खून पसीने की कमाई है। इसमें सोने के सिक्के हैं ।यह तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। सिद्धार्थ बोला तो आईस्ता आईस्ता चलते रहो। ।लेकिन वह आसानी से चल नहीं पा रहा थ।

बूढा सिद्धार्थ को रोककर बोला अच्छा बेटा चलो तुम ही उठा लो ।मेरे भाग्य में अगर यह  कमाई नहीं होगी तो ना सही अगर यह मेरे भाग्य में होगी तो मुझे ही मिलेगी ।सिद्धार्थ बोला मुझ पर तो आपको विश्वास करना  ही होगा।

मेरे पास इतना रुपया पैसा है मुझे तुम्हारे  चांदी के सिक्कों की क्या पड़ी है। भारी बोझ को उठाते उठाते सिद्धार्थ के कंधे थक गए थे । सिद्धार्थ सोचने लगा कि सचमुच में ही इसमें सोने के सिक्के होंगे । मैं अगरं इस बूढ़े आदमी को पानी में धक्का भी दे  दूंगा तो भी कोई मुझे नहीं देखेगा और मुझे बहुत सारे सिक्के हासिल हो जाएंगे ।कौन सा मुझे यहां पर कोई देख रहा है । मैं इन सोने के सिक्कों को इकट्ठा करके और भी अच्छा बड़ा महल बना दूंगा। मैंने अपने दोस्त को तो सीख दे डाली कि चोरी नहीं करनी चाहिए लेकिन इतना माल हाथ आने पर मैं इसको कैसे गंवा सकता हूं। यह बूढ़ा तो मुझे पहचानेगा भी नही।इसकी आंखों से तो अच्छे ढंग से दिखाई भी नहीं देता और यह चल भी लंगड़ा लंगड़ा कर रहा है ।वह तो मुझे पहचानने से रहा

किसी के पास  सबूत नहीं होगा कि यह सिक्के बूढ़े के हैं। भला बेचारा बूढ़ा मेरा कुछ भी नहीं कर पाएगा। यह सोचकर वह जल्दी जल्दी घर की ओर कदम बढ़ाने का साहस करनें लगा। बूढ़ा बहुत ही पिछे रह गया था।मुनीम  जमींदार के पास वापिस आ गया था।वह जमीदार को बोला आप  हर रोज सिद्धार्थ और  सुधीर की प्रशंसा करते करते थकते नहीं थे।आज मैन भीें इन की परीक्षा ले डाली। जमींदार बोले, सौरभ  तो भला आदमी है। इसकी परीक्षा तो मैं ले चुका हूं

सिद्धार्थ नें घर में जाकर देखा तो उसके घर में कोहराम मचा हुआ था उसके घर का सारा सामान चोर ले गए थे। सब कुछ नष्ट हो गया था ।उसकी तिजोरी टूटी हुई थी ।उसकी पत्नी मायके गई हुई थी ।वह भी वापिस घर आ चुकी थी। वह रोनी सूरत बना कर अपने पति से बोली कि हाय! हम कंगाल हो गए । हम अब कहां रहेंगे । सिद्धार्थ बोला कोई बात नही आज मेरे हाथ ढेर सारे सोनें के सिक्के हाथ लगे हैं। रास्ते में एक बूढ़ा आदमी गठरी   लिए चला आ रहा था उसने मुझसे कहा कि इन गठड़ी को उठाकर ले चलो तो मैं तुम्हें ₹100 दूंगा ।100 के लालच में मैंने उसकी गठरी उठा ली लेकिन उस को चकमा देकर मैं घर आ गया।।सिद्धार्थ की बीवी एक बहुत ही नेक महिला थी, बोली आपको चोरी नहीं करनी चाहिए थी। आप दूसरों को तो उपदेश देते हो लेकिन अपने आप  तो उस पर अमल नहीं करते जिसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ रहा है। वह बोली मैं आपको यह गुनाह नहीं करने दूंगी उसने उठाकर वह गठरी बाहर जोर से पटक दी। उसमें से मिट्टी के बड़े-बड़े ठेले निकले ।यह देखकर सिद्धार्थ हैरान रह गया यह क्या  जिसे वह सोनें चांदी  के सिक्के समझ रहा था वह तो मिट्टी के ठेले निकले‌। वह सिर पकड़ कर बैठ गया।

उसकी पत्नी जब बाहर आई तो उसने उस मिट्टी के ढेरों में से एक कागज निकाला । उस कागज में लिखा था लालच करने वालों को कभी सुख नहीं मिलता है ।तुम लालच नहीं करते तो जमीदार के यहां पर तुम  ही  मुनीम तैनात होते । दूसरे दिन सिद्धार्थ ने देखा कि सुधीर को जमीदार ने  मुनीम का पद सौंप दिया था।

मुनीम के पद पर तैनात होकर वह अपने दोस्त सिद्धार्थ को मिलने  उस के घर आया  तो बोला आज मैं आपको आपके द्वारा दीऐ हुए कर्ज़ की कीमत अदा करने आया हूं। सिद्धार्थ अपने किए पर बहुत ही शर्मिंदा था ।वह  सुधीर के गले लग कर बोला भाई तुम ठीक ही कहते  सब कुछ होते हुए भी  मैंंलालच के फेर में पड़ गया।अपने आप को लालच के फेर से रोक नहीं सका।जिसका नतीजा आज मेरे सामने है।उसने भी चोरी ना करने का फैसला कर लिया ।वह अपने दोस्त से ।बोला कि मैंने तुम्हें तो सुधार दिया मगर मैं लालच में पड़कर अपना सब कुछ गंवा बैठा। मुझे सबक मिल चुका है मैं मेहनत के बल से एक दिन फिर से कमा कर अपनी खोई हुई संपत्ति को वापस  पा कर ही रहूंगा।

रानी दौड़ कर सुधीर के पास आ कर बोली आप इन को भी अपनें साथ  इस घर में आश्रय दे दो बाबा।बाबा एक दिन आप को मुश्किल के वक्त इन्होनें अपनें पास नौकरी दी थी आज आप की बारी है।इस मुश्किल की घड़ी में आप अपनें दोस्त की मदद नहीं करोगे तो वह गुमराह हो जाएंगे। सिद्धार्थ रानी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर  बोला भगवान ऐसी बेटी सब को दे। सुधीर  सिद्धार्थ को बोला ऐ दोस्त गले लग जा। जल्दी से अपना सामान समेट कर मेरे साथ रहनें आ जा।भाभी को भी साथ लेता आ।हम सब मिलजुल कर एक साथ छोटी सी दुनिया बसाएंगे।।एक साथ सारा परिवार मुझे  वापिस मिल गया है।रानी खुशी से तालियां बजाती हुई बाहर निकल गई।घर में खुशियां एक बार फिर दस्तक दे चुकी थीं।

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