सुख और दुःख की अनुभूति

पल्लवी के परिवार में उसका बेटा रामू। रामू को आवाज लगाई बेटा यहां आना। वह चिल्लाकर बोला मां क्या है? खेलने भी नहीं देती हो। नन्हा सा रामू वह अपनी मम्मी को इतना तंग करता था। लॉड प्यार ने उसे इतना बिगाड़ दिया था जब वह खाने को देती वह कहता नहीं मुझे चिप्स खाने है। बर्गर खाने हैं। उसकी मम्मी अपनी बेटी की हर फरमाइश को पूरा करती थी। उसे कभी भी नहीं कहती थी कि कि हमें यह चीजें नहीं खानी चाहिए। उसकी सहेलियाँ उस से कहती भी थी कि इतना लाड प्यार अच्छा नहीं होता पल्लवी को भी समझ में नहीं आता था। वह तो अपने बेटे रामू के हर  अरमान को पूरा करना चाहती थी। वह सोचती उसके कौन से 10 बच्चे हैं बच्चे तो ऐसे ही होते हैं। उनके  पास एक बिल्ली थी किटटू। उसको  भी वह अपने साथ साथ ही रखता था। उसकी मां उसका भी खूब ध्यान रखती थी। जब वह सैर करने उसे ले जाती तो किट्टू को भी साथ ले जाती।  उसको  भी शॉल ओढ़ कर।

 

पल्लवी के घर के पास मजदूरों के बच्चे खेला करते थे। एक बार पल्लवी की सास गांव में आई। वह पल्लवी को बोली बेटा  हमेंअपने बच्चों को इन बच्चों के साथ भी खेलने देना चाहिए। एक दिन एक मजदूर का बच्चा आकर रामू के साथ खेल रहा था। रामू के पास आकर बोला चलो खेलते हैं। उसके बाल बिखरे हुए थे सारे सिर में मिट्टी लगी हुई थी। उसने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और कहा इसके साथ खेलने की कोई जरूरत नहीं है। देखो कितना गंदा है। इस के कपडों से कितनी दुर्गंध आ रही है। तुम इन बच्चों के साथ नहीं खेलोगे। रामू चलो तुम मेरे साथ खेलोगे। उस की सास बोली बेटा माना तुम्हारे पास गाड़ी है बंगला है किसी वस्तु की कमी नहीं है। इन सब चीजों को पाकर इंसान को कभी घमंड नहीं करना चाहिए। ना जाने  ईश्वर का क्या खेल हो सकता है?। वह राजा को  रंकं भी बना सकता है और रंक को राजा भी। हमें कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए। इस छोटे से बच्चे को तो देखो बालों में मिट्टी ही तो लगी है। हम मिट्टी से ही हम पैदा हुए हैं और मिट्टी में ही हमें मिल जाना है। बच्चों को खेलने देना चाहिए। प्रवाह नहीं करनी चाहिए कि उसके चोट लगने जाएगी। सभी बच्चे एक जैसे होते हैं ना कोई छोटा ना कोई बड़ा।

 

मां जी आप तो रहने ही दो। मैं ही इसके साथ खेलती हूं। उसने रामू को उस बच्चे के साथ खेलने से मना कर दिया।  एक दिन बड़े जोर की आंधी तूफान चल रहा था। पल्लवी अपने बच्चे के साथ बाल्कनी में खेल रही थी। ठंड के दिन थे। वह मजदूर का बच्चा अपनी मां के साथ आया और बालकनी के पास बैठ गया। तभी अचानक रामू अपनी मम्मी के साथ किट्टू के साथ आया। उस  मजदूर बच्चे के पैर में जूते भी नहीं थे। शायद 2 दिन से कुछ भी खाया नहीं था। उसने जैसे ही किट्टू के लिपटी हुई शक्ल देखी उसने वह शहर उस किटटू के पास से लेनी चाहिए तभी पल्लवी ने रोक दिया बोली हमारी किट्टू की शौल है। उसका बेटा चिप्स का पैक्ट  ले कर लाया था। वह खा रहा था। वह भी बालकनी में बैठकर चिप्स खा रहा था। उस मजदूर औरत का बच्चा उसको  चिप्स खाते हुए देख रहा था।   दो तीन बिस्कुट खाकर उसने बचा दिए थे मजदूर का बच्चा इधर ही देखे जा रहा था  ताकि उसे भी एक बिस्किट खाने को अगर मिल जाता तो अच्छा होता। पल्लवी ने वह बिस्किट उठाकर किट्टू को डाल दिया। बच्चा देखता ही रह गया। पल्लवी  भी  उस मजदूर को खरा खोटा सुनाने में व्यस्त थी। तू तो आज शौल को चुराने के चक्कर में थी। वह बोली बीवी जी मैं ठंड में मर रही थी। मुझसे अपने बच्चे की हालत देखी नहीं जा रही थी। इसलिए मैंने सोचा क्यों ना अभी मैं अपने बच्चे को यह शॉल ओढा दूं। बाहर वर्षा हो रही थी इसलिए बाल्कनी में आ गई। मैं जब यहां से जाती तो यह शौल यहीं रख जाती। बच्चा ठंड के मारे कांप रहा था।

 

पल्लवी  डांट डपट कर बोली  आ जाते हैं यहां मांगने या चोरी करने। मजदूर औरत की आंखों में उसकी करुण पुकार  उसकी आंखों से झलक रही थी। उसने अपनी चादर फाड़ डाली और अपने बच्चे को ओढा दी।

 

दिन प्रतिदिन रामू  बिगड़ता ही जा रहा था स्कूल में एक दिन उसने एक बच्चे को गेंद मार दी। बड़ी मुश्किल से वह बच्चा बच गया। पल्लवी  नें सोचा कि अपने बेटे को कैसे सुधारा जाए? किसी ने उसे बताया कि कुछ दिनों के लिए गांव के वातावरण में रहेगा तो वह सुधर जाएगा। उसने अपने बेटे को सुधारने के लिए गांव जाने का निश्चय कर लिया। एक दिन वह अपने बेटे को लेकर अपने गांव जा रही थी। अपने गांव रतनपुर जा रही थी। रास्ते में बस खाई में गिरते गिरते बची। ठंड के दिन थे किसी ना किसी तरह बस में बैठे यात्रियों को बचा लिया गया। बस एक पहाड़ की खाई में गिरने ही वाली थी वहां पर एक पहाड़ी से लुढ़क कर बड़े से पत्थर से अटक गई थी। वहां दूर-दूर तक घना जंगल था। कहीं भी कोई दुकान होती जहां से रात को खाने को मंगवाया जा सकता था। या फोन करके सूचना दे सकती थी। सारे के सारे सारे यात्री वहां पर फंस गए। मोबाइल टूट चुके थे। सबके कपड़े जगह जगह   से फट  चुके थे और कपड़े धूल मिट्टी से सन गए थे। नन्हा सा  रामू भूख भूख चिल्ला रहा था। मां आपने मुझे खाने को नहीं दिया मैं आपके बाल खींच लूंगा। मुझे खाना चाहिए। वह अपनी मां के बाल खींच रहा था। उस बियाबान जंगल में खाना कहां से आता। 2 दिन वहीं पर हो गए।

 

उसकी नजर तभी अपनी पिछली सीट पर बैठी  एक मजदूर औरत पर गई। वह अपने बच्चे को लेकर बैठी थी बस खाई में लुढक जाने के कारण यात्रियों के कपड़े जगह-जगह से फट गए थे। पल्लवी की साड़ी भी फट चुकी थी आकाश के बालों में भी मिट्टी लगी हुई थी। वह तो बिल्कुल उन मजदूर बच्चों जैसा नजर आ रहा था। वह एक भिखारी की तरह लग रही थी जो भूख से छटपटा रही थी। उन्हें 2 दिन से खाने को कुछ भी नहीं मिला था। केवल पानी की एक बूंद  ही नसीब हुई थी। उसके सामने अपने घर की मजदूर औरत का चेहरा याद आ गया। कैसे वह ठंड में कांप  रही थी। उसने अपना दुपट्टा फाड़ कर अपने बेटे को ढक दिया था। मगर उसनें   तो उससे शौल भी छीन ली थी। उस बेचारी का उसमें क्या कसूर था।? वह तो अपने बच्चे को ठंड से बचाने का प्रयत्न कर रही थी।

 

पल्लवी का बेटा बुखार में तड़प रहा थाह वह बेहोशी की हालत में खाना खाना चिल्ला रहा था। पल्लवी ने अपना दुपट्टा फाड़ा और अपने नन्हे बेटे को उस से ढक दिया। अपने आप सारी रात ठंड से ठिठुरती रही। उसकी इस करुणा वेदना की चीत्कार उसके साथ वाली मजदूर औरत सुन रही थी। वह अपनी सीट के पास से आई बोली बीवी जी आपका बेटा भूखा है आप बड़े लोग हैं आपके पास तो बहुत कुछ होगा मगर इस वक्त आपके बच्चे को बड़ी जोर की भूख लगी है शायद इसी कारण उसे बुखार भी आ गया है। मैंने अपने बेटे के लिए एक लड्डू बचा लिया था। रास्ते में शादी की एक बारात जा रही थी उन लोगों ने हमें खाने के लिए लड्डू दिए थे उसमें से केवल एक लड्डू बचा था। मेरा बेटा आज नहीं खाएगा तो कोई बात नहीं। मेरे बेटे को तो भूखा रहने की आदत है। उसे कुछ नहीं होगा। आप यह लड्डू अपने बेटे को खिला दो।

 

उस भिखारिन के ऐसा कहने पर पल्लवी जोर जोर से रोने लगी। उस मजदूर औरत की बात सुनकर हैरान हो गई  मजदूर औरत बोली बीवी जी आप घबराते क्यों हो।? आपके बच्चे को कुछ नहीं होगा। थोड़ी देर बाद गाड़ी को बहुत सारे लोगों की मदद से ऊपर लाया गया। तूफान भी थम गया था। सुबह हो चुकी थी दूसरी बस आ चुकी थी। ड्राइवर ने कहा कि सब के सब लोग दूसरी बस में बैठ जाओ। जाते-जाते पल्लवी ने उस मजदूर भिखारी की तरफ प्यार से देखते हुए उसे कहा बहन यह लो मेरी तरफ से एक छोटा सा तोहफा। उसने अपना एक सूट जो लेकर गई थी उसे दे दिया और कहा धन्यवाद। गांव में थोड़े दिन रहने के बाद पल्लवी ने अपने बेटे को कुछ-कुछ सुधार दिया था। वह उसे अब बर्गर चिप्स  खाने को नहीं देती थी।  उसे एहसास हो गया कि इंसान के जब गाज अपने ऊपर गुजरती है तभी उसे दूसरों के दर्द का एहसास होता है। वह कुछ दिन गांव रह कर शहर आ गई थी।

 

उसने देखा उसके घर में मजदूर का बच्चा आकर खेल रहा था। पल्लवी अपने बेटे से बोली बेटा जाओ उस बच्चे के साथ खेलो। रामू बोला मैं उस बच्चे के साथ नहीं खेलूंगा। उसके कपड़े गंदे हैं। जगह-जगह से फटे हुए हैं। उसकी मां बोली बेटा कोई बात नहीं। जब हम उस दिन बस में गए थे तो आपके कपड़े भी मिट्टी में ऐसे ही हो गए थे। तो आप भी तो ऐसे ही लग रहे थे। अगर हम उसको साफ करेंगे तो वह भी अच्छा बच्चा बन जाएगा। चलो आज हम इस को नहलाते हैं। पल्लवी ने उस बच्चे को नहलाया और उसे साफ किया।  अपने बेटे रामू को कहा देखो अब यह वह भी तुम्हारी तरह लग रहा है। पर भी बोली बेटा अगर आप भी मिट्टी में खेलोगे तो आपके कपड़े भी गंदे हो जाएंगे मगर जो खुशी तुम्हें मिट्टी के खेल में खेल कर और इस बच्चे के साथ खेलकर मिलेगी वह तुम्हें कहीं प्राप्त नहीं होगी। तुम इस बच्चे के साथ ही खेलो। मां जी ठीक ही कह रहीं थी। मैंनें तो उन्हें भी खरीखोटी सुनादी थी। मैं उन से भी क्षमा मांग लूंगी।

 

चलो मैं तुम दोनों को चॉकलेट देती हूं। मजदूर औरत अपने बेटे को मालकिन के बेटे के साथ खेलता देख कर खुश हो रही थी। पल्लवी को महसूस हो रहा था कि आज ही तो उसे सच्ची खुशी मिली है। आज से पहले तो वह  भ्रम में जी रही थी। धन-दौलत की चमक दमक नें उसके मन में अहंकार की भावना उत्पन्न कर दी थी। उसे मजदूर औरत की वेदना समझ नहीं आई थी। चलो सही समय पर मुझे यह अंतर समझ में आ गया। उसका बेटा रामू भी उस छोटे से बच्चे के साथ खेल कर मुस्कुरा रहा था।

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