कौवा बिल्ली लोमड़ी और हिरन यह चार दोस्त थे। चारों मिल जुल कर रहते थे। वह कभी भी आपस में किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते थे। जंगल में वैसे तो बहुत सारे जानवर थे परंतु यह चारों दोस्त पास पास ही रहते थे। बिल्ली को तो एक शिकारी ने अपने घर में ही पाल रखा था। बिल्ली कभी-कभी अपने दोस्तों से मिलने आ जाया करती थी। एक दिन शिकारी नदी में जब मछली पकड़ने जाने लगा तब शिकारी को उसकी पत्नी ने कहा देखो मछली ही पकड़ कर लाना अगर हिरण का बच्चा तुम्हारी पकड़ में आए तो तुम उसको नहीं पकड़ोगे। क्योंकि एक बार एक हिरनी ने मुझे ही नहीं मेरे बच्चे को भी बचाया था। मैं हर रोज जब जंगल में जाती थी तो हर रोज हिरनी को रोटी देती थी। वह हिरणि भी उसकी ओर दौड़ कर यूं खिंची चली जाती थी। जैसे कि वह उसकी कोई सगी संबंधी हो।
एक दिन जब वह नदी को पार करके अपने मायके जा रही थी तो नदी की लहरों में मेरा बच्चा बहने लगा। उस हिरनी ने अपनी जान पर खेलकर मेरे बच्चे को बचाया। उस दिन मैंने प्रण लिया था कि मैं कभी भी किसी भी हिरण और हिरणी को नहीं खाऊंगी। तुम बाकी सभी जानवरों का शिकार कर सकते हो मगर हिरनी को मत पकड़ना। शिकारी मछली पकड़ने के लिए नदी की तरफ चल पड़ा। उसकी बिल्ली भी साथ में ही थी। शिकारी ने देखा एक भारी मछली उसके हाथ लगी थी। मगर जैसे ही उसने देखा वह क्या? वह मछली नहीं वह तो एक हिरनी का बच्चा था। उसको अपनी पत्नी की बात याद आ गई उसने उस हिरनी के बच्चे को देख लिया। उसने उस बच्चे को छोड़ दिया। वह बच्चा अपनी मां से बिछड़ गया था। शिकारी फिर से मछली पकड़ने जानेंलगा।
बिल्ली ने देखा हिरनी का बच्चा उसे कहीं नजर नहीं आया। शायद वहां से डर कर भाग गया था। बिल्ली ने उसे देखा। पेड़ के पास जाकर देखा। कोवे को देख कर कहा भाई कैसे हो। वहीं बैठ कर शिकारी का इंतजार करने लगी। हिरणी अपने बच्चों को ढूंढते-ढूंढते वहां पहुंची। वह जोर जोर से रो ही रही थी। उसने अपने बच्चे को पुकारा। पेड़ भी उस की व्यथा सुनकर बहुत ही दुखी हुआ। उसने अपने खाने की रोटी कौवे को डाली और पेड़ को अपने मुंह से पानी डाला। पेड़ पर वह हिरनी हर रोज मुंह में पानी डालकर लाती थी और उस पेड़ पर डाल देती थी।
उसने अपने खाने की रोटी कौवे और बिल्ली को डाल दी थी। वह रोते रोते बोली पेड़ भाई। पेड़ बोला तुम्हें क्याहुआ। हिरनी बोलीभाई तुमने मेरे बच्चे को यहां से जाते तो नहीं देखा। पेड़ बोला नहीं। कौवा भी बोला नहीं। यह सुन करवह जोर जोर से रोने लगी थी। पेड़ नें कुए को कहा कि यही हिरणि हमारी सब की सहायता करती है। आज हमें इसके बच्चे को अवश्य बचाना चाहिए। वह बोला ठहरो मैं अपनी दोस्त बिल्ली को पूछता हूं। पेड़ बिल्ली से बोला। बिल्ली बहन। हिरनी हर रोज अपनी रोटी हमें खिलाती है।
हर रोज न जानें कितने लोग पेड़ों को काटते हैं कभी भी वह हिरनी इस पेड़ को काटने नहीं देती। वह शाम होने तक यहीं रहती है और अपने मुंह में डाल कर मुझे पानी डालती है। हमें आज इसकी मदद अवश्य करनी चाहिए।
बिल्ली बोली मैंने अभी-अभी हिरनी के बच्चे को देखा था। जिसके घर में मैं रहती हूं वहां मछली का शिकार करता है। उसकी पत्नी ने आज शिकारी से कहा था कि तुम किसी भी हिरनी के बच्चे को नहीं मारोगे। बाकी चाहे तुम किसी भी जानवर का शिकार करना। शिकारी को आज मछली के बजाय हिरनी का बच्चा मिला। शिकारी नेंउसे नहीं पकड़ा। उसे छोड़ दिया।
शिकारी वहीं पर मछली को पकड़ रहा है। मैं यहां विश्राम कर रही हूं और अपने मालिक की राह देख रही हूं। कुआं बोला बिल्ली मौसी जल्दी जाओ और उस हिरनी के बच्चे को बचाओ तब तक मैं हिरनी को वहां भेजता हूं। वह अपने बच्चों को आगे ढूंढने निकली है।
मैंने उसे कहा कि हमने तुम्हारे बच्चे को नहीं देखा। बिल्ली दौड़कर उस स्थान पर पहुंची जहां हिरण के बच्चे को उसने देखा था। बिल्ली ने देखा कि लोमड़ी जल्दी-जल्दी आगे बढ़ रही थी। वह लोमड़ी का पीछा करने लगी। लोमड़ी से आगे कोई और था जिसको कि वह देख नही सकी जिससे लोमड़ी बातें कर रही थी।
बिल्ली से नहीं दिखाई दिया कि लोमड़ी किससे बातें कर रही है। बिल्ली को हिरनी का बच्चा दिख गया था। वह बहुत ही खुश हुई। इतने में लोमड़ी को हिरनी की मां आती दिखाई दी। लोमड़ी को हिरनी ने कहा। लोमड़ी बहन लोमड़ी बहन तुम ने मेरे बच्चे को यंहा से जाते तो नहीं देखा। लोमड़ी बोली मैंने तुम्हारे बच्चे को नहीं देखा।
मैंने किसी बच्चे की आगे करहानें की आवाज सुनी थी। हिरनी ने जब यह सुना तो वह दौड़ लगा कर आगे बढ़ गई। लोमड़ी बड़ी खुशी हुई मैंने उसे बुद्धू बनाया। मैंने उसके बच्चे को पत्तों के नीचे छुपा दिया है ताकि उसे कोई ना देखें। मैं उसे आराम से खाऊंगी। वह शिकारी से डर कर ही पत्तों के पीछे छिप गया है।
वह भागने का भी यत्न नहीं कर रहा है। शायद वह डर के मारे थक गया है। लोमड़ी भागते-भागते वापिस आई। बिल्ली ने उसकी हरकतों को देख लिया था। उसे सारा माजरा समझ में आ गया। वह लोमड़ी बड़ी चलाक है। हिरनी के बच्चे को खाना चाहती है। इसीलिए शायद इसनें हिरनी को आगे जाने दिया। बिल्ली नेंं सोचा। मुझे हिरणि के बच्चे को अवश्य बचाना चाहिए।।
बिल्ली ने देखा शिकारी आ चुका था। उसका निशाना नहीं लगा था। वह निशाना लगाने ही लगा था बिल्ली ने सोचा मैं अवश्य उस हिरनी के बच्चे को भी बचा लूंगी। जैसे ही निशाना शिकारी लगाने लगा बिल्ली आगे आ गई। तीर बिल्ली के लगा। खून की धार बह निकली। उसने हिरनी के बच्चे को बचाने के लिए अपने आप को आगे कर लिया था। अगर शिकारी तीर मारता तो तीर हिरनी के बच्चे को लगता उसने शिकारी को तीर चलाते देख लिया था। वह पत्तों के बीच में तीर चला रहा था। जल्दी में शिकारी ने बिल्ली को देखा। उसने जल्दी से तीर कमान खींच लिया। बिल्ली पीड़ा से कराह रही थी। शिकारी ने उसको जल्दी से घर ले जाकर उसकी मरहम पट्टी की और उसको बचा लिया।
दूसरे दिन बिल्ली आहिस्ता आहिस्ता चल कर उस स्थान पर पहुंची। उसने देखा लोमड़ी वहीं बैठी उस हिरनी के बच्चे की रखवाली कर रही थी। उसने हिरण के बच्चे को नहीं खाया था। लोमड़ी बिल्ली की तरफ देख कर बोली बहन मुझे माफ कर दो मैं अपनी दोस्तों को यूं ही नुकसान पहुंचा रही थी। तुम्हारी यह दया भावना देखकर मुझे अपने किए पर पछतावा हुआ। मैंने कसम खाई कि कभी भी मैं अपने दोस्तों को नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी। तुम्हें दोस्ती की कसम यह बात किसी को मत बताना। वर्ना लोगों का दोस्ती पर से विश्वास उठ जाएगा। बिल्ली बोली चलो तुम्हें पछतावा तो हुआ। हिरनी वहां पहुंच गई उसकी आंखों से रो-रो कर आंसू भी सूख गए थे।
कौवे ने कहां-कहां कर कहा। बिल्ली ने म्याऊं-म्याऊं कर कहा। लोमड़ी भी अपनी आवाज में कहने लगी बहन हम सब ने मिलकर तुम्हारे बच्चे को बचा लिया है। लोमड़ी ने पत्तों को हटाया। हिरनी अपने बच्चे के गले लग कर बोली मुझे छोड़ कर कभी मत जाना। मैं तो मरने जा रही थी। मैंने सोचा था कि अगर आज तुम मुझे नहीं मिलते तो मैं अवश्य ही मर जाती। तुम सब दोस्तों का मैं बहुत ही धन्यवाद करती हूं। तुमने मेरे बच्चे को ढूंढने में मेरी बहुत मदद की। भगवान तुम्हें सुखी रखें। खुशी-खुशी हिरनी जंगल में अपने निवास स्थान पर पहुंच गई। उसने अपने बच्चे को गले लगा लिया।