किसी गांव में एक बुढिया थी रहती।
अपनें दुःख दर्द गांव वालों से बयां किया करती।।
वह अकेले रह कर जीवन यापन किया करती। अपने बेटे बहु की रात दिन राह तका करती।। बुढापे में सबसे ज्यादा प्यार की थी जरुरत।
अपनो से मिलने की आस के सहारे की थी हसरत।।
एक दिन उसके बेटे और बहुको मां की याद हो आई।
अपने मां से मिलनें की तमन्ना उन्हें उनके गांव में खींच कर ले आई।।
बेटा अपनी मां को देखनें गांव था आया।
वहां अपनी मां की ऐसी हालत देख कर था पछताया।।
एक दिन मां बेटा थे पार्क में चले गए।
वहां पर बैठ कर इधर उधर विचरनें लगे।।
मां को बुढी होनें के कारण ऊंचा था सुनाई देता।
बार बार जोर से बात करनें पर ही सुनाई देता।।
मां चिडि़या को पेड़ पर बैठे देख अपने बेटे से बोली ये क्या है। ये क्या है।
बेटा बोला मां ये चिड़िया है। फिर बोली ये क्या है।।
बेटा बोला मां क्यों मजाक किया करती हो। अपने बेटे से अभी भी छल किया करती हो।। बुढिया फिर बोली बेटा ये पेड़ पर क्या है।
बेटा बोला क्यों तू बहरी हो गई है।
क्या तुझे सुनाई दिखाई नहीं देता।
ऐसी बातें करना तुझे शोभा नहीं देता।
मां बोली अच्छा- बडी सुन्दर चिड़िया।
सुन्दर सुन्दर चिड़िया।।
मां थोड़ी देर बाद फिर बेटे से बोली बेटा यह पेड़ पर क्या है।
बेटा अपना आपा खो कर बोला।।
मां अपना मुंह सोच समझ कर खोला करो।
मां चुप रहकर ही अपना काम किया करो।।
तुझे भूलने की बिमारी है हो गई।
इसी कारण तुम्हारी मति मारी गई।।
मेरा दिमाग है खराब कर दिया।
मेरा भेजा खा कर सिर है घुमा दिया।।
बेटे की बात सुन कर मां का गला था भर आया।
बेटे की बात सुन कर था कलेजा मुंह को आया।।
जब तक तू छोटा सा बच्चा था।
इसी पार्क में मेरे साथ घुमने आया करता था। यहां टहल टहल कर मुस्कुराया करता था।।
इसी पार्क में तुम नें मुझ से बीस पच्चीस बार प्रश्न पूछ कर ही दम लिया।
हर बार पूछ पूछ कर तुम्हारे तरह तरह के सवालों का था उतर दिया।।
आज तीन बार प्रश्न पूछने पर ही आग बबूला हो गए।
अपनी मां के अटपटे प्रश्नों से झल्ला उठे।।
बेटे को अपनी मां के ऐसे प्रश्न सुन कर अपने आप से ग्लानि हुई।
अपनी मां की बातों में सच्चाई की अनुभूति हुई।।
वह अपनें मां के चरणों पर गिर कर रो पडा। अपनी मां को गले लगा कर था घर की ओर चल पड़ा।।
मां आज मैं सत्य से रुबरु हो गया हूं।
अपनी भूल पर पश्चाताप कर रहा हूं।
मैनें आंखों पर फरेबी का चश्मा था चढा लिया।
आज इस अंहकार को सदा के लिए मिटा दिया।