मेहनती मनु

अगर इंसान में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो वह बड़े से बड़ा संघर्ष करके ऊंचाइयों के शिखर पर आसानी से पहुंच सकता है। इसके लिए उसमें सच्ची लगन मेहनत और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है, चाहे उसे कैसे भी परिस्थितियों से गुजर ना पड़े । अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए उसके कदम कभी भी डगमगाते नहीं हैं।

संघर्ष के सफर से ही यह कहानी शुरू होती है एक छोटा सा बच्चा आंखें मलता हुआ उठा वह केवल  तीन वर्ष का था जैसे ही वह सो कर उठा उसने देखा कि उसके चारों और औरतें इकट्ठे होकर जोर-जोर से रो रही है। वह मासूम क्या समझता था जिसको मारने का मतलब भी पता नहीं था ।उसकी मां उसको छोड़कर ऐसी जगह जा चुकी थी जहां से कोई इंसान अगर एक बार चला जाए तो वह कभी भी वहां से वापस नहीं आ सकता था ।अब तो वह बच्चा बिल्कुल बेसहारा हो चुका था उसके तीन भाई थे। वह उससे उम्र में बड़े थे ।मनु अपनी मां की लाश को ले जाता हुआ टुकुर-टुकुर कर देख रहा था उसके पिता सरकारी नौकरी पर कार्यरत थे।

 

घर में उन बच्चों के ताया ताई जी थे ,उनका भी साथ  आठ बच्चों का परिवार था। वह कभी ताई के पास रहता ,कभी अपनी नानी के पास गांव चला जाता ।एक बार जब वह नानी के यहां गया तो आते वक्त उसके नानाजी ने उसे एक आना दिया।उस समय एक आने की कीमत भी बहुत हुआ करती थी। बच्चे के नाना ने उसे कहा कि इंसान को धन दौलत कमाने के लिए रुपयों की जरूरत होती है। अगर इंसान के पास रुपए हो तो वह कुछ भी खरीद सकता है ।उस नन्हे बालक ने कहा नाना क्या कॉपी भी खरीद सकते हैं? उस मासूम के प्रश्नों का उत्तर देते हुए उसके नाना ने कहा था कॉपी भी टॉफी भी बिस्किट भी तब तो वह नन्हा सा बच्चा बहुत खुश हो गया और सोचने लगा कि मैं इस आने को किसी को भी नहीं दूंगा। वह उस आने को बहुत ही संभाल कर रखता था वह सोचने लगा कि इस आने को मैं  कंही सुरक्षित रख देता हूं ताकि इस आने को कोई मुझसे चुरा कर ना ले जाए। उसके घर के बाहर एक अमरूद का पेड़ था।

 

उसकी मां जब जिंदा थी तब वह अपने बच्चों को हर रोज एक कहानी सुनाया करती थी तब अपने भाइयों के साथ बैठकर वह भी कहानी सुना करता था। वह कहानी को बड़े ध्यान से सुना करता था उसकी मां ने कहा था कि हमें पेड़ों को हर रोज और पौधों को पानी दे तो बहुत सारे रुपए आ सकते हैं ।अब उस नन्हे से बालक ने सोचा क्यों ना मैं इस आने को अमरूद के पेड़ के नीचे दबा देता हूं ।मैं इस आने से बहुत सारे रुपए बना दूंगा। वह उस आने  को एक डिब्बे में छुपा कर रखता था। मनु ने उस आने को डिब्बे से निकालकर अमरूद के पेड़ के नीचे एक छोटा सा गड्ढा खोदकर उसमें उस आने को दबा दिया था ।यह बात उसने किसी को भी नहीं बताई थी ।उसके नानाजी ने उसे कहा था कि अगर तू उसे हर रोज पानी देगा तो तुझे उससे बहुत से रुपए मिल जाएंगे अब तो उसको अपनी मां की याद आई वह हर रोज पेड़ों को पानी देने लगा। वह सोचने लगा कि कुछ दिनों बाद मेरे पास बहुत सारे ऊपर हो जाएंगे। उसको किताबों और कॉपियों का बहुत ही शौक था ।वह भी अपने मन में सोचने लगा कि मैं भी अपने दोस्तों की तरह नई-नई कॉपियां लूंगा और मिठाइयां खरीदूंगा हर रोज स्कूल से आने के बाद वह अपने घर के बाहर पेड़ पौधों को अमरूद के पेड़ पर पानी डालने लगा। सुबह भी स्कूल जाने से पहले वह पेड़ों को पानी देना नहीं   भूलता था। इस बात को 8 महीने हो चुके थे।

 

एक दिन उस बच्चे ने स्कूल से आकर सोचा क्यों ना आज मैं इस पेड़ को   खोद कर देखता हूं? परंतु खुदाई करनें पर भी उसे वहां पर आना दिखाई नहीं दिया। वह रोता रोता हुआ अपनी ताई के पास आया और बोला तूने मुझे झूठ बोला इस आने में से कुछ भी नहीं मिला वह आना भी वहां से गायब हो चुका था। उसकी ताई ने उसे  प्यार से उसे गोद में बैठाते हुए कहा तो तुम इस पेड़ को हर रोज पानी देते हो। तुम्हारी मेहनत बेकार जाया नहीं जाएगी तुमने इतनी मेहनत करी है अब कुछ दिनों बाद इस पेडों से बहुत से मीठे मीठे अमरूद लगेंगे जब हम इन अमरूदों को फलों को बाजार में बेच देंगे  तो इन रुपयों से हमें बहुत कुछ खरीद सकते हैं अगर इसी तरह मेहनत करोगे तो एक दिन तुम बहुत बड़े ऑफिसर बन जाओगे। तुम्हारे पास अपनी गाड़ी होगी बंगला होगा नौकर-चाकर होंगे।

अब बच्चा धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था  कुछ कुछ समझ आने लगी थी। इन्सान अगर मेहनत करे तो कोई भी असंभव काम को भी संभव बनाया जा सकता है। उसने ठान लिया था कि अब वह खूब मन लगाकर पढाई करेगा।

 

स्कूल जाने के लिए उसे बहुत संघर्ष करना पड़ा।  पांचवीं कक्षा के बाद उसके गांव में हाई स्कूल बहुत दूर था। छठी कक्षा में उसके पिता ने उसे हॉस्टल में दाखिल करवा दिया। पांव में कभी जूते नहीं कभी ड्रेस नहीं। एक ही ड्रेस को खुद धो धो कर स्कूल जाना पड़ता था। हॉस्टल से भी स्कूल बहुत दूर था एक दिन खेल-खेल में एक बच्चे ने उसकी ड्रेस फाड़ दी अब तो उस मासूम के दिल पर क्या गुजरी खुद उसने अपनी कमीज सुई धागा लेकर  उस कमीज को खुद सिलाई कर पहना। जिसको उसने 3 साल चलाया पिता ने रुपया पैसा देने के इलावा बच्चों की कभी भी सुध नहीं ली।

 

एक दिन जब वह हॉस्टल से अपने भाई के पास आया था  कुछ दोस्तों ने उससे कहा कि आज हम पेड़ पर चढ़कर अमरुद खाते हैं तो सब बच्चों ने मनु को पेड़ पर चढ़ा दिया। उसने सब बच्चों के अनुरोध पर उसने बच्चों को खूब अमरुद खाने के लिए दिए।  उसके सब दोस्त अमरूद खाने के बाद उसको अकेला छोड़ कर सब के सब अपनें घरों को भाग गए। वह छोटा सा बच्चा पेड़ के ऊपर से नीचे गिर गया था। और उसकी आंखों में बुरी तरह कांटे घुस गए थे। और सिर से  भी खून बह रहा था परंतु जब वह नीचे गिरा तो उसके सिर से खून बह रहा था। उसने सोचा अगर घर वालों ने उसे देखा तो उसकी बहुत पिटाई होगी। वह रात को पेड़ के नीचे सारी रात सोता रहा सारी रात खून से लथपथ और उसकी आंखे तो पांच छह महीने बाद ठीक हुई।

 

मनु इतना होशियार था कि बच्चों को गणित के बदले में उनसे कॉपियां  ले लिया करता था। जब जब मनु ने 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली तब उसके पिताजी ने कहा कि अब मैं तुम्हें आगे नहीं पढ़ा सकता। बच्चा संघर्ष करके जीना सीख चुका था। उसने सोचा कि क्यों ना कहीं ना कहीं कोई इंटरव्यू दिया जाए।

 

उसने टाइप सीखने के लिए अपने पिता से रुपए मांगे। उसके पिता ने कहा कि तुम्हें टाइप सीखने के लिए मैं तुम्हें एक ही बार होता है दूंगा। बाकी अब तुम खुद      कमाओ और पढ़ो। बड़ी मुश्किल से टाइपराइटर वाले वाले के साथ दोस्ती करके टाइप सीखता था। जिस दिन कोई बच्चा टाइप सीखने नहीं आता था उस दिन अधिक देर तक उसकी जगह टाइप सीखता था। वह था  ही इतना मासूम और प्यारा की सब के मनो को मोहित कर लेता था। तीन महीने बाद उसने इंटरव्यू दिया और सेलेक्ट हो गया। और अब तो उसे सरकारी नौकरी भी मिल चुकी थी।

 

नौकरी पाकर वह बहुत खुश था अब वह नौकरी पाकर सोचने लगा कि अब मैं अपना पढ़ना जारी रखूंगा। प्राइवेट कॉलेज में दाखिला ले कर ऑफिस के बाद अपनी पढ़ाई को पूरी करुंगा। उसके पिता ने  वहां पर एक मकान किराए पर लिया हुआ था। जहां उसके पिता सर्विस करते थे। उसके पिता ने कहा कि तू सारा वेतन मुझे दे दिया करो और घर का सारा काम करके ऑफिस जाता फिर घर आकर प्राइवेट कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करता। इस तरह उसने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली।

 

एक बार गांव में किसी की शादी में जाना था बच्चे ने अपने पिताजी से कहा कि मेरे पास एक ही जोड़ी सूट है मैंने भी नए कपड़े बनवाने हैं परंतु उसके पिता ने कहा कि अभी मेरे पास रुपए नहीं है।  मनु ने कहा कि पिताजी मेरी वेतन में से ही सूट सिलवाने के लिए पैसे दो तो उन्होंने उसे साफ इन्कार कर दिया। मनु को अपने पिता की बात पर क्रोध आ चुका था क्योंकि पिता ने कभी बचपन से लेकर नौकरी करने तक उसकी कभी सुध नहीं ली थी। उस बच्चे ने अपने पिता से कहा आपको इस बार मेरी बात तो माननी ही होगी। मुझे इस बार कपड़े जरूर सिलवाने हैं ऑफिस में हर रोज लड़के नए-नए परिधान पहनकर आते हैं अगर मैं एक नया सूट सलवार लूंगा तो क्या बिगड़ जाएगा। अगले महीने जब मुझे बोनस मिलेगा तो वह रुपए आप रख लेना। अगर मैं सूट   सिलवाऊंगा तो वह सूट मुझे शादी में जाने के लिए भी काम आ जाएगा।

 

मनु के पिता इस बात पर उस से  नाराज हो गए। उन्होंने गुस्से में जाकर मनु से कहा कि तू यहां से चला जाता। मनु ने सोचा कि वह गलत बात अपने पिता की कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। बड़े बुजुर्गों की बातें तो हमें अवश्य माननी चाहिए मगर यह भी सच नहीं है कि बच्चे ही  हर दम गलत होते हैं कभी-कभी बच्चों के माता-पिता भी आपने व्यवहार के कारण गलत हो सकते हैं। मनु ने अपने पिता की बात नहीं मानी और वहां से चला गया अपने दोस्त के साथ कुछ दिनों तक उसके साथ रहा फिर सोचने लगा कि वह एक अलग मकान लेकर रहेगा। अब तो जब उसके पिता ने देखा कि उसका बेटा उसकी बात नहीं मान रहा है तो वह अपने बेटे को समझा बुझाकर किसी तरह वापस घर ले आए।  उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था।

 

मनु अपने संघर्ष के दम पर  एक दिन बहुत बड़ा वकील बना। वकील बनकर वह गरीबों के प्रति अपना फर्ज कभी नहीं भूला। गरीब व्यक्ति की सहायता करने के लिए वह हरदम दिलो जान से तत्पर रहता था। उसने अपनी काबिलियत के दम पर ऊंचाइयों की शिखर पर पहुंचकर बहुत ही नाम कमाया।

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