नदी के एक और छोटी सी पहाड़ी पर बहुत सी चींटियों का झुंड रहता था। वे सभी चीटियां झुड में रहकर खाना ढूंढने जाती थी ।बहुत समय तक वर्षा नहीं हुई ।चिंटीयों को बाहर खाना प्राप्त करने में कठिनाई हो रही थी। एक छोटी सी जीव और उस पर तपती दुपहरी धूप, खाना जुटाना उन सभी को बहुत ही मुश्किल था। काफी दिनों तक तो जो कुछ इकट्ठा किया हुआ था उसी को खा कर गुजारा कर रही थीं। नदी के एक और खेत में ,इधर-उधर जो मिलता वह खाकर गुजारा करने लगी। उनके पास खाना लगभग समाप्त हो चुका था ।वह सभी आपस में सोचने लगी इसी तरह अगर सूखा पड़ता रहा तो हमारा जीवन दुभुर हो जाएगा। हमें आने वाले समय के लिए कुछ ना कुछ भोजन का प्रबंध तो अवश्य ही करना पड़ेगा। एकदम विपदा आने पर हम क्या करेंगे।
सभी चींटियों ने मिलकर अपनी रानी मुखिया के पास जाकर कहा हम सब ने तय किया है कि वर्षा होने से पहले खाने का प्रबंध कर लिया जाए अगर हम शुरू से ही खाना जुटाने में लग जाए तब कहीं हम आराम से बैठ कर खा सकेंगे ।रानी चींटी को अपनी सखियों की बात बहुत ही अच्छी लगी ।उसने इस सुझाव के लिए सभी चींटियों की सराहना की और सभी के सभी एकदिन अपनें झुन्ड के साथ खाना तलाशने निकल पड़ी। उस दिन इतनी जोर की आंधी, तूफान, वर्षा ओले जमकर बरसे वी सारी की सारी चीटियां एक दूसरे से बिछड़ गईं। जब तूफान थमा तो उन्होंने अपने झुंड की सखियों को काफी ढूंढा लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। थोड़ी सी चीटियां ही शेष रह गई थी। गुमसुम सी होकर एक पेड़ के तने के पास सटकर बैठ गई थी। खाना प्राप्त करने में असमर्थ थी। सभी की सभी, जैसे ही तूफान थमा जो चीटियां जिंदा बच गई थी वह तूफान थमने पर चलने लगी ।अचानक उनमें से एक छोटी सी श्यामा चींटी अपने झुन्ड से अलग हो गई । अचानक उसे आज रह रह कर अपनी मां द्वारा कही हुई बातें याद आ रही थी।उसकी मां उसे कहती रहती थी कि बेटा खाना ढूंढने में मेरी मदद किया करो ।लेकिन आज उसे अपनी मां की भी सारी बातें सच साबित हो रही थी। उसकी मां उसे कहा करती थी कि बेटा हमें काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए। तुम सारा दिन अपनी सहेलियों के साथ घूमती रहती हो। कोई काम नहीं करती ।वह अपनी मां को हमेशा कहती थी कि मां अभी मेरे खेलने के दिन है ।आप हैं ना खाना लाने के लिए ।उसकी मां उस से कहती किसी दिन अगर मैं बीमार हो गई तो क्या होगा? तब मैं खाना कहां से जुटा कर लाऊंगी।वह अपनी मां की बातों को कभी गंभीरता से नहीं लेती थी। वह जब अपने झुन्ड में से भटक गई तो पहले तो उसकी आंखों में बहुत ही आंसू आए। उसे सारे दिन जब कुछ भी खाने को नहीं मिला और वह भोजन ढूंढते ढूंढते थक गई वह अपनी मां को याद करने लगी। रोते-रोते उसकी आंखों में आंसू आ गए थे एक एक अपनी मां के कहें शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे।
वह सोचने लगी कि अगर आज भी वह भोजन ढूंढने नहीं गई तो उसे भूखा ही रहने पड़ेगा, इसलिए वह भोजन की जुगाड़ में आईस्ता आईस्ता चलने लगी ।रास्ते में उसे एक मिश्री का दाना मिला। उस दानें को पाकर इतना खुश हुई कि मानो उससे गढ़ा खजाना मिल गया हो ।दुनिया की सबसे महान दौलत उसे मिल गई हो। उसने अपने पास आते हुए कुछ चींटियों को देखा। आती हुई वे चींटियां उसे अच्छी नहीं लग रही थी। उन को देख कर उसने अपनी चाल तेज कर दी। उसे तेज चलता देख कर उन चींटियों की रानी आगे आ गई।वह श्यामा चीटीं से बोली तुम कौन हो? वह बोली मैं अपने झुंड से अलग हो गई हूं। रानी चींटी बोली हम भी अपनें झुन्ड से अलग हो कर उन्हें ढुंडने निकल पड़ी। हमें बड़े जोर की भूख लगी है। क्या तुम्हारे पास खाने को कुछ है? उसके इस उनके इस प्रकार कहने पर श्यामा चींटी ने अपने मिश्री के दानें को एक पते
के नीचे छुपा दिया और बोली कि मेरे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है चलो मिलकर ढूंढते हैं ।जब मुझे दाना मिलेगा तब मैं तुम्हें अवश्य दूंगी ।
श्यामा चींटी बोली कि मैं भी अपनी मां को सारे तलाश करती फिर रही हूं ।मुझे मेरी मां नहीं मिली। मेरी मां मुझे कहा करती थी कि काम किया करो। मगर आज उसके ना होने पर मुझे उनकी एक एक बात याद आ रही है। सारी की सारी चींटियां बोली तुम्हारी मां तुम्हें मिल जाएगी। हम भी तुम्हारी मां को ढूंढने में तुम्हारी मदद करेंगी। वह अपने मन में सोचने लगी कि यह तो बहुत सारी चींटियां है इनको मैं अगर मिश्री का दाना दूंगी मेरे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। नहीं नहीं, मैं इन्हें खाने के लिए मिश्री का दाना नहीं दूंगी ।चाहे कुछ भी हो ।उसने वह मिश्री का दाना कस कर पकड़ कर चुपके से उन से बच कर एक पते के नीचे छिपा दिया था।
सारी की सारी चींटियां बोली कि चलो हम भोजन की तलाश में चलते हैं शाम को यहीं पर आकर आराम करेंगे ।इस जगह में बैठकर हमें आनंद मिलता है ।इस जगह से सुरक्षित कोई भी स्थान नहीं हो सकता ।शाम के समय हम यहीं पर लौट कर आएंगी।सबके सब खाना ढूंढने निकल पड़ी।
श्यामा चींटी ने अपना खाना पत्ते के नीचे छुपा दिया था ।जब वे सभी काफी दूर तक निकल गई तब अचानक पेड़ के तने के पास एक चींटी को फंसे हुए देखा हुए। वह चींटी पेड़ के तनें के बीचों-बीच फंस गई चीटियां आपस में बोली कि यहां पेड़ के नीचे कोई चींटी फस गई है। शायद यह मर गई है। श्यामा चींटी जब उस वृक्ष के तनें के पास गई तो उसे देखकर वह जोर-जोर से रोने लगी और उन सबको कहने लगी यह तो मेरी मां है ।मेरी मां को बचाओ। कृपा करके मेरी मां को बचाओ शायद यह जिंदा हो।मैं तुम्हारा उपकार कभी भी नहीं भूलूंगी। मुझे से मेरा सब कुछ ले लो। हम अगर उन्हें नहीं बचा पाई तो ?शायद यह तो मर चुकी है। एक चींटी बोली, चलो दूसरी ओर दाना ढूंढने चलते हैं ।
श्यामा चींटी रोते रोते गिड़गिड़ाते हुए बोली बचाओ कृपया मेरी मां को छोड़कर मत जाओ। मेरी मां नहीं मरी है। एक बार मेरी सहायता करो। शायद मेरी मां जिंदा हो। एक चींटीं बोली क्या पते के नीचे छिपाया हुआ मिश्री का दाना भी हमें दे दोगी?उनमें से एक चींटी बोली कि तुमने हमसे चोरी छिपे पते के नीचे मिश्री का दाना छुपाया था। हमने दाना छिपाते तुम्हें देखा था। हमने सोचा कि ठीक है हम भी तुम्हारी सहायता नहीं करेंगे। तुम अकेली हो। हम सब मिलकर तो खाना ढूंढ ही लेंगी।।हमें मालूम था कि तुम्हें भी तो सहायता के लिए किसी ना किसी की जरूरत पड़ेगी। आज तुम अपनी मां को बचाने के लिए हम से भीख मांग रही हो। काश तुम्हारी मां जिंदा हो ।तुम नहीं भी कहती तो भी मानवता के नाते हम तुम्हारी मां को अवश्य ही बचाते। लेकिन तुम्हें समझाना बहुत जरूरी था। जल्दी से मिलकर उस तनें को यहां से हटाते हैं। सब ने मिलकर जोर लगाया तो उस मजबूत टहनी को वहां से हटानें में सफल हो गईं। श्यामा चींटी की मां बेहोश हो गई थी। वह मरी नहीं थी।
सारी की सारी चींटियां तब तक वहां से नहीं गई जब तक की वे श्यामा चींटी की मां को लेकर उस स्थान पर नहीं गई जहां पर उस पेड़ की शाखा के पास वह रह रही थी। श्यामा चींटी को समझ आ गया था कि अकेला व्यक्ति कुछ भी नहीं कर सकता। ।सभी को साथ ले कर चलना बहुत जरूरी है ।एक होकर सभी के सहयोग से उसकी मां की जान बच गई।उसे समझ आ गया था कि कार्य करने के लिए सहयोग की आवश्यकता होती है ।उसने सभी चींटियों को मिश्री का दाना दे दिया ।आज उसे समझ आ गया था कि सच्चा सुख बांटने से मिलता है, दूसरों की मदद करने से मिलता है। वह हर बात उसे आज समझ में आ गई थी धीरे-धीरे उसकी मां ठीक हो गई थी ।आज उसे अहसास हो गया था, खुशियां बांटने से बढ़ती है ,और दुःख बांटने से कम हो जाता है।मिल कर कठिन से कठिन काम भी किया जा सकता है मिलकर रहने से कोई भी हम पर हानि नहीं पहुंचा सकता।उस दिन के बाद वह मिल जुल कर सभी कार्य करनें लगी।खुशी खुशी अपनें झुन्ड में हसीं खुशी से रहनें लगी।
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