उजाले की किरण

गौरव और गरिमा के परिवार में उनका बेटा अतुल। वे एक छोटे से मकान में रहते थे। उन्होंने अपने मकान की निचली मंजिल किराए पर दी थी। उनके मकान में जिन्होंने मकान किराए पर लिया था वह भी गौरव के साथ ही ऑफिस में काम करता था। गौरव एक बैंक में मैनेजर के पद पर नियुक्त था। उनका किराएदार एक क्लर्क के पद पर आसींन था उनके ऑफिस साथ साथ ही थे। उनके भी एक लड़का था। उसका नाम अखिल। अखिल और अतुल दोनों कम उम्र के थे। दोनों एक ही स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वह दोनों दोस्त इकट्ठे स्कूल जाते। उनके माता-पिता की भी आपस में खूब बनती थी। छुट्टी वाले दिन सभी मिल जुलकर सैर करने का लुफ्त उठाते थे। अतुल को अपने मम्मी पापा से इस बात को लेकर चिढ थी कि वह सदा अपने बेटे को कहते थे पढ़ाई कर पढ़ाई कर। तुम्हारे अखिल से ज्यादा अंक आने चाहिए। इस ज्यादा अंक लेने के चक्कर में बेचारा कुछ नहीं कर पाता था। वह बहुत पढ़ाई करने की कोशिश करता अपने दोस्त जितने अंक नहीं ला पाता। उसे अपने माता-पिता दुश्मन नजर आने लगे। जब भी उसके पापा मम्मी कहते पढ़ाई करो उनके सामने किताब याद करने के लिए पकड़ लेता मगर अच्छे ढंग से पढ़ नहीं पाता।

अर्धवार्षिक परीक्षा में भी अखिल के 20 अंक ज्यादा आए थे। उनके माता-पिता ने कहा वह भी तो तुम्हारी तरह ही बच्चा है। उसके कैसे ज्यादा अंक आए? तुम्हारे क्यों नहीं? अतुल का मन हुआ कि अभी उठकर कहीं चला जाए मगर अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहा था। तुम्हारेअंक ज्यादा नहीं आए। हम अपने रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाएंगे?अतुल अपने दोस्त से भी खफा खफा रहने लगा। उसका दोस्त आखिर वह तो उसे बहुत ही ज्यादा प्यार करता था। वह उसे कहता रहा क्या कारण है? मुझे बताओ कुछ दिनों से तुम बहुत परेशान लगते हो। अखिल बोला ठीक है अगर तुम मुझे नहीं बताओगे तो आज के बाद मैं तुम्हारे घर कभी-भी खेलने नहीं आऊंगा। तुमसे कभी बात नहीं करूंगा। अतुल रोने लग पड़ा आखिर अपने दोस्त अतुल को रोता देखकर वह भी रो पड़ा बोला मुझे बताओ मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं। अतुल बोला मैं तुम्हें बताता हूं मेरे मम्मी पापा मुझे हर वक्त पढ़ाई करने के लिए कहते रहते हैं। वह मेरी तुलना तुमसे करते हैं। वह कहते हैं देखो अखिल के कितने अच्छे अंक आते हैं? तुम्हारे क्यों नहीं।? तुम्हारी तरह वह भी तो बच्चा है। तुम मुझसे ज्यादा नंबर लाया करो। मैं तो उतना ही कर पाऊंगा जितना मैं कर सकता हूं। उसका दोस्त बोला मैं तुम्हारी समस्या सुलझा सकता हूं। यह तुम मुझ पर छोड़ दो। अब तो तुम मेरे साथ खेलोगे। अतुल खुश हो गया।

अतुल को तो मानों खुशी का खजाना मिल गया। उसने अपना दर्द कुछ हल्का किया। अखिल बोला मेरे मम्मी पापा तो मुझे कहते हैं कि जितनी तूने पढ़ाई करनी है उतनी ही पढ़ो। पढ़ाई करो पढ़ाई करने के साथ-साथ तुम्हारे खेलने के दिन है। यह बचपन का समय कभी लौट कर नहीं आता। हम तुम पर पढ़ाई का दबाव नहीं डालेंगे। अखिल बिल्कुल निर्भय होकर पढ़ाई करता था। उसके माता पिता कभी परवाह भी नहीं करते थे कि उनके बेटे को कितने अंक आए हैं? एक बार उनके बेटे के गणित में सातअंक आए थे अखिल के पिता ने अखिल को बुलाया और हंस पड़े मेरे शेर बच्चे गणित में सातअंक। अचानक बोले डरो मत। जब मैं तुम्हारी उम्र का था मेरे तो जीरो अंक आते थे। धीरे-धीरे मेहनत करने से सब कुछ हासिल हो जाता है। डरो मत अखिल की मम्मी ने कहा आज खीर बनाओ। अखिल नें सात अंक आने की वजह से अपनी मूल्यांकन पुस्तिका छिपा दी थी। उसके मम्मी पापा की नजर न पड़े। उसके मम्मी पापा ने तो उसके बस्ते में से उसकी मुल्यांकन पुस्तिका को देख कर कहा बेटा तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं। माता-पिता से कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं होती है। फेल भी तो हो जाते हैं। चाहे फेल हो या पास कोई फर्क नहीं पड़ता। मेहनत करते चलो डरो मत। यह वाक्य उसके पापा कहते अखिल बोला। अतुल, आकाश मेरे पापा ममी में भी ये समझ होती।
परीक्षा में अखिल नें जानबूझकर दो प्रश्न आते हुए भी छोड़ दिए थे।ताकि उसके दोस्त के उससे ज्यादा अंक आए। जब अतुल को पता चला कि अखिल ने जानबूझकर दो प्रश्न हल नहीं किए तो वह अपने दोस्त को गले लगाता हुआ बोला ऐसा दोस्त सबको दे। इस तरह दिन बीतते चले गए।

अखिल और अतुल भी दसवीं में पहुंच गए अखिल के पिता का स्थानांतरण दूसरे ऑफिस में हो चुका था। उन्होंने वहां से मकान भी बदल लिया। वह दूसरे शहर में चले गए। आज अतुल बहुत ही खुश था। क्योंकि उसकी दसवीं की परीक्षा का वार्षिक परिणाम आने वाला था। उसने खूब मेहनत की थी। अखबार सामनें मेज पर पड़ा था। उसका कलेजा धक धक कर रहा था। मेज के सामनें कोई कोई नहीं था। उसने अपना रोल नंबर देखा वह 80% अंको में पास हो चुका था। दूसरे पेज पर उसके दोस्त की फोटो छपी थी। वह सारे जिले में प्रथम स्थान लाया था। उसके 98% अंक आए थे। उसे अपने दोस्त के लिए खुशी भी हुई। उसके मम्मी पापा कमरे में आए और बोले बेटा। तुम्हारा परिणाम निकल गया है। तुम्हारे 80% अंक है। तुम्हारे दोस्त अखिल ने तो 98% अंक लेकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। वह फिर तुमसे बाजी मार गया। तुम कभी भी किसी विषय को गंभीरता से नहीं लेते हो। हम तुम्हें डॉक्टर बनाना चाहते हैं। वह बोला पापा मैं डॉक्टर नहीं बनना चाहता। मैं तो पायलट औफिसर बनना चाहता हूं। उसके पिता नाराज होते हुए बोले तुम्हें डॉक्टरी की पढ़ाई करनी पड़ेगी। भले ही तुम एक बार उसमे रह जाओ। हम तो तुम्हें डॉक्टर बनते हुए ही देखना चाहते हैं। मेरे सारे ऑफिस में मेरी सभी लोग इतनी प्रशंसा करते हैं। तुम्हारी क्या हमारी नाक कटाने का इरादा है? अतुल की मम्मी बोली मेरी सहेलियों में मेरा क्या रुतबा रह जाएगा। डाक्टरी तो तुम को करनी ही पड़ेगी।

अतुल का मन हुआ वहां वहां से कहीं दूर भाग जायेगा। अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था। शाम को खाने के लिए भी नहीं आया। उसके मम्मी पापा ने सोचा कि अपने दोस्तों से मिलने गया होगा। परंतु रात के 11:00 बज चुके थे अतुल घर नहीं आया। उसके मम्मी पापा भी परेशान हो रहे थे। वह निराश होकर एक सुनसान सड़क पर पहुंच गया। वह आगे ही आगे चला जा रहा था। उसे भी कुछ भी नहीं मालूम था वह कहां जा रहा है। काफी दूर निकल आया तो उसे वहां पर एक नदी दिखाई दी। उसने सोचा क्यों ना मैं नदी में छलांग लगा लूं।? मैं डाक्टरी कभी नहीं कर सकता। मैं पढ़ाई नहीं करूंगा। अगर कुदनें पर भी नहीं मरा तो क्या होगा। उसने देखा सामने उसी तरह के चेहरे वाला बच्चा गिरा पड़ा था। उसने उसकी नब्ज टटोली वह शायद मर चुका था। उसका चेहरा बुरी तरह झुलस गया था। पहचान में नहीं आ रहा था। उसने जल्दी से अपने कपड़े उस बच्चे को पहना दिए और उसके कपड़े स्वयं पहन लिए और एक पर्ची पर लिख दिया मम्मी पापा मैं सदा के लिए जा रहा हूं। मुझसे डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं होती। मुझे तो पायलट बनना था। मेरा सपना अधूरा ही रह गया। मेरे मरने के उपरांत मेरे मम्मी पापा को मत पकड़ना। मैंने मरने का फैसला खुद लिया है। मैं एक योग्य बेटा नहीं बन पाया। अलविदा अतुल।

अतुल के पापा मम्मी पापा अपने बच्चे को ढूंढते-ढूंढते थक गए। नदी के पास से एक बच्चे की लाश सुबह के समय पुलिस वालों ने उसके पापा को दी। कपड़ों से तो वह लग रहा था कि वह उनका ही बेटा है। क्योंकि कपड़े तो अतुल के ही थे। और एक सोसाईड नोट वह लिखाई भी अतुल की थी। अतुल के माता-पिता रोते-रोते घर वापिस आ गए। सारे जगह खबर फैल गई इतनी होशियार बच्चे ने आत्महत्या क्यों की? अतुल के माता-पिता अंदर ही अंदर घुट रहे थे। उनको पता था कि उन्होंने जबरदस्ती अपनी इच्छा अपने बच्चे पर थोपने का प्रयत्न किया था। उनके हाथ में पछताने के सिवा कुछ नहीं लगा था। उनका बेटा तो उनके हाथ से निकल गया था। अतुल ने नदी में छलांग लगा दी थी।

अतुल बहता बहता एक ऐसी जगह पहुंच गया था जहां पर उसे कोई जानता तक नहीं था। वहां पर एक दंपत्ति परिवार नैनीताल घूमने के लिए आए थे। उन्होंने बहते हुए बच्चे को देखा। उन्होंने उस बच्चे को बचा लिया। उनका कोई बच्चा नहीं था। उन्होंने उस बच्चे को बचा लिया। वे दंपत्ति घूमने के लिए आए थे। उन्होंने उस बच्चे को अपने साथ ले जाने का निश्चय कर लिया। बच्चा होश में आया तो उन्होंने उससे पूछा तुम कौन हो? उसने कुछ नहीं कहा उस दंपति परिवार ने सोचा उसे कुछ भी याद नहीं है। उन्होंने उसे कहा बेटा तुम्हें हम अपना बेटा समझ कर पाल लेंगे। तुम हमें बताओ कहां के हो? उसने अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अतुल नें उस परिवार की चुपके से बातें सुन ली थी। वह आंटी कह रही थी हमें तो लगा हमारा बेटा जिंदा होकर वापस आ गया है। हम इसे इतना प्यार देंगे जितना इसनें पढ़ाई करनी होगी हम उसे पढ़ाएंगे। उसे किसी चीज की कमी होने नहीं देंगे। उस परिवार की बातें सुनकर अतुल ने सोचा अच्छा मौका है मैं इन्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताऊंगा। मैं खूब पढ़ाई करूंगा। वहीं पर उनका बेटा होकर रहने लगा। धीरे-धीरे वह उनके परिवार में घुल मिल गया। आंटी को मां और अंकलको पापा कहनें लगा उसे कभी भी अपने मम्मी पापा की याद नहीं आई। कभी कभी अकेले में उन्हें याद कर लिया करता था। उन्होंने उसे पढ़ाई के लिए कभी भी तंग नहीं किया। उसने कहा पापा मैं पायलट बनना चाहता हूं। वह बोले बेटा चिंता की कोई बात नहीं जो तुम बनना चाहते हो वह बनो। तुमसे कोई जबरदस्ती नहीं करेगा। उसके पापा ने उसका नाम अमर रख दिया था। उसका नाम था अतुल। उसका कार्ड उन्होंने सम्भाल कर रख दिया था उसमें उसकी फोटो थी। मगर उसका नाम मिट गया था। नाम का पहला अक्षर ही फोटो में साफ दिखाई दे रहा था बाकि अक्षर मिट गए थे। उन्होंने अ से ही उसका नाम अमर रख दिया। अमर बड़ा हो चुका था। वह पायलट औफिसर चुका था।

एक दिन उसके पिता ने कहा बेटा आज मैं अपने दोस्त की बेटी आरती के साथ तुम्हारी शादी की बात पक्की कर रहा हूंह अमर ने कहा पापा पहले मुझे लड़की तो दिखाओ। उसके पिता ने कहा आज उसे हम अपने घर खाने पर बुलाएंगे। आरती 5:00 बजे वादे के मुताबिक अमर के घर पहुंच गई।। पहली ही मुलाकात में अमर और आरती दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। आरती ने कहा मैं एक दिन आपको अपने भाई और माता-पिता से अवश्य मिलवाऊंगी। अमर नें कहा तुम्हारे भाई का क्या नाम है।? आरती ने कहा मेरे भाई का नाम अखिल है। आरती ने कहा अच्छा अलविदा कल मिलेंगे। आरती तो चली गई उसे अपना गुजरा जमाना याद आ गया। उसका दोस्त आखिर वह भी तो एक बड़ा डॉक्टर बन चुका होगा।

उसके दोस्त का नाम भी तो अखिल था। उसकी आंखों के सामने सारा माजरा घूमने लगा किस तरह उसने इतना भयानक कदम उठाया था। वह मरा तो नहीं था परंतु अपने माता-पिता से बिछड़ गया था। वह एक ऐसे परिवार में उनका बेटा बनकर रह रहाथा जिसे वह जानता तक नहीं था। उस परिवार ने उसे इतना प्यार दिया वह अपने असली मां बाप को भूल ही गया। आज उसनेंअपने सपने को साकार कर दिखाया था। दूसरे दिन आरती उसे बाजार में मिली। आरती ने कहा तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो। शादी से पहले मैं तुम्हें एक सच्चाई से अवगत कराना चाहता हूं। तुम मुझे स्वीकार करो या ना करो। परंतु अगर मैंने तुम्हें सच नहीं बताया तो मेरी अंन्तर्आत्मा मुझे कचोटती रहेगी।

वह बोला तुम्हारे माता पिता हमारी शादी को मान गए हैं। वह बोली परंतु पहले मेरे माता-पिता ने शादी करने से मना कर दिया क्योंकि तुम पंडित परिवार के नहीं हो। परंतु बाद में मेरी इच्छा के सामने उन्होंने घुटने टेक दिए। वे तुमसे मेरी शादी करने के लिए मान गए। वह बोला मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि मैं अग्रवाल परिवार का बेटा नहीं हूं। मैं तो नदी में बहता हुआ उन्हें मिला था। मैंने आत्महत्या करने का प्रत्यन किया था। मेरे माता-पिता मुझे हरदम पढ़ाई करो पढ़ाई करो करनें को कहते रहते थे। तुम्हारे इतने अंक कम क्यों आए? तुम्हारे दोस्त के तुमसे ज्यादा अंक कैसे। हर वक्त टोकाटाकी। अखिल मेरा दोस्त था वह डॉक्टर बनना चाहता था। मैं पायलट बनना चाहता था। मेरा दोस्त हमारे ही घर पर किराए के मकान में रहता था। उसके मम्मी पापा इतने अच्छे थे कि उन्होंने अपने बेटे पर पढ़ाई का कभी जबरदस्ती दखल नहीं दिया। एक दिन मेरे दोस्त के माता-पिता का तबादला दूसरे शहर को हो गया। वह दूसरे शहर में चला ग्ए।हम अपने तरीके से जिंदगी जी रहे थे।

एक दिन दसवीं की परीक्षा परिणाम निकला। मैं जैसे ही अखबार लेकर अपने पापा के पास गया तो मैंने सोचा वह मुझे गले से लगा कर कहेंगे तेरे 80% अंक अच्छे आए हैं। उन्होंने एक बार फिर मुझ पर प्रहार किया। दूसरे पेज पर देखो तुम्हारे दोस्त ने सारे जिले में टॉप किया है। मैं अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था। कहां तो तसल्ली देने के बजाय वह मुझे कह रहे थे तुम किसी भी विषय को गंभीरता से नहीं लेते हो। परिवार के लोगों के सामने और मेरे ऑफिस में सहेलियों के सामने हमारी क्या इज्जत रह जाएगी। हमारे बेटे के इतने कम अंक पाए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने मुझे कहा तुम्हें डॉक्टरी की पढ़ाई करनी पड़ेगी। मुझे डॉक्टर की पढ़ाई में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। मैंने कहा मैं डॉक्टर नहीं करूंगा। मेरे मम्मी पापा आकर बोले कोई बात नहीं। अगर तुम एक बार डॉक्टर की पढ़ाई में नहीं निकलोगे तो भी कोई बात नहीं दूसरी बार कोशिश करना।

मेरा मन डॉक्टरी की पढ़ाई में जरा भी नहीं था मैंने आव देखा ना ताव वहां से चलकर एक सुनसान सड़क पर आ गया। और पहाड़ी पर से कूदने ही वाला था नीचे नदी बहती दिखाई दी सभी मेरे पैरों के पास से कुछ टकराया वहां पर एक बच्चा मेरी ही तरह का गिरा हुआ था उसका मुंह तो जंगली जानवरों ने खा दिया था मैंने चुपचाप अपने कपड़े उस बच्चे को पहना दिएऔर उसके कपड़े पहनकर पानी में छलांग लगा दी। एक पर्ची उसकी जेब में डाल दी मम्मी पापा अलविदा मैं आपको छोड़कर सदा के लिए जा रहा हूं। आप मुझे डॉक्टर करवाना चाहते थे। मेरा डॉक्टर का पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था मैं आपका अच्छा बेटा साबित नहीं हो सका मेरे मरने के बाद मेरे मम्मी पापा को सजा मत देना। मेरा मरने का फैसला मेरा खुद का था क्योंकि मैं खुद आत्महत्या कर रहा हूं। इसके लिए मेरे मम्मी पापा का कोई कसूर नहीं है।
आरती उसकी दर्दभरी कथा सुनकर कहने लगी तुम्हारी कहानी तो बहुत ही दर्दनाक है। तुम्हारे फैसले ने तो मुझे भी रुला दिया। वह बोला अपने मम्मी पापा को कर ले कर आना आरती नें सारी कहानी अपने मम्मी पापा को सुना दी। उसके मम्मी पापा भी उस बच्चे की कहानी सुनकर चौक ग्ए। अखिल सोचने लगा कहीं वह मेरा दोस्त अतुल तो नहीं है। उसने अपनी बहन को बताया मेरा भी एक दोस्त था। उसका घर नैनीताल में था। आरती कहने लगी कि अतुल का घर भी नैनीताल में था। जैसे ही अतुल से मिलने आया वह अतुल को देखकर चौका। वह तो उसका बिछड़ा दोस्त था।

अखिल डॉक्टर बन चुका था। अतुल भी पायलट बन चुका था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले मिले। दोनों की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। अतुल ने अपनी सारी कहानी आरती के माता पिता को सुना दी। अतुल के माता-पिता ने कहा बेटा तुम्हारे ही घर पर तो हम रहते थे। तुम्हारे माता-पिता तो अच्छे थे। उन्होंने तुम पर यह दबाब क्यों डाला? अतुल ने अपने माता-पिता से माफी मांग डाली और कहा कि मैंने आपकी बातें सुन ली थी। आपके कोई बेटा नहीं था। मैंने सोचा मेरे पापा तो मुझे डॉक्टर पढ़ने के लिए मजबूर किया करते थे। मैं तो पायलट बनना चाहता था। आप ने मुझे पायलट बनने का सुनहरा अवसर प्रदान किया आप ही मेरे सच्चे मम्मी पापा हो। मैंने आपको बता कर नहीं किया था। कहीं ना कहीं मेरे मम्मी पापा ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। इसलिए मैं उनके पास वापस नहीं जाना चाहता था।

अग्रवाल परिवार ने उसे इतना प्यार दिया वह उसको अपने परिवार का सदस्य मानने लगे थे जब अखिल के पापा ने कहा कि हम इस बच्चे के माता-पिता को जानते हैं इसके पिता बैंक में काम करते थे। मैं उन्हें जानता हूं। यह नैनीताल के है। केशव अग्रवाल रोते बोले बेटा हमें छोड़कर मत जाना। अतुल बोलामैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा। आपने मेरे जीवन में उजाले की किरण जलाकर मुझे उज्जवल भविष्य बनाने का मौका दिया। मैं अपने मम्मी पापा के पास जाऊंगा तो अवश्य पर उन्हें एहसास करवा दूंगा कि मैं जो बनना चाहता था वह मैं बन ही गया।

अग्रवाल परिवार ने उसकी शादी आरती से कर दी। आरती के पिता ने अपने दोस्त को शादी का कार्ड भेजा। अतुल के माता-पिता आरती की शादी में आए क्योंकि वह अखिल से भी मिलना चाहते थे। उन्हें अपने बेटे की याद आ रही थी। आरती के घर में शादी की चहल-पहल थी। अचानक गौरव और गरिमा भी उनके घर पहुंच चुके थे। आरती के पिता अपनी बेटी को विदा कर रहे थे तो उनकी नजर दूल्हे पर पड़ी उनको उसको देखकर अपना बेटा याद आ गया। आंखें छलक आई वे बोले बेटा क्या मैं तुम्हें अतुल बुला सकता हूं? तुमसे हमारे बेटे की शक्ल काफी मिलती है। वह चौका बोला पापा-मम्मी मैं ही आपका अतुल। वह उनके कंधे लगकर रोया बोला मैं आपका ही बेटा अतुल हूं। मैं मरने जा ही रहा था कि मैं अपने सामने एक बच्चे को देखा जो मर चुका था। मैंने उसके कपड़े पहने और अपने कपड़े उसे पहना दिए आपको मेरा सुसाइड नोट मिला होगा क्योंकि आप मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे। मैं पायलट बनना चाहता था इसलिए मैंने मरने का फैसला कर लिया था मैंने पहाड़ी पर से छलांग लगा दी थी मैं तो बच गया मुझे अग्रवाल परिवार ने अपना बेटा बना कर पाला मैंने जानते हुए भी अनजान बन कर उन्हें कुछ नहीं बताया। मैं पायलट बन चुका हूं उसके मम्मी पापा अपने सामने अपने बेटे को पाकर खुश हो गए वह बोले बेटा हमें माफ कर दो हमारी सोच बहुत ही गलत थी। हमं अपनी सोच तुम पर थोपना चाहते थे। बेटा हमें अपने किए की सजा मिल चुकी है। बेटा घर चलो। वह बोला मैं आप से मिलनें आया करुंगा। अपनी बहु को आशीर्वाद दो। उसनें अपनें ममी पापा को माफ कर दिया।

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देर आ दुरूस्त आ

पियूष जल्दी से घर पहुंचना चाहता था क्योंकि आज वह काफी थक चुका था। ऑफिस में बॉस से कहा सुनी हो गई घर में पत्नी से नोकझोंक इस आदत से वह बहुत ही तंग आ चुका था । कुछ दिनों से उसे बहुत ही गुस्सा आ रहा था क्योंकि घर पर उसकी पत्नी उससे हर रोज लड़ाई झगड़ा करती थी । झगड़ा हर रोज एक ही बात को लेकर होता था । उसकी पत्नी उसे हर रोज टेलीविजन की फर्माईश करती थी। टेलीविजन भी बहुत महंगे वाला क्योंकि पल्लवी अपनी सहेलियों के घर में नई-नई चीजें देखकर आती थी और अपने पति से हर रोज यही कहती थी कि मेरी सहेलियों के पास इतनी महंगी महंगी चीजें हैं,आप तो कभी भी हमारी एक भी इच्छा पूरी नहीं करते हो । तब उसका पति उसे समझाता भाग्यवान हमें दूसरों के घर से क्या लेना-देना ? उनके पास चाहे जितनी भी महंगी चीजें हैं पर तुम्हारे पास भी किस वस्तु की कमी नहीं है । तुम्हारे पास दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं और तुम्हारा पति सही सलामत है । सब अच्छी तरह से खा पी रहे हैं । मेरी इतनी हैसियत नहीं है कि मैं इतना महंगा टैलीविजन ले लूं और वह भी ₹30000 का । हमें उतने ही पैर पसारने चाहिए जितनी कि हमारे में क्षमता हो ।हमें दूसरों के पास क्या-क्या है इसको देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए? मैं ईमानदारी से अपनी आजीविका चला रहा हूं।

आज तो वह चुपचाप घर आकर सो जाना चाहता था परंतु उसकी पत्नी ने उसके सिर दर्द की परवाह कभी नहीं की और कहने लगी तुम झूठ मूठ का बहाना बना रहे हो क्योंकि तुम हमें टैलीविजन दिलाना नहीं चाहते ।मैंने आज तक तुमसे कुछ भी नहीं मांगा ।मेरी सहेलियों के बच्चे तो गाड़ी में ही स्कूल जाते आते हैं । क्या कभी मैंने गाड़ी कि आप से फर्माइश की। तब उसके पति ने कहा कि तुम अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती हो तभी तो तुम तंदुरुस्त हो और अच्छी बात है तुम्हें सैर करने का मौका भी मिल जाता है । तुम अपनी सहेली के बच्चों को ही देखो ।हर रोज उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ता है ।उन्हें ज़रा भी पैदल चलने की आदत नहीं। हो सकता है तुम्हारी सहेलियों के पति इतनी महंगी चीजें घर लेकर आते हैं वह शायद काले धन से कमाया हुआ रुपया हो। या किसी से रिश्वत लेकर। जरा सोचो तो अगर मैं भी तुम्हें गाड़ी, टीवी ,फ्रिज और कूलर दिलवा दूं वह भी रिश्वत की कमाई से तो क्या तुम लेना स्वीकार करोगी? पल्लवी कुछ नहीं बोली चुपचाप रसोई घर में चली गई। दूसरे दिन पियूष ने अपने बॉस से अपना रुपए निकलवाने की शिफारिश की क्योंकि वह अपनी पत्नी की इच्छा को पूरी करना चाहता था। उसे मुश्किल से ₹15000 मिले वह एक टैलीविजन की दुकान पर गया वहां पर उसने वही टैलीविजन देखा जिसकी फर्माइश उसकी पत्नी कर रही थी ।उसकी कीमत सुनकर वह धक्क से रह गया, क्योंकि उसकी कीमत ₹25000 थी ?उसके पास इतने अधिक रुपए नहीं थे तभी उसने सामने से आते हुए अपने दोस्त को देखा ।उसके दोस्त पंकज ने उस से हाथ मिलाया और अपने दोस्त को परेशानी की हालत में देखते हुए बोला ,अरे यार तुम्हें क्या हुआ है ?तुम इतने परेशान क्यों हो ?मुझसे कहो शायद मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या को हल कर दूं ।उसने अपने दोस्त को कौफी पेश की और कहा मैं यहां पर टैलीविजन की दुकान पर नौकरी करता हूं ।पल्लवी के पति ने कहा तुम्हारी भाभी हर रोज मुझसे नए मॉडल के टैलीविजन की फर्माइश करती है। मैं क्या करूं ?मेरे पास इतने रुपए नहीं है । मुझे अपने परिवार में बच्चों को भी देखना पड़ता है आजकल महंगाई के वक्त इतना रुपया एकदम जुटाना बड़ा मुश्किल है क्योंकि मैं इतना अमीर नहीं हूं । तुम्हारी भाभी इस बात को जरा भी नहीं सोचती। उसके दोस्त ने कहा कि मेरे पास इस समस्या का भी समाधान है। तुम इसी मॉडल की तरह का एक सस्ता सा टैलीविजन लेना चाहते हो। मैं उस टैलिविजन को इस तरह का बना दूंगा कि तुम्हारी पत्नी को पता भी नहीं चलेगा कि यह सस्ता वाला टैलिविजन है । उसी डिजाइन का टैलिविजन तुम्हें ₹10000 में दे दूंगा जैसा कि तुम्हारी पत्नी की सहेलियों के पास है।उस पर स्टीकर भी उसी मॉडल का चिपका दूंगा तुम्हारी पत्नी को तो क्या उनकी सहेलियों को भी मालूम नहीं पड़ेगा कि यह टैलिविजन ₹10000 का है । तुम्हारी बीवी भी खुश हो जाएगी । पियूष की खुशी का ठिकाना नहीं रहा ।उसने अपने दोस्त को धन्यवाद देते हुए कहा कि तुम जल्दी से मुझे वह टैलिविजन पैक कर दो । पियूष जब घर आया तो उसने अपनी पत्नी को कहा जल्दी से चाय बना कर लाओ ,आज मैंने तुम्हारी फर्माइश पूरी कर दी है ।उसकी पत्नी खुश होते हुए बोली क्या तुम झूठ बोल रहे हो? उससे पहले कि वह कुछ कहती उसने एक आदमी को एक बॉक्स अपने घर पर छोड़ते हुए देख लिया था। उसने उस बक्से में से टैलिविजन निकाला और पीयूष को पूछा कहां लगाना है ?पल्लवी बार-बार टीवी को देख रही थी। उसने अपने पति को धन्यवाद दिया और कहा तुमने मेरी इच्छा आज आखिरकार पूरी कर ही दी। कहीं तुमने भी तो रिश्वत लेकर टैलिविजन नहीं खरीदा है ?पियूष बोला अगर तुम हर बार फर्माइश करोगी तो मुझे भी यही करना पड़ेगा । पल्लवी बोली नहीं मैं अब तुमसे कुछ भी नहीं मांगूंगी। बच्चे भी दौड़कर बार-बार टैलिविजन को देखकर खुश हो रहे थे अपनी सहेलियों को अगले दिन उसने चाय पर घर बुलाया ।उन्होंने भी टैलिविजन को देख कर उस से कहा अरे वाह !यह टैलिविजन तुमने कितने का लिया अचानक पल्लवी बोली ₹30000 का ।उसकी सहेलियों को पता ही नहीं चला कि वह टैलिविजन बिल्कुल उसी मॉडल की तरह दिख रहा था ।इस बात को काफी दिन व्यतीत हो गए ।पल्लवी अब अपने पति से कभी फर्माईश नहीं करती थी ।एक दिन जब पल्लवी घर आई तो उसके बेटे ने टेलीविजन का शीशा तोड़ दिया ।पल्लवी बड़ी उदास हुई ।उसने अपने पास जो रुपए इकट्ठे किए थे उससे उसने वह टैलिविजन ठीक करवाया ।आज सोचने लगी कि मैं अपने पति पर यूं ही गुस्सा होती थी ,इतना महंगा टैलिविजन उन्होंने हमें खरीद कर दिया है और हमने एक ही झटके में ₹25000 का खून कर दिया। मेरे पति ने पता नहीं कैसे-कैसे पाई-पाई जोड़कर इतने रुपए इकट्ठा किए होंगे? दूसरे दिन जब वह अपनी सहेलियों के घर से आई तो उसने देखा कि उसके बच्चे आपस में लड़ रहे थे ।वह आपस में कह रहे थे पहले मैं सीरियल देखूंगा।लड़की कह रही थी मैं देखूंगी। उनकी मां ने आकर टैलिविजन बंद कर दिया। उन दोनों बच्चों ने तूफान मचा दिया और एक-दूसरे के बाल पकड़ कर खींचनें लगे। भाई ने अपनी बहन को इतनी जोर से धक्का दिया वह दूर जाकर गिरी। उसके माथे से खून निकल गया था ।उन दोनों को लड़ता देखकर उसके पापा भी अचानक आ गए और अपनी पत्नी को डांटते हुए बोले तुम्हारी टैलिविजन की जिद नें तुम्हारे बच्चों को क्या से क्या बना दिया? पहले दोनों बच्चे खूब मन लगाकर पढ़ते थे अब तो सारा दिन टैलिविजन के सामने बैठकर नाटक देखा करते हैं । उन्हें डांटों तो गुस्सा होकर घर से निकल जाते हैं। तुम्हारी इसी आदत से मैं परेशान आ गया हूं । हर रोज हर दिन एक नई फर्माईश लेकर आ जाती हो ।आज तो मैं तुम्हारे बेटे की रिपोर्ट कार्ड लेकर घर आया हूं। तुम्हारा बेटा गणित मैं फेल है ।वह जब दूसरी सहेली के घर गई तो वहां का नजारा तो देखने ही लायक था। पुलिस इंस्पेक्टर वहां पर खड़े थे और पूछ रहे थे कि वर्मा जी घर पर हैं ।क्या वर्मा जी का घर यहीं पर है? वर्मा जी ने ऑफिस में कुछ गड़बड़ घोटाला करके ₹50000 का कालाधन अपने घर में छिपाकर रखा था ।उनके घर से पुलिस ने छापा डाल कर सब रूपये वसूल कर लिए थे। उसे हवालात में डालने के लिए आई थी। उस पर ₹50000 का जुर्माना किया गया था और छ:महीने की जेल हुई थी । वह चुपचाप वंहा से खिसक कर सीधे घर आई और अपने पति से बोली ।आप ठीक ही कहते हो, हमें उतने ही पैर पसारने चाहिए जितनी हम में क्षमता हो ज्यादा के लालच में हमें अपना सब कुछ गंवाना पड़ सकता है ।उसका बेटा आते ही बोला मम्मी मैं आज थक गया हूं जरा टैलिविजन लगा दो ।मम्मी ने टीवी का रिमोट हाथ में लेकर कहा था तुम्हें टैलिविजन तभी देखने दूंगी मगर इस शर्त पर कि तुम एक घंटे से ज्यादा टीवी नहीं देखोगे और दोनों एक ही वक्त पर टैलिविजन देखोगे ।दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी को कुछ कहा मां ,जैसा आप कहोगी हम वैसा ही करेंगे । उसके पड़ोस की आंटी आई और बोली पल्लवी आज हमारे घर चलोगी ।आज मेरे बेटे का जन्मदिन है । पल्लवी बोली आज मैं नहीं आ सकती ।मैं अपने बच्चों को तुम्हारे घर पर भेज दूंगी। पल्लवी अब कहीं ना कहीं समझ गई थी कि अपनी मेहनत से कमाया हुआ रुपया ही फलता-फूलता है ।हमें कभी भी दूसरों के घरों में कभी नहीं झांकना चाहिए। जो हमारे पास है वह बहुत ही मूल्यवान है ।हमारे शरीर के सभी अंग करोड़ों रुपयों के हैं । हमारे इन अंगों में से एक भी खराब हो जाता है तो हमारे पास तो इनका इलाज करवाने के लिए भी इतनी कीमत नहीं है ।हम तो बेकार में ही किसी के पास कोई अच्छी सी चीज देखकर अपने मन में कल्पना करने लगते हैं कि काश मेरे पास भी यह चीज होती ,परंतु सोचो जरा ,यह सब बात पल्लवी सोच रही थी ।अपने पति को ऑफिस से आते देखा उसने अपने पति को कहा कि आपको निराश होने की जरुरत नहीं है ।मुझे आज अच्छी तरह से समझ में आ चुका है । कल से मैं अपने बच्चों को जल्दी स्कूल छोड़ने जाया करूंगी ।आप ठीक ही कहते हैं सैर करने से थोड़ा व्यायाम भी हो जाता है । सारा दिन चेहरे पर रौनक रहती है उसका पति खुश होते हुए बोला देर से ही सही दुरुस्त आए । वह बहुत खुश हो गया बोला यही बात मैं तुम्हें समझाना चाहता था ।उसने अपनी पत्नी और बच्चों को कहा कहां चला जाए? आज हम सब बाहर ही खाना खाने चलते हैं । उसकी पत्नी बोली बाहर का खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता ।मैं घर में ही आज बढ़िया बढ़िया भोजन बनाती हूं थोड़ी देर हम सारे बैठकर अंताक्षरी खेलते है।बढ़िया -बढ़िया भोजन का आनंद लेते हैं। दोनों बच्चे ठहाका मारकर हंसने लगे ।सबके चेहरों पर खुशी के आंसू थे ।पियूष को तो आज मानो सारी खुशियां हासिल हो चुकी थी ।

देवव्रत

पुरानी समय की बात है किसी नगर में एक राजा रहता था।।वह राजा अपनी प्रजा को खुश देखकर बहुत खुश होता था ।उसके राज्य में सभी लोग सुखी थे उस ने अपने पास एक सलाहकार नियुक्त किया था। वह राजा को अच्छी सलाह दिया करता था । वह एक अच्छा सलाहकार नंही था।वहबिना सोचे समझे सब को सलाह दिया करता था। राजा उसे अच्छी सलाह देने के लिए कभी धन दौलत कभी रुपए ईनाम स्वरुप दे दिया करता था। वह सलाहकार रुपया पाकर बहुत खुश था ।राजा ने उसे अपने महल में पहरेदार नियुक्त कर दिया था। , वह राजा के घर पर ही रहने लग गया था एक दिन सलाहकार ने अपने मन में मन में सोचा कि मैं बिना सोचे समझे राजा को सलाह देता हूं । मेरी सलाह अगर किसी दिन झूठी साबित हो गई तो राजा उसे छोड़ेगा नहीं ,उसे दंड अवश्य देगा ।वह दंड

से बहुत घबराता था ।राजा जिस भी किसी व्यक्ति को दंड देता था वह उसे कोडे़ लगवाता था ।,।सलाहकार ने सोचा की मैं राजा से एक वचन पहले ही ले लेता हूं उसने एक दिन राजा से कहा कि राजा जी आप तो मुझे अच्छी-अच्छी सलाह लेते हो परंतु आज एक बात आपको मेरी भी माननी होगी ।. राजा ने कहा ने क्या ,मांग के तो देखो? मैं तुम्हे अवश्य दूंगा ।मैं तुझसे वादा करता हूं मैं एक राजा हूं राजा जो भी किसी को वचन देता है वह उसे अवश्य पूरी करता है ।सलाहकार ने राजा से कहा कि अभी नहीं समय आने पर मांगूंगा ।राजा ने कहा तुम्हारी इच्छा मैं अवश्य पूरी करुंगा ।इस बात को बहुत ही महीने गुजर गए ।एक दिन राजा अपने परिवार के साथ घोड़े पर जंगल में गया हुआ था उसने रास्ते में देखा एक बुढ़िया रास्ते में जोर जोर से रो रही थी। बुढ़िया को रोता देखकर राजा का दिल द्रवित होगया ।उसने बढ़िया से कहा तुम क्यों रो रही हो ? बुढ़िया ने कहा मेरी बहू ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है ।वह मुझे खाने के लिए भी कुछ नहीं देती है ।राजा का हृदय बुढ़िया की बात सुनकर द्रवित हो गया। राजा ने पहरेदार से कहा मैं तो सोचता था कि मेरे राज्य में प्रजा बहुत सुखी है। आज तो मेरा मंत्री मेरे साथ सैर करने नहीं आया । आज मैं तुम्हें अपने साथ सैर.. करनें के लिए ले जा रहा हूं। आज मेरा मंत्री यहां होता तो मैं उसे बुढिया केे साथ उसे उसके घर पता लगाने अवश्य भेजता। राजा ने कहा कल तू मेरे दरबार में आना राजा ने उसे बहुत सारा धन देकर विदा किया । सलाहकार ने राजा को कहा कि आप तो बहुत दयावान हैं राजा जी ।मैं आपसे कह रहा हूं कि बिना देखे बिना सोचे समझे बिना जांचे परखे हमें किसी भी व्यक्ति पर विश्वास नहीं करना चाहिए ।राजा ने कहा कि तुम ऐसा कैसे कह सकते हो ?सलाहकार ने राजा को कहा कि आज रात को मैं आपके साथ उस बुढिया के घर पर चलूंगा। आप एक राजा के रूप में उस बुढ़िया के पास मत जाना।एक साधारण व्यक्ति की तरह भेश बदल कर जाना ताकि आप को पता चल सके।

इस रूप में उस बुढ़िया के पास मत जाना एक साधारण व्यक्ति की तरह भेष बदलकर जाना ताकि आपको पता चल सके जो बुढिया आपके सामने अपनी बहू की शिकायत करने आई थी वह सच मुच् उसे घर से बाहर निकालना चाहती थी कि नही। वह झूठ मूठ का बहाना बनाकर आप से रुपए लेना चाहती थी और झूठ-मूठ का नाटक करना चाहती थी। राजा को सलाहकार की बात ठीक लगी। राजा एक साधारण व्यक्ति का भेष धारण कर पहरेदार के साथ चल पड़ा ।वह बुढ़िया के घर पहुंचा आधी रात हो चुकी थी अंदर की तरफ कान लगाकर राजा उनकी बातें सुनने लगा बुढ़िया के जोर जोर से रोने की आवाज सुनाई दे रही थी ।हंस हंसकर अपनी बहु से कह रही थी उसने आज राजा को बेवकूफ बनाया कि तुम मुझे हर रोज खाना नहीं देती हो और आज तो मैं राजा से इसके बदले बहुत सारा रूपया लाई हूं ।राजा बुढ़िया की बात सुनकर दंग रह गया चुपचाप वह अपने महल में लौट आया। उसने पहरेदार को वह बहुत सारा रुपया दिया ।पहरेदार रूपया प्राप्त कर फूला-नहीं समा रहा था ।एक बार वह राजा शिकार कर रहा था तो उसकी एक उंगली कट गई और उसकी उंगली से खून बहने लगा यह देख कर उसका सलाहकार बोला भगवान जो करता है वह अच्छा ही करता है ।जब सलाहकार ने ऐसे शब्द कहे तो राजा को बहुत गुस्सा आया। मन ही मन में सोचने लगा जो उसने कहा है शायद यह बात वह सोच समझकर ही बोल रहा होगा, इसलिए राजा ने अपने पहरेदार को कुछ नहीं कहा और चुपचाप चलने लगा चलते-चलते जब वह बहुत दूर निकल आए तो रास्ते में चोरों ने उन्हें देख लिया ।चोरों को सुबह से ही चोरी करने के लिए कुछ भी नहीं मिला था उन्होंने किसी से सुन रखा था अगर किसी इंसान की बलि दे दी जाए त़़ो माता बहुत प्रसन्न होती है।और उसे बहुत सारा धन दौलत देती है। चोर अपने सामने दो हट्टा-कट्टा नवयुवकों को देखकर जो बहुत ही खुश हुए उन्होंने अपनी तलवार दिखाते हुए उन दोनों को बांध लिया और काली माता के मंदिर में ले जाने लगे और जोर-जोर से कहने लगे कि आज तो तुम में से किसी एक की बलि दे दी जाएगी। एक चोर ने दूसरे से कहा पहले यह भी जान लो कि किसी व्यक्ति का कोई अंग कटा तो नहीं है। राजा ने जब यह सुना तो राजा बहुत खुश हुआ क्योंकि वह सोचने लगा मैं तो आज बाल बाल बचा। राजा अपने सलाहकार के लिए कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि वह अगर सलाहकार को बचाने की कोशिश करता तो वह खुद जान से हाथ धो बैठेगा ।उन चोरों ने राजा की कटी ऊंगली देखकर उस राजा को तो छोड़ दिया मगर उस सलाहकार को पकड़कर ले गए। राजा तो अपने महल में वापिस आ चुका था रास्ते में उस सलाहकार ने सोचा कि आज तो मैं इन चोरों के चुंगल से अपने आप को छुड़ा नहीं सकता ना जाने मेरी बात कैसे सच हो गई ।राजा तो बच गया मैंने तो अनजाने में ही राजा से बात कही थी कि भगवान जो करता है अच्छा ही करता है ।राजा की उंगली कटने के बावजूद भी राजा ने मुझे कुछ नहीं कहा। वह योजना बनाने लगा कि कैसे मैं इन चोरों से अपने आप को छुडवाऊं।उसके दिमाग में एक योजना आई उसने उन चोरों से कहा चोर भाई चोर भाई, तुम्हें मेरी बलि देने से क्या होगा? तुमने चोरी करनी है तो तो मैं तुम्हें एक तरकीब बताता हूं ।तुम्हें मेरी बात पर यकीन ना हो तो मैं मरने के लिए तैयार हूं ।आपने जिस आदमी को अभी छोड़ा है वह साधारण आदमी नहीं वह एक राजा है । मैं उसका मामूली सा एक सलाहकार हूँ। तुम चोरी करने राजा के महल में रात को आना मैं तुम्हें महल में घुसने से नहीं रोकुंगा। तुम चुपचाप चोरी करके महल से चले जाना। इस तरह तुम्हें बहुत सा थनभी मिलेगा। चोरों को सलाहकार की बात जंच गई और उन्होंने उस सलाहकार को छोडते हुए कहा कि अगर तुमने हमसे जरा भी झूठ कहा तो तुम हमसे नहीं बचोगे ।हम किसी न किसी तरह तुम्हें पकड़ ही देंगे ।यह कहकर उन चोरों ने उस को छोड़ दिया जब रात को चोर राजा के महल में घुसने लगे तो पहरेदार ने उन्हें अंदर जाने दिया ।पहरेदार ने चोरों के आने की सूचना राजाको दे दी ।राजा ने अपने सैनिकों को उन चोरों को पकड़ने का आदेश दिया उन चोरों को पकड़कर जब राजा के सामने लाया गया , चोरों ने राजा से कहा कि आप हमें दंड नहीं दे सकते। आप हमें छोड़ दो। आपका असली गुनाहगार तो आपका सलाहकार है। हम जब आप की बलि चढ़ाने वाले थे तो उसने हमें बताया कि जिस आदमी को आपने अभी छोड़ा है वह साधारण आदमी नहीं बल्कि एक राजा है । तुम चोरी करने आओगे तो मैं तुम्हें महल में घुसने दूंगा । तुम मुझे छोड़ दो सलाहकार के ऐसा कहने पर हमने उसे छोड़ दिया ।हमें क्या पता था कि आपने अपने महल में ना जाने ऐसे बेवकूफ को अपना सलाहकार नियुक्त किया है जो इंसान यकीन करने के लायक नहीं है। आपको उसे दंड अवश्य देना चाहिए। सलाहकार की बात पर राजा को यकीन हो गया कि वह जो सच कह रहा है। राजा ने उन चोरों को तो छोड़ दिया ।पहरेदार को राजा ने अपने पास बुलाया और कहा कि तुम वफादारी के काबिल नहीं हो तुमने मुझसे छल कपट किया है।

तुम्हें कल सारी प्रजा के सामने दंड मिलेगा उस सलाहकार ने राजा को कहा राजा जी पहले आप मेरी बात तो सुन लो । सलाहकार ने राजा को कहा कि जब चोरों ने आपको छोड़ दिया तो मैं भी अपना चोरो से बचाव करना चाहता था। इसलिए मैंने उन्हें कहा कि तुम महल में चोरी करने आ जाना मैं पहरेदार को समझा दूंगा वह तुम को अंदर आने देंगे। मेरा ऐसा कहने पर चोरों ने मुझे छोड़ने का निश्चय कर दिया ।मैंने चोरों को कहा कि जिसे आप साधारण आदमी समझ रहे हो वह एक साधारण आदमी नहीं है वह एक राजा है मैं उनका सलाहकार।तुम चोरी करने राजा के महल में आना मैं तुम्हें महल में घुसने दूंगा तुम चोरी करके चले जाना ऐसा मैंने अपने बचाव में कहा था तभी उन्होंने मुझे छोड़ दिया ।राजा ने कहा कि मैं तुम्हारी किसी बात पर यकीन नहीं करता तुम्हें सारी प्रजा के सामने सजा तो अवश्य ही मिलेगी ।अगले दिन सारी प्रजा के सामने पहरेदार को बुलाया और कहा तुम्हे दंड तो अवश्य मिलेगा ।तब सलाहकार ने सारी बात। प्रजा के सामने राजा से कहा कि मुझे सजा देने से पहले आपको भी मेरी बात माननी होगी ।आपने सारी प्रजा के सामने मुझे कहा था कि मैं भी तुम्हें एक वचन देता हूं जो तुम मांगोगे मैं तुम्हें दूंगा ।मैंने अपने वचन में आपसे कहा था कि समय आने पर मांग लूंगा ।आज सारी प्रजा के सामने आपसे अपना यह वचन मांगता हूं कि आप मुझे छोड़ दे। राजा ने इस बात की कल्पना भी नहीं की थी ।एक बार फिर राजा ने उसकी चतुराई की प्रशंसा की और कहा कि तुम यहां से मत जाओ ।मैंनें तुम्हारी सजा को माफ कर दिया।

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होनहार दामाद

बहुत समय पहले की बात है कि किसी नगरी में एक राजा राज करता था। राजा अपनी प्रजा के सामने अच्छा बनने की कोशिश करता था परंतु वह दिखावे के लिए ही प्रजा के सामने अच्छा बनने की कोशिश करता था ।उस राजा जैसा निर्दयी कोई भी उसके राज्य में नहीं था । राजा के सामने फरियाद लेकर जब भी कोई आता तो सबके सामने तो राजा उस व्यक्ति से बहुत ही प्यार से पेश आता था ।परंतु जब दूसरे व्यक्ति चले जाते तो वह अकेले में उस व्यक्ति को बुलाकर उससे बहुत ही बुरा बर्ताव करता था। उसके इस बर्ताव से सारी प्रजा के लोग बहुत ही दुखी थे ,परंतु राजा का ऐसा बर्ताव देख कर लोग उससे कहना तो चाहते थे परंतु सब लोग इतने लाचार थे कि वह राजा के सामने कुछ नहीं कह सकते थे। हर व्यक्ति को मजबूर होकर राजा के पास आना ही पड़ता था अगर प्रजा के लोग उसकी बात नहीं मानते थे तो किसी ना किसी बहाने वह,अपनी प्रजा को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ता था राजा की पत्नी हमेशा अस्वस्थ रहती थी ।राजा अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था उसने अपनी पत्नी की देखभाल के लिए एक दासी नियुक्त की हुई थी ।वह रोज उसकी पत्नी की देखभाल करती थी अगर किसी दिन वह छुट्टी पर होती तो राजा उसकी पगार में कटोती कर देता था।

था राजा की एक बेटी थी सुप्रिया राजा अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था ।राजा के कोई बेटा नहीं था वह हरदम यही सोचा करता था कि मेरे बाद मेरे राज्य की बागडोर कौन संभालेगा? इसलिए वह हमेशा चिंतित रहता था। वह सोचता था कि मुझे ऐसा कोई इंसान मिले जो मेरे राज्य को अच्छे ढंग से संभाले उसके लिए हर तरह की कोशिश किया करता था। एक बार दासी का बेटा बहुत ही बीमार हुआ दासी ने राजा को कहा कि मेरा बेटा बहुत बीमार है परंतु राजा ने कहा कि जब तक तुम अपना काम नहीं करोगी तब तक तुम्हें पगार नहीं मिलेगी अब तो बेचारी दो दिन तक काम पर नहीं आ सकी ।राजा ने उसकी पगार में से रूपये भी काट लिए। जब वह काम पर आती उसका बेटा भी साथ आता इस तरह उसके दिन गुजर रहे थे राजा की बेटी दासी के बेटे के साथ हिल मिल गई थी। वह भी उसके साथ काफी देर तक खेला करती थी। राजा धनुर्विद्या में बहुत ही पारंगत था। राजा की एक बेटी थी सुप्रिया। राजाअपनी बेटी से बहुत प्यार करता था ।राजा के कोई बेटा नहीं था वह हरदम यही सोचा करता था कि मेरे बाद मेरे राज्य की बागडोर कौन संभालेगा ?इसलिए वह हमेशा चिंतित रहता था ।वह सोचता था कि मुझे ऐसा कोई इंसान मिले जो मेरे राज्य को अच्छे ढंग से संभाल ले उसके लिए हर कदम कोशिश किया करता था ।एक बार दासी का बेटा बहुत ही बीमार हुआ दासी नेे राजा को कहा कि मेरा बेटा बहुत बिमार है।दासी काम पर नहीं जा सकी राजा ने उसकी पगार में से रुपए भी काट लिए। जब भी काम पर आती उसका बेटा भी साथ जाता । राजा की बेटी दासी की बेटी के साथ हिल मिल गई थी वह भी उसके साथ काफी देर तक खेला करती थी । बच्चे भी बड़े हो चुके थे दासी का लड़का भी बड़ा हो चुका था ।वह धनुर् विद्या का अभ्यास कर रहा था। एक बार राजानेअपने महल में दूर-दूर से धनुर् धारियों को महल में बुलाया और कहा जो मुझेधनुर्र विद्या में हरा देगा उसे मैं काफी ईनाम दूंगा ।सभी राज्यों से राजकुमार आए मगर कोई भी उसे हरा नही ंसका।दासी का लड़का आकर राजा से बोला मैं आपको धनुर् विद्या में हरा सकता हूं । राजा के कौशल को

देखने के लिए लोग राजा के प्रांगण में पहुंचे । दासी के लड़के ने राजा को एक ही झटके में हरा दिया। राजा ने सोचा इस लड़के ने मुझे हरा दिया है । मुझे अपना राज काज ऐसे आदमी को सौंप देना चाहिए जोमेरा राज्य संभालने के काबिल हो ।उसने अपने भाई के बेटे को गोद ले लिया वह बहुत ही अत्याचारी था ।वह उसका बेटा तो बन गया परंतु किसी ना किसी तरह राजा को नीचा दिखाने की कोशिश करता था ।वह राजा को फूटी आंख नहीं सुहाता था। जब तक राजा ने उसे राज्य की बागडोर नहीं संभाली थी तब तक तो वह राजा के साथ बड़े अच्छे ढंग से पेश आता था ,परंतु जैसे ही राजा नहींउसे राजा सारा राज पाट सौंप दिया तो वह राजा के साथ बुरा बर्ताव करने लगा ।दासी के बेटे को राजा पहचानता नहीं था क्योंकि उसने कभी भी राजा को नहीं बताया जिसने आपको धनुर्विद्या में हराया वह कोई और नहींतुम्हारे घर काम करने वाली दासी का बेटा है । राजा पछताने लगा था कि मैंने गलत आदमी को अपना राजपाट सौंप दिया है अब मेरे राज्य का क्या होगा ।दासी का लड़का राजकुमारी से मिलता था वह दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे ।दासी का लड़का कहता था कि तुम मेरे साथ मेलजोल मत बढ़ाओ क्योंकि कहां तुम और कहां मैं ,?मैं तो एक गरीब घर का बेटा हूं तुम गरीब के घर नहीं रह सकती ।राजा की बेटी ने उससे कहा कि अगर शादी करूंगी तो तुम से वरना मैं कुंवारी रह जाऊंगी । एक दिन राजा की बेटी ने दासी के बेटे को बताया कि मेरे पिता जी ने जिस व्यक्ति के हाथ राज्य की बागडोर सौंपी है वह बहुत ही बेईमान है ।वह कहता है कि अपनी बेटी की शादी मुझसे कर दें जब मेरे पिता ने इन्कार कर दिया तो उसने मेरे पिता जी को बहुत जोर से ठोकर मारी और उन्हें जेल में बंद कर दिया। मैं अपने पिता को कैद में नहीं देख सकती तुम कोई योजना बनाओ जिससे वह मेरे पिता के हथियाए हुए राज्य को वापस कर दें ।और मेरे पिता की सत्ता को लौटा दे ।दासी का बेटा बोला मैं कोई रास्ता खोजता ह।ूं धनुर्विद्या में दासी का बेटा जीत गया। तब राजा ने जिस नवयुवक को गोद लिया था वह आकर दासी के बेटे से बोला वाह, तुम तो बहुत ही बड़े धनुर्विद्या में माहिर हो ।आज मैं तुम्हें अपने महल में मंत्री पद पर नियुक्त करता हूं ।वह दासी के बेटे को महल में नियुक्त कर देता है ताकि कोई भी बाहर वाला आकर उस पर हमला करे तो वह उसकी सहायता करे।ं दासी का बेटा सारी गांव की प्रजा के पास आ कर बोला। पहले राजा ने हमारी नाक में दम कर रखा था अब इस राजा का गोद लिया बेटा यह तो इससे एक कदम आगे ही है ।हम सबको मिलकर कोई ऐसी योजना बनानी होगी जिससे वह नकली राजा हार जाए । राजा के भाई का बेटा जिसको मंत्री के पद पर नियुक्त किया जाना था वह राजा के पास गया और बोला सारे गांव वाले लोग कहते हैं कि अगर कोई गांव वालों में से कोई धनुर्विद्या में हार जाए तो हम उसको हंसी-खुशी अपना राजा स्वीकार कर लेंगे । नव निर्वाचित राजा के पास प्रजा के लोग आए और बोले ।राजा ने ही आपको प्रजा की बागडोर संभाली है परंतु हमारी प्रजा ने अभी तक आपको अपना राजा नियुक्त नहीं किया है ।ठीक है ,अगर आप राज्य के 20 आदमियों को धनुर्विद्या में हरा देंगे तो हम हंसी खुशी आपको अपना राजा स्वीकार कर लेंगे । राजा ने जिस नवयुवक को गोद लिया था वह बोला ठीक है हमें तुम्हारी सारी शर्तें मंजूर है मैं तुम सबको धनुर्विद्या में हरा दूंगा ।मेरे दरबार में मेरे पास एक ऐसा मंत्री है वह तुम सबको एक ही झटके में हरा सकता है । तुम भगवान के मंदिर में चलकर यह बात कहो तभी हम तुम्हारी बात पर यकीन करेंगे अ राजा ने जिसे अपना दत्तक पुत्र नियुक्त किया था वह उनके साथ मंदिर चलने के लिए तैयार हो गया और वहां पर चलकर बोला अगर यह सब लोग इस मंत्री को धनुर्विद्या में हरा देंगे तो मैं राजा की बागडोर पद से त्याग दे दूंगा और राजा को राजपाट वापस कर दूंगा ।प्रजा के लोंगों ने कहा कि तुमने राजा से जो महल की जमीन के कागजों पर हस्ताक्षर करवाएं हैं। वह भी सब राजा को लौटाने होंगे तब नकली बना राजा बोला मंजूर है मुझे तुम्हारी सारी बातें मंजूर है ।उसे अपने मंत्री पर बहुत विश्वास था कि वह प्रजा को एक ही झटके में हरा देगा । प्रजा ने नकली राजा से कहा कि जब तक धनुर्विद्या का आयोजन नहीं होता तब तक तुम्हें असली राजा को भी कैद से बाहर निकालना होगा नकली दत्तक पुत्र ने राजा को जेल से बाहर निकाल दिया । धनुर्विद्या का आयोजन किया गया दूर-दूर से लोग धनुर्विद्या देखने के लिए आए पहले राउंड में तो मंत्री ने प्रजा को हरा दिया । नकली राजा बहुत ही खुश हुआ ,परंतु दूसरे और तीसरे राउंड में मंत्री प्रजा के लोगों से हार गया ।नकली बना राजा आग बबूला हो उठा परंतु उसने सभी प्रजा के सामने कसम खाई थी कि अगर मंत्री हार गया तो वह राजा को सब कुछ वापिस कर

देगा ।नकली बना राजा कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि सारी प्रजा के लोग एक साथ थे। दासी के बेटे ने अपनी होशियारी से प्रजा और अपने राजा का सम्मान पा लिया था ।राजा ने उसे उठकर गले से लगा लिया और बोला तुम ही असली राजा की बागडोर संभालने के लायक हो ।मैं यह सारा राज पाट तुम्हेंं संभालता हूं मैं तुम्हारे साथ अपनी बेटी की शादी करना चाहता हूं। दासी का बेटा बोला कि फिर भी सोच लो आपने सभी प्रजाजनों के सामने मुझे राजा बनाना मंजूर किया है ।क्या तुम अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथ में दे दोगे बिना जाने की मैं कौन हूं ?तब राजा बोला हां बेटा ,मैं भी बिना जाने पूछे पूरे होशो हवास में यह बात कह रहा हूं तुम चाहे जो भी हो तुम्हें मैं अपनी बेटी का हाथ सौंपना चाहता हूं । तुम्हें इस देश का राज्य संभालना चाहता हूं सभी प्रजा के लोगों ने उठकर जोर-जोर से तालियां बजाई ।राजा ने उठकर उसे राजा का ताज पहनाया ।नकली बना राजा अपना सा मुंह लेकर वहां से चला गया ।बाद में दासी के बेटे ने बताया कि वह दासी का बेटा है जो कि आपके महल में ही काम करती थी ।राजा यह जानकर हैरान रह गया परंतु उसने उसे अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया ।उसने अपने किए किए के लिए अपने दामाद से क्षमा मांगी और खुशी-खुशी अपने महल में लौट आया।

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झूठा सौदा

बग्गा एक रिक्शाचालक था एक छोटी सी खोली में रहता था। वह रात-दिन मेहनत मजदूरी करके अपने तथा अपने बच्चों का पेट भरता था ।उसका एक बेटा था वह सोचता था कि वह अपने बच्चों को खूब पढ़ आएगा। वह तो कुछ नहीं बन सका मगर किसी ना किसी भी किसी तरह वह अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलवाएगा ।वह बहुत ही मेहनती था। सारा दिन रिक्शा चलाता था उसको घर छोड़ना इसी से वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था ।उसका बेटा था विक्रम ।जैसा नाम वैसा ही वह सभ्य और सुशील था ।अपने पापा के संस्कार उसमें कूट-कूट कर भरे थे ।वह हमेशा सोचा करता था कि हम एक छोटी सी खोली में रहते हैं ।यही खाना बनाते हैं ।यही सारा काम करते हैं ।मैं बड़ा होकर अपने पिता के सपनों को साकार करूंगा ।वह मुझे बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं मैं भी हमेशा कोशिश करुंगा कि मैं जल्दी से जल्दी कुछ अच्छा बनकर अपने पापा और मां को भरपूर खुशियां दूंगा ।मम्मी तो बेचारी बीमार ही रहती है सारा बोझ तो मेरे पापा के कंधे पर है ।इस तरह उनके जीवन के दिन बीत रहे थे विक्रम दसवीं कक्षा में आ चुका था ।वह सोच रहा था मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं ।मैं डॉक्टर बन जाऊँगा तो मैं अपनी मां का ईलाज स्वयं कर सकता हूं।ं उसने स्कूल में मेडिकल के विषय ले रखे थे। उसके पापा को तो इस विषय में कुछ मालूम नहीं था। वह हमेशा इसी धुन में लगा रहता था कि वह खूब मेहनत करे वह सारी सारी रात बैठ कर पढ़ा करता था। उसके पड़ोस में एक सेठ रहते थे उनका लड़का-डॉक्टरी करना चाहता था ।वह भी उन्हीं के स्कूल में पढ़ता था। कान्वेंट स्कूल वालों ने तो उसे अपने स्कूल में दाखिला नहीं दिया था ।सिर्फ एक ही ऐसा स्कूल था जहां उसे प्रवेश मिला था ।वह हर बार फेल हो जाता था इसलिए हार कर उसके पिता ने उसे समिति के स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया था। रिक्शा चालक का बेटा भी संयोग से उनके स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।उसको अच्छे अंकों के माध्यम से स्कूल में दाखिला मिला था सेठ का बेटा तो हमेशा गाड़ी से स्कूल पहुंचता था ।रिक्शा चालक का बेटा तो अपने पिता के रिक्शा में या कभी-कभी पैदल ही कॉलेज आ जाया करता था ।उसने दसवीं की परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया था। स्कूल वालों ने उसे छात्रवृत्ति भी दी थी ।वह कभी-कभी सेठ करोड़ीमल के बेटे से बात करने की कोशिश करता था। करोड़ीमल का बेटा तो उसे कभी सीधे मुंह बात नहीं करता था ।उसने अपने घर में ट्यूशन लगा रखी थी ।और इंटरनेट के माध्यम से अपने विषय की जानकारी हासिल कर लेता था। ।रिक्शा चालक का बेटा तो दिन रात मेहनत कर रहा था। वह कभी-कभी पार्ट टाइम काम करके रुपए इकट्ठे करके अपनी किताबें ले लेता था ।परीक्षा भी पास आ रही थी ऐसे में करोड़ीमल का बेटा श्याम उससे बात करने लग गया था ।वह विक्रम से प्रश्न पूछता था। एक दिन करोड़ीमल के बेटे ने उसे अपने घर बुलाया और कहा कि चलो आज हम दोनों बैठकर पढ़ाई करते ह।बातों ही बातों में उसने आधे से ज्यादा प्रश्न शाम को हल करवा दिए थे वह कहने लगा अब तो मुझे गहरी नींद आ रही है तू भी सो जा करोड़ीमल का बेटा श्याम सो चुका था ।विक्रम नें इंटरनेट के माध्यम से उसके घर पर सारे प्रश्न हल कर लिए थे ।जो कुछ उसे नहीं आता था वह भी इंटरनेट से उसने हल कर लिया था। अगले दिन वह अपने घर आ गया था परीक्षा भी पास आ गई थी ।विक्रम के सारे पेपर बहुत ही अच्छी हुए उसने अपने पिता को बताया कि पिताजी इस वर्ष तो में पीएमटी में सिलेक्ट हो जाऊंगा ।मैं डॉक्टरी मैं ब्लैकस्टोन होनें के लिए पी एम टी का फॉर्म भर दूंगा। उसके पिता बोले बेटा यह तो अच्छा है परंतु इसके लिए रुपए कहां से आएंगे ?वह बोला कुछ मेरी छात्रवृत्ति होगी कुछ मैं कहीं पार्ट-टाईम नौकरी कर लूंगा ।डॉक्टर तो मैं बन कर ही दम लूंगा ।परीक्षा का परिणाम आने में अभी एक हफ्ता था ।सेठ ने किसी ना किसी तरह पता कर लिया था उसका बेटा तो सेलेक्ट नहीं हुआ था परंतु उसका दोस्त रिक्शा चालक का बेटा पीएमटी में निकल चुका था। करोड़ीमल ने सोचा कि इस रिक्शा चालक के बेटे को डॉक्टर कौन बनाएगा। क्यों ना मैं कुछ योजना बताता हूं ?।विक्रम के पेपर की जगह पर मैं अपने बेटे का रोल नंबर डाल दूंगा और अपने बेटे के पेपर विक्रम के पेपर के साथ बदल दूंगा ।अपने बेटे को सिलेक्ट करवा दूंगा और रिक्शा चालक का बेटा पीएमटी टेस्ट में नहीं निकला ऐसा चक्कर चला दूंगा। उसने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए विक्रम के पिता को अपने पास बुलाया देखो भाई मैं आपको दिन रात मेहनत करते देखता रहता हूं आप दिन में कितना कमा पाते हो आपकी पत्नी तो हमेशा बिमार ही रहती है। आपके पास तो उसे अच्छा खिलाने के लिए भी रुपया नहीं है। ।तुमको मैं बहुत सारे रुपए दिलवा सकता हूं अगर तुम मेरा काम कर दो वह बोला मुझे क्या करना होगा करोड़ीमल बोला हमें पता चला है कि आपका बेटा पीएमटी की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है ।वह डॉक्टर बन कर क्या करेगा? अगर तुम अपने बेटे के पेपरो को मेरे बेटे के पेपर का नाम दे दो तो ठीक है तुम्हारे बेटे के पेपर की जगह मेरे बेटे का नाम होगा । मेरे बेटे के पेपर में तुम्हारे बेटे का नाम होगा। यह बात सिर्फ हम दोनों में ही रहनी चाहिए ।आपका बेटा तो होशियार है ।अगले साल भी पीएमटी परीक्षा में निकल जाएगा मगर मेरा बेटा तो निकल नहीं सकता वह इतना होशियार नहीं है इसके लिए मैं तुम्हें 500,000 रुपए दूंगा। तुम्हारी तो जिंदगी बदल जाएगी तुम अपनी पत्नी का इलाज भी अच्छे अस्पताल में करवा सकते हो ।रिक्शावाला पहले तो सोचने लगा नहीं परंतु बाद में उसने सोचा 500, 000 रुपए तो मैं सारा जन्म ले लूंगा तो भी जुटा नहीं पाऊंगा ।मेरा बेटा तो अगले वर्ष परीक्षा देकर निकल जाएगा ।वह करोड़ीमल की बातों में आ गया ।उसने हां कर दी अब सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ । बोर्ड परीक्षा में रिक्शा चालक के बेटे के पेपर अपने बेटे के पेपर के साथ बदलवा दिए। उसके लिए उसने घुस दी थी। उसने रिक्शा चालक को भी 5,00,000 दिए ।जब परीक्षा परिणाम निकला तो रिक्शा चालक का बेटा बहुत खुश था उसकी मेहनत का परिणाम आने वाला था जब परिणाम में सेठ करोड़ीमल का बेटा पीएमटी ेटैस्ट में निकल गया रिक्शा चालक का बेटा नहीं निकला था ।उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं आया वह एकदम गम्भीर हो गया।इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उसका परिणाम गंदा आया था। और जो कभी किताबों को हाथ नहीं लगाता था सेठ करोड़ीमल का बेटा वह परीक्षा में सफल हो चुका था ।इसी चिंता में घुलकर वह अस्पताल में भर्ती हो गया था। उसके पिता ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा कोई बात नहीं अगले साल तैयारी करना। कोई कोई बात नहीं मैं तुम्हें रूपये उपलब्ध करवा दूंगा ।।उनके स्कूल की एक लड़की थी जिसके पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे ।वह अपने पिता के साथ करोड़ीमल के बेटे की पार्टी में गई हुई थी ।उसने अपने सभी दोस्तों को पार्टी पर अपने घर बुलाया था ।वह अपनी अपनी खुशी उन सब दोस्तों के साथ बांटना चाहता था। प्रेरणा भी उसकी पार्टी में गई हुई थी। करोड़ीमल के बेटे ने ज्यादा पी ली थी ।उसका दोस्त विनीत और प्रेरणा दोनों उसके साथ ही बातों-बातों में करोड़ी मल के बेटे ने श्याम को बताया कि बेचारा विक्रम उसके पेपरों की वजह से ही मैं आज पीएमटी में निकला हूं मेरे पापा ने उसके पिता को पांच लाख रुपए दिए और कहा कि हमें ऐसा कर लेते हैं ।तब कहीं जाकर विक्रम के पापा मान गए । सच्चाई प्रेरणा के सामने आ चुकी थी ।वह अपनी मेहनत के दम पर नहीं बल्कि उस गरीब रिक्शा चालक के बेटे के अंको के बलबूते पर पीएमटी में निकला था ।वह चुपचाप वहां से चली गई ।वह अस्पताल में विक्रम से मिलने गई बोली ,मुझे तुम्हारे लिए दुख है तुम्हारे पापा ने यह कैसासौदा किया था ।वह चौक कर बोला !क्या कर रही हो ?उसने सारी कहानी विक्रम को सुनाई ।किस तरह तुम्हारे पापा ने करोड़ीमल से 5,00000 रुपए लेकर तुम्हारे पेपर बदल दिए थे ।विक्रम को सारा माजरा समझ में आ चुका था ।उसे अपने पिता पर गुस्सा आ रहा था ।उन्होंने रुपयों की खातिर अपने बेटे की मेहनत के साथ खिलवाड़ किया था ।वह सोचने लगा पापा ने मां के ईलाज के लिए रुपए उपलब्ध ना होने की वजह से हां की होगी। यह बात मेरे पापा मुझसे कह सकते थे ।उन्होंने इतना बड़ा फैसला बिना मुझसे पूछे कैसे ले लिया ?वह फूट फूट कर रोने लगा। उसको इस तरह रोतादेखकर प्रेरणा बोली, मायूस ना हो मैं अपने पिताजी से कहकर तुम्हारी परीक्षा के पेपर की छानबीन करवा दूंगी ।तुम पूर्ण मूल्यांकन का फॉर्म भर दो। उसने पुन: मुल्यांकन के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया था ।उसके परीक्षा पेपर के अंको की छानबीन के दौरान पाया गया सचमुच करोड़ीमल के बेटे के पेपर विक्रम के पेपरो के साथ बदल दिए थे ।सारी छानबीन के दौरान करोड़ीमल को घूस लेने के चक्कर में दो साल की कैद सुनाइ। उसे सलाखों के पीछे कैद कर दिया । श्याम के पिता ने भी गुनाह किया था उन्हें भी दो महीने की सजा सुना दी गई। रिक्शा चालक कैद काट कर बाहर आ चुका था ।विक्रम की पढ़ाई का खर्चा अपने ऊपर ले लिया था ।डॉक्टर की सारी पढ़ाई का खर्चा सरकार देगी । विक्रम डॉक्टर बन चुका था। उसने सबसे पहले अपने मां के ईलाज के लिए रुपए इकट्ठे किए और स्वयं अपनी मां का ईलाज किया और एक अच्छा सा घर ले लिया। वह अपने माता और पिता के साथ खुशी-खुशी रहने लग गया था।

शेर और बकरी की मित्रता

किसी जंगल में एक शेर रहता था। वह बहुत ही बूढा हो चुका था। शिकार करने के लिए इधर उधर ज्यादा भाग नहीं सकता था। आसपास जो भी शिकार मिलता उसको मार कर खा लेता था। एक दिन की बात है कि एक बकरियों से भरा ट्रक शहर की ओर जा रहा था। उसमें से एक बकरी नीचे गिर गई। उस बकरे की टांग में चोट लगी। वह जोर-जोर से मैं मैं करने लगी। वह दर्द से कराह रही थी। उस बकरी ने थोड़ी सी दूरी पर उस शेर को देखा।

वह अपना कराहना छोड़ कर चुप हो गई।। वह भाग भी नहीं सकती थी। वह झाड़ियों के पीछे छिप गई। झाड़ियों के पीछे से उसे कोई नहीं देख सकता था। वह वहां से शेर को देख सकती थी। दूसरे दिन वह थोड़ा थोड़ा चलने लग गई थी। वह डर भी रही थी कि शेर उसे मार कर खा जाएगा। वह वृक्ष की पत्तियों को खाकर गुजारा कर रही थी। वह शेर को देखकर सोचने लगी यह शेर बूढ़ा हो चुका है यह ज्यादा भागदौड़ नहीं कर सकता। जंगल में तो बहुत सारे जानवर रहते हैं। कोई ना कोई मुझे मार कर खा ही जाएगा। अगर मैं इस शेर के साथ दोस्ती कर लूं तू मैं भी निर्भय होकर इस जंगल में आराम से रह सकती हूं। शेर के साथ ही दोस्ती कर लूंगी।

एक दिन शेर विश्राम कर रहा था। बकरी ने देखा कि एक जहरीला सांप शेर की टांगों के पास से जा रहा था? वह उसको काटने ही वाला था। बकरी नें सांप को देख लिया था। बकरी सोचने लगी कि आज चाहे कुछ भी हो जाए मुझे इस शेर की जान अवश्य बचानी चाहिए, नहीं तो वह जहरीला सांप इसको काट खाएगा। वह बकरी दौड़ी-दौड़ी शेर के सामने जाकर खड़ी हो गई। उस बकरी को देखकर शेर बोला वह आज तो बिना मेहनत किए ही मुझे मेरा शिकार मिल गया है। आज का दिन मेरे लिए बड़ा ही खास है। मरने के लिए अपने आप ही मेरे सामने आ गई हो।

शेर उठने की वाला था तो बकरी ने कहा जैसे हो वैसे ही बैठे रहो अगर तुम मुझ पर जरा भी विश्वास करते हो तो जो मैं कह रही हूं उसको ध्यान से सुनो। मैं तुम्हारी जान बचाने के लिए यहां आई हूं। मुझे तुम बाद में खा लेना। पहले तुम अपनी जान बचाओ। तुम्हें अगर मुझ पर जरा भी विश्वास हो तो यूं ही निश्चिंत होकर बैठे रहो। बिना हिले-डुले अगर तुम उठोगे तो तुम्हें जहरीला सांप काट खाएगा जो तुम्हारे सामने पैरों के पास चल रहा है। शेर अपने मन को काबू में कर के चुपचाप निश्चिंत होकर बैठा रहा। थोड़ी देर बाद धीरे-धीरे सांप वहां से चला गया।।
शेर बकरी की ओर देख कर बोला बहन मैं तुम्हें मारकर खाने ही वाला था। तुमने आज सांप से मेरी जान बचाई। तुम मेरी सच्ची दोस्त हो। आज मैं तुम्हें अपना दोस्त बनाता हूं। तुम यहां जंगल में बिना किसी डर के निर्भय होकर यहां पर रह सकती हो। बकरी उस दिन के बाद शेर की दोस्त बन गई। शेर उसे कुछ नहीं कहता था। उसे जंगल में किसी भी जंगली जानवर से डर नहीं था क्योंकि शेर उसका मित्र बन गया था।

जंगल के सारे के सारे जानवर हैरान थे कि शेर और बकरी आपस में मिल जुल कर रहते हैं। एक दूसरे के मित्र हैं। इसलिए वह बकरी को कुछ भी नहीं कहते थे।

एक बार इतना अकाल पड़ा कि कहीं भी दूर दूर तक कुछ भी नहीं बचा। सभी जानवर जंगल छोड़कर इधर उधर भागने लगे। जंगल एकदम सुनसान हो गया। शेर को भी काफी दिनों तक कुछ भी खाने को नहीं मिला। बकरी से अपने दोस्त को यह दुख देखा नहीं जाता था। बकरी तो रूखा-सूखा पत्तों को खा कर अपना गुजारा कर लेती थी परंतु उसका मित्र शेर काफी दिनों से भूखा था।

वह शेर के पास जाकर बोली तुम्हें तो कई दिनों से खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला है। तुम मुझे खाकर अपनी भूख को शांत करो। शेर बोला नहीं मैं तुम्हें नहीं खा सकता। बकरी बोली अगर शाम तक कुछ भी नहीं मिलेगा तो तुम मुझे खा लेना। शाम होने को आई थी। बकरी शेर के पास जाने ही वाली थी कि तभी पेड़ पर उसने बकरी ने एक आदमी को देखा। वह आदमी शेर से जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया था। बकरी उस आदमी से बोली कि तुम कौन हो? वह बोला कि मैं एक व्यापारी हूं मैं अपने मुर्गियों का मांस बेचने के लिए शहर जा रहा था। मेरी नजर उस पर पड़ी। मैंने सोचा कि शेर मुझे मार कर खा जाएगा। मैं इसलिए जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़ गया। बकरी बोली अगर तुम मेरी बात मानोगे तो शेर तुमको नहीं खाएगा। वह बोली शेर मेरा पक्का मित्र है। वह कई दिनों से भूखा है अगर तुम उसके पास कुछ मुर्गियों का मांस रख दोगे तो वह तुम्हें नहीं खाएगा। मैं उस से कह दूंगी कि तुम उसको ना खाओ। वह मुर्गीयों का व्यापारी बोला ठीक है।

बकरी नें शेर के पास मुर्गियों का मांस रख दिया। शेर ने उस व्यापारी को छोड़ दिया। व्यापारी बोला तुमने मेरी जान बचाई है मैं तुम्हें अपने साथ गांव लेकर चलता हूं। तुम्हें मैं अपने घर में ले जाऊंगा। बकरी बोली नहीं मैं शेर को छोड़कर नहीं जा सकती। वह आदमी बोला यहां पर अकाल पड़ा है। कुछ दिनों के लिए शेर को यहां पर यह मुर्गियों का मांस काम में आ जाएगा। तुम शेर को मेरे यहां से मुर्गियों का मांस लाकर दे दिया करना।

बकरी उसकी बात मान गई। वह शेर के पास जाकर बोली भाई मैंने तुमसे सच्ची दोस्ती की है। मैं भी वादा करती हूं कि जब तक आकाल समाप्त नही होगा तब तक मैं तुम्हें हर रोज एक मुर्गी लाकर देती रहूंगी। यह व्यापारी मुर्गियों का मांस शहर में बेचता है। मैं इसके साथ जा रही हूं तो मैं तुम्हें हर रोज खाने के लिए मुर्गी देती रहूंगी। वह व्यापारी के साथ उसके घर पर चली गई। वह हर रोज शेर को एक एक मुर्गी लाकर देने लगी।

कुछ दिनों के पश्चात वर्षा होने लगी और अकाल भी समाप्त हो गया। सभी जीव जंतु वापिस जंगल में आ गए थे और जंगल फिर से हरा भरा हो गया था। बकरी भी खुश हो गई थी। उसने अपनी दोस्ती निभा कर अपनी मित्रता का सबूत दे दिया था।

इंतकाम

एक छोटे से गांव में जमुना नाम की औरत रहती थी। किसी को भी उस औरत के बारे में जानकारी नहीं थी। वह कौन है? और कहां से आई थी? उसके साथ उसका छोटा सा 9 साल का बच्चा था। अनु स्कूल जाता उसकी मां उसे प्यार से स्कूल भेजती। वह अपने बेटे को सुबह 4:00 बजे उठा देती। वह उसको अंगारों पर चलाती थी। वह उस से कसरत करवाती थी। उस छोटे से बच्चे को उसने अंदर से इतना फ़ौलादी बना दिया था कि उस पर किसी भी मार का कोई असर नहीं होता था। अपने बेटे को हर रोज नई नई चुनौतियों से लड़ना सिखाती थी। वह जब भी विद्यालय जाता स्कूल में सब के सब बच्चों की वस्तुओं में से कुछ ना कुछ चुरा कर ले आता था। रास्ते में चलते चलते राहगीरों की जेबकतर देता। वह चोरी करने लग गया था। वह कभी किसी की पकड़ में नहीं आता था।

एक दिन जमुना ने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और कहा कि आज तुम 15 साल के हो गए हो। तुम्हें आज मैं जो बात बता रही हूं आज से तुम छोटी-छोटी चोरी नहीं करोगे। आज से तुम बड़े घरों में चोरी किया करोगे। मैं तुम्हें हर बार चोरी करने पर शाबाशी देती थी। आज जब तुम चोरी करके आओगे तो मैं तुम्हें और भी ज्यादा शाबाशी दूंगी। मुझे उस राजमहल से नफरत है। उनकी किसी महंगी सी चीज पर हाथ साफ करना। इस गांव से लगते राज्य में एक राजमहल है। ंवहां पर तुम चोरी करना। वह बोला मां मैं आप की सीख को गले से लगा कर ही मैं बड़ा हुआ हूं।

जमुना ने उसे बता दिया था कि राज महल राजा भानुमल के दरबार में चोरी करने जाना है। वहां पर एक पुराना नौ लक्खा हार है। उसे लाकर तुम्हें मुझे देना है। वह तैयार हो गया।उसनें सुबह सुबह के समय चोरी करना उचित समझा। वह राजा के दरबार में पहुंच गया और अंदर उसे वजीर और राजा दिखाई दिए। रानी शायद महल में आराम कर रही थी। राजा अपने वजीर के साथ उद्यान में टहल रहे थे। उसने देखा महल के दूसरी तरफ से भी महल में घुसा जा सकता था। वहां पर दो पहरेदार नियुक्त किए गए थे। उसकी मां ने उसे नशे वाली पुडिया दे रखी थी। उसने जल्दी से उन दोनों पहरेदारों को वह नशे वाली पुडिया खिला दी। थोड़ी देर बाद दोनों पहरेदार चित्त होकर नीचे लुढ़क गए थे। वह राजमहल के अंदर घुस गया। उसने देखा अंदर राजमहल में एक कमरा था जहां पर सोने चांदी के आभूषण थे। एक कीमती हार पर उसकी नजर पड़ी। उसने वह कीमती हार उठा लिया। वह हार बहुत ही महंगा था। उसने जल्दी से वह हार उठाया और भागनें लगा परंतु भागते-भागते उसका पैर लोहे की तार में फंस गया। पहरेदारों ने उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश किया। राजा ने देखा वह तो रानी का बहुत ही कीमती हार था। जिसको चुरा कर वह भाग रहा था। राजा ने अपने पहरेदारों को आज्ञा दी कि इस चोर को तुरंत पकड़ो। आज तक किसी ने भी इस महल में घुसने की हिम्मत नहीं की थी। यह पहला इंसान है जो चोरी करने आया। वह भी इतनें किमतीे हार को चुरानें।राजा नें जब उसे पकडने का आदेश दियाऔर उसे पहरेदार राजा के समक्ष पकड कर लाए तो राजा नें देखा वह तो बहुत ही छोटा बालक है। सिपाहियों नें राजा को बताया कि उसने केवल एक हार चुराया है।

राजा ने उससे प्यार से पूछा बताओ तुम चोरी करने क्यों जा रहे थे? अनु कुछ ना बोला उसने तो चुप्पी साध रखी थी। पहरेदारों ने उस पर कितने कोड़े मारे मगर उस पर उसका कोई असर नहीं हुआ। राजा ने अपने पहरेदारों को कहा कि तुम हट जाओ। मैं ही उससे पूछ लूंगा। राजा उसको प्यार भरी नजरों से देख कर बोला बेटा चोरी करना बुरी बात है। तुम सच-सच बताओ तुमने यह हार क्यों चोरी किया ? महल में चोरी करने के लिए यह हार ही क्यों चुना। यहां और भी चोरी करनें के लिए इस हार से भी किमती आभूषण थे। मेरी मां नें मुझे केवल हार ही चुरानें के लिए ही कहा था। वह बोला मुझे तो आज तक कभी किसी ने चोरी करने के लिए नहीं डांटा था और ना ही कहा था कि चोरी करना बुरी बात है। मेरी मां तो जब भी मैं कोई वस्तु चुरा कर लाता था तो मुझे हमेशा शाबाशी देती थी।

आप पहले इंसान है जिसने मुझे कहा कि चोरी करना बुरी बात है। वह बोला राजा जी मेरी मां ने मुझे चोरी करने के लिए प्रेरित किया। राजा बोला चोरी करने में तुम्हारा हाथ नहीं है। इसमें तुम्हारी मां भी शामिल है । तुम दरबार में अपनी मां को बुलाकर लाओ। वह अपनी मां को बुलाकर लाया। उसकी मां को देख कर राजा हैरान हो गया। उस बुढिया को पहले भी शायद उसने कहीं देखा है। राजा के सामने जमुना को पेश किया गया।

जमुना के सामने 5 साल पुरानी घटना ताजा हो गई। उसे ऐसे लगा जैसे कि सभी यादें चलचित्र की भांति उसके दिमाग में घूमने लगी। एक दिन वह अपने छोटे से बच्चे को लेकर राजमहल मे आई। रानी जी रानी जी मेरा बच्चा बुखार से तप रहा है। मुझे कुछ रुपयों का इंतजाम कर दो। भगवान आपका भला करेगा। मैं एक गरीब परिवार की हूं। मैं अपने बेटे के साथ सामने वाले गांव में रहती हूं कृपया मुझे दवाई के लिए रुपए दे दो। रानी जैसे ही आई उसके हाथ में कुछ असर्फियां थीं। उसने जमुना को असर्फियां देते हुए कहा जाओ अपने बेटे का इलाज कराओ। जब जमना जाने लगी तो उसने रानी को धन्यवाद कहा। वह अपने बेटे को लेकर चले गई। रानी का वह कीमती हार गायब हो गया था। वजीर की पत्नी की नजर उस कीमती हार पर थी। आज उसे वह वजह मिल गई थी। उसने रानी का नौलखा हार चुरा लिया और चंपत हो गई। उसने जमुना को देख लिया था। उसने सोचा अगर मैं पकड़ी जाऊंगी तो चोरी का इल्जाम जमुना पर डाल दूंगी।महल में हंगामा मच गया रानी का नौ लक्खा हार चोरी हो गया। रानी से सब ने पूछा कि कौन आया था? रानी ने जमुना का नाम ले लिया। चोरी का इल्जाम जमुना पर लग गया। उस बेचारी पर चोरी का इल्जाम लग गया जो चोरी उसने की ही नहीं थी। उसे झूठ-मूठ के इल्जाम में कारागार में डाल दिया। वजीर की पत्नी को खुशी हुई। उसने सारे सबूत पेश करके जमुना को दोषी ठहरा दिया था। उसे रानी का नौलखा हार चुराने के जुर्म में 5 साल की कैद हुई थी।

वजीर की पत्नी जमना से कारागार में मिलने आती थी। वह उससे बोली तुम ऐसे भी गरीब हो और तो तुम्हें कारागार से कौन बाहर निकालेगा? मैंने हार चुरा कर तुम्हें जेल में डलवा दिया। मुझ पर तो किसी को भी शक नहीं होगा। कोई बात नहीं तुम्हारे बच्चे के साथ 5 सालों में कुछ बुरा नहीं होने दूंगी। यहां पर झुग्गी झोपड़ी में एक आदमी कालेखां पास में ही रहता है। उसके पास तेरे बेटे को रख देंगे। उसे कुछ नहीं होगा। जब तुम जेल से वापस आओगी तब तुम यहां पर काम पर वापिस आ जाना।

वजीर की पत्नी ने सोचा कि अगर उसने जेल में सबके सामने उस पर इल्जाम लगा दिया तो मैं क्या करूंगी? मेरा तो अपमान हो जाएगा। उसने रानी को कहा कि जमुना तुम्हारा हार ले कर भाग रही थी। वह मुझ से टकराई थी। मैंने उससे वह हार छीन कर ले लिया था और उसे जेल में डलवा दिया। जमुना सोचने लगी कैसे वजीर की पत्नी नें रानी को झूठीमूठी कहानी सुना दी। उसे कारागार में डलवा दिया।
रानी अपना हार पाकर बहुत ही खुश हुई और उसने वजीर की पत्नी को खूब सारा ईनाम दिया। उसकी आंखों के सामने वह सब बातें चल चित्र की भान्ति दिखाई देनें लगी मानों कल ही की बात हो। वह खून के घूंट पीकर रह गई थी।

जेल की सजा काट आने के बाद वजीर की पत्नी ने उसे मरवाने की कोशिश की मगर इतने सालों बाद जेल में रहने के बाद उसने अपने मुंह पर इतना पक्का घाव कर लिया कि कोई भी उसे पहचान नहीं सकेगा कि वह कि वह वही जमुना है जो अपना बदला लेने के लिए वापस लौटी थी। वह उस राज्य से लगते गांव में अपनें बेटे के साथ रहने लगे गई थी। उसी कीमती हार की वजह से आज उसका बेटा पकड़ा गया। कोई बात नहीं आज तो दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो जाएगा। वह भी कोई कमजोर कड़ी नहीं है। अपने बेटे को तभी उसने चोरी करने के लिए प्रेरित किया दिया था ताकि वह अपना बदला ले सके।

राजा ने जमुना को बुलाया। तुमने अपने बेटे को चोरी करने के उपरांत भी उसे चोरी करने से क्यों नहीं रोका? जमुना बोली जहांपनाह आप ठहरे राजा। आपको तो अपने महल में भी यह नहीं पता होता है कि आपकी महल में कौन किस से दगा कर रहा है? आप कहते हैं कि तुमने अपने बेटे को चोरी करने से क्यों नहीं रोका? तुम सजा के लिए तैयार हो जाओ। राजा जी मैं सजा से नहीं डरती। इंसान चाहे कितना भी ईमानदार हो। ईमानदारी से कुछ नहीं बताया। ईमानदार बनकर भी उस पर सजा का झूठा इल्जाम लगा दिया जाता है। आप लोगों का काम होता है असली गुनहगार को सजा दो। मगर यहां तो नकली गुनहगार को सजा भुगतने के लिए जेल में बंद कर दिया जाता है।

राजा बोला मैं समझा नहीं घुमा फिरा कर बातें ना बनाओ। जो कहना चाहते हो जल्दी कहो। वर्ना अंजाम भुगतने के लिए तैयार हो जाओ। वह बोली आपके महल में ही इस कीमती हार चोरी करने के लिए मुझे पांच साल जेल की सजा हुई थी। जो हार मैंने चुराया ही नहीं था।

मैं आपकी रानी के पास मदद मांगने आई थी। मेरे बेटे को बुखार था। वह बुखार से तप रहा था। मैं सोच रही थी कि इस वक्त मेरी मदद रानी के इलावा और कोई नहीं करेगा। मुझे रानी जी ने कुछ असर्फियां दी। मैं जैसे ही जाने लगी मुझसे वजीर की पत्नी टकरा गई। वह कोई वस्तु ले कर भाग रही थी। मैंने एक हार को वजीर की पत्नी के हाथ में देखा। उसने मुझे देखकर वह हार छिपा लिया। कहीं वह मुझ पर चोरी का इल्जाम ना लगा दे। मैंने वजीर की पत्नी को हार चुराते हुए देख लिया था। उसने मेरी बाजू पकड़ी और कहा कि अगर तुमने किसी को भी कुछ कहा तो तुम पर यह इल्जाम लगा दूंगी। मैं डर के मारे कांप गई। मैंने अपने बच्चे को लिया और वहां से चली गई।।
उसने हार चुराने के इल्जाम में मुझे पांच साल कैद कर करवा दिया। जेल से लौटने के बाद काले खान से अपने बेटे अनु को लिया और उसका शुक्रिया अदा किया। वह बोला बहन मेरे साथ रहो। मैंने अपने बच्चे को इतना फौलादी बनाया और उसे चोरी करने के लिए प्रेरित किया। ईमानदारी से जीवन बिताने का मुझे यह सिला मिला था। उसने सारा का सारा वृत्तांत राजा को कह सुनाया।

राजा यह सुनते ही आग बबूला हो उठा। उसने अपने वजीर और उसकी पत्नी को बुलाकर कहा कि तुम ही बताओ कि इसकी मां को क्या सजा दूं। तुम ही बताओ वजीर की पत्नी बोली चोरी करने वाले को कठोर से कठोर दंड देना चाहिए। यह बचके नहीं जाना चाहिए। राजा बोला क्या दंड देना चाहिए? वह बोली राजा जी इसे कोडे मार मार कर यहां से निकाल दो और अपने राज्य से बाहर कर दीजिए। राजा बोला ऐसा ही होगा।

सारे के सारे लोग फैसला सुनने के लिए उत्सुक थे। राजा ने अनु को बुलाया और कहा कि जाओ मैं तुम्हें छोड़ता हूं। तुमने चोरी खुद नहीं की तुम्हें तुम्हारी मां ने चोरी करने के लिए प्रेरित किया था। मैं तुम्हारी मां को भी चोरी करने के अपराध में दंड की भागीदार नहीं समझता। वह भी दंड की भागीदारी नहीं है। उस बेचारी को पांच साल जेल में डाल दिया गया था जिस कीमती हार का इल्जाम उस पर लगा दिया गया था जो कि उसने नहीं चुराया था। वह तो वजीर की पत्नी ने वह हार चुराया था और चोरी का इल्जाम बेचारी जमुना पर आ गया था। उसने अपने छोटे से बच्चे को पांच साल अलग रखा। वह भी बिल्कुल सही है। तुम दोनों को मैं माफ करता हूं।

राजा ने वजीर की पत्नी को बुलाया और कहा कि तुम्हें मैं अपने राज्य से बेदखल करता हूं। तुम यहां से इस राज्य को छोड़कर सदा के लिए चली जाओ। तुम ने इस गरीब औरत को चोरी के दलदल में तुमने ही फंसाया। तुम्हें हम कभी भी माफ नहीं कर सकते। उसने कोड़े लगवाकर वजीर की पत्नी को अपने महल से निकाल दिया। और जमना के बेटे को वह किमती हार ईनाम में दे दिया और कहा कि आज से तुम अपना जीवन सच्चाई के रास्ते पर चलकर गुजारो। जमुना और उसका बेटा खुशी-खुशी वहां से चले गए।

झूठा नकाब

शैलेंद्र और शालू के घर में उनकी बेटी स्वीटी और एक बेटा अभि था। स्वीटी तो बचपन से ही चंचल और चुलबुली थी। वह बचपन से ही नर्स बनने का सपना देखा करती थी। गुड्डा गुड़ियों के खेल खेलते हुए भी वह नर्स बनकर इंजेक्शन लगाती रहती थी। एक दिन उनके घर में दूर के रिश्तेदार उसके पापा के एक अंकल आए हुए थे। वह बातों ही बातों में बच्चों से पूछने लगे कि बेटा तुम दोनों क्या बनना चाहते हो? स्वीटी झट से बोल उठी मैं तो नर्स बनना चाहती हूं। उसके पापा उसकी बात काट कर बोले बेटा नर्स तो तुम कभी मत बनना और ना ही पुलिस ऑफिसर। बाकि जो भी तुमने बनना होगा वह बन जाना। रोहित बोला मैं तो पायलट बनूंगा। शैलेंद्र के दोस्त बोले बच्ची बुरा क्या कह रही है? नर्स कोई बुरी नहीं होती। बच्चे बाहर खेलनें चले गए। स्वीटी बचपन से ही नर्स बन कर अपनी मोहल्ले की सहेलियों को इंजेक्शन लगाया करती थी।

धीरे-धीरे समय पंख लगा कर उड़ गया। थोड़ा सा बड़ा होने पर उसे सब ने कह दिया बेटा नर्स बनने का ख्वाब मत देखना। घर में सभी की यही राय थी। घर की राय को कोई मिटा नहीं सकता था। उसके दादा दादी भी यही चाहते थे कि वह नर्स ना बनें।

नीतू के माता-पिता उसकी पढ़ाई के विरुद्ध नहीं थे। उसे कहते थे कि जितना मर्जी पढ़ ले नौकरी करनी है तो वह भी ठीक है मगर नर्स और पुलिस को छोड़कर। स्वीटी के बारहवीं की परीक्षा में बहुत ही अच्छे अंक आए। वह खुश नजर आ रही थी। स्वीटी ने सोचा शायद मेरे अच्छे अंक देखकर मेरे माता-पिता का दिल पिघल जाए। वह अपने पिता के पास जाकर बोली पापा मुझे नर्स बनना है। पापा मेरी बात मान जाओ। उसके पापा बोले इसीलिए तो तू मेरे पास आई है। नहीं, मैं तुम्हें कभी भी नर्स बनने के लिए नहीं भेज सकता। नर्सों को तो ना जाने क्या-क्या करना पड़ता है? वह बोली क्या-क्या करना पड़ता है पापा? सभी मरीजों की देखभाल करनी पड़ती है। एक रोगी की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म होता है। उनकी सेवा इस तरह से करनी पड़ती है जैसे एक मां अपने बच्चे की करती है। इसमें क्या बुराई है।? आपको यह बुरा लगता है कि लोग क्या कहेंगे? हमारे परिवार में नर्स बनना अच्छा नहीं समझा जाता। पापा अगर नर्स रोगी को ठीक ढंग से ना देखे तो वह कभी ठीक ही नहीं होगा। नर्स को तो नम्रता और सहनशीलता की मूर्ति होना चाहिए।

मेरा तो बचपन से एक ही सपना है मैं एक अच्छी नर्स बन कर अपने माता पिता और अपने देश का नाम रोशन करना चाहती हूं इसके लिए मुझे बाहर भी जाना पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगी। मैं तो सरहद पर भी काम करना पसंद करूंगी जहां पर सैनिक अपनी जान न्योछावर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। वह तो मौत से भी नहीं घबराते।

मैं तो आगे तभी पढ़ूंगी अगर आप मुझे आगे के प्रशिक्षण के लिए भेजेंगे। घर वालों ने उसे नर्स बनने की आज्ञा नहीं दी। दस पन्द्रह दिन स्वीटी ने अपने आप को घर के अंदर बंद कर लिया फिर भी उनके घर वाले नहीं माने। एक दिन उसकी सहेली श्वेता आ कर बोली। अंकल आपने स्वीटी की क्या हालत बना दी है? स्वीटी के पापा बोले हालत तो उसने खुद चुनी हैं।। हम तो उसको किसी भी चीज की मनाही नहीं करतें है। मनाही है तो नर्स बनने के लिए। हमारे यहां पर लड़कियों का नर्स बनना अच्छा नहीं समझा जाता। वह बोली अंकल मैं स्वीटी को समझाऊंगी।

श्वेता स्वीटी के पास जाकर बोली इस प्रकार अगर घर में बंद रहोगी तो क्या तुम्हारी समस्या सुलझ जाएगी? इस तरह समस्या सुलझनें लगी तो ठीक है। यहीं पर बैठी रहो। घुटती रहो। जो मैं कहना चाहती हूं वह सुनो। तुम तो इतनी होशियार हो। तुम उनसे पूछो ही मत।

मेरी एक अस्पताल में जान पहचान है। मेरी चाची एक अस्पताल में काम करती है वहां पर नर्स का प्रशिक्षण करवाया जाता है। तुम्हें इस काम में आनंद आता है तो तुम थोड़े समय के लिए अस्पताल में काम कर सकती हो। मैं चाची से कहकर तुम्हें वहां पर भिजवा सकती हूं। तुम दो-तीन घंटा वहां पर काम किया करो। तुम्हारा मन भी बहल जाएगा और तुम भी खुश रहोगी। स्वीटी बहुत खुश हो गई। अरे यार तुम्हारा तो दिमाग बहुत चलता है। वह उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गई श्वेता बोली अंकल आज मैं अपनी सहेली को अपने साथ ले जाना। चाहती हूं स्वीटी के पापा बोले मैं इसे कहीं जाने से कंहा मना करता हूं स्वीटी अपनी सहेली के साथ उसकी आंटी के अस्पताल में गई। वहां पर वह सारे कार्यकर्ताओं से मिली। श्वेता की आंटी ने कहा बेटा अगर तुम्हें नर्स बनने का शौक है तो यहां पर नर्स का प्रशिक्षण चल रहा है। तुम यहां एक-दो घंटे सब सीख सकती हो। वहां पर वह नर्स का कार्य सीखने लगी।

उसने घर में कह दिया पापा मैं कॉलेज में पढ़ना चाहती हूं। उसके पापा ने उसे कॉलेज में दाखिला लेने से नहीं रोका। उसने चुपचाप नर्स के प्रशिक्षण में दाखिला ले लिया। उसके अपने घर में किसी को भी नहीं पता था कि वह नर्स का प्रशिक्षण ले रही थी। वह उसी अस्पताल में मरीजों की देखभाल करने में लगी। उसे यह कार्य करने में बड़ा ही मजा आता था।

उसके अच्छे काम को देखकर अस्पताल के सभी कर्मचारी उसे सिस्टर निवेदिता कह कर पुकारते थे। उसे स्वीटी नाम से कोई भी नहीं जानता था। वह सबके दिलों में अपना स्थान बना लेती थी। जब भी कोई मरीज कराह रहा होता तो दौड़कर उसे देखने चल जाती। वह सभी मरीजों को कडवी से कडवी दवाई भी प्यार प्यार से खिला देती। जब कोई मरीज दवाई नहीं खाता तो सारे डाक्टर सिस्टर निवेदिता को बुला कर ले जाते। वह घर जल्दी चले जाती थी। उसनेंं सभी सहकर्मियों को बताया था कि अगर मेरे परिवार का कोई कोई भी सदस्य मिले तो यह मत बताना कि मैं यहां नर्स का प्रशिक्षण ले रही हूं क्योंकि उसके पिता उसे नर्स बनने की इजाजत नहीं देते। सारे के सारे अस्पताल के कार्य कर्ता उसके काम से खुश थे क्योंकि वह बिना वेतन लिए वह दो घंटे वहां पर काम भी कर रही थी और प्रशिक्षण भी ले रही थी।

आज वह नर्स की डिग्री ले चुकी थी। उसके पापा बोले बेटा तुमने कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी कर ली है बेटा। तुम नौकरी करना चाहते तो कोई भी इंटरव्यू दे सकती हो। नर्स बनने के बारे में सोचना भी मत।

उसके पापा ने उसकी शादी के लिए एक लड़का भी देख लिया। जब उसने सुना कि उसकी शादी का फैसला किया जा रहा है। वह अपने पापा को बोली पापा मैं अभी शादी नहीं करना चाहती। उसके पापा बोले नहीं बेटा लड़की को शादी कर के दूसरे घर जाना ही पड़ता है। वह बोली वह तो ठीक है। तुम्हारे लिए हमें रोहण को पसंद किया है। वह पेशे से डॉक्टर है। उसके पिता मेरे अच्छे दोस्त हैं। वह अगर तुम्हें पसंद करेगा तब तो ठीक है वर्ना तुम्हारे लिए कोई और लड़का देखना पड़ेगा। ठीक है पापा जैसा आप उचित समझे।

वह सोचने लगी कि वह रोहण को मिलने उसके घर जाएगी। उसके पापा मम्मी से पूछेगी कि आपको बहू के रूप में एक नर्स कैसी लगती है।? वह अगर एक नर्स को अपनी बहू बनाना चाहते हैं तो ठीक है वर्ना वह शादी कभी नहीं करेगी। वह बिना शादी किए ही रोगियों की देखभाल किया करेगी। वह अपने घर को छोड़ देगी और अपना जीवन उनकी देखभाल में ही लगा देगी।

एक दिन स्वीटी रोहन के घर का पता मालूम करके उसके घर पहुंच गई। घर पर दरवाजा खटखटाने पर घर की मालकिन ने दरवाजा खोला। नौकर ने बताया कि यह शिवानी जी का घर है। उसकी मम्मी ने उसे बताया था कि शिवानी तुम्हारी होनें वाली सास का नाम है। उसनें जाकर उनके पांव छू कर बोली मैं डाक्टर रोहण से मिलना चाहती हूं। शिवानी उसकी ओर देख कर बोली कि तुम कौन हो? और यहां क्यों आई हो? वह बोली मेरे माता-पिता ने हमारा रिश्ता जोड़ा है आपके बेटे के साथ। आप क्या चाहती हैं?वह बोली मैं क्या चाहूंगी? मां जी मैं आपके बेटे के साथ खुशी-खुशी शादी करने के लिए तैयार हूं। लेकिन मेरी एक शर्त है

मैं अपने माता-पिता को बताए बगैर आपसे मिलने चली आई। क्या आप एक नर्स को अपने घर की बहू आएगी? वह बोली मैं एक नर्स को कभी भी अपने घर की बहू नहीं बनाऊंगी। हमने तुम्हारे माता-पिता से पहले ही पूछ लिया था वह बोली मां जी मैं तो ऐसे ही कह रही थी। मैंने सोचा कि अपने ससुराल को देखने में क्या बुराई है इसलिए मैं यहां चली आई। मैं आजकल की पढ़ी-लिखी लड़की हूं। क्या आपको बुरा लगा? वह बोली नहीं मुझे क्यों बुरा लगेगा?

स्वीटी बोली कि आपके बेटे कौन से अस्पताल में काम करते हैं? उसकी सास बोली कि वह संजीवनी अस्पताल में काम करते हैं। संजीवनी अस्पताल का नाम सुनकर स्वीटी चौंक गई। वह भी तो उसी अस्पताल में नर्स का परीक्षण प्रशिक्षण ले रही थी। उसे कैसे पता चलेगा। वंहां तो ना जाने कितने डॉक्टर काम करते हैं? अब तो मुझे उनसे पता करना ही पड़ेगा कि वह एक नर्स को अपनी पत्नी बनाना पसंद करते हैं या नहीं। जब वह हस्पताल में वापस आई तो वह डॉक्टर रोहण से मिली। उसे स्वीटी नाम से तो कोई भी नहीं जानता था। उसे सिस्टर निवेदिता के नाम से ही सब जानते थे। डॉ रोहन उस से मिलकर बहुत खुश हुआ।। वह बोला तुम जैसी होनहार और सभ्य लड़की से कौन शादी करना नहीं चाहेगा? वह बोली मेरी मां पिता और आप के परिवार के लोग सब मेरे नर्स बनने के खिलाफ हैं। मैंनें आपके घर में जाकर मां जी से पूछा कि क्या आप एक नर्स को अपनी बहू के रूप में देखना चाहती है। वह बोली नहीं मैं एक नर्स को अपनी बहू बनाना नहीं चाहती। वे सब के सब अभी भी रूढ़िवादी विचारों से ग्रसित है। उन्हें यह नहीं पता कि नर्स का काम तो इतना शोहरत वाला होता है।

डॉ रोहन बोला मैं तुम्हारे अतिरिक्त किसी से भी शादी नहीं करूंगा। स्वीटी ने अपनी सारी कहानी रोहन को सुना दी। उसके मां-बाप ने उसे नर्स का काम करने की इजाजत नहीं दी।

मैंने उन्हें झूठ कहा कि मैं कॉलेज में पढ़ रही हूं और मैं अस्पताल में जाकर नर्स का प्रशिक्षण लेने लगी। रोहन बोला वक्त आने पर वह सब समझ जाएंगें। हम उन्हें जब तक मना नंहीं लेंगे तब तक शादी नहीं करेंगें।

एक दिन शैलेंद्र उसकी पत्नी शालिनी और रोहन के माता-पिता ने शादी की खरीदारी के लिए और शादी की बात चलाने के लिए आपस में मिलने का प्रोग्राम बनाया। शैलेंद्र और उसकी पत्नी ने रोहन के माता-पिता को एक होटल में मिलने का निमंत्रण दिया। उन्हें चार बजे होटल ताज में मिलना था। वायदे के मुताबिक वे वहां पर इकट्ठे हुए। शादी का मुहूर्त निकलवाया। जब चारों वापिस जा रहे थे तो रास्ते में जहां रोहण के माता-पिता ने उतरना था रास्ते में गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। गाड़ी का तो चकनाचूर हो गया। गाड़ी पहाड़ी के मार्ग पर एक ढलान से जा टकराई।

स्वीटी और श्वेता पिकनिक के लिए कॉलेज की तरफ से देहरादून आई हुई थी। स्वीटी ने जैसे ही दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी को देखा तुरंत उन्हें संजीवनी अस्पताल पहुंचाया। स्वीटी अपने साथ नर्स का सामान भी अपने साथ रखती थी। उसने उन्हें इंजेक्शन लगा दिया था। चारों को काफी चोटें आई थी।

स्वीटी की आंखों से आंसू आ गए उसके माता-पिता और उसके होनें वाले सास ससुर संजीवनी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। तीन दिन बाद उनको होश आया। स्वीटी का भाई रोहित भी वहां पहुंच चुका था। होश आने पर वे अपने आप को एक अस्पताल में देख कर हैरान हो गए। डॉ रोहन ने आकर उन्हें हैरान कर दिया। डॉ रोहण बोला अगर आज आप यहां सब वक्त पर नहीं पहुंचते तो आप लोग इस दुनिया में नहीं होते। शुक्र करो उस लड़की का जिसनें इंजेक्शन उपलब्ध करवा दिया और आप लोंगों को बचाया। उस जंगल में आप चारों की उस लड़की ने देवी बनकर आपके प्राणों की जान बचा ली। चारों के सिर पर चोट लगी थी वह बोले हम उस लड़की से मिलना चाहते हैं। जल्दी से उस लड़की को हमसे मिलवा दो।

रोहन बोला उस बच्ची ने एक नर्स का काम बखूबी निभाया। उसने अपना खून देकर और जल्दी से आपके खून को उपलब्ध कराकर आप लोगों की जान बचाई। रोहण के माता पिता और स्वीटी के माता-पिता ने उस लड़की का धन्यवाद करनें के लिए अपने बेटे रोहन से कहा कि जल्दी से उसको बुला कर लाओ। उन्होंनें पूछा उसका क्या नाम है? डॉ रोहन बोला कि उसका नाम सिस्टर निवेदिता है। रोहण स्वीटी को बुलाकर लाया।

शैलेंद्र अपनी बेटी को देखकर और रोहण की मां स्वीटी को देखकर बोली बेटा हमें माफ कर दो। शैलेन्दर बोले यह सिस्टर निवेदिता नहीं है यह तो मेरी बेटी है। रोहन बोला आप सब लोग इसको नर्स बनने के लिए मना करते थे।

बचपन से ही इसमें नर्स बनने की चाह थी। वह कॉलेज नहीं जाना चाहती थी। वह तो नर्स का प्रशिक्षण ले रही थी। सब हैरान होकर स्वीटी को देख रहे थे। आज हम अपने वचनों को वापस लेते हैं । आज हम जान गए कि नर्स का काम तो मरीजों की जान बचाना होता है। तुमने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया।

आज हम ही कहते हैं कि बेटे तुमने बहुत ही अच्छा काम किया। हम तुम्हारे नर्स बनने पर गुस्सा नहीं है। आज तक सभी ने यही कहा था हम सभी से सुनते आए थे कि नर्स बनना लड़कियों को शोभा नहीं देता। सुनी सुनाई बातों पर हमनें विश्वास कर लिया था। बेटी हमें माफ कर दो। हमें तो नर्स बहुत ही पसंद है। आज तुम्हारे जज्बे को हम सलाम करतें हैं। कल ही हम तुम दोनों की सगाई कर देते हैं।आज इसने हमें सच्चाई से अवगत करा दिया है। आज से हम तुम्हें नर्स बनने के लिए नहीं रोकेंगे।

रोहन ने स्वीटी का हाथ पकड़ा और बोला आज हमारे माता पिता की आंखों से झूठ का नकाब उतर गया है। अब हम खुशी-खुशी शादी करने के लिए तैयार हैं।

हकीकत

अधिराज के परिवार में उनका लड़का लाखन था। वह एक प्रतिष्ठित जाने-माने व्यापारी थे। उनका बेटा लाखन बहुत ही चंचल स्वभाव का था। जब भी स्कूल जाता चमचमाती गाड़ी उसका इंतजार करती। खाने में भी सौ नखरे
दिखाता। मां मैं यह नहीं खाता मैं तो बस पूरी हलवा और मिठाई। ना जाने क्या क्या? जब तक उसे मिठाई नहीं मिलती तब तक उसे ऐसा महसूस होता कि उसने कुछ भी नहीं खाया है। स्कूल में मैडम जब उससे प्रश्न पूछती वह मैडम के साथ भी ठीक ढंग से पेश नहीं आता था। हर बात पर जिद करना उसकी आदत में शुमार था। इस तरह करते-करते वह दसवीं कक्षा में पहुंच गया था। एक बार स्कूल में सभी बच्चों के साथ पिकनिक पर गया था
अचानक जिस बस में बच्चे गए थे वह बस एक गहरी खाई में नीचे गिर गई। किसी भी बच्चे का कुछ भी पता नहीं चला कौन कहां गया।? वह बच तो गया मगर उसने अपने आपको ऐसी जगह पाया जहां उसका कोई भी नहीं था।

एक किसान के घर में था। उस परिवार ने उसे बचाया। वह किसान और उसकी पत्नी इतने मेहनती थे और उसकी पत्नी तो उससे भी अधिक मेहनत करने वाली थी। किसान की पत्नी ने उस पर पानी के छीटें मारकर उसे जगाया। उसे कहा कि भगवान की मर्जी के बिना एक भी बाल बांका नहीं हो सकता।

हमने तुम को उस बस में से बचाया जहां पर कोई भी बंदा सुरक्षित नहीं बचा होगा। तुम खुशनसीब हो जो तुम बच गए। यह बताओ तुम कहां के हो। उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। ना माता का नाम ना पिता का। उसे कुछ भी याद नहीं था कि वह किस दुर्घटना का शिकार हो गया है। किसान ने उसे बहुत पूछने की कोशिश की मगर वह कुछ भी नहीं बता सका। किसान ने उसे अपने घर पर रख लिया। 6 महीने से भी ज्यादा हो गए थे कोई भी उसे लेने नहीं आया था। किसान ने उसे अपना ही बेटा मान लिया था।

एक दिन किसान बोला बेटा सुबह जो जल्दी उठता है उसे ही हम खाना देते हैं। वर्ना भूखे रह जाना पड़ता है। किसान की पत्नी अपने पति से बोली बोली यह किसी धनी परिवार का बेटा है। इसके साथ इस तरह पेश मत आओ। किसान बोला मुझे इससे पूरी सहानुभूति है मगर मैं अपने कानून का बड़ा पक्का हूं। जब तक बेटा तुम मेरी बात नहीं मानोगे तुम को कुछ खाने को नहीं मिलेगा। उसने ठोकर मार कर थाली नीचे फेंक दी। किसान की पत्नी उसे प्यार करते हुए बोली बेटा खाने की प्लेट को ठोकर नहीं मारते। वह सारा दिन भूखा रहा किसान नें उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया। वह कहने लगा मुझे सोने के लिए जो बिस्तर दिया है वह भी चुभता है। इस बिस्तर पर मुझे नींद नहीं आती। किसान बोला मेरे घर पर तो यही बिस्तर है। इसमें ही सोना पड़ेगा। वर्ना नीचे सो जाओ। सारी रात बैठा रहा। कब तक खाने पर गुस्सा निकालता। कब तक नहीं सोता। किसान उससे कहने लगा कि मैं तुम्हें समझाने की कोशिश कर रहा हूं। अभी तक तो तुम बीमार थे मैंने तुम्हें इसलिए कुछ नहीं कहा। परंतु अब तो तुम्हें यहां पर सब कुछ सीखना पड़ेगा।

मैं तुम्हें अपना बेटा बना कर पालूंगा परंतु तुम्हें मेरे कहे मुताबिक काम करना होगा। किसान ने उसे समझाया बेटा हम जो कुछ मिलता है खा लेना चाहिए। हमें यह कभी नहीं करना चाहिए कि यह नहीं खाना है। वह नहीं खाना खाना है। अन्न का कभी भी अनादर नहीं करना चाहिए। कई बार किसी को कुछ भी खाने को नहीं मिलता। वह उसको एक ऐसी जगह ले गया जहां पर बच्चे कूड़ेदान में से ढूंढ कर खाने खाना खा रहे थे। उनको देखकर लाखन के मन में आया वह भी तो अन्न का निरादर कर रहा था। उस दिन के बाद उसने कभी भी खाने का अपमान नहीं किया। वहां पर उसने सीखा कि कैसे काम किया जाता है? सुबह जल्दी उठने लगा। किसान नें उसकी खूब सेवा कि उसी के परिणाम स्वरुप ही वह ठीक हो गया था। एक दिन उसे कुछ-कुछ याद आ गया कि उसने दसवीं की परीक्षा दी थी। उसके इलावा उसे कुछ भी मालूम नहीं आ रहा था।

एक दिन वह बैठा इसी तरह सोच रहा था कि उसे कुछ कुछ याद आया। वह तो सेठ अधिराज का बेटा है। वह कानपुर का रहनेवाला था। उसने किसान को कहा कि मुझे सब कुछ याद आ गया है। मैं अपने घर जाना चाहता हूं। किसान ने उसे उसके घर जाने के लिए उसे किराया दे दिया। उसे सब कुछ याद आ गया पिज्जा बर्गर खाए बिना तो वह किसी से भी बात ही नहीं करता था। यह क्या? वह तो एकदम बदल चुका था। वह स्कूल में सब के साथ लड़ता था। वह बिल्कुल बदल चुका था। किसान जो काम करता था वह भी उसके साथ काम करता था। वह अपने घर वापिस आया उसके माता-पिता उसे देखकर बड़े खुश हुए बोले बेटा तू कहां चला गया था?
उसने अपने पिता को कहा कि मेरी यादाश्त चली ग्ई थी। इसी कारण मैं आप के पास नंही लौट सका।

अधिराज अपनी पत्नी से बोला मेरा बेटा जो भी वस्तु मांगता है उसे अवश्य दिलाना। मेरे पास रूपए पैसे की कोई कमी नहीं है। उसकी मां ने तो आशा ही छोड़ दी थी कि अब कभी भी वह अपने बेटे से मिल भी पाएगी या नहीं। उसने अपनें बेटे कोे गले लगाते हुए कहा बेटा तेरे बिना तो यह घर बहुत ही सुना हो गया था।

लाखन फिर से स्कूल जाने लग गया था। उसके सारे दोस्त उसे कहते चलो लाखन आज दोस्तों के साथ घूमने चलते हैं। वह प्यार से कहता चलेंगे अभी नहीं जिस दिन ज्यादा काम नहीं होगा उस दिन चले जाएंगे। उसके सारे स्कूल के दोस्त उसके बदले व्यवहार को देखकर चकित रह गये सोचा कि शायद दुर्घटना में चोट लगने के कारण वह बदल गया है। वह हर काम को अच्छे ढंग से करता। स्कूल में पढ़ाई करते करते वह स्कूल में अच्छा स्थान प्राप्त करने लग गया था। एक दिन स्कूल कैंटीन में बैठा था उसने कुछ दोस्तों को कहते सुना कि यह अधिराज का बेटा है। इसके पिता बड़े सेठ हैं। इसके सबसे ज्यादा नंबर इस वजह से आते क्योंकि उनके पिता स्कूल के अधिकारी महोदय से मिलकर अपने बेटे के अच्छे अंक दिलवा देते हैं। वह अपने दम पर तो कुछ नहीं करके दिखाता। बडा आया अच्छे अंक लाने वाला। इस बार जो बारहवीं के परीक्षा में अंक आए हैं यह उसकी अपनी मेहनत नहीं है यह तो इसके पापा की सिफारिश के परिणाम स्वरुप आये। अपने पिता के पास जाकर बोला पापा आप मेरी पढ़ाई के विषय में किसी के पास सिफारिश करने के लिए नहीं जाएंगे। मैं जो कुछ बनना चाहता हूं अपने दम पर। मेरी पहचान तो आप के दम पर ही है। सब यही कहते हैं देखो अधिराज सेठ का बेटा। आज मुझे जब उन्होंने यह सुनाया कि इस बार भी अपने पापा की सिफारिश पर अंक हासिल किए। यह अपने आप तो कुछ नहीं बन सकता।

पापा इस तरह से पढ़ने में मेरा मन नहीं लगता। मैं अपनी मेहनत से अपने दम पर अपनी पहचान बनाना चाहता हूं। मैं यहां से जा रहा हूं। मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। आप सोच लेना कि आपका बेटा लौटकर आया ही नहीं। आप मुझे ढूंढने की कोशिश मत करना। एक दिन मैं अपने दम पर अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाने कर आपके पास लौटूंगा। अगर सफल हो गया तो।

मां पापा आप मुझे रोते-रोते विदा नहीं करेंगे। आप एक बेटे का तिलक कर के मुझे जाने की इजाजत दीजिए ताकि मैं अपने मकसद में सफल हो सकूं। यहां रहा तो मैं लोगों की कटाक्ष भरी बातें नहीं सुन सकता। मैं अब बिल्कुल बदल चुका हूं।

अधिराज नें अपने बेटे के गले लगकर कहा बेटा मैं गलत था। मुझ में ही कमी थी। मैं तुम्हें पहचान नहीं सका बेटा। जहां तुम जाना चाहते हो जाओ लेकिन बड़ा अफसर बनने के बाद लौट कर जरूर आना। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे लौटने का इंतजार करेंगे।

एक बार फिर वहां अपने बूढ़े बाबा के और मां के पास लौट आया। किसान की आंखों में आंसू आ गए बोले बेटा तुम्हें क्या अपना परिवार रास नहीं आया हम गरीबों के पास तुझे क्या मिलेगा। मैं तुझ से कितनी रुखाई से पेश आया। इसके लिए तू मुझे माफ कर देना बेटा मैं तो तुझे सुधारना चाहता था। मुझे खुशी है कि तुम सुधर गये। आज मैं तुम्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। मैं एक बड़े धनी सेठ का बेटा था बिगड़ी हुई औलाद था। मैं हमेशा अपने पिता की कमाई दौलत पर ऐश करता रहा। कभी मेहनत नहीं करता था। खूब शानो-शौकत से रहता था। हमारे पास गाड़ी थी। बंगला था मैं अपने पिता को कहता था कि मुझे कमा कर क्या करना है? जो कुछ आप कमाते हो वही मेरे लिए बहुत है। उसके पिता उसे समझाते बेटा यह नहीं सोचना चाहिए मैंने कितनी मेहनत से व्यापार खड़ा किया है
तुम्हें भी मेहनत करनी चाहिए। लेकिन मैं आलसी बन चुका था। मैंने कभी उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। ठाठ से जो कुछ मिलता ऐश करता। कुछ दिनों के पश्चात मेरे पिता ने मेरी शादी एक अमीर लड़की से कर दी। वह भी अमीर परिवार की लड़की। मुझे तो बैठे-बिठाए करोड़ों की संपत्ति मिल गई। इतना खुश था लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन मेरे पिता को व्यापार में घाटा हुआ। उन्होंने अपना सारा कुछ बेच दिया। कुछ भी नहीं बचा। वह मुझसे बोले बेटा अब तो तू भी हमारा हाथ बंटा। मैं ठहरा आलसी। मुझे अपने पिता के ऊपर गुस्सा आया और ना जाने गुस्से में अपने पिता को भला बुरा कहा। मुझे काम करने की आदत नहीं थी। बैठ बैठ कर खाने वाला क्या करे? पढ़ाई भी अच्छे ढंग से नहीं की। मैंने गुस्से में घर छोड़ने का निश्चय कर लिया घर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि मेरे माता पिता का देहांत हो गया है।

मैं जब अपने पिता का घर छोड़कर आया मुझे ना जाने कितनी दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। दुकान पर लोगों के जूठे बर्तन साफ करने पड़े। तुम जिस प्रकार खाने पर लात मार रहे थे उसी प्रकार मैंने भी खाने को लात मारी थी। ठोकरें खाने के बाद मैंने मेहनत करके आज जाकर कहीं एक बहुत बड़ा किसान बन पाया। तुम सोचतें होगें कि मेरे पास एक ही खेत है। नहीं आज मैं अपनी मेहनत के दम पर इस मुकाम तक पहुंचा हूं कि मैं दस बारह नौकर रख सकता हूं। लेकिन मैंने मेहनत के दम पर काम करना नहीं छोड़ा। मेरी पत्नी ने भी इस काम में मेरा साथ दिया। वह कभी भी अपने माता-पिता के पास मांगने नहीं गई। जो कुछ हमने इकट्ठा किया है अपनी मेहनत के बल पर इसलिए मैंने तुम्हें डांटा। आज मैं दस बारह नौकर रख सकता हूं मुझे अपना बचपन याद आ गया। मैं तुम मैं अपने आप को देख रहा था तुम भी एक बड़े घर के बच्चे हो। किसान बोला आज मैं अपने माता पिता को वापस नहीं ला सकता। उनको बताने के लिए कि आज मैं एक बहुत बड़ा किसान बन गया हूं। लेकिन मैं इतनी धन-दौलत होने के बावजूद भी उन्हें यह मैं बता नहीं सकता। मैं आजकल के भट्के युवकों को मेहनत से कमाने की सलाह देता हूं। मेरे पास आज इतने बच्चे काम कर रहे हैं लेकिन मेरी पत्नी ने आज तक कोई भी नौकर नहीं रखा।

लाखन को सब कुछ समझ में आ गया था। वह बोला बाबा मैं अपने पापा के पास लौटा था। खूब मेहनत कर रहा था कि लेकिन सब मुझे मेरे पिता की पहचान से जानते हैं। मैं मेहनत के दम पर अपना रुतबा हासिल करना चाहता हूं। किसान बोला ठीक बात है बेटा। तुम यहां पर रहकर मेहनत करो।

अब लाखन से वह लक्ष्मण बन गया था। उसने अपना नाम बदल लिया था। अपने बाल भी लंबे कर दिए।

लक्ष्मण ने इंजीनियर में पहला स्थान प्राप्त किया। जब उसे इंटरव्यू में पूछा गया कि तुम अपनी मेहनत का श्रेय किसे देते हो तो वह बोला कि मैं इन बूढ़े माता-पिता को इसका श्रेय देता हूं जिन्होंने मुझे मेहनत के दम पर आगे बढ़ने की शिक्षा दी। जब प्रेस रिपोर्टर आए तब किसान बोला आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह बच्चा अपनी मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करना चाहता था

वह एक सेठ अधिराज का बेटा है जब भी वह किसी टैस्ट को देता तो उसे यही सुनने को मिलता कि यह तो इसकी मेहनत का परिणाम नहीं। यह तो सेठ अधिराज की सिफारिश का नतीजा है। मेहनत करने के बावजूद भी उस बच्चे को यह सुनने को यही मिलता। एक दिन वह बच्चा अपने पिता का घर छोड़ कर मेरे पास आ गया। वह मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करना चाहता था।

आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि इस बच्चे ने अपनी मेहनत के दम पर सफलता अर्जित की है। जिस इंसान में मेहनत का जज्बा हो वह चाहे कहीं भी रहे। गरीब के घर में या अमीर परिवार में। वह सफलता अर्जित कर सकता है। बेटा आज तुम खुशी खुशी अपने माता-पिता के पास लौट कर जा सकते हो।

अधिराज के पिता ने जब एक बच्चे की फोटो अखबार में देखी उसका चेहरा उसके बेटे लाखन से मिलता था। वह अपनी पत्नी से बोले कि यह हमारे बच्चे की तरह लग रहा है देखो। अपनी मेहनत के दम पर इस बच्चे ने सफलता अर्जित की है। लखन ने फोन करके अपने पिता को कहा पापा मैं अपनी मंजिल को पाने में सफल हो गया हूं। आज मैं बहुत खुश हूं। आज मैं इन्जनियर बन कर वापस लौटकर आ रहा हूं। इस खुशी के साथ आज मेरी अपनी पहचान है। अखबार में आपने फोटो देखी होगी। मैंने अपना नाम बदल लिया था।

जब वह कानपुर वापिस आया तो उसके माता-पिता उसे देखकर बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा कि सचमुच में ही हमारे बेटे ने अपना सपना पूरा कर दिखाया जिसकी कि वह बरसों से चाह कर रहा था।

दोस्त वही जो मुसीबत में काम आए

किसी गांव में एक नाई रहता था। वह गांव के लोगों के बाल काटता। सेव करता और लोगों की मसाज करता। गांव में बहुत लोग उस से बाल कटवाते। सारी गांव में केवल वही एक नाई था। उसकी दुकान पर लोगों का जमघट लगा रहता था। लोगों के साथ प्यार से पेश आता था। लोग भी उस से ही बाल कटवाते।एक दिन की बात है कि उसकी दुकान के सामने उसी की बस्ती में एक नया आदमी आ गया जब उसने अपने घर के बाहर बोर्ड लगाया तो नाई चौंका।किशन नें देखा उसकी दुकान के ठीक सामने एक नया नाई आ चुका थां। उसको इस प्रकार नाई का काम करता देकर किशन का खून खौल उठा। वहसोचनें लगा यह कंहा से आ टपका। इस गांव की बस्ती में तो पहले मेरी ही धाक थी।इस नें तो आ कर मेरा सब कुछ मलिका मेट कर दिया।मैं अब क्या करुं। वह सोचने लगा अब मैं क्या करूं अब तो लोग इसके पास ही बाल कटवाने जाएंगे उसने दरवाजा खटखटाकर पूछा भाई मेरे तुम कहां से आए हो? नरेंद्र बोला कि मैंने सोचा कि दूसरे गांव में अपनी नाई की दुकान खोलता हूं। मैंने इसलिए दुकान तुम्हारी दुकान के सामने खोली ताकि हम दोनों एक ही व्यवसाय में है तो हमारी दोनों की खूब पटेगी इसलिए मैंने यह जगह चुनी। मैंने सोचा दूसरे गांव में जाकर अगर कोई रोजगार जमाया जाए तो वह ज्यादा फलता-फूलता नहीं है।
इसलिए मैं अपनी पत्नी मां और अपने बच्चों को यहां ले आया हूं। आज से मैं तुम्हारा पड़ोसी हूं। आशा है कि आप और मैं दोनों मिलकर इस व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे। किशन मन ही मन सोचने लगा इसने तो आते ही मेरे धंधे पर लात मार दी अब तो लोग इसके पास ही बाल कटवाने जाएंगे। अब तो मेरे ग्राहकों की संख्या कम हो जाएगी। मेरे पास लोग बाल कटवाने कमआएंगे क्योंकि कई बार मैं गुस्सा होने पर लोगों को खरी-खोटी सुना देता हूं। यह तो बहुत ही बुरा हुआ। इसको यहां से निकालने के लिए मुझे कोई योजना बनानी पड़ेगी।
एक दिन अपनी दुकान को बंद करके उस गांव के सरपंच के पास गया और बोला हमारे गांव में एक नये आदमी नें नाई की दुकान खोल दी है। वह इस गांव का नहीं है। इसको आपने कैसे आने दिया। किसी को पूछे बिना ही इस ने अपनी दुकान खोल ली है अगर आप कुछ नहीं करेंगे तो मैं पुलिस के पास जाऊंगा। बिना सोचे समझे बाहर से आकर कोई इंसान यहां पर आ कर काम धंधा कैसे कर सकता है। जब तक कि वह इस गांव का ना हो या उसकी अपनी जमीन जायदाद होनी चाहिए। वह तो अपने पूरे परिवार को लेकर यहां आ गया है। आप इसे यहां से जल्दी निकालने का प्रयास करें।
पंचायत अधिकारी के पास और पुलिस अधिकारी के पास जाकर वह न्ए नाई की शिकायत का फरमान लेकर गया। पुलिस इंस्पेक्टर और पंचायत के पंच नें कहा की तुम्हारी बात पर गौर किया जाएगा। वह बोलाआप जल्दी से जल्दी निर्णय ले। वह वहा जा कर अपने मन की भड़ास निकाल चुका था। मन ही मन किशन को हर रोज गाली निकालता और सोचता कि यह व्यक्ति यहां से कहीं और चला जाए।
कुछ लोग नए-नाई के पास भी बाल कटवाने आने लगे। किशन की बात सच साबित हुई। आधी से अधिक लोगों की संख्या बिशन के पास बाल कटवाने जानें लगी क्योंकि वह लोगों के बड़े प्यार से बाल काटता था। किशन सोचने लगा कि अब मैं क्या करूं? इस गम में वह बीमार पड़ गया। उसके सामने अदालत से एक नोटिस आया जिसमें लिखा था कि जल्दी से जल्दी आकर अपनी जमीन के 50,000रु जल्दी से जल्दी इस इतवार को आकर जमा कर दो। वर्ना तुम्हारे खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। अब तो किशन और भी निराश हो गया। बस्ती वालों से तो कुछ कह नहीं मांग सकता था क्योंकि कोई भी उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आता था। क्योंकि वह बहुत ही गुस्से वाला था। उसके इसी बर्ताव के कारण लोग उसे रुपए देने से कतराते थे। इस गम में वह बीमार पड़ गया। उसको बीमारी की हालत में देख कर बिशन बोला भैया अब आप आराम करो। मैं आपकी दुकान में आकर आज बाल काट देता हूं। आज मैं अपनी दुकान पर ताला लगा देता हूं। क्यों कि मुझे आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती। अगर मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकूं तो मैं अपने आप को भाग्यवान समझूंगा। मुसीबत के समय एक दोस्त की सेवा करना हमारा फर्ज होता है। उस दिन बिशन ने सारा दिन अपनी दुकान बंद रखी। उसको कुछ ठीक होते देख बिशन किशन से बोला भाई मेरे मैं कई दिनों से मैं तुम्हें बहुत उदास देख रहा हूं। क्या बात है? मुझसे कहो शायद मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूं। किशन बोला कोई बात नहीं। बिशन बोला कि भाई मेरे मैंने तुम्हें दोस्त ही नही भाई भी कहा है कहीं ना कहीं तुम मुझसे बड़े हो इसलिए तुम निश्चिंत होकर अपने मन की बात मुझ से कह सकते हो। तो शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं अगर तुम मुझ से मदद मांगना चाहते हो तो आज मेरे घर पर आ सकते हो। किशन चारों तरफ से निराश हो चुका था। उसके पास जमीन के रुपए जमा करवाने के केवल 5 दिन शेष थे। वह सोच रहा था कि आगे इन 5 दिनों में वह जमीन के रुपए नहीं चुकाता है तो वह जमीन सरकार अपने नाम कर लेगी। अब मैं क्या करूं? हार कर उसने सोचा क्यों ना बिशन के पास मदद मांगने जाऊं। उसने मुझसे कहा था कि शायद ऐ मैं तुम्हारी किसी काम आ सकूं। किशन ने अपने दोस्त बिशन के घर जाने का निश्चय कर लिया। किशन अपने दोस्त बिशन के घर पहुंचा तो वह देखकर हैरान हुआ कि बिशन एक छोटे से कमरे में रहता था। वहीं पर उसकी बूढ़ी मां उसकी पत्नी और उसके दो बच्चे एक छोटे से कमरे में रहते थे। वहीं पर खाना बनाना आराम करना बस एक कमरे में ही सब कुछ करते थे। वहीं पर ही बिस्तर लगाकर सोते थे। एक और स्टोब रखा हुआ था जहां पर उसकी पत्नी खाना बनाती थी।
किशन जब उनके घर पहुंचा तो उनकी हालत देखकर हैरान रह गया उसका एक बच्चा रोता हुआ आया बोला अंकल अंकल आप क्या लोगे? खाना या चाय। किशन ने पूछा कि तुम्हारा बेटा लंगड़ा कर चलता है तो वह बोला मेरे बेटे को बचपन से ही पोलियो है। उसने एक और लेटी हुई बुढिया की ओर देखा वह कराह रही थी और बार-बार कह रही थी कि हे भगवान मुझे उठा ले। इस बीमारी से मैं तंग आ गई हूं। उसकी मेज पर ढेर सारी दवाइयाँ रखी हुई थी। उसको कराहते देखकर बिशन बोला मां तू चिंता मत कर तू ठीक हो जाएगी। अभी तेरा बेटा जिंदा है। तभी उसकी पत्नी चाय बना कर लाई। वह भी आहिस्ता आहिस्ता चल रही थी। वह एक आंख से अंधी थी। यह सब देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। वह कितना दिलेर है। वह हरदम हंसी खुशी अपनी मां बीवी और बच्चे की देखभाल कर रहा था। वह भी एक छोटे से कमरे में। उसको चुप देख कर बोला भाई मेरे अब तो मुझे बता तुझे क्या चिंता है? किशन बोला कि तुम मेरी मदद नहीं कर सकते। बिशन बोला तुम मुझे बताओ तो सही। मुझे 50000रु अपनी जमीन के 5 दिन में जमा करवानें हैं। मैं अगर पांच दिनों के अन्दर 50000रु जमा न कर पाया तो मेरी जमीन सरकार के कब्जे में चली जाएगी। बिशन बोला यह बात है चलो मैं एक काम करता हूं।
मैंने अपनी मां के ईलाज के लिए 30000 रुपये इकट्ठे किए। हैं मेरी पत्नी के पास अपने कुछ गहनों हैं। वह गहनों का क्या करेगी? इसको बेच देंगे। हमारे पास₹50000 का इंतजाम हो जाएगा। रुपयों को ले जाकर तुम अपनी जमीन छुड़वा सकते हो। फिर इकट्ठे करके मुझे लौटा देना उसके यह वाक्य सुन कर किशन हैरान रह गया। किशन मन ही मन अपने आप को कोसने लगा मैंने इस किशन को अपने मन में ना जाने कितनी गालियां दे डाली और एक है जो मेरी मदद करने चला है।
भगवान इस के लिए तो मुझे कभी भगवान भी माफ नहीं करेंगे। मेरे घर में तो मेरी बीवी मेरे बच्चे मेरा परिवार सब खुशहाल है। परंतु इन को देखो सभी इस स्थिति में है परंतु इसके मन में दुख की एक शिकन भी नहीं है। मैंनें इस भोले भाले इंसान के साथ बेईमानी की है। मैंने गांव के सरपंच को पुलिस अधिकारी को इस व्यक्ति को गांव से बाहर निकालने के लिए खत लिख दिया है। भगवान इससे पहले कहीं देर हो जाए अपनी अर्जी उस से वापस ले लेता हूं। नहीं तो एक दोस्त का दूसरे दोस्त पर से सदा के लिए विश्वास उठ जाएगा। यह मेरे लिए ₹50000 देने के लिए तैयार हो गया।
मेरी सोच कितनी गंदी है। हे भगवान। किशन जल्दी-जल्दी सरपंच के पास गया और बोला सरपंच साहब आपको जो मैंने खत लिखा था कि मेरे घर के पास ही एक अनजान व्यक्ति आकर रह रहा है वह सचमुच में ही अच्छा इंसान है। कृपया करके आप इस खत को फाड़ दे। मैं उसको देख कर सोच रहा था कि उस व्यक्ति ने तो आते ही मेरी दुकान पर ताला लगा दिया परंतु मेरी सोच गलत थी हमें बिना सोचे समझे किसी व्यक्ति के बारे में कोई राय कायम नहीं करनी चाहिए। कृपा करके आप इस खत को फाड़ दे कहीं ना कहीं मेरी भूल थी। मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है।
सरपंच महोदय बोले बेटा शाबाश अगर तुम्हें थोड़ी सी भी देर हो जाती तो आज ये अर्जी उस तक पहुंच जाती। आज ही मैं अपने आदमी को वहां भेज भेजने वाला था परंतु अब मैं ऐसा नहीं करूंगा। किशन ने पुलिस इंस्पेक्टर को भी कह दिया कि मैं तो गुस्से में ऐसा कह रहा था। वह आदमी एक नेक इंसान है क्योंकि आप मेरे रिश्तेदार हैं आप उस इंसान के साथ अन्याय नहीं करेंगे। मैं अपनी अर्जी खारिज करता हूं। आज मैं जान गया हूं कि मुसीबत के समय में जो काम आता है वही सच्चा दोस्त होता है। वह दोस्त चाहे कोई भी हो।

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