कोई अपना सा

गाजियाबाद जाने वाली ट्रेन 2 घंटे लेट थी प्लेटफार्म पर लोगों की बहुत ही भीड़ थी। यात्री एक स्थान से दूसरे स्थान तक इधर उधर ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ रहे थे। एक बच्चा दौड़ता दौड़ता आया बोला आंटी अंकल मुझे बचा लो। उस बच्चे की दर्द भरी पुकार सुनकर आकाश की पत्नी ने उनकी तरफ देख कर कहा यह बच्चा मुश्किल में लगता है। हमें इसकी मदद करनी चाहिए। वह बोले तुम इतनी दयावान हो तुम से दूसरों का दर्द नहीं देखा जाता। इस बच्चे को बिलखता देख कर तुम से रहा नहीं गया। चलो अंकिता और साहिल को संभालो। मैं देखता हूं। वह दौड़ा दौड़ा उस बच्चे के पास जाकर बोला। वह लोग तुम्हारा पीछा क्यों कर रहे हैं? वह बोला मैं गाजियाबाद का रहने वाला हूं। मेरी मां का देहांत 2 महीने पहले हो गया। सौतेली मां मुझे इन दरिंदों के हवाले करना चाहती है। मैं बड़ी मुश्किल से जान बचा कर आया हूं। आंटी मैं आपके घर पर रह जाऊं। मेरी मां मुझे बहुत प्यार करती थी। उनके मर जाने के बाद मेरे पिता नें दूसरी शादी कर ली। मेरे सौतेली मां ने एक दिन मुझे इन गुंडों को बेचने का फैसला कर लिया। मैं वहां से जान बचा कर भाग आया।
अंकिता की मां अपराजिता ने अपने पति आकाश को कहा हम भी गाजियाबाद जा रहे हैं। वहां चल कर पता करते हैं कि यह बच्चा ठीक कह रहा है या गलत । गाजियाबाद जाने वाली ट्रेन प्लेटफार्म पर आ चुकी थी। अपराजिता बोली हम इस बच्चे को साथ ले चलते हैं। इन दरिंदे लोगों के हाथ में हम इस मासूम को नहीं छोड़ सकते। हो सकता है यह बच्चा जो कह रहा होगा वह ठीक हो।

उसने उस बच्चे को भी ट्रेन में बिठा दिया। गाजियाबाद स्टेशन आने ही वाला था। गाजियाबाद के पास इस बच्चे का घर था। आकाश उस बच्चे के घर बताए हुए पते पर पहुंचा। उसने उसके घर जाकर पता किया आसपास के लोगों से पता चला कि वह बच्चा ठीक ही कहता है। इस बच्चे का नाम छोटू है। इसकी मां को मरे हुए 2 महीने भी नहीं हुए इसके पिता ने दूसरी शादी कर ली। हमने इस बच्चे को बेचनें की बातें करते हुए लोगों को सुना था। आकाश जब वापस आए तो बोला यह बच्चा ठीक ही कहता है। यह गुंडों से जान बचाकर भाग रहा था। अपराजिता बोली ठीक है हम इस बच्चे को अपने साथ ले चलते हैं। यह हमारे घर में ही रहेगा। कोई बात नहीं यह बच्चा हमारे घर में सुरक्षित रहेगा। हम इसको अपने घर पर ही रखेंगे। यह घर के छोटे-मोटे काम कर दिया करेगा। पास के स्कूल में इसे भेज देंगे। कहीं इस बच्चे को फिर से कहीं गुंडे पकड़ कर ना ले जाए। उन्होंने पास के स्कूल में उसे भी डाल दिया। वह छोटा सा छोटू उनके घर पर ही रहने लग गया। छोटे-मोटे काम अपराजिता ने उसे सिखा दिए थे। अपराजिता जब घर का सारा काम कर चुकती तो छोटू भी अपराजिता के पास आ जाता। वह उसे बहुत प्यार करती उसके सिर पर हाथ फेरती तो उसे मालूम होता कि जैसे उसकी मां उसके सिर को सहला रही हो। वह भीअंकिता और साहिल को बहुत ही प्यार करता था।
उस को उनके घर में रहते-रहते छः साल हो चुके थे। वह अठारह वर्ष का हो चुका था। उसनें दोनों बच्चों के टिफिन पैक कर लिए थे। वह घर के सारे काम करने में व्यस्त हो गया था।आकाश भी उतना ही प्यार करते जितना कि वह अपने दोनों बच्चों को प्यार करते थे। जब कभी भी बिमार पड़ता तो उसकी इस तरह ही देखभाल करते जैसे कि वह उनका अपना ही बच्चा हो।

गर्मियों की छुट्टियां आने वाली थी। इस बार अपराजिता के देवर देवरानी उसके बच्चे उनके घर आए थे। वह काफी दिन की छुट्टी में उनके पास छुट्टियां बिताने उनके घर आए थे। उनके साथ उनका छोटा बच्चा भी था।
सविता ने कहा कि मैं अपने मायके जाना चाहती हूं। उसके मायका का रास्ता केवल वहां से दो घंटे का ही था। अपराजिता अपनी मां से मिलने चली गई। अंकिताऔर साहिल को वहीं छोड़ गई। वह दो दिनों के लिए गई थी। उसके भाई की शादी थी। बच्चों को स्कूल से छुट्टी नहीं थी इसलिए वह दोनों आ नहीं सके। छोटू उन्हें छोड़ने चला गया था। अपराजिता के जानें के बाद घर सूना सूना लग रहा था।
छोटू अपनी अपनी मालकिन के बिना उदास था। घर के सारे काम करने के बाद उसे भी बड़े जोर की भूख लग रही थी। घर के सारे सदस्य एक मेज पर बैठकर खाना खाने की तैयारी कर रहे थे। जल्दी से खाना बना कर उनके पास खाना खाने बैठ ग्ए थे। देवरानी ने छोटू को डांटते हुए कहा कि तुम हमारे साथ नहीं बैठ सकते। उठो,! जब सारे लोग खाना खा लेंगे तभी तुम्हें खाना मिलेगा। घर के सारे सदस्य खाना खाने लग गए थे। अंकिता और साहिल को भी बहुत ही बुरा महसूस हो रहा था। छोटू उठा और खाना बनाने लग गया। वह बहुत ही उदास था वह फूट फूट कर रोना चाहता था। उसको कोई प्यार करने वाला नहीं था। उसके सामने उसकी मां का चेहरा आ गया। सबसे पहले उसके मुंह में उसके मुंह में रोटी का टुकड़ा डालती थी तभी वह खाना खाती थी। इस घर में कभी उसे अपनी मां की कमी महसूस नहीं हुई। आकाश अपनी पत्नी को लेने उनके मायके गये। छोटू अपने मन कडा करके काम करने में जुट गया।
रात के 12:30 हो चुके थे। घर के सारे काम निपटा कर वह अपना खाना खाने लगा। अपराजिता की देवरानी कहनें लगी खाना गर्म करने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसे ही खा ले। यह घर नहीं है। सारा खाना ठंडा था। उसकी मां भी तो उसे गर्म-गर्म खाना परोसती थी। अपराजिता खाती थी और छोटू को भी खाना डालती थी। आज तो उसे खाने को ठंडा ही खाना मिला था। आकाश ने अपने भाई को फोन करके कहा कि रात बहुत हो चुकी है हमें जल्दी गाड़ी भिजवा दे। उसके भाई ने उनके लिए दूसरी गाड़ी का इंतजाम करवा दिया था। गाड़ी पहुंच चुकी थी।

आकाश और अपराजिता गाड़ी में बैठ कर अपनें घर की ओर रवाना हुए। उनका भाई अपने भाई के साथ नफरत करता था। उसने जो गाड़ी भिजवाई उसके ब्रेक फेल करवा दिए थे।गाड़ी लूडकते लूडकते एक गहरी खाई में गिर चुकी थी। आकाश और अपराजिता दोनों की हालत गंभीर थी। जब आधी से ज्यादा रात हो गई जब वे दोंनों घर नहीं पहुंचे छोटू को चिंता हुई की मालिक मालकिन अभी तक घर नहीं पहुंचे। वह सोचनें लगा आज से पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ। दोनों ठीक टाइम पर घर पहुंच जाते थे। उसकी आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह सोचनें लगा मेरी मालिक मालकिन कहां फंस गए। रात को एक बजे के करीब वह बाहर बालकनी में पानी पीने आया तो उसने आवाज सुनी। आवाज दूसरे कमरे से आ रही थी। अंदर से हंसने की आवाज़ आ रही थी। आकाश के मुंहबोले भाई कह रहे थे कि हमारा मकसद कामयाब हो गया। दोनों मारे गए होंगे उन दोनों को कोई नहीं बचा सकता। अच्छा है हम सारी जमीन जायदाद के मालिक बन जाएंगे। हमारे पास घर के सारे दस्तावेज हैं। हमने सारे घर के कागज अपने नाम पहले ही करवा दिए थे। आकाश के भाई कह रहे थे कि मैंने घर के कागजात मेज पर रखे हैं सुबह उन कागजों की फोटोकॉपी बना लेना। जिससे हमें डर था वह तो मर चुका है। एक नौकर है उसका क्या?। वह तो हमारे पांव की जूती है। उसे तो हम इतना तंग करेंगे कि वह खुद ही घर छोड़कर चला जाएगा। बच्चे हैं, उनको थोड़े दिन प्यार से रखेंगे फिर उनसे नौकरों वाले काम करवाएंगे। मैं कब से इनकी जमीन ज्यादाद पर नजरें गाए था। आज कहीं जा कर मेरी इच्छा पूरी हुई।

छोटू नें जब सुना हैरान हो गया। उसे सारी बातें समझ में आ गई थी। उसके मालिक ने उसे इतना ट्रेंड कर रखा था कि उसे सारा माजरा समझ में आ गया। चुपके से उठा और पिछले दरवाजे से बाहर जाने को मुडा उसनें जल्दी से वह घर के दस्तावेज ढूंढने का प्रयत्न किया। जल्दी से उसे सारे जमीन के दस्तावेज मिल गए। जल्दी से एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर जा कर उन्हें सारी बातें बताई। पुलिस इन्स्पेक्टर आकाश के दोस्त थे। उसने सारी की सारी कहानी उन्हें सुनाई। उसने बताया कि मुझे लगता है कि आकाश के मुंहबोले भाई ने शायद अपने भाई का एक्सीडेंट करवा दिया है। प्लीज बताइए। मैं क्या करुं? पुलिस इन्सपैक्टर नें उसे वैसे ही नकली वसीयत बनाकर छोटू को दे दी। उसने उस दस्तावेज में लिखवा दिया कि अगर हमें कुछ हो जाता है तो सारी ज्यादा वसीहत के मालिक हमारे भैया भाभी होंगे। जब तक बच्चे 20 साल के नहीं होंगें उनकी देखभाल उनके चाचा चाची करेंगे। अगर बच्चों को 20 साल से पहले कुछ हो जाता है तो सारी की सारी सम्पति किसी सरकारी ट्रस्ट को दे दी जाएगी। रात को आकर छोटू ने वह दस्तावेज अलमारी पर रख दिए। उसनें उन्हें भनक भी नहीं लगने दी।

अपने मालिक मालकिन को ढूंढने पहुंच गया पुलिस स्पेक्टर को उसने कार्यवाही करने को कह दिया था। उसने उन्हें बता दिया था कि अगर वह जिंदा हो तो उनके भैया भाभी को मत बताना कि वह जिंदा है। वह उन्हें फिर से मारनें की कोशिश कर सकतें हैं। इन्सपैक्टर को एक खाई में दोनों पड़े मिले। इतनी गंभीर अवस्था में दोनों को पहचानना भी असंभव था। पुलिस ने उन के भैया भाभी को किसी और की लाश थमा दी थी। लाश से पहचानना मुश्किल हो रहा था। उसके भैया भाभी समझे कि वे दोनों मर चुके हैं। उन्हें तो खुशी हो रही थी कि वे दोंनो मर चुके हैं। बच्चों का रो रो कर बुरा हाल था। अंकिता तो पत्थर की मुर्ति की तरह चुपचाप शून्य में दरवाजे कि ओर निहार रही थी मानों उसके ममी पापा अभी घर वापिस आ जाएंगे।
छोटू बोला तुम दोनों को डरने की जरुरत नहीं है जब तक तुम्हारा भाई जिन्दा है तुम्हे कभी किसी चीज की तंगी नहीं होनें दूंगा। खून की एक एक बूंद दे कर अपने मालिक मालकिन का कर्जा चुकाऊंगा।
मैंनें दिल से उन्हें अपनें माता-पिता समझा था। आकाश और अपराजिता को बचानें के लिए छोटू ने उन्हें सिटी अस्पताल में दाखिल करवा दिया। दोनों कौमा में चले गए थे। उनको अस्पताल में पड़े पड़े छः महीने हो चुके थे। बच्चों के चाची ने कभी भी बच्चों को प्यार नहीं किया। केवल छोटू ही उन्हें प्यार करता था। वह बच्चों का और भी ज्यादा देखभाल करने लगा। बच्चे रो रो कर अपनी मां-पापा को पुकार रहे थे। छोटू ने कहा कि मैं तुम्हारा भाई हूं। क्या हुआ मैं तुम्हारा सगा भाई नहीं हूं? मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जाऊंगा। डरो मत! एक दिन उसके चाची नें अंकिता की पढ़ाई बीच में ही छुडवा दी और सारा काम साहिल और अंकिता को करने को कहते। छोटू से इतना कठोर व्यवहार करते मगर वह उनके तीक्ष्ण प्रहारों को सहता रहा। दोनों बच्चों की खातिर उनसे कुछ नहीं कहता था।

एक दिन वह एक और जगह नौकरी की तलाश में चला गया। उसे एक डॉक्टर के घर नौकरी मिल गई। वह डॉक्टर बहुत ही अच्छे थे। वह विदेश से आ कर भारत में सेटल हो गए थे। वह उनके घर में काम करता। शाम को वापिस घर आ जाता। एक दिन छोटू नें कहा कि मैं यहां से जाना चाहता हूं। मेरे मालिक मालकिन तो हमें छोड़ कर चलें गए। यहां पर मैं नहीं रहना चाहता।

आकाश के भाई साकेत बोले ठीक है। अंकल मैं अकेला नहीं जाऊंगा। मेरे साथ बच्चे भी जाएंगे। मेरे मालिक नें मुझे तब पनाह दी थी जब मैं छोटा सा बच्चा था उन्होंनें मेरी परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। मैं उन्हें अपनें भाई बहन समझता हूं। साकेत बोले नहीं तुम बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा सकते। दोनों बच्चे रोनें लगे। छोटू नें उन दोनों बच्चों को समझाया। बेटा मैं तुम्हारे ऊपर नजर रखूंगा।उसनें कहा आपने नें बच्चों से काम करवाया या इनकी पढाई बीच में पढाई छुड़ाई इन्हें नुकसान पहुंचाने की जरा भी कोशिश की तो मैं तुम पर कार्यवाही करूंगा। वहां से अपना समान लेकर चला गया। साकेत नें पुलिस में जा कर जायदाद के कागज दिखाए। पुलिस वालों नें कहा कि जब तक दोनों बच्चे बालिग नहीं हो जाते तब तक आप लोग उन की देखभाल करोगे। बच्चों को कुछ भी नहीं होना चाहिए। इन बच्चों नें जरा भी शिकायत की तो कार्यवाही की जाएगी। इसलिए वे बच्चों को कुछ भी नहीं कहते थे। अंकिता को फिर से स्कूल में डाल दिया था। छोटू अस्पताल में हर रोज आ जाता। डाक्टर बहुत ही अच्छे थे उसने डाक्टर साहब से कहा मैं सारी उम्र भर आपकी सेवा करुंगा। मेरे मालिक मालकिन को आप बचा लो। मेरा इनके सिवा कोई नहीं है। आपने इन को बचा लिया तो मैं समझूंगा कि आपने मेरे ऊपर बड़ा ही एहसान किया है।

डॉ रस्तोगी को उस पर दया आ गई उसने आकाश और अंकिता का केस अपने हाथ में ले लिया छोटू डॉक्टर साहब के बच्चे को देखता था डॉक्टर की पत्नी भी डॉक्टर थी वह डॉक्टर के बेटे की अच्छे ढंग से देख भाल करता था। उसे इतना प्यार करता था कि डॉक्टर की पत्नी उसके इस व्यवहार से बहुत ही खुश होती थी।

साकेत को छोटू ने बताया ही नहीं था कि उसके मालिक मालकिन जिंदा है। वह तो उसकी जमीन जायदाद को हड़पने के बाद चैन से जी रहे थे। छोटू ने पुलिस वालों के साथ मिलकर नकली दस्तावेज बनाकर उसमें लिखवा दिया था कि जब तक अंकिता और साहिल बालिग नहीं हो जाते तब तक उनकी जिम्मेवारी और देखरेख उनके चाचा चाची कर सकतें हैं। वे जब बालिग होंगे वैसे ही सारी जमीन जायदाद के मालिक बन जाएंगे इन बच्चों को अगर कुछ होता है तो सारी जमीन ज्यादाद सरकारी ट्रस्ट में चली जाएगी इसलिए ही वे अंकित और साहिल को कुछ नहीं कहते थे।

एक दिन जब वे दस्तावेज लेकर पुलिस इंस्पेक्टर के पास गए थे तो उन्हें यह जानकारी हासिल हुई थी उन बच्चों को वे कभी नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे। छोटू हर रोज बच्चों से मिलने उनके स्कूल जाता था। इस बात को काफी समय व्यतीत हो चुका था। बच्चों से इतना प्यार करते थे कि वह कभी-कभी छोटू से मिलने उसके घर आ जाते थे। एक दिन डाक्टर नें छोटू को बताया कि तुम्हारे मालिक मालकिन ठीक हो जाएंगे। वह खुशी के मारे उछल पड़ा। इतना खुश तो डॉक्टर और उसकी पत्नी ने उसे कभी भी नहीं देखा था। वह दोनों के पैरों पर गिर पड़ा बोला आपका यह एहसान में कभी नहीं भूलूंगा। मेरे मालिक मालकिन को जब होश आएगा तब मैं अपनी सारी कहानी सुनाऊंगा कैसे उनके मुंहबोले भाई ने आप की जमीन जायदाद पर कब्जा कर लिया है। आपका सब कुछ अपने नाम कर लिया है। एक दिन जब वह अपने मालिक मालकिन से मिलने आ गया तो उसका चेहरा खिल उठा। धीरे धीरे सब कुछ याद आने लगा। उनका एक्सीडेंट हुआ था।। छोटू ने सारी कहानी उन्हें सुनाई। वे अपने बच्चों से मिलने के लिए तड़पने लगे। छोटू नें उन्हें बताया कि आपके बच्चे ठीक हैं। आप जल्दी ही उनसे मिलेंगे। आप को कौमा में गए हुए दस साल हो चुके हैं। आपके बच्चे भी दोनों कॉलेज में पढ़ते हैं।

छोटू ने अपने मालिक मालकिन को सारी कहानी सुनाई कैसे उनके भाई ने धोखे में आप को मरवाने के लिए षड्यंत्र रचा था। उनको जमीन का मालिक बनना था। सब कुछ आपका उन्होंने अपने नाम करवा लिया है। मैंने आपके बच्चों को एक बड़े भाई की तरह प्यार दिया। उनकी जरूरतों को पूरा किया।

एक डॉक्टर के यहां नौकरी कर ली। आपके भाई ने मुझे घर से निकाल दिया। मैंने डॉक्टर को आपको बचानें के लिए मजबूर कर दिया उन की कोशिशों से आप दोनों आज जीवित हों। मैंने बचपन से ही आपको अपने माता-पिता के रूप में देखा था। मैंने आपके भाई साहब को कभी नहीं बताया कि आप जिंदा हो। मैंने बचपन से ही आपको अपने माता-पिता के रूप में देखा था। अगर उन लोंगों को पता चलता कि तुम जीवित हो तो वे कभी भी आपको जिंदा नहीं रहने देते। वे आप को मारने का षड़यंत्र करते रहते। मैंने बच्चों को भी कभी नहीं बताया कि आप दोनों जीवित हो। वे आप दोनों से मिलने को बेकरार हो जाते अपनी पढाई में ध्यान ही नहीं देते। मैंने अपने मन पर भारी पत्थर रखकर उन्हें यह सच कभी नहीं बताया था कि आप दोनों जीवित हो आपको कोमा में देखकर ना जाने क्या कर डालते। अंकिता और साहिल दोनों बालिग हो गए थे।

साकेत ने चुपके से अंकिता और साहिल को कहा कि इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दो। तुम्हारे माता-पिता सारी जमीन के कागज आप दोंनों के नाम कर गए। हम तुम्हें पहले कुछ नहीं कह सकते थे क्योंकि तुम दोनों बालिग नहीं थे। तुम दोनों बालिग हो गए हो। तुम इन जमीन के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दो। तुम अगर इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर नहीं करोगे तो हम तुम दोनों को भी अलग कर देंगें। दोनों बच्चे डर गए। उनके चाचा चाची ने उन दोनों को एक कमरे में बंद कर दिया।
बच्चों नें छोटू को फोन किया गया चाचा चाची ने उन्हें कैद कर लिया है। वह कहते हैं कि जल्दी से कागजात पर हस्ताक्षर नहीं करोगे तो हम तुम दोनों के साथ ना जाने क्या-क्या करेंगे? तुम जल्दी आ जाओ। हमें डर लग रहा है। छोटू ने उन दोनों से कहा कि तुम डरो मत। तुम्हेंं कुछ नहीं होगा। मैं पुलिस को लेकर पहुंच रहा हूं तब तक तुम उन कागजों पर हस्ताक्षर मत करना।

साकेत नें पुलिस वालों से कहा हमनें जमीन जायदाद के कागज बच्चों से अपने नाम करवा लिए हैं। इस जमीन पर हमारा हक है। पुलिस इन्सपैक्टर बोले यह तो झूठे दस्तावेज थे। जिस पर तुमने बच्चों से हस्ताक्षर करवाए। असली वसीहत तो तो बनाई ही नहीं थी। छोटू नें कहा कि मेरे मालिक मालकिन जिंदा है। मैंने इसलिए यह बात छुपाई क्योंकि मैंने चाचा चाची की पहली ही रात सारी बातें सुन ली थी। उन्होंने मेरे मालिक मालकिन को मारने की साजिश रची थी। मैंने उन्हें कहते सुन लिया था कि हमने गाड़ी के ब्रेक फेल कर के भेज दिया है। हमारी साजिश सफल हो गई है। गाड़ी खाई में गिर गई है। भैया भाभी तो अब कभी भी वापस नहीं आ सकते। हम सारी जमीन जायदाद के मालिक बन जाएंगे। मैंनें उस रात पुलिस इन्सपैक्टर से मिल कर नकली वसीहत तो यहां रख दी थी और पुलिस इन्सपैक्टर को सारी बात बताई। आप लोगों ने समझा कि भैया भाभी मर चुके हैं मैंने आप लोगों को कभी नहीं बताया कि मेरे मालिक मालकिन जिंदा है। आज शाम को वे भी यहां आकर तुम्हारा पर्दा फास कर देंगें। छोटू के साथ अपराजिता और आकाश आ चुके थे। उन्होंनें आ कर कहा जल्दी से हमारा मकान खाली करो। अपराजिता नें अपनें देवर देवरानी को कहा कि आप लोंगों नें हमें धोखा दे कर हमारी गाड़ी को दुर्घटना ग्रस्त करवा कर सारी जमीन जायदाद अपनें नाम करवानी चाही मगर जाको राखे साइयां मार सके न कोई। जिस इन्सान को भगवान बचाना चाहता है उस का कोई भी शत्रु बाल बांका नहीं कर सकता। बच्चे लिपट लिपट कर अपने माता-पिता से मिलकर रो रहे थे। अपने माता-पिता के बिछड़ने के पश्चात् उन्हें कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। वह बोले अगर छोटू भैया नहीं होते तो ना जाने चाचा-चाची हमारा क्या हाल कर देते? उन्होंने हमें किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी। स्कूल में खाना लेकर पहुंच जाते थे। चाची स्कूल को कभी खाना नहीं देती थी। छोटू ने हमेशा अपनी जिम्मेवारी एक बड़े भाई की तरह संभाली। आकाश ने छोटू को कानूनी तौर पर अपना लिया था। उन्होंने उसे कहा कि आज तुमने अपने बेटे होने का कर्तव्य अच्छी तरह निभाया। तुम सचमुच में ही तारीफ के काबिल हो। आज से व्यापार के हर काम में तुम्हारी राय अवश्य लिया करुंगा। तुम नहीं होते तो आज हम अपनें बच्चों से कभी भी नहीं मिल पाते। हमें तुम पर गर्व है।

वर्षा आई वर्षा आई

वर्षा आई वर्षा आई।
बच्चों के मन को खूब भाई।।
काम छोड़कर सारे भागे।
मुस्कान लिए अधरों पर, बच्चे भागे।। आसपास पास के बच्चों की टोली भी आई।
वर्षा आई वर्षा आई सभी के मन को खूब भाई।।

रेल बनाकर दौड़े आए। झूला झूलने सारे आए।
बच्चों ने सावन के गीत बनाए। गा गा कर सबके मन को हर्षाए।।
बहती नदी में नाव चलाई। नाव चलाई।
यह देखकर बच्चों की मां मुस्कुराई।
मां ने सबके लिए ढेर सारी भजिया बनाई।
वर्षा आई वर्षा आई। सब के मन को खूब भाई।।
बच्चों नें सावन के गीत बनाए।
गा गा कर सब के मन को हर्षाए।
गर्मी से सब को राहत दिलाई।
सबके दिलों में खुशी की लहर छाई।
वर्षा आई वर्षा आई। सभी के मन को खूब भाई।।

जंगल में मोर नाचा, मोरनी भी आई।
चातक की भी वर्षा ने प्यास बुझाई।
मेंढक भी तालाब से बाहर आकर
उछल-उछल कर टर्रराए।
कमल के फूल भी तालाब में खिल आए।। जंगल में भी बहार आई।
अपनें साथ ढेरों खुशियां लाई।
वर्षा आई वर्षा आई।
सभी ने गर्मी से राहत पाई। राहत पाई।।

बस्ते का बोझ

रामु जैसे ही स्कूल जाने की तैयारी कर रहा था और मन में सोच रहा था आज वह देरी से स्कूल पहुंचा तो स्कूल में उसकी पिटाई होगी। उसे स्कूल की प्रार्थना सभा में अलग से डैक्स पर खड़ा कर दिया जाएगा और सारा दिन तपती दोपहरी में एक-दो घंटे खड़ा रखा जाएगा। जल्दी से जल्दी स्कूल को भागा जा रहा था। पीछे से रामू की मम्मी ने आवाज लगाई बेटा अपनी कॉपी तो तुम घर पर ही भूल गए। ओह! अंग्रेजी की कॉपी। वह मैडम तो और भी सख्त है। अंग्रेजी की कॉपी तो जल्दी में ले जाना ही भूल गया। दस मिनट उसे घर वापिस आने में लगे। वह भागता ही जा रहा था। रास्ते में सोच रहा था कि आज तो उसे सजा मिल कर ही रहेगी। काश इस भारी बैग से उसे छुटकारा मिल जाता। इस बैग को पिछले सात साल से उठाता जा रहा हूं।मेरे कंधे स्कूल बैग के भार से दुखने लगे। जिस दिन सारी कॉपियां नहीं ले जाते उसी दिन सारी कॉपियां जांच की जाती है। सारा स्कूल बैग भरा होता है उस दिन मैडम कापियों की जांच ही नहीं करती। आज तो मैडम नें खड़ा ही कर दिया। रामु तुम्हारीअंग्रेजी की किताब कहां है? वह होमवर्क करते-करते अपनीे अंग्रेजी की किताब घर पर ही छोड़ आया था।
मैडम ने उसे डैस्क पर खड़ा कर दिया। मैडम सब बच्चों से प्रश्न पूछ रही थी मगर किसी को भी प्रश्नों के उतर नहीं आते थे। तुम सारा दिन बैन्च पर खड़े रहोगे तभी तुम्हें किताब लाना याद रहेगा। रामु से मैडम ने कहा चलो रामू, तुम ही बताओ। रामू बोला मैडम इन प्रश्नों के उत्तर सही देने पर आप मुझे बिठा देगी न। वर्ना रामू के मुंह से वर्ना निकल गया था।
मैडम गुस्से में तपाक से बोली मैडम के सामने जबान चलाते हो खड़े रहो। वह मायूस सा बेंच पर खड़ा रहा। कक्षा में बच्चों का शोर सुन कर विज्ञान के अध्यापक भी वहां पहुंच गए थे।

मैडम को तभी फोन आया। मैडम ने वास्तव सर को कहा कि कृपया थोड़ी देर आप मेरे कक्षा देख लें। मुझे बहुत ही जरूरी बातें करनें प्रिंसिपल के कार्यालय में जाना है। प्रिंसिपल के कार्यलय में पहुंचने पर मैडम ने प्रिंसिपल से कहा मुझे आपने क्यों बुलाया? प्रिंसिपल बोली मैडम रामू के घर से अभी अभी फोन आया है। उसकी मम्मी कह रही थी कि रामु अपनी अंग्रेजी की किताब ले जाना ही भूल गया। वह सारी रात पाठ याद करता रहा। उसने मुझे जब तक पूरा पाठ नहीं सुनाया तब तक वह अंग्रेजी की किताब लेकर बैठा रहा उसे कल बुखार भी था। वह सारी रात काफी देर तक पढ़ाई करता रहा। उसकी मम्मी कह रही थी कि कृपया मेरे बेटे को बेंच पर मत खड़ा करना। वह बच्चा बहुत ही डर गया है। वह अपनी मां को कहता है कि मेरा स्कूल जाने को भी मन नहीं करता। इतना भारी बैग उठाना पड़ता है। भारी बैग उठाकर मेरे कंधे भी छिल गए। जिस दिन किताबें न ले जाओ उसी दिन मैडम कॉपियां जांचती हैं। कभी-कभी मैं उसका इतना भारी बस्ता देखकर दंग रह जाती हूं। कभी-कभी तो मैं उससे बिना पूछे उसकी किताबें बस्ते में से हटा देती हूं। कल रात तो वह रोने ही लगा। आप कृपा करके मेरे बेटे को सजा मत देना।

मैडम ने जैसे ही सुना वह हैरान हो गई। उसने तो उस बेचारे रामु को दो घंटे बैंन्च पर खड़ा ही रखा। वह बेचारा अभी तक बेंच पर ही खड़ा होगा। मैंने अध्यापिका होकर उस बच्चे की मनोभावनाओं को नहीं समझा। केवल वही एक बच्चा ऐसा था जो कक्षा में पाठ याद कर के आया था। मैंने उसे बिना वजह से बेंच पर खड़ा कर दिया और न जाने गुस्से में क्या क्या कह दिया?
रीना मैडम जल्दी से प्रिंसिपल के कमरे से निकल कर कक्षा में पहुंची तो देखा रामू अभी तक बेंच पर खड़ा था। वह कक्षा में आकर अपने आप को अपराधिन महसूस कर रही थी। उसने रामु को आते ही कहा बेटा तुम अभी तक खड़े हो। बैठ जाओ। रामु नीचे बैठ गया और सिर नीचा करके जोरजोर से रोने लगा। उसे रोता देखकर कक्षा के सारे बच्चे उसकी तरफ देखकर मैडम से कहने लगे। मैडम रामु रो रहा है।
मैडम रामुके पास के पास जाकर खड़ी हो गई। उस के कन्धे थपथपा कर कहा। तुम बच्चे इतने भारी स्कूल बस्ता उठाकर स्कूल आते हो। मेरी गल्ती है। मैंने तुम्हें बिना वजह जानें इतनी बड़ी सजा दे डाली। मैं अपने आप को बहुत ही छोटा महसूस कर रही हूं। मैंने तुम बच्चों की मनोभावनाओं को नहीं समझा बेटा।

आज तुमने मुझे एहसास करवा दिया कि हम लोग भी कभी-कभी गल्त हो सकते हैं। बिना कारण जाने हम तुम्हें सजा दे देते हैं। मेरे बच्चे भी स्कूल में जाते हैं। दोनों थके हारे जब घर आते हैं तो कहते हैं कि हम थक गए। लेकिन आज जब मैंने तुम्हें जल्दी से सजा दे दी तो मैंने इस वजह को नहीं समझा। तुम क्या चाहते थे? मुझ से पाठ सुन लो और मुझे बिठा दो। मैंने तो तुम्हारी बात भी सुनी अनसुनी कर दी बेटा। आगे से ऐसा नहीं होगा।

मैं आज ही तुम्हारा समय सारणी सुनिश्चित करती हूं। इस समय सारणी के अनुसार ही तुम अपना बस्ता पैक कर के लाना। इससे तुम्हें बस्ते का बोझ भी नहीं उठाना पड़ेगा और तुम्हारे कंधों में दर्द भी नहीं होगा मेरा बेटा भी हर रोज मुझसे कहता है मां मेरी किताबे सारी स्कूल बैग में डालना मत भूलना। आज मैंने जाना एक बच्चे का दर्द क्या होता है? आगे से ऐसा नहीं होगा। मैं स्कूल में सभी अध्यापकों को समय सारणी के अनुसार बस्ता मंगवाने का प्रयत्न करूंगी बच्चों तुम्हारी मैडम आज तुम्हारी गुनहगार है। बेटा आगे से ऐसा नहीं होगा रामु का सारा दर्द गायब हो गया था। वह पहले की तरह अपना दर्द भूल कर मुस्कुराते मुस्कुराते बच्चों के साथ बातें करने में मग्न हो गया था।

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मीठी वाणी

जिससे बोलो हंस कर बोलो।
अपने मन में किसी के प्रति जहर ना घोलो।।

जब भी बोलो सच सच बोलो।
पहले सोचो फिर अपना मुंह खोलो।।
सबके चेहरों पर मुस्कुराहट लाओ।
ऐसा करने की सबके मन में चाहत जगाओ।।
अपने मन में सब के प्रति अपनत्व की भावना जगाओ।
अपने मन से अंधकार की मैली परत को हटाओ।।
दया और कोमलता से सबके दिलों पर मधुरता बरसाओ।

अपने संघर्ष के दम पर जग में अपना नाम कमाओ।।
ऊंचाइयों को छू लेने पर भी अहंकार कभी भी ना मन में लाओ।
एक अच्छे इंसान होने का कर्तव्य तुम अच्छी तरह निभाओ।।
अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाओ।
किसी के प्रति छल कपट की भावना कभी भी मन में ना लाओ।।

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कौवा, लोमड़ी और रोटी

एक लोमड़ी भूखी प्यासी आई पेड़ के नीचे।
लगी देखने उस पेड़ को आंखें मींचे मींचे।।
पेड़ पर था एक कौवा बैठा।
नटखट चुलबुल काला कौवा।।
अपनी चोंच में रोटी का टुकड़ा भींचे भींचे।

लोमड़ी सोच रही थी मन में, क्यों न इसे बहलाती हूं।
इस बेसूरे की तारीफें कर के क्यों न इसे फुसलाती हूं।
बोलूंगी, कौवे मामा कौवे मामा।
एक सुरीला गीत सुना दो।
अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।। अपनी प्रशंसा सुनकर फुल कर कुप्पा होगा कौवा।
जैसे ही मुंह खोलेगा गाने को।
रोटी गिरेगी नीचे, मैं भागूंगी खाने को।

यह सोच कर लोमड़ी बोली
कौवे मामा कौवे मामा,
एक सुरीला गीत सुना दो।
अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।।
वह था एक चतुर कौवा। न आया उसके झांसे में।
सिर हिला कर मुस्काया कौवा,
लोमड़ी नें सोचा, लो मेरी बातों में आया कौवा।।
लोमड़ी के मुंह में आया पानी।
सोचा मैं हूं कितनी स्यानी।
कौवा तो था चालाक।
जल्दी से रोटी खाकर आया उसके पास।
कानों में उसके कांय कांय करके बेसुरा गीत सुनाया।
अपनी कर्कश ध्वनि से उसका होश उड़ाया।
हंस कर बोला कौवा, लोमड़ी मौसी, लोमड़ी मौसी, कैसा लगा मेरा मधुर संगीत?
रोकर लोमड़ी बोली, बहुत ही प्यारा गाना था। कौवा बोला, हां उतना ही स्वादिष्ट मेरा खाना था।।

नन्ही चिड़िया

पेड़ों पर चहचहाती चिड़ियां।
शाखाओं पर मंडराती चिड़िया।।
अपनी चहचाहट से सबके मन को लुभाती चिड़िया।
एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर अटखेलियां करती चिड़िया।।
अपने मधुर संगीत से सबके मन को हर्षाती चिड़िया
एक डाल से दूसरी डाल तक की यूं फुदकती जाती चिड़िया।।

सुबह से दोपहर तक एक पंक्ति में इकट्ठे होकर दाना चुगने जाती चिड़िया।
अपनी चाहत से सबके मन के दर्पण को लुभाती चिड़िया।।

अपनी छोटी छोटी चोंच से अपने बच्चों के मुख में दाना डालती चिड़िया ।

शाम ढलने पर अपने घरों में विश्राम करने आती चिड़िया।।

प्यारी चिड़िया नन्ही चिड़िया।।
सब बच्चों के मन को भाती चिड़िया।।

कान्हा

एक गांव की बस्ती में कृष्ण नाम का एक छोटा सा बच्चा रहता था। गांव गांव में दूर-दूर तक लोगों के घरों में चला जाता। गांव वाली औरतों की मटकी को फोड़ देता। उसकी मां एक बहुत ही गरीब परिवार की महिला थी। एक दिन जब उसे घर में दूध पीने को नहीं मिला तो उसकी मां बोली मैं तुम्हें दूध कहां से लाऊं? मैं तो तुम्हें दूध नहीं दिला सकती। खाना खाकर गुजारा कर। उसने उसे कृष्ण जी की कहानी सुनाई कि कैसे कान्हा औरतों की मटकीओं को फोड़ते थे। और माखन चुराते थे। उसने सोचा कि क्यों ना मैं भी कृष्ण बनकर गांव की भोली-भाली औरतों से दूध और मक्खन प्राप्त कर लेता हूं। इस तरह करते-करते उसे बहुत ही व्यतीत हो गए। लोगों के घरों में चला जाता। गांव वाले औरतों की मटकीओं को फोड़ देता। गांव की औरतों के घरों में जा जाकर उनके मटको से माखन चुरा कर खा लेता।

एक दिन गांव की एक औरत ने उसे माखन चोरी करते हुए देख लिया। बोली कौन है तू? वह बोला मैं माखन चोर हूं। वह बोली तेरा क्या नाम है। वह बोला मेरा नाम कान्हा है। छोटे से बच्चे के मुंह से कान्हा नाम सुनकर वह उसे खूब सारा माखन खाने को दे देती। औरतों के घरों में जाकर उनके घरों से चोरी कर के केवल माखन ही चुराता था । गांव गांव में उसकी चर्चा होने लगी। लोग छोटे से बच्चे को कान्हा ही समझनें लगे। वे कान्हा की बातें सुनकर लोटपोट हो जाती। वह अपनी भोली भाली अदाओं सें सबका मन मोह लेता था। वह इतना चंचल स्वभाव का था कि वह छोटा सा बच्चा सभी के मन को हर लेता था। छोटा सा भोला-भाला बालक गांव में प्रसिद्ध हो गया। इस तरह अठखेलियां करते हुए उसे बहुत दिन व्यतीत हो गए।

एक दिन जब कान्हा एक घर में माखन खाने पहुंचा तो उस घर की मालकिन रो रही थी। उसके पास जो कुछ भी खाने पीनें की वस्तुएं थी सब समाप्त हो चुकी थी। आज तो घर में सिवा दूध के कुछ भी नहीं था। जब कान्हा आए तो वह बोली आज तो मैं तुम्हें कुछ नहीं खिला सकती। बिट्टू के पिता को बाहर गए हुए भी बहुत दिन हो गए। कहां से खाने को लाएं। मैं छोटा सा बच्चा इसकी मदद कैसे करूंगा। वह दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा हे कान्हा मैं तो झूठ-मूठ का कान्हा बन कर यहां दूध पीने आता हूं। आज तो कोई चमत्कार कर दे। उस बच्चे ने तभी गाड़ी का हार्न सुना। किसी व्यक्ति की गाड़ी खराब हो गई थी। वह पानी मांग रहा था। कान्हा दौड़ा दौड़ा गया। बोला आप बैठो। उस बच्चे के कहने पर वह अजनबी व्यक्ति उस औरत के घर पर बैठ गया। घर की मालकिन नें चाय तो उसे पिला दी थी। थोड़ी देर बाद गाड़ी ठीक हुई। वह गाड़ी का मालिक कान्हा को ₹2000 देकर गया। गाड़ी का मालिक बोला आप का बेटा तो बहुत होशियार है। धन्यवाद दे कर गाड़ी वाला चला गया।

कान्हा नें उस महिला को 2000रुपये दे दिए। वह कान्हा को प्यार करते हुए बोली तुम सचमुच ही कान्हा हो जो मुसीबत के वक्त तुम हमारी सहायता करने आ गए हो। गांव के लोग कहने लगे बडा आया कान्हा बनने वाला। कई लोग तो उसे बाहर का रास्ता दिखा देते।

एक दिन फिर इसी तरह कान्हा एक घर में गया जहां वह खाना खाने जाता था। वहां जाकर देखा वहां पर निमंत्रण का आयोजन हो रहा था। वह औरत बोली आज कान्हा मेरे घर पर आए हैं। वह बोली सबसे पहले मैं कान्हा को भोजन परोसती हूं। कान्हा को भोजन देने लगी वह बोला कि इसमें से कुछ बू आ रही है आप देख लो। वह बोली दुर्गंध कहां से आ रही है? उसनें मटकी में झांका। उसमें सांप मरा पड़ा था। वह खीर उसनें निमंत्रण में बुलाए हुए लोंगों के लिए बनाई थी। कान्हा ने उसे पहले ही सूचित कर दिया था की इस खीर को किसी को भी खाने को मत देना। वह दौड़ी दौड़ी बाहर गई। उस ने अपने परिवार वाले लोगों को और लोगों को सारी बातें बता दी कि उस छोटे से बच्चे की सूझबूझ से सारे लोगों की जान बच गई। जल्दी से उन्होंने दूसरी खीर बनवाई और अपना निमंत्रण पूरा करवाया। एक बार कान्हा ने फिर अपना करिश्मा दिखा दिया था।

एक बार वह घुमते घुमते एक खेत में चला गया। वहां पर एक किसान खेत में हल चला रहा था। वह किसान बहुत ही उदास था। कान्हा उस किसान के पास जा कर बोला बाबा आप उदास क्यों बैठे हो। वह बोला बेटा तुम छोटे से बच्चे हो। तुम मेरी मदद कैसे करोगे। बेटा जाओ खेलो। वह बोला बाबा आप हल चलाते चलाते थक गए होंगें। मेरी मां कहती है हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए। मैं आप की सहायता करनें आया हूं। वह कान्हा की भोली भाली बातें सुन कर हंस पड़ा बोला बेटा तुम कौन हो और यहां अकेले कैसे आए। वह बोला मैं अपनी मां के साथ यहां आया हूं। मेरी मां यहां लोगों के घरों में काम करती है। किसान को एक खेत के कोने मे ले गया। उसने वहां किसान को खुदाई करनें के लिए कहा। किसान को बार बार वह खुदाई करनें के लिए कह रहा था। कान्हा की मां नें उसे आवाज लगाई। जल्दी चलो देर हो रही है। आज क्या घर नहीं जाना है। वह अपनें घर की ओर दौड़ गया। किसान की बेटी की शादी तय हो गई थी मगर उसके पास अपनी बेटी की शादी के लिए रुपये नहीं थे। वह कई लोगों के पास उधार मांगने गया लेकिन किसी नें भी उसकी मदद नहीं की इस कारण से वह उदास था। घर जाते जाते सोचने लगा वह बच्चा मुझे कुछ खोदने के लिए कह रहा था। उस बच्चे का खिलौना शायद यहां गिर गया होगा। मैंनें उस बच्चे कि बात को नजरअंदाज कर दिया। मैं भी कितना स्वार्थी हो गया। मैं कल जा कर उसे उस का खिलौना दे दूंगा। वह खेत के उस कोने में जा कर हल चलाने लगा। उस का हल वहां चल ही नहीं रहा था। उसने हाथ से वहां की मिट्टी हटाई। वह हैरान रह गया। उसे वहां कुछ दिखाई दिया। उसने कुदाल से खुदाई की। वहां उसे एक घड़ा दिखाई दिया। उस में बहुत सारे रुपये थे। उस नें उस घडे को बाहर निकाला। किसान नें कान्हा के घर का पता लगाया। वह बोला बेटा तू मुझ गरीब की सहायता करनें पहुंच गया। यह तुम्हारे रुपये हैं। कान्हा बोला अब यह तुम्हारे हुए। किसान नें धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की। लोंगों की मदद करने के लिए कान्हा नें अवतार लिया था।