अभिलाषा

एक छोटे से गांव में देवी शरण और उसकी पत्नी माधवी अपने बेटे साहिल के साथ रहते थे। वह मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते थे। उनका बेटा साहिल  उनके घर के समीप ही गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ता था।। माता-पिता अपने बच्चे के भविष्य को लेकर बहुत ही सतर्क थे। उन्होंने अपने बेटे को डॉक्टर बनाने का निर्णय लिया था।। वे दोनों उसे पढ़ा लिखा कर एक बड़ा डॉक्टर बनाना चाहते थे। उन्होंने उसके लिए घर में ट्यूशन के लिए पहले ही एक शिक्षक महोदय  नियुक्त किया हुआ था। वह उनके बच्चों को पढ़ाया करता था। वह दोनों चाहते थे कि हम अपने बच्चे के भविष्य के लिए कुछ भी करेंगे लेकिन उसे डॉक्टर बना कर ही छोड़ेंगे। साहिल के पिता बिजली विभाग में कार्यरत थे। माधवी भी एक शिक्षिका थी। ऑफिस  में जैसे ही पहुंचे बाहर चपरासी फाइलें      ले कर  साहब के मेज पर छोड़ आया था। दूसरे ऑफिस के कर्मचारी अपने-अपने गंतव्य स्थान पर जा रहे थे ऑफिस में आज खुशनुमा माहौल था। एक हॉल में पार्टी का आयोजन किया जा   रहा था। उन के दोस्त ने पार्टी का आयोजन करवाया   आदित्यनाथ का बेटा डाक्टरी  में सिलेक्ट हो गया था। उनके चेहरे की खुशी उनके मुख से जाहिर हो रही थी। ऑफिस के लोग इकट्ठा कर उसे बधाइयां दे रहे थे। देवी शरण भी उनके पास जाकर बोले मुबारक हो। शरण जी आपके बेटे ने तो कमाल ही कर दिया। उनका दोस्त आदित्यनाथ बोला  हम उसे डाक्टर ही बनाना चाहते थे। मेरा बेटा भी डाक्टर ही बनना चाहता था। आज मेरा सपना साकार  हो गया।

देवीशरण अपनें मन में सोचने लगे  उसका  बेटा भी  11वीं कक्षा में है। केवल   एक साल की ही तो बात है। इस साल उसे कोई काम नहीं करने देंगे। उसकी पढ़ाई पर ही ध्यान देगें। हमारा बेटा भी अगले साल   डाक्टरी में सिलेक्ट हो जाएगा। थोड़े दिन की बात है एक साल का पता भी नहीं चलेगा कब समय पंख लगा कर उड़ जाएगा। पार्टी समाप्त हो गई थी। देवीशरण बोले मैं भी अपने बेटे को डाक्टर बनाना चाहता  हूं। आदित्य नाथ बोले यह तो बहुत ही बड़ी बात है। उसके लिए पहले से  ही कोचिंग  शुरू कर देनी चाहिए। घर आ कर देवीशरण अपने    बेटे से बोले बेटा खूब मन लगाकर मेहनत करो। तुम्हें जिस चीज की भी आवश्यकता हो मांग लेना। तुम्हें पढाई के अतिरिक्त कुछ करना नहीं है। देवी शरण ने अपने बेटे को  कहा बेटा सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई  किया करो। साहिल दस से बारह घंटे लगातार पढाई किया करता था। वह जब थक  हार  कर बैठ जाता था उसका दोस्त उससे मिलने  आता तो देवीशरण उसे कहते बेटा खेलना, दोस्तों से मिलना ये तो सारी उम्र भर चलते रहेंगे। तुम  अभी तो अपना कैरियर बनाओ।

हमारे पास तो सारे साधन उपलब्ध नहीं थे। हम कुछ अच्छा ज्यादा अच्छा नहीं बन पाए। तुम्हारे पास तो सब कुछ है। माधवी भी अपने बच्चे की स्कूल में सभी अध्यापिकायों के सामने प्रशंसा करती। मेरा बेटा खूब मन लगाकर पढ़ता है। माधवी की सहेली रिया बोली आप तो उसे डॉक्टर बनाना चाहते हो। क्या आपके बेटे ने अपने मुंह से कभी यह कहा कि वह डॉक्टर बनना चाहता है?  माधवी बोली उससे पूछने की क्या बात है। हम तो उसे डॉक्टर ही बनाएंगे। रिया बोली बहन देखो हमें सबसे पहले बच्चे की मनो भावनाओं को समझना बहुत ही जरूरी होता है। इसलिए सबसे पहले   उस से पूछ लेना तभी उसके भविष्य का लक्ष्य निर्धारित करना वर्ना  तुम्हे सारी जिंदगी भर पछताना पड़ सकता है। माधवी बोली नहीं ऐसा नहीं है।  मेरा बेटा डॉक्टर ही बनना चाहता है।

  घर आ कर अपनें मन में  सोचनें लगी मेरी सहेली कह तो ठीक ही रही है। आज उस से पूछने  का यत्न करती हूं। शाम को     साहिल जब  घर आया तो थोड़ी देर आराम करने के लिए बिस्तर पर सो गया। उसे गहरी नींद आ गई। माधवी अपने बेटे के कमरे में आई अपने बेटे को उठाने ही लगी थी अपने बेटे को गहरी नींद में सोया देख कर वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई। बेटा पढ़ाई कर कर के थक गया होगा। वह जब उठेगा तब ही उससे पूछने का प्रयत्न करूंगी।

देवी शरण ऑफिस से आ गए थे। उन्होंने अपनी पत्नी माधवी को कहा कि एक कप चाय बाहर डाइनिंग टेबल पर ले आओ। उन्होंने साहिल को आवाज लगाई। माधवी नें कहा वह सो रहा है।  साहिल के पिता बोले उसे उठाओ। माधवी बोली सोने दो। नहीं, ये भी कोई सोने का वक्त है। उठ कर पढाई करने  के लिए कहो। उसके पिता जल्दी से साहिल के कमरे में गये। उसे पढ़ने के लिए जगा दिया। वह बोला बाबा  मुझे सोने दो।  उसके पापा उसे समझाते हुए बोले इस साल के बाद   तुम्हे सोना ही सोना है।। अभी तो तुम्हारे पढाई  और मेहनत करने का वक्त है। साहिल को गुस्सा आ गया बोला सोने भी नहीं देते। उसके पिता उस से नाराज होकर बोले। आजकल के बच्चों को देखो अपनी मनमानी करते हैं। पढ़ने को  कहो तो आगे से जवाब देते हैं। मुझे क्या है?वह गुस्सा होकर बोला मुझे नहीं बनना।  मैं डॉक्टर बनना ही नहीं चाहता। आप लोग मुझसे जबरदस्ती कर रहे हैं। पापा मुझे डाक्टर बनना अच्छा नहीं लगता। मुझे चीर फाड़ करना जरा भी अच्छा नहीं लगता। वह  बोले  बेटा चिरफाड करना अच्छा नहीं लगता तो क्या अच्छा लगता है।? वह बोला मैं इंजीनियर बनने का ख्वाब देखा करता था। आप तो मेरे सपनों को लात मार रहे हो। इंजीनियर बनकर क्या करोगे? तुझे तो हम  डाक्टर बनाकर ही छोड़ेंगे। डाक्टर की समाज में बहुत ही इज्जत होती है। भगवान के बाद डाक्टर ही तो पूजनीय है। माधवी अपने बच्चे के उत्तर को सुनकर हैरान रह  गई। उसे प्यार से बोली बेटा कोई बात नहीं अगर तुम  पीएम टी में नहीं निकलोगे तो भी कोई बात नहीं अगले साल फिर ट्राई कर लेना।

देवी शरण बोले तुम्हारी मां ठीक ही कहती है। तुमको भी  डाक्टरी की पढाईअच्छी लगने लग जाएगी। वह कुछ नहीं बोला उसका डॉक्टरी की पढ़ाई करने में जरा भी मन नहीं लगता था। उसके मां-बाप उसे डॉक्टर बनाना ही चाहते थे। वह तो इंजीनियर बनने का ख्वाब  देखता था। अपने पिता को कुछ कह नहीं सकता था उसका एक दोस्त था सौरभ। वह उस से अपने मन की बात बता दिया करता था। वह उसका घनिष्ठ मित्र था। वह उस से कोई भी बात नहीं छुपाता था। सौरभ माधवी की सहेली रिया का बेटा था। वह भी पायलट बनना चाहता था। स्कूल में वे दोनों इकट्ठे पढ़ते थे।  उसके मन की बात जान लिया करता था।

एक दिन साहिल को उदास देख कर उसका दोस्त बोला। दोस्त तुम उदास क्यों हो? साहिल बोला मेरे माता-पिता को कौन समझाए? मेरे माता पिता  मुझे डाक्टर बनता देखना चाहते हैं। लेकिन  ऐसा नहीं हो सकता है मेरी डाक्टर बनने की जरा भी इच्छा नहीं है। अगर मैं किसी दिन डाक्टर बन भी गया तो मैं उस काम को छोड़ दूंगा।सौरभ बोला तुम समझदार हो। तुम्हे ही  अपने माता-पिता को समझाना होगा नहीं तो तुम ना तो घर के  रहोगे ना घाट के। साहिल बोला मैडम ने आज टेस्ट लिया था। मेरे बहुत ही कम अंक आए हैं। घर में जाकर अपनी जांच  पुस्तिका घर में दिखा दूंगा। जब  साहिल घर आया तो बहुत ही उदास था। घर में आकर साहिल अपनें पापा से बोला पापा मेरे टैस्ट में बहुत ही कम अंक आए हैं।  उसके पिता बोले तो क्या हुआ? कोई बात नहीं दोबारा कोशिश करके देखो। वह बोला पापा आप क्यों मुझे डॉक्टर बनने के लिए जोर डाल रहे हो? उसके पिता गुस्सा होते हुए बोले। जो डॉक्टर बनते हैं क्या किसी बड़े अफसरों के बच्चे होते हैं? पिछले साल एक रिक्शा चालक का बेटा डॉक्टर बना। अपनें दोस्त मिश्रा जी है उनका बेटा कोई ज्यादा होशियार नहीं है। वह भी तो डॉक्टर बन गया। सौरभ बोला मिश्रा जी के बेटे के पास तो ढेर सारा रुपया है। वह तो डोनेशन दे कर डॉक्टर बन गया।आप मेरे भविष्य की चिंता मत करो। मैं भी अपनी मेहनत के बल पर कुछ न कुछ बनकर दिखा दूंगा। आप मेरी चिंता करना छोड़ दे। देवी शरण बोले कोई बात नहीं। मैं भी कहीं से रुपयों का जुगाड़ कर लूंगा। कहीं से उधार ले लूंगा। तुमने डॉक्टर ही बनना है। बाकी तुम और कुछ  और नहीं बनोगे। चाहे तुम्हारे  तीन साल ज्यादा ही क्यों ना लग जाए? साहिल बोला पापा एक दिन अगर मैं डॉक्टर बन गया और मैंने किसी मरीज को मार दिया तो क्या करोगे? उसके पिता आग बबूला होकर बोले आजकल के बच्चों की जबान कैंची की तरह चलती है। हम तो कुछ नहीं बन सके हमें अगर समय मिलता हमारे पास सारी सुविधाएं होती तो मैं भी डॉक्टर बन सकता था। मैं तुम्हें डॉक्टर बनते हुए ही देखना चाहता हूं।

साहिल अपने पिता के हर रोज की डांट से परेशान आ चुका था। उसका मन जरा भी पढ़ाई में नहीं लगता था। एक दिन जब उसका डॉक्टरी का  परिणाम  निकला तो फेल हो गया था। उसे इस बात का पहले से ही पता था कि वह  उतीर्ण नहीं होगा। किस मुंह से  अपने घर जाए। उसके पिता तो उस से थोड़ा नाराज होंगे। लेकिन थोड़ी देर बाद कहेंगे कोई बात नहीं बेटा अगले साल फिर मेहनत करो। मैं इस तरह अपने पापा के मेहनत से कमाए रुपए  व्यर्थ में बर्बाद होते नहीं देख सकता। मैं क्या करूं? उसके दिमाग में हर रोज प्रश्न उभरने लगे। उसके कानों में सीटीयां बजने लगी। क्या करूं।? उसे फेल होना भी अच्छा नहीं लगता था। उसके सारे के सारे साथी  उस से आगे बढ़ चुके थे। वह अपनी जिंदगी से वह बहुत ही निराश हो गया था। उसने सोचा क्यों ना मैं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूं? अपने घर से जंगल की ओर निकल पड़ा। उसने घर में भी किसी को कुछ नहीं बताया। वह पहाड़ी पर से कूदने ही वाला था उसके दोस्तों ने उसे देख लिया। सौरभ ने उसे खींचकर नहीं निकाला होता तो वह नदी में डूबकर मर चुका होता।

सौरभ नें उसे समझाया  मरना यह तो इस समस्या का समाधान नहीं है। तुम अगर यहां से गिर गए तो या तो तुम्हारी टांगे टूट जाएंगी या तुम   अधमरे हो जाओगे। तुम्हें  यह क्या पता कि तुम ऊपर से गिर कर मर ही जाओगे। मरना इतना आसान नहीं होता। अगर बच जाते तो सारी उम्र भर बिस्तर पर अपाहिज की तरह सड़े पड़े रहते।  इतना पढ़े-लिखे होने के बावजूद यह कदम तुमने क्यों उठाया? मेरी समझ में नहीं आता। जल्दी घर चलो। वर्ना माता-पिता परेशान हो जाएंगे। यह तो शुक्र है मैं अपने दोस्त  गौरव के घर आया हुआ था। तुम अगर मेरे दोस्त गौरव को देखोगे तो तुम सब समझ जाओगे। कल तुम्हें मैं उसके घर ले चलूंगा।

जंगल के बीचों बीच पीपल के पेड़ के पास उसका घर है। तुम उसके घर चलोगे तो सब समझ जाओगे।  किसी न किसी तरह साहिल को मना कर उसे अपने दोस्त गौरव के घर  ले जाने आया। साहिल के घर आकर उसे ले जाने के लिए साहिल के पिता के पास आकर बोला मैं अपने दोस्त को अब अपने दूसरे दोस्त के घर ले जाना चाहता हूं। साहिल के पिता को बोला अंकल इसे आप डांटना मत। यह  आज बहुत ही मायूस है क्योंकि इसका पीएमटी का परिणाम अच्छा नहीं आया है। देवी शरण बोले तो कोई बात नहीं बेटा इसमें तुम्हारा क्या कसूर।  दूसरी बार पीएमटी का टेस्ट दे देना। डरने की कोई बात नहीं। हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे। तुम खुशी-खुशी अपने दोस्त के साथ घूम फिर कर आओ। सौरभ अंकल से बोला साहिल का मन डॉक्टर की पढ़ाई करने का नहीं है।

आप तो क्यों उस पर  डाक्टर ही बनने के लिए जोर डाल रहे हो। देवीशरण बोले बेटा तुम बच्चे अपनी मनमानी करते हो। इस बार नहीं निकला तो कोई बात नहीं। यह मन वन कुछ नहीं होता। मन को तो अंदर से तैयार करना पड़ता है। यही बात तो मैं आपको समझाना चाहता हूं।देवीशरण बोले बेटा तुम्हें हम बाप बेटे के बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है। तुम उतना ही कहो जितना तुम्हें कहने की जरूरत है।

सौरभ आगे  कुछ  नहीं बोला। साहिल गम्भीर  रहने लग गया था। वह बात बात पर गुस्सा करने लगा। एक दिन सौरभ उसको अपने दोस्त  गौरव के घर ले गया। गौरव के घर जाकर उसे बहुत ही अच्छा लगा।  गौरव के माता-पिता  साहिल से बोले। उसे कहने लगे बेटा आओ तुम भी हमारे बेटे गौरव के दोस्त हो। तुम चुप चुप क्यों रहते हो? इस उम्र में तो बच्चे खूब मस्ती करतें हैं। तुम्हारे अभी तो खेलने कूदने के दिन है। गौरव के माता ने सौरभ को भी आवाज लगाई। बेटा चलो खाना खाने आओ। सब खाना खाने की मेज पर  बैठे थे। गौरव के पिता अपने बेटे से बोले बेटा चलो गर्मा-गर्म परौंठों का आनंद लो।  हम सब इकट्ठे बैठकर पिक्चर देखते हैं। गौरव बोला पापा मुझे पढ़ाई करनी  है। वह बोले बेटा सारे दिन पढ़ाई पढ़ाई नहीं किया करते।पढाई के साथ साथ आराम भी जिंदगी में बहुत ही जरूरी होता है। पापा मैं आईएएस अधिकारी बनना चाहता हूं। वह बोले बेटा ठीक है।  तुम जो बनना चाहते तुम वही बनना मैं तुम पर कभी भी दबाव नहीं डालूंगा। सारा दिन पढ़ने के बजाय  खेल कूद और मनोरंजन भी जरुरी होता है। इंसान को खुलकर अपनी हर बात अपने माता पिता के साथ करनी चाहिए। गौरव  बोला पापा मैं अगर आईएस  अधिकारी नहीं  नहीं बन पाया तो क्या होगा? वह बोले तो कोई बात नहीं कोशिश करो। नहीं बन पाओगे तो कुछ और बन जाना। इसके लिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।

हम लोगों के पास तुम्हें डोनेशन वगैरह देने के लिए रूपया  नहीं है मगर तुम कामयाब हो गए तो ठीक है वर्ना और  भी बहुत सारे रास्ते हैं। तुम खुश हो कर अपनी पढ़ाई करते चलो। हम तुम्हें खुश देखना चाहते हैं। बेटा  तुमसे बढ़कर जिंदगी में हमारे लिए कुछ भी नहीं है।

साहिल को वहां पहुंचकर बहुत ही अच्छा लगा उसके माता पिता अपने बेटे की हर बात खुशी-खुशी सुन रहे थे। एक मेरे माता-पिता है जो मुझ पर अपनी इच्छाएं  थोप रहे हैं। वह अपने दिमाग से काम लेगा और डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं करेगा। वह इंजीनियर ही बनेगा। यहां पर आकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा। मेरे मन में एक बोझ था वह भी हट गया। मैं उस दिन गलत कदम उठा देता तो मेरे माता पिता मर जाते। मां-पापा चाहे जितना भी मुझे डांटडपट करें मुझे उनकी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। उनकी बातों को दिल से नहीं लगाना चाहिए।  सौरभ के पास आकर बोला भाई  मुझे नई जिंदगी देने के लिए तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद। मेरी आंखें खुल चुकी है। घर आया तो काफी खुश था। उसके माता-पिता अपने बच्चे को खुश देख कर खुश थे।

कॉलेज में उसने खूब मन लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया। उसके माता-पिता उसे डांटते तो वह परवाह ही नहीं करता था। चुप और शांत होकर उनके प्रश्नों के उत्तर दिया करता था। साहिल के माता-पिता समझ गए थे कि उनके बेटे ने पीएमटी का टेस्ट दिया होगा लेकिन उसने इंजीनियर का टेस्ट दिया था। उसने जिले में टॉप किया। उसके पिता ने जब ऑफिस में अखबार देखा तो सारे के सारे ऑफिस के कार्यकर्ता साहिल के पिता को बधाइयां दे रहे थे। आपका बेटा तो सारे जिले में प्रथम आया है। वह बोले मैं ना कहता था मेरा बेटा एक दिन जरूर  डाक्टर ही बनेगा। मुझे हर रोज कहता था कि मैं डॉक्टर नहीं बनूंगा। उसके साथी कार्यकर्ता बोले आपको क्या यह भी पता नहीं था कि आपके बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई में टॉप किया है? देवी शरण खामोश हो गए। वही हुआ जिसका उसको डर था। उसके बेटे ने पीएमटी की परीक्षा नहीं दी थी। वह चुपचाप अपने साथी कार्यकर्ताओं के प्रश्नों के उत्तर देते रहे। घर आने पर चुपचाप साहिल के पास आकर बोले। तू ने हमारी नाक डुबो दी। मैं तो तुम्हें डॉक्टर बनते देखना चाहता था। तुमने मेरी इच्छाओं का गला घोट दिया। माधवी भी शून्य में अपने पति को निहार रही थी। वह भी मायूस थी। उसका दोस्त गौरव बोला। अंकल आपका बेटा तो बहुत ही समझदार है।

आपको तो भी यह भी मालूम नहीं होगा वह आपकी बातों से परेशान होकर अपनी जीवन लीला समाप्त करने चला था।  यह सुनते ही उसके माता-पापा की आंखों में आंसू छलक पड़े।  हमारा बच्चा इतनें दबाब में आ कर ऐसा गम्भीर कदम उठानें की सोच रहा था। हमें एहसास भी नही हुआ हमारा बेटा इतना बड़ा कदम भी उठा सकता है।  सौरभ बोला मैं  अगर समय पर नहीं पहुंचता तो आप अपने बेटे से हाथ धो बैठते। आपका बेटा इस दुनिया में ही नहीं होता। वह तो निराश होकर मरने चला था। वह पहाड़ी से कूदने ही वाला था तभी मैं अपने दोस्त गौरव के घर से निकला था। मैंने दौड़कर उसे बचा लिया। मैंने उसे बहुत समझाया मेरे समझाने पर और अपने दोस्त सौरभ के घर जाकर  उस से मिलवाया तो उसने यह कदम ना उठा कर एक सही फैसला लिया।

उसके माता-पिता अपने बच्चे के साथ मिलजुलकर आपसी समझ से एक दूसरे की मन की बात जान लेते हैं। वह एक दोस्त की तरह अपने बच्चे के साथ पेश आते हैं। वह अपनी इच्छा को उनके ऊपर लादते नहीं। आपका बेटा समझ गया। वह आज इंजीनियर मे टॉप आया है। आप उससे उदास हो कर मत मिलो।  उसकी खुशी में अपनी खुशी जाहिर करो। उस दिन अगर आपका बेटा मर जाता आप सारी उम्र भर रोते फिरते। कहां से अपने बेटे को ढूंढ कर लाते?

देवी शरण अपनी करनी पर बहुत ही पछताए वह बोले बेटा तुम तो उसके एक सच्चे दोस्त निकले। तुमने उसे एक सच्चे मित्र की तरह उसे भटकने से बचाया। मैं एक पिता होकर उसकी भावनाओं को समझ नहीं सका। मैं उस से भी आज माफी मांगना चाहता हूं।

हम बच्चों की मनोंभावनाओं को समझते नहीं उस पर  जोरजबरदस्ती  कर देते हैं। जो वह करना नहीं चाहता वही उससे करवाना चाहते हैं। जिससे सैकड़ों बच्चे अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। बाद में माता-पिता सारी उम्र भर पछताते रहते हैं।

माधवी आकर बोली एक दिन मेरी सहेली रिया ने मुझे कहा था कि अपने बेटे से पूछ कर तो देखो वह क्या बनना चाहता है? मैं भी अनभिज्ञ थी। मैं भी  तो उसे डॉक्टर बनते देखना चाहती थी लेकिन मेरे मन से भी अब अधंकार की काली  परत हट चुकी है।  मैं भी अपने बच्चे के भविष्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहती। हमारा बेटा तो हमसे ज्यादा समझदार है। हमें कहां उसका साथ देना चाहिए था कहां हम उसे मौत के मुंह में ढकेल रहे थे।

साहिल अपने माता पिता की बातें सुन रहा था वह बोला मां पापा इसमें आपका कोई दोष नहीं है। आप भी अपनी जगह ठीक थे। आप तो मुझे डॉक्टर बनते देखना चाहते थे।  मैं अगर डॉक्टर बन भी जाता तो मेरे हाथ से कोई भी ऑपरेशन ठीक ढंग से नहीं होता। मैं इस व्यवसाय को छोड़ ही देता। साहिल के माता पिता बोले हमें सबक मिल चुका है। उन्होंने अपने बेटे साहिल को गले से लगाया और कहा कि बेटा खुश रहो। गौरव को कहा कि बेटा जुग जुग जियो। चलो आज बाहर चलकर पार्टी का आयोजन किया जाए। सबके चेहरों पर खुशी थी।

संस्कार

मान्या 12वीं कक्षा की छात्रा थी। वह दौड़ते दौड़ते अपने पापा के पास आकर बोली पापा पापा। उसके पापा उसे हैरान होकर देख रहे थे। वह बोली पापा मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं। वह बोले बेटी बोलो। क्या कहना चाहती हो? , वह बोली पापा हमारे पास सब कुछ है। मैं चाहती हूं आप इस बार मेरे जन्मदिन पर मुझे गाड़ी उपहार में दो। वह बोले बेटी नहीं, मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा लेकिन एक शर्त पर। उसके पापा बोले बेटी अगर तुम इस बार अपनी कक्षा में टॉप करोगी तो मैं तुम्हें गाड़ी अवश्य लेकर दूंगा। वह बोली पापा मेरी सारी सहेलियां सभी के पास गाड़ी  है। सभी अपनी अपनी गाड़ी में कॉलेज जाती है मगर मेरे पास गाड़ी नहीं है। मैं चाहती हूं आप मुझे इस बार गाड़ी अवश्य भेंट करें। इसके अलावा मुझे कोई गिफ्ट नहीं चाहिए। उसके पापा बोले बेटा मैंने तो तुम्हें कह दिया कि इस बार अगर तुम टॉप करोगी तभी मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा।

मान्य गुस्सा होकर बाहर निकल गई। सबके पापा उनकी उनकी इच्छा को पूरी करते हैं। लेकिन मेरे पापा जो मुझे एक गाड़ी भी लेकर नहीं दे सकते। मान्या के पापा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। उनके जहन में अभी तक अपनी बेटी मान्या की बातें गूंज रही थी पापा मुझे इस बार गाड़ी चाहिए। वो ऑफिस जाते जाते सोच रहे थे ठीक ही तो है हमारा जमाना कुछ और था।

उनके मानस पटल पर सारी घटनाएं सारी यादें ताजा हो गई। वह एक छोटे से गांव में अपने पिता और माता के साथ छोटे से घर में रहते थे। 7भाई बहन और कमाने वाला एक। उनके पापा वह भी सुबह से शाम तक खेतों में काम करते।  सुबह सुबह मां चौका  करने के बाद सब को चाय के लिए पूछती। पहले गोबर से चूल्हे को लिप पोत कर फिर गाय का दूध निकाल कर तब कहीं जाकर चाय पीने को  मिलती। हमारे बच्चे तो जब तक बैड टी नहीं मिलती आंखे  ही नहीं खोलते। सुबह सुबह  4 किलोमीटर चलकर कुएं से पानी भर कर लाना पड़ता था। पापा सुबह कुएं पर पानी भरने के लिए बाहर जाते। हम  सब भाई बहन सूखे पत्तों और सूखी लकड़ियां इकट्ठे करते फिर हमाम जलाते बारी-बारी पंक्ति बनाकर नहाने के लिए लाइन लगाते। हम सब भाई बहनों को छः किलोमीटर पैदल चल कर घराट से आटा लाने जाना पड़ता था। तब कंही जा कर रोटी मिलती थी। रास्ते में खूब मौज मस्ती करते। बेरी के बेर खा कर अपना पेट भरते। खाना तो तब मिलता जब आटा घर आता।  चूल्हे के पास सारे परिवार के लोग और बच्चे बैठ कर आग सेकने का लुत्फ उठाते। गोबर के उपले बना कर उन कोसुखानें के लिए रखते थे ताकि आग जलाने में काम आए। घर के सारे लोग मेहनत करके कमाते। शादी में भी जाना होता तो 6 किलोमीटर पैदल चलकर। जो खातिर होती। पतलो पर खाना खाने में जो आनंद आता था वैसा तो होटल के खाने में गैस और चूल्हो पर भी खाने में भी नहीं आता। आज तो नहाने के लिए  गिजर का बटन ऑन किया। सब काम बैठे-बिठाए  हो गया। इंसान तो बैठा बिठाए सुस्त ही बनेंगा। वह कहां से मेहनत करने की सोचेगा। रेडियो पर विविध भारती प्रोग्राम  सुनते। 8:00 बजे सारे परिवार के लोग बैठकर हवा महल नाटक सुनते। रेडियो पर इन्तक्षारी सुनते। आजकल अपनें परिवार की तरफ  देखो सबकुछ पीछे छूटता जा रहा है

किसी के पास एक दूसरे के पास बात करने के लिए भी वक़्त नहीं है। नाश्ते के लिए भी सौ बार आवाज उठानी पड़ती है। हम सब परिवार के लोग चटाई लगाकर एक साथ खाने का आनंद लेते थे। आज  तो सब परिवार के लोगों के पास इकट्ठा  खाना खाने के लिए भी वक़्त नहीं है। सब के सब लोग हर घर घर में जब मन किया चाय पीने के लिए भी इकट्ठे नहीं बैठेंगे। बैठेंगे तो चाय की चुस्की लेते हुए कोई अखबार लेकर बैठ जाएगा या मोबाइल। आजकल इस मोबाइल  नें तो सब का बेड़ा गर्क कर दिया है।

सुबह को खाना या नाश्ते के लिए बुलाओ तो हाथ में मोबाइल। शाम को खाने के वक्त भी मोबाइल। बच्चे भी पीछे नंही हटते। चुपके चुपके मोबाइल पर गेम खेलने लग जाते हैं।छोटे छोटे बच्चो के माता पिता के पास अपने बच्चों से बात करने के लिए भी समय नहीं। पति पत्नी के पास अपने बच्चे के साथ बैठकर बातें करने के लिए भी वक़्त नहीं। वह कहता है पापा एक मिनट मेरे साथ खेलो मगर उस बच्चे के पापा कहते हैं आया इसे ले  कर जाओ। मेरा बहुत ही जरूरी काम है। पत्नी कहती है नौकर को मुझे भी आज जल्दी   जाना है। तू ही बच्चे के साथ खेलो। मुझे खाना बनाना है। बच्चा दुखी होकर नौकर के साथ खेल कर अपना समय व्यतीत करता है।

सब कुछ पीछे छूटता जा रहा है हमें अपने बूढ़े माता-पिता के संस्कारों को नहीं भूलना है। हम अगर अपने माता-पिता के संस्कारों को भूल गए तो हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे। कुछ ना कुछ उनके बनाए गए नियम हमें तरक्की के रास्ते जुटाने में हमारी मदद अवश्य करेंगे। मगर हमारा सोचने का नजरिया बदल गया है।

नहीं नहीं मैं अब पहले मैं अपने में सुधार करूंगा तभी मैं अपनी बेटी को कुछ करने के लिए कह पाऊंगा। कार्यालय पहुंचते ही शेखर थोड़ा उदास था मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। चपरासी को आवाज दी इधर आओ। आज का क्या क्या काम है? चपरासी आकर बोला साहब जी एक बात आज मैं आपका काम ठीक ढंग से नहीं कर पाया। वह बोला साहब मेरा बच्चा बीमार है। उसे अस्पताल लेकर जाना था। मेरी पत्नी के पास भी छुट्टी नहीं थी आया के पास छोड़ा था। अगर मैं छुट्टी ले लेता तो आप मेरी छुट्टी कर देते। मेरी पगार मे से काट देते। उस दिन मुझे महसूस हुआ कि कर्मचारी की आंखों में सचमुच का दर्द था जो मुझे नजर आया।

शेखर बोले जाओ तुम आज छुट्टी ले लो काम मैं देख लूंगा। चाय की चुस्की लेते हुए महसूस किया आज मुझे कहीं इसका दर्द महसूस हुआ है। चलो कोई बात नहीं।  इस ऑफिस की एक एक ईंट  और अपनें कारोबार  को जो मैंने मेहनत करके खड़ा किया है। पैसा प्राप्त होने पर थोड़े से   अहंकार की भावना  कहीं ना कहीं मेरे अंदर भी पनप गई थी। मैंने अपने पास  तीन तीन गाड़ियां रख दी थी।  मेरी बेटी मुझे गाड़ी में जाते देखती होगी। अपनी मम्मी को भी  गाडी मे औफिस जाते देखती होगी। तो उसके मन में भी अभी आया। मैं भी गाडी लूंगी।

नहीं, आज  मैं इन गाड़ियों को बेच दूंगा। चाहे मेरे पास काफी धन दौलत ईकटटठी हो गई है। आने  वाली पीढी को अपने बच्चों को भी मैं अपनी मेहनत के बल पर शौहरत अर्जित करना देखना चाहता हूं। मैं केवल अपने घर में एक ही गाड़ी रखूंगा। वह भी आवश्यकता पड़ने पर इस्तेमाल करूंगा।

आज से मैं एक साइकिल लूंगा। इतने बड़े व्यापारी को जब लोग साइकिल चलाते देखेंगे तो सैंकड़ों लोग मन में कटाक्ष करेंगे। मगर नहीं मुझे अपने आने वाली पीढ़ी को अपने संस्कारों के मूल्य आदर्श को  सिखाना है कि मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करने में जो मजा होता है वह बैठ बैठ कर यूं ही किसी की दौलत पर अधिकार जमाने से खुशी हासिल नहीं होती जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए अनेक समस्याओं  संघर्षों का सामना करना पड़ता है। तभी सफलता मिलती है।

शेखर घर पहुंचे तो उसकी पत्नी सुचेता बोली आज आप जल्दी घर आ गए। वह बोले आज मैं अपने परिवार के साथ वक्त  गुजारना  चाहता हूं। उसकी पत्नी श्वेता अपने पति की तरफ देख कर बोली क्या बात है? आप उदास क्यों हो? मुझे बताओ साथ में मिलकर समस्या का हल निकालते हैं। आज सचमुच में  ही उसने अपनी पत्नी की बात को ध्यान से सुना। शेखर ने मुस्कुराकर अपनी पत्नी की तरफ देखा उसकी पत्नी भी हैरान होकर अपने पति की ओर देख रही थी।

मान्या भी स्कूल से आ गई थी वह सुबह से अपने पापा से नाराज थी। वह कुछ नहीं बोली। चुपचाप कमरे में चली गई। उसके पापा ने मान्या के कमरे में जा कर  कहा बेटा क्या थोड़ी देर में मैं तुम्हारे पास बैठ सकता हूं? उसे अपने पिता का आज एक अलग सा रूप देखने को मिला। उसने पापा को कहा क्यों नहीं पापा? उसका गुस्सा तो मानो  ना जाने कहां  फुर्र से उड़ गया। वह भी मुस्कुरा कर अपने पापा के साथ बातें कर रही थी।

उसके पापा बोले सुबह जल्दी उठा करो। वह बोली पापा मैं रात को 3:00 बजे सोती हूं इसलिए मैं सुबह जल्दी नहीं उठ सकती। उसके पापा बोले बेटी तुम अपने उठने और सोने के समय में बदलाव लाओ। सुबह जब तुम जल्दी उठोगी तब तुम्हें पता चलेगा सुबह सुबह  जब तुम  सैरकरने चलोगी मैं और तुम्हारी मम्मी भी सैर करनें जाया करेंगे। आकर तुम अपनी मम्मी के साथ चाय बनाने में मदद करोगी। कभी तुम और कभी अंकित। दोनों मिलकर। कुछ दिन तो मान्या को उठने में समस्या हुई।  उसनें अपने उठने और सोने के समय में बदलाव लाया। वह सुबह जल्दी जल्दी उठने लगी। जिस बात को याद करने में इतना समय लगता था उसको याद करने में कम समय लगने लगा। रात को जल्दी सोने लगी।

टेलीविजन और मोबाइल का समय निश्चित कर दिया। पढ़ने के समय मोबाइल पर बात  नंही करती थी और ना कोई और बात।  धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा।

एक दिन सभी परिवार वालों को शेखर नें चौंका दिया। जिस दिन वह एक साइकिल लेकर घर आ गया। वह बोला मैं साइकिल में बैठकर ऑफिस जाया करूंगा। इससे व्यायाम भी होगा और पेट्रोल की बचत भी होगी। शेखर के दोस्त घर पर आए बोले। शर्मा जी क्या आपको व्यापार में घाटा हो गया है? क्या आपका शेयर मार्केटिंग में सब कुछ समाप्त हो गया? वह कैसे समझाएं लोगों को कि अभी तो उसे समझ आई है। हमें अपनी सोच के नजरिए में परिवर्तन लाना है। गाड़ी से भी हमने ऑफिस या घर ही पहुंचना है। पहुंचेंगे तो हम साइकिल से भी। पैसों की बचत भी होगी और पेट्रोल की बचत होगी।

जब हमारे देश के लोगों में जब यह समझ आ जाएगी। ना तो प्रदूषण की समस्या होगी। और हमारे आसपास का वातावरण भी खुशनुमा होगा। हमारी सेहत में भी सुधार होगा। ना कोई उच्च रक्तचाप का शिकार  होगा  ना कोई  हार्ट अटैक का खतरा जैसी बीमारियां। हमारे आने वाली पीढ़ियों को   हमें ही  यह समझाना होगा। कुछ एक दोस्तों ने तो शेखर की आदत को अच्छा माना। उनकी उसकी पत्नी श्वेता ने भी पैदल जाना स्वीकार कर लिया।

शेखर ने अपने ऑफिस में कहा कि मैंने अपने ऑफिस में कुछ बदलाव लाने की सोची है। अगर मेरे सारे कर्मचारी मेरा साथ देंगे तो इस नेक काम में सब कहीं ना कहीं इसमें हमारी सब की ही भलाई होगी। सारे कर्मचारी बोले साहब जी बताओ। शेखर ने कहा कि मैं अपने ऑफिस में एक दिन ऐसा निश्चित करेंगे जब हम अपने हाथों से बनाए हुए खाने का आनंद लिया करेंगे। सारे सारे मेरे कर्मचारी अपने अपने घर से एक एक चीज खुद अपने हाथ से बना कर लाएंगे और हम सब यहां इकट्ठा बैठकर खाया करेंगे। और हमारे कार्यालय की कुछ दूरी पर एक बावड़ी है वहां जाकर उसकी सफाई करेंगे। और बावली का साफ पानी पीने को मंगवाया करेंगे। अगर मेरे कार्यालय में किसी भी कर्मचारी का बच्चा बीमार होता है तो मैं उस बच्चे के लिए हमारे इतने सारे कार्यकर्ताओं की गाड़ी उपलब्ध होगी। उसकी सहायता करने के लिए मेरे ऑफिस में इतनी औरतें काम करती है जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं जब किसी बच्चे को जल्दी पहुंचना है तो सारे बच्चे इकट्ठे होकर एक एक कार्यकर्ता की गाड़ी का इस्तेमाल करेंगे। सबको शेखर की राय बहुत ही अच्छी लगी।

कुछ ही दिनों में उसने इतनी सफलता अर्जित की। उसके कार्यालय के कर्मचारी उस से इतने खुश हो गए। उनको मेहनत करने का उसने गुर सिखा दिया था।

मान्या का परीक्षा परिणाम आया तो उसने अपनी कक्षा में ही नहीं सारे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसके पापा बोले बेटी मुझे तुम पर गर्व है तुमने दिखा दिया कि हम अभी भी हमें अपने संस्कार नहीं भूले  हैं। हमने अपने बुजुर्गों की सीख को मिटने नहीं दिया। आज सचमुच में ही मैं गर्व से कहता हूं कि तुम मेरी होनहार बेटी हो। मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा वह भी तुम्हारी पसंद से। मान्या बोली पापा मेरी सिलेक्शन एक अच्छे से कॉलेज में हो गई है। मुझे गाड़ी नहीं चाहिए। आज मुझे पता चल गया है कि मेहनत से बढ़कर जिंदगी में कोई भी चीज नहीं है। मेहनत के बल पर सफलता अर्जित की जा सकती है। आगे चल कर वह एक आई एस औफिसर बनी।  

पानी की किमत

पिंकी राजू बाबू पूनम  और रवि सारे के सारे इकट्ठा स्कूल से घर आते और मौज मस्ती करते उनका स्कूल उनके गांव से 6 किलोमीटर की दूरी पर था। उन के गांव में आसपास कोई-स्कूल नहीं था। शिक्षा प्राप्त करनें के लिए उन्हें  पैदल ही स्कूल जाना पड़ता था।

गर्मियों के दिन थे। गांव के  सारे के सारे बच्चे एक साथ चल रहे थे। उन्हें आज जल्दी स्कूल से छुट्टी हो गई थी 12:30 बजे, के करीब। सारे के सारे बच्चे खुश नजर आ रहे थे चलो अच्छा हुआ आज खेलने को तो मिला। रास्ते में चलते जा रहे थे। अचानक इतनी गर्मी होने लगी कि चलना दूभर हो गया। सभी बच्चे गर्मी से बेहाल हो रहे थे। एक जगह खाना खाने के लिए बैठ गए। रास्ते में खाना खाया लेकिन उनके पास पीनें के लिए पानी नहीं था। उन्होंने बिना पानी के ही खाना खत्म किया। सभी बोले रास्ते में आगे दो तीन कुंए है। आगे चल कर कहीं न कहीं पानी अवश्य ही मिल जाएगा। आगे चलनें पर उन्हें कूंआं दिखाई दिया। उसके  अन्दर इतना कूड़ा कर्कट था। पानी की कहीं एक बूंद भी नहीं थी। थोड़ी दूरी पर एक जगह छोटा सा पोखर था। वह इतना गन्दा था। उसमें से दुर्गन्ध आ रही थी। वह आईस्ता आईस्ता चलनें लगे। राजू के पास पानी की छोटी सी बोतल थी। उसनें थोड़ थोड़ा पानी सभी को पीने को दिया।एक एक घूंट पी कर वे धीरे-धीरे आगे चलने लगे।  उन्हें  फिर से  प्यास लगनें  लगी। सब के पास पानी नहीं था। उनमें से दो बच्चे आगे आगे  चल रहे थे। अचानक पीछे वाले लड़कों ने देखा कि आगे वाले दोनों बच्चों के पास पानी था। राजू ने रवि को कहा कि तुम चुपके चुपके पानी पी रहे थे। वह बोला तुम क्यों अपना पानी नहीं लाते? मैं भी तुम्हें अपना पानी क्यों दूं? मैं तुम्हें अपना पानी नहीं दूंगा

पूनम भी बोली हम तुम्हें अपना पानी नहीं देंगे। वे थोड़ी देर बाद  आराम करने के लिए बैठे थे। उन्होंनें अपने आसपास मंडराते हुए पक्षों को देखा। वह भी  प्यास से बेहाल हो रहे थे। इतने में राजू और बब्बू ने  एक दूसरे की तरफ देखा  बोले यह भी हमारी तरह पानी से बेहाल हो रहे हैं। हमारी  भी पानी की बिना ऐसी दशा है तो उनकी भी ऐसी ही हालत होगी। हम तो एक दूसरे से अपनी व्यथा कह सकते हैं मगर ये जीव किसी को कुछ नहीं कह सकते। यह बेजुबान प्राणी तो बोल भी नहीं सकते। मेरे पास पानी होता तो मैं इनको अवश्य पिलाता। बब्बू नें यह सब सुन लिया था। उसके दिल से आह! निकली। बब्बू दौड़ी- दौड़ी आई और बोली मेरे पास थोड़ा सा खाना बचा है। मैं इनको दे देती हूं। सारे के सारे  बच्चे हैरान हो कर बब्बू को बोले शाबास ये हुई न बात।  बब्बू ने अपनी रोटी के टुकड़े  उन पक्षियों को डाल दिए।  थोड़ी देर में बड़े मजे से वे पक्षी रोटी के टुकडे खा रहे थे। राजू बोला   कुछ स्वार्थी मित्र हमेशा अपना ही भला चाहते हैं कैसे छुप छुप कर पानी पी रहे है? थोड़ी दूर आगे चले पर उन्हें एक होटल दिखाई दिया। बच्चे होटल के मालिक को स्कूल जाते हुए देखा करते थे। सब के सब एक साथ बोले पंकज जी  नमस्ते।राजु अपने दोस्तों से कहने लगा आज हमें प्यास लग रही है इसलिए आज हम उस अंकल जी को नमस्ते करने लगे। आज से पहले हमनें कभी प्यार से उन से बात भी नहीं कि आज  मजबूर होकर हमें उन्हें मस्का लगाना पड़ रहा है। आगे आ कर बोले आपके पास पानी मिलेगा। दुकानदार बोले बेटा आज तो हमारे यहां पर भी पानी नहीं  है अगर तुमने पानी पीना ही है तो हमारे पास  जूस ही मिलेगा। बच्चों को प्यास लग रही थी एक जूस की बोतल उसने ₹50  लगाई। लेकिन बिना पानी के तो वे एक  एक कदम भी नहीं  चल सकते थे। राजू अंकल को बुलाकर  कहनें लगा अंकल यह तो ₹25 की आती है। दुकानदार बोला लेनी है तो लो वर्ना अपना रास्ता नापो। सभी बच्चे दुकानदार को घूर कर देख रहे थे। मानो कि उसे खा जाए। उसे अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझ रहे थे। पूनम तो प्यास के मारे रोनें  लगी। उसका गला सूख रहा था। सब के सब बच्चों ने 10 ₹10 इकट्ठे  किए और एक बोतल जूस की खरीदी।सभी बच्चों नें थोड़ा थोड़ा करके जूस पीया। उन्होंने फिर से रास्ते पर चलना शुरू कर दिया। उनके पास खाने के लिए चने थे। रास्ते में चने खाने खाते जा रहे थे। उन्हें चने खाने के बाद और भी  जोंरों की प्यास लगी। आगे जाने ही लगे थे कि उन्हें सामने एक छोटा सा घर दिखाई दिया। राजू बोला चलो इस घर में चल कर पानी मांगते हैं वहां पर बाहर एक लोहे का गेट था। उस के सामने बाहर की ओर एक घड़ा रखा हुआ था। साफ-सुथरा घड़ा था। उसके ऊपर एक हैंडल वाला बर्तन रखा हुआ था सामने  बोर्ड पर लिखा था। जिस किसी नें भी पानी पीना हो वह पानी पी सकता है।  पानी गन्दे हाथों से मत निकालना। पानी की एक बूंद भी व्यर्थ नही जानी नहीं चाहिए। उन्हें आज पता ही लग चुका था कि बिना पानी के उन की क्या हालत हो गई थी। राजु आगे आ कर बोला आज कहीं मैडम की बात समझ में आई। पानी को मत गंवाओ। हर रोज मैडम  प्रार्थना के वक्त आधे घंटा भाषण  झाड़ती हैं। आज कहीं उन की बात पले पड़ी।

आज तो इस  घर के मुखिया का शुक्रिया अदा करना चाहिए। उन्होंने देखा कि उस घर में   एक औरत बाहर निकली। बच्चों को देख कर बोली तुमने पानी पी लिया होगा। वह बोला आंटी जी आपका धन्यवाद आज तो इतनी भयंकर गर्मी पड़ रही है हम प्यास के मारे बेहाल हो गए बच्चों ने देखा दूसरी और एक छोटा सा मटका था वह ढका हुआ नहीं था तब उन्होंने देखा कि एक चिड़िया आकर पानी पी गई। वह चिड़िया भी पानी पीकर बहुत ही खुश नजर आ रही थी वह  चीं चीं करके घर वालों को धन्यवाद दे रही थी चुन्नू बोला आंटी जी आपने यह दूसरा मटका क्यों रखा है वह बोली मेरी बेटी तुम्हारी ही उम्र की है वह

पंछियों से वह बहुत ही प्यार करती है। वह उन जानवरों को हमेशा दाना और पानी डालती है। वह कहती है कि मां जब हम प्यास के मारे बेहाल हो जाते हैं तो यह  जानवर  भी। तो गर्मी में यूं ही तड़प तड़प कर मर जाते होंगे। हमें इनके लिए पानी और दाना अवश्य डालना चाहिए। खासकर गर्मियों के मौसम में। घर के बाहर की ओर पानी अवश्य रखना चाहिए। सभी बच्चों ने  आंटी का धन्यवाद दिया।वे घर की ओर रास्ते में चलते जा रहे थे। रास्ते में एक कबूतर का बच्चा प्यास से व्याकुल हो कर नीचे गिर गया था। सभी के सभी बच्चों को समझ में आ गया था कि प्यास से व्याकुल हो कर हमारी ऐसी हालत हो गई   है तो वे बेचारे मूक जीव तो पानी के लिए किसी से भी फरियाद नहीं कर सकते। उनके लिए हम पानी की व्यवस्था नहीं करेंगे तो सारे के सारे जानवर तड़फ- तड़फ कर मर जाएंगे। गर्मी में सारे  के सारे तालाब भी सूख चुके हैं।

अचानक पूनम और रवि आगे आकर बोले भाई हमें अपनी गलती का पछतावा है। हम तुमसे छिप कर पानी पी रहे थे मगर थोड़ा सा पानी हम दोनों के पास है। कबूतर के बच्चे को पानी पीने की बोतल के ढक्कनसे उन्होंनें पानी डाला। कबूतरों नें पानी पिया और मुस्कुरा कर अपनों  साथियों के साथ उड़ गये।

आज के बाद  हम  भी अपने घर के आंगन में पक्षियों के लिए पानी का बर्तन अवश्य रखेंगे। उनको दाना भी डालेंगे। सभी बच्चे घर पहुंच गए थे। उन्हें पता लग गया था कि हमें पानी को व्यर्थ नहीं  करना है। हम पानी के बिना जिंदा नहीं रह सकते। पानी नहीं मिलता तो आज हम भी मर जाते या बेहोश हो जाते। पानी भी हम सब के  लिए उतना ही जरूरी है जितना कि  भोजन। उस दिन के बाद सभी बच्चों में परिवर्तन आ चुका था।

सुख और दुःख की अनुभूति

पल्लवी के परिवार में उसका बेटा रामू। रामू को आवाज लगाई बेटा यहां आना। वह चिल्लाकर बोला मां क्या है? खेलने भी नहीं देती हो। नन्हा सा रामू वह अपनी मम्मी को इतना तंग करता था। लॉड प्यार ने उसे इतना बिगाड़ दिया था जब वह खाने को देती वह कहता नहीं मुझे चिप्स खाने है। बर्गर खाने हैं। उसकी मम्मी अपनी बेटी की हर फरमाइश को पूरा करती थी। उसे कभी भी नहीं कहती थी कि कि हमें यह चीजें नहीं खानी चाहिए। उसकी सहेलियाँ उस से कहती भी थी कि इतना लाड प्यार अच्छा नहीं होता पल्लवी को भी समझ में नहीं आता था। वह तो अपने बेटे रामू के हर  अरमान को पूरा करना चाहती थी। वह सोचती उसके कौन से 10 बच्चे हैं बच्चे तो ऐसे ही होते हैं। उनके  पास एक बिल्ली थी किटटू। उसको  भी वह अपने साथ साथ ही रखता था। उसकी मां उसका भी खूब ध्यान रखती थी। जब वह सैर करने उसे ले जाती तो किट्टू को भी साथ ले जाती।  उसको  भी शॉल ओढ़ कर।

पल्लवी के घर के पास मजदूरों के बच्चे खेला करते थे। एक बार पल्लवी की सास गांव में आई। वह पल्लवी को बोली बेटा  हमेंअपने बच्चों को इन बच्चों के साथ भी खेलने देना चाहिए। एक दिन एक मजदूर का बच्चा आकर रामू के साथ खेल रहा था। रामू के पास आकर बोला चलो खेलते हैं। उसके बाल बिखरे हुए थे सारे सिर में मिट्टी लगी हुई थी। उसने अपने बेटे को अपने पास बुलाया और कहा इसके साथ खेलने की कोई जरूरत नहीं है। देखो कितना गंदा है। इस के कपडों से कितनी दुर्गंध आ रही है। तुम इन बच्चों के साथ नहीं खेलोगे। रामू चलो तुम मेरे साथ खेलोगे। उस की सास बोली बेटा माना तुम्हारे पास गाड़ी है बंगला है किसी वस्तु की कमी नहीं है। इन सब चीजों को पाकर इंसान को कभी घमंड नहीं करना चाहिए। ना जाने  ईश्वर का क्या खेल हो सकता है?। वह राजा को  रंकं भी बना सकता है और रंक को राजा भी। हमें कभी भी गर्व नहीं करना चाहिए। इस छोटे से बच्चे को तो देखो बालों में मिट्टी ही तो लगी है। हम मिट्टी से ही हम पैदा हुए हैं और मिट्टी में ही हमें मिल जाना है। बच्चों को खेलने देना चाहिए। प्रवाह नहीं करनी चाहिए कि उसके चोट लगने जाएगी। सभी बच्चे एक जैसे होते हैं ना कोई छोटा ना कोई बड़ा।

मां जी आप तो रहने ही दो। मैं ही इसके साथ खेलती हूं। उसने रामू को उस बच्चे के साथ खेलने से मना कर दिया।  एक दिन बड़े जोर की आंधी तूफान चल रहा था। पल्लवी अपने बच्चे के साथ बाल्कनी में खेल रही थी। ठंड के दिन थे। वह मजदूर का बच्चा अपनी मां के साथ आया और बालकनी के पास बैठ गया। तभी अचानक रामू अपनी मम्मी के साथ किट्टू के साथ आया। उस  मजदूर बच्चे के पैर में जूते भी नहीं थे। शायद 2 दिन से कुछ भी खाया नहीं था। उसने जैसे ही किट्टू के लिपटी हुई शक्ल देखी उसने वह शहर उस किटटू के पास से लेनी चाहिए तभी पल्लवी ने रोक दिया बोली हमारी किट्टू की शौल है। उसका बेटा चिप्स का पैक्ट  ले कर लाया था। वह खा रहा था। वह भी बालकनी में बैठकर चिप्स खा रहा था। उस मजदूर औरत का बच्चा उसको  चिप्स खाते हुए देख रहा था।   दो तीन बिस्कुट खाकर उसने बचा दिए थे मजदूर का बच्चा इधर ही देखे जा रहा था  ताकि उसे भी एक बिस्किट खाने को अगर मिल जाता तो अच्छा होता। पल्लवी ने वह बिस्किट उठाकर किट्टू को डाल दिया। बच्चा देखता ही रह गया। पल्लवी  भी  उस मजदूर को खरा खोटा सुनाने में व्यस्त थी। तू तो आज शौल को चुराने के चक्कर में थी। वह बोली बीवी जी मैं ठंड में मर रही थी। मुझसे अपने बच्चे की हालत देखी नहीं जा रही थी। इसलिए मैंने सोचा क्यों ना अभी मैं अपने बच्चे को यह शॉल ओढा दूं। बाहर वर्षा हो रही थी इसलिए बाल्कनी में आ गई। मैं जब यहां से जाती तो यह शौल यहीं रख जाती। बच्चा ठंड के मारे कांप रहा था।

पल्लवी  डांट डपट कर बोली  आ जाते हैं यहां मांगने या चोरी करने। मजदूर औरत की आंखों में उसकी करुण पुकार  उसकी आंखों से झलक रही थी। उसने अपनी चादर फाड़ डाली और अपने बच्चे को ओढा दी।

दिन प्रतिदिन रामू  बिगड़ता ही जा रहा था स्कूल में एक दिन उसने एक बच्चे को गेंद मार दी। बड़ी मुश्किल से वह बच्चा बच गया। पल्लवी  नें सोचा कि अपने बेटे को कैसे सुधारा जाए? किसी ने उसे बताया कि कुछ दिनों के लिए गांव के वातावरण में रहेगा तो वह सुधर जाएगा। उसने अपने बेटे को सुधारने के लिए गांव जाने का निश्चय कर लिया। एक दिन वह अपने बेटे को लेकर अपने गांव जा रही थी। अपने गांव रतनपुर जा रही थी। रास्ते में बस खाई में गिरते गिरते बची। ठंड के दिन थे किसी ना किसी तरह बस में बैठे यात्रियों को बचा लिया गया। बस एक पहाड़ की खाई में गिरने ही वाली थी वहां पर एक पहाड़ी से लुढ़क कर बड़े से पत्थर से अटक गई थी। वहां दूर-दूर तक घना जंगल था। कहीं भी कोई दुकान होती जहां से रात को खाने को मंगवाया जा सकता था। या फोन करके सूचना दे सकती थी। सारे के सारे सारे यात्री वहां पर फंस गए। मोबाइल टूट चुके थे। सबके कपड़े जगह जगह   से फट  चुके थे और कपड़े धूल मिट्टी से सन गए थे। नन्हा सा  रामू भूख भूख चिल्ला रहा था। मां आपने मुझे खाने को नहीं दिया मैं आपके बाल खींच लूंगा। मुझे खाना चाहिए। वह अपनी मां के बाल खींच रहा था। उस बियाबान जंगल में खाना कहां से आता। 2 दिन वहीं पर हो गए।

उसकी नजर तभी अपनी पिछली सीट पर बैठी  एक मजदूर औरत पर गई। वह अपने बच्चे को लेकर बैठी थी बस खाई में लुढक जाने के कारण यात्रियों के कपड़े जगह-जगह से फट गए थे। पल्लवी की साड़ी भी फट चुकी थी आकाश के बालों में भी मिट्टी लगी हुई थी। वह तो बिल्कुल उन मजदूर बच्चों जैसा नजर आ रहा था। वह एक भिखारी की तरह लग रही थी जो भूख से छटपटा रही थी। उन्हें 2 दिन से खाने को कुछ भी नहीं मिला था। केवल पानी की एक बूंद  ही नसीब हुई थी। उसके सामने अपने घर की मजदूर औरत का चेहरा याद आ गया। कैसे वह ठंड में कांप  रही थी। उसने अपना दुपट्टा फाड़ कर अपने बेटे को ढक दिया था। मगर उसनें   तो उससे शौल भी छीन ली थी। उस बेचारी का उसमें क्या कसूर था।? वह तो अपने बच्चे को ठंड से बचाने का प्रयत्न कर रही थी।

पल्लवी का बेटा बुखार में तड़प रहा थाह वह बेहोशी की हालत में खाना खाना चिल्ला रहा था। पल्लवी ने अपना दुपट्टा फाड़ा और अपने नन्हे बेटे को उस से ढक दिया। अपने आप सारी रात ठंड से ठिठुरती रही। उसकी इस करुणा वेदना की चीत्कार उसके साथ वाली मजदूर औरत सुन रही थी। वह अपनी सीट के पास से आई बोली बीवी जी आपका बेटा भूखा है आप बड़े लोग हैं आपके पास तो बहुत कुछ होगा मगर इस वक्त आपके बच्चे को बड़ी जोर की भूख लगी है शायद इसी कारण उसे बुखार भी आ गया है। मैंने अपने बेटे के लिए एक लड्डू बचा लिया था। रास्ते में शादी की एक बारात जा रही थी उन लोगों ने हमें खाने के लिए लड्डू दिए थे उसमें से केवल एक लड्डू बचा था। मेरा बेटा आज नहीं खाएगा तो कोई बात नहीं। मेरे बेटे को तो भूखा रहने की आदत है। उसे कुछ नहीं होगा। आप यह लड्डू अपने बेटे को खिला दो।

उस भिखारिन के ऐसा कहने पर पल्लवी जोर जोर से रोने लगी। उस मजदूर औरत की बात सुनकर हैरान हो गई  मजदूर औरत बोली बीवी जी आप घबराते क्यों हो।? आपके बच्चे को कुछ नहीं होगा। थोड़ी देर बाद गाड़ी को बहुत सारे लोगों की मदद से ऊपर लाया गया। तूफान भी थम गया था। सुबह हो चुकी थी दूसरी बस आ चुकी थी। ड्राइवर ने कहा कि सब के सब लोग दूसरी बस में बैठ जाओ। जाते-जाते पल्लवी ने उस मजदूर भिखारी की तरफ प्यार से देखते हुए उसे कहा बहन यह लो मेरी तरफ से एक छोटा सा तोहफा। उसने अपना एक सूट जो लेकर गई थी उसे दे दिया और कहा धन्यवाद। गांव में थोड़े दिन रहने के बाद पल्लवी ने अपने बेटे को कुछ-कुछ सुधार दिया था। वह उसे अब बर्गर चिप्स  खाने को नहीं देती थी।  उसे एहसास हो गया कि इंसान के जब गाज अपने ऊपर गुजरती है तभी उसे दूसरों के दर्द का एहसास होता है। वह कुछ दिन गांव रह कर शहर आ गई थी।

उसने देखा उसके घर में मजदूर का बच्चा आकर खेल रहा था। पल्लवी अपने बेटे से बोली बेटा जाओ उस बच्चे के साथ खेलो। रामू बोला मैं उस बच्चे के साथ नहीं खेलूंगा। उसके कपड़े गंदे हैं। जगह-जगह से फटे हुए हैं। उसकी मां बोली बेटा कोई बात नहीं। जब हम उस दिन बस में गए थे तो आपके कपड़े भी मिट्टी में ऐसे ही हो गए थे। तो आप भी तो ऐसे ही लग रहे थे। अगर हम उसको साफ करेंगे तो वह भी अच्छा बच्चा बन जाएगा। चलो आज हम इस को नहलाते हैं। पल्लवी ने उस बच्चे को नहलाया और उसे साफ किया।  अपने बेटे रामू को कहा देखो अब यह वह भी तुम्हारी तरह लग रहा है। पर भी बोली बेटा अगर आप भी मिट्टी में खेलोगे तो आपके कपड़े भी गंदे हो जाएंगे मगर जो खुशी तुम्हें मिट्टी के खेल में खेल कर और इस बच्चे के साथ खेलकर मिलेगी वह तुम्हें कहीं प्राप्त नहीं होगी। तुम इस बच्चे के साथ ही खेलो। मां जी ठीक ही कह रहीं थी। मैंनें तो उन्हें भी खरीखोटी सुनादी थी। मैं उन से भी क्षमा मांग लूंगी।

चलो मैं तुम दोनों को चॉकलेट देती हूं। मजदूर औरत अपने बेटे को मालकिन के बेटे के साथ खेलता देख कर खुश हो रही थी। पल्लवी को महसूस हो रहा था कि आज ही तो उसे सच्ची खुशी मिली है। आज से पहले तो वह  भ्रम में जी रही थी। धन-दौलत की चमक दमक नें उसके मन में अहंकार की भावना उत्पन्न कर दी थी। उसे मजदूर औरत की वेदना समझ नहीं आई थी। चलो सही समय पर मुझे यह अंतर समझ में आ गया। उसका बेटा रामू भी उस छोटे से बच्चे के साथ खेल कर मुस्कुरा रहा था।

प्यारा दोस्त बांकू

जंगल के सारे जानवरों ने मिलकर सभा बुलाई उन्होंने मिलकर मशवरा लिया कि हम सब जानवर मिलकर एक टूर्नामेंट का आयोजन करेंगे। टूर्नामेंट में जो भी जीतेगा उसको हम ₹50, 000 देंगे। सब के सब जानवरों के नामों की लिस्ट इतवार से बहुत पहले पहुंच जानी चाहिए। शेर को राजा बनाया गया। शेरनी को रानी। भालू को मंत्री। चीते को उपमंत्री। हाथी को मुख्यमंत्री। और हाथी को एक और कर्तव्य पूरा करने के लिए कहा गया।

तुम्हें बाहर से आने वाले जानवरों को लाना होगा। इस काम के लिए तुम अपने दोस्तों घोड़े और ऊंट की मदद भी ले सकते हो। ईतवार का दिन आ चुका था। पांडाल सजाया हुआ था। शेर अपनें सिहासन पर बैठा हुआ था। पास में शेरनी भी बैठी हुई थी। भालू मंत्री आने जाने वालों पर नजर रखे जा रहा था ताकि  बाहर से कोई शत्रु आकर हमला कर दे तो उस से बचाव किया जा सके। चीते को भी काम सौंप दिया गया था। हाथी सभी जानवरों को ला रहा था। उसके साथ घोड़ा और ऊंट भी उसकी मदद कर रहे थे।

टूर्नामेंट में दौड़ का आयोजन किया गया था जो कोई भी 400 मीटर की दौड़ में जीतेगा वह आज का विजेता घोषित किया जाएगा। दूर-दूर से इस दौड़ में भाग लेने के लिए  सभी जानवर आए हुए थे। खरगोश हिरण लोमड़ी कछुआ।  सभी जानवरों में कछुआ और खरगोश भी चले आ रहे थे। उन दोनों को साथ आते देख कर सारे के सारे जानवर हंसने लगे। यह देखो दोनों की दोस्ती। एक तेज भागने वाला और एक सुस्त प्राणी कछुआ। इन दोनों को हम साथ-साथ देखते हैं। हरदम दोनों जहां जाते हैं  साथ जाते हैं। भालू बोला तुम दोनों दौड़ में अपना नाम क्यों नहीं लिखवा देते।? तुम दोनों में कौन जीतेगा? तेजु खरगोश बोला क्यों नहीं?। मैं तो बहुत तेज दौड़ता हूं। बेचारा मेरा दोस्त बांकू कछुआ यह तो मेरा मुकाबला नहीं कर पाएगा। इतना सुस्त चलने वाला मैं तो अगर दिन भर सोता भी रहूं फिर भी मैं अपने दोस्त बांकू कछुए से बाजी मार ही जाऊंगा। कछुए का  तो मेरे सामने इस प्रतियोगिता में नाम नहीं लिखना चाहिए था। तेजू खरगोश कछुए के पास आकर बोला अभी भी समय है अपना नाम इस टूर्नामेंट से कटवा दो तुम्हें सारे जानवरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा। बांकू कछुआ बोला भाई मेरे कोई बात नहीं हार जीत तो दोस्ती में लगी ही रहती है। कभी कोई जीतता है कभी कोई हारता है। हो सकता है मैं ही तुमसे जीत जाऊं। टूर्नामेंट शुरू होने में अभी समय था हाल खचाखच भरा था। सभी जानवर अकड़ कर बैठे हुए टूर्नामेंट शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। आज तो कुछ अनोखा होने वाला है। एक तरफ तेजू कछुआ और दूसरी तरफ बांकू खरगोश। दोनों बैठ गए वे दोनों आपस में मित्र थे। उन दोनों में हमेशा खरगोश ही जीतता था। दौड़ने के लिए नाम पुकारे गए। सब के सब जानवर अपना नाम लिखवाने के लिए चले गए। दौड़ने से पहले बांकू ने तेजू से हाथ मिलाया। सीटी जैसे ही  बजी सबके साथ जानवर भागे। भागते-भागते वेे भी बहुत दूर आ गए। बांकू कछुआ आहिस्ता आहिस्ता चल रहा था। रास्ते में तेजू ने सोचा थोड़ी देर विश्राम ले लिया जाए। वह सुस्ताने लगा। इतने में बांकू कछुआ भी वहां पहुंच चुका था।  बांकू को देखकर तेजू जग गया उसने अपने दोस्त को कहा भाई बांकू  तुम आहिस्ता-आहिस्ता  आओ।  तुम मेरा मुकाबला नहीं कर सकते हो। अभी आधा ही रास्ता तय किया गया है।  बांकू बोला तेजू भाई तेजू भाई यह तेज धार वाला नुकीला हथियार है। इसमें रस्सी बंधी हुई है। शायद यह हमारे काम आ जाए। तेजू बोला मुझे तो दौड़ की पड़ी है। तुम ही ले लो। बांकू बोला भाई मेरे मैं इसको  कैसे लूं। अपने आप चलूं या इसे उठाऊं। तुम्हारी मर्जी उसने वह नुकीला तेज धार वाला रस्सी वाला नुकीला चाकू वंही रख दिया। तेजू जल्दी से भाग गया। भागते-भागते वह बहुत ही दूर आ गया। वह अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने ही वाला था उसको एक तेज झटका लगा। उसका पैर फिसल गया और वह गहरी खाई में लटक गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा बचाओ बचाओ बचाओ।

सारे के सारे जानवर उसको बचाने के बजाए अपने स्थान पर पहुंचने का प्रयास कर रहे थे। उन जानवरों में से किसी ने भी उसे नहीं बताया तभी उसे सामने से आता बांकू  दिखाई दिया बांकू दौड़ लगा ही रहा था तभी तेजु  चिल्लाया मेरे दोस्त मुझे बचाओ। बांकू ने उसे देखा और उसकी तरफ आकर बोला भाई मेरे तुम कहां फंस गए।? बांकू रुक गया। उसको खींचता तो वह भी खाई में गिर पड़ता। बहुत ही मोटी टहनी थी। बांकू ने कहा यार मेरे मैंने तुम्हें कहा था ना कि इस नुकीले धार वाले चाकू को ले चलो  परंतु तुमने मेरी बात नहीं मानी। मैंने तुम्हें कहा था कि शायद यह हमारे काम आ जाए। उसकी सहायता से मैं तुम्हें ऊपर खैंच सकता था। अगर हम उस नुकीले चाकू को ले आते तो रस्सी को बांधकर  तुम्हें ऊपर खैंच सकते थे। नुकीले चाकू से टहनी तो टूट ही जाती मैं उसे ऊपर खींच लेता। तुम्हारी टांग बुरी तरह उस में फंसी हुई है। उससे हम उस पेड़ की शाखा को तो काट ही सकते थे। तेजू भाई तुम तो दौड़ में भाग लेने वाले थे। तुम मुझे बचाने आ गए मगर वह तेज धार वाला नूकिला  चाकू जिसमें रस्सी बंधी हुई थी। वह तो वहीं रह गया। बांकू बोला तो क्या हुआ? अपने दोस्त को बचाने के लिए मुझे फिर वापस भी जाना पड़े तो मैं उस वस्तु को लेने अवश्य जाऊंगा और किसी ना किसी तरह उस पेड़ की टहनियों को काटकर तुम्हें बचा लूंगा। बांकू वापिस जाकर तेज धार वाला चाकू ले आया था। उसने पेड़ की टहनियों में फंसे तेजू  को बाहर निकाला और उसे सही सलामत बचा कर ले आया। तेजू पछता रहा था। इसने आज फिर अपनी दोस्ती निभा दी। मैंने तो दो बार उसे धोखा दिया। एक बार तो मैं उसे बीच रास्ते में छोड़कर भाग गया था। फिर भी बांकू कछुए ने मेरा साथ नहीं छोड़ा अपनी दोस्ती निभाई और मैंने सब सभा जनों के सामने इसका अपमान किया फिर भी उसने हंस कर टाल दिया मेरा दोस्त कितना महान है

आज तो मुझे इसे दौड़ में जीताना ही होगा। सारे के सारे जानवर मुझे बीच रास्ते में छोड़ कर आगे बढ़ गए। बांकू ने रस्सी फेंक कर मुझे ऊपर खींच लिया। तेजू की टांग से खून बह रहा था। उसने अपने खून की परवाह नहीं की बांकू ने अपने दोस्त को कहा यार तुमने आज तक मेरी सहायता की आज मुझे अपना फर्ज निभाने दो। जैसा मैं कहूं तुम वैसा ही करो। अभी  गंतव्य स्थान में पहुंचने में सिर्फ एक घंटा है। मैं तुम्हें  अवश्य  ही जीताऊंगा।

मेरे दोस्त तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। उसने बांकू कछुए को अपनी पीठ पर बिठा लिया और बहुत तेज दौड़ लगाई। सब के सब जानवरों को पीछे छोड़ दिया। जब उस स्थान पर पहुंचने ही वाले थे तो तेजू नें उसे नीचे उतारा और कहा जाओ भाई मेरे और दौड़ कर अपना इनाम ले लो। मैं पीछे-पीछे आता हूं। बांकू  बोला नहीं भाई मेरे।

तेजू बोला इससे पहले कि और जानवर बाजी मार जाए तुम  जल्दी जा कर ईनाम ले लो। तुम इनाम के असली हकदार हो। तुमने आज मेरी जान बचाकर हमारी दोस्ती को और भी गहरा कर दिया है। हमारी दोस्ती को किसी की नजर ना लगे। बांकू कछुए को विजेता घोषित किया गया। उसे ₹50, 000 दिए गए।  सारे के सारे जानवर हैरान होकर कछुए को देख रहे थे। तभी तेजू आकर बोला मेरे दोस्त  आओ दोस्त मेरे गले लग जाओ। आज मेरा दोस्त मुझे नहीं बचाता तो मैं मर ही गया होता। उसने अपनी सारी कहानी राजा को सुना दी। राजा ने कहा हमें इन दोस्तों की दोस्ती पर गर्व है।  

(चीकू और मीकू की दोस्ती)

किसी जंगल में एक शेर और शेरनी रहते थे। वे दोनों पति-पत्नी शिकार करने जाते और जो कुछ मिलता वह अपने बच्चों के साथ मिल बांट कर खाते थे। एक दिन शेर शेरनी दोनों जंगल में शिकार करने निकले वहां पर उन्होंने आगे  तेज तेज भागते हुए हाथी के बच्चे को देखा। वे उसे देखकर बहुत ही खुश हुए। चलो आज हमें ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता नहीं है। यह हाथी का बच्चा तो आसानी से हमारे हाथ लग जाएगा। हाथी का बच्चा उनको देखकर बड़ी ही तेजी से अपनी जान बचाकर भागा। वे   दोनों भी हाथी के बच्चे के पीछे दौड़ने लगे। अचानक हाथी का बच्चा  उनकी आंखों से ओझल हो गया

शेरनी शेर से बोली यह हाथी का बच्चा देखने में छोटा सा है मगर बहुत ही तेज है। आज तो इसको पकड़ कर ही हम दम लेंगे। चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं। हमें तब तक भूख भी अधिक लग जाएगी। दोनों एक तालाब के समीप ही आराम करने लगे। वह चाहते थे कि यदि कोई जानवर भी हाथ लग जाएगा तब हम उसका शिकार ही कर लेंगे। कोई ना कोई जानवर यहां पानी पीने अवश्य आएगा।

हाथी का बच्चा अपने हाथी दोस्तों के झूंड से अलग हो गया था। हाथियों का झुंड जंगल में जा रहा था तभी हथिनी ने पुकारा चीकू। वहां पर अचानक शेर का बच्चा उन हाथियों को दिखाई दिया। शायद वह बच्चा भी अपने दोस्तों से अलग हो गया था। जैसे ही हथिनी ने उसे देखा वह सब उसे मारने के लिए उसके पीछे पीछे दौड़ने लगे। हथिनी के बच्चे का का नाम था मीकू। शेरनी के बच्चे का नाम चीकू था। चीकू ने सोचा मेरी मां मुझे पुकार रही है। चीकू ने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा वह उसकी मां नहीं थी। वह कहां आ फंसा था।  उनको देखकर चीकू ने दौड़ लगाई।

वह अपने आप को उन से बचाना चाहता था। वह नन्हा सा बच्चा था उसको भागता देखकर मीकू  भी उसके पीछे पीछे भागने लगा। भागते भागते हुए  वे दोनों  भी बड़ी दूर आ गए थे। उसको देखते कर मीकू बोला भाई मेरे मुझे पता चल गया है तुम्हारा नाम चीकू है।। मेरा नाम मीकू है। तुम मुझसे मत डरो। मैं तुम्हारा दोस्त बन सकता हूं। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा। वह उन हाथियों से डरकर एक झाड़ी में फंस गया था। उसकी टांग से खून बह रहा था। मीकू  बोला मैं तुम्हें बताता हूं जब मेरी मां ने मुझे पुकारा तो तुमने समझा कि चीकू पुकारा है। मेरा नाम तुम्हारे नाम जैसा ही है। मेरे दोस्त मैं तुम्हें अपने परिवार वालों से बचाऊंगा इससे पहले वह आ जाए मैं तुम्हें यहां एक पेड़ के पीछे गड्ढे में छुपा देता हूं। तुम पर पत्ते डाल दूंगा। झाड़ियों की ओट में तुम्हें कोई नहीं देख सकेगा। दोस्त तुम्हारे चोट लगी है तुम मुझसे छोटे हो। मैं तुम्हें नहीं मारूंगा। मीकू बोला किसी के आने की आवाज आ रही है। अचानक उसने देखा हाथियों का झुंड पानी पीने आ रहा था।  वह समीप ही पहुंचने वाला था। हथिनी ने कहा बेटा मीकू तुमने यहां पर किसी छोटे से शेर के बच्चे को तो नहीं देखा। मिकू ने कहा हां हां वह आगे उस ओर गया है। आप सब जल्दी से आगे जाओ वहां पर वह शेर का बच्चा है। हथिनी बोली ठीक है तब तक तुम यहीं पर आराम करो हम उसको पकड़ कर लाते हैं। मिक्कू ने चीकू की जान बचा ली थी। हाथियों का झुंड आगे बढ़ चुका था। मीकू वही पर रह गया था। जैसे  ही हाथियों का झुंड वहां से चला गया चीकू को पुकारा चीकू अब तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है। चीकू ने कहा भाई मेरे दोस्त मैं तुम्हारा शुक्रिया अदा कैसे अदा करूं?

उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी। चीकू नें कहा तुम्हें भी खतरा हो सकता है मेरे भाई। शायद हमारे परिवार का कोई सदस्य आ रहा है। चीकू बोला तुमने तो मुझे बचा लिया अब तुम को कौन बचाएगा। मेरे तो चोट लगी है मैं तो तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा। मीकू बोला चीकू भाई कोई बात नहीं अगर तुम्हारे लिए मुझे मरना भी पड़ जाएगा कोई बात नहीं मैं समझूंगा अपने दोस्त को बचाने के लिए मैंने अपनी जान भी कुर्बान कर दी तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जैसे ही आहट सुनी  मीकू भागने लगा। शेर और शेरनी ने उसे देख लिया था।  उनको पास देख कर मिकू भागने लगा और फिर झाड़ियों के पास छिप गया। एक बार फिर उसने शेरनी और शेर को चकमा दे दिया। था। शेरनी बोली कब तक बच सकता है। शायद इन पत्तों के बीच छिपा बैठा है। जैसे शेरनी ने इन पत्तों को हटाया वह खुशी के मारे शेर को पुकारनें लगी। वह हाथी का बच्चा घायल पड़ा है। हमें हमारा शिकार मिल गया है। शेरनी की आंखों से कम दिखाई देता था पास जाने पर उसने देखा वह तो उसका चीकू था। वह कराह रहा था।चीकू  की आंखों में आंसू आ गए उसने अपने बच्चों को प्यार से चाटना शुरु कर दिया। चीकू बोला मां आप मुझे छोड़ कर कहां चली गई थी। मेरी टांगे झाडियों में फंस गई थी। मेरे दोस्त मीकू नें आज मेरी जान बचा ली। अगर आज मेरे दोस्त मित्र ने मुझे बचाया नहीं होता तो आज मैं इस तरह आप लोगों के सामने नहीं होता। उसने अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाई है। मां आप जानकर हैरान होंगे कि वह मेरा दोस्त एक हाथी का बच्चा है। उसके पीछे भी   बहुत सारे जानवर पड़े हैं। वह भी अपनी जान बचाकर किसी झाड़ी के पीछे छिप गया होगा। उसने मुझे अपने परिवार के सदस्यों से बचाया। उसने उन्हें आगे भेज दिया। और मुझे अकेला नहीं छोड़ा शेरनी को झाड़ी के पीछे कुछ हिलता दिखाई दिया। वहां पर छिपकर मीकू अपनी जान बचाने के लिए  बैठा था। शेरनी उसके पास गई। और उसके पास जाकर उसे भी प्यार से चाटने लगी। उसने भी हथिनी के बच्चे को छोड़ दिया आज उसे पता चल चुका था कि अगर आज हाथी का बच्चा मीकू उसके बेटे की जान नहीं बचाता तो उसका बेटा उसे वापस नहीं मिलता। शेरनी अभी भी  बड़े प्यार से  मीकू को  देख रही थी। शेरनी ने शेर से कहा कि चलो यहां से चलते हैं। उसने भी मीकू को छोड़ दिया था।

उसने मीकू को कहा तुम दोनों की दोस्ती को सलाम। तुम दोनों की दोस्ती को किसी भी दुश्मन की नजर नंही लग सकती। अलविदा कह कर शेर और शेरनी वंहा से चले गए।

जैसे को तैसा

किसी गांव में दो दोस्त रहते थे। दोनों पक्के दोस्त थे। उन दोनों के प्यार को किसी की नजर लग गई। वे दोनों एक दूसरे के दोस्त नहीं रहे। एक दिन ना जाने  किसी बात को लेकर उन दोनों में झगड़ा हो गया।

दोनों एक दूसरे से मिलते भी नहीं थे। दूसरे दोस्त ने सोचा मैं यहां पर नहीं रहता मैं यहां से दूसरे शहर में कमाई करने  के लिए चला जाता हू। वह अपने दोस्त के पास जाकर बोला दोस्त मैं यहां से दूसरे शहर जाना चाहता हूं। सारी शिकायतें  गिले शिकवे भूल जाओ। मेरे पास जो कुछ था वह सब कुछ मैं गंवा बैठा हूं। मेरे पास ले देकर अपने दादाजी की एक निशानी बची है।   उन्होंने मरते वक्त यह बंदूक मुझे दी थी।  इसे तुम धरोहर के रूप में रख सकते हो।  यह है इस बंदूक का लाइसेंस जब मैं दूसरे शहर में से कुछ कमा कर लाऊंगा तब तुम इस बंदूक को अपने पास संभाल कर रखना आकर मैं तुमसे अपनी बंदूक ले जाऊंगा। तब तक तुम मेरी बंदूक गिरवी रख लो।

ऋषभ बोला ठीक है तुम अपनी बंदूक यहां सुरक्षित रख सकते हो। ऋषभ ने उसे ₹5000 दिए। उसका दोस्त अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर दूसरे शहर में आ गया। उसने वहां पर व्यापार करना शुरू कर दिया। दो साल तक खूब पैसा कमाया। दो-साल बाद अपने गांव वापस आया सबसे पहले वह गांव आकर अपने दोस्त के पास जाकर बोला मेरे यार अब मैं अपने घर वापिस आ चुका हूं मैं अपनी बंदूक लेने आया हूं। यह लो अपने ₹5000 जैसे ही वह ₹5000 देने लगा उसका दोस्त बोला यार तुम्हारी बंदूक तो चोर ले गए और लाइसेंस चूहे खा गए। मेरे यार अब मैं तुम्हारी बंदूक को कहां से लाऊ? रवि   को अपने दोस्त पर गुस्सा आया।  वह अंदर ही अंदर अपने दोस्त से बदला लेने की फिराक में था। ऋषभ ने अपने दोस्त की बंदूक अपने एक पुराने कमरे में रख दी। एक दिन रवि ने देखा कुछ चोर उसके घर चोरी करने आ रहे थे।। उसने उन चोरों को अपने घर बुलाया  बोला देखो भाई मुझे पता है तुम चोरी करने आए हो। मेरे घर में तुम्हें चोरी करने के लिए कुछ भी नहीं मिलेगा ं। तुम चाहे तो मेरे घर की तलाशी ले सकते हो मेरा बच्चा और मेरी पत्नी यहां नहीं है मेरी पत्नी मायके गई हुई है चोरों ने सारा घर छान मारा। उन्हें चोरी करने के लिए कुछ भी नहीं मिला। चोर उसकी तरफ दया की दृष्टि से देखने लगे। रवि ने चोरों को बताया कि मैं तुम्हें बताता हूं कि तुम्हें चोरी करने के लिए कहां जाना है? तुम मेरे पीछे-पीछे आओ  चोर उसके पीछे पीछे चलने लगे। रवि अपने दोस्त  ऋषभ के पास जाकर बोला तुमने बंदूक चोरी हो जाने दी और लाइसेंस भी तुम इसके बदले में कुछ रुपये मुझे दे दो।  

 ऋषभ बोला मैं तुम्हें कहां से रुपए दूं? मैंने पहले ही तुम्हें ₹5000 दे दिए थे। रवि ने चोरों को इशारा किया दूसरे कमरे में चोरी करो। चोर  चोरी  करने के लिए ऋषभ के कमरे में घुस गए थे। ऋषभ तो अपने दोस्त रवि के साथ बातें करने में व्यस्त था। चोरों ने बंदूक खोज निकाली बंदूक को ले ही जा रहे थे तभी उनकी नजर ऋषभ पर पड़ी उन्होंने जल्दी से बंदूक का लाइसेंस ले लिया और वहां से चल पड़े। बंदूक तो जल्दबाजी में वहीं पर रह गई जैसे तैसे चोर भाग  गए। रवि ने उनको कहा तुमने बंदूक चोरी क्यों नहीं की? रवि को चोरों ने बताया कि हम बंदूक चोरी करने ही वाले थे इतनी मे  ऋषभ जी को हमारी भनक लग गई। हम वहां से भागे हमारे हाथ यह लाइसेंस ही लगा। रवि ने कहा दिखाओ तो रवि ने देखा वह लाइसेंस उसी का की बंदूक का था। वह उसकी फिराक में था कब कैसे बंदूक का लाइसेंस चोंरों से लिया जाए? रवि चोरों से बोला यह लाइसेंस तो नकली है यह तो ऋषभ का नहीं है। तुम इस लाइसेंस को वही पर रख आओ।  असली लाइसेंस ले आओ। चोरों ने कहा ठीक है एक बार हम फिर कोशिश करेंगे।

रवि ने अपना लाइसेंस अपने पास रख लिया चोरों को नकली लाइसेंस दे दिया चोर दूसरे दिन जब चोरी करने गए तो नकली लाइसेंस ऋषभ के घर छोड़ आए। बंदूक भी हाथ नहीं लगी। उन्होंने ऋषभ के बेटे को पकड़ लिया और उसे  ले ही जा रहे थे तो रवि ने देख लिया बोला। अरे भाई इस बच्चे को क्यों ले जा रहे हो? यह ऋषभ कोई गरीब आदमी नहीं तुम्हें पुलिस पकड़ कर सलाखों के पीछे कर देगी। तुम इस बच्चे को मेरे हवाले कर दो। मैं तुम्हें बंदूक दिलवाने की कोशिश करूंगा। चोरों को उसकी बात जंच गई। बच्चों को रवि के पास छोड़ कर चले गए बच्चा भी रवि के बेटे के साथ खूब घुल मिल गया था। वह उसका अच्छा दोस्त बन चुका था। रवि ने अपने बेटे को कहा बेटा तुम दोनों नीचे अंडरग्राउंड वाले कमरे में खेलो। जब तक मैं ना बोलूं तब तक तुम ऊपर मत आना। तुम दोनों  को खाना मैं वही भेज दूंगा। दोनों बच्चे खेलने में मस्त हो गए शाम को जब उसका बेटा घर नहीं पहुंचा तो ऋषभ सोचने लगा वह  सब किया धरा रवि का है। वह रवि से मिलने उसके घर पर चला गया। चोर ऋषभ के घर गए बंदूक चोरी की और नकली लाइसेंस भी उड़ा कर ले गए। रवि ने ऋषभ को कहा तुम क्यों आए हो? वह बोला मुझे पता है तुमने मेरे बेटे को अपने घर में छुपा रखा है। वह बोला मैं तुम्हारे बेटे को क्यों छुपाने लगा? मैं तुम्हारे बेटे को जानता तक नहीं। ऋषभ को गुस्सा आया वह पुलिस के पास जाकर बोला इसने मेरे बेटे को पकड़ा है यह मेरे बेटे को मुझे नहीं दे रहा। इसने मेरे बेटे को अपने घर में छुपाया है। पुलिस वालों ने रवि को कहा अगर तुम्हारे पास इसका बेटा है तो तुम इसके बेटे को वापस कर दो। रवि ने कहा साहब पहले उससे पूछो कि तुमने मेरी बंदूक कहां रखी।?

जब मैं धन कमाने गया हुआ था तो मैंने अपनी बंदूक का लाइसेंस इसके पास गिरवी रख दिया था। और बंदूक भी मैने शहर  से वापिस आ कर अपनी बंदूक मांगी तो उसने कहा तुम्हारी बंदूक तो चोर ले गए। और लाइसेंस चूहे खा गए यह कैसे हो सकता है।? इसके पास लाइसेंस के कटे हुए टुकड़े तो हो सकते थे।। ऋषभ बोला अधिकारी महोदय यह झूठ बोल रहा है। इसने ही मेरे बच्चे को छुपाया है। रवि बोला मैंने चोरों से तुम्हारे बच्चों को बड़ी मुश्किल से वापस मांगा।  वह तुम्हारे घर से मेरी बंदूक चोरी करके ले गए। मैंने उन चोरों को कहा था कि मेरा दोस्त बहुत ही झूठा है तुम इसकी बंदूक चोरी कर लो। जब तक तुम चोरी हुई मेरी बंदूक चोंरों से वापस मुझे नहीं दिलवाओगे  तब तक मैं तुम्हारे बेटे को तुम्हें दूंगा। मैंने तुम्हें बंदूक पुराने कमरे में रखते देख लिया था। चोरों ने तो बाद में वह चुराई। ऋषभ बोला आप इसके घर की तलाशी लो। रवि ने अपने दोस्त  ऋषभ को कहा अगर मैं सच कह रहा हूं तो मैं तुम  से एक साल की कीमत वसूल करके ही दम लूंगा। हर महीने के ₹2500 और 12 महीनों के ₹30000। ऋषभ बोला मुझे यह मंजूर है। साहब अगर यह झूठ बोल रहा है तो इसे मुझे ₹30000 देने होंगे। पुलिस वालों ने रवि को पूछा तुमने चोरों को किस ओर जाते देखा? रवि बोला वे अभी ज्यादा दूर नहीं गए होंगे। उन्होंने कहा था कि पास एक मंदिर है वहां पर वे थोड़ी देर विश्राम करने वाले हैं। आप जल्दी से जल्दी जाकर उनका पता करो। पुलिस वालों ने जल्दी जाकर चोरों को पकड़ लिया। उनके पास ही बंदूक निकली। लाइसेंस तो नकली था रवि बोला। साहब असली लाइसेंस तो मैंने चोरों से पहले ही चुरा लिया था। नकली लाइसेंस मैंने उन्हें दिया था पुलिस वाले ने ऋषभ के बेटे को रवि से वापस ले लिया। उसके लिए उसने रवि को 30,000 ही नहीं बल्कि बंदूक भी लौटा दी। ऋषभ का बेटा बोला मैं तो यहां बहुत ही खुश था। अंकल का बेटा मेरा दोस्त बन चुका है। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले मिले। उन दोनों नें बुराई को छोड़कर एक-दूसरे से हाथ मिला लिया।  

बाग का भूत

एक छोटा सा गांव था। उस गांव की आबादी 1000के करीब थी। उस गांव में पांच दोस्तों की मण्डली थी।चारु, बिटू,पप्पू, मीकू, चिन्टू

 वे सब आपस में सब मिलजुल कर एक साथ जहां जाते इकट्ठा जाते।

उन में से  किसान का बेटा था चारु और गांव के जमीदार का बेटा था मीकू। बाकि दोस्त भी  मध्यम परिवार से सम्बन्ध रखते थे। वे सभी एक दूसरे के सुख दुःख में शरीक रहते थे। सभी दोस्त जब स्कूल जाते इकट्ठे सब मिल जुल  कर मौज मस्ती करते जाते।उन को नदी पार कर स्कूल जाना पडता था। गर्मियों के दिनों में तो उनकी हालत ही खराब हो  जाती थी। वह छुट्टी वाले दिन भी आम के बाग में आम तोडने जाते। बाग में माली जब सोया रहता था शाम के चार बजे जब थक हार कर सोया रहता तो चोरी छिपे उसके आम चुराते। वह माली के ऊपर टोकरी डाल देते। वह माली बेचारा लंगड़ा लंगड़ा कर चलता था। माली के ऊपर टोकरी डाल कर कहते कि माली को  लगी ठन्ड माली टोकरे में बन्द। माली को जब उन का शोर सुनाई देता तो वह  उठ कर कहता ठहरो बदमाशों अभी तुम्हे ठीक करता हूं। वह उन के पीछे छड़ी ले कर दौड़ता। बच्चे कब हाथ आने वाले थे। वे और भी तेज भागते। वह थक हार कर चुप बैठ जाता। वह उन की शैतानीयों से तंग आ चुका था। वह हर दम उन को सबक सिखाने की योजना बनाता रहता था।

एक दिन माली नें सोचा कि ऐसा मैं क्या करूं जिससे ये बच्चे चोरी न कर सके। एक दिन जब सभी बच्चे बाग से आम चुरानें आए तो सब बच्चों नें किसान के बेटे चारु को सबसे आगे कर दिया। तुम पेड़ पर चढ़ोगे। जमीदार का बेटा मीकू  माली के आसपास चक्कर लगाएगा। माली जैसे ही उठनें की कोशिश करेगा वह कूकडूं का स्वर निकाल कर सभी को सचेत कर देगा। माली तो तैयार था। जैसे ही टोकरी हिली जमीदार के बेटे नें कूकडूं का स्वर निकाला। सभी बच्चे एक स्वर में चिल्लाए माली को लगी ठन्ड माली टोकरी में बन्द। माली को तो पता ही था कि बच्चे चार बजे के समय चोरी करनें आते हैं। उसने उस दिन अपनी जगह अपने भाई के बेटे को सुला  दिया था। वह चादर ढांप कर सोता था।बच्चों ने सोचा माली चाचा सो रहा है उन्होंने उस पर टोकरी ढक दी थी। माली तो वहीं बाग के एक कोनें में जानवरों को डरानें के लिए एक डरावनी शक्ल के मुखौटे के पीछे छिप गया था। उन्हें तो यही पता था कि यह मुखौटा

जानवरों को डरानें के लिए लगाया  है। वह उस मुखौटे को  हाथ से छूते थे। उन्हें कुछ नहीं होता था।

माली उसमुखौटे की आड में   छिप गया। माली उस मुखौटे की ओट में से बोला तुम हर रोज मेरे बगीचे को तहशनहश कर देते हो। मैं  हर रोज  चोरी छिपे   तुम्हारा चोरी  से छिप कर आमों के बगीचे में धमा चौकड़ी मचा कर आमों को अपनें बैग में भर कर ले जाना और कुछ खाए हुए आमों को चूपचूप कर बगीचे में चारों तरफ फैंक देना । मेरा माली बेचारा लंगड़ा है। वह तुम्हे पकड़ नही सकता। तुम उस बेचारे को एक तो टोकरी से ढक देते हो। और उस का मजाक उड़ाते हो। वह जब कह रहा था तो सब बच्चे भाग खड़े हुए। बचा तो केवल किसान का बेटा। सारे के सारे बच्चे उसे अकेला छोड़ कर भाग गए। वह जैसे ही जानें लगा माली नें डरावनी शक्ल उस बच्चे को दिखाई। वह बोला मैं बाग का भूत हूं। तुम मेरे बगीचे  से हर  कभी आम चोरी कर के ले जाते हो। चोरी करना बुरी बात है। लेकिन चोरी की भी एक सीमा होती है। चोरी करनें के पश्चात बगीचे के चारों ओर अधकच्चे आमों को नोच नोच कर यूं ही फैंक देना कहां कि इन्सानियत है। तुम स्कूल में घर में कूड़ा कर्कट इधर ऊपर फैंक देतें होंगे। आप के माता पिता क्या तुम्हारी इन्हीं हरकतों से परेशान नहीं होगें। आखिर कार तुम तो काबु में आए। उस मुखौटे नें चारू का पैर पकड़ लिया।उस का कोई भी दोस्त उसे बचानें नहीं आया। उस मुखौटे नें जब काली काली आंखे चमका कर उस को डराया और कहा यह बगीचा मेरे बेटे का है। मैं उस के पिता की आत्मा हूं। चारु नें जब लाल लाल चमकती हुई आंखें देखी तब उस के डर के मारे होश ही गुम हो गए। वह डर कर बोला भूत जी भूत जी मैं आप के बगीचे के आम कभी नहीं चुराऊंगा। मुझे माफ कर दो। कान पकड़ता हूं। भूत बोला चलो इस बगीचे को सारा साफ करो नहीं तो पीटने केलिए  तैयार हो जाओ। उस नें झाड़ू ऊठाई और लगानें के लिए तैयार हुआ ही था बोला आप मेरे सामनें मत आओ। आप यहां से चले जाओ। भूत ने कहा ठीक   है मैं चला जाऊंगा।जल्दी करो। अपने दोस्तों को भी कह देना किसी नें भी माली के साथ हेराफेरी की या उसे तंग किया अगली बार उस को कडे से कडा दण्ड दिया जाएगा।

चारू वंहा से जल्दी जल्दी भागने लगा। उसे अपनें दोस्तों पर बडा ही गुस्सा आ रहा था। आम खाने हों तो चिकनीचुपडी बातें कर के मुझे पेड़ पर चढा देते हैं। जब मैं पकड़ा गया तो कोई भी दोस्त मेरे बचाव के लिए आगे नहीं आया। आगे से मैं कभी भी इस बाग में चोरी करनें नहीं आऊंगा। इस बार तो बालबाल बच गया वर्ना आज तो मुझे इस भूत नें मार ही डाला होता। वह वहां से फुर्ती से भागा। रास्ते में उसके दोस्त मिले। उसने किसी से भी बात नहीं की। स्कूल को भी वह अलग से जानें लगा। उसनें घर में भी किसी को कुछ नहीं बताया। उस दिन के बाद वह चुपचाप रहने लगा। जमीदार का बेटा एक दिन उस के पास आ कर बोला यार मुझे माफ कर दे। हम सब तेरे गुनहगार हैं। मुझे सब शक्ति शाली कहतें हैं मगर उस मुसीबत की घड़ी में मैनें  भी तुम्हारा साथ देनें के बजाए तुम्हें अकेला छोड़ दिया। यार मेरे जब तक तू मुझे माफ नहीं करेगा तब तक मैं तुझे नहीं छोड़ूंगा। आ गले लगता जा यार। आगे से कभी ऐसा नहीं होगा। बाकि दोस्तों का तो मुझे पता नहीं हम दोनों एक साथ मिलजुल कर सभी काम करेंगें। चाहे कितनी भी भारी विपदा आ जाएगी हम दोनों मिल कर सुलझाएंगे। उस दिन क्या माली नें तेरी खूब पिटाई की? वह बोला यार ऐसा कुछ नहीं हुआ। उस दिन माली की जगह मेरा सामना बाग में रहनेवाले भूत से हुआ। उसनें मुझे चेतावनी दी है और कहा है कि अगर तुमनें इस बगीचे के आमों की चोरी कि या बगीचे को तहस-नहस किया जो तुम्हारी हालत होगी वह बाद में ही तुम सब को पता चलेगा। तुम क्या स्कूल में चोरी करना सीखते हो? उस बुढे माली को  टोकरी  में बन्द कर के आम खाना चाहते हो। वह बेचारा तुम्हारे पीछे कहां तक दौड़ लगाता फिरेगा। तुम प्यार से उस से आम मांगते तो वह कभी भी तुम्हे मना नहीं करता। कभी तुम नें प्यार से उस के साथ दो मधुर बोल बोलें हैं। मैंने उस भूत से क्षमा याचना  कि और  उसका बगीचा साफ किया तब कहीं जा कर छूटा। जमीदार का बेटा बोला अरे यार भूत वक्त कुछ नहीं होता है। हमारा वहम होता है

हम जब बहुत ही डर जातें हैं तब हमें यह सब कुछ दिखाई देनें लग जाता है। वे दोनों इकट्ठे स्कूल जाते। उस ने मीकू को फिर से अपना दोस्त बना लिया था।

किसान के बेटे चारु नें कहा कि एक बार फिर उस बगीचे में आम लेनें चलते हैं। इन  तीनों दोस्तों को मजा चखाना है।मैं उन्हें बाग के भूत के बारे में कुछ नहीं बताऊंगा। इस बार उन्हें ही आम निकालनें भेजना। जमीदार का बेटा बोला मैं देखना चाहता हूं यह भूत है या कोई आदमी जो भूत बन कर हमें डरा रहा है। वह जब अपनें दोस्त चारू को कह रहा था तो एक बुढिया उन के पीछे पीछे चल रही थी। वह बुढ़िया उन की बातों को ध्यान से सुन रही थी। जमीदार के बेटे मीकू ने पपू, चिन्टू, बिटू को कहा कि इतनें दिन हो गए हैं आम नहीं खाए हैं बगीचे में चलते हैं आम तोड़ कर लाएंगे। रविवार के दिन सभी दोस्तों नें योजना बनाई। सभी दोस्तों नें चारु को कहा कि उस दिन डर के मारे हमें नहीं सुझा इस लिए हम तुम्हें छोड़ कर भाग आए। भाई  मौफ कर दे। चारु कुछ नहीं बोला। रविवार के दिन वह सभी दोस्त शाम के समय आम के बगीचे के पास पहुंचे। माली चादर ढांप कर सो रहा था। चारु बोला मैं पेड़ पर नहीं चढूंगा। एक बात तुम सब कान खोल कर सुन लो चुपके से आम चुराना। चलो माली चाचा को जगा कर उन से ही आम खानें को मांग लेते हैं। बेचारे बुढे हैं उन का काम भी हम कर देंगे। वह  बदलें में हमें आम दे देंगें तो ठीक है मैं तो पेड़ पर नहीं चढने वाला तुम चाहो तो चढ सकते हो। जिसे मेरी बात मंजूर है वह मेरे साथ आ जाए।

तीनों दोस्त अलग हो गए। वे बोले नहीं हम तुम्हारे साथ नहीं आएंगे। हम यहां कोई सफाई नहीं करेंगें। मीकू बोला मैं तुम्हारे साथ आता हूं। वह दोनों दोस्त एक साथ हो लिए। तीनों दोस्तों ने उसकी बात नहीं मानी। वह बोले अगर तुम पेड़ पर नहीं चढ़ते तो क्या हमें खाने को आम नहीं मिलेंगे। चारु कहनें ही वाला था कि मैं तुम्हे सतर्क कर रहा हूं। इतनें में उन्हें कुछ आहट सुनाई दी। चारू की बात अधूरी ही रह गई। तीनों नें आव देखा न ताव जल्दी से पेड़ पर चढनें लगे।दो तो पेड़ पर चढ़कर इधर उधर देखने लगे। पपू नीचे ही रह गया। मीकू नें जब जोर से कहा माली को लगी ठन्ड माली टोकरें में बन्द। वह देखना चाहता था कि सचमुचमें ही बाग का भूत है या नहीं। उसने मुखौटे को हिलते देखा। उस मुखौटे की लाल आंखें उन बच्चों को घूर रही थी। मीकू नें कस कर चारु का हाथ पकडा और जोर जोर से चिल्लाया भूत भूत।और भागते भागते बोला जल्दी से यहां से भागो वर्ना मारे जाओगे। दोस्तों नें सुना तो उनकी सिटि – पिटी गुम हो गई। चिन्टू और बिटू तो पेड़ पर चढ़कर गए थे। पपू डर कर बेहोश हो कर गिर पड़ा। दोनों दोस्त डर के मारे थरथरा कांप रहे थे। मुखौटे की तरफ से आवाज आई तुम बच्चों को शायद मेरी बात समझ में नहीं आई।मैं इस बाग का भूत हूं तुम नें आज फिर बगीचे को तहस-नहस कर दिया । आज   तो तुम नहीं बच सकते। तुम्हे कितना समझाया था कि चोरी नहीं करनी चाहिए। तुम नें अगर माली से प्यार से  आम मांगे होते तो वह तुम्हे कभी भी मना नहीं करता। तुम नें तो उस लंगड़े का भी ध्यान नहीं किया। तुम्हारे दोस्त को तो मैनें सब कुछ बताया था। ऎसे तो तुम सारे बड़े पक्के दोस्त बनाए हो। तुम सब में एकता ही नहीं तुम मेरा क्या बिगाडोगे। चिन्टू और बन्टू को उस भूत की अंधेरों में चमकती हुई आंखें दिखाई दे रही थी। थोड़ी दूरी पर हट के मीकू और चारु अपनी सांसे रोक कर खड़े थे। अचानक चारु को अपनी गल्ती का एहसास हुआ। उन दोस्तों नें मुझे मुसीबत के समय अकेला छोड़ा था। लेकिन मैं फिर से वही गल्ती दोहराने लगा था। हम इसी प्रकार एक दूसरे पर किचड उछालते रहे छोटी छोटी गल्तीयों को अपनें दिल में बिठाते रहे और एक दूसरे से  बदला लेनें पर उतार हुए तो उनमें और मुझ में क्या फर्क रह जाएगा।  उस भूत के डर से अपनें दोस्तों के साथ बदला लेनें के बजाए हम मिल कर उनके के बचाव का  कोई न कोई रास्ता तलाश करतें हैं। यहां वह भूत हमें नहीं देख पाएगा। उस भूत नें हमे मार्ग सुझा दिया है।हम सब  मिल कर एक हो जाएं तो यह भूत हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उस बाग के भूत नें कहा ये देखो मैनें तुम्हारे दोस्त को उल्टा लटका दिया है। अंधेरे में उन्हें ऊपर की ओर लटका हुआ कुछ दिखाई दे रहा था। अचानक चारु दौड़ कर आया बोला भूत राजा भूत राजा। मेरे दोस्त भोले हैं। उस दिन के बाद मुझे मेरे दोस्त मिले ही नहीं मैं उन्हें समझाऊंगा तो वह कभी भी मेरी बात नहीं टालेंगें। चारु पेड़ की तरफ इशारा कर बोला तुम कैसे दोस्त हो? सबसे पहले भूत जी को नमस्कार करो। मेरा कहना मानोगे तो बच जाओगे वर्ना सजा भुगतो। दोनों दोस्त बोले हां हां हम तुम्हारा कहना अवश्य मानेंगें।

भूत राजा जब तक मैं आप को विश्वास न दिलाया दूं  कि हम आप के बगीचे को नुकसान पंहुचाने नहीं आए हम तो माली चाचा की सहायता करनें आए थे। हम उन्हें अपना दोस्त बनाने आए थे। चारू बोला आप कृपया कर के हमारे दोस्त को छोड़ दो। हम यहां से भाग कर नहीं जाएंगे। भूत बोला एक शर्त पर छोड़ूंगा तुम  साबित करो जो कह रहे हो ठीक कह रहे हो। चारु बोला अगर आप सजा देना ही चाहते हो तो मैं सजा भुगतनें को तैयार हूं। मैं  मरनें से नहीं डरता। मेरे दोस्तों को छोड़ दो मुझे मार डालो। मेरी मौत से अगर मेरे सभी दोस्त बच जाएंगे तो  मैं मरने से नहीं डरता। आप की सीख नें मेरे अन्दर धैर्य बढाया। भूत जी मेरा विश्वास करो मेरे दोस्त वैसा ही करेंगें जैसा मैं उन्हें कहूँ गा। भूत बोला तुम तो पहले डरपोक थे। अचानक बहादुर कैसे बन गए। बोला आप नें हमें सीख दी कि हम सब  को मिल कर रहना चाहिए।

हम छोटी छोटी बातों पर आपस में लड़ाई झगड़ा करते थे। एक दूसरे की टांग खैंचनें में हमें बडा  ही मजा आता था। स्कूल में भी एक दूसरे को मार पड़ वाले  थे। अध्यापक के सजा देनें पर एक दूसरे की खिल्ली उड़ाना आदि हमारी आदतें थी। आज कहीं आप की सीख नें मेरी आंखें खोल दी है।

हम बच्चे अपनें से बडों की बातों को नजरअंदाज करते हैं। बडों की बात को काटते हैं। हमारे माता पिता या बड़े बुजुर्ग जो काम हमें कहतें हैं हम उस से उल्टा करते हैं। वह हमें कहतें हैं कि  यह काम मत करो। जिस काम को हमें करनें के लिए मना किया जाता है उसी काम को हम करतें हैं। आज मुझे तो अपनी भूल के लिए पछतावा है। मैं अपनें दोस्तों को भी समझाऊंगा। वह बोला भूत जी भूत जी मैं आप के पास आ रहा हूं। मुझे मार दो। सभी दोस्तों नें पेड़ से छलांग लगा दी और कहा भूत जी भूत जी हमारे दोस्त को मत खाना। हम ही उसके कई बात नहीं मान रहे थे। हमें अपने दोस्त की सारी बाते मंजूर है। आप हमारे दोस्त को छोड़ दो। सब दोस्तों नें आंखें बन्द कर ली थी और एक दूसरे का हाथ थाम कर यह कह रहे थे। चारु को आज विश्वास हो गया था कि भूत हम सब को छोड़ देगा। भूत बोला मीकू आगे मत आओ। पहले मैं तुम्हारे दोस्त पपू को ठीक करता हूं। वह मुझे देख कर बेहोश हो गया था। भूत बोला  तब तक मैं यहां से कंही और जाता हूं। तुम माली चाचा से अपनें किए की माफी मांगो। उन दोस्तो को हवा में कुछ हिलता नजर आया। अंधेरा हो चुका था। सब के सब दोस्त घर जानें के लिए बेताब थे।

उन्हें दूर से माली काका आता दिखाई दिया। वह बोला आज फिर तुम सब मेरा बगीचा  तहशनहस करनें आए हो। मीकू बोला माली चाचा नमस्ते। वह सब बच्चों को हैरान हो कर देखें लगा। चारू आगे आ कर बोला लाओ आप थक गए होंगें आप आराम करो। पपू बोला चाचा आओ मैं आप के पैर दबा देता हूं। चिन्टू बोला चाचा हम अपनी गलती के लिए आप से क्षमा मांगतें हैं। हमनें आप को बहुत सताया। चारु बोला यह छडी लो आप हमारी पिटाई कर सकते हो। हमनें आप को कितना सताया लेकिन अब हमें अक्ल आ गई है। आप की भावनांओं को हमनें समझा ही नहीं। हम तो आप को हमेशा  टोकरी में बन्द कर के आप के बगीचे को नष्ट कर देते थे। कच्चे आम भी तोड़ तोड़ कर इधर उधर फैंक देते थे।

वह बोला बच्चों तुम मुझसे से प्यार से एक बार मांग कर तो देखते मैं तुम्हें कभी भी आम खाने के लिए मना नहीं करता। माली चाचा बोला तुम नें जब आम खाने हों तो मुझ से कहना। बच्चों को इस जबाब की कभी भी आशा नहीं थी। माली काका की बातें सुन कर वे बडे खुश हुए। माली का सारा बगिया उन्होनें ठीक कर दिया। माली काका ने कहा मैं कल तुम सब को अपनें घर पर  खाने के लिए बुलाता हूं। बच्चे बोले आप तो अकेले रहते होंगें। वह बोला मेरी मूंह बोली बहन मेरे लिए खाना बना देती है। घर आ कर सारे के सारे बच्चे खुश थे। आज उन को पता चलता चुका था कि मिलजुल कर सभी काम आसानी से हो सकतें हैं। तीनों दोस्तों नें भी सोचा कि अगर चारु आज उनकी सहायता के लिए आगे नहीं आता तो वह भूत तो हम को मार ही डालता। उन सभी दोस्तों नें चारू से क्षमा मांग कर कहा हमें अब सब कुछ समझ में आ चुका है। हम सब तुम्हे मुसीबत की घड़ी में अकेला छोड़ कर घर चले आए। करनें को तो तुम भी ऐसा कर सकते थे। तुम भी हम से बदला ले सकते थे। तुम ने तो हम सभी को बचाया ही नहीं हमें भी सुधार दिया है। आज से हम कसम खातें हैं कि हम आपस में कभी भी एक दूसरे को नीचा नहीं दिखाएंगे और मुसीबत पडनें पर एक दूसरे की ताकत बन जाएंगे। रात बहुत हो चुकी थी। उन सब के परिवार के लोग उन के घर न पहुंचने पर परेशान हो रहे थे।घर में देर से आनें के लिए सभी बच्चों नें अपनें माता पिता से क्षमा मांगी। पपू के बूढे दादा जी बोले बेटा जरा मुझे पानी तो पिलाना। पपू की मां बोली अभी लाई। पपू नें अपनें मां का हाथ थामा बोला मां आप आराम करो। पानी में पिला दूंगा। सभी बच्चों में इतना परिवर्तन आ चुका था। सब बच्चों के घर वाले हैरान थे। खुश भी थे कि हमारे बच्चे समझदार हो गए हैं।

दूसरे दिन बच्चे माली काका के घर पर पहुंच चुके थे। घर पहुंचते ही सभी बच्चों नें बुरी दादी के पैर छू कर आशिर्वाद लिया। भर पेट खीर खाई। बूढी काकी बोली तुम सब को आज मैं एक बात  तो बताना भूल ही गई। तुम सारे के सारे बच्चे जब आम चुरानें आते थे और अपनें माली काका को परेशान करते थे तो मुझे तुम पर बहुत गुस्सा आता था कि तुम मेरे भाई माली को बहुत ही दौड़ाते हो। बेचारा एक टांग से लंगड़ा कर चलता है। मुझेबहुत ही गुस्सा आया। एक दिन मैंनें माली को समझाया और तुम सब बच्चों को बाग का भूत बन कर डराया। तुम पर डांट का तो कोई असर नहीं होता था। मैंनें ही एक दिन रास्ते से आते आते तुम्हारी बाते सुनी और योजना को अन्जाम दिया। मैं ही हर बार तुम्हे डराती रही। मेरी योजना सफल हुई। भूत वूत कुछ नहीं होता है। तुम डरना मत। सभी बच्चों के मन से भूत का खौफ समाप्त हो गया था। सभी बच्चे बोले काकी अमा आप की सीख का हम जीवन भर अनुसरण करेंगें। हम कभी भी गल्ती काम नहीं करेंगे। सभी बच्चे खुशी खुशी अपनें घर वापिस आए।

बहन का प्यार

आनंद और आरुषि के परिवार में उनके दो बेटे और एक बेटी थी। आनंद ऑफिस में क्लर्क था।  आरुषि स्कूल में शिक्षिका थी। हर रोज की तरह आनंद ऑफिस से जब घर आ रहा था उसके सीने में जोर से दर्द उठा उसने तुरंत अपनी पत्नी को फोन किया उसकी पत्नी भागी भागी अपने पति को लेने पहुंची।

वह अपने पति को लेकर अस्पताल पहुंची डॉक्टरों ने बताया कि उन्हें हार्ट की बीमारी है इसके लिए उन्हें किसी पहाड़ी स्थान पर पन्द्रह दिन के लिए बाहर जाना होगा नहीं तो बहुत बड़ी नौबत आ सकती है। और उन्होंनें  किसी पहाड़ी स्थान पर जाने की योजना बना ली थी। उन्होंने उसके लिए नैनीताल जाना उचित समझा और उसने अपना और अपने पति का टिकट भी बुक करवा लिया था।

उसके दो जुड़वा बेटे थे जोकि दसवीं कक्षा में आ चुके थे। एक छोटी बेटी थी प्यार से उसे चारु  कहते थे। उसका पूरा नाम था चेष्टा  था। उसके दोनों बड़े भाइयों का नाम  अरुण  और आरभ था। दोनों ही बडे़ उदंड थे। दोनों इतने शरारती इतने चंचल स्कूल से घर आते ही अपना बस्ता दूर पटकना अपने जूते हर कही फेंकना पैन कॉपी हर कही फेंक देना होमवर्क न करना खाना समय पर नहीं करना काफी देर तक सोए रहना और देरी से स्कूल पहुंचना। उसके मम्मी पापा को उसके इस बर्ताव से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह अपने दोनों बेटों को इतना अधिक प्यार करते थे रात के बारह बजे भी अगर उनके दोनों बच्चे किसी भी वस्तु की फरमाइश करते तो दोनों उन्हें उपलब्ध करवा ही देते थे। लाड प्यार ने उन दोनों को इतना बिगाड़ दिया था कि दोनों की सुधरने के मौके कम ही थे। चारु इन दोनों के विपरीत  गंभीर हर एक काम को सोच समझ कर करना जरूरत से ज्यादा ही समझदार थी।

मां पापा को चिंता ही नहीं थी कि उनकी एक बेटी भी है वह तो सारा ध्यान अपने लाडले को भी देना चाहते थे। वह चारु को कहते बेटा झाड़ू लगा दो आज खाना तुम ही बना दो बेटा बर्तन तुम ही साफ कर दो। आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। वह छोटी सी चारु घर का सारा काम करती थी कभी-कभी तो खींच  भी जाती थी। मां अपने लाडलों को तो कुछ नहीं कहती है इनसे भी काम करवाना चाहिए। कभी चारु कहती मां इन दोनों से भी काम करवाया करो तो मां टाल जाती कहती अगर तुमने भी नहीं करना है तो रहने दो मैं खुद ही कर लूंगी। चारू को बड़ा ही गुस्सा आता था घर में जब भी कोई चीज़ आती तो सबसे पहले उसके दोनों भाइयों को दी जाती बाद में चारुं को मिलती

कभी-कभी तो चारु सोचती अच्छा ही होता मैं जल्दी से बड़ी हो जाती और शादी करके अपने ससुराल चली जाती शायद वंही मुझे मेरी सासू मां का प्यार मिल जाए वह छोटी सी मासूम चारू सोचा करती जब दोनों बेटे कहते मां आज हमारे स्कूल में पिकनिक है इसके लिए हमें पांच हजार रुपए चाहिए। स्कूल वालों ने मंगवाए हैं। वह दोनों उसको जल्दी से  ला कर दे देते हैं। मगर एक दिन चारु ने अपनी मां को कहा मैं भी पिकनिक पर जाना चाहती हूं तो उन्होंने टाल दिया बेटा तू पिकनिक पर नहीं जाएगी। नन्ही सी चारु के दिल को ठेस लगी थी आज अचानक जब मम्मी ने बताया कि हम दोनों नैनीताल जा रहे हैं ताकि तुम्हारे पापा जल्दी से ठीक हो जाए डॉक्टरों ने उन्हें किसी पहाड़ी स्थल पर जाने के लिए कहा है तब वह खुश हुई थी कि पापा और मम्मी तो दोनों जा रहे हैं अब वह अपने भाइयों को अपने तरीके से ठीक करेगी। अब इन दोनों भाइयों की इस घर में नहीं चलेगी सब कुछ मेरे मुताबिक होगा क्योंकि उसके मम्मी पापा ने चारु को कहा कि बेटा तुम अपने दोनों भाइयों को खाना बना दिया करना और तुम तीनों साथ में ही स्कूल से आया करना।। चारु ने अपने मम्मी पापा को विश्वास दिलाया कि मम्मी पापा आप चिंता मुक्त होकर जाओ मैं यहां सब संभाल लूंगी।

चारु केवल 14 साल की थी। उसके दोनों भाई 18 साल के थे। दोनों भाई उनसे बड़े थे वह उन तीनों को साथ लेकर तो नहीं जा सकते थे क्योंकि स्कूल से इतनी छुटियां नहीं की जा सकती थी। आरुषि  नें अपने पड़ोस में रहने वाली आंटी को कहा कि बीच बीच में हमारे बच्चों को देख जाया करना। हमें जरुरी काम से जाना पड़ रहा है

आनंद और आरुषि दोनों नैनीताल चले गए थे अब घर पर दोनों बच्चे और उनकी बहन चारु घर पर रह गए थे जैसे ही वह गए दोनों भाइयों ने धमाचौकड़ी मचाने शुरू कर दी थी थोड़ी देर तक तो  चारू सहन करती रही। उसने रात को अपने दोनों भाइयों को बुलाया और कहा आप दोनों भाई मुझसे बड़े होने। मैं आप दोनों का सम्मान करती हूं। परंतु मुझे आप दोनों की यह आदतें बिल्कुल पसंद नहीं है। आज तो मैं आप दोनों को माफ करती हूं परंतु कल से धमाचौकड़ी नहीं चलेगी। तुम अपना बस्ता अपना सामान एक जगह रखोगे सुबह आप दोनों को मैं नहीं उठाऊंगी। अगर स्कूल जाना होगा तो ठीक है वरना आप दोनों स्कूल से छुट्टी करना तुम दोनों को हर चीज व्यवस्थित ढंग से रखनी होगी। जूते जूतों की अलमारी में रखने होंगे। खाना बनाने में मेरी मदद करनी होगी तभी  तुम्हें खाना मिलेगा वर्ना तुम भूखे ही रहना। अब जब तक मम्मी पापा नहीं आतें तुम दोनों को काम तो करना ही पड़ेगा दोनों धमाचौकड़ी मचाते हुए कहने लगे बड़ी आई हमें दादागिरी दिखाने वाली। उस दिन तो चारु ने उन दोनों को खाना बना दिया। दूसरे दिन चारु ने  सुबह पांच बजे का अलार्म लगा दिया था। अलार्म बजता रहा उसने अपने दोनों भाइयों को नहीं जगाया। दोनों दस बजे तक सोते रहे। वह खाना बनाकर और खाना उन्हें रखकर स्कूल चली गई। दूसरे दिन दोनों भाई स्कूल नहीं जा सके जैसे ही चारू घर आई दोनों भाई उस पर बरस पड़े। बड़ीआई हमें जगाया क्यों नहीं? वह बोली मैं मम्मी पापा नहीं हूं जो तुम्हे लाड़ प्यार  करूं। खाना खाना है तो खाओ वर्ना भूखे रहो। उस दिन उन दोनों ने खाना नहीं खाया। उससे अगले दिन चारु ने अपने दोनों भाइयों को नहीं जगाया

दूसरे दिन भी वे दोनों भाई स्कूल देरी से पहुंचे। मैडम ने उन दोनों को बहुत देर तक बैंच पर खड़ा रखा। अब तो शाम को जब दोनों घर आए तो वे बहुत ही उदास थे। दोनों को प्यार करने वाला कोई नहीं था। चुपचाप शांत होकर बैठ गये।

चारु ने अपने भाइयों को कहा पहले अपना सामान अच्छे ढंग से रखो। खाना बनाने में मेरी मदद करो और आरभ तो चुप चाप आकर अपनी बहन की मदद करने लगा वह प्यार से अपने भाई आरभ को कह रही थी आज मैं आपकी मनपसंद गाजर का हलवा बनाऊंगी। और आपके साथ अंताक्षरी भी खेलूंगी। वह खाना भी बनाती जा रही थी उसके साथ खेलती भी जा रही थी आरभ को भी काम करते वक्त बहुत ही मजा आया उसने सोचा अपनी बहन की मदद करने में ही भलाई है।

अरुण तो मुंह फुला कर बैठा रहा। आरभ अपनी बहन के साथ हंस कर बातें कर रहा था तो अरुण ने कहा आरभ चलो हम दोनों खेलने चलते हैं। आरभ बोला नहीं मुझे तो चारु के साथ बड़ा मजा आ रहा है। भाई मेरे यहां आओ। हलवे की महक का आनंद लो। हम तीनों मिलकर अंताक्षरी खेलते हैं और अपनी बहन का हाथ भी बटातें  हैं। अरुण बोला तू ही खेला  कर  यह कह कर बाहर खेलने चला गया। आरभ ने अपनी बहन की सहायता की और अपनी बहन के साथ अंताक्षरी भी खेली

अगले दिन आरभ तो सुबह  पांच बजे उठ गया परंतु अरुण ने उठने का नाम ही नहीं लिया। चारु ने चुपचाप आकर उसके   ऊपर से रजाई उठा ली अब तो वह अपनी बहन को गालियां बकने लगा ठहरो अभी मैं तेरी शिकायत मम्मी-पापा से करता हूं। चारु तो बड़ी ही समझदार थी वह अपने भाइयों को सुधार कर ही दम लेना चाहती थी। उसने साथ वाली आंटी को कह दिया था आंटी अगर अरुण या आरभ  में से कोई भी आपकी दुकान पर खाने की वस्तु मांगने के लिए आए तो इंकार कर देना और कहना कि तुम्हारी मम्मी ने इन्कार  किया है। बाहर की चीजें नहीं खानी चाहिए

अरुण जैसे ही टेलीफोन के पास फोन करने गया चारु नें फोन की तार काट दी थी। अब तो अरुण उदास हो गया था वह दौड़ा-दौड़ा पड़ोस की आंटी के पास गया आंटी आंटी आप मुझे दो  समोसे  देना। आंटी ने कहा बेटा तुम्हारी मां ने मुझे कहा है कि मेरे बच्चों को कोई भी वस्तु खाने को मत देना मैं तुम्हें नहीं दे सकती। अरुण घर वापिस आ गया था स्कूल  में  भी उसका मन नहीं लगा चारु ने उसे स्कूल जाते हुए कहा  खाने का डिब्बा मेज पर रखा है ले जाना हो तो ले जाना वर्ना भूखे हीे रहना। अरुण ने सोचा यहां पर तो मेरा भाई भी मेरी बहन के साथ मिल गया है। उसका चहेता बन गया है। कोई बात नहीं  मैं आज खाना नहीं ले जाऊंगा तो तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। उसने चुपचाप खाने का डिब्बा उठाया और स्कूल चला गया चौथे दिन अरुण ने सोचा कब तक मैं ऐसा करता रहूंगा। उसने देखा आरभ और चारु एक दूसरे के साथ हंस-हंसकर खेल रहे थे।

वह भी उनके साथ आकर बोला मैं भी तुम दोनों के साथ अंताक्षरी खेलना चाहता हूं। तीनों साथ  इन्ताक्षरी खेलने लगे अब तो अरुण को भी मजा आने लगा था। चारूने कहा हम तीनों मिलकर घर का काम करेंगे तो काम भी जल्दी हो जाएगा और तुम्हें बाहर खेलने के लिए भी समय मिल जाएगा। चारू ने अरुण को कहा तुम जूतों की अलमारी सैट कर दो। आरभ तुम सभी  बिस्तरों की चादरों को झाड़कर तह लगा दो। मैं झाड़ू लगाती हूं सारा का सारा काम इतनी जल्दी हो गया कि पता ही नहीं चला अब तो दोनों ने स्कूल से आकर अपना बस्ता ठीक स्थान पर रखा हाथ धोए और अपनी बहन की काम में मदद की। उसकी बहन ने उन्हें एक से एक बढ़िया चीजें बनाकर खिलाई। उनके मम्मी पापा को गए हुए   दस   दिन हो चुके थे। उसने अपने भाई अरुण को कहा भाई मेरे आज हम तीनों घर पर ही खेलते हैं। तुम बिजली की तारों को जोड़ना तो जानते हो तुम इन बिजली की तारों को ठीक कर दो। परंतु प्लास्टिक की चप्पल पहन लो। और आरभ को कहा तुम अपनी और अपने भाई के कपड़ों की अलमारी को ठीक कर दो जो धोने वाले कपड़े हैं उन्हें एक जगह रख दो मैं तब तक खाना बनाती हूं।  सभी अपने-अपने काम में जुट गए। अरुण को तो बिजली की तारों को जोड़ने में मजा आ रहा था।

चारु ने उससे कहा कि तुमने ही बिजली के उपकरणों को इकट्ठा एक जगह रखा है अब  सामान के लिए एक बॉक्स भी बना दो। तुम बिजली का सामान एक ही जगह रखा करो। तभी आरभ बोला मैं एक बॉक्स बनाता हूं जिसमें सभी दवाईयां एक जगह रख दूंगा। और उस पर लिख दूंगा फर्स्ट एड बॉक्स। उसने सच में स्वीट ड्राइंग करके कितना सुंदर डिब्बा बनाया? उसने उसने सारी दवाइयां एक जगह रख दी। अरुण  और आरभ को काम करने में मजा आने लगा था।  दोनों सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर समय पर स्कूल जाने लगे उनकी मैडम भी उन में आए परिवर्तन को देखकर हैरान थी।

एक दिन उनके स्कूल में फंक्शन की तैयारियां हो रही थी। स्कूल में लाइट का बोर्ड खराब था। स्कूल में मैकेनिक का मिलना बहुत ही मुश्किल था क्योंकि गांव का स्कूल था। आसपास कोई भी मकैनिक नहीं था। दूर से यह मैकेनिक  को बुला कर लाना पड़ता था। आरभ ने कहा मैडम आप चिंता ना करो मुझे बिजली का काम आता है मैं ही बोर्ड को ठीक कर दूंगा। क्या तुम ? मैडम को विश्वास ही नहीं हुआ जो बच्चा किसी काम को नहीं करता था जो काम से डरता था वह आज काम करने को कह रहा है। अगले दिन सचमुच ही अपने घर से बिजली के उपकरणों को ले जाकर उसने बिजली का बोर्ड ठीक कर दिया था।  मैडम ने  अब तो अरुण की सब बच्चों के सामने प्रशंशा की और उसके लिए तालियां भी बनवाई। अरुण और आरभ में आए हुए परिवर्तन का सारा श्रेय चारु को था जो अपने भाइयों को सुधारने में कामयाब हो चुकी थी ।

पडौस में रहनें वाली आंटी ने चारु को आकर फोन दिया बेटा तुम्हारे मम्मी पापा का फोन आया है। तुम फोन क्यों नहीं उठा रहे हो? मुझे चिंता हो रही है तभी तीनों बच्चों ने अपने मम्मी पापा से बात की और कहा मम्मी पापा आप हमारी चिंता मत करो। हम तीनों बड़े मजे में है

जैसे ही आंटी आई तो आरभ ने कहा आंटी बैठो मैं आपको चाय बनाता हूं। तभी अरुण आकर बोला तू रहने दे मैं चाय बनाता हूं। चारू ने उन दोनों को कहा तुम दोनों आंटी के साथ बैठो मैं चाय बनाती हूं। आरती तो उन उनके घर का नक्शा देखकर हैरान रह गई। क्योंकि जब कभी भी वह उनके घर आती थी सारा सामान इधर उधर बिखरा हुआ होता था। जब कभी पड़ोस वाली आंटी उनके घर आती थी तो दोनों बेटों की मां उनसे लाड़ कर  रही होती। उन दोनों को मना रही होती उसने हमेशा चारु को घर में अकेले ही काम करते हुए देखा था। वह चारु की तरफ देख कर मुस्कुराई मानो कह रही हो बेटा तुम जीत गई हो  घर का सारा सामान हर वस्तु ठीक स्थान पर रखी हुई थी। अब तो तीनों बच्चे अपने मम्मी पापा के आने की राह देख रहे थे। शाम की ट्रेन से उसके मम्मी पापा आ रहे थे चारु नें पहले से ही खाना बना दिया था। अरुण और आरभ ने अपनी बहन की मदद की थी। जैसे ही मम्मी पापा घर पहुंचे उन्होंने आते ही  आरभ और अरुण को अपने गले से लगा लिया। अरुण और आरभ को यह बात पसंद नहीं आई वे दोनों बोले हम दोनों से पहले अपनी बेटी को गले लगाओ। वह दोनों अपने बेटे के इस व्यवहार से हैरान थे क्योंकि वह तो अपनी बेटी को भूल ही चुके थे। उसे तो घर की मशीन बनाकर रख दिया था। जब उसकी मम्मी ने मिठाई दी तो उन्होंने कहा कि पहले आप दोनों हमारी प्यारी सी छोटी सी बहन को मिठाई खिलाओ तभी हम मिठाई खाएंगे।

आनंद और  आरुषी को अपनी गलती का पछतावा हुआ हमने तो बेटों के लाड प्यार में अपनी बेटी के साथ बहुत ही गलत व्यवहार किया। इसलिए कि वह बेटी है हमने बेटे और बेटी में अंतर समझा पढ़े लिखे होने के बावजूद अब तो उन दोनों की अंतरात्मा अंदर से उन्हें कचोट रही थी। उन दोनों ने देखा अरुण और आरभ अपना काम स्वयं कर रहे थे। और रसोई में अपनी बहन का हाथ भी बंटा रहे थे। अपने व्यवहार के लिए उन्हें अंदर से बहुत ही ग्लानि हुई। वह अपने दोनों बच्चों के लिए टी शर्ट लेकर आए थे परंतु चारु को उन्होंने कहा कि बेटा तुम्हें हम बाद में ला देंगे तब उन दोनों भाइयों को बहुत बुरा लगा उन्होंने कहा कि हम दोनों तब तक अपनी टी-शर्ट नहीं पहनेंगे जब तक आप चारु को नई ड्रेस लेकर नहीं दागे। राखी भी पास आ रही थी दोनों भाइयों ने अपने गुल्लक में रुपए इकट्ठे किए हुए थे। शाम को दोनों भाइयों ने जाकर अपनी बहन के लिए सुंदर सी फ्रॉक ला कर अपनी बहन को लिफाफे का पैकेट पकड़ा कर कहा हम दोनों भाइयों की तरफ से अपनी प्यारी सी बहना को राखी का उपहार । यह हमारी दोनों की कमाई की है। जमा की हुई पूंजी से लाकर दी है। आज चारु अपने आप को बहुत ही खुशनसीब महसूस कर रही थी। कि मैंने अपने भाइयों को सुधार दिया है अब कोई भी मेरे भाइयों को यह नहीं कहेगा कि मेरे भाई किसी काम के नहीं है उसके मम्मी पापा ने कहा कि आज हमारी बेटी ने हमारे दोनों बेटों को सुधार कर हमें भी सीख दी है।

हमें बच्चों में चाहे वह लड़की हो या लड़का दोनों में कोई अंतर नहीं समझना चाहिए। कौन सा काम ऐसा है जो लड़के नहीं कर सकते या लड़की नहीं कर सकती। दोनों को समान समझना चाहिए और दोनों को भरपूर प्यार देना चाहिए ताकि बच्चा भी अपने आपको अकेला न महसूस कर सकें।

बच्चे चाहे वह लड़का हो या लड़की हर एक  को काम करना आना चाहिए। मुसीबत के समय दोनों एक दूसरे के काम आ सके तो दूसरों के पास मदद मांगने न जाकर दोनों एक दूसरे की ताकत बनकर मिलजुल कर उस काम को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभा सके।

परिवार में खुशियां लौट आई थी साथ रहने  वाली आंटी ने कहा कि आपकी बेटी तो किसी देवी से कम नहीं है। उसने मुझे कहा की आंटी आप भी  मेरे भाइयों की मदद नहीं करना। अगर आप एक बार पिघल जाएंगी तो मैं अपने भाइयों को सुधार नहीं सकती हूं। मुझे उनके साथ कठोरता से पेश आना होगा। इस काम में आंटी जी आप ही मेरी मदद कर सकती हैं मैं सचमुच हैरान हूं आज आपकी बेटी की जीत हुई है। इसी खुशी में आप हमारे होटल में परिवार सहित आमंत्रित हैं। सभी खुशी से झूम रहे थे और पार्टी का आनंद ले रहे थे।

गुमराह(1)

नूपुर और रिमझिम के माता पिता का तबादला एक छोटे से कस्बे में हुआ था। दोनों ही बहुत ही नटखट थीं। अपने माता पिता की नाक में दम कर रखती थी। इसका कारण था दादी का भरपूर स्नेह। दादी के भरपूर स्नेह देने के कारण नूपुर और रिमझिम घर में किसी को भी कुछ नहीं समझती थी। दोनों ही हर दिन कोई-न-कोई शरारत करती। जब तक उनकी दादी उन के पास रहती थी वह कभी भी किसी बात को गम्भीरता से नहीं  लेती थी। आज उनकी दादी गांव जा रहीं थी। दोनों दादी को जाते देखती रहती। दादी उनके साथ बच्चा बन कर खेलती। उन के साथ खुब मौज मस्ती करती। आज दादी के जाने का उन्हें बुरा लगता रहा था। अब कौन उन्हेंं मनाएगा? कौन उन के साथ खेलेगा? काफी दिनों तक तो वे शून्य में तलाश करती रही। नटखट बच्चीयों नें

एक दम चुप्पी साध ली। वे दोनों अपनें माता पिता से कटी कटी सी रहने लगी। वह अपनें ममी पापा से खुल कर बात भी नहीं करती थी।

एक दिन स्कूल में जब दोनों चुपचाप खडी थी तो उनकी दोस्ती एक लडके रवि से हुई। वह उन दोनों को उदास देख कर बोला। तुम दोनों उदास क्यों हो? वह बोली तुम जान कर क्या करोगे। वह दोनों बोली हम अपनी दादी को बहुत ही याद कर रहें हैं। वह जब हम दोनों को बहुत ही प्यार करती थीं। हमारे साथ खुब मस्ती करती थी। हम इतना खुल कर अपनी मां से भी कोई बात नहीं कहते थे जितना अपनी दादी से। उनके बिना घर काट खानें को दौड़ता है। रवि बोला इसके लिए तो आजकल मोबाईल है न। तुम उन से हर कभी बात कर सकती हो। वह बोला। हम मोबाइल कहां से ले कर कर आएंगी। हमारे पास तो इतनें अधिक रुपये भी नहीं है। रवि बोला मेरे पास है मेरे मोबाईल से फोन करना। वह बोली मेरी दादी के पास कोई मोबाईल नहीं है। पहले हमें अच्छे ढंग से मोबाईल चलाना आना चाहिए तभी हम अपनी दादी को भी फोन दिलवा कर देंगे और उन से हर रोज बातें किया करेंगें। वह धीरे धीरे मोबाईल चलाना सिख रही थी।

मोबाईल चलाते चलाते वह दोनों मोबाईल में इतना तल्लीन हो जाती उनकी ममी पापा समझते हमारी बेटी पढाई कर रही है। एक दिन तो मैडम को  पता चल ही गया जब दोनों के परीक्षा में कम नम्बर आए। मैडम  भी उन दोनों  पर नजर रखनें लगी। एक दिन तो मैडम ने नुपूर से मोबाईल फोन छूडा लिया इस शर्त पर वापिस किया कि वह घर से अपनें माता पिता को बुला  कर लाएगी। नुपूर और रिमझिम नें घर में किसी को कुछ नहीं बताया। वह घर में बता देती तो हंगामा खड़ा हो जाता।

स्कूल के अध्यापक भी  शिकायतें लेकर उनके माता पिता के पास पहुंचे। वह घर पर नहीं मिले  तब नूपुर और रिमझिम की कक्षा अध्यापिका ने घर फोन  लगाया। रिमझिम ने आवाज बदलकर कहा  घर की  मालकिन घर पर नहीं है। बे दोनों नहीं चाहती थी कि मैडम उन की शिकायत उनकी मां से करें, इसलिए दोनों ने एक उपाय सोचा। वे दोनों डर के मारे कांप  रही थी। मां को पता नहीं चलना चाहिए मैडम ने फिर से  कहा मालकिन से कहना कि इस बार  तो  उन को स्कूल में आना ही होगा। इनकी बेटियाँ सारा दिन कुछ भी पढाई नहीं करती हैं।

नुपूर नें जल्दी  से कहा मैं कह दूंगी।  उस वक्त तो उस ने कह दिया। उसनें अपनी बहन को कहा  सोच ले कि अब क्या होगा? मैडम ने उसे सारा दिन  बेंच पर खड़ा रखा था। उसने होमवर्क नहीं किया था। उसका मोबाइल भी उस से छीन लिया था। उन्हे लिख कर  हिदायत दी थी कि आगे से बच्चों को स्कूल में मोबाइल मत  दिया करें। नूपुर  को कुछ दिन तो अपने आपको  स्कूल में मोबाइल से दूर रखा।  घर में आकर चुपके चुपके से अपने सहेलियों के साथ रात रात भर बातें करना और यू ट्यूब पर कभी गाने डाउनलोड करना, कभी देर देर रात तक मूवी देखना। उसकी ममी सोचती कि, मेरी बेटियाँ इतनी अच्छी है जरा भी टेलिविजन नहीं देखती हैं। उन दोनों की मम्मी एक दिन अपनी सहेली   नीतू के घर पे  उस से मिलन गई। वहा पर नीतू  रो रही थी। उसको रोता देखकर गौरी से रहा नहीं गया  वह बोली इस तरह क्यों रो रही हो? तुम्हें क्या हो गया? उसको इस प्रकार रोते देखकर वह और भी जोर जोर से रोने लगी। गौरी सोचने  लगी कि शायद उस के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गई होगी। उसके घर में दो तीन औरतें  इकट्ठा हो कर  उसे सांन्तवना दे रही थी। वे औरतें तो चली गई लेकिन नीतू से पूछने का साहस वह नहीं कर सकी। नीतू उस को घर के अंदर लेकर गई। घर में पहुंचने पर तो गौरी को ऐसा  कुछ नहीं लगा कि कि उस से पूछा जा सके कि क्या हुआ है? गोरी के पति अपनी दोस्तों के संग ताश खेल रहे थे। अपने मन में सोचने लगी अच्छा  ही हुआ मैंने उनसे कुछ नहीं पूछा फिर किसी दिन पूछ लूंगी। थोड़ी देर बाद  साहस बटोर कर पूछ ही डाला तुम इतनी उदास क्यों हो? वह बोली बहन क्या बताऊं? आजकल के बच्चों को हम समझ ही नहीं सकते। मैंने अपनी लड़की से  ना जाने क्या-क्या उम्मीदें लगाई थी। मुझे क्या पता था कि वह मेरी उम्मीदों का गला घोंट ही देगी। उसे  अभी सम्भाला नहीं गया तो आगे चलकर वह मुझ पर ना जाने क्या कहर बरसाएगी। मेरे सारे सपने बिखर जाएंगे। जो उम्मीदें मैंने अपनी बेटी से लगा रखी है  वह कभी भी पूरा नहीं कर पाएगी।

गौरी बोली तो तुम्हारी बेटी नें ऐसा क्या किया? वह तो अब समझदार हो चुकी है उसे अपना अच्छा बुरा सब मालूम है। नीतू बोली मेरी बेटी मुझसे हर रोज झूठ कहती है मैं पढ़ाई कर रही हूं। टेलीविजन की शक्ल भी नहीं देखती।  आज जब उसकी मैडम का फोन आया कि आपकी बेटी पढ़ाई में बहुत ही कमजोर है। अगर उसे कुछ कहो हो तो आगे से हम अध्यापिकायों को जबाब देती है। आप अपनी बेटी को क्यों  नहीं समझाते। मैंने चोरी छुपे जाकर उसकी तलाशी लेनी शुरू की। वह पढाई करती है या नहीं। सुबह 5:00 बजे उठ जाती है। वह पांच बजे उठ कर मोबाइल चलाने लग जाती है। सारा दिन मोबाइल चलाती है।  एक दिन मैंने चुपके से उसके कमरे में झांक कर देखा। मैं देख कर खुश हो रही थी कि मेरी बेटी  रात रात के  2:00 बजे तक  बेटी पढाई किया   करती है। पास ही उसकी एक सहेली रहती है। वह भी मेरी बेटी की पक्की दोस्त है। वह भी कभी-कभी हमारे घर उस से मिलने  चली आती है। मैं सोचती थी थी दोनों पढ़ रही हैं मगर पढ़ना तो छोड़ो वह तो मोबाइल में मूवी देखने का आनंद ले रहीं थी। मैंने उस समय  उस से कुछ नहीं कहा। दूसरे दिन फिर देखा।  उनकी तलाशी  करनी शुरु की। अपनी सखियों के साथ बैठकर मोबाइल में अपनी सहेलियों के संग ना जाने कहां कहां की बातें लेकर बैठ गई। तुमने कौन सा सूट पहना है। लंबे लंबे  झुमके पहन कर आना।  कल आना आजकल की मॉडर्न ड्रेस पहन कर आना।  जैसी उस पिक्चर में करीना ने पहनी थी। मैं उनकी बातें सुनकर वह भोचंका रह गई उस के पिता को तो  भी नहीं  मालूम कि उन की बेटी नें ना जाने इस उम्र में कौन-कौन से शौक पाल रखें हैं। घर में किसी की भी नहीं सुनती है बोलो तो  चौबीस घंटे  गुस्से में मुंह फूला कर   बैठ जाती है। बहन मैं क्या करूं? तुम्हारी भी तो बेटी है। क्या वह  भी मोबाईल चलाती रहती है? गौरी बोली नहीं बहन, मैंने तो अपनी बेटियों को मोबाइल लेकर भी नहीं दिया है। नीतू बोली बहन, आजकल के बच्चों से राम ही बचाए कहते कुछ हैं और करते कुछ और ही। तुम भी  उन पर नजर रखना। मुझे तो आज सबक मिल गया।

अपनी बच्ची के लिए मुझे  कुछ भी करना पड़ जाए वह कर  के ही रहेगी वर्ना उसको किसी और स्कूल में डालने  का भरपूर प्रयास करेंगी।

गौरी उसकी बातें सुने जा रही थी। गौरी घर से सामान लेने आई थी। वह सोचनें लगी मेरी बेटियाँ भी भी तो रात रात को देर से सोती हैं। कंहीं वह भी तो मोबाइल, टेलीविजन आदि के चक्कर में तो नहीं फस गई। विवेक, उसकी तरफ तो मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया। वह भी आजकल टेलिविज़न कम ही  देखता है। चलो अच्छा है, वह अभी छोटा है। पहले मैं नूपुर और रिमझिम को छिप कर देखूंगी। मुझे भी नीतू नें आशस्वत करवा दिया वर्ना मैं भी इन बातों से बेखबर रहती। मैं तो कभी भी उन दोनों पर चोरी छिपे नजर  ही नहीं रखती हूं। मुझे भी चोरी छिपे अपनी  बच्चियों पर चोरी नजर रखने ही पड़ेगी।

गौरी रास्ते से चली जा रही कि सामने ही नूपुर और रिमझिम का स्कूल था।

आज उन दोनों के मामाजी जी घर  पर आए  थे। वे दोनों  तो आज स्कूल ही नहीं आई है।उसनें भी आज दोनों को उनके साथ जानें से नहीं रोका।   मेरी बेटियाँ     बेचारी कही नहीं  जाती हैं। उसके मामा जी के साथ उन दोनों को सैर करनें भेज दिया। गौरी नें  स्कूल में पंहूंच कर दरवाजे पर दस्तक दी। चपरासी नें दरवाजा खोला। गौरी नें स्कूल में चारों तरफ नजर डाली। मेज पर फूलो की सुगंध सारे वातावरण को महका रही थी। कमर में एक ओर अगरबती जल रही थी। दिवार पर बड़े बड़े महापुरुषों के चित्र टंगे हुए औफिस की शोभा को चार चांद लगा रहे थे। कमरे में शान्ति भरा माहौल था। वहां पर पंहूंच कर उसे सकून मिला। अच्छा ही हुआ आज बेटियों के स्कूल पंहूंच कर उसनें अच्छा ही किया।

स्कूल की प्रधानाचार्य नें आ कर उस की चुप्पी को तोड़ दिया। आते ही बोली गुड मॉर्निंग। इससे पहले कि वह मैडम को अभिवादन करती मैडम बोली गौरी मैडम आप अपनी बच्चियों की तरफ इतनी लापरवाह क्यों हो गई। आप की दोनों बेटियाँ आजकल पढाई में इतनी कमजोर कैसे हो गई। आप को न जानें कितनी बार स्कूल बुलवाया मगर आज कहीं जा कर आप को स्कूल आने का मौका मिल ही गया। आप घर पर भी कभी नहीं मिलती थी। आपके पडोसी ही आप का फोन उठाते थे। आप की बेटियाँ हर दम मोबाईल में ही जुटी रहतीहैं। वह मोबाईल स्कूल ले कर आती हैं। आप कम से कम स्कूल में तो उन्हें मोबाईल मत दिया करें। स्कूल में सभी छिप छिप कर अपनें दोस्तों के साथ मोबाईल पर वार्तालाप करनें में व्यस्त रहती हैं। गौरी को तो ऐसा महसूस हो रहा था कि वह जल्दी ही घर पंहूंच कर अपनी बेटियों की धुनाई कर डाले। मैडम के हर शब्द नश्तर की तरह उस के सकून को छिन रहे थे। उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि थोड़ी देर वह वहा रुक जाती तो उसे चक्कर ही आ जाता। उसनें मैडम के आगे चुप रहना ही उचित समझा। उन दोनों का  मोबाईल भी चैक किया गया। वह दोनों ठीक नहीं लग रही थी। इसलिए ही आप को स्कूल में बुलवाया था। गौरी सोचने लगी उसनें तो कभी भी अपनी बेटियों को मोबाईल ले कर नहीं दिया। किस से उन दोनों नें मोबाईल लिया होगा। उस नें मैडम को कुछ नहीं कहा यह कह कर चली गई कि वह अपनी बेटियों को समझाएगी। नुपूर और रिमझिम की कक्षा अध्यापिका बोली आप को उन दोनों के साथ नम्रता के साथ पेश आना होगा। प्यार से समझाना होगा। डांटडपट का बच्चों पर कोई असर नहीं पडता है। आपअगर प्यार से समझाएंगी तो वे दोनों आप की बात को कभी टालेंगी।

गौरी घरआकर बहुत ही परेशान थी। अपनी बेटियों पर नजर रखनें लगी। वह तो आज पता लगाकर ही रहोगी कि वे कंहा जाती है? क्या करती हैं? हम तो यहीं समझते थे कि हमारी बेटियां टेलीविजन भी नहीं देखती। उसनें  तो  कभी  भी उन्हें  मोबाईल ला कर नहीं दिया फिर यह मोबाइल कहां से  ले कर आई?

वह  आज सब पता करके ही रहेगी।नुपूर और रिमझिम जैसे ही घर पहुंची तो उनकी मां बोली बेटा खाना खा लो। वह दोनों  बोली मां हमें भूख नहीं है। आप खा लो। हम आराम कर रही हैं। थोड़ी देर हम सो जाती हैं। उसकी मां को गुस्सा तो आ रहा था मगर उन्होनें अपने गुस्से पर नियन्त्रित कर लिया। वह बोली ठीक है बेटा। उसकी मां ने चुपके से कमरे में टेप रिकॉर्डर का बटन ऑन कर दिया था। वे दोनों जो करेंगी वह सब की सब बातें  रिकॉर्डर में रिकॉर्ड हो जाएगी। दोनो अपने कमरे में आ कर खुश होकर बोली। चलो अच्छा हुआ मां को कहा कि हम सो जाते हैं। आज रवि ने उसे एक फिल्म की पेन ड्राइव  ला कर दी है। फिल्म देखेंगे। उन दोनों नें दरवाजा अंदर से बन्द कर लिया था।  रिमझिम नुपूर से बोली  रवि कभी  कभी  पैन ड्राइव देता रहता है।

उसने तो आज  हमें अपना लैपटॉप भी दे दिया है। वह मैनें आते ही  बिस्तर के नीचे छिपा दिया था   ताकि मां की नजर उस पर न पड़े। जल्दी से फिल्म देखते हैं।

एक दूसरे की तरफ इशारा करके बोली आज मां को पता चल गया होता कि हम उनकी पीठ पीछे फिल्म देखते हैं तो रात्रि में अपनी सहेलियों के साथ सारी सारी रात भर मोबाईल पर वार्ता लाप करतें रहतें हैं। आज यह सब जान कर  तो मां तो आज बेहोश हो ही  जाती। मां को पता नहीं लगना चाहिए उन्होंने हम को लेकर ना जाने कितने अरमान लगा रखें हैं। नूपुर और रिमझिम एक दूसरे से बोली हम मां को पता ही नहीं लगने देंगे।

आज तो इंग्लिश में भी हम दोनो पॉइंट में पास हुई हैं। हम दोनों पढाई नहीं करेंगी तो पास कैसे  होंगी? रिमझिम बोली बडी़ आई लैक्चर झाड़नें वाली। फिल्म का मजा किरकिरा मत कर। मुझे भी कोई हीरो जैसा दिखने वाला लड़का मिल जाएगा तो मैं भी शादी कर लूंगी। अरे बुद्धू मैं तो मजाक कर रही हूं। दोनों की बातें रिकॉर्ड हो गई थी। उनकी मां  नें उन की रिकार्ड की गई बातें सुन ली थी। तीसरे चौथे दिन उसने नुपूर  और रिमझिम को बाजार जाते देखा। रिक्शा लेकर उसी दिशा में रिक्शा रुकवा  कर देखा। वह घुलमिलकर एक लड़के से बात कर रही थी। नुपूर रवि से बोली तुमने मुझे मोबाइल दिया। धन्यवाद। कल अच्छी सी फिल्म की पेनड्राइव ला कर देना।रवि बोला तुम दोनों मुझ से मिलने आकाश रैस्टोरैन्ट में मिलने आना। वे दोनों बोली  हम  ऐसा नहीं कर सकती। मोबाइल तक तो ठीक है। उसकी मां को थोड़ा स्कून मिला। चलो अच्छा  ही हुआ इस लड़के के घर का पता लगाकर इसके घर जाती हूं। उस लड़के का घर का जैसे-तैसे पता किया।।

रवि अपनी माता-पिता का इकलौता लड़का था। वह अपनी माता पिता को कहता था कि मुझे आज एक नया लैपटॉप चाहिए या आज उसे जितनें भी रुपये चाहिए होते तो उनकी हर इच्छा को  उस के माता-पिता पूरी कर देते थे क्योंकि अगर वह उसकी इच्छा को पूरी नहीं करते  तो वह न जानें उन्हें कितनी धमकियां  दे  देता था। उस की इच्छा को पूरी नहीं करते थे तो वह कहता था कि मैं यहां से दूर चला जाऊंगा। तुम्हारे पास कभी भी लौट कर नहीं आऊंगा। उसके मां बाप उसकी धमकियों से डर जाते थे। इसी कारण उसे कुछ भी नहीं कहते थे।

रवि  की एक छोटी सी बहन थी प्राची। वह भी बहुत ही होशियार लड़की थी। रवि अपनी बहन को बहुत ही प्यार करता था। उसकी आंखों में कभी भी आंसू नहीं आने देता था। वह भी छिप छिप कर अपने भाई को अपनी जमा पूंजी भी अपने भाई को दे देती थी। वह किसी की भी बात घर में नहीं मानता था सिवा अपनी बहन के।

घर आकर नीतू की मां ने सब पता कर लिया कि वह लड़का कौन है जो  उनको मोबाइल देता है। लैपटॉप देता है। एक दिन उसने अपनी दोनों बेटियों  नूपुर  और रिमझिम  दोनों को अपने पास बुलाया और कहां की बेटी तुम दोनों मेरी गुरूर हो। तुम कोई भी ऐसा काम मत करना जिससे हमारे दिल को ठेस लगे। उसकी मां बोली बेटा एक बात तो  तुम दोनों ने मुझसे छुपाई है। मैं तुम्हें डाटूंगी  नहीं प्यार से समझाऊंगी।  इस उम्र में बच्चे का मन बहुत ही चंचल होता है। वह तरह-तरह के सपने देखता है। सपनों की दुनिया में हिलोरें खानें लगता है। उसे बाहर की दुनिया में सब कुछ अच्छा ही अच्छा नजर आता है। उस अपने मां-बाप उसे दुश्मन नजर आते हैं।वह उन्हें हरदम डांटते रहते हैं। वह सारा गुस्सा  अपनें माता पिता पर निकालतें हैं। गौरी बोली बेटा आपको हम  कहीं जाने से नहीं रोकते। कहीं  भी जाओ हमें सब मालूम होना चाहिए कि तुम कहां जाती हो? क्या करती हो? अपनी मां को अपना दोस्त समझना चाहिए। उस से कोई भी बात छिपानी नहीं चाहिए।  तुम से अगर कभी कोई छोटी सी गलती भी हो जाए तो वह कभी भी नहीं छिपानी चाहिए। अपने मां बाप को खुलकर सारी बातें बतानी चाहिए। अपने पिता को तो  तुम  सारी बातें कह नहीं सकती मगर मां को  अपने दोस्त की तरह एक मित्र की तरह समझेगीं  तो वह खुलकर तुम सारी बात समझा पाएगी। हम भी तुम्हें हर बात बताएंगे। तुम भी हमारे से कोई बात नहीं छुपाओगी।

रिमझिम और नूपुर बोली मां  हम  दोनों शाम को आपसे बातें करेंगे। वह दोनों स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई थी। अचानक उनकी नजर बिस्तर के नीचे लैपटॉप पर गई। वह  दोनों इधर-उधर खोजनें लगी। उन्हें लैपटॉप कहीं भी नजर नहीं आ रहा था। दोनों डर के मारे कांपनें लगी। उसकी मां आकर बोली बेटा तुम्हारी  चोरी पकड़ी गई। लैपटॉप  ही दिलाना  होता तो मैं तुम्हें  कभी का दिलवा देती। किसका लैपटॉप उठाकर लाई हो? वह दोनों एक दूसरे को देख रही थी। मां ने तो उनको डांटा भी नहीं।

मैं तुम दोनों को पेन ड्राइव  भी ला कर दे देती। तुम नें कह कर तो देखा होता। मैं इतनी भी निर्मम नहीं हूं जो तुम्हारी इच्छा को पूरी नहीं कर पाऊंगी।  उसकी मां बोली बेटा तुमने कोई नई फिल्म देखनी हो तो मुझे कहती। मैं तुम्हारे साथ चलती। । वह दोनों मौन साधे अपनी मां की बात सुनती रही। वे दोनों आपस में एक दूसरे को चौक  कर देख रही थी। उन्होंने रवि को लैपटॉप  लौटा दिया था। आज तो  मां शाम को मां पापा के पास शिकायत कर के ही रहेगी। हैं कि ना जाने आज दोनों को क्या सजा मिलेगी। वे दोनों शाम को जब घर भाई एकदम कमरे में जाने लगी तो उसके पापा बोले बेटा तुम दोनों इधर आओ। उन दोनों को प्यार करते हुए बोले बेटा आज मैं तुम दोनों को एक उपहार लाया हूं। मैं तुम दोनों को एक एक मोबाइल भी लाया हूं। मैं सोचता था कि आजकल के जमाने में सब बच्चे मोबाइल  चलातें हैं।  मेरी बेटियों ने मुझसे कभी भी मोबाइल की फरमाइश नहीं की। मैं तुम दोनों की अपने दोस्तों  के सामनें  तारीफ करते नहीं थकता हूं। कि मेरी बेटियां तो मेरी ताकत है उन्होंने आज तक मुझसे कभी कोई फरमाइशें नहीं कि।तुम दोनों मेरी जांच की कसौटी पर सदा खरा उतरी हो। तुम दोनों पर मुझे नाज है। मोबाईल पर कर तुम दोनों बहुत ही खुश होंगी।  उन के पापा ने दोनों को मोबाइल थमाया तो दोनों की आंखों में आंसू के खुशी के आंसू थे। वे दोनों अपने पापा की आंखों में प्यार भरा विश्वास देख रही थीं। वह दोनों कितनी मूर्ख हैं जो अपने माता पिता की आंखों में धूल झोंक रही थी। उनकी मां को तो पता ही चल चुका था। वे दोनों को चॉकलेट दे कर बोले  चलो फिल्म सारे मिल कर फिल्म देखते हैं।

पापा जब अपने कमरे में चले गए तो  वे दोनोंअपनी मां के पास आकर  बोली मां हमें माफ कर दो। हमने आपसे सारी बात छुपाई हैं। हमने आपसे हमेशा छुपाया। हमारे पास मोबाइल कहां से आए? हम सब आपको बताते हैं। हमें स्कूल के दोस्त ने  मोबाईल ला कर दिया था। वह बहुत ही अमीर परिवार का लड़का है। उसने ही हमे लैपटॉप दिया था। हम केवल फिल्म देखना चाहते थे। हमने सोचा अगर हमने आपसे मोबाइल दिलवानें के लिए कहा तो आप हमें डाटेंगी। स्कूल में लड़कियां मोबाइल चलाती थी तो  हमारा भी मन करता था कि हम भी मोबाइल चला कर देखें और अपनी दादी से  ढेर सारी बातें करें परंतु हम सोचते थे कि आप हमें डाटेंगी। हमने आप से सारी बातें छुपाई। हमनें मोबाइल पाकर पढ़ाई भी ठीक ढंग से नहीं थी। यह हमारी गल्ती थी। रवि ने उन्हें चाय पर रेस्टोरेंट में बुलाया है। गौरी बोली बेटा देखो अभी तुम दोनों नादान हो। तुम्हें इन लड़कों की आंखों में प्यार ही प्यार नजर आता है। मां बाप  तुम्हें दुश्मन नजर आतें हैं। पर तुम्हारा  कसूर नहीं है। हर नौजवान लड़की के मन में  ऐसा ही सपना उभरता है। मां बाप जब उनकी इच्छा को पूरी नहीं करते वह बाहर जाकर अपनी उस इच्छा को पूरी करने की तलाश करतें हैं।  तुम ने भी मुझ से कभी मोबाइल के लिए नहीं कहा। एकदम अपनी दोस्त पर विश्वास कर उस से मोबाइल ले लिया। उसने तुम्हें मोबाइल तो दे दिया। सभी लड़के एक जैसे नहीं होते। अभी तो तुमको उसने मोबाइल  ही दिया है कल को कुछ और भी दे सकता है। हम तुम्हारा भला बुरा समझते हैं। अभी  तुम में अपना भला बुरा समझने की समझ नही है। अभी तुम उस के बहकावे में जाओगी। आज उसने तुम्हे चाय पर बुलाया है। कल वह तुम्हे ना जाने कहां ले जाए। तुम दोनो कसम खाओगी तुम कहीं भी जाओ  मुझे इसके बारे में पता होना चाहिए। तुम कहां जाती हो? क्या करती हो? बेटा सब लड़के अच्छे नहीं होते। कुछ लड़के लड़कियों को बहकातें हैं और मतलब निकल जाने पर उन्हें अपनी दुनिया से बाहर निकाल कर फैंक देते हैं। इसलिए हर कदम को सोच-समझकर उठाना चाहिए। मैंने ही तुम्हारे पापा को कहा कि तुम्हारी बेटियों के पास मोबाइल नहीं है। तुम दोनों को मोबाइल को मोबाइल चलाना  बुरा नहीं है लेकिन उसका प्रयोग एक सीमित दायरे में रहकर करना चाहिए। बेटा जिस लड़के कि तुम बात कर रही हो वह   अपनें माता पिता का बिगड़ा हुआ बेटा है अकेला बेटा होने के कारण उसकी सारी फरमाइशें उसके माता-पिता पूरी कर देते हैं। हो सकता है कि वह लाड प्यार में बिगड़ गया हो। उससे भी  प्यार और स्नेह से समझाया जाएगा तो वह भी समझ जाएगा। मैंनें उस लड़के के माता पिता के पास जाकर उन्हें  समझाया। वह बोले कि हमनें अपने बच्चे को कभी भी गम्भीरता से नही लिया। उसे कभी भी समय नहीं दिया। उस की गतिविधियों पर कभी भी नजर नहीं रखी। कहां जाता है? क्या करता है? हम उसे प्यार से समझाएंगे तो शायद वह भी मान जाएगा।

आज मैं तुम्हें एक नाटक में भाग लेने के लिए कह रही हूं। किसी को  सीख देने के लिए यह नाटक करना बहुत ही जरूरी है। रिमझिम बोली मां कैसा नाटक। उसकी मां बोली मैं दोनों को बताती हूं कि क्या करना है?। तुम उस लडके की बहन को अपनी दोस्त बनाओ। फिर बताऊंगी कि क्या करना है? नुपूर और रिमझिम की मां नें मिल कर अपनी सहेली के बेटे को एक नाटक के लिए तैयार किया। उसे हिदायत दे दी कि तुम्हे अपनी बहनें नुपुर और रिमझिम की सहेली को हर रोज मैसेज करनें होंगे। उस से केवल मित्रता करनी होगी क्योंकि रवि मेरी मासूम बेटियों के साथ इश्क का चक्कर चलाना चाहता है। जब उसकी बहन को हर रोज मैसेज दे कर उसे परेशान करेगा तो वह तुम से मिल कर तुम्हे सबक सिखानें की सोचेगा। पुनीत नें रवि की बहन को नया मोबाईल ला कर दिया। उस से दोस्ती बढाई। वह पुनीत के बगैर अपने आप को अकेला समझनें लगी। एक दिन पुनीत नें उसे कहा कि मैं केवल तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं। तुम कुछ और समझनें की भूल मत करना। प्राची उस से प्यार करने लगी थी। रवि को जब पता चला कि कोई नवयुवक उस की बहन को मोबाईल दिला कर मेरी बहन को गुमराह कर रहा है तो रवि नें पुनीत की कमीज का कलर पकड़ कर कहा पहले  तुम बताओ कि तुम नें मेरी बहन को मोबाईल किस से पूछ के दिया। पुनीत बोला जैसे तुम नें मेरी बहनों को दिया वैसे मैंने भी दे दिया। मैं तो नाटक का एक  हिस्सा  बन कर तुम्हारी बहन को मोबाईल दिला कर मैसेज करता था। आंटी ने  मुझ से कहा कि ऐसे समझाना तुम्हे बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। रवि को सारी सच्चाई पता चल चुकी थी। वह भी तो नुपूर और रिमझिम को गुमराह कर रहा था। उसे जब सच्चाई सेअवगत करवाया तो वह समझ गया। उसने नुपूर और रिमझिम से अपनी करनी केलिए क्षमा मागी। अपनी बहन को सारी सच्चाई बताई कि उसनें भी किसी की बहनों को गुमराह करनें की कोशिश की थी।  प्राची भी समझ गई थी। उस नें भी अपनी भूल सुधार कर पुनीत से माफी मांगी। सब के चेहरों से झूठ कि काली परत हट चुकी थी।