“हे नारी!तुझे शत शत नमन”

सुसभ्य संस्कृति कि नव चेतना का आधार जननी

कर्मधात्री, पवित्रता स्वरुपिणी,

वात्सलयमयी,ममता का आधार जननी।।

सर्वस्व न्योछावर करने वाली,

तन मन धन समर्पित करनें वाली।।

अपनें हुनर से घर को साज संवारने में निपुणता लानें वाली।

अपनी सूझबूझ के दम पर परिवार पर जान छिड़कनें वाली ।।

त्याग,तप और सौम्यता कि मूर्ति बन

अपनें परिवार में एकता बनाए रखनें में सक्षम।

कड़ी को जोडनें में विश्वास रखनें वाली।

दया ममता और जान लुटाने वाली।।

बड़े बूढों और बूजूर्गो का सम्मान करनें वाली।

बच्चों पर स्नेह ममता और प्यार लुटाने वाली।

कमजोर को बल प्रदान करनें वाली ,

हर क्षेत्र में रानी झांसी कि तरह शक्तिशाली।।

  करुणा स्वरुप जननी को शत शत नमन।

दाम्पत्य जीवन में मधुरता का रस घोल ,

रिश्तों को और भी मधुर बनाने कि सामर्थ्य जुटानें में सक्षम

हे !नारी तुझे शत शत नमन।

“दूध का दूध पानी का पानी”

राम प्रसाद नें अपनी तीनों बेटियों की शादी की एक ही शहर में की थी ताकि तीनों वक्त पड़ने पर एक दूसरे के काम आ सके ।उनके पिता नें मरते वक्त अपनी बेटीयों को शिक्षा दी थी कि हर हाल में एक दूसरे की सहायता करनी है। वह अपनी बच्चीयों को खुश देख कर बहुत ही खुश होते थे। मेरी बेटीयां अपने अपने घरों में खुश हैं।रमा उमा और सीमा। तीनों बहनें एक दूसरे से स्नेह किया करती थी।उनका  एक भाईभी था।वह भी उसी शहर में रहता था।पिता को इस बात कि कोई चिन्ता नहीं थी,उन्हें पूरा विश्वास था मेरे दिए हुए संस्कार कभी ग़लत नहीं हो सकते। कि उसकी बेटियां  खुश  हैं।  उन्हें पूरा विश्वास था कि उनके मर जानें के उपरांत उनका भाई उन्हें जरूर देखेगा।उसने अपने परिवार को अच्छे संस्कार दिए थे।वे तीनों बहनें भी आपस में स्नेह पूर्वक रहती थी।

रमा का विवाह उच्च घरानें में  हुआ था,उमा को भी अच्छा परिवार मिला था।सीमा का विवाह निम्नवर्गीय परिवार में हुआ था।उन तीनों के एक एक बेटा था।वह अपनें परिवारों में खुश थी।कभी कभार एक दूसरे से मिलने  आ जाता करती थी।

उन तीनों नें अपनें बच्चों को एक ही स्कूल में डाला था।जिससे उन को अपनी बहनों कि खबर हो जाती थी।तीनों बच्चे पढ़ाई में अच्छे थे।उनके मामा  जी का घर कुछ दूरी पर था।उनके पास वह हर रोज नहीं जा पाते थे।

एक छोटा सा कस्बा था जिस में उसका भाई रहता था।वह एक मन्दिर का पुजारी था।तीनों भाई हर रोज स्कूल में इकट्ठे बैठ कर काफी देर तक बातें करते  और पढ़ाई किया करते।एक दिन तीनों भाइयों नें योजना बनाई कि कक्षा से छुट्टी  मारेंगे 

एक दिन अच्छा मौका देख कर स्कूल से भाग कर काफी दूर आ गए।वे रास्ते में चलते जा रहे थे और आपस में कहनें लगे चलो कहीं सैर करनें चला जाए।उनके माता पिता उन्हें बाहर नहीं जानें देते थे।इसी कारण उन्होनें किसी को भी बताना उचित नहीं समझा।घर में देरी से पहुचनें पर कोई न कोई बहाना कर देंगें।उन्हें कूछ सूझ ही नहीं रहा था कि  क्या बातें करें। 

राघव  एक दम बात को घुमा कर बोला कल मेरे साथ एक विचित्र घटना घटी।मैं हमेशा सोचा करता था कि कहीं से मुझे कुछ रुपया मिले।मेरे दोस्त मुझे हर रोज बतातें हैं आज मुझे रास्ते में बहुत सारे रुपए मिले।किसी को कुछ किसी को कुछ मिलता ही रहता है मगर आज तक मुझे कुछ नहीं मिला।मैं सोचा करता था कि मैं भी इतना अभागा क्यों हूं जो आज तक मुझे कभी कुछ नहीं मिला।कल जब मैं घर के पास अपनी वाटिका में खुदाई कर रहा था तो मुझे एक सोनें कि अंगूठी मिली।माधव और गौरव आश्चर्य से उसकी तरफ देख कर बोले क्या सचमुच सोनें कि अंगूठी मिली या तुम कोई कोरी गप मार रहे हो।मैनें सोचा कि यह अंगूठी नकली होगी पहले जौहरी कि दुकान पर पता कर लेता हूं यह नकली है या असली।मैं मां को बोला मां आज दूध लेनें मैं जाता हूं।उसकी मां रमा बोली आज कहां से तुझ में इतनी अक्ल आ गई।आज से पहले तो तू कभी दूध लेनें नहीं गया।आज मां पर इतना मेहरबान कैसे हो गया? कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही।वह बोला मां मैं सच कह रहा हूं।भाग कर दूध लेनें के बहाने जौहरी से मिला।जौहरी हंस कर बोला  यह तो सोनें कि है।मैं बहुत खुश हुआ।वह बोला इसे मुझे बेच दो।राघव बोला नहीं मैं भला इसे क्यों बेचनें लगा।राघव बोला मैनें वह अंगूठी दुकान दार से वापिस  ले ली।गौरव बोला तुम नें उस अंगूठी का क्या किया। मैनें वह अंगूठी मां को पहना दी।मां नें मुझे कहा कि तुम नें किसी कि चुराई तो नहीं।मैनें मां को सच बता दिया।मां ने मुझे कुछ नहीं कहा।गौरव और माधव बोले कल इतवार है।कल तुम्हारे घर अंगूठी देखनें आना ही पड़ेगा।राघव घबरा गया।यह तो उसने  कभी सोचा भी नहीं था कि उसका झूठ पकड़ा जाएगा वह बोला हां जरुर आना।तुम अगले हफ्ते तक आना ।मां अभी मामा के पास गई हुई है।वे दोनों मान गए।राघव चिन्ता में पड़ गया मैनें इन को झूठ बोल तो दिया कि मुझे सोनें कि अंगूठी मिली है मैं अब क्या करूं।नाना जी कहा करते थे कि हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।एक झूठ के पीछे सौ झूठ बोलनें पड़ते हैं।मां जब मामा के घर से लौटेगी तब उन्हें अंगूठी के लिए मना लूंगा।राघव अपनें पिता से बोला मैं मामू के घर जा रहा हूं।वह दूसरे दिन स्कूल से आ कर मामू के घर मां से मिलने चल पड़ा।अपनी मां से मिल कर राघव नें अपनी मां के गले लग कर आंखों में आंसु भर कर कहा मां मुझ से एक गल्ती हो गई।मां आप ही मुझे इस विपती से बचा सकती हो।उसकी मां  बोली क्या किसी से लड़ाई झगड़ा कर के आया है?राघव बोला नहीं ।उसने  अपनी मां के हाथ में सोनें कि अंगूठी देखी तो खुश हो कर बोला मां क्या आप मेरी खातिर क्या एक झूठ बोल सकतीं हैं? मां बोली बेटा झूठ तो झूठ होता है मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगी।बेटा बोला तो ठीक है मैं भी आज से कभी भी बात नहीं करूंगा।सिर्फ एक बार ही झूठ बोलना है मां उस के बाद मैं कभी भी किसी से झूठ नहीं बोलूंगा।

मां बोली बात तो बता क्या हुआ है बाद में सोचूंगी।राघव बोला मैनें अपनें भाईयों से झूठ मूठ में कह दिया कि एक दिन मुझे बगीचे में सोनें कि अंगूठी मिली।मैनें  अपनी गली में जो सुनार हैं उन को उसे  बेचना चाहा तो उन्होनें मुझे बताया कि यह सोनें की है। मैनें उन्हें यह भी बता दिया कि मैनें वह अंगूठी मां को पहना दी।पहले तो मां नहीं मानी बाद में उन्होनें वह अंगूठी अपनें हाथ में पहन ली।मां बोली चलो तुम्हारी खातिर मैं उन से झूठ बोल दूंगी लेकिन वायदा कर फिर कभी झूठ नहीं बोलेगा।मैं उन को कह दूंगी यह अंगूठी राघव नें मुझे दी है।उसके मन से चिन्ता मिट गई थी।उसकी मां भी अपनें बेटे के साथ घर आ गई थी।

वायदे के मुताबिक उसके दोनों भाई इतवार को गौरव और माधव अपनी मौसी से मिलने  पहुंच गए थे।उन्होनें जब मौसी से पूछा कि मौसी जी आप के हाथ में अंगूठी तो बहुत ही सुन्दर है।वह बोली वर्मा जी कि दुकान फिर अचानक बात बदल कर बोली यह अंगूठी तो राघव नें उन्हें दी है।मैं तो सामने वाली गली में  वर्मा  जी कि दुकान पर कितनी अंगूठियां देखी लेकिन कोई पसन्द ही नहीं आई।अचानक राघव को न जानें कहां से मिली उस नें मुझे पहना दी।गौरव और माधव को हैरानी तो बहुत हुई।वे दोनों शाम को अपने अपने घर आ गए।

माधव घर आ कर सोचनें लगा मुझे भी खुदाई से कभी कुछ नहीं मिला राघव कितना लक्की है अंगूठी भी मिली तो सोनें कि वह जरूर झूठ बोल रहा है लेकिन मौसी तो झूठ नहीं बोल सकती।मैं भी झूठ-मूठ अपनें भाईयों से कहूंगा कि मुझे चान्दी कि चेन मिली है।राघव भैया तुम्हें तो केवल एक अंगूठी ही मिली मुझे तो सोने कि चेन मिली है।झूठ बोलनें के लिए पहले प्रैक्टिस करनी पड़ेगी मैं क्यों पीछे रहूं।वह भी कोरी गप्प मार रहा है लेकिन मौसी नहीं नहीं क्या पता मां को उसनें पटा लिया हो।

दूसरे दिन जब छुट्टी के समय दोनों भाई मिले तो वह मुस्करा कर बोला आज तो मैं बहुत ही खुश हूं।तुम्हारी तरह मैं भी किस्मत का धनी हूं।मुझे भी खुदाई करते वक्त सोनें कि चेन मिली।राघव और गौरव माधव से कहनें लगे तुम को तो झूठ बोलना भी नहीं आता वे दोनों जोर जोर से उस पर व्यंग्य कहते हुए बोले तुम्हारी चेन देखने तुम्हारे घर आना ही पड़ेगा।वह तो शत-प्रतिशत झूठ बोल रहा है।झूठ बोलते वक्त इसकी ज़बान भी नहीं लड़खड़ा रही।राघव सोचनें लगा उसने भी  तो कितनी सफाई से झूठ बोला था उसका भी झूठ पकड़ा नहीं गया।मेरी मां नं मुझे बचाया नहीं होता तो मेरा झूठ भी पकड़ा जाता।माधव और राघव बोले तुम्हारे घर सोनें कि चेन देखने  आना ही पड़ेगा। वह अपनें भाईयों को बोला मैनें वह चेन मामू के मन्दिर में भगवान की मूर्ति  पर डाल दी।तुम चल कर देख लेना।उसने झूठ कह तो दिया मगर वह झूठ बोल कर बहुत परेशान हो गया।उसनें  आज से पहले कभी झूठ नहीं बोला था।पर अपने भाईयों में  हेकड़ी ज़मानें के लिए उसने  झूठ कह दिया।वह सारी रात नींद में भी चेन चेन बड़बड़ा रहा था।

उसकी मां उसकी हालत देख कर डर गई।उसके माथे 

पर प्यार से हाथ फेरते बोली क्या बात है। मैनें तुम्हें जगाना उचित नहीं समझा।अब तो नौ बज चुके हैं।कल तुम सपनें में चेन चेन  क्या बड़बड़ा रहे थे। वह बोला मां मुझ से बड़ी भारी गल्ती हो गई मां मुझे आप ही बचा सकती हों।उसकी मां बोली बता तो सही क्या बात है?मेरे दोस्त और मेरे दोनों भाई बड़ी बड़ी डींगें मारतें रहें हैं।दोस्त तो किस्से सुनाते ही रहें हैं आज मुझे यह मिला,न जानें क्या क्या।कल जैसे राघव नें मुझे कहा कि मुझे सोनें कि अंगूठी मिली है।पहले तो मैनें विश्वास नहीं किया शायद वह झूठ बोल रहा था लेकिन जब छुट्टी वाले दिन मैं और माधव उसके घर गए तो जैसे उसने  कहा था अंगूठी उसने वह अंगूठी अपनी मां के हाथ में पहना दी थी।हम नें जब मौसी जी  से पूछा तो उन्होनें कहा राघव सही कह रहा है उस नें ही यह अंगूठी उसे दी है।  मां मुझे तो आज तक कुछ भी नहीं मिला।मैं भी पीछे नहीं रहना चाहता था। इसलिए झूठ-मूठ का सहारा लिया।मुझे क्या पता था कि वे चेन देखने मामू  के घर आ जाएंगें।ऐसे ही परसों छुट्टी वाले  दिन मामू ने किर्तन पे सभी को बुलाया है उस दिन वे चेन वंही पर देख देंगें।।  मैनें उन्हें कहा कि मां नें देख कर बताया यह चांदी कि है।मां नें ही मुझे कहा इसे तेरे मामू के मन्दिर में चढ़ा देंगें।ऐसे भी दूसरे कि वस्तुओं पर हमारा अधिकार नहीं होता।मां बोली तुम तो बहुत ही उपद्रवी हो।मैं चांदी कि चेन कहां से ले कर आऊं।वह एक दिन पहले ही अपनें भाई के घर पहुंच गई थी।उसने सारी बात अपनें भाई को बताई।भाई क्या तुम मेरी खातिर झूठ बोल दोगे?यह कहना कि राधा जी की मूर्ति पर जो माला है वह असली चांदी की है।उसका भाई बोला यह तो नकली  चेन है बहना।वह बोली भाई तुम मेरी खातिर झूठ बोल देना।मेरे बेटे के स्वाभिमान को ठेस पहुंचेगी।वह ऐसे ही कल सारी रात सो नहीं सका है ।मैं घर से ला कर तुम्हें चांदी की चेन दे दूंगी।जब दोनों  गौरव और राघव मामू के मन्दिर गए तो उन्होनें राधा रानी कि मूर्ति पर चांदी की चेन देखी।वह बोले भाई तुम ठीक कह रहे थे मगर हम भी तुम्हारा यकीन नहीं कर पा रहे थे कि तुम झूठ बोल रहे हो।गौरव बोला तुम दोनों कितने लक्की हो।मुझे तो खुदाई कर के कुछ भी नहीं मिलता।

घर आ कर गौरव नें सारी  बात अपनी मां को बताई।

मां बोली बेटा मैं नहीं मानती शायद माधव नें कोरी गप्प मारी हो कि मुझे सोनें कि अंगूठी मिली है।अंगूठी सड़क पर क्यों कोई फैंकनें लगा?मैं इस बात का पक्का प्रमाण दे कर ही किसी सभी नतीजे पर पहुंचुंगी। वह गौरव को बोली बेटा हमें अगर स्कूल या कहीं भी कोई वस्तु गिरी मिलती है तो हमें लौटा देना चाहिए।स्कूल में मिले तो मुख्याध्यापक जी के पास जमा करवा देना चाहिए या किसी मन्दिर में कीसी को  दान दें देना चाहिए।मैं नहीं मानती कि रमा नें वह अंगूठी अपनें हाथ में पहनी होगी।वह ऐसा नहीं कर सकती।गौरव बोला माधव को चांदी की चेन मिली उसने  वह चेन  मामू के मन्दिर में राधा जी कि मूर्ती पर चढ़ा दी।

एक दिन तीनों बहनें मन्दिर में भंडारे वह कीर्तन के लिए अपनें भाई लाखन के घर पहुंची।बात बात में उमा नें रमा को कहा कि बहना यह सोनें की अंगूठी तुमनें कहां से बनवाई।रमा बोली यह तो राघव नें उसे दी।रमा बोली मुझे कुछ काम याद आ गया थोड़ी देर पश्चात तुम से आ कर मिलती हूं।वह बात को काट कर चले गई।रमा नें गौरव को पूछा कि तुम नें उसे सुनार का क्या नाम बताया था जिसके पास राघव अंगूठी बेचनें गया था।वह बोला मां एक ही तो सुनार कि दुकान है मौसी जी के घर के सामने   शायद वर्मा।

सीमा दुकान के पास दीवाकर वर्मा  का बोर्ड देख कर भांप गई कि यहीं राघव अंगूठी बेचनें गया था।उसके बेटे नें उसे वर्मा कहा था।बातों ही बातों में बहुत सी ज्वैलरी देखनें के बाद  सीमा बोली शायद दस पन्द्रह दिन पहले राघव आप के यहां अंगूठी बेचनें आया था।आप नें उसेअंगूठी के कितने रुपये लिए।वह हंस कर बोला वह तो नकली अंगूठी ला कर कह रहा था कि इसको जांच कर बताओ यह कितने  की है?मैनें उसे भगा दिया।यह बात माधव और गौरव भी सुन रहे थे।राघव भी पास ही खड़ा खड़ा  पानी पानी हो रहा था उसकी चोरी पकड़ी गई थी।

रमा अपनें भाई के पास जा कर बोली भाई आज मैं आप से एक बात पूछना चाहती हूं आप नें राधा रानी के गले में नकली चेन क्यों डाली।असली चेन कहां गई जो माधव को मिली थी।लाखन बोला यह चेन तो  चांदी की है चाहे आप देख लो।उमा नें जब रमा का पर्दाफाश होते देखा तो उसने  जो उसके पास अपनी चांदी कि चेन थी उसने  वह चेन   भगवान की मूर्ती पर चुपके से डाल कर आ गई ।उसनें वह चांदी की चेन पहना दी और उस पर पड़ी नकली चेन खुद पहन ली।अपनें भाई को बचानें के लिए उसने  वह सब कर दिया।

सीमा को सच्चाई पता चल गई थी।सीमा नें  कोई चिपचिपा पैदार्थ नीचे गिरा दिया था जब भी कोई राधा कि मूर्ती को हाथ लगाएगा तो वह चिपचिपा पैदार्थ उसके जुराबों वह कहीं न कहीं चिपक जाएगा।उमा जैसे ही राधा की मूर्ती पर चेन डाल कर आ गई खुश हो रही थी कि उसे किसी नें भी उसे   मूर्ति  पर से चेंन उठाते नहीं देखा।उस चेन के पीछे उमा नें अपना नाम खुदवाया था।सीमा अपनी बहन के पास आ कर बोली कि बहना अपनी चेन दिखाओ।उमा नें जो चेन पहनी थी उस पर तो किरण लिखा था। वह तो चांदी कि थी ही नहीं।सीमा बोली बहन मुझे सच्चाई पता चल चुकी है।आप नें भाई  को बचानें के लिए चोरी पकड़े जानें के डर से उनके गले में असली चांदी कि चेन पहना दी क्यों कि माधव को बचानें के लिए झूठ बोला।और इस कारण झूठ पर झूठ डालना पड़ा।आप की चेन पर तो आप का नाम भी छपा हुआ है।आप के हाथ में जो हल्दी के निशान हैं वह मैनें तेल में हल्दी लगाई थी ताकि मैं चोर को रंगे हाथों पकड़ सकूं।उसने सब को एक साथ हाल में बुला कर कहा हम सब मिल कर कितनें भी तर्क क्यों न दें एक झूठ के पीछे सैंकडों झूठ बोलते गए।एक न एक दिन झूठ तो सबके सामने  आ ही जाता है।सारी सच्चाई सब के सामने  बताओ।

उमा बोली मैनैं अपनें बेटे को सपनें में बड़बड़ाते सुना।चेन चेंन चेन।उसने अपनें भाईयों को कहा कि उसे चांदी की चेन मिली है।जब कि उसे नकली चेन मिली थी।उसे जब पता चला कि उसके दोनों भाई चेन देखनें आ रहें हैं तो उसने  एक और झूठ बोला कि उसने राधा वह चेन मामू के मन्दिर में राधा जी कि मूर्ति पर चढ़ा दी।उस चेन के पीछे किरण लिखा था।माधव नें  मुझे बताया था कि उस चेन के पीछे किरण लिखा था।बहना तुम्हारे गले में जो चेन है उस पर तो किरण लिखा है।दूध का दूध पानी का पानी हो चुका है।लाखन बोला हम सब झूठ बोल रहे थे। सीमा बोली राघव तुम बताओ अंगूठी का माजरा क्या है।राघव बोला बताता हूं।हमारे दोस्त हर रोज कोई न कोई गप्प तो हर रोज मारते रहतें हैं ।आज मुझे ये मिला।एक दिन जब मैं अपनें भाईयों के साथ टहलनें जा रहा था तो मैनें भी उन्हें झूठ मूठ ही कह दिया कि मुझे सोनें कि अंगूठी खुदाई में मिली।अंगूठी तो मुझे मिली थी लेकिन नकली।मैनें सोचा वह असली होगी यह पज्ञचानने के लिए मैं अपने घर के पास ही ज्वैलर के पास गया।उन्होनें मुझे हंसते हुए कहा कि यह नकली अंगूठी तुम क्यों बेचनें आए।मुझे एक विचार सूझा मैं भी अपनें भाईयों में हेकड़ी ज़मानें के लिए झूठ बोल देता हूं वे कौन से मेरे घर अंगूठी देखनें आएंगे हुआ बिल्कुल उसके विपरित। उन्होंने सचमुच ही आनें का वायदा किया।मैनें किसी न किसी तरह मां को मनवा लिया।वह भी झूठ बोलनें के लिए तैयार हो गई।मौसी ने सुनार कि दुकान पर जा कर पता कर लिया। हमारे पिता हम सब को शिक्षा दे कर गए थे कि चाहे कितना भी बड़ा संघर्ष आ जाए हम सब मिल कर उस समस्या का समाधान खोज लेंगे।हम नें अपनें पिता जी की आत्मा को ठेस पहुंचाई है।झूठ के पांव नहीं होते।झूठ तो कभी न कभी पकड़ा ही जाता है।दिमाग ठीक प्रकार से काम नहीं करता।आज से हम कसम खातें हैं कि हम कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे। बच्चों को सीख  देनें वाले अपना आपा नहीं खोते।

शिक्षा का महत्व भाग 3

ज्ञान तो है अनमोल खजाना।

उपलब्धियों का भंडार  सुहाना।।

ज्ञान से बढ़ कर नहीं  कोई सानी।

इसकि  कीमत  न किस नें जानी।।

ज्ञान तो  है अनमोल।

इसकी कीमत बेजोड़।।

हीरे मोती से ज्यादा कीमती है ज्ञान।

इसको अर्जित कर व्यक्ति बनता है महान।।

विद्या है व्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ सम्मान।

चोर भी चुरा कर नहीं कर सकता इसका अपमान।।

आओ ऐसा समाज बनाएं, बच्चा-बच्चा पढ़ लिख कर सुसभ्य और संस्कारी बन जाए।

आर्दश नागरिक बन कर अपने और नयी पीढ़ी के जीवन को महकाएं।।

ज्ञान अर्जित करवा बौद्धिक चेतना का विकास कराए।।

बच्चे कि सुषुप्त क्षमताओं को निखार कर उसके भविष्य को सुखद और सुन्दर बनाए।।

जन्म से मृत्यु तक चलता रहता है ज्ञान।

बच्चे कि ज्ञान पिपासा बढ़ा अच्छे संस्कार जगाता है ज्ञान।।

व्यक्ति में मानसिक निर्णय को जगाता है ज्ञान।

अपनें आस-पास, देश-दुनिया कि समझ करवाता है ज्ञान।

उसकी बुद्धि को बढ़ा कर गुणों और अवगुणों को दर्शाता है ज्ञान।।

सीखनें के प्रति उत्सुकता श्रद्धा को बढ़ाता है ज्ञान।

लगातार अभ्यास से मजबूत किया जा सकता है  ज्ञान ।।

अंतनिर्हित शक्तियों का सर्वोत्तम प्रयास है ज्ञान। 

स्वयं कि दक्षता और परिणाम का एहसास है ज्ञान।।

उन्नति के मार्ग प्रशस्त कर ऊंचाईयों के शिखर तक पहुंचाता है ज्ञान।

व्यक्तित्व को निखार सम्मान से जीना सीखाता है ज्ञान।

भले और बुरे कि पहचान करवाता है ज्ञान।

आत्मविश्वास कि प्रेरणा को जगाता है ज्ञान।।

बांटनें से बढ़ता है ज्ञान।

दिन रात व्यक्ति के स्तर में उन्नति कर चार चांद लगाता है ज्ञान।।

स्वास्थ्य का मूल आधार

सादा जीवन ,सादा भोजन ,उच्च विचार यही तो है मनुष्य की श्रेष्ठता का आधार ।

यही कहावत व्यक्ति के  स्वास्थ्य जीवन  जीने का “मूल   यथार्थ”।

धन गया,कुछ नहीं गया, चरित्र गया कुछ गया।

यदि स्वास्थ्य गया तो सब कुछ गया।।

तंदुरुस्ती हजार नियामत।

यही तो है जीवन को रखता है सलामत।। 

पृथ्वी,जल,अग्नि, वायु और तेज इस से शरीर बना सुडौल।

योगमय जीवन से और भी बनता है बेजोड़।।

कंद मूल फल हरी सब्जियां दूध दही सलाद हर रोज खाओगे,

व्यक्तित्व में सकारात्मकता के भाव को जगाओगे।

चेहरे पर सुन्दरता कि झलक हरदम ही पाओगे।।

जीवन में हमेशा मुस्कूराहट के फूल खिला कर सभी को हर्षाओगे।।

“पौष्टिक  आहार जीवन का  वरदान।

निरोगी काया जीवन का अभयदान।।

अच्छा स्वास्थ्य मानव जीवन का महा वरदान।।

बुद्धि बल निर्भीकता और प्रसन्नता सकारात्मकता  जीवन के सुखद परिणाम।

सूखा बासी,  जूठा आहार तामसिक प्रवृत्ति के हैं दुष्परिणाम।।

मसालेदार तेल व्यंजन मिठाईयां है तामसिक आहार।

मोटापे और चर्बी के हैं कर्णधार।

आलस्य, अवसाद और सुस्ती के है सुत्र धार।।

थोड़ा खा कर,चबा चबा कर पौष्टिक भोजन को खानें का नियम बनाओ,

व्यायाम और योगा कि  दैनिक चर्या को अपनी जिन्दगी का हिस्सा बनाओ।

घूंट घूंट कर के गुनगुनें पानी को पीओगे तो,

बढ़ी चर्बी को कम कर , स्वास्थ्य लाभ पाओगे।।

प्रोटीन,वसा, विटामिन,खनिज,उर्जा से भरपूर  खाने को अपने भोजन का हिस्सा बनाओ।

निश्चित मात्रा में खा कर  ,अपने जीवन में तंदुरुस्ती लाओ।

बिमारियों से लड़ने कि प्रतिरोधक क्षमता पाओ।

अपनें चेहरे को सुन्दर और शरीर को सुडौल बनाओ।

आवश्यकता से अधिक खाना बच्चों अगर तुम खाओगे।

बिमार  हो कर   मृत्यु कि कगार तक पहुंच जाओगे।

नमक,तेल,चीनी कि मात्रा को कम खाओगे।

खानें में फाइबर युक्त भोजन और सलाद को ज्यादा से ज्यादा खाओगे,

जीवन में बिमारी को  अपनें पास से दूर भगाओगे।

चुस्ती,फुर्ती और तंदुरुस्ती है जीवन के सोपान

आलस्य, अवसाद,और सुस्ती हैं नर्क के सामान।।

पिज्जा बर्गर और नमकीन  ये देतें है बिमारी को निमंत्रण

घर का ताजा और पौष्टिक भोजन  है रखतें हैं बिमारी पे नियन्त्रण।।

ज्यादा गर्म , ज्यादा ठंडा और तला भोजन  घर कि बर्बादी का कारण

व्यक्ति कि सेहत को खराब करनें का उपकरण।

अंधविश्वास

एक छोटे से गांव में पारो और उसका पति नत्थू रहता था। उनके एक बेटी थी रानी ।रानी को उसके माता पिता बहुत ही प्यार करते थे। वे उसे पढ़ाना चाहते थे ताकि वह पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके लेकिन रानी इतने लाड प्यार में पली थी कि वह बात बात पर रुठ जाती थी। काम भी अपनी मर्जी का ही किया करती थी ।उसे काम करने से कोई लगाव नहीं था। उसकी बहुत ही सहेलियां थी। वह सारा दिन उनके साथ खेलने चली जाती। वह सभी सहेलियां इकट्ठे स्कूल जाया करती थी उसे बात बात पर शक करने की आदत थी। उसकी सहेलियां ही उसे ऐसी मिली थी। कहते हैं कि जैसी संगत करो वैसे ही इंसान बन जाता है उसकी सहेलियां उसे कहती आज हमारे घर में एक छमिया ताई आई थी वह जादू टोना करती है।  उनके घर में जब भी कोई मेहमान आता तो वह उसके हाथ से एक गिलास पानी पीना भी पसंद नहीं करती थी।

एक बार  उसकी  मुंह बोली ताई सविता उनके घर आ गई ।उसको  अपनें घर आते देखकर वह कभी भी बाहर नहीं निकलती थी। उसे ऐसा महसूस होता था कि वह उसे कोई ऐसी  वैसी चीज ना खिला दे  जिससे वह बीमार हो जाए। उस पर कोई जादू टोना न कर दे। उसको कमरे में बंद देख सविता पारो से बोली तुमने अपनी बेटी को सिर पर चढ़ा दिया है। उससे भी घर के दूसरे सभी काम करवाया करो। कल को वह ब्याह कर  दूसरे घर जाएगी तो उसे भला-बुरा सुनना पड़ेगा। अपने ज्येष्ठ भाई को सविता बोली भाई तुमने अपनी बेटी को कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है ।उस पर थोड़ा सा तुम्हारा नियंत्रण तो अवश्य होना चाहिए। रानी शेन यह सब सुन लिया था।वह अपनें गुस्से पर नियंत्रण रखना नहीं जानती थी।

 रानी बाहर आकर  अपनी ताई को बोली आप ऐसा क्यों कहती हो? मेरी मर्जी मेरा जब काम करने को मन करेगा तभी मैं काम करूंगी। आप तो चुप ही रहो। इस बात पर सविता को गुस्सा आ गया वह बोली तू जोर से बोलेगी तो तुझ पर थप्पड़ भी लगा दूंगी। तुझे पहले ही थप्पड़ पड़ा होता तो तू सुधर जाती। तेरे माता पिता तो दोनों भोले भाले हैं। मैं जब तक तुझे सुधार न लूं यहां से जाने वाली नहीं।

 रानी कुछ कहनें ही जा रही थी कि उसके पिता ने आकर उस के मुंह पर हाथ रख कर उसे रोक दिया। वह झगड़ा बढ़ाना नहीं चाहते थे। वह चुपचाप जल भून कर अपने कमरे में चली गई। उस दिन तो वह कुछ भी नहीं बोली ।अपनी ताई उसे एक खलनायिका दिखने लगी। वह सोचनें लगी इस ने  तो आते ही  मेरे माता-पिता को ना जाने क्या पट्टी पढ़ा दी है दोनों मूर्ख बने बैठे हैं। इनके इशारों पर नाचते हैं।   वह जब दोपहर को अपनी सहेलियों से मिली  तो उसने अपनी सहेलियों को सारी बातें बताई। उसकी सहेलियां कहने लगी कि तुम्हारी ताई तो जादू टोना करना जानती होगी। उसने तुम्हारे माता-पिता पर जादू कर दिया है। डर के मारे वह थरथर कांपने लगी। चुपचाप घर में  जब आती वह किसी से कुछ भी बात नहीं करती।

 एक दिन उसके माता-पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे ।रानी के पेट में बहुत जोर से दर्द उठा। घर में उसकी ताई ही घर पर थी। उन्होंने  बड़ी ही मुश्किल से उसे दवाई खिलाई। उससे भी उसका दर्द ठीक नहीं हुआ। वह सोचने लगी कि उन्होंने मुझे ना जाने क्या खिला दिया? वह मन ही मन डरने लगी। पढ़ाई में  अब उसका मन नहीं लगता था ।

उसके मम्मी पापा ने उसे हॉस्टल में डाल दिया।वह  हॉस्टल में रहने लगी।  उसके पिता ने उसे  जहां उसकी ताई  अमृतसर शहर में रहती थी उन के नजदीक  ही      थोड़ी दूरी पर उसे हौस्टल में डाल दिया था। उसके पिता नें उसे  समझाया था कि जब भी तुझे किसी वस्तु कि आवश्यकता हो तो  तुम अपनी ताई से बिना किसी संकोच  से कह सकती हो।उसकी  ताई का घर  हौस्टल से दस किलोमीटर कि दूरी पर था। उसने अपनी मम्मी पापा को बताया कि आप ताई के पास मुझे मत ठहराना मैं तो हॉस्टल में ही रहना चाहती हूं। उसे यही डर लगा रहता था कि उसकि ताई यहां पर भी ना  आ धमके।

 एक दिन उसके पेट में अचानक दर्द हुआ। हॉस्टल वार्डन ने उसकी ताई को फोन करके बुला लिया, क्योंकि उसके माता-पिता तो बहुत ही दूर रहते थे ।उसकी ताई उसके सिराहनें बैठ कर उसे दवाइयां देती रही ।बीमारी के कारण वह तो उठने में असमर्थ  थी।वह अपनी ताई के हाथ से दवाइयां खाने में हिचकिचा रही थी ।उसे दूर से आते देख कर  रानी आंखें बंद कर लिया करती थी। एक दिन जब उसकी ताई  हौस्पिटल आई  तो रानी नें उसे दूर से आते देख चादर से अपना मुंह ढक लिया। उसकी ताई ने समझा कि वह सो रही है ।उसे जगाना उचित नहीं लगा।डाक्टर  आते ही बोली कि इस बच्चे को कोई मानसिक परेशानी है। इसके पेट में पथरी है। पत्थरी का इलाज ऑपरेशन ही करना पड़ेगा। सविता बोली  डाक्टर साहब शायद यह मुझे अपना शत्रु समझती है । उस पर मैं बार-बार  टोका टाकी करती रहती थी। मैं तो इसके भले के लिए उसे सुनाया करती थी ताकि हमारी बेटी बड़ी होकर एक बहुत ही अच्छी कामयाब ऑफिस बनें। मेरे भाई भाभी की एक ही संतान हैं। उनको मैं कभी दुखी नहीं देख सकती।हे भगवान! इसकी सारी परेशानियां मुझे दे दे।हे भगवान !इसे जल्दी से ठीक कर दे, चाहे मुझसे मेरी जिंदगी ले ले ।

मैंने तो अपने बच्चों की शादियां कर दी है। मेरे भाई के नसीब में शायद दुःख ही लिखा है ।रानी ने जब ऐसा सुना तो उसे अपने पर बहुत ही पछतावा हुआ ।वह सारी उम्र अपनी ताई को कोसती रही। अपने आप इस खौफ में जीती रही कि उसे उसकी ताई ने कुछ कर तो नहीं दिया है। मेरी बीमारी तो पथरी है। हे भगवान! मुझे माफ कर दे ।अचानक उसे सुबकता देखकर कि उसकी ताई ने उसके ऊपर से चादर हटाई।उसे प्यार से गले लगाते हुए कहा  क्या हुआ? मैं जो तेरे पास हूं।तुझे कुछ भी नहीं होगा। सब कुछ ठीक हो जाएगा।

 वह अपनी ताई के गले लग कर जल्दी से रोते रोते बोली मुझे मौफ कर दो। आज ही तो उसे बहुत सकून  मिला था। उसके मन से अंधकार और बुरे विचारों का नाश हो गया था ।

डॉक्टर ने कहा कि पथरी का ऑपरेशन हो चुका है ।रानी के पेट में अब कभी दर्द नहीं होगा। यह सुनकर रानी को बहुत ही अच्छा लगा। मेरी सहेलियां मुझे अचानक ही मनगढ़ंत कहानियां सुनाकर मेरे मन में शक का बीज बो दिया।

 मैं अपनी ताई को ही अपना दुश्मन समझती रही । मैंने अगर समय पर दवाइयां ली होती तो पहले ही इसका इलाज हो जाता। अच्छा ही हुआ जो मुझे सब कुछ मालूम हो गया डर हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। इस डर को खत्म करके वह खुशी से जी रही थी। वह ठीक हो कर घर आ चुकीं थीं। घर में आते ही वह अपनी ताई से बोली ताई जी में आपके लिए चाय बनाती हूं। उसकी ताई बोली हां ,अच्छी सी चाय बना अगर तू अच्छी चाय नहीं बनाएगी तो मैं तुझे डांटूंगी। उसे सच्चाई काआ आभास हो चुका था ।वह अपनी पुरानी बात को याद करके अकेले ही हंस पड़ी। उसने अपनी ताई के बारे में क्या-क्या राय कायम की थी ।आज वह बिल्कुल आजाद थी। उसने अंधविश्वास को छोड़कर मुस्कुराना शुरू कर दिया था। इस कहानी से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हमें अच्छी संगत करनी चाहिए। बुरी संगत करने वालों में बुरी संगत करने वालों के साथ रहकर इंसान बुरा बर्ताव करने लग जाता है। हमें बुरी संगत से बचना चाहिए। और अपने विचारों को सकारात्मक बनाना चाहिए।

नया जन्म

रुपाली एक मध्यमवर्गीय मां बाप की बेटी थी। उसने अपनें माता पिता की इच्छा के विरुद्ध अपनें ही कौलिज के एक लड़के को अपना योग्य वर चुना। उसके माता-पिता इस शादी के बहुत खिलाफ थे। इसलिए नहीं कि वह उनकी बिरादरी का नहीं था बल्कि इसलिए क्योंकि उन्हें उस लड़के का चाल चलन और स्वभाव पसंद नहीं था। रूपाली ने प्यार में पड़कर अपने माता-पिता का साथ छोड़ रईस सेठ के बेटे के साथ शादी कर ली। रुपाली के माता पिता ने अपनी बेटी को बहुत समझाया पर उसने उनकी एक न सुनी। अपने माता-पिता से सारे रिश्ते तोड़ कर वह अपने पति के साथ दूसरे शहर मे आ कर रहने लगी थी।
उसके पति को छोटे मोटे व्यापार के सिलसिले में अक्सर बाहर जाना पड़ता था। कुछ बुरे दोस्तों का संग करनें लगा। उसे शराब की लत लग गई।

रूपाली छोटे-मोटे लोगों से बात करना पसंद नहीं करती थी वह हमेशा अपनी ही अकड़ में रहती थी। वह अपनी 4 साल की छोटी सी कनिका को भी अपने जैसा ही बनाना चाहती थी। उसे कनिका का अपनी से छोटे तबके के बच्चों के साथ खेलकूद करना बातें करना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
उसके घर से थोड़ी ही दूरी पर एक छोटी सी झोंपड़ी थी जिसमें रुचि अपनी बेटी टीना के साथ रहती थी। टीना कनिका की हमउम्र थी। उसकी मां बहुत ही मेहनती और नेक महिला थी। उसने पाई पाई जोड़ कर एक छोटी सी झोंपड़ी बनाई थी।
रुचि अपनी बेटी की खातिर संघर्ष करने के लिए तैयार थी। वह अपने मन में सोचा करती थी कि मेरी बेटी पढ़ लिखकर बहुत बड़ी इंसान बने। उसे किसी भी चीज की तंगी नहीं होने देगी ।स्वयं भूखे रहकर वह अपनी बेटी को अच्छी से अच्छी शिक्षा देगी।

जब भी रुपाली वहां से जाती तो उसको देख कर नन्ही सी टीना मुस्कुराती और अपने हाथों से हाथ जोड़कर उसे नमस्ते कहती। रुपाली इतनी घमंडी थी कि वह उस छोटी सी बच्ची के अभिवादन को ठूकरा दिया करती थी। उस की तरफ देख कर अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया करती थी। रुपाली अपनी बेटी को कहा करती थी कि छोटे लोगों के साथ दोस्ती नहीं रखनी चाहिए।ये कितने गंदे कपड़े पहनते हैं? साफ सफाई भी नहीं रखते। तुम उनके साथ मत खेला कर।क् छोटी सी कनिका टीना से बात भी नहीं करती थी। वह अपनी सहेलियों के साथ ही खेला करती थी।

रूपाली को जब कोई नौकर काम पर नहीं मिला तो उसने रुची को कहा कि तुम मेरे घर पर सफाई कर दिया करो तो मैं तुम्हें अच्छी रकम दूंगी। रुची उसके घर में साफ सफाई करने लगी। एक दिन रुपाली ,रुची को कहने लगी कि यह साथ वाली जगह हमें दे दे। तू कहीं और जाकर रह ले। मैं दुगुनी कीमत पर यह जगह खरीदना चाहती हूं। रुचि कहनें लगी कि बीवी जी मैं मर जाऊंगी मगर अपनी जगह किसी भी कीमत में नहीं दूंगी। मेरा और मेरी बेटी का यही एक छोटा सा घर संसार है । मैनें अपनी जिंदगी का लम्बा सफर यहीं से शुरू किया। अपनी बेटी को शिक्षा देने के काबिल बनाया । हम गरीबों की झोपड़ी का मोल आप लोग क्या जाने? रूपाली ने कई बार रुची की झोंपड़ी को तुड़वाने के की कोशिश की मगर रुचि की हिम्मत के आगे कुछ भी ना कर सकी।
इसी कारण वह उस के साथ बात नहीं करती थी। उसे रूचि का काम करना भी पसंद नहीं आता था कोई भी उसके पास काम करना पसंद नहीं करता था इस कारण उस को काम पर रखनें से मना नहीं कर सकती थी। वह उसकी बेटी को स्कूल से भी ले आती थी। टीना आओर कनिका दोनों एक ही विद्यालय को पढ़ाई करना अच्छा नहीं लगता था। वह सारे दिन खेल में समय नष्ट कर दिया करती थी।
टीना कक्षा में सबसे आगे रहती थी । एक दिन कक्षा में कनिका ड्राइंग बना रही थी। मैडम ने तीन बार कनिका का नाम पुकारा मगर कनिका नें मैडम की बात का जवाब नहीं दिया। मैडम कनिका की सीट पर पहुंचने ही वाली थी कि टीना नें उसकी ड्राइंग वाली नोटबुक जल्दी से उठाकर अपनें बैन्च पर रख दी। कनिका ने देखा कि टीना ने उसे आज बचा लिया था। मैडम उसके बस्ते की तरफ देख कर वापिस अपनी सीट पर चली गई थी। कनिका कुछ बोली नहीं। आज कनिका को तो टीना पर गुस्सा नहीं बल्कि उस से बातें करने को मन कर रहा था । एक वही लड़की थी जो उसकी भावना को समझती है। क्या हुआ इस के कपड़े गंदे हैं। कोई बात नहीं, यह दिल की बहुत अच्छी है। धीरे-धीरे कनिका टीना के साथ घुलमिल गई ।अपनी मां की आंख बचा बचा कर चुपचाप उसके साथ खेला करती थी।
रूपाली का पति शराब पीता था अपने रुपाली को कभी नहीं बताया था कि वह बुरी संगत में पड़ गया है। कई बार रूपाली ने अपने पति को समझाया मगर उसने शराब पीना नहीं छोड़ा। शराब का ठेका भी उसने खोला हुआ था। व्यापार उस में भी उसे नुकसान ही हुआ। रूपाली को अपना मकान भी गिरवी रखना पड़ा ।उसके पास अब रहने के लिए घर भी नहीं था। उसकी मदद को कोई आगे नहीं आया।उसका बर्ताव भी दूसरे लोगों के साथ अच्छा नहीं था। तीन-चार दिन तक जैसे तैसे कर के उसनें जो कुछ उस के पास रुपये बचे थे उस से होटल में रहकर रात गुजारी । उसके पास अब रुपए भी खत्म हो गए थे । किसी ने भी उसे आसरा नहीं दिया।
रुचीका अपनी बेटी को लेकर बाजार से जा रही थी कि उसकी नजर रुपाली पर पड़ी ।‌ उसने कुछ दिन पहले ही रुचि को काम से निकाल दिया था। रुची नें जब रुपाली की ऐसी हालत देखी तो वह उस से बोली बहन आप इधर-उधर मत भटको ।आपको अगर कोई तकलीफ ना हो तो आप मेरे घर में कुछ दिन आराम से रह सकती हैं। जब तक आपका कोई ठौर ठिकाना नहीं मिलता तो आप मेरे यहां रह कर काम कि तलाश करती रहें।।आप तो बहुत पढ़ी लिखी है जल्दी ही आप को कोई न कोई काम मिल जाएगा।
रुपाली सोचनें लगी थी ठीक ही तो कह रही है जब तक उसे आसरा नहीं मिलता उस के पास ही रह लिया जाए।किस मुंह से उस से हां कहूं।मैनें भी तो अपनी हेकडी में रह कर उस से कभी सीधे मुंह बात नहीं की।जब इन्सान के बुरे दिन आतें हैं तो उस का कोई साथ नहीं देता। मैंनें भी घम्मड में चूर हो कर गांव के लोगों के साथ ठीक बर्ताव नहीं किया।उन्हें अपना दुश्मन ही जाना।
आज किस्मत मुझे फिर से उस के पास खींच कर लें आई है जिस से वह सब से ज्यादा घृणा करती थी। इसलिए कि वह बेचारी गरीब है।उस की झोंपड़ी का भी कई बार सौदा करना चाहा मगर उस गरीब का कुछ भी न बिगाड़ पाई।आज वही उस से अपना पन दिखला कर उस को अच्छा मश्वरा दे रही है। तीन दिन हो गए हैं यूं ही उसे घूमते घूमते। कोई काम नहीं मिला।करें भी तो क्या करें? जाए तो कहां जाए।अपनें पति को कैसे जेल से छुड़ाएगी? मेरे पति ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।

अपने माता-पिता के पास भी नहीं जा सकती वह भी बहुत ही दूर शहर में रहते हैं। उन्होंने ठीक ही कहा था कि बिना सोचे समझे कोई कदम नहीं उठाना चाहिए। मैंने तो कर्ण के लिए अपने माता पिता को छोड़ दिया। माता-पिता अपने बच्चों की भलाई के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं और हम बच्चे उनकी आशाओं का गला घोट देते हैं। मैंने उनकी बात मानी होती तो आज मुझे यह कदम नहीं उठाना पड़ता। आज अपनी बेटी को लेकर कहां जाऊं ।मैंने आज तक किसी से सीधे मुंह बात भी नहीं कि इंसान को कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए। एकदम आज मेरी हालत ऐसी हो गई है जिस की झोपड़ी को मैं हडपना चाहती थी आज वही रूचि मेरे काम आई। वह तो आज मेरे लिए एक मसीहा बनकर आई है।
कनिका को बुखार आ चुका था ।वह वर्षा में काफी भीग चुकी थी। रुचि उसे अपनी झोपड़ी में ले जाकर बोली की कनिका को बुखार आ गया है जल्दी से इसके कपड़े बदला दो ।यहां टीना की फ्रॉक है। यह है तो पुरानी है पर धुली हुई है। रुपाली ने जल्दी से टीना की फ्रॉक उसे पहना दी आज उसे महसूस नहीं हो रहा था कि वह किस स्तर की है? तब तक रूचि चाय लेकर आ गई थी वह बोली बीवी जी आप भी कपड़े बदल लो आपकी साड़ी सारी गीली हो गई है ।मैं आपको अपनी शौल लाती हूं । आप कुछ देर मेरी शौल ओढ लो जल्दी ही आपकी साड़ी सूख जाएगी तब तक आप यह सूट पहल लो। आज उसे जरा भी महसूस नहीं हो रहा था कि रुची उसके स्तर की नहीं है। टीना को ले कर अपने आप नीचे जमीन पर सो गई। कन्नू और उसकी मां को उसनें अपनी चारपाई दे दी। आज रूपाली सच्चाई से अवगत हो चुकी थी।उस की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे।रुपाली नें रुचि को कहा कि मैं अपने भाई को फोन मिलाती हूं ।उसने अपनी सारी कहानी रुचि को सुना दी।

रूची बोली की बहन मां बाप तो गुस्से में ना जाने अपने बच्चों को क्या-क्या बोल देते हैं? आपने अपने मां बाप का दिल दुखाया है। आप उन्हें सच सच बता दे। माता-पिता अपने बच्चों की खातिर क्या-क्या नहीं करते? आज आपको पता चला। आप अपनी बेटी की खातिर सब काम करने को तैयार हो गई।रुपाली की आंखों में आंसू आ गए।रूची नें अपनी गुल्लक तोड़ी और कहा बहन इस में थोड़ा थोड़ा कर के कुछ रुपये जमा किए हैं शायद आप को मुझ से ज्यादा आप को इन की जरुरत है।उसने अपनी सोनें की चेन जो उसनें पिछले साल अपनी बेटी के लिए बनवाई थी रुपाली को कहा बहन इस को बेच कर उस से कुछ काम बनता है तो आप अपने पति को जेल से छुड़वा कर लाओ।जब तक आप के पास रहने का बंदोबस्त नहीं है आप खुशी से मेरे यहां रह सकती हैं। आप अपनें भाई को भी फोन मिलाओ।
रुपाली नें अपने भाई को फोन मिलाया। उसके भाई ने कहा कि बहन तेरे साथ इतना सब कुछ हो गया तूने पहले हमें क्यों खबर नहीं की। वह बोली भाई अब मुझे समझ आ गया है। मैं आप सब से माफी मांगना चाहती हूं। उसकी मां बोली बेटा तू जल्दी ही वापिस घर आ जा।रुपाली बोली मुझे कुछ रुपए इस पते पर भिजवा दें। उसने गांव का पता दे दिया अपनी मां को बोली कि मैं अपने पैरों पर खड़ा होकर कुछ बन कर ही वापिस आपके पास आऊंगी ।
रुपाली को उसके भाई ने ₹1,000,00 की राशि भिजवा दी। उसने रुचि को ₹50,000 देकर कहा कि बहन आप इस से अपना घर बना लो। तुमने मुसीबत के समय मेरी सहायता की। एक अच्छी बहन का किरदार निभा कर मुझे समझाया।मैं भटक चुकी थी। रुचिका बोली मैं ये राशि नहीं ले सकती मुसीबत के समय अपने दोस्त का साथ देना तो मेरा फर्ज था । रूपाली ने रुचिका से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगी और कहा कि तुम्हें झोपड़ी खाली करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
मैं अपनें पांव पर खड़ी हो कर अपना तथा अपनी बेटी का लालन पालन करुंगी ।तुम भी मेरे व्यवसाय में मेरा हाथ बंटाना।आज से ही मैं हर गांव वालों से अपने बुरे व्यवहार के लिए क्षमा मांगूंगी।आज ही तो मेरा नया जन्म हुआ है।आज से मैं स्वार्थी नहीं परमार्थी कहलाऊंगी।तुम्हारी सीख नें ही मुझ में बदलाव लाया है।उस दिन के बाद रुपाली सचमुच आदर्श गुणों वाली बन गई।उस नें अपनें पति को भी जेल से छुड़वा दिया और उस से कहा कि अगर तुम नें शराब को हाथ भी लगाया तो वह अपनी बेटी को ले कर सदा सदा के लिए इस गांव को छोड़ कर चली जाएगी।
कुछ दिनों की कोशिश से कर्ण भी बदल गया ।उस नें शराब पीना सदा के लिए छोड़ दिया।वह भी व्यापार में अपनी पत्नी का हाथ बंटाने लगा।