आशियाना

एक वन में विशाल और ऊंचा बरगद का पेड़ था।
कितने सालों से वह पेड़ था यूं ही था वहां खड़ा ।
पेड़ ने एक दिन यूं आने जाने वालों से पूछा
मैं यहां क्यों हूं रहता।
मैं यहां क्यों हूं रहता।
पेड़ हर रोज यही प्रश्न पूछा करता था।
हर रोज चिंता में घुटता रहता था ।
उसकी पतियां थी बहुत ही हरी हरी और प्यारी।
उसकी खुशबू से महकती थी की जंगल की धरती सारी।।
अनेकों चिड़िया उस पर आ कर चहचहाती थी ।
अपनी मधुर गुंजन से उस उपवन को महकाती थी।
बहुत सारे पक्षी उस पर घोंसला बनाकर रहते थे।
वे सभी एक साथ मिलजुल कर खुशी खुशी रहते थे।
चिड़ियों के शोर से वन का कोना कोना गूंज उठता था।
प्रकृति की छटा का अद्भूत नजारा वहां दिखता था।
एक दिन पेड़ ने उधर आने जाने वालों से पूछा
मैं यहां क्यों हूं रहता?।
मैं यहां क्यों हूं रहता?।
हर रोज मायूस हो जाया करता।
मायूस होकर एक दिन वह बोला मेरी इच्छा है कि कोई मुझे काट डाले। मेरी लकड़ी से अपना घर बना डाले।
बाजार में जाकर ढेर सारी कमाई कर डाले।
पेड़ बोला मैं कभी किसी के काम नहीं आया?।
मैंने अपना सारा जीवन यूं ही व्यर्थ गंवाया ।
उस की करुण पुकार एक चिड़िया को थी दी सुनाई।
उसकी पुकार सुनकर चिड़िया की आंख भर आई।।
काली चिड़िया उड़ती उड़ती आई ।
उसने यह बात अपने सभी साथी चिडियों को बताई।।
पेड़ सोच रहा है कि मैं किसी के काम नहीं आया।
यूं ही जी कर अपना सारा जीवन व्यर्थ गंवाया।।
सारे पक्षी बोले आओ मिलकर उस पेड़ को मनाएं।
उसकी दर्द भरी पुकार सभी साथियों को सुनाएं।
पक्षी उस पेड़ के पास जाकर बोले आज तुम तो सौ घर वाले हो।
दस घर नहीं बल्कि दस से भी सौ गुना अधिक घर वाले हो।।
तुम्हारी कृपा से ही तो हम सभी यहां परिवार सहित रह पाए हैं।
यहां पर यह कर हमारे नन्हें नन्हे बच्चे मुस्कूराएं हैं।

इस जंगल को छोड़कर कभी मत जाना।
तुम से ही तो है हमारा आशियाना।
पेड़ मुस्कुराते हुए बोला मैं किसी के काम तो आया ।
मैंने अपना जीवन यूं व्यर्थ नहीं गंवाया।
आज मुझे मालूम हो गया कि मैं यहां क्यों हूं रहता?
अपनें जीवन को यूं ही न्योछावर करता हूं रहता।

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