नेकी का रास्ता

तरुण आठवीं कक्षा का छात्र था। घर में सबका लाड़ला था इसलिए वह बिगड़ गया था। सुबह उठते हुए जब उसकी मां उसे कहती बेटा नाश्ता कर लो तो वह नाक भौं सिकोड़ कर कहता की क्या बना है ?उसे खाने में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था।उसे बाजार की वस्तुएं खाने की आदत पड़ चुकी थी। उसकी थाली में हमेशा झूठा भोजन बचता था। उसे झूठा छोड़ने की आदत थी ।उसकी मां उसे समझाती बेटे हमें उतना ही भोजन लेना चाहिए जितना हम खा सकते हैं ।पहले कम भोजन लेना चाहिए ।बाद में थोड़ा-थोड़ा करके और खा सकते हैं ।आज भी उसने थाली में खाना झूठा छोड़ दिया था ।वही इस बात का गम्भीरता से पालन नहीं करता था।उसकी दादी उसे समझा कर कहती थी कि अभी तुम बच्चे हो। आधा खाना प्लेट में छोड़ देते हो। अन्नपूर्णा मां का हमें निरादर नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार मैं तुम्हारी मां हूं वह भी अनाज की देवी अन्नपूर्णा मां होती है। उसे सारे भोजन की रक्षा करना पड़ती है जो थाली में भोजन जूठा छोड़ते हैं उन से मां अन्नपूर्णा नाराज हो जाती है।उस घर में तो कभी भी खुशहाली नहीं आती। तुम तो थाली से नीचे भी गिरा देते हो। वह बोला मां करता सचमुच में ही अन्नपुर्णा मां होती हैं? मां बोली बेटा ,बचा हुआ या नीचे गिरा हुआ भोजन उठा कर हमें पक्षी को खिला देना चाहिए।
हमें ऐसे इंसान को भोजन नहीं देना चाहिए जो घर से तृप्त हो कर आया हुआ होता है। ऐसे व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए जो सचमुच में ही भूखा हो। कभी-कभी तो तरुण अपनी दादी की बातों को गौर से सुनता कभी एक कान से सुनता कभी दूसरे से निकाल देता।
एक दिन वह अपनी दादी,चाची और छुटकी के साथ परिवार के किसी शादी की समारोह में भाग लेने के लिए जा रहा था। वहां पर पहुंचने पर उसे वहां पर अपनें बहुत सारे पुरानें दोस्त मिले । उन के साथ मिल कर वह खुशी अनुभव कर रहा था। भांति भांति के तरह-तरह के व्यजंनों को देख कर उसके मुंह में पानी आ गया। और बहुत सारे मिष्ठान। वह उन व्यंजनों को देखकर सोचने लगा कि आज तो मै भरपेट कर खाना खाऊंगा। कुछ लोग खाना खा रहे थे।कुछ लोग खाना खानें के बाद ढेर सारी मिठाईयां खानें में जुटे थे।वह सोचनें लगा सब लोग तो शादी के समारोह में उपस्थित हो कर आनन्द ले रहें हैं।। तरुण भी शादी में उपस्थित अपने सभी दोस्तों से मिल रहा था ।।वहअपनें दोस्तों के साथ डांस कर खुश हो रहा था।मैं थोड़ी देर बाद जब नाच गान करके थक जाऊंगा तब इन सभी व्यंजनों को खा कर भरपूर मजा लूंगा। उसे अचानक तभी बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। उसकी चाची ने उसके पास आ कर कहा बेटा नाच बाद में कर लेना पहले छुटकी को बाहर थोड़ा घुमा कर ले आ।यह मुझे तंग कर रही है।
वह छुटकी को लेकर बाहर आ गया तो पांडाल के बाहर उसे एक भिखारी खड़ा दिखाई दिया। वह भी अंदर आने की कोशिश कर रहा था लोगों ने उसे अंदर नहीं आने दिया वे उससे कह रहे थे कि तुम्हारा शादी के समारोह में क्या काम? तुम क्या इनके रिश्तेदार लगते हो? वह बोला बाबू साहब 2 दिन से भूखा हूं। मैंने सोचा शादी ब्याह वाला घर है यहां से कुछ खाने को तो मिल ही सकता है ।घर में उपस्थित लोगों ने उसे अंदर आने नहीं दिया।
भिखारी की दयनीय दशा देखकर उसे बहुत ही बुरा लगा।वह मन ही मन सोचनें लगा मैं भी तो घर में हर रोज इतना भोजन व्यर्थ फेंकता हूं इससे अन्नपूर्णा मां का अपमान होता है।आज कहीं उसे अपनी दादी मां की बातों में सच्चाई नजर आई। शादी में उपस्थित लोग उस भिखारी को बाहर ही थोड़ा सा खाना दे देते तो क्या हो जाता? चलो मैं अंदर जा कर चुपके से छिपकर के खाना लाकर इस भिखारी को दे दूंगा। उसको भिखारी पर बहुत ही दया आ रही थी। आज से पहले उसने कभी भी यह महसूस नहीं किया था ।वह तो हर रोज न जानें कितना झूठा खाना थाली में यूं ही व्यर्थ ही फेंक देता था।वह दौड़ कर छुटकी को लेकर अंदर आ गया।
भोजन का समय हो चुका था। लोग खाना खा रहे थे नाना प्रकार के व्यंजनों को देखकर पहले तो उसके भी मुंह में पानी आ गया था। लेकिन उस भिखारी का चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता था। आज उसने सोचा यहां पर तो भांति भांति , तरह-तरह के व्यंजन लगें है। उसने गिन कर देखा वह इतनें अधिक पकवान थे कि जिनको गिनना मुश्किल था। वह अपने मन में सोच रहा था कि इतने तरह-तरह के पकवानों को लगाने की क्या जरूरत थी? और ना जाने कितनी प्लेटों में झूठा खाना पड़ा था।लोग तो लालच के चक्कर में सारे व्यंजन डलवा देतें हैं।एक भी मनपसंद वस्तु का आनन्द नहीं ले सकते।मैं भी तो ऐसे ही करता हूं।आवश्यकता से अधिक वस्तु लेना हमारे लिए नुकसानदायक साबित होता है।यह बात हम में से कोई नहीं समझता।जब बिमारी घेर लेती है तब कहीं जा कर समझ आता है। थोड़े दिन तो याद रहता है बाद में हम सब उसी प्रक्रिया को दोहरातें है।जिसका इतना भयंकर परिणाम यह होता है कि हमें अपनी सेहत भी गंवानी पड़ती है।
उसने चुपचाप देखाआ बहुत सारे लोग भोजन की प्लेट पर बुरी तरह टूट रहे थे जैसे कि उन्होंने आज से पहले इतना स्वादिष्ट भोजन कभी खाया नहीं हो। आज उसे अपनी दादी के शब्द याद आ गए थे ।दादी ठीक ही कहती है शादी में इतना खर्चा करना किस लिए ? लोगों को तो दिखावा करना होता है अगर यह दो-तीन तरह के व्यंजन ही बनाते तो सब लोग खाना भी अच्छे ढंग से खाते और इतना खाना व्यर्थ में भी नहीं जाता ।ना जाने कितनी प्लेटो में झूठा खाना व्यर्थ पड़ा है ?आज तो मैं उस भिखारी को खाना देखकर ही आऊंगा। मैं अपने हिस्से का खाना उस भिखारी को दे कर आऊंगा ।उसने अपनी मां को कहा कि मां मैं बाहर घूम कर आता हूं। वह कुछ खाना छुपा कर उस भिखारी को देनें के लिए ले आया। बाहर का दृश्य देखकर तरुण की आंखों में आंसू छलक आए ।वह भिखारी झूठी पतलों में से खाना खा रहा था और अपने बच्चों को भी खिला रहा था। यह मंजर तरुण से देखा नहीं गया और भिखारी को देख कर उसे महसूस हुआ कि भिखारी की तरह कितने ऐसे लोग होंगे जिन को भरपेट खाना नहीं मिलता होगा। पानी पीकर ही अपना गुजारा कर लेते होंगे ।आज से मैं प्रण करता हूं कि मैं कभी भी प्लेट में झूठा खाना नहीं छोडूंगा और जब भी मुझे कोई ऐसा भूखा इंसान मिलेगा जिसने खाना नहीं खाया हो उसे सबसे पहले मैं घर से ले जा कर खाना दिया करूंगा। वापस आकर उसकी मां ने उसे खाना खाने बुलाया तो वह बोला मां मुझे भूख नहीं है ।उस की दादी उसे पर व्यंग्य कहते हुए बोली बेटा यहां पर मैं तुम्हें लम्बा चौड़ा भाषण नहीं दूंगी बेटा ,थोड़ा सा खाना खा ले।दादी नें खिंच कर उसे अपने पास बिठाकर कहा तुम खाना नहीं खाओगे तो बेटा भला मैं कैसे खा सकती हूं?उन के इस प्रकार अनुरोध करनें पर वह खाना खानें बैठ तो गया लेकिन थोड़ा सा खाना खा कर उठ गया।उस की दादी नें देखा कि वह भोजन को बड़े ही अच्छे ढंग से खा रहा था।उसने एक भी अन्न का दाना निचे नहीं गिराया था। उसकी दादी बोली बेटा तुम तो बहुत समझदार हो गए हो उसको यूं मायूस देख कर उसकी दादी बोली बेटा,आज तुम्हें क्या हुआ है? तुमने ठीक ढंग से खाना भी नहीं खाया।
वह कुछ भी न बोला।घर आ कर उसने सारी बात अपनी दादी को बताई।
उस दिन के बाद तरुण ने कभी भी थाली में झूठा नहीं छोड़ा ।उसने प्रण किया कि वह इस बात को अपने दोस्तों को भी समझाएगा।शादी विवाह विवाह में, या जन्म उत्सव में,या किसी पर्व पर इतना खर्चा किया जाता है ?अगर सभी माता-पिता या बड़े सभी लोग इस बात को समझें तो किसी भूखे को भोजन खिलाने में हम घबराएंगे नहीं बल्कि हम हर एक भूखे को खाना खिला कर अपने ऊपर गर्व महसूस करेंगे।स्कूल में उसनें अपनें सभी साथियों को यह कहानी सुनाई।
उसके बहुत सारे दोस्त बन गए थे।उन सब नें प्रण किया कि वह अपनें आसपास किसी भी भूखे को खाना खिलानें से पीछे नहीं हटेंगें।
हम जब बडे़ हो जाएंगे तो हम शादी आदि समारोह में ज्यादा मात्रा में भोजन नहीं बनवाएंगे।जितना आवश्यकता से ज्यादा खर्चा हम करना चाहतें हैं उस के मुताबिक वह फालतू का रुपया किसी अनाथालय या जरुरत मंद संस्था में दान कर दिया करेंगे।हमारे रुपयों का सदुपयोग भी हो जाएगा और परिवार में खुशहाली भी आएगी।गरीबों की दुआएं फलीभूत हो कर अपना चमत्कार दिखाएगी।

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