गांव का मेला (कविता)

गांव के मेले का पर्व आया, पर्व आया।

हम सब नें अपने गांव में जाकर मेला देखने का भरपूर आनंद उठाया।।

इधरउधर पांडाल सजे हैं।

लोग सज धज कर मेले मेंआतुर हो कर जमघट लगाएं खड़े हैं।।

बच्चे सजधज कर मेला देखनें चलें हैं।

 बूढ़े और युवा वर्ग सभी अपने साथियों संग मेला देखने चले हैं।।

 

खोमचे वाले और हलवाई की चारों ओर भीड़ लगी है।

रंग बिरंगी प्यारी-प्यारी वस्तुओं की दुकानें  भी खूब सजी है।।

बच्चों की  जीभ तरह तरह की  मिठाईयों को देख  ललचा रहीं हैं।।

 

इधर उधर झूला झूले और चंडोल भी लगे हैं।

बच्चे चंडोल और झूला झूले में  बैठे मस्त होकर चिल्ला रहे हैं।

ऊपर नीचे जाते चांडाल पर बैठ कुछ खुशी कुछ भय के साथ चंडोल का आनंद उठा रहे हैं।।

आने जाने वाले लोग मिठाई भी खा रहे हैं।

कोई चाट पापड़ी तो कोई रसमलाई भी खा रहे हैं।।

बच्चे अपने दोस्तों संग खुशियां मना रहे हैं।

बच्चों के माता-पिता भी बच्चा बनकर उनकी खुशी में अपनी खुशी दिखा रहे हैं।।

मेलों में  बच्चों के कार्यक्रम का आगाज भी हो रहा है।

मेला प्रबंधक महोदय और मेलों में आए लोग बच्चों के गीत सुन सुन कर उन को सराह रहे हैं।

उन्हें पारितोषिक दिला कर उनके हौसले को बढ़ा रहे हैं।।

मेले में कुश्ती का कॉम्पीटिशन भी हो रहा है।

हर युवा और व्यस्क कुश्ती में भाग लेने की हट कर रहा है।।

बच्चे आगे जा जाकर कुश्ती का आनंद ले रहे हैं।

हर एक को  वाह! वाह!कह कर उसकी खुशी को चार चांद लगा रहे हैं।।

बच्चों की मम्मीयां भी चाट पापड़ी चटकारे लेकर खा रहीं हैं।

सीसी करके उसे एक और दे कह कर  मक्खन लगा रही हैं।।

 

गोलगप्पे वाला खुशी से कुप्पा हो कर उन सब को गोलगप्पे खिला रहा है।

हर आने जाने वालों  लोंगों को चाटपापडी खिला कर लुभा रहा है।।

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